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سُورَةُ الحُجُرَاتِ

49. अल-हुजुरात

(मदीना में उतरी, आयतें 18)

परिचय

नाम

आयत 4 के वाक्यांश "इन्नल्लज़ी-न युनादू-न-क मिंव-वरा-इल हुजुरात" (जो लोग तुम्हें कमरों अर्थात् हुजरों के बाहर से पुकारते हैं) से लिया गया है। तात्पर्य यह है कि वह सूरा जिसमें शब्द हुजुरात आया है।

उतरने का समय

यह बात उल्लेखों से भी मालूम होती है और सूरा की विषय-वस्तु से भी इसकी पुष्टि होती है कि यह सूरा अलग-अलग मौक़ों पर उतरे आदेशों और निर्देशों का संग्रह है जिन्हें विषय की अनुकूलता के कारण जमा कर दिया गया है। इसके अलावा उल्लेखों से यह भी मालूम होता है कि इनमें से अधिकतर आदेश मदीना तय्यिबा के अन्तिम समय में उतरे हैं।

विषय और वार्ता

इस सूरा का विषय मुसलमानों को उन शिष्ट नियमों की शिक्षा देना है जो ईमानवालों के गौरव के अनुकूल है। आरंभ की पाँच आयतों में उनको वह नियम सिखाया गया है जिसका उन्हें अल्लाह और उसके रसूल के मामले में ध्यान रखना चाहिए। फिर यह आदेश दिया गया है कि अगर किसी आदमी या गिरोह या क़ौम के विरुद्ध कोई ख़बर मिले तो ध्यान से देखना चाहिए कि ख़बर मिलने का माध्यम भरोसे का है या नहीं। भरोसे का न हो तो उसपर कार्रवाई करने से पहले जाँच-पड़ताल कर लेनी चाहिए कि ख़बर सही है या नहीं। इसके बाद यह बताया गया है कि अगर किसी समय मुसलमानों के दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें तो इस स्थिति में दूसरे मुसलमानों को क्या नीति अपनानी चाहिए।

फिर मुसलमानों को उन बुराइयों से बचने की ताकीद की गई है जो सामाजिक जीवन में बिगाड़ पैदा करती हैं और जिनकी वजह से आपस के सम्बन्ध ख़राब होते हैं। इसके बाद उन क़ौमी (जातीय) और नस्ली (वंशगत) भेद-भाव पर चोट की गई है जो दुनिया में व्यापक बिगाड़ का कारण बनते हैं। [इस सिलसिले में] सर्वोच्च अल्लाह ने यह कहकर इस बुराई की जड़ काट दी है कि तमाम इंसान एक ही मूल (अस्ल) से पैदा हुए हैं और क़ौमों और क़बीलो में उनका बँट जाना परिचय के लिए है, न कि आपस में गर्व के लिए। और एक इंसान पर दूसरे इंसान की श्रेष्ठता के लिए नैतिक श्रेष्ठता के सिवा और कोई वैध आधार नहीं है। अन्त में लोगों को बताया गया है कि मौलिक चीज़ ईमान का मौखिक दावा नहीं है, बल्कि सच्चे दिल से अल्लाह और उसके रसूल को मानना, व्यावहारिक रूप से आज्ञापालक बनकर रहना और निष्ठा के साथ अल्लाह की राह में अपनी जान और माल खपा देना है।

