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سُورَةُ الأَحۡزَابِ

33. अल-अहज़ाब

(मदीना में उतरी, आयतें 73)

 

परिचय

नाम

आयत 20 के वाक्य “यहसबूनल अहज़ा-ब लम यज़-हबू” [ये समझ रहे हैं कि आक्रमणकारी गिरोह (अल-अहज़ाब) अभी गए नहीं हैं से लिया गया है।

उतरने का समय

[यह सूरा मदीना में उतरी है। इस सूरा के विषय का संबंध तीन महत्त्वपूर्ण घटनाओं से है-

एक, अहज़ाब का युद्ध, जो शव्वाल सन् 05 हिजरी में हुआ,

दूसरा, बनी-क़ुरैज़ा का युद्ध जो ज़ी-कादा सन् 05 हिजरी में हुआ,

तीसरा, हज़रत ज़ैनब (रज़ि०) से नबी (सल्ल०) का निकाह जो इसी साल ज़ी-क़ादा में हुआ।

इन ऐतिहासिक घटनाओं से सूरा के उतरने का समय सही-सही निश्चित हो जाता है, [और यही घटनाएँ इस सूरा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी हैं।]

सामाजिक सुधार

उहुद और अहज़ाब के युद्ध के बीच के दो वर्ष का समय यद्यपि ऐसे हंगामों का था जिनके कारण नबी (सल्ल०) और आपके साथियों (रज़ि०) को एक दिन के लिए भी सुख-शान्ति प्राप्त न हुई। लेकिन इस पूरी अवधि में नए मुस्लिम समाज का निर्माण और ज़िन्दगी के हर पहलू में सुधार का काम बराबर चलता रहा। यही समय था जिसमें मुसलमानों के निकाह और तलाक़ के क़ानून लगभग पूरे हो गए। विरासत का क़ानून बना, शराब और जुए को हराम किया गया, [परदे के आदेश आने शुरू हुए] और अर्थव्यवस्था तथा सामाजिकता और समाज के दूसरे बहुत-से पहलुओं में नए क़ानून लागू किए गए।

विषय और वार्ता

यह पूरी सूरा एक व्याख्यान नहीं है जो एक ही समय में उतरा हो, बल्कि यह अनेक आदेश, फ़रमान और व्याख्यानों पर सम्मिलित है। इसके निम्नलिखित अंश स्पष्ट रूप से अलग-अलग दिखाई देते हैं-

  • आयत नम्बर 1 से 8 तक का भाग अहज़ाब अभियान से कुछ पहले का अवतरित मालूम होता है। इसके अवतरण के समय हज़रत ज़ैद (रज़ि०), हज़रत ज़ैनब (रज़ि०) को तलाक़ दे चुके थे। नबी (सल्ल०) इस ज़रूरत को महसूस कर रहे थे कि मुँह बोले बेटे के विषय में अज्ञानकाल की धारणाओं [को मिटाने के लिए हज़रत ज़ैनब (रज़ि०) से स्वयं निकाह कर लें] लेकिन सेक साथ ही इस कारण बहुत संकोच में थे कि यदि [मैंने ऐसा] किया तो इस्लाम के विरुद्ध हँगामा उठाने के लिए मुनाफ़िक़ों (कपटाचारियों) और यहूद और बहुदेववादियों को एक भारी शोशा हाथ आ जाएगा।
  • आयत 9 से लेकर 27 तक में अहज़ाब और बनी-क़ुरैज़ा के अभियान की समीक्षा की गई है। यह इस बात का स्पष्ट लक्षण है कि ये आयतें इन अभियानों के पश्चात् अवतरित हुईं हैं।
  • आयत 28 के आरंभ से आयत 35 तक का अभिभाषण दो विषयों पर आधारित है। पहले भाग में नबी (सल्ल.) की पत्नियों को जो उस तंगी और निर्धनता के समय में अधीर हो रही थीं, अल्लाह ने नोटिस दिया है कि संसार और उसकी सजावट और अल्लाह के रसूल और परलोक में से किसी को चुन लो। दूसरे भाग में सामाजिक सुधार [के पहले क़दम के रूप में] आपकी धर्म-पत्नियों को आदेश दिया गया है कि अज्ञानकाल की सज-धज से बचें, प्रतिष्ठापूर्वक अपने घरों में बैठें और अन्य पुरुषों के साथ बातचीत में बहुत सतर्कता से काम लें। ये परदे के आदेशों का आरंभ था।
  • आयत 36 से 48 तक का विषय हज़रत ज़ैनब (रज़ि०) के साथ नबी (सल्ल०) के विवाह से सम्बन्ध रखता है। इसमें उन सभी आक्षेपों का उत्तर दिया गया है, जो विधर्मियों की ओर से किए जा रहे थे।
  • आयत 49 में तलाक़ के क़ानून की एक धारा वर्णित हुई है। यह एक अकेली आयत है जो सम्भवतः इन्हीं घटनाओं के सिलसिले में किसी अवसर पर अवतरित हुई थी।
  • आयत 50 से 52 तक में नबी (सल्ल०) के लिए विवाह का विशिष्ट विधान प्रस्तुत किया गया है।
  • आयत 53 से 55 तक में सामाजिक सुधार का दूसरा क़दम उठाया गया है। यह निम्नलिखित आदेशों पर आधारित है : नबी (सल्ल०) के घरों में पराए पुरुषों के आने-जाने पर प्रतिबंध, मिलने-जुलने और भोज-निमंत्रण का नियम, नबी (सल्ल०) की पत्नियों के विषय में यह आदेश कि वे मुसलमानों के लिए माँ की तरह हराम (प्रतिष्ठित) हैं।
  • आयत 56 और 57 में उन निराधार कानाफूसियों पर सख़्त चेतावनी दी गई है जो नबी (सल्ल०) के विवाह और पारिवारिक जीवन के सम्बन्ध में की जा रही थीं।
  • आयत 59 में सामाजिक सुधार का तीसरा क़दम उठाया गया है। इसमें समस्त मुस्लिम स्त्रियों को यह आदेश दिया गया है कि जब घरों से बाहर निकलें तो चादरों से अपने आपको ढाँककर और घूँघट काढ़कर निकलें—इसके पश्चात् सूरा के अन्त तक अफ़वाह उड़ाने के उस अभियान (Whispering Campaign) पर बड़ी भर्त्सना की गई है, जो मुनाफ़िक़ों और मूर्खों और नीच प्रकृति के लोगों ने उस समय छेड़ रखा था।

 

