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أَمۡ عِندَهُمۡ خَزَآئِنُ رَحۡمَةِ رَبِّكَ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡوَهَّابِ

38. सॉद

(मक्का में उतरी, आयतें 88) 

परिचय

नाम

इस सूरा के शुरू ही के अक्षर 'सॉद' को इस सूरा का नाम दिया गया है।

उतरने का समय

जैसा की आगे चलकर बताया जाएगा कि कुछ रिवायतों के अनुसार यह सूरा उस समय उतरी थी, जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का मुअज़्ज़मा में खुल्लम-खुल्ला दावत (आह्वान) का आरंभ किया था। कुछ दूसरी रिवायतें इसके उतरने को हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने के बाद की घटना बताती हैं। रिवायतों के एक और क्रम से मालूम होता है कि इसके उतरने का समय नुबूवत का दसवाँ या ग्यारहवाँ साल है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

इमाम अहमद, नसई और तिर्मिज़ी आदि ने जो रिवायतें नक़्ल की हैं, उनका सारांश यह है कि जब अबू-तालिब बीमार हुए और कुरैश के सरदारों ने महसूस किया कि अब यह उनका अन्तिम समय है, तो उन्होंने आपस में मश्‍वरा किया कि चलकर उनसे बात करनी चाहिए। वे हमारा और अपने भतीजे का झगड़ा चुका जाएँ तो अच्छा हो। इस राय पर सब सहमत हो गए और क़ुरैश के लगभग पच्चीस सरदार, जिनमें अबू-जहल, अबू-सुफ़ियान, उमैया-बिन-ख़ल्फ़, आस-बिन-वाइल, अस्वद-बिन-मुत्तलिब, उक़बा-बिन-अबी-मुऐत, उतबा और शैबा शामिल थे, अबू-तालिब के पास पहुँचे। उन लोगों ने पहले तो अपनी सामान्य नीति के मुताबिक़ नबी (सल्ल०) के विरुद्ध अपनी शिकायतें बयान की, फिर कहा कि हम आपके सामने एक न्याय की बात रखने आए हैं। आपका भतीजा हमें हमारे दीन पर छोड़ दे और हम उसे उसके दीन पर छोड़ देते हैं, लेकिन वह हमारे उपास्यों का विरोध और उनकी निंदा न करे। इस शर्त पर आप हमसे उसका समझौता करा दें। अबू-तालिब ने नबी (सल्ल०) को बुलाया और आप (सल्ल०) को वह बात बताई जो क़ुरैश के सरदारों ने उनसे कही थी। नबी (सल्ल०) ने उत्तर में कहा, "चचा जान! मैं तो इनके सामने एक ऐसी बात पेश करता हूँ जिसे अगर ये मान लें तो अरब इनके अधीन हो जाए और ग़ैर-अरब इन्हें कर (Tax) देने लग जाएँ।" उन्होंने पूछा, “वह बात क्या है ?" आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, "ला इला-ह इल्लल्लाह" (नहीं है कोई उपास्य सिवाय अल्लाह के)। इसपर वे सब एक साथ उठ खड़े हुए और वे बातें कहते हुए निकल गए जो इस सूरा के शुरू के हिस्से में अल्लाह ने नक़्ल की हैं। इब्‍ने-सअद की रिवायत के अनुसार यह अबू-तालिब के मृत्यु-रोग की नहीं, बल्कि उस समय की घटना है, जब नबी (सल्ल०) ने सामान्य रूप से लोगों को सत्य की ओर बुलाना शुरू कर दिया था और मक्का में बराबर ये ख़बरें फ़ैलनी शुरू हो गई थीं कि आज फ़ुलाँ आदमी मुसलमान हो गया और कल फ़ुलाँ। ज़मख़शरी, राजी, नेशाबूरी (नेशापूरी) और कुछ दूसरे टीकाकार कहते हैं कि यह प्रतिनिधिमंडल अबूृ-तालिब के पास उस समय गया था जब हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने पर क़ुरैश के सरदार बौखला गए थे। (मानो यह हबशा की हिजरत के बाद की घटना है।)

विषय और वार्ता

ऊपर जिस बैठक का उल्लेख किया गया है, उसकी समीक्षा करते हुए इस सूरा की शुरुआत हुई है। इस्लाम विरोधियों और नबी (सल्ल०) की बातचीत को आधार बनाकर अल्लाह ने बताया है कि इन लोगों के इंकार का मूल कारण इस्लामी दावत की कोई कमी नहीं है, बल्कि उनका अपना घमंड, जलन और अंधी पैरवी पर दुराग्रह है। इसके बाद अल्लाह ने सूरा के शुरू के हिस्से में भी और आख़िरी वाक्यों में भी इस्लाम विरोधियों को साफ़-साफ़ चेतावनी दी है कि जिस आदमी का आज तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, बहुत जल्द वही ग़ालिब आकर रहेगा, और वह समय दूर नहीं जब उसके आगे तुम सब नतमस्तक नज़र आओगे। फिर बराबर नौ पैग़म्बरों का उल्लेख करके, जिनमें हज़रत दाऊद और सुलैमान (अलैहि०) का क़िस्सा अधिक विस्तार से है, अल्लाह ने यह बात सुननेवालों के मन में बिठाई है कि उसके न्याय का क़ानून बिल्कुल बे-लाग है। ग़लत बात चाहे कोई भी करे, वह उसपर पकड़ करता है, और उसके यहाँ वही लोग पसन्द किए जाते हैं जो ग़लती पर हठ न करें, बल्कि उससे अवगत होते ही तौबा कर लें। इसके बाद आज्ञाकारी बन्दों और सरकश बन्दों के उस अंजाम का चित्र खींचा गया है जो वे परलोक में देखनेवाले हैं। अन्त में आदम (अलैहि०) और इबलीस के क़िस्से का उल्लेख किया गया है और उसका अभिप्राय क़ुरैश के इस्लाम विरोधियों को यह बताना है कि मुहम्मद (सल्ल.) के आगे झुकने से जो अहंकार तुम्हारे रास्ते की रुकावट बन रहा है, वही अहंकार आदम के आगे झुकने में इबलीस के लिए भी रुकावट बना था। इसलिए जो अंजाम इबलीस का होना है, वही अन्ततः तुम्हारा भी होना है।

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أَمۡ عِندَهُمۡ خَزَآئِنُ رَحۡمَةِ رَبِّكَ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡوَهَّابِ ۝ 1
(9) क्या तेरे दाता और ग़ालिब परवरदिगार की रहमत के ख़ज़ाने इनके क़ब्ज़े में हैं?
