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سُورَةُ الرَّعۡدِ

13. अर-रअद

(मक्का में उतरी- आयतें 43)

परिचय

नाम

आयत 13 के वाक्‍य ‘व युसब्बि‍हुर-रअ-दु बिहम्दिही वल-मलाइकतु मिन ख़ीफ़तिही’ के शब्‍द 'अर-रअ़द' (बादल की गरज) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है। इस नाम का यह अर्थ नहीं है कि इस सूरा में बादल की गरज के बारे में बात की गई है, बल्कि यह केवल प्रतीक के रूप में स्पष्ट करता है कि यह वह सूरा है जिसमें शब्द 'अर-अद' आया है या जिसमें ‘रअद’ का उल्लेख हुआ है।

उतरने का समय

आयत 27 से 31 और आयत 38 से 43 तक के विषय गवाही देते हैं कि यह उसी समय की है जिसमें सूरा 10 यूनुस, सूरा-11 हूद और सूरा 7 आराफ़ उतरी हैं, अर्थात मक्का में निवास का अन्तिम युग। वर्णन शैली से स्पष्ट हो रहा है कि नबी (सल्ल०) को इस्लाम का सन्देश पहुँचाते हुए एक लंबी अवधि बीत चुकी है, विरोधी आपको परेशान करने और आपके मिशन को असफल बनाने के लिए तरह-तरह की चाले चलते रहे हैं, ईमानवाले बार-बार कामनाएँ कर रहे हैं कि काश, कोई मोजिज़ा (चमत्कार) दिखाकर ही इन लोगों को सीधे रास्ते पर लाया जाए, और अल्लाह मुसलमानों को समझा रहा है कि ईमान की राह दिखाने का यह तरीक़ा हमारे यहाँ प्रचलित नहीं है और अगर सत्य के विरोधियों की रस्सी लंबी की जा रही है तो यह ऐसी बात नहीं है जिससे तुम घबरा उठो। फिर आयत 31 से यह भी मालूम होता है कि बार-बार विरोधियों की हठधर्मी का ऐसा प्रदर्शन हो चुका है जिसके बाद यह कहना बिल्कुल उचित लगता है कि अगर क़ब्रों से मुर्दे भी उठकर आ जाएँ तो ये लोग न मानेंगे, बल्कि इस घटना की भी कोई न कोई व्याख्या कर डालेंगे। इन सब बातों से यही गुमान होता है कि यह सूरा मक्का के अन्तिम युग में उतरी होगी।

केन्द्रीय विषय

सूरा का उद्देश्य पहली ही आयत में प्रस्तुत कर दिया गया है, अर्थात् यह कि जो कुछ मुहम्मद (सल्ल०) प्रस्तुत कर रहे हैं, वही सत्य है, मगर यह लोगों की ग़लती है कि वे इसे नहीं मानते। सारा भाषण इसी केन्द्रीय विषय के चारों ओर घूमता है। इस सिलसिले में बार-बार अलग-अलग तरीक़ों से तौहीद, आख़िरत और रिसालत का सत्य होना सिद्ध किया गया है। उनपर ईमान लाने के नैतिक एवं आध्यात्मिक लाभ समझाए गए हैं, उनको न मानने की हानियाँ बताई गई हैं और यह मन में बिठाने की कोशिश की गई है कि कुफ़्र पूर्ण रूप से मूर्खता और अज्ञानता है। फिर चूँकि इस सारे वर्णन का उद्देश्य केवल दिमाग़ों को सन्तुष्ट करना ही नहीं है, दिलों को ईमान की ओर खींचना भी है, इसलिए निरे तार्किक प्रमाणों से काम नहीं लिया गया है, बल्कि एक-एक प्रमाण और एक-एक गवाही को प्रस्तुत करने के बाद ठहरकर तरह-तरह से डराया, धमकाया, सत्य की ओर उकसाया और प्यार से समझाया गया है, ताकि नासमझ लोग अपनी गुमराही भरी हठधर्मी से बाज़ आ जाएँ।

व्याख्यान के बीच में जगह-जगह विरोधियों की आपत्तियों का उल्लेख किए बिना इनके उत्तर दिए गए हैं और उन सन्देहों को दूर किया गया है जो मुहम्मद (सल्ल०) के सन्देश के बारे में लोगों के दिलों में पाए जाते थे, या विरोधियों की ओर से डाले जाते थे। इसके साथ ईमानवालों को भी, जो कई वर्षों के लम्बे और कठिन संघर्ष के कारण थके जा रहे थे और बेचैनी के साथ परोक्ष सहायता के इन्तिज़ार में थे, तसल्ली दी गई है।

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سُورَةُ الرَّعۡدِ
13. अर-रअ्द
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।
