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سُورَةُ البَقَرَةِ

2.सूरा अल-बक़रा

(मदीना में उतरी, आयतें 286)

परिचय

नाम और नाम रखने का कारण

इस सूरा का नाम बक़रा इसलिए है कि इसमें एक जगह ‘बक़रा’ का उल्लेख हुआ है। अरबी भाषा में ‘बक़रा’ का अर्थ होता है - गाय । क़ुरआन मजीद की हर सूरा में इतने व्यापक विषयों का उल्लेख हुआ है कि उनके लिए विषयानुसार व्यापक शीर्षक नहीं दिए जा सकते। इसलिए नबी (सल्ल०) ने अल्लाह के मार्गदर्शन से क़ुरआन की अधिकतर सूरतों के लिए विषयानुसार शीर्षक देने के बजाए नाम निश्चित किए हैं, जो केवल पहचान का काम देते हैं। इस सूरा को ‘बक़रा’ कहने का अर्थ यह नहीं है कि इसमें गाय की समस्या पर वार्ता की गई है, बल्कि इसका अर्थ केवल यह है कि 'वह सूरा जिसमें गाय का उल्लेख हुआ है’।

उतरने का समय

इस सूरा का अधिकतर हिस्सा मदीना की हिजरत के बाद मदीना वाली ज़िदंगी के बिल्कुल आरम्भ में उतरा है और बहुत कम हिस्सा ऐसा है जो बाद में उतरा और विषय की अनुकूलता की दृष्टि से इसमें शामिल कर दिया गया।

उतरने का कारण

इस सूरा को समझने के लिए पहले इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए-

1. हिजरत से पहले जब तक मक्का में इस्लाम की दावत दी जाती रही, संबोधन अधिकतर अरब के मुशरिकों (बहुदेववादियों) से था, जिनके लिए इस्लाम की आवाज़ एक नई और अनजानी आवाज़ थी। अब हिजरत के बाद वास्ता यहूदियों से पड़ा। ये यहूदी लोग तौहीद (एकेश्वरवाद), रिसालत (ईशदूतत्व), वह्य (प्रकाशना), आख़िरत (परलोक) और फ़रिश्तों को मानते थे और सैद्धांतिक रूप में उनका दीन (धर्म) वही इस्लाम था, जिसकी शिक्षा हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) दे रहे थे। लेकिन सदियों से होनेवाले निरंतर पतन ने उनको असल धर्म (मूसा-धर्म) से बहुत दूर हटा दिया था। जब नबी (सल्ल०) मदीना पहुँचे, तो अल्लाह ने आपको निर्देश दिया कि उनको असल धर्म की ओर बुलाएँ । अत: इस सूरा बक़रा की आरंभिक 141 आयतें इसी आह्वान पर आधारित हैं।

2. मदीना पहुँचकर इस्लामी आह्वान एक नए चरण में प्रवेश कर चुका था। मक्का में तो मामला केवल धर्म की बुनियादी बातों के प्रचार और धर्म अपनानेवालों के नैतिक प्रशिक्षण तक सीमित था, लेकिन जब हिजरत के बाद मदीने में एक छोटे-से इस्लामी स्टेट की बुनियाद पड़ गई, तो अल्लाह ने सभ्यता, संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, क़ानून और राजनीति के बारे में भी मूल निर्देश देने शुरू किए और यह बताया कि इस्लाम की बुनियाद पर यह नई जीवन-व्यवस्था कैसे स्थापित की जाए? यह सूरा आयत 142 से लेकर अंत तक इन्हीं निर्देशों पर आधारित है।

3. हिजरत से पहले लोगों को इस्लाम की ओर स्वयं उन्हीं के घर में (अर्थात् मक्का में) बुलाया जाता रहा और विभिन्न क़बीलों में से जो लोग इस्लाम ग्रहण करते थे, वे अपनी-अपनी जगह रहकर ही धर्म का प्रचार करते और जवाब में अत्याचारों और मुसीबतों को झेलते रहते थे, किन्तु हिजरत के बाद जब ये बिखरे हुए मुसलमान मदीना में जमा होकर एक जत्था बन गए और उन्होंने एक छोटा-सा स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया तो स्थिति यह हो गई कि एक ओर एक छोटी-सी बस्ती थी और दूसरी ओर तमाम अरब उसकी जड़ें काट देने पर तुला हुआ था। अब इस मुट्ठी-भर लोगों के गिरोह की सफलता का ही नहीं, बल्कि उसका अस्तित्व और स्थायित्व इस बात पर निर्भर था कि एक तो वह पूरे उत्साह के साथ अपने दृष्टिकोण का प्रचार करके अधिक-से-अधिक लोगों को अपने विचारों का माननेवाला बनाने की कोशिश करे। दूसरे वह विरोधियों का असत्य पर होना इस तरह प्रमाणित और पूरी तरह स्पष्ट कर दे कि किसी भी सोचने-समझनेवाले व्यक्ति को उसमें संदेह न रहे। तीसरे यह कि जिन ख़तरों में वे चारों ओर से घिर गए थे, उनमें वे हताश न हो, बल्कि पूरे धैर्य और जमाव के साथ उन परिस्थितियों का मुक़ाबला करें। चौथे यह कि वे पूरी बहादुरी के साथ हर उस हथियारबन्द अवरोध का सशस्त्र मुक़ाबला करने के लिए तैयार हो जाएँ, जो उनके आह्वान को विफल बनाने के लिए किसी ताक़त की ओर से किया जाए। पाँचवें, उनमें इतना साहस पैदा किया जाए कि अगर अरब के लोग इस नई व्यवस्था को, जो इस्लाम स्थापित करना चाहता है, समझाने-बुझाने से न अपनाएँ, तो उन्हें अज्ञान की दूषित जीवन-व्यवस्था को शक्ति से मिटा देने में भी संकोच न हो। अल्लाह ने इस सूरा में इन पाँचों बातों के बारे में आरंभिक निर्देश दिए हैं।

4. इस्लामी आह्वान के इस चरण में एक नया गिरोह भी ज़ाहिर होना शुरू हो गया था और यह मुनाफ़िक़ों (कपटाचारियों) का गिरोह था। यद्यपि निफ़ाक़ (कपटाचार) के आरंभिक लक्षण मक्का के आखिरी दिनों में ही ज़ाहिर होने लगे थे, लेकिन वहाँ केवल इस प्रकार के मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) पाए जाते थे, जो इस्लाम के हक़ (सत्य) होने को तो मानते थे और ईमान का इक़रार भी करते थे, लेकिन इसके लिए [किसी प्रकार की कु़रबानी देने के लिए] तैयार न थे। मदीना पहुँचकर इस प्रकार के मुनाफ़िक़ों के अलावा कुछ और प्रकार के मुनाफ़िक़ भी इस्लामी गिरोह में पाए जाने लगे [इसलिए उनके बारे में भी निर्देशों का आना ज़रूरी हुआ]।

सूरा बक़रा के उतरने के समय इन विभिन्न प्रकार के मुनाफ़िक़ों के प्रादुर्भाव का केवल आरंभ था, इसलिए अल्लाह ने उनकी ओर केवल संक्षिप्त संकेत किए हैं। बाद में जितनी-जितनी उनकी विशेषताएँ और हरकतें सामने आती गईं, उतने ही विस्तार के साथ बाद की सूरतों में हर प्रकार के मुनाफ़िकों के बारे में उनकी श्रेणियों के अनुसार अलग-अलग हिदायतें भेजी गईं।

 

