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سُورَةُ المُؤۡمِنُونَ

23. अल-मोमिनून

(मक्का में उतरी-आयतें 118)

परिचय

नाम

पहली ही आयत “क़द अफ़-ल-हल मोमिनून (निश्चय ही सफलता पाई है ईमान लानेवालों ने)" से लिया गया है।

उतरने का समय

वर्णनशैली और विषय, दोनों से यही मालूम होता है कि इस सूरा के उतरने का समय मक्का का मध्यकाल है। आयत 75-76 से स्पष्ट रूप से यह गवाही मिलती है कि यह मक्का के उस भीषण अकाल के समय में उतरी है जो विश्वस्त रिवायतों के अनुसार इसी मध्यकाल में पड़ा था।

विषय और वार्ताएँ

रसूल (सल्ल०) की पैरवी की दावत इस सूरा का केंद्रीय विषय है और पूरा भाषण इसी केंद्र के चारों ओर घूमता है। बात का आरंभ इस तरह होता है कि जिन लोगों ने इस पैग़म्बर की बात मान ली है, उनके भीतर ये और ये गुण पैदा हो रहे हैं और निश्चय ही ऐसे ही लोग दुनिया और आख़िरत की सफलता के अधिकारी हैं। इसके बाद इंसान की पैदाइश, आसमान और ज़मीन की पैदाइश, पेड़-पौधों और जानवरों की पैदाइश और सृष्टि की दूसरी निशानियों से तौहीद और आख़िरत के सत्य होने के प्रमाण जुटाए गए हैं, फिर नबियों (अलैहि०) और उनकी उम्मतों (समुदायों) के क़िस्से |बयान करके] कुछ बातें श्रोताओं को समझाई गई हैं-

एक यह कि आज तुम लोग मुहम्मद (सल्ल०) की दावत पर जो सन्देह और आपत्तियाँ कर रहे हो वे कुछ नई नहीं हैं, पहले भी जो नबी दुनिया में आए थे, उन सबपर उनके समय के अज्ञानियों ने यही आपत्तियाँ की थीं। अब देख लो कि इतिहास का पाठ क्या बता रहा है, आपत्ति करनेवाले सत्य पर थे या नबी?

दूसरे यह कि तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत के बारे में जो शिक्षा मुहम्मद (सल्ल०) दे रहे हैं, यही शिक्षा हर युग के नबियों ने दी है।

तीसरे यह कि जिन क़ौमों ने नबियों की बात सुनकर न दो, वे अन्तत: नष्ट होकर रहीं।

चौथे यह कि अल्लाह की ओर से हर समय में एक ही दीन आता रहा है और सारे नबी एक ही उम्मत (समुदाय) के लोग थे, उस अकेले धर्म के सिवा, जो अलग-अलग धर्म तुम लोग दुनिया में देख रहे हो, ये सब लोगों के गढ़े हुए हैं।

इन क़िस्सों के बाद लोगों को यह बताया गया है कि वास्तविक चीज़ जिसपर अल्लाह के यहाँ प्रिय या अप्रिय होना आश्रित है, वह आदमी का ईमान और उसकी ख़ुदातर्सी और सत्यवादिता है। ये बातें इसलिए कही गई हैं कि नबी (सल्ल०) की दावत के मुक़ाबले में उस समय जो रुकावटें पैदा की जा रही थी, उसके ध्वजावाहक सब के सब मक्का के बुजुर्ग और बड़े-बड़े सरदार थे। वे अपनी जगह स्वयं भी यह घमंड रखते थे और उनके प्रभावाधीन लोग भी इस भ्रम में पड़े हुए थे कि नेमतों की बारिश जिन लोगों पर हो रही है, उनपर ज़रूर अल्लाह और देवताओं की कृपा है। रहे ये टूटे-मारे लोग जो मुहम्मद के साथ हैं, इनकी तो हालत स्वयं ही यह बता रही है कि अल्लाह इनके साथ नहीं है और देवताओं की तो मार ही इनपर पड़ी हुई है। इसके बाद मक्कावालों को अलग-अलग पहलुओं से नबी (सल्ल०) की नुबूवत पर सन्तुष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। फिर उनको बताया गया है कि यह अकाल जो तुमपर आ पड़ा है, यह एक चेतावनी है, बेहतर है कि इसको देखकर संभलो और सीधे रास्ते पर आ जाओ। फिर उनको नए सिरे से उन निशानियों की ओर ध्यान दिलाया गया है जो सृष्टि और स्वयं उनके अपने अस्तित्त्व में मौजूद हैं। और अल्लाह की तौहीद और मरने के बाद की ज़िन्दगी की खुली हुई गवाही दे रही हैं। फिर नबी (सल्ल०) को हिदायत की गई है कि चाहे ये लोग तुम्हारे मुक़ाबले में कैसा ही रवैया अपनाएँ, तुम भले तरीक़ों ही से बचाव करना । शैतान कभी तुमको जोश में लाकर बुराई का जवाब बुराई से देने पर तैयार न करने पाए।

