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कु़रआन (लेख)

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क़ुरआन की शिक्षाएँ मानवजाति के लिए अनमोल उपहार
क़ुरआन की शिक्षाएँ मानवजाति के लिए अनमोल उपहार
27 March 2024
Views: 22

इक्कीसवीं शताब्दी विभिन्न धर्म व संस्कृतियों के आपसी परिचय और मिलन का युग है। विभिन्न धर्म-दर्शनों के दृष्टिकोणों, संस्कारों व विचारों को देखने, जानने और समझने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जो उज्जवल भविष्य का प्रतीक है। वर्तमान पीढ़ी यह जानना चाहती है कि अनेक धर्म और उनके धर्म ग्रन्थों का विभिन्न समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण क्या है और वे क्या निवारण पेश करते हैं? उनका मार्ग-दर्शन किसी विशेष समुदाय, देश एवं सीमित काल के लिए है या सम्पूर्ण मानवजाति, समस्त जगत तथा युग-युगांतर के लिए है। प्रस्तुत पुस्तक 'क़ुरआन की शिक्षाएँ- मानवजाति के लिए अनमोल उपहार' आधुनिक पीढ़ी की इन्हीं जिज्ञासाओं को शान्त करने और उस श्रोत का परिचय कराने की दिशा में एक प्रयास है, जिसे ईश्वर की अन्तिम वाणी अर्थात 'पवित्र क़ुरआन' के नाम से जाना जाता है, जो मानव जाति की विभिन्न मौलिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है।

पवित्र क़ुरआन की शिक्षा : आधुनिक समय की अपेक्षाएँ (क़ुरआन लेक्चर -12)
पवित्र क़ुरआन की शिक्षा : आधुनिक समय की अपेक्षाएँ (क़ुरआन लेक्चर -12)
12 December 2023
Views: 140

एक दृष्टि से पवित्र क़ुरआन के दर्स (प्रवचन) की ज़रूरतें और अपेक्षाएँ हर दौर में समान रही हैं। मुसलमानों के इतिहास का कोई दौर ऐसा नहीं गुज़रा जिसमें उन्हें दर्से-क़ुरआन की ज़रूरत न रही हो, और इसकी अपेक्षाओं और ज़रूरत पर चर्चा न हुई हो। इस्लाम की आरंभिक बारह-तेरह शताब्दियों में कोई शताब्दी ऐसी नहीं गुज़री जब मुसलमानों की शिक्षा-व्यवस्था और उनके प्रशिक्षण-व्यवस्था में पवित्र क़ुरआन को मौलिक और आधारभूत महत्त्व प्राप्त न रहा हो। फिर विभिन्न कालों, विभिन्न ज़मानों और विभिन्न इलाक़ों में मुसलमानों के ज़ेहन में जो सवाल वह्य और नुबूवत (पैग़म्बरी) के बारे में पैदा होते रहे हैं, वे कमो-बेश हर दौर में समान रहे हैं। बल्कि वह्य, नुबूवत (पैग़म्बरी) और मरने के बाद की ज़िन्दगी जैसी मौलिक अवधारणाओं (अक़ीदों) के बारे में नास्तिक जिन सन्देहों एवं आपत्तियों को व्यक्त करते रहे हैं उनकी हक़ीक़त भी हर दौर में कमो-बेश एक जैसी ही रही है। नूह (अलैहिस्सलाम) के ज़माने से लेकर अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के शुभ दौर तक पवित्र क़ुरआन ने विभिन्न लोगों और विभिन्न व्यक्तित्वों का उल्लेख किया है। और उन व्यक्तित्वों के समकालीन लोगों और उनके ज़माने में प्रचलित विचारों और असत्य धारणाओं का खंडन भी किया है। यह ग़लत विचार और असत्य धारणाएँ (अक़ीदे) लगभग एक जैसी ही हैं।

पवित्र क़ुरआन का विषय और महत्त्वपूर्ण वार्त्ताएँ (क़ुरआन लेक्चर  - 11)
पवित्र क़ुरआन का विषय और महत्त्वपूर्ण वार्त्ताएँ (क़ुरआन लेक्चर - 11)
12 December 2023
Views: 120