أَمۡ لَهُم مُّلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَاۖ فَلۡيَرۡتَقُواْ فِي ٱلۡأَسۡبَٰبِ ۝ 2
(10) क्या ये आसमान व ज़मीन और उनके दरमियान की चीज़ों के मालिक हैं? अच्छा तो यह आलमे-असबाब की बलंदियों पर चढ़कर देखें!
جُندٞ مَّا هُنَالِكَ مَهۡزُومٞ مِّنَ ٱلۡأَحۡزَابِ ۝ 3
(11) यह तो जत्थो में से एक छोटा-सा जत्था है जो इसी जगह शिकस्त खानेवाला है।4
4. ‘इसी जगह’ का इशारा मक्का मुअज़्ज़मा की तरफ़ है। यानी जहाँ ये लोग ये बातें बना रहे हैं, इसी जगह एक दिन ये शिकस्त खानेवाले हैं और यहीं वह वक़्त आनेवाला है जब वे मुँह लटकाए उसी शख़्स के सामने खड़े होंगे जिसे आज ये हक़ीर समझकर नबी तसलीम करने से इनकार कर रहे है।
كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ وَعَادٞ وَفِرۡعَوۡنُ ذُو ٱلۡأَوۡتَادِ ۝ 4
(12) इनसे पहले नूह की क़ौम और आद और मेख़ोंवाला फ़िरऔन,
وَثَمُودُ وَقَوۡمُ لُوطٖ وَأَصۡحَٰبُ لۡـَٔيۡكَةِۚ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلۡأَحۡزَابُ ۝ 5
(13) और समूद, और क़ौमे-लूत, और ऐकावाले झुठला चुके हैं। जत्थे वे थे।
إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ ٱلرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ ۝ 6
(14) इनमें से हर एक ने रसूलों को झुठलाया और मेरी उक़ूबत का फ़ैसला उसपर चस्पाँ होकर रहा।
وَمَا يَنظُرُ هَٰٓؤُلَآءِ إِلَّا صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ مَّا لَهَا مِن فَوَاقٖ ۝ 7
(15) ये लोग भी बस एक धमाके के मुन्तज़िर हैं जिसके बाद कोई दूसरा धमाका न होगा।
وَقَالُواْ رَبَّنَا عَجِّل لَّنَا قِطَّنَا قَبۡلَ يَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ ۝ 8
(16) और ये कहते हैं कि ऐ हमारे रब! यौमुल-हिसाब से पहले ही हमारा हिस्सा हमें जल्दी से दे दे।
ٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَا دَاوُۥدَ ذَا ٱلۡأَيۡدِۖ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٌ ۝ 9
(17) (ऐ नबी!) सब्र करो उन बातों पर जो ये लोग बनाते हैं और इनके सामने हमारे बन्दे दाऊद का क़िस्सा बयान करो जो बड़ी क़ुव्वतों का मालिक था। हर मामले में अल्लाह की तरफ़ रुजूअ करनेवाला था।
إِنَّا سَخَّرۡنَا ٱلۡجِبَالَ مَعَهُۥ يُسَبِّحۡنَ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِشۡرَاقِ ۝ 10
(18) हमने पहाड़ों को उसके साथ मुसख़्ख़र कर रखा था कि सुबह व शाम वे उसके साथ तसबीह करते थे।
وَٱلطَّيۡرَ مَحۡشُورَةٗۖ كُلّٞ لَّهُۥٓ أَوَّابٞ ۝ 11
(19) परिन्दे सिमट आते, सब-के-सब उसकी तसबीह की तरफ़ मुतवज्जेह हो जाते थे।
وَشَدَدۡنَا مُلۡكَهُۥ وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡحِكۡمَةَ وَفَصۡلَ ٱلۡخِطَابِ ۝ 12
(20) हमने उसकी सल्तनत मज़बूत कर दी थी, उसको हिकमत अता की थी और फ़ैसलाकुन बात कहने की सलाहियत बख़्शी थी।
۞وَهَلۡ أَتَىٰكَ نَبَؤُاْ ٱلۡخَصۡمِ إِذۡ تَسَوَّرُواْ ٱلۡمِحۡرَابَ ۝ 13
(21) फिर तुम्हें कुछ ख़बर पहुँची है उन मुक़द्दमेवालों की जो दीवार चढ़कर उसके बालाख़ाने में घुस आए थे?
