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سُورَةُ فَاطِرٍ

 35. फ़ातिर

(मक्का में उतरी, आयतें 45)

परिचय

नाम

पहली ही आयत का शब्द 'फ़ातिर' (बनानेवाला) को इस सूरा का शीर्षक बना दिया गया है, जिसका अर्थ केवल यह है कि यह वह सूरा है जिसमें ‘फ़ातिर' शब्द आया है।

उतरने का समय

वर्णनशैली के आन्तरिक साक्ष्यों से पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय शायद मक्का मुअज़्ज़मा का मध्यकाल है और उसका भी वह भाग जिसमें विरोध में काफ़ी तेज़ी आ चुकी थी।

विषय और वार्ता

वार्ता का उद्देश्य यह है कि नबी (सल्ल०) की तौहीद की दावत (एकेश्वरवादी आमंत्रण) के मुक़ाबले में जो रवैया उस समय मक्कावालों और उनके सरदारों ने अपना रखा था, उसपर नसीहत के रूप में उनको चेतावनी दी और उनकी निंदा भी की जाए और शिक्षा देने की शैली में समझाया-बुझाया भी जाए। वार्ता का सार यह है कि मूर्खो! यह नबी जिस राह की ओर तुमको बुला रहा है, उसमें तुम्हारा अपना भला है । इसपर तुम्हारा क्रोध और उसको विफल करने के लिए तुम्हारी चालें वास्तव में उसके विरुद्ध नहीं, बल्कि तुम्हारे अपने विरुद्ध पड़ रही हैं। वह जो कुछ तुमसे कह रहा है, उसपर ध्यान तो दो कि उसमें ग़लत क्या बात है? वह शिर्क (बहुदेववाद) का खंडन करता है, वह तौहीद की दावत देता है, वह तुमसे कहता है कि दुनिया की इस ज़िन्दगी के बाद एक और ज़िन्दगी है जिसमें हर एक को अपने किए का नतीजा देखना होगा। तुम ख़ुद सोचो कि इन बातों पर तुम्हारे सन्देह और अचंभे कितने आधारहीन हैं। अब अगर इन पूर्ण तर्कसंगत और सत्य पर आधारित बातों को तुम नहीं मानते हो, तो इसमें नबी की क्या हानि है। शामत तो तुम्हारी अपनी ही आएगी। वार्ता-क्रम में बार-बार नबी (सल्ल०) को तसल्ली दी गई है कि आप जिस नसीहत का हक़ पूरी तरह अदा कर रहे हैं, तो गुमराही पर आग्रह करनेवालों के सीधा रास्ता स्वीकार न करने की कोई ज़िम्मेदारी आपके ऊपर नहीं आती। इसके साथ आपको यह भी समझा दिया गया है कि जो लोग नहीं मानना चाहते, उनके रवैये पर न आप दुखी हों और न उन्हें सीधे रास्ते पर लाने की चिन्ता में अपनी जान घुलाएँ, इसके बजाय आप अपना ध्यान उन लोगों पर लगाएँ जो बात सुनने के लिए तैयार हैं। ईमान अपनानेवालों को भी इसी सिलसिले में बड़ी शुभ सूचनाएँ दी गई हैं, ताकि उनके दिल मज़बूत हों और वे अल्लाह के वादों पर भरोसा करके सत्य-मार्ग पर जमे रहें।

 

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سُورَةُ فَاطِرٍ
35. फ़ातिर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ فَاطِرِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ جَاعِلِ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ رُسُلًا أُوْلِيٓ أَجۡنِحَةٖ مَّثۡنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَۚ يَزِيدُ فِي ٱلۡخَلۡقِ مَا يَشَآءُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
(1) तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है जो आसमानों और ज़मीन का बनानेवाला और फ़रिश्तों को पैग़ाम-रसाँ मुकर्रर करनेवाला है, (ऐसे फ़रिश्ते) जिनके दो-दो और तीन-तीन और चार-चार बाज़ू हैं। वह अपनी मख़लूक़ की साख़्त में जैसा चाहता है इज़ाफ़ा करता है। यक़ीनन अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
مَّا يَفۡتَحِ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحۡمَةٖ فَلَا مُمۡسِكَ لَهَاۖ وَمَا يُمۡسِكۡ فَلَا مُرۡسِلَ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 1
(2) अल्लाह जिस रहमत का दरवाज़ा भी लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकनेवाला नहीं और जिसे वह बन्द कर दे उसे अल्लाह के बाद फिर कोई दूसरा खोलनेवाला नहीं। वह ज़बरदस्त और हकीम है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡۚ هَلۡ مِنۡ خَٰلِقٍ غَيۡرُ ٱللَّهِ يَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ۝ 2
(3) लोगो! तुमपर अल्लाह के जो एहसानात हैं उन्हें याद रखो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और ख़ालिक़ भी है जो तुम्हें आसमान और ज़मीन से रिज़्क़ देता हो? — कोई माबूद उसके सिवा नहीं, आख़िर तुम कहाँ से धोखा खा रहे हो?