आज की चर्चा का विषय है पवित्र क़ुरआन का मूल विषय और इसकी महत्त्वपूर्ण वार्त्ताएँ। पवित्र क़ुरआन की महत्त्वपूर्ण वार्त्ताओं पर चर्चा करने के लिए ज़रूरी है कि पहले यह देखा जाए कि पवित्र क़ुरआन का अस्ल और मूल विषय क्या है। यह देखना इसलिए ज़रूरी है कि दुनिया की हर किताब का कोई न कोई विषय होता है, जिससे वह मूल रूप से बहस करती है। शेष बहसों के बारे में इस किताब में चर्चा या तो सन्दर्भगत होती है या केवल उस हद तक उन विषयों पर चर्चा की जाती है जिस हद तक उनका संबंध किताब के मूल विषय से होता है। अतः यह सवाल स्वाभाविक रूप से पैदा होता है कि पवित्र क़ुरआन का मूल विषय क्या है। अगर क़ुरआन के मूल विषय का निर्धारण करने के लिए उसके अन्दर लिखी बातों को देखा जाए तो महसूस होता है कि पवित्र क़ुरआन में दार्शनिकता से भरपूर बहसें भी हैं। तो क्या पवित्र क़ुरआन को दर्शन की किताब कहा जा सकता है? जिन सवालों से दर्शन बहस करता है कि इंसान का आरंभ किया है, यह आरंभ क्यों और कैसे हुआ, आदम और आदमियत (मानवता) की वास्तविकता क्या है, अस्तित्व किसे कहते हैं, अस्तित्व का प्रकट चीज़ों से क्या संबंध है, ये वे चीज़ें हैं जिनके बारे में दर्शन-शास्त्र में सवाल उठाए जाते रहे हैं। पवित्र क़ुरआन के एक सरसरी अध्ययन से अनुमान हो जाता है कि इन सवालों का जवाब पवित्र क़ुरआन ने भी दिया है तो क्या पवित्र क़ुरआन को दर्शन की किताब क़रार दिया जाए?

नज़्मे-क़ुरआन और क़ुरआन की शैली (क़ुरआन लेक्चर- 10)
नज़्मे-क़ुरआन और क़ुरआन की शैली (क़ुरआन लेक्चर- 10)
12 December 2023
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नज़्मे-क़ुरआन (क़ुरआन का व्यवस्थीकरण) वह चीज़ है जिसने सबसे पहले अरब के बहुदेववादियों और मक्का के इस्लाम-विरोधियों को क़ुरआन मजीद के आरंभ से परिचित कराया और जिसको सबसे पहले अरब के बड़े-बड़े साहित्यकारों, भाषणकर्ताओं और भाषाविदों ने महसूस किया, जिसने अरबों के उच्च कोटि वर्गों से यह बात मनवाई कि पवित्र क़ुरआन की वर्णन शैली एक अलग प्रकार की वर्णन शैली है। यह वह शैली है जिसका उदाहरण न अरबी शायरी में मिलता है, न भाषण कला में, न कहानत में और न किसी और ऐसे कलाम में जिससे अरबवासी इस्लाम से पहले परिचित रहे होँ। पवित्र क़ुरआन में शेअर की मधुरता और संगीतगुण भी है, भाषण कला का ज़ोरे-बयान भी है, वाक्यों का संक्षिप्त रूप भी है। इस में सारगर्भिता भी पाई जाती है और अर्थों की गहराई भी, इसमें तथ्य एवं ब्रह्मज्ञान की गहराई भी है और तत्त्वदर्शिता एवं बुद्धिमत्ता भी। इस किताब में तर्क और प्रमाणों का प्रकाश और तार्किकता का नयापन और शक्ति भी उच्च कोटि की पाई जाती है, और इन सब चीज़ों के साथ-साथ यह कलाम भाषा की उत्कृष्टता एवं वाग्मिता के उच्चतम स्तर पर भी आसीन है।

