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سُورَةُ الانشِقَاقِ

84. अल-इन‌‌शिक़ाक़

(मक्का में उतरी, आयतें 25)

परिचय

नाम

पहली आयत के ही शब्द 'इनशक़्क़त' (फट जाएगा) से लिया गया है। 'इनशिक़ाक़' क्रियार्थक संज्ञा है जिसका अर्थ है 'फट जाना' और इस नाम का अर्थ यह है कि यह वह सूरा है जिसमें आसमान के फटने का उल्लेख हुआ है।

उतरने का समय

यह भी मक्का के आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है। इसकी वार्ता की आन्तरिक गवाही यह बता रही है कि अभी अन्याय एवं अत्याचार का दौर शुरू नहीं हुआ था, हालाँकि क़ुरआन के संदेश को मक्का में खुले तौर पर झुठलाया जा रहा था और लोग यह मानने से इंकार कर रहे थे कि एक दिन क़ियामत आएगी और उन्हें अपने ख़ुदा के सामने जवाबदेही के लिए हाज़िर होना पड़ेगा।

विषय और वार्ता

इसका विषय क़ियामत और आखिरत (प्रलय और परलोक) है। पहली पाँच आयतों में न केवल क़ियामत की कैफ़ियत बताई गई है, बल्कि निश्चित रूप से घटित होने का प्रमाण भी दे दिया गया है। इसके बाद आयत 6 से 10 तक बताया गया है कि इंसान को चाहे इसका पता हो या न हो, बहरहाल वह उस मंज़िल की तरफ़ चाहे-अनचाहे चला जा रहा है जहाँ उसे अपने रब के आगे उपस्थित होना है। फिर सब इंसान दो भागों में बँट जाएँगे। एक वे जिनका कर्म-पत्र सीधे (दाएँ) हाथ में दिया जाएगा, वे किसी कठोर हिसाब-किताब के बिना माफ़ कर दिए जाएंगे। दूसरे वे जिनका कर्म-पत्र पीठ के पीछे से दिया जाएगा। वे चाहेंगे कि किसी तरह उन्हें मौत आ जाए, मगर मरने के बजाय वे जहन्नम में झोंक दिए जाएंगे। उनका यह अंजाम इसलिए होगा कि वे दुनिया में इस भ्रम में मग्न रहे कि कभी अल्लाह के सामने जवाबदेही के लिए हाज़िर होना नहीं है, हालाँकि उनका सांसारिक जीवन से आख़िरत के इनाम या सज़ा तक क्रमागत पहुँचना उतना ही विश्वसनीय और अटल है जितना सूरज डूबने के बाद लाली का ज़ाहिर होना, दिन के बाद रात का आना और उसमें इंसानों और पशुओं का अपने-अपने बसेरों की ओर पलटना और दूज के चाँद से बढ़ते-बढ़ते पूर्णिमा का चाँद बन जाना निश्चित है। अन्त में उन काफ़िरों (इंकार करनेवालों) को दर्दनाक सज़ा की ख़बर दे दी गई है जो क़ुरआन को सुनकर अल्लाह के आगे झुकने के बजाय उलटे झुठलाते हैं, और उन लोगों को अपार प्रतिदान की शुभ-सूचना दे दी गई है जो ईमान लाकर भले कर्म करते हैं।

