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وَكَذَّبُواْ وَٱتَّبَعُوٓاْ أَهۡوَآءَهُمۡۚ وَكُلُّ أَمۡرٖ مُّسۡتَقِرّٞ

54. अल-क़मर

(मक्का में उतरी, आयतें 55)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के वाक्यांश "वन-शक़्क़ल- क़मर" अर्थात "और चाँद (क़मर) फट गया" से लिया गया है। अर्थ यह है कि वह सूरा जिस शब्द 'अल-क़मर' आया है।

उतरने का समय

इसमें चाँद के फटने की घटना का उल्लेख हुआ है, जिससे उसके उतरने का समय निश्चित हो जाता है। हदीस के ज्ञाता और क़ुरआन के टीकाकार सभी इसपर सहमत हैं कि यह घटना हिजरत के लगभग पांँच साल पहले मक्का मुअज़्ज़मा में मिना के स्थान पर घटी थी।

विषय और वार्ता

इसमें मक्का के इस्लाम विरोधियों की उस हठधर्मा पर चेतावनी दी गई है जो उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्ल०) के आह्‍वान के मुक़ाबले में अपना रखी थी। चाँद के फटने की आश्चर्यजनक घटना इस बात का स्पष्ट प्रमाण थी कि जगत्-व्यवस्था न सदा से है, न सदा रहेगी, और न अमर है। वह छिन्न-भिन्न हो सकती है, बड़े-बड़े नक्षत्र और तारे फट सकते हैं और वह सब कुछ हो सकता है जिसका चित्रण क़ियामत के विस्तृत विवरण में क़ुरआन ने किया है। यही नहीं, बल्कि यह इस बात का पता भी दे रहा है कि जगत्-व्यवस्था के टूट-फूट की शुरुआत हो चुकी है और वह समय क़रीब है जब क़ियामत आएगी। मगर इस्लाम-विरोधियों ने इसे जादू का करिश्मा बताया और अपने इंकार पर जमे रहे। इसी हठधर्मी पर इस सूरा में उनकी निन्दा की गई है। वार्ता का आरंभ करते हुए कहा गया है कि ये लोग न समझाने से मानते हैं, न इतिहास से शिक्षा लेते हैं और न आँखों से खुली निशानियाँ देखकर ईमान लाते हैं। अब ये उसी समय मानेंगे जब क़ियामत वास्तव में आ जाएगी। इसके बाद उनके सामने नूह (अलैहि०) की क़ौम, आद, समूद, लूत (अलैहि०) की क़ौम और फ़िरऔन के लोगों का वृत्तान्त संक्षिप्त शब्दों में बयान करके बताया गया है कि अल्लाह के भेजे हुए रसूलों की चेतावनियों को झुठलाकर ये क़ौमें किस पीड़ाजनक यातना की शिकार हुईं और एक-एक क़ौम का क़िस्सा बयान करने के बाद बार-बार यह बात दोहराई गई है कि यह क़ुरआन शिक्षा का सहज आधार है, जिससे अगर कोई क़ौम शिक्षा ग्रहण करके सीधे रास्ते पर आ जाए तो उन यातनाओं की नौबत नहीं आ सकती जिनमें वे क़ौमें ग्रस्त हुईं। इसके बाद मक्का के इस्लाम-विरोधियों को सम्बोधित करके कहा गया है कि जिस रवैये पर दूसरी क़ौमें सज़ा पा चुकी हैं, वह रवैया अगर तुम अपनाओ तो आखिर क्यों न सज़ा पाओगे? और अगर तुम अपने जत्थे पर फूले हुए हो, तो बहुत जल्द तुम्हारा यह जत्था पराजित होकर भागता नज़र आएगा और इससे अधिक कठोर मामला तुम्हारे साथ क़ियामत