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تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ

39. अज़-ज़ुमर

(मक्‍का में उतरी, आयतें 75)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम आयत नं0 71 और 73 ("वे लोग जिन्होंने इंकार किया था, जहन्नम की ओर गिरोह के गिरोह (ज़ुमरा) हाँके जाएँगे" और "जो लोग अपने रब की अवज्ञा से बचते थे, उन्हें गिरोह के गिरोह (ज़ुमरा) जन्नत की ओर ले जाया जाएगा।") से लिया गया है। मतलब यह है कि वह सूरा जिसमें शब्द 'ज़ुमर' आया है।

उतरने का समय

आयत नं0 10 (और अल्लाह की धरती विशाल है) से इस बात की और स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह सूरा हबशा की हिजरत से पहले उतरी थी।

विषय और वार्ता

यह पूरी सूरा एक उत्तम और अति प्रभावकारी अभिभाषण है जो हबशा की हिजरत से कुछ पहले मक्का-मुअज़्ज़मा के अत्याचार और हिंसा से परिपूर्ण वातावरण में दिया गया था। इसका सम्बोधन अधिकतर क़ुरैश के इस्लाम-विरोधियों से है, यद्यपि कहीं-कहीं ईमानवालों को भी सम्बोधित किया गया है। इसमें हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सन्देश की दावत का मूल उद्देश्य बताया गया है और वह यह है कि इंसान अल्लाह की ख़ालिस (विशुद्ध) बन्दगी अपनाए और किसी दूसरे के आज्ञापालन और इबादत से अपनी ख़ुदापरस्ती को दूषित न करे। इस बुनियादी बात को बार-बार अलग-अलग ढंग से पेश करते हुए बहुत ही ज़ोरदार तरीक़े से तौहीद (एकेश्वरवाद) का सत्य होना और उसे मानने के अच्छे नतीजे, और शिर्क (बहुदेववाद) की ग़लती और उसपर जमे रहने के बुरे नतीजों को स्पष्ट किया गया है और लोगों को दावत दी गई है कि वे अपने ग़लत रवैये को छोड़कर अपने रब की दयालुता की ओर पलट आएँ। इस सिलसिले में ईमानवालों को निर्देश दिया गया है कि अगर अल्लाह की बन्दगी के लिए एक जगह तंग हो गई है तो उसकी धरती फैली हुई है, अपना दीन बचाने के लिए किसी और तरफ़ निकल खड़े हो, अल्लाह तुम्हारे धैर्य का बदला देगा। दूसरी ओर नबी (सल्ल०) से कहा गया है कि इन इस्लाम-विरोधियों को इस ओर से बिल्कुल निराश कर दो कि उनका अत्याचार कभी तुमको इस राह से फेर सकेगा।

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تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ
(1) इस किताब का नुज़ूल अल्लाह ज़बरदस्त और दाना की तरफ़ से है।
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ فَٱعۡبُدِ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ ۝ 1
(2) (ऐ नबी!) यह किताब हमने तुम्हारी तरफ़ बरहक़ नाज़िल की है। लिहाज़ा तुम अल्लाह ही की बन्दगी करो, दीन को उसी के लिए ख़ालिस करते हुए।
أَلَا لِلَّهِ ٱلدِّينُ ٱلۡخَالِصُۚ وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ مَا نَعۡبُدُهُمۡ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَآ إِلَى ٱللَّهِ زُلۡفَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ فِي مَا هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ كَٰذِبٞ كَفَّارٞ ۝ 2
(3) ख़बरदार, दीने-ख़ालिस अल्लाह का हक़ है। रहे वे लोग जिन्होंने उसके सिवा दूसरे सरपरस्त बना रखे हैं (और अपने इस फ़ेल की तौजीह यह करते हैं कि) हम तो उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि वे अल्लाह तक हमारी रसाई करा दें, अल्लाह यक़ीनन उनके दरमियान उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा जिनमें वे इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं। अल्लाह किसी ऐसे शख़्स को हिदायत नहीं देता जो झूठा और मुनकिरे-हक़ हो।
لَّوۡ أَرَادَ ٱللَّهُ أَن يَتَّخِذَ وَلَدٗا لَّٱصۡطَفَىٰ مِمَّا يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ سُبۡحَٰنَهُۥۖ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ ۝ 3
(4) अगर अल्लाह किसी को बेटा बनाना चाहता तो अपनी मख़लूक़ में से जिसको चाहता बरगुज़ीदा कर लेता, पाक है वह इससे (कि कोई उसका बेटा हो), वह अल्लाह है अकेला और सबपर ग़ालिब।
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ يُكَوِّرُ ٱلَّيۡلَ عَلَى ٱلنَّهَارِ وَيُكَوِّرُ ٱلنَّهَارَ عَلَى ٱلَّيۡلِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمًّىۗ أَلَا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّٰرُ ۝ 4
(5) उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ पैदा किया है। वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है। उसी ने सूरज और चाँद को इस तरह मुसख़्ख़र कर रखा है कि हर एक, एक वक़्ते-मुक़र्रर तक चले जा रहा है। जान रखो, वह ज़बरदस्त है और दरगुज़र करनेवाला है।
خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ ثُمَّ جَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ ثَمَٰنِيَةَ أَزۡوَٰجٖۚ يَخۡلُقُكُمۡ فِي بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡ خَلۡقٗا مِّنۢ بَعۡدِ خَلۡقٖ فِي ظُلُمَٰتٖ ثَلَٰثٖۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ ۝ 5
(6) उसी ने तुमको एक जान से पैदा किया, फिर वही है जिसने उस जान से उसका जोड़ा बनाया। और उसी ने तुम्हारे लिए मवेशियों में से आठ नर व मादा पैदा किए।1 वह तुम्हारी माँओं के पेटों में तीन-तीन तारीक पर्दों के अन्दर तुम्हें एक के बाद एक शक्ल देता चला जाता है।2 यही अल्लाह (जिसके ये काम हैं) तुम्हारा रब है, बादशाही उसी की है। कोई माबूद उसके सिवा नहीं है, फिर तुम किधर से फिराए जा रहे हो?
