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سُورَةُ لُقۡمَانَ

31. लुक़मान 

(मक्‍का में उतरी, आयतें 34)

परिचय

नाम

इस सूरा के दूसरे रुकूअ (आयत 12 से 19 तक) में वे नसीहतें बयान की गई हैं जो हकीम लुक़मान ने अपने बेटे को की थीं। इसी सम्पर्क से इसका नाम लुक़मान रखा गया है।

उतरने का समय

इसकी विषय वस्तुओं पर विचार करने से स्पष्ट होता है कि यह उस समय उतरी है जब इस्लामी सन्देश को दबाने और रोकने के लिए दमन और अत्याचार का आरंभ हो चुका था, लेकिन अभी विरोध के तूफ़ान ने पूरी तरह भयानक रूप धारण नहीं किया था। इसकी निशानदेही आयत 14-15 से होती है, जिनमें नए-नए मुसलमान होनेवाले नौजवानों को बताया गया है कि माँ-बाप के हक़ तो बेशक अल्लाह के बाद सबसे बढ़कर हैं, लेकिन अगर वे तुम्हें शिर्क की ओर पलटने पर विवश करें तो उनकी यह बात कदापि न मानना।

विषय और वार्ता

इस सूरा में लोगों को शिर्क (अनेकेश्वरवाद) का निरर्थक और अनुचित होना और तौहीद (ऐकेश्वरवाद) का सत्य, उचित एवं उपयोगी होना समझाया गया है और उन्हें दावत दी गई है कि बाप-दादा की अंधी पैरवी छोड़ दें। खुले मन से उस शिक्षा पर विचार करें जो मुहम्मद (सल्ल०) जगत् के स्वामी की ओर से पेश कर रहे हैं और खुली आँखों से देखें कि हर ओर जगत् में और स्वयं उनके अपने भीतर कैसी-कैसी खुली निशानियाँ उसके सत्य होने की गवाही दे रही हैं। इस सिलसिले में यह भी बताया गया है कि यह कोई नई आवाज़ नहीं है जो दुनिया में या स्वयं अरब के इलाक़ों में पहली बार उठी हो। पहले भी जो लोग ज्ञान और बुद्धि तथा सूझ-बूझ और विवेक रखते थे, वे यही बातें कहते थे, जो आज मुहम्मद (सल्ल०) कह रहे हैं। तुम्हारे अपने ही देश में लुक़मान नामक हकीम गुज़र चुका है, जिसकी समझ-बूझ और विवेक को [तुम ख़ुद भी मानते हो।] अब देख लो कि वह किस विश्वास और किस नैतिकता की शिक्षा देता था।