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سُورَةُ البَقَرَةِ
2. अल-बक़रा
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, और अत्यन्त दयावान हैं।
الٓمٓ ۝ 1
अलिफ़–लाम–मीम॥1॥
ذَٰلِكَ ٱلۡكِتَٰبُ لَا رَيۡبَۛ فِيهِۛ هُدٗى لِّلۡمُتَّقِينَ ۝ 2
वह किताब यही है1; जिसमें कोई सन्देह नहीं, मार्गदर्शन है डर रखनेवालों के लिए;॥2॥ ———————— 1. जिसका वादा किया गया था
ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡغَيۡبِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ ۝ 3
जो अनदेखे ईमान लाते हैं2; नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया हैं उसमें से कुछ खर्च करते हैं; ॥3॥ ———————— 2. या परोक्ष पर ईमान लाते हैं अर्थात् ईमान लाने के लिए परोक्ष को देख लेने की शर्त ये नहीं लगाते।
وَٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ وَبِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ ۝ 4
और जो उस पर ईमान लाते हैं जो तुम पर उतरा और जो तुमसे पहले अवतरित हुआ है और आख़िरत पर वही लोग विश्वास रखते हैं; ॥4॥
أُوْلَٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدٗى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ۝ 5
वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे मार्ग पर हैं और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं।॥5॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 6
जिन लोगों ने कुफ़्र (इनकार) किया उनके लिए बराबर है, चाहे तुमने उन्हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो, वे ईमान नहीं ला रहे है॥6॥
خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَعَلَىٰ سَمۡعِهِمۡۖ وَعَلَىٰٓ أَبۡصَٰرِهِمۡ غِشَٰوَةٞۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ ۝ 7
अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर लगा दी है, और उनकी आँखों पर परदा पड़ा है और उनके लिए बड़ी यातना है॥7॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَمَا هُم بِمُؤۡمِنِينَ ۝ 8
कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन (आख़िरत) पर ईमान रखते हैं, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते॥8॥
يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَمَا يَخۡدَعُونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ ۝ 9
वे अल्लाह और ईमानवालों के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि धोखा वे स्वयं अपने-आपको ही दे रहे हैं, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते॥9॥
فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ فَزَادَهُمُ ٱللَّهُ مَرَضٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمُۢ بِمَا كَانُواْ يَكۡذِبُونَ ۝ 10
उनके दिलों में रोग था, तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके झूठ बोलते रहने के कारण उनके लिए एक दुखद यातना है॥10॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ لَا تُفۡسِدُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ قَالُوٓاْ إِنَّمَا نَحۡنُ مُصۡلِحُونَ ۝ 11
और जब उनसे कहा जाता है कि "ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो", तो कहते हैं, "हम तो केवल सुधारक हैं "॥11॥"
أَلَآ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡمُفۡسِدُونَ وَلَٰكِن لَّا يَشۡعُرُونَ ۝ 12
जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता॥12॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ ءَامِنُواْ كَمَآ ءَامَنَ ٱلنَّاسُ قَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ كَمَآ ءَامَنَ ٱلسُّفَهَآءُۗ أَلَآ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلسُّفَهَآءُ وَلَٰكِن لَّا يَعۡلَمُونَ ۝ 13
और जब उनसे कहा जाता है, "ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं", कहते हैं, "क्या हम ईमान लाएँ जैसे कमसमझ लोग ईमान लाए हैं?" जान लो, वही कमसमझ हैं परन्तु जानते नहीं॥13॥
وَإِذَا لَقُواْ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡاْ إِلَىٰ شَيَٰطِينِهِمۡ قَالُوٓاْ إِنَّا مَعَكُمۡ إِنَّمَا نَحۡنُ مُسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 14
और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते, "हम भी ईमान लाए हैं," और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, "हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।"॥14॥
ٱللَّهُ يَسۡتَهۡزِئُ بِهِمۡ وَيَمُدُّهُمۡ فِي طُغۡيَٰنِهِمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 15
अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे हैं॥15॥
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ فَمَا رَبِحَت تِّجَٰرَتُهُمۡ وَمَا كَانُواْ مُهۡتَدِينَ ۝ 16
यही वे लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार ने न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके॥16॥
مَثَلُهُمۡ كَمَثَلِ ٱلَّذِي ٱسۡتَوۡقَدَ نَارٗا فَلَمَّآ أَضَآءَتۡ مَا حَوۡلَهُۥ ذَهَبَ ٱللَّهُ بِنُورِهِمۡ وَتَرَكَهُمۡ فِي ظُلُمَٰتٖ لَّا يُبۡصِرُونَ ۝ 17
उनकी मिसाल ऐसी है जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने उसके वातावरण को प्रकाशित कर दिया तो अल्लाह ने उसका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हें अँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा है॥17॥
صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡيٞ فَهُمۡ لَا يَرۡجِعُونَ ۝ 18
वे बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धे हैं, अब वे लौटने के नहीं॥18॥
أَوۡ كَصَيِّبٖ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فِيهِ ظُلُمَٰتٞ وَرَعۡدٞ وَبَرۡقٞ يَجۡعَلُونَ أَصَٰبِعَهُمۡ فِيٓ ءَاذَانِهِم مِّنَ ٱلصَّوَٰعِقِ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِۚ وَٱللَّهُ مُحِيطُۢ بِٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 19
या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों – और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा है॥19॥
يَكَادُ ٱلۡبَرۡقُ يَخۡطَفُ أَبۡصَٰرَهُمۡۖ كُلَّمَآ أَضَآءَ لَهُم مَّشَوۡاْ فِيهِ وَإِذَآ أَظۡلَمَ عَلَيۡهِمۡ قَامُواْۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَذَهَبَ بِسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَٰرِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 20
मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखों की रौशनी उचक लेने को है; जब भी वह उनपर चमकती हो, उसमे वे चल पड़ते हों और जब उनपर अँधेरा छा जाता हो तो खड़े हो जाते हों; अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और देखने की शक्ति बिलकुल ही छीन लेता।3 निस्सन्देह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥20॥ ————————— 3. यहाँ दो मिसालें पेश की गई हैं, एक यूहदी मुनाफ़क़ों के लिए जिनके ईमान लाने की कोई आशा न थी। दूसरी मदीना के ग़ैर-यहूदी मुनाफ़कों के लिए जिनके विषय में यह आशा थी कि वे ईमान ला सकते हैं।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِي خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ۝ 21
ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने रब की जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको;॥21॥
ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فِرَٰشٗا وَٱلسَّمَآءَ بِنَآءٗ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَٰتِ رِزۡقٗا لَّكُمۡۖ فَلَا تَجۡعَلُواْ لِلَّهِ أَندَادٗا وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 22
वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फ़र्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष न ठहराओ॥22॥
وَإِن كُنتُمۡ فِي رَيۡبٖ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا فَأۡتُواْ بِسُورَةٖ مِّن مِّثۡلِهِۦ وَٱدۡعُواْ شُهَدَآءَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 23
और अगर उसके विषय में, जो हमने अपने बन्दे पर उतारा है, तुम किसी सन्देह में हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास हैं, यदि तुम सच्चे हो॥23॥
فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُواْ وَلَن تَفۡعَلُواْ فَٱتَّقُواْ ٱلنَّارَ ٱلَّتِي وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلۡحِجَارَةُۖ أُعِدَّتۡ لِلۡكَٰفِرِينَ ۝ 24
फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गई है॥24॥
وَبَشِّرِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ أَنَّ لَهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ كُلَّمَا رُزِقُواْ مِنۡهَا مِن ثَمَرَةٖ رِّزۡقٗا قَالُواْ هَٰذَا ٱلَّذِي رُزِقۡنَا مِن قَبۡلُۖ وَأُتُواْ بِهِۦ مُتَشَٰبِهٗاۖ وَلَهُمۡ فِيهَآ أَزۡوَٰجٞ مُّطَهَّرَةٞۖ وَهُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 25
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी; जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोज़्ी के रूप में मिलेगा, तो कहेंगे, "यह तो वही है जो पहले हमें मिला था," और उन्हें मिलता-जुलता ही (फल) मिलेगा; उनके लिए वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे, और वे वहाँ सदैव रहेंगे॥25॥
۞إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَسۡتَحۡيِۦٓ أَن يَضۡرِبَ مَثَلٗا مَّا بَعُوضَةٗ فَمَا فَوۡقَهَاۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ فَيَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۖ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَيَقُولُونَ مَاذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَٰذَا مَثَلٗاۘ يُضِلُّ بِهِۦ كَثِيرٗا وَيَهۡدِي بِهِۦ كَثِيرٗاۚ وَمَا يُضِلُّ بِهِۦٓ إِلَّا ٱلۡفَٰسِقِينَ ۝ 26
निस्संदेह अल्लाह नहीं शर्माता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज़ की। फिर जो ईमान लाए हैं वे तो जानते हैं कि वह उनके रब की ओर से सत्य है; रहे इनकार करनेवाले, तो वे कहते है, "इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है?" इससे वह बहुतों को भटकने देता है और बहुतों को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों ही को भटकने देता है॥26॥
ٱلَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِيثَٰقِهِۦ وَيَقۡطَعُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ ۝ 27
जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे सुदृढ़ करने के पश्चात भंग कर देते हैं और जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है उसे काट डालते हैं और ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं, वही हैं जो घाटे में हैं॥27॥
كَيۡفَ تَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَكُنتُمۡ أَمۡوَٰتٗا فَأَحۡيَٰكُمۡۖ ثُمَّ يُمِيتُكُمۡ ثُمَّ يُحۡيِيكُمۡ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 28
तुम अल्लाह के साथ अविश्वास की नीति कैसे अपनाते हो, जबकि तुम निर्जीव थे तो उसने तुम्हें जीवित किया, फिर वही तुम्हें मौत देता हैं, फिर वही तुम्हें जीवित करेगा, फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना है?॥28॥
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ لَكُم مَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰٓ إِلَى ٱلسَّمَآءِ فَسَوَّىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَٰوَٰتٖۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ ۝ 29
वही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन की सारी चीज़ें पैदा कीं, फिर आकाश की ओर रुख़ किया और ठीक तौर पर सात आकाश बनाए और वह हर चीज़ को जानता है॥29॥
وَإِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِنِّي جَاعِلٞ فِي ٱلۡأَرۡضِ خَلِيفَةٗۖ قَالُوٓاْ أَتَجۡعَلُ فِيهَا مَن يُفۡسِدُ فِيهَا وَيَسۡفِكُ ٱلدِّمَآءَ وَنَحۡنُ نُسَبِّحُ بِحَمۡدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَۖ قَالَ إِنِّيٓ أَعۡلَمُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 30
और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि "मैं धरती में (मनुष्य को) ख़लीफ़ा (सत्ताधारी) बनाने वाला हूँ।" उन्होंने कहा, "क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्तपात करे, और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?" उसने कहा, "मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।"॥30॥
وَعَلَّمَ ءَادَمَ ٱلۡأَسۡمَآءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمۡ عَلَى ٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ فَقَالَ أَنۢبِـُٔونِي بِأَسۡمَآءِ هَٰٓؤُلَآءِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 31
उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, "अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।"॥31॥
قَالُواْ سُبۡحَٰنَكَ لَا عِلۡمَ لَنَآ إِلَّا مَا عَلَّمۡتَنَآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَلِيمُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 32
वे बोले, "महिमावान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।"॥32॥
قَالَ يَٰٓـَٔادَمُ أَنۢبِئۡهُم بِأَسۡمَآئِهِمۡۖ فَلَمَّآ أَنۢبَأَهُم بِأَسۡمَآئِهِمۡ قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكُمۡ إِنِّيٓ أَعۡلَمُ غَيۡبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَأَعۡلَمُ مَا تُبۡدُونَ وَمَا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ ۝ 33
उसने (अल्लाह ने) कहा, "ऐ आदम! उन्हें उन लोगों के नाम बताओ।" फिर जब उसने उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।"॥33॥
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ أَبَىٰ وَٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 34
और याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि "आदम को सजदा करो" तो, उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलील के। उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और अवज्ञाकारी होकर रहा॥34॥
وَقُلۡنَا يَٰٓـَٔادَمُ ٱسۡكُنۡ أَنتَ وَزَوۡجُكَ ٱلۡجَنَّةَ وَكُلَا مِنۡهَا رَغَدًا حَيۡثُ شِئۡتُمَا وَلَا تَقۡرَبَا هَٰذِهِ ٱلشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 35
और हमने कहा, "ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो और वहाँ जी भर बेरोक-टोक जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे खाओ, लेकिन इस वृक्ष के पास न जाना, अन्यथा तुम ज़ालिम ठहरोगे।"॥35॥
فَأَزَلَّهُمَا ٱلشَّيۡطَٰنُ عَنۡهَا فَأَخۡرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِۖ وَقُلۡنَا ٱهۡبِطُواْ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوّٞۖ وَلَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُسۡتَقَرّٞ وَمَتَٰعٌ إِلَىٰ حِينٖ ۝ 36
अन्ततः शैतान ने उन्हें वहाँ से फिसला दिया, फिर उन दोनों को वहाँ से निकलवाकर छोड़ा, जहाँ वे थे। हमने कहा कि "उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु होगे और तुम्हें एक समय तक धरती में ठहरना और बिलसना है।"॥36॥
فَتَلَقَّىٰٓ ءَادَمُ مِن رَّبِّهِۦ كَلِمَٰتٖ فَتَابَ عَلَيۡهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 37
फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिए, तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल कर ली; निस्संदेह वही तौबा क़ुबूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है॥37॥
قُلۡنَا ٱهۡبِطُواْ مِنۡهَا جَمِيعٗاۖ فَإِمَّا يَأۡتِيَنَّكُم مِّنِّي هُدٗى فَمَن تَبِعَ هُدَايَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 38
हमने कहा, "तुम सब यहाँ से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।"॥38॥
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 39
और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही आग में पड़नेवाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे॥39॥
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِيَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ وَأَوۡفُواْ بِعَهۡدِيٓ أُوفِ بِعَهۡدِكُمۡ وَإِيَّٰيَ فَٱرۡهَبُونِ ۝ 40
ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था। और मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुमसे की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करूँगा, और हाँ, मुझी से डरो॥40॥
وَءَامِنُواْ بِمَآ أَنزَلۡتُ مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَكُمۡ وَلَا تَكُونُوٓاْ أَوَّلَ كَافِرِۭ بِهِۦۖ وَلَا تَشۡتَرُواْ بِـَٔايَٰتِي ثَمَنٗا قَلِيلٗا وَإِيَّٰيَ فَٱتَّقُونِ ۝ 41
और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो॥41॥
وَلَا تَلۡبِسُواْ ٱلۡحَقَّ بِٱلۡبَٰطِلِ وَتَكۡتُمُواْ ٱلۡحَقَّ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 42
और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बुझते सत्य को मत छिपाओ॥42॥
وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱرۡكَعُواْ مَعَ ٱلرَّٰكِعِينَ ۝ 43
और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको॥43॥
۞أَتَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبِرِّ وَتَنسَوۡنَ أَنفُسَكُمۡ وَأَنتُمۡ تَتۡلُونَ ٱلۡكِتَٰبَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 44
क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?॥44॥
وَٱسۡتَعِينُواْ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ وَإِنَّهَا لَكَبِيرَةٌ إِلَّا عَلَى ٱلۡخَٰشِعِينَ ۝ 45
धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हों;॥45॥
ٱلَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَٰقُواْ رَبِّهِمۡ وَأَنَّهُمۡ إِلَيۡهِ رَٰجِعُونَ ۝ 46
जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना है और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है॥46॥
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِيَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ وَأَنِّي فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 47
ऐ इसराईल की सन्तान ! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था, और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी;॥47॥
وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا لَّا تَجۡزِي نَفۡسٌ عَن نَّفۡسٖ شَيۡـٔٗا وَلَا يُقۡبَلُ مِنۡهَا شَفَٰعَةٞ وَلَا يُؤۡخَذُ مِنۡهَا عَدۡلٞ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ ۝ 48
और डरो उस दिन से जब न कोई किसी भी ओर से कुछ जु्र्माना (तावान) भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़ुबूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्‌या (अर्थदण्डन) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे।॥48॥
وَإِذۡ نَجَّيۡنَٰكُم مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ يَسُومُونَكُمۡ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يُذَبِّحُونَ أَبۡنَآءَكُمۡ وَيَسۡتَحۡيُونَ نِسَآءَكُمۡۚ وَفِي ذَٰلِكُم بَلَآءٞ مِّن رَّبِّكُمۡ عَظِيمٞ ۝ 49
और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे; तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमें तुम्हारे रब की ओर से बड़ी अनुग्रह था॥49॥
وَإِذۡ فَرَقۡنَا بِكُمُ ٱلۡبَحۡرَ فَأَنجَيۡنَٰكُمۡ وَأَغۡرَقۡنَآ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ ۝ 50
याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया॥50॥
وَإِذۡ وَٰعَدۡنَا مُوسَىٰٓ أَرۡبَعِينَ لَيۡلَةٗ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَٰلِمُونَ ۝ 51
और याद करो जब हमने मूसा से चालीस रातों का वादा ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना उपास्य बना बैठे, तुम अत्याचारी थे॥51॥
ثُمَّ عَفَوۡنَا عَنكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 52
फिर इसके पश्चात भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखालाओ॥52॥
وَإِذۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡفُرۡقَانَ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ۝ 53
और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको॥53॥
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ يَٰقَوۡمِ إِنَّكُمۡ ظَلَمۡتُمۡ أَنفُسَكُم بِٱتِّخَاذِكُمُ ٱلۡعِجۡلَ فَتُوبُوٓاْ إِلَىٰ بَارِئِكُمۡ فَٱقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ ذَٰلِكُمۡ خَيۡرٞ لَّكُمۡ عِندَ بَارِئِكُمۡ فَتَابَ عَلَيۡكُمۡۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 54
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों4 को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की दृष्टि में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़ुबूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ी तौबा क़ुबूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।"॥54॥ —————— 4. अर्थात् अपने उन लोगों को जिन्होंने ऐसे अपराध किए, जिनकी सज़ा क़त्ल ही है।
وَإِذۡ قُلۡتُمۡ يَٰمُوسَىٰ لَن نُّؤۡمِنَ لَكَ حَتَّىٰ نَرَى ٱللَّهَ جَهۡرَةٗ فَأَخَذَتۡكُمُ ٱلصَّٰعِقَةُ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ ۝ 55
और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।" फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा5, और तुम देखते रहे॥55॥ ———————— 5. अर्थात् तुमने इस प्रकार की धृष्टता की कि तत्काल अल्लाह के प्रकोप में ग्रस्त हो गए।
ثُمَّ بَعَثۡنَٰكُم مِّنۢ بَعۡدِ مَوۡتِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 56
फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ॥56॥
وَظَلَّلۡنَا عَلَيۡكُمُ ٱلۡغَمَامَ وَأَنزَلۡنَا عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰۖ كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡۚ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَٰكِن كَانُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ ۝ 57
और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर ’मन्न’ और ’सलवा’ उतारा - "खाओ, जो अच्छी पाक चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की है।" उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे॥57॥
وَإِذۡ قُلۡنَا ٱدۡخُلُواْ هَٰذِهِ ٱلۡقَرۡيَةَ فَكُلُواْ مِنۡهَا حَيۡثُ شِئۡتُمۡ رَغَدٗا وَٱدۡخُلُواْ ٱلۡبَابَ سُجَّدٗا وَقُولُواْ حِطَّةٞ نَّغۡفِرۡ لَكُمۡ خَطَٰيَٰكُمۡۚ وَسَنَزِيدُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 58
और जब हमने कहा था, "इस बस्ती में प्रवेश करो, फिर इसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और दरवाज़े में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, "छूट है।"6 हम तुम्हारी ख़ताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।"॥58॥ ————————— 6. अर्थात् हमारा काम तुमपर बोझ डालना नहीं, बल्कि ज़ुल्म के बोझ से तुम्हें उबारना है।
فَبَدَّلَ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ قَوۡلًا غَيۡرَ ٱلَّذِي قِيلَ لَهُمۡ فَأَنزَلۡنَا عَلَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ رِجۡزٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ بِمَا كَانُواْ يَفۡسُقُونَ ۝ 59
