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ٱلَّذِينَ يَحۡمِلُونَ ٱلۡعَرۡشَ وَمَنۡ حَوۡلَهُۥ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَيُؤۡمِنُونَ بِهِۦ وَيَسۡتَغۡفِرُونَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْۖ رَبَّنَا وَسِعۡتَ كُلَّ شَيۡءٖ رَّحۡمَةٗ وَعِلۡمٗا فَٱغۡفِرۡ لِلَّذِينَ تَابُواْ وَٱتَّبَعُواْ سَبِيلَكَ وَقِهِمۡ عَذَابَ ٱلۡجَحِيمِ

40. अल-मोमिन

(मक्का में उतरी, आयतें 85)

परिचय

नाम

आयत 28 के वाक्य “व क़ा-ल रजलुम-मोमिनुम-मिन आलि फ़िरऔ-न" ( फ़िरऔन के लोगों में से एक ईमान रखनेवाला व्यक्ति (अल-मोमिन) बोल उठा) से लिया गया है। अर्थात् वह सूरा जिसमें उस विशेष 'मोमिन' (ईमानमाले) का उल्लेख हुआ है। [इस सूरा का एक नाम ‘ग़ाफ़िर’ भी है, सूरा की आयत 3 में आए शब्द ‘ग़ाफ़िर’ से लिया गया है।]  

उतरने का समय

इब्‍ने-अब्‍बास और जाबिर-बिन-ज़ैद (रज़ि०) का बयान है कि यह सूरा, सूरा-39 ज़ुमर के बाद उतरी है और इसका जो स्थान क़ुरआन मजीद के वर्तमान क्रम में है, वही क्रम अवतरण के अनुसार भी है।

उतरने की परिस्थितियाँ

जिन परिस्थितियों में यह सूरा उतरी है, उनकी ओर स्पष्ट संकेत इसकी विषय वस्तु में मौजूद है। मक्का के इस्लाम-विरोधियों ने उस समय नबी (सल्ल०) के विरुद्ध दो प्रकार की कार्रवाइयाँ शुरू कर रखी थीं। एक यह कि हर ओर झगड़े और विवाद छेड़कर और नित नए मिथ्यारोपण द्वारा क़ुरआन की शिक्षा और इस्लाम की दावत और स्वयं नबी (सल्ल०) के बारे में अधिक से अधिक सन्देह और बुरे विचार आम लोगों के दिलों में पैदा कर दिए जाएँ। दूसरे यह कि आप (सल्ल०) की हत्या के लिए माहौल तैयार किया जाए। अतएव इस उद्देश्य के लिए वे निरंतर षड्‍यंत्र रच रहे थे।

विषय और वार्ता

परिस्थितियों के इन दोनों पहलुओं को अभिभाषण के आरंभ ही में स्पष्ट कर दिया गया है और फिर आगे का सम्पूर्ण अभिभाषण इन्हीं दोनों की एक अत्यन्त प्रभावी और शिक्षाप्रद समीक्षा है। हत्या के षड्‍यंत्र के जवाब में आले-फ़िरऔन में से एक मोमिन व्यक्ति का वृत्तान्त प्रस्तुत किया गया है (आयत 23 से लेकर 55 तक)। और इस वृत्तान्त के रूप में तीन गिरोहों को तीन अलग-अलग शिक्षाएँ दी गई हैं-

(1) इस्लाम-विरोधियों को बताया गया है कि जो कुछ तुम मुहम्मद (सल्ल०) के साथ करना चाहते हो, यहांँ कुछ अपनी शक्ति के भरोसे पर फ़िरऔन हज़रत मूसा (अलैहि०) के साथ करना चाहता था, अब क्या ये हरकतें करके तुम भी उसी परिणाम को देखना चाहते हो जिस परिणाम को उसे देखना पड़ा था?

(2) मुहम्मद (सल्ल०) और उनके अनुयायियों को शिक्षा दी गई है कि [इन ज़ालिमों की बड़ी से बड़ी भयावह धमकी] के जवाब में बस अल्लाह की पनाह माँग लो और इसके बाद बिल्कुल निर्भय होकर अपने काम में लग जाओ। इस तरह अल्लाह के भरोसे पर ख़तरों और आशंकाओं से बेपरवाह होकर काम करोगे तो आख़िरकार उसकी मदद आकर रहेगी और आज के फ़िरऔन भी वही कुछ देख लेंगे जो कल के फ़िरऔन देख चुके हैं।

(3) इन दो गिरोहों के अलावा एक तीसरा गिरोह भी समाज में मौजूद था और वह उन लोगों का गिरोह था जो दिलों में जान चुके थे कि सत्य मुहम्मद (सल्ल०) ही के साथ है। मगर यह जान लेने के बावजूद वे चुपचाप सत्य-असत्य के इस संघर्ष का तमाशा देख रहे थे। अल्लाह ने इस अवसर पर उनकी अन्तरात्मा को झिंझोड़ा है और उन्हें बताया है कि जब सत्य के शत्रु खुल्लम-खुल्ला तुम्हारी आँखों के सामने इतना बड़ा ज़ुल्म भरा क़दम उठाने पर तुल गए हैं, तो अफ़सोस है तुम पर अगर अब भी तुम बैठे तमाशा ही देखते रहो। इस हालत में जिस व्यक्ति की अन्तरात्मा बिल्‍कुल मर न चुकी हो उसे तो उठकर वह कर्तव्य निभाना चाहिए जो फ़िरऔन के भरे दरबार में उसके अपने दरबारियों में से एक सत्यवादी व्यक्ति ने उस समय निभाया था जब फ़िरऔन ने हज़रत मूसा (अलैहि०) को क़त्ल करना चाहा था। अब रहा इस्लाम-विरोधियों का वह तर्क-वितर्क जो सत्य को नीचा दिखाने के लिए मक्का मुअज़्ज़मा में रात-दिन जारी था, तो उसके उत्तर में एक ओर प्रमाणों के द्वारा तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत (परलोकवाद) की उन धारणाओं का सत्य होना सिद्ध किया गया है जो मुहम्मद (सल्ल०) और इस्लाम-विरोधियों के बीच झगड़े की असल जड़ थी। दूसरी ओर उन मूल प्रेरक तत्त्वों को स्पष्ट रूप से सामने लाया गया है जिनके कारण क़ुरैश के सरदार इतनी सरगर्मी के साथ नबी (सल्ल०) के विरुद्ध लड़ रहे थे। अतएव आयत 56 में यह बात किसी लाग-लपेट के बिना उनसे साफ़ कह दी गई है कि तुम्हारे इंकार का मूल कारण वह दंभ है, जो तुम्हारे दिलों में भरा हुआ है। तुम समझते हो कि अगर लोग मुहम्मद (सल्ल०) की पैग़म्बरी को मान लेंगे तो तुम्हारी बड़ाई कायम न रह सकेगी। इसी सिलसिले में विधर्मियों को बार-बार चेतावनियाँ दी गई हैं कि अगर अल्लाह की आयतों के मुक़ाबले में लड़ने-झगड़ने से बाज़ न आओगे तो उसी परिणाम का सामना करना पड़ेगा, जिसका सामना पिछली जातियों को करना पड़ा है।