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سُورَةُ لُقۡمَانَ
31. लुक़मान
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
الٓمٓ ۝ 1
अलिफ़-लाम-मीम॥1॥
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡحَكِيمِ ۝ 2
(जो आयतें उतर रही हैं) वे हिकमत (तत्वज्ञान) से परिपूर्ण किताब की आयतें हैं;॥2॥
هُدٗى وَرَحۡمَةٗ لِّلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 3
मार्गदर्शन और दयालुता उत्तमकारों के लिए;॥3॥
ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ ۝ 4
जो नमाज़ का आयोजन करते हैं और ज़कात देते हैं और आख़िरत पर विश्वास रखते हैं।॥4॥
أُوْلَٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدٗى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ۝ 5
वही अपने रब की ओर से मार्ग पर हैं और वही सफल हैं।॥5॥
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَشۡتَرِي لَهۡوَ ٱلۡحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًاۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ ۝ 6
लोगों में से कोई ऐसा भी है जो दिल को लुभानेवाली बातों का ख़रीदार बनता है, ताकि बिना किसी ज्ञान के अल्लाह के मार्ग से (दूसरों को) भटकाए और उन (आयतों) का मज़ाक़ उड़ाए। वही हैं जिनके लिए अपमानजनक यातना है।॥6॥
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ءَايَٰتُنَا وَلَّىٰ مُسۡتَكۡبِرٗا كَأَن لَّمۡ يَسۡمَعۡهَا كَأَنَّ فِيٓ أُذُنَيۡهِ وَقۡرٗاۖ فَبَشِّرۡهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ ۝ 7
जब उसे हमारी आयतें सुनाई जाती हैं तो वह स्वयं को बड़ा समझता हुआ पीठ फेरकर चल देता है, मानो उसने उन्हें सुना ही नहीं, मानो उसके दोनों कान बहरे हैं। अच्छा तो उसे एक दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो।॥7॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُمۡ جَنَّٰتُ ٱلنَّعِيمِ ۝ 8
अलबत्ता जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए नेमत भरी जन्नतें हैं, ॥8॥
خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٗاۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 9
जिनमें वे सदैव रहेंगे। यह अल्लाह का सच्चा वादा है, और वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।॥9॥
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ بِغَيۡرِ عَمَدٖ تَرَوۡنَهَاۖ وَأَلۡقَىٰ فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمۡ وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَآبَّةٖۚ وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَنۢبَتۡنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوۡجٖ كَرِيمٍ ۝ 10
उसने आकाशों को पैदा किया (जो थमे हुए हैं) बिना ऐसे स्तंभों के जो तुम्हें दिखाई दें। और उसने धरती में पहाड़ डाल दिए कि ऐसा न हो कि तुम्हें लेकर डाँवाडोल हो जाए, और उसने उसमें हर प्रकार के जानवर फैला दिए। और हमने ही आकाश से पानी उतारा, फिर उसमें हर प्रकार की उत्तम चीज़ें उगाईं।॥10॥
هَٰذَا خَلۡقُ ٱللَّهِ فَأَرُونِي مَاذَا خَلَقَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ بَلِ ٱلظَّٰلِمُونَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 11
यह तो अल्लाह की संरचना है। अब तनिक मुझे दिखाओं कि उससे हटकर जो दूसरे हैं (तुम्हारे ठहराए हुए प्रुभ ) उन्होंने क्या पैदा किया हैं! नहीं, बल्कि ज़ालिम तो एक खुली गुमराही में पड़े हुए हैं।॥11॥
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا لُقۡمَٰنَ ٱلۡحِكۡمَةَ أَنِ ٱشۡكُرۡ لِلَّهِۚ وَمَن يَشۡكُرۡ فَإِنَّمَا يَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٞ ۝ 12
निश्चय ही हमने लुक़मान को हिकमत (तत्वदर्शिता) प्रदान की थी कि अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दिखलाओ, और जो कोई कृतज्ञता दिखलाए वह अपने ही भले के लिए कृतज्ञता दिखलाता है। और जिसने अकृतज्ञता दिखलाई तो अल्लाह वास्तव में निस्पृह, प्रशंसनीय है।॥12॥
وَإِذۡ قَالَ لُقۡمَٰنُ لِٱبۡنِهِۦ وَهُوَ يَعِظُهُۥ يَٰبُنَيَّ لَا تُشۡرِكۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّ ٱلشِّرۡكَ لَظُلۡمٌ عَظِيمٞ ۝ 13
याद करो जब लुक़मान ने अपने बेटे से उसे नसीहत करते हुए कहा, "ऐ मेरे बेटे! अल्लाह का साझी न ठहराना। निश्चय ही शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है।" ॥13॥
وَوَصَّيۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ بِوَٰلِدَيۡهِ حَمَلَتۡهُ أُمُّهُۥ وَهۡنًا عَلَىٰ وَهۡنٖ وَفِصَٰلُهُۥ فِي عَامَيۡنِ أَنِ ٱشۡكُرۡ لِي وَلِوَٰلِدَيۡكَ إِلَيَّ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 14
और हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है — उसकी माँ ने निढाल पर निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे — कि "मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी। अन्‍ततः मेरी ही ओर आना है।॥14॥
