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سُورَةُ فَاطِرٍ

 35. फ़ातिर

(मक्का में उतरी, आयतें 45)

परिचय

नाम

पहली ही आयत का शब्द 'फ़ातिर' (बनानेवाला) को इस सूरा का शीर्षक बना दिया गया है, जिसका अर्थ केवल यह है कि यह वह सूरा है जिसमें ‘फ़ातिर' शब्द आया है।

उतरने का समय

वर्णनशैली के आन्तरिक साक्ष्यों से पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय शायद मक्का मुअज़्ज़मा का मध्यकाल है और उसका भी वह भाग जिसमें विरोध में काफ़ी तेज़ी आ चुकी थी।

विषय और वार्ता

वार्ता का उद्देश्य यह है कि नबी (सल्ल०) की तौहीद की दावत (एकेश्वरवादी आमंत्रण) के मुक़ाबले में जो रवैया उस समय मक्कावालों और उनके सरदारों ने अपना रखा था, उसपर नसीहत के रूप में उनको चेतावनी दी और उनकी निंदा भी की जाए और शिक्षा देने की शैली में समझाया-बुझाया भी जाए। वार्ता का सार यह है कि मूर्खो! यह नबी जिस राह की ओर तुमको बुला रहा है, उसमें तुम्हारा अपना भला है । इसपर तुम्हारा क्रोध और उसको विफल करने के लिए तुम्हारी चालें वास्तव में उसके विरुद्ध नहीं, बल्कि तुम्हारे अपने विरुद्ध पड़ रही हैं। वह जो कुछ तुमसे कह रहा है, उसपर ध्यान तो दो कि उसमें ग़लत क्या बात है? वह शिर्क (बहुदेववाद) का खंडन करता है, वह तौहीद की दावत देता है, वह तुमसे कहता है कि दुनिया की इस ज़िन्दगी के बाद एक और ज़िन्दगी है जिसमें हर एक को अपने किए का नतीजा देखना होगा। तुम ख़ुद सोचो कि इन बातों पर तुम्हारे सन्देह और अचंभे कितने आधारहीन हैं। अब अगर इन पूर्ण तर्कसंगत और सत्य पर आधारित बातों को तुम नहीं मानते हो, तो इसमें नबी की क्या हानि है। शामत तो तुम्हारी अपनी ही आएगी। वार्ता-क्रम में बार-बार नबी (सल्ल०) को तसल्ली दी गई है कि आप जिस नसीहत का हक़ पूरी तरह अदा कर रहे हैं, तो गुमराही पर आग्रह करनेवालों के सीधा रास्ता स्वीकार न करने की कोई ज़िम्मेदारी आपके ऊपर नहीं आती। इसके साथ आपको यह भी समझा दिया गया है कि जो लोग नहीं मानना चाहते, उनके रवैये पर न आप दुखी हों और न उन्हें सीधे रास्ते पर लाने की चिन्ता में अपनी जान घुलाएँ, इसके बजाय आप अपना ध्यान उन लोगों पर लगाएँ जो बात सुनने के लिए तैयार हैं। ईमान अपनानेवालों को भी इसी सिलसिले में बड़ी शुभ सूचनाएँ दी गई हैं, ताकि उनके दिल मज़बूत हों और वे अल्लाह के वादों पर भरोसा करके सत्य-मार्ग पर जमे रहें।

 