वार्ता के अन्त में सत्य के विरोधियों को आख़िरत की पूछ-ताछ से डराया गया है और उन्हें सचेत किया गया है कि जो कुछ तुम सत्य की दावत और उसकी पैरवी करनेवालों के साथ कर रहे हो, उसका कड़ा हिसाब तुमसे लिया जाएगा।

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سُورَةُ المُؤۡمِنُونَ
23. अल-मोमिनून
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
قَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ۝ 1
सफल हो गए ईमानवाले,॥1॥
ٱلَّذِينَ هُمۡ فِي صَلَاتِهِمۡ خَٰشِعُونَ ۝ 2
जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता एवं शान्ति अपनाते हैं;॥2॥
وَٱلَّذِينَ هُمۡ عَنِ ٱللَّغۡوِ مُعۡرِضُونَ ۝ 3
और जो व्यर्थ बातों से पहलू बचाते हैं;॥3॥
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِلزَّكَوٰةِ فَٰعِلُونَ ۝ 4
और जो ज़कात अदा करते हैं;॥4॥
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِفُرُوجِهِمۡ حَٰفِظُونَ ۝ 5
और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते हैं — ॥5॥
إِلَّا عَلَىٰٓ أَزۡوَٰجِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَيۡرُ مَلُومِينَ ۝ 6
सिवाय इस सूरत के कि अपनी पत्नियों या लौंडियों के पास जाएँ कि इसपर वे निन्दनीय नहीं हैं॥6॥
فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَآءَ ذَٰلِكَ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ ۝ 7
परन्तु जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे, तो ऐसे ही लोग सीमा से आगे बढ़नेवाले हैं। —॥7॥
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِأَمَٰنَٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَٰعُونَ ۝ 8
और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते हैं;॥8॥
وَٱلَّذِينَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَوَٰتِهِمۡ يُحَافِظُونَ ۝ 9
और जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं;॥9॥
أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡوَٰرِثُونَ ۝ 10
वही वारिस होनेवाले हैं। ॥10॥
ٱلَّذِينَ يَرِثُونَ ٱلۡفِرۡدَوۡسَ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 11
जो फ़िरदौस की विरासत पाएँगे। वे उसमें सदैव रहेंगे॥11॥
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ مِن سُلَٰلَةٖ مِّن طِينٖ ۝ 12
हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया॥12॥
ثُمَّ جَعَلۡنَٰهُ نُطۡفَةٗ فِي قَرَارٖ مَّكِينٖ ۝ 13
फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा॥13॥
ثُمَّ خَلَقۡنَا ٱلنُّطۡفَةَ عَلَقَةٗ فَخَلَقۡنَا ٱلۡعَلَقَةَ مُضۡغَةٗ فَخَلَقۡنَا ٱلۡمُضۡغَةَ عِظَٰمٗا فَكَسَوۡنَا ٱلۡعِظَٰمَ لَحۡمٗا ثُمَّ أَنشَأۡنَٰهُ خَلۡقًا ءَاخَرَۚ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ أَحۡسَنُ ٱلۡخَٰلِقِينَ ۝ 14
फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने बोटी की हड्डियाँ बनाईं, फिर हमने उन हड्डियों पर माँस चढ़ाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सृजन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा!॥14॥
ثُمَّ إِنَّكُم بَعۡدَ ذَٰلِكَ لَمَيِّتُونَ ۝ 15
फिर तुम अवश्य मरनेवाले हो॥15॥
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تُبۡعَثُونَ ۝ 16
फिर क़ियामत के दिन तुम निश्‍चय ही उठाए जाओगे॥16॥
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعَ طَرَآئِقَ وَمَا كُنَّا عَنِ ٱلۡخَلۡقِ غَٰفِلِينَ ۝ 17
और हमने तुम्हारे ऊपर सात ऊपर-तले आकाश बनाए हैं। और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल (बेसुध) नहीं॥17॥
وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءَۢ بِقَدَرٖ فَأَسۡكَنَّٰهُ فِي ٱلۡأَرۡضِۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابِۭ بِهِۦ لَقَٰدِرُونَ ۝ 18
और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है॥18॥
فَأَنشَأۡنَا لَكُم بِهِۦ جَنَّٰتٖ مِّن نَّخِيلٖ وَأَعۡنَٰبٖ لَّكُمۡ فِيهَا فَوَٰكِهُ كَثِيرَةٞ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 19
फिर हमने उसके द्वारा तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल हैं (जिनमें तुम्हारे लिए कितने ही लाभ हैं) और उनमें से तुम खाते हो॥19॥