وَإِن جَٰهَدَاكَ عَلَىٰٓ أَن تُشۡرِكَ بِي مَا لَيۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٞ فَلَا تُطِعۡهُمَاۖ وَصَاحِبۡهُمَا فِي ٱلدُّنۡيَا مَعۡرُوفٗاۖ وَٱتَّبِعۡ سَبِيلَ مَنۡ أَنَابَ إِلَيَّۚ ثُمَّ إِلَيَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 15
किन्तु यदि वे तुझपर दबाव डालें कि तू किसी को मेरे साथ साझी ठहराए, जिसका तुझे ज्ञान नहीं, तो उसकी बात न मानना और दुनिया में उनके साथ भले तरीक़े से रहना। किन्तु अनुसरण उस व्यक्ति के मार्ग का करना जो मेरी ओर रुजू हो। फिर तुम सबको मेरी ही ओर पलटना है; फिर मैं तुम्हें बता दूँगा जो कुछ तुम करते रहे होगे।"—॥15॥
يَٰبُنَيَّ إِنَّهَآ إِن تَكُ مِثۡقَالَ حَبَّةٖ مِّنۡ خَرۡدَلٖ فَتَكُن فِي صَخۡرَةٍ أَوۡ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَوۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ يَأۡتِ بِهَا ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٞ ۝ 16
"ऐ मेरे बेटे! इसमें सन्देह नहीं कि यदि वह राई के दाने के बराबर भी हो, फिर वह किसी चट्टान के बीच हो, या आकाशों में हो या धरती में हो, अल्लाह उसे ला उपस्थित करेगा। निस्सन्‍देह अल्लाह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है।॥16॥
يَٰبُنَيَّ أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ وَأۡمُرۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَٱنۡهَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَآ أَصَابَكَۖ إِنَّ ذَٰلِكَ مِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ ۝ 17
"ऐ मेरे बेटे! नमाज़ का आयोजन कर और भलाई का हुक्म दे और बुराई से रोक और जो मुसीबत भी तुझपर पड़े उसपर धैर्य से काम ले। निस्संदेह ये बातें उन कामों में से हैं जो अनिवार्य और ढृढ़ संकल्प के काम हैं।॥17॥
وَلَا تُصَعِّرۡ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمۡشِ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَرَحًاۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخۡتَالٖ فَخُورٖ ۝ 18
"और लोगों से अपना रुख़ न फेर और न धरती में इतराकर चल। निश्चय ही अल्लाह किसी अहंकारी, डींग मारनेवाले को पसन्द नहीं करता।॥18॥
وَٱقۡصِدۡ فِي مَشۡيِكَ وَٱغۡضُضۡ مِن صَوۡتِكَۚ إِنَّ أَنكَرَ ٱلۡأَصۡوَٰتِ لَصَوۡتُ ٱلۡحَمِيرِ ۝ 19
"और अपनी चाल में सहजता और संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज़ धीमी रख। निस्संदेह आवाज़ों में सबसे बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है।"॥19॥
أَلَمۡ تَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَأَسۡبَغَ عَلَيۡكُمۡ نِعَمَهُۥ ظَٰهِرَةٗ وَبَاطِنَةٗۗ وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُجَٰدِلُ فِي ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَلَا هُدٗى وَلَا كِتَٰبٖ مُّنِيرٖ ۝ 20
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने, जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, सबको तुम्हारे काम में लगा रखा है और उसने तुमपर अपनी प्रकट और अप्रकट अनुकम्पाएँ पूर्ण कर दी हैं? इसपर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अल्लाह के विषय में बिना किसी ज्ञान, बिना किसी मार्गदर्शन और बिना किसी प्रकाशमान किताब के झगड़ते हैं।॥20॥
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ بَلۡ نَتَّبِعُ مَا وَجَدۡنَا عَلَيۡهِ ءَابَآءَنَآۚ أَوَلَوۡ كَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ يَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلسَّعِيرِ ۝ 21
अब जब उनसे कहा जाता है कि "उस चीज़ का अनुसरण करो जो अल्लाह न उतारी है," तो कहते है, "नहीं, बल्कि हम तो उस चीज़ का अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या यद्यपि शैतान उनको भड़कती आग की यातना की ओर बुला रहा हो तब भी?॥21॥
۞وَمَن يُسۡلِمۡ وَجۡهَهُۥٓ إِلَى ٱللَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنٞ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰۗ وَإِلَى ٱللَّهِ عَٰقِبَةُ ٱلۡأُمُورِ ۝ 22
जो कोई आज्ञाकारिता के साथ अपना रुख़ अल्लाह की ओर करे और वह उत्तमकार भी हो तो उसने मज़बूत सहारा थाम लिया। सारे मामलों का अंजाम अल्लाह ही की ओर है।॥22॥
وَمَن كَفَرَ فَلَا يَحۡزُنكَ كُفۡرُهُۥٓۚ إِلَيۡنَا مَرۡجِعُهُمۡ فَنُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 23
और जिस किसी ने इनकार किया तो उसका इनकार तुम्हें शोकाकुल न करे। हमारी ही ओर तो उन्हें पलटकर आना है। फिर जो कुछ वे करते रहे होंगे उससे हम उन्हें अवगत करा देंगे। निस्सन्‍देह अल्लाह सीनों की बात तक जानता है।॥23॥
نُمَتِّعُهُمۡ قَلِيلٗا ثُمَّ نَضۡطَرُّهُمۡ إِلَىٰ عَذَابٍ غَلِيظٖ ۝ 24
