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سُورَةُ الزُّمَرِ

39. अज़-ज़ुमर

(मक्‍का में उतरी, आयतें 75)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम आयत नं0 71 और 73 ("वे लोग जिन्होंने इंकार किया था, जहन्नम की ओर गिरोह के गिरोह (ज़ुमरा) हाँके जाएँगे" और "जो लोग अपने रब की अवज्ञा से बचते थे, उन्हें गिरोह के गिरोह (ज़ुमरा) जन्नत की ओर ले जाया जाएगा।") से लिया गया है। मतलब यह है कि वह सूरा जिसमें शब्द 'ज़ुमर' आया है।

उतरने का समय

आयत नं0 10 (और अल्लाह की धरती विशाल है) से इस बात की और स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह सूरा हबशा की हिजरत से पहले उतरी थी।

विषय और वार्ता

यह पूरी सूरा एक उत्तम और अति प्रभावकारी अभिभाषण है जो हबशा की हिजरत से कुछ पहले मक्का-मुअज़्ज़मा के अत्याचार और हिंसा से परिपूर्ण वातावरण में दिया गया था। इसका सम्बोधन अधिकतर क़ुरैश के इस्लाम-विरोधियों से है, यद्यपि कहीं-कहीं ईमानवालों को भी सम्बोधित किया गया है। इसमें हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सन्देश की दावत का मूल उद्देश्य बताया गया है और वह यह है कि इंसान अल्लाह की ख़ालिस (विशुद्ध) बन्दगी अपनाए और किसी दूसरे के आज्ञापालन और इबादत से अपनी ख़ुदापरस्ती को दूषित न करे। इस बुनियादी बात को बार-बार अलग-अलग ढंग से पेश करते हुए बहुत ही ज़ोरदार तरीक़े से तौहीद (एकेश्वरवाद) का सत्य होना और उसे मानने के अच्छे नतीजे, और शिर्क (बहुदेववाद) की ग़लती और उसपर जमे रहने के बुरे नतीजों को स्पष्ट किया गया है और लोगों को दावत दी गई है कि वे अपने ग़लत रवैये को छोड़कर अपने रब की दयालुता की ओर पलट आएँ। इस सिलसिले में ईमानवालों को निर्देश दिया गया है कि अगर अल्लाह की बन्दगी के लिए एक जगह तंग हो गई है तो उसकी धरती फैली हुई है, अपना दीन बचाने के लिए किसी और तरफ़ निकल खड़े हो, अल्लाह तुम्हारे धैर्य का बदला देगा। दूसरी ओर नबी (सल्ल०) से कहा गया है कि इन इस्लाम-विरोधियों को इस ओर से बिल्कुल निराश कर दो कि उनका अत्याचार कभी तुमको इस राह से फेर सकेगा।

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سُورَةُ الزُّمَرِ
39. अज़-ज़ुमार
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ ۝ 1
इस किताब का अवतरण अल्लाह, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी की ओर से है।॥1॥
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ فَٱعۡبُدِ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ ۝ 2
निस्सन्‍देह हमने यह किताब तुम्हारी ओर सत्य के साथ अवतरित की है।॥2॥
أَلَا لِلَّهِ ٱلدِّينُ ٱلۡخَالِصُۚ وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ مَا نَعۡبُدُهُمۡ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَآ إِلَى ٱللَّهِ زُلۡفَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ فِي مَا هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ كَٰذِبٞ كَفَّارٞ ۝ 3
अतः तुम अल्लाह ही की बन्दगी करो, धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए। जान रखो कि विशुद्ध धर्म अल्लाह ही के लिए है। रहे वे लोग जिन्होंने उससे हटकर दूसरे समर्थक और संरक्षक बना रखे हैं (कहते हैं,) "हम तो उनकी बन्दगी इसी लिए करते हैं कि वे हमें अल्लाह का सामीप्य प्राप्‍त करा दें।" निश्‍चय ही अल्लाह उनके बीच उस बात का फ़ैसला कर देगा जिसमें वे विभेद कर रहे हैं। अल्लाह उसे मार्ग नहीं दिखाता जो झूठा और बड़ा अकृतज्ञ हो।॥3॥
لَّوۡ أَرَادَ ٱللَّهُ أَن يَتَّخِذَ وَلَدٗا لَّٱصۡطَفَىٰ مِمَّا يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ سُبۡحَٰنَهُۥۖ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ ۝ 4
यदि अल्लाह अपनी कोई संतान बनाना चाहता तो वह उसमें से, जिन्हें पैदा कर रहा है, चुन लेता। महान और उच्‍च है वह, वह अल्लाह है अकेला, सब पर क़ाबू रखनेवाला।॥4॥