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سُورَةُ الانشِقَاقِ
84. अल-इनशिकाक़
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
إِذَا ٱلسَّمَآءُ ٱنشَقَّتۡ
(1) जब आसमान फट जाएगा
وَأَذِنَتۡ لِرَبِّهَا وَحُقَّتۡ ۝ 1
(2) और अपने रब के हुक्म की तामील करेगा1 और उसके लिए हक़ यही है (कि अपने रब का हुक्म माने)।
1. अस्ल अरबी में ‘अज़िनत लिरब्बिहा’ के अलफ़ाज़ इस्तेमाल हुए हैं, जिसका लफ़्ज़ी मतलब है “वह अपने रब का हुक्म सुनेगा (सुनेगी)” लेकिन अरबी ज़बान में मुहावरे के तौर पर ‘अज़ि-न लहू’ का मतलब सिर्फ़ यही नहीं होता कि उसने हुक्म सुना, बल्कि इसका मतलब यह होता है कि उसने हुक्म सुनकर एक फ़रमाँबरदार की तरह उसको पूरा किया और ज़रा सरकशी न की।
وَإِذَا ٱلۡأَرۡضُ مُدَّتۡ ۝ 2
(3) और जब ज़मीन फैला दी जाएगी2
2. ज़मीन के फैला दिए जाने का मतलब यह है कि समुद्र और नदियाँ पाट दी जाएँगी, पहाड़ चूरा-चूरा करके बिखेर दिए जाएँगे, और ज़मीन की सारी ऊँच-नीच बराबर करके उसे एक हमवार (समतल) मैदान बना दिया जाएगा। सूरा-20 ता-हा, में इस कैफ़ियत को यूँ बयान किया गया है कि अल्लाह तआला “उसे एक चटियल मैदान बना देगा जिसमें तुम कोई बल और सलवट न पाओगे।” (आयतें—106, 107)। हाकिम ने मुस्तदरक में बेहतरीन सनद के साथ हज़रत जाबिर-बिन-अब्दुल्लाह के हवाले से अल्लाह के रसूल (सल्ल०) का यह फ़रमान नक़्ल किया है कि “क़ियामत के दिन ज़मीन एक दस्तरख़ान की तरह फैलाकर बिछा दी जाएगी, फिर इनसानों के लिए उसपर सिर्फ़ पाँव रखने की जगह होगी।” इस बात को समझने के लिए यह हक़ीक़त निगाह में रहनी चाहिए कि उस दिन तमाम इनसानों को जो पहले दिन से क़ियामत तक पैदा हुए होंगे, एक ही वक़्त में ज़िन्दा करके अल्लाह की अदालत में पेश किया जाएगा। इतनी बड़ी आबादी को इकट्ठा करने के लिए ज़रूरी है कि समुद्र, नदियाँ, पहाड़, जंगल, घाटियाँ और नीचे-ऊँचे इलाक़े सब-के-सब बराबर करके ज़मीन के गोले को एक मैदान बना दिया जाएगा, ताकि उसपर सारे ही इनसान खड़े होने की जगह पा सकें।
وَأَلۡقَتۡ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتۡ ۝ 3
(4) और जो कुछ उसके अन्दर है उसे बाहर फेंककर ख़ाली हो जाएगी3
3. मतलब यह है कि जितने मरे हुए इनसान उसके अन्दर पड़े होंगे सबको निकालकर वह बाहर डाल देगी, और इसी तरह उनके आमाल की जो गवाहियाँ उसके अन्दर मौजूद होंगी वे सब भी पूरी-की-पूरी बाहर आ जाएँगी, कोई चीज़ भी उसमें छिपी और दबी हुई न रह जाएगी।
وَأَذِنَتۡ لِرَبِّهَا وَحُقَّتۡ ۝ 4
(5) और अपने रब के हुक्म की तामील करेगी और उसके लिए हक़ यही है (कि उसका हुक्म माने)।4
4. यह साफ़ तौर से बयान नहीं किया गया कि जब ये और ये वाक़िआत होंगे तो क्या होगा, क्योंकि बाद का यह मज़मून उसको आप-से-आप ज़ाहिर कर देता है कि ऐ इनसान तू अपने रब की तरफ़ चला जा रहा है, उसके सामने हाज़िर होनेवाला है, तेरा आमाल-नामा तुझे दिया जानेवाला है, और जैसा तेरा आमाल-नामा होगा उसके मुताबिक़ तुझे इनाम या सज़ा मिलनेवाली है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡإِنسَٰنُ إِنَّكَ كَادِحٌ إِلَىٰ رَبِّكَ كَدۡحٗا فَمُلَٰقِيهِ ۝ 5
