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سُورَةُ الحِجۡرِ

  1. अल-हिज्र

(मक्का में उतरी-आयतें 99)

परिचय

नाम

आयत नम्बर 80 में हिज्र शब्द आया है, उसी को इस सूरा का नाम दे दिया गया है।

उतरने का समय

विषय और वर्णन-शैली से साफ़ पता चलता है कि इस सूरा के उतरने का समय सूरा-14 (इबराहीम) के समय से मिला हुआ है। इसकी पृष्ठभूमि में दो चीज़े बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देती हैं। एक यह कि नबी (सल्ल०) को सन्देश पहुँचाते हुए एक समय बीत चुका है और सम्बोधित क़ौम को निरन्तर हठधर्मी, उपहास, अवरोध और अत्याचार अपनी सीमा पार कर चुका है, जिसके बाद अब समझाने-बुझाने का अवसर कम और चेतावनी और धमकी का अवसर अधिक है। दूसरे यह कि अपनी क़ौम के इंकार, हठधर्मी और अवरोध के पहाड़ तोड़ते-तोड़ते नबी (सल्ल०) थके जा रहे हैं और दिल टूटने की दशा बार-बार आप पर छा रही है, जिसे देखकर अल्लाह आपको तसल्ली दे रहा है और आपकी हिम्मत बंधा रहा है।

वार्ताएँ और केन्द्रीय विषय

यही दो विषय इस सूरा में वर्णित हुए हैं। एक यह कि चेतावनी उन लोगों को दी गई जो नबी (सल्ल०) की दावत का इंकार कर रहे थे और आपका उपहास करते और आपके काम में तरह-तरह की रुकावटें पैदा करते थे और दूसरा यह कि नबी (सल्ल०) को तसल्ली और प्रोत्साहन दिया गया है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि यह सूरा समझाने और उपदेश देने से ख़ाली है। क़ुरआन में कहीं भी अल्लाह ने केवल चेतावनी या मात्र डॉट-फटकार से काम नहीं लिया है, कड़ी से कड़ी धमकियों और निन्दाओं के बीच भी वह समझाने-बुझाने और उपदेश देने में कमी नहीं करता। अत: इस सूरा में भी एक ओर तौहीद (एकेश्वरवाद) के प्रमाणों की ओर संक्षिप्त संकेत किए गए हैं और दूसरी ओर आदम और इबलोस का क़िस्सा सुनाकर नसीहत की गई है ।

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سُورَةُ الحِجۡرِ
15. अल-हिज्र
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
الٓرۚ تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ وَقُرۡءَانٖ مُّبِينٖ ۝ 1
अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। ये किताब अर्थात स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं॥1॥
رُّبَمَا يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡ كَانُواْ مُسۡلِمِينَ ۝ 2
ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते!॥2॥
ذَرۡهُمۡ يَأۡكُلُواْ وَيَتَمَتَّعُواْ وَيُلۡهِهِمُ ٱلۡأَمَلُۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 3
छोड़ो उन्हें, खाएँ और मज़े उड़ाएँ और (लम्बी) आशा उन्हें भुलावे में डाले रखे। उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा!॥3॥
وَمَآ أَهۡلَكۡنَا مِن قَرۡيَةٍ إِلَّا وَلَهَا كِتَابٞ مَّعۡلُومٞ ۝ 4
हमने जिस बस्ती को भी हलाक (विनष्ट) किया है उसके लिए अनिवार्यतः एक निश्चित फ़ैसला रहा है!॥4॥
مَّا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ ۝ 5
किसी समुदाय के लोग न अपने निश्चि‍त समय से आगे बढ़ सकते हैं और न वे पीछे रह सकते हैं॥5॥
