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سُورَةُ البُرُوجِ

85. अल-बुरूज

(मक्का में उतरी, आयतें 22)

परिचय

नाम

पहली आयत के शब्द 'अल-बुरूज' (मज़बूत क़िलों) को इसका नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

इसका विषय स्वयं यह बता रहा है कि यह सूरा मक्का के उस काल में उतरी है जब ज़ुल्म और अत्याचार उग्र रूप ले चुका था और मक्का के कुफ़्फ़ार (इस्लाम-विरोधी) मुसलमानों को कड़ी से कड़ी यातना देकर ईमान से फेर देने की कोशिश कर रहे थे।

विषय और वार्ता

इसका विषय इस्लाम-विरोधियों को उस अन्याय एवं अत्याचार के बुरे अंजाम से ख़बरदार करना है जो वे ईमान लानेवालों के साथ कर रहे थे, और ईमानवालों को यह तसल्ली देना है कि अगर वे इन अत्याचारों के मुक़ाबले में क़दम जमाए रहेंगे तो उनको इसका बहुत अच्छा बदला मिलेगा और अल्लाह तआला अत्याचारियों से बदला लेगा। इस सिलसिले में सबसे पहले ‘अस्हाबुल-उख़्दूद' (गढ़ेवालों) का क़िस्सा सुनाया गया है, जिन्होंने ईमान लानेवालों को आग से भरे हुए गढ़े में फेंक-फेंककर जला दिया था। इस क़िस्से के रूप में कुछ बातें ईमानवालों और इंकार करनेवालों के मन में बिठाई गई हैं—

एक यह कि जिस तरह 'अस्हाबुल-उख़्दूद' (गढ़ेवाले) अल्लाह की लानत और उसकी मार के हक़दार बने, उसी तरह मक्का के सरदार भी उसके हक़दार बन रहे हैं।

दूसरे यह कि जिस तरह ईमान लानेवालों ने उस वक़्त आग के गढ़ों में गिरकर जान दे देना क़ुबूल कर लिया था लेकिन ईमान से फिरना क़ुबूल नहीं किया था, उसी तरह अब भी ईमानवालों को चाहिए कि हर कठिन से कठिन यातना भुगत लें, मगर ईमान के रास्ते से न हटें।

तीसरे यह कि जिस अल्लाह को मानने पर इस्लाम-विरोधी ग़ुस्सा होते और ईमानवाले आग्रह करते हैं, वह अल्लाह सबपर प्रभावी है, धरती और आकाश के राज्य का मालिक है, अपने आप में स्वयं प्रशंसा का अधिकारी है। और वह दोनों गिरोहों के हाल को देख रहा है, इसलिए यह बात निश्चित है कि [इनमें से हर एक अपने किए का बदला पाकर रहे।] फिर हक़ का इंकार करनेवालों को ख़बरदार किया गया है कि अल्लाह की पकड़ बड़ी सख़्त है। अगर तुम अपने जत्थे की ताक़त के घमंड में चूर हो तो तुमसे बड़े जत्थे फ़िरऔन और समूद के पास थे। उनकी फ़ौजों का जो अंजाम हुआ है उससे शिक्षा प्राप्त करो। अल्लाह की शक्ति तुम्हें इस तरह अपने घेरे में लिए हुए है कि उस घेरे से तुम निकल नहीं सकते। और क़ुरआन, जिसके झुठलाने पर तुम तुले हुए हो, उसकी हर बात अटल है। वह उस ‘लौहे-महफ़ूज़' (सुरक्षित पट्टिका) में अंकित है जिसका लिखा किसी के बदलने से नहीं बदल सकता।

