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سُورَةُ الزُّخۡرُفِ

43. अज़-ज़ुख़रुफ़

(मक्का में उतरी, आयतें 89)

परिचय

नाम

आयत 35 के शब्द ‘वज़्ज़ुख़रुफ़न ' (चाँदी और सोने के) से लिया गया है। अर्थ यह है कि वह वह सूरा हैं जिसमें शब्द ‘ज़ुख़रुफ़' आया है।

उतरने का समय

इसकी वार्ताओं पर विचार करने से साफ़ महसूस होता है कि यह सूरा भी उसी कालखण्ड में उतरी है जिसमें सूरा-40 अल-मोमिन, सूरा-41 हा-मीम अस-सजदा और सूरा-42 अश-शूरा उतरीं। [यह वह समय था,] जब मक्का के इस्लाम-विरोधी नबी (सल्ल.) की जान के पीछे पड़े हुए थे।

विषय और वार्ता

इस सूरा में पूरे ज़ोर के साथ क़ुरैश और अरबवालों को उन अज्ञानतापूर्ण धारणाओं और अंधविश्वासों की आलोचना की गई है, जिनपर वे दुराग्रह किए चले जा रहे थे, और अत्यन्त दृढ़ और दिल में घर करनेवाले तरीक़े से उनके बुद्धिसंगत न होने को उजागर किया गया है। वार्ता का आरंभ इस तरह किया गया है कि तुम लोग अपनी दुष्टता के बल पर यह चाहते हो कि इस किताब का उतरना रोक दिया जाए, मगर अल्लाह ने कभी दुष्टताओं की वजह से नबियों को भेजना और किताबों को उतारना बन्द नहीं किया है, बल्कि उन ज़ालिमों को तबाह कर दिया है जो उसके मार्गदर्शन का रास्ता रोककर खड़े हुए थे। यही कुछ वह अब भी करेगा। इसके बाद बताया गया है कि वह धर्म क्या है जिसे ये लोग सीने से लगाए हुए हैं और वे प्रमाण क्या हैं जिनके बल-बूते पर ये मुहम्मद (सल्ल०) का मुक़ाबला कर रहे हैं। ये स्वयं मानते हैं कि ज़मीन और आसमान का और इनका अपना और इनके उपास्यों का पैदा करनेवाला [भी और इनको रोज़ी देनेवाला भी] अल्लाह ही है। फिर भी दूसरों को अल्लाह के साथ प्रभुत्व में साझी करने पर हठ किए चले जा रहे हैं। बन्दों को अल्लाह की सन्तान कहते हैं और [फ़रिश्तों के बारे में] कहते हैं कि ये अल्लाह की बेटियाँ हैं। उनकी उपासना करते हैं। आख़िर इन्हें कैसे मालूम हुआ कि फ़रिश्ते औरतें हैं ? इन अज्ञानतापूर्ण बातों पर टोका जाता है तो तक़दीर का बहाना बनाते हैं और कहते हैं कि अगर अल्लाह हमारे इस काम को पसन्द न करता तो हम कैसे इन बुतों की पूजा कर सकते थे, हालाँकि अल्लाह की पसन्द और नापसन्द मालूम होने का माध्यम उसकी किताबें हैं, न कि वे काम जो दुनिया में उसकी मशीयत (उसकी दी हुई छूट) के अन्तर्गत हो रहे हैं। [अपने शिर्क का एक तर्क यह भी] देते हैं कि बाप-दादा से यह काम यों ही होता चला आ रहा है। मानो इनके नज़दीक किसी धर्म के सत्य होने के लिए यह पर्याप्त प्रमाण है, हालाँकि इबराहीम (अलैहि०) ने जिनकी सन्तान होने पर ही इनका सारा गर्व और इनकी विशिष्टता निर्भर करती है, ऐसे अंधे अनुसरण को रद्द कर दिया था, जिसका साथ कोई बुद्धिसंगत प्रमाण न देता हो। फिर अगर इन लोगों को पूर्वजों का अनुसरण ही करना था, तो इसके लिए भी अपने सबसे बड़े पूर्वज इबराहीम और इसमाईल (अलैहि०) को छोड़कर इन्होंने अपने सबसे बड़े अज्ञानी पूर्वजों का चुनाव किया। मुहम्मद (सल्ल०) की पैग़म्बरी स्वीकार करने में इन्हें संकोच है तो इस कारण कि उनके पास माल-दौलत और राज्य और सत्ता तो है ही नहीं। कहते हैं कि अगर अल्लाह हमारे यहाँ किसी को नबी बनाना चाहता तो हमारे दोनों शहरों (मक्का और ताइफ़) के बड़े आदमियों में से किसी को बनाता। इसी कारण फ़िरऔन ने भी हज़रत मूसा (अलैहि०) को तुच्छ जाना था और कहा था कि आसमान का बादशाह अगर मुझ ज़मीन के बादशाह के पास कोई दूत भेजता तो उसे सोने के कंगन पहनाकर और फ़रिश्तों की एक फ़ौज उसकी अरदली में देकर भेजता। यह फ़क़ीर कहाँ से आ खड़ा हुआ। आख़िर में साफ़-साफ़ कहा गया है कि न अल्लाह की कोई सन्तान है, न आसमान और ज़मीन के प्रभु अलग-अलग हैं और न अल्लाह के यहाँ कोई ऐसा सिफ़ारिशी है जो जान बूझकर गुमराही अपनानेवालों को उसकी सज़ा से बचा सके।

