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इस्लाम

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इस्लाम की बुनियादी तालीमात (ख़ुतबात मुकम्मल)
इस्लाम की बुनियादी तालीमात (ख़ुतबात मुकम्मल)
27 March 2024
Views: 18

इस किताब में इस्लामी जगत् के एक बड़े आलिम मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी के उन ख़ुतबों (भाषणों) को जमा करके प्रकाशित किया गया है, जो उन्होंने सन् 1938 ई० में दारुल इस्लाम पठानकोट (पंजाब) की जामा मस्जिद में आम मुसलमानों के सामने दिए थे। इन ख़ुतबों में इतने सादा और प्रभावकारी अन्दाज़ में इस्लाम की शिक्षाओं को उनकी रूह के साथ पेश किया गया है कि इन्हें सुनकर या पढ़कर बेशुमार लोगों की ज़िन्दगियाँ संवर गईं और वे बुराइयों को छोड़ने और भलाइयों को अपनाने पर आमादा हो गए।

रिसालत
रिसालत
21 March 2024
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एकेश्वरवाद और परलोकवाद के अतिरिक्त इस्लाम की एक मौलिक धारणा है रिसालत अथवा पैग़म्बरवाद या ईशदूतत्त्व। ईश्वर ने जगत् में मानव की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति की पूर्ण व्यवस्था की है। वर्षा इसी लिए होती है और धरती में अनाज इसी लिए पैदा होता है कि मानव को खाद्य-पदार्थ प्राप्त हो सके। ठीक इसी तरह ईश्वर सदैव से इसकी व्यवस्था करता रहा है कि मानव की वे अपेक्षाएँ भी पूरी हों जो उसकी नैतिक और आध्यात्मिक अपेक्षाएँ हैं। दूसरे शब्दों में ईश्वर ने सदैव स्पष्ट रूप से मानव का मार्गदर्शन किया और उसे बताया कि जगत् में उसका स्थान क्या है? यहाँ (धरती पर) वास्तव में उसे किस कार्य के लिए भेजा गया है? उसके वर्तमान जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है? जीवन-यापन के लिए उसे किन-किन नियमों और सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए? इस सिलसिले में मानव के मार्गदर्शन के लिए नबियों या पैग़म्बरों (ईशदूतों) को दुनिया में भेजा जाता रहा है।

इस्लाम के बारे में शंकाएँ
इस्लाम के बारे में शंकाएँ
19 March 2024
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हमारे देश भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। ऐसे में एक-दूसरे को जानने और समझने के लिए लोगों के मन में तरह-तरह के सवालों का उठना स्वभाविक है। इनका सही जवाब न मिलने के कारण ग़लतफ़हमियाँ पैदा होती हैं, जिससे शान्ति और सौहार्द प्रभावित होता है। इस्लाम के बारे में हमारे देश में बहुत सी ग़लतफ़हमियां फैली हुई हैं। लेखक द्वारा इस पुस्तक में कुछ आम ग़लतफडहमियों को दूर करने की कोशिश की गई है।

इंतिख़ाब रसाइल-मसाइल (भाग-1)
इंतिख़ाब रसाइल-मसाइल (भाग-1)
19 March 2024
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रसाइल-मसाइल सवालों और उनके जवाबों का संग्रह है। महान लेखक और विद्वान मौलाना सैयद अबुल-आला मौदूदी को पत्र लिखकर दुनिया भर से लोग सवाल पूछते रहते थे। मौलाना मौदूदी अपनी मासिक पत्रिका ‘तर्जमानुल-क़ुरआन’ में वे सवाल और उनके जवाब प्रकाशित कर देते थे। उन सवाल जवाब के महत्व को देखते हुए बाद में उन्हें पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर दिया गया और फिर उनका उर्दू से हिन्दी में अनुवाद भी किया गया। वे सवाल-जवाब इतने उपयोगी और प्रसांगिक हैं कि हम उन्हें आन लाइन पढ़नेवालों के लिए भी उपलब्ध करा रहे हैं।

