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سُورَةُ الطُّورِ

52. अत-तूर

(मक्का में उतरी, आयतें 49)

परिचय

नाम

पहले ही शब्द ‘वत-तूर' (क़सम है तूर की) से लिया गया है। यहाँ 'तूर’ शब्‍द एक पर्वत विशेष के लिए आया है जिसपर हज़रत मूसा (अलैहि०) को पैग़म्बरी दी गई थी।

उतरने का समय

विषय-वस्तुओं के आन्तरिक प्रमाणों से अनुमान होता है कि यह भी मक्का मुअज्‍़ज़मा के उसी कालखण्ड में उतरी है जिसमें सूरा-51 अज़-ज़ारियात उतरी थी।

विषय और वार्ता

आयत 1 से लेकर आयत 28 तक का विषय आख़िरत (परलोक) है। सूरा-51 अज़-ज़ारियाल में इसकी सम्भावना, अनिवार्यता और इसके घटित होने के प्रमाण दिए जा चुके हैं, इसलिए यहाँ इनको दोहराया नहीं गया है, अलबत्ता आख़िरत की गवाही देनेवाले कुछ तथ्यों और लक्षणों की क़सम खाकर पूरे जोर के साथ कहा गया है कि वह निश्चय ही घटित होकर रहेगी। फिर यह बताया गया कि जब वह सामने आ पड़ेगी तो उसके झुठलानेवालों का परिणाम क्या होगा और इसे मानकर ईशपरायणता (तक़वा) की नीति अपनानेवाले किस प्रकार अल्लाह के अनुग्रह और उसकी कृपाओं से सम्मानित होंगे। इसके बाद आयत 29 से सूरा के अन्त तक में क़ुरैश के सरदारों की उस नीति की आलोचना की गई है जो वे अल्लाह के रसूल (सल्ल.)के आह्वान के मुक़ाबले में अपनाए हुए थे। वे आपको कभी काहिन (ज्योतिषी), कभी मजनून (उन्मादग्रस्त) और कभी कवि घोषित करते थे। वे आपपर इलज़ाम लगाते थे कि यह क़ुरआन आप स्वयं गढ़-गढ़कर ख़ुदा के नाम से पेश कर रहे हैं। वे बार-बार व्यंग्य करते थे कि ख़ुदा की पैग़म्बरी के लिए मिले भी तो बस यही साहब मिले। वे आपके आहवान और प्रचार-प्रसार पर अत्यन्त अप्रसन्नता और खिन्नता व्यक्त करते थे। वे आपस में बैठ-बैठकर सोचते थे कि आपके विरुद्ध क्या चाल ऐसी चली जाए जिससे आपकी यह दावत (आहवान) समाप्त हो जाए। अल्लाह ने उनकी इसी नीति की आलोचना करते हुए निरन्तर एक के बाद एक कुछ प्रश्न किए हैं जिनमें से हर प्रश्न या तो उनके किसी आक्षेप का उत्तर है या उनकी किसी अज्ञानता की समीक्षा। फिर कहा है कि इन हठधर्म लोगों को आपकी पैग़म्बरी स्वीकार करने के लिए कोई चमत्कार दिखाना बिलकुल व्यर्थ है। आयत 28 के बाद कुछ आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को यह आदेश दिया गया है कि इन विरोधियों और शत्रुओं के आरोपों और आक्षेपों की परवाह किए बिना अपने आह्वान और लोगों को सचेत करने का काम निरन्तर जारी रखें, और अन्त में भी आपको ताकीद की गई कि धैर्य के साथ इन रुकावटों का मुक़ाबला किए चले जाएँ, यहाँ तक कि अल्लाह का फ़ैसला आ जाए। इसके साथ आपको तसल्ली दी गई है कि आपके रब (प्रभु-पालनहार) ने आपको सत्य के शत्रुओं के मुक़ाबले में खड़ा करके अपने हाल पर छोड़ नहीं दिया है, बल्कि वह निरन्तर आपकी देख-रेख कर रहा है। जब तक उसके फ़ैसले की घड़ी आए, आप सब कुछ सहन करते रहें और अपने प्रभु की स्तुति और उसके महिमा-गान से वह शक्ति प्राप्त करते रहें जो ऐसी परिस्थितियों में अल्लाह का काम करने के लिए अपेक्षित होती है।