(6) ऐ इनसान, तू ज़बरदस्ती खिंचते हुए अपने रब की तरफ़ चला जा रहा है5 और उससे मिलनेवाला है।
5. यानी वह सारी कोशिश और दौड़-धूप जो तू दुनिया में कर रहा है, उसके बारे में चाहे तू यही समझता रहे कि यह सिर्फ़ दुनिया की ज़िन्दगी तक है और दुनियावी मक़सदों के लिए है, लेकिन हक़ीक़त में तू जाने-अनजाने जा रहा है अपने रब ही की तरफ़ और आख़िरकार वहीं तुझे पहुँचकर रहना है।
فَأَمَّا مَنۡ أُوتِيَ كِتَٰبَهُۥ بِيَمِينِهِۦ ۝ 6
(7) फिर जिसका आमाल-नामा (कर्म-पत्र) उसके सीधे हाथ में दिया गया,
فَسَوۡفَ يُحَاسَبُ حِسَابٗا يَسِيرٗا ۝ 7
(8) उससे हल्का हिसाब लिया जाएगा6
6. यानी उससे सख़्त हिसाब न लिया जाएगा। उससे यह नहीं पूछा जाएगा कि फ़ुलाँ-फ़ुलाँ काम तूने क्यों किए थे और तेरे पास उन कामों के लिए क्या बहाना है। उसकी भलाइयों के साथ उसकी बुराइयाँ भी उसके आमाल-नामे में मौजूद ज़रूर होंगी, मगर बस यह देखकर कि भलाइयों का पलड़ा बुराइयों से भारी है, उसके क़ुसूरों को अनदेखा कर दिया जाएगा और उसे माफ़ कर दिया जाएगा। क़ुरआन मजीद में बुरे काम करनेवाले लोगों से सख़्त हिसाब लेने के लिए ‘सूउल-हिसाब’ (बुरी तरह हिसाब लेने) के अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं (सूरा-13 रअ्द, आयत-18), और नेक लोगों के बारे में कहा गया है कि “ये वे लोग हैं जिनसे हम उनके बेहतरीन आमाल क़ुबूल कर लेंगे और उनकी बुराइयों को अनदेखा करेंगे।” (सूरा-46 अहक़ाफ़, आयत-16)। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने इसकी जो तशरीह की है उसे इमाम अहमद, बुख़ारी, मुस्लिम, तिरमिज़ी, नसई, अबू-दाऊद, हाकिम, इब्ने-जरीर, अब्द-बिन-हुमैद और इब्ने-मरदुवैह ने अलग-अलग अलफ़ाज़ में हज़रत आइशा (रज़ि०) से नक़्ल किया है। एक रिवायत में है कि नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया, “जिससे भी हिसाब लिया गया वह मारा गया।” हज़रत आइशा (रज़ि०) ने पूछा, “ऐ अल्लाह के रसूल! क्या अल्लाह तआला ने यह नहीं फ़रमाया है कि ‘जिसका आमाल-नामा उसे सीधे हाथ में दिया गया उससे हलका हिसाब लिया जाएगा?” नबी (सल्ल०) ने जवाब दिया, “वह तो सिर्फ़ आमाल की पेशी है, लेकिन जिससे पूछ-गछ की गई वह मारा गया।” एक और रिवायत में हज़रत आइशा (रज़ि०) फ़रमाती हैं कि मैंने एक बार नबी (सल्ल०) को नमाज़ में यह दुआ माँगते हुए सुना कि “ऐ ख़ुदा, मुझसे हलका हिसाब ले।” आप (सल्ल०) ने जब सलाम फेरा तो मैंने इसका मतलब पूछा। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, “हलके हिसाब से मुराद यह है कि बन्दे के आमाल-नामे (कर्म-पत्रा) को देखा जाए और उसकी अनदेखी कर दी जाएगी। ऐ आइशा! उस दिन जिससे हिसाब लिया गया वह मारा गया।”
وَيَنقَلِبُ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦ مَسۡرُورٗا ۝ 8
(9) और वह अपने लोगों की तरफ़ ख़ुश-ख़ुश पलटेगा।7
7. अपने लोगों से मुराद आदमी के वे घरवाले, रिश्तेदार और साथी हैं जो उसी की तरह माफ़ किए गए होंगे।
وَأَمَّا مَنۡ أُوتِيَ كِتَٰبَهُۥ وَرَآءَ ظَهۡرِهِۦ ۝ 9