الٓمٓرۚ تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِۗ وَٱلَّذِيٓ أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ ٱلۡحَقُّ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 1
अलिफ़-लाम-मीम-रा। ये किताब की आयतें है, और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, वह सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मान नहीं रहे हैं॥1॥
ٱللَّهُ ٱلَّذِي رَفَعَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ بِغَيۡرِ عَمَدٖ تَرَوۡنَهَاۖ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ يُدَبِّرُ ٱلۡأَمۡرَ يُفَصِّلُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُم بِلِقَآءِ رَبِّكُمۡ تُوقِنُونَ ۝ 2
अल्लाह वह है जिसने आकाशों को बिना सहारे के ऊँचा बनाया जैसा कि तुम उन्हें देखते हो। फिर वह सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम पर लगाया। हर एक नियत समय तक के लिए चला जा रहा है। वह सारे काम का विधान कर रहा है; वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम्हें अपने रब से मिलने का विश्वास हो॥2॥
وَهُوَ ٱلَّذِي مَدَّ ٱلۡأَرۡضَ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَٰسِيَ وَأَنۡهَٰرٗاۖ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ جَعَلَ فِيهَا زَوۡجَيۡنِ ٱثۡنَيۡنِۖ يُغۡشِي ٱلَّيۡلَ ٱلنَّهَارَۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 3
और वही है जिसने धरती को फैलाया और उसमें जमे हुए पर्वत और नदियाँ बनाईं और हरेक पैदावार की दो-दो क़िस्में बनाईं। वही रात से दिन को छिपा देता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो सोच-विचार से काम लेते हैं॥3॥
وَفِي ٱلۡأَرۡضِ قِطَعٞ مُّتَجَٰوِرَٰتٞ وَجَنَّٰتٞ مِّنۡ أَعۡنَٰبٖ وَزَرۡعٞ وَنَخِيلٞ صِنۡوَانٞ وَغَيۡرُ صِنۡوَانٖ يُسۡقَىٰ بِمَآءٖ وَٰحِدٖ وَنُفَضِّلُ بَعۡضَهَا عَلَىٰ بَعۡضٖ فِي ٱلۡأُكُلِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 4
और धरती में पास-पास भू-भाग पाए जाते हैं जो परस्पर मिले हुए हैं, और अंगूरों के बाग़ हैं और खेतियाँ है औऱ खजूर के पेड़ हैं, इकहरे भी और दोहरे भी। सबको एक ही पानी सिंचित करता है, फिर भी हम पैदावार और स्वाद में किसी को किसी के मुक़ाबले में बढ़ा देते हैं। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो बुद्धि से काम लेते हैं॥4॥
۞وَإِن تَعۡجَبۡ فَعَجَبٞ قَوۡلُهُمۡ أَءِذَا كُنَّا تُرَٰبًا أَءِنَّا لَفِي خَلۡقٖ جَدِيدٍۗ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ ٱلۡأَغۡلَٰلُ فِيٓ أَعۡنَاقِهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 5
अब यदि तुम्हें आश्चर्य ही करना है तो आश्चर्य की बात तो उनका यह कहना है कि ,"क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा भी होंगे?" वही हैं जिन्होंने अपने रब के साथ इनकार की नीति अपनाई और वही हैं जिनकी गर्दनों मे तौक़ पड़े हुए हैं और वही आग (में पड़ने) वाले हैं जिसमें उन्हें सदैव रहना है॥5॥
وَيَسۡتَعۡجِلُونَكَ بِٱلسَّيِّئَةِ قَبۡلَ ٱلۡحَسَنَةِ وَقَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِمُ ٱلۡمَثُلَٰتُۗ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةٖ لِّلنَّاسِ عَلَىٰ ظُلۡمِهِمۡۖ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ ۝ 6