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كُذِّبَتۡ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِكَۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ۝ 3
(4) अब अगर (ऐ नबी!) ये लोग तुम्हें झुठलाते हैं (तो यह कोई नई बात नहीं), तुमसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके हैं, और सारे मामलात आख़िरकार अल्लाह ही की तरफ़ रुजूअ होनेवाले हैं।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ ۝ 4
(5) लोगो! अल्लाह का वादा यक़ीनन बरहक़ है, लिहाज़ा दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हें धोखे में न डाले और न वह बड़ा धोखेबाज़ तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा देने पाए।
إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ لَكُمۡ عَدُوّٞ فَٱتَّخِذُوهُ عَدُوًّاۚ إِنَّمَا يَدۡعُواْ حِزۡبَهُۥ لِيَكُونُواْ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلسَّعِيرِ ۝ 5
(6) दर-हक़ीक़त शैतान तुम्हारा दुश्मन है इसलिए तुम भी उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह तो अपने पैरौओं को अपनी राह पर इसलिए बुला रहा है कि वे दोज़ख़ियों में शामिल हो जाएँ।
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٞ كَبِيرٌ ۝ 6
(7) जो लोग कुफ़्र करेंगे उनके लिए सख़्त अज़ाब है और जो ईमान लाएँगे और नेक अमल करेंगे उनके लिए मग़फ़िरत और बड़ा अज्र है।
أَفَمَن زُيِّنَ لَهُۥ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ فَرَءَاهُ حَسَنٗاۖ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۖ فَلَا تَذۡهَبۡ نَفۡسُكَ عَلَيۡهِمۡ حَسَرَٰتٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِمَا يَصۡنَعُونَ ۝ 7
(8) (भला कुछ ठिकाना है उस शख़्स की गुमराही का) जिसके लिए उसका बुरा अमल ख़ुशनुमा बना दिया गया हो और वह उसे अच्छा समझ रहा हो? हक़ीक़त यह है कि अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में डाल देता है और जिसे चाहता है राहे-रास्त दिखा देता है। पस (ऐ नबी!) ख़ाह-मख़ाह तुम्हारी जान उन लोगों की ख़ातिर ग़म व अफ़सोस में न घुले। जो कुछ ये कर रहे हैं अल्लाह उसको ख़ूब जानता है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡبَحۡرَانِ هَٰذَا عَذۡبٞ فُرَاتٞ سَآئِغٞ شَرَابُهُۥ وَهَٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجٞۖ وَمِن كُلّٖ تَأۡكُلُونَ لَحۡمٗا طَرِيّٗا وَتَسۡتَخۡرِجُونَ حِلۡيَةٗ تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 8
(12) और पानी के दोनों ज़ख़ीरे यकसाँ नहीं हैं। एक मीठा और प्यास बुझानेवाला है, पीने में ख़ुशगवार, और दूसरा सख़्त खारा की हल्क़ छील दे। मगर दोनों से तुम तरो-ताज़ा गोश्त हासिल करते हो, पानी के लिए ज़ीनत का सामान निकालते हो, और उसी पानी में तुम देखते हो कि कश्तियाँ उसका सीना चीरती चली जा रही हैं ताकि तुम अल्लाह का फ़ज़्ल तलाश करो और उसके शुक्रगुज़ार बनो।
وَٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَرۡسَلَ ٱلرِّيَٰحَ فَتُثِيرُ سَحَابٗا فَسُقۡنَٰهُ إِلَىٰ بَلَدٖ مَّيِّتٖ فَأَحۡيَيۡنَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۚ كَذَٰلِكَ ٱلنُّشُورُ ۝ 9
(9) वह अल्लाह ही तो है जो हवाओं को भेजता है, फिर वे बादल उठाती हैं, फिर हम उसे एक उजाड़ इलाक़े की तरफ़ ले जाते हैं और उसके ज़रिए से उसी ज़मीन को जिला उठाते हैं जो मरी पड़ी थी। मरे हुए इनसानों का जी उठना भी इसी तरह होगा।
يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۚ وَٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مَا يَمۡلِكُونَ مِن قِطۡمِيرٍ ۝ 10
(13) वह दिन के अन्दर रात और रात के अन्दर दिन को पिरोता हुआ ले आता है। चाँद और सूरज को उसने मुसख़्ख़र कर रखा है। यह सब कुछ एक वक़्ते-मुक़र्रर तक चले जा रहा है। वही अल्लाह (जिसके ये सारे काम हैं) तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है। उसे छोड़कर जिन दूसरों को तुम पुकारते हो वे एक परे-काह के मालिक भी नहीं हैं।
مَن كَانَ يُرِيدُ ٱلۡعِزَّةَ فَلِلَّهِ ٱلۡعِزَّةُ جَمِيعًاۚ إِلَيۡهِ يَصۡعَدُ ٱلۡكَلِمُ ٱلطَّيِّبُ وَٱلۡعَمَلُ ٱلصَّٰلِحُ يَرۡفَعُهُۥۚ وَٱلَّذِينَ يَمۡكُرُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَمَكۡرُ أُوْلَٰٓئِكَ هُوَ يَبُورُ ۝ 11
(10) जो कोई इज़्ज़त चाहता हो उसे मालूम होना चाहिए कि इज़्ज़त सारी-की-सारी अल्लाह की है। उसके यहाँ जो चीज़ ऊपर चढ़ती है वह सिर्फ़ पाकीज़ा क़ौल है, और अमले-सॉलेह उसको ऊपर चढ़ाता है। रहे वे लोग जो बेहूदा चालबाज़ियाँ करते हैं, उनके लिए सख़्त अज़ाब है और उनका मक्र ख़ुद ही ग़ारत होनेवाला है।
وَٱللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ جَعَلَكُمۡ أَزۡوَٰجٗاۚ وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٖ وَلَا يُنقَصُ مِنۡ عُمُرِهِۦٓ إِلَّا فِي كِتَٰبٍۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ ۝ 12
(11) अल्लाह ने तुमको मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से, फिर तुम्हारे जोड़े बना दिए (यानी मर्द और औरत)। कोई औरत हामिला नहीं होती और न बच्चा जनती है मगर यह सब कुछ अल्लाह के इल्म में होता है। कोई उम्र पानेवाला उम्र नहीं पाता और न किसी की उम्र में कुछ कमी होती है मगर ये सब कुछ एक किताब में लिखा होता है। अल्लाह के लिए यह बहुत आसान काम है।
إِن تَدۡعُوهُمۡ لَا يَسۡمَعُواْ دُعَآءَكُمۡ وَلَوۡ سَمِعُواْ مَا ٱسۡتَجَابُواْ لَكُمۡۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يَكۡفُرُونَ بِشِرۡكِكُمۡۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثۡلُ خَبِيرٖ ۝ 13
(14) उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी दुआएँ सुन नहीं सकते और सुन लें तो उनका तुम्हें कोई जवाब नहीं दे सकते। और क़ियामत के रोज़ वे तुम्हारे शिर्क का इनकार कर देंगे। हक़ीक़ते-हाल की ऐसी सहीह ख़बर तुम्हें एक ख़बरदार के सिवा कोई नहीं दे सकता।
۞يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ أَنتُمُ ٱلۡفُقَرَآءُ إِلَى ٱللَّهِۖ وَٱللَّهُ هُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ ۝ 14
(15) लोगो! तुम ही अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह तो ग़नी व हमीद है।
إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ وَيَأۡتِ بِخَلۡقٖ جَدِيدٖ ۝ 15
(16) वह चाहे तो तुम्हें हटाकर कोई नई खिलक़त तुम्हारी जगह ले आए,
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ بِعَزِيزٖ ۝ 16
(17) ऐसा करना अल्लाह के लिए कुछ भी दुश्वार नहीं।
وَٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ هُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِعِبَادِهِۦ لَخَبِيرُۢ بَصِيرٞ ۝ 17
(31) (ऐ नबी!) जो किताब हमने तुम्हारी तरफ़ वह्य के ज़रिए से भेजी है वही हक़ है, तसदीक़ करती हुई आई है उन किताबों की जो इससे पहले आई थीं। बेशक अल्लाह अपने बन्दों के हाल से बाख़बर है और हर चीज पर निगाह रखनेवाला है।
