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سُورَةُ المُزَّمِّلِ

73. अल-मुज़्ज़म्मिल

(मक्का में उतरी, आयतें 20)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के शब्द 'अल-मुज़्ज़म्मिल' (ओढ़-लपेटकर सोनेवाले) को इस सूरा का नाम दिया गया है। यह केवल नाम है, विषय-वस्तु की दृष्टि से इसका शीर्षक नहीं है।

उतरने का समय

इस सूरा के दो खण्ड हैं (पहला खण्ड आरम्भ से आयत 19 तक और सूरा का शेष भाग दूसरा खण्ड है।) दोनों खण्ड दो अलग-अलग समयों में अवतरित हुए हैं। पहला खण्ड सर्वसम्मति से मक्की है। रहा यह प्रश्न कि यह मक्की जीवन के किस कालखण्ड में अवतरित हुआ है, तो इस खण्ड की वार्ताओं के आन्तरिक साक्ष्य [से मालूम होता है कि पहली बात यह कि यह नबी (सल्ल०) की नुबूवत के प्रारम्भिक काल ही में अवतरित हुआ होगा जबकि अल्लाह की ओर से इस पद के लिए आपको प्रशिक्षित किया जा रहा था। दूसरी बात यह कि उस समय कुरआन मजीद का कम से कम इतना अंश अवतरित हो चुका था कि उसका पाठ करने में अच्छा-खासा समय लग सके। तीसरी बात यह कि [उस समय] अल्लाह के रसूल (सल्ल०) इस्लाम का खुले रूप में प्रचार करना आरम्भ कर चुके थे और मक्का में आपका विरोध ज़ोरों से होने लगा था। दूसरे खण्ड के सम्बन्ध में यद्यपि बहुत-से टीकाकारों ने यह विचार व्यक्त किया है कि वह भी मक्का ही में अवतरित हुआ है, किन्तु कुछ दूसरे टीकाकारों ने उसे मदनी ठहराया है। और इस [के अन्दर ख़ुदा के मार्ग में युद्ध का उल्लेख और ज़कात फ़र्ज़ होने के आदेश की मौजूदगी] से इसी विचार को समर्थन मिलता है।

विषय और वार्ता

पहली 7 आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को आदेश दिया गया है कि जिस महान कार्य का बोझ आपपर डाला गया है, उसके दायित्वों के निर्वाह के लिए आप अपने आपको तैयार करें और उसका व्यावहारिक रूप यह बताया गया है कि रातों को उठकर आप आधी-आधी रात या उससे कुछ कम-ज़्यादा नमाज़ पढ़ा करें। आयत 8 से 14 तक नबी (सल्ल.) को यह शिक्षा दी गई है कि सबसे कटकर उस प्रभु के हो रहें जो सारे जगत् का मालिक है। अपने सारे मामले उसी को सौंपकर निश्चिन्त हो जाएँ। विरोधी जो बातें आपके विरुद्ध बना रहे हैं उनपर धैर्य से काम लें, उनके मुँह न लगें और उनका मामला ईश्वर पर छोड़ दें कि वही उनसे निबट लेगा। इसके बाद आयत 15 से 19 तक मक्का के उन लोगों को, जो अल्लाह के रसूल (सल्ल०) का विरोध कर रहे थे, सावधान किया गया है कि हमने उसी तरह तुम्हारी ओर एक रसूल भेजा है जिस तरह फ़िरऔन की ओर भेजा था। फिर देख लो कि जब फ़िरऔन ने अल्लाह के रसूल की बात न मानी तो उसका क्या परिणाम हुआ। यदि मान लो कि दुनिया में तुमपर कोई यातना नहीं आई तो क़ियामत के दिन तुम कुफ़्र (इनकार) के दण्ड से कैसे बच निकलोगे? ये पहले खण्ड की वार्ताएँ हैं। दूसरे खण्ड में तहज्जुद की नमाज़ (अनिवार्य नमाज़ों के अतिरिक्त रात में पढ़ी जानेवाली नमाज़ जो अनिवार्य तो नहीं है किन्तु ईमानवालों के जीवन में इसका महत्त्व कुछ कम भी नहीं है) के सम्बन्ध में उस आरम्भिक आदेश के सिलसिले में कुछ छूट दे दी गई जो पहले खण्ड के आरम्भ में दिया गया था। अब यह आदेश दिया गया कि जहाँ तक तहज्जुद की नमाज़ का सम्बन्ध है, वह तो जितनी आसानी से पढ़ी जा सके, पढ़ लिया करो, किन्तु मुसलमानों को मौलिक रूप से जिस चीज़ का पूर्ण रूप से आयोजन करना चाहिए वह यह है कि पाँच वक़्तों की अनिवार्य नमाज़ पूरी पाबन्दी के साथ क़ायम रखें, ज़कात (दान) देने के अनिवार्य कर्त्तव्य का ठीक-ठीक पालन करते रहें और अल्लाह के मार्ग में अपना माल शुद्ध हृदयता के साथ ख़र्च करें । अन्त में मुसलमानों को यह शिक्षा दी गई है कि जो भलाई के काम तुम दुनिया में करोगे वे विनष्ट नहीं होंगे, बल्कि अल्लाह के यहाँ तुम्हें उनका बड़ा प्रतिदान प्राप्त होगा।