हम उन्हें थोड़ा मज़ा उड़ाने देंगे। फिर उन्हें विवश करके एक घोर यातना की ओर खींच ले जाएँगे।॥24॥
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 25
यदि तुम उनसे पूछो कि "आकाशों और धरती को किसने पैदा किया?" तो वे अवश्य कहेंगे कि "अल्लाह ने।" कहो, "प्रशंसा भी अल्लाह के लिए है।" वरन् उनमें से अधिकांश जानते नहीं।॥25॥
لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ ۝ 26
आकाशों और धरती में जो कुछ है अल्लाह ही का है। निस्सन्‍देह अल्लाह ही निस्पृह, स्वतः प्रशंसित है।॥26॥
وَلَوۡ أَنَّمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ مِن شَجَرَةٍ أَقۡلَٰمٞ وَٱلۡبَحۡرُ يَمُدُّهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦ سَبۡعَةُ أَبۡحُرٖ مَّا نَفِدَتۡ كَلِمَٰتُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ ۝ 27
धरती में जितने वृक्ष हैं यदि वे क़लम हो जाएँ और समुद्र उसकी स्याही हो जाए, उसके बाद सात और समुद्र हों तब भी अल्लाह के बोल समाप्त न हो सकेंगे। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।॥27॥
مَّا خَلۡقُكُمۡ وَلَا بَعۡثُكُمۡ إِلَّا كَنَفۡسٖ وَٰحِدَةٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعُۢ بَصِيرٌ ۝ 28
तुम सबका पैदा करना और तुम सबका जीवित करके पुनः उठाना तो बस ऐसा है जैसे एक जीव का। अल्लाह तो सब कुछ सुनता, देखता है।॥28॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِيٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى وَأَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ ۝ 29
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम में लगा रखा है? प्रत्येक एक नियत समय तक चला जा रहा है, और इसके साथ यह कि जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है।॥29॥
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدۡعُونَ مِن دُونِهِ ٱلۡبَٰطِلُ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡعَلِيُّ ٱلۡكَبِيرُ ۝ 30
यह सब कुछ इस कारण से है कि अल्लाह ही सत्य है और यह कि उसे छोड़कर जिनको वे पुकारते हैं, वे असत्य हैं। और यह कि अल्लाह ही सर्वोच्च, महान है।॥30॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱلۡفُلۡكَ تَجۡرِي فِي ٱلۡبَحۡرِ بِنِعۡمَتِ ٱللَّهِ لِيُرِيَكُم مِّنۡ ءَايَٰتِهِۦٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّكُلِّ صَبَّارٖ شَكُورٖ ۝ 31
क्या तुमने देखा नहीं कि नौका समुद्र में अल्लाह के अनुग्रह से चलती है, ताकि वह तुम्हें अपनी कुछ निशानियाँ दिखाए। निस्सन्‍देह इसमें प्रत्येक धैर्यवान, कृतज्ञ के लिए निशानियाँ हैं।॥31॥
وَإِذَا غَشِيَهُم مَّوۡجٞ كَٱلظُّلَلِ دَعَوُاْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَ فَلَمَّا نَجَّىٰهُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ فَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞۚ وَمَا يَجۡحَدُ بِـَٔايَٰتِنَآ إِلَّا كُلُّ خَتَّارٖ كَفُورٖ ۝ 32
और जब कोई मौज छाया-छत्रों की तरह उन्हें ढाँक लेती है तो वे अल्लाह को उसी के लिए अपने निष्ठाभाव को विशुद्ध करते हुए पुकारते हैं, फिर जब वह उन्हें बचाकर स्थल तक पहुँचा देता है तो उनमें से कुछ ही लोग संतुलित मार्ग पर रहते हैं। (अधिकांश तो पुनः पथभ्रष्ट हो जाते हैं।) हमारी निशानियों का इनकार तो बस प्रत्येक वह व्यक्ति करता है जो विश्वासघाती, कृतघ्‍न हो।॥32॥
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡ وَٱخۡشَوۡاْ يَوۡمٗا لَّا يَجۡزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِۦ وَلَا مَوۡلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِۦ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ ۝ 33
ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो और उस दिन से डरो जब न कोई बाप अपनी औलाद की ओर से बदला देगा और न कोई औलाद ही अपने बाप की ओर से कोई बदला देनेवाली होगी। निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है। अतः सांसारिक जीवन कदापि तुम्हें धोखे में न डाले, और न अल्लाह के विषय में वह धोखेबाज़ तुम्हें धोखें में डाले।॥33॥
إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ ٱلۡغَيۡثَ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلۡأَرۡحَامِۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسٞ مَّاذَا تَكۡسِبُ غَدٗاۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسُۢ بِأَيِّ أَرۡضٖ تَمُوتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرُۢ ۝ 34
निस्सन्‍देह उस घड़ी का ज्ञान अल्लाह ही के पास है। वही मेंह बरसाता है और जानता है जो कुछ गर्भाशयों में होता है। कोई व्यक्ति नहीं जानता कि कल वह क्या कमाएगा और कोई व्यक्ति नहीं जानता है कि किस भू-भाग में उसकी मृत्यु होगी। निस्सन्‍देह अल्लाह जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है।॥34॥