के दिन होगा। अन्त में इस्लाम-विरोधियों को यह बताया गया है कि सर्वोच्च अल्लाह को क़ियामत लाने के लिए किसी बड़ी तैयारी की ज़रूरत नहीं है। उसका बस एक आदेश होते ही पलक झपकाते वह आ जाएगी, मगर हर चीज़ की तरह जगत्व्य-वस्था और मानव-जाति की भी एक नियति है। इस नियति के अनुसार जो समय इस काम के लिए निश्चित है, उसी समय पर वह होगा। यह नहीं हो सकता कि जब कोई चैलेंज करे तो उसे मनवाने के लिए क़ियामत ला खड़ी की जाए।

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وَكَذَّبُواْ وَٱتَّبَعُوٓاْ أَهۡوَآءَهُمۡۚ وَكُلُّ أَمۡرٖ مُّسۡتَقِرّٞ ۝ 1
(3) उन्होंने (इसको भी) झुठला दिया और अपनी ख़ाहिशाते-नफ़्स ही की पैरवी की। हर मामले को आख़िरकार एक अंजाम पर पहुँचकर रहना है।
وَلَقَدۡ جَآءَهُم مِّنَ ٱلۡأَنۢبَآءِ مَا فِيهِ مُزۡدَجَرٌ ۝ 2
(4) इन लोगों के सामने (पिछली क़ौमों के) वे हालात आ चुके हैं जिनमें सरकशी से बाज़ रखने के लिए काफ़ी सामाने-इबरत है
حِكۡمَةُۢ بَٰلِغَةٞۖ فَمَا تُغۡنِ ٱلنُّذُرُ ۝ 3
(5) और ऐसी हिकमत जो नसीहत के मक़सद को बदरजा-ए-अतम पूरा करती है। मगर तंबीहात इनपर कारगर नहीं होतीं।
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡۘ يَوۡمَ يَدۡعُ ٱلدَّاعِ إِلَىٰ شَيۡءٖ نُّكُرٍ ۝ 4
(6) पस (ऐ नबी!) इनसे रुख़ फेर लो। जिस रोज़ पुकारने वाला एक सख़्त नागवार चीज़ की तरफ़ पुकारेगा,
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ فَكَانُواْ كَهَشِيمِ ٱلۡمُحۡتَظِرِ ۝ 5
(31) हमने उनपर बस एक ही धमाका छोड़ा और वह बाड़ेवाले की रौंदी हुई बाढ़ की तरह भुस होकर रह गए।5
5. जो लोग मवेशी पालते हैं वे अपने जानवरों के बाड़ों को महफ़ूज़ करने के लिए लकड़ियों और झाड़ियों की एक बाड़ बना देते हैं। इस बाड़ की झाड़ियाँ रफ़्ता-रफ़्ता सूखकर झड़ जाती हैं और जानवरों की आमदो-रफ़्त से पामाल होकर उनका बुरादा बन जाता है। क़ौमे-समूद की कुचली हुई बोसीदा लाशों को इसी बुरादे से तशबीह दी गई है।
خُشَّعًا أَبۡصَٰرُهُمۡ يَخۡرُجُونَ مِنَ ٱلۡأَجۡدَاثِ كَأَنَّهُمۡ جَرَادٞ مُّنتَشِرٞ ۝ 6
(7) लोग सहमी हुई निगाहों के साथ अपनी क़ब्रों से इस तरह निकलेंगे गोया वे बिखरी हुई टिड्डियाँ हैं।
مُّهۡطِعِينَ إِلَى ٱلدَّاعِۖ يَقُولُ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا يَوۡمٌ عَسِرٞ ۝ 7
(8) पुकारनेवाले की तरफ़ दौड़े आ रहे होंगे और वही मुनकिरीन (जो दुनिया में इसका इनकार करते थे) उस वक़्त कहेंगे कि यह दिन तो बड़ा कठिन है।
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 8
(32) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान ज़रिआ बना दिया है, अब है कोई नसीहत क़ुबूल करनेवाला?