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سُورَةُ البُرُوجِ
85. अल-बुरूज
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यन्त दयावान है।
وَٱلسَّمَآءِ ذَاتِ ٱلۡبُرُوجِ
(1) क़सम है मज़बूत किलोवाले आसमान की1,
1. मुराद आसमान के विशालतम तारे और ग्रह हैं।
وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡمَوۡعُودِ ۝ 1
(2) और उस दिन की जिसका वादा किया गया है2,
2. अर्थात् क़ियामत का दिन।
وَشَاهِدٖ وَمَشۡهُودٖ ۝ 2
(3) और देखनेवाले की, और देखी जानेवाली3 चीज़ की
3. देखनेवाले से तात्पर्य हर वह आदमी है जो क़ियामत के दिन हाज़िर होगा और देखी जानेवाली चीज़ से तात्पर्य स्वयं क़ियामत है जिसके हौलनाक हालात को सब देखनेवाले देखेंगे।
قُتِلَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡأُخۡدُودِ ۝ 3
(4) कि मारे गए गढ़ेवाले,
ٱلنَّارِ ذَاتِ ٱلۡوَقُودِ ۝ 4
(5) (उस गढ़ेवाले) जिसमें ख़ूब भड़कते हुए ईंधन की आग थी,
إِذۡ هُمۡ عَلَيۡهَا قُعُودٞ ۝ 5
(6) जबकि वे उस गढ़े के किनारे पर बैठे हुए थे
وَهُمۡ عَلَىٰ مَا يَفۡعَلُونَ بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ شُهُودٞ ۝ 6
(7) और जो कुछ वे ईमान लानेवालों के साथ कर रहे थे, उसे देख रहे थे।4
4. गढ़ेवालों से तात्पर्य वे लोग हैं जिन्होंने बड़े-बड़े गढ़ों में आग भड़काकर ईमान लानेवाले लोगों को उनमें फेंका और अपनी आँखों से उनके जलने का तमाशा देखा था। मारे गए का अर्थ यह है कि उनपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और वे अल्लाह के अज़ाब के हक़दार हो गए। और इस बात पर तीन चीज़ों की क़सम खाई गई है- एक, बुर्जुवाले आसमान की, दूसरे, क़ियामत के दिन की जिसका वादा किया गया है, और तीसरे, क़ियामत के हौलनाक दृश्यों की और उस सारी मख़लूक़ (सृष्टि) की जो उन दृश्यों को देखेगी। पहली चीज़ इस बात पर गवाही दे रही है कि जो सर्वशक्तिमान हस्ती सृष्टि के विशालतम सितारों और ग्रहों पर शासन कर रही है, उसकी पकड़ से ये तुच्छ एवं अधम इंसान कहाँ बचकर जा सकते हैं। दूसरी चीज की क़सम इस आधार पर खाई गई है कि दुनिया में उन लोगों ने जो अत्याचार करना चाहा, कर लिया, मगर वह दिन बहरहाल आनेवाला है जिससे इंसानों को सचेत किया जा चुका है कि उसमें हर उत्पीड़ित को फरियाद सुनी जाएगी और हर ज़ालिम की पकड़ होगी। तीसरी चीज़ की क़सम इसलिए खाई गई है कि जिस तरह इन ज़ालिमों ने उन विवश ईमानवालों के जलने का तमाशा देखा उसी तरह क़ियामत के दिन सारी मखलूक (सृष्टि) देखेगी कि इनकी ख़बर किस तरह ली जाती है। गढ़ों में आग जलाकर ईमानवालों को उनमें फेंकने की कई घटनाएँ रिवायतों में बयान हुई हैं जिनसे मालूम होता है कि दुनिया में कई बार इस तरह के अत्याचार किए गए हैं। सबसे प्रसिद्ध घटना नजरान की है जिसे इब्ने-हिशाम, तबरी, इब्ने-खलदून और साहिबे मोजमुल बुलदान आदि इस्लामी इतिहासकारों ने बयान किया है। इसका सार यह है कि हिमयर (यमन) के बादशाह तुबान असअद अबू करिब एक बार यसरिब गया जहाँ यहूदियों से प्रभावित होकर उसने यहूदी धर्म अपना लिया और बनी कुरैज़ा के दो यहूदी विद्वानों को अपने