إِذۡ دَخَلُواْ عَلَىٰ دَاوُۥدَ فَفَزِعَ مِنۡهُمۡۖ قَالُواْ لَا تَخَفۡۖ خَصۡمَانِ بَغَىٰ بَعۡضُنَا عَلَىٰ بَعۡضٖ فَٱحۡكُم بَيۡنَنَا بِٱلۡحَقِّ وَلَا تُشۡطِطۡ وَٱهۡدِنَآ إِلَىٰ سَوَآءِ ٱلصِّرَٰطِ ۝ 14
(22) जब वे दाऊद के पास पहुँचे तो वह उन्हें देखकर घबरा गया। उन्होंने कहा, “डरिए नहीं, हम दो फ़रीक़े-मुक़द्दमा हैं जिनमें से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है। आप हमारे दरमियान ठीक-ठीक हक़ के साथ फ़ैसला कर दीजिए, बेइनसाफ़ी न कीजिए और हमें राहे-रास्त बताइए।
إِنَّ هَٰذَآ أَخِي لَهُۥ تِسۡعٞ وَتِسۡعُونَ نَعۡجَةٗ وَلِيَ نَعۡجَةٞ وَٰحِدَةٞ فَقَالَ أَكۡفِلۡنِيهَا وَعَزَّنِي فِي ٱلۡخِطَابِ ۝ 15
(23) यह मेरा भाई है, इसके पास निनानवे दुंबियाँ हैं और मेरे पास सिर्फ़ एक ही दुंबी है। इसने मुझसे कहा कि यह एक दुंबी भी मेरे हवाले कर दे और इसने गुफ़्तगू में मुझे दबा लिया।”5
5. मुस्तग़ीस ने यह नहीं कहा कि मेरी दुंबी छीन ली, बल्कि यह कहा कि मेरी दुंबी भी मुझसे माँगी और यह चाहा कि वह उसके हवाले कर दूँ। चूँकि यह बड़ी शख़सियत का आदमी है इसलिए मुझपर इसका दबाव पड़ रहा है।
قَالَ لَقَدۡ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعۡجَتِكَ إِلَىٰ نِعَاجِهِۦۖ وَإِنَّ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلۡخُلَطَآءِ لَيَبۡغِي بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٍ إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَقَلِيلٞ مَّا هُمۡۗ وَظَنَّ دَاوُۥدُ أَنَّمَا فَتَنَّٰهُ فَٱسۡتَغۡفَرَ رَبَّهُۥ وَخَرَّۤ رَاكِعٗاۤ وَأَنَابَ۩ ۝ 16
(24) दाऊद ने जवाब दिया, “इस शख़्स ने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी मिला लेने का मुतालबा करके यक़ीनन तुझपर ज़ुल्म किया और वाक़िआ यह है कि मिल-जुलकर साथ रहनेवाले लोग अकसर एक-दूसरे पर ज़्यादतियाँ करते रहते हैं, बस वही लोग इससे बचे हुए हैं जो ईमान रखते और अमले-सॉलेह करते हैं, और ऐसे लोग कम ही हैं।” (यह बात कहते-कहते दाऊद समझ गया कि यह तो हमने दरअस्ल उसकी आज़माइश की है चुनाँचे, उसने अपने रब से माफ़ी माँगी और सजदे में गिर गया और रुजूअ कर लिया।
فَغَفَرۡنَا لَهُۥ ذَٰلِكَۖ وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ ۝ 17
(25) तब हमने उसका वह क़ुसूर माफ़ किया6 और यक़ीनन हमारे यहाँ उसके लिए तक़र्रुब का मक़ाम और बेहतर अंजाम है।
6. इससे मालूम हुआ कि हज़रत दाऊद (अलैहि०) से क़ुसूर तो ज़रूर हुआ था, और वह कोई ऐसा क़ुसूर था जो दुबियोंवाले मुक़द्दमे से किसी तरह की मुमासलत रखता था, इसी लिए उसका फ़ैसला सुनाते हुए मअन उनको यह ख़याल आया कि यह मेरी आज़माइश हो रही है, लेकिन उस क़ुसूर की नौईयत ऐसी शदीद न थी कि उसे माफ़ न किया जाता, या अगर माफ़ किया जाता तो वे अपने मर्तबा-ए-बलन्द से गिरा दिए जाते। अल्लाह तआला यहाँ ख़ुद तसरीह फ़रमा रहा है कि जब उन्होंने सजदे में गिरकर तौबा की तो न सिर्फ़ यह कि उन्हें माफ़ कर दिया गया, बल्कि दुनिया व आख़िरत में उनको जो बलन्द मक़ाम हासिल था उसमें भी कोई फ़र्क़ न आया।
يَٰدَاوُۥدُ إِنَّا جَعَلۡنَٰكَ خَلِيفَةٗ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱحۡكُم بَيۡنَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ ٱلۡهَوَىٰ فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدُۢ بِمَا نَسُواْ يَوۡمَ ٱلۡحِسَابِ ۝ 18
(26) (हमने उससे कहा) “ऐ दाऊद! हमने तुझे ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया है, लिहाज़ा तू लोगों के दरमियान हक़ के साथ हुकूमत कर और ख़ाहिशे-नफ़्स की पैरवी न कर कि वह तुझे अल्लाह की राह से भटका देगी। जो लोग अल्लाह की राह से भटकते हैं यक़ीनन उनके लिए सख़्त सज़ा है कि वे यौमुल-हिसाब को भूल गए।”
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا بَٰطِلٗاۚ ذَٰلِكَ ظَنُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنَ ٱلنَّارِ ۝ 19
(27) हमने इस आसमान और ज़मीन को, और इस दुनिया को जो उनके दरमियान है, फ़ुज़ूल पैदा नहीं कर दिया है। यह तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने कुफ़्र किया है, और ऐसे काफ़िरों के लिए बरबादी है जहन्नम की आग से।
سُورَةُ صٓ
38. सॉद
أَمۡ نَجۡعَلُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ كَٱلۡمُفۡسِدِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ نَجۡعَلُ ٱلۡمُتَّقِينَ كَٱلۡفُجَّارِ ۝ 20
(28) क्या हम उन लोगों को जो ईमान लाते और नेक आमाल करते हैं और उनको जो ज़मीन में फ़साद करनेवाले है यकसाँ कर दें? क्या मुत्तक़ियों को हम फ़ाजिरों जैसा कर दें?