۞كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ فَكَذَّبُواْ عَبۡدَنَا وَقَالُواْ مَجۡنُونٞ وَٱزۡدُجِرَ ۝ 9
(9) इनसे पहले नूह की क़ौम झुठला चुकी है। उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा क़रार दिया और कहा कि यह दीवाना है, और वह बुरी तरह झिड़का गया।
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطِۭ بِٱلنُّذُرِ ۝ 10
(33) लूत की क़ौम ने तंबीहात को झुठलाया
فَدَعَا رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَغۡلُوبٞ فَٱنتَصِرۡ ۝ 11
(10) आख़िरकार उसने अपने रब को पुकारा कि “मैं मग़लूब हो चुका, अब तू इनसे इन्तिक़ाम ले।”
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ حَاصِبًا إِلَّآ ءَالَ لُوطٖۖ نَّجَّيۡنَٰهُم بِسَحَرٖ ۝ 12
(34) और हमने पथराव करनेवाली हवा उसपर भेज दी। सिर्फ़ लूत के घरवाले उससे महफ़ूज़ रहे। उनको हमने अपने फ़ज़्ल से रात के पिछले पहर बचाकर निकाल दिया।
فَفَتَحۡنَآ أَبۡوَٰبَ ٱلسَّمَآءِ بِمَآءٖ مُّنۡهَمِرٖ ۝ 13
(11) तब हमने मूसलाधार बारिश से आसमान के दरवाज़े खोल दिए
نِّعۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَاۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي مَن شَكَرَ ۝ 14
(35) यह जज़ा देते है हम हर उस शख़्स को जो शुक्रगुज़ार होता है।
وَفَجَّرۡنَا ٱلۡأَرۡضَ عُيُونٗا فَٱلۡتَقَى ٱلۡمَآءُ عَلَىٰٓ أَمۡرٖ قَدۡ قُدِرَ ۝ 15
(12) और ज़मीन को फाड़कर चश्मों में तबदील कर दिया, और यह सारा पानी उस काम को पूरा करने के लिए मिल गया जो मुक़द्दर हो चुका था,
وَلَقَدۡ أَنذَرَهُم بَطۡشَتَنَا فَتَمَارَوۡاْ بِٱلنُّذُرِ ۝ 16
(36) लूत ने अपनी क़ौम के लोगों को हमारी पकड़ से ख़बरदार किया मगर वे सारी तंबीहात को मशकूक समझकर बातों में उड़ाते रहे।
وَحَمَلۡنَٰهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلۡوَٰحٖ وَدُسُرٖ ۝ 17
(13) और नूह को हमने एक तख़्तों और कीलोंवाली2 पर सवार कर दिया
2. मुराद है वह कश्ती जो तूफ़ान की आमद से पहले ही अल्लाह तआला की हिदायत के मुताबिक़ हज़रत नूह (अलैहि०) ने बना ली थी।
وَلَقَدۡ رَٰوَدُوهُ عَن ضَيۡفِهِۦ فَطَمَسۡنَآ أَعۡيُنَهُمۡ فَذُوقُواْ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 18
(37) फिर उन्होंने उसे अपने मेहमानों की हिफ़ाज़त से बाज़ रखने की कोशिश की। आख़िरकार हमने उनकी आँखें मूँद दीं कि चखो अब मेरे अज़ाब और मेरी तंबीहात का मज़ा।
تَجۡرِي بِأَعۡيُنِنَا جَزَآءٗ لِّمَن كَانَ كُفِرَ ۝ 19
(14) जो हमारी निगरानी में चल रही थी। यह था बदला उस शख़्स की ख़ातिर जिसकी नाक़द्री की गई थी।
وَلَقَدۡ صَبَّحَهُم بُكۡرَةً عَذَابٞ مُّسۡتَقِرّٞ ۝ 20
(38) सुब्ह सवेरे ही एक अटल अज़ाब ने उनको आ लिया।
وَلَقَد تَّرَكۡنَٰهَآ ءَايَةٗ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 21
(15) उस कश्ती को हमने एक निशानी बनाकर छोड़ दिया, फिर कोई है नसीहत क़ुबूल करनेवाला?
فَذُوقُواْ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 22
(39) चखो मज़ा अब मेरे अज़ाब का और मेरी तंबीहात का।
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 23
(16) देख लो, कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थीं मेरी तंबीहात!
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 24
(40) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान ज़रिआ बना दिया है, पस है कोई नसीहत क़ुबूल करनेवाला?
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 25
(17) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान ज़रिआ बना दिया है,3 फिर क्या है कोई नसीहत क़ुबूल करनेवाला?