(10) रहा वह शख़्स जिसका आमाल-नामा उसकी पीठ के पीछे दिया जाएगा8
8. सूरा-69 हाक़्क़ा में कहा गया है कि जिसका आमाल-नामा उसके बाएँ हाथ में दिया जाएगा। और यहाँ कहा गया है कि उसकी पीठ के पीछे दिया जाएगा। शायद इसकी सूरत यह होगी कि वह शख़्स इस बात से पहले ही मायूस होगा कि उसे दाहिने हाथ में आमाल-नामा मिलेगा, क्योंकि अपने करतूतों से वह ख़ूब वाक़िफ़ होगा और उसे यक़ीन होगा कि मुझे आमाल-नामा बाएँ हाथ में मिलनेवाला है। अलबत्ता सारे लोगों के सामने बाएँ हाथ में लेते हुए उसे शर्मिन्दगी महसूस होगी, इसलिए वह अपना हाथ पीछे कर लेगा। मगर इस तदबीर से यह मुमकिन न होगा कि वह अपना कच्चा-चिट्ठा अपने हाथ में लेने से बच जाए। वह तो बहरहाल उसे पकड़ाया ही जाएगा चाहे वह हाथ आगे बढ़ाकर ले या पीठ के पीछे छिपा ले।
فَسَوۡفَ يَدۡعُواْ ثُبُورٗا ۝ 10
(11) तो वह मौत को पुकारेगा
وَيَصۡلَىٰ سَعِيرًا ۝ 11
(12) और भड़कती हुई आग में जा पड़ेगा।
إِنَّهُۥ كَانَ فِيٓ أَهۡلِهِۦ مَسۡرُورًا ۝ 12
(13) वह अपने घरवालों में मग्न था।9
9. यानी उसका हाल ख़ुदा के नेक बन्दों से अलग था, जिनके बारे में सूरा-52 तूर, आयत-26 में कहा गया है कि वह अपने घरवालों में ख़ुदा से डरते हुए ज़िन्दगी गुज़ारते थे, यानी हर वक़्त उन्हें यह डर लगा रहता था कि कहीं बाल-बच्चों की मुहब्बत में पड़कर हम उनकी दुनिया बनाने के लिए अपना अंजाम ख़राब न कर लें। इस के बरख़िलाफ़ उस शख़्स का हाल यह था कि अपने घर में वह चैन की बाँसुरी बजा रहा था और ख़ूब बाल-बच्चों को ऐश करा रहा था, चाहे वह कितने ही हराम माल खाकर और कितने ही लोगों के हक़ मारकर यह ऐश का सामान जुटाए, और इस मज़े और लज़्ज़त के लिए ख़ुदा की बाँधी हुई हदों को कितना ही पैरों तले रौंदता रहे।
إِنَّهُۥ ظَنَّ أَن لَّن يَحُورَ ۝ 13
(14) उसने समझा था कि उसे कभी पलटना नहीं है।
بَلَىٰٓۚ إِنَّ رَبَّهُۥ كَانَ بِهِۦ بَصِيرٗا ۝ 14
(15) पलटना कैसे न था, उसका रब उसके करतूत देख रहा था।10
10. यानी यह ख़ुदा के इनसाफ़ और उसकी हिकमत के ख़िलाफ़ था कि जो करतूत वह कर रहा था उनको वह नज़र-अन्दाज़ कर देता और उसे अपने सामने बुलाकर कोई पूछ-गछ उससे न करता।
فَلَآ أُقۡسِمُ بِٱلشَّفَقِ ۝ 15
(16) नहीं, मैं क़सम खाता हूँ शफ़क़ (शाम की लाली) की,
وَٱلَّيۡلِ وَمَا وَسَقَ ۝ 16
(17) और रात की और जो कुछ वह समेट लेती है,
وَٱلۡقَمَرِ إِذَا ٱتَّسَقَ ۝ 17
(18) और चाँद की जबकि वह मुकम्मल हो जाता है,
لَتَرۡكَبُنَّ طَبَقًا عَن طَبَقٖ ۝ 18
(19) तुमको ज़रूर दर्जा-ब-दर्जा एक हालत से दूसरी हालत की तरफ़ गुज़रते चले जाना है।11
11. यानी तुम्हें एक हालत पर नहीं रहना है, बल्कि जवानी से बुढ़ापे, बुढ़ापे से मौत, मौत से बरज़ख़ (मौत से क़ियामत तक का ज़माना), बरज़ख़ से दोबारा ज़िन्दगी, दोबारा ज़िन्दगी से हश्र का मैदान, फिर हिसाब-किताब और फिर इनाम और सज़ा की अनगिनत मंज़िलों से ज़रूर तुमको गुज़रना होगा। इस बात पर तीन चीज़ों की क़सम खाई गई है। सूरज डूबने के बाद आसमान की लाली, दिन के बाद रात का अंधेरा और उसमें उन बहुत-से इनसानों और जानवरों का