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سُورَةُ الأَحۡزَابِ
33. अल-अहज़ाब
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ ٱتَّقِ ٱللَّهَ وَلَا تُطِعِ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا ۝ 1
ऐ नबी! अल्लाह का डर रखना और इनकार करनेवालों और कपटाचारियों का कहना न मानना। वास्तब में अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।॥1॥
وَٱتَّبِعۡ مَا يُوحَىٰٓ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا ۝ 2
और अनुकरण करना उस चीज़ का जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हें प्रकाशना की जा रही है। निश्चय ही अल्लाह उसकी ख़बर रखता है जो तुम करते हो।॥2॥
وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا ۝ 3
और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह भरोसे के लिए काफ़ी है।॥3॥
مَّا جَعَلَ ٱللَّهُ لِرَجُلٖ مِّن قَلۡبَيۡنِ فِي جَوۡفِهِۦۚ وَمَا جَعَلَ أَزۡوَٰجَكُمُ ٱلَّٰٓـِٔي تُظَٰهِرُونَ مِنۡهُنَّ أُمَّهَٰتِكُمۡۚ وَمَا جَعَلَ أَدۡعِيَآءَكُمۡ أَبۡنَآءَكُمۡۚ ذَٰلِكُمۡ قَوۡلُكُم بِأَفۡوَٰهِكُمۡۖ وَٱللَّهُ يَقُولُ ٱلۡحَقَّ وَهُوَ يَهۡدِي ٱلسَّبِيلَ ۝ 4
अल्लाह ने किसी व्यक्ति के भीतर दो दिल नहीं रखे। और न उसने तुम्हारी उन पत्‍नियों को, जिनसे तुम ज़िहार कर बैठते हो1, वास्तव में तुम्हारी माँ बनाया, और न उसने तुम्हारे मुँहबोले बेटों को तुम्हारे वास्तविक बेटे बनाए। ये तो तुम्हारे मुँह की बातें हैं। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहता है और वही मार्ग दिखाता है।॥4॥ ———————— 1. अज्ञानकाल के लोग अपनी पत्नयों से झगड़ते समय कभी यह कह बैठते थे अब तू मेरे लिए मेरी माँ की पीठ की तरह हराम है। इसे ज़िहार करना कहा जाता है। ज़िहार करने से पत्नी माँ नहीं हो सकती।
ٱدۡعُوهُمۡ لِأٓبَآئِهِمۡ هُوَ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِۚ فَإِن لَّمۡ تَعۡلَمُوٓاْ ءَابَآءَهُمۡ فَإِخۡوَٰنُكُمۡ فِي ٱلدِّينِ وَمَوَٰلِيكُمۡۚ وَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٞ فِيمَآ أَخۡطَأۡتُم بِهِۦ وَلَٰكِن مَّا تَعَمَّدَتۡ قُلُوبُكُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمًا ۝ 5
उन्हें2 उनके बापों का बेटा करकर पुकारो। अल्लाह के यहाँ यही अधिक न्याय-संगत बात है। और यदि तुम उनके बापों को न जानते हो तो धर्म में वे तुम्हारे भाई तो हैं ही, और तुम्हारे क़बीले में सम्मिलित भी। इस सिलसिले में तुमसे जो ग़लती हुई हो उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं, किन्तु जिसका संकल्प तुम्हारे दिलों ने कर लिया उसकी बात और है।3 वास्तव में अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।॥5॥ ——————— 2. अर्थात् मुँह बोले बेटों को। 3. अर्थात् उसपर पकड़ है।
ٱلنَّبِيُّ أَوۡلَىٰ بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ مِنۡ أَنفُسِهِمۡۖ وَأَزۡوَٰجُهُۥٓ أُمَّهَٰتُهُمۡۗ وَأُوْلُواْ ٱلۡأَرۡحَامِ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلَىٰ بِبَعۡضٖ فِي كِتَٰبِ ٱللَّهِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُهَٰجِرِينَ إِلَّآ أَن تَفۡعَلُوٓاْ إِلَىٰٓ أَوۡلِيَآئِكُم مَّعۡرُوفٗاۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مَسۡطُورٗا ۝ 6
नबी का हक़ ईमानवालों पर स्वयं उनके अपने प्राणों से बढ़कर है। और उसकी पत्नियाँ उनकी माएँ हैं। और अल्लाह के विधान के अनुसार सामान्य मोमिनों और मुहाजिरों की अपेक्षा नातेदार आपस में एक-दूसरे से अधिक निकट हैं, यह और बात है कि तुम अपने साथियों के साथ कोई भलाई करो। यह बात किताब में लिखी हुई है।॥6॥
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ مِيثَٰقَهُمۡ وَمِنكَ وَمِن نُّوحٖ وَإِبۡرَٰهِيمَ وَمُوسَىٰ وَعِيسَى ٱبۡنِ مَرۡيَمَۖ وَأَخَذۡنَا مِنۡهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا ۝ 7
और याद करो जब हमने नबियों से उनका वचन लिया, तुमसे भी और नूह और इबराहीम और मूसा और मरयम के बेटे ईसा से भी। इन सबसे हमने ढृढ़ वचन लिया।॥7॥
لِّيَسۡـَٔلَ ٱلصَّٰدِقِينَ عَن صِدۡقِهِمۡۚ وَأَعَدَّ لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابًا أَلِيمٗا ۝ 8
ताकि वह सच्चे लोगों से उनकी सच्चाई के बारे में पूछे। और इनकार करनेवालों के लिए तो उसने दुखद यातना तैयार कर रखी है।॥8॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ جَآءَتۡكُمۡ جُنُودٞ فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا وَجُنُودٗا لَّمۡ تَرَوۡهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرًا ۝ 9
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की उस अनुकम्पा को याद करो जो तुमपर हुई; जबकि सेनाएँ तुमपर चढ़ आईं तो हमने उनपर एक हवा भेज दी और ऐसी सेनाएँ भी जिनको तुमने देखा नहीं। और अल्लाह वह सब कुछ देखता है जो तुम करते हो।॥9॥
إِذۡ جَآءُوكُم مِّن فَوۡقِكُمۡ وَمِنۡ أَسۡفَلَ مِنكُمۡ وَإِذۡ زَاغَتِ ٱلۡأَبۡصَٰرُ وَبَلَغَتِ ٱلۡقُلُوبُ ٱلۡحَنَاجِرَ وَتَظُنُّونَ بِٱللَّهِ ٱلظُّنُونَا۠ ۝ 10
याद करो जब वे तुम्हारे ऊपर की ओर से और तुम्हारे नीचे की ओर से भी तुमपर चढ़ आए, और जब निगाहें टेढ़ी-तिरछी हो गईं और दिल कण्‍ठ को आ लगे, और तुम अल्लाह के बारे में तरह-तरह के गुमान करने लगे थे।॥10॥