3. मतलब यह है कि नसीहत का एक ज़रिआ तो हैं वे इबरतनाक अज़ाब जो सरकश क़ौमों पर नाज़िल हुए, और दूसरा ज़रिआ है यह क़ुरआन जो दलाइल और वाज़ व तलक़ीन से तुमको सीधा रास्ता बता रहा है। उस ज़रिए के मुक़ाबले में नसीहत का वह ज़रिआ ज़्यादा आसान है। फिर क्यों तुम इससे फ़ायदा नहीं उठाते और अज़ाब ही देखने पर इसरार किए जाते हो?
كَذَّبَتۡ عَادٞ فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 26
(18) आद ने झुठलाया तो देख लो कि कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थीं मेरी तंबीहात!
وَلَقَدۡ جَآءَ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ ٱلنُّذُرُ ۝ 27
(41) और आले-फ़िरऔन के पास भी तंबीहात आई थीं,
سُورَةُ القَمَرِ
54.अल-क़मर
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا صَرۡصَرٗا فِي يَوۡمِ نَحۡسٖ مُّسۡتَمِرّٖ ۝ 28
(19) हमने एक पैहम नुहूसत के दिन सख़्त तूफ़ानी हवा उनपर भेज दी,
كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذۡنَٰهُمۡ أَخۡذَ عَزِيزٖ مُّقۡتَدِرٍ ۝ 29
(42) मगर उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। आख़िर को हमने उन्हें पकड़ा जिस तरह कोई ज़बरदस्त क़ुदरतवाला पकड़ा करता है।
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
تَنزِعُ ٱلنَّاسَ كَأَنَّهُمۡ أَعۡجَازُ نَخۡلٖ مُّنقَعِرٖ ۝ 30
(20) जो लोगों को उठा-उठाकर इस तरह फेंक रही थी जैसे वो जड़ से उखड़े हुए खजूर के तने हों।
ٱقۡتَرَبَتِ ٱلسَّاعَةُ وَٱنشَقَّ ٱلۡقَمَرُ
(1) क़ियामत की घड़ी क़रीब आ गई और चाँद फट गया।1
1. यानी चाँद का फट जाना इस बात की अलामत है कि क़ियामत क़रीब है और इसका बरपा हो जाना हर वक़्त मुमकिन है। यह फ़िक़रा और बाद का मज़मून साफ़ ज़ाहिर कर रहा है कि उस वक़्त वाक़ई चाँद फट गया था। जिन लोगों ने इस वाक़िए को आँखों से देखा था उनका बयान है कि चौदहवीं रात को तुलूअ होने के थोड़ी देर बाद यकायक चाँद फट गया और उसके दो टुकड़े सामने की पहाड़ी के दो तरफ़ नज़र आए, फिर एक ही लहज़े के बाद दोनों जुड़ गए। अहादीस की रू से वाइज़ीन के इस बयान की कोई हक़ीक़त नहीं है कि यह वाक़िआ हुज़ूर (सल्ल०) के इशारे से रुनुमा हुआ था या कुफ़्फ़ारे-मक्का ने मोजिज़े का मुतालबा किया था और इसपर यह मोजिज़ा दिखाया गया।
أَكُفَّارُكُمۡ خَيۡرٞ مِّنۡ أُوْلَٰٓئِكُمۡ أَمۡ لَكُم بَرَآءَةٞ فِي ٱلزُّبُرِ ۝ 31
(43) क्या तुम्हारे कुफ़्फ़ार कुछ उन लोगों से बेहतर हैं?6 या आसमानी किताबों में तुम्हारे लिए कोई माफ़ी लिखी हुई है?
6. ख़िताब है कुरैश के लोगों से। मतलब यह है कि तुममें आख़िर क्या ख़ूबी है, कौन-से लाल तुम्हारे लटके हुए हैं कि जिस कुफ़्र और तकज़ीब और हठधर्मी की रविश पर दूसरी क़ौमों को सज़ा दी जा चुकी है वही रविश तुम इख़्तियार करो तो तुम्हें सज़ा न दी जाए?