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ وَإِن تَدۡعُ مُثۡقَلَةٌ إِلَىٰ حِمۡلِهَا لَا يُحۡمَلۡ مِنۡهُ شَيۡءٞ وَلَوۡ كَانَ ذَا قُرۡبَىٰٓۗ إِنَّمَا تُنذِرُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفۡسِهِۦۚ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 18
(18) कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। और अगर कोई लदा हुआ नफ़्स अपना बोझ उठाने के लिए पुकारेगा तो उसके बार का एक अदना हिस्सा भी बटाने के लिए कोई न आएगा, चाहे वह क़रीब-तरीन रिश्तेदार ही क्यों न हो। (ऐ नबी!) तुम सिर्फ़ उन्हीं लोगों को मुतनब्बेह कर सकते हो जो बेदेखे अपने रब से डरते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं। जो शख़्स भी पाकीज़गी इख़्तियार करता है अपनी ही भलाई के लिए करता है। और पलटना सबको अल्लाह ही की तरफ़ है।
ثُمَّ أَوۡرَثۡنَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلَّذِينَ ٱصۡطَفَيۡنَا مِنۡ عِبَادِنَاۖ فَمِنۡهُمۡ ظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ وَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞ وَمِنۡهُمۡ سَابِقُۢ بِٱلۡخَيۡرَٰتِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِيرُ ۝ 19
(32) फिर हमने इस किताब का वारिस बना दिया उन लोगों को जिन्हें हमने (इस विरासत के लिए) अपने बन्दों में से चुन लिया। अब कोई तो उनमें से अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करनेवाला है, और कोई बीच की रास है, और कोई अल्लाह के इज़्न से नेकियों में सबक़त करनेवाला है, यही बहुत बड़ा फ़ज़ल है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ ۝ 20
(19) अन्धा और आँखोंवाला बराबर नहीं हैं।
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا يُحَلَّوۡنَ فِيهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٖ وَلُؤۡلُؤٗاۖ وَلِبَاسُهُمۡ فِيهَا حَرِيرٞ ۝ 21
(33) हमेशा रहनेवाली जन्नतें हैं जिनमें ये लोग दाख़िल होंगे। वहाँ इन्हें सोने के कंगनों और मोतियों से आरास्ता किया जाएगा, वहाँ इनका लिबास रेशम होगा,
وَلَا ٱلظُّلُمَٰتُ وَلَا ٱلنُّورُ ۝ 22
(20) न तारीकियाँ और रौशनी यकसाँ हैं,
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِيٓ أَذۡهَبَ عَنَّا ٱلۡحَزَنَۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٞ شَكُورٌ ۝ 23
(34) और वे कहेंगे कि “शुक्र है उस ख़ुदा का जिसने हमसे ग़म दूर कर दिया! यक़ीनन हमारा रब माफ़ करनेवाला और कद्र फ़रमानेवाला है,
وَلَا ٱلظِّلُّ وَلَا ٱلۡحَرُورُ ۝ 24
(21) न ठण्डी छाँव और धूप की तपिश एक जैसी है।
ٱلَّذِيٓ أَحَلَّنَا دَارَ ٱلۡمُقَامَةِ مِن فَضۡلِهِۦ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٞ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٞ ۝ 25
(35) जिसने हमें अपने फ़ज़्ल से अबदी क़ियाम की जगह ठहरा दिया, अब यहाँ न हमें कोई मशक़्क़त पेश आती है और न तकान लाहिक़ होती है।
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَحۡيَآءُ وَلَا ٱلۡأَمۡوَٰتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُسۡمِعُ مَن يَشَآءُۖ وَمَآ أَنتَ بِمُسۡمِعٖ مَّن فِي ٱلۡقُبُورِ ۝ 26
(22) और न ज़िन्दे और मुर्दे मुसावी हैं। अल्लाह जिसे चाहता है सुनवाता है, मगर (ऐ नबी!) तुम उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में मदफ़्न हैं।1