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ يُكَوِّرُ ٱلَّيۡلَ عَلَى ٱلنَّهَارِ وَيُكَوِّرُ ٱلنَّهَارَ عَلَى ٱلَّيۡلِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمًّىۗ أَلَا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّٰرُ ۝ 5
उसने आकाशों और धरती को सत्य के साथ पैदा किया। रात को दिन पर लपेटता है और दिन को रात पर लपेटता है। और उसने सूर्य और चन्द्रमा को वशीभूत कर रखा है। प्रत्येक एक नियत समय को पूरा करने के लिए चल रहा है। जान रखो, वही प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील है।॥5॥
خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ ثُمَّ جَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ ثَمَٰنِيَةَ أَزۡوَٰجٖۚ يَخۡلُقُكُمۡ فِي بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡ خَلۡقٗا مِّنۢ بَعۡدِ خَلۡقٖ فِي ظُلُمَٰتٖ ثَلَٰثٖۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ ۝ 6
उसने तुम्हें अकेली जान पैदा किया, फिर उसी से उसका जोड़ा बनाया और तुम्हारे लिए चौपायों में से आठ नर-मादा उतारे। वह तुम्हारी माँओं के पेटों में तीन अँधेरों के भीतर तुम्हें एक सृजनरूप के पश्‍चात् अन्य एक सृजनरूप देता चला जाता है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है, उसके अतिरिक्‍त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। फिर तुम कहाँ फिरे जाते हो?॥6॥
إِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمۡۖ وَلَا يَرۡضَىٰ لِعِبَادِهِ ٱلۡكُفۡرَۖ وَإِن تَشۡكُرُواْ يَرۡضَهُ لَكُمۡۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 7
यदि तुम इनकार करोगे तो अल्लाह तुमसे बेनियाज़ (निस्पृह) है। यद्यपि वह अपने बन्दों के लिए इनकार को पसन्द नहीं करता, किन्तु यदि तुम कृतज्ञता दिखाओगे तो उसे वह तुम्हारे लिए पसन्द करता है। कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। फिर तुम्हारी वापसी अपने रब ही की ओर है। और वह तुम्हे बता देगा जो कुछ तुम करते रहे होगे। निश्‍चय ही वह सीनों तक की बातें जानता है।॥7॥
۞وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَا رَبَّهُۥ مُنِيبًا إِلَيۡهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُۥ نِعۡمَةٗ مِّنۡهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدۡعُوٓاْ إِلَيۡهِ مِن قَبۡلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادٗا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِۦۚ قُلۡ تَمَتَّعۡ بِكُفۡرِكَ قَلِيلًا إِنَّكَ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلنَّارِ ۝ 8
जब मनुष्य को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वह अपने रब को उसी की ओर रुजू (प्रवृत्त) होकर पुकारने लगता है, फिर जब वह अपनी अनुकम्पा से उसकी ख़बरगीरी करता है, तो वह उस चीज़ को भूल जाता है जिसके लिए पहले पुकार रहा था और (दूसरों को) अल्लाह के समकक्ष ठहराने लगता है, ताकि इसके परिणामस्वरूप वह उसकी राह से भटका दे। कह दो, "अपने इनकार का थोड़ा मज़ा ले लो। निस्सन्‍देह तुम आगवालों में से हो।"॥8॥
أَمَّنۡ هُوَ قَٰنِتٌ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ سَاجِدٗا وَقَآئِمٗا يَحۡذَرُ ٱلۡأٓخِرَةَ وَيَرۡجُواْ رَحۡمَةَ رَبِّهِۦۗ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُونَ وَٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 9
(क्या उक्‍त व्यक्ति अच्छा है) या वह व्यक्ति जो रात की घड़ियों में सजदा करता और खड़ा रहता है, आख़िरत से डरता है और अपने रब की दयालुता की आशा रखता हुआ विनयशीलता के साथ बन्दगी में लगा रहता है? कहो, "क्या वे लोग जो जानते हैं और वे लोग जो नहीं जानते दोनों समान होंगे? शिक्षा तो बुद्धि और समझवाले ही ग्रहण करते हैं।"॥9॥