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 32
(21) पस देख लो कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थीं मेरी तंबीहात!
وَإِن يَرَوۡاْ ءَايَةٗ يُعۡرِضُواْ وَيَقُولُواْ سِحۡرٞ مُّسۡتَمِرّٞ ۝ 33
(2) मगर इन लोगों का हाल यह है कि ख़ाह कोई निशानी देख लें, मुँह मोड़ जाते हैं और कहते हैं। “यह तो चलता हुआ जादू है।”
أَمۡ يَقُولُونَ نَحۡنُ جَمِيعٞ مُّنتَصِرٞ ۝ 34
(44) या इन लोगों का कहना यह है कि हम एक मज़बूत जत्था हैं, अपना बचाव कर लेंगे?
وَلَقَدۡ يَسَّرۡنَا ٱلۡقُرۡءَانَ لِلذِّكۡرِ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 35
(22) हमने इस क़ुरआन को नसीहत के लिए आसान ज़रिआ बना दिया है, फिर क्या है कोई नसीहत क़ुबूल करनेवाला?
سَيُهۡزَمُ ٱلۡجَمۡعُ وَيُوَلُّونَ ٱلدُّبُرَ ۝ 36
(45) अन-क़रीब यह जत्था शिकस्त खा जाएगा और ये सब पीठ फेरकर भागते नज़र आएँगे।
كَذَّبَتۡ ثَمُودُ بِٱلنُّذُرِ ۝ 37
(23) समूद ने तंबीहात को झुठलाया
بَلِ ٱلسَّاعَةُ مَوۡعِدُهُمۡ وَٱلسَّاعَةُ أَدۡهَىٰ وَأَمَرُّ ۝ 38
(46) बल्कि इनसे निमटने के लिए अस्ल वादे का वक़्त तो क़ियामत है, और वह बड़ी आफ़त और ज़्यादा तल्ख़ साअत है।
فَقَالُوٓاْ أَبَشَرٗا مِّنَّا وَٰحِدٗا نَّتَّبِعُهُۥٓ إِنَّآ إِذٗا لَّفِي ضَلَٰلٖ وَسُعُرٍ ۝ 39
(24) और कहने लगे, “एक अकेला आदमी जो हम ही में से है क्या अब हम उसके पीछे चलें? उसका इत्तिबा हम क़ुबूल कर लें तो इसके मानी ये होंगे कि हम बहक गए हैं और हमारी अक़्ल मारी गई है।
إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِينَ فِي ضَلَٰلٖ وَسُعُرٖ ۝ 40
(47) ये मुजरिम लोग दर-हक़ीक़त ग़लतफ़हमी में मुब्तला हैं और इनकी अक़्ल मारी गई है।
أَءُلۡقِيَ ٱلذِّكۡرُ عَلَيۡهِ مِنۢ بَيۡنِنَا بَلۡ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٞ ۝ 41
(25) क्या हमारे दरमियान बस यही एक शख़्स था जिसपर ख़ुदा का ज़िक्र नाज़िल किया गया? नहीं, बल्कि यह परले दरजे का झूठा और बरख़ुद ग़लत है।”
يَوۡمَ يُسۡحَبُونَ فِي ٱلنَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ ذُوقُواْ مَسَّ سَقَرَ ۝ 42
(48) जिस रोज़ ये मुँह के बल आग में घसीटे जाएँगे उस रोज़ इनसे कहा जाएगा कि “अब चखो जहन्नम की लपट का मज़ा।”
سَيَعۡلَمُونَ غَدٗا مَّنِ ٱلۡكَذَّابُ ٱلۡأَشِرُ ۝ 43
(26) (हमने अपने पैग़म्बर से कहा) “कल ही इन्हें मालूम हुआ जाता है कि कौन परले दरजे का झूठा और बरख़ुद ग़लत है।
إِنَّا كُلَّ شَيۡءٍ خَلَقۡنَٰهُ بِقَدَرٖ ۝ 44
(49) हमने हर चीज़ एक तक़दीर के साथ पैदा की है,7
