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فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكۡرًا

37. अस-साफ़्फ़ात

(मक्का में उतरी, आयतें 182)

 

परिचय

 

नाम

पहली ही आयत के शब्द 'अस-साफ़्फात' (क़तार दर क़तार सफ़ (पंक्ति) बाँधनेवाले) से लिया गया है।

उतरने का समय

विषयों और शैली से पता चलता है कि यह सूरा शायद मक्की काल के मध्य में, बल्कि शायद इस मध्यकाल के भी अन्तिम समय में उतरी है। [जब विरोध पूर्णत: उग्र रूप धारण कर चुका था]।

विषय और वार्ता

उस समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तौहीद और आख़िरत की दावत का जवाब जिस तरह उपहास और हँसी-मज़ाक़ के साथ दिया जा रहा था और आपकी रिसालत के दावे को मानने से जिस तेज़ी के साथ इनकार किया जा रहा था, उसपर मक्का के काफ़िरों (इस्लाम-विरोधियों) को बड़े ज़ोरदार तरीक़े से सचेत किया गया है और अन्त में उन्हें साफ़-साफ़ ख़बरदार कर दिया गया है कि बहुत जल्द यही पैग़म्बर, जिसका तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, तुम्हारे देखते-देखते तुमपर ग़ालिब आ जाएगा और तुम अल्लाह की फ़ौज को स्वयं अपने घर के आंगन में उतरा हुआ पाओगे (आयत 171-179)। यह नोटिस उस ज़माने में दिया गया था जब नबी (सल्ल०) की सफलता के चिह्न दूर-दूर तक कहीं नज़र न आते थे, बल्कि देखनेवाले तो यह समझ रहे थे कि यह आन्दोलन मक्का की घाटियों ही में दफ़न होकर रह जाएगा। लेकिन 15-16 साल से अधिक समय न बीता था कि मक्का की जीत के मौक़े पर ठीक वही कुछ पेश आ गया जिससे इनकारियों को सचेत किया गया था। चेतावनी के साथ-साथ अल्लाह ने इस सूरा में सत्य को अच्छी तरह समझाने और उसपर उभारने का हक़ भी पूरी तरह अदा कर दिया है। तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत के अक़ीदे की सत्यता पर संक्षेप में दिल में उतर जानेवाले तर्क दिए गए हैं। बहुदेववादियों की धारणाओं की आलोचना करके बताया गया है कि वे कैसी-कैसी बेकार बातों पर ईमान लाए बैठे हैं, इन गुमराहियों के बुरे नतीजों से आगाह किया है और यह भी बताया है कि ईमान और भले कामों के नतीजे कितने शानदार हैं। फिर [इसी सिलसिले में पिछले इतिहास की मिसालें दी हैं ] इस उद्देश्य से जो ऐतिहासिक वृत्‍तांतों का इस सूरा में वर्णन किया गया है, इनमें सबसे अधिक शिक्षाप्रद हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के पवित्र जीवन की यह महत्वपूर्ण घटना है कि वह अल्लाह का एक इशारा पाते ही अपने इकलौते बेटे को क़ुरबान करने पर तैयार हो गए थे। इसमें केवल कुरैश के उन इस्लाम विरोधियों ही के लिए सबक़ नहीं था जो हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के साथ अपने पारिवारिक संबंध पर गर्व किया करते फिरते थे, बल्कि उन मुसलमानों के लिए भी सबक़ था जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए थे। यह घटना सुनाकर उन्हें बता दिया गया कि इस्लाम की वास्तविकता और उसकी मूल आत्मा क्या है। सूरा की आख़िरी आयतें सिर्फ़ काफ़िरों (विधर्मियों) के लिए चेतावनी ही न थीं, बल्कि उन ईमानवालों के लिए विजयी और प्रभावी होने की शुभ-सूचना भी थीं, जो नबी (सल्ल०) के समर्थन और सहायता में अत्यंत हतोत्साहित कर देनेवाले हालात का मुक़ाबला कर रहे थे।

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فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكۡرًا ۝ 1
(3) फिर उनकी क़सम जो कलामे-नसीहत सुनानेवाले हैं!1
1. मुफ़स्सिरीन की अकसरियत इस बात पर मृत्तफ़िक़ है कि इन तीनों गरोहों से मुराद फ़रिश्तों के गरोह हैं, जो अल्लाह ताआला के अहकाम बजा लाने के लिए हर वक़्त तैयार रहते हैं, उसकी नाफ़रमानी करनेवालों को डाँटते और फटकारते हैं, और मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से अल्लाह तआला की याद दिलाते और कलामे-नसीहत सुनाते हैं।
إِنَّ إِلَٰهَكُمۡ لَوَٰحِدٞ ۝ 2
(4) तुम्हारा माबूदे-हक़ीक़ी बस एक ही है
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَرَبُّ ٱلۡمَشَٰرِقِ ۝ 3
(5) वह जो ज़मीन और आसमानों का और तमाम उन चीज़ों का मालिक है जो ज़मीन व आसमान में हैं, और सारे मशरिक़ों का मालिक।2
2. सूरज हमेशा एक ही मतले से नहीं निकलता, बल्कि हर रोज़ एक नए ज़ाविए से तुलूअ होता है। नीज़ सारी ज़मीन पर वह बयक-वक़्त तालेअ नहीं हो जाता, बल्कि ज़मीन के मुख़्तलिफ़ हिस्सों पर मुख़्तलिफ़ औक़ात में उसका तुलूअ हुआ करता है। इन वुजूह से मशरिक़ के बजाय मशारिक़ का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया गया है, और इसके साथ मग़ारिब का ज़िक्र नहीं किया गया, क्योंकि मशारिक़ का लफ़्ज़ ख़ुद ही मग़ारिब पर दलालत करता है।
