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سُورَةُ الكَهۡفِ

  1. अल-कह्फ़

(मक्‍का में उतरी-आयतें 110)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम इसकी नवीं आयत 'अम हसिब-त अन-न असहाब-कह्फ़' से लिया गया है। इस नाम का अर्थ यह है कि वह सूरा जिसमें कह्फ़ का शब्द आया है।

उतरने का समय

यहाँ से उन सूरतों का आरंभ होता है जो मक्की जीवन के तीसरे काल में उतरी हैं। यह काल लगभग 5 नबवी के आरंभ से शुरू होकर क़रीब-क़रीब 10 नबवी तक चलता है। इस युग में क़ुरैश ने नबी (सल्ल०) और आपकी 'तहरीक' (आन्दोलन) और जमाअत को दबाने के लिए उपहास, हँसी, आपत्तियों, आरोप, धमकी, लालच और विरोधीृ-दुष्प्रचार से आगे बढ़कर अन्याय-अत्याचार, मार-पीट और आर्थिक दबाव के हथियार पूरी कठोरता के साथ प्रयोग में लाए गए।

सूरा कह्फ़ के विषय पर विचार करने से अन्दाज़ा होता है कि यह तीसरे काल के आरंभ में उतरी होगी, जबकि अन्याय एवं अत्याचार और अवरोध ने तेज़ी तो अपना ली थी, मगर अभी हबशा की हिजरत नहीं हुई थी। उस समय जो मुसलमान सताए जा रहे थे उनको कह्फ़वालों का क़िस्सा सुनाया गया, ताकि उनमें साहस पैदा हो और उन्हें मालूम हो कि ईमानवाले अपना ईमान बचाने के लिए इससे पहले क्या कुछ कर चुके है।

विषय और वार्ताएँ

यह सूरा मक्का के मुशरिकों के तीन प्रश्नों के उत्तर में उतरी है जो उन्होंने नबी (सल्ल०) की परीक्षा लेने के लिए अहले-किताब के मश्‍वरे से आपके सामने पेश किए थे-1. असहाबे-कह्फ़ (ग़ारवाले) कौन थे? 2. ख़िज़्र के क़िस्से की वास्तविकता क्या है ? और 3 ज़ुल-क़रनैन का क्या क़िस्सा है ? ये तीनों क़िस्से यहूदियों और ईसाइयों के इतिहास से सम्बन्धित थे। हिजाज़ में इनकी कोई चर्चा न थी, मगर अल्लाह ने सिर्फ़ यही नहीं कि अपने नबी की ज़बान से इनके प्रश्नों का पूरा उत्तर दिया, बल्कि उनके अपने पूछे हुए तीनों क़िस्सों को पूरी तरह से उस परिस्थिति पर घटित करके दिखा दिया जो उस समय मक्का में कुफ़्र (अधर्म) और इस्लाम के बीच पायी जा रही थी।

  1. असहाबे-कह्फ़ (ग़ारवालों) के बारे में बताया कि वे उसी तौहीद(एकेश्वरवाद) को अपनाए हुए थे, जिसकी दावत यह क़ुरआन पेश कर रहा है और उनका हाल मक्का के मुट्ठी भर पीड़ित मुसलमानों के हाल से और उनकी क़ौम का रवैया कुरैश के विधर्मियों के रवैये से कुछ अलग न था। फिर इसी क़िस्से से ईमानवालों को यह शिक्षा दी गई कि अगर विधर्मियों का ग़लबा (प्रभुत्त्व) बहुत ज़्यादा हो और एक ईमानवाले व्यक्ति को ज़ालिम समाज में साँस लेने तक की मोहलत न दी जा रही हो, तब भी उसको असत्य के आगे सिर न झुकाना चाहिए |चाहे इसके लिए उसे घर-बार, बाल-बच्चे सब कुछ छोड़ देना पड़े।
  2. कह्फ़वालों के किस्से से रास्ता निकालकर उस अन्याय एवं अत्याचार पर और अनादर एवं अपमानजनक व्यवहार पर वार्ता शुरू कर दी गई जो मक्का के सरदार मुसलमानों के साथ कर रहे थे। इस सिलसिले में एक ओर नबी (सल्ल०) को आदेश दिया गया कि न इन अत्याचारियों से कोई समझौता करो और न अपने निर्धन साथियों के मुक़ाबले में इन बड़े-बड़े लोगों को कोई महत्त्व दो। दूसरी ओर उन सरदारों को उपदेश दिया गया कि अपने कुछ दिनों की ज़िन्दगी के ऐश पर न फूलो, बल्कि उन भलाइयों की तलब करनेवाले बनो जो सदा-सर्वदा रहनेवाली और स्थायी हैं।
  3. इसी के वर्णन-क्रम में ख़िज़्र और मूसा (अलैहि०) का क़िस्सा कुछ इस ढंग से सुनाया गया है कि उसमें विधर्मियों के सवालों का जवाब भी था और ईमानवालों के लिए तसल्ली का सामान भी। इस क़िस्से में वास्तव में जो शिक्षा दी गई है, वह यह है कि अल्लाह की मशीयत (ईश्वरेच्छा) का कारख़ाना जिन मस्लहतों (निहितार्थों) पर चल रहा है, वे चूँकि तुम्हारी नज़र से छिपी हुई हैं, इसलिए तुम बात-बात पर हैरान होते हो कि यह क्यों हुआ? यह क्या हो गया? हालाँकि अगर परदा उठा दिया जाए तो तुम्हें स्वयं मालूम हो जाए कि यहाँ जो कुछ हो रहा है, ठीक हो रहा है।
  4. इसके बाद ज़ुल-क़रनैन का क़िस्सा बयान होता है और इसमें पूछनेवालों को यह शिक्षा दी जाती है कि तुम तो इतनी मामूली-मामूली-सी सरदारियों पर फूल रहे हो, हालाँकि ज़ुल-क़रनैन इतना बड़ा शासक और ऐसा पराक्रमी विजेता और इतने श्रेष्ठ और प्रचार साधनों का स्वामी होकर भी अपनी वास्तविकता को न भूला था और अपने पैदा करनेवाले के आगे हमेशा सिर झुकाए रखता था।

अन्त में फिर उन्हीं बातों को दोहरा दिया गया है जो आरंभ में आई हैं, अर्थात् यह कि तौहीद और आख़िरत पूर्णत: सत्य हैं और तुम्हारी अपनी भलाई इसी में है कि इन्हें मानो ।

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سُورَةُ الكَهۡفِ
18. अल-कह्फ़
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ عَلَىٰ عَبۡدِهِ ٱلۡكِتَٰبَ وَلَمۡ يَجۡعَل لَّهُۥ عِوَجَاۜ ۝ 1
प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिसने अपने बन्दे पर यह किताब उतारी और उसमें (अर्थात उस बन्दे में) कोई टेढ़ नहीं रखी;॥1॥
قَيِّمٗا لِّيُنذِرَ بَأۡسٗا شَدِيدٗا مِّن لَّدُنۡهُ وَيُبَشِّرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ أَنَّ لَهُمۡ أَجۡرًا حَسَنٗا ۝ 2
ठीक और दुरुस्त, ताकि एक कठोर आपदा से सावधान कर दे जो उसकी ओर से आ पड़ेगी। और मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते हैं, शुभ सूचना दे दे कि उनके लिए अच्छा बदला है;॥2॥
مَّٰكِثِينَ فِيهِ أَبَدٗا ۝ 3
जिसमें वे सदैव रहेंगे॥3॥
وَيُنذِرَ ٱلَّذِينَ قَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدٗا ۝ 4
और उनको सावधान कर दे जो कहते हैं, "अल्लाह सन्तान वाला है।"॥4॥
مَّا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمٖ وَلَا لِأٓبَآئِهِمۡۚ كَبُرَتۡ كَلِمَةٗ تَخۡرُجُ مِنۡ أَفۡوَٰهِهِمۡۚ إِن يَقُولُونَ إِلَّا كَذِبٗا ۝ 5
इसका न उन्हें कोई ज्ञान है और न उनके बाप-दादा ही को था। बड़ी बात है जो उनके मुँह से निकलती है। वे केवल झूठ बोलते हैं॥5॥