وَقَالُواْ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِي نُزِّلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ إِنَّكَ لَمَجۡنُونٞ ۝ 6
वे कहते हैं, "ऐ वह व्यक्ति जिसपर नसीहत अवतरित हुई है। तुम निश्चय ही दीवाने हो!॥6॥
لَّوۡمَا تَأۡتِينَا بِٱلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ ۝ 7
यदि तुम सच्चे हो तो हमारे समक्ष फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आते?"॥7॥
مَا نُنَزِّلُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَمَا كَانُوٓاْ إِذٗا مُّنظَرِينَ ۝ 8
फ़रिश्तों को हम केवल सत्य के प्रयोजन हेतु उतारते हैं और उस समय लोगों को मुहलत नहीं मिलेगी॥8॥
إِنَّا نَحۡنُ نَزَّلۡنَا ٱلذِّكۡرَ وَإِنَّا لَهُۥ لَحَٰفِظُونَ ۝ 9
यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं॥9॥
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ فِي شِيَعِ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 10
तुमसे पहले कितने ही विगत गिरोंहों में हम रसूल भेज चुके हैं॥10॥
وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 11
कोई भी रसूल उनके पास ऐसा नहीं आया जिसका उन्होंने मज़ाक़ न उड़ाया हो॥11॥
كَذَٰلِكَ نَسۡلُكُهُۥ فِي قُلُوبِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 12
इसी तरह हम अपराधियों के दिलों में इसे उतारते हैं॥12॥
لَا يُؤۡمِنُونَ بِهِۦ وَقَدۡ خَلَتۡ سُنَّةُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 13
वे इसे मानेंगे नहीं। पहले के लोगों की मिसालें गुज़र चुकी हैं॥13॥
وَلَوۡ فَتَحۡنَا عَلَيۡهِم بَابٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فَظَلُّواْ فِيهِ يَعۡرُجُونَ ۝ 14
यदि हम उनपर आकाश से कोई द्वार खोल दें और वे दिन-दहाड़े उसमें चढ़ने भी लगें,॥14॥
لَقَالُوٓاْ إِنَّمَا سُكِّرَتۡ أَبۡصَٰرُنَا بَلۡ نَحۡنُ قَوۡمٞ مَّسۡحُورُونَ ۝ 15
फिर भी वे यही कहेंगे, "हमारी आँखें मदमाती हैं, बल्कि हम लोगों पर जादू कर दिया गया है!"॥15॥
وَلَقَدۡ جَعَلۡنَا فِي ٱلسَّمَآءِ بُرُوجٗا وَزَيَّنَّٰهَا لِلنَّٰظِرِينَ ۝ 16
हमने आकाश में बुर्ज (तारा-समूह) बनाए और हमने उसे देखनेवालों के लिए सुसज्जित भी किया॥16॥
وَحَفِظۡنَٰهَا مِن كُلِّ شَيۡطَٰنٖ رَّجِيمٍ ۝ 17
और हर फिटकारे हुए शैतान से उसे सुरक्षित रखा —॥17॥
إِلَّا مَنِ ٱسۡتَرَقَ ٱلسَّمۡعَ فَأَتۡبَعَهُۥ شِهَابٞ مُّبِينٞ ۝ 18
यह और बात है कि किसी ने चोरी-छिपे कुछ सुनगुन ले लिया तो एक प्रत्यक्ष अग्निशिखा ने भी झपटकर उसे अपने पीछे कर लिया॥18॥
وَٱلۡأَرۡضَ مَدَدۡنَٰهَا وَأَلۡقَيۡنَا فِيهَا رَوَٰسِيَ وَأَنۢبَتۡنَا فِيهَا مِن كُلِّ شَيۡءٖ مَّوۡزُونٖ ۝ 19
और हमने धरती को फैलाया और उसमें अटल पहाड़ डाल दिए और उसमें हर चीज़ नपे-तुले अन्दाज़ में उगाई॥19॥
وَجَعَلۡنَا لَكُمۡ فِيهَا مَعَٰيِشَ وَمَن لَّسۡتُمۡ لَهُۥ بِرَٰزِقِينَ ۝ 20
और उसमें तुम्हारे गुज़र-बसर के सामान निर्मित किए और उनको भी जिनको रोज़ी देनेवाले तुम नहीं हो॥20॥
وَإِن مِّن شَيۡءٍ إِلَّا عِندَنَا خَزَآئِنُهُۥ وَمَا نُنَزِّلُهُۥٓ إِلَّا بِقَدَرٖ مَّعۡلُومٖ ۝ 21