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ٱلَّذِينَ يَحۡمِلُونَ ٱلۡعَرۡشَ وَمَنۡ حَوۡلَهُۥ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡ وَيُؤۡمِنُونَ بِهِۦ وَيَسۡتَغۡفِرُونَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْۖ رَبَّنَا وَسِعۡتَ كُلَّ شَيۡءٖ رَّحۡمَةٗ وَعِلۡمٗا فَٱغۡفِرۡ لِلَّذِينَ تَابُواْ وَٱتَّبَعُواْ سَبِيلَكَ وَقِهِمۡ عَذَابَ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 1
(7) अर्शे-इलाही के हामिल फ़रिश्ते, और वे जो अर्श के गिर्दो-पेश हाज़िर रहते हैं, सब अपने रब की हम्द के साथ उसकी तसबीह कर रहे हैं। वे उसपर ईमान रखते हैं और ईमान लानेवालों के हक़ में दुआ-ए-मग़फ़िरत करते हैं। वे कहते हैं, “ऐ हमारे रब! तू अपनी रहमत और अपने इल्म के साथ हर चीज़ पर छाया हुआ है, पस माफ़ कर दे और अज़ाबे-दोज़ख़ से बचा ले उन लोगों को जिन्होंने तौबा की है और तेरा रास्ता इख़्तियार कर लिया है।
رَبَّنَا وَأَدۡخِلۡهُمۡ جَنَّٰتِ عَدۡنٍ ٱلَّتِي وَعَدتَّهُمۡ وَمَن صَلَحَ مِنۡ ءَابَآئِهِمۡ وَأَزۡوَٰجِهِمۡ وَذُرِّيَّٰتِهِمۡۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 2
(8) ऐ हमारे रब! और दाख़िल कर उनको हमेशा रहनेवाली उन जन्नतों में जिनका तूने उनसे वादा किया है, और उनके वालिदैन और बीवियों और औलाद में से जो सॉलेह हों (उनको भी वहाँ उनके साथ ही पहुँचा दे)। तू बिला-शुबह क़ादिरे-मुतलक़ और हकीम है।
وَقِهِمُ ٱلسَّيِّـَٔاتِۚ وَمَن تَقِ ٱلسَّيِّـَٔاتِ يَوۡمَئِذٖ فَقَدۡ رَحِمۡتَهُۥۚ وَذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ ۝ 3
(9) और बचा दे उनको बुराइयों से। जिसको तूने क़ियामत के दिन बुराइयों से बचा दिया उसपर तूने बड़ा रह्म किया, यही बड़ी कामयाबी है।”
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَا وَسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ ۝ 4
(23) हमने मूसा को फ़िरऔन और हामान और क़ारून की तरफ़
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُنَادَوۡنَ لَمَقۡتُ ٱللَّهِ أَكۡبَرُ مِن مَّقۡتِكُمۡ أَنفُسَكُمۡ إِذۡ تُدۡعَوۡنَ إِلَى ٱلۡإِيمَٰنِ فَتَكۡفُرُونَ ۝ 5
(10) जिन लोगों ने कुफ़्र किया है, क़ियामत के रोज़ उनको पुकारकर कहा जाएगा, “आज तुम्हें जितना शदीद ग़ुस्सा अपने ऊपर आ रहा है, अल्लाह तुमपर उससे ज़्यादा ग़ज़बनाक उस वक़्त होता था जब तुम्हें ईमान की तरफ़ बुलाया जाता था और तुम कुफ़्र करते थे।”
إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَهَٰمَٰنَ وَقَٰرُونَ فَقَالُواْ سَٰحِرٞ كَذَّابٞ ۝ 6
(24) अपनी निशानियों और नुमायाँ सनदे-मामूरियत के साथ भेजा, मगर उन्होंने कहा, “साहिर है, कज़्ज़ाब है।”
قَالُواْ رَبَّنَآ أَمَتَّنَا ٱثۡنَتَيۡنِ وَأَحۡيَيۡتَنَا ٱثۡنَتَيۡنِ فَٱعۡتَرَفۡنَا بِذُنُوبِنَا فَهَلۡ إِلَىٰ خُرُوجٖ مِّن سَبِيلٖ ۝ 7
(11) वे कहेंगे, “ऐ हमारे रब! तूने वाक़ई हमें दो दफ़ा मौत और दो दफ़ा जिन्दगी दे दी,1 अब हम अपन अपने क़ुसूरों का एतिराफ़ करते हैं, क्या अब यहाँ से निकलने की भी कोई सबील है?”
1. दो दफ़ा मौत और दो दफ़ा ज़िन्दगी से मुराद वही चीज़ है जिसका ज़िक्र सूरा-2 बक़रा, आयत-28 में किया गया है।
فَلَمَّا جَآءَهُم بِٱلۡحَقِّ مِنۡ عِندِنَا قَالُواْ ٱقۡتُلُوٓاْ أَبۡنَآءَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ وَٱسۡتَحۡيُواْ نِسَآءَهُمۡۚ وَمَا كَيۡدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَٰلٖ ۝ 8
(25) फिर जब वह हमारी तरफ़ से हक़ उनके सामने ले आया तो उन्होंने कहा, “जो लोग ईमान लाकर इसके साथ शामिल हुए हैं उन सबके लड़कों को क़त्ल करो और लड़कियों को जीता छोड़ दो।” मगर काफ़िरों की चाल अकारथ ही गई।
ذَٰلِكُم بِأَنَّهُۥٓ إِذَا دُعِيَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُۥ كَفَرۡتُمۡ وَإِن يُشۡرَكۡ بِهِۦ تُؤۡمِنُواْۚ فَٱلۡحُكۡمُ لِلَّهِ ٱلۡعَلِيِّ ٱلۡكَبِيرِ ۝ 9
(12) (जवाब मिलेगा) “यह हालत जिसमें तुम मुब्तला हो, इस वजह से है कि जब अकेले अल्लाह की तरफ़ बुलाया जाता था तो तुम मानने से इनकार कर देते थे और जब उसके साथ दूसरों को मिलाया जाता तो तुम मान लेते थे। अब फ़ैसला अल्लाह बुज़ुर्ग व बरतर के हाथ है।”
وَقَالَ فِرۡعَوۡنُ ذَرُونِيٓ أَقۡتُلۡ مُوسَىٰ وَلۡيَدۡعُ رَبَّهُۥٓۖ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يُبَدِّلَ دِينَكُمۡ أَوۡ أَن يُظۡهِرَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ٱلۡفَسَادَ ۝ 10
(26) एक रोज़ फ़िरऔन ने अपने दरबारियों से कहा, “छोड़ो मुझे, मैं इस मूसा को क़त्ल किए देता हूँ, और पुकार देखे यह अपने रब को। मुझे अंदेशा है कि यह तुम्हारा दीन बदल डालेगा, या मुल्क में फ़साद बरपा करेगा।”
سُورَةُ غَافِرٍ
40. अल-मोमिन
هُوَ ٱلَّذِي يُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ وَيُنَزِّلُ لَكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ رِزۡقٗاۚ وَمَا يَتَذَكَّرُ إِلَّا مَن يُنِيبُ ۝ 11
(13) वही है जो तुमको अपनी निशानियाँ दिखाता है और आसमान से तुम्हारे लिए रिज़्क़ नाज़िल करता है,2 मगर (इन निशानियों के मुशाहदे से) सबक़ सिर्फ़ वही शख़्स लेता है जो अल्लाह की तरफ़ रुजूअ करनेवाला हो।
2. यानी बारिश बरसाता है जो सबबे-रिज़्क़ है, गर्मी और सर्दी नाज़िल करता है जिसका रिज़्क़ की पैदाइश में बड़ा दख़्ल है।
وَقَالَ مُوسَىٰٓ إِنِّي عُذۡتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُم مِّن كُلِّ مُتَكَبِّرٖ لَّا يُؤۡمِنُ بِيَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ ۝ 12