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سُورَةُ فَاطِرٍ
35. फ़ातिर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ فَاطِرِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ جَاعِلِ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ رُسُلًا أُوْلِيٓ أَجۡنِحَةٖ مَّثۡنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَۚ يَزِيدُ فِي ٱلۡخَلۡقِ مَا يَشَآءُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 1
सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है जो आकाशों और धरती का पैदा करनेवाला है। दो-दो, तीन-तीन और चार-चार फ़रिश्तों को बाज़ुओंवाले सन्देशवाहक बनाकर नियुक्‍त करता है। वह संरचना में जैसी चाहता है, अभिवृद्धि करता है। निश्‍चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्‍त है।॥1॥
مَّا يَفۡتَحِ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحۡمَةٖ فَلَا مُمۡسِكَ لَهَاۖ وَمَا يُمۡسِكۡ فَلَا مُرۡسِلَ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 2
अल्लाह जो दयालुता लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकनेवाला नहीं, और जिसे वह रोक ले तो उसके बाद उसे कोई जारी करनेवाला भी नहीं। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।॥2॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡۚ هَلۡ مِنۡ خَٰلِقٍ غَيۡرُ ٱللَّهِ يَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ۝ 3
ऐ लोगो! अल्लाह की तुमपर जो अनुकम्पा है उसे याद करो। क्या अल्लाह के सिवा कोई और पैदा करनेवाला है, जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता हो? उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो तुम कहाँ से उलटे भटके चले जा रहे हो?॥3॥
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كُذِّبَتۡ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِكَۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ۝ 4
और यदि वे तुम्हें झुठलाते तो तुमसे पहले भी कितने ही रसूल झुठलाए जा चुके हैं। सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते हैं।॥4॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ ۝ 5
ऐ लोगो! निश्‍चय ही अल्लाह का वादा सच्‍चा है। अतः सांसारिक जीवन तुम्हें धोखे में न डाले और न वह धोखेबाज़ अल्लाह के विषय में तुम्हें धोखा दे।॥5॥
إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ لَكُمۡ عَدُوّٞ فَٱتَّخِذُوهُ عَدُوًّاۚ إِنَّمَا يَدۡعُواْ حِزۡبَهُۥ لِيَكُونُواْ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلسَّعِيرِ ۝ 6
निश्‍चय ही शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः तुम उसे शत्रु ही समझो। वह तो अपने गिरोह को केवल इसी लिए बुला रहा है कि वे दहकती आगवालों में सम्मिलित हो जाएँ।॥6॥
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٞ كَبِيرٌ ۝ 7
वे लोग कि जिन्होंने इनकार किया उनके लिए कठोर यातना है। किन्तु जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है।॥7॥
أَفَمَن زُيِّنَ لَهُۥ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ فَرَءَاهُ حَسَنٗاۖ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۖ فَلَا تَذۡهَبۡ نَفۡسُكَ عَلَيۡهِمۡ حَسَرَٰتٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِمَا يَصۡنَعُونَ ۝ 8
फिर क्या वह व्यक्ति जिसके लिए उसका बुरा कर्म सुहाना बना दिया गया हो और वह उसे अच्छा दिख रहा हो (तो क्या वह बुराई को छोड़ेगा)? निश्‍चय ही अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग से वंचित रखता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। अतः उनपर अफ़सोस करते-करते तुम्हारी जान न जाती रहे। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे रच रहे है।॥8॥
وَٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَرۡسَلَ ٱلرِّيَٰحَ فَتُثِيرُ سَحَابٗا فَسُقۡنَٰهُ إِلَىٰ بَلَدٖ مَّيِّتٖ فَأَحۡيَيۡنَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۚ كَذَٰلِكَ ٱلنُّشُورُ ۝ 9
अल्लाह ही तो है जिसने हवाएँ चलाईं, फिर वह बादलों को उभारती हैं, फिर हम उसे किसी शुष्क और निर्जीव भू-भाग की ओर ले गए और उसके द्वारा हमने धरती को उसके मुर्दा हो जाने के बाद जीवित कर दिया। इसी प्रकार (लोगों का नए सिरे से) जीवित होकर उठना भी है।॥9॥