وَشَجَرَةٗ تَخۡرُجُ مِن طُورِ سَيۡنَآءَ تَنۢبُتُ بِٱلدُّهۡنِ وَصِبۡغٖ لِّلۡأٓكِلِينَ ۝ 20
और वह वृक्ष भी जो सैना पर्वत से निकलता है, जो तेल और खानेवालों के लिए सालन लिए हुए उगता है॥20॥
وَإِنَّ لَكُمۡ فِي ٱلۡأَنۡعَٰمِ لَعِبۡرَةٗۖ نُّسۡقِيكُم مِّمَّا فِي بُطُونِهَا وَلَكُمۡ فِيهَا مَنَٰفِعُ كَثِيرَةٞ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 21
और निश्‍चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते हैं। और तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे हैं और उन्हें तुम खाते भी हो॥21॥
وَعَلَيۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ۝ 22
और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो॥22॥
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَقَالَ يَٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥٓۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ۝ 23
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्‍ट-पूज्य नहीं है। तो क्या तुम डर नहीं रखते?"॥23॥
فَقَالَ ٱلۡمَلَؤُاْ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ مَا هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يُرِيدُ أَن يَتَفَضَّلَ عَلَيۡكُمۡ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَأَنزَلَ مَلَٰٓئِكَةٗ مَّا سَمِعۡنَا بِهَٰذَا فِيٓ ءَابَآئِنَا ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 24
इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्‍ठता प्राप्त करे।" "अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं॥24॥
إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلُۢ بِهِۦ جِنَّةٞ فَتَرَبَّصُواْ بِهِۦ حَتَّىٰ حِينٖ ۝ 25
यह तो बस एक उन्मादग्रस्त (दीवाना) व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।"॥25॥
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِي بِمَا كَذَّبُونِ ۝ 26
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।"॥26॥
فَأَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡهِ أَنِ ٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡيُنِنَا وَوَحۡيِنَا فَإِذَا جَآءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ فَٱسۡلُكۡ فِيهَا مِن كُلّٖ زَوۡجَيۡنِ ٱثۡنَيۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَيۡهِ ٱلۡقَوۡلُ مِنۡهُمۡۖ وَلَا تُخَٰطِبۡنِي فِي ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ۝ 27
तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि "हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना, और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे॥27॥
فَإِذَا ٱسۡتَوَيۡتَ أَنتَ وَمَن مَّعَكَ عَلَى ٱلۡفُلۡكِ فَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي نَجَّىٰنَا مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 28
फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी, तो कह, ‘प्रशंसा है अल्लाह की जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया।‘॥28॥
وَقُل رَّبِّ أَنزِلۡنِي مُنزَلٗا مُّبَارَكٗا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلۡمُنزِلِينَ ۝ 29
और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है’।"॥29॥
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ وَإِن كُنَّا لَمُبۡتَلِينَ ۝ 30
निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही हैं॥30॥
ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قَرۡنًا ءَاخَرِينَ ۝ 31
फिर उनके पश्‍चात् हमने एक दूसरी नस्ल को उठाया;॥31॥
فَأَرۡسَلۡنَا فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡهُمۡ أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥٓۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ۝ 32
और उनमें हमने स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई इष्‍ट-पूज्य नहीं। तो क्या तुम डर नहीं रखते?"॥32॥
وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ مِن قَوۡمِهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِلِقَآءِ ٱلۡأٓخِرَةِ وَأَتۡرَفۡنَٰهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا مَا هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يَأۡكُلُ مِمَّا تَأۡكُلُونَ مِنۡهُ وَيَشۡرَبُ مِمَّا تَشۡرَبُونَ ۝ 33
उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया और आख़िरत के मिलन को झुठलाया और जिन्हें हमने सांसारिक जीवन में सुख प्रदान किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। जो कुछ तुम खाते हो वही यह भी खाता है और जो कुछ तुम पीते हो वही यह भी पीता है॥33॥
وَلَئِنۡ أَطَعۡتُم بَشَرٗا مِّثۡلَكُمۡ إِنَّكُمۡ إِذٗا لَّخَٰسِرُونَ ۝ 34
यदि तुम अपने ही जैसे एक मनुष्य के आज्ञाकारी हुए तो निश्‍चय ही तुम घाटे में पड़ गए॥34॥
أَيَعِدُكُمۡ أَنَّكُمۡ إِذَا مِتُّمۡ وَكُنتُمۡ تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَنَّكُم مُّخۡرَجُونَ ۝ 35
क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाओगे तो तुम निकाले जाओगे?॥35॥
۞هَيۡهَاتَ هَيۡهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ ۝ 36
दूर की बात है, बहुत दूर की, जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है!॥36॥
إِنۡ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا ٱلدُّنۡيَا نَمُوتُ وَنَحۡيَا وَمَا نَحۡنُ بِمَبۡعُوثِينَ ۝ 37
वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। (यहीं) हम मरते और जीते हैं। हम कोई दोबारा उठाए जानेवाले नहीं हैं॥37॥
إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗا وَمَا نَحۡنُ لَهُۥ بِمُؤۡمِنِينَ ۝ 38
वह तो बस एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह पर झूठ गढ़ा है। हम उसे कदापि माननेवाले नहीं।"॥38॥
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِي بِمَا كَذَّبُونِ ۝ 39
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! उन्होंने जो मुझे झुठलाया इसपर तू मेरी सहायता कर।"॥39॥
قَالَ عَمَّا قَلِيلٖ لَّيُصۡبِحُنَّ نَٰدِمِينَ ۝ 40
कहा, "शीघ्र ही वे पछताकर रहेंगे।"॥40॥
فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّيۡحَةُ بِٱلۡحَقِّ فَجَعَلۡنَٰهُمۡ غُثَآءٗۚ فَبُعۡدٗا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 41
फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचण्‍ड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-करकट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है ऐसे अत्याचारी लोगों पर!॥41॥
ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قُرُونًا ءَاخَرِينَ ۝ 42
फिर हमने उनके पश्‍चात् दूसरी नस्लों को उठाया॥42॥
مَا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ ۝ 43
कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है॥43॥
ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا تَتۡرَاۖ كُلَّ مَا جَآءَ أُمَّةٗ رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُۖ فَأَتۡبَعۡنَا بَعۡضَهُم بَعۡضٗا وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَحَادِيثَۚ فَبُعۡدٗا لِّقَوۡمٖ لَّا يُؤۡمِنُونَ ۝ 44
फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी कभी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक को दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ॥44॥
ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَٰرُونَ بِـَٔايَٰتِنَا وَسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ ۝ 45
फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा। ॥45॥
إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ وَكَانُواْ قَوۡمًا عَالِينَ ۝ 46
किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग॥46॥
فَقَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ لِبَشَرَيۡنِ مِثۡلِنَا وَقَوۡمُهُمَا لَنَا عَٰبِدُونَ ۝ 47
तो वे कहने लगे, "क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?"॥47॥
فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُواْ مِنَ ٱلۡمُهۡلَكِينَ ۝ 48
अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्‍ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे॥48॥