(27) मूसा ने कहा, “मैंने तो हर उस मुतकब्बिर के मुक़ाबले में जो यौमुल-हिसाब पर ईमान नहीं रखता अपने रब और तुम्हारे रब की पनाह ले ली है।”
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
فَٱدۡعُواْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 13
(14) (पस ऐ रुजूअ करनेवालो!) अल्लाह ही को पुकारो अपने दीन को उसके लिए ख़ालिस करके, ख़ाह तुम्हारा यह फ़ेल काफ़िरों को कितना ही नागवार हो।
وَقَالَ رَجُلٞ مُّؤۡمِنٞ مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ يَكۡتُمُ إِيمَٰنَهُۥٓ أَتَقۡتُلُونَ رَجُلًا أَن يَقُولَ رَبِّيَ ٱللَّهُ وَقَدۡ جَآءَكُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ مِن رَّبِّكُمۡۖ وَإِن يَكُ كَٰذِبٗا فَعَلَيۡهِ كَذِبُهُۥۖ وَإِن يَكُ صَادِقٗا يُصِبۡكُم بَعۡضُ ٱلَّذِي يَعِدُكُمۡۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ مُسۡرِفٞ كَذَّابٞ ۝ 14
(28) इस मौक़े पर आले-फ़िरऔन में से एक मोमिन शख़्स, जो अपना ईमान छिपाए हुए था, बोल उठा, “क्या तुम एक शख़्स को सिर्फ़ इस बिना पर क़त्ल कर दोगे कि वह कहता है मेरा रब अल्लाह है? हालाँकि वह तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारे पास बैयिनात ले आया। अगर वह झूठा है तो उसका झूठ ख़ुद उसी पर पलट पड़ेगा। लेकिन अगर वह सच्चा है तो जिन हौलनाक नताइज का वह तुमको ख़ौफ़ दिलाता है उनमें से कुछ तो तुमपर ज़रूर ही आ जाएँगे। अल्लाह किसी ऐसे शख़्स को हिदायत नहीं देता जो हद से गुज़र जानेवाला और कज़्ज़ाब हो।
حمٓ
(1) हा० मीम०।
رَفِيعُ ٱلدَّرَجَٰتِ ذُو ٱلۡعَرۡشِ يُلۡقِي ٱلرُّوحَ مِنۡ أَمۡرِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ لِيُنذِرَ يَوۡمَ ٱلتَّلَاقِ ۝ 15
(15) वह बलन्द दरजोंवाला, मालिके-अर्श है। अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है अपने हुक्म से रूह नाज़िल कर देता है ताकि वह मुलाक़ात के दिन से ख़बरदार कर दे।
۞وَيَٰقَوۡمِ مَا لِيٓ أَدۡعُوكُمۡ إِلَى ٱلنَّجَوٰةِ وَتَدۡعُونَنِيٓ إِلَى ٱلنَّارِ ۝ 16
(41) ऐ क़ौम! आख़िर यह क्या माजरा है कि मैं तो तुम लोगों को नजात की तरफ़ बुलाता हूँ और तुम लोग मुझे आग की तरफ़ दावत देते हो!
يَٰقَوۡمِ لَكُمُ ٱلۡمُلۡكُ ٱلۡيَوۡمَ ظَٰهِرِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَمَن يَنصُرُنَا مِنۢ بَأۡسِ ٱللَّهِ إِن جَآءَنَاۚ قَالَ فِرۡعَوۡنُ مَآ أُرِيكُمۡ إِلَّا مَآ أَرَىٰ وَمَآ أَهۡدِيكُمۡ إِلَّا سَبِيلَ ٱلرَّشَادِ ۝ 17
(29) ए मेरी क़ौम के लोगो! आज तुम्हें बादशाही हासिल है और ज़मीन में तुम ग़ालिब हो, लेकिन अगर ख़ुदा का अज़ाब हमपर आ गया तो फिर कौन है जो हमारी मदद कर सकेगा? फ़िरऔन ने कहा, “मैं तो तुम लोगों को वही राय दे रहा हूँ जो मुझे मुनासिब नज़र आती है और मैं उसी रास्ते की तरफ़ तुम्हारी रहनुमाई करता हूँ जो ठीक है।”
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ ۝ 18
(2) इस किताब का नुज़ूल अल्लाह की तरफ़ से है जो ज़बरदस्त है, सब कुछ जाननेवाला है,
يَوۡمَ هُم بَٰرِزُونَۖ لَا يَخۡفَىٰ عَلَى ٱللَّهِ مِنۡهُمۡ شَيۡءٞۚ لِّمَنِ ٱلۡمُلۡكُ ٱلۡيَوۡمَۖ لِلَّهِ ٱلۡوَٰحِدِ ٱلۡقَهَّارِ ۝ 19
(16) वह दिन जबकि सब लोग बेपरदा होंगे, अल्लाह से उनकी कोई बात छिपी हुई न होगी। (उस रोज़ पुकारकर पूछा जाएगा) “आज बादशाही किसकी है?” (सारा आलम पुकार उठेगा) “अल्लाह वाहिदे-क़ह्हार की।”
تَدۡعُونَنِي لِأَكۡفُرَ بِٱللَّهِ وَأُشۡرِكَ بِهِۦ مَا لَيۡسَ لِي بِهِۦ عِلۡمٞ وَأَنَا۠ أَدۡعُوكُمۡ إِلَى ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡغَفَّٰرِ ۝ 20
(42) तुम मुझे इस बात की दावत देते हो कि मैं अल्लाह से कुफ़ करूँ और उसके साथ उन हस्तियों को शरीक ठहराऊँ जिन्हें मैं नहीं जानता5, हालाँकि मैं तुम्हें उस ज़बरदस्त मग़फ़िरत करनेवाले ख़ुदा की तरफ़ बुला रहा हूँ।
5. यानी मेरे इल्म में नहीं है कि ख़ुदाई में उनकी कोई शिर्कत है।
وَقَالَ ٱلَّذِيٓ ءَامَنَ يَٰقَوۡمِ إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُم مِّثۡلَ يَوۡمِ ٱلۡأَحۡزَابِ ۝ 21
(30) वह शख़्स जो ईमान लाया था उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, मुझे ख़ौफ़ है कि कहीं तुमपर भी वह दिन न आ जाए जो इससे पहले बहुत-से जत्थों पर आ चुका है,
غَافِرِ ٱلذَّنۢبِ وَقَابِلِ ٱلتَّوۡبِ شَدِيدِ ٱلۡعِقَابِ ذِي ٱلطَّوۡلِۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ إِلَيۡهِ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 22
(3) गुनाह माफ़ करनेवाला और तौबा क़ुबूल करनेवाला है, सख़्त सज़ा देनेवाला और बड़ा साहिबे-फ़ज़्ल है, कोई माबूद उसके सिवा नहीं, उसी की तरफ़ सबको पलटना है।
ٱلۡيَوۡمَ تُجۡزَىٰ كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡۚ لَا ظُلۡمَ ٱلۡيَوۡمَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ ۝ 23
(17) (कहा जाएगा) “आज हर मुतनफ़्फ़िस को उस कमाई का बदला दिया जाएगा जो उसने की थी, आज किसी पर कोई ज़ुल्म न होगा। और अल्लाह हिसाब लेने में बहुत तेज़ है।
مِثۡلَ دَأۡبِ قَوۡمِ نُوحٖ وَعَادٖ وَثَمُودَ وَٱلَّذِينَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡۚ وَمَا ٱللَّهُ يُرِيدُ ظُلۡمٗا لِّلۡعِبَادِ ۝ 24
(31) जैसा दिन क़ौमे-नूह और आद और समूद और उनके बादवाली क़ौमों पर आया था। और यह हकी़क़त है कि अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म का कोई इरादा नहीं रखता।