1. यानी अल्लाह की मशीयत की तो बात ही दूसरी है, वह चाहे तो पत्थरों को समाअत बख़्श दे, लेकिन रसूल के बस का यह काम नहीं है कि जिन लोगों के सीने ज़मीर के मदफ़न बन चुके हों उनके दिलों में वह अपनी बात उतार सके और जो बात सुनना ही न चाहते हों उनके बहरे कानों को सदा-ए-हक़ सुना सके। वह तो उन्हीं लोगों को सुना सकता है जो माक़ूल बात पर कान धरने के लिए तैयार हों।
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَهُمۡ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقۡضَىٰ عَلَيۡهِمۡ فَيَمُوتُواْ وَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُم مِّنۡ عَذَابِهَاۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي كُلَّ كَفُورٖ ۝ 27
(36) और जिन लोगों ने कुफ़्र किया है उनके लिए जहन्नम की आग है। न उनका क़िस्सा पाक कर दिया जाएगा कि मर जाएँ और न उनके लिए जहन्नम के अज़ाब में कोई कमी की जाएगी। इस तरह हम बदला देते हैं हर उस शख़्स को जो कुफ़्र करनेवाला हो।
إِنۡ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ ۝ 28
(23) तुम तो बस एक ख़बरदार करनेवाले हो।
وَهُمۡ يَصۡطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا نَعۡمَلۡ صَٰلِحًا غَيۡرَ ٱلَّذِي كُنَّا نَعۡمَلُۚ أَوَلَمۡ نُعَمِّرۡكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَآءَكُمُ ٱلنَّذِيرُۖ فَذُوقُواْ فَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِن نَّصِيرٍ ۝ 29
(37) वे वहाँ चीख़-चीख़कर कहेंगे कि “ऐ हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल ले ताकि हम नेक अमल करें उन आमाल से मुख़्तलिफ़ जो पहले करते रहे थे।” (उन्हें जवाब दिया जाएगा) “क्या हमने तुमको इतनी उम्र न दी थी जिसमें कोई सबक़ लेना चाहता तो सबक़ ले सकता था? और तुम्हारे पास मुतनब्बेह करनेवाला भी आ चुका था। अब मज़ा चखो, ज़ालिमों का यहाँ कोई मददगार नहीं है।”
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِيرٗا وَنَذِيرٗاۚ وَإِن مِّنۡ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٞ ۝ 30
(24) हमने तुमको हक़ के साथ भेजा है बशारत देनेवाला और डरानेवाला बनाकर। और कोई उम्मत ऐसी नहीं गुजरी है जिसमें कोई मुतनब्बेह करनेवाला न आया हो।
إِنَّ ٱللَّهَ عَٰلِمُ غَيۡبِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 31
(38) बेशक अल्लाह आसमानों और ज़मीन की हर पोशीदा चीज़ से वाक़िफ़ है, वह तो सीनों के छिपे हुए राज़ तक जानता है।
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَبِٱلزُّبُرِ وَبِٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُنِيرِ ۝ 32
(25) अब अगर ये लोग तुम्हें झुठलाते हैं तो इनसे पहले गुज़रे हुए लोग भी झुठला चुके हैं। उनके पास अब रसूल खुले दलाइल और सहीफ़े और रौशन हिदायात देनेवाली किताब लेकर आए थे।
هُوَ ٱلَّذِي جَعَلَكُمۡ خَلَٰٓئِفَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيۡهِ كُفۡرُهُۥۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ إِلَّا مَقۡتٗاۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ إِلَّا خَسَارٗا ۝ 33
(39) वही तो है जिसने तुमको ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया है। अब जो कोई कुफ़्र करता है उसके कुफ़्र का वबाल उसी पर है, और काफ़िरों को उनका कुफ़्र इसके सिवा कोई तरक़्क़ी नहीं देता कि उनके रब का ग़ज़ब उनपर ज़्यादा-से-ज़्यादा भड़कता चला जाता है। काफ़िरों के लिए ख़सारे में इज़ाफ़े के सिवा कोई तरक्की नहीं।
ثُمَّ أَخَذۡتُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۖ فَكَيۡفَ كَانَ نَكِيرِ ۝ 34
(26) फिर जिन लोगों ने न माना उनको मैंने पकड़ लिया और देख लो कि मेरी सज़ा कैसी सख़्त थी!
