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سُورَةُ النَّحۡلِ

  1. अन-नहल

(मक्‍का में उतरी-आयतें 128)

परिचय

नाम

आयत 68 के वाक्‍य ‘व औहा रब्‍बु-क इलन्‍नह्‍ल' से लिया गया है। नह्‍ल शब्द का अर्थ है- मधुमक्‍खी । यह भी केवल संकेत है, न कि वार्ता के विषय का शीर्षक ।

उतरने का समय

बहुत-सी अदरूनी गवाहियों से इसके उतरने के समय पर रौशनी पड़ती है। जैसे आयत 41 के वाक्य 'वल्लज़ी-न हाजरू फ़िल्लाहि मिम-बादि मा ज़ुलिमू’ (जो लोग ज़ुल्म सहने के बाद अल्लाह के लिए हिजरत कर गए) से स्पष्ट मालूम होता है कि उस समय हब्शा की हिजरत हो चुकी थी। आयत 106 'मन क-फ़-र बिल्‍लाहि मिम-बादि ईमानिही' (जो आदमी ईमान लाने के बाद इनकार करे) से मालूम होता है कि उस समय अन्याय उग्र रूप धारण किए हुए था और यह प्रश्न पैदा हो गया था कि अगर कोई व्यक्ति असह्य पीड़ा से विवश होकर कुफ़्र (अधर्म) के शब्द कह बैठे तो उसका क्‍या हुक्‍म है।

आयत 112-114 का स्‍पष्ट संकेत इस ओर है कि मक्का में जो ज़बरदस्त सूखा पड़ गया था, वह इस सूरा के उतरते समय समाप्त हो चुका था। -इस सूरा में एक आयत 115 ऐसी है जिसका हवाला सूरा-6 अनआम की आयत 119 में दिया गया है और दूसरी आयत (118) ऐसी है जिसमें सूरा अनआम की आयत 146 का हवाला दिया गया है। यह इस बात की दलील है कि इन दोनों सूरतों के उतरने का समय क़रीब-क़रीब है।

इन गवाहियों से पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय भी मक्का का अन्तिम काल ही है।

शीर्षक और केन्द्रीय विषय

शिर्क (बहुदेववाद) का खंडन, तौहीद (एकेश्वरवाद) का प्रमाण, पैग़म्‍बर की दावत को न मानने के बुरे नतीजों पर चेतावनी और समझाना-बुझाना और सत्य के विरोध और उसके लिए रुकावटें खड़ी करने पर डाँट-फटकार।

वार्ताएँ

सूरा का आरंभ बिना किसी भूमिका के एकाएक एक चेतावनी भरे वाक्य से होता है। मक्का के कुफ़्फ़ार (अधर्मी) बार-बार कहते थे कि 'जब हम तुम्हें झुठला चुके है और खुल्लम-खुल्ला तुम्हारा विरोध कर रहे है तो आख़िर वह अल्लाह का अज़ाब आ क्यों नहीं जाता जिसकी तुम हमें धमकियाँ देते हो।' इसपर कहा गया कि मूर्खो! अल्लाह का अज़ाब तो तुम्हारे सिर पर तुला खड़ा है। अब इसके टूट पड़ने के लिए जल्दी न मचाओ, बल्कि जो तनिक भर मोहलत बाक़ी है उससे लाभ उठाकर बात समझने की कोशिश करो। इसके बाद तुरन्त ही समझाने-बुझाने के लिए व्याख्यान आरंभ हो जाता है और निम्नलिखित विषय बार-बार एक के बाद एक सामने आने शुरू होते हैं।

  1. दिल लगती दलीलों और सृष्टि और निज की निशानियों की खुली-खुली गवाहियों से समझाया जाता है कि शिर्क असत्य है और तौहीद ही सत्य है
  2. इंकारियों की आपत्ति, सन्देह, दुराग्रह और हीले-बहानों का एक-एक करके उत्तर दिया जाता है।
  3. असत्य पर आग्रह और सत्य के मुक़ाबले में घमंड व्यक्त करने के बुरे नतीजों से डराया जाता है।
  4. उन नैतिक और व्यावहारिक परिवर्तनों को संक्षेप में, मगर मन में बैठ जानेवाली शैली में, बयान किया जाता है जो मुहम्मद (सल्ल०) का लाया हुआ दीन मानव-जीवन में लाना चाहता है।
  5. नबी (सल्ल०) और आपके साथियों की ढाढ़स बँधाई जाती है और साथ-साथ यह भी बताया जाता है कि कुफ़्फ़ार की रुकावटों और अत्याचारों के मुक़ाबले में उनका रवैया क्या होना चाहिए।

 

