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سُورَةُ المُرۡسَلَاتِ

77. अल-मुर्सलात

(मक्का में उतरी, आयतें 50)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के शब्द 'वल-मुर्सलात' (क़सम है उनकी जो भेजी जाती हैं) को इस सूरा का नाम दिया गया है।

उतरने का समय

इस सूरा का पूरा विषय यह स्पष्ट कर रहा है कि यह मक्का मुअज़्ज़मा के आरंभिक काल में उतरी है।

विषय और वार्ता

इसका विषय क़ियामत और आख़िरत (प्रलय और परलोक) की पुष्टि और उन नतीजों से लोगों को सावधान करना है जो इन तथ्यों के न मानने और मानने से अन्ततः सामने आएँगे। पहली सात आयतों में हवाओं की [आश्चर्यजनक एवं तत्त्वदर्शितापूर्ण] व्यवस्था को इस वास्तविकता पर गवाह ठहराया गया है कि क़ुरआन और मुहम्मद (सल्ल.) जिस क़ियामत के आने की ख़बर दे रहे हैं वह ज़रूर ही आकर रहेगी। मक्कावाले बार-बार कहते थे कि जिस क़ियामत से तुम हमको डरा रहे हो उसे लाकर दिखाओ, तब हम उसे मानेंगे। आयत 8 से 15 तक उनकी इस माँग का उल्लेख किए बिना उसका उत्तर दिया गया है कि वह कोई खेल या तमाशा तो नहीं है कि जब कोई मसख़रा उसे दिखाने की माँग करे तो उसी समय वह तुरन्त दिखा दिया जाए। वह तो सम्पूर्ण मानव-जाति और उसके तमाम लोगों के मुक़द्दमे के फ़ैसले का दिन है। उसके लिए अल्लाह ने एक विशेष समय तय कर रखा है। उसी समय पर वह आएग और जब आएगा तो [इन इंकारियों के लिए विनाश का सन्देश ही सिद्ध होगा।] आयत 16 से 28 तक लगातार क़ियामत और आख़िरत के घटित होने और उसके अवश्यसम्भावी होने के प्रमाण दिए गए हैं। इनमें बताया गया है कि इंसान का अपना इतिहास, उसका अपना जन्म और जिस धरती पर वह ज़िन्दगी गुज़ार रहा है उसकी अपनी बनावट इस बात की गवाही दे रही है कि क़ियामत का आना और आख़िरत का घटित होना सम्भव भी है और अल्लाह की तत्त्वदर्शिता की अपेक्षा भी। इसके बाद आयत 28 से 40 तक आख़िरत के इंकारियों का और 41 से 45 तक उन लोगों का अंजाम बयान किया गया है जिन्होंने उसपर ईमान लाकर दुनिया में अपना परलोक सँवारने की कोशिश की है। अन्त में आख़िरत के इंकारियों और अल्लाह की बन्दगी से मुख मोड़नेवालों को सावधान किया गया है कि दुनिया के कुछ दिनों की ज़िन्दगी में जो कुछ मज़े उड़ाने हैं, उड़ा लो, अन्ततः तुम्हारा अंजाम अत्यन्त विनाशकारी होगा। और बात इसपर समाप्त की गई है कि इस क़ुरआन से भी जो आदमी हिदायत (सीधा रास्ता) न पाए उसे फिर दुनिया में कोई चीज़ हिदायत नहीं दे सकती।

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سُورَةُ المُرۡسَلَاتِ
77. अल-मुर्सलात
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
وَٱلۡمُرۡسَلَٰتِ عُرۡفٗا
(1) क़सम है उन (हवाओं) की जो लगातार भेजी जाती हैं,
فَٱلۡعَٰصِفَٰتِ عَصۡفٗا ۝ 1
(2) फिर तूफ़ानी रफ़्तार से चलती हैं
وَٱلنَّٰشِرَٰتِ نَشۡرٗا ۝ 2
(3) और (बादलों को) उठाकर फैलाती हैं,
فَٱلۡفَٰرِقَٰتِ فَرۡقٗا ۝ 3
(4) फिर (उनको) फाड़कर अलग करती हैं,
فَٱلۡمُلۡقِيَٰتِ ذِكۡرًا ۝ 4
(5) फिर (दिलों में ख़ुदा की) याद डालती हैं,
عُذۡرًا أَوۡ نُذۡرًا ۝ 5
(6) उज़्र के तौर पर या डरावे के तौर पर,1