फिर जो बात उनसे कही गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया।7 अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी॥59॥ ————————— 7. अर्थात् उनकी नीति वह न रही, जो अपेक्षित थी।
۞وَإِذِ ٱسۡتَسۡقَىٰ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ فَقُلۡنَا ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡحَجَرَۖ فَٱنفَجَرَتۡ مِنۡهُ ٱثۡنَتَا عَشۡرَةَ عَيۡنٗاۖ قَدۡ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٖ مَّشۡرَبَهُمۡۖ كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ مِن رِّزۡقِ ٱللَّهِ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِينَ ۝ 60
और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी की प्रार्थना को तो हमने कहा, "चट्टान पर अपनी लाठी मारो," तो उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - "खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।"॥60॥
وَإِذۡ قُلۡتُمۡ يَٰمُوسَىٰ لَن نَّصۡبِرَ عَلَىٰ طَعَامٖ وَٰحِدٖ فَٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُخۡرِجۡ لَنَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ مِنۢ بَقۡلِهَا وَقِثَّآئِهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَاۖ قَالَ أَتَسۡتَبۡدِلُونَ ٱلَّذِي هُوَ أَدۡنَىٰ بِٱلَّذِي هُوَ خَيۡرٌۚ ٱهۡبِطُواْ مِصۡرٗا فَإِنَّ لَكُم مَّا سَأَلۡتُمۡۗ وَضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ وَٱلۡمَسۡكَنَةُ وَبَآءُو بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعۡتَدُونَ ۝ 61
और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि हमारे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज़ निकाले।" (मूसा ने) कहा, "क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा हैं, तुम्हें मिल जाएगा" — और उनपर अपमान और हीन दशा थोप दी गई, और वे अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे॥61॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَادُواْ وَٱلنَّصَٰرَىٰ وَٱلصَّٰبِـِٔينَ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 62
निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबी, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे —॥62॥
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُواْ مَآ ءَاتَيۡنَٰكُم بِقُوَّةٖ وَٱذۡكُرُواْ مَا فِيهِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ۝ 63
और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर (पर्वत) को तुम्हारे ऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था, "जो चीज़ हमने तुम्हें दी है उसे मज़बूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें हैं उसे याद रखो ताकि तुम बच सको।"॥63॥
ثُمَّ تَوَلَّيۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَۖ فَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ لَكُنتُم مِّنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ ۝ 64
फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपा और उसकी दयालुता तुम पर न होती, तो तुम घाटे में पड़ गए होते॥64॥
وَلَقَدۡ عَلِمۡتُمُ ٱلَّذِينَ ٱعۡتَدَوۡاْ مِنكُمۡ فِي ٱلسَّبۡتِ فَقُلۡنَا لَهُمۡ كُونُواْ قِرَدَةً خَٰسِـِٔينَ ۝ 65
और तुम उन लोगों के विषय में तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से 'सब्त'8 के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया, "बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए!"॥65॥ —————————— 8. अर्थात् सामूहिक इबादत का दिन।
فَجَعَلۡنَٰهَا نَكَٰلٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهَا وَمَا خَلۡفَهَا وَمَوۡعِظَةٗ لِّلۡمُتَّقِينَ ۝ 66
फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिए शिक्षा-सामग्री और डर रखनेवालों के लिए नसीहत बनाकर छोड़ा॥66॥
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَأۡمُرُكُمۡ أَن تَذۡبَحُواْ بَقَرَةٗۖ قَالُوٓاْ أَتَتَّخِذُنَا هُزُوٗاۖ قَالَ أَعُوذُ بِٱللَّهِ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡجَٰهِلِينَ ۝ 67
और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय ज़ब्ह करो।" कहने लगे, "क्या तुम हमसे परिहास करते हो?" उसने कहा, "मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ।"॥67॥
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا هِيَۚ قَالَ إِنَّهُۥ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٞ لَّا فَارِضٞ وَلَا بِكۡرٌ عَوَانُۢ بَيۡنَ ذَٰلِكَۖ فَٱفۡعَلُواْ مَا تُؤۡمَرُونَ ۝ 68
बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्ट कर दे कि वह (गाय) कौन-सी है?" उसने कहा, "वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो न बूढ़ी है, न बछिया, इनके बीच की रास है; तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, करो।"॥68॥
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا لَوۡنُهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٞ صَفۡرَآءُ فَاقِعٞ لَّوۡنُهَا تَسُرُّ ٱلنَّٰظِرِينَ ۝ 69
कहने लगे, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा हो?" कहा, "वह कहता है कि वह गाय सुनहरी हो, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती हो।"॥69॥
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا هِيَ إِنَّ ٱلۡبَقَرَ تَشَٰبَهَ عَلَيۡنَا وَإِنَّآ إِن شَآءَ ٱللَّهُ لَمُهۡتَدُونَ ۝ 70
बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कैसी है, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य पता लगा लेंगे।"॥70॥
قَالَ إِنَّهُۥ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٞ لَّا ذَلُولٞ تُثِيرُ ٱلۡأَرۡضَ وَلَا تَسۡقِي ٱلۡحَرۡثَ مُسَلَّمَةٞ لَّا شِيَةَ فِيهَاۚ قَالُواْ ٱلۡـَٰٔنَ جِئۡتَ بِٱلۡحَقِّۚ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُواْ يَفۡعَلُونَ ۝ 71
उसने कहा, "वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।" बोले, "अब तुमने ठीक बात बताई है।" फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे॥71॥
وَإِذۡ قَتَلۡتُمۡ نَفۡسٗا فَٱدَّٰرَٰٔتُمۡ فِيهَاۖ وَٱللَّهُ مُخۡرِجٞ مَّا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ ۝ 72
और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था॥72॥
فَقُلۡنَا ٱضۡرِبُوهُ بِبَعۡضِهَاۚ كَذَٰلِكَ يُحۡيِ ٱللَّهُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَيُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 73
तो हमने कहा, "उसे उसके एक हिस्से से मारो।" इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो॥73॥
ثُمَّ قَسَتۡ قُلُوبُكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ فَهِيَ كَٱلۡحِجَارَةِ أَوۡ أَشَدُّ قَسۡوَةٗۚ وَإِنَّ مِنَ ٱلۡحِجَارَةِ لَمَا يَتَفَجَّرُ مِنۡهُ ٱلۡأَنۡهَٰرُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا يَشَّقَّقُ فَيَخۡرُجُ مِنۡهُ ٱلۡمَآءُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا يَهۡبِطُ مِنۡ خَشۡيَةِ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 74
फिर इसके पश्चात् भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए, बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है। और जो कुछ तुम कर रहे हो अल्लाह, उससे बेख़बर नहीं है॥74॥
۞أَفَتَطۡمَعُونَ أَن يُؤۡمِنُواْ لَكُمۡ وَقَدۡ كَانَ فَرِيقٞ مِّنۡهُمۡ يَسۡمَعُونَ كَلَٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُۥ مِنۢ بَعۡدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ ۝ 75
तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे?॥75॥
وَإِذَا لَقُواْ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَا بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٖ قَالُوٓاْ أَتُحَدِّثُونَهُم بِمَا فَتَحَ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمۡ لِيُحَآجُّوكُم بِهِۦ عِندَ رَبِّكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 76
और जब वे ईमान लानेवालों से मिलते है तो कहते हैं, "हम भी ईमान रखते हैं", और जब आपस में एक-दूसरे से एकांत में मिलते है तो कहते है, "क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोलीं, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!"॥76॥
أَوَلَا يَعۡلَمُونَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعۡلِنُونَ ۝ 77
क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं?॥77॥
وَمِنۡهُمۡ أُمِّيُّونَ لَا يَعۡلَمُونَ ٱلۡكِتَٰبَ إِلَّآ أَمَانِيَّ وَإِنۡ هُمۡ إِلَّا يَظُنُّونَ ۝ 78
और उनमें सामान्य बे पढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं॥78॥
فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ يَكۡتُبُونَ ٱلۡكِتَٰبَ بِأَيۡدِيهِمۡ ثُمَّ يَقُولُونَ هَٰذَا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ لِيَشۡتَرُواْ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلٗاۖ فَوَيۡلٞ لَّهُم مِّمَّا كَتَبَتۡ أَيۡدِيهِمۡ وَوَيۡلٞ لَّهُم مِّمَّا يَكۡسِبُونَ ۝ 79
तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं फिर कहते हैं, "यह अल्लाह की ओर से है", ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके लिए उसके कारण जो उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं॥79॥
وَقَالُواْ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّآ أَيَّامٗا مَّعۡدُودَةٗۚ قُلۡ أَتَّخَذۡتُمۡ عِندَ ٱللَّهِ عَهۡدٗا فَلَن يُخۡلِفَ ٱللَّهُ عَهۡدَهُۥٓۖ أَمۡ تَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 80
वे कहते है, "जहन्नम की आग हमें नहीं छू सकती, हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (सांसारिक कष्टों) की बात और है।" कहो, "क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है? फिर तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं जा सकता? या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं?॥80॥
بَلَىٰۚ مَن كَسَبَ سَيِّئَةٗ وَأَحَٰطَتۡ بِهِۦ خَطِيٓـَٔتُهُۥ فَأُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 81
क्यों नहीं; जिसने भी कोई बदी कमाई और उसकी ख़ताकारी ने उसे अपने घेरे में ले लिया, तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है; वे उसी में सदैव रहेंगे॥81॥
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 82
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वही जन्नतवाले हैं, वे सदैव उसी में रहेंगे।"॥82॥
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ لَا تَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَانٗا وَذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَقُولُواْ لِلنَّاسِ حُسۡنٗا وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ ثُمَّ تَوَلَّيۡتُمۡ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنكُمۡ وَأَنتُم مُّعۡرِضُونَ ۝ 83
और याद करो जब इसराईल की सन्तान से हमने वचन लिया, "अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे; और माँ-बाप के साथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे; और यह कि लोगों से भली बात कहो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।" तो तुम फिर गए, बस तुममें से बचे थोड़े ही, और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे॥83॥
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَكُمۡ لَا تَسۡفِكُونَ دِمَآءَكُمۡ وَلَا تُخۡرِجُونَ أَنفُسَكُم مِّن دِيَٰرِكُمۡ ثُمَّ أَقۡرَرۡتُمۡ وَأَنتُمۡ تَشۡهَدُونَ ۝ 84
और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया, "अपने ख़ून न बहाओगे और न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे।" फिर तुमने इनकार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो॥84॥
ثُمَّ أَنتُمۡ هَٰٓؤُلَآءِ تَقۡتُلُونَ أَنفُسَكُمۡ وَتُخۡرِجُونَ فَرِيقٗا مِّنكُم مِّن دِيَٰرِهِمۡ تَظَٰهَرُونَ عَلَيۡهِم بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَإِن يَأۡتُوكُمۡ أُسَٰرَىٰ تُفَٰدُوهُمۡ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَيۡكُمۡ إِخۡرَاجُهُمۡۚ أَفَتُؤۡمِنُونَ بِبَعۡضِ ٱلۡكِتَٰبِ وَتَكۡفُرُونَ بِبَعۡضٖۚ فَمَا جَزَآءُ مَن يَفۡعَلُ ذَٰلِكَ مِنكُمۡ إِلَّا خِزۡيٞ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يُرَدُّونَ إِلَىٰٓ أَشَدِّ ٱلۡعَذَابِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 85
फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गिरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो; तुम गुनाह और ज़्यादती के साथ उनके विरुद्ध एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते हो; और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आएँ तो उनकी रिहाई के लिए फिद्‍ये (अर्थदण्‍ड) का लेन-देन करो जबकि यह हराम है। तुम पर उनको रिहा करना अनिवार्य है। तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते? फिर तुममें जो ऐसा करें उसका बदला इसके सिवा और क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो? और क़ियामत के दिन ऐसे लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा। अल्लाह उससे बेखबर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो॥85॥
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا بِٱلۡأٓخِرَةِۖ فَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ ۝ 86
यही वे लोग हैं जो आख़िरत के बदले सांसारिक जीवन के ख़रीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें कोई सहायता पहुँच सकेगी॥86॥
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَقَفَّيۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ بِٱلرُّسُلِۖ وَءَاتَيۡنَا عِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَأَيَّدۡنَٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ أَفَكُلَّمَا جَآءَكُمۡ رَسُولُۢ بِمَا لَا تَهۡوَىٰٓ أَنفُسُكُمُ ٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡ فَفَرِيقٗا كَذَّبۡتُمۡ وَفَرِيقٗا تَقۡتُلُونَ ۝ 87
और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे-पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे; और मरयम के बेटे ईसा को खुली-खुली निशानियाँ प्रदान कीं और पवित्र-आत्मा के द्वारा उसे शक्ति प्रदान की; तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हारे जी को पसन्द न था, तो तुम अकड़ बैठे, तो एक गिरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गिरोह को क़त्ल करते रहे?॥87॥
وَقَالُواْ قُلُوبُنَا غُلۡفُۢۚ بَل لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَقَلِيلٗا مَّا يُؤۡمِنُونَ ۝ 88
वे कहते हैं, "हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े हैं" नहीं, बल्कि उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनपर लानत की है; अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे॥88॥
وَلَمَّا جَآءَهُمۡ كِتَٰبٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقٞ لِّمَا مَعَهُمۡ وَكَانُواْ مِن قَبۡلُ يَسۡتَفۡتِحُونَ عَلَى ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَلَمَّا جَآءَهُم مَّا عَرَفُواْ كَفَرُواْ بِهِۦۚ فَلَعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 89
और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है — और इससे पहले तो वे सत्यधर्म के विरोधियों पर विजय पाने के इच्छुक रहे हैं — फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसे वे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करनेवालों पर!॥89॥
بِئۡسَمَا ٱشۡتَرَوۡاْ بِهِۦٓ أَنفُسَهُمۡ أَن يَكۡفُرُواْ بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ بَغۡيًا أَن يُنَزِّلَ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۖ فَبَآءُو بِغَضَبٍ عَلَىٰ غَضَبٖۚ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٞ مُّهِينٞ ۝ 90
क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात् जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए हैं। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है॥90॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ ءَامِنُواْ بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ نُؤۡمِنُ بِمَآ أُنزِلَ عَلَيۡنَا وَيَكۡفُرُونَ بِمَا وَرَآءَهُۥ وَهُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَهُمۡۗ قُلۡ فَلِمَ تَقۡتُلُونَ أَنۢبِيَآءَ ٱللَّهِ مِن قَبۡلُ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 91
जब उनसे कहा जाता है, "अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ", तो कहते है, "हम तो उसपर ईमान रखते है जो हम पर उतरा है," और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उनके पास है। कहो, "अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?"॥91॥
۞وَلَقَدۡ جَآءَكُم مُّوسَىٰ بِٱلۡبَيِّنَٰتِ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَٰلِمُونَ ۝ 92
तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे॥92॥ और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया, और तूर को तुम्हारे ऊपर उठाए रखा था——“जो कुछ हमने तुम्हें दिया है उसे मज़बूती से पकड़ो और सुनो।” वे बोले, “हमने सुना, किन्तु हमने माना नहीं।” उनके अविशवास के कारण उनके दिलों में बछड़ा बस गया था। कहो : “यदि तुम ईमानवाले हो, तो कितना बुरा वह कर्म है जिसका हुक्म तुम्हारा ईमान तुम्हें देता है।” ॥93॥
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُواْ مَآ ءَاتَيۡنَٰكُم بِقُوَّةٖ وَٱسۡمَعُواْۖ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَعَصَيۡنَا وَأُشۡرِبُواْ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلۡعِجۡلَ بِكُفۡرِهِمۡۚ قُلۡ بِئۡسَمَا يَأۡمُرُكُم بِهِۦٓ إِيمَٰنُكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 93
और याद करो जब हमने तुमसे वचन लिया, और तूर को तुम्हािरे ऊपर उठाए रखा थाखा , जो कुछ हमने तुम्हेस दिया है उसे मजबूती से पकडो और सुनो। वे बोले, हमने सुना, किन्तु। हमने माना नही ।
قُلۡ إِن كَانَتۡ لَكُمُ ٱلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ عِندَ ٱللَّهِ خَالِصَةٗ مِّن دُونِ ٱلنَّاسِ فَتَمَنَّوُاْ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 94
यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों को छोड़कर केवल तुम्हारे लिए है, तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।” ॥94॥
وَلَن يَتَمَنَّوۡهُ أَبَدَۢا بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 95
अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है॥95॥
وَلَتَجِدَنَّهُمۡ أَحۡرَصَ ٱلنَّاسِ عَلَىٰ حَيَوٰةٖ وَمِنَ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْۚ يَوَدُّ أَحَدُهُمۡ لَوۡ يُعَمَّرُ أَلۡفَ سَنَةٖ وَمَا هُوَ بِمُزَحۡزِحِهِۦ مِنَ ٱلۡعَذَابِ أَن يُعَمَّرَۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا يَعۡمَلُونَ ۝ 96
तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालों से भी बढ़े हुए हैं। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उसे हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी हो जाए, तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे कर रहे है॥96॥
قُلۡ مَن كَانَ عَدُوّٗا لِّـجِبۡرِيلَ فَإِنَّهُۥ نَزَّلَهُۥ عَلَىٰ قَلۡبِكَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَهُدٗى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 97
कहो, "जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथा अनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है॥97॥
مَن كَانَ عَدُوّٗا لِّلَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَجِبۡرِيلَ وَمِيكَىٰلَ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَدُوّٞ لِّلۡكَٰفِرِينَ ۝ 98
जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।"॥98॥
وَلَقَدۡ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖۖ وَمَا يَكۡفُرُ بِهَآ إِلَّا ٱلۡفَٰسِقُونَ ۝ 99
और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी हैं और उनका इनकार तो बस वही लोग करते हैं जो उल्लंघनकारी हैं॥99॥
أَوَكُلَّمَا عَٰهَدُواْ عَهۡدٗا نَّبَذَهُۥ فَرِيقٞ مِّنۡهُمۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 100
क्या यह एक निश्चित नीति है कि जब कि उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गिरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते॥100॥
وَلَمَّا جَآءَهُمۡ رَسُولٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقٞ لِّمَا مَعَهُمۡ نَبَذَ فَرِيقٞ مِّنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَرَآءَ ظُهُورِهِمۡ كَأَنَّهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 101
और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल आया, जिससे उस (भविष्यवाणी) की पुष्टि हो रही है जो उनके पास थी, तो उनके एक गिरोह ने, जिन्हें किताब मिली थी, अल्लाह की किताब को अपने पीठ पीछे डाल दिया, मानो वे कुछ जानते ही नहीं॥101॥
وَٱتَّبَعُواْ مَا تَتۡلُواْ ٱلشَّيَٰطِينُ عَلَىٰ مُلۡكِ سُلَيۡمَٰنَۖ وَمَا كَفَرَ سُلَيۡمَٰنُ وَلَٰكِنَّ ٱلشَّيَٰطِينَ كَفَرُواْ يُعَلِّمُونَ ٱلنَّاسَ ٱلسِّحۡرَ وَمَآ أُنزِلَ عَلَى ٱلۡمَلَكَيۡنِ بِبَابِلَ هَٰرُوتَ وَمَٰرُوتَۚ وَمَا يُعَلِّمَانِ مِنۡ أَحَدٍ حَتَّىٰ يَقُولَآ إِنَّمَا نَحۡنُ فِتۡنَةٞ فَلَا تَكۡفُرۡۖ فَيَتَعَلَّمُونَ مِنۡهُمَا مَا يُفَرِّقُونَ بِهِۦ بَيۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَزَوۡجِهِۦۚ وَمَا هُم بِضَآرِّينَ بِهِۦ مِنۡ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَيَتَعَلَّمُونَ مَا يَضُرُّهُمۡ وَلَا يَنفَعُهُمۡۚ وَلَقَدۡ عَلِمُواْ لَمَنِ ٱشۡتَرَىٰهُ مَا لَهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنۡ خَلَٰقٖۚ وَلَبِئۡسَ مَا شَرَوۡاْ بِهِۦٓ أَنفُسَهُمۡۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ۝ 102
और वे उस चीज़ के पीछे पड़ गए जिसे शैतान सुलैमान की बादशाही पर थोपकर पढ़ते थे — हालाँकि सुलैमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया था, बल्कि कुफ़्र तो शैतानों ने किया था; वे लोगों को जादू सिखाते थे — और उस चीज़ में पढ़ गए जो बाबिल में दोनों फ़रिश्तों हारूत और मारूत पर जादू उतारी गई थी । और वे किसी को भी सिखाते न थे जब तक कि कह न देते, "हम तो बस एक परीक्षा हैं; तो तुम कुफ़्र में न पड़ना।" तो लोग उन दोनों से वह कुछ सीखते है, जिसके द्वारा पति और पत्नी में अलगाव पैदा कर दे — यद्यपि वे उससे किसी को भी हानि नहीं पहुँचा सकते थे। हाँ, यह और बात है कि अल्लाह के हुक्म से किसी को हानि पहुँचनेवाली ही हो -— और वह कुछ सीखते हैं जो उन्हें हानि ही पहुँचाए और उन्हें कोई लाभ न पहुँचाए। और उन्हें भली-भाँति मालूम है कि जो उसका ग्राहक बना, उसका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। कितनी बुरी चीज़ के बदले उन्होंने अपने प्राणों का सौदा किया, यदि वे जानते (तो ठीक मार्ग अपनाते)॥102॥