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سُورَةُ النَّحۡلِ
16. अन-नह्‍ल
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
أَتَىٰٓ أَمۡرُ ٱللَّهِ فَلَا تَسۡتَعۡجِلُوهُۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 1
आ गया आदेश अल्लाह का, तो अब उसके लिए जल्दी न मचाओ। वह महान और उच्च है उस शिर्क से जो वे कर रहे हैं॥1॥
يُنَزِّلُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ بِٱلرُّوحِ مِنۡ أَمۡرِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦٓ أَنۡ أَنذِرُوٓاْ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱتَّقُونِ ۝ 2
वह फ़रिश्तों को रूह अर्थात् अपने आदेश के साथ अपने जिस बन्दे पर चाहता है उतारता है कि "सचेत कर दो, मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः तुम मेरा ही डर रखो।"॥2॥
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۚ تَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 3
उसने आकाशों और धरती को सोद्देश्य पैदा किया। वह अत्यन्त उच्च है उस शिर्क से जो वे कर रहे हैं॥3॥
خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ مِن نُّطۡفَةٖ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٞ مُّبِينٞ ۝ 4
उसने मनुष्य को एक बूँद से पैदा किया। फिर क्या देखते हैं कि वह खुला झगड़नेवाला बन गया!॥4॥
وَٱلۡأَنۡعَٰمَ خَلَقَهَاۖ لَكُمۡ فِيهَا دِفۡءٞ وَمَنَٰفِعُ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 5
रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया जिसमें तुम्हारे लिए ऊष्मा (गर्मी) प्राप्त करने का सामान भी है और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो॥5॥
وَلَكُمۡ فِيهَا جَمَالٌ حِينَ تُرِيحُونَ وَحِينَ تَسۡرَحُونَ ۝ 6
उनमें तुम्हारे लिए सौन्दर्य भी है जबकि तुम सायंकाल उन्हें लाते और जबकि तुम उन्हें चराने ले जाते हो॥6॥
وَتَحۡمِلُ أَثۡقَالَكُمۡ إِلَىٰ بَلَدٖ لَّمۡ تَكُونُواْ بَٰلِغِيهِ إِلَّا بِشِقِّ ٱلۡأَنفُسِۚ إِنَّ رَبَّكُمۡ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٞ ۝ 7
वे तुम्हारे बोझ ढोकर ऐसे भू-भाग तक ले जाते हैं जहाँ तुम जीतोड़ परिश्रम के बिना नहीं पहुँच सकते थे। निस्संदेह तुम्हारा रब बड़ा ही करुणामय, दयावान है॥7॥
وَٱلۡخَيۡلَ وَٱلۡبِغَالَ وَٱلۡحَمِيرَ لِتَرۡكَبُوهَا وَزِينَةٗۚ وَيَخۡلُقُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 8
और घोड़े और ख़च्चर और गधे भी पैदा किए, ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा का कारण भी हो। और वह उसे भी पैदा करता है, जिसे तुम नहीं जानते॥8॥
وَعَلَى ٱللَّهِ قَصۡدُ ٱلسَّبِيلِ وَمِنۡهَا جَآئِرٞۚ وَلَوۡ شَآءَ لَهَدَىٰكُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 9
अल्लाह के लिए ज़रूरी है उचित एवं अनुकूल मार्ग दिखाना, और कुछ मार्ग टेढ़े भी हैं। यदि वह चाहता तो तुम सबको अवश्य सीधा मार्ग दिखा देता॥9॥
هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗۖ لَّكُم مِّنۡهُ شَرَابٞ وَمِنۡهُ شَجَرٞ فِيهِ تُسِيمُونَ ۝ 10
वही है जिसने आकाश से तुम्हारे लिए पानी उतारा जिसे तुम पीते हो और उसी से पेड़ और वनस्पतियाँ भी उगती हैं जिनमें तुम जानवरों को चराते हो॥10॥
يُنۢبِتُ لَكُم بِهِ ٱلزَّرۡعَ وَٱلزَّيۡتُونَ وَٱلنَّخِيلَ وَٱلۡأَعۡنَٰبَ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 11
और उसी से वह तुम्हारे लिए खेतियाँ उगाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और हर प्रकार के फल पैदा करता है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवालों के लिए इसमें एक निशानी है॥11॥
وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ وَٱلنُّجُومُ مُسَخَّرَٰتُۢ بِأَمۡرِهِۦٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 12
और उसने तुम्हारे लिए रात और दिन को और सूर्य और चन्द्रमा को कार्यरत कर रखा है। और तारे भी उसी की आज्ञा से कार्यरत हैं — निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो बुद्धि से काम लेते हैं — ॥12॥
وَمَا ذَرَأَ لَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهُۥٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَذَّكَّرُونَ ۝ 13
और धरती में तुम्हारे लिए जो रंग-बिरंग की चीज़ें बिखेर रखी हैं, उसमें भी उन लोगों के लिए बड़ी निशानी है जो शिक्षा लेनेवाले हैं॥13॥
وَهُوَ ٱلَّذِي سَخَّرَ ٱلۡبَحۡرَ لِتَأۡكُلُواْ مِنۡهُ لَحۡمٗا طَرِيّٗا وَتَسۡتَخۡرِجُواْ مِنۡهُ حِلۡيَةٗ تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ مَوَاخِرَ فِيهِ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 14
वही तो है जिसने समुद्र को वश में किया है, ताकि तुम उससे ताज़ा मांँस लेकर खाओ और उससे आभूषण निकालो, जिसे तुम पहनते हो। तुम देखते ही हो कि नौकाएँ उसको चीरती हुई चलती हैं (ताकि तुम सफ़र कर सको) और ताकि तुम उसका अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ॥14॥
وَأَلۡقَىٰ فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمۡ وَأَنۡهَٰرٗا وَسُبُلٗا لَّعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ۝ 15
और उसने धरती में अटल पहाड़ डाल दिए कि वह तुम्हें लेकर झुक न पड़े और नदियाँ बनाईं और प्राकृतिक मार्ग बनाए, ताकि तुम मार्ग पा सको॥15॥
وَعَلَٰمَٰتٖۚ وَبِٱلنَّجۡمِ هُمۡ يَهۡتَدُونَ ۝ 16
और मार्ग चिन्ह भी बनाए और तारों के द्वारा भी लोग मार्ग पा लेते हैं॥16॥
أَفَمَن يَخۡلُقُ كَمَن لَّا يَخۡلُقُۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 17
फिर क्या जो पैदा करता है वह उस जैसा हो सकता है जो पैदा नहीं करता? फिर क्या तुम्हें होश नहीं होता?॥17॥
وَإِن تَعُدُّواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ لَا تُحۡصُوهَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَغَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 18
और यदि तुम अल्लाह की नेमतों (कृपादानों) को गिनना चाहो तो उन्हें पूर्णरूप से गिन नहीं सकते। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है॥18॥
وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعۡلِنُونَ ۝ 19
और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ प्रकट करते हो॥19॥
وَٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَا يَخۡلُقُونَ شَيۡـٔٗا وَهُمۡ يُخۡلَقُونَ ۝ 20
और जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारते हैं वे किसी चीज़ को भी पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते हैं॥20॥
أَمۡوَٰتٌ غَيۡرُ أَحۡيَآءٖۖ وَمَا يَشۡعُرُونَ أَيَّانَ يُبۡعَثُونَ ۝ 21
मृत हैं, जिनमें प्राण नहीं। उन्हें मालूम नहीं कि वे कब उठाए जाएँगे।1॥21॥ ———————— 1. अर्थात् उनको क़ियामत की घड़ी का भी ज्ञान नहीं, जबकि लोगों को हिसाब-किताब के लिए पुनः जीवित किया जाएगा।
إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۚ فَٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ قُلُوبُهُم مُّنكِرَةٞ وَهُم مُّسۡتَكۡبِرُونَ ۝ 22
तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला प्रभु-पूज्य है। किन्तु जो आख़िरत में विश्वास नहीं रखते, उनके दिलों को इनकार है। वे अपने आपको बड़ा समझ रहे हैं॥22॥
لَا جَرَمَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعۡلِنُونَۚ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُسۡتَكۡبِرِينَ ۝ 23
निश्चय ही अल्लाह भली-भाँति जानता है, जो कुछ वे छिपाते हैं और जो कुछ प्रकट करते हैं। उसे ऐसे लोग प्रिय नहीं जो अपने आपको बड़ा समझते हों॥23॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُم مَّاذَآ أَنزَلَ رَبُّكُمۡ قَالُوٓاْ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 24