مَا يُجَٰدِلُ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَلَا يَغۡرُرۡكَ تَقَلُّبُهُمۡ فِي ٱلۡبِلَٰدِ ۝ 25
(4) अल्लाह की आयात में झगड़े नहीं करते, मगर सिर्फ़ वे लोग जिन्होंने कुफ़्र किया है। इसके बाद दुनिया के मुल्कों में उनकी चलत-फिरत तुम्हें किसी धोखे में न डाले।
لَا جَرَمَ أَنَّمَا تَدۡعُونَنِيٓ إِلَيۡهِ لَيۡسَ لَهُۥ دَعۡوَةٞ فِي ٱلدُّنۡيَا وَلَا فِي ٱلۡأٓخِرَةِ وَأَنَّ مَرَدَّنَآ إِلَى ٱللَّهِ وَأَنَّ ٱلۡمُسۡرِفِينَ هُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِ ۝ 26
(43) नहीं, हक़ यह है और इसके ख़िलाफ़ नहीं हो सकता कि जिनकी तरफ़ तुम मुझे बुला रहे हो उनके लिए न दुनिया में कोई दावत है, न आख़िरत में,6 और हम सबको पलटना अल्लाह ही की तरफ़ है, और हद से गुज़रनेवाले आग में जानेवाले हैं।
6. इस फ़िक़रे के कई मानी हो सकते हैं। एक यह कि उनको न दुनिया में यह हक़ पहुँचता है और न आख़िरत में कि उनकी ख़ुदाई तसलीम करने के लिए ख़ल्क़े-ख़ुदा को दावत दी जाए। दूसरे यह कि उन्हें तो लोगों ने ज़बरदस्ती ख़ुदा बनाया है वरना वे ख़ुद न इस दुनिया में ख़ुदाई के मुद्दई है न आख़िरत में यह दावा लेकर उठेंगे कि हम भी तो ख़ुदा थे, तुमने हमें क्यों न माना। तीसरे यह कि उनको पुकारने का कोई फ़ायदा न इस दुनिया में है न आख़िरत में, क्योंकि वे बिलकुल बेइख़्तियार हैं और उन्हें पुकारना क़तई लाहासिल है।
وَأَنذِرۡهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡأٓزِفَةِ إِذِ ٱلۡقُلُوبُ لَدَى ٱلۡحَنَاجِرِ كَٰظِمِينَۚ مَا لِلظَّٰلِمِينَ مِنۡ حَمِيمٖ وَلَا شَفِيعٖ يُطَاعُ ۝ 27
(18) (ऐ नबी!) डरा दो इन लोगों को उस दिन से जो क़रीब आ लगा है। जब कलेजे मुँह को आ रहे होंगे और लोग चुपचाप ग़म के घूँट पिए खड़े होंगे। ज़ालिमों का न कोई मुशफ़िक़ दोस्त होगा और न कोई शफ़ीअ जिसकी बात मानी जाए।
وَيَٰقَوۡمِ إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُمۡ يَوۡمَ ٱلتَّنَادِ ۝ 28
(32) ऐ क़ौम! मुझे डर है कि कहीं तुमपर फ़रियाद व फ़ुग़ाँ का दिन न आ जाए
كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ وَٱلۡأَحۡزَابُ مِنۢ بَعۡدِهِمۡۖ وَهَمَّتۡ كُلُّ أُمَّةِۭ بِرَسُولِهِمۡ لِيَأۡخُذُوهُۖ وَجَٰدَلُواْ بِٱلۡبَٰطِلِ لِيُدۡحِضُواْ بِهِ ٱلۡحَقَّ فَأَخَذۡتُهُمۡۖ فَكَيۡفَ كَانَ عِقَابِ ۝ 29
(5) इनसे पहले नूह की क़ौम भी झुठला चुकी है, और उसके बाद बहुत-से दूसरे जत्थों ने भी यह काम किया है। हर क़ौम अपने रसूल पर झपटी ताकि उसे गिरफ़्तार करे। उन सबने बातिल के हथियारों में हक़ को नीचा दिखाने की कोशिश की, मगर आख़िरकार मैंने उनको पकड़ लिया,फिर देख लो कि मेरी सज़ा कैसी सख़्त थी!
فَسَتَذۡكُرُونَ مَآ أَقُولُ لَكُمۡۚ وَأُفَوِّضُ أَمۡرِيٓ إِلَى ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بَصِيرُۢ بِٱلۡعِبَادِ ۝ 30
(44) आज जो कुछ मैं कह रहा हूँ, अन-क़रीब वह वक़्त आएगा जब तुम उसे याद करोगे। और अपना मामला मैं अल्लाह के सिपुर्द करता है, वह अपने बन्दों का निगहबान है।”
يَعۡلَمُ خَآئِنَةَ ٱلۡأَعۡيُنِ وَمَا تُخۡفِي ٱلصُّدُورُ ۝ 31
(19) अल्लाह निगाहों की चोरी तक से वाक़िफ़ है और वह राज़ तक जानता है जो सीनों ने छिपा रखे हैं।
وَكَذَٰلِكَ حَقَّتۡ كَلِمَتُ رَبِّكَ عَلَى ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّهُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِ ۝ 32
(6) इसी तरह तेरे रब का यह फ़ैसला भी उन सब लोगों पर चस्पाँ हो चुका है जो कुफ़्र के मुर्तकिब हुए हैं कि वे वासिल ब-जहन्नम होनेवाले हैं।
يَوۡمَ تُوَلُّونَ مُدۡبِرِينَ مَا لَكُم مِّنَ ٱللَّهِ مِنۡ عَاصِمٖۗ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 33
(33) जब तुम एक-दूसरे को पुकारोगे और भागे-भागे फिरोगे, मगर उस वक़्त अल्लाह से बचानेवाला कोई न होगा। सच यह है कि जिसे अल्लाह भटका दे उसे फिर कोई रास्ता दिखानेवाला नहीं होता।
وَٱللَّهُ يَقۡضِي بِٱلۡحَقِّۖ وَٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ لَا يَقۡضُونَ بِشَيۡءٍۗ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ ۝ 34
(20) और अल्लाह ठीक-ठीक बेलाग फ़ैसला करेगा। रहे वे जिनको (ये मुशरिकीन) अल्लाह को छोड़कर पुकारते हैं, वे किसी चीज़ का भी फ़ैसला करनेवाले नहीं है। बिला-शुबह अल्लाह ही सब कुछ सुनने और देखनेवाला है।
فَوَقَىٰهُ ٱللَّهُ سَيِّـَٔاتِ مَا مَكَرُواْۖ وَحَاقَ بِـَٔالِ فِرۡعَوۡنَ سُوٓءُ ٱلۡعَذَابِ ۝ 35
(45) आख़िरकार उन लोगों ने जो बुरी-से-बुरी चालें उस मोमिन के ख़िलाफ़ चलीं, अल्लाह ने उन सबसे उसको बचा लिया7 और फ़िरऔन के साथी ख़ुद बदतरीन अज़ाब के फेर में आ गए।
7. इससे मालूम होता है कि वह शख़्स फ़िरऔन की सल्तनत में इतनी अह्म शख़सियत का मालिक था कि भरे दरबार में फ़िरऔन के रु-दर-रू यह हक़गोई कर जाने के बावजूद अलानिया उसको सज़ा देने की जुरअत न की जा सकती थी, इस वजह से फ़िरऔन और उसके हामियों को उसे हलाक करने के लिए ख़ुफ़िया तदबीरें करनी पड़ीं, मगर उन तदबीरों को भी अल्लाह ने चलने न दिया।
وَلَقَدۡ جَآءَكُمۡ يُوسُفُ مِن قَبۡلُ بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَمَا زِلۡتُمۡ فِي شَكّٖ مِّمَّا جَآءَكُم بِهِۦۖ حَتَّىٰٓ إِذَا هَلَكَ قُلۡتُمۡ لَن يَبۡعَثَ ٱللَّهُ مِنۢ بَعۡدِهِۦ رَسُولٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ مَنۡ هُوَ مُسۡرِفٞ مُّرۡتَابٌ ۝ 36