قُلۡ يَٰعِبَادِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۗ وَأَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٌۗ إِنَّمَا يُوَفَّى ٱلصَّٰبِرُونَ أَجۡرَهُم بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 10
कह दो कि "ऐ मेरे बन्दो, जो ईमान लाए हो! अपने रब का डर रखो। जिन लोगों ने इस संसार में अच्छा कर दिखाया उनके लिए अच्छाई ही अच्छाई है, और अल्लाह की धरती विस्तृत है। जमे रहनेवालों को तो उनका बदला बेहिसाब मिलकर रहेगा।"॥10॥
قُلۡ إِنِّيٓ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ ۝ 11
कह दो, "मुझे तो आदेश दिया गया है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ, धर्म (भक्तिभाव एवं निष्ठा) को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए॥11॥
وَأُمِرۡتُ لِأَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 12
और मुझे आदेश दिया गया है कि सबसे बढ़कर मैं स्वयं आज्ञाकारी बनूँ।"॥12॥
قُلۡ إِنِّيٓ أَخَافُ إِنۡ عَصَيۡتُ رَبِّي عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 13
कहो, "यदि मैं अपने रब की अवज्ञा करूँ तो मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।"॥13॥
قُلِ ٱللَّهَ أَعۡبُدُ مُخۡلِصٗا لَّهُۥ دِينِي ۝ 14
कहो, "मैं तो अल्लाह ही की बन्दगी करता हूँ, अपने धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए॥14॥
فَٱعۡبُدُواْ مَا شِئۡتُم مِّن دُونِهِۦۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡخَٰسِرِينَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِيهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 15
अब तुम उससे हटकर जिसकी चाहो बन्दगी करो।" कह दो, "वास्तव में घाटे में पड़नेवाले तो वही हैं जिन्होंने अपने आपको और अपने लोगों को क़ियामत के दिन घाटे में डाल दिया। जान रखो, यही खुला घाटा है।”॥15॥
لَهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ ظُلَلٞ مِّنَ ٱلنَّارِ وَمِن تَحۡتِهِمۡ ظُلَلٞۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ ٱللَّهُ بِهِۦ عِبَادَهُۥۚ يَٰعِبَادِ فَٱتَّقُونِ ۝ 16
उनके लिए उनके ऊपर से भी आग की छतरियाँ होंगी और उनके नीचे से भी छतरियाँ होंगी। यही वह चीज़ है जिससे अल्लाह अपने बन्दों को डराता है, "ऐ मेरे बन्दो! अतः तुम मेरा डर रखो।"॥16॥
وَٱلَّذِينَ ٱجۡتَنَبُواْ ٱلطَّٰغُوتَ أَن يَعۡبُدُوهَا وَأَنَابُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰۚ فَبَشِّرۡ عِبَادِ ۝ 17
रहे वे लोग जो इससे बचे कि वे ताग़ूत (बढ़े हुए फ़सादी) की बन्दगी करते और अल्लाह की ओर रुजू हुए, उनके लिए शुभ सूचना है।॥17॥
ٱلَّذِينَ يَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقَوۡلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحۡسَنَهُۥٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ هَدَىٰهُمُ ٱللَّهُۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمۡ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 18
अतः मेरे उन बन्दों को शुभ सूचना दे दो जो बात को ध्यान से सुनते हैं; फिर उस अच्छी से अच्छी बात का अनुपालन करते हैं। वही हैं जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया है और वही बुद्धि और समझवाले हैं।॥18॥
أَفَمَنۡ حَقَّ عَلَيۡهِ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي ٱلنَّارِ ۝ 19
तो क्या वह व्यक्ति जिसपर यातना की बात सत्यापित हो चुकी है (यातना से बच सकता है)? तो क्या तुम छुड़ा लोगे उसको जो आग में है?॥19॥
لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ غُرَفٞ مِّن فَوۡقِهَا غُرَفٞ مَّبۡنِيَّةٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ لَا يُخۡلِفُ ٱللَّهُ ٱلۡمِيعَادَ ۝ 20