1. ‘मवेशी’ से मुराद हैं ऊँट, गाय, भेड़ और बकरी। उनके चार नर और चार मादा मिलकर आठ नर व मादा होते हैं।
2. तीन परदों से मुराद है पेट, गर्भाशय और वह झिल्ली जिसमें बच्चा लिपटा हुआ होता है।2. ‘तीन पर्दो’ से मुराद है पेट, रहिम और मशीमा (वह झिल्ली जिसमें बच्चा लिपटा हुआ होता है)।
إِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمۡۖ وَلَا يَرۡضَىٰ لِعِبَادِهِ ٱلۡكُفۡرَۖ وَإِن تَشۡكُرُواْ يَرۡضَهُ لَكُمۡۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 6
(7) अगर तुम कुफ़्र करो तो अल्लाह तुमसे बेनियाज़ है, लेकिन वह अपने बन्दों के लिए कुफ़्र को पसन्द नहीं करता, और अगर तुम शुक्र करो तो उसे वह तुम्हारे लिए पसन्द करता है। कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। आख़िरकार तुम सबको अपने रब की तरफ़ पलटना है, फिर वह तुम्हें बता देगा कि तुम क्या करते रहे हो, वह तो दिलों का हाल तक जानता है।
وَٱلَّذِينَ ٱجۡتَنَبُواْ ٱلطَّٰغُوتَ أَن يَعۡبُدُوهَا وَأَنَابُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰۚ فَبَشِّرۡ عِبَادِ ۝ 7
(17) बख़िलाफ़ इसके जिन लोगों ने ताग़ूत की बन्दगी से इजतिनाब किया और अल्लाह की तरफ़ रुजूअ कर लिया उनके लिए ख़ुशख़बरी है। पस (ऐ नबी!) बशारत दे दो मेरे उन बन्दों को
۞وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَا رَبَّهُۥ مُنِيبًا إِلَيۡهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُۥ نِعۡمَةٗ مِّنۡهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدۡعُوٓاْ إِلَيۡهِ مِن قَبۡلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادٗا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِۦۚ قُلۡ تَمَتَّعۡ بِكُفۡرِكَ قَلِيلًا إِنَّكَ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلنَّارِ ۝ 8
(8) इनसान पर जब कोई आफ़त आती है तो वह अपने रब की तरफ़ रुजूअ करके उसे पुकारता है। फिर जब उसका रब उसे अपनी नेमत से नवाज़ देता है तो वह उस मुसीबत को भूल जाता है जिसपर वह पहले पुकार रहा था और दूसरों को अल्लाह का हमसर ठहराता है, ताकि उसकी राह से गुमराह करे। (ऐ नबी!) उससे कहो कि थोड़े दिन अपने कुफ़्र से लुत्फ़ उठा ले, यक़ीनन तू, दोज़ख़ में जानेवाला है।
ٱلَّذِينَ يَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقَوۡلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحۡسَنَهُۥٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ هَدَىٰهُمُ ٱللَّهُۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمۡ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 9
(18) जो बात को ग़ौर से सुनते हैं और उसके बेहतरीन पहलू की पैरवी करते हैं। ये वे लोग हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत बख़्शी है और यही दानिशमन्द हैं।
أَمَّنۡ هُوَ قَٰنِتٌ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ سَاجِدٗا وَقَآئِمٗا يَحۡذَرُ ٱلۡأٓخِرَةَ وَيَرۡجُواْ رَحۡمَةَ رَبِّهِۦۗ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُونَ وَٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 10
(9) (क्या इस शख़्स की रविश बेहतर है या उस शख़्स की) जो मुतीए-फ़रमान है, रात की घड़ियों में खड़ा रहता और सजदे करता है, आख़िरत से डरता और अपने रब की रहमत से उम्मीद लगाता है? इनसे पूछो, क्या जाननेवाले और न जाननेवाले दोनों कभी यकसाँ हो सकते हैं? नसीहत तो अक़्ल रखनेवाले ही क़ुबूल करते हैं।
أَفَمَنۡ حَقَّ عَلَيۡهِ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي ٱلنَّارِ ۝ 11
(19) (ऐ नबी!) उस शख़्स को कौन बचा सकता है जिसपर अज़ाब का फ़ैसला चस्पाँ हो चुका हो? क्या तुम उसे बचा सकते हो जो आग में गिर चुका हो?
