(8) और जिसके पलड़े हल्के होंगे,4
4. अस्ल अरबी में लफ़्ज़ ‘मवाज़ीन’ इस्तेमाल हुआ है जो ‘मौज़ून’ की जमा (बहुवचन) भी हो सकता है और ‘मीज़ान’ की जमा भी। अगर इसको ‘मौज़ून’ की जमा कहा जाए तो ‘मवाज़ीन’ से मुराद वे आमाल होंगे जिनका अल्लाह तआला की निगाह में कोई वज़्न हो, जो उसके यहाँ किसी क़द्र के हक़दार हों। और अगर इसे ‘मीज़ान’ की जमा कहा जाए तो ‘मवाज़ीन’ से मुराद तराज़ू के पलड़े होंगे। पहली सूरत में ‘मवाज़ीन’ के हलके और भारी होने का मतलब नेक आमाल का बुरे आमाल के मुक़ाबले में भारी या हलका होना है, क्योंकि अल्लाह तआला की निगाह में सिर्फ़ नेकियाँ ही वज़नी और क़ाबिले-क़द्र हैं। दूसरी सूरत में ‘मवाज़ीन’ के भारी होने का मतलब अल्लाह तआला के इनसाफ़ के तराज़ू में नेकियों के पलड़े का बुराइयों के पलड़े के मुक़ाबले में ज़्यादा भारी होना है, और उनके हलका होने का मतलब यह है कि भलाइयों का पलड़ा बुराइयों के पलड़े के मुक़ाबले में हलका हो। इसके अलावा अरबी ज़बान के मुहावरे में ‘मीज़ान’ का लफ़्ज़ वज़्न के मानी में भी इस्तेमाल होता है, और इस मतलब के लिहाज़ से वज़्न के भारी और हलका होने से मुराद भलाइयों का वज़्न भारी या हलका होना है। बहरहाल ‘मवाज़ीन’ को चाहे ‘मौज़ून’ के मानी में लिया जाए, या ‘मीज़ान’ के मानी में, या वज़्न के मानी में, मक़सद एक ही रहता है, और वह यह है कि अल्लाह तआला की अदालत में फ़ैसला इस बुनियाद पर होगा कि आदमी आमाल की जो पूँजी लेकर आया है वह वज़नी है, या बेवज़्न, या उसकी भलाइयों का वज़्न उसकी बुराइयों के वज़्न से ज़्यादा है या कम। यह बात क़ुरआन मजीद में कई जगहों पर आई है, जिनको निगाह में रखा जाए तो इसका मतलब पूरी तरह साफ़ हो जाता है। सूरा-7 आराफ़ में है—
“और वज़्न उस दिन हक़ होगा, फिर जिनके पलड़े भारी होंगे वही कामयाबी पाएँगे, और जिनके पलड़े हलके होंगे वही अपने आपको घाटे में डालनेवाले होंगे।” (आयते—8, 9)
सूरा-18 कह्फ़ में कहा गया—
“ऐ नबी! इन लोगों से कहो, क्या हम तुम्हें बताएँ कि अपने आमाल में सबसे ज़्यादा नाकाम लोग कौन हैं? वे कि दुनिया की ज़िन्दगी में जिनकी सारी दौड़-धूप सही रास्ते से भटकी रही और वे समझते रहे कि वे सब कुछ ठीक कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने रब की आयतों को मानने से इनकार किया और उसके सामने पेशी का यक़ीन न किया। इसलिए उनके सारे आमाल बरबाद हो गए, क़ियामत के दिन हम उन्हें कोई वज़्न न देंगे।” (आयते—104, 105)
सूरा-21 अम्बिया में फ़रमाया—
“क़ियामत के दिन हम ठीक-ठीक तौलनेवाले तराज़ू रख देंगे, फिर किसी शख़्स पर ज़र्रा बराबर ज़ुल्म न होगा। जिसका राई के दाने के बराबर भी कुछ किया-धरा होगा वह हम ले आएँगे और हिसाब लगाने के लिए हम काफ़ी हैं।” (आयत-47)
इन आयतों से मालूम हुआ कि कुफ़्र और हक़ (सच) से इनकार अपनी जगह ख़ुद इतनी बड़ी बुराई है कि वह बुराइयों के पलड़े को लाज़िमन झुका देगी और हक़ के इनकारी की कोई नेकी ऐसी न होगी कि भलाइयों के पलड़े में उसका कोई वज़्न हो, जिससे उसकी नेकी का पलड़ा झुक सके। अलबत्ता ईमानवाले के पलड़े में ईमान का वज़्न भी होगा और उसके साथ उन नेकियों का वज़्न भी जो उसने दुनिया में कीं। दूसरी तरफ़ उसकी जो बुराई भी होगी वह बुराई के पलड़े में रख दी जाएगी। फिर देखा जाएगा कि क्या भलाई का पलड़ा झुका हुआ है या बुराई का।