और जब उनसे कहा जाता है कि "तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया है?" कहते हैं, "वे तो पहले लोगों की कहानियाँ हैं।"॥24॥
لِيَحۡمِلُوٓاْ أَوۡزَارَهُمۡ كَامِلَةٗ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَمِنۡ أَوۡزَارِ ٱلَّذِينَ يُضِلُّونَهُم بِغَيۡرِ عِلۡمٍۗ أَلَا سَآءَ مَا يَزِرُونَ ۝ 25
इसका परिणाम यह होगा कि वे क़ियामत के दिन अपने बोझ भी पूरे उठाएँगे और उनके बोझ में से भी जिन्हें वे अज्ञानता के कारण पथभ्रष्ट कर रहे हैं। सुन लो, बहुत ही बुरा है वह बोझ जो वे उठा रहे हैं!॥25॥
قَدۡ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَى ٱللَّهُ بُنۡيَٰنَهُم مِّنَ ٱلۡقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَيۡهِمُ ٱلسَّقۡفُ مِن فَوۡقِهِمۡ وَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 26
जो उनसे पहले गुज़रे हैं वे भी मक्क्कारियाँ कर चुके हैं। फिर अल्लाह उनके भवन पर नीवों की ओर से आया और छत उनपर उनके ऊपर से आ गिरी और ऐसे रुख़ से उनपर यातना आई जिसका उन्हें एहसास तक न था॥26॥
ثُمَّ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يُخۡزِيهِمۡ وَيَقُولُ أَيۡنَ شُرَكَآءِيَ ٱلَّذِينَ كُنتُمۡ تُشَٰٓقُّونَ فِيهِمۡۚ قَالَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ إِنَّ ٱلۡخِزۡيَ ٱلۡيَوۡمَ وَٱلسُّوٓءَ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 27
फिर क़ियामत के दिन वह (अल्लाह) उन्हें अपमानित करेगा और कहेगा, "कहाँ हैं मेरे वे साझीदार जिनके विषय में तुम मुझसे घोर विरोध करते थे?" जिन्हें ज्ञान प्राप्त था वे कहेंगे, "निश्चय ही आज रुसवाई और ख़राबी है इनकार करनेवालों के लिए।"॥27॥
ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ ظَالِمِيٓ أَنفُسِهِمۡۖ فَأَلۡقَوُاْ ٱلسَّلَمَ مَا كُنَّا نَعۡمَلُ مِن سُوٓءِۭۚ بَلَىٰٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 28
जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते हैं कि वे अपने आप पर अत्याचार कर रहे होते हैं तब आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ झुकते हैं कि "हम तो कोई बुराई नहीं करते थे।" "नहीं, बल्कि अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते रहे हो॥28॥
فَٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَلَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 29
तो अब जहन्नम के द्वारों में उसमें सदैव रहने के लिए प्रवेश करो। अतः निश्चय ही बहुत ही बुरा ठिकाना है यह अहंकारियों का।"॥29॥
۞وَقِيلَ لِلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ مَاذَآ أَنزَلَ رَبُّكُمۡۚ قَالُواْ خَيۡرٗاۗ لِّلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۚ وَلَدَارُ ٱلۡأٓخِرَةِ خَيۡرٞۚ وَلَنِعۡمَ دَارُ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 30
दूसरी ओर जो डर रखनेवाले हैं उनसे कहा जाता है, "तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया?" वे कहते हैं, "जो सबसे उत्तम है।" जिन लोगों ने भलाई की उनकी इस दुनिया में भी अच्छी हालत है और आख़िरत का घर तो अच्छा है ही। और क्या ही अच्छा घर है डर रखनेवालों का!॥30॥
جَنَّٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ لَهُمۡ فِيهَا مَا يَشَآءُونَۚ كَذَٰلِكَ يَجۡزِي ٱللَّهُ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 31
सदैव रहने के बाग़ जिनमें वे प्रवेश करेंगे, उनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी, उनके लिए वहाँ वह सब कुछ संचित होगा जो वे चाहें। अल्लाह डर रखनेवालों को ऐसा ही प्रतिदान प्रदान करता है॥31॥
ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ طَيِّبِينَ يَقُولُونَ سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمُ ٱدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 32
जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते हैं कि वे पाक और नेक होते हैं, वे कहते हैं, "तुम पर सलाम हो! प्रवेश करो जन्नेत में उसके बदले में जो कुछ तुम करते रहे हो।"॥32॥
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن تَأۡتِيَهُمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ أَوۡ يَأۡتِيَ أَمۡرُ رَبِّكَۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَٰكِن كَانُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ ۝ 33
क्या अब वे इसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि फ़रिश्ते उनके पास आ पहुँचें या तेरे रब का आदेश ही आ जाए? ऐसा ही उन लोगों ने भी किया जो इनसे पहले थे। अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, किन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते रहे॥33॥
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا عَمِلُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 34
अन्ततः उनकी करतूतों की बुराइयाँ उनपर आ पड़ीं और जिसका मज़ाक़ उड़ाया करते थे उसी ने उन्हें आ घेरा॥34॥
وَقَالَ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْ لَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَا عَبَدۡنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَيۡءٖ نَّحۡنُ وَلَآ ءَابَآؤُنَا وَلَا حَرَّمۡنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَيۡءٖۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ فَهَلۡ عَلَى ٱلرُّسُلِ إِلَّا ٱلۡبَلَٰغُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 35
शिर्क करनेवालों का कहना है, "यदि अल्लाह चाहता तो उससे हटकर किसी चीज़ की न हम बन्दगी करते और न हमारे बाप-दादा ही और न हम उसके बिना किसी चीज़ को अवैध ठहराते।" उनसे पहले के लोगों ने भी ऐसा ही किया। तो क्या साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देने के सिवा रसूलों पर कोई और भी ज़िम्मेदारी है?॥35॥
وَلَقَدۡ بَعَثۡنَا فِي كُلِّ أُمَّةٖ رَّسُولًا أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَٱجۡتَنِبُواْ ٱلطَّٰغُوتَۖ فَمِنۡهُم مَّنۡ هَدَى ٱللَّهُ وَمِنۡهُم مَّنۡ حَقَّتۡ عَلَيۡهِ ٱلضَّلَٰلَةُۚ فَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 36
हमने हर समुदाय में कोई न कोई रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो और ताग़ूत (बढ़े हुए फ़सादी) से बचो।" फिर उनमें से किसी को तो अल्लाह ने सीधे मार्ग पर लगाया और उनमें से किसी पर पथभ्रष्टता सिद्ध होकर रही। फिर तनिक धरती में चल-फिरकर तो देखो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणाम हुआ॥36॥
إِن تَحۡرِصۡ عَلَىٰ هُدَىٰهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَن يُضِلُّۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّٰصِرِينَ ۝ 37
यद्यपि इस बात का कि वे राह पर आ जाएँ तुम्हें लालच ही क्यों न हो, किन्तु अल्लाह जिसे भटका देता है उसे वह मार्ग नहीं दिखाया करता और ऐसे लोगों का कोई सहायक भी नहीं होता॥37॥
وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ لَا يَبۡعَثُ ٱللَّهُ مَن يَمُوتُۚ بَلَىٰ وَعۡدًا عَلَيۡهِ حَقّٗا وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 38
उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा, "जो मर जाता है उसे अल्लाह नहीं उठाएगा।" क्यों नहीं? यह तो एक वादा है जिसे पूरा करना उसके लिए अनिवार्य है — किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। —॥38॥
لِيُبَيِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِي يَخۡتَلِفُونَ فِيهِ وَلِيَعۡلَمَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّهُمۡ كَانُواْ كَٰذِبِينَ ۝ 39