कोई भी चीज़ तो ऐसी नहीं है जिसके भंडार हमारे पास न हों, फिर भी हम उसे एक ज्ञात (निश्चित) मात्रा के साथ उतारते हैं॥21॥
وَأَرۡسَلۡنَا ٱلرِّيَٰحَ لَوَٰقِحَ فَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَسۡقَيۡنَٰكُمُوهُ وَمَآ أَنتُمۡ لَهُۥ بِخَٰزِنِينَ ۝ 22
हम ही वर्षा लानेवाली हवाओं को भेजते हैं। फिर आकाश से पानी बरसाते हैं और उससे तुम्हें सिंचित करते हैं। उसके ख़जाने के अधिकारी तुम नहीं हो॥22॥
وَإِنَّا لَنَحۡنُ نُحۡيِۦ وَنُمِيتُ وَنَحۡنُ ٱلۡوَٰرِثُونَ ۝ 23
हम ही जीवन और मृत्यु देते हैं और हम ही उत्तराधिकारी रह जाते हैं॥23॥
وَلَقَدۡ عَلِمۡنَا ٱلۡمُسۡتَقۡدِمِينَ مِنكُمۡ وَلَقَدۡ عَلِمۡنَا ٱلۡمُسۡتَـٔۡخِرِينَ ۝ 24
हम तुम्हारे पहले के लोगों को भी जानते हैं और बाद के आनेवालों को भी हम जानते हैं॥24॥
وَإِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَحۡشُرُهُمۡۚ إِنَّهُۥ حَكِيمٌ عَلِيمٞ ۝ 25
तुम्हारा रब ही है जो उन्हें इकट्ठा करेगा। निस्संदेह वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है॥25॥
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ مِن صَلۡصَٰلٖ مِّنۡ حَمَإٖ مَّسۡنُونٖ ۝ 26
हमने मनुष्य को सड़ी हुर्ह मिट्टी के सूखे गारे से पैदा किया,॥26॥
وَٱلۡجَآنَّ خَلَقۡنَٰهُ مِن قَبۡلُ مِن نَّارِ ٱلسَّمُومِ ۝ 27
और उससे पहले हम जिन्नों को लू रूपी अग्नि से पैदा कर चुके थे॥27॥
وَإِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِنِّي خَٰلِقُۢ بَشَرٗا مِّن صَلۡصَٰلٖ مِّنۡ حَمَإٖ مَّسۡنُونٖ ۝ 28
याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा, "मैं सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ॥28॥
فَإِذَا سَوَّيۡتُهُۥ وَنَفَخۡتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُواْ لَهُۥ سَٰجِدِينَ ۝ 29
तो जब मैं उसे पूरा बना चुकूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना!"॥29॥
فَسَجَدَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ كُلُّهُمۡ أَجۡمَعُونَ ۝ 30
अतएव सब के सब फ़रिश्तों ने सजदा किया,॥30॥
إِلَّآ إِبۡلِيسَ أَبَىٰٓ أَن يَكُونَ مَعَ ٱلسَّٰجِدِينَ ۝ 31
सिवाय इबलीस के। उसने इससे इनकार कर दिया कि सजदा करनेवालों में शामिल हो॥31॥
قَالَ يَٰٓإِبۡلِيسُ مَا لَكَ أَلَّا تَكُونَ مَعَ ٱلسَّٰجِدِينَ ۝ 32
कहा, "ऐ इबलीस! तुझे क्या हुआ कि तू सजदा करनेवालों में शामिल नहीं हुआ?"॥32॥
قَالَ لَمۡ أَكُن لِّأَسۡجُدَ لِبَشَرٍ خَلَقۡتَهُۥ مِن صَلۡصَٰلٖ مِّنۡ حَمَإٖ مَّسۡنُونٖ ۝ 33
उसने कहा, "मैं ऐसा नहीं हूँ कि मैं उस मनुष्य को सजदा करूँ जिसको तू ने सड़े हुए गारे की खनखनाती हुए मिट्टी से बनाया।"॥33॥
قَالَ فَٱخۡرُجۡ مِنۡهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٞ ۝ 34
कहा, "अच्छा, तू निकल जा यहाँ से, क्योंकि तुझपर फिटकार है!॥34॥
وَإِنَّ عَلَيۡكَ ٱللَّعۡنَةَ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلدِّينِ ۝ 35
निश्चय ही बदले के दिन तक तुझ पर धिक्कार है।"॥35॥
