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سُورَةُ المُطَفِّفِينَ

83. अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन

(मक्का में उतरी, आयतें 36)

परिचय

नाम

पहली ही आयत ‘वैलुल-लिलमुतफ़्फ़िफ़़ीन' (तबाही है डंडी मारनेवालों के लिए) से लिया गया है।

उतरने का समय

इसकी वर्णनशैली और विषयों से साफ़ मालूम होता है कि यह मक्का के आरम्भिक काल में उतरी है जब मक्कावालों के मन में आख़िरत का अक़ीदा बिठाने के लिए लगातार सूरतें उतर रही थीं, और इसका अवतरण उस समय हुआ है जब मक्कावालों ने सड़कों पर, बाज़ारों में और सभाओं में मुसलमानों पर कटाक्ष करने और उनका अनादर करने का सिलसिला शुरू कर दिया था, लेकिन अन्याय, अत्याचार और मार-पीट का दौर अभी शुरू नहीं हुआ था।

विषय और वार्ता

इसका विषय भी आख़िरत है। पहली छ: आयतों में उस सामान्य भ्रष्टाचार पर पकड़ की गई है जो कारोबारी लोगों में बहुत ज़्यादा फैला हुआ था। समाज की अनगिनत ख़राबियों में से इस एक ख़राबी को, जिसकी बुराई से कोई इंकार न कर सकता था, उदाहरण के रूप में लेकर यह बताया गया है कि यह आख़िरत से ग़फ़लत का लाज़िमी नतीजा है। जब तक लोगों को यह एहसास न हो कि एक दिन अल्लाह के सामने पेश होना है और कौड़ी-कौड़ी का हिसाब देना है, उस समय तक यह सम्भव नहीं है कि वे अपने मामलों में पूरी सच्चाई अपना सकें। इस तरह नैतिकता के साथ आख़िरत के अक़ीदे का सम्बन्ध बड़े ही प्रभावशाली ढंग और मनमोहक तरीक़े से स्पष्ट करने के बाद आयत 7 से 17 तक बताया गया है कि दुराचारी लोगों को आख़िरत में बड़ी तबाही से दोचार होना है। फिर आयत 18 से 28 तक नेक लोगों का बेहतरीन अंजाम बयान किया गया है। आख़िर में ईमानवालों को तसल्ली दी गई है और इसके साथ सत्य के विरोधियों को सचेत भी किया गया है कि आज जो लोग ईमान लानेवालों को अपमानित कर रहे हैं, क़ियामत के दिन यही अपराधी लोग अपने इस रवैये का बहुत बुरा अंजाम देखेंगे और यही ईमान लानेवाले इन अपराधियों का बुरा अंजाम देखकर अपनी आँखें ठंडी करेंगे।