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
صٓۚ وَٱلۡقُرۡءَانِ ذِي ٱلذِّكۡرِ
(1) सॉद, क़सम है नसीहत भरे क़ुरआन की
بَلِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي عِزَّةٖ وَشِقَاقٖ ۝ 21
(2) बल्कि यही लोग, जिन्होंने मानने से इनकार किया है, सख़्त तकब्बुर और ज़िद में मुब्तला हैं।1
1.  यानी इन मुनकिरीन के इनकार की वजह यह नहीं है कि जो दीन इनके सामने पेश किया जा रहा है उसमें कोई ख़लल है। बल्कि इसकी वजह सिर्फ़ इनकी झूठी शेख़ी, इनकी जाहिलाना नख़वत और इनकी हठधर्मी है।
كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ إِلَيۡكَ مُبَٰرَكٞ لِّيَدَّبَّرُوٓاْ ءَايَٰتِهِۦ وَلِيَتَذَكَّرَ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 22
(29) — यह एक बड़ा बरकतवाली किताब है जो (ऐ नबी!) हमने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल की है ताकि ये लोग इसकी आयात पर ग़ौर करें और अक़्ल व फ़िक्र रखनेवाले इससे सबक़ लें।
كَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَبۡلِهِم مِّن قَرۡنٖ فَنَادَواْ وَّلَاتَ حِينَ مَنَاصٖ ۝ 23
(3) इनसे पहले हम ऐसी कितनी ही क़ौमों को हलाक कर चुके हैं (और जब उनकी शामत आई है) तो वे चीख़ उठे हैं, मगर वह वक़्त बचने का नहीं होता।
هَٰذَا ذِكۡرٞۚ وَإِنَّ لِلۡمُتَّقِينَ لَحُسۡنَ مَـَٔابٖ ۝ 24
(49) ये एक ज़िक्र था। (अब सुनो कि) मुत्तक़ी लोगों के लिए यक़ीनन बेहतरीन ठिकाना है,
وَوَهَبۡنَا لِدَاوُۥدَ سُلَيۡمَٰنَۚ نِعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٌ ۝ 25
(30) और दाऊद को हमने सुलैमान (जैसा बेटा) अता किया, बेहतरीन बन्दा, कसरत से अपने रब की तरफ़ रुजूअ करनेवाला।
وَعَجِبُوٓاْ أَن جَآءَهُم مُّنذِرٞ مِّنۡهُمۡۖ وَقَالَ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا سَٰحِرٞ كَذَّابٌ ۝ 26
(4) इन लोगों को इस बात पर बड़ा ताज्जुब हुआ कि एक डरानेवाला ख़ुद इन्हीं में से आ गया। मुनकिरीन कहने लगे कि “यह साहिर है, सख़्त झूठा है,
جَنَّٰتِ عَدۡنٖ مُّفَتَّحَةٗ لَّهُمُ ٱلۡأَبۡوَٰبُ ۝ 27
(50) हमेशा रहनेवाली जन्नतें, जिनके दरवाज़े उनके लिए खुले होंगे।
إِذۡ عُرِضَ عَلَيۡهِ بِٱلۡعَشِيِّ ٱلصَّٰفِنَٰتُ ٱلۡجِيَادُ ۝ 28
(31) क़ाबिले-ज़िक्र है वह मौक़ा जब शाम के वक़्त उसके सामने ख़ूब सधे हुए घोड़े पेश किए गए
أَجَعَلَ ٱلۡأٓلِهَةَ إِلَٰهٗا وَٰحِدًاۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيۡءٌ عُجَابٞ ۝ 29
(5) क्या इसने सारे ख़ुदाओं की जगह बस एक ही ख़ुदा बना डाला? यह तो बड़ी अजीब बात है।”
مُتَّكِـِٔينَ فِيهَا يَدۡعُونَ فِيهَا بِفَٰكِهَةٖ كَثِيرَةٖ وَشَرَابٖ ۝ 30
(51) उनमें वे तकिए लगाए बैठे होंगे, ख़ूब-ख़ूब फवाक़ेह और मशरूबात तलब कर रहे होंगे,
فَقَالَ إِنِّيٓ أَحۡبَبۡتُ حُبَّ ٱلۡخَيۡرِ عَن ذِكۡرِ رَبِّي حَتَّىٰ تَوَارَتۡ بِٱلۡحِجَابِ ۝ 31
(32) तो उसने कहा, “मैंने इस माल की महब्बत अपने रब की याद की वजह से इख़्तियार की है।” यहाँ तक कि जब वे घोड़े निगाह से ओझल हो गए
وَٱنطَلَقَ ٱلۡمَلَأُ مِنۡهُمۡ أَنِ ٱمۡشُواْ وَٱصۡبِرُواْ عَلَىٰٓ ءَالِهَتِكُمۡۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيۡءٞ يُرَادُ ۝ 32