هُنَالِكَ ٱبۡتُلِيَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَزُلۡزِلُواْ زِلۡزَالٗا شَدِيدٗا ۝ 11
उस समय ईमानवाले आज़माए गए और पूरी तरह हिला दिए गए।॥11॥
وَإِذۡ يَقُولُ ٱلۡمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ مَّا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ إِلَّا غُرُورٗا ۝ 12
और जब कपटाचारी और वे लोग, जिनके दिलों में रोग है, कहने लगे, "अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे जो वादा किया था वह तो धोखा मात्र था।"॥12॥
وَإِذۡ قَالَت طَّآئِفَةٞ مِّنۡهُمۡ يَٰٓأَهۡلَ يَثۡرِبَ لَا مُقَامَ لَكُمۡ فَٱرۡجِعُواْۚ وَيَسۡتَـٔۡذِنُ فَرِيقٞ مِّنۡهُمُ ٱلنَّبِيَّ يَقُولُونَ إِنَّ بُيُوتَنَا عَوۡرَةٞ وَمَا هِيَ بِعَوۡرَةٍۖ إِن يُرِيدُونَ إِلَّا فِرَارٗا ۝ 13
और जबकि उनमें से एक गिरोह ने कहा, "ऐ यसरिबवालो4, तुम्हारे लिए ठहरने का कोई मौक़ा नहीं। अतः लौट चलो।" और उनका एक गिरोह नबी से यह कहकर (वापस जाने की) अनुमति चाह रहा था कि "हमारे घर असुरक्षित हैं।" यद्यपि वे असुरक्षित न थे। वे तो बस भागना चाहते थे।॥13॥ ————————— 4. अर्थात् मदीनावालो।
وَلَوۡ دُخِلَتۡ عَلَيۡهِم مِّنۡ أَقۡطَارِهَا ثُمَّ سُئِلُواْ ٱلۡفِتۡنَةَ لَأٓتَوۡهَا وَمَا تَلَبَّثُواْ بِهَآ إِلَّا يَسِيرٗا ۝ 14
और यदि उसके चारों तरफ़ से उनपर हमला हो जाता, फिर उस समय उनसे उपद्रव के लिए कहा जाता5 तो वे ऐसा कर डालते और इसमें विलम्ब थोड़े ही करते!॥14॥ ————————— 5. अर्थात् यदि उनसे कहा जाता कि इस्लाम को त्याग कर इस्लाम विरोधियों का साथ दो, तो वे घरों में न ठहरते और अविलम्ब उनके साथ हो जाते।
وَلَقَدۡ كَانُواْ عَٰهَدُواْ ٱللَّهَ مِن قَبۡلُ لَا يُوَلُّونَ ٱلۡأَدۡبَٰرَۚ وَكَانَ عَهۡدُ ٱللَّهِ مَسۡـُٔولٗا ۝ 15
यद्यपि वे इससे पहले अल्लाह को वचन दे चुके थे कि वे पीठ न फेरेंगे, और अल्लाह से की गई प्रतिज्ञा के विषय में तो पूछा जाना ही है।॥15॥
قُل لَّن يَنفَعَكُمُ ٱلۡفِرَارُ إِن فَرَرۡتُم مِّنَ ٱلۡمَوۡتِ أَوِ ٱلۡقَتۡلِ وَإِذٗا لَّا تُمَتَّعُونَ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 16
कह दो, "यदि तुम मृत्यु और मारे जाने से भागो भी तो यह भागना तुम्हारे लिए कदापि लाभप्रद न होगा। और इस हालत में भी तुम सुख थोड़े ही प्राप्त कर सकोगे।"॥16॥
قُلۡ مَن ذَا ٱلَّذِي يَعۡصِمُكُم مِّنَ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَ بِكُمۡ سُوٓءًا أَوۡ أَرَادَ بِكُمۡ رَحۡمَةٗۚ وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا ۝ 17
कहो, "कौन है जो तुम्हें अल्लाह से बचा सकता है यदि वह तुम्हारी कोई बुराई चाहे, या वह तुम्हारे प्रति दयालुता का इरादा करे (तो कौन उसकी दयालुता को रोक सके)?" वे अपने और अल्लाह के बीच आजानेवाला न अपना कोई निकटवर्ती समर्थक पाएँगे और न (दूर का) सहायक।॥17॥
۞قَدۡ يَعۡلَمُ ٱللَّهُ ٱلۡمُعَوِّقِينَ مِنكُمۡ وَٱلۡقَآئِلِينَ لِإِخۡوَٰنِهِمۡ هَلُمَّ إِلَيۡنَاۖ وَلَا يَأۡتُونَ ٱلۡبَأۡسَ إِلَّا قَلِيلًا ۝ 18
अल्लाह तुममें से उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो (युद्ध से) रोकते हैं और अपने भाइयों से कहते हैं, "हमारे पास आ जाओ।" और वे लड़ाई में थोड़े ही आते हैं, (क्योंकि वे)॥18॥
أَشِحَّةً عَلَيۡكُمۡۖ فَإِذَا جَآءَ ٱلۡخَوۡفُ رَأَيۡتَهُمۡ يَنظُرُونَ إِلَيۡكَ تَدُورُ أَعۡيُنُهُمۡ كَٱلَّذِي يُغۡشَىٰ عَلَيۡهِ مِنَ ٱلۡمَوۡتِۖ فَإِذَا ذَهَبَ ٱلۡخَوۡفُ سَلَقُوكُم بِأَلۡسِنَةٍ حِدَادٍ أَشِحَّةً عَلَى ٱلۡخَيۡرِۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَمۡ يُؤۡمِنُواْ فَأَحۡبَطَ ٱللَّهُ أَعۡمَٰلَهُمۡۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٗا ۝ 19
तुम्हारे साथ कंजूसी से काम लेते हैं। अतः जब भय का समय आ जाता है तो तुम उन्हें देखते हो कि वे तुम्हारी ओर इस प्रकार ताक रहे हैं कि उनकी आँखें चक्कर खा रही हैं, जैसे किसी व्यक्ति पर मौत की बेहोशी छा रही हो। किन्तु जब भय जाता रहता है तो वे माल के लोभ में तेज़ ज़बानें तुमपर चलाते हैं। ऐसे लोग ईमान लाए ही नहीं। अतः अल्लाह ने उनके कर्म उनकी जान को लागू कर दिए। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है।॥19॥
يَحۡسَبُونَ ٱلۡأَحۡزَابَ لَمۡ يَذۡهَبُواْۖ وَإِن يَأۡتِ ٱلۡأَحۡزَابُ يَوَدُّواْ لَوۡ أَنَّهُم بَادُونَ فِي ٱلۡأَعۡرَابِ يَسۡـَٔلُونَ عَنۡ أَنۢبَآئِكُمۡۖ وَلَوۡ كَانُواْ فِيكُم مَّا قَٰتَلُوٓاْ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 20
वे समझ रहे हैं कि (शत्रु के) सैन्य दल अभी गए नहीं हैं, और यदि वे गिरोह फिर आ जाएँ तो वे चाहेंगे कि किसी प्रकार बाहर (मरुस्थल में) बद्दुओं के साथ हो रहें और वहीं से तुम्हारे बारे में समाचार पूछते रहें। और यदि वे तुम्हारे साथ होते भी तो लड़ाई में हिस्सा थोड़े ही लेते।॥20॥
لَّقَدۡ كَانَ لَكُمۡ فِي رَسُولِ ٱللَّهِ أُسۡوَةٌ حَسَنَةٞ لِّمَن كَانَ يَرۡجُواْ ٱللَّهَ وَٱلۡيَوۡمَ ٱلۡأٓخِرَ وَذَكَرَ ٱللَّهَ كَثِيرٗا ۝ 21
निस्संदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में एक उत्तम आदर्श है, अर्थात् उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और अन्तिम दिन की आशा रखता हो और अल्लाह को अधिक याद करे।॥21॥