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سُورَةُ الزُّخۡرُفِ
43. अज़-ज़ुख़रुफ़
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
حمٓ ۝ 1
हा-मीम ॥1॥
وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ ۝ 2
गवाह है स्पष्ट किताब॥2॥
إِنَّا جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَٰنًا عَرَبِيّٗا لَّعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 3
हमने उसे अरबी क़ुरआन बनाया, ताकि तुम समझो।॥3॥
وَإِنَّهُۥ فِيٓ أُمِّ ٱلۡكِتَٰبِ لَدَيۡنَا لَعَلِيٌّ حَكِيمٌ ۝ 4
और निश्‍चय ही वह मूल किताब में अंकित है, हमारे यहाँ बहुत उच्‍च कोटि की, तत्वदर्शिता से परिपूर्ण है।॥4॥
أَفَنَضۡرِبُ عَنكُمُ ٱلذِّكۡرَ صَفۡحًا أَن كُنتُمۡ قَوۡمٗا مُّسۡرِفِينَ ۝ 5
क्या इसलिए कि तुम मर्यादाहीन लोग हो हम तुमपर से बिलकुल ही नज़र फेर लेंगे?॥5॥
وَكَمۡ أَرۡسَلۡنَا مِن نَّبِيّٖ فِي ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 6
हमने पहले के लोगों में कितने ही रसूल भेजे,॥6॥
وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن نَّبِيٍّ إِلَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 7
किन्तु जो भी नबी उनके पास आया, वे उसका मज़ाक़ ही उड़ाते रहे।॥7॥
فَأَهۡلَكۡنَآ أَشَدَّ مِنۡهُم بَطۡشٗا وَمَضَىٰ مَثَلُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 8
अन्ततः हमने उनको पकड़ में लेकर विनष्ट कर दिया जो उनसे कहीं अधिक बलशाली थे। और पहले के लोगों की मिसाल गुज़र चुकी है।॥8॥
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ خَلَقَهُنَّ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 9
यदि तुम उनसे पूछो कि "आकाशों और धरती को किसने पैदा किया?" तो वे अवश्य कहेंगे, "उन्हें प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ सत्ता ने पैदा किया।"॥9॥
ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ مَهۡدٗا وَجَعَلَ لَكُمۡ فِيهَا سُبُلٗا لَّعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ ۝ 10
जिसने तुम्हारे लिए धरती को गहवारा बनाया और उसमें तुम्हारे लिए मार्ग बना दिए ताकि तुम्हें मार्गदर्शन प्राप्‍त हो।॥10॥
وَٱلَّذِي نَزَّلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءَۢ بِقَدَرٖ فَأَنشَرۡنَا بِهِۦ بَلۡدَةٗ مَّيۡتٗاۚ كَذَٰلِكَ تُخۡرَجُونَ ۝ 11
और जिसने आकाश से एक अंदाज़े से पानी उतारा। और हमने उसके द्वारा मृत भूमि को जीवित कर दिया। इसी तरह तुम भी (जीवित करके) निकाले जाओगे।॥11॥
وَٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡأَزۡوَٰجَ كُلَّهَا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡفُلۡكِ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ مَا تَرۡكَبُونَ ۝ 12
और जिसने विभिन्‍न प्रकार की चीज़ें पैदा कीं और तुम्हारे लिए वे नौकाएँ और जानवर बनाए जिनपर तुम सवार होते हो।॥12॥
لِتَسۡتَوُۥاْ عَلَىٰ ظُهُورِهِۦ ثُمَّ تَذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ رَبِّكُمۡ إِذَا ٱسۡتَوَيۡتُمۡ عَلَيۡهِ وَتَقُولُواْ سُبۡحَٰنَ ٱلَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَٰذَا وَمَا كُنَّا لَهُۥ مُقۡرِنِينَ ۝ 13
ताकि तुम उनकी पीठों पर जमकर बैठो, फिर याद करो अपने रब की अनुकम्पा को जब तुम उनपर बैठ जाओ और कहो, "कितना महिमावान है वह जिसने इसको हमारे वश में किया, अन्यथा हम तो इसे क़ाबू में कर सकनेवाले न थे।॥13॥
وَإِنَّآ إِلَىٰ رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ ۝ 14