साथ यमन ले गया। वहाँ उसने बड़े पैमाने पर यहूदी मत का प्रचार किया। उसका बेटा जूनवास उसका उत्तराधिकारी हुआ और उसने नजरान पर, जो दक्षिणी अरब में ईसाइयों का गढ़ था, आक्रमण किया, ताकि वहाँ से ईसाई मत का खात्मा कर दे और उसके निवासियों को यहूदी धर्म अपनाने पर मजबूर करे। (इब्ने-हिशाम कहते हैं कि ये लोग हज़रत ईसा के मूल धर्म पर क़ायम थे।) नजरान पहुँचकर उसने लोगों को यहूदी धर्म अपनाने की दावत दी लेकिन उन्होंने इंकार किया। इसपर उसने बहुत से लोगों को आग से भरे हुए गढ़ों में फेंककर जलवा दिया और बहुतों को क़त्ल कर दिया, यहाँ तक कि कुल मिलाकर 20 हज़ार आदमी मारे गए। अन्ततः हब्श की 70 हज़ार सेना ने अरयात नामी एक जनरल के नेतृत्व में यमन पर आक्रमण किया, जूनवास मारा गया। यहूदी शासन का अन्त हो गया और यमन हब्श के ईसाई राज्य का एक हिस्सा बन गया। इस्लामी इतिहासकारों के बयानों की पुष्टि न केवल दूसरे ऐतिहासिक सूत्रों से होती है, बल्कि उनसे बहुत-से और अधिक विवरणों का भी पता चलता है। [इन सूत्रों के अनुसार अत्याचार और बर्बरता की यह घटना अक्तूबर 523 ई० में घटित हुई थी और जूनवास के हिम्यरी शासन का अन्त 525 ई० में हुआ था। इसकी पुष्टि हिस्ने गुराब के पुरालेखों से होती है जो यमन में वर्तमान काल के पुरातत्त्व अन्वेषकों को मिले हैं। छठी सदी ईस्वी के बहुत-से ईसाई लेखों में गढ़ेवालों की इस घटना के विवरणों का उल्लेख हुआ है, जिनमें से कुछ उस समय की लिखी हुई हैं जब यह घटना घटित हुई और यह चश्मदीद गवाहों से सुनकर लिखी गई हैं। इनमें से तीन किताबों के लेखक इस घटना के समकालीन हैं।
وَمَا نَقَمُواْ مِنۡهُمۡ إِلَّآ أَن يُؤۡمِنُواْ بِٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَمِيدِ ۝ 7
(8) और उन ईमानवालों से उनकी दुश्मनी इसके सिवा किसी कारण न थी कि वे उस अल्लाह पर ईमान ले आए थे जो सर्वशक्तिमान और अपने आप में स्वयं प्रशंसनीय है,
ٱلَّذِي لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ ۝ 8
(9) जो आसमानों और ज़मीन की सल्तनत का मालिक है, और वह अल्लाह सब कुछ देख रहा है।5
5. इन आयतों में अल्लाह के उन गुणों का उल्लेख हुआ है जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि वही इसका अधिकारी है कि उसपर ईमान लाया जाए, और वे लोग अत्याचारी हैं जो इस बात पर बिगड़ते हैं कि कोई उसपर ईमान लाए।
إِنَّ ٱلَّذِينَ فَتَنُواْ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ ثُمَّ لَمۡ يَتُوبُواْ فَلَهُمۡ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَلَهُمۡ عَذَابُ ٱلۡحَرِيقِ ۝ 9
(10) जिन लोगों ने ईमानवाले मर्दो और ईमानवाली औरतों पर सितम तोड़ा और फिर उससे तौबा न की, निश्चय ही उनके लिए जहन्नम का अज़ाब है और उनके लिए जलाए जाने की सज़ा है।6
6. जहन्नम के अज़ाब से अलग जलाए जाने की सज़ा का उल्लेख इसलिए किया गया है कि उन्होंने उत्पीड़ित व्यक्तियों को आग के गढ़े में फेंककर जिन्दा जलाया था। शायद यह जहन्नम की आम आग से अलग और उससे अधिक उन कोई और आग होगी जिसमें वे जलाए जाएंगे।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُمۡ جَنَّٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡكَبِيرُ ۝ 10