وَلَمَّا رَءَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلۡأَحۡزَابَ قَالُواْ هَٰذَا مَا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَصَدَقَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥۚ وَمَا زَادَهُمۡ إِلَّآ إِيمَٰنٗا وَتَسۡلِيمٗا ۝ 22
और जब ईमानवालों ने सैन्य दलों को देखा तो वे पुकार उठे, "यह तो वही चीज़ है जिसका अल्लाह और उसके रसूल ने हमसे वादा किया था। और अल्लाह और उसके रसूल ने सच कहा था।" इस चीज़ ने उनके ईमान और आज्ञाकारिता ही को बढ़ाया।॥22॥
مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ رِجَالٞ صَدَقُواْ مَا عَٰهَدُواْ ٱللَّهَ عَلَيۡهِۖ فَمِنۡهُم مَّن قَضَىٰ نَحۡبَهُۥ وَمِنۡهُم مَّن يَنتَظِرُۖ وَمَا بَدَّلُواْ تَبۡدِيلٗا ۝ 23
ईमानवालों के रूप में ऐसे पुरुष मौजूद हैं कि जो प्रतिज्ञा उन्होंने अल्लाह से की थी उसे उन्होंने सच्चा कर दिखाया। फिर उनमें से कुछ तो अपना प्रण पूरा कर चुके और उनमें से कुछ प्रतीक्षा में हैं। और उन्होंने अपनी बात तनिक भी नहीं बदली।॥23॥
لِّيَجۡزِيَ ٱللَّهُ ٱلصَّٰدِقِينَ بِصِدۡقِهِمۡ وَيُعَذِّبَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ إِن شَآءَ أَوۡ يَتُوبَ عَلَيۡهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا ۝ 24
ताकि इसके परिणामस्वरूप अल्लाह सच्चों को उनकी सच्चाई का बदला दे और कपटाचारियों को चाहे तो यातना दे या उनकी तौबा क़ुबूल करे। निश्चय ही अल्लाह बड़ी क्षमाशील, दयावान है।॥24॥
وَرَدَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِغَيۡظِهِمۡ لَمۡ يَنَالُواْ خَيۡرٗاۚ وَكَفَى ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱلۡقِتَالَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزٗا ۝ 25
अल्लाह ने इनकार करनेवालों को उनके अपने क्रोध के साथ फेर दिया। वे कोई भलाई प्राप्त न कर सके। युद्ध में अल्लाह ही मोमिनों के लिए काफ़ी हो गया। अल्लाह तो है ही बड़ा शक्तिमान, प्रभुत्वशाली।॥25॥
وَأَنزَلَ ٱلَّذِينَ ظَٰهَرُوهُم مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ مِن صَيَاصِيهِمۡ وَقَذَفَ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلرُّعۡبَ فَرِيقٗا تَقۡتُلُونَ وَتَأۡسِرُونَ فَرِيقٗا ۝ 26
और किताबवालों में से जिन लोगों ने उनकी6 सहायता की थी उन्हें उनकी गढ़ियों से उतार लाया। और उनके दिलों में धाक बिठा दी कि तुम एक गिरोह को जान से मारने लगे और एक गिरोह को बन्दी बनाने लगे।॥26॥ ————————— 6. अर्थात् ईमान लाने के लिए परोक्ष को देख लेने को शर्त वे नहीं लगाते।
وَأَوۡرَثَكُمۡ أَرۡضَهُمۡ وَدِيَٰرَهُمۡ وَأَمۡوَٰلَهُمۡ وَأَرۡضٗا لَّمۡ تَطَـُٔوهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٗا ۝ 27
और उसने तुम्हें उनके भू-भाग और उनके घरों और उनके मालों का वारिस बना दिया और उस भू-भाग का भी जिसे तुमने पददलित नहीं किया। वास्तव में अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।॥27॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ قُل لِّأَزۡوَٰجِكَ إِن كُنتُنَّ تُرِدۡنَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا وَزِينَتَهَا فَتَعَالَيۡنَ أُمَتِّعۡكُنَّ وَأُسَرِّحۡكُنَّ سَرَاحٗا جَمِيلٗا ۝ 28
ऐ नबी! अपनी पत्नियों से कह दो, "यदि तुम सांसारिक जीवन और उसकी शोभा चाहती हो तो आओ, मैं तुम्हें कुछ दे-दिलाकर भली रीति से विदा कर दूँ।॥28॥
وَإِن كُنتُنَّ تُرِدۡنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَٱلدَّارَ ٱلۡأٓخِرَةَ فَإِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلۡمُحۡسِنَٰتِ مِنكُنَّ أَجۡرًا عَظِيمٗا ۝ 29
"किन्तु यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हो तो निश्चय ही अल्लाह ने तुममें से उत्तमकारों के लिए बड़ा प्रतिदान रख छोड़ा है।"॥29॥
يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِيِّ مَن يَأۡتِ مِنكُنَّ بِفَٰحِشَةٖ مُّبَيِّنَةٖ يُضَٰعَفۡ لَهَا ٱلۡعَذَابُ ضِعۡفَيۡنِۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٗا ۝ 30
ऐ नबी की स्त्रियो! तुममें से जो कोई प्रत्यक्ष अनुचित कर्म करे तो उसके लिए दोहरी यातना होगी। और यह अल्लाह के लिए बहुत सरल है।॥30॥
۞وَمَن يَقۡنُتۡ مِنكُنَّ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتَعۡمَلۡ صَٰلِحٗا نُّؤۡتِهَآ أَجۡرَهَا مَرَّتَيۡنِ وَأَعۡتَدۡنَا لَهَا رِزۡقٗا كَرِيمٗا ۝ 31
किन्तु तुममें से जो अल्लाह और उसके रसूल के प्रति निष्ठापूर्वक आज्ञाकारिता की नीति अपनाए और अच्छा कर्म करे, उसे हम दोहरा प्रतिदान प्रदान करेंगे और उसके लिए हमने सम्मानपूर्ण आजीविका तैयार कर रखी है।॥31॥
يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِيِّ لَسۡتُنَّ كَأَحَدٖ مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِنِ ٱتَّقَيۡتُنَّۚ فَلَا تَخۡضَعۡنَ بِٱلۡقَوۡلِ فَيَطۡمَعَ ٱلَّذِي فِي قَلۡبِهِۦ مَرَضٞ وَقُلۡنَ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا ۝ 32
ऐ नबी की स्त्रियो! तुम सामान्य स्त्रियों में से किसी की तरह नहीं हो यदि तुम अल्लाह का डर रखो। तो तुम दबी ज़बान से बात न करना कि वह व्यक्ति, जिसके दिल में रोग है, वह लालच में पड़ जाए। तुम सामान्य रूप से बात करो।॥32॥