अलबत्ता जो लोग अपने रब से डरकर रहे उनके लिए ऊपरी मंज़िल पर कक्ष होंगे, जिनके ऊपर भी निर्मित कक्ष होंगे। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। यह अल्लाह का वादा है। अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता।॥20॥
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَلَكَهُۥ يَنَٰبِيعَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ يُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعٗا مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرّٗا ثُمَّ يَجۡعَلُهُۥ حُطَٰمًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 21
क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी उतारा, फिर धरती में उसके स्रोत प्रवाहित कर दिए; फिर उसके द्वारा खेती निकालता है जिसके विभिन्‍न रंग होते है; फिर वह सूखने लगती है; फिर तुम देखते हो कि वह पीली पड़ गई; फिर वह उसे चूर्ण-विचूर्ण कर देता है? निस्सन्‍देह इसमें बुद्धि और समझवालों के लिए बड़ी याददिहानी है।॥21॥
أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٖ مِّن رَّبِّهِۦۚ فَوَيۡلٞ لِّلۡقَٰسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ أُوْلَٰٓئِكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ ۝ 22
अब क्या वह व्यक्ति जिसका सीना (हृदय) अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया, अतः वह अपने रब की ओर से प्रकाश पर है, (उस व्यक्ति के समान होगा जो कठोर हृदय और अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल है)? अतः तबाही है उन लोगों के लिए जिनके दिल कठोर हो चुके हैं अल्लाह की याद से ख़ाली होकर! वही खुली गुमराही में पड़े हुए हैं।॥22॥
ٱللَّهُ نَزَّلَ أَحۡسَنَ ٱلۡحَدِيثِ كِتَٰبٗا مُّتَشَٰبِهٗا مَّثَانِيَ تَقۡشَعِرُّ مِنۡهُ جُلُودُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمۡ وَقُلُوبُهُمۡ إِلَىٰ ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُدَى ٱللَّهِ يَهۡدِي بِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٍ ۝ 23
अल्लाह ने सर्वोत्तम वाणी अवतरित की, एक ऐसी किताब जिसके सभी भाग परस्पर मिलते-जुलते हैं, जो रुख़ फेर देनेवाली (क्रांतिकारी) है। उससे उन लोगों की खालें कंपित हो उठती हैं जो अपने रब से डरते हैं। फिर उनकी खालें ( शरीर) और उनके दिल नर्म होकर अल्लाह की याद की ओर झुक जाते हैं। यह अल्लाह का मार्गदर्शन है, इसके द्वारा वह सीधे मार्ग पर ले आता है, जिसे चाहता है। और जिसको अल्लाह पथभ्रष्ट रहने दे, फिर उसके लिए कोई मार्गदर्शक नहीं।॥23॥
أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجۡهِهِۦ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَقِيلَ لِلظَّٰلِمِينَ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ ۝ 24
अब क्या जो क़ियामत के दिन अपने चेहरे को बुरी यातना (से बचने) की ढाल बनाएगा वह (यातना से सुरक्षित लोगों जैसा होगा)? और ज़ालिमों से कहा जाएगा, "चखो मज़ा उस कमाई का जो तुम करते रहे थे!"॥24॥
كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 25
जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी झुठलाया। अन्ततः उनपर वहाँ से यातना आ पहुँची जिसका उन्हें कोई पता न था।॥25॥
فَأَذَاقَهُمُ ٱللَّهُ ٱلۡخِزۡيَ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ۝ 26
फिर अल्लाह ने उन्हें सांसारिक जीवन में भी रुसवाई का मज़ा चखाया और आख़िरत की यातना तो इससे भी बड़ी है। काश, वे जानते!॥26॥
وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 27
हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर प्रकार की मिसालें पेश कर दी हैं, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।॥27॥
قُرۡءَانًا عَرَبِيًّا غَيۡرَ ذِي عِوَجٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ ۝ 28