1. हवाएँ बहुत-से फ़ायदेमंद काम अंजाम देती हैं। जब कभी उनका चलना बन्द हो जाता है और सूखा पड़ने का ख़तरा पैदा होने से लोगों के दिल नर्म हो जाते हैं और लोग अल्लाह से तौबा-इस्तिग़फ़ार करने (अपनी कोताहियों पर माफ़ी माँगने) लगते हैं। कभी उन हवाओं के रहमत की बारिश लाने पर लोग अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं। और कभी उनकी तूफ़ानी सख़्ती दिलों में डर पैदा करती है और तबाही के डर से लोग ख़ुदा की तरफ़ रुजू करते हैं। (इसके अलावा देखिए— ज़मीमा (परिशिष्ट) नं० 3)
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَٰقِعٞ ۝ 6
(7) जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जा रहा है2 वह ज़रूर होकर रहनेवाली है।3
2. दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि “जिस चीज़ का तुम्हें डर दिलाया जा रहा है,” मुराद है क़ियामत और आख़िरत।
3. यहाँ क़ियामत के ज़रूर आने पर पाँच चीज़ों की क़सम खाई गई है। एक ‘अल-मुर्सलाति-उरफ़ा’ यानी “लगातार या भलाई के तौर पर भेजी जानेवालियाँ।” दूसरी ‘अल-आसिफ़ाति अस्फ़ा’ यानी “बहुत तेज़ी और शिद्दत के साथ चलनेवालियाँ।” तीसरी ‘अन-नाशिराति नशरा’ यानी “ख़ूब फैलानेवालियाँ।” चौथी ‘अल-फ़ारिक़ाति फ़रक़ा’ यानी “अलग-अलग करनेवालियाँ।” पाँचवीं ‘अल-मुलक़ियाति ज़िक्रा’ यानी (ख़ुदा की) “याद डालनेवालियाँ।” चूँकि इन अलफ़ाज़ में सिर्फ़ सिफ़ात (गुण) बयान की गई हैं, और यह बयान नहीं किया गया है कि यह किस चीज़ या किन चीज़ों की सिफ़ात हैं, इसलिए क़ुरआन के आलिमों की रायें अलग-अलग हैं कि क्या ये पाँचों सिफ़ात एक ही चीज़ की हैं, या अलग-अलग चीज़ों की, और वे चीज़ या चीज़ें क्या हैं। एक गरोह कहता है कि पाँचों से मुराद हवाएँ हैं। दूसरा कहता है कि पाँचों से मुराद फ़रिश्ते हैं। तीसरा कहता है कि पहले तीन से मुराद हवाएँ हैं और बाक़ी दो से मुराद फ़रिश्ते। चौथा कहता है कि पहले दो से मुराद हवाएँ और बाक़ी तीन से मुराद फ़रिश्ते हैं। और एक गरोह की राय यह भी है कि पहले से मुराद रहमत के फ़रिश्ते, दूसरे से मुराद अज़ाब के फ़रिश्ते और बाक़ी तीन से मुराद क़ुरआन मजीद की आयतें हैं। हमारे नज़दीक पहली बात तो यह ग़ौर करने के क़ाबिल है कि जब एक ही बात के सिलसिले में पाँच सिफ़ात का लगातार ज़िक्र किया गया है और कोई अलामत (इशारा) बीच में ऐसी नहीं पाई जाती जिससे यह समझा जा सके कि कहाँ तक एक चीज़ की सिफ़ात का ज़िक्र है और कहाँ से दूसरी चीज़ की सिफ़ात का ज़िक्र शुरू हुआ है, तो यह कैसे सही हो सकता है कि सिर्फ़ किसी बेबुनियाद गुमान की वजह से हम यह समझ लें कि यहाँ दो या तीन अलग-अलग चीज़ों की क़समें खाई गई हैं, बल्कि इस सूरत में बात जिस अन्दाज़ से बयान की गई है वह ख़ुद इस बात की माँग करता है कि पूरी इबारत को किसी एक ही चीज़ की सिफ़ात के बारे में माना जाए। दूसरी बात यह है कि क़ुरआन मजीद में जहाँ भी शक या इनकार करनेवालों को किसी ग़ैर-महसूस हक़ीक़त का यक़ीन दिलाने के लिए किसी चीज़, या कुछ चीज़ों की क़सम खाई गई है वहाँ क़सम अस्ल में दलील की जगह होती है, यानी उसका मक़सद यह बताना होता है कि यह चीज़ या चीज़ें उस हक़ीक़त के सही और सच्चे होने की दलील दे रही हैं। इस ग़रज़ के लिए ज़ाहिर है कि