(34) इससे पहले यूसुफ़ तुम्हारे पास बैयिनात लेकर आए थे मगर तुम उनकी लाई हुई तालीम की तरफ़ से शक ही में पड़े रहे फिर जब उनका इन्तिक़ाल हो गया तो तुमने कहा अब उनके बाद अल्लाह कोई रसूल हरगिज़ न भेजेगा।” इसी तरह4 अल्लाह उन सब लोगों को गुमराही में डाल देता है जो हद से गुज़रनेवाले और शक्की होते हैं
4. बज़ाहिर ऐसा महसूस होता है कि आगे के ये चंद फ़िक़रे अल्लाह तआला ने मोमिने-आले-फ़िरऔन के क़ौल पर बतौरे-इज़ाफ़ा व तशरीह इरशाद फ़रमाए हैं।
۞أَوَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ كَانُواْ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَانُواْ هُمۡ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗ وَءَاثَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡ وَمَا كَانَ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن وَاقٖ ۝ 37
(21) क्या ये लोग कभी ज़मीन पर चले-फिरे नहीं हैं कि इन्हें उन लोगों का अंजाम नज़र आता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं? वे इनसे ज़्यादा ताक़तवर थे और इनसे ज़्यादा ज़बरदस्त आसार ज़मीन में छोड़ गए हैं। मगर अल्लाह ने उनके गुनाहों पर उन्हें पकड़ लिया और उनको अल्लाह से बचानेवाला कोई न था।
ٱلنَّارُ يُعۡرَضُونَ عَلَيۡهَا غُدُوّٗا وَعَشِيّٗاۚ وَيَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ أَدۡخِلُوٓاْ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ أَشَدَّ ٱلۡعَذَابِ ۝ 38
(46) दोज़ख़ की आग है जिसके सामने सुबह व शाम वे पेश किए जाते हैं, और जब क़ियामत की घड़ी आ जाएगी तो हुक्म होगा कि आले-फ़िरऔन को शदीदतर अज़ाब में दाख़िल करो।
ٱلَّذِينَ يُجَٰدِلُونَ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ سُلۡطَٰنٍ أَتَىٰهُمۡۖ كَبُرَ مَقۡتًا عِندَ ٱللَّهِ وَعِندَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۚ كَذَٰلِكَ يَطۡبَعُ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ قَلۡبِ مُتَكَبِّرٖ جَبَّارٖ ۝ 39
(35) और अल्लाह की आयात में झगड़े करते हैं बग़ैर इसके कि उनके पास कोई सनद या दलील आई हो। यह रवैया अल्लाह और ईमान लानेवालों के नज़दीक सख़्त मबग़ूज़ है। इसी तरह अल्लाह हर मुतकब्बिर व जब्बार के दिल पर ठप्पा लगा देता है।
وَإِذۡ يَتَحَآجُّونَ فِي ٱلنَّارِ فَيَقُولُ ٱلضُّعَفَٰٓؤُاْ لِلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُوٓاْ إِنَّا كُنَّا لَكُمۡ تَبَعٗا فَهَلۡ أَنتُم مُّغۡنُونَ عَنَّا نَصِيبٗا مِّنَ ٱلنَّارِ ۝ 40
(47) फिर ज़रा ख़याल करो उस वक़्त का जब ये लोग दोज़ख़ में एक-दूसरे से झगड़ रहे होंगे। दुनिया में जो लोग कमज़ोर थे वे बड़े बननेवालों से कहेंगे कि “हम तुम्हारे ताबे थे, अब क्या यहाँ तुम नारे-जहन्नम की तकलीफ़ के कुछ हिस्से से हमको बचा लोगे?”
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانَت تَّأۡتِيهِمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَكَفَرُواْ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُۚ إِنَّهُۥ قَوِيّٞ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ ۝ 41
(22) यह उनका अंजाम इसलिए हुआ कि उनके पास उनके रसूल बैयिनात3 लेकर आए और उन्होंने मानने से इनकार कर दिया। आख़िरकार अल्लाह ने उनको पकड़ लिया। यक़ीनन वह बड़ी क़ुव्वतवाला और सज़ा देने में बहुत सख़्त है।
3. ‘बैयिनात’ से मुराद तीन चीज़ें हैं। एक, ऐसी नुमायाँ अलामात और निशानियाँ जो उनके मामूर मिनल्लाह होने पर शाहिद थीं। दूसरे, ऐसी रौशन दलीलें जो उनकी पेश-करदा तालीम के हक़ होने का सुबूत दे रही थीं। तीसरे, ज़िन्दगी के मसाइल व मामलात के मुताल्लिक़ ऐसी वाज़ेह हिदायात जिन्हें देखकर हर माक़ूल आदमी यह जान सकता था कि ऐसी पाकीज़ा तालीम कोई झूठा ख़ुद-ग़रज़ आदमी नहीं दे सकता।
وَقَالَ فِرۡعَوۡنُ يَٰهَٰمَٰنُ ٱبۡنِ لِي صَرۡحٗا لَّعَلِّيٓ أَبۡلُغُ ٱلۡأَسۡبَٰبَ ۝ 42
(36) फ़िरऔन ने कहा, “ऐ हामान! मेरे लिए एक बलन्द इमारत बना ताकि मैं रास्तों तक पहुँच सकूँ,
قَالَ ٱلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُوٓاْ إِنَّا كُلّٞ فِيهَآ إِنَّ ٱللَّهَ قَدۡ حَكَمَ بَيۡنَ ٱلۡعِبَادِ ۝ 43
(48) वे बड़े बननेवाले जवाब देंगे, “हम सब यहाँ एक हाल में हैं, और अल्लाह बन्दों के दरमियान फ़ैसला कर चुका है।”
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُجَٰدِلُونَ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ سُلۡطَٰنٍ أَتَىٰهُمۡ إِن فِي صُدُورِهِمۡ إِلَّا كِبۡرٞ مَّا هُم بِبَٰلِغِيهِۚ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ ۝ 44
(56) हक़ीक़त यह है कि जो लोग किसी सनद व हुज्जत के बग़ैर, जो उनके पास आई हो, अल्लाह की आयात में झगड़ रहे हैं उनके दिलों में किब्र भरा हुआ है, मगर वे उस बड़ाई को पहुँचनेवाले नहीं हैं जिसका वे घमण्ड रखते हैं। बस अल्लाह की पनाह माँग लो, वह सब कुछ देखता और सुनता है।
أَسۡبَٰبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ فَأَطَّلِعَ إِلَىٰٓ إِلَٰهِ مُوسَىٰ وَإِنِّي لَأَظُنُّهُۥ كَٰذِبٗاۚ وَكَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِفِرۡعَوۡنَ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ وَصُدَّ عَنِ ٱلسَّبِيلِۚ وَمَا كَيۡدُ فِرۡعَوۡنَ إِلَّا فِي تَبَابٖ ۝ 45