वे भलाई से पहले बुराई के लिए तुमसे जल्दी मचा रहे हैं, हालाँकि उनसे पहले कितनी ही शिक्षाप्रद मिसालें गुज़र चुकी हैं। किन्तु तुम्हारा रब लोगों को उनके अत्याचार के बावजूद क्षमा कर देता है, और वास्तव में तुम्हारा रब दण्ड देने में भी बहुत कठोर है॥6॥
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡلَآ أُنزِلَ عَلَيۡهِ ءَايَةٞ مِّن رَّبِّهِۦٓۗ إِنَّمَآ أَنتَ مُنذِرٞۖ وَلِكُلِّ قَوۡمٍ هَادٍ ۝ 7
जिन्होंने इनकार किया वे कहते हैं, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं अवतरित हुई?" तुम तो बस एक चेतावनी देनेवाले हो, और हर क़ौम के लिए एक मार्गदर्शक हुआ है॥7॥
ٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا تَحۡمِلُ كُلُّ أُنثَىٰ وَمَا تَغِيضُ ٱلۡأَرۡحَامُ وَمَا تَزۡدَادُۚ وَكُلُّ شَيۡءٍ عِندَهُۥ بِمِقۡدَارٍ ۝ 8
किसी भी स्त्री-जाति को जो भी गर्भ रहता है अल्लाह उसे जान रहा होता है और उसे भी जो गर्भाशय में कमी-बेशी होती है, और उसके यहाँ हर एक चीज़ का एक निश्चित अन्दाज़ा है॥8॥
عَٰلِمُ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ ٱلۡكَبِيرُ ٱلۡمُتَعَالِ ۝ 9
वह परोक्ष और प्रत्यक्ष का ज्ञाता है, महान, अत्यन्त उच्च है॥9॥
سَوَآءٞ مِّنكُم مَّنۡ أَسَرَّ ٱلۡقَوۡلَ وَمَن جَهَرَ بِهِۦ وَمَنۡ هُوَ مُسۡتَخۡفِۭ بِٱلَّيۡلِ وَسَارِبُۢ بِٱلنَّهَارِ ۝ 10
तुममें से कोई चुपके से बात करे और जो कोई ज़ोर से और जो कोई रात में छिपता हो और जो दिन में चलता-फिरता दीख पड़ता हो, उसके लिए सब बराबर है॥10॥
لَهُۥ مُعَقِّبَٰتٞ مِّنۢ بَيۡنِ يَدَيۡهِ وَمِنۡ خَلۡفِهِۦ يَحۡفَظُونَهُۥ مِنۡ أَمۡرِ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُغَيِّرُ مَا بِقَوۡمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمۡۗ وَإِذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِقَوۡمٖ سُوٓءٗا فَلَا مَرَدَّ لَهُۥۚ وَمَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَالٍ ۝ 11
उसके रक्षक (पहरेदार) उसके अपने आगे और पीछे लगे होते हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी रक्षा करते हैं। किसी क़ौम के लोगों को जो कुछ प्राप्त़ होता है अल्लाह उसे बदलता नहीं, जब तक कि वे स्वयं अपने आपको न बदल डालें। और जब अल्लाह किसी क़ौम का अनिष्ट चाहता है तो फिर वह उससे टल नहीं सकता, और उससे हटकर उनका कोई समर्थक और संरक्षक भी नहीं॥11॥
هُوَ ٱلَّذِي يُرِيكُمُ ٱلۡبَرۡقَ خَوۡفٗا وَطَمَعٗا وَيُنشِئُ ٱلسَّحَابَ ٱلثِّقَالَ ۝ 12
वही है जो भय और आशा के लिए तुम्हें बिजली की चमक दिखाता है और बोझिल बादलों को उठाता है॥12॥
وَيُسَبِّحُ ٱلرَّعۡدُ بِحَمۡدِهِۦ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ مِنۡ خِيفَتِهِۦ وَيُرۡسِلُ ٱلصَّوَٰعِقَ فَيُصِيبُ بِهَا مَن يَشَآءُ وَهُمۡ يُجَٰدِلُونَ فِي ٱللَّهِ وَهُوَ شَدِيدُ ٱلۡمِحَالِ ۝ 13
बादल की गरज उसका गुणगान करती है और उसके भय से काँपते हुए फ़रिश्ते भी। वही कड़कती बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है उन्हें गिरा देता है, जबकि वे अल्लाह के विषय में झगड़ रहे होते हैं। निश्चिय ही उसकी चाल बड़ी सख़्त है॥13॥
لَهُۥ دَعۡوَةُ ٱلۡحَقِّۚ وَٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ لَا يَسۡتَجِيبُونَ لَهُم بِشَيۡءٍ إِلَّا كَبَٰسِطِ كَفَّيۡهِ إِلَى ٱلۡمَآءِ لِيَبۡلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَٰلِغِهِۦۚ وَمَا دُعَآءُ ٱلۡكَٰفِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَٰلٖ ۝ 14