एक ग़ैर-महसूस चीज़ के हक़ में किसी दूसरी ग़ैर-महसूस चीज़ को दलील के तौर पर पेश करना दुरुस्त नहीं हो सकता, बल्कि ग़ैर-महसूस पर महसूस से दलील लाना ही मुनासिब और सही हो सकता है। इसलिए हमारी राय में सही तफ़सीर यही है कि इससे मुराद हवाएँ हैं, और उन लोगों की तफ़सीर मानने के क़ाबिल नहीं है जिन्होंने इन पाँच चीज़ों से मुराद फ़रिश्ते लिए हैं, क्योंकि वे भी उसी तरह ग़ैर-महसूस हैं जिस तरह क़ियामत का आना ग़ैर-महसूस है। अब ग़ौर कीजिए कि क़ियामत के आने पर हवाओं की ये कैफ़ियतें किस तरह दलील देती हैं। ज़मीन पर जिन असबाब (साधनों) से जानवरों (जीव-जन्तुओं) और पेड़-पौधों की ज़िन्दगी मुमकिन हुई है उनमें से एक बहुत अहम सबब हवा है। हर क़िस्म की ज़िन्दगी से उसकी सिफ़ात का जो ताल्लुक़ है वह अपनी जगह ख़ुद इस बात की गवाही दे रहा है कि कोई सब कुछ कर सकने की क़ुदरत रखनेवाला (सर्वशक्तिमान) और हिकमतवाला कारीगर है, जिसने ज़मीन के इस गोले पर ज़िन्दगी को वुजूद में लाने का इरादा किया और इस ग़रज़ के लिए यहाँ एक ऐसी चीज़ पैदा की जिसकी सिफ़ात जानदारों के वुजूद की ज़रूरतों के साथ ठीक-ठीक मेल खाती हैं। फिर उसने सिर्फ़ इतना ही नहीं किया है कि ज़मीन को हवा का एक लिबादा ओढ़ाकर छोड़ दिया हो, बल्कि अपनी क़ुदरत और हिकमत से इस हवा में उसने अनगिनत तरह की कैफ़ियतें पैदा की हैं, जिनका इन्तिज़ाम लाखों-करोड़ों साल से इस तरह हो रहा है कि इन्हीं की बदौलत मौसम पैदा होते हैं, कभी उमस होती है और कभी ठण्डी हवा चलने लगती है, कभी गर्मी आती है और कभी सर्दी, कभी बादल आते हैं और कभी आते हुए उड़ जाते हैं, कभी बहुत ही ख़ुशगवार झोंके चलते हैं और कभी इन्तिहाई तबाह कर डालनेवाले तूफ़ान आ जाते हैं, कभी बहुत फ़ायदेमन्द बारिश होती है और कभी सूखा पड़ जाता है। ग़रज़ एक हवा नहीं, बल्कि तरह-तरह की हवाएँ हैं जो अपने-अपने वक़्त पर चलती हैं और हर हवा किसी-न-किसी मक़सद को पूरा करती है। यह इन्तिज़ाम एक ग़ालिब (प्रभावशाली) क़ुदरत का सुबूत है, जिसके लिए न ज़िन्दगी को वुजूद में लाना नामुमकिन हो सकता है, न उसे मिटा देना, और न मिटाकर दोबारा वुजूद में ले आना। इसी तरह यह इन्तिज़ाम इन्तिहाई दर्जे की हिकमत और अक़्लमन्दी का सुबूत भी है, जिससे सिर्फ़ एक नादान आदमी ही यह उम्मीद रख सकता है कि यह सारा कारोबार सिर्फ़ खेल के तौर पर किया जा रहा हो और इसका कोई बड़ा मक़सद न हो। इस हैरत-अंगेज़ इन्तिज़ाम के मुक़ाबले में इनसान इतना बेबस है कि कभी वह न अपने लिए फ़ायदेमन्द हवा चला सकता है, न अपने ऊपर तबाह कर डालनेवाले तूफ़ान को रोक सकता है। वह चाहे कितनी ही ढिठाई और नासमझी और ज़िद और हठधर्मी से काम ले, कभी-न-कभी यही हवा उसको याद दिला देती है कि ऊपर कोई ज़बरदस्त ताक़त काम कर रही है जो ज़िन्दगी के इस सबसे बड़े ज़रिए को जब चाहे उसके लिए रहमत और जब चाहे तबाही का सबब बना सकती है, और इनसान उसके किसी फ़ैसले को भी रोक देने की ताक़त नहीं रखता। (और ज़्यादा तशरीह के लिए देखिए— तफ़हीमुल-क़ुरआन, सूरा-45 जासिया, हाशिया-7; सूरा-51 ज़ारियात, हाशिए—1 से 4)।
فَإِذَا ٱلنُّجُومُ طُمِسَتۡ ۝ 7
(8) फिर जब सितारे मान्द पड़ जाएँगे,4