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ ءَامَنُواْ وَٱتَّقَوۡاْ لَمَثُوبَةٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ خَيۡرٞۚ لَّوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ۝ 103
और यदि वे ईमान लाते और डर रखते, तो अल्लाह के यहाँ से मिलने वाला बदला कहीं अच्छा था, यदि वे जानते (तो इसे समझ सकते)॥103॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَقُولُواْ رَٰعِنَا وَقُولُواْ ٱنظُرۡنَا وَٱسۡمَعُواْۗ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٞ ۝ 104
ऐ ईमान लानेवालो! ’राइना’9 न कहा करो, बल्कि ’उनज़ुरना’10 कहा करो और सुना करो। और इनकार करनेवालों के लिए दुखद यातना है॥104॥ —————————— 9. यहाँ अरबी में जो वाक्य प्रयुक्त हुआ है, तनिक हेर-फेर से इसका अर्थ कुछ से कुछ हो जाता है। इसी लिए इस शब्द को प्रयोग में लाने से रोका गया है। 10. हमपर नज़र कीजिए, या तनिक हमारा ख़याल कीजिए।
مَّا يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ وَلَا ٱلۡمُشۡرِكِينَ أَن يُنَزَّلَ عَلَيۡكُم مِّنۡ خَيۡرٖ مِّن رَّبِّكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَخۡتَصُّ بِرَحۡمَتِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 105
इनकार करनेवाले नहीं चाहते, न किताबवाले और न मुशरिक (बहुदेववादी) कि तुम्हारे रब की ओर से तुमपर कोई भलाई उतरे, हालाँकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता के लिए ख़ास कर ले; अल्लाह बड़ा अनुग्रह करनेवाला है॥105॥
۞مَا نَنسَخۡ مِنۡ ءَايَةٍ أَوۡ نُنسِهَا نَأۡتِ بِخَيۡرٖ مِّنۡهَآ أَوۡ مِثۡلِهَآۗ أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ ۝ 106
हम जिस आयत (और निशान) को भी मिटा दें या उसे भुला देते है, तो उससे बेहतर लाते है या उस जैसा दूसरा ही। क्या तुम नहीं जानते हो कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है? ॥106॥
أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا نَصِيرٍ ۝ 107
क्या तुम नहीं जानते कि आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है और अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक?॥107॥
أَمۡ تُرِيدُونَ أَن تَسۡـَٔلُواْ رَسُولَكُمۡ كَمَا سُئِلَ مُوسَىٰ مِن قَبۡلُۗ وَمَن يَتَبَدَّلِ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِيمَٰنِ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ ۝ 108
(ऐ ईमानवालो! तुम अपने रसूल के आदर का ध्यान रखो) या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से उसी प्रकार से प्रश्न और बात करो, जिस प्रकार इससे पहले मूसा से बात की गई है? हालाँकि जिस व्यक्ति ने ईमान के बदले इनकार की नीति अपनाई, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया॥108॥
وَدَّ كَثِيرٞ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ لَوۡ يَرُدُّونَكُم مِّنۢ بَعۡدِ إِيمَٰنِكُمۡ كُفَّارًا حَسَدٗا مِّنۡ عِندِ أَنفُسِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ ٱلۡحَقُّۖ فَٱعۡفُواْ وَٱصۡفَحُواْ حَتَّىٰ يَأۡتِيَ ٱللَّهُ بِأَمۡرِهِۦٓۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 109
बहुत-से किताबवाले अपने भीतर की ईर्ष्या से चाहते हैं कि किसी प्रकार वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फेरकर तुम्हें इनकार कर देनेवाला बना दें, यद्यपि सत्य उनपर प्रकट हो चुका है, तो तुम दरगुज़र (क्षमा) से काम लो और जाने दो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला लागू न कर दे। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥109॥
وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَۚ وَمَا تُقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُم مِّنۡ خَيۡرٖ تَجِدُوهُ عِندَ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ ۝ 110
और नमाज़ कायम करो और ज़कात दो और तुम स्वयं अपने लिए जो भलाई भी पेश करोगे, उसे अल्लाह के यहाँ मौजूद पाओगे। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है॥110॥
وَقَالُواْ لَن يَدۡخُلَ ٱلۡجَنَّةَ إِلَّا مَن كَانَ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰۗ تِلۡكَ أَمَانِيُّهُمۡۗ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 111
और उनका कहना है, "कोई व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं करता सिवाय उसके जो यहूदी है या ईसाई है।"11 ये उनकी अपनी निराधार कामनाएँ है। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो अपने प्रमाण पेश करो।" ॥111॥ ————————— 11. अर्थात् यहूदियों की दृष्टि में केवल यहूदी ही जन्नत में प्रवेश पा सकते हैं और ईसाइयों की दृष्टि में केवल ईसाई ही जन्नत में जाएँगे।
بَلَىٰۚ مَنۡ أَسۡلَمَ وَجۡهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنٞ فَلَهُۥٓ أَجۡرُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 112
क्यों नहीं, जिसने भी अपने-आपको अल्लाह के प्रति समर्पित कर दिया और उसका कर्म भी अच्छे से अच्छा हो तो उसका प्रतिदान उसके रब के पास है और ऐसे लोगो के लिए न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे॥112॥
وَقَالَتِ ٱلۡيَهُودُ لَيۡسَتِ ٱلنَّصَٰرَىٰ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَقَالَتِ ٱلنَّصَٰرَىٰ لَيۡسَتِ ٱلۡيَهُودُ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَهُمۡ يَتۡلُونَ ٱلۡكِتَٰبَۗ كَذَٰلِكَ قَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَ مِثۡلَ قَوۡلِهِمۡۚ فَٱللَّهُ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 113
यहूदियों ने कहा, "ईसाईयों की कोई बुनियाद नहीं।" और ईसाइयों ने कहा, "यहूदियों की कोई बुनियाद नहीं।" हालाँकि वे किताब का पाठ करते हैं। इसी तरह की बात उन्होंने भी कही है जो ज्ञान से वंचित है। तो अल्लाह क़ियामत के दिन उनके बीच उस चीज़ के विषय में निर्णय कर देगा, जिसके विषय में वे विभेद कर रहे है॥113॥
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن مَّنَعَ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ أَن يُذۡكَرَ فِيهَا ٱسۡمُهُۥ وَسَعَىٰ فِي خَرَابِهَآۚ أُوْلَٰٓئِكَ مَا كَانَ لَهُمۡ أَن يَدۡخُلُوهَآ إِلَّا خَآئِفِينَۚ لَهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا خِزۡيٞ وَلَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٞ ۝ 114
और उससे बढ़कर अत्याचारी और कौन होगा जिसने अल्लाह की मस्जिदों को उसके नाम के स्मरण से वंचित रखा और उन्हें उजाडंने पर उतारू रहा? ऐसे लोगों को तो बस डरते हुए ही उसमें प्रवेश करना चाहिए था। उनके लिए संसार में रुसवाई (अपमान) है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना नियत है॥114॥
وَلِلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ فَأَيۡنَمَا تُوَلُّواْ فَثَمَّ وَجۡهُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ ۝ 115
पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, अतः जिस ओर भी तुम रुख़ करो उसी ओर अल्लाह का रुख़ है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा समाईवाला (सर्वव्यापी) सर्वज्ञ है॥115॥
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدٗاۗ سُبۡحَٰنَهُۥۖ بَل لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ كُلّٞ لَّهُۥ قَٰنِتُونَ ۝ 116
कहते हैं, अल्लाह औलाद रखता है -— महिमावाला है वह! (पूरब और पश्चिम हीं नहीं, बल्कि) आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, उसी का है। सभी उसके आज्ञाकारी हैं॥116॥
بَدِيعُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَإِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ ۝ 117
वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि "हो जा" और वह हो जाता है॥117॥
وَقَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَ لَوۡلَا يُكَلِّمُنَا ٱللَّهُ أَوۡ تَأۡتِينَآ ءَايَةٞۗ كَذَٰلِكَ قَالَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِم مِّثۡلَ قَوۡلِهِمۡۘ تَشَٰبَهَتۡ قُلُوبُهُمۡۗ قَدۡ بَيَّنَّا ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يُوقِنُونَ ۝ 118
जिन्हें ज्ञान नहीं हैं, वे कहते हैं, "अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता? या कोई निशानी हमारे पास आ जाए।" इसी प्रकार इनसे पहले के लोग भी कह चुके हैं। इन सबके दिल एक जैसे हैं। हम खोल-खोलकर निशानियाँ उन लोगों के लिए बयान कर चुके हैं जो विश्वास करें॥118॥
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِيرٗا وَنَذِيرٗاۖ وَلَا تُسۡـَٔلُ عَنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 119
निश्चित रूप से हमने तुम्हें हक़ के साथ शुभ-सूचना देनेवाला और डरानेवाला बनाकर भेजा। भड़कती आग में पड़नेवालों के विषय में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा॥119॥
وَلَن تَرۡضَىٰ عَنكَ ٱلۡيَهُودُ وَلَا ٱلنَّصَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمۡۗ قُلۡ إِنَّ هُدَى ٱللَّهِ هُوَ ٱلۡهُدَىٰۗ وَلَئِنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَآءَهُم بَعۡدَ ٱلَّذِي جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا نَصِيرٍ ۝ 120
न यहूदी तुमसे कभी राज़ी होनेवाले हैं और न ईसाई जब तक कि तुम अनके पंथ पर न चलने लग जाओ। कह दो, "अल्लाह का मार्गदर्शन ही वास्तविक मार्गदर्शन है।" और यदि उस ज्ञान के पश्चात जो तुम्हारे पास आ चुका है, तुमने उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो अल्लाह से बचानेवाला न तो तुम्हारा कोई मित्र होगा और न सहायक॥120॥
ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَتۡلُونَهُۥ حَقَّ تِلَاوَتِهِۦٓ أُوْلَٰٓئِكَ يُؤۡمِنُونَ بِهِۦۗ وَمَن يَكۡفُرۡ بِهِۦ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ ۝ 121
जिन लोगों को हमने किताब दी है उनमें वे लोग जो उसे उस तरह पढ़ते हैं जैसा कि उसके पढ़ने का हक़ है, वही उसपर ईमान ला रहे हैं, और जो उसका इनकार करेंगे, वही घाटे में रहनेवाले हैं॥121॥
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِيَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ وَأَنِّي فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 122
ऐ इसराईल की सन्तान! मेरी उस कृपा को याद करो जो मैंने तुमपर की थी और यह कि मैंने तुम्हें संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की॥122॥
وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا لَّا تَجۡزِي نَفۡسٌ عَن نَّفۡسٖ شَيۡـٔٗا وَلَا يُقۡبَلُ مِنۡهَا عَدۡلٞ وَلَا تَنفَعُهَا شَفَٰعَةٞ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ ۝ 123
और उस दिन से डरो, जब कोई न किसी के काम आएगा, न किसी की ओर से अर्थदण्‍ड स्वीकार किया जाएगा, और न कोई सिफ़ारिश ही उसे लाभ पहुँचा सकेगी, और न उनको कोई सहायता ही पहुँच सकेगी॥123॥
۞وَإِذِ ٱبۡتَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِـۧمَ رَبُّهُۥ بِكَلِمَٰتٖ فَأَتَمَّهُنَّۖ قَالَ إِنِّي جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامٗاۖ قَالَ وَمِن ذُرِّيَّتِيۖ قَالَ لَا يَنَالُ عَهۡدِي ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 124
और याद करो जब इबराहीम की परीक्षा उसके रब ने कुछ बातों में ली तो उसने उसको पूरा कर दिखाया। उसने कहा (रब ने) ,"मैं तुझे सारे इनसानों का पेशवा बनानेवाला हूँ।" उसने निवेदन किया, " और मेरी सन्तान में से भी।" उसने कहा, (रब ने) "ज़ालिम मेरे इस वादे के अन्तर्गत नहीं आ सकते।"॥124॥
وَإِذۡ جَعَلۡنَا ٱلۡبَيۡتَ مَثَابَةٗ لِّلنَّاسِ وَأَمۡنٗا وَٱتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبۡرَٰهِـۧمَ مُصَلّٗىۖ وَعَهِدۡنَآ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ أَن طَهِّرَا بَيۡتِيَ لِلطَّآئِفِينَ وَٱلۡعَٰكِفِينَ وَٱلرُّكَّعِ ٱلسُّجُودِ ۝ 125
और याद करो जब हमने इस घर (काबा) को लोगों को लिए केन्द्र और शान्तिस्थल बनाया — और, "इबराहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो!" — और इबराहीम और इसमाईल को ज़िम्मेदार बनाया। "तुम मेरे इस घर को तवाफ़ करनेवालों और एतिकाफ़ करनेवालों के लिए और रुकू और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखो।" ॥125॥
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَٰذَا بَلَدًا ءَامِنٗا وَٱرۡزُقۡ أَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلثَّمَرَٰتِ مَنۡ ءَامَنَ مِنۡهُم بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۚ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُۥ قَلِيلٗا ثُمَّ أَضۡطَرُّهُۥٓ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلنَّارِۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 126
और याद करो जब इबराहीम ने कहा, "ऐ मेरे रब! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासियों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएँ।" (रब ने) कहा, "और जो इनकार करेगा थोड़ा फ़ायदा तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है!"॥126॥
وَإِذۡ يَرۡفَعُ إِبۡرَٰهِـۧمُ ٱلۡقَوَاعِدَ مِنَ ٱلۡبَيۡتِ وَإِسۡمَٰعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلۡ مِنَّآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 127
और याद करो जब इबराहीम और इसमाईल इस घर की बुनियादें उठा रहे थे, (तो उन्होंने प्रार्थना की), "ऐ हमारे रब! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले, निस्संदेह तू सुनता-जानता है॥127॥
رَبَّنَا وَٱجۡعَلۡنَا مُسۡلِمَيۡنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَآ أُمَّةٗ مُّسۡلِمَةٗ لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبۡ عَلَيۡنَآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 128
ऐ हमारे रब! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना; और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा क़ुबूल कर। निस्संदेह तू तौबा क़ुबूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है॥128॥
رَبَّنَا وَٱبۡعَثۡ فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡهُمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَيُزَكِّيهِمۡۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 129
ऐ हमारे रब! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे। निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है॥129॥
وَمَن يَرۡغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبۡرَٰهِـۧمَ إِلَّا مَن سَفِهَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَقَدِ ٱصۡطَفَيۡنَٰهُ فِي ٱلدُّنۡيَاۖ وَإِنَّهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 130
कौन है जो इबराहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने दुनिया में चुन लिया था और निस्संदेह आख़िरत में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी॥130॥
إِذۡ قَالَ لَهُۥ رَبُّهُۥٓ أَسۡلِمۡۖ قَالَ أَسۡلَمۡتُ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 131
क्योंकि जब उससे रब ने कहा, "मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो जा।" उसने कहा, "मैं सारे संसार के रब का मुस्लिम हो गया।"॥131॥
وَوَصَّىٰ بِهَآ إِبۡرَٰهِـۧمُ بَنِيهِ وَيَعۡقُوبُ يَٰبَنِيَّ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰ لَكُمُ ٱلدِّينَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ ۝ 132
और इसी की वसीयत इबराहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी (अपनी सन्तानों को की) कि, "ऐ मेरे बेटो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन (धर्म) चुना है, तो इस्लाम (ईश-आज्ञापालन) के अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारी मृत्यु न हो।"12॥132॥ —————————— 12. अर्थात् तुम जीवन के अंतिम क्षण तक मुस्लिम (आज्ञाकारी) ही रहना।
أَمۡ كُنتُمۡ شُهَدَآءَ إِذۡ حَضَرَ يَعۡقُوبَ ٱلۡمَوۡتُ إِذۡ قَالَ لِبَنِيهِ مَا تَعۡبُدُونَ مِنۢ بَعۡدِيۖ قَالُواْ نَعۡبُدُ إِلَٰهَكَ وَإِلَٰهَ ءَابَآئِكَ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ إِلَٰهٗا وَٰحِدٗا وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ۝ 133
(क्या तुम इबराहीम के वसीयत करते समय मौजूद थे?) या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया? जब उसने अपने बेटों से कहा, "तुम मेरे पश्चात् किसकी इबादत करोगे?" उन्होंने कहा, "हम आपके इष्ट-पूज्य और आपके पूर्वज इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ के इष्ट-पूज्य की बन्दगी करेंगे — जो अकेला इष्ट-पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।"॥133॥
تِلۡكَ أُمَّةٞ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 134
वह एक गिरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसका है, और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारा है। और जो कुछ वे करते रहे उसके विषय में तुमसे कोई पूछताछ न की जाएगी॥134॥
وَقَالُواْ كُونُواْ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰ تَهۡتَدُواْۗ قُلۡ بَلۡ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِـۧمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 135
वे कहते हैं, "यहूदी या ईसाई हो जाओ तो मार्ग पा लोगे।" कहो, "नहीं, बल्कि इबराहीम का पंथ अपनाओ जो एक (अल्लाह) का हो गया था, और वह बहुदेववादियों में से न था।"॥135॥
قُولُوٓاْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡنَا وَمَآ أُنزِلَ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَمَآ أُوتِيَ مُوسَىٰ وَعِيسَىٰ وَمَآ أُوتِيَ ٱلنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمۡ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّنۡهُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ ۝ 136
कहो, "हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी ओर उतरी और जो इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उसकी संतान की ओर उतरी, और जो मूसा और ईसा को मिली, और जो सभी नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान की गई। हम उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम केवल उसी के आज्ञाकारी हैं।"॥136॥
فَإِنۡ ءَامَنُواْ بِمِثۡلِ مَآ ءَامَنتُم بِهِۦ فَقَدِ ٱهۡتَدَواْۖ وَّإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا هُمۡ فِي شِقَاقٖۖ فَسَيَكۡفِيكَهُمُ ٱللَّهُۚ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 137
फिर यदि वे उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो उन्होंने मार्ग पा लिया। और यदि वे मुँह मोड़ें, तो फिर वही विरोध में पड़े हुए हैं। अतः तुम्हारी जगह स्वयं अल्लाह उनसे निबटने के लिए काफ़ी है; वह सब कुछ सुनता, जानता है॥137॥
صِبۡغَةَ ٱللَّهِ وَمَنۡ أَحۡسَنُ مِنَ ٱللَّهِ صِبۡغَةٗۖ وَنَحۡنُ لَهُۥ عَٰبِدُونَ ۝ 138
(कहो,) "अल्लाह का रंग ग्रहण करो, उसके रंग से अच्छा और किसका रंह हो सकता है? और हम तो उसी की बन्दगी करते हैं।"॥138॥
قُلۡ أَتُحَآجُّونَنَا فِي ٱللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡ وَلَنَآ أَعۡمَٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَٰلُكُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُخۡلِصُونَ ۝ 139
कहो, "क्या तुम अल्लाह के विषय में हमसे झगड़ते हो, हालाँकि वही हमारा रब भी है, और तुम्हारा रब भी? और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। और हम तो बस निरे उसी के हैं।"॥139॥
أَمۡ تَقُولُونَ إِنَّ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطَ كَانُواْ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰۗ قُلۡ ءَأَنتُمۡ أَعۡلَمُ أَمِ ٱللَّهُۗ وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَتَمَ شَهَٰدَةً عِندَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 140
या तुम कहते हो कि इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान सब के सब यहूदी या ईसाई थे? कहो, "तुम अधिक जानते हो या अल्लाह? और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसके पास अल्लाह की ओर से आई हुई कोई गवाही हो, और वह उसे छिपाए? और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।"॥140॥
تِلۡكَ أُمَّةٞ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 141
वह एक गिरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसके लिए है और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारे लिए है। और तुमसे उसके विषय में न पूछा जाएगा, जो कुछ वे करते रहे है॥141॥
۞سَيَقُولُ ٱلسُّفَهَآءُ مِنَ ٱلنَّاسِ مَا وَلَّىٰهُمۡ عَن قِبۡلَتِهِمُ ٱلَّتِي كَانُواْ عَلَيۡهَاۚ قُل لِّلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ يَهۡدِي مَن يَشَآءُ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 142
मूर्ख लोग अब कहेंगे, "उन्हें उनके उस क़िबले (उपासना-दिशा) से, जिस पर वे थे किस ची़ज़ ने फेर दिया?" कहो, "पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के हैं, वह जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है।"॥142॥
وَكَذَٰلِكَ جَعَلۡنَٰكُمۡ أُمَّةٗ وَسَطٗا لِّتَكُونُواْ شُهَدَآءَ عَلَى ٱلنَّاسِ وَيَكُونَ ٱلرَّسُولُ عَلَيۡكُمۡ شَهِيدٗاۗ وَمَا جَعَلۡنَا ٱلۡقِبۡلَةَ ٱلَّتِي كُنتَ عَلَيۡهَآ إِلَّا لِنَعۡلَمَ مَن يَتَّبِعُ ٱلرَّسُولَ مِمَّن يَنقَلِبُ عَلَىٰ عَقِبَيۡهِۚ وَإِن كَانَتۡ لَكَبِيرَةً إِلَّا عَلَى ٱلَّذِينَ هَدَى ٱللَّهُۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِيعَ إِيمَٰنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِٱلنَّاسِ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٞ ۝ 143
और इसी प्रकार हमने तुम्हें बीच का एक उत्तम समुदाय बनाया है, ताकि तुम सारे मनुष्यों पर गवाह हो, और रसूल तुमपर गवाह हो। और जिस (क़िबले) पर तुम रहे हो उसे तो हमने केवल इसलिए क़िबला बनाया था कि जो लोग पीठ-पीछे फिर जानेवाले हैं, उनसे हम उनको अलग जान लें जो रसूल का अनुसरण करते हैं। और यह बात बहुत भारी (अप्रिय) है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया है। और अल्लाह ऐसा नहीं कि वह तुम्हारे ईमान को अकारथ कर दे, अल्लाह तो इनसानों के लिए अत्यन्त करूणामय, दयावान है॥143॥
قَدۡ نَرَىٰ تَقَلُّبَ وَجۡهِكَ فِي ٱلسَّمَآءِۖ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبۡلَةٗ تَرۡضَىٰهَاۚ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَيۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥۗ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ لَيَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا يَعۡمَلُونَ ۝ 144
हम आकाश में तुम्हारे मुँह की गर्दिश देख रहे हैं, तो हम अवश्य ही तुम्हें उसी क़िबले का अधिकारी बना देंगे जिसे तुम पसन्द करते हो। अतः मस्जिदे-हराम (काबा) की ओर अपना रुख़ करो। और जहाँ कहीं भी हो अपने मुँह उसी की ओर करो — निश्चय ही जिन लोगों को किताब मिली थी, वे भली-भाँति जानते हैं कि वही उनके रब की ओर से हक़ है, इसके बावजूद जो कुछ वे कर रहे हैं अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है॥144॥
وَلَئِنۡ أَتَيۡتَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ بِكُلِّ ءَايَةٖ مَّا تَبِعُواْ قِبۡلَتَكَۚ وَمَآ أَنتَ بِتَابِعٖ قِبۡلَتَهُمۡۚ وَمَا بَعۡضُهُم بِتَابِعٖ قِبۡلَةَ بَعۡضٖۚ وَلَئِنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَآءَهُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ إِنَّكَ إِذٗا لَّمِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 145