और निश्‍चय ही हम अपने रब की ओर लौटनेवाले हैं।"॥14॥
وَجَعَلُواْ لَهُۥ مِنۡ عِبَادِهِۦ جُزۡءًاۚ إِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ لَكَفُورٞ مُّبِينٌ ۝ 15
उन्होंने उसके बन्दों में से कुछ को उसका अंश ठहरा लिया! निश्‍चय ही मनुष्य खुला कृतघ्‍न है।॥15॥
أَمِ ٱتَّخَذَ مِمَّا يَخۡلُقُ بَنَاتٖ وَأَصۡفَىٰكُم بِٱلۡبَنِينَ ۝ 16
(क्या किसी ने अल्लाह को इससे रोक दिया है कि वह अपने लिए बेटे चुनता) या जो कुछ वह पैदा करता है उसमें से उसने स्वयं ही अपने लिए तो बेटियाँ लीं और तुम्हें चुन लिया बेटों के लिए?॥16॥
وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِمَا ضَرَبَ لِلرَّحۡمَٰنِ مَثَلٗا ظَلَّ وَجۡهُهُۥ مُسۡوَدّٗا وَهُوَ كَظِيمٌ ۝ 17
और हाल यह है कि जब उनमें से किसी को उसकी मंगल सूचना दी जाती है, जो वह रहमान के लिए बयान करता है, तो उसके मुँह पर कलौंस छा जाती है और वह ग़म के मारे घुटा-घुटा रहने लगता है।॥17॥
أَوَمَن يُنَشَّؤُاْ فِي ٱلۡحِلۡيَةِ وَهُوَ فِي ٱلۡخِصَامِ غَيۡرُ مُبِينٖ ۝ 18
और क्या वह जो आभूषणों में पले और वह जो वाद-विवाद और झगड़े में खुल न पाए (ऐसी अबला को अल्लाह की संतान घोषित करते हो)?॥18॥
وَجَعَلُواْ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ ٱلَّذِينَ هُمۡ عِبَٰدُ ٱلرَّحۡمَٰنِ إِنَٰثًاۚ أَشَهِدُواْ خَلۡقَهُمۡۚ سَتُكۡتَبُ شَهَٰدَتُهُمۡ وَيُسۡـَٔلُونَ ۝ 19
उन्होंने फ़रिश्तों को, जो रहमान (दयावान प्रभु) के बन्दे हैं, स्त्रियाँ ठहरा ली हैं। क्या वे उनकी संरचना के समय मौजूद थे? उनकी गवाही लिख ली जाएगी और उनसे पूछ होगी।॥19॥
وَقَالُواْ لَوۡ شَآءَ ٱلرَّحۡمَٰنُ مَا عَبَدۡنَٰهُمۗ مَّا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنۡ عِلۡمٍۖ إِنۡ هُمۡ إِلَّا يَخۡرُصُونَ ۝ 20
वे कहते हैं कि "यदि रहमान चाहता तो हम उन्हें न पूजते।" उन्हें इसका कुछ ज्ञान नहीं। वे तो बस अटकल दौड़ाते हैं।॥20॥
أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا مِّن قَبۡلِهِۦ فَهُم بِهِۦ مُسۡتَمۡسِكُونَ ۝ 21
(क्या हमने इससे पहले उनके पास कोई रसूल भेजा है) या हमने इससे पहले उनको कोई किताब दी है तो वे उसे दृढ़तापूर्वक थामे हुए हैं?॥21॥
بَلۡ قَالُوٓاْ إِنَّا وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا عَلَىٰٓ أُمَّةٖ وَإِنَّا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم مُّهۡتَدُونَ ۝ 22
नहीं, बल्कि वे कहते हैं, "हमने तो अपने बाप-दादा को एक तरीक़े पर पाया और हम उन्हीं के पद-चिन्हों पर हैं, सीधे मार्ग पर चल रहे हैं।"॥22॥
وَكَذَٰلِكَ مَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ فِي قَرۡيَةٖ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوهَآ إِنَّا وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا عَلَىٰٓ أُمَّةٖ وَإِنَّا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم مُّقۡتَدُونَ ۝ 23
इसी प्रकार हमने जिस किसी बस्ती में तुमसे पहले कोई सावधान करनेवाला भेजा तो वहाँ के सम्पन्‍न लोगों ने बस यही कहा कि "हमने तो अपने बाप-दादा को एक तरीक़े पर पाया और हम उन्हीं के पद-चिन्हों पर हैं, उनका अनुसरण कर रहे हैं।"॥23॥
۞قَٰلَ أَوَلَوۡ جِئۡتُكُم بِأَهۡدَىٰ مِمَّا وَجَدتُّمۡ عَلَيۡهِ ءَابَآءَكُمۡۖ قَالُوٓاْ إِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ ۝ 24
उसने कहा, "क्या यदि मैं उससे उत्तम मार्गदर्शन लेकर आया हूँ, जिसपर तूने अपने बाप-दादा को पाया है, तब भी (तुम अपने बाप-दादा के पद-चिन्हों का ही अनुसरण करोगे)?" उन्होंने कहा, "तुम्हें जो कुछ देकर भेजा गया है, हम तो उसका इनकार करते हैं।"॥24॥
فَٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡۖ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 25
अन्ततः हमने उनसे बदला लिया। तो देख लो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणाम हुआ?॥25॥
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦٓ إِنَّنِي بَرَآءٞ مِّمَّا تَعۡبُدُونَ ۝ 26
याद करो जबकि इबराहीम ने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहा, "तुम जिनको पूजते हो उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, ॥26॥
إِلَّا ٱلَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُۥ سَيَهۡدِينِ ۝ 27
सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया। अतः निश्‍चय ही वह मुझे मार्ग दिखाएगा।"॥27॥
وَجَعَلَهَا كَلِمَةَۢ بَاقِيَةٗ فِي عَقِبِهِۦ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ ۝ 28
और यही बात वह अपने पीछे (अपनी सन्तान में) बाक़ी छोड़ गया, ताकि वे रुजू करें।॥28॥
بَلۡ مَتَّعۡتُ هَٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ وَرَسُولٞ مُّبِينٞ ۝ 29
नहीं, बल्कि मैं उन्हें और उनके बाप-दादा को जीवन-सुख प्रदान करता रहा, यहाँ तक कि उनके पास सत्य और खोल-खोलकर बतानेवाला रसूल आ गया।॥29॥
وَلَمَّا جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ قَالُواْ هَٰذَا سِحۡرٞ وَإِنَّا بِهِۦ كَٰفِرُونَ ۝ 30
किन्तु जब वह हक़ लेकर उनके पास आया तो वे कहने लगे, "यह तो जादू है। और हम तो इसका इनकार करते हैं।"॥30॥
وَقَالُواْ لَوۡلَا نُزِّلَ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانُ عَلَىٰ رَجُلٖ مِّنَ ٱلۡقَرۡيَتَيۡنِ عَظِيمٍ ۝ 31
वे कहते हैं, "यह क़ुरआन इन दो बस्तियों के किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं अवतरित हुआ?"॥31॥
أَهُمۡ يَقۡسِمُونَ رَحۡمَتَ رَبِّكَۚ نَحۡنُ قَسَمۡنَا بَيۡنَهُم مَّعِيشَتَهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۚ وَرَفَعۡنَا بَعۡضَهُمۡ فَوۡقَ بَعۡضٖ دَرَجَٰتٖ لِّيَتَّخِذَ بَعۡضُهُم بَعۡضٗا سُخۡرِيّٗاۗ وَرَحۡمَتُ رَبِّكَ خَيۡرٞ مِّمَّا يَجۡمَعُونَ ۝ 32
क्या वे तुम्हारे रब की दयालुता को बाँटते हैं? सांसारिक जीवन में उनके जीवन-यापन के साधन हमने उनके बीच बाँटे हैं और हमने उनमें से कुछ लोगों को दूसरे कुछ लोगों से श्रेणियों की दृष्टि से उच्‍च रखा है, ताकि उनमें से वे एक-दूसरे से काम लें। और तुम्हारे रब की दयालुता उससे कहीं उत्तम है जिसे वे समेट रहे हैं।॥32॥
وَلَوۡلَآ أَن يَكُونَ ٱلنَّاسُ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ لَّجَعَلۡنَا لِمَن يَكۡفُرُ بِٱلرَّحۡمَٰنِ لِبُيُوتِهِمۡ سُقُفٗا مِّن فِضَّةٖ وَمَعَارِجَ عَلَيۡهَا يَظۡهَرُونَ ۝ 33
यदि इस बात की सम्भावना न होती कि सब लोग एक ही समुदाय (अधर्मी) हो जाएँगे तो जो लोग रहमान (दयावान प्रभु) के साथ कुफ़्र करते हैं उनके लिए हम उनके घरों की छतें चाँदी की कर देते और सीढ़ियाँ भी जिनपर वे चढ़ते।॥33॥
وَلِبُيُوتِهِمۡ أَبۡوَٰبٗا وَسُرُرًا عَلَيۡهَا يَتَّكِـُٔونَ ۝ 34
और उनके घरों के दरवाज़े भी और वे तख़्त भी जिनपर वे टेक लगाते॥34॥
وَزُخۡرُفٗاۚ وَإِن كُلُّ ذَٰلِكَ لَمَّا مَتَٰعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۚ وَٱلۡأٓخِرَةُ عِندَ رَبِّكَ لِلۡمُتَّقِينَ ۝ 35
और सोने द्वारा सजावट का आयोजन भी कर देते। यह सब तो कुछ भी नहीं, बस सांसारिक जीवन की अस्थायी सुख-सामग्री है। और आख़िरत तुम्हारे रब के यहाँ डर रखनेवालों के लिए है।॥35॥
وَمَن يَعۡشُ عَن ذِكۡرِ ٱلرَّحۡمَٰنِ نُقَيِّضۡ لَهُۥ شَيۡطَٰنٗا فَهُوَ لَهُۥ قَرِينٞ ۝ 36