وَقَرۡنَ فِي بُيُوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجۡنَ تَبَرُّجَ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِ ٱلۡأُولَىٰۖ وَأَقِمۡنَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتِينَ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِعۡنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُذۡهِبَ عَنكُمُ ٱلرِّجۡسَ أَهۡلَ ٱلۡبَيۡتِ وَيُطَهِّرَكُمۡ تَطۡهِيرٗا ۝ 33
अपने घरों में टिककर रहो और विगत अज्ञानकाल की-सी सज-धज न दिखाती फिरना। नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो। और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। अल्लाह तो बस यही चाहता है कि ऐ नबी के घरवालो, तुमसे गन्दगी को दूर रखे और तुम्हें पूरी तरह पाक-साफ़ रखे।॥33॥
وَٱذۡكُرۡنَ مَا يُتۡلَىٰ فِي بُيُوتِكُنَّ مِنۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ وَٱلۡحِكۡمَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ لَطِيفًا خَبِيرًا ۝ 34
तुम्हारे घरों में अल्लाह की जो आयतें और तत्वदर्शिता की बातें7 सुनाई जाती हैं उनकी परिचर्चा करती रहो। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी, खबर रखनेवाला है।॥34॥ ———————— 7. यहाँ तत्वदर्शिता से अभिप्रेत सभ्यता और शिष्टाचार की उत्तम शिक्षाएँ हैं।
إِنَّ ٱلۡمُسۡلِمِينَ وَٱلۡمُسۡلِمَٰتِ وَٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ وَٱلۡقَٰنِتِينَ وَٱلۡقَٰنِتَٰتِ وَٱلصَّٰدِقِينَ وَٱلصَّٰدِقَٰتِ وَٱلصَّٰبِرِينَ وَٱلصَّٰبِرَٰتِ وَٱلۡخَٰشِعِينَ وَٱلۡخَٰشِعَٰتِ وَٱلۡمُتَصَدِّقِينَ وَٱلۡمُتَصَدِّقَٰتِ وَٱلصَّٰٓئِمِينَ وَٱلصَّٰٓئِمَٰتِ وَٱلۡحَٰفِظِينَ فُرُوجَهُمۡ وَٱلۡحَٰفِظَٰتِ وَٱلذَّٰكِرِينَ ٱللَّهَ كَثِيرٗا وَٱلذَّٰكِرَٰتِ أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُم مَّغۡفِرَةٗ وَأَجۡرًا عَظِيمٗا ۝ 35
मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियाँ, ईमानवाले पुरुष और ईमानवाली स्त्रियाँ, निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करनेवाले पुरुष और निष्ठापूर्वक आज्ञापालन करनेवाली स्त्रियाँ, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियाँ, धैर्यवान पुरुष और धैर्य रखनेवाली स्त्रियाँ, विनम्रता दिखानेवाले पुरुष और विनम्रता दिखानेवाली स्त्रियाँ, सदक़ा (दान) देनेवाले पुरुष और सदक़ा देनेवाली स्त्रियाँ, रोज़ा रखनेवाले पुरुष और रोज़ा रखनेवाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करनेवाले पुरुष और रक्षा करनेवाली स्त्रियाँ और अल्लाह को अधिक याद करनेवाले पुरुष और याद करनेवाली स्त्रियाँ — इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है।॥35॥
وَمَا كَانَ لِمُؤۡمِنٖ وَلَا مُؤۡمِنَةٍ إِذَا قَضَى ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ أَمۡرًا أَن يَكُونَ لَهُمُ ٱلۡخِيَرَةُ مِنۡ أَمۡرِهِمۡۗ وَمَن يَعۡصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلَٰلٗا مُّبِينٗا ۝ 36
न किसी ईमानवाले पुरुष और न किसी ईमानवाली स्त्री को यह अधिकार है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी मामले का फ़ैसला कर दें तो फिर उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार शेष रहे। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुली गुमराही में पड़ गया।॥36॥
وَإِذۡ تَقُولُ لِلَّذِيٓ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ وَأَنۡعَمۡتَ عَلَيۡهِ أَمۡسِكۡ عَلَيۡكَ زَوۡجَكَ وَٱتَّقِ ٱللَّهَ وَتُخۡفِي فِي نَفۡسِكَ مَا ٱللَّهُ مُبۡدِيهِ وَتَخۡشَى ٱلنَّاسَ وَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخۡشَىٰهُۖ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيۡدٞ مِّنۡهَا وَطَرٗا زَوَّجۡنَٰكَهَا لِكَيۡ لَا يَكُونَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ حَرَجٞ فِيٓ أَزۡوَٰجِ أَدۡعِيَآئِهِمۡ إِذَا قَضَوۡاْ مِنۡهُنَّ وَطَرٗاۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ مَفۡعُولٗا ۝ 37
याद करो (ऐ नबी), जबकि तुम उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्पा की और तुमने भी जिसपर अनुकम्पा की कि "अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखो और अल्लाह का डर रखो, और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला है। तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो।" अतः जब ज़ैद ने उससे अपना सम्‍बन्‍ध समाप्‍त कर लिया तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया, ताकि ईमानवालों पर अपने मुँहबोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपना सम्‍बन्‍ध समाप्‍त कर लें। अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है।॥37॥
مَّا كَانَ عَلَى ٱلنَّبِيِّ مِنۡ حَرَجٖ فِيمَا فَرَضَ ٱللَّهُ لَهُۥۖ سُنَّةَ ٱللَّهِ فِي ٱلَّذِينَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلُۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ قَدَرٗا مَّقۡدُورًا ۝ 38
नबी पर उस काम में कोई तंगी नहीं जो अल्लाह ने उसके लिए ठहराया हो। यही अल्लाह का दस्तूर उन लोगों के मामले में भी रहा है जो पहले गुज़र चुके है — और अल्लाह का काम तो जँचा-तुला होता है। —॥38॥
ٱلَّذِينَ يُبَلِّغُونَ رِسَٰلَٰتِ ٱللَّهِ وَيَخۡشَوۡنَهُۥ وَلَا يَخۡشَوۡنَ أَحَدًا إِلَّا ٱللَّهَۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبٗا ۝ 39