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرۡنِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 36
उसने कहा, "मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहलत दे, जबकि सब उठाए जाएँगे।"॥36॥
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ ٱلۡمُنظَرِينَ ۝ 37
कहा, "अच्छा, तुझे मुहलत है,॥37॥
إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡوَقۡتِ ٱلۡمَعۡلُومِ ۝ 38
उस दिन तक के लिए जिसका समय ज्ञात एवं नियत है।"॥38॥
قَالَ رَبِّ بِمَآ أَغۡوَيۡتَنِي لَأُزَيِّنَنَّ لَهُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَأُغۡوِيَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 39
उसने कहा, "मेरे रब! इसलिए कि तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित कर दिया है, अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूँगा और उन सबको बहकाकर रहूँगा,॥39॥
إِلَّا عِبَادَكَ مِنۡهُمُ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 40
सिवाय उनके जो उनमें तेरे चुने हुए बन्दे होंगे।"॥40॥
قَالَ هَٰذَا صِرَٰطٌ عَلَيَّ مُسۡتَقِيمٌ ۝ 41
कहा, "मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है,॥41॥
إِنَّ عِبَادِي لَيۡسَ لَكَ عَلَيۡهِمۡ سُلۡطَٰنٌ إِلَّا مَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡغَاوِينَ ۝ 42
मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों के जो तेरे पीछे हो लें॥42॥
وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمَوۡعِدُهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 43
निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है॥43॥
لَهَا سَبۡعَةُ أَبۡوَٰبٖ لِّكُلِّ بَابٖ مِّنۡهُمۡ جُزۡءٞ مَّقۡسُومٌ ۝ 44
उसके सात द्वार हैं। प्रत्येक द्वार के लिए उनका एक ख़ास हिस्सा होगा।"॥44॥
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي جَنَّٰتٖ وَعُيُونٍ ۝ 45
निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे,॥45॥
ٱدۡخُلُوهَا بِسَلَٰمٍ ءَامِنِينَ ۝ 46
"प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!"॥46॥
وَنَزَعۡنَا مَا فِي صُدُورِهِم مِّنۡ غِلٍّ إِخۡوَٰنًا عَلَىٰ سُرُرٖ مُّتَقَٰبِلِينَ ۝ 47
उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे॥47॥
لَا يَمَسُّهُمۡ فِيهَا نَصَبٞ وَمَا هُم مِّنۡهَا بِمُخۡرَجِينَ ۝ 48
उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी और न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे॥48॥
۞نَبِّئۡ عِبَادِيٓ أَنِّيٓ أَنَا ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 49
मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ;॥49॥
وَأَنَّ عَذَابِي هُوَ ٱلۡعَذَابُ ٱلۡأَلِيمُ ۝ 50
और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है॥50॥
وَنَبِّئۡهُمۡ عَن ضَيۡفِ إِبۡرَٰهِيمَ ۝ 51
और उन्हें इबराहीम के मेहमानों का हाल सुनाओ,॥51॥
إِذۡ دَخَلُواْ عَلَيۡهِ فَقَالُواْ سَلَٰمٗا قَالَ إِنَّا مِنكُمۡ وَجِلُونَ ۝ 52