जो रहमान (दयावान प्रभु) के स्मरण की ओर से अन्‍धा बना रहता है, हम उसपर एक शैतान नियुक्‍त कर देते हैं तो वही उसका साथी होता है।॥36॥
وَإِنَّهُمۡ لَيَصُدُّونَهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِيلِ وَيَحۡسَبُونَ أَنَّهُم مُّهۡتَدُونَ ۝ 37
और वे (शैतान) उन्हें मार्ग से रोकते हैं और वे (इनकार करनेवाले) यह समझते हैं कि वे मार्ग पर हैं।॥37॥
حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَنَا قَالَ يَٰلَيۡتَ بَيۡنِي وَبَيۡنَكَ بُعۡدَ ٱلۡمَشۡرِقَيۡنِ فَبِئۡسَ ٱلۡقَرِينُ ۝ 38
यहाँ तक कि जब वह हमारे पास आएगा तो (शैतान से) कहेगा, "ऐ काश, मेरे और तेरे बीच पूरब के दोनों किनारों की दूरी होती! तू तो बहुत ही बुरा साथी निकला!"॥38॥
وَلَن يَنفَعَكُمُ ٱلۡيَوۡمَ إِذ ظَّلَمۡتُمۡ أَنَّكُمۡ فِي ٱلۡعَذَابِ مُشۡتَرِكُونَ ۝ 39
और जबकि तुम ज़ालिम ठहरे तो आज यह बात तुम्हें कुछ लाभ न पहुँचा सकेगी कि यातना में तुम एक-दूसरे के साझी हो।॥39॥
أَفَأَنتَ تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ أَوۡ تَهۡدِي ٱلۡعُمۡيَ وَمَن كَانَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 40
क्या तुम बहरों को सुनाओगे या अन्‍धों को, और जो खुली गुमराही में पड़ा हुआ हो उसको राह दिखाओगे?॥40॥
فَإِمَّا نَذۡهَبَنَّ بِكَ فَإِنَّا مِنۡهُم مُّنتَقِمُونَ ۝ 41
फिर यदि तुम्हें उठा भी लें तब भी हम उनसे बदला लेकर रहेंगे।॥41॥
أَوۡ نُرِيَنَّكَ ٱلَّذِي وَعَدۡنَٰهُمۡ فَإِنَّا عَلَيۡهِم مُّقۡتَدِرُونَ ۝ 42
या हम तुम्हें वह चीज़ दिखा देंगे जिसका हमने वादा किया है। निस्सन्‍देह हमें उनपर पूरी सामर्थ्य प्राप्‍त है।॥42॥
فَٱسۡتَمۡسِكۡ بِٱلَّذِيٓ أُوحِيَ إِلَيۡكَۖ إِنَّكَ عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 43
अतः तुम उस चीज़ को मज़बूती से थामे रहो जिसकी तुम्हारी ओर प्रकाशना की गई। निश्‍चय ही तुम सीधे मार्ग पर हो।॥43॥
وَإِنَّهُۥ لَذِكۡرٞ لَّكَ وَلِقَوۡمِكَۖ وَسَوۡفَ تُسۡـَٔلُونَ ۝ 44
निश्‍चय ही वह याददिहानी और श्रय की चीज़ है तुम्हारे लिए और तुम्हारी क़ौम के लिए। शीघ्र ही तुम सबसे पूछा जाएगा।॥44॥
وَسۡـَٔلۡ مَنۡ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رُّسُلِنَآ أَجَعَلۡنَا مِن دُونِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ءَالِهَةٗ يُعۡبَدُونَ ۝ 45
तुम हमारे रसूलों से, जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा, पूछ लो कि क्या हमने रहमान (दयावान प्रभु) के सिवा भी कुछ उपास्य ठहराए थे जिनकी बन्दगी की जाए?॥45॥
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَآ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦ فَقَالَ إِنِّي رَسُولُ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 46
और हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा तो उसने कहा, "मैं सारे संसार के रब का रसूल हूँ।"॥46॥
فَلَمَّا جَآءَهُم بِـَٔايَٰتِنَآ إِذَا هُم مِّنۡهَا يَضۡحَكُونَ ۝ 47
लेकिन जब वह उनके पास हमारी निशानियाँ लेकर आया तो क्या देखते हैं कि वे लगे उनकी हँसी उड़ाने॥47॥
وَمَا نُرِيهِم مِّنۡ ءَايَةٍ إِلَّا هِيَ أَكۡبَرُ مِنۡ أُخۡتِهَاۖ وَأَخَذۡنَٰهُم بِٱلۡعَذَابِ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ ۝ 48
और हम उन्हें जो निशानी भी दिखाते वह अपने प्रकार की पहली निशानी से बढ़-चढ़कर होती और हमने उन्हें यातना में ग्रस्त कर लिया, ताकि वे रुजू करें।॥48॥
وَقَالُواْ يَٰٓأَيُّهَ ٱلسَّاحِرُ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِندَكَ إِنَّنَا لَمُهۡتَدُونَ ۝ 49
