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سُورَةُ التِّينِ

95. अत-तीन

(मक्का में उतरी, आयतें 8)

परिचय

नाम

आयत के पहले ही शब्द 'अत-तीन' (इंजीर) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

क़तादा (रह०) कहते हैं कि यह सूरा मदनी है। इब्ने-अब्बास (रज़ि०) से दो कथन उल्लिखित हैं। एक यह कि यह मक्की है और दूसरा यह कि मदनी है, लेकिन अधिकतर विद्वान इसे मक्की ही क़रार देते हैं और इसके मक्की होने की खुली निशानी यह है कि इसमें मक्का नगर के लिए 'हाज़ल ब-ल-दिल अमीन' (अमनवाले शहर) के शब्द प्रयुक्त हुए हैं। स्पष्ट है कि अगर यह मदीना में उतरी होती तो मक्का के लिए यह शहर' कहना सही नहीं हो सकता था। इसके अतिरिक्त सूरा की वार्ताओं पर विचार करने से महसूस होता है कि यह मक्का के भी आरम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है।

विषय और वार्ता

इसका विषय है इनाम और सज़ा की पुष्टि। इस उद्देश्य के लिए सबसे पहले महान नबियों के नियुक्ति-स्थलों की क़सम खाकर कहा गया है कि अल्लाह ने इंसान को बेहतरीन बनावट पर पैदा किया है। यद्यपि इस वास्तविकता को दूसरे स्थानों पर क़ुरआन मजीद में विभिन्न तरीक़ों से बयान किया गया है। जैसे, कहीं कहा गया कि इंसान को अल्लाह ने धरती पर अपना ख़लीफ़ा (प्रतिनिधि) बनाया और फ़रिश्तों को उसके आगे सज्दा करने का आदेश दिया (सूरा-2 अल-बक़रा, आयत-30-34; सूरा-6 अल-अनआम, आयत-162; सूरा-7 अल-आराफ़, आयत-11; सूरा-15 अल-हिज्र, आयत-28-29; सूरा-27 अन-नम्ल, आयत-62; सूरा-38 सॉद, आयत-71-73) । कहीं कहा गया कि इंसान उस ईश्वरीय अमानत का वाहक हुआ है, जिसे उठाने की शक्ति ज़मीन, आसमान और पहाड़ों में भी न थी (सूरा-33 अहज़ाब, आयत-72)। कहीं कहा कि हमने आदम की सन्तान को आदर प्रदान किया और अपनी बहुत-सी रचनाओं पर श्रेष्ठता प्रदान की (सूरा-17 बनी-इसराईल, आयत-70)। लेकिन यहाँ मुख्य रूप से नबियों के नियुक्ति-स्थलों की क़सम खाकर यह कहना कि इंसान को सबसे अच्छी बनावट पर पैदा किया गया है, यह अर्थ रखता है कि मानव जाति को इतनी अच्छी बनावट प्रदान की गई कि उसके भीतर नुबूवत (पैग़म्बरी) जैसे उच्चतम पद के भार-वाहक लोग पैदा हुए, जिससे ऊँचा पद अल्लाह की किसी दूसरी रचना को नहीं मिला। इसके बाद यह बताया गया है कि इंसानों में दो तरह के लोग पाए जाते हैं—

एक वे जो इस अति उत्तम बनावट में पैदा होने के बाद बुराई की ओर झुक जाते हैं और गिरते-गिरते नैतिक पतन की उस सीमा को पहुँच जाते हैं, जहाँ उनसे ज़्यादा नीच कोई प्राणी नहीं होता।

दूसरे वे जो ईमान और अच्छे कर्म का रास्ता अपनाकर इस गिरावट से बच जाते हैं और उस उच्च स्थान पर क़ायम रहते हैं जो उनके सर्वोत्तम बनावट पर पैदा होने का अनिवार्य तक़ाज़ा है। अन्त में इस वास्तविकता के आधार पर यह साबित किया गया है कि जब इंसानों में दो अलग-अलग और एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न प्रकार पाए जाते हैं तो फिर कर्मों के फल का कैसे इंकार किया जा सकता है। फलस्वरूप दोनों [प्रकार के इंसानों] का फल एक जैसा हो तो इसका अर्थ यह है कि ईश्वर के यहाँ कोई न्याय नहीं है, हालाँकि मानव-प्रकृति और इंसान की सामान्य बुद्धि यह तक़ाज़ा करती है कि जो व्यक्ति भी शासक हो, वह न्याय करे। फिर यह कैसे सोचा जा सकता है कि अल्लाह, जो सब शासकों से बड़ा शासक है, न्याय नहीं करेगा।

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سُورَةُ التِّينِ
95. अत-तीन
بِّسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
وَالتِّيْنِ وَالزَّيْتُوْنِ
क़सम है इंजीर और ज़ैतून1 की
1. यानी इन फलों की पैदावार के इलाक़े (शाम व फ़लस्तीन) की जहाँ ब-कसरत अम्बिया पैदा हुए।
وَطُورِ سِينِينَ ۝ 1
(2) और तूरे सीना
وَهَٰذَا ٱلۡبَلَدِ ٱلۡأَمِينِ ۝ 2
(3) और इस पुरअम्न शहर (मक्का) की!
لَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ فِيٓ أَحۡسَنِ تَقۡوِيمٖ ۝ 3
(4) हमने इनसान को बेहतरीन साख़्त पर पैदा किया,
ثُمَّ رَدَدۡنَٰهُ أَسۡفَلَ سَٰفِلِينَ ۝ 4
(5) फिर उसे उलटा फेरकर हमने सब नीचों से नीच कर दिया,
إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَلَهُمۡ أَجۡرٌ غَيۡرُ مَمۡنُونٖ ۝ 5
(6) सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल करते रहे कि उनके लिए कभी ख़त्म न होनेवाला अज्र है।
فَمَا يُكَذِّبُكَ بَعۡدُ بِٱلدِّينِ ۝ 6
(7) पस (ऐ नबी!) इसके बाद कौन जज़ा और सज़ा के मामले में तुमको झुठला सकता है?
أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِأَحۡكَمِ ٱلۡحَٰكِمِينَ ۝ 7
(8) क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं है?2
2. यानी जब दुनिया के छोटे-छोटे हाकिमों से भी तुम यह चाहते हो और यही तवक्क़ो रखते हो कि वे इनसाफ़ करें, मुजरिमों को सज़ा दें और अच्छे काम करनेवालों को सिला व इनाम दें, तो ख़ुदा के मुताल्लिक़ तुम्हारा क्या ख़याल है? तुम समझते हो कि वह सब हाकिमों का हाकिम कोई इनसाफ़ न करेगा? क्या उससे तुम यह तवक़्क़ो रखते हो कि वह बुरे और भले को एक जैसा कर देगा? क्या उसकी दुनिया में बदतरीन अफ़आल करनेवाले और बेहतरीन काम करनेवाले, दोनों मरकर ख़ाक हो जाएँगे और किसी को न बद-आमालियों की सज़ा मिलेगी न हुस्ने-अमल की जज़ा?