إِنَّا زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِزِينَةٍ ٱلۡكَوَاكِبِ ۝ 4
(6) हमने आसमाने-दुनिया3 को तारों की ज़ीनत से आरास्ता किया है|
3. ‘आसमाने-दुनिया’ से मुराद क़रीब का आसमान है, जिसका मुशाहदा किसी दूरबीन की मदद के बग़ैर हम बरहना आँखों से करते हैं।
فَأَغۡوَيۡنَٰكُمۡ إِنَّا كُنَّا غَٰوِينَ ۝ 5
(32) सो हमने तुमको बहकाया, हम ख़ुद बहके हुए थे।”
وَحِفۡظٗا مِّن كُلِّ شَيۡطَٰنٖ مَّارِدٖ ۝ 6
(7) और हर शैताने-सरकश से उसको महफ़ूज़ कर दिया है।
فَإِنَّهُمۡ يَوۡمَئِذٖ فِي ٱلۡعَذَابِ مُشۡتَرِكُونَ ۝ 7
(33) इस तरह वे सब उस रोज़ अज़ाब में मुश्तरक होंगे।
لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰ وَيُقۡذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٖ ۝ 8
(8) ये शयातीन मला-ए-आला4 की बात नहीं सुन सकते, हर तरफ़ से मारे और हाँके जाते हैं
4. 4. इससे मुराद हैं आलमे-बाला की मख़लूक़, यानी फ़रिश्ते।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 9
(34) हम मुजरिमों के साथ यही कुछ किया करते हैं।
دُحُورٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ وَاصِبٌ ۝ 10
(9) और उनके लिए पैहम अज़ाब है।
إِنَّهُمۡ كَانُوٓاْ إِذَا قِيلَ لَهُمۡ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا ٱللَّهُ يَسۡتَكۡبِرُونَ ۝ 11
(35) ये वे लोग थे कि जब उनसे कहा जाता, “अल्लाह के सिवा कोई माबूदे-बरहक़ नहीं हैं”, तो ये घमण्ड में आ जाते थे
إِلَّا مَنۡ خَطِفَ ٱلۡخَطۡفَةَ فَأَتۡبَعَهُۥ شِهَابٞ ثَاقِبٞ ۝ 12
(10) ताहम अगर कोई उनमें से कुछ ले उड़े तो एक तेज़ शोला उसका पीछा करता है।
وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُوٓاْ ءَالِهَتِنَا لِشَاعِرٖ مَّجۡنُونِۭ ۝ 13
(36) और कहते थे, “क्या हम एक शाइरे-मजनूँ की ख़ातिर अपने माबूदों को छोड़ दें?”
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَهُمۡ أَشَدُّ خَلۡقًا أَم مَّنۡ خَلَقۡنَآۚ إِنَّا خَلَقۡنَٰهُم مِّن طِينٖ لَّازِبِۭ ۝ 14
(11) अब इनसे पूछो, “इनकी पैदाइश ज़्यादा मुशकिल है या उन चीज़ों की जो हमने पैदा कर रखी हैं?” इनको तो हमने लेसदार गारे से पैदा किया है।
بَلۡ جَآءَ بِٱلۡحَقِّ وَصَدَّقَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 15
(37) हालाँकि वह हक़ लेकर आया था और उसने रसूलों की तसदीक़ की थी।
بَلۡ عَجِبۡتَ وَيَسۡخَرُونَ ۝ 16
(12) तुम (अल्लाह की क़ुदरत के करिश्मों पर) हैरान हो और ये उसका मज़ाक़ उड़ा रहे हैं।
وَإِذَا ذُكِّرُواْ لَا يَذۡكُرُونَ ۝ 17
(13) समझाया जाता है तो समझकर नहीं देते।
وَإِذَا رَأَوۡاْ ءَايَةٗ يَسۡتَسۡخِرُونَ ۝ 18
(14) कोई निशानी देखते हैं तो उसे ठट्ठों में उड़ाते हैं।
وَقَالُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٌ ۝ 19
(15) और कहते हैं “यह तो सरीह जादू है,
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ۝ 20
(16) भला कहीं ऐसा हो सकता है कि जब हम मर चुके हों और मिट्टी बन जाएँ और हड्डियों का पंजर रह जाएँ उस वक़्त हम फिर ज़िन्दा करके उठा खड़े किए जाएँ?
أَوَءَابَآؤُنَا ٱلۡأَوَّلُونَ ۝ 21
(17) और क्या हमारे अगले वक़्तों के आबा व अजदाद भी उठाए जाएँगे?”
قُلۡ نَعَمۡ وَأَنتُمۡ دَٰخِرُونَ ۝ 22
(18) इनसे कहो, “हाँ, और तुम (ख़ुदा के मुक़ाबले में) बेबस हो।”
سُورَةُ الصَّافَّاتِ
37. अस-साफ़्फ़ात
فَإِنَّمَا هِيَ زَجۡرَةٞ وَٰحِدَةٞ فَإِذَا هُمۡ يَنظُرُونَ ۝ 23
(19) बस एक ही झिड़की होगी और यकायक ये अपनी आँखों से (वह सब कुछ जिसकी ख़बर दी जा रही है) देख रहे होंगे।
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बेइन्तिहा मेहरबान और रहम फ़रमानेवाला है।
وَقَالُواْ يَٰوَيۡلَنَا هَٰذَا يَوۡمُ ٱلدِّينِ ۝ 24
(20) उस वक़्त ये कहेंगे, “हाय हमारी कमबख़्ती! यह तो यौमुल-जज़ा है।”
وَٱلصَّٰٓفَّٰتِ صَفّٗا
(1) क़तार-दर-क़तार सफ़ बाँधनेवालों की कसम!
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ۝ 25
(21) — यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाया करते थे।5
5. हो सकता है कि यह बात उनसे अहले-ईमान कहें, हो सकता है कि यह फ़रिश्तों का क़ौल हो, हो सकता है कि मैदाने हश्र का सारा माहौल उस वक़्त ज़बाने-हाल से यह कह रहा हो, और यह भी हो सकता है कि यह ख़ुद इन लोगों का अपना ही दूसरा रद्दे-अमल हो। यानी अपने दिलों में वे अपने-आप ही को कहें कि दुनिया में सारी उम्र तुम यह समझते रहे कि कोई फ़ैसले का दिन नहीं आना है। अब आ गई तुम्हारी शामत, जिस दिन को झुल्लाते थे वही सामने आ गया।
فَٱلزَّٰجِرَٰتِ زَجۡرٗا ۝ 26
(2) फिर उनकी क़सम जो डाँटने-फटकारनेवाले हैं!