उलूमुल-क़ुरआन-क़ुरआन से संबंधित ज्ञान (क़ुरआन लेक्चर  - 9)
उलूमुल-क़ुरआन-क़ुरआन से संबंधित ज्ञान (क़ुरआन लेक्चर - 9)
12 December 2023
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उलूमुल-क़ुरआन के अन्तर्गत वे सारे ज्ञान-विज्ञान आते हैं जो इस्लामी विद्वानों, क़ुरआन के टीकाकारों और समाज के चिन्तकों ने पिछले चौदह सौ वर्षों के दौरान में पवित्र क़ुरआन के हवाले से संकलित किए हैं। एक दृष्टि से इस्लामी ज्ञान एवं कलाओं का पूरा भंडार पवित्र क़ुरआन की तफ़सीर (टीका) से भरा पड़ा है। आज से कमो-बेश एक हज़ार वर्ष पहले क़ुरआन के प्रसिद्ध टीकाकार और फ़क़ीह (धर्मशास्त्री) क़ाज़ी अबू-बक्र इब्नुल-अरबी ने लिखा था कि मुसलमानों के जितने ज्ञान एवं कलाएँ हैं, जिनका उन्होंने उस वक़्त अनुमान सात सौ के क़रीब लगाया था, वे सब के सब अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से हदीस की व्याख्या हैं, और हदीस पवित्र क़ुरआन की व्याख्या है। इस दृष्टि से मुसलमानों के सारे ज्ञान एवं कलाएँ उलूमुल-क़ुरआन की हैसियत रखते हैं।

क़ुरआन के चमत्कारी गुण (क़ुरआन लेक्चर - 8)
क़ुरआन के चमत्कारी गुण (क़ुरआन लेक्चर - 8)
12 December 2023
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पवित्र क़ुरआन के हवाले से एजाज़ुल-क़ुरआन (क़ुरआन के चमत्कारी गुण) एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय है। पवित्र क़ुरआन की महानता को समझने और इसकी श्रेष्ठता का अनुमान करने के लिए इसकी चमत्कारी प्रकृति को समझना अत्य़ंत अनिवार्य है। क़ुरआन के चमत्कारी गुणों पर चर्चा करते हुए उसके दो विशिष्ट पहलू हमारे सामने आते हैं। एक पहलू तो इल्मे-एजाज़ुल-क़ुरआन (क़ुरआन की चमत्कारी प्रकृति का ज्ञान) के आरंभ एवं विकास तथा इतिहास का है। यानी एजाज़ुल-क़ुरआन एक ज्ञान और तफ़सीर तथा उलूमे-क़ुरआन (क़ुरआन संबंधी ज्ञान) के एक विभाग के तौर पर किस प्रकार संकलित हुआ और किन-किन विद्वानों ने किन-किन पहलुओं को पवित्र क़ुरआन का चमत्कारी पहलू क़रार दिया।

क़ुरआन के टीकाकारों की टीका-शैलियाँ (क़ुरआन लेक्चर - 7)
क़ुरआन के टीकाकारों की टीका-शैलियाँ (क़ुरआन लेक्चर - 7)
12 December 2023
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टीका-शैलियों से अभिप्रेत वह ढंग और विधि है जिसके अनुसार किसी टीकाकार ने पवित्र क़ुरआन की तफ़सीर या टीका की हो, या उस कार्य-विधि के अनुसार पवित्र क़ुरआन की टीका को संकलित करने का इरादा किया है। हम सब का ईमान (विश्वास) है कि पवित्र क़ुरआन रहती दुनिया तक के लिए है, और दुनिया के हर इंसान के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध करता है। इस अस्थायी सांसारिक जीवन में इंसानों को अच्छा इंसान बनाने में जिन-जिन पहलुओं के बारे में कल्पना की जा सकती है, उन सब के बारे में पवित्र क़ुरआन मार्गदर्शन उपलब्ध करता है। पवित्र क़ुरआन एक व्यापारी के लिए भी मार्गदर्शक किताब है, एक शिक्षक के लिए भी मार्गदर्शक किताब है, एक दार्शनिक, अर्थशास्त्री और क़ानून-विशेषज्ञ के लिए भी मौलिक सिद्धांत उपलब्ध करता है। कहने का तात्पर्य यह कि ज़िंदगी का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिसका संबंध इंसान को बेहतर इंसान बनाने से हो और उसके बारे में पवित्र क़ुरआन मार्गदर्शन न उपलब्ध करता हो।