प्यारी माँ के नाम इस्लामी सन्देश
प्यारी माँ के नाम इस्लामी सन्देश
18 March 2024
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यह लेख वास्तव में एक पत्र है, जो जनाब नसीम ग़ाज़ी फ़लाही ने अपनी माँ के नाम लिखा है। इस पत्र के महत्व को देखते हुए ही इसे एक पुस्तिका के रूप में जीवंत कर दिया गया है। जनाब नसीम ग़ाज़ी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने लड़कपन के दिनों में ही इस्लाम क़ुबूल कर लिया था। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने अपनी माँ को यक़ीन दिलाया है कि उनका बेटा पराया नहीं हुआ है, बल्कि बेटे के रूप में उसका दायित्व और बढ़ गया है, इस्लाम ने उसे माँ के साथ सबसे बढ़कर सद्व्यवहार की शिक्षा दी है। साथ ही उन्होंने माँ को इस्लाम की दावत भी दी है, जो उन्होंने कुछ समय बाद क़ुबूल कर ली। [-संपादक]

इस्लाम की गोद में
इस्लाम की गोद में
17 March 2024
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यह एक यहूदी नवजवान का वृत्तांत है, जो शांति की तलाश में था। अपने धर्म में उसे शांति नहीं मिली तो उसने कई धर्मों का अध्ययन किया, लेकिन कोई उसकी व्याकुलता दूर न कर सका। इली दौरान उसे कई मुस्लिम देशों का दौरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां सबसे पहले उसे मुस्लिम कल्चर ने आकर्षित किया। मुसलमानों से मिलकर उसे एक तरह के संतोष का अनुभ होता। फिर उसने इस्लाम का अध्ययन किया तो उसे मानव स्वभाव के अनुकूल पाया। उसने बिना विलम्ब किए इस्लाम स्वीकार कर लिया।[-संपादक]

शान्ति-मार्ग
शान्ति-मार्ग
17 March 2024
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यह जानेमाने विद्वान और महान समाज सुधारक मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी का एक भाषण है, जिसे एक लेख का रूप दे दिया गया है। यह भाषण कपूरथला में आजादी से पहले हिन्दुओं, सिखों और मुसलमानों की एक सम्मिलित सभा में दिया गया था। इस में ईश्वर के अस्तित्व को तार्किक ढंग से समझाया गया है।

तौहीद (एकेश्वरवाद) की वास्तविकता
तौहीद (एकेश्वरवाद) की वास्तविकता
14 March 2024
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प्रस्तुत पुस्तक, ‘एकेश्वरवाद की वास्तविकता’ लेखक की पिछली पुस्तक 'शिर्क की हक़ीक़त' (बहुदेववाद की वास्तविकता) की पूरक है। पहली किताब में शिर्क की हक़ीक़त को इतने विस्तार से बयान किया गया है कि तौहीद की हक़ीक़त (एकेश्वरवाद की वास्तविकता) उसमें स्वयं निखर कर सामने आ गई है। वस्तुएँ अपनी प्रतिकूल वस्तुओं से स्पष्ट होती हैं, अब तौहीद की व्याख्या के लिए किसी अलग पुस्तक की कोई ख़ास ज़रूरत तो नहीं थी, लेकिन एकेश्वरवाद के प्रमाणों को विस्तीरपूर्क अलग से समझाने के लिए यह पुस्तक तैयार की गई है। इसमें क़ुरआन मजीद की मदद से एकेश्वरवाद के बौद्धिक प्रमाणों का उल्लेख किया गया है साथ ही क़ुरआन मजीद में आए प्रमाणों को स्पष्ट करने की कोशिश की गई है, ताकि दीने इस्लाम के बुनियादी विषयों को अच्छी तरह समझा जा सके।