ताकि वह उनपर उसको स्पष्ट कर दे जिसके विषय में वे विभेद करते हैं, और इसलिए भी कि इनकार करने वाले जान लें कि वे झूठे थे॥39॥
إِنَّمَا قَوۡلُنَا لِشَيۡءٍ إِذَآ أَرَدۡنَٰهُ أَن نَّقُولَ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ ۝ 40
किसी चीज़ के लिए जब हम उसका इरादा करते हैं तो हमारा कहना बस यही होता है कि उससे कहते हैं, "हो जा!" और वह हो जाती है॥40॥
وَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ فِي ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا ظُلِمُواْ لَنُبَوِّئَنَّهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗۖ وَلَأَجۡرُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ۝ 41
और जिन लोगों ने, इसके बाद कि उनपर ज़ुल्म ढाया गया था, अल्लाह के लिए घर-बार छोड़ा उन्हें हम दुनिया में भी अच्छा ठिकाना देंगे और आख़िरत का प्रतिदान तो बहुत बड़ा है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते!॥41॥
ٱلَّذِينَ صَبَرُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ يَتَوَكَّلُونَ ۝ 42
ये वे लोग हैं जो जमे रहे और वे अपने रब पर भरोसा रखते हैं॥42॥
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ إِلَّا رِجَالٗا نُّوحِيٓ إِلَيۡهِمۡۖ فَسۡـَٔلُوٓاْ أَهۡلَ ٱلذِّكۡرِ إِن كُنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 43
हमने तुमसे पहले भी पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजा था — जिनकी ओर हम प्रकाशना करते रहे हैं। यदि तुम नहीं जानते तो अनुस्मृतिवालों2 से पूछ लो॥43॥ ————————— 2. अर्थात् किताबवालों—यहूद और नसारा से।
بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلزُّبُرِۗ وَأَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلذِّكۡرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيۡهِمۡ وَلَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 44
स्पष्ट प्रमाणों और ज़बूरों (किताबों) के साथ। और अब यह नसीहत तुम्हारी ओर हमने अवतरित की, ताकि तुम लोगों के समक्ष खोल-खोलकर बयान कर दो जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है, और ताकि वे सोच-विचार करें॥44॥
أَفَأَمِنَ ٱلَّذِينَ مَكَرُواْ ٱلسَّيِّـَٔاتِ أَن يَخۡسِفَ ٱللَّهُ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضَ أَوۡ يَأۡتِيَهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 45
फिर क्या वे लोग, जो ऐसी बुरी-बुरी चालें चल रहे हैं, इस बात से निश्चिन्त हो गए हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धँसा दे या ऐसे मौके़ से उनपर यातना आ जाए जिसका उन्हें एहसास तक न हो?॥45॥
أَوۡ يَأۡخُذَهُمۡ فِي تَقَلُّبِهِمۡ فَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ ۝ 46
या उन्हें चलते-फिरते ही पकड़ ले, वे क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले तो हैं नहीं?॥46॥
أَوۡ يَأۡخُذَهُمۡ عَلَىٰ تَخَوُّفٖ فَإِنَّ رَبَّكُمۡ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٌ ۝ 47
या वह उन्हें त्रस्त अवस्था में पकड़ ले? किन्तु तुम्हारा रब तो बड़ा ही करुणामय, दयावान है॥47॥
أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَىٰ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ مِن شَيۡءٖ يَتَفَيَّؤُاْ ظِلَٰلُهُۥ عَنِ ٱلۡيَمِينِ وَٱلشَّمَآئِلِ سُجَّدٗا لِّلَّهِ وَهُمۡ دَٰخِرُونَ ۝ 48
क्या अल्लाह की पैदा की हुई किसी चीज़ को उन्होंने देखा नहीं कि किस प्रकार उसकी परछाइयाँ अल्लाह को सजदा करती और विनम्रता दिखाती हुईं दाएँ ओर बाएँ दिशाओं की ओर झुकती हैं?॥48॥
وَلِلَّهِۤ يَسۡجُدُۤ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ مِن دَآبَّةٖ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ وَهُمۡ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ ۝ 49
और आकाशों और धरती में जितने भी जीवधारी हैं वे सब अल्लाह ही को सजदा करते हैं और फ़रिश्ते भी, और वे घमण्डं बिलकुल नहीं करते॥49॥
يَخَافُونَ رَبَّهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ وَيَفۡعَلُونَ مَا يُؤۡمَرُونَ۩ ۝ 50
वे अपने ऊपर अपने रब का डर रखते हैं और जो उन्हें आदेश होता है वही करते हैं॥50॥
۞وَقَالَ ٱللَّهُ لَا تَتَّخِذُوٓاْ إِلَٰهَيۡنِ ٱثۡنَيۡنِۖ إِنَّمَا هُوَ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ فَإِيَّٰيَ فَٱرۡهَبُونِ ۝ 51
अल्लाह का फ़रमान है, "दो-दो पूज्य-प्रभु न बनाओ, वह तो बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः मुझी से डरो।"॥51॥
وَلَهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَهُ ٱلدِّينُ وَاصِبًاۚ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَتَّقُونَ ۝ 52
जो कुछ आकाशों और धरती में है सब उसी का है। उसी का दीन (धर्म) स्थायी और अनिवार्य है। फिर क्या अल्लाह के सिवा तुम किसी और का डर रखोगे?॥52॥
وَمَا بِكُم مِّن نِّعۡمَةٖ فَمِنَ ٱللَّهِۖ ثُمَّ إِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فَإِلَيۡهِ تَجۡـَٔرُونَ ۝ 53
तुम्हारे पास जो भी नेमत है वह अल्लाह ही की ओर से है। फिर जब तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो तुम उसी के आगे चिल्लाते और फ़रियाद करते हो॥53॥
ثُمَّ إِذَا كَشَفَ ٱلضُّرَّ عَنكُمۡ إِذَا فَرِيقٞ مِّنكُم بِرَبِّهِمۡ يُشۡرِكُونَ ۝ 54
फिर जब वह उस तकलीफ़ को तुमसे टाल देता है तो क्या देखते हैं कि तुममें से कुछ लोग अपने रब के साथ साझीदार ठहराने लगते हैं,॥54॥
لِيَكۡفُرُواْ بِمَآ ءَاتَيۡنَٰهُمۡۚ فَتَمَتَّعُواْ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ۝ 55
कि परिणामस्वरूप जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके प्रति कृतघ्‍नता दिखलाते हैं। अच्छा कुछ और मज़े ले लो, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हो जाएगा॥55॥
وَيَجۡعَلُونَ لِمَا لَا يَعۡلَمُونَ نَصِيبٗا مِّمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡۗ تَٱللَّهِ لَتُسۡـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمۡ تَفۡتَرُونَ ۝ 56
हमने उन्हें जो आजीविका प्रदान की है उसमें वे उनका हिस्सा लगाते हैं जिन्हें वे जानते भी नहीं। अल्लाह की सौगन्ध! तुम जो झूठ गढ़ते हो उसके विषय में तुमसे अवश्य पूछा जाएगा॥56॥
وَيَجۡعَلُونَ لِلَّهِ ٱلۡبَنَٰتِ سُبۡحَٰنَهُۥ وَلَهُم مَّا يَشۡتَهُونَ ۝ 57
और वे अल्लाह के लिए बेटियाँ ठहराते हैं — महान और उच्च है वह — और अपने लिए वह, जो वे चाहें॥57॥
وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِٱلۡأُنثَىٰ ظَلَّ وَجۡهُهُۥ مُسۡوَدّٗا وَهُوَ كَظِيمٞ ۝ 58
और जब उनमें से किसी को बेटी की शुभ-सूचना मिलती है तो उसके चहरे पर कलौंस छा जाती है और वह घुटा-घुटा रहता है॥58॥
يَتَوَٰرَىٰ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ مِن سُوٓءِ مَا بُشِّرَ بِهِۦٓۚ أَيُمۡسِكُهُۥ عَلَىٰ هُونٍ أَمۡ يَدُسُّهُۥ فِي ٱلتُّرَابِۗ أَلَا سَآءَ مَا يَحۡكُمُونَ ۝ 59
जो शुभ-सूचना उसे दी गई वह (उसकी दृष्टि में) ऐसी बुराई की बात हुई कि उसके कारण वह लोगों से छिपता फिरता है कि अपमान सहन करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। देखो, कितना बुरा फ़ैसला है जो वे करते हैं! ॥59॥
لِلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ مَثَلُ ٱلسَّوۡءِۖ وَلِلَّهِ ٱلۡمَثَلُ ٱلۡأَعۡلَىٰۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 60
जो लोग आख़िरत को नहीं मानते, बुरी दशा है उनकी। रहा अल्लाह, तो उसकी मिसाल अत्यन्त उच्च है। वह तो प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है॥60॥