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سُورَةُ الحُجُرَاتِ
49. अल-हुजुरात
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيِ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ ۝ 1
ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढ़ो और अल्लाह का डर रखो। निश्‍चय ही अल्लाह सुनता, जानता है।॥1॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَرۡفَعُوٓاْ أَصۡوَٰتَكُمۡ فَوۡقَ صَوۡتِ ٱلنَّبِيِّ وَلَا تَجۡهَرُواْ لَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ كَجَهۡرِ بَعۡضِكُمۡ لِبَعۡضٍ أَن تَحۡبَطَ أَعۡمَٰلُكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ ۝ 2
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़ से ऊँची न करो। और जिस तरह तुम आपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उनसे ऊँची आवाज़ से बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो।॥2॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَغُضُّونَ أَصۡوَٰتَهُمۡ عِندَ رَسُولِ ٱللَّهِ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱمۡتَحَنَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُمۡ لِلتَّقۡوَىٰۚ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٌ عَظِيمٌ ۝ 3
वे लोग जो अल्लाह के रसूल के समक्ष अपनी आवाज़ों को दबी रखते हैं, वही लोग हैं जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँचकर चुन लिया है। उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है।॥3॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُنَادُونَكَ مِن وَرَآءِ ٱلۡحُجُرَٰتِ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ ۝ 4
जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते है उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते।॥4॥
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ صَبَرُواْ حَتَّىٰ تَخۡرُجَ إِلَيۡهِمۡ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 5
यदि वे धैर्य से काम लेते, यहाँ तक कि तुम स्वयं निकलकर उनके पास आ जाते, तो यह उनके लिए अच्छा होता। किन्तु अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।॥5॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن جَآءَكُمۡ فَاسِقُۢ بِنَبَإٖ فَتَبَيَّنُوٓاْ أَن تُصِيبُواْ قَوۡمَۢا بِجَهَٰلَةٖ فَتُصۡبِحُواْ عَلَىٰ مَا فَعَلۡتُمۡ نَٰدِمِينَ ۝ 6
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी1 तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ।॥6॥ ———————— 1. अर्थात् वह व्यक्ति जो शरीअत के आदेशों को खुल्लम-खुल्ला तोड़ता हो।
وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ فِيكُمۡ رَسُولَ ٱللَّهِۚ لَوۡ يُطِيعُكُمۡ فِي كَثِيرٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ لَعَنِتُّمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ حَبَّبَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَزَيَّنَهُۥ فِي قُلُوبِكُمۡ وَكَرَّهَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡكُفۡرَ وَٱلۡفُسُوقَ وَٱلۡعِصۡيَانَۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلرَّٰشِدُونَ ۝ 7
जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह का रसूल मौजूद है। बहुत-से मामलों में यदि वह तुम्हारी बात मान ले तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। किन्तु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुन्दरता दे दी और इनकार, उल्लंघन और अवज्ञा को तुम्हारे लिए बहुत अप्रिय बना दिया।॥7॥
فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَنِعۡمَةٗۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ ۝ 8
ऐसे ही लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह और उसकी अनुकम्पा से सूझ-बूझवाले हैं। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है।॥8॥
وَإِن طَآئِفَتَانِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱقۡتَتَلُواْ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَاۖ فَإِنۢ بَغَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا عَلَى ٱلۡأُخۡرَىٰ فَقَٰتِلُواْ ٱلَّتِي تَبۡغِي حَتَّىٰ تَفِيٓءَ إِلَىٰٓ أَمۡرِ ٱللَّهِۚ فَإِن فَآءَتۡ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَا بِٱلۡعَدۡلِ وَأَقۡسِطُوٓاْۖ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ ۝ 9
यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें तो उनके बीच आपस में सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गिरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो2, और इनसाफ़ करो। निश्‍चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है।॥9॥ ———————— 2. अर्थात् इस बात को न भूलो कि लड़ाई के बावजूद दोनों गिरोह आपस में भाई-भाई हैं।