فَلَعَلَّكَ بَٰخِعٞ نَّفۡسَكَ عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِمۡ إِن لَّمۡ يُؤۡمِنُواْ بِهَٰذَا ٱلۡحَدِيثِ أَسَفًا ۝ 6
अच्छा, शायद उनके पीछे, यदि उन्होंने यह बात न मानी, तो तुम अफ़सोस के मारे अपने प्राण ही खो दोगे!॥6॥
إِنَّا جَعَلۡنَا مَا عَلَى ٱلۡأَرۡضِ زِينَةٗ لَّهَا لِنَبۡلُوَهُمۡ أَيُّهُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلٗا ۝ 7
धरती पर जो कुछ है उसे तो हमने उसकी शोभा बनाया है, ताकि हम उनकी परीक्षा लें कि उनमें कर्म की दृष्टि से कौन उत्तम है॥7॥
وَإِنَّا لَجَٰعِلُونَ مَا عَلَيۡهَا صَعِيدٗا جُرُزًا ۝ 8
और जो कुछ उसपर है उसे तो हम एक ख़ाली चटियल मैदान बना देनेवाले हैं॥8॥
أَمۡ حَسِبۡتَ أَنَّ أَصۡحَٰبَ ٱلۡكَهۡفِ وَٱلرَّقِيمِ كَانُواْ مِنۡ ءَايَٰتِنَا عَجَبًا ۝ 9
क्या तुम समझते हो कि गुफा और रक़ीमवाले हमारी अद्भु त निशानियों में से थे?॥9॥
إِذۡ أَوَى ٱلۡفِتۡيَةُ إِلَى ٱلۡكَهۡفِ فَقَالُواْ رَبَّنَآ ءَاتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحۡمَةٗ وَهَيِّئۡ لَنَا مِنۡ أَمۡرِنَا رَشَدٗا ۝ 10
जब उन नवयुवकों ने गुफा में जाकर शरण ली तो कहा, "हमारे रब! हमें अपने यहाँ से दयालुता प्रदान कर और हमारे लिए हमारे अपने मामले को ठीक कर दे।"॥10॥
فَضَرَبۡنَا عَلَىٰٓ ءَاذَانِهِمۡ فِي ٱلۡكَهۡفِ سِنِينَ عَدَدٗا ۝ 11
फिर हमने उस गुफा में कई वर्षो के लिए उनके कानों पर परदा डाल दिया॥11॥
ثُمَّ بَعَثۡنَٰهُمۡ لِنَعۡلَمَ أَيُّ ٱلۡحِزۡبَيۡنِ أَحۡصَىٰ لِمَا لَبِثُوٓاْ أَمَدٗا ۝ 12
फिर हमने उन्हें भेजा, ताकि मालूम करें कि दोनों गिरोहों में से किसने याद रखा है कि कितनी अवधि तक वे रहे॥12॥
نَّحۡنُ نَقُصُّ عَلَيۡكَ نَبَأَهُم بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّهُمۡ فِتۡيَةٌ ءَامَنُواْ بِرَبِّهِمۡ وَزِدۡنَٰهُمۡ هُدٗى ۝ 13
हम तुम्हें ठीक-ठीक उनका कि़स्सा सुनाते हैं। वे कुछ नवयुवक थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, और हमने उन्हें मार्गदर्शन में बढ़ोत्तरी प्रदान की॥13॥
وَرَبَطۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ إِذۡ قَامُواْ فَقَالُواْ رَبُّنَا رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ لَن نَّدۡعُوَاْ مِن دُونِهِۦٓ إِلَٰهٗاۖ لَّقَدۡ قُلۡنَآ إِذٗا شَطَطًا ۝ 14
और हमने उनके दिलों को मज़बूत कर दिया। जब वे उठे तो उन्होंने कहा, "हमारा रब तो वही है जो आकाशों और धरती का रब है। हम उससे इतर किसी अन्य पूज्य को कदापि न पुकारेंगे। यदि हमने ऐसा किया तब तो हमारी बात हक़ से बहुत हटी हुई होगी॥14॥
هَٰٓؤُلَآءِ قَوۡمُنَا ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةٗۖ لَّوۡلَا يَأۡتُونَ عَلَيۡهِم بِسُلۡطَٰنِۭ بَيِّنٖۖ فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗا ۝ 15
ये हमारी क़ौम के लोग हैं, जिन्होंने उससे इतर कुछ अन्य पूज्य-प्रभु बना लिए है। आख़िर ये उनके हक़ में कोई स्पष्ट, प्रमाण क्यों नहीं लाते! भला उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपे?॥15॥
وَإِذِ ٱعۡتَزَلۡتُمُوهُمۡ وَمَا يَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ فَأۡوُۥٓاْ إِلَى ٱلۡكَهۡفِ يَنشُرۡ لَكُمۡ رَبُّكُم مِّن رَّحۡمَتِهِۦ وَيُهَيِّئۡ لَكُم مِّنۡ أَمۡرِكُم مِّرۡفَقٗا ۝ 16
और जबकि इनसे तुम अलग हो गए हो और उनसे भी जिनको अल्लाह के सिवा ये पूजते हैं, तो गुफा में चलकर शरण लो। तुम्हारा रब तुम्हारे लिए अपनी दयालुता का दामन फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे अपने काम से सम्बन्ध में आसानी के साधन उपलब्ध कराएगा।"॥16॥
۞وَتَرَى ٱلشَّمۡسَ إِذَا طَلَعَت تَّزَٰوَرُ عَن كَهۡفِهِمۡ ذَاتَ ٱلۡيَمِينِ وَإِذَا غَرَبَت تَّقۡرِضُهُمۡ ذَاتَ ٱلشِّمَالِ وَهُمۡ فِي فَجۡوَةٖ مِّنۡهُۚ ذَٰلِكَ مِنۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِۗ مَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلۡمُهۡتَدِۖ وَمَن يُضۡلِلۡ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ وَلِيّٗا مُّرۡشِدٗا ۝ 17
और तुम सूर्य को उसके उदित होते समय देखते तो दिखाई देता कि वह उनकी गुफा से दाहिनी ओर को बचकर निकल जाता है और जब अस्त होता है तो उनकी बाईं ओर से कतराकर निकल जाता है। और वे हैं कि उस (गुफा) के एक विस्तृत स्थान में हैं। यह अल्लाह की निशानियों में से है। जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए वही मार्ग पानेवाला है और जिसे वह भटकता छोड़ दे उसका तुम कोई सहायक मार्गदर्शक कदापि न पाओगे॥17॥
وَتَحۡسَبُهُمۡ أَيۡقَاظٗا وَهُمۡ رُقُودٞۚ وَنُقَلِّبُهُمۡ ذَاتَ ٱلۡيَمِينِ وَذَاتَ ٱلشِّمَالِۖ وَكَلۡبُهُم بَٰسِطٞ ذِرَاعَيۡهِ بِٱلۡوَصِيدِۚ لَوِ ٱطَّلَعۡتَ عَلَيۡهِمۡ لَوَلَّيۡتَ مِنۡهُمۡ فِرَارٗا وَلَمُلِئۡتَ مِنۡهُمۡ رُعۡبٗا ۝ 18
और तुम समझते हो कि वे जाग रहे हैं, हालाँकि वे सोए हुए होते। हम उन्हें दाएँ और बाएँ फेरते और उनका कुत्ता ड्योढ़ी पर अपनी दोनों भुजाएँ फैलाए हुए होता। यदि तुम उन्हें कहीं झाँककर देखते तो उनके पास से उलटे पाँव भाग खड़े होते और तुममें उसका भय समा जाता॥18॥
وَكَذَٰلِكَ بَعَثۡنَٰهُمۡ لِيَتَسَآءَلُواْ بَيۡنَهُمۡۚ قَالَ قَآئِلٞ مِّنۡهُمۡ كَمۡ لَبِثۡتُمۡۖ قَالُواْ لَبِثۡنَا يَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ يَوۡمٖۚ قَالُواْ رَبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَا لَبِثۡتُمۡ فَٱبۡعَثُوٓاْ أَحَدَكُم بِوَرِقِكُمۡ هَٰذِهِۦٓ إِلَى ٱلۡمَدِينَةِ فَلۡيَنظُرۡ أَيُّهَآ أَزۡكَىٰ طَعَامٗا فَلۡيَأۡتِكُم بِرِزۡقٖ مِّنۡهُ وَلۡيَتَلَطَّفۡ وَلَا يُشۡعِرَنَّ بِكُمۡ أَحَدًا ۝ 19