مَن كَانَ يُرِيدُ ٱلۡعِزَّةَ فَلِلَّهِ ٱلۡعِزَّةُ جَمِيعًاۚ إِلَيۡهِ يَصۡعَدُ ٱلۡكَلِمُ ٱلطَّيِّبُ وَٱلۡعَمَلُ ٱلصَّٰلِحُ يَرۡفَعُهُۥۚ وَٱلَّذِينَ يَمۡكُرُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۖ وَمَكۡرُ أُوْلَٰٓئِكَ هُوَ يَبُورُ ۝ 10
जो कोई प्रभुत्व चाहता हो, तो प्रभुत्व तो सारा का सारा अल्लाह के लिए है। उसी की ओर अच्छा-पवित्र बोल चढ़ता है और अच्छा कर्म उसको ऊँचा उठाता है। रहे वे लोग जो बुरी चालें चलते हैं, उनके लिए कठोर यातना है और उनकी चालबाज़ी मलियामेट होकर रहेगी।॥10॥
وَٱللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ جَعَلَكُمۡ أَزۡوَٰجٗاۚ وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٖ وَلَا يُنقَصُ مِنۡ عُمُرِهِۦٓ إِلَّا فِي كِتَٰبٍۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ ۝ 11
अल्लाह ने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर तुम्हें जोड़े-जोड़े बनाया। उसके ज्ञान के बिना न कोई स्त्री गर्भवती होती है और न जन्म देती है। और जो कोई आयु को प्राप्‍त करनेवाला आयु को प्राप्‍त करता है और जो कुछ उसकी आयु में कमी होती है, अनिवार्यतः यह सब एक किताब में लिखा होता है। निश्‍चय ही यह सब अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है।॥11॥
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡبَحۡرَانِ هَٰذَا عَذۡبٞ فُرَاتٞ سَآئِغٞ شَرَابُهُۥ وَهَٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجٞۖ وَمِن كُلّٖ تَأۡكُلُونَ لَحۡمٗا طَرِيّٗا وَتَسۡتَخۡرِجُونَ حِلۡيَةٗ تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 12
दोनों सागर समान नहीं, यह मीठा सुस्वाद है जिससे प्यास जाती रहे, पीने में रुचिकर। और यह खारा-कड़ुआ है। और तुम प्रत्येक में से तरोताज़ा माँस खाते हो और आभूषण निकालते हो जिसे तुम पहनते हो। और तुम नौकाओं को देखते हो कि चीरती हुई उसमें चली जा रही हैं, ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो और कदाचित तुम आभारी बनो।॥12॥
يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۚ وَٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦ مَا يَمۡلِكُونَ مِن قِطۡمِيرٍ ۝ 13
वह रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता हैं। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम में लगा रखा है। प्रत्येक एक नियत समय पूरी करने के लिए चल रहा है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है। उसी की बादशाही है। उससे हटकर जिनको तुम पुकारते हो वे तनिक भी किसी चीज़ के मालिक नहीं।॥13॥
إِن تَدۡعُوهُمۡ لَا يَسۡمَعُواْ دُعَآءَكُمۡ وَلَوۡ سَمِعُواْ مَا ٱسۡتَجَابُواْ لَكُمۡۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يَكۡفُرُونَ بِشِرۡكِكُمۡۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثۡلُ خَبِيرٖ ۝ 14
यदि तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार सुनेंगे नहीं। और यदि वे सुन लेते तो भी तुम्हारी याचना स्वीकार न कर सकते, और क़ियामत के दिन वे तुम्हारे साझी ठहराने का इनकार कर देंगे। पूरी ख़बर रखनेवाले (अल्लाह) की तरह तुम्हें कोई न बताएगा।॥14॥
۞يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ أَنتُمُ ٱلۡفُقَرَآءُ إِلَى ٱللَّهِۖ وَٱللَّهُ هُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ ۝ 15
ऐ लोगो! तुम्हीं अल्लाह के मुहताज हो और अल्लाह तो निस्पृह, स्वतः प्रशंसित है।॥15॥
إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ وَيَأۡتِ بِخَلۡقٖ جَدِيدٖ ۝ 16
यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और एक नई संसृति ले आए।॥16॥
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ بِعَزِيزٖ ۝ 17
और यह अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नहीं।॥17॥
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ وَإِن تَدۡعُ مُثۡقَلَةٌ إِلَىٰ حِمۡلِهَا لَا يُحۡمَلۡ مِنۡهُ شَيۡءٞ وَلَوۡ كَانَ ذَا قُرۡبَىٰٓۗ إِنَّمَا تُنذِرُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفۡسِهِۦۚ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 18
कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। और यदि कोई बोझ से दबा हुआ व्यक्ति अपना बोझ उठाने के लिए पुकारे तो उसमें से कुछ भी न उठाया जाएगा, यद्यपि वह निकट का सम्बन्धी ही क्यों न हो। तुम तो केवल सावधान कर रहे हो। जो परोक्ष में रहते हुए अपने रब से डरते हैं और नमाज़ के पाबन्द हो चुके है (उनकी आत्मा का विकास हो गया)। और जिसने स्वयं को विकसित किया, वह अपने ही भले के लिए अपने आपको विकसित करेगा। और पलटकर जाना तो अल्लाह ही की ओर है।॥18॥
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُ ۝ 19
अन्‍धा और आँखोंवाला बराबर नहीं,॥19॥
وَلَا ٱلظُّلُمَٰتُ وَلَا ٱلنُّورُ ۝ 20
और न अँधेरे और प्रकाश, ॥20॥
وَلَا ٱلظِّلُّ وَلَا ٱلۡحَرُورُ ۝ 21
और न छाया और धूप, ॥21॥
وَمَا يَسۡتَوِي ٱلۡأَحۡيَآءُ وَلَا ٱلۡأَمۡوَٰتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُسۡمِعُ مَن يَشَآءُۖ وَمَآ أَنتَ بِمُسۡمِعٖ مَّن فِي ٱلۡقُبُورِ ۝ 22
और न जीवित और मृत बराबर हैं। निश्‍चय ही अल्लाह जिसे चाहता है सुनाता है। तुम उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में हों।॥22॥
إِنۡ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ ۝ 23
तुम तो बस एक सचेतकर्त्ता हो।॥23॥
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِيرٗا وَنَذِيرٗاۚ وَإِن مِّنۡ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٞ ۝ 24
हमने तुम्हें सत्य के साथ भेजा है, शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्त्ता बनाकर। और जो भी समुदाय गुज़रा है उसमें अनिवार्यतः एक सचेतकर्त्ता हुआ है।॥24॥
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدۡ كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَبِٱلزُّبُرِ وَبِٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُنِيرِ ۝ 25
यदि वे तुम्हें झुठलाते हैं तो जो उनसे पहले थे, वे भी झुठला चुके हैं। उनके रसूल उनके पास स्पष्ट प्रमाण और ज़बूरें1 और प्रकाशमान किताब लेकर आए थे।॥25॥ ————————— 1. ज़बूरों से अभिप्राय वे ईश्वरीय ग्रन्थ हैं, जिनमें अधिकतर उपदेश और तत्त्वज्ञान की बातें हृदयस्पर्शी और प्रभावकारी शैली में बयान हुई हैं।
ثُمَّ أَخَذۡتُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۖ فَكَيۡفَ كَانَ نَكِيرِ ۝ 26
फिर मैंने उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, पकड़ लिया। तो फिर कैसी रही मेरी फिटकार और यातना! ॥26॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦ ثَمَرَٰتٖ مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهَاۚ وَمِنَ ٱلۡجِبَالِ جُدَدُۢ بِيضٞ وَحُمۡرٞ مُّخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٞ ۝ 27
क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी बरसाया, फिर उसके द्वारा हमने फल निकाले, जिनके रंग विभिन्‍न प्रकार के होते है? और पहाड़ों में भी श्‍वेत और लाल विभिन्‍न रंगों की धारियाँ पाई जाती है, और भुजंग काली भी।॥27॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ وَٱلدَّوَآبِّ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ مُخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهُۥ كَذَٰلِكَۗ إِنَّمَا يَخۡشَى ٱللَّهَ مِنۡ عِبَادِهِ ٱلۡعُلَمَٰٓؤُاْۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ ۝ 28
और मनुष्यों और जानवरों और चौपायों की अलग-अलग जातियाँ हैं, उसमें प्रत्‍येक के रंग भी इसी प्रकार विभिन्‍न हैं। अल्लाह से डरते तो उसके वही बन्दे हैं जो जान गए हैं। निश्‍चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, क्षमाशील है।॥28॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَتۡلُونَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ يَرۡجُونَ تِجَٰرَةٗ لَّن تَبُورَ ۝ 29
निश्‍चय ही जो लोग अल्लाह की किताब पढ़ते हैं, इस हाल में कि नमाज़ के पाबन्द हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से छिपे और खुले ख़र्च किया है, वे एक ऐसे व्यापार की आशा रखते हैं जो कभी तबाह न होगा।॥29॥
لِيُوَفِّيَهُمۡ أُجُورَهُمۡ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ غَفُورٞ شَكُورٞ ۝ 30
परिणामस्वरूप वह उन्हें उनके प्रतिदान पूरे-पूरे दे और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक भी प्रदान करे। निस्सन्‍देह वह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त गुणग्राहक है —॥30॥
وَٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ هُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِعِبَادِهِۦ لَخَبِيرُۢ بَصِيرٞ ۝ 31
जो किताब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना द्वारा भेजी है, वही सत्य है। अपने से पहले (की किताबों) की पुष्टि में है। निश्‍चय ही अल्लाह अपने बन्दों की पूरी ख़बर रखनेवाला, देखनेवाला है।॥31॥
ثُمَّ أَوۡرَثۡنَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلَّذِينَ ٱصۡطَفَيۡنَا مِنۡ عِبَادِنَاۖ فَمِنۡهُمۡ ظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ وَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞ وَمِنۡهُمۡ سَابِقُۢ بِٱلۡخَيۡرَٰتِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡكَبِيرُ ۝ 32
फिर हमने इस किताब का उत्तराधिकारी उन लोगों को बनाया जिन्हें हमने अपने बन्दो में से चुन लिया है। अब कोई तो उनमें से अपने आप पर ज़ुल्म करता है और कोई उनमें से मध्य श्रेणी का है और कोई उनमें से अल्लाह के कृपायोग से भलाइयों में अग्रसर है। यही है बड़ी श्रेष्ठता। —॥32॥
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا يُحَلَّوۡنَ فِيهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٖ وَلُؤۡلُؤٗاۖ وَلِبَاسُهُمۡ فِيهَا حَرِيرٞ ۝ 33
सदैव रहने के बाग़ है जिनमें वे प्रवेश करेंगे। वहाँ उन्हें सोने के कंगनों और मोती से आभूषित किया जाएगा। और वहाँ उनका वस्‍त्र रेशम होगा।॥33॥
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِيٓ أَذۡهَبَ عَنَّا ٱلۡحَزَنَۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٞ شَكُورٌ ۝ 34
और वे कहेंगे, "सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिसने हमसे ग़म दूर कर दिया। निश्‍चय ही हमारा रब अत्यन्त क्षमाशील, बड़ा गुणग्राहक है।॥34॥
ٱلَّذِيٓ أَحَلَّنَا دَارَ ٱلۡمُقَامَةِ مِن فَضۡلِهِۦ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٞ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٞ ۝ 35
जिसने हमें अपने उदार अनुग्रह से रहने के ऐसे घर में उतारा जहाँ न हमें कोई मशक़्क़त उठानी पड़ती है और न हमें कोई थकान ही आती है।"॥35॥
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَهُمۡ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقۡضَىٰ عَلَيۡهِمۡ فَيَمُوتُواْ وَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُم مِّنۡ عَذَابِهَاۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي كُلَّ كَفُورٖ ۝ 36
रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, उनके लिए जहन्‍नम की आग है, न उनका काम तमाम किया जाएगा कि मर जाएँ और न उनसे उसकी यातना ही कुछ हल्की की जाएगी। हम ऐसा ही बदला प्रत्येक नाशुक्रे (अकृतज्ञ) को देते हैं।॥36॥
وَهُمۡ يَصۡطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا نَعۡمَلۡ صَٰلِحًا غَيۡرَ ٱلَّذِي كُنَّا نَعۡمَلُۚ أَوَلَمۡ نُعَمِّرۡكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَآءَكُمُ ٱلنَّذِيرُۖ فَذُوقُواْ فَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِن نَّصِيرٍ ۝ 37
वे वहाँ चिल्लाएँगे कि "ऐ हमारे रब! हमें निकाल ले। हम अच्छा कर्म करेंगे, उससे भिन्‍न जो हम करते रहे।" (कहा जाएगा) "क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी कि जिसमें कोई होश में आना चाहता तो होश में आ जाता? और तुम्हारे पास सचेतकर्त्ता भी आया था, तो अब मज़ा चखते रहो! ज़ालिमों का कोई सहायक नहीं!"॥37॥
إِنَّ ٱللَّهَ عَٰلِمُ غَيۡبِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 38
निस्सन्‍देह अल्लाह आकाशों और धरती की छिपी बात को जानता है। वह तो सीनों तक की बात जानता है।॥38॥
هُوَ ٱلَّذِي جَعَلَكُمۡ خَلَٰٓئِفَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيۡهِ كُفۡرُهُۥۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ إِلَّا مَقۡتٗاۖ وَلَا يَزِيدُ ٱلۡكَٰفِرِينَ كُفۡرُهُمۡ إِلَّا خَسَارٗا ۝ 39
वही तो है जिसने तुम्हे धरती में ख़लीफ़ा बनाया2। अब जो कोई इनकार करेगा, उसके इनकार का वबाल उसी पर है। इनकार करनेवालों का इनकार उनके रब के यहाँ केवल प्रकोप ही को बढ़ाता है, और इनकार करनेवालों का इनकार केवल घाटे में ही अभिवृद्धि करता है।॥39॥ ————————— 2. अर्थात् उत्तराधिकारी। मानव धरती पर निरन्तर आबाद है। उसके लोग एक-दूसरे के उत्तराधिकारी होते चले आ रहे हैं।