وَلَوۡ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِظُلۡمِهِم مَّا تَرَكَ عَلَيۡهَا مِن دَآبَّةٖ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمۡ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗىۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمۡ لَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ سَاعَةٗ وَلَا يَسۡتَقۡدِمُونَ ۝ 61
यदि अल्लाह लोगों को उनके अत्याचार पर पकड़ने ही लग जाता तो धरती पर किसी जीवधारी को न छोड़ता, किन्तु वह उन्हें एक निश्चित समय तक टाले जाता है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न तो एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं॥61॥
وَيَجۡعَلُونَ لِلَّهِ مَا يَكۡرَهُونَۚ وَتَصِفُ أَلۡسِنَتُهُمُ ٱلۡكَذِبَ أَنَّ لَهُمُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ لَا جَرَمَ أَنَّ لَهُمُ ٱلنَّارَ وَأَنَّهُم مُّفۡرَطُونَ ۝ 62
वे अल्लाह के लिए वह कुछ ठहराते हैं जिसे ख़ुद अपने लिए नापसन्द करते हैं और उनकी ज़बाने झूठ कहती हैं कि उनके लिए अच्छा परिणाम है। निस्संदेह उनके लिए आग है और वे उसी में पड़े छोड़ दिए जाएँगे॥62॥
تَٱللَّهِ لَقَدۡ أَرۡسَلۡنَآ إِلَىٰٓ أُمَمٖ مِّن قَبۡلِكَ فَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَعۡمَٰلَهُمۡ فَهُوَ وَلِيُّهُمُ ٱلۡيَوۡمَ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ ۝ 63
अल्लाह की सौगन्ध! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके हैं, किन्तु शैतान ने उनकी करतूतों को उनके लिए सुहावना बना दिया। तो वही आज भी उनका संरक्षक है। उनके लिए तो एक दुखद यातना है॥63॥
وَمَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ إِلَّا لِتُبَيِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِي ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٗ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 64
हमने यह किताब तुमपर इसी लिए अवतरित की है कि जिसमें वे विभेद कर रहे हैं उसे तुम उनपर स्पष्ट कर दो, और यह मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो ईमान लाएँ॥64॥
وَٱللَّهُ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَآۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَسۡمَعُونَ ۝ 65
और अल्लाह ही ने आकाश से पानी बरसाया। फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित किया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानी है जो सुनते हैं।॥65॥
وَإِنَّ لَكُمۡ فِي ٱلۡأَنۡعَٰمِ لَعِبۡرَةٗۖ نُّسۡقِيكُم مِّمَّا فِي بُطُونِهِۦ مِنۢ بَيۡنِ فَرۡثٖ وَدَمٖ لَّبَنًا خَالِصٗا سَآئِغٗا لِّلشَّٰرِبِينَ ۝ 66
और तुम्हारे लिए चौपायों में से एक बड़ी शिक्षा-सामग्री है, जो कुछ उनके पेटों में है उसमें से गोबर और रक्त के मध्य से हम तुम्हें विशुद्ध दूध पिलाते हैं, जो पीनेवालों के लिए अत्यन्त प्रिय है,॥66॥
وَمِن ثَمَرَٰتِ ٱلنَّخِيلِ وَٱلۡأَعۡنَٰبِ تَتَّخِذُونَ مِنۡهُ سَكَرٗا وَرِزۡقًا حَسَنًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 67
और खजूरों और अंगूरों के फलों से भी, जिससे तुम मादक चीज़ भी तैयार कर लेते हो और अच्छी रोज़ी भी। निश्चय ही इसमें बुद्धि से काम लेनेवाले लोगों के लिए एक बड़ी निशानी है॥67॥
وَأَوۡحَىٰ رَبُّكَ إِلَى ٱلنَّحۡلِ أَنِ ٱتَّخِذِي مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُيُوتٗا وَمِنَ ٱلشَّجَرِ وَمِمَّا يَعۡرِشُونَ ۝ 68
और तुम्हारे रब ने मुधमक्खी के जी में यह बात डाल दी कि "पहाड़ों में और वृक्षों में और लोगों के बनाए हुए छत्रों में घर बना॥68॥
ثُمَّ كُلِي مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ فَٱسۡلُكِي سُبُلَ رَبِّكِ ذُلُلٗاۚ يَخۡرُجُ مِنۢ بُطُونِهَا شَرَابٞ مُّخۡتَلِفٌ أَلۡوَٰنُهُۥ فِيهِ شِفَآءٞ لِّلنَّاسِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 69
फिर हर प्रकार के फल-फूलों से ख़ुराक ले और अपने रब के समतम मार्गों पर चलती रह।" उसके पेट से विभिन्न रंग का एक पेय निकलता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवाले लोगों के लिए इसमें एक बड़ी निशानी है॥69॥
وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ ثُمَّ يَتَوَفَّىٰكُمۡۚ وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَىٰٓ أَرۡذَلِ ٱلۡعُمُرِ لِكَيۡ لَا يَعۡلَمَ بَعۡدَ عِلۡمٖ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٞ قَدِيرٞ ۝ 70
अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया। फिर वह तुम्हारी आत्माओं को ग्रस्त कर लेता है, और तुममें से कोई (बुढ़ापे की) निकृष्टतम अवस्था की ओर फिर जाता है, कि (परिणामस्वरूप) जानने के बाद फिर वह कुछ न जाने। निस्संदेह अल्लाह सर्वज्ञ, बड़ा सामर्थ्यवान है॥70॥
وَٱللَّهُ فَضَّلَ بَعۡضَكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ فِي ٱلرِّزۡقِۚ فَمَا ٱلَّذِينَ فُضِّلُواْ بِرَآدِّي رِزۡقِهِمۡ عَلَىٰ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ فَهُمۡ فِيهِ سَوَآءٌۚ أَفَبِنِعۡمَةِ ٱللَّهِ يَجۡحَدُونَ ۝ 71
और अल्लाह ने तुममें से किसी को किसी पर रोज़ी में बड़ाई दी है। किन्तु जिनको बड़ाई दी गई है वे ऐसे नहीं हैं कि अपनी रोज़ी उनकी ओर फेर दिया करते हों जो उनके क़ब्ज़े में हैं कि वे सब इसमें बराबर हो जाएँ। फिर क्या अल्लाह के अनुग्रह का उन्हें इनकार है?3॥71॥ ————————— 3. अर्थात् जब तुम इसके पक्ष में नहीं हो कि अपने माल में अपने नौकर-चाकर और ग़ुलामों को बराबर का भगीदार बना लो, तो फिर यह बात तुम्हें कैसे सही मालूम होती है कि अल्लाह ने लोगों पर जो अनग्रह किए हैं, उनके प्रति आभार प्रकट करने के सिलसिले में तुम अल्लाह के साथ दूसरों को भी साझीदार ठहराने लगते हो।
وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ أَزۡوَٰجٗا وَجَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَزۡوَٰجِكُم بَنِينَ وَحَفَدَةٗ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِۚ أَفَبِٱلۡبَٰطِلِ يُؤۡمِنُونَ وَبِنِعۡمَتِ ٱللَّهِ هُمۡ يَكۡفُرُونَ ۝ 72
और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए तुम्हारी सहजाति पत्नियाँ बनाई और तुम्हारी पत्नियों से तुम्हारे लिए पुत्र और पौत्र पैदा किए और तुम्हें अच्छी-पाक चीज़ों की रोज़ी प्रदान की। तो क्या वे मिथ्या को मानते हैं और अल्लाह के अनुग्रह ही का उन्हें इनकार है?॥72॥
وَيَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَمۡلِكُ لَهُمۡ رِزۡقٗا مِّنَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ شَيۡـٔٗا وَلَا يَسۡتَطِيعُونَ ۝ 73
और अल्लाह से हटकर उन्हें पूजते हैं, जिन्हें आकाशों और धरती से रोज़ी प्रदान करने का कुछ भी अधिकार प्राप्ता नहीं है और न उन्हें कोई सामर्थ्य ही प्राप्त है॥73॥
فَلَا تَضۡرِبُواْ لِلَّهِ ٱلۡأَمۡثَالَۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 74
अतः अल्लाह के लिए मिसालें न गढ़ो। जानता अल्लाह है, तुम नहीं जानते॥74॥
۞ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًا عَبۡدٗا مَّمۡلُوكٗا لَّا يَقۡدِرُ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَمَن رَّزَقۡنَٰهُ مِنَّا رِزۡقًا حَسَنٗا فَهُوَ يُنفِقُ مِنۡهُ سِرّٗا وَجَهۡرًاۖ هَلۡ يَسۡتَوُۥنَۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 75
अल्लाह ने एक मिसाल पेश की है। एक ग़ुलाम है जिसपर दूसरे का अधिकार है, उसे किसी चीज़ पर अधिकार प्राप्त नहीं। इसके विपरीत एक वह व्यक्ति है जिसे हमने अपनी ओर से अच्छी रोज़ी प्रदान की है, फिर वह उसमें से खुले और छिपे ख़र्च करता रहता है। तो क्या वे परस्पर समान हैं? प्रशंसा अल्लाह के लिए है! किन्तु उनमें अधिकतर लोग जानते नहीं॥75॥
وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلَيۡنِ أَحَدُهُمَآ أَبۡكَمُ لَا يَقۡدِرُ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَهُوَ كَلٌّ عَلَىٰ مَوۡلَىٰهُ أَيۡنَمَا يُوَجِّههُّ لَا يَأۡتِ بِخَيۡرٍ هَلۡ يَسۡتَوِي هُوَ وَمَن يَأۡمُرُ بِٱلۡعَدۡلِ وَهُوَ عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 76
अल्लाह ने एक और मिसाल पेश की है। दो मर्द हैं। उनमें से एक गूँगा है। किसी चीज़ पर उसे अधिकार प्राप्त नहीं। वह अपने स्वामी पर एक बोझ है — उसे वह जहाँ भेजता है, कुछ भला करके नहीं लाता। क्या वह और जो न्याय का आदेश देता है और स्वयं भी सीधे मार्ग पर है वे समान हो सकते हैं?॥76॥
وَلِلَّهِ غَيۡبُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَمَآ أَمۡرُ ٱلسَّاعَةِ إِلَّا كَلَمۡحِ ٱلۡبَصَرِ أَوۡ هُوَ أَقۡرَبُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 77
आकाशों और धरती के रहस्यों का सम्बन्ध अल्लाह ही से है। और उस क़ियामत की घड़ी का मामला तो बस ऐसा है जैसे आँखों का झपकना या वह इससे भी अधिक निकट है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥77॥
وَٱللَّهُ أَخۡرَجَكُم مِّنۢ بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ شَيۡـٔٗا وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 78
अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माँओं के पेट से इस दशा में निकाला कि तुम कुछ जानते न थे। उसने तुम्हें कान, आँखें और दिल दिए, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ॥78॥
أَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَى ٱلطَّيۡرِ مُسَخَّرَٰتٖ فِي جَوِّ ٱلسَّمَآءِ مَا يُمۡسِكُهُنَّ إِلَّا ٱللَّهُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 79
क्या उन्होंने पक्षियों को नभ-मण्डकल में वशीभूत नहीं देखा? उन्हें तो बस अल्लाह ही थामे हुए होता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो ईमान लाएँ॥79॥
وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۢ بُيُوتِكُمۡ سَكَنٗا وَجَعَلَ لَكُم مِّن جُلُودِ ٱلۡأَنۡعَٰمِ بُيُوتٗا تَسۡتَخِفُّونَهَا يَوۡمَ ظَعۡنِكُمۡ وَيَوۡمَ إِقَامَتِكُمۡ وَمِنۡ أَصۡوَافِهَا وَأَوۡبَارِهَا وَأَشۡعَارِهَآ أَثَٰثٗا وَمَتَٰعًا إِلَىٰ حِينٖ ۝ 80
और अल्लाह ने तुम्हारे घरों को तुम्हारे लिए टिकने की जगह बनाया है और जानवरों की खालों से भी तुम्हारे लिए घर बनाए — जिन्हें तुम अपनी यात्रा के दिन और अपने ठहरने के दिन हल्का-फुलका पाते हो — और एक अवधि के लिए उनके ऊन, उनके लोमचर्म और उनके बालों से कितने ही सामान और बरतने की चीज़े बनाईं॥80॥
وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّمَّا خَلَقَ ظِلَٰلٗا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡجِبَالِ أَكۡنَٰنٗا وَجَعَلَ لَكُمۡ سَرَٰبِيلَ تَقِيكُمُ ٱلۡحَرَّ وَسَرَٰبِيلَ تَقِيكُم بَأۡسَكُمۡۚ كَذَٰلِكَ يُتِمُّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَيۡكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُسۡلِمُونَ ۝ 81
और अल्लाह ने तुम्हारे लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों से छाँवों का प्रबन्ध किया और पहाड़ो में तुम्हारे लिए छिपने के स्थान बनाए और तुम्हें लिबास (वस्त्र) दिए जो गर्मी से बचाते हैं और कुछ अन्य वस्त्र भी दिए जो तुम्हारी लड़ाई में तुम्हारे लिए बचाव का काम करते हैं। इस प्रकार वह तुमपर अपनी नेमत पूरी करता है, ताकि तुम आज्ञाकारी बनो॥81॥
فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا عَلَيۡكَ ٱلۡبَلَٰغُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 82
फिर यदि वे मुँह मोड़ते हैं तो तुम्हारा दायित्व तो केवल साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देना है॥82॥
يَعۡرِفُونَ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ ثُمَّ يُنكِرُونَهَا وَأَكۡثَرُهُمُ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 83
वे अल्लाह की नेमत को पहचानते हैं, फिर उसका इनकार करते हैं, और उनमें अधिकतर तो अकृतज्ञ हैं॥83॥
وَيَوۡمَ نَبۡعَثُ مِن كُلِّ أُمَّةٖ شَهِيدٗا ثُمَّ لَا يُؤۡذَنُ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ وَلَا هُمۡ يُسۡتَعۡتَبُونَ ۝ 84
याद करो जिस दिन हम हर समुदाय में से एक गवाह खड़ा करेंगे, फिर जिन्होंने इनकार किया होगा उन्हें कोई अनुमति प्राप्त न होगी। और न उन्हें इसका अवसर ही दिया जाएगा कि वे उसे राज़ी कर लें॥84॥
وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ ٱلۡعَذَابَ فَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمۡ وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ ۝ 85
और जब वे लोग, जिन्होंने अत्याचार किया, यातना देख लेंगे तो न वह उनके लिए हलकी की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी॥85॥
وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْ شُرَكَآءَهُمۡ قَالُواْ رَبَّنَا هَٰٓؤُلَآءِ شُرَكَآؤُنَا ٱلَّذِينَ كُنَّا نَدۡعُواْ مِن دُونِكَۖ فَأَلۡقَوۡاْ إِلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلَ إِنَّكُمۡ لَكَٰذِبُونَ ۝ 86
और जब वे लोग, जिन्होंने शिर्क किया, अपने ठहराए हुए साझीदारों को देखेंगे तो कहेंगे, "हमारे रब! यही हमारे वे साझीदार हैं जिन्हें हम तुझसे हटकर पुकारते थे।" इसपर वे उनकी ओर बात फेंक मारेंगे कि "तुम बिलकुल झूठे हो।"॥86॥
وَأَلۡقَوۡاْ إِلَى ٱللَّهِ يَوۡمَئِذٍ ٱلسَّلَمَۖ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ ۝ 87
उस दिन वे अल्लाह के आगे आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ पड़ेंगे। और जो कुछ वे गढ़ा करते थे वह सब उनसे खोकर रह जाएगा॥87॥
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ زِدۡنَٰهُمۡ عَذَابٗا فَوۡقَ ٱلۡعَذَابِ بِمَا كَانُواْ يُفۡسِدُونَ ۝ 88
जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका उनके लिए हम यातना पर यातना बढ़ाते रहेंगे, उस बिगाड़ के बदले में जो वे पैदा करते रहे॥88॥
وَيَوۡمَ نَبۡعَثُ فِي كُلِّ أُمَّةٖ شَهِيدًا عَلَيۡهِم مِّنۡ أَنفُسِهِمۡۖ وَجِئۡنَا بِكَ شَهِيدًا عَلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِۚ وَنَزَّلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ تِبۡيَٰنٗا لِّكُلِّ شَيۡءٖ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٗ وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 89
और उस समय को याद करो जब हम हर समुदाय में स्वयं उसके अपने लोगों में से एक गवाह उनपर नियुक्त करके भेज रहे थे और (इसी रीति के अनुसार) तुम्हें इन लोगों पर गवाह नियुक्त करके लाए। हमने तुमपर किताब अवतरित की हर चीज़ को खोलकर बयान करने के लिए और मुस्लिमों (आज्ञाकारियों) के लिए मार्गदर्शन, दयालुता और शुभ-सूचना के रूप में॥89॥
۞إِنَّ ٱللَّهَ يَأۡمُرُ بِٱلۡعَدۡلِ وَٱلۡإِحۡسَٰنِ وَإِيتَآيِٕ ذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَيَنۡهَىٰ عَنِ ٱلۡفَحۡشَآءِ وَٱلۡمُنكَرِ وَٱلۡبَغۡيِۚ يَعِظُكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ۝ 90
निश्चय ही अल्लाह न्याय का और भलाई का और नातेदारों को (उनके हक़) देने का आदेश देता है और अश्लीलता, बुराई और सरकशी से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम ध्यान दो॥90॥
وَأَوۡفُواْ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ إِذَا عَٰهَدتُّمۡ وَلَا تَنقُضُواْ ٱلۡأَيۡمَٰنَ بَعۡدَ تَوۡكِيدِهَا وَقَدۡ جَعَلۡتُمُ ٱللَّهَ عَلَيۡكُمۡ كَفِيلًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ ۝ 91