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ لَعَلَّهُمۡ يَهۡتَدُونَ ۝ 49
और हमने मूसा को किताब प्रदान की ताकि वे लोग मार्ग पा सकें॥49॥
وَجَعَلۡنَا ٱبۡنَ مَرۡيَمَ وَأُمَّهُۥٓ ءَايَةٗ وَءَاوَيۡنَٰهُمَآ إِلَىٰ رَبۡوَةٖ ذَاتِ قَرَارٖ وَمَعِينٖ ۝ 50
और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतवाली ऊँची जगह शरण दी —॥50॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلرُّسُلُ كُلُواْ مِنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَٱعۡمَلُواْ صَٰلِحًاۖ إِنِّي بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِيمٞ ۝ 51
"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़ें खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ॥51॥
وَإِنَّ هَٰذِهِۦٓ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱتَّقُونِ ۝ 52
और निश्‍चय ही यह तुम्हारा समुदाय एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।"॥52॥
فَتَقَطَّعُوٓاْ أَمۡرَهُم بَيۡنَهُمۡ زُبُرٗاۖ كُلُّ حِزۡبِۭ بِمَا لَدَيۡهِمۡ فَرِحُونَ ۝ 53
किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर ख़ुश है जो कुछ उसके पास है॥53॥
فَذَرۡهُمۡ فِي غَمۡرَتِهِمۡ حَتَّىٰ حِينٍ ۝ 54
अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो॥54॥
أَيَحۡسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِۦ مِن مَّالٖ وَبَنِينَ ۝ 55
क्या वे समझते हैं कि हम जो धन और सन्तान से उनकी सहायता किए जा रहे हैं ॥55॥
نُسَارِعُ لَهُمۡ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِۚ بَل لَّا يَشۡعُرُونَ ۝ 56
तो यह उनके लिए भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे हैं? ॥56॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ هُم مِّنۡ خَشۡيَةِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ ۝ 57
नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्‍चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं;॥57॥
وَٱلَّذِينَ هُم بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ يُؤۡمِنُونَ ۝ 58
और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते हैं;॥58॥
وَٱلَّذِينَ هُم بِرَبِّهِمۡ لَا يُشۡرِكُونَ ۝ 59
और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते;॥59॥
وَٱلَّذِينَ يُؤۡتُونَ مَآ ءَاتَواْ وَّقُلُوبُهُمۡ وَجِلَةٌ أَنَّهُمۡ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ رَٰجِعُونَ ۝ 60
और जो लोग देते हैं, जो कुछ देते हैं और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते हैं, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है;॥60॥
أُوْلَٰٓئِكَ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَهُمۡ لَهَا سَٰبِقُونَ ۝ 61
यही वे लोग हैं जो भलाइयों में जल्दी करते हैं और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले हैं। ॥61॥
وَلَا نُكَلِّفُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ وَلَدَيۡنَا كِتَٰبٞ يَنطِقُ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 62
हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा॥62॥
بَلۡ قُلُوبُهُمۡ فِي غَمۡرَةٖ مِّنۡ هَٰذَا وَلَهُمۡ أَعۡمَٰلٞ مِّن دُونِ ذَٰلِكَ هُمۡ لَهَا عَٰمِلُونَ ۝ 63
बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पड़े हुए हैं और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम हैं। वे उन्हीं को करते रहेंगे;॥63॥
حَتَّىٰٓ إِذَآ أَخَذۡنَا مُتۡرَفِيهِم بِٱلۡعَذَابِ إِذَا هُمۡ يَجۡـَٔرُونَ ۝ 64
यहाँ तक कि जब हम उनके ख़ुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेंगे तो क्या देखते हैं कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे हैं॥64॥
لَا تَجۡـَٔرُواْ ٱلۡيَوۡمَۖ إِنَّكُم مِّنَّا لَا تُنصَرُونَ ۝ 65
(कहा जाएगा,) "आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं॥65॥
قَدۡ كَانَتۡ ءَايَٰتِي تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَكُنتُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡ تَنكِصُونَ ۝ 66
तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे। ॥66॥