एक अरबी क़ुरआन के रूप में, जिसमें कोई टेढ़ नहीं, ताकि वे धर्म-परायणता अपनाएँ।॥28॥
ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلٗا فِيهِ شُرَكَآءُ مُتَشَٰكِسُونَ وَرَجُلٗا سَلَمٗا لِّرَجُلٍ هَلۡ يَسۡتَوِيَانِ مَثَلًاۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 29
अल्लाह एक मिसाल पेश करता है कि एक व्यक्ति है जिसके मालिक होने में कई व्यक्ति साझी है, आपस में खींचातानी करनेवाले, और एक व्यक्ति वह है जो पूरा का पूरा एक ही व्यक्ति का है। क्या दोनों का हाल एक जैसा होगा? सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, किन्तु उनमें से अधिकांश लोग नहीं जानते।॥29॥
إِنَّكَ مَيِّتٞ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ ۝ 30
तुम्हें भी मरना है और उन्हें भी मरना है॥30॥
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عِندَ رَبِّكُمۡ تَخۡتَصِمُونَ ۝ 31
फिर निश्‍चय ही तुम सब क़ियामत के दिन अपने रब के समक्ष झगड़ोगे।॥31॥
۞فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى ٱللَّهِ وَكَذَّبَ بِٱلصِّدۡقِ إِذۡ جَآءَهُۥٓۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡكَٰفِرِينَ ۝ 32
फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जिसने झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपा और सत्य को झुठला दिया जब वह उसके पास आया। क्या जहन्‍नम में इनकार करनेवालों का ठिकाना नहीं है?॥32॥
وَٱلَّذِي جَآءَ بِٱلصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهِۦٓ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ۝ 33
और जो व्यक्ति सच्‍चाई लेकर आया और उसने उसकी पुष्टि की, ऐसे ही लोग डर रखते हैं।॥33॥
لَهُم مَّا يَشَآءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 34
उनके लिए उनके रब के पास वह सब कुछ है, जो वे चाहेंगे। यह है उत्तमकारों का बदला।॥34॥
لِيُكَفِّرَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي عَمِلُواْ وَيَجۡزِيَهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 35
ताकि जो निकृष्टतम कर्म उन्होंने किए अल्लाह उन (के बुरे प्रभाव) को उनसे दूर कर दे। और जो उत्तम कर्म वे करते रहे उसका उन्हें बदला प्रदान करे।॥35॥
أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِكَافٍ عَبۡدَهُۥۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 36
क्या अल्लाह अपने बन्दे के लिए काफ़ी नहीं है, यद्यपि वे तुम्हें उनसे डराते हैं जो उसके सिवा (उन्होंने अपने सहायक बना रखे) हैं? अल्लाह जिसे गुमराही में डाल दे, उसे मार्ग दिखानेवाला कोई नहीं।॥36॥
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّضِلٍّۗ أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِعَزِيزٖ ذِي ٱنتِقَامٖ ۝ 37
और जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए उसे गुमराह करनेवाला भी कोई नहीं। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेनेवाला नहीं है?॥37॥
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَرَءَيۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَنِيَ ٱللَّهُ بِضُرٍّ هَلۡ هُنَّ كَٰشِفَٰتُ ضُرِّهِۦٓ أَوۡ أَرَادَنِي بِرَحۡمَةٍ هَلۡ هُنَّ مُمۡسِكَٰتُ رَحۡمَتِهِۦۚ قُلۡ حَسۡبِيَ ٱللَّهُۖ عَلَيۡهِ يَتَوَكَّلُ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ ۝ 38
यदि तुम उनसे पूछो कि "आकाशों और धरती को किसने पैदा किया?" को वे अवश्य कहेंगे, "अल्लाह ने।" कहो, "तुम्हारा क्या विचार है, यदि अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचानी चाहे तो क्या अल्लाह से हटकर जिन देवियों को तुम पुकारते हो वे उसकी पहुँचाई हुई तकलीफ़ को दूर कर सकती हैं? या वह मुझपर कोई दयालुता दर्शानी चाहे तो क्या वे उसकी दयालुता को रोक सकती हैं?" कह दो, "मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है। भरोसा करनेवाले उसी पर भरोसा करते हैं।"॥38॥