۞ٱحۡشُرُواْ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ وَأَزۡوَٰجَهُمۡ وَمَا كَانُواْ يَعۡبُدُونَ ۝ 27
(22) (हुक्म होगा) “घेर लाओ सब ज़ालिमों और उनके साथियों और इन माबूदों6 को
6. इस जगह माबूदों से मुराद फ़रिश्ते और औलिया और अम्बिया नहीं हैं, बल्कि दो क़िस्म के माबूद हैं। एक वे इनसान और शयातीन जिनकी अपनी ख़ाहिश और कोशिश यह थी कि लोग ख़ुदा को छोड़कर उनकी बन्दगी करें। दूसरे वे बुत वग़ैरा जिनकी परस्तिश दुनिया में की जाती रही है।
وَلَقَدۡ نَادَىٰنَا نُوحٞ فَلَنِعۡمَ ٱلۡمُجِيبُونَ ۝ 28
(75) हमको (इससे पहले) नूह ने पुकारा था, तो देखो कि हम कैसे अच्छे जवाब देनेवाले थे।
وَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 29
(76) हमने उसको और उसके घरवालों को करबे-अज़ीम से बचा लिया,
وَجَعَلۡنَا ذُرِّيَّتَهُۥ هُمُ ٱلۡبَاقِينَ ۝ 30
(77) और उसी की नस्ल को बाक़ी रखा,
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 31
(78) और बाद की नस्लों में उसकी तारीफ़ व तौसीफ़ छोड़ दी।
سَلَٰمٌ عَلَىٰ نُوحٖ فِي ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 32
(79) सलाम है नूह पर तमाम दुनियावालों में!
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 33
(80) हम नेकी करनेवालों को ऐसी ही जज़ा दिया करते हैं।
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 34
(81) दर-हकीक़त वह हमारे मोमिन बन्दों में से था।
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 35
(82) फिर दूसरे गरोह को हमने ग़र्क़ कर दिया।
۞وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِۦ لَإِبۡرَٰهِيمَ ۝ 36
(83) और नूह ही के तरीक़े पर चलनेवाला इबराहीम था।
إِذۡ جَآءَ رَبَّهُۥ بِقَلۡبٖ سَلِيمٍ ۝ 37
(84) जब वह अपने रब के हुज़ूर क़ल्बे-सलीम लेकर आया।
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَاذَا تَعۡبُدُونَ ۝ 38
(85) जब उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहा, “ये क्या चीज़ें हैं जिनकी तुम इबादत कर रहे हो?
أَئِفۡكًا ءَالِهَةٗ دُونَ ٱللَّهِ تُرِيدُونَ ۝ 39
(86) क्या अल्लाह को छोड़कर झूठ गढ़े हुए माबूद चाहते हो?
فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 40
(87) आख़िर रब्बुल-आलमीन के बारे में तुम्हारा क्या गुमान है?”
فَنَظَرَ نَظۡرَةٗ فِي ٱلنُّجُومِ ۝ 41
(88) फिर उसने तारों पर एक निगाह डाली10
10. अरबी जबान में ये अलफ़ाज़ मुहावरे के तौर पर इस मानी में बोला करते हैं कि उसने ग़ौर किया, या वह शख़्स सोचने लगा।
فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٞ ۝ 42
(89) और कहा : मेरी तबीअत ख़राब है।11
11. हमें किसी ज़रिए से यह मालूम नहीं है कि उस वक़्त हज़रत इब्राहीम (अलैहि०) को किसी क़िस्म की कोई तकलीफ़ न थी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता की हज़रत इबराहीम (अलैहि) ने यह ख़िलाफ़े-वाक़िआ बहाना बनाया था।
فَتَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ مُدۡبِرِينَ ۝ 43
(90) चुनाँचे वे लोग उसे छोड़कर चले गए।
وَبَشَّرۡنَٰهُ بِإِسۡحَٰقَ نَبِيّٗا مِّنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 44
(112) और हमने उसे इसहाक़ की बशारत दी,16 एक नबी-सॉलेहीन में से।
16. यानी क़ुरबानी के इस वाक़िए के बाद हज़रत इसहाक़ (अलैहि०) के पैदा होने की बशारत दी।
فَرَاغَ إِلَىٰٓ ءَالِهَتِهِمۡ فَقَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ ۝ 45
(91) उनके पीछे वह चुपके से उनके माबूदों के मंदिर में घुस गया और बोला, “आप लोग खाते क्यों नहीं हैं?
وَبَٰرَكۡنَا عَلَيۡهِ وَعَلَىٰٓ إِسۡحَٰقَۚ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحۡسِنٞ وَظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ مُبِينٞ ۝ 46
(113) और उसे और इसहाक़ को बरकत दी। अब उन दोनों की ज़ुर्रियत में से कोई मोहसिन है और कोई अपने नफ़्स पर सरीह ज़ुल्म करनेवाला है।
مَا لَكُمۡ لَا تَنطِقُونَ ۝ 47
(92) क्या हो गया, आप लोग बोलते भी नहीं?”
وَلَقَدۡ مَنَنَّا عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ۝ 48
(114) और हमने मूसा व हारून पर एहसान किया,
فَرَاغَ عَلَيۡهِمۡ ضَرۡبَۢا بِٱلۡيَمِينِ ۝ 49
(93) इसके बाद वह उनपर पिल पड़ा और सीधे हाथ से ख़ूब ज़रबें लगाईं।
وَنَجَّيۡنَٰهُمَا وَقَوۡمَهُمَا مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 50
(115) उनको और उनकी क़ौम को करबे-अज़ीम से नजात दी,
فَأَقۡبَلُوٓاْ إِلَيۡهِ يَزِفُّونَ ۝ 51
(94) (वापस आकर) वे लोग भागे-भागे उसके पास आए
وَنَصَرۡنَٰهُمۡ فَكَانُواْ هُمُ ٱلۡغَٰلِبِينَ ۝ 52
(116) उन्हें नुसरत बख़्शी जिसकी वजह से वही ग़ालिब रहे,
قَالَ أَتَعۡبُدُونَ مَا تَنۡحِتُونَ ۝ 53
(95) उसने कहा, “क्या तुम अपनी ही तराशी हुई चीज़ों को पूजते हो?
وَءَاتَيۡنَٰهُمَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلۡمُسۡتَبِينَ ۝ 54
(117) उनको निहायत वाज़ेह किताब अता की,
وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ وَمَا تَعۡمَلُونَ ۝ 55
(96) हालाँकि अल्लाह ही ने तुमको भी पैदा किया है और उन चीज़ों को भी जिन्हें तुम बनाते हो।”
وَهَدَيۡنَٰهُمَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلۡمُسۡتَقِيمَ ۝ 56
(118) उन्हें राहे-रास्त दिखाई,
قَالُواْ ٱبۡنُواْ لَهُۥ بُنۡيَٰنٗا فَأَلۡقُوهُ فِي ٱلۡجَحِيمِ ۝ 57
(97) उन्होंने आपस में कहा कि “इसके लिए एक अलाव तैयार करो और इसे दहकती हुई आग के ढेर में फेंक दो।”
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِمَا فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 58
(119) और बाद की नस्लों में उनका ज़िक्रे-ख़ैर बाक़ी रखा।
فَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَسۡفَلِينَ ۝ 59
(98) उन्होंने उसके ख़िलाफ़ एक कार्रवाई करनी चाही थी, मगर हमने उन्हीं को नीचा दिखा दिया।
سَلَٰمٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ۝ 60
(120) सलाम है मूसा और हारून पर!
وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَىٰ رَبِّي سَيَهۡدِينِ ۝ 61
(99) इबराहीम ने कहा, “मैं अपने रब की तरफ़ जाता हूँ, वही मेरी रहनुमाई करेगा।
12. यानी अपने रब की ख़ातिर घर और वतन छोड़ रहा हूँ।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 62
हम नेकी करनेवालों को ऐसी ही जज़ा देते हैं,
رَبِّ هَبۡ لِي مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 63
(100) ऐ परवरदिगार! मुझे एक बेटा अता कर जो सॉलेहीन में से हो।”
إِنَّهُمَا مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 64
(122) दर-हक़ीक़त वह हमारे मोमिन बन्दों में से थे।
فَبَشَّرۡنَٰهُ بِغُلَٰمٍ حَلِيمٖ ۝ 65
(101) (इस दुआ के जवाब में) हमने उसको एक हलीम (बुर्दबार) लड़के की बशारत दी।13
13. मुराद हैं हज़रत इसमाईल (अलैहि०)।
وَإِنَّ إِلۡيَاسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 66
(123) और इलयास भी यक़ीनन मुर्सलीन में से था।
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ ٱلسَّعۡيَ قَالَ يَٰبُنَيَّ إِنِّيٓ أَرَىٰ فِي ٱلۡمَنَامِ أَنِّيٓ أَذۡبَحُكَ فَٱنظُرۡ مَاذَا تَرَىٰۚ قَالَ يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰبِرِينَ ۝ 67
(102) वह लड़का जब उसके साथ दौड़-धूप करने की उम्र को पहुँच गया तो (एक रोज़) इबराहीम ने उससे कहा, “बेटा! मैं ख़ाब में देखता हूँ कि मैं तुझे ज़ब्ह कर रहा हूँ, अब तू बता, तेरा क्या ख़याल है?” उसने कहा, “अब्बा-जान। जो कुछ आपको हुक्म दिया जा रहा है उसे कर डालिए, आप इनशाअल्लाह, मुझे साबिरों में से पाएँगे।”
إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 68
(124) याद करो जब उसने अपनी क़ौम से कहा था कि “तुम लोग डरते नहीं हो?
فَلَمَّآ أَسۡلَمَا وَتَلَّهُۥ لِلۡجَبِينِ ۝ 69
(103) आख़िर को जब उन दोनों ने सरे-तसलीम ख़म कर दिया और इबराहीम ने बेटे को माथे के बल गिरा दिया
أَتَدۡعُونَ بَعۡلٗا وَتَذَرُونَ أَحۡسَنَ ٱلۡخَٰلِقِينَ ۝ 70
(125) क्या तुम बअ्ल को पुकारते हो और अहसनुल-ख़ालिक़ीन को छोड़ देते हो,
وَنَٰدَيۡنَٰهُ أَن يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُ ۝ 71
(104) और हमने निदा दी कि “ऐ इबराहीम!
ٱللَّهَ رَبَّكُمۡ وَرَبَّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 72
(126) उस अल्लाह को जो तुम्हारा और तुम्हारे अगले-पिछले आबा व अजदाद का रब है?”