4. यानी बेनूर (प्रकाशहीन) हो जाएँगे और उनकी रौशनी ख़त्म हो जाएगी।
وَإِذَا ٱلسَّمَآءُ فُرِجَتۡ ۝ 8
(9) और आसमान फाड़ दिया जाएगा,5
5. यानी ऊपरी दुनिया का वह बँधा हुआ निज़ाम, जिसकी बदौलत हर सितारा और सैयारा (ग्रह) अपने मदार (कक्षा) में क़ायम है, और जिसकी बदौलत कायनात की हर चीज़ अपनी-अपनी हद में रुकी हुई है, तोड़ डाला जाएगा और उसकी सारी बन्दिशें खोल दी जाएँगी।
وَإِذَا ٱلۡجِبَالُ نُسِفَتۡ ۝ 9
(10) और पहाड़ धुनक डाले जाएँगे,
وَإِذَا ٱلرُّسُلُ أُقِّتَتۡ ۝ 10
(11) और रसूलों की हाज़िरी का वक़्त आ पहुँचेगा6 (उस दिन वह चीज़ सामने आ जाएगी)।
6. क़ुरआन मजीद में कई जगहों पर यह बात बयान की गई है कि हश्र के मैदान में जब तमाम इनसानों का मुक़द्दमा पेश होगा तो हर क़ौम के रसूल को गवाही के लिए पेश किया जाएगा, ताकि वह इस बात की गवाही दे कि उसने अल्लाह का पैग़ाम उन लोगों तक पहुँचा दिया था। यह गुमराहों और मुजरिमों के ख़िलाफ़ अल्लाह की सबसे पहली और सबसे बड़ी दलील होगी जिससे यह साबित किया जाएगा कि वह अपने ग़लत रवैये के ख़ुद ज़िम्मेदार हैं, वरना अल्लाह तआला की तरफ़ से उनको ख़बरदार करने में कोई कसर उठा नहीं रखी गई थी। मिसाल के तौर पर नीचे लिखी आयतें और हाशिए देखिए— तफ़हीमुल-क़ुरआन, सूरा-7 आराफ़, आयतें—172, 173, हाशिए—134, 135; सूरा-39 ज़ुमर, आयत-69, हाशिया-80; सूरा-67 मुल्क, आयत-8, हाशिया-14।
لِأَيِّ يَوۡمٍ أُجِّلَتۡ ۝ 11
(12) किस दिन के लिए यह काम उठा रखा गया है?
لِيَوۡمِ ٱلۡفَصۡلِ ۝ 12
(13) फ़ैसले के दिन के लिए।
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ۝ 13
(14) और तुम्हें क्या ख़बर कि वह फ़ैसले का दिन क्या है?
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 14
(15) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।7
7. उन लोगों के लिए जिन्होंने उस दिन के आने की ख़बर को झूठ समझा और दुनिया में यह समझते हुए ज़िन्दगी गुज़ारते रहे कि कभी वह वक़्त नहीं आना है जब उन्हें अपने ख़ुदा के सामने हाज़िर होकर अपने आमाल (कर्मों) की जवाबदेही करनी होगी।
أَلَمۡ نُهۡلِكِ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 15
(16) क्या हमने अगलों को हलाक नहीं किया?8
8. यह आख़िरत के हक़ में तारीख़ी (ऐतिहासिक) दलील है। मतलब यह है कि ख़ुद इसी दुनिया में अपने इतिहास को देख लो। जिन क़ौमों ने भी आख़िरत का इनकार करके इसी दुनिया को अस्ल ज़िन्दगी समझा और इसी दुनिया में ज़ाहिर होनेवाले नतीजों को भलाई और बुराई का पैमाना समझकर अपना अख़लाक़ी रवैया तय किया, बिना किसी छूट के वे सब आख़िरकार तबाह होकर रहीं। यह इस बात का सुबूत है कि आख़िरत सचमुच एक हक़ीक़त है जिसे नज़र-अन्दाज़ करनेवाला उसी तरह नुक़सान उठाता है जिस तरह हर उस शख़्स को नुक़सान उठाना पड़ता है जो हक़ीक़तों से आँखें बन्द करके चले। (और ज़्यादा तशरीह के लिए देखिए— तफ़हीमुल-क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, हाशिया-12; सूरा-27 नम्ल, हाशिया-86; सूरा-30 रूम, हाशिया-8; सूरा-34 सबा, हाशिया-25)।
ثُمَّ نُتۡبِعُهُمُ ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 16
(17) फिर उन्हीं के पीछे हम बादवालों को चलता करेंगे।9