(6) और सरदाराने-क़ौम ये कहते हुए निकल गए कि “चलो और डटे रहो अपने माबूदों की इबादत पर। यह बात तो किसी और ही ग़रज़ से कही जा रही है।2
2. उनका मतलब यह था कि इस दाल में कुछ काला नज़र आता है, दरअस्त यह दावत इस ग़रज़ से दी जा रही है कि हम सब मुहम्मद (सल्ल०) के ताबे-फ़रमान हो जाएँ और ये हमपर अपना हुक्म चलाएँ।
۞وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ أَتۡرَابٌ ۝ 33
(52) और उनके पास शर्मीली हमसिन बीवियाँ होंगी।
رُدُّوهَا عَلَيَّۖ فَطَفِقَ مَسۡحَۢا بِٱلسُّوقِ وَٱلۡأَعۡنَاقِ ۝ 34
(33) तो (उसने हुक्म दिया कि) उन्हें मेरे पास वापस लाओ, फिर लगा उनकी पिंडलियों और गर्दनों पर हाथ फेरने।
مَا سَمِعۡنَا بِهَٰذَا فِي ٱلۡمِلَّةِ ٱلۡأٓخِرَةِ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا ٱخۡتِلَٰقٌ ۝ 35
(7) यह बात हमने ज़माना-ए-क़रीब की मिल्लत में किसी से नहीं सुनी। यह कुछ नहीं है मगर एक मनगढ़त बात।
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ ۝ 36
(53) ये वे चीज़ें हैं जिन्हें हिसाब के दिन अता करने का तुमसे वादा किया जा रहा है।
وَلَقَدۡ فَتَنَّا سُلَيۡمَٰنَ وَأَلۡقَيۡنَا عَلَىٰ كُرۡسِيِّهِۦ جَسَدٗا ثُمَّ أَنَابَ ۝ 37
(34) और (देखो कि) सुलैमान को भी हमने आज़माइश में डाला और उसकी कुर्सी पर एक जस्द लाकर डाल दिया। फिर उसने रुजूअ किया
أَءُنزِلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ مِنۢ بَيۡنِنَاۚ بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ مِّن ذِكۡرِيۚ بَل لَّمَّا يَذُوقُواْ عَذَابِ ۝ 38
(8) क्या हमारे दरमियान बस यही एक शख़्स रह गया था जिसपर अल्लाह का ज़िक्र नाज़िल कर दिया गया?” अस्ल बात यह है कि ये मेरे ‘ज़िक्र’ पर शक कर रहे हैं,3 और ये सारी बातें इसलिए कर रहे है कि इन्होंने मेरे अज़ाब का मज़ा चखा नहीं है।
3. ब-अलफ़ाज़े-दीगर अल्लाह तआला फ़रमाता है कि ऐ मुहम्मद! वे लोग दरअसल तुम्हें नहीं झुठला रहे है, बल्कि मुझे झुठला रहे हैं, इन्हें शक तुम्हारी सदाक़त पर नहीं है मेरी तालीमात पर है।
إِنَّ هَٰذَا لَرِزۡقُنَا مَا لَهُۥ مِن نَّفَادٍ ۝ 39
(54) यह हमारा रिज़्क़ है जो कभी ख़त्म होनेवाला नहीं।
قَالَ رَبِّ ٱغۡفِرۡ لِي وَهَبۡ لِي مُلۡكٗا لَّا يَنۢبَغِي لِأَحَدٖ مِّنۢ بَعۡدِيٓۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡوَهَّابُ ۝ 40
(35) और कहा कि “ऐ मेरे रब! मुझे माफ़ कर और मुझे वह बादशाही दे जो मेरे बाद किसी के लिए सज़ावार न हो, बेशक तू ही अस्ल दाता है।”7
7. सिलसिला-ए-कलाम के लिहाज़ से साफ़ मालूम होता है कि इस जगह यह बताना मक़सूद है कि अल्लाह तआला ने हज़रत दाऊद (अलैहि०) और हज़रत सुलैमान (अलैहि०) जैसे आली मर्तबा अम्बिया और महबूब बन्दों को भी मुहासबे किए बग़ैर नहीं छोड़ा है। जिस फ़ित्ने का यहाँ ज़िक्र किया गया है उसकी कोई यक़ीनी तफ़सील हमें मालूम नहीं है जिसपर मुफ़स्सिरीन का इत्तिफ़ाक़ हो। लेकिन हज़रत सुलैमान (अलैहि०) की दुआ के ये अलफ़ाज़ कि “ऐ मेरे रब! मुझे माफ कर दे और मुझको वह बादशाही दे जो मेरे बाद किसी के लिए सज़ावार न हो,” अगर तारीख़े-बनी-इसराईल की रौशनी