(1) हमने इस (क़ुरआन) को शबे-क़द्र (क़द्रवाली रात) में उतारा है।1
1. अस्ल अरबी अलफ़ाज़ हैं, ‘अंज़ल्नाहु’ यानी “हमने इसको उतारा है।” लेकिन बिना इसके कि पहले क़ुरआन का कोई ज़िक्र हो, इशारा क़ुरआन ही की तरफ़ है, इसलिए कि ‘उतारना’ ख़ुद-ब-ख़ुद इसकी दलील बन रहा है कि मुराद क़ुरआन है। और क़ुरआन मजीद में इस बात की बहुत-सी मिसालें मौजूद हैं कि अगर बात के मौक़ा-महल या अन्दाज़े-बयान से ज़मीर (सर्वनाम) किसके लिए इस्तेमाल हो रही है, यह बात ख़ुद ज़ाहिर हो रही हो तो ज़मीर ऐसी हालत में भी इस्तेमाल कर ली जाती है जबकि वह किस चीज़ के लिए इस्तेमाल की गई है उसका ज़िक्र पहले या बाद में कहीं न किया गया हो। (तशरीह के लिए देखिए, तफ़हीमुल- क़ुरआन, हिस्सा-5, सूरा-53 नज्म, हाशिया-9)।
यहाँ कहा गया है कि हमने क़ुरआन को शबे-क़द्र (क़द्रवाली रात) में उतारा है, और सूरा-2 बक़रा, आयत-185 में कहा गया है कि “रमज़ान वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया।” इससे मालूम हुआ कि वह रात जिसमें पहली बार ख़ुदा का फ़रिश्ता हिरा नाम के ग़ार (गुफा) में नबी (सल्ल०) के पास वह्य लेकर आया था, वह रमज़ान के महीने की एक रात थी। इस रात को यहाँ ‘शबे-क़द्र’ कहा गया है और सूरा-44 दुख़ान, आयत-3 में इसी को मुबारक रात कहा गया है, “हमने इसे एक बरकतवाली (मुबारक) रात में उतारा है।”
इस रात में क़ुरआन उतारने के दो मतलब हो सकते हैं। एक यह कि इस रात में पूरा क़ुरआन वह्य लानेवाले फ़रिश्तों के हवाले कर दिया गया, और फिर वाक़िआत और हालात के मुताबिक़ वक़्त-वक़्त पर 23 साल के दौरान में जिबरील (अलैहि०) अल्लाह तआला के हुक्म से इसकी आयतें और सूरतें अल्लाह के रसूल (सल्ल०) पर उतारते रहे। यह मतलब इब्ने-अब्बास (रज़ि०) ने बयान किया है (हदीस : इब्ने-जरीर, इब्नुल-मुंज़िर, इब्ने-अबी-हातिम, हाकिम, इब्ने-मरदुवैह, बैहक़ी)। दूसरा मतलब यह है कि क़ुरआन के उतरने की शुरुआत इस रात से हुई। यह इमाम शअ्बी का कहना है, अगरचे उनसे भी दूसरी राय वही नक़्ल हुई है जो इब्ने-अब्बास (रज़ि०) की ऊपर गुज़री है (इब्ने-जरीर)। बहरहाल दोनों सूरतों में बात एक ही रहती है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) पर क़ुरआन के उतरने का सिलसिला इसी रात से शुरू हुआ और यही रात थी जिसमें सूरा-96 अलक़ की शुरू की पाँच आयतें उतारी गईं। फिर भी यह बात अपनी जगह एक हक़ीक़त है कि क़ुरआन की आयतें और सूरतें अल्लाह तआला उसी वक़्त तसनीफ़ (तैयार) नहीं करता था जब अल्लाह के रसूल (सल्ल०) और आप (सल्ल०) की इस्लामी दावत को किसी वाक़िए या मामले में हिदायत की ज़रूरत पेश आती थी, बल्कि कायनात को पैदा करने से भी पहले सबसे शुरू में अल्लाह तआला के यहाँ ज़मीन पर इनसानों की पैदाइश, उसमें नबियों के भेजे जाने, नबियों पर उतारी जानेवाली किताबों, और तमाम नबियों के बाद आख़िर में मुहम्मद (सल्ल०) को नबी बनाकर भेजने और आप (सल्ल०) पर क़ुरआन उतारने की पूरी स्कीम मौजूद थी। क़द्रवाली रात में सिर्फ़ यह काम हुआ कि इस मंसूबे (योजना) के आख़िरी हिस्से पर कार्रवाई शुरू हो गई। उस वक़्त अगर पूरा क़ुरआन वह्य लानेवालों (फ़रिश्तों) के हवाले कर दिया गया हो तो कोई ताज्जुब के क़ाबिल बात नहीं है।
‘क़द्र’ का मतलब क़ुरआन के कुछ आलिमों ने ‘तक़दीर’ लिया है, यानी यह वह रात है जिसमें अल्लाह तआला तक़दीर के फ़ैसले लागू करने के लिए फ़रिश्तों के सिपुर्द कर देता है। इसकी ताईद सूरा-44 दुख़ान की आयत-5 करती है, “उस रात में हर मामले का हिकमत के साथ फ़ैसला जारी कर दिया जाता है।” इसके बरख़िलाफ़ इमाम ज़ुहरी कहते हैं कि ‘क़द्र’ के मानी बड़ाई (महानता) और मुबारक हैं, यानी वह बड़ी बड़ाईवाली और अहम रात है। इस मतलब की ताईद इसी सूरा के इन अलफ़ाज़ से होती है कि “क़द्रवाली रात हज़ार महीनों से ज़्यादा बेहतर है।”