जो अल्लाह के संदेश पहुँचाते थे और उसी से डरते थे और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते थे। और हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है। —॥39॥
مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَآ أَحَدٖ مِّن رِّجَالِكُمۡ وَلَٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ ٱلنَّبِيِّـۧنَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا ۝ 40
मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के बाप नहीं हैं, बल्कि वे अल्लाह के रसूल और नबियों के समापक (अन्तिम नबी) हैं। अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है।॥40॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ ذِكۡرٗا كَثِيرٗا ۝ 41
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह को अधिक याद करो॥41॥
وَسَبِّحُوهُ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلًا ۝ 42
और सुबह और शाम उसकी तसबीह (महीमागान) करते रहो —॥42॥
هُوَ ٱلَّذِي يُصَلِّي عَلَيۡكُمۡ وَمَلَٰٓئِكَتُهُۥ لِيُخۡرِجَكُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۚ وَكَانَ بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ رَحِيمٗا ۝ 43
वही है जो तुमपर रहमत भेजता है और उसके फ़रिश्ते भी (दुआएँ करते हैं) — ताकि वह तुम्हें अँधरों से प्रकाश की ओर निकाल लाए। वास्तव में वह ईमानवालों पर बहुत दयालु है।॥43॥
تَحِيَّتُهُمۡ يَوۡمَ يَلۡقَوۡنَهُۥ سَلَٰمٞۚ وَأَعَدَّ لَهُمۡ أَجۡرٗا كَرِيمٗا ۝ 44
जिस दिन वे उससे मिलेंगे उनका अभिवादन होगा 'सलाम' और उनके लिए उसने प्रतिष्ठामय प्रतिदान तैयार कर रखा है।॥44॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ شَٰهِدٗا وَمُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا ۝ 45
ऐ नबी! हमने तुमको साक्षी और शुभ-सूचना देनेवाला और सचेल करनेवाला बनाकर भेजा है;॥45॥
وَدَاعِيًا إِلَى ٱللَّهِ بِإِذۡنِهِۦ وَسِرَاجٗا مُّنِيرٗا ۝ 46
और अल्लाह की अनुज्ञा से उसकी ओर बुलानेवाला और प्रकाशमान प्रदीप बनाकर।॥46॥
وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ بِأَنَّ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَضۡلٗا كَبِيرٗا ۝ 47
ईमानवालों को शुभ-सूचना दे दो कि उनके लिए अल्लाह को ओर से बहुत बड़ा उदार अनुग्रह है।॥47॥
وَلَا تُطِعِ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَدَعۡ أَذَىٰهُمۡ وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا ۝ 48
और इनकार करनेवालों और कपटाचारियों के कहने में न आना। उनकी पहुँचाई हुई तकलीफ़ का ख़याल न करो। और अल्लाह पर भरोसा रखो। अल्लाह इसके लिए काफ़ी है कि अपने मामले में उसपर भरोसा किया जाए॥48॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا نَكَحۡتُمُ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ ثُمَّ طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمۡ عَلَيۡهِنَّ مِنۡ عِدَّةٖ تَعۡتَدُّونَهَاۖ فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحٗا جَمِيلٗا ۝ 49
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम ईमानवाली स्त्रियों से विवाह करो और फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत नहीं जिसकी तुम गिनती करो। अतः उन्हें कुछ सामान दे दो और भली रीति से विदा कर दो॥49॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ إِنَّآ أَحۡلَلۡنَا لَكَ أَزۡوَٰجَكَ ٱلَّٰتِيٓ ءَاتَيۡتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتۡ يَمِينُكَ مِمَّآ أَفَآءَ ٱللَّهُ عَلَيۡكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّٰتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَٰلَٰتِكَ ٱلَّٰتِي هَاجَرۡنَ مَعَكَ وَٱمۡرَأَةٗ مُّؤۡمِنَةً إِن وَهَبَتۡ نَفۡسَهَا لِلنَّبِيِّ إِنۡ أَرَادَ ٱلنَّبِيُّ أَن يَسۡتَنكِحَهَا خَالِصَةٗ لَّكَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۗ قَدۡ عَلِمۡنَا مَا فَرَضۡنَا عَلَيۡهِمۡ فِيٓ أَزۡوَٰجِهِمۡ وَمَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ لِكَيۡلَا يَكُونَ عَلَيۡكَ حَرَجٞۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا ۝ 50
ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिए तुम्हारी वे पत्नियाँ वैध कर दी हैं जिनके मह्र तुम दे चुके हो, और उन स्त्रियों को भी जो तुम्हारी मिल्कियत में आईं, जिन्हें अल्लाह ने ग़नीमत के रूप में तुम्हें दीं और तुम्हारी चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामुओं की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है और वह ईमानवाली स्त्री जो अपने आपको नबी के लिए दे दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। ईमानवालों से हटकर (कई पत्नियाँ रखना) केवल तुम्हारे ही लिए है, हमें मालूम है जो कुछ हमने उनकी पत्‍नियों और उनकी लौंडियों के बारे में उनपर अनिवार्य किया है — ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है।॥50॥
۞تُرۡجِي مَن تَشَآءُ مِنۡهُنَّ وَتُـٔۡوِيٓ إِلَيۡكَ مَن تَشَآءُۖ وَمَنِ ٱبۡتَغَيۡتَ مِمَّنۡ عَزَلۡتَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكَۚ ذَٰلِكَ أَدۡنَىٰٓ أَن تَقَرَّ أَعۡيُنُهُنَّ وَلَا يَحۡزَنَّ وَيَرۡضَيۡنَ بِمَآ ءَاتَيۡتَهُنَّ كُلُّهُنَّۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا فِي قُلُوبِكُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَلِيمٗا ۝ 51