अल्लाह के साथ की हुई अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करो, जबकि तुमने प्रतिज्ञा की हो। और अपनी क़समों को उन्हें सुदृढ़ करने के बाद मत तोड़ो, जबकि तुम अपने ऊपर अल्लाह को अपना ज़ामिन बना चुके हो। निश्चेय ही अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो॥91॥
وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّتِي نَقَضَتۡ غَزۡلَهَا مِنۢ بَعۡدِ قُوَّةٍ أَنكَٰثٗا تَتَّخِذُونَ أَيۡمَٰنَكُمۡ دَخَلَۢا بَيۡنَكُمۡ أَن تَكُونَ أُمَّةٌ هِيَ أَرۡبَىٰ مِنۡ أُمَّةٍۚ إِنَّمَا يَبۡلُوكُمُ ٱللَّهُ بِهِۦۚ وَلَيُبَيِّنَنَّ لَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ مَا كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ ۝ 92
तुम उस स्त्री की भाँति न हो जाओ जिसने अपना सूत मेहनत से कातने के बाद टुकड़े-टुकड़े करके रख दिया। तुम अपनी क़समों को परस्पर हस्तक्षेप करने का बहाना बनाने लगो इस ध्येय से कहीं ऐसा न हो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से बढ़ जाए। बात केवल यह है कि अल्लाह इस प्रतिज्ञा के द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेता है और जिस बात में तुम विभेद करते हो उसकी वास्तविकता तो वह क़ियामत के दिन अवश्य ही तुमपर खोल देगा॥92॥
وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَكُمۡ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ وَلَٰكِن يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَلَتُسۡـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 93
यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही समुदाय बना देता, परन्तु वह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। तुम जो कुछ भी करते हो उसके विषय में तो तुमसे अवश्य पूछा जाएगा॥93॥
وَلَا تَتَّخِذُوٓاْ أَيۡمَٰنَكُمۡ دَخَلَۢا بَيۡنَكُمۡ فَتَزِلَّ قَدَمُۢ بَعۡدَ ثُبُوتِهَا وَتَذُوقُواْ ٱلسُّوٓءَ بِمَا صَدَدتُّمۡ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَكُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ ۝ 94
तुम अपनी क़समों को परस्पर हस्तक्षेप करने का बहाना न बना लेना। कहीं ऐसा न हो कि कोई क़दम जमने के बाद उखड़ जाए और अल्लाह के मार्ग से तुम्हारे रोकने के बदले में तुम्हें तकलीफ़ का मज़ा चखना पड़े और तुम एक बड़ी यातना के भागी ठहरो॥94॥
وَلَا تَشۡتَرُواْ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ ثَمَنٗا قَلِيلًاۚ إِنَّمَا عِندَ ٱللَّهِ هُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 95
और तुच्छ मूल्य के लिए अल्लाह की प्रतिज्ञा का सौदा न करो। अल्लाह के पास जो कुछ है वह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है, यदि तुम जानो;॥95॥
مَا عِندَكُمۡ يَنفَدُ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ بَاقٖۗ وَلَنَجۡزِيَنَّ ٱلَّذِينَ صَبَرُوٓاْ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 96
तुम्हारे पास जो कुछ है वह तो समाप्त हो जाएगा, किन्तु अल्लाह के पास जो कुछ है वही बाक़ी रहनेवाला है। जिन लोगों ने धैर्य से काम लिया उन्हें तो, जो उत्तम कर्म वे करते रहे उसके बदले में, हम अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे॥96॥
مَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَلَنُحۡيِيَنَّهُۥ حَيَوٰةٗ طَيِّبَةٗۖ وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 97
जिस किसी ने भी अच्छा कर्म किया, पुरुष हो या स्त्री, शर्त यह है कि वह ईमान पर हो तो हम उसे अवश्य पवित्र जीवन-यापन कराएँगे। ऐसे लोग जो अच्छा कर्म करते रहे उसके बदले में हम उन्हें अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे॥97॥
فَإِذَا قَرَأۡتَ ٱلۡقُرۡءَانَ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ ٱلرَّجِيمِ ۝ 98
अतः जब तुम क़ुरआन पढ़ने लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह माँग लिया करो॥98॥
إِنَّهُۥ لَيۡسَ لَهُۥ سُلۡطَٰنٌ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ يَتَوَكَّلُونَ ۝ 99
उसका तो उन लोगों पर कोई ज़ोर नहीं चलता जो ईमान लाए और अपने रब पर भरोसा रखते हैं॥99॥
إِنَّمَا سُلۡطَٰنُهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ يَتَوَلَّوۡنَهُۥ وَٱلَّذِينَ هُم بِهِۦ مُشۡرِكُونَ ۝ 100
उसका ज़ोर तो बस उन्हीं लोगों पर चलता है जो उसे अपना मित्र बनाते हैं और उस (अल्लाह) के साथ साझी ठहराते हैं॥100॥
وَإِذَا بَدَّلۡنَآ ءَايَةٗ مَّكَانَ ءَايَةٖ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُوٓاْ إِنَّمَآ أَنتَ مُفۡتَرِۭۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 101
जब हम किसी आयत की जगह दूसरी आयत बदलकर लाते हैं — और अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वह अवतरित करता है — तो वे कहते हैं, "तुम स्वयं ही गढ़ लेते हो!" नहीं, बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते॥101॥
قُلۡ نَزَّلَهُۥ رُوحُ ٱلۡقُدُسِ مِن رَّبِّكَ بِٱلۡحَقِّ لِيُثَبِّتَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَهُدٗى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 102
कह दो, "इसे तो पवित्र आत्मा ने तुम्हारे रब की ओर से क्रमशः सत्य के साथ उतारा है, ताकि ईमान लानेवालों को जमाव प्रदान करे और आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन और शुभ सूचना हो॥102॥
وَلَقَدۡ نَعۡلَمُ أَنَّهُمۡ يَقُولُونَ إِنَّمَا يُعَلِّمُهُۥ بَشَرٞۗ لِّسَانُ ٱلَّذِي يُلۡحِدُونَ إِلَيۡهِ أَعۡجَمِيّٞ وَهَٰذَا لِسَانٌ عَرَبِيّٞ مُّبِينٌ ۝ 103
हमें मालूम है कि वे कहते हैं, "उसको तो बस एक आदमी सिखाता — पढ़ाता है।" हालाँकि जिसकी ओर वे संकेत करते हैं उसकी भाषा विदेशी है और यह स्पष्ट अरबी भाषा है॥103॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ لَا يَهۡدِيهِمُ ٱللَّهُ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ ۝ 104
सच्ची बात यह है कि जो लोग अल्लाह की आयतों को नहीं मानते, अल्लाह उनका मार्गदर्शन नहीं करता। उनके लिए तो एक दुखद यातना है॥104॥
إِنَّمَا يَفۡتَرِي ٱلۡكَذِبَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡكَٰذِبُونَ ۝ 105
झूठ तो बस वही लोग गढ़ते हैं जो अल्लाह की आयतों को मानते नहीं और वही हैं जो झूठे हैं॥105॥
مَن كَفَرَ بِٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ إِيمَٰنِهِۦٓ إِلَّا مَنۡ أُكۡرِهَ وَقَلۡبُهُۥ مُطۡمَئِنُّۢ بِٱلۡإِيمَٰنِ وَلَٰكِن مَّن شَرَحَ بِٱلۡكُفۡرِ صَدۡرٗا فَعَلَيۡهِمۡ غَضَبٞ مِّنَ ٱللَّهِ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ ۝ 106
जिस किसी ने अपने ईमान के बाद अल्लाह के साथ कुफ़्र किया — सिवाय उसके जो इसके लिए विवश कर दिया गया हो और दिल उसका ईमान पर संतुष्ट हो — बल्कि वह जिसने सीना कुफ़्र के लिए खोल दिया हो, तो ऐसे लोगों पर अल्लाह का प्रकोप है और उनके लिए बड़ी यातना है॥106॥
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمُ ٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا عَلَى ٱلۡأٓخِرَةِ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 107
यह इसलिए कि उन्होंने आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन को पसन्द किया, और यह कि अल्लाह कुफ़्र करनेवालो लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता॥107॥
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَٰرِهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡغَٰفِلُونَ ۝ 108
वही लोग है जिनके दिलों और जिनके कानों और जिनकी आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है; और वही है जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं॥108॥