7. यानी दुनिया की कोई चीज़ भी अलल-टप नहीं पैदा कर दी गई है, बल्कि हर चीज़ की एक तक़दीर है जिसके मुताबिक़ वह एक मुक़र्ररा वक़्त पर बनती है, एक ख़ास शक्ल इख़्तियार करती है, एक ख़ास हद तक नशो-व नुमा पाती है, एक ख़ास मुद्दत तक बाक़ी रहती है, और एक ख़ास वक़्त पर ख़त्म हो जाती है।
إِنَّا مُرۡسِلُواْ ٱلنَّاقَةِ فِتۡنَةٗ لَّهُمۡ فَٱرۡتَقِبۡهُمۡ وَٱصۡطَبِرۡ ۝ 45
(27) हम ऊँटनी को इनके लिए फ़ितना बनाकर भेज रहे हैं। अब ज़रा सब्र के साथ देख कि इनका क्या अंजाम होता है।
وَمَآ أَمۡرُنَآ إِلَّا وَٰحِدَةٞ كَلَمۡحِۭ بِٱلۡبَصَرِ ۝ 46
(50) और हमारा हुक्म बस एक ही हुक्म होता है और पलक झपकाते वह अमल में आ जाता है।
وَنَبِّئۡهُمۡ أَنَّ ٱلۡمَآءَ قِسۡمَةُۢ بَيۡنَهُمۡۖ كُلُّ شِرۡبٖ مُّحۡتَضَرٞ ۝ 47
(28) इनको जता दे कि पानी इनके और ऊँटनी के दरमियान तक़सीम होगा और हर एक अपनी बारी के दिन पानी पर आएगा।”4
4. यह तशरीह है इस इरशाद की कि “हम ऊँटनी को उनके लिए फ़ितना बनाकर भेज रहे हैं।” वह फ़ितना यह था कि यकायक एक ऊँटनी लाकर उनके सामने खड़ी कर दी गई और उनसे कह दिया कि एक दिन यह अकेली पानी पिएगी और दूसरे दिन तुम सब लोग अपने लिए और अपने जानवरों के लिए पानी ले सकोगे। उसकी बारी के दिन तुममें से कोई शख़्स किसी चश्मे और कुएँ पर न ख़ुद पानी लेने के लिए आए, न अपने जानवरों को पिलाने के लिए लाए। यह चैलेंज उस शख़्स की तरफ़ से दिया गया था जिसके मुताल्लिक़ वे ख़ुद कहते थे कि यह कोई लाव-लश्कर नहीं रखता, न कोई बड़ा जत्था इसकी पुश्त पर है।
وَلَقَدۡ أَهۡلَكۡنَآ أَشۡيَاعَكُمۡ فَهَلۡ مِن مُّدَّكِرٖ ۝ 48
(51) तुम जैसे बहुत-सों को हम हलाक कर चुके हैं, फिर है कोई नसीहत क़ुबूल करनेवाला?
فَنَادَوۡاْ صَاحِبَهُمۡ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ ۝ 49
(29) आख़िरकार उन लोगों ने अपने आदमी को पुकारा और उसने इस काम का बीड़ा उठाया और ऊँटनी को मार डाला।
وَكُلُّ شَيۡءٖ فَعَلُوهُ فِي ٱلزُّبُرِ ۝ 50
(52) जो कुछ उन्होंने किया है वह सब दफ़्तरों में दर्ज है।
فَكَيۡفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ۝ 51
(30) फिर देख लो कि कैसा था मेरा अज़ाब और कैसी थीं मेरी तंबीहात!
وَكُلُّ صَغِيرٖ وَكَبِيرٖ مُّسۡتَطَرٌ ۝ 52
(53) और हर छोटी बड़ी बात लिखी हुई मौजूद है।
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّٰتٖ وَنَهَرٖ ۝ 53
(54) नाफ़रमानी से परहेज़ करनेवाले यक़ीनन बाग़ों और नहरों में होंगे,
فِي مَقۡعَدِ صِدۡقٍ عِندَ مَلِيكٖ مُّقۡتَدِرِۭ ۝ 54
(55) सच्ची इज़्ज़त की जगह, बड़े ज़ी-इक़तिदार बादशाह के क़रीब।