और इसी तरह हमने उन्हें उठा खड़ा किया कि वे आपस में पूछताछ करें। उनमें एक कहनेवाले ने कहा, "तुम कितना ठहरे रहे?" वे बोले, "हम यही कोई एक दिन या एक दिन से भी कम ठहरे होंगे।" उन्होंने कहा, "जितना तुम यहाँ ठहरे हो उसे तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है। अब अपने में से किसी को यह चाँदी का सिक्का देकर नगर की ओर भेजो। फिर वह देख ले कि उसमें सबसे अच्छा खाना किस जगह मिलता है। तो उसमें से वह तुम्हारे लिए कुछ खाने को ले आए और चाहिए की वह नरमी और होशियारी से काम ले और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे॥19॥
إِنَّهُمۡ إِن يَظۡهَرُواْ عَلَيۡكُمۡ يَرۡجُمُوكُمۡ أَوۡ يُعِيدُوكُمۡ فِي مِلَّتِهِمۡ وَلَن تُفۡلِحُوٓاْ إِذًا أَبَدٗا ۝ 20
यदि वे कहीं तुम्हारी ख़बर पा जाएँगे तो पथराव करके तुम्हें मार डालेंगे या तुम्हें अपने पंथ में लौटा ले जाएँगे, और तब तो तुम कभी भी सफल न हो सकोगे।"॥20॥
وَكَذَٰلِكَ أَعۡثَرۡنَا عَلَيۡهِمۡ لِيَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَأَنَّ ٱلسَّاعَةَ لَا رَيۡبَ فِيهَآ إِذۡ يَتَنَٰزَعُونَ بَيۡنَهُمۡ أَمۡرَهُمۡۖ فَقَالُواْ ٱبۡنُواْ عَلَيۡهِم بُنۡيَٰنٗاۖ رَّبُّهُمۡ أَعۡلَمُ بِهِمۡۚ قَالَ ٱلَّذِينَ غَلَبُواْ عَلَىٰٓ أَمۡرِهِمۡ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيۡهِم مَّسۡجِدٗا ۝ 21
इस तरह हमने लोगों को उनकी सूचना दे दी, ताकि वे जान लें कि अल्लाह का वादा सच्चा है और यह कि क़ियामत की घड़ी में कोई संदेह नहीं है। वह समय भी उल्लेखनीय है जब वे आपस में उनके मामले में छीन-झपट कर रहे थे। फिर उन्होंने कहा, "उनपर एक भवन बना दो। उनका रब उन्हें भली-भाँति जानता है।" और जो लोग उनके मामले में प्रभावी रहे उन्होंने कहा, "हम तो उनपर अवश्य एक उपासनागृह बनाएँगे।"॥21॥
سَيَقُولُونَ ثَلَٰثَةٞ رَّابِعُهُمۡ كَلۡبُهُمۡ وَيَقُولُونَ خَمۡسَةٞ سَادِسُهُمۡ كَلۡبُهُمۡ رَجۡمَۢا بِٱلۡغَيۡبِۖ وَيَقُولُونَ سَبۡعَةٞ وَثَامِنُهُمۡ كَلۡبُهُمۡۚ قُل رَّبِّيٓ أَعۡلَمُ بِعِدَّتِهِم مَّا يَعۡلَمُهُمۡ إِلَّا قَلِيلٞۗ فَلَا تُمَارِ فِيهِمۡ إِلَّا مِرَآءٗ ظَٰهِرٗا وَلَا تَسۡتَفۡتِ فِيهِم مِّنۡهُمۡ أَحَدٗا ۝ 22
अब वे कहेंगे, "वे तीन थे और उनमें चौथा उनका कुत्ता था।" और वे यह भी कहेंगे, "वे पाँच थे और उनमें छठा उनका कुत्ता था।" यह बिना निशाना देखे पत्थर चलाना है।1 और वे यह भी कहेंगे, "वे सात थे और उनमें आठवाँ उनका कुत्ता था।" कह दो, "मेरा रब उनकी संख्या को भली-भाँति जानता है।" उनको तो थोड़े-से ही जानते हैं। तुम ज़ाहिरी बात के सिवा उनके सम्बन्ध में न झगड़ो और न उनमें से किसी से उनके विषय में कुछ पूछो॥22॥ ————————— 1. अर्थात् अँधेरे में तीर चलाना।
وَلَا تَقُولَنَّ لِشَاْيۡءٍ إِنِّي فَاعِلٞ ذَٰلِكَ غَدًا ۝ 23
और न किसी चीज़ के विषय में कभी यह कहो, "मैं कल इसे कर दूँगा।"॥23॥
إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُۚ وَٱذۡكُر رَّبَّكَ إِذَا نَسِيتَ وَقُلۡ عَسَىٰٓ أَن يَهۡدِيَنِ رَبِّي لِأَقۡرَبَ مِنۡ هَٰذَا رَشَدٗا ۝ 24
बल्कि अल्लाह की इच्छा ही लागू होती है। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद कर लो और कहो, "आशा है कि मेरा रब इससे भी क़रीब सही बात की ओर मार्गदर्शन कर दे।"॥24॥
وَلَبِثُواْ فِي كَهۡفِهِمۡ ثَلَٰثَ مِاْئَةٖ سِنِينَ وَٱزۡدَادُواْ تِسۡعٗا ۝ 25
(कुछ लोग कहते हैं) और वे अपनी गुफा में तीन सौ वर्ष रहे और नौ वर्ष उससे अधिक॥25॥
قُلِ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا لَبِثُواْۖ لَهُۥ غَيۡبُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ أَبۡصِرۡ بِهِۦ وَأَسۡمِعۡۚ مَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَلِيّٖ وَلَا يُشۡرِكُ فِي حُكۡمِهِۦٓ أَحَدٗا ۝ 26
कह दो, "अल्लाह भली-भाँति जानता है जितना वे ठहरे।" आकाशों और धरती की छिपी बात का सम्बन्ध उसी से है। वह क्या ही देखनेवाला और सुननेवाला है! उससे इतर न तो उनका कोई संरक्षक है और न वह अपने प्रभुत्व और सत्ता में किसी को साझीदार बनाता है॥26॥
وَٱتۡلُ مَآ أُوحِيَ إِلَيۡكَ مِن كِتَابِ رَبِّكَۖ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَٰتِهِۦ وَلَن تَجِدَ مِن دُونِهِۦ مُلۡتَحَدٗا ۝ 27
अपने रब की क़िताब से, जो कुछ तुम्हारी ओर वह्य (प्रकाशना) हुई है, पढ़कर सुनाओ। कोई नहीं जो उनके बोलों को बदलनेवाला हो और न तुम उससे हटकर शरण लेने की जगह पाओगे॥27॥
وَٱصۡبِرۡ نَفۡسَكَ مَعَ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ رَبَّهُم بِٱلۡغَدَوٰةِ وَٱلۡعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجۡهَهُۥۖ وَلَا تَعۡدُ عَيۡنَاكَ عَنۡهُمۡ تُرِيدُ زِينَةَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَا تُطِعۡ مَنۡ أَغۡفَلۡنَا قَلۡبَهُۥ عَن ذِكۡرِنَا وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ وَكَانَ أَمۡرُهُۥ فُرُطٗا ۝ 28
अपने आपको उन लोगों के साथ थाम रखो जो प्रातःकाल और सायंकाल अपने रब को उसकी प्रसन्नतता चाहते हुए पुकारते हैं और सांसारिक जीवन की शोभा की चाह में तुम्हारी आँखें उनसे न फिरें। और ऐसे व्यक्ति की बात न मानना जिसके दिल को हमने अपनी याद से ग़ाफ़िल पाया है और वह अपनी इच्छा और वासना के पीछे लगा हुआ है और उसका मामला हद से आगे बढ़ गया है॥28॥
وَقُلِ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكُمۡۖ فَمَن شَآءَ فَلۡيُؤۡمِن وَمَن شَآءَ فَلۡيَكۡفُرۡۚ إِنَّآ أَعۡتَدۡنَا لِلظَّٰلِمِينَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمۡ سُرَادِقُهَاۚ وَإِن يَسۡتَغِيثُواْ يُغَاثُواْ بِمَآءٖ كَٱلۡمُهۡلِ يَشۡوِي ٱلۡوُجُوهَۚ بِئۡسَ ٱلشَّرَابُ وَسَآءَتۡ مُرۡتَفَقًا ۝ 29
कह दो, "वह सत्य है तुम्हारे रब की ओर से। तो अब जो कोई चाहे माने और जो चाहे इनकार कर दे।" हमने तो अत्याचारियों के लिए आग तैयार कर रखी है जिसकी क़नातों ने उन्हें घेर लिया है। यदि वे फ़रियाद करेंगे तो फ़रियाद के प्रत्युत्तर में उन्हें ऐसा पानी मिलेगा जो तेल की तलछट जैसा होगा; वह उनके मुँह भून डालेगा। बहुत ही बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्रामस्थल!॥29॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ إِنَّا لَا نُضِيعُ أَجۡرَ مَنۡ أَحۡسَنَ عَمَلًا ۝ 30