9. यानी यह हमारा अटल क़ानून है। आख़िरत का इनकार जिस तरह पहले गुज़री हुई क़ौमों के लिए बरबाद करनेवाला साबित हुआ है, उसी तरह आगे आनेवाली नस्लों के लिए भी यह हमेशा तबाह करनेवाला ही साबित होगा। इससे न कोई क़ौम पहले अलग थी न आगे कभी होगी।
كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 17
(18) मुजरिमों के साथ हम यही कुछ किया करते हैं।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 18
(19) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।10
10. यहाँ यह जुमला इस मानी में कहा गया है कि दुनिया में उनका जो अंजाम हुआ है या आगे होगा वह उनकी अस्ल सज़ा नहीं है, बल्कि असली तबाही तो उनपर फ़ैसले के दिन आएगी। यहाँ की पकड़ तो सिर्फ़ यह हैसियत रखती है कि जब कोई शख़्स लगातार जुर्म करता चला जाए और किसी तरह अपने बिगड़े हुए रवैये से बाज़ न आए तो आख़िरकार उसे गिरफ़्तार कर लिया जाए। अदालत, जहाँ उसके मुक़द्दमे का फ़ैसला होना है और उसे उसके तमाम करतूतों की सज़ा दी जानी है, इस दुनिया में क़ायम नहीं होगी, बल्कि आख़िरत में होगी, और वही उसकी तबाही का अस्ल दिन होगा। (और ज़्यादा तशरीह के लिए देखिए— तफ़हीमुल-क़ुरआन, सूरा-37 आराफ़, हाशिए—5, 6; सूरा-11 हूद, हाशिया-105)
أَلَمۡ نَخۡلُقكُّم مِّن مَّآءٖ مَّهِينٖ ۝ 19
(20) क्या हमने एक हक़ीर (तुच्छ) पानी से तुम्हें पैदा नहीं किया
فَجَعَلۡنَٰهُ فِي قَرَارٖ مَّكِينٍ ۝ 20
(21) और एक तयशुदा मुद्दत तक11
11. अस्ल अरबी अलफ़ाज़ हैं ‘क़-दरिम-मअ्लूम’। इसका सिर्फ़ यही मतलब नहीं है कि वह मुद्दत मुक़र्रर है, बल्कि इसमें यह मतलब भी शामिल है कि इसकी मुद्दत अल्लाह ही को मालूम है। किसी बच्चे के बारे में किसी ज़रिए से भी इनसान को यह मालूम नहीं हो सकता कि वह कितने महीने, कितने दिन, कितने घण्टे और कितने मिनट और सेकेण्ड माँ के पेट में रहेगा, और उसके पैदा होने का ठीक वक़्त क्या होगा। अल्लाह ही ने हर बच्चे के लिए एक ख़ास मुद्दत मुक़र्रर की है और वही उसको जानता है।
إِلَىٰ قَدَرٖ مَّعۡلُومٖ ۝ 21
(22) उसे एक महफ़ूज़ जगह ठहराए रखा?12
12. यानी माँ का रहम (गर्भाशय), जिसमें हम्ल (गर्भ) ठहरते ही बच्चे को इतनी मज़बूती के साथ जमाया जाता है और इतने इन्तिज़ाम उसकी हिफ़ाज़त और परवरिश के किए जाते हैं कि किसी सख़्त हादिसे के बिना उसका हम्ल (गर्भ) नहीं गिर सकता, और अगर ख़ुद से हमल गिरवाना हो तो उसके लिए भी ग़ैर-मामूली तदबीरें अपनानी पड़ती हैं जो मेडिकल साइंस की आज की तरक़्क़ी के बावुजूद ख़तरे और नुक़सान से ख़ाली नहीं हैं।
فَقَدَرۡنَا فَنِعۡمَ ٱلۡقَٰدِرُونَ ۝ 22
(23) तो देखो, हम ऐसा कर सकते थे, तो हम बहुत अच्छी क़ुदरत रखनेवाले हैं।13
13. यह मरने के बाद की ज़िन्दगी के हो सकने (इमकान) की खुली दलील है। अल्लाह तआला के कहने का मतलब यह है कि जब हम एक हक़ीर (तुच्छ) नुतफ़े (वीर्य की बूँद) से तुम्हारी शुरुआत करके तुम्हें पूरा इनसान बना सकते थे, तो आख़िर दोबारा तुम्हें किसी और तरह पैदा क्यों नहीं कर सकेंगे? हमारा यह पैदा करना, जिसके नतीजे में तुम आज ज़िन्दा मौजूद हो, ख़ुद इस बात का सुबूत है कि हम बहुत अच्छी क़ुदरत रखनेवाले हैं, ऐसे लाचार नहीं हैं कि एक बार पैदा करके फिर तुम्हें पैदा न कर सकें।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 23