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سُورَةُ الطُّورِ
52. अत-तूर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
وَٱلطُّورِ ۝ 1
गवाह है तूर पर्वत,॥1॥
وَكِتَٰبٖ مَّسۡطُورٖ ۝ 2
और झिल्ली के फैले हुए पन्‍ने में॥2॥
فِي رَقّٖ مَّنشُورٖ ۝ 3
लिखी हुई किताब;॥3॥
وَٱلۡبَيۡتِ ٱلۡمَعۡمُورِ ۝ 4
और बसा हुआ घर;॥4॥
وَٱلسَّقۡفِ ٱلۡمَرۡفُوعِ ۝ 5
और ऊँची छत;॥5॥
وَٱلۡبَحۡرِ ٱلۡمَسۡجُورِ ۝ 6
और उफनता समुद्र ॥6॥
إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ لَوَٰقِعٞ ۝ 7
कि तेरे रब की यातना अवश्य आकर रहेगी;॥7॥
مَّا لَهُۥ مِن دَافِعٖ ۝ 8
जिसे टालनेवाला कोई नहीं;॥8॥
يَوۡمَ تَمُورُ ٱلسَّمَآءُ مَوۡرٗا ۝ 9
जिस दिल आकाश बुरी तरह डगमगाएगा;॥9॥
وَتَسِيرُ ٱلۡجِبَالُ سَيۡرٗا ۝ 10
और पहाड़ चलते-फिरते होंगे;॥10॥
فَوَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 11
तो तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए;॥11॥
ٱلَّذِينَ هُمۡ فِي خَوۡضٖ يَلۡعَبُونَ ۝ 12
जो बात बनाने में लगे हुए खेल रहे हैं।॥12॥
يَوۡمَ يُدَعُّونَ إِلَىٰ نَارِ جَهَنَّمَ دَعًّا ۝ 13
जिस दिन वे धक्‍के दे-देकर जहन्‍नम की ओर ढकेले जाएँगे॥13॥
هَٰذِهِ ٱلنَّارُ ٱلَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ۝ 14
(कहा जाएगा), "यही है वह आग जिसे तुम झुठलाते थे।॥14॥
أَفَسِحۡرٌ هَٰذَآ أَمۡ أَنتُمۡ لَا تُبۡصِرُونَ ۝ 15
अब भला (बताओ) यह कोई जादू है या तुम्हे सुझाई नहीं देता?॥15॥
ٱصۡلَوۡهَا فَٱصۡبِرُوٓاْ أَوۡ لَا تَصۡبِرُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡكُمۡۖ إِنَّمَا تُجۡزَوۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 16
जाओ, झुलसो उसमें! अब धैर्य से काम लो या धैर्य से काम न लो; तुम्हारे लिए बराबर है। तुम वही बदला पा रहे हो जो तुम करते रहे थे।"॥16॥
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّٰتٖ وَنَعِيمٖ ۝ 17
निश्‍चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और नेमतों में होंगे।॥17॥
فَٰكِهِينَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡ وَوَقَىٰهُمۡ رَبُّهُمۡ عَذَابَ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 18
जो कुछ उनके रब ने उन्हें दिया होगा उसका आनन्द ले रहे होंगे, और इस बात से कि उनके रब ने उन्हें भड़कती हुई आग से बचा लिया —॥18॥
كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِيٓـَٔۢا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 19
"मज़े से खाओ और पियो उन कर्मों के बदले में जो तुम करते रहे हो।"॥19॥
مُتَّكِـِٔينَ عَلَىٰ سُرُرٖ مَّصۡفُوفَةٖۖ وَزَوَّجۡنَٰهُم بِحُورٍ عِينٖ ۝ 20
पंक्तिबद्ध तख़्तों पर तकिया लगाए हुए होंगे और हम बड़ी आँखोंवाली हूरों (परम रूपवती स्त्रियों) से उनका विवाह कर देंगे।॥20॥
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱتَّبَعَتۡهُمۡ ذُرِّيَّتُهُم بِإِيمَٰنٍ أَلۡحَقۡنَا بِهِمۡ ذُرِّيَّتَهُمۡ وَمَآ أَلَتۡنَٰهُم مِّنۡ عَمَلِهِم مِّن شَيۡءٖۚ كُلُّ ٱمۡرِيِٕۭ بِمَا كَسَبَ رَهِينٞ ۝ 21
