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سُورَةُ التَّكۡوِيرِ

81. अत-तकवीर

(मक्का में उतरी, आयतें 29)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के शब्द 'कुव्विरत' से लिया गया है। ‘कुव्विरत' वास्तव में ‘तकवीर’ से बना भूतकालिक अकर्मकवाच्य है जिसका अर्थ है 'लपेटी गई'। इस नाम से तात्पर्य यह है कि वह सूरा जिसमें लपेटने का उल्लेख हुआ है।

उतरने का समय

विषय और वर्णनशैली से साफ़ महसूस होता है कि यह मक्का के आरम्भिक काल में अवतरित सूरतों में से है।

विषय और वार्ता

इसके दो विषय हैं - एक आख़िरत, दूसरे रिसालत (पैग़म्बरी)। पहली 6 आयतों में क़ियामत के पहले चरण का उल्लेख किया गया है, फिर सात आयतों में दूसरे चरण का उल्लेख है। आख़िरत का यह सारा चित्र खींचने के बाद यह कहकर इंसान को सोचने के लिए छोड़ दिया गया है कि उस समय हर व्यक्ति को अपने आप ही मालूम हो जाएगा कि वह क्या लेकर आया है। इसके बाद रिसालत का विषय लिया गया है। इसमें मक्कावालों से कहा गया है कि मुहम्मद (सल्ल०) जो कुछ तुम्हारे सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, वह न किसी दीवाने की बड़ है, न किसी शैतान का डाला हुआ वसवसा (बुरा विचार) है, बल्कि अल्लाह के भेजे हुए एक महान, प्रतिष्ठित और अमानतदार सन्देशवाहक का बयान है जिसे मुहम्मद (सल्ल०) ने खुले आसमान के उच्च क्षितिज पर दिन की रौशनी में अपनी आँखों से देखा है। इस शिक्षा से विमुखता दिखाकर आख़िर तुम किधर चले जा रहे हो?