قُلۡ يَٰعِبَادِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۗ وَأَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٌۗ إِنَّمَا يُوَفَّى ٱلصَّٰبِرُونَ أَجۡرَهُم بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 12
(10) (ऐ नबी!) कहो कि ऐ मेरे बन्दो, जो ईमान लाए हो! अपने रब से डरो। जिन लोगों ने इस दुनिया में नेक रवैया इख़्तियार किया है उनके लिए भलाई है। और ख़ुदा की ज़मीन वसीअ है,3 सब्र करनेवालों को तो उनका अज्र बेहिसाब दिया जाएगा।
3. यानी अगर एक शहर या इलाक़ा या मुल्क अल्लाह की बन्दगी करनेवालों के लिए तंग हो गया है तो दूसरी जगह चले जाओ जहाँ ये मुशकिलात न हों।
لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ غُرَفٞ مِّن فَوۡقِهَا غُرَفٞ مَّبۡنِيَّةٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ لَا يُخۡلِفُ ٱللَّهُ ٱلۡمِيعَادَ ۝ 13
(20) अलबत्ता जो लोग अपने रब से डरकर रहे उनके लिए बलन्द इमारतें हैं मंज़िल-पर-मंज़िल बनी हुई, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। ये अल्लाह का वादा है, अल्लाह कभी अपने वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं करता।
قُلۡ إِنِّيٓ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ ۝ 14
(11) (ऐ नबी!) इनसे कहो, मुझे हुक्म दिया गया है कि दीन को अल्लाह के लिए ख़ालिस करके उसकी बन्दगी करूँ,
وَأُمِرۡتُ لِأَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 15
(12) और मुझे हुक्म दिया गया है कि सबसे पहले मैं ख़ुद मुस्लिम बनूँ।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَلَكَهُۥ يَنَٰبِيعَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ يُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعٗا مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرّٗا ثُمَّ يَجۡعَلُهُۥ حُطَٰمًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 16
(21) क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया, फिर उसको सोतों और चश्मों और दरियाओं की शक्ल4 में ज़मीन के अन्दर जारी किया, फिर उस पानी के ज़रिए से वह तरह-तरह की खेतियाँ निकालता है, जिनकी क़िस्में मुख़्तलिफ़ हैं, फिर वे खेतियाँ पककर सूख जाती हैं, फिर तुम देखते हो कि वे ज़र्द पड़ गईं, फिर आख़िरकार अल्लाह उनको भुस बना देता है। दर-हक़ीक़त इसमें एक सबक़ है अक़्ल रखनेवालों के लिए।
4. अस्ल मैं लफ़्ज़ ‘यनाबीअ’ इस्तेमाल हुआ है जिसका इतलाक़ तीनों चीज़ों पर होता है।
قُلۡ إِنِّيٓ أَخَافُ إِنۡ عَصَيۡتُ رَبِّي عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 17
(13) कहो, अगर मैं अपने रब की नाफ़रमानी करुँ तो मुझे एक बड़े दिन के अज़ाब का ख़ौफ़ है।
أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٖ مِّن رَّبِّهِۦۚ فَوَيۡلٞ لِّلۡقَٰسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ أُوْلَٰٓئِكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ ۝ 18
(22) अब क्या वह शख़्स जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया और वह अपने रब की तरफ़ से एक रौशनी पर चल रहा है (उस शख़्स की तरह हो सकता है जिसने इन बातों से कोई सबक़ न लिया?) तबाही है उन लोगों के लिए जिनके दिल अल्लाह की नसीहत से और ज़्यादा सख़्त हो गए। वे खुली गुमराही में पड़े हुए हैं।
قُلِ ٱللَّهَ أَعۡبُدُ مُخۡلِصٗا لَّهُۥ دِينِي ۝ 19
(14) कह दो कि मैं तो अपने दीन को अल्लाह के लिए ख़ालिस करके उसी की बन्दगी करूँगा,
ٱللَّهُ نَزَّلَ أَحۡسَنَ ٱلۡحَدِيثِ كِتَٰبٗا مُّتَشَٰبِهٗا مَّثَانِيَ تَقۡشَعِرُّ مِنۡهُ جُلُودُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمۡ وَقُلُوبُهُمۡ إِلَىٰ ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُدَى ٱللَّهِ يَهۡدِي بِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٍ ۝ 20
(23) अल्लाह ने बेहतरीन कलाम उतारा है, एक ऐसी किताब जिसके तमाम अजज़ा हमरंग है और जिसमें बार-बार मज़ामीन दोहराए गए हैं। उसे सुनकर उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने रब से डरनेवाले हैं, और फिर उनके जिस्म और उनके दिल नर्म होकर अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ राग़िब हो जाते हैं। यह अल्लाह की हिदायत है जिससे वह राहे-रास्त पर ले आता है, जिसे चाहता है। और जिसे अल्लाह ही हिदायत न दे उसके लिए फिर कोई हादी नहीं है।
فَٱعۡبُدُواْ مَا شِئۡتُم مِّن دُونِهِۦۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡخَٰسِرِينَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِيهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 21
(15) तुम उसके सिवा जिस-जिस की बन्दगी करना चाहो करते रहो। कहो, अस्ल दिवालिए तो वही हैं जिन्होंने क़ियामत के रोज़ अपने-आपको और अपने अहलो-अयाल को घाटे में डाल दिया। ख़ूब सुन रखो, यही खुला दिवाला है।
أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجۡهِهِۦ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَقِيلَ لِلظَّٰلِمِينَ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ ۝ 22
(24) अब उस शख़्स की बदहाली का तुम क्या अन्दाज़ा कर सकते हो जो क़ियामत के रोज़ अज़ाब की सख़्त मार अपने मुँह पर लेगा? ऐसे ज़ालिमों से तो कह दिया जाएगा कि अब चखो मज़ा उस कमाई का जो तुम करते रहे थे।
لَهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ ظُلَلٞ مِّنَ ٱلنَّارِ وَمِن تَحۡتِهِمۡ ظُلَلٞۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ ٱللَّهُ بِهِۦ عِبَادَهُۥۚ يَٰعِبَادِ فَٱتَّقُونِ ۝ 23
(16) उनपर आग की छतरियाँ ऊपर से भी छाई होंगी और नीचे से भी। यह वह अंजाम है जिससे अल्लाह अपने बन्दों को डराता है, पस ऐ मेरे बन्दो! मेरे ग़ज़ब से बचो।
كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 24
(25) इनसे पहले भी बहुत-से लोग इसी तरह झुठला चुके हैं। आख़िर उनपर अज़ाब ऐसे रुख़ से आया जिधर उनका ख़याल भी न जा सकता था।
أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِكَافٍ عَبۡدَهُۥۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 25
(36) (ऐ नबी!) क्या अल्लाह अपने बन्दे के लिए काफ़ी नहीं है? ये लोग उसके सिवा दूसरों से तुमको डराते हैं। हालाँकि अल्लाह जिसे गुमराही में डाल दे उसे कोई रास्ता दिखानेवाला नहीं है
فَأَذَاقَهُمُ ٱللَّهُ ٱلۡخِزۡيَ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ۝ 26
(26) फिर अल्लाह ने उनको दुनिया ही की ज़िन्दगी में रुसवाई का मज़ा चखाया, और आख़िरत का अज़ाब तो इससे शदीदतर है, काश ये लोग जानते!
وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 27
(27) हमने इस क़ुरआन में लोगों को तरह-तरह की मिसालें दी है कि ये होश में आएँ।
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّضِلٍّۗ أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِعَزِيزٖ ذِي ٱنتِقَامٖ ۝ 28
(37) और जिसे वह हिदायत दे उसे भटकानेवाला भी कोई नहीं। क्या अल्लाह ज़बरदस्त और इन्तिक़ाम लेनेवाला नहीं है?
فَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلۡنَٰهُ نِعۡمَةٗ مِّنَّا قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمِۭۚ بَلۡ هِيَ فِتۡنَةٞ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 29
(49) यही इनसान जब ज़रा-सी मुसीबत इसे छू जाती है तो हमें पुकारता है, और जब हम इसे अपनी तरफ़ से नेमत देकर अफार देते हैं तो कहता है, “यह तो मुझे इल्म की बिना पर दिया गया है!” नहीं, बल्कि यह आज़माइश है, मगर इनमें से अकसर लोग जानते नहीं हैं।
قُرۡءَانًا عَرَبِيًّا غَيۡرَ ذِي عِوَجٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ ۝ 30
(28) ऐसा क़ुरआन जो अरबी ज़बान में है, जिसमें कोई टेढ़ नहीं है, ताकि ये बुरे अंजाम से बचें।
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَرَءَيۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَنِيَ ٱللَّهُ بِضُرٍّ هَلۡ هُنَّ كَٰشِفَٰتُ ضُرِّهِۦٓ أَوۡ أَرَادَنِي بِرَحۡمَةٍ هَلۡ هُنَّ مُمۡسِكَٰتُ رَحۡمَتِهِۦۚ قُلۡ حَسۡبِيَ ٱللَّهُۖ عَلَيۡهِ يَتَوَكَّلُ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ ۝ 31
(38) इन लोगों से अगर तुम पूछो कि ज़मीन और आसमानों को किसने पैदा किया तो ये ख़ुद कहेंगे कि अल्लाह ने। इनसे पूछो, “जब हक़ीक़त यह है तो तुम्हारा क्या ख़याल है कि अगर अल्लाह मुझे कोई नुक़सान पहुँचाना चाहे तो क्या तुम्हारी ये देवियाँ, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो मुझे उसके पहुँचाए हुए नुक़सान से बचा लेंगी? या अल्लाह मुझपर मेहरबानी करना चाहे तो क्या ये उसकी रहमत को रोक सकेंगी?” बस इनसे कह दो कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है, भरोसा करनेवाले उसी पर भरोसा करते हैं।
قَدۡ قَالَهَا ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 32
(50) यही बात इनसे पहले गुज़रे हुए लोग भी कह चुके हैं, मगर जो कुछ वे कमाते थे वह उनके किसी काम न आया।
ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلٗا فِيهِ شُرَكَآءُ مُتَشَٰكِسُونَ وَرَجُلٗا سَلَمٗا لِّرَجُلٍ هَلۡ يَسۡتَوِيَانِ مَثَلًاۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 33
(29) अल्लाह एक मिसाल देता है। एक शख़्स तो वह है जिसके मालिक होने में बहुत-से कज-ख़ुल्क़ आक़ा शरीक हैं जो उसे अपनी-अपनी तरफ़ खींचते हैं और दूसरा शख़्स पूरा-का-पूरा एक ही आक़ा का ग़ुलाम है। क्या इन दोनों का हाल यकसाँ हो सकता है? — अल-हम्दुलिल्लाह! मगर अकसर लोग नादानी में पड़े हुए हैं।5
5. यानी एक आक़ा की ग़ुलामी और बहुत-से आक़ाओं की ग़ुलामी का फ़र्क़ तो ख़ूब समझ लेते हैं मगर एक ख़ुदा की बन्दगी और बहुत-से ख़ुदाओं की बन्दगी का फ़र्क़ जब समझाने की कोशिश की जाती है तो नादान बन जाते हैं।
قُلۡ يَٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّي عَٰمِلٞۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ۝ 34
(39) उनसे साफ़ कहो कि “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह अपना काम किए जाओ, मैं अपना काम करता रहूँगा, अन-क़रीब तुम्हें मालूम हो जाएगा
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَٰٓؤُلَآءِ سَيُصِيبُهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ ۝ 35
(51) फिर अपनी कमाई के बुरे नताइज उन्होंने भुगते, और इन लोगों में से भी जो ज़ालिम हैं वे अन-क़रीब अपनी कमाई के बुरे नताइज भुगतेंगे। ये हमें आजिज़ कर देनेवाले नहीं हैं।
إِنَّكَ مَيِّتٞ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ ۝ 36
(30) (ऐ नबी!) तुम्हें भी मरना है और इन लोगों को भी मरना है।
أَوَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 37
(52) और क्या इन्हें मालूम नहीं है कि अल्लाह जिसका चाहता है रिज़्क़ कुशादा कर देता है और जिसका चाहता है तंग कर देता है? इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।
مَن يَأۡتِيهِ عَذَابٞ يُخۡزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيۡهِ عَذَابٞ مُّقِيمٌ ۝ 38
(40) कि किसपर रुसवाकुन अज़ाब आता है और किसे वह सज़ा मिलती है जो कभी टलनेवाली नहीं।”
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عِندَ رَبِّكُمۡ تَخۡتَصِمُونَ ۝ 39
(31) आख़िरकार क़ियामत के रोज़ तुम सब अपने रब के हुज़ूर अपना-अपना मुक़द्दमा पेश करोगे।
إِنَّآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ لِلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيۡهِم بِوَكِيلٍ ۝ 40
(41) (ऐ नबी!) हमने सब इनसानों के लिए यह किताबे-बरहक़ तुमपर नाज़िल कर दी है। अब जो सीधा रास्ता इख़्तियार करेगा अपने लिए करेगा और जो भटकेगा उसके भटकने का वबाल उसी पर होगा, तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं हो।
۞قُلۡ يَٰعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 41
(53) (ऐ नबी!) कह दो कि “ऐ मेरे बन्दो!9 जिन्होंने अपनी जानों पर ज़्यादती की है, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो जाओ, यक़ीनन अल्लाह सारे गुनाह माफ़ कर देता है, वह तो ग़फ़ूर न रहीम है।”
9. बाज़ लोगों ने इन अलफ़ाज़ की यह अजीब तावील की है कि अल्लाह तआला ने नबी (सल्ल०) को ख़ुद “ऐ मेरे बन्दो!” कहकर लोगों से ख़िताब करने का हुक्म दिया है, लिहाज़ा सब इनसान नबी (सल्ल०) के बन्दे हैं। यह दर-हक़ीक़त एक ऐसी तावील है जिसे तावील नहीं, बल्कि क़ुरआन की बदतरीन मानवी तहरीफ़ और अल्लाह के कलाम के साथ खेल कहना चाहिए। यह तावील अगर सही हो तो फिर पूरा कु़रआन ग़लत हुआ जाता है, क्योंकि क़ुरआन तो अज़ अव्वल ता आख़िर इनसानों को सिर्फ़ अल्लाह तआला का बन्दा क़रार देता है, और उसकी सारी दावत ही यह है कि तुम एक अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो।
۞فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى ٱللَّهِ وَكَذَّبَ بِٱلصِّدۡقِ إِذۡ جَآءَهُۥٓۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡكَٰفِرِينَ ۝ 42
(32) फिर उस शख़्स से बड़ा ज़ालिम कौन होगा जिसने अल्लाह पर झूठ बाँधा और जब सच्चाई उसके सामने आई तो उसे झुठला दिया। क्या ऐसे लोगों के लिए जहन्नम में कोई ठिकाना नहीं है?
ٱللَّهُ يَتَوَفَّى ٱلۡأَنفُسَ حِينَ مَوۡتِهَا وَٱلَّتِي لَمۡ تَمُتۡ فِي مَنَامِهَاۖ فَيُمۡسِكُ ٱلَّتِي قَضَىٰ عَلَيۡهَا ٱلۡمَوۡتَ وَيُرۡسِلُ ٱلۡأُخۡرَىٰٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمًّىۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 43
(42) वह अल्लाह ही है जो मौत के वक़्त रूहें क़ब्ज़ करता है और जो अभी नहीं मरा है उसकी रूह नींद में क़ब्ज़ कर लेता है, फिर जिसपर वह मौत का फ़ैसला नाफ़िज़ करता है उसे रोक लेता है और दूसरों की रूहें एक वक़्ते-मुक़र्रर के लिए वापस भेज देता है। इसमें बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ग़ौर व फ़िक्र करनेवाले हैं।
وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ۝ 44
(54) पलट आओ अपने रब की तरफ़ और मुतीअ बन जाओ उसके, क़ब्ल इसके कि तुमपर अज़ाब आ जाए और फिर कहीं से तुम्हें मदद न मिल सके।
وَٱلَّذِي جَآءَ بِٱلصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهِۦٓ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ۝ 45
(33) और जो शख़्स सच्चाई लेकर आया और जिन्होंने उसको सच माना, वही अज़ाब से बचनेवाले हैं।
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُفَعَآءَۚ قُلۡ أَوَلَوۡ كَانُواْ لَا يَمۡلِكُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَعۡقِلُونَ ۝ 46
(43) क्या उस ख़ुदा को छोड़कर इन लोगों ने दूसरों को शफ़ीअ बना रख्खा है?6 इनसे कहो, “क्या वे शफ़ाअत करेंगे ख़ाह उनके इख़्तियार में कुछ हो न हो और वे समझते भी न हों?”