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, तो निश्चय ही किसी ऐसे व्यक्ति का प्रतिदान, जिसने अच्छे कर्म किया हो, हम अकारथ नहीं करते॥30॥
أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ جَنَّٰتُ عَدۡنٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهِمُ ٱلۡأَنۡهَٰرُ يُحَلَّوۡنَ فِيهَا مِنۡ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٖ وَيَلۡبَسُونَ ثِيَابًا خُضۡرٗا مِّن سُندُسٖ وَإِسۡتَبۡرَقٖ مُّتَّكِـِٔينَ فِيهَا عَلَى ٱلۡأَرَآئِكِۚ نِعۡمَ ٱلثَّوَابُ وَحَسُنَتۡ مُرۡتَفَقٗا ۝ 31
ऐसे ही लोगों के लिए सदाबहार बाग़ हैं। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएँगे और वे हरे पतले और गाढ़े रेशमी कपड़े पहनेंगे और ऊँचे तख़्तों पर तकिया लगाए होंगे। क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्रामस्थल!॥31॥
۞وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلٗا رَّجُلَيۡنِ جَعَلۡنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَيۡنِ مِنۡ أَعۡنَٰبٖ وَحَفَفۡنَٰهُمَا بِنَخۡلٖ وَجَعَلۡنَا بَيۡنَهُمَا زَرۡعٗا ۝ 32
उनके समक्ष एक मिसाल प्रस्तुत करो। दो व्यक्ति हैं, उनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए और उनके चारों ओर हमने खजूरों के वृक्षों की बाड़ लगाई और उन दोनों के बीच हमने खेती-बाड़ी रखी॥32॥
كِلۡتَا ٱلۡجَنَّتَيۡنِ ءَاتَتۡ أُكُلَهَا وَلَمۡ تَظۡلِم مِّنۡهُ شَيۡـٔٗاۚ وَفَجَّرۡنَا خِلَٰلَهُمَا نَهَرٗا ۝ 33
दोनों में से प्रत्येक बाग़ अपने फल लाया और इसमें कोई कमी नहीं की। और उन दोनों के बीच हमने एक नहर भी प्रवाहित कर दी॥33॥
وَكَانَ لَهُۥ ثَمَرٞ فَقَالَ لِصَٰحِبِهِۦ وَهُوَ يُحَاوِرُهُۥٓ أَنَا۠ أَكۡثَرُ مِنكَ مَالٗا وَأَعَزُّ نَفَرٗا ۝ 34
उसे ख़ूब फल और पैदावार प्राप्त हुई। इसपर वह अपने साथी से, जबकि वह उससे बातचीत कर रहा था, कहने लगा, "मैं तुझसे माल और दौलत में बढ़कर हूँ और मुझे जनशक्ति भी अधिक प्राप्त है।"॥34॥
وَدَخَلَ جَنَّتَهُۥ وَهُوَ ظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ قَالَ مَآ أَظُنُّ أَن تَبِيدَ هَٰذِهِۦٓ أَبَدٗا ۝ 35
वह अपने हक़ में ज़ालिम बनकर अपने बाग़ में दाख़िल हुआ। कहने लगा, "मैं ऐसा नहीं समझता कि यह कभी विनष्ट होगा॥35॥
وَمَآ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَآئِمَةٗ وَلَئِن رُّدِدتُّ إِلَىٰ رَبِّي لَأَجِدَنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهَا مُنقَلَبٗا ۝ 36
और मैं नहीं समझता कि वह (क़ियामत की) घड़ी कभी आएगी। और यदि मैं वास्तव में अपने रब के पास पलटा भी तो निश्चय ही पलटने की जगह इससे भी उत्तम पाऊँगा।"॥36॥
قَالَ لَهُۥ صَاحِبُهُۥ وَهُوَ يُحَاوِرُهُۥٓ أَكَفَرۡتَ بِٱلَّذِي خَلَقَكَ مِن تُرَابٖ ثُمَّ مِن نُّطۡفَةٖ ثُمَّ سَوَّىٰكَ رَجُلٗا ۝ 37
उसके साथी ने उससे बातचीत करते हुए कहा, "क्या तू उस सत्ता के साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुझे एक पूरा आदमी बनाया?॥37॥
لَّٰكِنَّا۠ هُوَ ٱللَّهُ رَبِّي وَلَآ أُشۡرِكُ بِرَبِّيٓ أَحَدٗا ۝ 38
लेकिन मेरा रब तो वही अल्लाह है और मैं किसी को अपने रब के साथ साझीदार नहीं बनाता॥38॥
وَلَوۡلَآ إِذۡ دَخَلۡتَ جَنَّتَكَ قُلۡتَ مَا شَآءَ ٱللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِٱللَّهِۚ إِن تَرَنِ أَنَا۠ أَقَلَّ مِنكَ مَالٗا وَوَلَدٗا ۝ 39
और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तू अपने बाग़ में दाख़िल हुआ तो कहता, 'जो अल्लाह चाहे, बिना अल्लाह के कोई शक्ति नहीं?' यदि तू देखता है कि मैं धन और सन्तति में तुझसे कम हूँ,॥39॥
فَعَسَىٰ رَبِّيٓ أَن يُؤۡتِيَنِ خَيۡرٗا مِّن جَنَّتِكَ وَيُرۡسِلَ عَلَيۡهَا حُسۡبَانٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فَتُصۡبِحَ صَعِيدٗا زَلَقًا ۝ 40
तो आशा है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा प्रदान करे और तेरे इस बाग़ पर आकाश से कोई क़ुर्क़ी (आपदा) भेज दे। फिर वह साफ़ मैदान होकर रह जाए॥40॥
أَوۡ يُصۡبِحَ مَآؤُهَا غَوۡرٗا فَلَن تَسۡتَطِيعَ لَهُۥ طَلَبٗا ۝ 41
या उसका पानी बिलकुल नीचे उतर जाए। फिर तू उसे ढूँढ़कर न ला सके।"॥41॥
وَأُحِيطَ بِثَمَرِهِۦ فَأَصۡبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيۡهِ عَلَىٰ مَآ أَنفَقَ فِيهَا وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَيَقُولُ يَٰلَيۡتَنِي لَمۡ أُشۡرِكۡ بِرَبِّيٓ أَحَدٗا ۝ 42
हुआ भी यही कि उसका सारा फल नष्ट हो गया। उसने उसमें जो कुछ लागत लगाई थी उसपर वह अपनी हथेलियों को नचाता रह गया. और स्थिति यह थी कि बाग़ अपनी टट्टियों पर ढहा पड़ा था और वह कह रहा था, "क्या ही अच्छा होता कि मैंने अपने रब के साथ किसी को साझीदार न बनाया होता!"॥42॥
وَلَمۡ تَكُن لَّهُۥ فِئَةٞ يَنصُرُونَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَمَا كَانَ مُنتَصِرًا ۝ 43
उसका कोई जत्था न हुआ जो उसके और अल्लाह के बीच पड़कर उसकी सहायता करता और न उसे स्वयं ही बदला लेने की सामर्थ्य प्राप्त थी॥43॥
هُنَالِكَ ٱلۡوَلَٰيَةُ لِلَّهِ ٱلۡحَقِّۚ هُوَ خَيۡرٞ ثَوَابٗا وَخَيۡرٌ عُقۡبٗا ۝ 44
ऐसे अवसर पर काम बनाने का सारा अधिकार परम सत्य अल्लाह ही को प्राप्त है। वही बदले की दृष्टि से सबसे अच्छा है और वही अच्छा परिणाम दिखाने की दृष्टि से भी सर्वोत्तम है॥44॥
وَٱضۡرِبۡ لَهُم مَّثَلَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا كَمَآءٍ أَنزَلۡنَٰهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ فَٱخۡتَلَطَ بِهِۦ نَبَاتُ ٱلۡأَرۡضِ فَأَصۡبَحَ هَشِيمٗا تَذۡرُوهُ ٱلرِّيَٰحُۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ مُّقۡتَدِرًا ۝ 45