(24) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।14
14. यहाँ यह जुमला इस मानी में कहा गया है कि मरने के बाद की ज़िन्दगी के इमकान की यह साफ़ दलील सामने मौजूद होते हुए भी जो लोग उसको झुठला रहे हैं, वे आज उसका जितना चाहें मज़ाक़ उड़ा लें, और जितना चाहें उसके माननेवालों को पुराने ख़यालात, और अन्धविश्वासी और वहमी ठहराते रहें, मगर जब वह दिन आ जाएगा जिसे वे झुठला रहे हैं तो इन्हें ख़ुद मालूम हो जाएगा कि यह इनके लिए तबाही का दिन है।
أَلَمۡ نَجۡعَلِ ٱلۡأَرۡضَ كِفَاتًا ۝ 24
(25) क्या हमने ज़मीन को समेटकर रखनेवाली नहीं बनाया,
أَحۡيَآءٗ وَأَمۡوَٰتٗا ۝ 25
(26) ज़िन्दों के लिए भी और मुर्दों के लिए भी,
وَجَعَلۡنَا فِيهَا رَوَٰسِيَ شَٰمِخَٰتٖ وَأَسۡقَيۡنَٰكُم مَّآءٗ فُرَاتٗا ۝ 26
(27) और उसमें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ जमाए, और तुम्हें मीठा पानी पिलाया?15
15. यह आख़िरत के मुमकिन और अक़्ल के मुताबिक़ होने पर एक और दलील है। यही एक ज़मीन का गोला है जो करोड़ों और अरबों साल से बेहद और बेहिसाब जानदारों को अपनी गोद में लिए हुए है, हर तरह के पेड़-पौधे, जानवार और इनसान इसपर जी रहे हैं, और सबकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए इसके पेट में से तरह-तरह के अथाह ख़ज़ाने निकलते चले आ रहे हैं। फिर यही ज़मीन है जिसपर इन तमाम तरह के जानदारों के अनगिनत लोग रोज़ मरते हैं, मगर ऐसा बेमिसाल इन्तिज़ाम कर दिया गया है कि सबकी लाशें इसी ज़मीन में ठिकाने लग जाती हैं और यह फिर हर जानदार के नए लोगों के जीने और बसने के लिए तैयार हो जाती है। इस ज़मीन को सपाट गेंद की तरह भी बनाकर नहीं रख दिया गया है, बल्कि इसमें जगह-जगह पहाड़ी सिलसिले और आसमान छूनेवाले पहाड़ क़ायम किए गए हैं जिनका मौसमों की तब्दीलियों में, बारिशों के बरसने में, नदियों की पैदाइश में, उपजाऊ घाटियों के वुजूद में, पेड़ों के उगने में जिनसे बड़े-बड़े शहतीर हासिल किए जाते हैं, तरह-तरह के मादनीयात (खनिज पदार्थों) और तरह-तरह के पत्थरों के हासिल होने में बहुत बड़ा दख़ल है। फिर इस ज़मीन के पेट में भी मीठा पानी पैदा किया गया है, इसकी पीठ पर भी मीठे पानी की नहरें बहा दी गई हैं, और समुद्र के खारे पानी से साफ़-सुथरी भापें उठाकर भी निथरा हुआ पानी आसमान से बरसाने का इन्तिज़ाम किया गया है। क्या यह सब इस बात की दलील नहीं है कि एक सब कुछ कर सकने की क़ुदरत रखनेवाले ने यह सब कुछ बनाया है, और वह सिर्फ़ पूरी क़ुदरत रखनेवाला ही नहीं है, बल्कि सब कुछ जाननेवाला और हिकमतवाला भी है? अब अगर उसकी क़ुदरत और हिकमत ही से यह ज़मीन इस सरो-सामान के साथ और इन हिकमतों के साथ बनी है तो एक अक़्लमन्द आदमी को यह समझने में क्यों मुश्किल पेश आती है कि उसी की क़ुदरत इस दुनिया की बिसात लपेटकर फिर एक दूसरी दुनिया नए ढंग से बना सकती है, और उसकी हिकमत का तक़ाज़ा यह है कि वह इसके बाद एक दूसरी दुनिया बनाए, ताकि इनसान से उन आामाल (कर्मों) का हिसाब ले जो उसने इस दुनिया में किए हैं?