तुम उनमें से जिसे चाहो अपने से अलग रखाे और जिसे चाहो अपने पास रखो, और जिनको तुमने अलग रखा हो उनमें से किसी के इच्छुक हो तो इसमें तुमपर कोई दोष नहीं, इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि उनकी आँखें ठण्‍डी रहें और वे शोकाकुल न हों और जो कुछ तुम उन्हें दो उसपर वे राज़ी रहें। अल्लाह जानता है जो कुछ तुम्हारे दिलों में है। अल्लाह सर्वज्ञ, बहुत सहनशील है।॥51॥
لَّا يَحِلُّ لَكَ ٱلنِّسَآءُ مِنۢ بَعۡدُ وَلَآ أَن تَبَدَّلَ بِهِنَّ مِنۡ أَزۡوَٰجٖ وَلَوۡ أَعۡجَبَكَ حُسۡنُهُنَّ إِلَّا مَا مَلَكَتۡ يَمِينُكَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ رَّقِيبٗا ۝ 52
इसके बाद तुम्हारे लिए दूसरी स्त्रियाँ वैध नहीं और न यह कि तुम उनकी जगह दूसरी पत्नियाँ ले आओ, यद्यपि उनका सौन्दर्य तुम्हें कितना ही भाए। उनकी बात और है जो तुम्हारी लौंडियाँ हों। वास्तव में अल्लाह की दृष्टि हर चीज़ पर है।॥52॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَدۡخُلُواْ بُيُوتَ ٱلنَّبِيِّ إِلَّآ أَن يُؤۡذَنَ لَكُمۡ إِلَىٰ طَعَامٍ غَيۡرَ نَٰظِرِينَ إِنَىٰهُ وَلَٰكِنۡ إِذَا دُعِيتُمۡ فَٱدۡخُلُواْ فَإِذَا طَعِمۡتُمۡ فَٱنتَشِرُواْ وَلَا مُسۡتَـٔۡنِسِينَ لِحَدِيثٍۚ إِنَّ ذَٰلِكُمۡ كَانَ يُؤۡذِي ٱلنَّبِيَّ فَيَسۡتَحۡيِۦ مِنكُمۡۖ وَٱللَّهُ لَا يَسۡتَحۡيِۦ مِنَ ٱلۡحَقِّۚ وَإِذَا سَأَلۡتُمُوهُنَّ مَتَٰعٗا فَسۡـَٔلُوهُنَّ مِن وَرَآءِ حِجَابٖۚ ذَٰلِكُمۡ أَطۡهَرُ لِقُلُوبِكُمۡ وَقُلُوبِهِنَّۚ وَمَا كَانَ لَكُمۡ أَن تُؤۡذُواْ رَسُولَ ٱللَّهِ وَلَآ أَن تَنكِحُوٓاْ أَزۡوَٰجَهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦٓ أَبَدًاۚ إِنَّ ذَٰلِكُمۡ كَانَ عِندَ ٱللَّهِ عَظِيمًا ۝ 53
ऐ ईमान लानेवालो! नबी के घरों में प्रवेश न करो सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने पर आने की अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि उसकी (खाना पकने की) तैयारी की प्रतिक्षा में न रहो। अलबत्ता जब तुम्हें बुलाया जाए तो अन्दर जाओ, और जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ, बातों में लगे न रहो। निश्चय ही तुम्‍हारी यह हरकत नबी को तकलीफ़ देती है। किन्तु उन्हें तुमसे लज्जा आती है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहने से लज्जा नहीं करता। और जब तुम उनसे (नबी की पत्नियों से) कुछ माँगों तो उनसे परदे के पीछे से माँगो। यह अधिक शुद्धता की बात है तुम्हारे दिलों के लिए, और उनके दिलों के लिए भी। तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम अल्लाह के रसूल को तकलीफ़ पहुँचाओ, और न यह कि उसके बाद कभी उसकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही अल्लाह की दृष्टि में यह बड़ी गम्भीर बात है।॥53॥
إِن تُبۡدُواْ شَيۡـًٔا أَوۡ تُخۡفُوهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا ۝ 54
तुम चाहे किसी चीज़ को व्यक्त करो या उसे छिपाओ, अल्लाह को तो हर चीज़ का ज्ञान है।॥54॥
لَّا جُنَاحَ عَلَيۡهِنَّ فِيٓ ءَابَآئِهِنَّ وَلَآ أَبۡنَآئِهِنَّ وَلَآ إِخۡوَٰنِهِنَّ وَلَآ أَبۡنَآءِ إِخۡوَٰنِهِنَّ وَلَآ أَبۡنَآءِ أَخَوَٰتِهِنَّ وَلَا نِسَآئِهِنَّ وَلَا مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُنَّۗ وَٱتَّقِينَ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدًا ۝ 55
न उनके लिए अपने बापों के सामने होने में कोई दोष है और न अपने बेटों, न अपने भाइयों, न अपने भतीजों, न अपने भांजो, न अपने मेल की स्त्रियों और न जिनपर उन्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनके सामने होने में। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ का साक्षी है।॥55॥
إِنَّ ٱللَّهَ وَمَلَٰٓئِكَتَهُۥ يُصَلُّونَ عَلَى ٱلنَّبِيِّۚ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ صَلُّواْ عَلَيۡهِ وَسَلِّمُواْ تَسۡلِيمًا ۝ 56
निस्संदेह अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते हैं। ऐ ईमान लानेवालो, तुम भी उसपर रहमत भेजो और ख़ूब सलाम भेजो।॥56॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُؤۡذُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَأَعَدَّ لَهُمۡ عَذَابٗا مُّهِينٗا ۝ 57
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल को दुख पहुँचाते है, अल्लाह ने उनपर दुनिया और आख़िरत में लानत की है और उनके लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है।॥57॥
وَٱلَّذِينَ يُؤۡذُونَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ بِغَيۡرِ مَا ٱكۡتَسَبُواْ فَقَدِ ٱحۡتَمَلُواْ بُهۡتَٰنٗا وَإِثۡمٗا مُّبِينٗا ۝ 58
और जो लोग ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों को, बिना इसके कि उन्होंने कुछ किया हो (आरोप लगाकर), दुख पहुँचाते हैं, उन्होंने तो बड़े मिथ्यारोपण और प्रत्यक्ष गुनाह का बोझ अपने ऊपर उठा लिया।॥58॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ قُل لِّأَزۡوَٰجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَآءِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ يُدۡنِينَ عَلَيۡهِنَّ مِن جَلَٰبِيبِهِنَّۚ ذَٰلِكَ أَدۡنَىٰٓ أَن يُعۡرَفۡنَ فَلَا يُؤۡذَيۡنَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا ۝ 59