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سُورَةُ المُزَّمِّلِ
73. अल-मुज़्ज़म्मिल
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمُزَّمِّلُ ۝ 1
ऐ कपड़े में लिपटनेवाले!॥1॥
قُمِ ٱلَّيۡلَ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 2
रात को उठकर (नमाज़ में) खड़े रहा करो — सिवाय कम रातों के — आधी रात ॥2॥॥3॥
نِّصۡفَهُۥٓ أَوِ ٱنقُصۡ مِنۡهُ قَلِيلًا ۝ 3
أَوۡ زِدۡ عَلَيۡهِ وَرَتِّلِ ٱلۡقُرۡءَانَ تَرۡتِيلًا ۝ 4
या उससे कुछ थोड़ा कम कर लो या उससे कुछ अधिक बढ़ा लो और क़ुरआन को भली-भाँति ठहर-ठहरकर पढ़ो। —॥4॥
إِنَّا سَنُلۡقِي عَلَيۡكَ قَوۡلٗا ثَقِيلًا ۝ 5
निश्‍चय ही हम तुमपर एक भारी बात डालनेवाले हैं।॥5॥
إِنَّ نَاشِئَةَ ٱلَّيۡلِ هِيَ أَشَدُّ وَطۡـٔٗا وَأَقۡوَمُ قِيلًا ۝ 6
निस्संदेह रात का उठना अत्यन्त अनुकूलता रखता है और बात भी उसमें अत्यन्त सधी हुई होती है।॥6॥
إِنَّ لَكَ فِي ٱلنَّهَارِ سَبۡحٗا طَوِيلٗا ۝ 7
निश्‍चय ही तुम्हारे लिए दिन में भी (तसबीह की) बड़ी गुंजाइश है। —॥7॥
وَٱذۡكُرِ ٱسۡمَ رَبِّكَ وَتَبَتَّلۡ إِلَيۡهِ تَبۡتِيلٗا ۝ 8
और अपने रब के नाम का ज़िक्र किया करो और सबसे कटकर उसी के हो रहो।॥8॥
رَّبُّ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ فَٱتَّخِذۡهُ وَكِيلٗا ۝ 9
वह पूर्व और पश्चिम का रब है, उसके सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, अतः तुम उसी को अपना कार्यसाधक बना लो।॥9॥
وَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَٱهۡجُرۡهُمۡ هَجۡرٗا جَمِيلٗا ۝ 10
और जो कुछ वे कहते हैं उसपर धैर्य से काम लो और भली रीति से उनसे अलग हो जाओ।॥10॥
وَذَرۡنِي وَٱلۡمُكَذِّبِينَ أُوْلِي ٱلنَّعۡمَةِ وَمَهِّلۡهُمۡ قَلِيلًا ۝ 11
और तुम मुझे और झुठलानेवाले सुख-सम्पन्‍न लोगों को छोड़ दो और उन्हें थोड़ी मुहलत दो।॥11॥
إِنَّ لَدَيۡنَآ أَنكَالٗا وَجَحِيمٗا ۝ 12
निश्‍चय ही हमारे पास बेड़ियाँ हैं और भड़कती हुई आग॥12॥
وَطَعَامٗا ذَا غُصَّةٖ وَعَذَابًا أَلِيمٗا ۝ 13
और गले में अटकनेवाला भोजन है और दुखद यातना,॥13॥
يَوۡمَ تَرۡجُفُ ٱلۡأَرۡضُ وَٱلۡجِبَالُ وَكَانَتِ ٱلۡجِبَالُ كَثِيبٗا مَّهِيلًا ۝ 14
जिस दिन धरती और पहाड़ काँप उठेंगे और पहाड़ रेत के ऐसे ढेर होकर रह जाएँगे जो बिखरे जा रहे होंगे।॥14॥
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ رَسُولٗا شَٰهِدًا عَلَيۡكُمۡ كَمَآ أَرۡسَلۡنَآ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ رَسُولٗا ۝ 15
निश्‍चय ही हुमने तुम्हारी ओर एक रसूल तुमपर गवाह बनाकर भेजा है, जिस प्रकार हमने फ़िरऔन की ओर एक रसूल भेजा था।॥15॥
فَعَصَىٰ فِرۡعَوۡنُ ٱلرَّسُولَ فَأَخَذۡنَٰهُ أَخۡذٗا وَبِيلٗا ۝ 16
किन्तु फ़िरऔन ने रसूल की अवज्ञा कि तो हमने उसे पकड़ लिया, और यह पकड़ सख़्त वबाल (मुसीबत) थी।॥16॥