(37) आसमानों के रास्तों तक, और मूसा के ख़ुदा को झाँककर देखूँ, मुझे तो यह मूसा झूठा ही मालूम होता है।” इस तरह फ़िरऔन के लिए उसकी बदअमली ख़ुशनुमा बना दी गई और वह राहे-रास्त से रोक दिया गया। फ़िरऔन की सारी चालबाज़ी (उसकी अपनी) तबाही के रास्ते ही में सर्फ़ हुई।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ فِي ٱلنَّارِ لِخَزَنَةِ جَهَنَّمَ ٱدۡعُواْ رَبَّكُمۡ يُخَفِّفۡ عَنَّا يَوۡمٗا مِّنَ ٱلۡعَذَابِ ۝ 46
(49) फिर ये दोज़ख़ में पड़े हुए लोग जहन्नम के अहलकारों से कहेंगे, “अपने रब से दुआ करो कि हमारे अज़ाब में बस एक दिन की तखफ़ीफ़ कर दे।”
وَقَالَ ٱلَّذِيٓ ءَامَنَ يَٰقَوۡمِ ٱتَّبِعُونِ أَهۡدِكُمۡ سَبِيلَ ٱلرَّشَادِ ۝ 47
(38) वह शख़्स जो ईमान लाया था, बोला, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मेरी बात मानो, मैं तुम्हें सही रास्ता बताता हूँ।
لَخَلۡقُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ أَكۡبَرُ مِنۡ خَلۡقِ ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 48
(57) आसमानों और ज़मीन का पैदा करना इनसान को पैदा करने में बनिस्बत यक़ीनन ज़्यादा बड़ा काम है, मगर अकसर लोग जानते नहीं है।
قَالُوٓاْ أَوَلَمۡ تَكُ تَأۡتِيكُمۡ رُسُلُكُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِۖ قَالُواْ بَلَىٰۚ قَالُواْ فَٱدۡعُواْۗ وَمَا دُعَٰٓؤُاْ ٱلۡكَٰفِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَٰلٍ ۝ 49
(50) वे पूछेंगे, “क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल बैयिनात लेकर नहीं आते रहे थे?” वे कहेंगे, “हाँ।” जहन्नम के अहलकार बोलेंगे, “फिर तो तुम ही दुआ करो, और काफ़िरों की दुआ अकारथ ही जानेवाली है।”
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَلَا ٱلۡمُسِيٓءُۚ قَلِيلٗا مَّا تَتَذَكَّرُونَ ۝ 50
(58) और यह नहीं हो सकता कि अंधा और बीना यकसाँ हो जाए और ईमानदार व सॉलेह और बदकार बराबर ठहरें। मगर तुम लोग कम ही कुछ समझते हो।
يَٰقَوۡمِ إِنَّمَا هَٰذِهِ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا مَتَٰعٞ وَإِنَّ ٱلۡأٓخِرَةَ هِيَ دَارُ ٱلۡقَرَارِ ۝ 51
(39) ऐ क़ौम! यह दुनिया की जिन्दगी तो चंद रोज़ा है, हमेशा के क़ियाम की जगह आख़िरत ही है।
مَنۡ عَمِلَ سَيِّئَةٗ فَلَا يُجۡزَىٰٓ إِلَّا مِثۡلَهَاۖ وَمَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَأُوْلَٰٓئِكَ يَدۡخُلُونَ ٱلۡجَنَّةَ يُرۡزَقُونَ فِيهَا بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 52
(40) जो बुराई करेगा उसको उतना ही बदला मिलेगा जितनी उसने बुराई की होगी। और जो नेक अमल करेगा, ख़ाह वह मर्द हो या औरत, बशर्ते कि हो वह मोमिन, ऐसे सब लोग जन्नत में दाख़िल होंगे जहाँ उनको बेहिसाब रिज़्क़ दिया जाएगा।
إِنَّ ٱلسَّاعَةَ لَأٓتِيَةٞ لَّا رَيۡبَ فِيهَا وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 53
(59) यक़ीनन क़ियामत की घड़ी आनेवाली है, इसके आने में कोई शक नहीं, मगर अकसर लोग नहीं मानते।
ذَٰلِكُم بِمَا كُنتُمۡ تَفۡرَحُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَبِمَا كُنتُمۡ تَمۡرَحُونَ ۝ 54
(75) उनसे कहा जाएगा, “यह तुम्हारा अंजाम इसलिए हुआ है कि तुम ज़मीन में ग़ैरे-हक़ पर मगन थे और फिर उसपर इतराते थे।
وَقَالَ رَبُّكُمُ ٱدۡعُونِيٓ أَسۡتَجِبۡ لَكُمۡۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَسۡتَكۡبِرُونَ عَنۡ عِبَادَتِي سَيَدۡخُلُونَ جَهَنَّمَ دَاخِرِينَ ۝ 55
(60) तुम्हारा रब कहता है, “मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआएँ क़ुबूल करूँगा,9 जो लोग घमण्ड में आकर मेरी इबादत से मुँह मोड़ते हैं, ज़रूर वे ज़लील व ख़ार होकर जहन्नम में दाख़िल होंगे।”10
9. यानी दुआएँ क़ुबूल करने के जुम्ला इख़्तियारात मेरे पास है, लिहाज़ा तुम दूसरों से दुआएँ न माँगो, बल्कि मुझसे माँगो।
10. इस आयत में दो बातें ख़ास तौर पर क़ाबिले-तवज्जुह हैं। एक यह कि दुआ और इबादत को यहाँ हम-मानी अलफ़ाज़ के तौर पर इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि पहले फ़िक़रे में जिस चीज़ को दुआ के लफ़्ज़ से ताबीर किया गया था उसी को दूसरे फ़िक़रे में इबादत के लफ़्ज़ से ताबीर फ़रमाया गया है। इससे यह बात वाज़ेह हो गई कि दुआ ऐन इबादत और जाने-इबादत है, दूसरे यह कि अल्लाह से दुआ न माँगनेवालों के लिए “घमण्ड में आकर मेरी इबादत से मुँह मोड़ते हैं” के अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए गए हैं। इससे मालूम हुआ कि अल्लाह से दुआ माँगना ऐन तक़ाज़ा-ए-बन्दगी है, और उससे मुँह मोड़ने के मानी ये हैं कि आदमी तकब्बुर में मुब्तला है।
ٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 56
(76) अब जाओ, जहन्नम के दरवा़ज़ों में दाख़िल हो जाओ, हमेशा तुमको वहीं रहना है, बहुत ही बुरा ठिकाना है मुतकब्बिरीन का!”
ٱللَّهُ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ لِتَسۡكُنُواْ فِيهِ وَٱلنَّهَارَ مُبۡصِرًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَشۡكُرُونَ ۝ 57
(61) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई ताकि तुम उसमें सुकून हासिल करो, और दिन को रोशन किया। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह लोगों पर बड़ा फ़ज़्ल फ़रमानेवाला है मगर अकसर लोग शुक्र अदा नहीं करते।
إِنَّا لَنَنصُرُ رُسُلَنَا وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَيَوۡمَ يَقُومُ ٱلۡأَشۡهَٰدُ ۝ 58
(51) यक़ीन जानो कि हम अपने रसूलों और ईमान लानेवालों की मदद इस दुनिया की ज़िन्दगी में भी लाज़िमन करते हैं, और उस रोज़ भी करेंगे जब गवाह खड़े होंगे,