مُسۡتَكۡبِرِينَ بِهِۦ سَٰمِرٗا تَهۡجُرُونَ ۝ 67
हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे।‘’॥67॥
أَفَلَمۡ يَدَّبَّرُواْ ٱلۡقَوۡلَ أَمۡ جَآءَهُم مَّا لَمۡ يَأۡتِ ءَابَآءَهُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 68
क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी?॥68॥
أَمۡ لَمۡ يَعۡرِفُواْ رَسُولَهُمۡ فَهُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ ۝ 69
या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे हैं?॥69॥
أَمۡ يَقُولُونَ بِهِۦ جِنَّةُۢۚ بَلۡ جَآءَهُم بِٱلۡحَقِّ وَأَكۡثَرُهُمۡ لِلۡحَقِّ كَٰرِهُونَ ۝ 70
या वे कहते हैं, "उसे उन्माद हो गया है।" नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है॥70॥
وَلَوِ ٱتَّبَعَ ٱلۡحَقُّ أَهۡوَآءَهُمۡ لَفَسَدَتِ ٱلسَّمَٰوَٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِيهِنَّۚ بَلۡ أَتَيۡنَٰهُم بِذِكۡرِهِمۡ فَهُمۡ عَن ذِكۡرِهِم مُّعۡرِضُونَ ۝ 71
और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें हैं, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए हैं। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे हैं॥71॥
أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ خَرۡجٗا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيۡرٞۖ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلرَّٰزِقِينَ ۝ 72
या तुम उनसे कुछ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है॥72॥
وَإِنَّكَ لَتَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 73
और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो॥73॥
وَإِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ عَنِ ٱلصِّرَٰطِ لَنَٰكِبُونَ ۝ 74
किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते हैं॥74॥
۞وَلَوۡ رَحِمۡنَٰهُمۡ وَكَشَفۡنَا مَا بِهِم مِّن ضُرّٖ لَّلَجُّواْ فِي طُغۡيَٰنِهِمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 75
यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के बाद) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में बिल्‍कुल ही बहकते रहते॥75॥
وَلَقَدۡ أَخَذۡنَٰهُم بِٱلۡعَذَابِ فَمَا ٱسۡتَكَانُواْ لِرَبِّهِمۡ وَمَا يَتَضَرَّعُونَ ۝ 76
यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे॥76॥
حَتَّىٰٓ إِذَا فَتَحۡنَا عَلَيۡهِم بَابٗا ذَا عَذَابٖ شَدِيدٍ إِذَا هُمۡ فِيهِ مُبۡلِسُونَ ۝ 77
यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए हैं॥77॥
وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنشَأَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِيلٗا مَّا تَشۡكُرُونَ ۝ 78
और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखें और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो!॥78॥
وَهُوَ ٱلَّذِي ذَرَأَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَإِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ ۝ 79
वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे॥79॥
وَهُوَ ٱلَّذِي يُحۡيِۦ وَيُمِيتُ وَلَهُ ٱخۡتِلَٰفُ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 80
और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?॥80॥
بَلۡ قَالُواْ مِثۡلَ مَا قَالَ ٱلۡأَوَّلُونَ ۝ 81
नहीं, बल्कि वे लोग वही कुछ कहते हैं जो उनके पहले के लोग कह चुके हैं॥81॥
قَالُوٓاْ أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ۝ 82
उन्होंने कहा, "क्या जब हम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे तो क्या हमें दोबारा जीवित करके उठाया जाएगा?॥82॥
لَقَدۡ وُعِدۡنَا نَحۡنُ وَءَابَآؤُنَا هَٰذَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 83
यह वादा तो हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से होता आ रहा है। कुछ नहीं, यह तो बस अगलों की कहानियाँ हैं।"॥83॥
قُل لِّمَنِ ٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِيهَآ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 84
कहो, "यह धरती और जो भी इसमें आबाद हैं वे किसके हैं, बताओ यदि तुम जानते हो?"॥84॥
سَيَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 85
वे बोल पड़ेंगे, "अल्लाह के!" कहो, "फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?"॥85॥
قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ ٱلسَّبۡعِ وَرَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 86
कहो, "सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामी कौन है?"॥86॥
سَيَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَتَّقُونَ ۝ 87
वे कहेंगे, "अल्लाह।" कहो, "फिर डर क्यों नहीं रखते?"॥87॥
قُلۡ مَنۢ بِيَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيۡءٖ وَهُوَ يُجِيرُ وَلَا يُجَارُ عَلَيۡهِ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 88
कहो, "हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है और जिसके मुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यजि तुम जानते हो?"॥88॥
سَيَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ فَأَنَّىٰ تُسۡحَرُونَ ۝ 89
वे बोल पड़ेंगे, "अल्लाह के।" कहो, "फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?"॥89॥
بَلۡ أَتَيۡنَٰهُم بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ ۝ 90
नहीं, बल्कि हम उनके पास सत्य लेकर आए हैं, और निश्‍चय ही वे झूठे हैं॥90॥
مَا ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ مِن وَلَدٖ وَمَا كَانَ مَعَهُۥ مِنۡ إِلَٰهٍۚ إِذٗا لَّذَهَبَ كُلُّ إِلَٰهِۭ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 91
अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य ख़ुदा है। ऐसा होता तो प्रत्येक ख़ुदा अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से जो वे बयान करते हैं;॥91॥
عَٰلِمِ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ فَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 92
(वह) जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है उस शिर्क से जो वे करते हैं!॥92॥
قُل رَّبِّ إِمَّا تُرِيَنِّي مَا يُوعَدُونَ ۝ 93
कहो, "ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए॥93॥
رَبِّ فَلَا تَجۡعَلۡنِي فِي ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 94
तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।"॥94॥
وَإِنَّا عَلَىٰٓ أَن نُّرِيَكَ مَا نَعِدُهُمۡ لَقَٰدِرُونَ ۝ 95
निश्‍चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे हैं वह तुम्हें दिखा दें। ॥95॥
ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ ٱلسَّيِّئَةَۚ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا يَصِفُونَ ۝ 96
बुराई को उस ढंग से दूर करो जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते हैं, जो कुछ बातें वे बनाते हैं।॥96॥
وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنۡ هَمَزَٰتِ ٱلشَّيَٰطِينِ ۝ 97
और कहो, "ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ॥97॥
وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن يَحۡضُرُونِ ۝ 98
और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।" — ॥98॥
حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ رَبِّ ٱرۡجِعُونِ ۝ 99
यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, "ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। — ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ॥99॥
لَعَلِّيٓ أَعۡمَلُ صَٰلِحٗا فِيمَا تَرَكۡتُۚ كَلَّآۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَآئِلُهَاۖ وَمِن وَرَآئِهِم بَرۡزَخٌ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 100
उसमें अच्छा कर्म करूँ।" कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और पीछे से ले कर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है जब वे दोबारा उठाए जाएँगे॥100॥
فَإِذَا نُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَلَآ أَنسَابَ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَئِذٖ وَلَا يَتَسَآءَلُونَ ۝ 101
फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी तो उस दिन उनके बीच रिश्ते-नाते शेष न रहेंगे, और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे॥101॥