में पढ़े जाएँ तो बज़ाहिर यूँ महसूस होता है कि उनके दिल में ग़ालिबन यह ख़ाहिश थी कि उनके बाद उनका बेटा जानशीन हो और हुकूमत व फ़रमाँरवाई आइन्दा उन्हीं की नस्ल में बाक़ी रहे। इसी चीज़ को अल्लाह तआला ने उनके हक़ में ‘फ़ित्ना’ क़रार दिया और इसपर वह उस वक़्त मुतनब्बेह हुए जब उनका वली-अहद रहबआम एक ऐसा नालायक़ नौजवान बनकर उठा जिसके लच्छन साफ़ बता रहे थे कि वह दाऊद व सुलैमान (अलैहि०) की सल्तनत चार दिन भी न सम्भाल सकेगा। उनकी कुर्सी पर एक जस्द लाकर डाले जाने का मतलब ग़ालिबन यही है कि जिस बेटे को वे अपनी कुर्सी पर बिठाना चाहते थे वह एक कुन्दा-ए-नातराश था।
هَٰذَاۚ وَإِنَّ لِلطَّٰغِينَ لَشَرَّ مَـَٔابٖ ۝ 41
(55) यह तो है मुत्तक़ियों का अंजाम। और सरकशों के लिए बदतरीन ठिकाना है,
جَهَنَّمَ يَصۡلَوۡنَهَا فَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ۝ 42
(56) जहन्नम, जिसमें वे झुलसे जाएँगे, बहुत ही बुरी क़ियामगाह।
هَٰذَا فَلۡيَذُوقُوهُ حَمِيمٞ وَغَسَّاقٞ ۝ 43
(57) यह है उनके लिए, पस वे मज़ा चखें खौलते हुए पानी और पीप-लहू
وَءَاخَرُ مِن شَكۡلِهِۦٓ أَزۡوَٰجٌ ۝ 44
(58) और इसी क़िस्म की दूसरी तलख़ियों का।
هَٰذَا فَوۡجٞ مُّقۡتَحِمٞ مَّعَكُمۡ لَا مَرۡحَبَۢا بِهِمۡۚ إِنَّهُمۡ صَالُواْ ٱلنَّارِ ۝ 45
(59) (वे जहन्नम की तरफ़ अपने पैरौओं को आते देखकर आपस में कहेंगे) “यह एक लश्कर तुम्हारे पास घुसा चला आ रहा है। कोई ख़ुशआमदीद इनके लिए नहीं है, ये आग में झुलसनेवाले हैं।”
فَسَخَّرۡنَا لَهُ ٱلرِّيحَ تَجۡرِي بِأَمۡرِهِۦ رُخَآءً حَيۡثُ أَصَابَ ۝ 46
(36) तब हमने उसके लिए हवा को मुसख़्ख़र कर दिया, जो उसके हुक्म से नर्मी के साथ चलती थी जिधर वह चाहता था,
قَالُواْ بَلۡ أَنتُمۡ لَا مَرۡحَبَۢا بِكُمۡۖ أَنتُمۡ قَدَّمۡتُمُوهُ لَنَاۖ فَبِئۡسَ ٱلۡقَرَارُ ۝ 47
(60) वे उनको जवाब देंगे, “नहीं, बल्कि तुम ही झुलसे जा रहे हो, कोई ख़ैरमक़दम तुम्हारे लिए नहीं। तुम ही तो यह अंजाम हमारे आगे लाए हो, कैसी बुरी है यह जाए-क़रार।”
وَٱلشَّيَٰطِينَ كُلَّ بَنَّآءٖ وَغَوَّاصٖ ۝ 48
(37) और शयातीन को मुसख़्ख़र कर दिया, हर तरह के मेमार और ग़ोताख़ोर
قَالُواْ رَبَّنَا مَن قَدَّمَ لَنَا هَٰذَا فَزِدۡهُ عَذَابٗا ضِعۡفٗا فِي ٱلنَّارِ ۝ 49
(61) फिर वे कहेंगे, “ऐ हमारे रब! जिसने हमें इस अंजाम को पहुँचाने का बन्दोबस्त किया उसको दोज़ख़ का दोहरा अज़ाब दे।”
وَءَاخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي ٱلۡأَصۡفَادِ ۝ 50
और दूसरे जो पाबन्दे-सलासिल थे।
وَقَالُواْ مَا لَنَا لَا نَرَىٰ رِجَالٗا كُنَّا نَعُدُّهُم مِّنَ ٱلۡأَشۡرَارِ ۝ 51
(62) और वे आपस में कहेंगे, “क्या बात है, हम उन लोगों को कहीं नहीं देखते जिन्हें हम दुनिया में बुरा समझते थे?
هَٰذَا عَطَآؤُنَا فَٱمۡنُنۡ أَوۡ أَمۡسِكۡ بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 52
(39) (हमने उससे कहा) “यह हमारी बख़शिश है, तुझे इख़्तियार है जिसे चाहे दे और जिससे चाहे रोक ले, कोई हिसाब नहीं।”
أَتَّخَذۡنَٰهُمۡ سِخۡرِيًّا أَمۡ زَاغَتۡ عَنۡهُمُ ٱلۡأَبۡصَٰرُ ۝ 53
(63) हमने यूँ ही उनका मज़ाक़ बना लिया था, या वे कहीं नज़रों से ओझल हैं?”
وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ ۝ 54
(40) यक़ीनन उसके लिए हमारे यहाँ तक़र्रुब का मक़ाम और बेहतर अंजाम है।
إِنَّ ذَٰلِكَ لَحَقّٞ تَخَاصُمُ أَهۡلِ ٱلنَّارِ ۝ 55
(64) बेशक यह बात सच्ची है, अहले-दोज़ख़ में यही कुछ झगड़े होनेवाले हैं।
وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَآ أَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلشَّيۡطَٰنُ بِنُصۡبٖ وَعَذَابٍ ۝ 56
(41) और हमारे बन्दे अय्यूब का ज़िक्र करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे तकलीफ़ और अज़ाब में डाल दिया है।8
8. इसका अह मतलब नहीं है कि शैतान ने मुझे बीमारी में मुब्तला कर दिया है और मेरे ऊपर मसाइब नाज़िल कर दिए हैं, बल्कि इसका सही मतलब यह है कि बीमारी की शिद्दत, माल व दौलत के ज़ियाअ, और अइज़्ज़ा व अक़रिहबा के मुँह मोड़ लेने से मैं जिस तकलीफ़ और अज़ाब में मुब्तला हूँ उससे बढ़कर तकलीफ़ और अज़ाब मेरे लिए यह है कि शैतान अपने वसवसों से मुझे तंग कर रहा है, वह इन हालात में मुझे अपने रब से मायूस करने की कोशिश करता है, मुझे अपने रब का नाशुक्रा बनाना चाहता है और इस बात के दर-पै है कि मैं दामने-सब्र हाथ से छोड़ बैठूँ।
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ مُنذِرٞۖ وَمَا مِنۡ إِلَٰهٍ إِلَّا ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ ۝ 57
(65) (ऐ नबी!) इनसे कहो, “मैं तो बस ख़बरदार कर देनेवाला हूँ। कोई हक़ीक़ी माबूद नहीं मगर अल्लाह जो यकता है, सबपर ग़ालिब,
ٱرۡكُضۡ بِرِجۡلِكَۖ هَٰذَا مُغۡتَسَلُۢ بَارِدٞ وَشَرَابٞ ۝ 58
(42) (हमने उसे हुक्म दिया) “अपना पाँव ज़मीन पर मार, यह है ठण्डा पानी नहाने के लिए और पीने के लिए।”
رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّٰرُ ۝ 59
(66) आसमानों और ज़मीन का मालिक और उन सारी चीजों का मालिक जो उनके दरमियान हैं, ज़बरदस्त और दरगुज़र करनेवाला।”
وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ أَهۡلَهُۥ وَمِثۡلَهُم مَّعَهُمۡ رَحۡمَةٗ مِّنَّا وَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 60
(43) हमने उसे उसके अह्ल व अयाल वापस दिए और उनके साथ उतने ही और, अपनी तरफ़ से रहमत के तौर पर,
قُلۡ هُوَ نَبَؤٌاْ عَظِيمٌ ۝ 61
(67) इनसे कहो, “यह एक बड़ी ख़बर है।
وَخُذۡ بِيَدِكَ ضِغۡثٗا فَٱضۡرِب بِّهِۦ وَلَا تَحۡنَثۡۗ إِنَّا وَجَدۡنَٰهُ صَابِرٗاۚ نِّعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٞ ۝ 62
(44) और अक़्ल व फ़िक्र रखनेवालों के लिए दर्स के तौर पर, (और हमने उससे कहा) “तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार दे, अपनी क़सम न तोड़।”9 हमने उसे साबिर पाया, बेहतरीन बन्दा, अपने रब की तरफ़ बहुत रुजूअ करनेवाला।
9. इन अलफा़ज़ पर ग़ौर करने से यह बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि हज़रत अय्यूब (अलैहि०) ने बीमारी की हालत में नाराज़ होकर किसी को मारने की क़सम खाई थी (रिवायात यह है कि बीवी को मारने की क़सम खाई थी) और इस क़सम ही में उन्होंने यह भी कहा था कि तुझे इतने कोड़े मारूँगा। जब अल्लाह तआला ने उनको सेहते-कामिला अता फ़रमा दी और हालते-मरज़ का वह ग़ुस्सा दूर हो गया, जिसमें यह क़सम खाई गई थी, तो उनको यह परेशानी लाहिक़ हुई कि क़सम पूरी करता हूँ तो ख़ाह-मख़ाह एक बेगुनाह को मारना पड़ेगा, और क़सम तोड़ता हूँ तो यह भी एक गुनाह का इर्तिकाब है। इस मुशकिल से अल्लाह तआला ने उनको इस तरह निकाला कि उन्हें हुक्म दिया, एक झाड़ू लो जिसमें उत्तने हो तिनके हों जितने कोड़े तुमने मारने की क़सम खाई थी, और उस झाड़ू से उस शख़्स को बस एक ज़र्ब लगा दो ताकि तुम्हारी क़सम भी पूरी हो जाए और उसे नारवा तकलीफ़ भी न पहुँचे।
أَنتُمۡ عَنۡهُ مُعۡرِضُونَ ۝ 63
(68) जिसको सुनकर तुम मुँह फेरते हो।”
وَٱذۡكُرۡ عِبَٰدَنَآ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ أُوْلِي ٱلۡأَيۡدِي وَٱلۡأَبۡصَٰرِ ۝ 64
(45) और हमारे बन्दों, इबराहीम और इसहाक़ और याक़ूब का ज़िक्र करो। बड़ी क़ुव्वते-अमल रखनेवाले और दीदावर लोग थे।
مَا كَانَ لِيَ مِنۡ عِلۡمِۭ بِٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰٓ إِذۡ يَخۡتَصِمُونَ ۝ 65
(69) (इनसे कहो) “मुझे उस वक़्त की कोई ख़बर न थी जब मलए-आला में झगड़ा हो रहा था।
إِنَّآ أَخۡلَصۡنَٰهُم بِخَالِصَةٖ ذِكۡرَى ٱلدَّارِ ۝ 66