قَدۡ صَدَّقۡتَ ٱلرُّءۡيَآۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 73
(105) तूने ख़ाब सच कर दिखाया।14 हम नेकी करनेवालों को ऐसी ही जज़ा देते हैं।
14. चूँकि ख़ाब में यह दिखाया गया था कि ज़ब्ह कर रहे हैं, यह नहीं दिखाया गया था कि ज़ब्ह कर दिया है, इसलिए जब हज़रत इबराहीम (अलैहि०) ने ज़ब्ह करने की पूरी तैयारी कर ली तो फ़रमाया कि तुमने अपना ख़ाब सच कर दिखाया।
فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ ۝ 74
(127) मगर उन्होंने उसे झुठला दिया, सो अब यक़ीनन वे सज़ा के लिए पेश किए जानेवाले हैं।
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡبَلَٰٓؤُاْ ٱلۡمُبِينُ ۝ 75
(106) यक़ीनन यह एक खुली आज़माइश थी।”
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 76
(128) बजुज़ उन बन्दगाने-ख़ुदा के जिनको ख़ालिस कर लिया गया था।
وَفَدَيۡنَٰهُ بِذِبۡحٍ عَظِيمٖ ۝ 77
(107) और हमने एक बड़ी क़ुरबानी15 फ़िदये में देकर उस बच्चे को छुड़ा लिया,
15. ‘बड़ी क़ुरबानी’ से मुराद एक मेंढा है जो उस वक़्त अल्लाह तआला के फ़रिश्ते ने हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के सामने पेश किया ताकि बेटे के बदले उसको ज़ब्ह कर दें। इसे बड़ी क़ुरबानी के लफ़्ज़ से इसलिए ताबीर किया गया है कि वह इबराहीम (अलैहि०) जैसे वफ़ादार बन्दे के लिए फ़रज़न्दे-इबराहीम जैसे साबिर व जाँनिसार लड़के का फ़िदया था। इसके अलावा उसे ‘बड़ी क़ुरबानी’ क़रार देने की एक वजह यह भी है कि क़ियामत तक के लिए अल्लाह तआला ने यह सुन्नत जारी कर दी है कि उसी तारीख़ को तमाम अहले-ईमान दुनिया भर में जानवर क़ुरबान करें और वफ़ादारी व जाँनिसारी के इस अज़ीमुश्शान वाक़िए की याद ताज़ा करते रहें।
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 78
(129) और इलयास का ज़िक्रे-ख़ैर हमने बाद की नस्लों में बाक़ी रखा।
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 79
(108) और उसकी तारीफ़ व तौसीफ़ हमेशा के लिए बाद की नस्लों में छोड़ दी।
سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِلۡ يَاسِينَ ۝ 80
(130) सलाम है इलयास पर!
سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ ۝ 81
(109) सलाम है इबराहीम पर।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 82
(131) हम नेकी करनेवालों को ऐसी ही जज़ा देते हैं।
كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 83
(110) हम नेकी करनेवालों को ऐसी ही जज़ा देते हैं।
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 84
(132) वाक़ई वह हमारे मोमिन बन्दों में से था।
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 85
(111) यक़ीनन वह हमारे मोमिन बन्दों में से था।
وَإِنَّ لُوطٗا لَّمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 86
(133) और लूत भी उन्हीं लोगों में से था जो रसूल बनाकर भेजे गए हैं।
إِذۡ نَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ ۝ 87
(134) याद करो जब हमने उसको और उसके सब घरवालों को नजात दी,
إِلَّا عَجُوزٗا فِي ٱلۡغَٰبِرِينَ ۝ 88
(135) सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में से थी।
ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 89
(136) फिर बाक़ी सबको तहस-नहस कर दिया।
وَلَدَ ٱللَّهُ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ ۝ 90
(152) कि अल्लाह औलाद रखता है, और फ़िल-वाक़े ये झूठे हैं।
وَإِنَّكُمۡ لَتَمُرُّونَ عَلَيۡهِم مُّصۡبِحِينَ ۝ 91
(137) आज तुम शब व रोज़ उनके उजड़े दयार पर से गुज़रते हो।
أَصۡطَفَى ٱلۡبَنَاتِ عَلَى ٱلۡبَنِينَ ۝ 92
(153) क्या अल्लाह ने बेटों के बजाय बेटियाँ अपने लिए पसन्द कर लीं?
وَبِٱلَّيۡلِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 93
(138) क्या तुमको अक़्ल नहीं आती?
مَا لَكُمۡ كَيۡفَ تَحۡكُمُونَ ۝ 94
(154) तुम्हें क्या हो गया है, कैसे हुक्म लगा रहे हो?
وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 95
(139) और यक़ीनन यूनुस भी रसूलों में से था।
أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 96
(155) क्या तुम्हें होश नहीं आता?
إِذۡ أَبَقَ إِلَى ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ ۝ 97
(140) याद करो कि जब वह एक भरी कश्ती की तरफ़ भाग निकला,
أَمۡ لَكُمۡ سُلۡطَٰنٞ مُّبِينٞ ۝ 98
(156) या फिर तुम्हारे पास अपनी इन बातों के लिए कोई साफ़ सनद है,
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُدۡحَضِينَ ۝ 99
(141) फिर क़ुरआअंदाज़ी में शरीक हुआ और उसमें मात खाई।
فَأۡتُواْ بِكِتَٰبِكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 100
(157) तो लाओ अपनी वह किताब अगर तुम सच्चे हो।
فَٱلۡتَقَمَهُ ٱلۡحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٞ ۝ 101
(142) आख़िरकार मछली ने उसे निगल लिया और वह मलामतज़दा था।17