فَكَيۡفَ تَتَّقُونَ إِن كَفَرۡتُمۡ يَوۡمٗا يَجۡعَلُ ٱلۡوِلۡدَٰنَ شِيبًا ۝ 17
यदि तुमने इनकार किया तो उस दिन से कैसे बचोगे जो बच्‍चों को बूढ़ा कर देगा?॥17॥
ٱلسَّمَآءُ مُنفَطِرُۢ بِهِۦۚ كَانَ وَعۡدُهُۥ مَفۡعُولًا ۝ 18
आकाश उसके कारण फट जानेवाली चीज़ है, उसके वादे को तो समझो कि पूरा हो चुका है।॥18॥
إِنَّ هَٰذِهِۦ تَذۡكِرَةٞۖ فَمَن شَآءَ ٱتَّخَذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِيلًا ۝ 19
निश्‍चय ही यह एक याददिहानी है। अब जो चाहे अपने रब की ओर मार्ग ग्रहण कर ले।॥19॥
۞إِنَّ رَبَّكَ يَعۡلَمُ أَنَّكَ تَقُومُ أَدۡنَىٰ مِن ثُلُثَيِ ٱلَّيۡلِ وَنِصۡفَهُۥ وَثُلُثَهُۥ وَطَآئِفَةٞ مِّنَ ٱلَّذِينَ مَعَكَۚ وَٱللَّهُ يُقَدِّرُ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَۚ عَلِمَ أَن لَّن تُحۡصُوهُ فَتَابَ عَلَيۡكُمۡۖ فَٱقۡرَءُواْ مَا تَيَسَّرَ مِنَ ٱلۡقُرۡءَانِۚ عَلِمَ أَن سَيَكُونُ مِنكُم مَّرۡضَىٰ وَءَاخَرُونَ يَضۡرِبُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ يَبۡتَغُونَ مِن فَضۡلِ ٱللَّهِ وَءَاخَرُونَ يُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۖ فَٱقۡرَءُواْ مَا تَيَسَّرَ مِنۡهُۚ وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَقۡرِضُواْ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗاۚ وَمَا تُقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُم مِّنۡ خَيۡرٖ تَجِدُوهُ عِندَ ٱللَّهِ هُوَ خَيۡرٗا وَأَعۡظَمَ أَجۡرٗاۚ وَٱسۡتَغۡفِرُواْ ٱللَّهَۖ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمُۢ ۝ 20
निस्संदेह तुम्हारा रब जानता है कि तुम लगभग दो तिहाई रात, आधी रात और एक तिहाई रात तक (नमाज़ में) खड़े रहते हो, और एक गिरोह उन लोगों में से भी जो तुम्हारे साथ है, खड़ा होता है। और अल्लाह रात और दिन की घट-बढ़ नियत करता है। उसे मालूम है कि तुम सब उसका निर्वाह न कर सकोगे, अतः उसने तुमपर दया-दृष्टि की। अब जितना क़ुरआन आसानी से हो सके पढ़ लिया करो। उसे मालूम है कि तुममें से कुछ बीमार भी होंगे, और कुछ दूसरे लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह (रोज़ी) को ढूँढ़ते हुए धरती में यात्रा करेंगे, कुछ दूसरे लोग अल्लाह के मार्ग में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जितना आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो, और अल्लाह को क़र्ज़ दो, अच्छा क़र्ज़। तुम जो भलाई भी अपने लिए (आगे) भेजोगे उसे अल्लाह के यहाँ अत्युत्तम और प्रतिदान की दृष्टि से बहुत बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से माफ़ी माँगते रहो। बेशक अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।॥20॥