इस्लामी इतिहास में क़ुरआन के कुछ बड़े टीकाकार (क़ुरआन लेक्चर - 6)
इस्लामी इतिहास में क़ुरआन के कुछ बड़े टीकाकार (क़ुरआन लेक्चर - 6)
12 December 2023
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मुफ़स्सिरीने-क़ुरआन (क़ुरआन के टीकाकारों) पर चर्चा की ज़रूरत दो कारणों से महसूस होती है। पहला कारण तो यह है कि तफ़सीरी अदब (टीका संबंधी साहित्य) में जिस प्रकार से और जिस तेज़ी के साथ व्यापकता पैदा हुई उसके परिणामस्वरूप बहुत-सी तफ़सीरें (टीकाएँ) लिखी गईं। पूरे पवित्र क़ुरआन की विधिवत तथा पूरी टीका के अलावा भी टीका संबंधी विषयों पर सम्मिलित बहुत-सी किताबें तैयार हुईं और आए दिन तैयार हो रही हैं। उनमें से कुछ तफ़सीरों में ऐसी चीज़ें भी शामिल हो गई हैं जो सही इस्लामी विचारधारा को प्रस्तुत नहीं करती हैं। पवित्र क़ुरआन के विद्यार्थियों को उन तमाम प्रवृत्तियों और शैलियों से अवगत और सचेत रहना चाहिए। इसलिए उचित महसूस होता है कि कुछ ऐसे नामवर, विश्वसनीय और प्रवृत्ति बनानेवाले मुफ़स्सिरीने-क़ुरआन (क़ुरआन के टीकाकारों) का उल्लेख किया जाए जो तफ़सीर के पूरे भंडार में प्रमुख और अद्भुत स्थान भी रखते हैं और इस्लामी सोच का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, ये वे दूरदर्शी और बड़े मुफ़स्सिरीने-क़ुरआन हैं, जिन्होंने पवित्र क़ुरआन के उलूम (विद्याओं) के प्रचार-प्रसार में अत्यंत लाभकारी और सृजनात्मक भूमिका निभाई है, जिनके काम के प्रभाव, परिणाम तथा फल आज पूरी दुनिया के सामने हैं, और जिनकी निष्ठा और काम की उपयोगिता से आज पवित्र क़ुरआन के अर्थ और भावार्थ अपने मूल रूप में हम तक पहुँचे हैं और हमारे पास मौजूद हैं।

इल्मे-तफ़सीर : एक परिचय (क़ुरआन लेक्चर- 5)
इल्मे-तफ़सीर : एक परिचय (क़ुरआन लेक्चर- 5)
12 December 2023
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पवित्र क़ुरआन अल्लाह तआला की आख़िरी किताब है। यह मुसलमानों के लिए क़ियामत तक जीवन-व्यवस्था की हैसियत रखता है। एक मानव समाज में तमाम सिद्धांतों और सामाजिक क़ानूनों का सबसे पहला मूल स्रोत यह किताब है। एक इस्लामी राज्य में यह किताब एक श्रेष्ठ क़ानून और दिशा निर्देश की हैसियत रखती है। पवित्र क़ुरआन एक ऐसा तराज़ू और कर्म-मापक है जिसके आधार पर सत्य-असत्य में अन्तर किया जा सकता है। यह वह कसौटी है जो हर सही को हर ग़लत से अलग कर सकती है। यह किताब मुसलमानों के लिए व्यावहारिक एवं प्रत्यक्ष रूप से, और पूरी मानवता के लिए, मार्गदर्शन की एक व्यवस्था है। यह एक ऐसी कसौटी है जिसपर परखकर खरे और खोटे का पता लगाया जा सकता है। यह वह मार्गदर्शन व्यवस्था है जो रहती दुनिया तक के लिए है, जिसकी पैरवी हर ज़माने और हर जगह के इंसानों के लिए वाजिब है। यह मार्गदर्शन-व्यवस्था हर स्थिति में इंसानों को पेश आनेवाले हर मामले में आध्यात्मिक मार्गदर्शन और नैतिक तथा शरीअत का मार्गदर्शन उपलब्ध कर सकती है। इस किताब की मदद से उच्च नैतिक मानदंड रहती दुनिया तक के लिए निर्धारित किए जा सकते हैं।