قُلۡ يَٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّي عَٰمِلٞۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ۝ 39
कह दो, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह काम करो। मैं भी (अपनी जगह) काम करता हूँ। तो शीघ्र ही तुम जान लोगे॥39॥
مَن يَأۡتِيهِ عَذَابٞ يُخۡزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيۡهِ عَذَابٞ مُّقِيمٌ ۝ 40
कि किसपर वह यातना आती है जो उसे रुसवा कर देगी और किसपर अटल यातना उतरती है।"॥40॥
إِنَّآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ لِلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيۡهِم بِوَكِيلٍ ۝ 41
निश्‍चय ही हमने लोगों के लिए हक़ के साथ तुमपर किताब अवतरित की है। अतः जिसने सीधा मार्ग ग्रहण किया तो अपने ही लिए और जो भटका, तो वह भटककर अपने ही को हानि पहुँचाता है। तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं हो।॥41॥
ٱللَّهُ يَتَوَفَّى ٱلۡأَنفُسَ حِينَ مَوۡتِهَا وَٱلَّتِي لَمۡ تَمُتۡ فِي مَنَامِهَاۖ فَيُمۡسِكُ ٱلَّتِي قَضَىٰ عَلَيۡهَا ٱلۡمَوۡتَ وَيُرۡسِلُ ٱلۡأُخۡرَىٰٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمًّىۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 42
अल्लाह ही प्राणों को उनकी मृत्यु के समय ग्रस्त कर लेता है और जिसकी मृत्यु नहीं आई उसे उसकी निद्रा की अवस्था में (ग्रस्त कर लेता है)। फिर जिसकी मृत्यु का फ़ैसला कर दिया है, उसे रोक रखता है। और दूसरों को एक नियत समय तक के लिए छोड़ देता है। निश्‍चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ है सोच-विचार करनेवालों के लिए।॥42॥
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُفَعَآءَۚ قُلۡ أَوَلَوۡ كَانُواْ لَا يَمۡلِكُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَعۡقِلُونَ ۝ 43
(क्या उनके उपास्य प्रभुता में साझीदार है) या उन्होंने अल्लाह से हटकर दूसरों को सिफ़ारिशी बना रखा है? कहो, "क्या यद्यपि वे किसी चीज़ का अधिकार न रखते हों और न कुछ समझते ही हो, तब भी?"॥43॥
قُل لِّلَّهِ ٱلشَّفَٰعَةُ جَمِيعٗاۖ لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 44
कहो, "सिफ़ारिश तो सारी की सारी अल्लाह के अधिकार में है। आकाशों और धरती की बादशाही उसी की है। फिर उसी की ओर तुम लौटाए जाओगे।"॥44॥
وَإِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُ ٱشۡمَأَزَّتۡ قُلُوبُ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِۖ وَإِذَا ذُكِرَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦٓ إِذَا هُمۡ يَسۡتَبۡشِرُونَ ۝ 45
जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल भिंचने लगते हैं, किन्तु जब उसके सिवा दूसरों का ज़िक्र होता है तो क्या देखते हैं कि वे ख़ुशी से खिले जा रहे हैं।॥45॥
قُلِ ٱللَّهُمَّ فَاطِرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ عَٰلِمَ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ أَنتَ تَحۡكُمُ بَيۡنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 46
कहो, "ऐ अल्लाह, आकाशों और धरती को पैदा करनेवाले; परोक्ष और प्रत्यक्ष के जाननेवाले! तू ही अपने बन्दों के बीच उस चीज़ का फ़ैसला करेगा, जिसमें वे विभेद कर रहे हैं।"॥46॥
وَلَوۡ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ مَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦ مِن سُوٓءِ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مَا لَمۡ يَكُونُواْ يَحۡتَسِبُونَ ۝ 47