जब वे उसके यहाँ आए और उन्होंने सलाम किया तो उसने कहा, "हमें तो तुमसे डर लग रहा है।"॥52॥
قَالُواْ لَا تَوۡجَلۡ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلَٰمٍ عَلِيمٖ ۝ 53
वे बोले, "डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानवान पुत्र की शुभ सूचना देते हैं।"॥53॥
قَالَ أَبَشَّرۡتُمُونِي عَلَىٰٓ أَن مَّسَّنِيَ ٱلۡكِبَرُ فَبِمَ تُبَشِّرُونَ ۝ 54
उसने कहा, "क्या तुम मुझे शुभ सूचना दे रहे हो इस अवस्था में कि मेरा बुढ़ापा आ गया है? तो अब मुझे किस बात की शुभ-सूचना दे रहे हो?"॥54॥
قَالُواْ بَشَّرۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ فَلَا تَكُن مِّنَ ٱلۡقَٰنِطِينَ ۝ 55
उन्होंने कहा, "हम तुम्हें सच्ची शुभ-सूचना दे रहे हैं, तो तुम निराश न हो"॥55॥
قَالَ وَمَن يَقۡنَطُ مِن رَّحۡمَةِ رَبِّهِۦٓ إِلَّا ٱلضَّآلُّونَ ۝ 56
उसने कहा, "अपने रब की दयालुता से पथभ्रष्टों के सिवा और कौन निराश होगा?"॥56॥
قَالَ فَمَا خَطۡبُكُمۡ أَيُّهَا ٱلۡمُرۡسَلُونَ ۝ 57
उसने कहा, "ऐ दूतो, तुम किस अभियान पर आए हो?"॥57॥
قَالُوٓاْ إِنَّآ أُرۡسِلۡنَآ إِلَىٰ قَوۡمٖ مُّجۡرِمِينَ ۝ 58
वे बोले, "हम तो एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है,॥58॥
إِلَّآ ءَالَ لُوطٍ إِنَّا لَمُنَجُّوهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 59
सिवाय लूत के घरवालों के। उन सबको तो हम बचा लेंगे,॥59॥
إِلَّا ٱمۡرَأَتَهُۥ قَدَّرۡنَآ إِنَّهَا لَمِنَ ٱلۡغَٰبِرِينَ ۝ 60
सिवाय उसकी पत्नी के — हमने नियत कर दिया है, वह तो पीछे रह जानेवालों में रहेगी।"॥60॥
فَلَمَّا جَآءَ ءَالَ لُوطٍ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ۝ 61
फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे,॥61॥
قَالَ إِنَّكُمۡ قَوۡمٞ مُّنكَرُونَ ۝ 62
तो उसने कहा, "तुम तो अपरिचित लोग हो।"॥62॥
قَالُواْ بَلۡ جِئۡنَٰكَ بِمَا كَانُواْ فِيهِ يَمۡتَرُونَ ۝ 63
उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए हैं जिसके विषय में वे सन्देह कर रहे थे ॥63॥
وَأَتَيۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ ۝ 64
और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए हैं, और हम बिलकुल सच कह रहे हैं ॥64॥
فَأَسۡرِ بِأَهۡلِكَ بِقِطۡعٖ مِّنَ ٱلَّيۡلِ وَٱتَّبِعۡ أَدۡبَٰرَهُمۡ وَلَا يَلۡتَفِتۡ مِنكُمۡ أَحَدٞ وَٱمۡضُواْ حَيۡثُ تُؤۡمَرُونَ ۝ 65
अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात्रि के किसी हिस्से में निकल जाओ, और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। बस चले जाओ जिधर का तुम्हे आदेश है।"॥65॥
وَقَضَيۡنَآ إِلَيۡهِ ذَٰلِكَ ٱلۡأَمۡرَ أَنَّ دَابِرَ هَٰٓؤُلَآءِ مَقۡطُوعٞ مُّصۡبِحِينَ ۝ 66
हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी॥66॥
وَجَآءَ أَهۡلُ ٱلۡمَدِينَةِ يَسۡتَبۡشِرُونَ ۝ 67
इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे॥67॥
قَالَ إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ ضَيۡفِي فَلَا تَفۡضَحُونِ ۝ 68
उसने कहा, "ये मेरे मेहमान है। मेरी फ़ज़ीहत मत करना,॥68॥
وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَلَا تُخۡزُونِ ۝ 69
अल्लाह का डर रखो, मुझे रुसवा न करो।"॥69॥
قَالُوٓاْ أَوَلَمۡ نَنۡهَكَ عَنِ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 70
उन्होंने कहा, "क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?"॥70॥
قَالَ هَٰٓؤُلَآءِ بَنَاتِيٓ إِن كُنتُمۡ فَٰعِلِينَ ۝ 71
उसने कहा, "तुमको यदि कुछ करना है तो ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधितः विवाह के लिए) मौजूद हैं।"॥71॥
لَعَمۡرُكَ إِنَّهُمۡ لَفِي سَكۡرَتِهِمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 72
तुम्हारे जीवन की सौगन्ध, वे अपनी मस्ती में खोए हुए थे,॥72॥
فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّيۡحَةُ مُشۡرِقِينَ ۝ 73
अन्ततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया, ॥73॥
فَجَعَلۡنَا عَٰلِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمۡطَرۡنَا عَلَيۡهِمۡ حِجَارَةٗ مِّن سِجِّيلٍ ۝ 74
और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया और उनपर कंकरीले पत्थर बरसाए ॥74॥
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّلۡمُتَوَسِّمِينَ ۝ 75
निश्चय ही इसमें भाँपनेवालों के लिए निशानियाँ हैं॥75॥
وَإِنَّهَا لَبِسَبِيلٖ مُّقِيمٍ ۝ 76
और वह (बस्ती) सार्वजनिक मार्ग पर है॥76॥
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 77
निश्चय ही इसमें मोमिनों के लिए एक बड़ी निशानी है॥77॥
وَإِن كَانَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡأَيۡكَةِ لَظَٰلِمِينَ ۝ 78
और निश्चय ही ऐकावाले1 भी अत्याचारी थे,॥78॥ ————————— 1. ऐका का अर्थ है ‘सघन वन’ । यहाँ पर शुऐब (अलैहि.) की एक क़ौम का नाम है।
فَٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡ وَإِنَّهُمَا لَبِإِمَامٖ مُّبِينٖ ۝ 79
फिर हमने उनसे भी बदला लिया, और ये दोनों (भू-भाग) खुले मार्ग पर स्थित हैं॥79॥
وَلَقَدۡ كَذَّبَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡحِجۡرِ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 80
हिज्रवाले भी रसूलों को झुठला चुके हैं॥80॥
وَءَاتَيۡنَٰهُمۡ ءَايَٰتِنَا فَكَانُواْ عَنۡهَا مُعۡرِضِينَ ۝ 81
हमने तो उन्हें अपनी निशानियाँ प्रदान की थीं, परन्तु वे उनकी उपेक्षा ही करते रहे॥81॥
وَكَانُواْ يَنۡحِتُونَ مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُيُوتًا ءَامِنِينَ ۝ 82
वे बड़ी बेफ़िक्री से पहाड़ों को काट-काटकर घर बनाते थे॥82॥
فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّيۡحَةُ مُصۡبِحِينَ ۝ 83
अन्ततः एक भयानक आवाज़ ने प्रातः होते- होते उन्हें आ लिया॥83॥
فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 84
फिर जो कुछ वे कमाते रहे, वह उनके कुछ काम न आ सका॥84॥
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَآ إِلَّا بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلسَّاعَةَ لَأٓتِيَةٞۖ فَٱصۡفَحِ ٱلصَّفۡحَ ٱلۡجَمِيلَ ۝ 85