पवित्र क़ुरआन का संकलन एवं क्रमबद्धता (क़ुरआन लेक्चर - 4 )
पवित्र क़ुरआन का संकलन एवं क्रमबद्धता (क़ुरआन लेक्चर - 4 )
12 December 2023
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जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस दुनिया से विदा हुए और पवित्र क़ुरआन का अवतरण पूरा हो गया, तो उस समय कमो-बेश एक लाख प्रतिष्ठित सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) को पवित्र क़ुरआन पूरे तौर पर हिफ़्ज़ (कंठस्थ) था, लाखों प्रतिष्ठित सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ऐसे थे जिनको पूरा पवित्र क़ुरआन तो नहीं, अलबत्ता पवित्र क़ुरआन का अधिकतर भाग याद था। हज़ारों के पास पूरा पवित्र क़ुरआन लिखा हुआ सुरक्षित था, लाखों सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) और ताबिईन के पास उसके विभिन्न अंश लिखे हुए मौजूद थे। तमाम प्रतिष्ठित सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) और ताबिईन नमाज़ों में पवित्र क़ुरआन की तिलावत कर रहे थे। नमाज़ों के अलावा प्रतिदिन अपने समय के तौर पर तीन दिन में, सात दिन में, महीने में, या कुछ सहाबा प्रतिदिन एक-बार के हिसाब से पूरे पवित्र क़ुरआन की तिलावत भी कर रहे थे, और किसी पिछली आसमानी किताब की यह भविष्यवाणी पूरी हो रही थी कि जब आख़िरी पैग़ंबर आएँगे तो उनके सहाबा इस दर्जे के होंगे कि उनके सीने उनकी इंजीलें होंगी। यानी अल्लाह की वह्य जिस तरह इंजील की प्रतियों में लिखी हुई है उसी तरह पवित्र क़ुरआन उनके सीनों में लिखा हुआ होगा।

पवित्र क़ुरआन के अवतरण का इतिहास (क़ुरआन लेक्चर - 3)
पवित्र क़ुरआन के अवतरण का इतिहास (क़ुरआन लेक्चर - 3)
12 December 2023
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आज की वार्ता का शीर्षक है ‘पवित्र क़ुरआन के अवतरण का इतिहास’। इस वार्ता में मूल रूप से जो चीज़ देखनी है वह पवित्र क़ुरआन के अवतरण का विवरण और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ज़माने में पवित्र क़ुरआन का संकलन एवं क्रमबद्ध करना और पवित्र क़ुरआन के विषयों का आन्तरिक सुगठन और एकत्व है। जैसा कि हममें से हर एक जानता है कि पवित्र क़ुरआन का अवतरण थोड़ा-थोड़ा करके 23 साल से कुछ कम अवधि में पूरा हुआ। दूसरी आसमानी किताबों के विपरीत क़ुरआन का अवतरण एक ही बार में नहीं हुआ। परिस्थितियों की माँगों और आवश्यकतानुसार थोड़ा-थोड़ा करके अवतरित होता रहा। मक्का में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के दौरान सामने आनेवाली समस्याएँ और फिर मदीना और उसके आस-पास में स्थापित होनेवाले इस्लामी राज्य एवं समाज को बनाने की प्रक्रिया का सीधा संबंध क़ुरआन के अवतरण और उसकी शैली से था।

पवित्र क़ुरआन : एक सामान्य परिचय (क़ुरआन लेक्चर - 2)
पवित्र क़ुरआन : एक सामान्य परिचय (क़ुरआन लेक्चर - 2)
12 December 2023
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पवित्र क़ुरआन का एक आम परिचय इसलिए ज़रूरी है कि हममें से अधिकतर ने पवित्र क़ुरआन आंशिक रूप से तो बहुत बार पढ़ा होता है, अनुवाद और टीका देखने का मौक़ा भी मिलता है, लेकिन हममें से बहुत-से लोगों को यह मौक़ा बहुत कम मिलता है कि पवित्र क़ुरआन पर समष्टीय रूप से आम ढंग से ग़ौर किया जाए, और अल्लाह की इस पूरी किताब को एक संगठित विषय की किताब समझकर इसपर समष्टीय दृष्टि डाली जाए। यों हममें से अधिकतर को एक लम्बा समय यह समझने में लग जाता है कि इस किताब का मूल विषय और लक्ष्य क्या है। इसके महत्त्वपूर्ण और मौलिक विषय क्या हैं, इसमें विषयों का क्रम किस प्रकार है, यह किताब दूसरी आसमानी किताबों से किस प्रकार भिन्न है? ये और इस तरह के बहुत-से ज़रूरी सवालों का जवाब एक लम्बे समय के बाद कहीं जाकर मिलता है। और वह भी किसी-किसी को।