उनका कहना था, "ऐ जादूगर! अपने रब से हमारे लिए प्रार्थना कर, उस प्रतिज्ञा के आधार पर जो उसने तुझसे कर रखी है। निश्‍चय ही हम सीधे मार्ग पर चलेंगे।"॥49॥
فَلَمَّا كَشَفۡنَا عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابَ إِذَا هُمۡ يَنكُثُونَ ۝ 50
फिर जब भी हम उनपर से यातना हटा देते हैं, तो क्या देखते हैं कि वे प्रतिज्ञा-भंग कर रहे हैं।॥50॥
وَنَادَىٰ فِرۡعَوۡنُ فِي قَوۡمِهِۦ قَالَ يَٰقَوۡمِ أَلَيۡسَ لِي مُلۡكُ مِصۡرَ وَهَٰذِهِ ٱلۡأَنۡهَٰرُ تَجۡرِي مِن تَحۡتِيٓۚ أَفَلَا تُبۡصِرُونَ ۝ 51
फ़िरऔन ने अपनी क़ौम के बीच पुकारकर कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! क्या मिस्र का राज्य मेरा नहीं, और ये मेरे नीचे बहती नहरें? तो क्या तुम देखते नहीं?॥51॥
أَمۡ أَنَا۠ خَيۡرٞ مِّنۡ هَٰذَا ٱلَّذِي هُوَ مَهِينٞ وَلَا يَكَادُ يُبِينُ ۝ 52
(यह अच्छा है) या मैं इससे अच्छा हूँ जो तुच्छ है, और साफ़ बोल भी नहीं पाता?॥52॥
فَلَوۡلَآ أُلۡقِيَ عَلَيۡهِ أَسۡوِرَةٞ مِّن ذَهَبٍ أَوۡ جَآءَ مَعَهُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ مُقۡتَرِنِينَ ۝ 53
(यदि वह रसूल है तो) फिर ऐसा क्यों न हुआ कि उसके लिए ऊपर से सोने के कंगन डाले गए होते या उसके साथ रहनेवाले की हैसियत से फ़रिश्ते आए होते?"॥53॥
فَٱسۡتَخَفَّ قَوۡمَهُۥ فَأَطَاعُوهُۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ ۝ 54
तो उसने अपनी क़ौम के लोगों को मूर्ख बनाया और उन्होंने उसकी बात मान ली। निश्‍चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे।॥54॥
فَلَمَّآ ءَاسَفُونَا ٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡ فَأَغۡرَقۡنَٰهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 55
अन्ततः जब उन्होंने हमें अप्रसन्‍न कर दिया तो हमने उनसे बदला लिया और हमने उन सबको डूबो दिया।॥55॥
فَجَعَلۡنَٰهُمۡ سَلَفٗا وَمَثَلٗا لِّلۡأٓخِرِينَ ۝ 56
अतः हमने उन्हें अग्रगामी और बादवालों के लिए शिक्षाप्रद उदाहरण बना दिया।॥56॥
۞وَلَمَّا ضُرِبَ ٱبۡنُ مَرۡيَمَ مَثَلًا إِذَا قَوۡمُكَ مِنۡهُ يَصِدُّونَ ۝ 57
और जब मरयम के बेटे की मिसाल दी गई तो क्या देखते हैं कि उसपर तुम्हारी क़ौम के लोग लगे चिल्लाने॥57॥
وَقَالُوٓاْ ءَأَٰلِهَتُنَا خَيۡرٌ أَمۡ هُوَۚ مَا ضَرَبُوهُ لَكَ إِلَّا جَدَلَۢاۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمٌ خَصِمُونَ ۝ 58
और कहने लगे, "क्या हमारे उपास्य अच्छे हैं या वह (मसीह)?" उन्होंने यह बात तुमसे केवल झगड़ने के लिए कही, बल्कि वे तो हैं ही झगड़ालू लोग।॥58॥
إِنۡ هُوَ إِلَّا عَبۡدٌ أَنۡعَمۡنَا عَلَيۡهِ وَجَعَلۡنَٰهُ مَثَلٗا لِّبَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ۝ 59
वह (ईसा मसीह) तो बस एक बन्दा था जिसपर हमने अनुकम्पा की और उसे हमने इसराईल की सन्तान के लिए एक आदर्श बनाया।॥59॥
وَلَوۡ نَشَآءُ لَجَعَلۡنَا مِنكُم مَّلَٰٓئِكَةٗ فِي ٱلۡأَرۡضِ يَخۡلُفُونَ ۝ 60
और यदि हम चाहते तो तुममें से फ़रिश्ते पैदा कर देते जो धरती में उत्ताराधिकारी होते।॥60॥
وَإِنَّهُۥ لَعِلۡمٞ لِّلسَّاعَةِ فَلَا تَمۡتَرُنَّ بِهَا وَٱتَّبِعُونِۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ ۝ 61
निश्‍चय ही वह उस घड़ी (जिसका वादा किया गया है) के ज्ञान का साधन है। अतः तुम उसके बारे में संदेह न करो और मेरा अनुसरण करो। यही सीधा मार्ग है।॥61॥
وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُۖ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٞ ۝ 62
और शैतान तुम्हें रोक न दे, निश्‍चय ही वह तुम्हारा खुला शत्रु है।॥62॥