उसी के लिए सच्ची पुकार है। उससे हटकर जिनको वे पुकारते हैं, वे उनकी पुकार का कुछ भी उत्तर नहीं देते। बस यह ऐसा ही होता है जैसे कोई अपने दोनों हाथ पानी की ओर इसलिए फैलाए कि वह उसके मुँह में पहुँच जाए, हालाँकि वह उस तक पहुँचनेवाला नहीं। कुफ़्र करनेवालों की पुकार तो बस भटकने ही के लिए होती है॥14॥
وَلِلَّهِۤ يَسۡجُدُۤ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ طَوۡعٗا وَكَرۡهٗا وَظِلَٰلُهُم بِٱلۡغُدُوِّ وَٱلۡأٓصَالِ۩ ۝ 15
आकाशों और धरती में जो भी हैं स्वेच्छापूर्वक या विवशतापूर्वक अल्लाह ही को सजदा कर रहे हैं और उनकी परछाइयाँ भी प्रातः और संध्या समय॥15॥
قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ قُلِ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَٱتَّخَذۡتُم مِّن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ لَا يَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ نَفۡعٗا وَلَا ضَرّٗاۚ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ أَمۡ هَلۡ تَسۡتَوِي ٱلظُّلُمَٰتُ وَٱلنُّورُۗ أَمۡ جَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَآءَ خَلَقُواْ كَخَلۡقِهِۦ فَتَشَٰبَهَ ٱلۡخَلۡقُ عَلَيۡهِمۡۚ قُلِ ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖ وَهُوَ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّٰرُ ۝ 16
कहो, "आकाशों और धरती का रब कौन है?" कहो, "अल्लाह!" कह दो, "फिर क्या तुमने उससे हटकर दूसरों को अपना संरक्षक बना रखा है, जिन्हें स्वयं अपने भी किसी लाभ का न अधिकार प्राप्त है और न किसी हानि का?" कहो, "क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर होते हैं? या बराबर होते हैं अँधरे और प्रकाश? या उन्होंने जिनको अल्लाह का सहभागी ठहराया है, उन्होंने भी कुछ पैदा किया है, जैसा कि उसने पैदा किया है जिसके कारण सृष्टि का मामला इनके लिए गडुमडु हो गया है?" कहो, "हर चीज़ को पैदा करनेवाला अल्लाह है, और वह अकेला है, सबपर प्रभावी!"॥16॥
أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَالَتۡ أَوۡدِيَةُۢ بِقَدَرِهَا فَٱحۡتَمَلَ ٱلسَّيۡلُ زَبَدٗا رَّابِيٗاۖ وَمِمَّا يُوقِدُونَ عَلَيۡهِ فِي ٱلنَّارِ ٱبۡتِغَآءَ حِلۡيَةٍ أَوۡ مَتَٰعٖ زَبَدٞ مِّثۡلُهُۥۚ كَذَٰلِكَ يَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡحَقَّ وَٱلۡبَٰطِلَۚ فَأَمَّا ٱلزَّبَدُ فَيَذۡهَبُ جُفَآءٗۖ وَأَمَّا مَا يَنفَعُ ٱلنَّاسَ فَيَمۡكُثُ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ كَذَٰلِكَ يَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡأَمۡثَالَ ۝ 17
उसने आकाश से पानी उतारा तो नदी-नाले अपनी-अपनी समाई के अनुसार बह निकले। फिर पानी के बहाव ने उभरे हुए झाग को उठा लिया और उसमें से भी, जिसे वे ज़ेवर या दूसरे सामान बनाने के लिए आग में तपाते हैं, ऐसा ही झाग उठता है। इस प्रकार अल्लाह सत्य और असत्य की मिसाल बयान करता है। फिर जो झाग है वह तो सूखकर नष्ट हो जाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचानेवाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है। इसी प्रकार अल्लाह मिसालें पेश करता है॥17॥
لِلَّذِينَ ٱسۡتَجَابُواْ لِرَبِّهِمُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَٱلَّذِينَ لَمۡ يَسۡتَجِيبُواْ لَهُۥ لَوۡ أَنَّ لَهُم مَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ سُوٓءُ ٱلۡحِسَابِ وَمَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ۝ 18