और उनके समक्ष सांसारिक जीवन की उपमा प्रस्तुत करो, यह ऐसी है जैसे पानी हो, जिसे हमने आकाश से उतारा तो उससे धरती की पौध घनी होकर परस्पर गुँथ गई। फिर वह चूरा-चूरा होकर रह गई जिसे हवाएँ उड़ाए लिए फिरती हैं। अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥45॥
ٱلۡمَالُ وَٱلۡبَنُونَ زِينَةُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَٱلۡبَٰقِيَٰتُ ٱلصَّٰلِحَٰتُ خَيۡرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابٗا وَخَيۡرٌ أَمَلٗا ۝ 46
माल और बेटे तो केवल सांसारिक जीवन की शोभा हैं, जबकि बाक़ी रहनेवाली नेकियाँ ही तुम्हारे रब के यहाँ परिणाम की दृष्टि से भी उत्तम हैं और आशा की दृष्टि से भी वही उत्तम हैं॥46॥
وَيَوۡمَ نُسَيِّرُ ٱلۡجِبَالَ وَتَرَى ٱلۡأَرۡضَ بَارِزَةٗ وَحَشَرۡنَٰهُمۡ فَلَمۡ نُغَادِرۡ مِنۡهُمۡ أَحَدٗا ۝ 47
जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगे और तुम धरती को बिलकुल नग्‍न देखोगे, और हम उन्हें इकट्ठा करेंगे तो उनमें से किसी एक को भी न छोड़ेंगे॥47॥
وَعُرِضُواْ عَلَىٰ رَبِّكَ صَفّٗا لَّقَدۡ جِئۡتُمُونَا كَمَا خَلَقۡنَٰكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةِۭۚ بَلۡ زَعَمۡتُمۡ أَلَّن نَّجۡعَلَ لَكُم مَّوۡعِدٗا ۝ 48
वे तुम्हारे रब के सामने पंक्तिबद्ध उपस्थित किए जाएँगे — "तुम हमारे सामने आ पहुँचे जैसा हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। नहीं, बल्कि तुम्हारा तो यह दावा था कि हम तुम्हारे लिए वादा किया हुआ कोई समय लाएँगे ही नहीं।"॥48॥
وَوُضِعَ ٱلۡكِتَٰبُ فَتَرَى ٱلۡمُجۡرِمِينَ مُشۡفِقِينَ مِمَّا فِيهِ وَيَقُولُونَ يَٰوَيۡلَتَنَا مَالِ هَٰذَا ٱلۡكِتَٰبِ لَا يُغَادِرُ صَغِيرَةٗ وَلَا كَبِيرَةً إِلَّآ أَحۡصَىٰهَاۚ وَوَجَدُواْ مَا عَمِلُواْ حَاضِرٗاۗ وَلَا يَظۡلِمُ رَبُّكَ أَحَدٗا ۝ 49
किताब (कर्मपत्रिका) रखी जाएगी तो अपराधियों को देखोगे कि जो कुछ उसमें होगा उससे डर रहे हैं और कह रहे हैं, "हाय, हमारा दुर्भाग्य! यह कैसी किताब है कि यह न कोई छोटी बात छोड़ती है न बड़ी, बल्कि सभी को इसने अपने अन्दर समाहित कर रखा है।" जो कुछ उन्होंने किया होगा सब मौजूद पाएँगे। तुम्हारा रब किसी पर ज़ुल्म न करेगा॥49॥
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ كَانَ مِنَ ٱلۡجِنِّ فَفَسَقَ عَنۡ أَمۡرِ رَبِّهِۦٓۗ أَفَتَتَّخِذُونَهُۥ وَذُرِّيَّتَهُۥٓ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِي وَهُمۡ لَكُمۡ عَدُوُّۢۚ بِئۡسَ لِلظَّٰلِمِينَ بَدَلٗا ۝ 50
याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो।" तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया। वह जिन्नों में से था। तो उसने अपने रब के आदेश का उल्लंघन किया। अब क्या तुम मुझसे इतर उसे और उसकी संतान को संरक्षक-मित्र बनाते हो? हालाँकि वे तुम्हारे शत्रु हैं। क्या ही बुरा विकल्प है जो ज़ालिमों के हाथ आया!॥50॥
۞مَّآ أَشۡهَدتُّهُمۡ خَلۡقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَا خَلۡقَ أَنفُسِهِمۡ وَمَا كُنتُ مُتَّخِذَ ٱلۡمُضِلِّينَ عَضُدٗا ۝ 51
मैंने न तो आकाशों और धरती को उन्हें दिखाकर पैदा किया और न स्वयं उनको बनाने और पैदा करने के समय ही उन्हें बुलाया। मैं ऐसा नहीं हूँ कि गुमराह करनेवालों को अपनी बाहु-भुजा बनाऊँ॥51॥
وَيَوۡمَ يَقُولُ نَادُواْ شُرَكَآءِيَ ٱلَّذِينَ زَعَمۡتُمۡ فَدَعَوۡهُمۡ فَلَمۡ يَسۡتَجِيبُواْ لَهُمۡ وَجَعَلۡنَا بَيۡنَهُم مَّوۡبِقٗا ۝ 52
याद करो जिस दिन वह कहेगा, "बुलाओ मेरे साझीदारों को जिनके साझीदार होने का तुम्हें दावा था।" तो वे उनको पुकारेंगे, किन्तु वे उन्हें कोई उत्तर न देंगे और हम उनके बीच सामूहिक विनाश-स्थल निर्धारित कर देंगे॥52॥
وَرَءَا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ٱلنَّارَ فَظَنُّوٓاْ أَنَّهُم مُّوَاقِعُوهَا وَلَمۡ يَجِدُواْ عَنۡهَا مَصۡرِفٗا ۝ 53
अपराधी लोग आग को देखेंगे तो समझ लेंगे कि वे उसमें पड़नेवाले हैं और उससे बच निकलने की कोई जगह न पाएँगे॥53॥
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لِلنَّاسِ مِن كُلِّ مَثَلٖۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ أَكۡثَرَ شَيۡءٖ جَدَلٗا ۝ 54
हमने लोगों के लिए इस क़ुरआन में हर प्रकार के उत्तम विषयों को तरह-तरह से बयान किया है, किन्तु मनुष्य सबसे बढ़कर झगड़ालू है॥54॥
وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن يُؤۡمِنُوٓاْ إِذۡ جَآءَهُمُ ٱلۡهُدَىٰ وَيَسۡتَغۡفِرُواْ رَبَّهُمۡ إِلَّآ أَن تَأۡتِيَهُمۡ سُنَّةُ ٱلۡأَوَّلِينَ أَوۡ يَأۡتِيَهُمُ ٱلۡعَذَابُ قُبُلٗا ۝ 55
आख़िर लोगों को, जबकि उनके पास मार्गदर्शन आ गया तो इस बात से कि वे ईमान लाते और अपने रब से क्षमा चाहते, इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि उनके लिए वही कुछ सामने आए जो पूर्वजनों के सामने आ चुका है, यहाँ तक कि यातना उनके सामने आ खड़ी हो॥55॥
وَمَا نُرۡسِلُ ٱلۡمُرۡسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَۚ وَيُجَٰدِلُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِٱلۡبَٰطِلِ لِيُدۡحِضُواْ بِهِ ٱلۡحَقَّۖ وَٱتَّخَذُوٓاْ ءَايَٰتِي وَمَآ أُنذِرُواْ هُزُوٗا ۝ 56
रसूलों को हम केवल शुभ सूचना देनेवाले और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजते है। किन्तु इनकार करनेवाले लोग हैं कि असत्य के सहारे झगड़ते है, ताकि सत्य को परास्त कर दें। उन्होंने मेरी आयतों का और जो चेतावनी उन्हें दी गई उसका मज़ाक बना लिया है॥56॥
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِۦ فَأَعۡرَضَ عَنۡهَا وَنَسِيَ مَا قَدَّمَتۡ يَدَاهُۚ إِنَّا جَعَلۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ أَكِنَّةً أَن يَفۡقَهُوهُ وَفِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٗاۖ وَإِن تَدۡعُهُمۡ إِلَى ٱلۡهُدَىٰ فَلَن يَهۡتَدُوٓاْ إِذًا أَبَدٗا ۝ 57
उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा समझाया गया, तो उसने उनसे मुँह फेर लिया और उसे भूल गया जो सामान उसके हाथ आगे बढ़ा चुके हैं? निश्चय ही हमने उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि कहीं वे उसे समझ न लें और उनके कानों में बोझ डाल दिया (कि कहीं वे सुन न लें)।2 यद्यपि तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुलाओ, वे कभी भी मार्ग नहीं पा सकते॥57॥ ——————————— 2. जब कोई अल्लाह की आयतों से मुँह फेरता है, तो उसके दिल से समझने की क्षमता ख़त्म हो जाती है और उसके कान भी सुनकर मानो कुछ नहीं सुनते। उसे अल्लाह ज़बरदस्ती मार्ग पर नहीं लाता, बल्कि भटकने के लिए छोड़ देता है।
وَرَبُّكَ ٱلۡغَفُورُ ذُو ٱلرَّحۡمَةِۖ لَوۡ يُؤَاخِذُهُم بِمَا كَسَبُواْ لَعَجَّلَ لَهُمُ ٱلۡعَذَابَۚ بَل لَّهُم مَّوۡعِدٞ لَّن يَجِدُواْ مِن دُونِهِۦ مَوۡئِلٗا ۝ 58
तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील और दयावान है। यदि वह उन्हें उसपर पकड़ता, जो कुछ कि उन्होंने कमाया है तो उनपर शीघ्र ही यातना ला देता। नहीं, बल्कि उनके लिए तो वादे का एक समय निश्चित है। उससे हटकर वे बच निकलने का कोई मार्ग न पाएँगे॥58॥
وَتِلۡكَ ٱلۡقُرَىٰٓ أَهۡلَكۡنَٰهُمۡ لَمَّا ظَلَمُواْ وَجَعَلۡنَا لِمَهۡلِكِهِم مَّوۡعِدٗا ۝ 59
और ये बस्तियाँ वे हैं कि जब उन्होंने अत्याचार किया तो हमने उन्हें विनष्ट कर दिया, और हमने उनके विनाश के लिए एक समय निश्चित कर रखा था॥59॥
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِفَتَىٰهُ لَآ أَبۡرَحُ حَتَّىٰٓ أَبۡلُغَ مَجۡمَعَ ٱلۡبَحۡرَيۡنِ أَوۡ أَمۡضِيَ حُقُبٗا ۝ 60
याद करो जब मूसा ने अपने युवक सेवक से कहा, "जब तक कि मैं दो दरियाओं के संगम तक न पहुँच जाऊँ चलना नहीं छोड़ूँगा, चाहे मैं यूँ ही दीर्धकाल तक सफ़र करता रहूँ।"॥60॥
فَلَمَّا بَلَغَا مَجۡمَعَ بَيۡنِهِمَا نَسِيَا حُوتَهُمَا فَٱتَّخَذَ سَبِيلَهُۥ فِي ٱلۡبَحۡرِ سَرَبٗا ۝ 61
फिर जब वे दोनों संगम पर पहुँचे तो वे अपनी मछली को भूल गए और उस (मछली) ने दरिया में सुरंग बनाते हुए अपनी राह ली॥61॥
فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَىٰهُ ءَاتِنَا غَدَآءَنَا لَقَدۡ لَقِينَا مِن سَفَرِنَا هَٰذَا نَصَبٗا ۝ 62
फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़ गए तो उसने अपने सेवक से कहा, "लाओ, हमारा नाश्ता। अपने इस सफ़र में तो हमें बड़ी थकान पहुँची है।"॥62॥
قَالَ أَرَءَيۡتَ إِذۡ أَوَيۡنَآ إِلَى ٱلصَّخۡرَةِ فَإِنِّي نَسِيتُ ٱلۡحُوتَ وَمَآ أَنسَىٰنِيهُ إِلَّا ٱلشَّيۡطَٰنُ أَنۡ أَذۡكُرَهُۥۚ وَٱتَّخَذَ سَبِيلَهُۥ فِي ٱلۡبَحۡرِ عَجَبٗا ۝ 63
उसने कहा, "ज़रा देखिए तो सही, जब हम उस चट्टान के पास ठहरे हुए थे तो मैं मछली को भूल ही गया — और शैतान ही ने उसको याद रखने से मुझे ग़ाफ़िल (बेसुध) कर दिया — और उसने आश्चर्यजनक रूप से दरिया में अपनी राह ली।"॥63॥
قَالَ ذَٰلِكَ مَا كُنَّا نَبۡغِۚ فَٱرۡتَدَّا عَلَىٰٓ ءَاثَارِهِمَا قَصَصٗا ۝ 64
(मूसा ने) कहा, "यही तो है जिसे हम तलाश कर रहे थे।" फिर वे दोनों अपने पदचिन्हों को देखते हुए वापस हुए॥64॥
فَوَجَدَا عَبۡدٗا مِّنۡ عِبَادِنَآ ءَاتَيۡنَٰهُ رَحۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَا وَعَلَّمۡنَٰهُ مِن لَّدُنَّا عِلۡمٗا ۝ 65
फिर उन्होंने हमारे बन्दों में से एक बन्दे को पाया जिसे हमने अपने पास से दयालुता प्रदान की थी और जिसे अपने पास से ज्ञान प्रदान किया था॥65॥
قَالَ لَهُۥ مُوسَىٰ هَلۡ أَتَّبِعُكَ عَلَىٰٓ أَن تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمۡتَ رُشۡدٗا ۝ 66
मूसा ने उससे कहा, "क्या मैं आपके पीछे चलूँ, ताकि आप मुझे उस ज्ञान और विवेक की शिक्षा दें, जो आपको दिया गया है?"॥66॥
قَالَ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِيعَ مَعِيَ صَبۡرٗا ۝ 67
उसने कहा, "तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे,॥67॥
وَكَيۡفَ تَصۡبِرُ عَلَىٰ مَا لَمۡ تُحِطۡ بِهِۦ خُبۡرٗا ۝ 68
और जो चीज़ तुम्हारी ज्ञान-परिधि से बाहर हो उसपर तुम धैर्य कैसे रख सकते हो?"॥68॥
قَالَ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ صَابِرٗا وَلَآ أَعۡصِي لَكَ أَمۡرٗا ۝ 69
(मूसा ने) कहा, "यदि अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे। और मैं किसी मामले में भी आपकी अवज्ञा नहीं करूँगा।"॥69॥
قَالَ فَإِنِ ٱتَّبَعۡتَنِي فَلَا تَسۡـَٔلۡنِي عَن شَيۡءٍ حَتَّىٰٓ أُحۡدِثَ لَكَ مِنۡهُ ذِكۡرٗا ۝ 70
उसने कहा, "अच्छा, यदि तुम मेरे साथ चलते हो तो मुझसे किसी चीज़ के विषय में न पूछना यहाँ तक कि मैं स्वयं ही तुमसे उसकी चर्चा करूँ।"॥70॥
فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰٓ إِذَا رَكِبَا فِي ٱلسَّفِينَةِ خَرَقَهَاۖ قَالَ أَخَرَقۡتَهَا لِتُغۡرِقَ أَهۡلَهَا لَقَدۡ جِئۡتَ شَيۡـًٔا إِمۡرٗا ۝ 71
अन्ततः दोनों चले, यहाँ तक कि जब नौका में सवार हुए तो उसने उसमें दरार डाल दी। (मूसा ने) कहा, "आपने इसमें दरार डाल दी ताकि उसके सवारों को डुबो दें? आपने तो एक अनोखी हरकत कर डाली।"॥71॥
قَالَ أَلَمۡ أَقُلۡ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِيعَ مَعِيَ صَبۡرٗا ۝ 72
उसने कहा, "क्या मैंने कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोंगे?"॥72॥
قَالَ لَا تُؤَاخِذۡنِي بِمَا نَسِيتُ وَلَا تُرۡهِقۡنِي مِنۡ أَمۡرِي عُسۡرٗا ۝ 73
कहा, "जो भूल-चूक मुझसे हो गई उसपर मुझे न पकड़िए और मेरे मामलें में मुझे तंगी में न डालिए।"॥73॥
فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰٓ إِذَا لَقِيَا غُلَٰمٗا فَقَتَلَهُۥ قَالَ أَقَتَلۡتَ نَفۡسٗا زَكِيَّةَۢ بِغَيۡرِ نَفۡسٖ لَّقَدۡ جِئۡتَ شَيۡـٔٗا نُّكۡرٗا ۝ 74
फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक लड़के से मिले तो उसने उसे मार डाला। कहा, "क्या आपने एक अच्छी-भली जान की हत्या कर दी बिना इसके कि किसी की हत्या का बदला लेना अभीष्ट हो? यह तो आपने बहुत ही बुरा किया!"॥74॥