जिन लोगों ने ज़ुल्म किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में है और उसके साथ उतना ही और भी, तो वे क़ियामत के दिन बुरी यातना से बचने के लिए वह सब फ़िदया (प्राण-मुक्ति के बदले) में दे डाले। बात यह है कि अल्लाह की ओर से उनके सामने वह कुछ आ जाएगा जिसका वे गुमान तक न करते थे॥47॥
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 48
और जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ उनपर प्रकट हो जाएँगी और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसकी वे हँसी उड़ाया करते थे।॥48॥
فَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلۡنَٰهُ نِعۡمَةٗ مِّنَّا قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمِۭۚ بَلۡ هِيَ فِتۡنَةٞ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 49
अतः जब मनुष्य को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वह हमें पुकारने लगता है, फिर जब हमारी ओर से उसपर कोई अनुकम्पा होती है तो कहता है, "यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्‍त हुआ।" नहीं, बल्कि यह तो एक परीक्षा है, किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं।॥49॥
قَدۡ قَالَهَا ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 50
यही बात वे लोग भी कह चुके हैं जो उनसे पहले गुज़रे हैं। किन्तु जो कुछ कमाई वे करते थे, वह उनके कुछ काम न आई।॥50॥
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَٰٓؤُلَآءِ سَيُصِيبُهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ ۝ 51
फिर जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ उनपर आ पड़ीं, और इनमें से भी जिन लोगों ने ज़ुल्म किया उनपर भी जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ जल्द ही आ पड़ेंगी। और वे क़ाबू से बाहर निकलनेवाले नहीं हैं॥51॥
أَوَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 52
क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है? निस्सन्‍देह इसमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानियाँ है जो ईमान लाएँ।॥52॥
۞قُلۡ يَٰعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 53
कह दो, "ऐ मेरे बन्दो, जिन्होंने अपने आपपर ज़्यादती की है, अल्लाह की दयालुता से निराश न हों। निस्सन्‍देह अल्लाह सारे ही गुनाहों को क्षमा कर देता है। निश्‍चय ही वह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।॥53॥
وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ۝ 54
रुजू (प्रवृत्त) हो अपने रब की ओर और उसके आज्ञाकारी बन जाओ, इससे पहले कि तुमपर यातना आ जाए। फिर तुम्हारी सहायता न की जाएगी।॥54॥
وَٱتَّبِعُوٓاْ أَحۡسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةٗ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ ۝ 55
और अनुसरण करो उस सर्वोत्तम चीज़ का जो तुम्हारे रब की ओर से अवतरित हुई है, इससे पहले कि तुम पर अचानक यातना आ जाए और तुम्हें पता भी न हो।"॥55॥
أَن تَقُولَ نَفۡسٞ يَٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِي جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّٰخِرِينَ ۝ 56
कहीं ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति कहने लगे, "हाय, अफ़सोस उसपर! जो कोताही अल्लाह के हक़ में मैंने की। और मैं तो मज़ाक़ उड़ानेवालों में ही सम्मिलित रहा।"॥56॥
أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 57
या कहने लगे कि "यदि अल्लाह मुझे मार्ग दिखाता तो अवश्य ही मैं डर रखनेवालों में से होता।"॥57॥
أَوۡ تَقُولَ حِينَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِي كَرَّةٗ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 58
या जब वह यातना देखे तो कहने लगे, "काश, मुझे एक बार फिर लौटकर जाना हो तो मैं उत्तमकारों में सम्मिलित हो जाऊँ।"॥58॥
بَلَىٰ قَدۡ جَآءَتۡكَ ءَايَٰتِي فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 59