अब रहा यह सवाल कि यह कौन-सी रात थी, तो इसमें इतना इख़्तिलाफ़ हुआ है कि लगभग चालीस (40) रायें इसके बारे में मिलती हैं। लेकिन मुस्लिम समाज के आलिमों की एक बड़ी तादाद यह राय रखती है कि रमज़ान की आख़िरी दस रातों में से कोई एक ताक़ (विषम) रात लैलतुल-क़द्र (क़द्रवाली रात) है, और उनमें भी ज़्यादातर लोगों की राय यह है कि वह 27वीं रात है। इस मामले में जो भरोसेमन्द हदीसें नक़्ल हुई हैं उन्हें हम नीचे दर्ज करते हैं—
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने लैलतुल-क़द्र के बारे में फ़रमाया कि वह 27वीं या 29वीं रात है। (हदीस : अबू-दाऊद तयालिसी)। दूसरी रिवायत हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से यह है कि वह रमज़ान की आख़िरी रात है। (हदीस : मुसनद अहमद)।
हज़रत उबई-बिन-कअ्ब (रज़ि०) से ज़िर्र-बिन-हुबैश ने शबे-क़द्र के बारे में पूछा तो उन्होंने क़सम खाकर कहा कि वह 27वीं रात है और उन्होंने इसके अलावा किसी दूसरी रात का ज़िक्र तक न किया। (हदीस : अहमद, मुस्लिम, अबू-दाऊद, तिरमिज़ी, नसई, इब्ने-हिब्बान)
हज़रत अबू-ज़र (रज़ि०) से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हज़रत उमर (रज़ि०), हज़रत हुज़ैफ़ा और अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के सहाबा में से बहुत-से लोगों को इसमें कोई शक न था कि वह रमज़ान की 27वीं रात है। (हदीस : इब्ने-अबी-शैबा)
हज़रत उबादा-बिन-सामित (रज़ि०) की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने फ़रमाया कि “शबे-क़द्र (क़द्रवाली रात) रमज़ान की आख़िरी दस रातों में से ताक़ रात है, 21वीं, या 23वीं, या 25वीं, या 27वीं, या 29वीं या आख़िरी।” (हदीस : मुसनद अहमद)।
हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रज़ि०) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने फ़रमाया, “उसे रमज़ान की आख़िरी दस रातों में तलाश करो, जबकि महीना ख़त्म होने में 9 दिन बाक़ी हों, या सात दिन बाक़ी, या पाँच दिन बाक़ी।” (बुख़ारी)। अकसर आलिमों ने इसका मतलब यह लिया है कि नबी (सल्ल०) की मुराद ताक़ (विषम) रातों से थी।
हज़रत अबू-बक्र (रज़ि०) की रिवायत है कि नौ दिन बाक़ी हों, या सात दिन, या पाँच दिन, या तीन दिन, या आख़िरी रात। मुराद यह थी कि इन तारीख़ों में लैलतुल-क़द्र (शबे-क़द्र) को तलाश करो। (तिरमिज़ी, नसई)
हज़रत आइशा (रज़ि०) की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने फ़रमाया कि “क़द्र की रात को रमज़ान की आख़िरी दस रातों में से ताक़ (विषम) रात में तलाश करो।” (हदीस : बुख़ारी, मुस्लिम, अहमद, तिरमिज़ी) हज़रत आइशा (रज़ि०) और हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-उमर (रज़ि०) की यह भी रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने सारी ज़िन्दगी रमज़ान की आख़िरी दस रातों में एतिकाफ़ किया है।
इस मामले में जो रिवायतें हज़रत मुआविया (रज़ि०), हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०), हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि०) वग़ैरा बुज़ुर्गों से रिवायत हैं उनकी बुनियाद पर पहले के बड़े आलिमों की बड़ी तादाद 27वें रमज़ान ही को क़द्रवाली रात समझती है। शायद यक़ीनी तौर से किसी रात को अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल०) की तरफ़ से इसलिए तय नहीं किया गया है कि क़द्रवाली रात की बड़ी फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता और बड़ाई) से फ़ायदा उठाने के शौक़ में लोग ज़्यादा-से-ज़्यादा रातें इबादत में गुज़ारें और किसी एक रात पर बस न करें। यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि जिस वक़्त मक्का में रात होती है उस वक़्त दुनिया के एक बहुत बड़े हिस्से में दिन होता है, इसलिए उन इलाक़ों के लोग तो कभी क़द्रवाली रात को पा ही नहीं सकते। इसका जवाब यह है कि अरबी ज़बान में अकसर रात का लफ़्ज़ दिन और रात को मिलाकर बोला जाता है। इसलिए रमज़ान की इन तारीख़ों में से जो तारीख़ भी दुनिया के किसी हिस्से में हो उसके दिन से पहले वाली रात वहाँ के लिए क़द्रवाली हो सकती है।