यदि तुम उन लोगों के पास, जिन्हें किताब दी गई थी, कोई भी निशानी ले आओ, फिर भी वे तुम्हारे क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और तुम भी उसके क़िबले का अनुसरण करनेवाले नहीं हो। और वे स्वयं परस्पर एक-दूसरे के क़िबले का अनुसरण करनेवाले नहीं हैं। और यदि तुमने उस ज्ञान के पश्चात, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो निश्चय ही तुम्हारी गणना ज़ालिमों में होगी॥145॥
ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَعۡرِفُونَهُۥ كَمَا يَعۡرِفُونَ أَبۡنَآءَهُمۡۖ وَإِنَّ فَرِيقٗا مِّنۡهُمۡ لَيَكۡتُمُونَ ٱلۡحَقَّ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ ۝ 146
जिन लोगों को हमने किताब दी है वे उसे पहचानते हैं, जैसे अपने बेटों को पहचानते हैं और उनमें से कुछ सत्य को जान-बूझकर छिपा रहे हैं॥146॥
ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُمۡتَرِينَ ۝ 147
सत्य तुम्हारे रब की ओर से है। अतः तुम सन्देह करनेवालों में से कदापि न होना॥147॥
وَلِكُلّٖ وِجۡهَةٌ هُوَ مُوَلِّيهَاۖ فَٱسۡتَبِقُواْ ٱلۡخَيۡرَٰتِۚ أَيۡنَ مَا تَكُونُواْ يَأۡتِ بِكُمُ ٱللَّهُ جَمِيعًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 148
प्रत्येक की एक ही दिशा है, वह उसी की ओर मुख किेए हुए है, तो तुम भलाइयों में अग्रसरता दिखाओ। जहाँ कहीं भी तुम होगे अल्लाह तुम सबको एकत्र करेगा। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥148॥
وَمِنۡ حَيۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۖ وَإِنَّهُۥ لَلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 149
और जहाँ से भी तुम निकलो, ’मस्जिदे-हराम’ (काबा) की ओर अपना मुँह फेर लिया करो। निस्संदेह यही तुम्हारे रब की ओर से हक़ है। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है॥149॥
وَمِنۡ حَيۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَيۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَيۡكُمۡ حُجَّةٌ إِلَّا ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡهُمۡ فَلَا تَخۡشَوۡهُمۡ وَٱخۡشَوۡنِي وَلِأُتِمَّ نِعۡمَتِي عَلَيۡكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ۝ 150
जहाँ से भी तुम निकलो, 'मस्जिदे हराम' की ओर अपना मुँह फेर लिया करो, और जहाँ कहीं भी तुम हो उसी की ओर मुँह कर लिया करो, ताकि लोगों के पास तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई ठोस प्रणाम बाक़ी न रहे - सिवाय उन लोगों के जो उनमें ज़ालिम हैं, तुम उनसे न डरो, मुझसे ही डरो - और ताकि मैं तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दूँ, और ताकि तुम सीधी राह चलो॥150॥
كَمَآ أَرۡسَلۡنَا فِيكُمۡ رَسُولٗا مِّنكُمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِنَا وَيُزَكِّيكُمۡ وَيُعَلِّمُكُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَيُعَلِّمُكُم مَّا لَمۡ تَكُونُواْ تَعۡلَمُونَ ۝ 151
जैसा कि हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है, तुम्हें निखारता है, और तुम्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम जानते न थे॥151॥
فَٱذۡكُرُونِيٓ أَذۡكُرۡكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِي وَلَا تَكۡفُرُونِ ۝ 152
अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना॥152॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱسۡتَعِينُواْ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّٰبِرِينَ ۝ 153
ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त। करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते हैं॥153॥
وَلَا تَقُولُواْ لِمَن يُقۡتَلُ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَمۡوَٰتُۢۚ بَلۡ أَحۡيَآءٞ وَلَٰكِن لَّا تَشۡعُرُونَ ۝ 154
और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित हैं, परन्तु तुम्हें एहसास (अनुभूति) नहीं होता॥154॥
وَلَنَبۡلُوَنَّكُم بِشَيۡءٖ مِّنَ ٱلۡخَوۡفِ وَٱلۡجُوعِ وَنَقۡصٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡوَٰلِ وَٱلۡأَنفُسِ وَٱلثَّمَرَٰتِۗ وَبَشِّرِ ٱلصَّٰبِرِينَ ۝ 155
और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो॥155॥
ٱلَّذِينَ إِذَآ أَصَٰبَتۡهُم مُّصِيبَةٞ قَالُوٓاْ إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّآ إِلَيۡهِ رَٰجِعُونَ ۝ 156
जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते हैं, "निस्संदेह हम अल्लाह ही के हैं और हम उसी की ओर लौटनेवाले हैं।"॥156॥
أُوْلَٰٓئِكَ عَلَيۡهِمۡ صَلَوَٰتٞ مِّن رَّبِّهِمۡ وَرَحۡمَةٞۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُهۡتَدُونَ ۝ 157
यही लोग हैं जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भी; और यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं॥157॥
۞إِنَّ ٱلصَّفَا وَٱلۡمَرۡوَةَ مِن شَعَآئِرِ ٱللَّهِۖ فَمَنۡ حَجَّ ٱلۡبَيۡتَ أَوِ ٱعۡتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَاۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيۡرٗا فَإِنَّ ٱللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ ۝ 158
निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमरा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाड़ियों ) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है॥158॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡتُمُونَ مَآ أَنزَلۡنَا مِنَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلۡهُدَىٰ مِنۢ بَعۡدِ مَا بَيَّنَّٰهُ لِلنَّاسِ فِي ٱلۡكِتَٰبِ أُوْلَٰٓئِكَ يَلۡعَنُهُمُ ٱللَّهُ وَيَلۡعَنُهُمُ ٱللَّٰعِنُونَ ۝ 159
जो लोग हमारी उतारी हुई खुली निशानियों और मार्गदर्शन को छिपाते हैं, इसके बाद कि हम उन्हें लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर चुके हैं; वही है जिन्हें अल्लाह धिक्कारता है — और सभी धिक्कारनेवाले भी उन्हें धिक्कारते हैं॥159॥
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ وَأَصۡلَحُواْ وَبَيَّنُواْ فَأُوْلَٰٓئِكَ أَتُوبُ عَلَيۡهِمۡ وَأَنَا ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 160
सिवाय उनके जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया, और साफ़-साफ़ बयान कर दिया, तो उनकी तौबा मैं क़ुबूल करूँगा; मैं बड़ा तौबा क़ुबूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान हूँ॥160॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمۡ كُفَّارٌ أُوْلَٰٓئِكَ عَلَيۡهِمۡ لَعۡنَةُ ٱللَّهِ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِينَ ۝ 161
जिन लोगों ने कुफ़्र किया और काफ़िर (इनकार करनेवाले) ही रहकर मरे, वही हैं जिनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और सारे मनुष्यों की, सबकी फिटकार है॥161॥
خَٰلِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ ۝ 162
इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी॥162॥
وَإِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ لَّآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلرَّحۡمَٰنُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 163
तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है, उस कृपाशील और दयावान के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं॥163॥
إِنَّ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱلۡفُلۡكِ ٱلَّتِي تَجۡرِي فِي ٱلۡبَحۡرِ بِمَا يَنفَعُ ٱلنَّاسَ وَمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مِن مَّآءٖ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَآبَّةٖ وَتَصۡرِيفِ ٱلرِّيَٰحِ وَٱلسَّحَابِ ٱلۡمُسَخَّرِ بَيۡنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 164
निस्संदेह आकाशों और धरती की संरचना में, और रात और दिन की अदला-बदली में, और उन नौकाओं में जो लोगों की लाभप्रद चीज़ें लेकर समुद्र (और नदी) में चलती है, और उस पानी में जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर जिसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात् जीवित किया और उसमें हर एक (प्रकार के) जीवधारी को फैलाया और हवाओं को गर्दिश देने में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त होते हैं, उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ हैं जो बुद्धि से काम लें॥164॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَتَّخِذُ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَندَادٗا يُحِبُّونَهُمۡ كَحُبِّ ٱللَّهِۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَشَدُّ حُبّٗا لِّلَّهِۗ وَلَوۡ يَرَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ إِذۡ يَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ أَنَّ ٱلۡقُوَّةَ لِلَّهِ جَمِيعٗا وَأَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعَذَابِ ۝ 165
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह से हटकर दूसरों को उसके समकक्ष ठहराते हैं, उनसे ऐसा प्रेम करते हैं जैसा अल्लाह से प्रेम करना चाहिए। और कुछ ईमानवाले हैं उन्हें सबसे बढ़कर अल्लाह से प्रेम होता है। और ये अत्याचारी (बहुदेववादी) जबकि यातना देखते हैं, यदि इस तथ्य को जान लेते कि शक्ति सारी की सारी अल्लाह ही को प्राप्तव है और यह कि अल्लाह अत्यन्त कठोर यातना देनेवाला है (तो इनकी नीति कुछ और होती)॥165॥
إِذۡ تَبَرَّأَ ٱلَّذِينَ ٱتُّبِعُواْ مِنَ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُواْ وَرَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَ وَتَقَطَّعَتۡ بِهِمُ ٱلۡأَسۡبَابُ ۝ 166
जब वे लोग जिनके पीछे वे चलते थे, यातना को देखकर अपने अनुयायियों से विरक्त हो जाएँगे और उनके सम्बन्ध और सम्पर्क टूट जाएँगे॥166॥
وَقَالَ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُواْ لَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةٗ فَنَتَبَرَّأَ مِنۡهُمۡ كَمَا تَبَرَّءُواْ مِنَّاۗ كَذَٰلِكَ يُرِيهِمُ ٱللَّهُ أَعۡمَٰلَهُمۡ حَسَرَٰتٍ عَلَيۡهِمۡۖ وَمَا هُم بِخَٰرِجِينَ مِنَ ٱلنَّارِ ۝ 167
वे लोग जो उनके पीछे चले थे कहेंगे, "काश! हमें एक बार (फिर संसार में लौटना होता तो जिस तरह आज ये हमसे विरक्त हो रहे हैं, हम भी इनसे विरक्त हो जाते।" इस प्रकार अल्लाह उनके लिए संताप बनाकर उन्हें उनके कर्म दिखाएगा और वे आग (जहन्नम) से निकल न सकेंगे॥167॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ كُلُواْ مِمَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ حَلَٰلٗا طَيِّبٗا وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٌ ۝ 168
ऐ लोगो! धरती में जो हलाल और अच्छी-सुथरी चीज़ें हैं उन्हें खाओ और शैतान के पदचिन्हों पर न चलो। निस्संदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है॥168॥
إِنَّمَا يَأۡمُرُكُم بِٱلسُّوٓءِ وَٱلۡفَحۡشَآءِ وَأَن تَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 169
वह तो बस तुम्हें बुराई और अश्लीलता पर उकसाता है और इसपर कि तुम अल्लाह पर थोपकर वे बातें कहो जो तुम नहीं जानते॥169॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ بَلۡ نَتَّبِعُ مَآ أَلۡفَيۡنَا عَلَيۡهِ ءَابَآءَنَآۚ أَوَلَوۡ كَانَ ءَابَآؤُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَهۡتَدُونَ ۝ 170
और जब उनसे कहा जाता है, "अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।" तो कहते हैं, "नहीं, बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों?॥170॥
وَمَثَلُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ كَمَثَلِ ٱلَّذِي يَنۡعِقُ بِمَا لَا يَسۡمَعُ إِلَّا دُعَآءٗ وَنِدَآءٗۚ صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡيٞ فَهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ ۝ 171
इन इनकार करनेवालों की मिसाल ऐसी है जैसे कोई ऐसी जीज़ों को पुकारे जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ न सुनती और समझती हों। ये बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धें हैं; इसलिए ये कुछ भी नहीं समझ सकते॥171॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِلَّهِ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ ۝ 172
ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी-सुथरी चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की हैं उनमें से खाओ और अल्लाह के आगे कृतज्ञता दिखलाओ, यदि तुम उसी की बन्दगी करते हो॥172॥
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَيۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ بِهِۦ لِغَيۡرِ ٱللَّهِۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَيۡرَ بَاغٖ وَلَا عَادٖ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ ۝ 173
उसने तो तुमपर केवल मुर्दार और ख़ून और सूअर का माँस और जिसपर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। इसपर भी जो बहुत मजबूर और विवश हो जाए, वह अवज्ञा करनेवाला न हो और न सीमा से आगे बढ़नेवाला हो तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है॥173॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡتُمُونَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَيَشۡتَرُونَ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلًا أُوْلَٰٓئِكَ مَا يَأۡكُلُونَ فِي بُطُونِهِمۡ إِلَّا ٱلنَّارَ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ ۝ 174
जो लोग उस चीज़ को छिपाते हैं जो अल्लाह ने अपनी किताब में से उतारी है और उसके बदले थोड़े मूल्य का सौदा करते हैं, वे तो बस आग खाकर अपने पेट भर रहे है; और क़ियामत के दिन अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न उन्हें निखारेगा; और उनके लिए दुखद यातना है॥174॥
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡعَذَابَ بِٱلۡمَغۡفِرَةِۚ فَمَآ أَصۡبَرَهُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ ۝ 175
यहीं लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले पथभ्रष्टता मोल ली; और क्षमा के बदले यातना के ग्राहक बने। तो आग को सहन करने के लिए उनका उत्साह कितना बढ़ा हुआ है!॥175॥
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ نَزَّلَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِي ٱلۡكِتَٰبِ لَفِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ ۝ 176
वह (यातना) इसलिए होगी कि अल्लाह ने तो हक़ के साथ किताब उतारी, किन्तु जिन लोगों ने किताब के मामले में विभेद किया वे हठ और विरोध में बहुत दूर निकल गए॥176॥
۞لَّيۡسَ ٱلۡبِرَّ أَن تُوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ قِبَلَ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَلَٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ وَٱلۡكِتَٰبِ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ وَءَاتَى ٱلۡمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِۦ ذَوِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِيلِ وَٱلسَّآئِلِينَ وَفِي ٱلرِّقَابِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُوفُونَ بِعَهۡدِهِمۡ إِذَا عَٰهَدُواْۖ وَٱلصَّٰبِرِينَ فِي ٱلۡبَأۡسَآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَحِينَ ٱلۡبَأۡسِۗ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ صَدَقُواْۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ۝ 177
नेकी केवल यह नहीं है कि तुम अपने मुँह पूरब और पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि नेकी तो उसकी नेकी है जो अल्लाह, अन्तिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया और माल, उसके प्रति प्रेम के बावजूद नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और माँगनेवालों को दिया और गर्दनें छुड़ाने में भी, और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अपने वचन को ऐसे लोग पूरा करनेवाले हैं जब वचन दें; और तंगी और विशेष रूप से शारीरिक कष्टों में और लड़ाई के समय में जमनेवाले हैं, तो ऐसे ही लोग हैं जो सच्चे सिद्ध हुए और वही लोग डर रखनेवाले हैं॥177॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِصَاصُ فِي ٱلۡقَتۡلَىۖ ٱلۡحُرُّ بِٱلۡحُرِّ وَٱلۡعَبۡدُ بِٱلۡعَبۡدِ وَٱلۡأُنثَىٰ بِٱلۡأُنثَىٰۚ فَمَنۡ عُفِيَ لَهُۥ مِنۡ أَخِيهِ شَيۡءٞ فَٱتِّبَاعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَأَدَآءٌ إِلَيۡهِ بِإِحۡسَٰنٖۗ ذَٰلِكَ تَخۡفِيفٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَرَحۡمَةٞۗ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ بَعۡدَ ذَٰلِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِيمٞ ۝ 178
ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीक़े से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भी जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है॥178॥
وَلَكُمۡ فِي ٱلۡقِصَاصِ حَيَوٰةٞ يَٰٓأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ۝ 179
ऐ बुद्धि और समझवालो! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो॥179॥
كُتِبَ عَلَيۡكُمۡ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ إِن تَرَكَ خَيۡرًا ٱلۡوَصِيَّةُ لِلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 180
जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए, यदि वह कुछ माल छोड़ रहा हो, तो माँ-बाप और नातेदारों को भलाई की वसीयत करना तुमपर अनिवार्य किया गया। यह हक़ है डर रखनेवालों पर॥180॥
فَمَنۢ بَدَّلَهُۥ بَعۡدَ مَا سَمِعَهُۥ فَإِنَّمَآ إِثۡمُهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ يُبَدِّلُونَهُۥٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ ۝ 181
तो जो कोई उसके सुनने के पश्चात् उसे बदल डाले तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों पर होगा जो इसे बदलेंगे। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुननेवाला और जाननेवाला है॥181॥
فَمَنۡ خَافَ مِن مُّوصٖ جَنَفًا أَوۡ إِثۡمٗا فَأَصۡلَحَ بَيۡنَهُمۡ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 182
फिर जिस किसी वसीयत करनेवाले को न्याय से किसी प्रकार के हटने या हक़़ मारने की आशंका हो, इस कारण उनके (वारिसों के) बीच सुधार की व्यवस्था कर दे, तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है॥182॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ۝ 183
ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ॥183॥
أَيَّامٗا مَّعۡدُودَٰتٖۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٖ فَعِدَّةٞ مِّنۡ أَيَّامٍ أُخَرَۚ وَعَلَى ٱلَّذِينَ يُطِيقُونَهُۥ فِدۡيَةٞ طَعَامُ مِسۡكِينٖۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَيۡرٗا فَهُوَ خَيۡرٞ لَّهُۥۚ وَأَن تَصُومُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 184
गिनती के कुछ दिनों के लिए — इसपर भी तुममें कोई बीमार हो, या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में संख्या पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफ़िरों) को इसकी (मुहताजों को खिलाने की) सामर्थ्य हो, उनके ज़िम्मे बदले में एक मुहताज का खाना है। फिर जो अपनी ख़ुशी से कुछ और नेकी करे तो यह उसी के लिए अच्छा है और यह कि तुम रोज़ा रखो तो तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जानो॥184॥
شَهۡرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ فِيهِ ٱلۡقُرۡءَانُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَٰتٖ مِّنَ ٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡفُرۡقَانِۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ ٱلشَّهۡرَ فَلۡيَصُمۡهُۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٖ فَعِدَّةٞ مِّنۡ أَيَّامٍ أُخَرَۗ يُرِيدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلۡيُسۡرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ ٱلۡعُسۡرَ وَلِتُكۡمِلُواْ ٱلۡعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 185
रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथा। अतः तुममें जो कोई इस महीने में मौजूद हो उसे चाहिए कि उसके रोज़े रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नहीं चाहता, (वह तुम्हारे लिए आसानी पैदा कर रहा है) और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो॥185॥
وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌۖ أُجِيبُ دَعۡوَةَ ٱلدَّاعِ إِذَا دَعَانِۖ فَلۡيَسۡتَجِيبُواْ لِي وَلۡيُؤۡمِنُواْ بِي لَعَلَّهُمۡ يَرۡشُدُونَ ۝ 186
और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे सम्बन्ध में पूछें, तो मैं तो निकट ही हूँ, पुकारनेवाले की पुकार का उत्तर देता हूँ, जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा लें॥186॥
أُحِلَّ لَكُمۡ لَيۡلَةَ ٱلصِّيَامِ ٱلرَّفَثُ إِلَىٰ نِسَآئِكُمۡۚ هُنَّ لِبَاسٞ لَّكُمۡ وَأَنتُمۡ لِبَاسٞ لَّهُنَّۗ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَخۡتَانُونَ أَنفُسَكُمۡ فَتَابَ عَلَيۡكُمۡ وَعَفَا عَنكُمۡۖ فَٱلۡـَٰٔنَ بَٰشِرُوهُنَّ وَٱبۡتَغُواْ مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَكُمۡۚ وَكُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكُمُ ٱلۡخَيۡطُ ٱلۡأَبۡيَضُ مِنَ ٱلۡخَيۡطِ ٱلۡأَسۡوَدِ مِنَ ٱلۡفَجۡرِۖ ثُمَّ أَتِمُّواْ ٱلصِّيَامَ إِلَى ٱلَّيۡلِۚ وَلَا تُبَٰشِرُوهُنَّ وَأَنتُمۡ عَٰكِفُونَ فِي ٱلۡمَسَٰجِدِۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَقۡرَبُوهَاۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ ءَايَٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ ۝ 187
तुम्हारे लिए रोज़ो की रातों में अपनी औरतों के पास जाना जायज़ (वैध) हुआ। वे तुम्हारे परिधान (लिबास) हैं और तुम उनका परिधान हो। अल्लाह को मालूम हो गया कि तुम लोग अपने-आपसे कपट कर रहे थे, तो उसने तुमपर कृपा की और तुम्हें क्षमा कर दिया। तो अब तुम उनसे मिलो-जुलो और अल्लाह ने जो कुछ तुम्हारे लिए लिख रखा है, उसे तलब करो। और खाओ और पियो यहाँ तक कि तुम्हें उषाकाल की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से स्पष्टा दिखाई दे जाए। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और जब तुम मस्जिदों में ’एतिकाफ़’ की हालत में हो, तो तुम उनसे (पत्नियों से) न मिलो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं। अतः इनके निकट न जाना। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे डर रखनेवाले बनें॥187॥
وَلَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَكُم بَيۡنَكُم بِٱلۡبَٰطِلِ وَتُدۡلُواْ بِهَآ إِلَى ٱلۡحُكَّامِ لِتَأۡكُلُواْ فَرِيقٗا مِّنۡ أَمۡوَٰلِ ٱلنَّاسِ بِٱلۡإِثۡمِ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 188
और आपस में तुम एक-दूसरे के माल को अवैध रूप से न खाओ, और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि हक़ मारकर लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको॥188॥