وَلَمَّا جَآءَ عِيسَىٰ بِٱلۡبَيِّنَٰتِ قَالَ قَدۡ جِئۡتُكُم بِٱلۡحِكۡمَةِ وَلِأُبَيِّنَ لَكُم بَعۡضَ ٱلَّذِي تَخۡتَلِفُونَ فِيهِۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 63
जब ईसा स्पष्ट प्रमाणों के साथ आया तो उसने कहा, "मैं तुम्हारे पास तत्वदर्शिता लेकर आया हूँ (ताकि उसकी शिक्षा तुम्हें दूँ) और ताकि कुछ ऐसी बातें तुमपर खोल दूँ, जिनमें तुम मतभेद करते हो। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो।॥63॥
إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ رَبِّي وَرَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ ۝ 64
वास्तव में अल्लाह ही मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है, तो उसी की बन्दगी करो। यही सीधा मार्ग है।"॥64॥
فَٱخۡتَلَفَ ٱلۡأَحۡزَابُ مِنۢ بَيۡنِهِمۡۖ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ عَذَابِ يَوۡمٍ أَلِيمٍ ۝ 65
किन्तु उनमें के कितने ही गिरोहों ने आपस में विभेद किया। अतः तबाही है एक दुखद दिन की यातना से उन लोगों के लिए जिन्होंने ज़ुल्म किया।॥65॥
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا ٱلسَّاعَةَ أَن تَأۡتِيَهُم بَغۡتَةٗ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 66
क्या वे बस उस (क़ियामत की) घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वह सहसा उनपर आ पड़े और उन्हें ख़बर भी न हो।॥66॥
ٱلۡأَخِلَّآءُ يَوۡمَئِذِۭ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوٌّ إِلَّا ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 67
उस दिन सभी मित्र परस्पर एक-दूसरे के शत्रु होंगे सिवाय डर रखनेवालों के। —॥67॥
يَٰعِبَادِ لَا خَوۡفٌ عَلَيۡكُمُ ٱلۡيَوۡمَ وَلَآ أَنتُمۡ تَحۡزَنُونَ ۝ 68
"ऐ मेरे बन्दो! आज न तुम्हें कोई भय है और न तुम शोकाकुल होगे।" —॥68॥
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِـَٔايَٰتِنَا وَكَانُواْ مُسۡلِمِينَ ۝ 69
वे जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और आज्ञाकारी रहे;॥69॥
ٱدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ أَنتُمۡ وَأَزۡوَٰجُكُمۡ تُحۡبَرُونَ ۝ 70
"प्रवेश करो जन्‍नत में, तुम भी और तुम्हारे जोड़े भी, ख़ुश-ख़ुश !"॥70॥
يُطَافُ عَلَيۡهِم بِصِحَافٖ مِّن ذَهَبٖ وَأَكۡوَابٖۖ وَفِيهَا مَا تَشۡتَهِيهِ ٱلۡأَنفُسُ وَتَلَذُّ ٱلۡأَعۡيُنُۖ وَأَنتُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 71
उनके आगे सोने की तशतरियाँ और प्याले गर्दिश करेंगे और वहाँ वह सब कुछ होगा जो दिलों को भाए और आँखे जिससे लज़्ज़त पाएँ। "और तुम उसमें सदैव रहोगे।॥71॥
وَتِلۡكَ ٱلۡجَنَّةُ ٱلَّتِيٓ أُورِثۡتُمُوهَا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 72
यह वह जन्‍नत है जिसके तुम वारिस उसके बदले में हुए जो कर्म तुम करते रहे।॥72॥
لَكُمۡ فِيهَا فَٰكِهَةٞ كَثِيرَةٞ مِّنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 73
तुम्हारे लिए वहाँ बहुत-से स्वादिष्ट फल है जिन्हें तुम खाओगे।"॥73॥
إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَٰلِدُونَ ۝ 74
निस्सन्‍देह अपराधी लोग सदैव जहन्‍नम की यातना में रहेंगे।॥74॥
لَا يُفَتَّرُ عَنۡهُمۡ وَهُمۡ فِيهِ مُبۡلِسُونَ ۝ 75
वह (यातना) कभी उनपर से हल्की न होगी और वे उसी में निराश पड़े रहेंगे॥75॥
وَمَا ظَلَمۡنَٰهُمۡ وَلَٰكِن كَانُواْ هُمُ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 76
हमने उनपर ज़ुल्म नहीं किया, परन्तु वे खुद ही ज़ालिम थे।॥76॥
وَنَادَوۡاْ يَٰمَٰلِكُ لِيَقۡضِ عَلَيۡنَا رَبُّكَۖ قَالَ إِنَّكُم مَّٰكِثُونَ ۝ 77