(11) जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने भले-कर्म किए, निश्चय ही उनके लिए जन्नत के बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, यह है बड़ी सफलता।
إِنَّ بَطۡشَ رَبِّكَ لَشَدِيدٌ ۝ 11
(12) वास्तव में तुम्हारे रब की पकड़ बड़ी सख्त है।
إِنَّهُۥ هُوَ يُبۡدِئُ وَيُعِيدُ ۝ 12
(13) वही पहली बार पैदा करता है और वही दोबारा पैदा करेगा।
وَهُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلۡوَدُودُ ۝ 13
(14) और वह क्षमा करनेवाला है, मुहब्बत करनेवाला है,
ذُو ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡمَجِيدُ ۝ 14
(15) अर्श का मालिक है, उच्च व श्रेष्ठ है,
فَعَّالٞ لِّمَا يُرِيدُ ۝ 15
(16) और जो कुछ चाहे कर डालनेवाला है।7
7. क्षमा करनेवाला है' कहकर यह आशा दिलाई गई है कि कोई अगर अपने गुनाहों से बाज़ आकर तौबा कर ले तो उसकी रहमत के दामन में जगह पा सकता है। 'प्रेम करनेवाला' कहकर यह बताया गया है कि उसको अपनी मखलूक (सृष्टि) से दुश्मनी नहीं है कि अकारण ही उसको अज़ाब में डाल दे, बल्कि जिस मख़लूक़ को उसने पैदा किया है उससे वह मुहब्बत रखता है और सज़ा केवल उस समय देता है जब वह उद्दण्डता और सरकशी से बाज़ ही न आए। 'अर्श का मालिक' कहकर इंसान को यह एहसास दिलाया गया है कि सृष्टि के साम्राज्य का शासक वही है। उसके प्रति उदंडता करनेवाला उसकी पकड़ से बचकर कहीं नहीं जा सकता। 'उच्च व श्रेष्ठ' कहकर इंसान को इस कमीनेपन पर सचेत किया गया है कि वह ऐसी हस्ती के मुक़ाबले में गुस्ताख़ी का रवैया अपनाता है। और अन्तिम गुण यह बयान किया गया है कि वह 'जो कुछ चाहे कर डालनेवाला है।' अर्थात् पूरी सृष्टि में किसी को भी यह ताकत नहीं है कि अल्लाह जिस काम का इरादा करे उसमें वह रुकावट डालनेवाला और बाधक बन सके।
هَلۡ أَتَىٰكَ حَدِيثُ ٱلۡجُنُودِ ۝ 16
(17) क्या तुम्हें लश्करों की ख़बर पहुँची है?
فِرۡعَوۡنَ وَثَمُودَ ۝ 17
(18) फ़िरऔन और समूद (के लश्करों) की?8
8. संबोधन उन लोगों की ओर है जो अपने शक्तिशाली जत्थों के घमंड में अल्लाह की ज़मीन पर उदंडता दिखा रहे हैं। उनसे फ़रमाया जा रहा है कि कुछ तुम्हें ख़बर भी है कि इससे पहले जिन लोगों ने अपने जत्थों की ताक़त के बल पर यही उदंडताएँ की थीं वे किस अंजाम से दोचार हो चुके हैं।
بَلِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي تَكۡذِيبٖ ۝ 18
(19) मगर जिन्होंने कुफ़्र (इंकार) किया है, वे झुठलाने में लगे हुए हैं,
وَٱللَّهُ مِن وَرَآئِهِم مُّحِيطُۢ ۝ 19
(20) हालाँकि अल्लाह ने उनको घेरे में ले रखा है,
بَلۡ هُوَ قُرۡءَانٞ مَّجِيدٞ ۝ 20
(21) (उनके झुठलाने से इस क़ुरआन का कुछ नहीं बिगड़ता) बल्कि यह क़ुरआन उपाच कोटि का है,
فِي لَوۡحٖ مَّحۡفُوظِۭ ۝ 21
(22) उस पट्टिका में (अंकित है) जो सुरक्षित है।9
9. अर्थ यह है कि इस क़ुरआन का लिखा अमिट है, अटल है, अल्लाह की उस सुरक्षित पट्टिका में अंकित है जिसके भीतर कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।