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 27
(28) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।16
16. यहाँ यह जुमला इस मानी में कहा गया है कि जो लोग ख़ुदा की क़ुदरत और हिकमत के ये करिश्मे देखकर भी आख़िरत के मुमकिन और अक़्ल के मुताबिक़ होने का इनकार कर रहे हैं और इस बात को झुठला रहे हैं कि ख़ुदा इस दुनिया के बाद एक दूसरी दुनिया पैदा करेगा और उसमें इनसान से उसके आमाल का हिसाब लेगा, वे अपनी इस ग़लतफ़हमी में मगन रहना चाहते हैं तो रहें। जिस दिन यह सब कुछ उनकी उम्मीदों के ख़िलाफ़ पेश आ जाएगा उस दिन उन्हें पता चल जाएगा कि उन्होंने यह बेवक़ूफ़ी करके ख़ुद अपने लिए तबाही मोल ली है।
ٱنطَلِقُوٓاْ إِلَىٰ مَا كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ۝ 28
(29) चलो17 अब उस चीज़ की तरफ़ जिसे तुम झुठलाया करते थे।
17. अब आख़िरत की दलीलें देने के बाद यह बताया जा रहा है कि जब वह आ जाएगी तो वहाँ इन इनकार करनेवालों का हश्र क्या होगा।
ٱنطَلِقُوٓاْ إِلَىٰ ظِلّٖ ذِي ثَلَٰثِ شُعَبٖ ۝ 29
(30) चलो उस साए की तरफ़ जो तीन शाखाओंवाला है,18
18. साए से मुराद धुएँ का साया है। और तीन शाखाओं का मतलब यह है कि जब कोई बहुत बड़ा धुआँ उठता है तो ऊपर जाकर वह कई शाखाओं में बँट जाता है।
لَّا ظَلِيلٖ وَلَا يُغۡنِي مِنَ ٱللَّهَبِ ۝ 30
(31) न ठण्डक पहुँचानेवाला और न आग की लपट से बचानेवाला।
إِنَّهَا تَرۡمِي بِشَرَرٖ كَٱلۡقَصۡرِ ۝ 31
(32) वह आग महल जैसी बड़ी-बड़ी चिंगारियाँ फेंकेगी (जो उछलती हुई यूँ महसूस होंगी)
كَأَنَّهُۥ جِمَٰلَتٞ صُفۡرٞ ۝ 32
(33) मानो कि वे ज़र्द (पीले) ऊँट हैं।19
19. यानी हर चिंगारी एक महल जैसी बड़ी होगी, और जब ये बड़ी-बड़ी चिंगारियाँ उठकर फटेंगी और चारों तरफ़ उड़ने लगेंगी तो यूँ महसूस होगा कि जैसे पीले रंग के ऊँट उछल-कूद कर रहे हैं।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 33
(34) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
هَٰذَا يَوۡمُ لَا يَنطِقُونَ ۝ 34
(35) यह वह दिन है, जिसमें वे न कुछ बोलेंगे,
وَلَا يُؤۡذَنُ لَهُمۡ فَيَعۡتَذِرُونَ ۝ 35
(36) और न उन्हें मौक़ा दिया जाएगा कि कोई बहाना पेश करें।20
20. यह उनकी आख़िरी हालत होगी जो जहन्नम में दाख़िल होने के वक़्त उनपर छाई होगी। उससे पहले हश्र के मैदान में तो ये लोग बहुत कुछ कहेंगे, बहुत-से बहाने पेश करेंगे, एक-दूसरे पर अपने क़ुसूरों का इलज़ाम डालकर ख़ुद बेक़ुसूर बनने की कोशिश करेंगे, अपने गुमराह करनेवाले सरदारों और पेशवाओं को गालियाँ देंगे, यहाँ तक कि कुछ लोग पूरी ढिठाई के साथ अपने जुर्मों का इनकार तक कर गुज़रेंगे, जैसा कि क़ुरआन मजीद में कई जगहों पर बयान हुआ है। मगर जब तमाम गवाहियों से उनका मुजरिम होना पूरी तरह साबित कर दिया जाएगा, और जब उनके अपने हाथ-पाँव और उनके जिस्म के दूसरे हिस्से तक उनके ख़िलाफ़ गवाही देकर जुर्म के सुबूत में कोई कसर न छोड़ेंगे, और जब बिलकुल जाइज़ और सही तरीक़े से इंसाफ़ के तमाम तक़ाज़े पूरे करके उन्हें सज़ा सुना दी जाएगी तो वे हैरान रह जाएँगे और उनके लिए अपने बचाव में कुछ कहने की गुंजाइश बाक़ी न रहेगी। मजबूरी पेश करने का मौक़ा न देने या उसकी इजाज़त न देने का मतलब यह नहीं है कि सफ़ाई का मौक़ा दिए बिना उनके ख़िलाफ़ फ़ैसला सुना दिया जाएगा। बल्कि इसका मतलब यह है कि उनका जुर्म इस तरह पक्के तौर पर साबित कर दिया जाएगा कि वे अपनी सफ़ाई में कुछ न कह सकेंगे। यह ऐसा ही है जैसे हम कहते हैं कि मैंने उसको बोलने नहीं दिया, या मैंने उसकी ज़बान बन्द कर दी, और इसका मतलब यह होता है कि मैंने उसके सामने ऐसी मज़बूत दलीलों के साथ बात की कि उसके लिए ज़बान खोलने या कुछ बोलने का कोई मौक़ा बाक़ी न रहा।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 36