فَٱصۡبِرۡ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۚ فَإِمَّا نُرِيَنَّكَ بَعۡضَ ٱلَّذِي نَعِدُهُمۡ أَوۡ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِلَيۡنَا يُرۡجَعُونَ ۝ 59
(77) पस (ऐ नबी!) सब्र करो, अल्लाह का वादा बरहक़ है। अब ख़ाह हम तुम्हारे सामने ही इनको उन बुरे नताइज का कोई हिस्सा दिखा दें जिनसे हम इन्हें डरा रहे हैं, या (उससे पहले) तुम्हें दुनिया से उठा लें, पलटकर आना तो इन्हें हमारी ही तरफ़ है।
ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖ لَّآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ۝ 60
(62) वही अल्लाह (जिसने तुम्हारे लिए यह कुछ किया है) तुम्हारा रब है। हर चीज़ का ख़ालिक़। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। फिर तुम किधर से बहकाए जा रहे हो?
يَوۡمَ لَا يَنفَعُ ٱلظَّٰلِمِينَ مَعۡذِرَتُهُمۡۖ وَلَهُمُ ٱللَّعۡنَةُ وَلَهُمۡ سُوٓءُ ٱلدَّارِ ۝ 61
(52) जब ज़ालिमों को उनकी माज़िरत कुछ भी फ़ायदा न देगी और उनपर लानत पड़ेगी और बदतरीन ठिकाना उनके हिस्से में आएगा।
كَذَٰلِكَ يُؤۡفَكُ ٱلَّذِينَ كَانُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ يَجۡحَدُونَ ۝ 62
(63) इसी तरह वे सब लोग बहकाए जाते रहे हैं जो अल्लाह की आयात का इनकार करते थे।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡهُدَىٰ وَأَوۡرَثۡنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱلۡكِتَٰبَ ۝ 63
(53) आख़िर देख लो कि मूसा की हमने रहनुमाई की और बनी-इसराईल को उस किताब का वारिस बना दिया
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا رُسُلٗا مِّن قَبۡلِكَ مِنۡهُم مَّن قَصَصۡنَا عَلَيۡكَ وَمِنۡهُم مَّن لَّمۡ نَقۡصُصۡ عَلَيۡكَۗ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأۡتِيَ بِـَٔايَةٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ فَإِذَا جَآءَ أَمۡرُ ٱللَّهِ قُضِيَ بِٱلۡحَقِّ وَخَسِرَ هُنَالِكَ ٱلۡمُبۡطِلُونَ ۝ 64
(78) (ऐ नबी!) तुमसे पहले हम बहुत-से रसूल भेज चुके हैं जिनमें से बाज़ के हालात हमने तुमको बताए हैं और बाज़ के नहीं बताए। किसी रसूल की भी यह ताक़त न थी कि अल्लाह के इज़्न के बग़ैर ख़ुद कोई निशानी ले आता। फिर जब अल्लाह का हुक्म आ गया तो हक़ के मुताबिक़ फ़ैसला कर दिया गया और उस वक़्त ग़लतकार लोग ख़सारे में पड़ गए।
هُدٗى وَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 65
(54) जो अक़्ल व दानिश रखनेवालों के लिए हिदायत और नसीहत थी।
ٱللَّهُ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَنۡعَٰمَ لِتَرۡكَبُواْ مِنۡهَا وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 66
(79) अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए ये मवेशी जानवर बनाए हैं ताकि इनमें से किसी पर तुम सवार हो और किसी का गोश्त खाओ।
فَٱصۡبِرۡ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لِذَنۢبِكَ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِبۡكَٰرِ ۝ 67
पस (ऐ नबी!) सब्र करो, अल्लाह का वादा बरहक है, अपने क़ुसूर की माफ़ी चाहो8 और सुबह व शाम अपने रब की हम्द के साथ उसकी तसबीह करते रहो।
8. जिस सियाक़ व सबाक़ में यह बात इरशाद हुई है उसपर ग़ौर करने से साफ़ महसूस होता है कि इस मक़ाम पर ‘क़ुसूर’ से मुराद बेसब्री की वह कैफ़ियत है जो शायद मुख़ालफ़त के उस माहौल में, ख़ूसूसियत के साथ अपने साथियों की मज़लूमी देख-देखकर, नबी करीम (सल्ल०) के अन्दर पैदा हो रही थी। आप (सल्ल०) चाहते थे कि जल्दी से कोई मोजिज़ा ऐसा दिखा दिया जाए जिससे कुफ़्फ़ार क़ायल हो जाएँ, या अल्लाह की तरफ़ से और कोई ऐसी बात जल्दी ज़ुहूर में आ जाए जिससे मुख़ालफ़त का यह तूफ़ान ठण्डा हो जाए। यह ख़ाहिश बजाय ख़ुद कोई गुनाह न थी जिसपर किसी तौबा व इस्तिग़फ़ार की हाजत होती। लेकिन जिस मक़ामे-बलंद पर अल्लाह तआला ने हुज़ूर (सल्ल०) को सरफ़राज़ फ़रमाया था, और जिस ज़बरदस्त ऊलुल-अज़्मी का वह मक़ाम मुक़्तज़ी था, उसके लिहाज़ से यह ज़रा-सी बेसब्री भी अल्लाह तआला को आप (सल्ल०) के मर्तबे से फ़िरो-तर नज़र आई, इसलिए इरशाद हुआ कि इस कमज़ोरी पर अपने रब से माफ़ी माँगो और चट्टान की-सी मज़बूती के साथ अपने मौक़िफ़ पर क़ायम हो जाओ, जैसा कि तुम जैसे अज़ीमुल-मर्तबत आदमी को होना चाहिए।
وَلَكُمۡ فِيهَا مَنَٰفِعُ وَلِتَبۡلُغُواْ عَلَيۡهَا حَاجَةٗ فِي صُدُورِكُمۡ وَعَلَيۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ۝ 68
(80) उनके अन्दर तुम्हारे लिए और भी बहुत-से मनाफ़े हैं। वे इस काम भी आते हैं कि तुम्हारे दिलों में जहाँ जाने की हाजत हो वहाँ तुम उनपर पहुँच सको। उनपर भी और कश्तियों पर भी तुम सवार किए जाते हो।
ٱللَّهُ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ قَرَارٗا وَٱلسَّمَآءَ بِنَآءٗ وَصَوَّرَكُمۡ فَأَحۡسَنَ صُوَرَكُمۡ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡۖ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 69
(64) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को जाए-क़रार बनाया और ऊपर आसमान का गुम्बद बना दिया। जिसने तुम्हारी सूरत बनाई और बड़ी ही उम्दा बनाई। जिसने तुम्हें पाकीज़ा चीज़ों का रि़ज़्क़ दिया। वही अल्लाह (जिसके ये काम हैं) तुम्हारा रब है। बेहिसाब बरकतोंवाला है वह कायनात का रब।
وَيُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ فَأَيَّ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ تُنكِرُونَ ۝ 70