जिन लोगों ने अपने रब का आमंत्रण स्वीकार कर लिया उनके लिए अच्छा पुरस्कार है। रहे वे लोग जिन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया, यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में है, बल्कि उसके साथ उतना और भी हो तो अपनी मुक्ति के लिए वे सब दे डालें। वही हैं जिनका बुरा हिसाब होगा। उनका ठिकाना जहन्नम है, और वह अत्यन्त बुरा विश्राम-स्थल है॥18॥
۞أَفَمَن يَعۡلَمُ أَنَّمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ ٱلۡحَقُّ كَمَنۡ هُوَ أَعۡمَىٰٓۚ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 19
भला वह व्यक्ति जो जानता है कि जो कुछ तुमपर उतरा है तुम्हारे रब की ओर से सत्य है, कभी उस जैसा हो सकता है जो अंधा है? परन्तु समझते तो वही हैं जो बुद्धि और समझ रखते हैं,॥19॥
ٱلَّذِينَ يُوفُونَ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ وَلَا يَنقُضُونَ ٱلۡمِيثَٰقَ ۝ 20
जो अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करते हैं और अहद (अभिवचन) को तोड़ते नहीं,॥20॥
وَٱلَّذِينَ يَصِلُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ وَيَخَافُونَ سُوٓءَ ٱلۡحِسَابِ ۝ 21
और जो ऐसे हैं कि अल्लाह ने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है उसे जोड़ते हैं और अपने रब से डरते रहते हैं और बुरे हिसाब का उन्हें डर लगा रहता है ॥21॥
وَٱلَّذِينَ صَبَرُواْ ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ رَبِّهِمۡ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ وَيَدۡرَءُونَ بِٱلۡحَسَنَةِ ٱلسَّيِّئَةَ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ۝ 22
और जिन लोगों ने अपने रब की प्रसन्नता की चाह में धैर्य से काम लिया और नमाज़ क़ायम की और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से खुले और छिपे ख़र्च किया और भले चरित्र के द्वारा दुराचार को दूर करते हैं, वही लोग हैं जिनके लिए आख़िरत के घर का अच्छा परिणाम है,॥22॥
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا وَمَن صَلَحَ مِنۡ ءَابَآئِهِمۡ وَأَزۡوَٰجِهِمۡ وَذُرِّيَّٰتِهِمۡۖ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ يَدۡخُلُونَ عَلَيۡهِم مِّن كُلِّ بَابٖ ۝ 23
अर्थात सदैव रहने के बाग़ हैं जिनमें वे प्रवेश करेंगे और उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी संतानों में से जो नेक होंगे वे भी और हर दरवाज़े से फ़रिश्ते उनके पास पहुँचेंगे॥23॥
سَلَٰمٌ عَلَيۡكُم بِمَا صَبَرۡتُمۡۚ فَنِعۡمَ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ۝ 24
(वे कहेंगे) "तुमपर सलाम है उसके बदले में जो तुमने धैर्य से काम लिया।" अतः क्या ही अच्छा परिणाम है आख़िरत के घर का!॥24॥
وَٱلَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِيثَٰقِهِۦ وَيَقۡطَعُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمُ ٱللَّعۡنَةُ وَلَهُمۡ سُوٓءُ ٱلدَّارِ ۝ 25
रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे दृढ़ करने के बाद तोड़ डालते हैं और अल्लाह ने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है उसे काटते हैं और धरती में बिगाड़ पैदा करते हैं। वहीं है जिनके लिए फिटकार है और जिनके लिए आख़िरत का बुरा घर है॥25॥