6. यानी एक तो इन लोगों ने अपने तौर पर ख़ुद ही यह फ़र्ज़ कर लिया कि कुछ हस्तियाँ अल्लाह के यहाँ बड़ी ज़ोरआवर हैं जिनकी सिफ़ारिश किसी तरह टल नहीं सकती, हालाँकि उनके सिफ़ारिशी होने पर न कोई दलील, न अल्लाह तआला ने कभी यह फ़रमाया कि उनको मेरे यहाँ यह मर्तबा हासिल है और न ख़ुद उन हस्तियों ने कभी यह दावा किया कि हम अपने ज़ोर से तुम्हारे सारे काम बनवा देंगे। इसपर मज़ीद हिमाक़त इन लोगों की यह है कि अस्ल मालिक को छोड़कर उन फ़र्ज़ी सिफ़ारिशियों ही को सब कुछ समझ बैठे हैं और इनकी सारी नियाज़मन्दियाँ उन्हीं के लिए वक़्फ़ है।
وَٱتَّبِعُوٓاْ أَحۡسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةٗ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ ۝ 47
(55) और पैरवी इख़्तियार कर लो अपने रब की भेजी हुई किताब के बेहतरीन पहलू की10 क़ब्ल इसके कि तुमपर अचानक अज़ाब आ जाए और तुमको ख़बर भी न हो।
10. कितबुल्लाह के बेहतरीन पहलू की पैरवी करने का मतलब यह है कि अल्लाह तआला ने जिन कामों का हुक्म दिया है आदमी उनकी तामील करे, जिन कामों से उसने मना किया है उनसे बचे, और अमसाल और क़िस्सों में जो कुछ उसने इरशाद फ़रमाया है उससे इबरत और नसीहत हासिल करे। बख़िलाफ़ इसके जो शख़्स हुक्म से मुँह मोड़ता है, मनहीयात का इर्तिकाब करता है और अल्लाह के वाज़ व नसीहत से कोई असर नहीं लेता, वह किताबुल्लाह के बदतरीन पहलू को इख़्तियार करता है, यानी वह पहलू इख़्तियार करता है जिसे किताबुल्लाह बदतरीन क़रार देती है।
لَهُم مَّا يَشَآءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 48
(34) उन्हें अपने रब के यहाँ वह सब कुछ मिलेगा जिसकी वे ख़ाहिश करेंगे। यह है नेकी करनेवालों की जज़ा
أَن تَقُولَ نَفۡسٞ يَٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِي جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّٰخِرِينَ ۝ 49
(56) कहीं ऐसा न हो कि बाद में कोई शख़्स कहे, “अफ़सोस मेरी उस तक़सीर पर जो मैं अल्लाह की जनाब में करता रहा! बल्कि मैं तो उलटा मज़ाक़ उड़ानेवालों में शामिल था।”
قُل لِّلَّهِ ٱلشَّفَٰعَةُ جَمِيعٗاۖ لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 50
(44) कहो, “शफ़ाअत सारी-की-सारी अल्लाह के इख़्तियार में है।7 आसमानों और ज़मीन की बादशाही का वही मालिक है। फिर उसी की तरफ़ तुम पलटाए जानेवाले हो।”
7. यानी किसी का यह जोर नहीं है कि अल्लाह तआला के हुज़ूर में ख़ुद सिफ़ारिशी बनकर उठ ही सके, कुजा कि अपनी सिफ़ारिश मनवा लेने की ताक़त भी उसमें हो। यह बात तो बिलकुल अल्लाह के इख़्तियार में है कि जिसे चाहे सिफ़ारिश की इजाज़त दे और जिसे चाहे न दे। और जिसके हक़ में चाहे किसी को सिफ़ारिश करने दे और जिसके हक़ में चाहे न करने दे।
لِيُكَفِّرَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي عَمِلُواْ وَيَجۡزِيَهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 51
(35) ताकि जो बदतरीन आमाल उन्होंने किए थे उन्हें अल्लाह उनके हिसाब से साक़ित कर दे और जो बेहतरीन आमाल वे करते रहे उनके लिहाज़ से उनको अज्र अता फ़रमाए।
أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 52
(57) या कहे, “काश! अल्लाह ने मुझे हिदायत बख़्शी होती तो मैं भी मुत्तक़ियों में से होता।”
وَإِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُ ٱشۡمَأَزَّتۡ قُلُوبُ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِۖ وَإِذَا ذُكِرَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦٓ إِذَا هُمۡ يَسۡتَبۡشِرُونَ ۝ 53
(45) जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो आख़िरत पर ईमानरखनेवालों के दिल कुढ़ने लगते हैं, और जब उसके सिवा दूसरों का ज़िक्र होता है तो यकायक वे ख़ुशी से खिल उठते हैं।8