17. इन फ़िक़रों पर ग़ौर करने से जो सूरते-वाक़िआ समझ में आती है वह यह है कि : (1) हज़रत यूनुस (अलैहि०) जिस कश्ती में सवार हुए थे वह अपनी गुंजाइश में ज़्यादा भरी हुई थी। (2) क़ुरआअन्दाज़ी कश्ती में हुई, और ग़ालिबन उस वक़्त हुई जब बहरी सफ़र के दौरान में यह महसूस हुआ कि बोझ की ज़्यादती के सबब से तमाम मुसाफ़िरों की जान ख़तरे में पड़ गई है। लिहाज़ा क़ुरआ इस ग़रज़ के लिए डाला गया कि जिसका नाम क़ुरआ में निकले उसे पानी में फेंक दिया जाए। (3) क़ुरआ में हज़रत यूनुस (अलैहि०) ही का नाम निकला, चुनाँचे वह समुन्दर में फेंक दिए गए और एक मछली ने उनको निगल लिया। (4) इस इबतिला में हज़रत यूनुस (अलैहि०) इसलिए मुब्तला हुए कि वे अपने आक़ा (यानी अल्लाह तआला) की इजाज़त के बग़ैर अपने मक़ामे-मामूरियत से फ़रार हो गए थे। इसी मानी पर लफ़्ज़ ‘अ-ब-क़’ दलालत करता है। क्योंकि अरबी ज़बान में वह भाग जानेवाले ग़ुलाम के लिए बोला जाता है।
وَجَعَلُواْ بَيۡنَهُۥ وَبَيۡنَ ٱلۡجِنَّةِ نَسَبٗاۚ وَلَقَدۡ عَلِمَتِ ٱلۡجِنَّةُ إِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ ۝ 102
इन्होंने अल्लाह और मलाइका20 के दरमियान नसब का रिश्ता बना रखा है, हालाँकि मलाइका ख़ूब जानते हैं कि ये लोग मुजरिम की हैसियत से पेश होनेवाले हैं।
20. अगरचे लफ़्ज़ ‘जिन्न’ इस्तेमाल हुआ है लेकिन आगे के बयान से वाज़ेह है कि फ़रिश्ते मुराद हैं। ‘जिन्न’ के लफ़्ज़ी मानी हैं पोशीदा मख़लूक़।
فَلَوۡلَآ أَنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلۡمُسَبِّحِينَ ۝ 103
(143) अब अगर वह तसबीह करनेवालों में से न होता
سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 104
(159) (और वो कहते हैं कि) “अल्लाह उन सिफ़ात से पाक है
لَلَبِثَ فِي بَطۡنِهِۦٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 105
(144) तो रोज़े-क़ियामत तक उसी मछली के पेट में रहता।18
18. यानी क़ियामत तक मछली का पेट ही हज़रत यूनुस (अलैहि०) की क़ब्र बना रहता।
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 106
(160) जो उसके ख़ालिस बन्दों के सिवा दूसरे लोग उसकी तरफ़ मंसूब करते हैं।
فَإِنَّكُمۡ وَمَا تَعۡبُدُونَ ۝ 107
(161) पस तुम और तुम्हारे ये माबूद
۞فَنَبَذۡنَٰهُ بِٱلۡعَرَآءِ وَهُوَ سَقِيمٞ ۝ 108
(145) आख़िरकार हमने उसे बड़ी सक़ीम हालत में एक चटियल ज़मीन पर फेंक दिया।
وَأَنۢبَتۡنَا عَلَيۡهِ شَجَرَةٗ مِّن يَقۡطِينٖ ۝ 109
(146) और उसपर एक बेलदार दरख़्त उगा दिया।
مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ بِفَٰتِنِينَ ۝ 110
(162) अल्लाह से किसी को फेर नहीं सकते
وَأَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ مِاْئَةِ أَلۡفٍ أَوۡ يَزِيدُونَ ۝ 111
(147) इसके बाद हमने उसे एक लाख, या इससे ज़ाइद लोगों की तरफ़ भेजा,19
19. ‘एक लाख या उससे ज़ाइद’ कहने का मतलब यह नहीं है कि अल्लाह तआला को उनकी तादाद में शक था, बल्कि इसका मतलब यह है कि अगर कोई उनकी बस्ती को देखता तो यही अंदाज़ा करता कि इस शहर की आबादी एक लाख से ज़ाइद ही होगी, कम न होगी।
إِلَّا مَنۡ هُوَ صَالِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 112
(163) मगर सिर्फ़ उसको जो दोज़ख़ की भड़कती हुई आग में झुलसनेवाला हो।
وَمَامِنَّآ إِلَّا لَهُۥ مَقَامٞ مَّعۡلُومٞ ۝ 113
(164) और हमारा हाल तो यह है कि हममें से हर एक का एक मक़ाम मुकर्रर है,
فَـَٔامَنُواْ فَمَتَّعۡنَٰهُمۡ إِلَىٰ حِينٖ ۝ 114
(148) वे ईमान लाए और हमने एक वक़्ते-ख़ास तक उन्हें बाक़ी रखा।
وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلصَّآفُّونَ ۝ 115
(165) और हम सफ़बस्ता ख़िदमतगार हैं
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَلِرَبِّكَ ٱلۡبَنَاتُ وَلَهُمُ ٱلۡبَنُونَ ۝ 116
(149) फिर ज़रा इन लोगों से पूछो, क्या (इनके दिल को यह बात लगती है कि) तुम्हारे रब के लिए तो हों बेटियाँ और इनके लिए हों बेटे?
إِنَّكُمۡ لَذَآئِقُواْ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَلِيمِ ۝ 117
(38) (अब उनसे कहा जाएगा कि) तुम लाज़िमन दर्दनाक सज़ा का मज़ा चखनेवाले हो।
وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡمُسَبِّحُونَ ۝ 118
(166) और तसबीह करनेवाले हैं।”
أَمۡ خَلَقۡنَا ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ إِنَٰثٗا وَهُمۡ شَٰهِدُونَ ۝ 119
(150) क्या वाक़ई हमने मलाइका को औरतें ही बनाया है और ये आँखों देखी बात कह रहे हैं,
وَمَا تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 120
(39) और तुम्हें जो बदला भी दिया जा रहा है उन्हीं आमाल का दिया जा रहा है जो तुम करते रहे हो।
أَلَآ إِنَّهُم مِّنۡ إِفۡكِهِمۡ لَيَقُولُونَ ۝ 121
(151) ख़ूब सुन रखो, दरअस्ल ये लोग अपनी मनगढ़त से यह बात कहते हैं
وَإِن كَانُواْ لَيَقُولُونَ ۝ 122
(167) ये लोग पहले तो कहा करते थे कि
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 123
(40) मगर अल्लाह के चीदा बन्दे (इस अंजामे-बद से) महफ़ूज़ होंगे।
لَوۡ أَنَّ عِندَنَا ذِكۡرٗا مِّنَ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 124
(168) काश हमारे पास वह ‘ज़िक्र’ होता जो पिछली क़ौमों को मिला था
لَكُنَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 125
(169) तो हम अल्लाह के चीदा बन्दे होते!
أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ رِزۡقٞ مَّعۡلُومٞ ۝ 126
(41) उनके लिए जाना-बूझा रिज़्क़ है,
فَكَفَرُواْ بِهِۦۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 127
(170) मगर (जब वह आ गया) तो इन्होंने उसका इनकार कर दिया। अब अन-क़रीब इन्हें (इस रविश का नतीजा) मालूम हो जाएगा।
فَوَٰكِهُ وَهُم مُّكۡرَمُونَ ۝ 128
(42) हर तरह की लज़ीज़ चीज़ें
وَلَقَدۡ سَبَقَتۡ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 129
(171) अपने भेजे हुए बन्दों से हम पहले ही वादा कर चुके हैं
فِي جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ ۝ 130
(43) और नेमत-भरी जन्नतें जिनमें वे इज़्ज़त के साथ रखे जाएँगे।
إِنَّهُمۡ لَهُمُ ٱلۡمَنصُورُونَ ۝ 131
(172) कि यक़ीनन उनकी मदद की जाएगी
وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ ۝ 132
(173) और हमारा लश्कर ही ग़ालिब होकर रहेगा।
عَلَىٰ سُرُرٖ مُّتَقَٰبِلِينَ ۝ 133
(44) तख़्तों पर आमने-सामने बैठेंगे।
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ ۝ 134
(174) पस (ऐ नबी!) ज़रा कुछ मुद्दत तक इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो
يُطَافُ عَلَيۡهِم بِكَأۡسٖ مِّن مَّعِينِۭ ۝ 135
(45) शराब के चश्मों से साग़र भर-भरकर उनके दरमियान फिराए जाएँगे।
وَأَبۡصِرۡهُمۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ ۝ 136
(175) और देखते रहो, अन-क़रीब ये ख़ुद भी देख लेंगे।
بَيۡضَآءَ لَذَّةٖ لِّلشَّٰرِبِينَ ۝ 137
(46) यह चमकती हुई शराब, जो पीनेवालों के लिए लज़्ज़त होगी,
أَفَبِعَذَابِنَا يَسۡتَعۡجِلُونَ ۝ 138
(176) क्या ये हमारे अज़ाब के लिए जल्दी मचा रहे हैं?
لَا فِيهَا غَوۡلٞ وَلَا هُمۡ عَنۡهَا يُنزَفُونَ ۝ 139
(47) न उनके जिस्म को उससे कोई ज़रर होगा और न उनकी अक़्ल उससे ख़राब होगी।
فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمۡ فَسَآءَ صَبَاحُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 140
(177) जब वह इनके सह्न में उतरेगा तो वह दिन उन लोगों के लिए बहुत बुरा होगा, जिन्हें मुतनब्बेह किया जा चुका है।
وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ عِينٞ ۝ 141
(48) और उनके पास निगाहें बचानेवाली, ख़ूबसूरत आँखोंवाली औरतें होंगी,
وَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ ۝ 142
(178) बस ज़रा इन्हें कुछ मुद्दत के लिए छोड़ दो
كَأَنَّهُنَّ بَيۡضٞ مَّكۡنُونٞ ۝ 143
(49) ऐसी नाज़ुक जैसे अंडे के छिलके के नीचे छिपी हुई झिल्ली।
وَأَبۡصِرۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ ۝ 144
(179) और देखते रहो, अन-क़रीब ये ख़ुद देख लेंगे।
فَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ ۝ 145
(50) फिर वे एक-दूसरे की तरफ़ मुतवज्जेह होकर हालात पूछेंगे।
سُبۡحَٰنَ رَبِّكَ رَبِّ ٱلۡعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 146
(180) पाक है तेरा रब, इज़्ज़त का मालिक, उन तमाम बातों से जो ये लोग बना रहे हैं!
قَالَ قَآئِلٞ مِّنۡهُمۡ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٞ ۝ 147
(51) उनमें से एक कहेगा, “दुनिया में मेरा एक हम-नशीन था
وَسَلَٰمٌ عَلَى ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 148
(181) और सलाम है रसूलों पर
مِن دُونِ ٱللَّهِ فَٱهۡدُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 149
(23) जिनकी वे ख़ुदा को छोड़कर बन्दगी किया करते थे, फिर इन सबको जहन्नम का रास्ता दिखाओ।
يَقُولُ أَءِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُصَدِّقِينَ ۝ 150
(52) जो मुझसे कहा करता था, क्या तुम भी तसदीक़ करनेवालों में से हो?
وَقِفُوهُمۡۖ إِنَّهُم مَّسۡـُٔولُونَ ۝ 151
(24) और ज़रा इन्हें ठहराओ, इनसे कुछ पूछना है।
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَدِينُونَ ۝ 152
(53) क्या वाक़ई जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी हो जाएँगे और हड्डियों का पंजर बनकर रह जाएँगे तो हमें जज़ा व सज़ा दी जाएगी?
قَالَ هَلۡ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ ۝ 153
(54) अब क्या आप लोग देखना चाहते हैं कि वे साहब अब कहाँ हैं?”
مَا لَكُمۡ لَا تَنَاصَرُونَ ۝ 154
(25) क्या हो गया तुम्हें, अब क्यों एक-दूसरे की मदद नहीं करते?
بَلۡ هُمُ ٱلۡيَوۡمَ مُسۡتَسۡلِمُونَ ۝ 155
(26) अरे, आज तो ये अपने-आपको (और एक-दूसरे को) हवाले किए दे रहे हैं!
فَٱطَّلَعَ فَرَءَاهُ فِي سَوَآءِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 156
(55) यह कहकर जूँ ही वह झुकेगा तो जहन्नम की गहराई में उसको देख लेगा
وَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ ۝ 157
(27) इसके बाद ये एक-दूसरे की तरफ़ मुड़ेंगे और बाहम तक़रार शुरू कर देंगे।
قَالَ تَٱللَّهِ إِن كِدتَّ لَتُرۡدِينِ ۝ 158
(56) और उससे ख़िताब करके कहेगा, “ख़ुदा की कसम! तू तो मुझे तबाह ही कर देनेवाला था।
قَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَأۡتُونَنَا عَنِ ٱلۡيَمِينِ ۝ 159
(28) (पैरवी करनेवाले अपने पेशवाओं से) कहेंगे, “तुम हमारे पास सीधे रुख़7 से आते थे।”
7. अस्ल में लफ़्ज़ ‘यमीन’ इस्तेमाल हुआ है। मुहावरे की रू से अगर इसको क़ुव्वत और ताक़त के मानी में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि तुम अपने ज़ोर से हमको गुमराही की तरफ़ खींच ले गए। अगर इसको ख़ैर और भलाई के मानों में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि तुमने ख़ैरख़ाह बनकर हमें धोखा दिया और अगर इसको क़सम के मानी में लिया जाए तो इसका मतलब यह होगा कि तुमने क़समें खा-खाकर हमें इत्मीनान दिलाया था कि हक़ वही है जो तुम पेश कर रहे हो।
وَلَوۡلَا نِعۡمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُحۡضَرِينَ ۝ 160
(57) मेरे रब का फ़ज़्ल शामिले-हाल न होता तो आज मैं भी उन लोगों में से होता जो पकड़े हुए आए हैं।
قَالُواْ بَل لَّمۡ تَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ ۝ 161
(29) वे जवाब देंगे, “नहीं, बल्कि तुम ख़ुद ईमान लानेवाले न थे,
أَفَمَا نَحۡنُ بِمَيِّتِينَ ۝ 162
(58) अच्छा8 तो क्या अब हम मरनेवाले नहीं हैं?