जो लोग ईमान लाए और उनकी सन्तान ने भी ईमान के साथ उसका अनुसरण किया, हमने उनकी सन्तान को भी उनसे मिला दिया, और हमने उनके कर्म में से कुछ भी कम नहीं किया। हर व्यक्ति अपनी कमाई के बदले में बन्धक है।॥21॥
وَأَمۡدَدۡنَٰهُم بِفَٰكِهَةٖ وَلَحۡمٖ مِّمَّا يَشۡتَهُونَ ۝ 22
और हम उन्हें मेवे और मांस, जिसकी वे इच्छा करेंगे, दिए चले जाएँगे।॥22॥
يَتَنَٰزَعُونَ فِيهَا كَأۡسٗا لَّا لَغۡوٞ فِيهَا وَلَا تَأۡثِيمٞ ۝ 23
वे वहाँ आपस में प्याले हाथों-हाथ ले रहे होंगे जिसमें न कोई बेहूदगी होगी और न गुनाह पर उभारनेवाली कोई बात,॥23॥
۞وَيَطُوفُ عَلَيۡهِمۡ غِلۡمَانٞ لَّهُمۡ كَأَنَّهُمۡ لُؤۡلُؤٞ مَّكۡنُونٞ ۝ 24
और उनकी सेवा में सुरक्षित मोतियों के सदृश किशोर दौड़ते फिरते होंगे, जो ख़ास उन्हीं (की सेवा) के लिए होंगे।॥24॥
وَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ ۝ 25
उनमें से कुछ व्यक्ति कुछ व्यक्तियों की ओर हाल पूछते हुए रुख़ करेंगे,॥25॥
قَالُوٓاْ إِنَّا كُنَّا قَبۡلُ فِيٓ أَهۡلِنَا مُشۡفِقِينَ ۝ 26
कहेंगे, "निश्‍चय ही हम पहले अपने घरवालों में डरते रहे हैं,॥26॥
فَمَنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡنَا وَوَقَىٰنَا عَذَابَ ٱلسَّمُومِ ۝ 27
अन्ततः अल्लाह ने हमपर एहसान किया और हमें गर्म विषैली वायु की यातना से बचा लिया।॥27॥
إِنَّا كُنَّا مِن قَبۡلُ نَدۡعُوهُۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡبَرُّ ٱلرَّحِيمُ ۝ 28
इससे पहले हम उसे पुकारते रहे हैं। निश्‍चय ही वह सद्‍व्यवहार करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।"॥28॥
فَذَكِّرۡ فَمَآ أَنتَ بِنِعۡمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٖ وَلَا مَجۡنُونٍ ۝ 29
अतः तुम याद दिलाते रहो। अपने रब की अनुकम्पा से न तुम काहिन (ढोंगी भविष्यवक्‍ता) हो और न दीवाने।॥29॥
أَمۡ يَقُولُونَ شَاعِرٞ نَّتَرَبَّصُ بِهِۦ رَيۡبَ ٱلۡمَنُونِ ۝ 30
या वे कहते हैं, "वह कवि है जिसके लिए हम काल-चक्र की प्रतीक्षा कर रहे हैं?"॥30॥
قُلۡ تَرَبَّصُواْ فَإِنِّي مَعَكُم مِّنَ ٱلۡمُتَرَبِّصِينَ ۝ 31
कह दो, "प्रतीक्षा करो! मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।"॥31॥
أَمۡ تَأۡمُرُهُمۡ أَحۡلَٰمُهُم بِهَٰذَآۚ أَمۡ هُمۡ قَوۡمٞ طَاغُونَ ۝ 32
या उनकी बुद्धियाँ यही आदेश दे रही हैं, या वे हैं ही सरकश लोग?॥32॥
أَمۡ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُۥۚ بَل لَّا يُؤۡمِنُونَ ۝ 33
या वे कहते हैं, "उसने उस (क़ुरआन) को स्वयं ही कह लिया है?" नहीं, बल्कि वे ईमान नहीं लाते।॥33॥
فَلۡيَأۡتُواْ بِحَدِيثٖ مِّثۡلِهِۦٓ إِن كَانُواْ صَٰدِقِينَ ۝ 34
अच्छा यदि वे सच्‍चे है तो उन्हें उस जैसी वाणी ले आनी चाहिए।॥34॥
أَمۡ خُلِقُواْ مِنۡ غَيۡرِ شَيۡءٍ أَمۡ هُمُ ٱلۡخَٰلِقُونَ ۝ 35
या वे बिना किसी चीज़ के पैदा हो गए? या वे स्वयं ही अपने स्रष्टा हैं?॥35॥