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِخۡوَةٞ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَ أَخَوَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ۝ 10
मोमिन तो भाई-भाई ही हैं। अतः अपने दो भाइयो के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए।॥10॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَسۡخَرۡ قَوۡمٞ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُونُواْ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَآءٞ مِّن نِّسَآءٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُواْ بِٱلۡأَلۡقَٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن لَّمۡ يَتُبۡ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 11
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! न पुरुषों का कोई गिरोह दूसरे पुरुषों की हँसी उड़ाए, संभव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसी उड़ाएँ, संभव है वे उनसे अच्छी हों, और न अपनों पर ताने कसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो। ईमान के बाद अवज्ञाकारी का नाम जुड़ना बहुत ही बुरा है। और जो व्यक्ति बाज़ न आए, तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं।॥11॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱجۡتَنِبُواْ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلظَّنِّ إِنَّ بَعۡضَ ٱلظَّنِّ إِثۡمٞۖ وَلَا تَجَسَّسُواْ وَلَا يَغۡتَب بَّعۡضُكُم بَعۡضًاۚ أَيُحِبُّ أَحَدُكُمۡ أَن يَأۡكُلَ لَحۡمَ أَخِيهِ مَيۡتٗا فَكَرِهۡتُمُوهُۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ تَوَّابٞ رَّحِيمٞ ۝ 12
ऐ ईमान लानेवालो! बहुत-से गुमानों से बचो, क्योंकि कुछ गुमान गुनाह होते हैं। और न टोह में पड़ो और न तुममें से कोई किसी की पीठ पीछे निन्दा करे — क्या तुममें से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह अपने मरे हुए भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगा ही। — और अल्लाह का डर रखो। निश्‍चय ही अल्लाह तौबा क़ुबूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।॥12॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّا خَلَقۡنَٰكُم مِّن ذَكَرٖ وَأُنثَىٰ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ شُعُوبٗا وَقَبَآئِلَ لِتَعَارَفُوٓاْۚ إِنَّ أَكۡرَمَكُمۡ عِندَ ٱللَّهِ أَتۡقَىٰكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٞ ۝ 13
ऐ लोगो! हमनें तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बीलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है जो तुममें सबसे अधिक डर रखता है। निश्‍चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है।॥13॥
۞قَالَتِ ٱلۡأَعۡرَابُ ءَامَنَّاۖ قُل لَّمۡ تُؤۡمِنُواْ وَلَٰكِن قُولُوٓاْ أَسۡلَمۡنَا وَلَمَّا يَدۡخُلِ ٱلۡإِيمَٰنُ فِي قُلُوبِكُمۡۖ وَإِن تُطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَا يَلِتۡكُم مِّنۡ أَعۡمَٰلِكُمۡ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ ۝ 14
बद्‌दुओं ने कहा कि, "हम ईमान लाए।" कह दो, "तुम ईमान नहीं लाए। किन्तु यूँ कहो, 'हम तो आज्ञाकारी हुए' ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में दाख़िल ही नहीं हुआ। यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हारे कर्मों में से तुम्हारे लिए कुछ कम न करेगा। निश्‍चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।" ॥14॥
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ لَمۡ يَرۡتَابُواْ وَجَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلصَّٰدِقُونَ ۝ 15
मोमिन तो बस वही लोग हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उन्होंने कोई सन्देह नहीं किया और अपने मालों और अपनी जानों से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया। वही लोग सच्‍चे हैं।॥15॥
قُلۡ أَتُعَلِّمُونَ ٱللَّهَ بِدِينِكُمۡ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ ۝ 16
कहो, "क्या तुम अल्लाह को अपने धर्म की सूचना दे रहे हो। हालाँकि जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, अल्लाह सब जानता है? अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है।"॥16॥
يَمُنُّونَ عَلَيۡكَ أَنۡ أَسۡلَمُواْۖ قُل لَّا تَمُنُّواْ عَلَيَّ إِسۡلَٰمَكُمۖ بَلِ ٱللَّهُ يَمُنُّ عَلَيۡكُمۡ أَنۡ هَدَىٰكُمۡ لِلۡإِيمَٰنِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 17
वे तुमपर एहसान जताते है कि उन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया। कह दो, "तुम मुझपर अपने इस्लाम का एहसान न रखो, बल्कि यदि तुम सच्‍चे हो तो अल्लाह ही तुमपर एहसान रखता है कि उसने तुम्हें ईमान की राह दिखाई। —॥17॥
إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ غَيۡبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ ۝ 18
"निश्‍चय ही अल्लाह आकाशों और धरती की हर छिपी चीज़ को जानता है। और अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम करते हो।"॥18॥