ٱللَّهُ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ وَفَرِحُواْ بِٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا فِي ٱلۡأٓخِرَةِ إِلَّا مَتَٰعٞ ۝ 26
अल्लाह जिसको चाहता है प्रचुर फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है और इसी प्रकार नपी-तुली भी। और वे सांसारिक जीवन में मग्न हैं, हालाँकि सांसारिक जीवन आख़िरत के हिसाब में तो बस अल्प सुख-सामग्री है॥26॥
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡلَآ أُنزِلَ عَلَيۡهِ ءَايَةٞ مِّن رَّبِّهِۦۚ قُلۡ إِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِيٓ إِلَيۡهِ مَنۡ أَنَابَ ۝ 27
जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते हैं, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी?" कहो, "अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है। अपनी ओर से तो वह मार्गदर्शन उसी का करता है जो रुजू होता है।"॥27॥
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَتَطۡمَئِنُّ قُلُوبُهُم بِذِكۡرِ ٱللَّهِۗ أَلَا بِذِكۡرِ ٱللَّهِ تَطۡمَئِنُّ ٱلۡقُلُوبُ ۝ 28
ऐसे ही लोग हैं जो ईमान लाए और जिनके दिलों को अल्लाह की याद से आराम और चैन मिलता है। सुन लो, अल्लाह की याद से ही दिलों को संतोष प्राप्त हुआ करता है॥28॥
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ طُوبَىٰ لَهُمۡ وَحُسۡنُ مَـَٔابٖ ۝ 29
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए सुख-सौभाग्य है और लौटने का अच्छा ठिकाना है॥29॥
كَذَٰلِكَ أَرۡسَلۡنَٰكَ فِيٓ أُمَّةٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهَآ أُمَمٞ لِّتَتۡلُوَاْ عَلَيۡهِمُ ٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ وَهُمۡ يَكۡفُرُونَ بِٱلرَّحۡمَٰنِۚ قُلۡ هُوَ رَبِّي لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ عَلَيۡهِ تَوَكَّلۡتُ وَإِلَيۡهِ مَتَابِ ۝ 30
अतएव हमने तुम्हें एक ऐसे समुदाय में भेजा है जिससे पहले कितने ही समुदाय गुज़र चुके हैं, ताकि हमने तुम्हारी ओर जो प्रकाशना की है उसे उनको सुना दो, यद्यपि वे रहमान (दयावान प्रभु) के साथ इनकार की नीति अपनाए हुए हैं। कह दो, "वही मेरा रब है। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मुझे पलटकर जाना है।"॥30॥
وَلَوۡ أَنَّ قُرۡءَانٗا سُيِّرَتۡ بِهِ ٱلۡجِبَالُ أَوۡ قُطِّعَتۡ بِهِ ٱلۡأَرۡضُ أَوۡ كُلِّمَ بِهِ ٱلۡمَوۡتَىٰۗ بَل لِّلَّهِ ٱلۡأَمۡرُ جَمِيعًاۗ أَفَلَمۡ يَاْيۡـَٔسِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَن لَّوۡ يَشَآءُ ٱللَّهُ لَهَدَى ٱلنَّاسَ جَمِيعٗاۗ وَلَا يَزَالُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ تُصِيبُهُم بِمَا صَنَعُواْ قَارِعَةٌ أَوۡ تَحُلُّ قَرِيبٗا مِّن دَارِهِمۡ حَتَّىٰ يَأۡتِيَ وَعۡدُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ ۝ 31
और यदि कोई ऐसा क़ुरआन होता जिसके द्वारा पहाड़ चलने लगते या उससे धरती खण्ड-खण्ड हो जाती या उसके द्वारा मुर्दे बोलने लगते (तब भी वे लोग ईमान न लाते)। नहीं, बल्कि बात यह है कि सारे काम अल्लाह ही के अधिकार में है। फिर क्या जो लोग ईमान लाए हैं वे यह जानकर निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग पर लगा देता? और इनकार करनेवालों पर तो उनकी करतूतों के बदले में कोई न कोई आपदा निरंतर आती ही रहेगी, या उनके घर के निकट ही कहीं उतरती रहेगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वादा आ पूरा होगा। निस्संदेह अल्लाह अपने वादे के विरुद्ध नहीं जाता।"॥31॥
وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلٖ مِّن قَبۡلِكَ فَأَمۡلَيۡتُ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ ثُمَّ أَخَذۡتُهُمۡۖ فَكَيۡفَ كَانَ عِقَابِ ۝ 32
तुमसे पहले भी कितने ही रसूलों का मज़ाक उड़ाया जा चुका है, किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी। फिर अन्ततः मैंने उन्हें पकड़ लिया, फिर कैसी रही मेरी सज़ा?॥32॥
أَفَمَنۡ هُوَ قَآئِمٌ عَلَىٰ كُلِّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡۗ وَجَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَآءَ قُلۡ سَمُّوهُمۡۚ أَمۡ تُنَبِّـُٔونَهُۥ بِمَا لَا يَعۡلَمُ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَم بِظَٰهِرٖ مِّنَ ٱلۡقَوۡلِۗ بَلۡ زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ مَكۡرُهُمۡ وَصُدُّواْ عَنِ ٱلسَّبِيلِۗ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 33
भला वह (अल्लाह) जो प्रत्येक प्राणी की कमाई पर निगाह रखता है (उसके समान कोई दूसरा हो सकता है और क्याे वह दुष्टों को छोड़ देगा? ) फिर भी लोगों ने अल्लाह के सहभागी ठहरा रखे हैं। कहो, "तनिक उनके नाम तो लो! (क्या तुम्हारे पास उनके पक्ष में कोई प्रमाण है?) या ऐसा है कि तुम उसे ऐसी बात की ख़बर दे रहे हो जिसके वुजूद की उसे धरती भर में ख़बर नहीं? या यूँ ही यह एक ऊपरी बात ही बात है?" नहीं, बल्कि इनकार करनेवालों को उनकी मक्कारी ही सुहावनी लगती है और वे मार्ग से रुक गए हैं। जिसे अल्लाह ही गुमराही में छोड़ दे उसे कोई मार्ग पर लानेवाला नहीं॥33॥
لَّهُمۡ عَذَابٞ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَشَقُّۖ وَمَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن وَاقٖ ۝ 34
उनके लिए सांसारिक जीवन में भी यातना है। रही आखि़रत की यातना, तो वह अत्यन्त कठोर है। और कोई भी तो नहीं जो उन्हें अल्लाह से बचानेवाला हो॥34॥
۞مَّثَلُ ٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ أُكُلُهَا دَآئِمٞ وَظِلُّهَاۚ تِلۡكَ عُقۡبَى ٱلَّذِينَ ٱتَّقَواْۚ وَّعُقۡبَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ٱلنَّارُ ۝ 35
डर रखनेवालों के लिए जिस जन्नत का वादा है उसकी शान यह है कि उसके नीचे नहरें बह रही हैं, उसके फल शाश्वत हैं और इसी प्रकार उसकी छाया भी। यह परिणाम है उनका जो डर रखते हैं, जबकि इनकार करनेवालों का परिणाम आग है॥35॥
وَٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَفۡرَحُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَۖ وَمِنَ ٱلۡأَحۡزَابِ مَن يُنكِرُ بَعۡضَهُۥۚ قُلۡ إِنَّمَآ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ وَلَآ أُشۡرِكَ بِهِۦٓۚ إِلَيۡهِ أَدۡعُواْ وَإِلَيۡهِ مَـَٔابِ ۝ 36
जिन लोगों को हमने किताब प्रदान की है वे उससे, जो तुम्हारी ओर उतारा है, ख़ुश होते हैं और विभिन्न गिरोहों के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उसकी कुछ बातों का इनकार करते हैं। कह दो, "मुझे तो बस यह आदेश हुआ है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ और उसका सहभागी न ठहराऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे लौटकर जाना है।"॥36॥
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلۡنَٰهُ حُكۡمًا عَرَبِيّٗاۚ وَلَئِنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَآءَهُم بَعۡدَ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا وَاقٖ ۝ 37
और इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को एक अरबी फ़रमान (आदेश) के रूप में उतारा है। अब यदि तुम उस ज्ञान के बाद भी, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं के पीछे चले तो अल्लाह के मुक़ाबले में न तो तुम्हारा कोई सहायक मित्र होगा और न कोई बचानेवाला॥37॥
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا رُسُلٗا مِّن قَبۡلِكَ وَجَعَلۡنَا لَهُمۡ أَزۡوَٰجٗا وَذُرِّيَّةٗۚ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأۡتِيَ بِـَٔايَةٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ لِكُلِّ أَجَلٖ كِتَابٞ ۝ 38
तुमसे पहले भी हम कितने ही रसूल भेज चुके हैं और हमने उन्हें पत्नियाँ और बच्चे दिए थे, और किसी रसूल को यह अधिकार नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानी स्वयं ला देता। हर चीज़ का एक समय है जो अटल लिखित है॥38॥
يَمۡحُواْ ٱللَّهُ مَا يَشَآءُ وَيُثۡبِتُۖ وَعِندَهُۥٓ أُمُّ ٱلۡكِتَٰبِ ۝ 39
अल्लाह जो कुछ चाहता है मिटा देता है। इसी तरह वह क़ायम भी रखता है। मूल किताब तो स्वयं उसी के पास है॥39॥
وَإِن مَّا نُرِيَنَّكَ بَعۡضَ ٱلَّذِي نَعِدُهُمۡ أَوۡ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَيۡكَ ٱلۡبَلَٰغُ وَعَلَيۡنَا ٱلۡحِسَابُ ۝ 40
हम जो वादा उनसे कर रहे हैं चाहे उसमें से कुछ हम तुम्हें दिखा दें या तुम्हें उठा लें (तो इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता)। तुम्हारा दायित्व तो बस सन्देश का पहुँचा देना ही है, हिसाब लेना तो हमारे ज़िम्मे है॥40॥
أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّا نَأۡتِي ٱلۡأَرۡضَ نَنقُصُهَا مِنۡ أَطۡرَافِهَاۚ وَٱللَّهُ يَحۡكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكۡمِهِۦۚ وَهُوَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ ۝ 41
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम धरती पर चले आ रहे हैं, उसे उसके किनारों से घटाते हुए?1 अल्लाह ही फ़ैसला करता है। कोई नहीं जो उसके फ़ैसले को पीछे डाल सके। वह हिसाब भी जल्द लेता है॥41॥ —————————— 1. अर्थात् सत्य के विरोधियों का सत्ताधिकार सिमटाया जा रहा है।
وَقَدۡ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَلِلَّهِ ٱلۡمَكۡرُ جَمِيعٗاۖ يَعۡلَمُ مَا تَكۡسِبُ كُلُّ نَفۡسٖۗ وَسَيَعۡلَمُ ٱلۡكُفَّٰرُ لِمَنۡ عُقۡبَى ٱلدَّارِ ۝ 42
उनसे पहले जो लोग गुज़रे हैं वे भी चालें चल चुके हैं, किन्तु वास्तविक चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। प्रत्येक व्यक्ति जो कमाई कर रहा है उसे वह जानता है। इनकार करनेवालों को शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा कि परलोक-गृह के शुभ परिणाम के अधिकारी कौन हैं॥42॥
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَسۡتَ مُرۡسَلٗاۚ قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدَۢا بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡ وَمَنۡ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلۡكِتَٰبِ ۝ 43
जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, वे कहते हैं, "तुम कोई रसूल नहीं हो।" कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह की और जिस किसी के पास किताब का ज्ञान है उसकी गवाही काफ़ी है।"॥43॥