वे पुकारेंगे, "ऐ मालिक!1 तुम्हारा रब हमारा काम ही तमाम कर दे!" वह कहेगा, "तुम्हें तो इसी दशा में रहना है।"॥77॥ ———————— 1. नरक के अधिकारियों में से एक अधिकारी।
لَقَدۡ جِئۡنَٰكُم بِٱلۡحَقِّ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَكُمۡ لِلۡحَقِّ كَٰرِهُونَ ۝ 78
"निश्‍चय ही हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए हैं, किन्तु तुममें से अधिकतर लोगों को सत्य प्रिय नहीं।॥78॥
أَمۡ أَبۡرَمُوٓاْ أَمۡرٗا فَإِنَّا مُبۡرِمُونَ ۝ 79
(क्या उन्होंने कुछ निश्‍चय नहीं किया है) या उन्होंने किसी बात का निश्‍चय कर लिया है? अच्छा तो हमने भी निश्‍चय कर लिया है।॥79॥
أَمۡ يَحۡسَبُونَ أَنَّا لَا نَسۡمَعُ سِرَّهُمۡ وَنَجۡوَىٰهُمۚ بَلَىٰ وَرُسُلُنَا لَدَيۡهِمۡ يَكۡتُبُونَ ۝ 80
या वे समझते हैं कि हम उनकी छिपी बात और उनकी कानाफूसी को सुनते नहीं? क्यों नहीं, और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके समीप हैं, वे लिखते रहते हैं।"॥80॥
قُلۡ إِن كَانَ لِلرَّحۡمَٰنِ وَلَدٞ فَأَنَا۠ أَوَّلُ ٱلۡعَٰبِدِينَ ۝ 81
कहो, "यदि रहमान (दयावान प्रभु) की कोई संतान होती तो सबसे पहले मैं (उसे) पूजता।॥81॥
سُبۡحَٰنَ رَبِّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ رَبِّ ٱلۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 82
आकाशों और धरती का रब, सिंहासन का स्वामी, उससे महान और उच्‍च है जो वे बयान करते हैं।"॥82॥
فَذَرۡهُمۡ يَخُوضُواْ وَيَلۡعَبُواْ حَتَّىٰ يُلَٰقُواْ يَوۡمَهُمُ ٱلَّذِي يُوعَدُونَ ۝ 83
अच्छा, छोड़ो उन्हें कि वे व्यर्थ की बहस में पड़े रहें और खेलों में लगे रहें। यहाँ तक कि उनकी भेंट अपने उस दिन से हो जिसका वादा उनसे किया जाता है।॥83॥
وَهُوَ ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَآءِ إِلَٰهٞ وَفِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَٰهٞۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 84
वही है जो आकाशों में भी पूज्य है और धरती में भी पूज्य है। और वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है।॥84॥
وَتَبَارَكَ ٱلَّذِي لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَعِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 85
बड़ी ही बरकतवाली है वह सत्ता, जिसके अधिकार में है आकाशों और धरती की बादशाही और जो कुछ उन दोनों के बीच है उसकी भी। और उसी के पास उस घड़ी का ज्ञान है, और उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।॥85॥
وَلَا يَمۡلِكُ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِهِ ٱلشَّفَٰعَةَ إِلَّا مَن شَهِدَ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ ۝ 86
और जिन्हें वे उसके और अपने बीच माध्यम ठहराकर पुकारते हैं, उन्हें सिफ़ारिश का कुछ भी अधिकार नहीं, बस उसे ही यह अधिकार प्राप्‍त है जो सत्‍य की गवाही दे, और ऐसे लोग जानते हैं।—॥86॥
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَهُمۡ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۖ فَأَنَّىٰ يُؤۡفَكُونَ ۝ 87
यदि तुम उनसे पूछो कि "उन्हें किसने पैदा किया?" तो वे अवश्य कहेंगे, "अल्लाह ने।" तो फिर वे कहाँ उलटे फिर जाते हैं? —॥87॥
وَقِيلِهِۦ يَٰرَبِّ إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ قَوۡمٞ لَّا يُؤۡمِنُونَ ۝ 88
और उसका कहना हो कि "ऐ मेरे रब! निश्‍चय ही ये वे लोग हैं जो ईमान नहीं रखते थे।"॥88॥
فَٱصۡفَحۡ عَنۡهُمۡ وَقُلۡ سَلَٰمٞۚ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 89
अच्छा तो उनसे नज़र फेर लो और कह दो, "सलाम है तुम्हें!" अन्ततः शीघ्र ही वे स्वयं जान लेंगे।॥89॥