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ شُرَكَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُواْ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ لَهُمۡ شِرۡكٞ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا فَهُمۡ عَلَىٰ بَيِّنَتٖ مِّنۡهُۚ بَلۡ إِن يَعِدُ ٱلظَّٰلِمُونَ بَعۡضُهُم بَعۡضًا إِلَّا غُرُورًا ۝ 35
(40) (ऐ नबी!) इनसे कहो, “कभी तुमने देखा भी है अपने उन शरीकों को जिन्हें तुम ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते हो? मुझे बताओ, उन्होंने ज़मीन में क्या पैदा किया है? या आसमानों में उनकी क्या शिर्कत है?” (अगर ये नहीं बता सकते तो इनसे पूछो) “क्या हमने इन्हें कोई तहरीर लिखकर दी है जिसकी बिना पर ये (अपने इस शिर्क के लिए) कोई साफ़ सनद रखते हों?” नहीं, बल्कि ये ज़ालिम एक-दूसरे को मह्ज़ फ़रेब के झाँसे दिए जा रहे हैं।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦ ثَمَرَٰتٖ مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهَاۚ وَمِنَ ٱلۡجِبَالِ جُدَدُۢ بِيضٞ وَحُمۡرٞ مُّخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٞ ۝ 36
(27) क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह आसमान से पानी बरसाता है और फिर उसके ज़रिए से हम तरह-तरह के फल निकाल लाते हैं जिनके रंग मुख़्तलिफ़ होते हैं। और पहाड़ों में भी सफ़ेद, सुर्ख और गहरी सियाह धारियाँ पाई जाती हैं जिनके रंग मुरख़्तलिफ़ होते हैं।
۞إِنَّ ٱللَّهَ يُمۡسِكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ أَن تَزُولَاۚ وَلَئِن زَالَتَآ إِنۡ أَمۡسَكَهُمَا مِنۡ أَحَدٖ مِّنۢ بَعۡدِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورٗا ۝ 37
(41) हक़ीक़त यह है कि अल्लाह ही है जो आसमानों और ज़मीन को टल जाने से रोके हुए है, और अगर वे टल जाएँ तो अल्लाह के बाद कोई दूसरा उन्हें थामनेवाला नहीं है। बेशक अल्लाह बड़ा हलीम और दरगुज़र फ़रमानेवाला है।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ وَٱلدَّوَآبِّ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ مُخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهُۥ كَذَٰلِكَۗ إِنَّمَا يَخۡشَى ٱللَّهَ مِنۡ عِبَادِهِ ٱلۡعُلَمَٰٓؤُاْۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ ۝ 38
(28) और इसी तरह इनसानों और जानवरों और मवेशियों के रंग भी मुख़्तलिफ़ हैं। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह के बन्दों में से सिर्फ़ इल्म रखनेवाले लोग ही उससे डरते हैं2। बेशक अल्लाह ज़बरदस्त और दरगुज़र फ़रमानेवाला है।
2. इससे मालूम हुआ कि आलिम मह्ज़ किताबख़्वाँ को नहीं कहते, बल्कि आलिम वह है जो ख़ुदा से डरनेवाला हो।
وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ لَئِن جَآءَهُمۡ نَذِيرٞ لَّيَكُونُنَّ أَهۡدَىٰ مِنۡ إِحۡدَى ٱلۡأُمَمِۖ فَلَمَّا جَآءَهُمۡ نَذِيرٞ مَّا زَادَهُمۡ إِلَّا نُفُورًا ۝ 39