أَمۡ خَلَقُواْ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَۚ بَل لَّا يُوقِنُونَ ۝ 36
या उन्होंने आकाशों और धरती को पैदा किया?॥36॥
أَمۡ عِندَهُمۡ خَزَآئِنُ رَبِّكَ أَمۡ هُمُ ٱلۡمُصَۜيۡطِرُونَ ۝ 37
या उनके पास तुम्हारे रब के ख़ज़ाने हैं? या वही उनके परिरक्षक हैं?॥37॥
أَمۡ لَهُمۡ سُلَّمٞ يَسۡتَمِعُونَ فِيهِۖ فَلۡيَأۡتِ مُسۡتَمِعُهُم بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ ۝ 38
या उनके पास कोई सीढ़ी है जिसपर चढ़कर वे (कान लगाकर) सुन लेते हैं? फिर उनमें से जिसने सुन लिया हो तो वह ले आए स्पष्ट प्रमाण।॥38॥
أَمۡ لَهُ ٱلۡبَنَٰتُ وَلَكُمُ ٱلۡبَنُونَ ۝ 39
या उस (अल्लाह) के लिए बेटियाँ हैं और तुम्हारे अपने लिए बेटे?॥39॥
أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ أَجۡرٗا فَهُم مِّن مَّغۡرَمٖ مُّثۡقَلُونَ ۝ 40
या तुम उनसे कोई पारिश्रामिक माँगते हो कि वे तावान के बोझ से दबे जा रहे हैं?॥40॥
أَمۡ عِندَهُمُ ٱلۡغَيۡبُ فَهُمۡ يَكۡتُبُونَ ۝ 41
या उनके पास परोक्ष (का स्पष्ट ज्ञान) है जिसके आधार वे हुक्‍म लगा रहे हैं?॥41॥
أَمۡ يُرِيدُونَ كَيۡدٗاۖ فَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ هُمُ ٱلۡمَكِيدُونَ ۝ 42
या वे कोई चाल चलना चाहते हैं? तो जिन लोगों ने इनकार किया वही चाल की लपेट में आनेवाले हैं।॥42॥
أَمۡ لَهُمۡ إِلَٰهٌ غَيۡرُ ٱللَّهِۚ سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 43
या अल्लाह के अतिरिक्‍त उनका कोई और पूज्य-प्रभु है? अल्लाह महान और उच्‍च है उससे जो वे साझी ठहराते हैं।॥43॥
وَإِن يَرَوۡاْ كِسۡفٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ سَاقِطٗا يَقُولُواْ سَحَابٞ مَّرۡكُومٞ ۝ 44
यदि वे आकाश का कोई टुकड़ा गिरता हुआ देखें तो कहेंगे, "यह तो परत पर परत बादल है!"॥44॥
فَذَرۡهُمۡ حَتَّىٰ يُلَٰقُواْ يَوۡمَهُمُ ٱلَّذِي فِيهِ يُصۡعَقُونَ ۝ 45
अतः छोड़ो उन्हें, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन का सामना करें जिसमें उनपर वज्रपात होगा;॥45॥
يَوۡمَ لَا يُغۡنِي عَنۡهُمۡ كَيۡدُهُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ ۝ 46
जिस दिन उनकी चाल उनके कुछ भी काम न आएगी और न उन्हें कोई सहायता ही मिलेगी;॥46॥
وَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ عَذَابٗا دُونَ ذَٰلِكَ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 47
और निश्‍चय ही जिन लोगों ने ज़ुल्म किया उनके लिए एक यातना है उससे हटकर भी, परन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं।॥47॥
وَٱصۡبِرۡ لِحُكۡمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعۡيُنِنَاۖ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ حِينَ تَقُومُ ۝ 48
अपने रब का फ़ैसला आने तक धैर्य से काम लो, तुम तो हमारी आँखों में हो, और जब उठो तो अपने रब का गुणगान करो;॥48॥
وَمِنَ ٱلَّيۡلِ فَسَبِّحۡهُ وَإِدۡبَٰرَ ٱلنُّجُومِ ۝ 49
रात की कुछ घड़ियों में भी उसकी तसबीह करो और सितारों के पीठ फेरने के समय (प्रातःकाल) भी।॥49॥