(7) जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जा रहा है2 वह ज़रूर होकर रहनेवाली है।3
2. दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि “जिस चीज़ का तुम्हें डर दिलाया जा रहा है,” मुराद है क़ियामत और आख़िरत।
3. यहाँ क़ियामत के ज़रूर आने पर पाँच चीज़ों की क़सम खाई गई है। एक ‘अल-मुर्सलाति-उरफ़ा’ यानी “लगातार या भलाई के तौर पर भेजी जानेवालियाँ।” दूसरी ‘अल-आसिफ़ाति अस्फ़ा’ यानी “बहुत तेज़ी और शिद्दत के साथ चलनेवालियाँ।” तीसरी ‘अन-नाशिराति नशरा’ यानी “ख़ूब फैलानेवालियाँ।” चौथी ‘अल-फ़ारिक़ाति फ़रक़ा’ यानी “अलग-अलग करनेवालियाँ।” पाँचवीं ‘अल-मुलक़ियाति ज़िक्रा’ यानी (ख़ुदा की) “याद डालनेवालियाँ।” चूँकि इन अलफ़ाज़ में सिर्फ़ सिफ़ात (गुण) बयान की गई हैं, और यह बयान नहीं किया गया है कि यह किस चीज़ या किन चीज़ों की सिफ़ात हैं, इसलिए क़ुरआन के आलिमों की रायें अलग-अलग हैं कि क्या ये पाँचों सिफ़ात एक ही चीज़ की हैं, या अलग-अलग चीज़ों की, और वे चीज़ या चीज़ें क्या हैं। एक गरोह कहता है कि पाँचों से मुराद हवाएँ हैं। दूसरा कहता है कि पाँचों से मुराद फ़रिश्ते हैं। तीसरा कहता है कि पहले तीन से मुराद हवाएँ हैं और बाक़ी दो से मुराद फ़रिश्ते। चौथा कहता है कि पहले दो से मुराद हवाएँ और बाक़ी तीन से मुराद फ़रिश्ते हैं। और एक गरोह की राय यह भी है कि पहले से मुराद रहमत के फ़रिश्ते, दूसरे से मुराद अज़ाब के फ़रिश्ते और बाक़ी तीन से मुराद क़ुरआन मजीद की आयतें हैं।
हमारे नज़दीक पहली बात तो यह ग़ौर करने के क़ाबिल है कि जब एक ही बात के सिलसिले में पाँच सिफ़ात का लगातार ज़िक्र किया गया है और कोई अलामत (इशारा) बीच में ऐसी नहीं पाई जाती जिससे यह समझा जा सके कि कहाँ तक एक चीज़ की सिफ़ात का ज़िक्र है और कहाँ से दूसरी चीज़ की सिफ़ात का ज़िक्र शुरू हुआ है, तो यह कैसे सही हो सकता है कि सिर्फ़ किसी बेबुनियाद गुमान की वजह से हम यह समझ लें कि यहाँ दो या तीन अलग-अलग चीज़ों की क़समें खाई गई हैं, बल्कि इस सूरत में बात जिस अन्दाज़ से बयान की गई है वह ख़ुद इस बात की माँग करता है कि पूरी इबारत को किसी एक ही चीज़ की सिफ़ात के बारे में माना जाए। दूसरी बात यह है कि क़ुरआन मजीद में जहाँ भी शक या इनकार करनेवालों को किसी ग़ैर-महसूस हक़ीक़त का यक़ीन दिलाने के लिए किसी चीज़, या कुछ चीज़ों की क़सम खाई गई है वहाँ क़सम अस्ल में दलील की जगह होती है, यानी उसका मक़सद यह बताना होता है कि यह चीज़ या चीज़ें उस हक़ीक़त के सही और सच्चे होने की दलील दे रही हैं। इस ग़रज़ के लिए ज़ाहिर है कि एक ग़ैर-महसूस चीज़ के हक़ में किसी दूसरी ग़ैर-महसूस चीज़ को दलील के तौर पर पेश करना दुरुस्त नहीं हो सकता, बल्कि ग़ैर-महसूस पर महसूस से दलील लाना ही मुनासिब और सही हो सकता है। इसलिए हमारी राय में सही तफ़सीर यही है कि इससे मुराद हवाएँ हैं, और उन लोगों की तफ़सीर मानने के क़ाबिल नहीं है जिन्होंने इन पाँच चीज़ों से मुराद फ़रिश्ते लिए हैं, क्योंकि वे भी उसी तरह ग़ैर-महसूस हैं जिस तरह क़ियामत का आना ग़ैर-महसूस है।