۞يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَهِلَّةِۖ قُلۡ هِيَ مَوَٰقِيتُ لِلنَّاسِ وَٱلۡحَجِّۗ وَلَيۡسَ ٱلۡبِرُّ بِأَن تَأۡتُواْ ٱلۡبُيُوتَ مِن ظُهُورِهَا وَلَٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَأۡتُواْ ٱلۡبُيُوتَ مِنۡ أَبۡوَٰبِهَاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ ۝ 189
वे तुमसे (प्रतिष्ठित) महीनों के विषय में पूछते हैं। कहो, "वे तो लोगों के लिए और हज के लिए नियत हैं। और यह कोई ख़ूबी और नेकी नहीं है कि तुम घरों में उनके पीछे से आओ, बल्कि नेकी तो उसकी है जो (अल्लाह का) डर रखे। तुम घरों में उनके दरवाड़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो॥189॥
وَقَٰتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ يُقَٰتِلُونَكُمۡ وَلَا تَعۡتَدُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُعۡتَدِينَ ۝ 190
और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ें, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता॥190॥
وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَيۡثُ ثَقِفۡتُمُوهُمۡ وَأَخۡرِجُوهُم مِّنۡ حَيۡثُ أَخۡرَجُوكُمۡۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَشَدُّ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۚ وَلَا تُقَٰتِلُوهُمۡ عِندَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَٰتِلُوكُمۡ فِيهِۖ فَإِن قَٰتَلُوكُمۡ فَٱقۡتُلُوهُمۡۗ كَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 191
और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो -— ऐसे विधर्मियो का ऐसा ही बदला है॥191॥
فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 192
फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, अत्यन्त दयावान है॥192॥
وَقَٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةٞ وَيَكُونَ ٱلدِّينُ لِلَّهِۖ فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَلَا عُدۡوَٰنَ إِلَّا عَلَى ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 193
तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं॥193॥
ٱلشَّهۡرُ ٱلۡحَرَامُ بِٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡحُرُمَٰتُ قِصَاصٞۚ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَٱعۡتَدُواْ عَلَيۡهِ بِمِثۡلِ مَا ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 194
प्रतिष्ठित महीना बराबर है प्रतिष्ठित महीने के, और समस्त प्रतिष्ठाओं का भी बराबरी का बदला है। अतः जो तुमपर ज़्यादती करे, तो जैसी ज़्यादती वह तुम पर करे, तुम भी उसी प्रकार उससे ज़्यादती का बदला ले सकते हो। और अल्लाह का डर रखो और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है॥194॥
وَأَنفِقُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا تُلۡقُواْ بِأَيۡدِيكُمۡ إِلَى ٱلتَّهۡلُكَةِ وَأَحۡسِنُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 195
और अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो और अपने ही हाथों से अपने-आपको तबाही में न डालो, और अच्छे से अच्छा तरीक़ा अपनाओ। निस्संदेह अल्लाह अच्छे से अच्छा काम करनेवालों को पसन्द करता है॥195॥
وَأَتِمُّواْ ٱلۡحَجَّ وَٱلۡعُمۡرَةَ لِلَّهِۚ فَإِنۡ أُحۡصِرۡتُمۡ فَمَا ٱسۡتَيۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡيِۖ وَلَا تَحۡلِقُواْ رُءُوسَكُمۡ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ ٱلۡهَدۡيُ مَحِلَّهُۥۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوۡ بِهِۦٓ أَذٗى مِّن رَّأۡسِهِۦ فَفِدۡيَةٞ مِّن صِيَامٍ أَوۡ صَدَقَةٍ أَوۡ نُسُكٖۚ فَإِذَآ أَمِنتُمۡ فَمَن تَمَتَّعَ بِٱلۡعُمۡرَةِ إِلَى ٱلۡحَجِّ فَمَا ٱسۡتَيۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡيِۚ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ ثَلَٰثَةِ أَيَّامٖ فِي ٱلۡحَجِّ وَسَبۡعَةٍ إِذَا رَجَعۡتُمۡۗ تِلۡكَ عَشَرَةٞ كَامِلَةٞۗ ذَٰلِكَ لِمَن لَّمۡ يَكُنۡ أَهۡلُهُۥ حَاضِرِي ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ ۝ 196
और हज और उमरा जो कि अल्लाह के लिए हैं, पूरे करो। फिर यदि तुम घिर जाओ, तो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश कर दो। और अपने सिर न मूड़ो जब तक कि क़ुरबानी अपने ठिकाने पर न पहुँच जाए, किन्तु जो व्यक्ति तुममें बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो, तो रोज़े या सदक़ा या क़रबानी के रूप में फ़िदया देना होगा। फिर जब तुम पर से ख़तरा टल जाए, तो जो व्यक्ति हज तक उमरा से लाभान्वित हो, तो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश करे, और जिसको उपलब्ध न हो तो हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े रखे और सात दिन के रोज़े जब तुम वापस हो, ये पूरे दस हुए। यह उसके लिए है जिसके बाल-बच्चे मस्जिदे-हराम के निकट न रहते हों। अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह कठोर दण्‍ड देनेवाला है॥196॥
ٱلۡحَجُّ أَشۡهُرٞ مَّعۡلُومَٰتٞۚ فَمَن فَرَضَ فِيهِنَّ ٱلۡحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي ٱلۡحَجِّۗ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ يَعۡلَمۡهُ ٱللَّهُۗ وَتَزَوَّدُواْ فَإِنَّ خَيۡرَ ٱلزَّادِ ٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُونِ يَٰٓأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 197
हज के महीने जाने-पहचाने और निश्चित हैं, तो जो इनमें हज करने का निश्चय करे, तो हज में न तो काम-वासना की बातें हो सकती है और न अवज्ञा और न लड़ाई-झगड़े की कोई बात। और जो भलाई के काम भी तुम करोंगे अल्लाह उसे जानता होगा। और (ईश-भय का ) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है। और ऐ बुद्धि और समझवालो! मेरा डर रखो॥197॥
لَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَبۡتَغُواْ فَضۡلٗا مِّن رَّبِّكُمۡۚ فَإِذَآ أَفَضۡتُم مِّنۡ عَرَفَٰتٖ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ عِندَ ٱلۡمَشۡعَرِ ٱلۡحَرَامِۖ وَٱذۡكُرُوهُ كَمَا هَدَىٰكُمۡ وَإِن كُنتُم مِّن قَبۡلِهِۦ لَمِنَ ٱلضَّآلِّينَ ۝ 198
इसमें तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने रब का अनुग्रह तलब करो। फिर जब तुम अरफ़ात से चलो तो मशअरे-हराम (मुज़दल्फ़ा) के निकट ठहरकर अल्लाह को याद करो, और उसे याद करो जैसाकि उसने तुम्हें बताया है, और इससे पहले तुम पथभ्रष्ट थे॥198॥
ثُمَّ أَفِيضُواْ مِنۡ حَيۡثُ أَفَاضَ ٱلنَّاسُ وَٱسۡتَغۡفِرُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 199
इसके पश्चात जहाँ से और सब लोग चलें, वहीं से तुम भी चलो, और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है॥199॥
فَإِذَا قَضَيۡتُم مَّنَٰسِكَكُمۡ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَذِكۡرِكُمۡ ءَابَآءَكُمۡ أَوۡ أَشَدَّ ذِكۡرٗاۗ فَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَقُولُ رَبَّنَآ ءَاتِنَا فِي ٱلدُّنۡيَا وَمَا لَهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنۡ خَلَٰقٖ ۝ 200
फिर जब तुम अपनी हज सम्बन्धी रीतियों को पूरा कर चुको तो अल्लाह को याद करो जैसे अपने बाप-दादा को याद करते रहे हो, बल्कि उससे भी बढ़कर याद करो। फिर लोगों सें कोई तो ऐसा है जो कहता है, "हमारे रब! हमें दुनिया में दे दो।" ऐसी हालत में आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं॥200॥
وَمِنۡهُم مَّن يَقُولُ رَبَّنَآ ءَاتِنَا فِي ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗ وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِ حَسَنَةٗ وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ ۝ 201
और उनमें कोई ऐसा है जो कहता है, "हमारे रब! हमें प्रदान कर दुनिया में भी अच्छी दशा और, आख़िरत में भी अच्छा दशा, और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।"॥201॥
أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ نَصِيبٞ مِّمَّا كَسَبُواْۚ وَٱللَّهُ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ ۝ 202
ऐसे ही लोग हैं कि उन्होंने जो कुछ कमाया है उसकी जिंस का हिस्सा उनके लिए नियत है। और अल्लाह जल्द ही हिसाब चुकानेवाला है॥202॥
۞وَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ فِيٓ أَيَّامٖ مَّعۡدُودَٰتٖۚ فَمَن تَعَجَّلَ فِي يَوۡمَيۡنِ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِ وَمَن تَأَخَّرَ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۖ لِمَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّكُمۡ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ ۝ 203
और अल्लाह की याद में गिनती के ये कुछ दिन व्यतीत करो। फिर जो कोई जल्दी करके दो ही दिन में कूच करे तो इसमें उसपर कोई गुनाह नहीं। और जो ठहरा रहे तो इसमें भी उसपर कोई गुनाह नहीं। यह उसके लिेए है जो अल्लाह का डर रखे। और अल्लाह का डर रखो और जान रखो कि उसी के पास तुम इकट्ठा होगे॥203॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُعۡجِبُكَ قَوۡلُهُۥ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَيُشۡهِدُ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا فِي قَلۡبِهِۦ وَهُوَ أَلَدُّ ٱلۡخِصَامِ ۝ 204
लोगों में कोई तो ऐसा है कि इस सांसारिक जीवन के विषय में उसकी बाते तुम्हें बहुत भाती हैं, उस (खोट) के बावजूद जो उसके दिल में होती है, वह अल्लाह को गवाह ठहराता है और झगड़े में वह बड़ा हठी है॥204॥
وَإِذَا تَوَلَّىٰ سَعَىٰ فِي ٱلۡأَرۡضِ لِيُفۡسِدَ فِيهَا وَيُهۡلِكَ ٱلۡحَرۡثَ وَٱلنَّسۡلَۚ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلۡفَسَادَ ۝ 205
और जब वह लौटता है, तो धरती में इसलिए दौड़-धूप करता है कि इसमें बिगाड़ पैदा करे और खेती और नस्ल को तबाह करे, जबकि अल्लाह बिगाड़ को पसन्द नहीं करता॥205॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُ ٱتَّقِ ٱللَّهَ أَخَذَتۡهُ ٱلۡعِزَّةُ بِٱلۡإِثۡمِۚ فَحَسۡبُهُۥ جَهَنَّمُۖ وَلَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ۝ 206
और जब उससे कहा जाता है, "अल्लाह से डर", तो अहंकार उसे और गुनाह पर जमा देता है। अतः उसके लिए तो जहन्नम ही काफ़ी है, और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है! ॥206॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَشۡرِي نَفۡسَهُ ٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ رَءُوفُۢ بِٱلۡعِبَادِ ۝ 207
और लोगों में वह भी है जो अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधन की चाह में अपनी जान खपा देता है। अल्लाह भी अपने ऐसे बन्दों के प्रति अत्यन्त करुणाशील है॥207॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱدۡخُلُواْ فِي ٱلسِّلۡمِ كَآفَّةٗ وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٞ ۝ 208
ऐ ईमान लानेवालो! तुम सब इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान के पदचिन्हो पर न चलो। वह तो तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है॥208॥
فَإِن زَلَلۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡكُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ فَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ ۝ 209
फिर यदि तुम उन स्पष्ट दलीलों के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुकी हैं, फिसल गए, तो भली-भाँति जान रखो कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है॥209॥
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن يَأۡتِيَهُمُ ٱللَّهُ فِي ظُلَلٖ مِّنَ ٱلۡغَمَامِ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ وَقُضِيَ ٱلۡأَمۡرُۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ ۝ 210
क्या वे (इसराईल की सन्तान) बस इसकी प्रतीक्षा कर रहे है कि अल्लाह स्वयं बादलों की छायों में उनके सामने आ जाए और फ़रिश्ते भी, हालाँकि बात तय कर दी गई है? मामले तो अल्लाह ही की ओर लौटते है॥210॥
سَلۡ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ كَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُم مِّنۡ ءَايَةِۭ بَيِّنَةٖۗ وَمَن يُبَدِّلۡ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ ۝ 211
इसराईल की सन्तान से पूछो, हमने उन्हें कितनी खुली-खुली निशानियाँ प्रदान कीं। और जो अल्लाह की नेमत को इसके बाद कि वह उसे पहुँच चुकी हो, बदल डाले, तो निस्संदेह अल्लाह भी कठोर दण्‍ड देनेवाला है॥211॥
زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَيَسۡخَرُونَ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۘ وَٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ فَوۡقَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ وَٱللَّهُ يَرۡزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 212
इनकार करनेवाले सांसारिक जीवन पर रीझे हुए हैं और ईमानवालों का उपहास करते हैं, जबकि जो लोग अल्लाह का डर रखते हैं, वे क़ियामत के दिन उनसे ऊपर होंगे। अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब देता है॥212॥
كَانَ ٱلنَّاسُ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ فَبَعَثَ ٱللَّهُ ٱلنَّبِيِّـۧنَ مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ وَأَنزَلَ مَعَهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ لِيَحۡكُمَ بَيۡنَ ٱلنَّاسِ فِيمَا ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِۚ وَمَا ٱخۡتَلَفَ فِيهِ إِلَّا ٱلَّذِينَ أُوتُوهُ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۖ فَهَدَى ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لِمَا ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِ مِنَ ٱلۡحَقِّ بِإِذۡنِهِۦۗ وَٱللَّهُ يَهۡدِي مَن يَشَآءُ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٍ ۝ 213
सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का, जिनमें वे विभेद कर रहे हैं, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थीं। अतः ईमानवालों का अल्लाह ने अपनी अनुज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है॥213॥
أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا يَأۡتِكُم مَّثَلُ ٱلَّذِينَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلِكُمۖ مَّسَّتۡهُمُ ٱلۡبَأۡسَآءُ وَٱلضَّرَّآءُ وَزُلۡزِلُواْ حَتَّىٰ يَقُولَ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ مَتَىٰ نَصۡرُ ٱللَّهِۗ أَلَآ إِنَّ نَصۡرَ ٱللَّهِ قَرِيبٞ ۝ 214
क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश पा जाओगे, जबकि अभी तुम पर वह सब कुछ नहीं बीता है जो तुमसे पहले के लोगों पर बीत चुका? उनपर तंगियाँ और तकलीफ़ें आईं और उन्हें हिला मारा गया यहाँ तक कि रसूल और उनके साथ के ईमानवाले भी बोल उठे कि अल्लाह की सहायता कब आएगी? जान लो! अल्लाह की सहायता निकट है॥214॥
يَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا يُنفِقُونَۖ قُلۡ مَآ أَنفَقۡتُم مِّنۡ خَيۡرٖ فَلِلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِۗ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٞ ۝ 215
वे तुमसे पूछते हैं, "कितना ख़र्च करें?" कहो, "(पहले यह समझ लो कि) जो माल भी तुमने ख़र्च किया है, वह तो माँ-बाप, नातेदारों और अनाथों, और मुहताजों और मुसाफ़िरों के लिए ख़र्च हुआ है। और जो भलाई भी तुम करो, निस्संदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जान लेगा।॥215॥
كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ وَهُوَ كُرۡهٞ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰٓ أَن تَكۡرَهُواْ شَيۡـٔٗا وَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰٓ أَن تُحِبُّواْ شَيۡـٔٗا وَهُوَ شَرّٞ لَّكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 216
तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।"॥216॥
يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ قِتَالٖ فِيهِۖ قُلۡ قِتَالٞ فِيهِ كَبِيرٞۚ وَصَدٌّ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَكُفۡرُۢ بِهِۦ وَٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَإِخۡرَاجُ أَهۡلِهِۦ مِنۡهُ أَكۡبَرُ عِندَ ٱللَّهِۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَكۡبَرُ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۗ وَلَا يَزَالُونَ يُقَٰتِلُونَكُمۡ حَتَّىٰ يَرُدُّوكُمۡ عَن دِينِكُمۡ إِنِ ٱسۡتَطَٰعُواْۚ وَمَن يَرۡتَدِدۡ مِنكُمۡ عَن دِينِهِۦ فَيَمُتۡ وَهُوَ كَافِرٞ فَأُوْلَٰٓئِكَ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 217
वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते हैं। कहो, "उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की द्रष्टि में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।" और उनका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहें, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग हैं जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले हैं, वे उसी में सदैव रहेंगे॥217॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ وَجَٰهَدُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أُوْلَٰٓئِكَ يَرۡجُونَ رَحۡمَتَ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 218
रहे वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया, वही अल्लाह की दयालुता की आशा रखते हैं। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है॥218॥
۞يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡخَمۡرِ وَٱلۡمَيۡسِرِۖ قُلۡ فِيهِمَآ إِثۡمٞ كَبِيرٞ وَمَنَٰفِعُ لِلنَّاسِ وَإِثۡمُهُمَآ أَكۡبَرُ مِن نَّفۡعِهِمَاۗ وَيَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا يُنفِقُونَۖ قُلِ ٱلۡعَفۡوَۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ ۝ 219
तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते हैं। कहो, "उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी हैं, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।" और वे तुमसे पूछते है : "कितना ख़र्च करें?" कहो, "जो आवश्यकता से अधिक हो।" इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आख़िरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो। ॥219॥
فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۗ وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡيَتَٰمَىٰۖ قُلۡ إِصۡلَاحٞ لَّهُمۡ خَيۡرٞۖ وَإِن تُخَالِطُوهُمۡ فَإِخۡوَٰنُكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ ٱلۡمُفۡسِدَ مِنَ ٱلۡمُصۡلِحِۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَأَعۡنَتَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ ۝ 220
और वे तुमसे अनाथों के विषय में पूछते है। कहो, "उनके सुधार की जो रीति अपनाई जाए अच्छी है। और यदि तुम उन्हें अपने साथ सम्मिलित कर लो तो वे तुम्हारे भाई-बन्धु ही हैं। और अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवाले को बनाव पैदा करनेवाले से अलग पहचानता है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुमको ज़हमत (कठिनाई) में डाल देता। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।"॥220॥
وَلَا تَنكِحُواْ ٱلۡمُشۡرِكَٰتِ حَتَّىٰ يُؤۡمِنَّۚ وَلَأَمَةٞ مُّؤۡمِنَةٌ خَيۡرٞ مِّن مُّشۡرِكَةٖ وَلَوۡ أَعۡجَبَتۡكُمۡۗ وَلَا تُنكِحُواْ ٱلۡمُشۡرِكِينَ حَتَّىٰ يُؤۡمِنُواْۚ وَلَعَبۡدٞ مُّؤۡمِنٌ خَيۡرٞ مِّن مُّشۡرِكٖ وَلَوۡ أَعۡجَبَكُمۡۗ أُوْلَٰٓئِكَ يَدۡعُونَ إِلَى ٱلنَّارِۖ وَٱللَّهُ يَدۡعُوٓاْ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ وَٱلۡمَغۡفِرَةِ بِإِذۡنِهِۦۖ وَيُبَيِّنُ ءَايَٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 221
और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियों का) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला ग़ुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते हैं और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें॥221॥
وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡمَحِيضِۖ قُلۡ هُوَ أَذٗى فَٱعۡتَزِلُواْ ٱلنِّسَآءَ فِي ٱلۡمَحِيضِ وَلَا تَقۡرَبُوهُنَّ حَتَّىٰ يَطۡهُرۡنَۖ فَإِذَا تَطَهَّرۡنَ فَأۡتُوهُنَّ مِنۡ حَيۡثُ أَمَرَكُمُ ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلتَّوَّٰبِينَ وَيُحِبُّ ٱلۡمُتَطَهِّرِينَ ۝ 222
और वे तुमसे मासिक-धर्म के विषय में पूछते हैं। कहो, "वह एक तकलीफ़ और गन्दगी की चीज़ है। अतः मासिक-धर्म के दिनों में स्त्रियों से अलग रहो और उनके पास न जाओ, जबतक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएँ। फिर जब वे भली-भाँति पाक-साफ़ हो जाएँ, तो जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है, उनके पास आओ। निस्संदेह अल्लाह बहुत तौबा करनेवालों को पसन्द करता है और वह उन्हें पसन्द करता है जो स्वच्छता को पसन्द करते हैं॥222॥
نِسَآؤُكُمۡ حَرۡثٞ لَّكُمۡ فَأۡتُواْ حَرۡثَكُمۡ أَنَّىٰ شِئۡتُمۡۖ وَقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّكُم مُّلَٰقُوهُۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 223
तुम्हारी स्त्रियाँ तुम्हारी खेती हैं। अतः जिस प्रकार चाहो तुम अपनी खेती में आओ और अपने लिए आगे भेजो; और अल्लाह से डरते रहो; भली-भाँति जान ले कि तुम्हें उससे मिलना है; और ईमान लानेवालों को शुभ-सूचना दे दो॥223॥
وَلَا تَجۡعَلُواْ ٱللَّهَ عُرۡضَةٗ لِّأَيۡمَٰنِكُمۡ أَن تَبَرُّواْ وَتَتَّقُواْ وَتُصۡلِحُواْ بَيۡنَ ٱلنَّاسِۚ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٞ ۝ 224
अपने नेक और धर्मपरायण होने और लोगों के मध्य सुधारक होने के सिलसिले में अपनी क़समों के द्वारा अल्लाह को आड़ और निशाना न बनाओ कि इन कामों को छोड़ दो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है॥224॥
لَّا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِيٓ أَيۡمَٰنِكُمۡ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا كَسَبَتۡ قُلُوبُكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٞ ۝ 225
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी ऐसी क़समों पर नहीं पकड़ेगा जो यूँ ही मुँह से निकल गई हों, लेकिन उन क़समों पर वह तुम्हें अवश्य पकड़ेगा जो तुम्हारे दिल के इरादे का नतीजा हों। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है॥225॥
لِّلَّذِينَ يُؤۡلُونَ مِن نِّسَآئِهِمۡ تَرَبُّصُ أَرۡبَعَةِ أَشۡهُرٖۖ فَإِن فَآءُو فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 226
जो लोग अपनी स्त्रियों से अलग रहने की क़सम खा बैठें, उनके लिए चार महीने की प्रतीक्षा है। फिर यदि वे पलट आएँ, तो अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है॥226॥
وَإِنۡ عَزَمُواْ ٱلطَّلَٰقَ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ ۝ 227
और यदि वे तलाक़ ही की ठान लें, तो अल्लाह भी सुननेवाला, भली-भाँति जाननेवाला है॥227॥
وَٱلۡمُطَلَّقَٰتُ يَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ ثَلَٰثَةَ قُرُوٓءٖۚ وَلَا يَحِلُّ لَهُنَّ أَن يَكۡتُمۡنَ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ فِيٓ أَرۡحَامِهِنَّ إِن كُنَّ يُؤۡمِنَّ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۚ وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِي ذَٰلِكَ إِنۡ أَرَادُوٓاْ إِصۡلَٰحٗاۚ وَلَهُنَّ مِثۡلُ ٱلَّذِي عَلَيۡهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ وَلِلرِّجَالِ عَلَيۡهِنَّ دَرَجَةٞۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ ۝ 228