(37) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِۖ جَمَعۡنَٰكُمۡ وَٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 37
(38) यह फ़ैसले का दिन है। हमने तुम्हें और तुमसे पहले गुज़रे हुए लोगों को इकट्ठा कर दिया है।
فَإِن كَانَ لَكُمۡ كَيۡدٞ فَكِيدُونِ ۝ 38
(39) अब अगर कोई चाल तुम चल सकते हो तो मेरे मुक़ाबले में चल देखो।21
21. यानी दुनिया में तो तुम बहुत मक्कारियाँ और चालबाज़ियाँ करते रहे, अब यहाँ कोई चाल चलकर मेरी पकड़ से बच सकते हो तो ज़रा बचकर दिखाओ।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 39
(40) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي ظِلَٰلٖ وَعُيُونٖ ۝ 40
(41) मुत्तक़ी (परहेज़गार) लोग22 आज सायों और चश्मों (स्रोतों) में हैं
22. चूँकि यह लफ़्ज़ यहाँ ‘मुकज़्ज़िबीन’ (झुठलानेवालों) के मुक़ाबले में इस्तेमाल हुआ है, इसलिए ‘मुत्तक़ियों’ (परहेज़गारों) से मुराद इस जगह वे लोग हैं जिन्होंने आख़िरत को झुठलाने से परहेज़ किया और उसको मानकर दुनिया में यह समझते हुए ज़िन्दगी गुज़ारी कि हमें आख़िरत में अपनी बातों और कामों और अपने अख़लाक़ और किरदार की जवाबदेही करनी होगी।
وَفَوَٰكِهَ مِمَّا يَشۡتَهُونَ ۝ 41
(42) और जो फल वे चाहें (उनके लिए हाज़िर हैं)।
كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِيٓـَٔۢا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 42
(43) खाओ और पियो मज़े से अपने उन आमाल (कर्मों) के बदले में जो तुम करते रहे हो।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 43
(44) हम नेक लोगों को ऐसा ही बदला देते हैं ।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 44
(45) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।23
23. यहाँ यह जुमला इस मानी में कहा गया है कि उनके लिए एक मुसीबत तो वह होगी जो ऊपर बयान हो चुकी है कि हश्र के मैदान में वे मुजरिमों की हैसियत से खड़े होंगे, खुल्लम-खुल्ला उनके जुर्म इस तरह साबित कर दिए जाएँगे कि उनके लिए ज़बान खोलने तक का हौसला न रहेगा, और आख़िरकार जहन्नम का ईंधन बनकर रहेंगे। दूसरी मुसीबत-पर-मुसीबत यह होगी कि वही ईमान लानेवाले जिनसे उनकी उम्र-भर लड़ाई रही, जिन्हें वे बेवक़ूफ़ और तंग ख़याल और पुराने ज़माने के लोग कहते रहे, जिनका वे मज़ाक़ उड़ाते रहे और जिन्हें अपने नज़दीक हक़ीर (तुच्छ) और गिरा हुआ समझते रहे, उन्हीं को वे जन्नत में मज़े उड़ाते देखेंगे।
كُلُواْ وَتَمَتَّعُواْ قَلِيلًا إِنَّكُم مُّجۡرِمُونَ ۝ 45
(46) खा लो24 और मज़े कर लो थोड़े दिन।25 हक़ीक़त में तुम लोग मुजरिम हो।
24. अब बात को ख़त्म करते हुए न सिर्फ़ मक्का के इस्लाम-दुश्मनों से बल्कि दुनिया के तमाम लोगों से ये बातें कही जा रही हैं।
25. यानी दुनिया की इस कुछ दिनों की ज़िन्दगी में।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 46
(47) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱرۡكَعُواْ لَا يَرۡكَعُونَ ۝ 47
(48) जब इनसे कहा जाता है कि (अल्लाह के आगे) झुको तो नहीं झुकते।26
26. अल्लाह के आगे झुकने से मुराद सिर्फ़ उसकी इबादत करना ही नहीं है, बल्कि उसके भेजे हुए रसूल और उसकी उतारी हुई किताब को मानना और उसके हुक्मों की पैरवी करना भी इसमें शामिल है।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 48
(49) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
فَبِأَيِّ حَدِيثِۭ بَعۡدَهُۥ يُؤۡمِنُونَ ۝ 49
(50) अब इस (क़ुरआन) के बाद और कौन-सा कलाम (वाणी) ऐसा हो सकता है जिसपर ये ईमान लाएँ।27
27. यानी जो बड़ी-से-बड़ी चीज़ इनसान को सही और ग़लत का फ़र्क़ समझानेवाली और हिदायत (मार्गदर्शन) का रास्ता दिखानेवाली हो सकती थी वह क़ुरआन की शक्ल में उतार दी गई है। इसको पढ़कर या सुनकर भी अगर कोई शख़्स ईमान नहीं लाता तो इसके बाद फिर और क्या चीज़ ऐसी हो सकती है जो उसको सीधे रास्ते पर ला सके?