فَمَن ثَقُلَتۡ مَوَٰزِينُهُۥ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ۝ 102
फिर जिनके कर्म वज़नी हुए तो वही हैं जो सफल होंगे। ॥102॥
وَمَنۡ خَفَّتۡ مَوَٰزِينُهُۥ فَأُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فِي جَهَنَّمَ خَٰلِدُونَ ۝ 103
रहे वे लोग जिनके कर्म वज़नी नहीं हुए, तो वही हैं जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। वे सदैव जहन्‍नम में रहेंगे॥103॥
تَلۡفَحُ وُجُوهَهُمُ ٱلنَّارُ وَهُمۡ فِيهَا كَٰلِحُونَ ۝ 104
आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और उसमें उनके मुँह विकृत हो रहे होंगे॥104॥
أَلَمۡ تَكُنۡ ءَايَٰتِي تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَكُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ۝ 105
(कहा जाएगा,) "क्या तुम्हें मेरी आयतें सुनाई नहीं जाती थीं तो तुम उन्हें झुठलाते थे?"॥105॥
قَالُواْ رَبَّنَا غَلَبَتۡ عَلَيۡنَا شِقۡوَتُنَا وَكُنَّا قَوۡمٗا ضَآلِّينَ ۝ 106
वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हुआ और हम भटके हुए लोग थे॥106॥
رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا مِنۡهَا فَإِنۡ عُدۡنَا فَإِنَّا ظَٰلِمُونَ ۝ 107
हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे! फिर हम दोबारा ऐसा करें तो निश्‍चय ही हम अत्याचारी होंगे।"॥107॥
قَالَ ٱخۡسَـُٔواْ فِيهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ ۝ 108
वह कहेगा, "फिटकारे हुए तिरस्कृत, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो॥108॥
إِنَّهُۥ كَانَ فَرِيقٞ مِّنۡ عِبَادِي يَقُولُونَ رَبَّنَآ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلرَّٰحِمِينَ ۝ 109
मेरे बन्दों में कुछ लोग थे जो कहते थे, ‘हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है।’॥109॥
فَٱتَّخَذۡتُمُوهُمۡ سِخۡرِيًّا حَتَّىٰٓ أَنسَوۡكُمۡ ذِكۡرِي وَكُنتُم مِّنۡهُمۡ تَضۡحَكُونَ ۝ 110
तो तुमने उनका मज़ाक बनाया, यहाँ तक कि उनके कारण तुम मेरी याद को भुला बैठे और तुम उनपर हँसते रहे॥110॥
إِنِّي جَزَيۡتُهُمُ ٱلۡيَوۡمَ بِمَا صَبَرُوٓاْ أَنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡفَآئِزُونَ ۝ 111
आज मैंने उनके धैर्य का यह बदला प्रदान किया कि वे ही हैं जो सफलता को प्राप्त हुए।"॥111॥
قَٰلَ كَمۡ لَبِثۡتُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ عَدَدَ سِنِينَ ۝ 112
वह कहेगा, “तुम धरती में कितने वर्ष रहे’’? ॥112॥
قَالُواْ لَبِثۡنَا يَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ يَوۡمٖ فَسۡـَٔلِ ٱلۡعَآدِّينَ ۝ 113
वे कहेंगेः , "एक दिन या एक दिन का कुछ भाग। गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।?"॥113॥
قَٰلَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِيلٗاۖ لَّوۡ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 114
वह कहेगा, "तुम ठहरे थोड़े ही, क्या अच्छा होता कि तुम जानते होते!॥114॥
أَفَحَسِبۡتُمۡ أَنَّمَا خَلَقۡنَٰكُمۡ عَبَثٗا وَأَنَّكُمۡ إِلَيۡنَا لَا تُرۡجَعُونَ ۝ 115
तो क्या तुमने यह समझा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और यह कि तुम्हें हमारी ओर लौटना नहीं है?"॥115॥
فَتَعَٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡكَرِيمِ ۝ 116
तो सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, स्वामी है महिमाशाली सिंहासन का॥116॥
وَمَن يَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ لَا بُرۡهَٰنَ لَهُۥ بِهِۦ فَإِنَّمَا حِسَابُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦٓۚ إِنَّهُۥ لَا يُفۡلِحُ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 117
और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाण नहीं, तो बस उसका हिसाब उसके रब के पास है। निश्‍चय ही इनकार करनेवाले कभी सफल नहीं होंगे॥117॥
وَقُل رَّبِّ ٱغۡفِرۡ وَٱرۡحَمۡ وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلرَّٰحِمِينَ ۝ 118
और कहो, "मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और दया कर। तू तो सबसे अच्छा दया करनेवाला है।"॥118॥