ऐ नबी! अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे (घर से बाहर निकलें तो) अपने ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें। इससे इस बात की अधिक सम्भावना है कि वे पहचान ली जाएँ और सताई न जाएँ। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।॥59॥
۞لَّئِن لَّمۡ يَنتَهِ ٱلۡمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ وَٱلۡمُرۡجِفُونَ فِي ٱلۡمَدِينَةِ لَنُغۡرِيَنَّكَ بِهِمۡ ثُمَّ لَا يُجَاوِرُونَكَ فِيهَآ إِلَّا قَلِيلٗا ۝ 60
यदि कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है और मदीना में खलबली पैदा करनेवाली अफ़वाहें फैलानेवाले बाज़ न आएँ तो हम तुम्हें उनके विरुद्ध उभार खड़ा करेंगे। फिर वे उसमें तुम्हारे साथ थोड़ा ही रहने पाएँगे,॥60॥
مَّلۡعُونِينَۖ أَيۡنَمَا ثُقِفُوٓاْ أُخِذُواْ وَقُتِّلُواْ تَقۡتِيلٗا ۝ 61
फिटकारे हुए होंगे। जहाँ कही पाए गए, पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे।॥61॥
سُنَّةَ ٱللَّهِ فِي ٱلَّذِينَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلُۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ ٱللَّهِ تَبۡدِيلٗا ۝ 62
यही अल्लाह की रीति रही है उन लोगों के विषय में भी जो पहले गुज़र चुके हैं। और तुम अल्लाह की रीति में कदापि परिवर्तन न पाओगे।॥62॥
يَسۡـَٔلُكَ ٱلنَّاسُ عَنِ ٱلسَّاعَةِۖ قُلۡ إِنَّمَا عِلۡمُهَا عِندَ ٱللَّهِۚ وَمَا يُدۡرِيكَ لَعَلَّ ٱلسَّاعَةَ تَكُونُ قَرِيبًا ۝ 63
लोग तुमसे क़ियामत की घड़ी के बारे में पूछते हैं। कह दो, "उसका ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है। तुम्हें क्या मालूम? कदाचित वह घड़ी निकट ही हो।"॥63॥
إِنَّ ٱللَّهَ لَعَنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَأَعَدَّ لَهُمۡ سَعِيرًا ۝ 64
निश्चय ही अल्लाह ने इनकार करनेवालों पर लानत की है और उनके लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है,॥64॥
خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ لَّا يَجِدُونَ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا ۝ 65
जिसमें वे सदैव रहेंगे। न वे कोई निकटवर्ती समर्थक पाएँगे और न (दूर का) सहायक।॥65॥
يَوۡمَ تُقَلَّبُ وُجُوهُهُمۡ فِي ٱلنَّارِ يَقُولُونَ يَٰلَيۡتَنَآ أَطَعۡنَا ٱللَّهَ وَأَطَعۡنَا ٱلرَّسُولَا۠ ۝ 66
जिस दिन उनके चहेरे आग में उलटे-पलटे जाएँगे, वे कहेंगे, "क्या ही अच्छा होता कि हमने अल्लाह का आज्ञापालन किया होता और रसूल का आज्ञापालन किया होता!"॥66॥
وَقَالُواْ رَبَّنَآ إِنَّآ أَطَعۡنَا سَادَتَنَا وَكُبَرَآءَنَا فَأَضَلُّونَا ٱلسَّبِيلَا۠ ۝ 67
वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! वास्तव में हमने अपने सरदारों और अपने बड़ों की आज्ञा का पालन किया और उन्होंने हमें मार्ग से भटका दिया।॥67॥
رَبَّنَآ ءَاتِهِمۡ ضِعۡفَيۡنِ مِنَ ٱلۡعَذَابِ وَٱلۡعَنۡهُمۡ لَعۡنٗا كَبِيرٗا ۝ 68
"ऐ हमारे रब! उन्हें दोहरी यातना दे और उनपर बड़ी लानत कर!"॥68॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ ءَاذَوۡاْ مُوسَىٰ فَبَرَّأَهُ ٱللَّهُ مِمَّا قَالُواْۚ وَكَانَ عِندَ ٱللَّهِ وَجِيهٗا ۝ 69
ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने मूसा को दुख पहुँचाया तो अल्लाह ने उससे, जो कुछ उन्होंने कहा था, उसे बरी कर दिया। वह अल्लाह के यहाँ बड़ा गरिमावान था।॥69॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَقُولُواْ قَوۡلٗا سَدِيدٗا ۝ 70
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और बात कहो ठीक सधी हुई।॥70॥
يُصۡلِحۡ لَكُمۡ أَعۡمَٰلَكُمۡ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡ ذُنُوبَكُمۡۗ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَقَدۡ فَازَ فَوۡزًا عَظِيمًا ۝ 71
वह तुम्हारे कर्मों को सँवार देगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। और जो अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करे, उसने बड़ी सफलता प्राप्त कर ली है।॥71॥
إِنَّا عَرَضۡنَا ٱلۡأَمَانَةَ عَلَى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱلۡجِبَالِ فَأَبَيۡنَ أَن يَحۡمِلۡنَهَا وَأَشۡفَقۡنَ مِنۡهَا وَحَمَلَهَا ٱلۡإِنسَٰنُۖ إِنَّهُۥ كَانَ ظَلُومٗا جَهُولٗا ۝ 72
हमने अमानत को आकाशों और धरती और पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया, किन्तु उन्होंने उसके उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए। लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया। निश्चय ही वह बड़ा ज़ालिम, नादान, आवेश के वशीभूत हो जानेवाला है।॥72॥
لِّيُعَذِّبَ ٱللَّهُ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلۡمُشۡرِكِينَ وَٱلۡمُشۡرِكَٰتِ وَيَتُوبَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمَۢا ۝ 73
ताकि अल्लाह कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को यातना दे, और ईमानवाले पुरुषों और ईमानवाली स्त्रियों पर अल्लाह कृपा-दृष्टि करे। वास्तव में अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।॥73॥