8. अंदाज़े-कलाम साफ़ बता रहा है कि अपने उस दोज़ख़ी यार से कलाम करते-करते यकायक ये जन्नती शख़्स अपने-आपसे कलाम करने लगता है और ये फ़िक़रे उसकी ज़बान से इस तरह अदा होते हैं जैसे कोई शख़्स अपने-आपको हर तवक़्क़ो और हर अंदाज़े से बरतर हालत में पाकर इन्तिहाई हैरत व इस्तेजाब और वुफ़ूरे-मसर्रत के साथ आप-ही-आप बोल रहा हो।
وَٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 163
(182) और सारी तारीफ़ अल्लाह रब्बुल-आलमीन ही के लिए है!
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيۡكُم مِّن سُلۡطَٰنِۭۖ بَلۡ كُنتُمۡ قَوۡمٗا طَٰغِينَ ۝ 164
(30) हमारा तुमपर कोई ज़ोर न था, तुम ख़ुद ही सरकश लोग थे,
إِلَّا مَوۡتَتَنَا ٱلۡأُولَىٰ وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ ۝ 165
(59) मौत जो हमें आनी थी वह बस पहले आ चुकी? अब हमें कोई अज़ाब नहीं होना?”
فَحَقَّ عَلَيۡنَا قَوۡلُ رَبِّنَآۖ إِنَّا لَذَآئِقُونَ ۝ 166
(31) आख़िरकार हम अपने रब के इस फ़रमान के मुस्तहिक़ हो गए कि हम अज़ाब का मज़ा चखनेवाले हैं।
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ ۝ 167
(60) यक़ीनन यही अज़ीमुश्शान कामयाबी है।
لِمِثۡلِ هَٰذَا فَلۡيَعۡمَلِ ٱلۡعَٰمِلُونَ ۝ 168
(61) ऐसी ही कामयाबी के लिए अमल करनेवालों को अमल करना चाहिए।
أَذَٰلِكَ خَيۡرٞ نُّزُلًا أَمۡ شَجَرَةُ ٱلزَّقُّومِ ۝ 169
(62) बोलो, यह ज़ियाफ़त अच्छी है। या ‘ज़क़्क़ूम’ का दरख़्त?
إِنَّا جَعَلۡنَٰهَا فِتۡنَةٗ لِّلظَّٰلِمِينَ ۝ 170
(63) हमने उस दरख़्त को ज़ालिमों के लिए फ़ित्ना बना दिया है।9
9. यानी मुनकिरीन यह बात सुनकर क़ुरआन पर तान और नबी (सल्ल०) पर इस्तिहज़ा का एक नया मौक़ा पा लेते हैं। वे इसपर ठट्ठा मारकर कहते हैं, लो अब नई सुनो, जहन्नम की दहकती हुई आग में दरख़्त उगेगा।
إِنَّهَا شَجَرَةٞ تَخۡرُجُ فِيٓ أَصۡلِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 171
(64) वह एक दरख़्त है जो जहन्नम की तह से निकलता है।
طَلۡعُهَا كَأَنَّهُۥ رُءُوسُ ٱلشَّيَٰطِينِ ۝ 172
(65) उसके शिगूफ़े ऐसे हैं जैसे शैतानों के सर।
فَإِنَّهُمۡ لَأٓكِلُونَ مِنۡهَا فَمَالِـُٔونَ مِنۡهَا ٱلۡبُطُونَ ۝ 173
(66) जहन्नम के लोग उसे खाएँगे और उसी से पेट भरेंगे,
ثُمَّ إِنَّ لَهُمۡ عَلَيۡهَا لَشَوۡبٗا مِّنۡ حَمِيمٖ ۝ 174
(67) फिर इसपर पीने के लिए उनको खौलता हुआ पानी मिलेगा
ثُمَّ إِنَّ مَرۡجِعَهُمۡ لَإِلَى ٱلۡجَحِيمِ ۝ 175
(68) और इसके बाद उनकी वापसी उसी आतिशे-दोज़ख़ की तरफ़ होगी।
إِنَّهُمۡ أَلۡفَوۡاْ ءَابَآءَهُمۡ ضَآلِّينَ ۝ 176
(69) ये वे लोग है जिन्होंने अपने बाप-दादा का गुमराह पाया
فَهُمۡ عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِمۡ يُهۡرَعُونَ ۝ 177
(70) और उन्हीं के नक़्शे-क़दम पर दौड़ चले,
وَلَقَدۡ ضَلَّ قَبۡلَهُمۡ أَكۡثَرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 178
(71) हालाँकि उनसे पहले बहुत-से लोग गुमराह हो चुके थे
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ ۝ 179
(72) और उनमें हमने तंबीह करनेवाले रसूल भेजे थे।
فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 180
(73) अब देख लो कि उन तंबीह किए जानेवालों का क्या अंजाम हुआ।
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 181
(74) इस बदअंजामी से बस अल्लाह के वही बन्दे बचे हैं जिन्हें उसने अपने लिए ख़ालिस कर लिया है।