(81) अल्लाह अपनी ये निशानियाँ तुम्हें दिखा रहा है, आख़िर तुम उसकी किन-किन निशानियों का इनकार करोगे?
هُوَ ٱلۡحَيُّ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ فَٱدۡعُوهُ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَۗ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 71
(65) वही ज़िन्दा है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। उसी को तुम पुकारो अपने दीन को उसी के लिए ख़ालिस करके। सारी तारीफ़ अल्लाह रब्बुल-आलमीन ही के लिए है।
أَفَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَانُوٓاْ أَكۡثَرَ مِنۡهُمۡ وَأَشَدَّ قُوَّةٗ وَءَاثَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 72
(82) फिर क्या वे ज़मीन में चले-फिरे नहीं हैं कि इनको उन लोगों का अंजाम नज़र आता जो इनसे पहले गुज़र चुके हैं? वे इनसे तादाद में ज़्यादा थे, इनसे बढ़कर ताक़तवर थे, और ज़मीन में इनसे ज़्यादा शानदार आसार छोड़ गए हैं। जो कुछ कमाई उन्होंने की थी, आख़िर वह उनके किस काम आई?
۞قُلۡ إِنِّي نُهِيتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَمَّا جَآءَنِيَ ٱلۡبَيِّنَٰتُ مِن رَّبِّي وَأُمِرۡتُ أَنۡ أُسۡلِمَ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 73
(66) (ऐ नबी!) इन लोगों से कह दो कि मुझे तो उन हस्तियों की इबादत से मना कर दिया गया है जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो। (मैं यह काम कैसे कर सकता हूँ) जबकि मेरे पास मेरे रब की तरफ़ से बैयिनात आ चुकी हैं। मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं रब्बुल-आलमीन के आगे सरे-तसलीम ख़म कर दूँ।
فَلَمَّا جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَرِحُواْ بِمَا عِندَهُم مِّنَ ٱلۡعِلۡمِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 74
(83) जब उनके रसूल उनके पास बैयिनात लेकर आए तो वे उसी इल्म में मगन रहे जो उनके अपने पास था और फिर उसी चीज़ के फेर में आ गए जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते थे।
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ مِنۡ عَلَقَةٖ ثُمَّ يُخۡرِجُكُمۡ طِفۡلٗا ثُمَّ لِتَبۡلُغُوٓاْ أَشُدَّكُمۡ ثُمَّ لِتَكُونُواْ شُيُوخٗاۚ وَمِنكُم مَّن يُتَوَفَّىٰ مِن قَبۡلُۖ وَلِتَبۡلُغُوٓاْ أَجَلٗا مُّسَمّٗى وَلَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 75
(67) वही तो है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से, फिर ख़ून के लोथड़े से, फिर वह तुम्हें बच्चे की शक्ल में निकालता है, फिर तुम्हें बढ़ाता है ताकि तुम अपनी पूरी ताक़त को पहुँच जाओ, फिर और बढ़ाता है ताकि तुम बुढ़ापे को पहुँचो। और तुममें से कोई पहले ही वापस बुला लिया जाता है। यह सब कुछ इसलिए किया जाता है ताकि तुम अपने मुक़र्ररह वक़्त तक पहुँच जाओ, और इसलिए कि तुम हक़ीक़त को समझो।
هُوَ ٱلَّذِي يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۖ فَإِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ ۝ 76
(68) वही है ज़िन्दगी देनेवाला, और वही मौत देनेवाला है। वह जिस बात का भी फ़ैसला करता है, बस एक हुक्म देता है कि वह हो जाए और वह हो जाती है।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُجَٰدِلُونَ فِيٓ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ أَنَّىٰ يُصۡرَفُونَ ۝ 77
(69) तुमने देखा उन लोगों को जो अल्लाह की आयात में झगड़े करते हैं, कहाँ से वे फिराए जा रहे हैं?
ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِٱلۡكِتَٰبِ وَبِمَآ أَرۡسَلۡنَا بِهِۦ رُسُلَنَاۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 78
(70) ये लोग जो इस किताब को और उन सारी किताबों को झुठलाते हैं जो हमने अपने रसूलों के साथ भेजी थीं। अन-क़रीब इन्हें मालूम हो जाएगा
إِذِ ٱلۡأَغۡلَٰلُ فِيٓ أَعۡنَٰقِهِمۡ وَٱلسَّلَٰسِلُ يُسۡحَبُونَ ۝ 79
(71) जब तौक़ इनकी गर्दनों में होंगे, और ज़ंजीरें, जिनसे पकड़कर वे खौलते हुए पानी की तरफ़ खींचे जाएँगे
فِي ٱلۡحَمِيمِ ثُمَّ فِي ٱلنَّارِ يُسۡجَرُونَ ۝ 80
(72) और फिर दोज़ख़ की आग में झोंक दिए जाएँगे।
ثُمَّ قِيلَ لَهُمۡ أَيۡنَ مَا كُنتُمۡ تُشۡرِكُونَ ۝ 81
(73) फिर उनसे पूछा जाएगा कि “अब कहाँ है। अल्लाह के सिवा वे दूसरे ख़ुदा जिनको तुम शरीक करते थे?”
مِن دُونِ ٱللَّهِۖ قَالُواْ ضَلُّواْ عَنَّا بَل لَّمۡ نَكُن نَّدۡعُواْ مِن قَبۡلُ شَيۡـٔٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 82
(74) वे जवाब देंगे, “खोए गए वे हमसे, बल्कि हम इससे पहले किसी चीज़ को न पुकारते थे।” इस तरह अल्लाह काफ़िरों का गुमराह होना मुतहक़्क़क़ कर देगा।
فَلَمَّا رَأَوۡاْ بَأۡسَنَا قَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَحۡدَهُۥ وَكَفَرۡنَا بِمَا كُنَّا بِهِۦ مُشۡرِكِينَ ۝ 83
(84) जब उन्होंने हमारा अज़ाब देख लिया तो पुकार उठे कि हमने मान लिया अल्लाह वह्दहू ला शरीक को और हम इनकार करते हैं उन सब माबूदों का जिन्हें हम उसका शरीक ठहराते थे।
فَلَمۡ يَكُ يَنفَعُهُمۡ إِيمَٰنُهُمۡ لَمَّا رَأَوۡاْ بَأۡسَنَاۖ سُنَّتَ ٱللَّهِ ٱلَّتِي قَدۡ خَلَتۡ فِي عِبَادِهِۦۖ وَخَسِرَ هُنَالِكَ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 84
(85) मगर हमारा अज़ाब देख लेने के बाद उनका ईमान उनके लिए कुछ भी नाफ़े न हो सकता था, क्योंकि यही अल्लाह का मुक़र्रर ज़ाबिता है जो हमेशा उसके बन्दों में जारी रहा है, और उस वक़्त काफ़िर लोग ख़सारे में पड़ गए।