और तलाक़ पाई हुई स्त्रियाँ तीन हैज़ (मासिक-धर्म) गुज़रने तक अपने-आप को रोके रखें, और यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखती हैं तो उनके लिए यह वैध न होगा कि अल्लाह ने उनके गर्भाशयों में जो कुछ पैदा किया हो उसे छिपाएँ। इस बीच उनके पति, यदि सम्बन्धों को ठीक कर लेने का इरादा रखते हों, तो वे उन्हें लौटा लेने के ज़्यादा हक़दार हैं। और उन पत्नियों के भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं, जैसी उन पर ज़िम्मेदारियाँ डाली गई हैं। और पतियों को उनपर एक दर्जा प्राप्त है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है॥228॥
ٱلطَّلَٰقُ مَرَّتَانِۖ فَإِمۡسَاكُۢ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ تَسۡرِيحُۢ بِإِحۡسَٰنٖۗ وَلَا يَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَأۡخُذُواْ مِمَّآ ءَاتَيۡتُمُوهُنَّ شَيۡـًٔا إِلَّآ أَن يَخَافَآ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَا فِيمَا ٱفۡتَدَتۡ بِهِۦۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَعۡتَدُوهَاۚ وَمَن يَتَعَدَّ حُدُودَ ٱللَّهِ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 229
तलाक़ दो बार है। फिर सामान्य नियम के अनुसार (स्त्री को) रोक लिया जाए या भले तरीक़े से विदा कर दिया जाए। और तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उसमें से कुछ ले लो, सिवाय इस स्थिति के कि दोनों को डर हो कि अल्लाह की (निर्धारित) सीमाओं पर क़ायम न रह सकेंगे तो यदि तुमको यह डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओ पर क़ायम न रहेंगे तो स्त्री जो कुछ देकर छुटकारा प्राप्त करना चाहे उसमें उन दोनो के लिए कोई गुनाह नहीं। ये अल्लाह की सीमाएँ है। अतः इनका उल्लंघन न करो। और जो कोई अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो ऐसे लोग अत्याचारी हैं॥229॥
فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدُ حَتَّىٰ تَنكِحَ زَوۡجًا غَيۡرَهُۥۗ فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَآ أَن يَتَرَاجَعَآ إِن ظَنَّآ أَن يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِۗ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ يُبَيِّنُهَا لِقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ ۝ 230
(दो तलाक़ो के पश्चात्) फिर यदि वह उसे तलाक़ दे दे, तो इसके पश्चात् वह उसके लिए वैध न होगी, जब तक कि वह उसके अतिरिक्त किसी दूसरे पति से निकाह न कर ले। अतः यदि वह उसे तलाक़ दे दे तो फिर उन दोनों के लिए एक-दूसरे को पलट आने में कोई गुनाह न होगा, यदि वे समझते हों कि अल्लाह की सीमाओं पर क़ायम रह सकते हैं। और ये अल्लाह कि निर्धारित की हुई सीमाएँ हैं, जिन्हें वह उन लोगों के लिए बयान कर रहा है जो जानना चाहते हों॥230॥
وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمۡسِكُوهُنَّ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعۡرُوفٖۚ وَلَا تُمۡسِكُوهُنَّ ضِرَارٗا لِّتَعۡتَدُواْۚ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ فَقَدۡ ظَلَمَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَا تَتَّخِذُوٓاْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ هُزُوٗاۚ وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ وَمَآ أَنزَلَ عَلَيۡكُم مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَٱلۡحِكۡمَةِ يَعِظُكُم بِهِۦۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ ۝ 231
और यदि जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निश्चित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार उन्हें रोक लो या सामान्य नियम के अनुसार उन्हें विदा कर दो। और तुम उन्हें नुक़सान पहुँचाने के ध्येय से न रोको कि ज़्यादती करो। और जो ऐसा करेगा, तो उसने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। और अल्लाह की आयतों को परिहास का विषय न बनाओ, और अल्लाह की कृपा जो तुम पर हुई है उसे याद रखो और उस किताब और तत्वदर्शिता (हिकमत) को याद रखो जो उसने तुम पर उतारी है, जिसके द्वारा वह तुम्हें नसीहत करता है। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह हर चीज़ को जाननेवाला है॥231॥
وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعۡضُلُوهُنَّ أَن يَنكِحۡنَ أَزۡوَٰجَهُنَّ إِذَا تَرَٰضَوۡاْ بَيۡنَهُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ ذَٰلِكَ يُوعَظُ بِهِۦ مَن كَانَ مِنكُمۡ يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۗ ذَٰلِكُمۡ أَزۡكَىٰ لَكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 232
और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें अपने होनेवाले दूसरे पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि वे सामान्य नियम के अनुसार परस्पर रज़ामन्दी से मामला तय करें। यह नसीहत तुममें से उसको की जा रही है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखता है। यही तुम्हारे लिए ज़्यादा बरकतवाला और सुथरा तरीक़ा है। और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते॥232॥
۞وَٱلۡوَٰلِدَٰتُ يُرۡضِعۡنَ أَوۡلَٰدَهُنَّ حَوۡلَيۡنِ كَامِلَيۡنِۖ لِمَنۡ أَرَادَ أَن يُتِمَّ ٱلرَّضَاعَةَۚ وَعَلَى ٱلۡمَوۡلُودِ لَهُۥ رِزۡقُهُنَّ وَكِسۡوَتُهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ لَا تُكَلَّفُ نَفۡسٌ إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَا تُضَآرَّ وَٰلِدَةُۢ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوۡلُودٞ لَّهُۥ بِوَلَدِهِۦۚ وَعَلَى ٱلۡوَارِثِ مِثۡلُ ذَٰلِكَۗ فَإِنۡ أَرَادَا فِصَالًا عَن تَرَاضٖ مِّنۡهُمَا وَتَشَاوُرٖ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَاۗ وَإِنۡ أَرَدتُّمۡ أَن تَسۡتَرۡضِعُوٓاْ أَوۡلَٰدَكُمۡ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ إِذَا سَلَّمۡتُم مَّآ ءَاتَيۡتُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ ۝ 233
और जो कोई पूरी अवधि तक (बच्चे को) दूध पिलवाना चाहे, तो माएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाएँ। और वह जिसका बच्चा है, सामान्य नियम के अनुसार उनके खाने और उनके कपड़े का ज़िम्मेदार है। किसी पर बस उसकी अपनी समाई भर ही ज़िम्मेदारी है, न तो कोई माँ अपने बच्चे के कारण (बच्चे के बाप को) नुक़सान पहुँचाए और न बाप अपने बच्चे के कारण (बच्चे की माँ को) नुक़सान पहुँचाए। और इसी प्रकार की ज़िम्मेदारी उसके वारिस पर भी आती है। फिर यदि दोनों पारस्परिक स्वेच्छा और परामर्श से दूध छुड़ाना चाहें तो उनपर कोई गुनाह नहीं। और यदि तुम अपनी संतान को किसी अन्य स्त्री से दूध पिलवाना चाहो तो इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं, जबकि तुमने जो कुछ बदले में देने का वादा किया हो, सामान्य नियम के अनुसार उसे चुका दो। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है॥233॥
وَٱلَّذِينَ يُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَيَذَرُونَ أَزۡوَٰجٗا يَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ أَرۡبَعَةَ أَشۡهُرٖ وَعَشۡرٗاۖ فَإِذَا بَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا فَعَلۡنَ فِيٓ أَنفُسِهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ ۝ 234
और तुममें से जो लोग मर जाएँ और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, तो वे पत्नियाँ अपने-आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें, उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है॥234॥
وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا عَرَّضۡتُم بِهِۦ مِنۡ خِطۡبَةِ ٱلنِّسَآءِ أَوۡ أَكۡنَنتُمۡ فِيٓ أَنفُسِكُمۡۚ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ سَتَذۡكُرُونَهُنَّ وَلَٰكِن لَّا تُوَاعِدُوهُنَّ سِرًّا إِلَّآ أَن تَقُولُواْ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗاۚ وَلَا تَعۡزِمُواْ عُقۡدَةَ ٱلنِّكَاحِ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ ٱلۡكِتَٰبُ أَجَلَهُۥۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا فِيٓ أَنفُسِكُمۡ فَٱحۡذَرُوهُۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٞ ۝ 235
और इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं जो तुम उन औरतों को विवाह के सन्देश सांकेतिक रूप से दो या अपने मन में छिपाए रखो। अल्लाह जानता है कि तुम उन्हें याद करोगे, परन्तु छिपकर उन्हें वचन न देना, सिवाय इसके कि सामान्य नियम के अनुसार कोई बात कह दो। और जब तक निर्धारित अवधि (इद्दत) पूरी न हो जाए, विवाह का नाता जोड़ने का निश्चय न करो। जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे मन की बात भी जानता है। अतः उससे सावधान रहो और अल्लाह अत्यन्त क्षमा करनेवाला, सहनशील है॥235॥
لَّا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ إِن طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ مَا لَمۡ تَمَسُّوهُنَّ أَوۡ تَفۡرِضُواْ لَهُنَّ فَرِيضَةٗۚ وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى ٱلۡمُوسِعِ قَدَرُهُۥ وَعَلَى ٱلۡمُقۡتِرِ قَدَرُهُۥ مَتَٰعَۢا بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 236
यदि तुम स्त्रियों को इस स्थिति में तलाक़ दे दो कि यह नौबत पेश न आई हो कि तुमने उन्हें हाथ लगाया हो और उनका कुछ हक़ (मह्‍र) निश्चित किया हो, तो तुमपर कोई भार नहीं। हाँ, सामान्य नियम के अनुसार उन्हें कुछ ख़र्च दो — समाई रखनेवाले पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार और तंगदस्त पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार अनिवार्य है — यह अच्छे लोगों पर एक हक़ है॥236॥
وَإِن طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ وَقَدۡ فَرَضۡتُمۡ لَهُنَّ فَرِيضَةٗ فَنِصۡفُ مَا فَرَضۡتُمۡ إِلَّآ أَن يَعۡفُونَ أَوۡ يَعۡفُوَاْ ٱلَّذِي بِيَدِهِۦ عُقۡدَةُ ٱلنِّكَاحِۚ وَأَن تَعۡفُوٓاْ أَقۡرَبُ لِلتَّقۡوَىٰۚ وَلَا تَنسَوُاْ ٱلۡفَضۡلَ بَيۡنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ ۝ 237
और यदि तुम उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो, किन्तु उसका मह्‍र निश्चित कर चुके हो, तो जो मह्‍र तुमने निश्चित किया है उसका आधा अदा करना होगा, यह और बात है कि वे स्वयं छोड़ दें या पुरुष जिसके हाथ में विवाह का सूत्र है, वह नर्मी से काम ले ( और मह्‍र पूरा अदा कर दे) । और यह कि तुम नर्मी से काम लो तो यह परहेज़गारी से ज़्यादा क़रीब है और तुम एक-दूसरे को हक़ से बढ़कर देना न भूलो। निश्चय ही अल्लाह उसे देख रहा है, जो तुम करते हो॥237॥
حَٰفِظُواْ عَلَى ٱلصَّلَوَٰتِ وَٱلصَّلَوٰةِ ٱلۡوُسۡطَىٰ وَقُومُواْ لِلَّهِ قَٰنِتِينَ ۝ 238
सदैव नमाज़ों की और अच्छी नमाज़ों की पाबन्दी करो, और अल्लाह के आगे पूरे विनीत और शान्तभाव से खड़े हुआ करो॥238॥
فَإِنۡ خِفۡتُمۡ فَرِجَالًا أَوۡ رُكۡبَانٗاۖ فَإِذَآ أَمِنتُمۡ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُم مَّا لَمۡ تَكُونُواْ تَعۡلَمُونَ ۝ 239
फिर यदि तुम्हें (शत्रु आदि का) भय हो, तो पैदल या सवार जिस तरह सम्भव हो नमाज़ पढ़ लो। फिर जब निश्चिन्त हो तो अल्लाह को उस प्रकार याद करो जैसा कि उसने तुम्हें सिखाया है, जिसे तुम नहीं जानते थे॥239॥
وَٱلَّذِينَ يُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَيَذَرُونَ أَزۡوَٰجٗا وَصِيَّةٗ لِّأَزۡوَٰجِهِم مَّتَٰعًا إِلَى ٱلۡحَوۡلِ غَيۡرَ إِخۡرَاجٖۚ فَإِنۡ خَرَجۡنَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِي مَا فَعَلۡنَ فِيٓ أَنفُسِهِنَّ مِن مَّعۡرُوفٖۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٞ ۝ 240
और तुममें से जिन लोगों की मृत्यु हो जाए और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, अर्थात अपनी पत्नियों के हक़ में यह वसीयत छोड़ जाएँ कि घर से निकाले बिना एक वर्ष तक उन्हें ख़र्च दिया जाए, तो यदि वे निकल जाएँ तो अपने लिए सामान्य नियम के अनुसार वे जो कुछ भी करें उसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है॥240॥
وَلِلۡمُطَلَّقَٰتِ مَتَٰعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 241
और तलाक़ पाई हुई स्त्रियों को सामान्य नियम के अनुसार (इद्दत की अवधि में ) ख़र्च भी मिलना चाहिए। यह डर रखनेवालो पर एक हक़ है॥241॥
كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 242
इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझ से काम लो॥242॥
۞أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ خَرَجُواْ مِن دِيَٰرِهِمۡ وَهُمۡ أُلُوفٌ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِ فَقَالَ لَهُمُ ٱللَّهُ مُوتُواْ ثُمَّ أَحۡيَٰهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَشۡكُرُونَ ۝ 243
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो हज़ारों की संख्या में होने पर भी मृत्यु के भय से अपने घर-बार छोड़कर निकले थे? तो अल्लाह ने उनसे कहा, "मृत प्राय हो जाओ तुम।" फिर उसने उन्हें जीवन प्रदान किया। अल्लाह तो लोगों के लिए उदार अनुग्राही है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखलाते॥243॥
وَقَٰتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ ۝ 244
और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाला है॥244॥
مَّن ذَا ٱلَّذِي يُقۡرِضُ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗا فَيُضَٰعِفَهُۥ لَهُۥٓ أَضۡعَافٗا كَثِيرَةٗۚ وَٱللَّهُ يَقۡبِضُ وَيَبۡصُۜطُ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 245
कौन है जो अल्लाह को अच्छा ऋण दे कि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना बढ़ा दे? और अल्लाह ही तंगी भी देता है और कुशादगी भी प्रदान करता है, और उसी की ओर तुम्हें लौटना है॥245॥
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ مِنۢ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ مِنۢ بَعۡدِ مُوسَىٰٓ إِذۡ قَالُواْ لِنَبِيّٖ لَّهُمُ ٱبۡعَثۡ لَنَا مَلِكٗا نُّقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۖ قَالَ هَلۡ عَسَيۡتُمۡ إِن كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ أَلَّا تُقَٰتِلُواْۖ قَالُواْ وَمَا لَنَآ أَلَّا نُقَٰتِلَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَدۡ أُخۡرِجۡنَا مِن دِيَٰرِنَا وَأَبۡنَآئِنَاۖ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقِتَالُ تَوَلَّوۡاْ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنۡهُمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 246
क्या तुमने मूसा के पश्चात् इसराईल की सन्तान के सरदारों को नहीं देखा, जब उन्होंने अपने एक नबी से कहा, "हमारे लिए एक सम्राट नियुक्त कर दो ताकि हम अल्लाह के मार्ग में युद्ध करें?" उसने कहा, "यदि तुम्हें लड़ाई का आदेश दिया जाए तो क्या तुम्हारे बारे में यह सम्भावना नहीं है कि तुम न लड़ो?" वे कहने लगे, "हम अल्लाह के मार्ग में क्यों न लड़ें, जबकि हम अपने घरों से निकाल दिए गए हैं और अपने बाल-बच्चों से भी अलग कर दिए गए हैं?" - फिर जब उनपर युद्ध अनिवार्य कर दिया गया तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए। और अल्लाह ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है। -॥246॥
وَقَالَ لَهُمۡ نَبِيُّهُمۡ إِنَّ ٱللَّهَ قَدۡ بَعَثَ لَكُمۡ طَالُوتَ مَلِكٗاۚ قَالُوٓاْ أَنَّىٰ يَكُونُ لَهُ ٱلۡمُلۡكُ عَلَيۡنَا وَنَحۡنُ أَحَقُّ بِٱلۡمُلۡكِ مِنۡهُ وَلَمۡ يُؤۡتَ سَعَةٗ مِّنَ ٱلۡمَالِۚ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰهُ عَلَيۡكُمۡ وَزَادَهُۥ بَسۡطَةٗ فِي ٱلۡعِلۡمِ وَٱلۡجِسۡمِۖ وَٱللَّهُ يُؤۡتِي مُلۡكَهُۥ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ ۝ 247
उनके नबी ने उनसे कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत को सम्राट नियुक्त किया है।" बोले, "उसकी बादशाही हम पर कैसे हो सकती है, जबकि हम उसके मुक़ाबले में बादशाही के ज़्यादा हक़दार हैं और जबकि उसे माल की कुशादगी भी प्राप्त नहीं है?" उसने कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे मुक़ाबले में उसको ही चुना है और उसे ज्ञान में और शारीरिक क्षमता में ज़्यादा कुशादगी प्रदान की है। अल्लाह जिसको चाहे अपना राज्य प्रदान करे। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है।"॥247॥
وَقَالَ لَهُمۡ نَبِيُّهُمۡ إِنَّ ءَايَةَ مُلۡكِهِۦٓ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلتَّابُوتُ فِيهِ سَكِينَةٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَبَقِيَّةٞ مِّمَّا تَرَكَ ءَالُ مُوسَىٰ وَءَالُ هَٰرُونَ تَحۡمِلُهُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 248
उनके नबी ने उनसे कहा, "उसकी बादशाही की निशानी यह है कि वह संदूक तुम्हारे पास आ जाएगा, जिसमें तुम्हारे रब की ओर से सकीनत (प्रशान्ति) और मूसा के लोगों और हारून के लोगों की छोड़ी हुई यादगारें हैं, जिसको फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे।13 यदि तुम ईमानवाले हो तो, निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है।"॥248॥ ————————— 13. अर्थात् वह संदूक़ तुम्हारे पास असाधारण रीति से पहुँच जाएगा और इसके पहुँचने की व्यवस्था ईश्वर की ओर से होगी।
فَلَمَّا فَصَلَ طَالُوتُ بِٱلۡجُنُودِ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ مُبۡتَلِيكُم بِنَهَرٖ فَمَن شَرِبَ مِنۡهُ فَلَيۡسَ مِنِّي وَمَن لَّمۡ يَطۡعَمۡهُ فَإِنَّهُۥ مِنِّيٓ إِلَّا مَنِ ٱغۡتَرَفَ غُرۡفَةَۢ بِيَدِهِۦۚ فَشَرِبُواْ مِنۡهُ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنۡهُمۡۚ فَلَمَّا جَاوَزَهُۥ هُوَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ قَالُواْ لَا طَاقَةَ لَنَا ٱلۡيَوۡمَ بِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦۚ قَالَ ٱلَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَٰقُواْ ٱللَّهِ كَم مِّن فِئَةٖ قَلِيلَةٍ غَلَبَتۡ فِئَةٗ كَثِيرَةَۢ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّٰبِرِينَ ۝ 249
फिर जब तालूत सेनाएँ लेकर चला तो उनने कहा, "अल्लाह निश्चित रूप से एक नदी द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेनेवाला है। तो जिसने उसका पानी पी लिया, वह मुझमें से नहीं है और जिसने उसको नहीं चखा, वही मुझमें से है। यह और बात है कि कोई अपने हाथ से एक चुल्लू भर ले ले।" फिर उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सभी ने उसका पानी पी लिया, फिर जब तालूत और ईमानवाले जो उसके साथ थे नदी पार कर गए तो कहने लगे, "आज हममें जालूत और उसकी सेनाओं का मुक़ाबला करने की शक्ति नहीं हैं।" इस पर लोगों ने, जो समझते थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, कहा, "कितनी ही बार एक छोटी-सी टुकड़ी ने अल्लाह की अनुज्ञा से एक बड़े गिरोह पर विजय पाई है। अल्लाह तो जमनेवालो के साथ है।"॥249॥
وَلَمَّا بَرَزُواْ لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦ قَالُواْ رَبَّنَآ أَفۡرِغۡ عَلَيۡنَا صَبۡرٗا وَثَبِّتۡ أَقۡدَامَنَا وَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 250
और जब वे जालूत और उसकी सेनाओं के मुक़ाबले पर आए तो कहा, "ऐ हमारे रब! हमपर धैर्य उड़ेल दे और हमारे क़दम जमा दे और इनकार करनेवाले लोगों पर हमें विजय प्रदान कर।"॥250॥
فَهَزَمُوهُم بِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَقَتَلَ دَاوُۥدُ جَالُوتَ وَءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَعَلَّمَهُۥ مِمَّا يَشَآءُۗ وَلَوۡلَا دَفۡعُ ٱللَّهِ ٱلنَّاسَ بَعۡضَهُم بِبَعۡضٖ لَّفَسَدَتِ ٱلۡأَرۡضُ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ ذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 251
अन्ततः अल्लाह की अनुज्ञा से उन्होंने उनको पराजित कर दिया और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया, और अल्लाह ने उसे राज्य और तत्वदर्शिता (हिकमत) प्रदान की, जो कुछ वह (दाऊद) चाहे, उससे उसको अवगत कराया। और यदि अल्लाह मनुष्यों के एक गिरोह को दूसरे गिरोह के द्वारा हटाता न रहता तो धरती की व्यवस्था बिगड़ जाती, किन्तु अल्लाह संसारवालों के लिए उदार अनुग्राही है॥251॥
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۚ وَإِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 252
ये अल्लाह की सच्ची आयतें हैं जो हम तुम्हें (सोद्देश्य) सुना रहे हैं और निश्चय ही तुम उन लोगों में से हो, जो रसूस बनाकर भेजे गए हैं॥252॥
۞تِلۡكَ ٱلرُّسُلُ فَضَّلۡنَا بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۘ مِّنۡهُم مَّن كَلَّمَ ٱللَّهُۖ وَرَفَعَ بَعۡضَهُمۡ دَرَجَٰتٖۚ وَءَاتَيۡنَا عِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَأَيَّدۡنَٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلَ ٱلَّذِينَ مِنۢ بَعۡدِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ وَلَٰكِنِ ٱخۡتَلَفُواْ فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ وَمِنۡهُم مَّن كَفَرَۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلُواْ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَفۡعَلُ مَا يُرِيدُ ۝ 253
ये रसूल ऐसे हुए हैं कि इनमें हमने कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें कुछ से तो अल्लाह ने बातचीत की और इनमें से कुछ को दर्जों की दृष्टि से उच्चता प्रदान की। और मरयम के बेटे ईसा को हमने खुली निशानियाँ दीं और पवित्र आत्मा से उसकी सहायता की। और यदि अल्लाह चाहता तो वे लोग, जो उनके पश्चात हुए, खुली निशानियाँ पा लेने के बाद परस्पर न लड़ते। किन्तु वे विभेद में पड़ गए तो उनमें से कोई तो ईमान लाया और उनमें से किसी ने इनकार की नीति अपनाई। और यदि अल्लाह चाहता तो वे परस्पर न लड़ते, परन्तु अल्लाह जो चाहता है, करता है॥253॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَنفِقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَ يَوۡمٞ لَّا بَيۡعٞ فِيهِ وَلَا خُلَّةٞ وَلَا شَفَٰعَةٞۗ وَٱلۡكَٰفِرُونَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 254
ऐ ईमान लानेवालो! हमने जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें से (नेक कामों मे) ख़र्च करो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मित्रता होगी और न कोई सिफ़ारिश। ज़ालिम वही हैं, जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई है॥254॥
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَيُّ ٱلۡقَيُّومُۚ لَا تَأۡخُذُهُۥ سِنَةٞ وَلَا نَوۡمٞۚ لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ مَن ذَا ٱلَّذِي يَشۡفَعُ عِندَهُۥٓ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦۚ يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيۡءٖ مِّنۡ عِلۡمِهِۦٓ إِلَّا بِمَا شَآءَۚ وَسِعَ كُرۡسِيُّهُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَۖ وَلَا يَـُٔودُهُۥ حِفۡظُهُمَاۚ وَهُوَ ٱلۡعَلِيُّ ٱلۡعَظِيمُ ۝ 255
अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह जीवन्त-सत्ता है, सबको संभालने और क़ायम रखनेवाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा। उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है॥255॥