इस्लामी सभ्यता और उसके मूल एवं सिद्धांत
इस्लामी सभ्यता और उसके मूल एवं सिद्धांत
12 December 2023
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आधुनिक शिक्षाप्राप्त लोगों की एक बड़ी संख्या इस्लामी सभ्यता के बारे में बड़ी ग़लतफ़हमी का शिकार है। कुछ लोग इसे इस्लामी संस्कृति का पर्याय मानते हैं। कुछ लोग इसे मुसलमानों के चाल-चलन और रीति-रिवाजों का संग्रह मानते हैं। बहुत कम लोग हैं जो “सभ्यता” शब्द का सही अर्थ समझते हैं, और उससे भी कम लोग हैं जो “इस्लामी सभ्यता” के सही अर्थ को समझते हैं। पश्चिमी लेखकों और उनके प्रभाव से पूर्वी विद्वानों का एक बड़ा समूह भी यह राय रखता है कि इस्लाम की सभ्यता अपनी पूर्ववर्ती सभ्यताओं, विशेष रूप से ग्रीक और रोमन सभ्यताओं से ली गई है, और वह एक अलग सभ्यता केवल इस आधार पर बन गई है कि अरबी मानसिकता ने उस पुरानी सामग्री को नई शैली में ढालकर उसका रूप बदल दिया है। लेकिन यह एक बड़ी ग़लत धारणा है। मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी ने इस भ्रमित आधुनिक शिक्षित वर्ग को सामने रखते हुए अपनी अनूठी विद्वता और शोध शैली में इस विषय पर लिखा है। उन्होंने केवल उन दिमाग़ों में व्याप्त सभी भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास ही नहीं किया है, बल्कि इस्लामी सभ्यता को सकारात्मक रूप से बहुत स्पष्ट तरीक़े से प्रस्तुत भी कर दिया है।

इस्लाम का नैतिक दृष्टिकोण
इस्लाम का नैतिक दृष्टिकोण
30 May 2022
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हम देख रहे हैं कि पूरे-पूरे राष्ट्र विस्तृत रूप से उन अति घृणित नैतिक अवगुणों का प्रदर्शन कर रहे हैं जिनको सदैव से मानवता की अन्तरात्मा अत्यन्त घृणास्पद समझती रही है। अन्याय, क्रूरता, निर्दयता, अत्याचार, झूट, छल-कपट, मिथ्या, भ्रष्टाचार, निर्लज्जता, वचन-भंग, काम-पूजा, बलात्कार और ऐसे ही अन्य अभियोग केवल व्यक्तिगत अभियोग नहीं रहे हैं अपितु राष्ट्रीय आचरण एवं नीति का रूप धारण कर चुके हैं। प्रत्येक राष्ट्र ने छाँट-छाँटकर अपने बड़े से बड़े अपराधियों को अपना लीडर और नेता बनाया है और बड़े से बड़ा पाप ऐसा नहीं रह गया है जो उनके नेतृत्व में अति निर्लज्जता के साथ बड़े पैमाने पर खुल्लम-खुल्ला न हो रहा हो। ईश्वर तथा मरणोत्तर जीवन के धार्मिक विश्वास पर जितनी नैतिक कल्पनायें स्थिर होती हैं उनके रूप में पूर्ण अवलम्बन उस विश्वास की प्रकृति पर होता है जो ईश्वर तथा मरणोत्तर जीवन के विषय में लोगों में पाया जाता है। अतएव हमें देखना चाहिये कि संसार इस समय ईश्वर को किस रूप में मान रहा है और मरणोत्तर जीवन के सम्बन्ध में उसकी सामान्य धारणायें क्या हैं।

इस्लाम और सामाजिक न्याय
इस्लाम और सामाजिक न्याय
27 May 2022
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प्रत्येक मानवीय व्यवस्था कुछ समय तक चलने के बाद खोटी साबित हो जाती है और इनसान इससे मुँह फेरकर एक दूसरे मूर्खतापूर्ण प्रयोग की ओर क़दम बढ़ाने लगता है। वास्तविक न्याय केवल उसी व्यवस्था के अन्तर्गत हो सकता है जिस व्यवस्था को एक ऐसी हस्ती ने बनाया हो जो छिपे-खुले का पूर्ण ज्ञान रखती हो, हर प्रकार की त्रुटियों से पाक हो और महिमावान भी हो।