अब ग़ौर कीजिए कि क़ियामत के आने पर हवाओं की ये कैफ़ियतें किस तरह दलील देती हैं। ज़मीन पर जिन असबाब (साधनों) से जानवरों (जीव-जन्तुओं) और पेड़-पौधों की ज़िन्दगी मुमकिन हुई है उनमें से एक बहुत अहम सबब हवा है। हर क़िस्म की ज़िन्दगी से उसकी सिफ़ात का जो ताल्लुक़ है वह अपनी जगह ख़ुद इस बात की गवाही दे रहा है कि कोई सब कुछ कर सकने की क़ुदरत रखनेवाला (सर्वशक्तिमान) और हिकमतवाला कारीगर है, जिसने ज़मीन के इस गोले पर ज़िन्दगी को वुजूद में लाने का इरादा किया और इस ग़रज़ के लिए यहाँ एक ऐसी चीज़ पैदा की जिसकी सिफ़ात जानदारों के वुजूद की ज़रूरतों के साथ ठीक-ठीक मेल खाती हैं। फिर उसने सिर्फ़ इतना ही नहीं किया है कि ज़मीन को हवा का एक लिबादा ओढ़ाकर छोड़ दिया हो, बल्कि अपनी क़ुदरत और हिकमत से इस हवा में उसने अनगिनत तरह की कैफ़ियतें पैदा की हैं, जिनका इन्तिज़ाम लाखों-करोड़ों साल से इस तरह हो रहा है कि इन्हीं की बदौलत मौसम पैदा होते हैं, कभी उमस होती है और कभी ठण्डी हवा चलने लगती है, कभी गर्मी आती है और कभी सर्दी, कभी बादल आते हैं और कभी आते हुए उड़ जाते हैं, कभी बहुत ही ख़ुशगवार झोंके चलते हैं और कभी इन्तिहाई तबाह कर डालनेवाले तूफ़ान आ जाते हैं, कभी बहुत फ़ायदेमन्द बारिश होती है और कभी सूखा पड़ जाता है। ग़रज़ एक हवा नहीं, बल्कि तरह-तरह की हवाएँ हैं जो अपने-अपने वक़्त पर चलती हैं और हर हवा किसी-न-किसी मक़सद को पूरा करती है। यह इन्तिज़ाम एक ग़ालिब (प्रभावशाली) क़ुदरत का सुबूत है, जिसके लिए न ज़िन्दगी को वुजूद में लाना नामुमकिन हो सकता है, न उसे मिटा देना, और न मिटाकर दोबारा वुजूद में ले आना। इसी तरह यह इन्तिज़ाम इन्तिहाई दर्जे की हिकमत और अक़्लमन्दी का सुबूत भी है, जिससे सिर्फ़ एक नादान आदमी ही यह उम्मीद रख सकता है कि यह सारा कारोबार सिर्फ़ खेल के तौर पर किया जा रहा हो और इसका कोई बड़ा मक़सद न हो। इस हैरत-अंगेज़ इन्तिज़ाम के मुक़ाबले में इनसान इतना बेबस है कि कभी वह न अपने लिए फ़ायदेमन्द हवा चला सकता है, न अपने ऊपर तबाह कर डालनेवाले तूफ़ान को रोक सकता है। वह चाहे कितनी ही ढिठाई और नासमझी और ज़िद और हठधर्मी से काम ले, कभी-न-कभी यही हवा उसको याद दिला देती है कि ऊपर कोई ज़बरदस्त ताक़त काम कर रही है जो ज़िन्दगी के इस सबसे बड़े ज़रिए को जब चाहे उसके लिए रहमत और जब चाहे तबाही का सबब बना सकती है, और इनसान उसके किसी फ़ैसले को भी रोक देने की ताक़त नहीं रखता। (और ज़्यादा तशरीह के लिए देखिए— तफ़हीमुल-क़ुरआन, सूरा-45 जासिया, हाशिया-7; सूरा-51 ज़ारियात, हाशिए—1 से 4)।