(42) ये लोग कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा करते थे कि अगर कोई ख़बरदार करनेवाला उनके यहाँ आ गया होता तो ये दुनिया की हर दूसरी क़ौम से बढ़कर रास्त-रौ होते। मगर जब ख़बरदार करनेवाला इनके यहाँ आ गया तो उसकी आमद ने इनके अन्दर हक़ से फ़रार के सिवा किसी चीज़ में इज़ाफ़ा न किया।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَتۡلُونَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ يَرۡجُونَ تِجَٰرَةٗ لَّن تَبُورَ ۝ 40
(29) जो लोग किताबुल्लाह की तिलावत करते हैं और नमाज़ क़ायम करते है, और जो कुछ हमने उन्हें रिज़्क़ दिया है उसमें से खुले और छिपे ख़र्च करते है, यक़ीनन वे एक ऐसी तिजारत के मुतवक़्के हैं जिसमें हरगिज़ ख़सारा न होगा।
ٱسۡتِكۡبَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَكۡرَ ٱلسَّيِّيِٕۚ وَلَا يَحِيقُ ٱلۡمَكۡرُ ٱلسَّيِّئُ إِلَّا بِأَهۡلِهِۦۚ فَهَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ ٱلۡأَوَّلِينَۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَبۡدِيلٗاۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَحۡوِيلًا ۝ 41
(43) ये ज़मीन में और ज़्यादा सरकशी करने लगे और बुरी-पुरी चालें चलने लगे, हालाँकि बुरी चालें अपने चलनेवालों ही को ले बैठती हैं। अब क्या ये लोग इसका इन्तिज़ार कर रहे हैं कि पिछली क़ौमों के साथ अल्लाह का जो तरीक़ा रहा है वही इनके साथ भी बरता जाए? यही बात है तो तुम अल्लाह के तरीक़े में हरगिज़ कोई तबदीली न पाओगे और तुम कभी न देखोगे कि अल्लाह की सुन्नत को उसके मुक़र्रर रास्ते से कोई ताक़त फेर सकती है।
لِيُوَفِّيَهُمۡ أُجُورَهُمۡ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ غَفُورٞ شَكُورٞ ۝ 42
(30) (इस तिजारत में उन्होंने अपना सब कुछ इसलिए खपाया है) ताकि अल्लाह उनके अज्र पूरे-के-पूरे उनको दे और मज़ीद अपने फ़ज़्ल से उनको अता फ़रमाए। बेशक अल्लाह बख़्शनेवाला और क़द्रदान है।
أَوَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَكَانُوٓاْ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعۡجِزَهُۥ مِن شَيۡءٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَلِيمٗا قَدِيرٗا ۝ 43
(44) क्या ये लोग ज़मीन में कभी चले-फिरे नहीं हैं कि इन्हें उन लोगों का अंजाम नजर आता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं और इनसे बहुत ज़्यादा ताक़तवर थे? अल्लाह को कोई चीज़ आजिज़ करनेवाली नहीं है, न आसमानों में और न ज़मीन में। वह सब कुछ जानता है और हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
وَلَوۡ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِمَا كَسَبُواْ مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهۡرِهَا مِن دَآبَّةٖ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمۡ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗىۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِۦ بَصِيرَۢا ۝ 44
(45) अगर कहीं वह लोगों को उनके किए करतूतों पर पकड़ता तो ज़मीन पर किसी मुतनफ़्फ़िस को जीता न छोड़ता। मगर वह उन्हें एक मुक़र्रर वक़्त तक के लिए मुहलत दे रहा है। फिर जब उनका वक़्त आन पूरा होगा तो अल्लाह अपने बन्दों को देख लेगा।