لَا جَرَمَ أَنَّهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ ۝ 109
निश्चय ही आख़िरत में वही घाटे में रहेंगे॥109॥
ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ هَاجَرُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا فُتِنُواْ ثُمَّ جَٰهَدُواْ وَصَبَرُوٓاْ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعۡدِهَا لَغَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 110
फिर तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने इसके बाद कि वे आज़माइश में पड़ चुके थे घर-बार छोड़ा, फिर जिहाद (संघर्ष) किया और जमे रहे, तो इन बातों के बाद तो निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है॥110॥
۞يَوۡمَ تَأۡتِي كُلُّ نَفۡسٖ تُجَٰدِلُ عَن نَّفۡسِهَا وَتُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 111
जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर से बहस करता हुआ आएगा और प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने किया होगा उसका पूरा-पूरा बदला चुका दिया जाएगा और उनपर कुछ भी अत्याचार न होगा॥111॥
وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا قَرۡيَةٗ كَانَتۡ ءَامِنَةٗ مُّطۡمَئِنَّةٗ يَأۡتِيهَا رِزۡقُهَا رَغَدٗا مِّن كُلِّ مَكَانٖ فَكَفَرَتۡ بِأَنۡعُمِ ٱللَّهِ فَأَذَٰقَهَا ٱللَّهُ لِبَاسَ ٱلۡجُوعِ وَٱلۡخَوۡفِ بِمَا كَانُواْ يَصۡنَعُونَ ۝ 112
अल्लाह ने एक मिसाल बयान की है। एक बस्ती थी जो निश्चिन्त और सन्तुष्ट थी। हर जगह से उसकी रोज़ी प्रचुरता के साथ चली आ रही थी कि वह अल्लाह की नेमतों के प्रति अकृतज्ञता दिखाने लगी। तब अल्लाह ने उसके निवासियों को उनकी करतूतों के बदले में भूख का मज़ा चखाया और भय का वस्त्र पहनाया॥112॥
وَلَقَدۡ جَآءَهُمۡ رَسُولٞ مِّنۡهُمۡ فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَهُمۡ ظَٰلِمُونَ ۝ 113
उनके पास उन्हीं में से एक रसूल आया। किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः यातना ने उन्हें इस दशा में आ लिया कि वे अत्याचारी थे॥113॥
فَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَٰلٗا طَيِّبٗا وَٱشۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ ۝ 114
अतः जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें हलाल-पाक रोज़ी दी है उसे खाओ और अल्लाह की नेमत के प्रति कृतज्ञता दिखाओ, यदि तुम उसी को स्वामी मानते हो॥114॥
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَيۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ لِغَيۡرِ ٱللَّهِ بِهِۦۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَيۡرَ بَاغٖ وَلَا عَادٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 115
उसने तो तुमपर केवल मुर्दार, रक्त, सुअर का माँस और जिसपर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। फिर यदि कोई इस प्रकार विवश हो जाए कि न तो उसकी ललक हो और न वह हद से आगे बढ़नेवाला हो तो निश्च्य ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है॥115॥
وَلَا تَقُولُواْ لِمَا تَصِفُ أَلۡسِنَتُكُمُ ٱلۡكَذِبَ هَٰذَا حَلَٰلٞ وَهَٰذَا حَرَامٞ لِّتَفۡتَرُواْ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ لَا يُفۡلِحُونَ ۝ 116
और अपनी ज़बानों के बयान किए हुए झूठ के आधार पर यह न कहा करो, "यह हलाल है और यह हराम है," ताकि इस तरह अल्लाह पर झूठ आरोपित करो। जो लोग अल्लाह से सम्बद्ध करके झूठ गढ़ते हैं, वे कदापि सफल होनेवाले नहीं॥116॥
مَتَٰعٞ قَلِيلٞ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ ۝ 117
यह थोढ़ी सी सुख सामग्री है, उनके लिए वास्तव में तो दुखद यातना है॥117॥
وَعَلَى ٱلَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمۡنَا مَا قَصَصۡنَا عَلَيۡكَ مِن قَبۡلُۖ وَمَا ظَلَمۡنَٰهُمۡ وَلَٰكِن كَانُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ ۝ 118
जो यहूदी हैं उनपर हम पहले वे चीज़ें हराम कर चुके हैं जिनका उल्लेख हमने तुमसे किया। उनपर तो अत्याचार हमने नहीं किया, बल्कि वे स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते रहे॥118॥
ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ عَمِلُواْ ٱلسُّوٓءَ بِجَهَٰلَةٖ ثُمَّ تَابُواْ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ وَأَصۡلَحُوٓاْ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعۡدِهَا لَغَفُورٞ رَّحِيمٌ ۝ 119
फिर तुम्हारा रब उनके लिए जिन्होंने अज्ञानवश बुरा कर्म किया, फिर इसके बाद तौबा करके सुधार कर लिया, तो निश्चय ही तुम्हारा रब इसके बाद बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है॥119॥
إِنَّ إِبۡرَٰهِيمَ كَانَ أُمَّةٗ قَانِتٗا لِّلَّهِ حَنِيفٗا وَلَمۡ يَكُ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 120
निश्चय ही इबराहीम की स्थिति एक समुदाय की थी। वह अल्लाह का आज्ञाकारी और उसकी ओर एकाग्र था। वह कोई बहुदेववादी न था॥120॥
شَاكِرٗا لِّأَنۡعُمِهِۚ ٱجۡتَبَىٰهُ وَهَدَىٰهُ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 121
वह उसके (अल्लाह के) उदार अनुग्रहों के प्रति कृतज्ञता दिखलानेवाला था। अल्लाह ने उसे चुन लिया और उसे सीधे मार्ग पर चलाया॥121॥
وَءَاتَيۡنَٰهُ فِي ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗۖ وَإِنَّهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 122
और हमने उसे दुनिया में भी भलाई दी और आख़िरत में भी वह अच्छे लोगों में से होगा॥122॥
ثُمَّ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ أَنِ ٱتَّبِعۡ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 123
फिर अब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की, "इबराहीम के तरीक़े पर चलो जो बिलकुल एक ओर का हो गया था और बहुदेववादियों में से न था।"॥123॥
إِنَّمَا جُعِلَ ٱلسَّبۡتُ عَلَى ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِۚ وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 124
‘सब्त’4 तो केवल उन लोगों पर लागू हुआ था जिन्होंने उसके विषय में विभेद किया था। निश्चय ही तुम्हारा रब उनके बीच क़ियामत के दिन उसका फ़ैसला कर देगा जिसमें वे विभेद करते रहे हैं॥124॥ ————————— 4. देखिए सूरा-2 बक़रा, आयत-65
ٱدۡعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِٱلۡحِكۡمَةِ وَٱلۡمَوۡعِظَةِ ٱلۡحَسَنَةِۖ وَجَٰدِلۡهُم بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِۦ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِٱلۡمُهۡتَدِينَ ۝ 125
अपने रब के मार्ग की ओर तत्वदर्शिता और सदुपदेश के साथ बुलाओ और उनसे ऐसे ढंग से वाद-विवाद करो जो उत्तम हो। तुम्हारा रब उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक गया और वह उन्हें भी भली-भाँति जानता है जो संमार्ग पर है॥125॥
وَإِنۡ عَاقَبۡتُمۡ فَعَاقِبُواْ بِمِثۡلِ مَا عُوقِبۡتُم بِهِۦۖ وَلَئِن صَبَرۡتُمۡ لَهُوَ خَيۡرٞ لِّلصَّٰبِرِينَ ۝ 126
यदि तुम बदला लो तो उतना ही जितना तुम्हें कष्ट पहुँचा हो, किन्तु यदि तुम सब्र करो तो निश्चजय ही यह सब्र करनेवालों के लिए ज़्यादा अच्छा है॥126॥
وَٱصۡبِرۡ وَمَا صَبۡرُكَ إِلَّا بِٱللَّهِۚ وَلَا تَحۡزَنۡ عَلَيۡهِمۡ وَلَا تَكُ فِي ضَيۡقٖ مِّمَّا يَمۡكُرُونَ ۝ 127
सब्र से काम लो — और तुम्हारा सब्र अल्लाह ही से सम्बद्ध है — और उनपर दुखी न हो और न उससे दिल तंग हो जो चालें वे चलते हैं॥127॥
إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَواْ وَّٱلَّذِينَ هُم مُّحۡسِنُونَ ۝ 128
निश्चय ही अल्लाह उनके साथ है जो डर रखते हैं और जो उत्तमकार हैं॥128॥