सिमट आना जो दिन के वक़्त ज़मीन पर फैले रहते हैं, और चाँद का हिलाल (पहली रात का चाँद) से दर्जा-ब-दर्जा बढ़कर मुकम्मल चाँद बन जाना। यह मानो कुछ वे चीज़ें हैं जो इस बात की खुल्लम-खुल्ला गवाही दे रही हैं कि जिस कायनात में इनसान रहता है उसके अन्दर कहीं ठहराव नहीं है, एक लगातार बदलाव और दर्जा-ब-दर्जा तब्दीली हर तरफ़ पाई जाती है, इसलिए यह ख़याल सही नहीं है कि मौत की आख़िरी हिचकी के साथ मामला ख़त्म हो जाएगा।
فَمَا لَهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 19
(20) फिर इन लोगों को क्या हो गया है कि ये ईमान नहीं लाते
وَإِذَا قُرِئَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقُرۡءَانُ لَا يَسۡجُدُونَۤ۩ ۝ 20
(21) और जब क़ुरआन इनके सामने पढ़ा जाता है तो सजदा नहीं करते?12
12. यानी उनके दिल में ख़ुदा का डर पैदा नहीं होता और ये उसके आगे नहीं झुकते। इस जगह पर सजदा करना अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के अमल से साबित है। इमाम मालिक, मुस्लिम और नसई ने हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) के बारे में यह रिवायत नक़्ल की है कि उन्होंने नमाज़ में यह सूरा पढ़कर इस जगह पर सजदा किया और कहा कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने यहाँ सजदा किया है। बुख़ारी, मुस्लिम, अबू-दाऊद और नसई ने अबू-राफ़िअ की यह बात नक़्ल की है कि हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने इशा की नमाज़ में यह सूरा पढ़ी और सजदा किया। मैंने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने फ़रमाया कि मैंने अबुल-क़ासिम (सल्ल०) के पीछे नमाज़ पढ़ी है और नबी (सल्ल०) ने इस जगह पर सजदा किया है, इसलिए मैं मरते दम तक यह सजदा करता रहूँगा। मुस्लिम, अबू-दाऊद, तिरमिज़ी, नसई और इब्ने-माजा वग़ैरा ने एक और रिवायत नक़्ल की है जिसमें हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि हमने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के पीछे इस सूरा में और ‘इक़रा बिसमि रब्बिकल-लज़ी ख़लक़’ में सजदा किया है।
بَلِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُكَذِّبُونَ ۝ 21
(22) बल्कि ये इंकार करनेवाले तो उलटा झुठलाते हैं,
وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا يُوعُونَ ۝ 22
(23) हालाँकि जो कुछ ये (अपने आमाल-नामे में) जमा कर रहे हैं अल्लाह उसे ख़ूब जानता है।13
13. दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि कुफ़्र (इनकार) और कपट और हक़ से दुश्मनी और बुरे इरादों और ग़लत नीयतों की जो गन्दगी उन्होंने अपने सीनों में भर रखी है अल्लाह उसे ख़ूब जानता है।
فَبَشِّرۡهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ ۝ 23
(24) इसलिए इनको दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो।
إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُمۡ أَجۡرٌ غَيۡرُ مَمۡنُونِۭ ۝ 24
(25) अलबत्ता जो लोग ईमान ले आए हैं और जिन्होंने नेक अमल किए हैं उनके लिए कभी न ख़त्म होनेवाला इनाम है।