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ شُرَكَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُواْ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ لَهُمۡ شِرۡكٞ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا فَهُمۡ عَلَىٰ بَيِّنَتٖ مِّنۡهُۚ بَلۡ إِن يَعِدُ ٱلظَّٰلِمُونَ بَعۡضُهُم بَعۡضًا إِلَّا غُرُورًا ۝ 40
कहो, "क्या तुमने अपने ठहराए हुए साझीदारों का अवलोकन भी किया जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो? मुझे दिखाओ उन्होंने धरती का कौन-सा भाग पैदा किया है या आकाशों में उनकी कोई भागीदारी है?" या हमने उन्हें कोई किताब दी है कि उसका कोई स्पष्ट प्रमाण उनके पक्ष में हो? नहीं, बल्कि वे ज़ालिम आपस में एक-दूसरे से केवल धोखे का वादा कर रहे हैं।॥40॥
۞إِنَّ ٱللَّهَ يُمۡسِكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ أَن تَزُولَاۚ وَلَئِن زَالَتَآ إِنۡ أَمۡسَكَهُمَا مِنۡ أَحَدٖ مِّنۢ بَعۡدِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورٗا ۝ 41
अल्लाह ही आकाशों और धरती को थामे हुए है कि वे टल न जाएँ, और यदि वे टल जाएँ तो उसके बाद कोई भी नहीं जो उन्हें थाम सके। निस्सन्‍देह वह बहुत सहनशील, क्षमा करनेवाला है।॥41॥
وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ لَئِن جَآءَهُمۡ نَذِيرٞ لَّيَكُونُنَّ أَهۡدَىٰ مِنۡ إِحۡدَى ٱلۡأُمَمِۖ فَلَمَّا جَآءَهُمۡ نَذِيرٞ مَّا زَادَهُمۡ إِلَّا نُفُورًا ۝ 42
उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाई थीं कि यदि उनके पास कोई सचेतकर्त्ता आए तो वे समुदायों में से प्रत्येक से बढ़कर सीधे मार्ग पर होंगे। किन्तु जब उनके पास एक सचेतकर्त्ता आ गया तो इस चीज़ ने धरती में उनके घमण्‍ड और बुरी चालों के कारण उनकी नफ़रत ही में अभिवृद्धि की, ॥42॥
ٱسۡتِكۡبَارٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَكۡرَ ٱلسَّيِّيِٕۚ وَلَا يَحِيقُ ٱلۡمَكۡرُ ٱلسَّيِّئُ إِلَّا بِأَهۡلِهِۦۚ فَهَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ ٱلۡأَوَّلِينَۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَبۡدِيلٗاۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ ٱللَّهِ تَحۡوِيلًا ۝ 43
हालाँकि बुरी चाल अपने ही लोगों को घेर लेती है। तो अब क्या जो रीति अगलों के सिलसिले में रही है, वे बस उसी रीति की प्रतीक्षा कर रहे हैं? तो तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे और न तुम अल्लाह की रीति को कभी टलते ही पाओगे।॥43॥
أَوَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَكَانُوٓاْ أَشَدَّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعۡجِزَهُۥ مِن شَيۡءٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَلِيمٗا قَدِيرٗا ۝ 44
क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ है जो उनसे पहले गुज़रे हैं? हालाँकि वे शक्ति में उनसे कहीं बढ़-चढ़कर थे। अल्लाह ऐसा नहीं कि आकाशों में कोई चीज़ उसे मात कर सके और न धरती ही में। निस्सन्‍देह वह सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है।॥44॥
وَلَوۡ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِمَا كَسَبُواْ مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهۡرِهَا مِن دَآبَّةٖ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمۡ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗىۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِۦ بَصِيرَۢا ۝ 45
यदि अल्लाह लोगों को उनकी कमाई के कारण पकड़ने पर आ जाए तो इस धरती की पीठ पर किसी जीवधारी को भी न छोड़े। किन्तु वह उन्हें एक नियत समय तक ढील देता है, फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो निश्‍चय ही अल्लाह तो अपने बन्दों को देख ही रहा है।॥45॥ ——————— 3. अर्थात् वह उनके साथ वही नीति अपनाएगा जिसके वे योग्य होंगे। इस समय यदि उनको वह पकड़ नहीं रहा है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वह उनकी करतूतों से बेख़बर है। यह तो एक मुहलत दी गई है, ताकि संभलना चाहें तो संभल जाएँ।