8. यह बात क़रीब-क़रीब सारी दुनिया के मुशरिकाना ज़ौक़ रखनेवाले लोगों में मुश्तरक है, हत्ता कि मुसलमानों में भी जिन बदक़िस्मतों को यह बीमारी लग गई है वे भी इस ऐब से ख़ाली नहीं हैं। ज़बान से कहते हैं कि हम अल्लाह को मानते हैं लेकिन हालत यह है कि अकेले अल्लाह का ज़िक्र कीजिए तो उनके चेहरे बिगड़ने लगते हैं। कहते हैं, “जरुर यह शख़्स बुज़ुर्गों और औलिया को नहीं मानता, जभी तो बस अल्लाह-ही-अल्लाह की बातें किए जाता है।” और अगर दूसरों का ज़िक्र किया जाए तो उनके दिलों की कली खिल जाती है और बशाशत से उनके चेहरे दमकने लगते हैं।
أَوۡ تَقُولَ حِينَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِي كَرَّةٗ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 54
(58) या अज़ाब देखकर कहे, “काश! मुझे एक मौक़ा और मिल जाए और मैं भी नेक अमल करनेवालों में शामिल हो जाऊँ।”
قُلِ ٱللَّهُمَّ فَاطِرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ عَٰلِمَ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ أَنتَ تَحۡكُمُ بَيۡنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 55
(45) कहो, “ख़ुदाया! आसमानों और ज़मीन के पैदा करनेवाले, हाज़िर व ग़ायब के जाननेवाले, तू ही अपने बन्दों के दरमियान उस चीज़ का फ़ैसला करेगा जिसमें वे इख़्तिलाफ़ करते रहे हैं।
وَلَوۡ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ مَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦ مِن سُوٓءِ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مَا لَمۡ يَكُونُواْ يَحۡتَسِبُونَ ۝ 56
(47) अगर इन ज़ालिमों के पास ज़मीन की सारी दौलत भी हो, और इतनी ही और भी, तो ये रोज़े-क़ियामत के बुरे अज़ाब से बचने लिए सब कुछ फ़िदये में देने के लिए तैयार हो जाएँगे। वहाँ अल्लाह की तरफ़ से इनके सामने वह कुछ आएगा जिसका इन्होंने कभी अन्दाज़ा ही नहीं किया है।
بَلَىٰ قَدۡ جَآءَتۡكَ ءَايَٰتِي فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 57
(59) (और उस वक़्त उसे यह जवाब मिले कि) “क्यों नहीं! मेरी आयात तेरे पास आ चुकी थीं, फिर तूने उन्हें झुठलाया और तकब्बुर किया और तू काफ़िरों में से था।”
وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦ وَٱلۡأَرۡضُ جَمِيعٗا قَبۡضَتُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَٱلسَّمَٰوَٰتُ مَطۡوِيَّٰتُۢ بِيَمِينِهِۦۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 58
(67) इन लोगों ने अल्लाह की क़द्र ही न की जैसा कि उसकी क़द्र करने का हक़ है। (उसकी क़ुदरते-कामिला का हाल तो यह है कि) क़ियामत के रोज़ पूरी ज़मीन उसकी मुट्ठी में होगी और आसमान उसके दस्ते-रास्त में लिपटे हुए होंगे।11 पाक और बालातर है वह उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं।
11. ज़मीन और आसमान पर अल्लाह तआला के कामिल इक़तिदार व तसरुफ़ की तसवीर खींचने के लिए मुट्टी में होने और हाथ पर लिपटे होने का इस्तिआरा इस्तेमाल फ़रमाया गया है। जिस तरह एक आदमी किसी छोटी-सी गेंद को मुट्ठी में दबा लेता है और उसके लिए यह एक मामूली काम है, या एक शख़्स एक रुमाल को लपेटकर हाथ में ले लेता है और उसके लिए यह कोई ज़हमत-तलब काम नहीं होता, उसी तरह क़ियामत के रोज़ तमाम इनसान (जो आज अल्लाह की अज़मत व किबरियाई का अन्दाज़ा करने से क़ासिर हैं) अपनी आँखों से देख लेंगे कि ज़मीन और आसमान अल्लाह के दस्ते-क़ुदरत में एक हक़ीर गेंद और एक ज़रा-से रुमाल की तरह है।
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 59
(48) वहाँ अपनी कमाई के सारे बुरे नताइज इनपर खुल जाएँगे और वही चीज़ इनपर मुसल्लत हो जाएगी जिसका ये मज़ाक़ उड़ाते रहे हैं।
وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 60
(60) आज जिन लोगों ने ख़ुदा पर झूठ बाँधे हैं क़ियामत के रोज़ तुम देखोगे कि उनके मुँह काले होंगे। क्या जहन्नम में मुतकब्बिरों के लिए काफ़ी जगह नहीं है?
وَنُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَصَعِقَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُۖ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخۡرَىٰ فَإِذَا هُمۡ قِيَامٞ يَنظُرُونَ ۝ 61
(68) और उस रोज़ सूर फूँका जाएगा और वे सब मरकर गिर जाएँगे जो आसमानों और ज़मीन में हैं सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह ज़िन्दा रखना चाहे। फिर एक दूसरा सूर फूँका जाएगा और यकायक सबके सब उठकर देखने लगेंगे।
وَيُنَجِّي ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ بِمَفَازَتِهِمۡ لَا يَمَسُّهُمُ ٱلسُّوٓءُ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 62
(61) इसके बरअक्स जिन लोगों ने यहाँ तक़वा किया है उनके असबाबे-कामयाबी की वजह से अल्लाह उनको नजात देगा, उनको न कोई गज़न्द पहुँचेगा और न वे ग़मगीन होंगे।
سُورَةُ الزُّمَرِ
39. अज़-ज़ुमर
ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ وَكِيلٞ ۝ 63
(62) अल्लाह हर चीज़ का ख़ालिक़ है और वही हर चीज़ पर निगहबान है।
وَأَشۡرَقَتِ ٱلۡأَرۡضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ ٱلۡكِتَٰبُ وَجِاْيٓءَ بِٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 64
(69) ज़मीन अपने रब के नूर से चमक उठेगी, किताबे-आमाल लाकर रख दी जाएगी, अम्बिया और तमाम गवाह हाज़रि कर दिए जाएँगे, लोगों के बीच ठीक-ठीक हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा, उनपर कोई ज़ुल्म न होगा
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
لَّهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ ۝ 65
(63) ज़मीन और आसमानों के ख़ज़ानों की कुंजियाँ उसी के पास हैं। और जो लोग अल्लाह की आयात से कुफ़्र करते हैं वही घाटे में रहनेवाले हैं।
وَوُفِّيَتۡ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَا يَفۡعَلُونَ ۝ 66
(70) और हर मुतनफ़्फ़िस को जो कुछ भी उसने अमल किया था उसका पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। लोग जो कुछ भी करते हैं अल्लाह उसको ख़ूब जानता है।
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا فُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَآ أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ رُسُلٞ مِّنكُمۡ يَتۡلُونَ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِ رَبِّكُمۡ وَيُنذِرُونَكُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَاۚ قَالُواْ بَلَىٰ وَلَٰكِنۡ حَقَّتۡ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 67
(71) (इस फ़ैसले के बाद) वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया था जहन्नम की तरफ़ गरोह दर गरोह हाँके जाएँगे, यहाँ तक कि जब वहाँ पहुँचेंगे तो उसके दरवाज़े खोले जाएँगे और उसके कारिन्दे उनसे कहेंगे, “क्या तुम्हारे पास तुम्हारे अपने लोगों में से ऐसे रसूल नहीं आए थे जिन्होंने तुमको तुम्हारे रब की आयात सुनाई हों और तुम्हें इस बात से डराया हो कि एक समय तुम्हें यह दिन भी देखना होगा?” वे जवाब देंगे, “हाँ आए थे, मगर अज़ाब का फ़ैसला काफ़िरों पर चिपक गया।”
قِيلَ ٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 68
(72) कहा जाएगा, दाख़िल हो जाओ जहन्नम के दरवाज़ों में, यहाँ अब तुम्हे हमेशा रहना है, बड़ा ही बुरा ठिकाना है यह मुतकब्बिरों के लिए।
قُلۡ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَأۡمُرُوٓنِّيٓ أَعۡبُدُ أَيُّهَا ٱلۡجَٰهِلُونَ ۝ 69
(64) (ऐ नबी!) इनसे कहो, “फिर क्या ऐ जाहिलो! तुम अल्लाह के सिवा किसी और की बन्दगी करने के लिए मुझसे कहते हो?”
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا وَفُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَا سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡ طِبۡتُمۡ فَٱدۡخُلُوهَا خَٰلِدِينَ ۝ 70
(73) और जो लोग अपने रब की नाफ़रमानी से बचते थे उन्हें गरोह के गरोह जन्नत की तरफ़ ले जाया जाएगा। यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेंगे, और उसके दरवाज़े पहले ही खोले जा चुके होंगे, तो उसके मुन्तज़िमीन उनसे कहेंगे, “सलाम हो तुमपर बहुत अच्छे रहे, दाख़िल हो जाओ इसमें हमेशा के लिए।”
وَلَقَدۡ أُوحِيَ إِلَيۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكَ لَئِنۡ أَشۡرَكۡتَ لَيَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ ۝ 71
(65) (यह बात तुम्हें उनसे साफ़ कह देनी चाहिए क्योंकि) तुम्हारी तरफ़ और तुमसे पहले गुज़रे हुए तमाम अम्बिया की तरफ़ यह वह्य भेजी जा चुकी है कि अगर तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा अमल ज़ाया हो जाएगा और तुम ख़सारे में रहोगे।
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي صَدَقَنَا وَعۡدَهُۥ وَأَوۡرَثَنَا ٱلۡأَرۡضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ ٱلۡجَنَّةِ حَيۡثُ نَشَآءُۖ فَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ ۝ 72
(74) और वे कहेंगे, “शुक्र है उस ख़ुदा का जिसने हमारे साथ अपना वादा सच कर दिखाया और हमको ज़मीन का वारिस बना दिया, अब हम जन्नत में जहाँ चाहें अपनी जगह बना सकते हैं।” पस बेहतरीन अज्र है अमल करनेवालों के लिए।
وَتَرَى ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ حَآفِّينَ مِنۡ حَوۡلِ ٱلۡعَرۡشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡۚ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّۚ وَقِيلَ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 73
(75) और तुम देखोगे कि फ़रिश्ते अर्श के गिर्द हल्क़ा बनाए हुए अपने रब की हम्द व तसबीह कर रहे होंगे और लोगों के दरमियान ठीक-ठीक हक़ के साथ फ़ैसला चुका दिया जाएगा, और पुकार दिया जाएगा कि हम्द है अल्लाह रब्बुल-आलमीन के लिए।
بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّٰكِرِينَ ۝ 74
(66) लिहाज़ा (ऐ नबी!) तुम बस अल्लाह ही की बन्दगी करो और शुक्रगुज़ार बन्दों में से हो जाओ।