(46) हमने उनको एक ख़ालिस सिफ़त की बिना पर बरगुज़ीदा किया था, और वह दारे-आख़िरत की याद थी।
إِن يُوحَىٰٓ إِلَيَّ إِلَّآ أَنَّمَآ أَنَا۠ نَذِيرٞ مُّبِينٌ ۝ 67
(70) मुझको तो वह्य के ज़रिए से ये बातें सिर्फ़ इसलिए बताई जाती हैं कि मैं खुला-खुला ख़बरदार करनेवाला हूँ।”
وَإِنَّهُمۡ عِندَنَا لَمِنَ ٱلۡمُصۡطَفَيۡنَ ٱلۡأَخۡيَارِ ۝ 68
(47) यक़ीनन हमारे यहाँ उनका शुमार चुने हुए नेक अशख़ास में है।
إِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِنِّي خَٰلِقُۢ بَشَرٗا مِّن طِينٖ ۝ 69
(71) जब तेरे रब ने फ़रिश्तों से कहा, “मैं मिट्टी से एक बशर बनानेवाला हूँ,
وَٱذۡكُرۡ إِسۡمَٰعِيلَ وَٱلۡيَسَعَ وَذَا ٱلۡكِفۡلِۖ وَكُلّٞ مِّنَ ٱلۡأَخۡيَارِ ۝ 70
(48) और इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुल-किफ़्ल का ज़िक्र करो, ये सब नेक लोगों में से थे।
فَإِذَا سَوَّيۡتُهُۥ وَنَفَخۡتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُواْ لَهُۥ سَٰجِدِينَ ۝ 71
(72) फिर जब मैं उसे पूरी तरह बना दूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाओ।”
فَسَجَدَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ كُلُّهُمۡ أَجۡمَعُونَ ۝ 72
(73) इस हुक्म के मुताबिक़ फ़रिश्ते सब-के-सब सजदे में गिर गए,
إِلَّآ إِبۡلِيسَ ٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 73
(74) मगर इबलीस ने अपनी बड़ाई का घमण्ड किया और वह काफ़िरों में से हो गया।
قَالَ يَٰٓإِبۡلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَن تَسۡجُدَ لِمَا خَلَقۡتُ بِيَدَيَّۖ أَسۡتَكۡبَرۡتَ أَمۡ كُنتَ مِنَ ٱلۡعَالِينَ ۝ 74
(75) रब ने फ़रमाया, “ऐ इबलीस! तुझे क्या चीज़ उसको सजदा करने से मानेअ हुई जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया है? तू बड़ा बन रहा है या तू है ही कुछ ऊँचे दरजे की हस्तियों में से?”
قَالَ أَنَا۠ خَيۡرٞ مِّنۡهُ خَلَقۡتَنِي مِن نَّارٖ وَخَلَقۡتَهُۥ مِن طِينٖ ۝ 75
(76) उसने जवाब दिया, “मैं उससे बेहतर हूँ, आपने मुझको आग से पैदा किया है और उसको मिट्टी से|”
قَالَ فَٱخۡرُجۡ مِنۡهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٞ ۝ 76
(77) फ़रमाया, अच्छा तो यहाँ से निकल जा, तू मरदूद है
وَإِنَّ عَلَيۡكَ لَعۡنَتِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلدِّينِ ۝ 77
(78) और तेरे ऊपर यौमुल-जज़ा तक मेरी लानत है।”
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرۡنِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 78
(79) वह बोला, “ऐ मेरे रब! यह बात है तो फिर उस वक़्त तक के लिए मुझे मुहलत दे दे जब ये लोग दोबारा उठाए जाएँगे।”
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ ٱلۡمُنظَرِينَ ۝ 79
(80) फ़रमाया, “अच्छा, तुझे उस रोज़ तक की मुहलत है
إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡوَقۡتِ ٱلۡمَعۡلُومِ ۝ 80
(81) जिसका वक़्त मुझे मालूम है।
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغۡوِيَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 81
(82) उसने कहा, “तेरी इज़्ज़त की कसम! मैं इन सब लोगों को बहकाकर रहूँगा,
إِلَّا عِبَادَكَ مِنۡهُمُ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 82
(83) बजुज़ तेरे उन बन्दों के जिन्हें तूने ख़ालिस कर लिया है।”
قَالَ فَٱلۡحَقُّ وَٱلۡحَقَّ أَقُولُ ۝ 83
(84) फ़रमाया, हक़ यह है, और मैं हक़ ही कहा करता हूँ
لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَمِمَّن تَبِعَكَ مِنۡهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 84
(85) कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सब लोगों से भर दूँगा जो इन इनसानों में से तेरी पैरवी करेंगे।”
قُلۡ مَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٖ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُتَكَلِّفِينَ ۝ 85
(86) (ऐ नबी!) इनसे कह दो कि मैं इस तबलीग़ पर तुमसे कोई अज्र नहीं माँगता, और न मैं बनावटी लोगों में से हूँ।
إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرٞ لِّلۡعَٰلَمِينَ ۝ 86
(87) यह तो एक नसीहत है तमाम जहानवालों के लिए।
وَلَتَعۡلَمُنَّ نَبَأَهُۥ بَعۡدَ حِينِۭ ۝ 87
(88) और थोड़ी मुद्दत ही गुज़रेगी कि तुम्हें इसका हाल ख़ुद मालूम हो जाएगा।