۞قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكَ إِنَّكَ لَن تَسۡتَطِيعَ مَعِيَ صَبۡرٗا ۝ 75
उसने कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?"॥75॥
قَالَ إِن سَأَلۡتُكَ عَن شَيۡءِۭ بَعۡدَهَا فَلَا تُصَٰحِبۡنِيۖ قَدۡ بَلَغۡتَ مِن لَّدُنِّي عُذۡرٗا ۝ 76
कहा, "इसके बाद यदि मैं आपसे कुछ पूछूँ तो आप मुझे साथ न रखें। अब तो मेरी ओर से आपको पूरा उज़्र मिल गया है।"॥76॥
فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰٓ إِذَآ أَتَيَآ أَهۡلَ قَرۡيَةٍ ٱسۡتَطۡعَمَآ أَهۡلَهَا فَأَبَوۡاْ أَن يُضَيِّفُوهُمَا فَوَجَدَا فِيهَا جِدَارٗا يُرِيدُ أَن يَنقَضَّ فَأَقَامَهُۥۖ قَالَ لَوۡ شِئۡتَ لَتَّخَذۡتَ عَلَيۡهِ أَجۡرٗا ۝ 77
फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब एक बस्तीवालों के पास पहुँचे और उनसे भोजन माँगा, किन्तु उन्होंने उनके आतिथ्य से इनकार कर दिया। फिर वहाँ उन्हें एक दीवार मिली जो गिरा चाहती थी तो उस व्यक्ति ने उसको खड़ा कर दिया। (मूसा ने) कहा, "यदि आप चाहते तो इसकी कुछ मज़दूरी ले सकते थे।"॥77॥
قَالَ هَٰذَا فِرَاقُ بَيۡنِي وَبَيۡنِكَۚ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأۡوِيلِ مَا لَمۡ تَسۡتَطِع عَّلَيۡهِ صَبۡرًا ۝ 78
उसने कहा, "यह मेरे और तुम्हारे बीच जुदाई का अवसर है। अब मैं तुमको उसकी वास्तविकता बताए दे रहा हूँ जिसपर तुम धैर्य से काम न ले सके।"॥78॥
أَمَّا ٱلسَّفِينَةُ فَكَانَتۡ لِمَسَٰكِينَ يَعۡمَلُونَ فِي ٱلۡبَحۡرِ فَأَرَدتُّ أَنۡ أَعِيبَهَا وَكَانَ وَرَآءَهُم مَّلِكٞ يَأۡخُذُ كُلَّ سَفِينَةٍ غَصۡبٗا ۝ 79
वह जो नौका थी, कुछ निर्धन लोगों की थी जो दरिया में काम करते थे, तो मैंने चाहा कि उसे ऐबदार कर दूँ क्योंकि आगे उनके परे एक सम्राट था जो प्रत्येक नौका को ज़बरदस्ती छीन लेता था॥79॥
وَأَمَّا ٱلۡغُلَٰمُ فَكَانَ أَبَوَاهُ مُؤۡمِنَيۡنِ فَخَشِينَآ أَن يُرۡهِقَهُمَا طُغۡيَٰنٗا وَكُفۡرٗا ۝ 80
और रहा वह लड़का, तो उसके माँ-बाप ईमान पर थे। हमें आशंका हुई कि वह सरकशी और कुफ़्र से उन्हें तंग करेगा॥80॥
فَأَرَدۡنَآ أَن يُبۡدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَيۡرٗا مِّنۡهُ زَكَوٰةٗ وَأَقۡرَبَ رُحۡمٗا ۝ 81
इसलिए हमने चाहा कि उनका रब उन्हें इसके बदले दूसरी संतान दे जो आत्म-विकास में इससे अच्छा हो और दया-करुणा से अधिक निकट हो॥81॥
وَأَمَّا ٱلۡجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَٰمَيۡنِ يَتِيمَيۡنِ فِي ٱلۡمَدِينَةِ وَكَانَ تَحۡتَهُۥ كَنزٞ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَٰلِحٗا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَن يَبۡلُغَآ أَشُدَّهُمَا وَيَسۡتَخۡرِجَا كَنزَهُمَا رَحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَۚ وَمَا فَعَلۡتُهُۥ عَنۡ أَمۡرِيۚ ذَٰلِكَ تَأۡوِيلُ مَا لَمۡ تَسۡطِع عَّلَيۡهِ صَبۡرٗا ۝ 82
और रही यह दीवार तो यह दो अनाथ बालकों की है जो इस नगर में रहते हैं। और इसके नीचे उनका ख़ज़ाना मौजूद है। और उनका बाप नेक था इसलिए तुम्हारे रब ने चाहा कि वे अपनी युवावस्था को पहुँच जाएँ और अपना ख़जाना निकाल लें। यह तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुआ। मैंने तो अपने अधिकार से कुछ नहीं किया। यह है वास्तविकता उसकी जिसपर तुम धैर्य न रख सके।"॥82॥
وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَن ذِي ٱلۡقَرۡنَيۡنِۖ قُلۡ سَأَتۡلُواْ عَلَيۡكُم مِّنۡهُ ذِكۡرًا ۝ 83
वे तुमसे ज़ुलक़रनैन के विषय में पूछते हैं। कह दो, "मैं तुम्हें उसका कुछ हाल सुनाता हूँ।"॥83॥
إِنَّا مَكَّنَّا لَهُۥ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَءَاتَيۡنَٰهُ مِن كُلِّ شَيۡءٖ سَبَبٗا ۝ 84
हमने उसे धरती में सत्ता प्रदान की थी और उसे हर प्रकार के संसाधन दिए थे॥84॥
فَأَتۡبَعَ سَبَبًا ۝ 85
अतएव उसने एक अभियान का आयोजन किया॥85॥
حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغَ مَغۡرِبَ ٱلشَّمۡسِ وَجَدَهَا تَغۡرُبُ فِي عَيۡنٍ حَمِئَةٖ وَوَجَدَ عِندَهَا قَوۡمٗاۖ قُلۡنَا يَٰذَا ٱلۡقَرۡنَيۡنِ إِمَّآ أَن تُعَذِّبَ وَإِمَّآ أَن تَتَّخِذَ فِيهِمۡ حُسۡنٗا ۝ 86
यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी की एक झील में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझे अधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।"॥86॥
قَالَ أَمَّا مَن ظَلَمَ فَسَوۡفَ نُعَذِّبُهُۥ ثُمَّ يُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِۦ فَيُعَذِّبُهُۥ عَذَابٗا نُّكۡرٗا ۝ 87
उसने कहा, "जो कोई ज़ुल्म करेगा उसे तो हम दण्‍ड देंगे। फिर वह अपने रब की ओर पलटेगा और वह उसे कठोर यातना देगा॥87॥
وَأَمَّا مَنۡ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَلَهُۥ جَزَآءً ٱلۡحُسۡنَىٰۖ وَسَنَقُولُ لَهُۥ مِنۡ أَمۡرِنَا يُسۡرٗا ۝ 88
किन्तु जो कोई ईमान लाया और अच्छा कर्म किया, उसके लिए तो अच्छा बदला है और हम उसे अपना सहज एवं नर्म आदेश देंगे।"॥88॥
ثُمَّ أَتۡبَعَ سَبَبًا ۝ 89
फिर उसने एक और अभियान का आयोजन किया॥89॥
حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغَ مَطۡلِعَ ٱلشَّمۡسِ وَجَدَهَا تَطۡلُعُ عَلَىٰ قَوۡمٖ لَّمۡ نَجۡعَل لَّهُم مِّن دُونِهَا سِتۡرٗا ۝ 90
यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय की दिशा मे एक स्‍थान पर जा पहुँचा तो उसने सूर्य को ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य के मुक़ाबले में कोई ओट नहीं रखी थी॥90॥
كَذَٰلِكَۖ وَقَدۡ أَحَطۡنَا بِمَا لَدَيۡهِ خُبۡرٗا ۝ 91
ऐसा ही हमने किया था, और जो कुछ उसके पास था उसकी हमें पूरी ख़बर थी॥91॥
ثُمَّ أَتۡبَعَ سَبَبًا ۝ 92
उसने फिर एक अभियान का आयोजन किया,॥92॥
حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغَ بَيۡنَ ٱلسَّدَّيۡنِ وَجَدَ مِن دُونِهِمَا قَوۡمٗا لَّا يَكَادُونَ يَفۡقَهُونَ قَوۡلٗا ۝ 93
यहाँ तक कि जब वह दो पर्वतों के बीच पहुँचा तो उसे उनके पास कुछ लोग मिले, जो ऐसा लगाता नहीं था कि कोई बात समझ पाते हों॥93॥
قَالُواْ يَٰذَا ٱلۡقَرۡنَيۡنِ إِنَّ يَأۡجُوجَ وَمَأۡجُوجَ مُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَهَلۡ نَجۡعَلُ لَكَ خَرۡجًا عَلَىٰٓ أَن تَجۡعَلَ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَهُمۡ سَدّٗا ۝ 94
उन्होंने कहा, "ऐ ज़ुलक़रनैन! याजूज और माजूज इस भूभाग में उत्पात मचाते हैं। क्या हम तुम्हें कोई कर (टैक्स ) इस काम के लिए दें कि तुम हमारे और उनके बीच एक अवरोध निर्मित कर दो?"॥94॥
قَالَ مَا مَكَّنِّي فِيهِ رَبِّي خَيۡرٞ فَأَعِينُونِي بِقُوَّةٍ أَجۡعَلۡ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُمۡ رَدۡمًا ۝ 95
उसने कहा, "मेरे रब ने मुझे जो कुछ अधिकार एवं शक्ति दी है वह उत्तम है। तुम तो बस बल से मेरी सहायता करो। मैं तुम्हारे और उनके बीच एक मज़बूत दीवार बनाए देता हूँ॥95॥
ءَاتُونِي زُبَرَ ٱلۡحَدِيدِۖ حَتَّىٰٓ إِذَا سَاوَىٰ بَيۡنَ ٱلصَّدَفَيۡنِ قَالَ ٱنفُخُواْۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَعَلَهُۥ نَارٗا قَالَ ءَاتُونِيٓ أُفۡرِغۡ عَلَيۡهِ قِطۡرٗا ۝ 96
मुझे लोहे के टुकड़े ला दो।" यहाँ तक कि जब दोनों पर्वतों के बीच के रिक्त स्थान को पाटकर बराबर कर दिया तो कहा, "धौंको!" यहाँ तक कि जब उसे आग कर दिया तो कहा, "मुझे पिघला हुआ ताँबा ला दो, ताकि मैं उसपर उड़ेल दूँ।"॥96॥
فَمَا ٱسۡطَٰعُوٓاْ أَن يَظۡهَرُوهُ وَمَا ٱسۡتَطَٰعُواْ لَهُۥ نَقۡبٗا ۝ 97
तो न तो वे (याजूज, माजूज) उसपर चढ़कर आ सकते थे और न वे उसमें सेंध ही लगा सकते थे॥97॥
قَالَ هَٰذَا رَحۡمَةٞ مِّن رَّبِّيۖ فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ رَبِّي جَعَلَهُۥ دَكَّآءَۖ وَكَانَ وَعۡدُ رَبِّي حَقّٗا ۝ 98
उसने कहा, "यह मेरे रब की दयालुता है, किन्तु जब मेरे रब के वादे का समय आ जाएगा तो वह उसे ढा कर बराबर कर देगा, और मेरे रब का वादा सच्चा है।"॥98॥
۞وَتَرَكۡنَا بَعۡضَهُمۡ يَوۡمَئِذٖ يَمُوجُ فِي بَعۡضٖۖ وَنُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَجَمَعۡنَٰهُمۡ جَمۡعٗا ۝ 99
उस दिन हम उन्हें छोड़ देंगे कि वे एक-दूसरे से मौजों की तरह परस्पर गुत्थम-गुत्था हो जाएँगे। और ‘सूर’ फूँका जाएगा। फिर हम उन सबको एक साथ इकट्ठा करेंगे॥99॥
وَعَرَضۡنَا جَهَنَّمَ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡكَٰفِرِينَ عَرۡضًا ۝ 100
और उस दिन जहन्नम को इनकार करनेवालों के सामने कर देंगे॥100॥
ٱلَّذِينَ كَانَتۡ أَعۡيُنُهُمۡ فِي غِطَآءٍ عَن ذِكۡرِي وَكَانُواْ لَا يَسۡتَطِيعُونَ سَمۡعًا ۝ 101
जिनके नेत्र मेरी अनुस्मृति की ओर से परदे में थे और जो कुछ सुन भी नहीं सकते थे॥101॥
أَفَحَسِبَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَن يَتَّخِذُواْ عِبَادِي مِن دُونِيٓ أَوۡلِيَآءَۚ إِنَّآ أَعۡتَدۡنَا جَهَنَّمَ لِلۡكَٰفِرِينَ نُزُلٗا ۝ 102
तो क्या इनकार करनेवाले इस ख़याल में हैं कि मुझसे हटकर मेरे बन्दों को अपना हिमायती बना लें? हमने ऐसे इनकार करनेवालों के आतिथ्य-सत्कार के लिए जहन्नम तैयार कर रखा है॥102॥
قُلۡ هَلۡ نُنَبِّئُكُم بِٱلۡأَخۡسَرِينَ أَعۡمَٰلًا ۝ 103
कहो, "क्या हम तुम्हें उन लोगों की ख़बर दें जो अपने कर्मों की दृष्टि से सबसे बढ़कर घाटा उठानेवाले हैं?॥103॥
ٱلَّذِينَ ضَلَّ سَعۡيُهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَهُمۡ يَحۡسَبُونَ أَنَّهُمۡ يُحۡسِنُونَ صُنۡعًا ۝ 104
ये वे लोग हैं जिनका प्रयास सांसारिक जीवन में अकारथ गया और वे यही समझते हैं कि वे बहुत अच्छा कर्म कर रहे हैं॥104॥
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ وَلِقَآئِهِۦ فَحَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فَلَا نُقِيمُ لَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَزۡنٗا ۝ 105
यही वे लोग हैं जिन्होंने अपने रब की आयतों का और उससे मिलन का इनकार किया। अतः उनके कर्म जान को लागू हुए, तो हम क़ियामत के दिन उन्हें कोई वज़न न देंगे॥105॥
ذَٰلِكَ جَزَآؤُهُمۡ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُواْ وَٱتَّخَذُوٓاْ ءَايَٰتِي وَرُسُلِي هُزُوًا ۝ 106
उनका बदला वही जहन्नम है, इसलिए कि उन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का मज़ाक़ उड़ाया॥106॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ كَانَتۡ لَهُمۡ جَنَّٰتُ ٱلۡفِرۡدَوۡسِ نُزُلًا ۝ 107
निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके आतिथ्य के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे,॥107॥
خَٰلِدِينَ فِيهَا لَا يَبۡغُونَ عَنۡهَا حِوَلٗا ۝ 108
जिनमें वे सदैव रहेंगे, वहाँ से हटना न चाहेंगे।"॥108॥
قُل لَّوۡ كَانَ ٱلۡبَحۡرُ مِدَادٗا لِّكَلِمَٰتِ رَبِّي لَنَفِدَ ٱلۡبَحۡرُ قَبۡلَ أَن تَنفَدَ كَلِمَٰتُ رَبِّي وَلَوۡ جِئۡنَا بِمِثۡلِهِۦ مَدَدٗا ۝ 109
कहो, "यदि समुद्र मेरे रब के बोलों को लिखने के लिए रोशनाई हो जाए तो इससे पहले कि मेरे रब के बोल समाप्त हों, समुद्र ही समाप्त हो जाएगा। यद्यपि हम उसके सदृश्य एक और भी समुद्र उसके साथ ला मिलाएँ।"॥109॥
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يُوحَىٰٓ إِلَيَّ أَنَّمَآ إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ فَمَن كَانَ يَرۡجُواْ لِقَآءَ رَبِّهِۦ فَلۡيَعۡمَلۡ عَمَلٗا صَٰلِحٗا وَلَا يُشۡرِكۡ بِعِبَادَةِ رَبِّهِۦٓ أَحَدَۢا ۝ 110
कह दो, "मैं तो केवल तुम्हीं जैसा एक मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः जो कोई अपने रब से मिलन की आशा रखता हो उसे चाहिए कि अच्छा कर्म करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को साझी न बनाए।"॥110॥