हमने तो आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके मध्य है, सोद्देश्य पैदा किया है, और वह क़ियामत की घड़ी तो अनिवार्यतः आनेवाली है। अतः तुम भली प्रकार दरगुज़र (क्षमा) से काम लो॥85॥
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ ٱلۡخَلَّٰقُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 86
निश्चय ही तुम्हारा रब ही बड़ा पैदा करनेवाला, सब कुछ जाननेवाला है॥86॥
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَٰكَ سَبۡعٗا مِّنَ ٱلۡمَثَانِي وَٱلۡقُرۡءَانَ ٱلۡعَظِيمَ ۝ 87
हमने तुम्हें सात 'मसानी'2 का समूह यानी महान क़ुरआन दिया — ॥87॥ ———————— 2. ‘मसानी’ अर्थात् बन्दों का रुख़ मोड़ देने का साधन, चाहे वे सात सूरतें हों य सूरतों सात वर्ग या सूरा अल-फ़ातिहा की सात आयतें।
لَا تَمُدَّنَّ عَيۡنَيۡكَ إِلَىٰ مَا مَتَّعۡنَا بِهِۦٓ أَزۡوَٰجٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا تَحۡزَنۡ عَلَيۡهِمۡ وَٱخۡفِضۡ جَنَاحَكَ لِلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 88
जो कुछ सुख-सामग्री हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दी है, तुम उसपर अपनी आँखें न पसारो और न उनपर दुखी हो, तुम तो अपनी भुजाएँ मोमिनों के लिए झुकाए रखो,॥88॥
وَقُلۡ إِنِّيٓ أَنَا ٱلنَّذِيرُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 89
और कह दो, "मैं तो साफ़-साफ़ चेतावनी देनेवाला हूँ।"॥89॥
كَمَآ أَنزَلۡنَا عَلَى ٱلۡمُقۡتَسِمِينَ ۝ 90
(हम उनपर अजाब उतारेंगे) जिस प्रकार हमने हिस्सा-बख़रा करनेवालों पर उतारा था,॥90॥
ٱلَّذِينَ جَعَلُواْ ٱلۡقُرۡءَانَ عِضِينَ ۝ 91
जिन्होंने (अपने) क़ुरआन को टुकड़े-टुकड़े कर डाला॥91॥
فَوَرَبِّكَ لَنَسۡـَٔلَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 92
अब तुम्हारे रब की क़सम! हम अवश्य ही उन सबसे उसके विषय में पूछेंगे ॥92॥
عَمَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 93
जो कुछ वे करते रहे। ॥93॥
فَٱصۡدَعۡ بِمَا تُؤۡمَرُ وَأَعۡرِضۡ عَنِ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 94
अतः तु्म्हें जिस चीज़ का आदेश हुआ है उसे हाँक-पुकारकर बयान कर दो और मुशरिको की ओर ध्यान न दो॥94॥
إِنَّا كَفَيۡنَٰكَ ٱلۡمُسۡتَهۡزِءِينَ ۝ 95
मज़ाक़ उडानेवालों के लिए हम तुम्हारी ओर से काफ़ी हैं॥95॥
ٱلَّذِينَ يَجۡعَلُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَۚ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 96
जो अल्लाह के साथ दूसरों को पूज्य-प्रभु ठहराते हैं, तो शीघ्र ही उन्हें मालूम हो जाएगा!॥96॥
وَلَقَدۡ نَعۡلَمُ أَنَّكَ يَضِيقُ صَدۡرُكَ بِمَا يَقُولُونَ ۝ 97
हम जानते हैं कि वे जो कुछ कहते हैं उससे तुम्हारा दिल तंग होता है॥97॥
فَسَبِّحۡ بِحَمۡدِ رَبِّكَ وَكُن مِّنَ ٱلسَّٰجِدِينَ ۝ 98
तो तुम अपने रब का गुणगान करो और सजदा करनेवालों में सम्मिलित रहो॥98॥
وَٱعۡبُدۡ رَبَّكَ حَتَّىٰ يَأۡتِيَكَ ٱلۡيَقِينُ ۝ 99
और अपने रब की बन्दगी में लगे रहो, यहाँ तक कि जो यक़ीनी है वह तुम्हारे सामने आ जाए॥99॥