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سُورَةُ المُطَفِّفِينَ
83. अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
وَيۡلٞ لِّلۡمُطَفِّفِينَ ۝ 1
तबाही है घटानेवालों के लिए,॥1॥
ٱلَّذِينَ إِذَا ٱكۡتَالُواْ عَلَى ٱلنَّاسِ يَسۡتَوۡفُونَ ۝ 2
जो नापकर लोगों पर नज़र जमाए हुए लेते हैं तो पूरा-पूरा लेते हैं,॥2॥
وَإِذَا كَالُوهُمۡ أَو وَّزَنُوهُمۡ يُخۡسِرُونَ ۝ 3
किन्तु जब उन्हें नापकर या तौलकर देते हैं तो घटाकर देते हैं।॥3॥
أَلَا يَظُنُّ أُوْلَٰٓئِكَ أَنَّهُم مَّبۡعُوثُونَ ۝ 4
क्या वे समझते नहीं कि उन्हें (जीवित होकर) उठना है,॥4॥
لِيَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 5
एक भारी दिन के लिए,॥5॥
يَوۡمَ يَقُومُ ٱلنَّاسُ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 6
जिस दिन लोग सारे संसार के रब के सामने खड़े होंगे?॥6॥
كَلَّآ إِنَّ كِتَٰبَ ٱلۡفُجَّارِ لَفِي سِجِّينٖ ۝ 7
कुछ नहीं, निश्‍चय ही दुराचारियों का काग़ज़ 'सिज्जीन' में है।1॥7॥ ———————— 1. अर्थात् दुराचारी लोग जहन्नम के सिपाहियों को सौंप दिए जाएँ। यह उनके लिए नियत हो चुका है।
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا سِجِّينٞ ۝ 8
तुम्हें क्या मालूम कि 'सिज्जीन' क्या है?॥8॥
كِتَٰبٞ مَّرۡقُومٞ ۝ 9
मुहर लगा हुआ काग़ज़2॥9॥ ———————— 2. अर्थात् दुराचारियों का काग़ज़ मुहर लगा हुआ है। उनके हक़ में जो कुछ फ़ैसला कर दिया गया है उसमें परिवर्तन होनेवाला नहीं।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 10
तबाही है उस दिन झुठलाने-वालों की,॥10॥
ٱلَّذِينَ يُكَذِّبُونَ بِيَوۡمِ ٱلدِّينِ ۝ 11
जो बदले के दिन को झुठलाते हैं॥11॥
وَمَا يُكَذِّبُ بِهِۦٓ إِلَّا كُلُّ مُعۡتَدٍ أَثِيمٍ ۝ 12
और उसे तो बस प्रत्येक वह व्यक्ति ही झुठलाता है जो सीमा का उल्लंघन करनेवाला, पापी है।॥12॥
إِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ءَايَٰتُنَا قَالَ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 13
जब हमारी आयतें उसे सुनाई जाती हैं तो कहता है, "ये तो पहलों की कहानियाँ है।"॥13॥
كَلَّاۖ بَلۡۜ رَانَ عَلَىٰ قُلُوبِهِم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 14
कुछ नहीं, बल्कि जो कुछ वे कमाते रहे हैं वह उनके दिलों पर चढ़ गया है।॥14॥
كَلَّآ إِنَّهُمۡ عَن رَّبِّهِمۡ يَوۡمَئِذٖ لَّمَحۡجُوبُونَ ۝ 15
कुछ नहीं, अवश्य ही वे उस दिन अपने रब से ओट में होंगे,॥15॥
ثُمَّ إِنَّهُمۡ لَصَالُواْ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 16
फिर वे भड़कती आग में जा पड़ेंगे,॥16॥
ثُمَّ يُقَالُ هَٰذَا ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ۝ 17
फिर कहा जाएगा, "यह वही है जिसे तुम झुठलाते थे।"॥17॥
كَلَّآ إِنَّ كِتَٰبَ ٱلۡأَبۡرَارِ لَفِي عِلِّيِّينَ ۝ 18
कुछ नही, निस्संदेह वफ़ादार लोगों की किताब 'इल्लीयीन' (उच्‍च श्रेणी के लोगों) में है।3— ॥18॥ ————————— 3. अर्थात् उच्च श्रेणी के लोगों में उनका सम्मिलित होना निश्चित हो चुका है।
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا عِلِّيُّونَ ۝ 19
और तुम क्या जानो कि 'इल्लीयीन' क्या है? -॥19॥
كِتَٰبٞ مَّرۡقُومٞ ۝ 20
मुहर लगी हुई किताब,॥20॥
يَشۡهَدُهُ ٱلۡمُقَرَّبُونَ ۝ 21
जिसे देखने के लिए सामीप्य प्राप्‍त लोग उपस्थित होंगे,॥21॥
إِنَّ ٱلۡأَبۡرَارَ لَفِي نَعِيمٍ ۝ 22
निस्संदेह अच्छे लोग नेमतों में होंगे, ॥22॥
عَلَى ٱلۡأَرَآئِكِ يَنظُرُونَ ۝ 23
ऊँची मसनदों पर से देख रहे होंगे।॥23॥
تَعۡرِفُ فِي وُجُوهِهِمۡ نَضۡرَةَ ٱلنَّعِيمِ ۝ 24
उनके चहरों से तुम्हें नेमतों की ताज़गी और आभा को बोध हो रहा होगा,॥24॥
يُسۡقَوۡنَ مِن رَّحِيقٖ مَّخۡتُومٍ ۝ 25
उन्हें मुहरबंद विशुद्ध पेय पिलाया जाएगा, ॥25॥
خِتَٰمُهُۥ مِسۡكٞۚ وَفِي ذَٰلِكَ فَلۡيَتَنَافَسِ ٱلۡمُتَنَٰفِسُونَ ۝ 26
मुहर उसकी मुश्क ही होगी — जो लोग दूसरों पर बाज़ी ले जाना चाहते हों वे इस चीज़ को प्राप्त करने में बाज़ी ले जाने का प्रयास करें — ॥26॥
وَمِزَاجُهُۥ مِن تَسۡنِيمٍ ۝ 27
और उसमें 'तसनीम' का मिश्रण होगा, ॥27॥
عَيۡنٗا يَشۡرَبُ بِهَا ٱلۡمُقَرَّبُونَ ۝ 28
हाल यह है कि वह एक स्रोत है जिसपर बैठकर सामीप्य प्राप्‍त लोग पिएँगे।॥28॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ أَجۡرَمُواْ كَانُواْ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يَضۡحَكُونَ ۝ 29
जो अपराधी हैं वे ईमान लानेवालों पर हँसते थे, ॥29॥
وَإِذَا مَرُّواْ بِهِمۡ يَتَغَامَزُونَ ۝ 30
और जब उनके पास से गुज़रते तो आपस में आँखों और भौंहों से इशारे करते थे,॥30॥
وَإِذَا ٱنقَلَبُوٓاْ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِمُ ٱنقَلَبُواْ فَكِهِينَ ۝ 31
और जब अपने लोगों की ओर पलटते तो चहकते, इतराते हुए पलटते थे, ॥31॥
وَإِذَا رَأَوۡهُمۡ قَالُوٓاْ إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ لَضَآلُّونَ ۝ 32
और जब उन्हें देखते तो कहते, "ये तो भटके हुए हैं।"॥32॥
وَمَآ أُرۡسِلُواْ عَلَيۡهِمۡ حَٰفِظِينَ ۝ 33
हालाँकि वे उनपर कोई निगरानी करनेवाले बनाकर नहीं भेजे गए थे।॥33॥
فَٱلۡيَوۡمَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنَ ٱلۡكُفَّارِ يَضۡحَكُونَ ۝ 34
तो आज ईमान लानेवाले, इनकार करनेवालों पर हँस रहे हैं,॥34॥
عَلَى ٱلۡأَرَآئِكِ يَنظُرُونَ ۝ 35
ऊँची मसनदों पर से देख रहे हैं।॥35॥
هَلۡ ثُوِّبَ ٱلۡكُفَّارُ مَا كَانُواْ يَفۡعَلُونَ ۝ 36
क्या मिल गया बदला इनकार करनेवालों को उसका जो कुछ वे करते रहे हैं?॥36॥