पवित्र क़ुरआन की शिक्षण-विधि - एक समीक्षा (क़ुरआन लेक्चर -1)
पवित्र क़ुरआन की शिक्षण-विधि - एक समीक्षा (क़ुरआन लेक्चर -1)
12 December 2023
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मैं इस काम को अपने लिए बहुत बड़ा सौभाग्य समझता हूँ कि आज मुझे उन सम्मान एवं आदर कि अधिकारी बहनों से बात करने का अवसर मिल रहा है जिनकी ज़िंदगी का बड़ा भाग पवित्र क़ुरआन के शिक्षण-प्रशिक्षण में व्यतीत हुवा है, जिनकी दिन रात कि दिलचस्पियाँ पवित्र क़ुरआन के प्रचार-प्रसार से जुड़ी हुई हैं और जिन्होंने अपने जीवन के अधिकतर और मूल्यवान क्षण अल्लाह कि किताब के उत्थान और उसके शिक्षण-प्रतिक्षण तथा उसकी शिक्षाओं और संदेश को समझने और समझाने में व्यतीत किये हैं। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कि हदीस की दृष्टि से आप सब इस दुनिया में भी इस समाज का उत्तम अंग हैं और अल्लाह ने चाहा तो क़ियामत के दिन भी आपकी गणना मुस्लिम समुदाय को सर्वोत्तम निधि के रूप में होगी। इसलिए की पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है : “तुम में से सर्वोत्तम वह है जिसने पवित्र क़ुरआन सीखा और सिखाया है।” आपने पवित्र क़ुरआन सीखा भी है और पवित्र क़ुरआन सिखाने का दायित्व भी अल्लाह की कृपा और अनुकंपा से तथा उसके असीम योगदान से संवरण कर रही है। इसलिए पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कथनानुसार आप इस समाज का सर्वोत्तम अंग है।

कुरआन की शिक्षाएँ आज के माहौल में
कुरआन की शिक्षाएँ आज के माहौल में
15 April 2022
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कुरआन ख़ुदा की आख़िरी किताब है और अपनी अस्ल और महफूज़ शक्ल में इनसान के पास सिर्फ यही किताब बाक़ी रह गई है। कुरआन इसलिए उतारा गया है कि वह इनसान को जिहालत और गुमराही के अन्धेरे से निकालकर ज्ञान और मार्गदर्शन की रोशनी में ले आए। कुरआन के आने के बाद दुनिया में जो क्रान्ति आई, उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती। कुरआन ने दुनिया के असभ्य समाज को सभ्यता और संस्कृति का पाठ पढ़ाया। उसे खुदा की मर्ज़ी और इनसान की मुहब्बत के साथ जीना सिखाया। इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दुनिया पर कुरआन से ज्यादा किसी दूसरी किताब का असर नहीं पड़ा। आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकनेवाली और पढ़ी जानेवाली किताब कुरआन मजीद ही है। आइए देखते हैं कि क़ुरआन आज के माहौल में किस तरह प्रसांगिक है।

क़ुरआन का संक्षिप्त परिचय
क़ुरआन का संक्षिप्त परिचय
26 July 2020
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क़ुरआन समस्त मानवजाति के लिए ईश्वर की ओर से भेजा गया मार्गदर्शन है, जो ईशग्रंथों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी के रूप में अवतरित हुआ। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘जिसे बार-बार पढ़ा जाए’। क़ुरआन का मूल विषय ‘मनुष्य’ है। इसमें ईशवर ने मनुष्य को यही समझाया है कि उसे इस संसार में कैसे जीवन बिताना है। इसमें इसी विषय पर चर्चा की गई है कि मनुष्य का संबंध उसके रचयिता और पालनहार ईश्वर के साथ कैसा हो, दूसरे मनुष्यों के साथ कैसा हो, प्रकृति के साथ कैसा हो, जीव-जंतुओं के साथ कैसा हो, यहां तक कि निर्जीव तत्वों, पहाड़ों और जलाशयों के साथ कैसा हो। किस तरह का संबंध उसे ईशवर के इनाम का भागीदार बनाएगा और किस तरह का संबंध दंड का पात्र। क़ुरआन में ईश्वर ने समस्त मानवजाति को संबोधित कर के बताया है कि ईश्वर के बताए हुए तरीक़े पर जीवन जीने पर उसे मरने के बाद हमेशा के लिए स्वर्ग में जगह मिलेगी और उसकी अवज्ञा के परिणामस्वरूप नरक में।