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سُورَةُ التَّكۡوِيرِ
81. अत-तकवीर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
إِذَا ٱلشَّمۡسُ كُوِّرَتۡ
(1) जब सूरज लपेट दिया जाएगा1
1. यानी वह रौशनी जो सूरज से निकलकर दुनिया में फैलती है, वह उसी पर लपेट दी जाएगी और उसका फैलना बन्द हो जाएगा।
وَإِذَا ٱلنُّجُومُ ٱنكَدَرَتۡ ۝ 1
(2) और जब तारे बिखर जाएँगे,
وَإِذَا ٱلۡجِبَالُ سُيِّرَتۡ ۝ 2
(3) और जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
وَإِذَا ٱلۡعِشَارُ عُطِّلَتۡ ۝ 3
(4) और जब दस महीने की हामिला ऊँटनियाँ अपने हाल पर छोड़ दी जाएँगी2,
2. अहले-अरब के लिए उस ऊँटनी से ज़्यादा क़ीमती माल और कोई न था जो बच्चा जनने के क़रीब हो। इस हालत में उसकी बहुत ज़्यादा हिफ़ाज़त और देखभाल की जाती थी। ऐसी ऊँटनियों से लोगों का ग़ाफ़िल हो जाना गोया यह मानी रखता था कि उस वक़्त कुछ ऐसी सख़्त उफ़ताद लोगों पर पड़ेगी कि उन्हें अपने अज़ीज़-तरीन माल की हिफ़ाज़त का भी होश न रहेगा।
وَإِذَا ٱلۡوُحُوشُ حُشِرَتۡ ۝ 4
(5) और जब जंगली जानवर समेटकर इकट्ठे कर दिए जाएँगे,
وَإِذَا ٱلۡبِحَارُ سُجِّرَتۡ ۝ 5
(6) और जब समुन्दर भड़का दिए जाएँगे,
وَإِذَا ٱلنُّفُوسُ زُوِّجَتۡ ۝ 6
(7) और जब जानें (जिस्मों से) जोड़ दी जाएँगी3,
3. यानी इनसान अज़-सरे-नौ उसी तरह ज़िन्दा किए जाएँगे जिस तरह वे दुनिया में मरने से पहले जिस्म व रूह के साथ ज़िन्दा थे।
وَإِذَا ٱلۡمَوۡءُۥدَةُ سُئِلَتۡ ۝ 7
(8) और जब ज़िन्दा गाड़ी हुई लड़की से पूछा जाएगा
بِأَيِّ ذَنۢبٖ قُتِلَتۡ ۝ 8
(9) कि वह किस क़ुसूर में मारी गई?
وَإِذَا ٱلصُّحُفُ نُشِرَتۡ ۝ 9
(10) और जब आमालनामे खोले जाएँगे,
وَإِذَا ٱلسَّمَآءُ كُشِطَتۡ ۝ 10
(11) और जब आसमान का परदा हटा दिया जाएगा,
وَإِذَا ٱلۡجَحِيمُ سُعِّرَتۡ ۝ 11
(12) और जब जहन्नम दहकाई जाएगी,
وَإِذَا ٱلۡجَنَّةُ أُزۡلِفَتۡ ۝ 12
(13) और जब जन्नत क़रीब ले आई जाएगी,
عَلِمَتۡ نَفۡسٞ مَّآ أَحۡضَرَتۡ ۝ 13
(14) उस वक़्त हर शख़्स को मालूम हो जाएगा कि वह क्या लेकर आया है।
فَلَآ أُقۡسِمُ بِٱلۡخُنَّسِ ۝ 14
(15) पस नहीं4, मैं क़सम खाता हूँ पलटनेवाले
4. यानी तुम लोगों का यह गुमान सही नहीं है कि यह जो कुछ क़ुरआन में बयान किया जा रहा है यह किसी दीवाने की बड़ है या कोई शैतानी वसवसा है।
ٱلۡجَوَارِ ٱلۡكُنَّسِ ۝ 15
(16) और छुप जानेवाले तारों की,
وَٱلَّيۡلِ إِذَا عَسۡعَسَ ۝ 16
(17) और रात की जबकि वह रुख़सत हुई
وَٱلصُّبۡحِ إِذَا تَنَفَّسَ ۝ 17
(18) और सुबह की जबकि उसने साँस लिया,
إِنَّهُۥ لَقَوۡلُ رَسُولٖ كَرِيمٖ ۝ 18
(19) यहफ़िल-वाक़े एक बुज़ुर्ग पैग़ाम्बर का क़ौल है5
5. इस मक़ाम पर बुज़ुर्ग पैग़ाम्बर (रसूले-करीम) से मुराद वह्य लानेवाला फ़रिश्ता है जैसा कि आगे की आयत से ब-सराहत मालूम हो रहा है। और क़ुरआन को पैग़ाम्बर का क़ौल कहने का मतलब यह नहीं है कि यह उस फ़रिश्ते का अपना कलाम है। बल्कि ‘क़ौले-पैग़ाम्बर' के अलफ़ाज़ ख़ुद ही यह ज़ाहिर कर रहे हैं कि यह उस हस्ती का कलाम है जिसने उसे पैग़ाम्बर बनाकर भेजा है।
ذِي قُوَّةٍ عِندَ ذِي ٱلۡعَرۡشِ مَكِينٖ ۝ 19
(20) जो बड़ी तवानाई रखता है, अर्शवाले के यहाँ बलन्द मर्तबा है,
مُّطَاعٖ ثَمَّ أَمِينٖ ۝ 20
(21) वहाँ उसका हुक्म माना जाता है6, वह बा-एतिमाद है।
6. यानी वह फ़रिश्तों का अफ़सर है। तमाम फ़रिश्ते उसके हुक्म के तहत काम करते हैं।
وَمَا صَاحِبُكُم بِمَجۡنُونٖ ۝ 21
(22) और (ऐ अहले-मक्का) तुम्हारा रफ़ीक़ मजनून नहीं है7।
7. रफ़ीक़ से मुराद रसूलुल्लाह (सल्ल०) हैं। 
وَلَقَدۡ رَءَاهُ بِٱلۡأُفُقِ ٱلۡمُبِينِ ۝ 22
(23) उसने उस पैग़ाम्बर को रौशन उफ़ुक़ पर देखा है।
وَمَا هُوَ عَلَى ٱلۡغَيۡبِ بِضَنِينٖ ۝ 23
(24) और वह ग़ैब (के इस इल्म को लोगों तक पहुँचाने) के मामले में बख़ील नहीं है।
وَمَا هُوَ بِقَوۡلِ شَيۡطَٰنٖ رَّجِيمٖ ۝ 24
(23) और वह किसी धुतकारे हुए शैतान का कथन नहीं है
और यह किसी शैताने-मरदूद का क़ौल नहीं है।
فَأَيۡنَ تَذۡهَبُونَ ۝ 25
(26) फिर तुम लोग किधर चले जा रहे हो?
إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرٞ لِّلۡعَٰلَمِينَ ۝ 26
(27) यह तो सारे जहानवालों के लिए एक नसीहत है,
لِمَن شَآءَ مِنكُمۡ أَن يَسۡتَقِيمَ ۝ 27
(28) तुममें से हर उस शख़्स के लिए जो राहे-रास्त पर चलना चाहता हो।
وَمَا تَشَآءُونَ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 28
(29) और तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता जब तक अल्लाह रब्बुल-आलमीन न चाहे।