इस्लाम और अज्ञान
इस्लाम और अज्ञान
25 May 2022
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इन्सान इस संसार में अपने आपको मौजद पाता है। उसका एक शरीर है, जिसमें अनेक शक्तियां और ताक़तें हैं। उसके सामने ज़मीन और आसमान का एक अत्यन्त विशाल संसार है, जिसमें अनगिनत और असीम चीज़ें हैं और वह अपने अन्दर उन चीज़ों से काम लेने की ताक़त भी पाता है। उसके चारों ओर अनेक मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और पहाड़-पत्थर हैं। और इन सब से उसकी ज़िन्दगी जुड़ी हुई है। अब क्या आपकी समझ में यह बात आती है कि यह उनके साथ कोई व्यवहार संबंध स्थापित कर सकता है, जब तक कि पहले स्वयं अपने विषय में उन तमाम चीज़ों के बारे में और उनके साथ अपने संबंध के बारे में कोई राय क़ायम न कर ले।?

अहम हिदायतें (तहरीके इस्लामी के कारकुनों के लिए)
अहम हिदायतें (तहरीके इस्लामी के कारकुनों के लिए)
24 May 2022
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सबसे पहली चीज़ जिसकी हिदायत हमेशा से नबियों और ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन और उम्मत के नेक लोग हर मौक़े पर अपने साथियों को देते रहे हैं, वह यह है कि वे अल्लाह की अवज्ञा से बचें, उसकी मुहब्बत दिल में बिठाएँ और उसके साथ ताल्लुक़ बढ़ाएँ। यह वह चीज़ है जिसको हर दूसरी चीज़ पर मुक़द्दम और सबसे ऊपर होना चाहिए। अक़ीदे (धारणाओं) में 'अल्लाह पर ईमान' मुक़द्दम और सबसे ऊपर है, इबादत में अल्लाह से दिल का लगाव मुक़द्दम है, अख़लाक़ में अल्लाह का डर सर्वोपरि है, मामलों (व्यवहारों) में अल्लाह की ख़ुशी की तलब सर्वोपरि।

इस्लाम कैसे फैला?
इस्लाम कैसे फैला?
21 April 2022
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आमतौर से इस्लाम के बारे में यह ग़लतफ़हमी पाई और फैलाई जाती है कि “इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला है।" लेकिन इतिहास गवाह है कि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। क्योंकि इस्लाम ईश्वर की ओर से भेजा हुआ सीधा और शान्तिवाला रास्ता है। ईश्वर ने इसे अपने अन्तिम दूत हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ज़रिए तमाम इनसानों के मार्गदर्शन के लिए भेजा। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इसे केवल लोगों तक पहुँचाया ही नहीं बल्कि इसके आदेशों के अनुसार अमल करके और एक समाज को इसके अनुसार चलाकर भी दिखाया। इस्लाम चूँकि अपने माननेवालों पर यह ज़िम्मेदारी डालता है कि वे इसके सन्देश को लोगों तक पहुँचाएँ, अत: इसके माननेवालों ने इस बात को अहमियत दी। उन्होंने इस पैग़ाम को लोगों तक पहुँचाया भी। जब लोगों ने इस सन्देश को सुना और सन्देशवाहकों के किरदार को देखा तो उन्होंने दिल से इसे स्वीकार किया।

ईदुल-फ़ित्र किसके लिए?
ईदुल-फ़ित्र किसके लिए?
21 April 2022
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ईद की मुबारकबाद के असली हक़दार वे लोग हैं, जिन्होंने रमज़ान के मुबारक महीने में रोज़े रखे, क़ुरआन मजीद की हिदायत से ज़्यादा-से ज़्यादा फ़ायदा उठाने की फ़िक्र की, उसको पढ़ा, समझा, उससे रहनुमाई हासिल करने की कोशिश की और तक़्वा (परहेज़गारी) की उस तर्बियत का फ़ायदा उठाया, जो रमज़ान का मुबारक महीना एक मोमिन को देता है। क़ुरआन मजीद में रमज़ान के रोज़े के दो ही मक़सद बयान किये गये हैं एक यह कि उनसे मुसलमानों में तक़्वा (परहेज़गारी) पैदा हो और दूसरे यह कि मुसलमान उस नेमत (उपहार) का शुक्र अदा करें जो अल्लाह तआला ने रमज़ान में क़ुरआन मजीद अवतरित करके उनको प्रदान की है।