لَآ إِكۡرَاهَ فِي ٱلدِّينِۖ قَد تَّبَيَّنَ ٱلرُّشۡدُ مِنَ ٱلۡغَيِّۚ فَمَن يَكۡفُرۡ بِٱلطَّٰغُوتِ وَيُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰ لَا ٱنفِصَامَ لَهَاۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ ۝ 256
धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सही बात नासमझी की बात से अलग होकर स्पष्ट हो गई है। तो अब जो कोई बढ़े हुए सरकश को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान लाए, उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटनेवाला नहीं। अल्लाह सब कुछ सुनने, जाननेवाला है॥256॥
ٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يُخۡرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَوۡلِيَآؤُهُمُ ٱلطَّٰغُوتُ يُخۡرِجُونَهُم مِّنَ ٱلنُّورِ إِلَى ٱلظُّلُمَٰتِۗ أُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 257
जो लोग ईमान लाते हैं, अल्लाह उनका रक्षक और सहायक है। वह उन्हें अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया तो उनके संरक्षक बढ़े हुए सरकश हैं। वे उन्हें प्रकाश से निकालकर अँधेरों की ओर ले जाते हैं। वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले हैं। वे उसी में सदैव रहेंगे॥257॥
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِي حَآجَّ إِبۡرَٰهِـۧمَ فِي رَبِّهِۦٓ أَنۡ ءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ إِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ رَبِّيَ ٱلَّذِي يُحۡيِۦ وَيُمِيتُ قَالَ أَنَا۠ أُحۡيِۦ وَأُمِيتُۖ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ فَإِنَّ ٱللَّهَ يَأۡتِي بِٱلشَّمۡسِ مِنَ ٱلۡمَشۡرِقِ فَأۡتِ بِهَا مِنَ ٱلۡمَغۡرِبِ فَبُهِتَ ٱلَّذِي كَفَرَۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 258
क्या तुमने उसको नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके ’रब’ के सिलसिले में झगड़ा किया था, इस कारण कि अल्लाह ने उसको राज्य दे रखा था? जब इबराहीम ने कहा, "मेरा ’रब’ वह है जो जिलाता और मारता है।" उसने कहा, "मैं भी तो जिलाता और मारता हूँ।" इबराहीम ने कहा, "अच्छा तो अल्लाह सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ।" इसपर वह विधर्मी चकित रह गया। अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता॥258॥
أَوۡ كَٱلَّذِي مَرَّ عَلَىٰ قَرۡيَةٖ وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّىٰ يُحۡيِۦ هَٰذِهِ ٱللَّهُ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۖ فَأَمَاتَهُ ٱللَّهُ مِاْئَةَ عَامٖ ثُمَّ بَعَثَهُۥۖ قَالَ كَمۡ لَبِثۡتَۖ قَالَ لَبِثۡتُ يَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ يَوۡمٖۖ قَالَ بَل لَّبِثۡتَ مِاْئَةَ عَامٖ فَٱنظُرۡ إِلَىٰ طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمۡ يَتَسَنَّهۡۖ وَٱنظُرۡ إِلَىٰ حِمَارِكَ وَلِنَجۡعَلَكَ ءَايَةٗ لِّلنَّاسِۖ وَٱنظُرۡ إِلَى ٱلۡعِظَامِ كَيۡفَ نُنشِزُهَا ثُمَّ نَكۡسُوهَا لَحۡمٗاۚ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُۥ قَالَ أَعۡلَمُ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 259
या उस जैसे (व्यक्ति) को नहीं देखा, जिसका एक ऐसी बस्ती पर से गुज़र हुआ, जो अपनी छतों के बल गिरी हुई थी। उसने कहा, "अल्लाह इसके विनष्ट हो जाने के पश्चात इसे किस प्रकार जीवन प्रदान करेगा?" तो अल्लाह ने उसे सौ वर्ष की मृत्यु दे दी, फिर उसे उठा खड़ा किया। कहा, "तू कितनी अवधि तक इस अवस्था नें रहा।" उसने कहा, "मैं एक या दिन का कुछ हिस्सा रहा।" कहा, "नहीं, बल्कि तू सौ वर्ष रहा है। अब अपने खाने और पीने की चीज़ों को देख ले, उन पर समय का कोई प्रभाव नहीं, और अपने गधे को भी देख, और यह इसलिए कह रहे है ताकि हम तुझे लोगों के लिए एक निशानी बना दें और हड्डियों को देख कि किस प्रकार हम उन्हें उभारते है, फिर, उनपर माँस चढ़ाते है।" तो जब वास्तविकता उस पर प्रकट हो गई तो वह पुकार उठा, " मैं जानता हूँ कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।"॥259॥
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ رَبِّ أَرِنِي كَيۡفَ تُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰۖ قَالَ أَوَلَمۡ تُؤۡمِنۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَٰكِن لِّيَطۡمَئِنَّ قَلۡبِيۖ قَالَ فَخُذۡ أَرۡبَعَةٗ مِّنَ ٱلطَّيۡرِ فَصُرۡهُنَّ إِلَيۡكَ ثُمَّ ٱجۡعَلۡ عَلَىٰ كُلِّ جَبَلٖ مِّنۡهُنَّ جُزۡءٗا ثُمَّ ٱدۡعُهُنَّ يَأۡتِينَكَ سَعۡيٗاۚ وَٱعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ ۝ 260
और याद करो जब इबराहीम ने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे दिखा दे, तू मुर्दों को कैसे जीवित करेगा?" (रब ने) कहा,"क्या तुझे विश्वास नहीं?" उसने कहा,"क्यों नहीं, किन्तु निवेदन इसलिए है कि मेरा दिल संतुष्ट हो जाए।" (रब ने) कहा, "अच्छा, तो चार पक्षी ले, फिर उन्हें अपने साथ भली-भाँति हिला-मिला ले, फिर उनमें से प्रत्येक को एक-एक पर्वत पर रख दे, फिर उनको पुकार, वे तेरे पास लपककर आएँगे। और जान ले कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।"॥260॥
مَّثَلُ ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنۢبَتَتۡ سَبۡعَ سَنَابِلَ فِي كُلِّ سُنۢبُلَةٖ مِّاْئَةُ حَبَّةٖۗ وَٱللَّهُ يُضَٰعِفُ لِمَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٌ ۝ 261
जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते हैं, उनकी उपमा ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हों। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है॥261॥
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ثُمَّ لَا يُتۡبِعُونَ مَآ أَنفَقُواْ مَنّٗا وَلَآ أَذٗى لَّهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 262
जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते हैं, फिर ख़र्च करके उसका न एहसान जताते हैं और न दिल दुखाते हैं, उनका बदला उनके अपने रब के पास है। और न तो उनके लिए कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे॥262॥
۞قَوۡلٞ مَّعۡرُوفٞ وَمَغۡفِرَةٌ خَيۡرٞ مِّن صَدَقَةٖ يَتۡبَعُهَآ أَذٗىۗ وَٱللَّهُ غَنِيٌّ حَلِيمٞ ۝ 263
एक भली बात कहनी और क्षमा से काम लेना उस सदक़े से अच्छा है, जिसके पीछे दुख हो। और अल्लाह अत्यन्त निस्पृह (बेनियाज़), सहनशील है॥263॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُبۡطِلُواْ صَدَقَٰتِكُم بِٱلۡمَنِّ وَٱلۡأَذَىٰ كَٱلَّذِي يُنفِقُ مَالَهُۥ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۖ فَمَثَلُهُۥ كَمَثَلِ صَفۡوَانٍ عَلَيۡهِ تُرَابٞ فَأَصَابَهُۥ وَابِلٞ فَتَرَكَهُۥ صَلۡدٗاۖ لَّا يَقۡدِرُونَ عَلَىٰ شَيۡءٖ مِّمَّا كَسَبُواْۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 264
ऐ ईमानवालो! अपने सदक़ों को एहसान जताकर और दुख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल ख़र्च करता है और अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। तो उसकी हालत उस चट्टान जैसी है जिसपर कुछ मिट्टी पड़ी हुई थी, फिर उस पर ज़ोर की वर्षा हुई और उसे साफ़ चट्टान की दशा में छोड़ गई। ऐसे लोग अपनी कमाई कुछ भी प्राप्त नहीं करते। और अल्लाह इनकार की नीति अपनानेवालों को मार्ग नहीं दिखाता॥264॥
وَمَثَلُ ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمُ ٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِ وَتَثۡبِيتٗا مِّنۡ أَنفُسِهِمۡ كَمَثَلِ جَنَّةِۭ بِرَبۡوَةٍ أَصَابَهَا وَابِلٞ فَـَٔاتَتۡ أُكُلَهَا ضِعۡفَيۡنِ فَإِن لَّمۡ يُصِبۡهَا وَابِلٞ فَطَلّٞۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ ۝ 265
और जो लोग अपने माल अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधनों की तलब में और अपने दिलों को जमाव प्रदान करने के कारण ख़र्च करते हैं उनकी हालत उस बाग़ की तरह है जो किसी अच्छी और उर्वर भूमि पर हो। उस पर घोर वर्षा हुई तो उसमें दोगुने फल आए। फिर यदि घोर वर्षा उस पर नहीं हुई, तो फुहार ही पर्याप्त होगी। तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसे देख रहा है॥265॥
أَيَوَدُّ أَحَدُكُمۡ أَن تَكُونَ لَهُۥ جَنَّةٞ مِّن نَّخِيلٖ وَأَعۡنَابٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ لَهُۥ فِيهَا مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ وَأَصَابَهُ ٱلۡكِبَرُ وَلَهُۥ ذُرِّيَّةٞ ضُعَفَآءُ فَأَصَابَهَآ إِعۡصَارٞ فِيهِ نَارٞ فَٱحۡتَرَقَتۡۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ ۝ 266
क्या तुममें से कोई यह चाहेगा कि उसके पास ख़जूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे नहरें बह रही हों, वहाँ उसे हर प्रकार के फल प्राप्त हों और उसका बुढ़ापा आ गया हो और उसके बच्चे अभी कमज़ोर ही हों कि उस बाग़ पर एक आग भरा बगूला आ गया, और वह जलकर रह गया? इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे सामने आयतें खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि सोच-विचार करो॥266॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَنفِقُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا كَسَبۡتُمۡ وَمِمَّآ أَخۡرَجۡنَا لَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِۖ وَلَا تَيَمَّمُواْ ٱلۡخَبِيثَ مِنۡهُ تُنفِقُونَ وَلَسۡتُم بِـَٔاخِذِيهِ إِلَّآ أَن تُغۡمِضُواْ فِيهِۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ ۝ 267
ऐ ईमान लानेवालो! अपनी कमाई को पाक और अच्छी चीज़ों में से ख़र्च करो और उन चीज़ों में से भी जो हमने धरती से तुम्हारे लिए निकाली हैं। और देने के लिए उसके ख़राब हिस्से (के देने) का इरादा न करो, जबकि तुम स्वयं उसे कभी न लोगे। यह और बात है कि उसकी कीमत कम करा के लो। और जान लो कि अल्लाह निस्पृह, प्रशंसनीय है॥267॥
ٱلشَّيۡطَٰنُ يَعِدُكُمُ ٱلۡفَقۡرَ وَيَأۡمُرُكُم بِٱلۡفَحۡشَآءِۖ وَٱللَّهُ يَعِدُكُم مَّغۡفِرَةٗ مِّنۡهُ وَفَضۡلٗاۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ ۝ 268
शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है, जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार कृपा का तुम्हें वचन देता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है॥268॥
يُؤۡتِي ٱلۡحِكۡمَةَ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُؤۡتَ ٱلۡحِكۡمَةَ فَقَدۡ أُوتِيَ خَيۡرٗا كَثِيرٗاۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 269
वह जिसे चाहता है तत्वदर्शिता प्रदान करता है और जिसे तत्वदर्शिता प्राप्त हुई उसे बड़ी दौलत मिल गई। किन्तु चेतते वही हैं जो बुद्धि और समझवाले हैं॥269॥
وَمَآ أَنفَقۡتُم مِّن نَّفَقَةٍ أَوۡ نَذَرۡتُم مِّن نَّذۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُهُۥۗ وَمَا لِلظَّٰلِمِينَ مِنۡ أَنصَارٍ ۝ 270
और तुमने जो कुछ भी ख़र्च किया और जो कुछ भी नज़्र (मन्नत) की हो, निस्सन्देह अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा॥270॥
إِن تُبۡدُواْ ٱلصَّدَقَٰتِ فَنِعِمَّا هِيَۖ وَإِن تُخۡفُوهَا وَتُؤۡتُوهَا ٱلۡفُقَرَآءَ فَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۚ وَيُكَفِّرُ عَنكُم مِّن سَيِّـَٔاتِكُمۡۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ ۝ 271
यदि तुम खुले रूप मे सदक़े दो तो यह भी अच्छा है और यदि उनको छिपाकर मुहताजों को दो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। और यह तुम्हारे कितने ही गुनाहों को मिटा देगा। और अल्लाह को उसकी पूरी ख़बर है, जो कुछ तुम करते हो॥271॥
۞لَّيۡسَ عَلَيۡكَ هُدَىٰهُمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَهۡدِي مَن يَشَآءُۗ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَلِأَنفُسِكُمۡۚ وَمَا تُنفِقُونَ إِلَّا ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ ٱللَّهِۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَيۡرٖ يُوَفَّ إِلَيۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ ۝ 272
उन्हें मार्ग पर ला देने का दायित्व तुम पर नहीं है, बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है। और जो कुछ भी माल तुम ख़र्च करोगे, वह तुम्हारे अपने ही भले के लिए होगा और तुम अल्लाह के (बताए हुए) उद्देश्य के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य से ख़र्च न करो। और जो माल भी तुम (नेक कामो) ख़र्च करोगे, वह पूरा-पूरा तुम्हें चुका दिया जाएगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा॥272॥
لِلۡفُقَرَآءِ ٱلَّذِينَ أُحۡصِرُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا يَسۡتَطِيعُونَ ضَرۡبٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ يَحۡسَبُهُمُ ٱلۡجَاهِلُ أَغۡنِيَآءَ مِنَ ٱلتَّعَفُّفِ تَعۡرِفُهُم بِسِيمَٰهُمۡ لَا يَسۡـَٔلُونَ ٱلنَّاسَ إِلۡحَافٗاۗ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٌ ۝ 273
यह उन मुहताजों के लिए है जो अल्लाह के मार्ग में घिर गए कि धरती में (जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धूप नहीं कर सकते। उनके स्वाभिमान के कारण अपरिचित व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है। तुम उन्हें उनके लक्षणो से पहचान सकते हो। वे लिपटकर लोगों से नहीं माँगते। जो माल भी तुम ख़र्च करोगे, वह अल्लाह को ज्ञात होगा॥273॥
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُم بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 274
जो लोग अपने माल रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें, उनका बदला तो उनके रब के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे॥274॥
ٱلَّذِينَ يَأۡكُلُونَ ٱلرِّبَوٰاْ لَا يَقُومُونَ إِلَّا كَمَا يَقُومُ ٱلَّذِي يَتَخَبَّطُهُ ٱلشَّيۡطَٰنُ مِنَ ٱلۡمَسِّۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُوٓاْ إِنَّمَا ٱلۡبَيۡعُ مِثۡلُ ٱلرِّبَوٰاْۗ وَأَحَلَّ ٱللَّهُ ٱلۡبَيۡعَ وَحَرَّمَ ٱلرِّبَوٰاْۚ فَمَن جَآءَهُۥ مَوۡعِظَةٞ مِّن رَّبِّهِۦ فَٱنتَهَىٰ فَلَهُۥ مَا سَلَفَ وَأَمۡرُهُۥٓ إِلَى ٱللَّهِۖ وَمَنۡ عَادَ فَأُوْلَٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 275
और लोग ब्याज खाते हैं, वे बस इस प्रकार उठते हैं जिस प्रकार वह क्यक्ति उठता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो और यह इसलिए कि उनका कहना है, "व्यापार भी तो ब्याज के सदृश है," जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है। अतः जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया, तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है। और जिसने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। उसमें वे सदैव रहेंगे॥275॥
يَمۡحَقُ ٱللَّهُ ٱلرِّبَوٰاْ وَيُرۡبِي ٱلصَّدَقَٰتِۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِيمٍ ۝ 276
अल्लाह ब्याज को घटाता और मिटाता है और सदक़ों को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी अकृतज्ञ, हक़ मारनेवाले को पसन्द नहीं करता॥276॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُاْ ٱلزَّكَوٰةَ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 277
निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी, उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है, और उन्हें न कोई भय हो और न वे शोकाकुल होंगे॥277॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَذَرُواْ مَا بَقِيَ مِنَ ٱلرِّبَوٰٓاْ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 278
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमानवाले हो॥278॥
فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُواْ فَأۡذَنُواْ بِحَرۡبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَإِن تُبۡتُمۡ فَلَكُمۡ رُءُوسُ أَمۡوَٰلِكُمۡ لَا تَظۡلِمُونَ وَلَا تُظۡلَمُونَ ۝ 279
फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए ख़बरदार हो जाओ। और यदि तौबा कर लो तो अपना मूलधन लेने का तुम्हें अधिकार है। न तुम अन्याय करो और न तुम्हारे साथ अन्याय किया जाए॥279॥
وَإِن كَانَ ذُو عُسۡرَةٖ فَنَظِرَةٌ إِلَىٰ مَيۡسَرَةٖۚ وَأَن تَصَدَّقُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 280
और यदि कोई तंगी में हो तो हाथ खुलने तक मुहलत देनी होगी; और सदक़ा कर दो ( अर्थात मूलधन भी न लो) तो यह तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जान सको॥280॥
وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا تُرۡجَعُونَ فِيهِ إِلَى ٱللَّهِۖ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 281
और उस दिन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटोगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा॥281॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا تَدَايَنتُم بِدَيۡنٍ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى فَٱكۡتُبُوهُۚ وَلۡيَكۡتُب بَّيۡنَكُمۡ كَاتِبُۢ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَلَا يَأۡبَ كَاتِبٌ أَن يَكۡتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ ٱللَّهُۚ فَلۡيَكۡتُبۡ وَلۡيُمۡلِلِ ٱلَّذِي عَلَيۡهِ ٱلۡحَقُّ وَلۡيَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥ وَلَا يَبۡخَسۡ مِنۡهُ شَيۡـٔٗاۚ فَإِن كَانَ ٱلَّذِي عَلَيۡهِ ٱلۡحَقُّ سَفِيهًا أَوۡ ضَعِيفًا أَوۡ لَا يَسۡتَطِيعُ أَن يُمِلَّ هُوَ فَلۡيُمۡلِلۡ وَلِيُّهُۥ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَٱسۡتَشۡهِدُواْ شَهِيدَيۡنِ مِن رِّجَالِكُمۡۖ فَإِن لَّمۡ يَكُونَا رَجُلَيۡنِ فَرَجُلٞ وَٱمۡرَأَتَانِ مِمَّن تَرۡضَوۡنَ مِنَ ٱلشُّهَدَآءِ أَن تَضِلَّ إِحۡدَىٰهُمَا فَتُذَكِّرَ إِحۡدَىٰهُمَا ٱلۡأُخۡرَىٰۚ وَلَا يَأۡبَ ٱلشُّهَدَآءُ إِذَا مَا دُعُواْۚ وَلَا تَسۡـَٔمُوٓاْ أَن تَكۡتُبُوهُ صَغِيرًا أَوۡ كَبِيرًا إِلَىٰٓ أَجَلِهِۦۚ ذَٰلِكُمۡ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِ وَأَقۡوَمُ لِلشَّهَٰدَةِ وَأَدۡنَىٰٓ أَلَّا تَرۡتَابُوٓاْ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً حَاضِرَةٗ تُدِيرُونَهَا بَيۡنَكُمۡ فَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَلَّا تَكۡتُبُوهَاۗ وَأَشۡهِدُوٓاْ إِذَا تَبَايَعۡتُمۡۚ وَلَا يُضَآرَّ كَاتِبٞ وَلَا شَهِيدٞۚ وَإِن تَفۡعَلُواْ فَإِنَّهُۥ فُسُوقُۢ بِكُمۡۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۖ وَيُعَلِّمُكُمُ ٱللَّهُۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ ۝ 282
ऐ ईमान लानेवालो! जब किसी निश्चित अवधि के लिए आपस में ऋण का लेन-देन करो तो उसे लिख लिया करो और चाहिए कि कोई लिखनेवाला तुम्हारे बीच न्यायपूर्वक (दस्तावेज़) लिख दे। और लिखनेवाला लिखने से इनकार न करे; जिस प्रकार अल्लाह ने उसे सिखाया है, उसी प्रकार वह दूसरों के लिए लिखने के काम आए और बोलकर वह लिखाए जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो। और उसे अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखना चाहिए और उसमें कोई कमी न करनी चाहिए। फिर यदि वह व्यक्ति जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो, कम समझ या कमज़ोर हो या वह बोलकर न लिखा सकता हो तो उसके संरक्षक को चाहिए कि न्यायपूर्वक बोलकर लिखा दे। और अपने पुरुषों में से दो गवाहो को गवाह बना लो और यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ, जिन्हें तुम गवाह के लिए पसन्द करो, गवाह हो जाएँ ( दो स्त्रियाँ इसलिए रखी गई हैं) ताकि यदि एक भूल जाए तो दूसरी उसे याद दिला दे। और गवाहों को जब बुलाया जाए तो आने से इनकार न करें। मामला चाहे छोटा हो या बड़ा एक निर्धारित अवधि तक के लिए है, तो उसे लिखने में सुस्ती से काम न लो। यह अल्लाह की दृष्टि मे अधिक न्यायसंगत बात है और इससे गवाही भी अधिक ठीक रहती है। और इससे अधिक संभावना है कि तुम किसी संदेह में नहीं पड़ोगे। हाँ, यदि कोई सौदा नक़द हो, जिसका लेन-देन तुम आपस में कर रहे हो, तो तुम्हारे उसके न लिखने में तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। और जब आपम में क्रय-विक्रय का मामला करो तो उस समय भी गवाह कर लिया करो, और न किसी लिखनेवाले को हानि पहुँचाए जाए और न किसी गवाह को। और यदि ऐसा करोगे तो यह तुम्हारे लिए अवज्ञा की बात होगी। और अल्लाह का डर रखो। अल्लाह तुम्हें शिक्षा दे रहा है। और अल्लाह हर चीज़ को जानता है॥282॥
۞وَإِن كُنتُمۡ عَلَىٰ سَفَرٖ وَلَمۡ تَجِدُواْ كَاتِبٗا فَرِهَٰنٞ مَّقۡبُوضَةٞۖ فَإِنۡ أَمِنَ بَعۡضُكُم بَعۡضٗا فَلۡيُؤَدِّ ٱلَّذِي ٱؤۡتُمِنَ أَمَٰنَتَهُۥ وَلۡيَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥۗ وَلَا تَكۡتُمُواْ ٱلشَّهَٰدَةَۚ وَمَن يَكۡتُمۡهَا فَإِنَّهُۥٓ ءَاثِمٞ قَلۡبُهُۥۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِيمٞ ۝ 283
और यदि तुम किसी सफ़र में हो और किसी लिखनेवाले को न पा सको, तो गिरवी रखकर मामला करो। फिर यदि तुममें से एक-दूसरे पर भरोसा करे, तो जिस पर भरोसा किया है उसे चाहिए कि वह यह सच कर दिखाए कि वह विश्वासपात्र है और अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखे। और गवाही को न छिपाओ। जो उसे छिपाता है तो निश्चय ही उसका दिल गुनाहगार है, और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है॥283॥
لِّلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَإِن تُبۡدُواْ مَا فِيٓ أَنفُسِكُمۡ أَوۡ تُخۡفُوهُ يُحَاسِبۡكُم بِهِ ٱللَّهُۖ فَيَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ ۝ 284
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और जो कुछ तुम्हारे मन है, यदि तुम उसे व्यक्त करो या छिपाओ, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा। फिर वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है॥284॥
ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّن رُّسُلِهِۦۚ وَقَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۖ غُفۡرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيۡكَ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 285
रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए। (और उनका कहना यह है,) "हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।" और उनका कहना है, "हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।"॥285॥
لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَعَلَيۡهَا مَا ٱكۡتَسَبَتۡۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذۡنَآ إِن نَّسِينَآ أَوۡ أَخۡطَأۡنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تَحۡمِلۡ عَلَيۡنَآ إِصۡرٗا كَمَا حَمَلۡتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلۡنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦۖ وَٱعۡفُ عَنَّا وَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَآۚ أَنتَ مَوۡلَىٰنَا فَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 286
— अल्लाह किसी जीव पर बस उसकी सामर्थ्य और समाई के अनुसार ही दायित्व का भार डालता है। उसका है जो उसने कमाया और उसी पर उसका वबाल (आपदा) भी है जो उसने किया। — "हमारे रब! यदि हम भूलें या चूक जाएँ तो हमें न पकड़ना। हमारे रब! और हम पर ऐसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था। हमारे रब! और हमसे वह बोझ न उठवा, जिसकी हमें शक्ति नहीं। और हमें क्षमा कर और हमें ढाँक ले, और हम पर दया कर। तू ही हमारा संरक्षक है, अतएव इनकार करनेवालों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।"॥286॥