"क्यों नहीं, मेरी आयतें तेरे पास आ चुकी थीं, किन्तु तूने उनको झुठलाया और घमण्‍ड किया और इनकार करनेवालों में सम्मिलित रहा॥59॥
وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 60
और क़ियामत के दिन तुम उन लोगों को देखोगे जिन्होंने अल्लाह पर झूठ गढ़कर थोपा है कि उनके चेहरे स्याह हैं। क्या अहंकारियों का ठिकाना जहन्‍नम में नहीं हैं?"॥60॥
وَيُنَجِّي ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ بِمَفَازَتِهِمۡ لَا يَمَسُّهُمُ ٱلسُّوٓءُ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 61
इसके विपरीत अल्लाह उन लोगों को, जिन्होंने डर रखा उन्हें उनकी सफलता के साथ मुक्ति प्रदान करेगा। न तो उन्हें कोई अनिष्ट छू सकेगा और न वे शोकाकुल होंगे।॥61॥
ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ وَكِيلٞ ۝ 62
अल्लाह हर चीज़ का स्रष्टा है और वही हर चीज़ का ज़िम्मा लेता है।॥62॥
لَّهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ ۝ 63
उसी के पास आकाशों और धरती की कुँजियाँ हैं। और जिन लोगों ने अल्‍लाह की आयतों का इनकार किया, वही हैं जो घाटे में हैं।॥63॥
قُلۡ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَأۡمُرُوٓنِّيٓ أَعۡبُدُ أَيُّهَا ٱلۡجَٰهِلُونَ ۝ 64
कहो, "क्या फिर भी तुम मुझसे कहते हो कि मैं अल्लाह के सिवा किसी और की बन्दगी करूँ, ऐ अज्ञानियो?"॥64॥
وَلَقَدۡ أُوحِيَ إِلَيۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكَ لَئِنۡ أَشۡرَكۡتَ لَيَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ ۝ 65
तुम्हारी ओर और जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी ओर भी वह्‍य की जा चुकी है कि "यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया-धरा अनिवार्यतः जान को लागू होगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़नेवालों में से हो जाओगे।"॥65॥
بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّٰكِرِينَ ۝ 66
नहीं, बल्कि अल्लाह ही की बन्दगी करो और कृतज्ञता दिखानेवालों में से हो जाओ।॥66॥
وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦ وَٱلۡأَرۡضُ جَمِيعٗا قَبۡضَتُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَٱلسَّمَٰوَٰتُ مَطۡوِيَّٰتُۢ بِيَمِينِهِۦۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 67
उन्होंने अल्लाह की क़द्र न जानी जैसी क़द्र उसकी जाननी चाहिए थी। हालाँकि क़ियामत के दिन सारी की सारी धरती उसकी मुट्ठी में होगी और आकाश उसके दाएँ हाथ में लिपटे हुए होंगे। महान और उच्‍च है वह उससे जो वे साझी ठहराते हैं।॥67॥
وَنُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَصَعِقَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُۖ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخۡرَىٰ فَإِذَا هُمۡ قِيَامٞ يَنظُرُونَ ۝ 68
और सूर (नरसिंघा) फूँका जाएगा, तो जो कोई आकाशों और जो कोई धरती में होगा वह अचेत हो जाएगा सिवाय उसके जिसको अल्लाह चाहे। फिर उसे दोबारा फूँका जाएगा, तो क्या देखेंगे कि सहसा वे खड़े देख रहे हैं।॥68॥
وَأَشۡرَقَتِ ٱلۡأَرۡضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ ٱلۡكِتَٰبُ وَجِاْيٓءَ بِٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 69
और धरती अपने रब के प्रकाश से जगमगा उठेगी और किताब रखी जाएगी और नबियों और गवाहों को लाया जाएगा और लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और उनपर कोई ज़ुल्म न होगा।॥69॥
وَوُفِّيَتۡ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَا يَفۡعَلُونَ ۝ 70
और प्रत्येक व्यक्ति को उसका किया भरपूर दिया जाएगा। और वह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे करते हैं।॥70॥
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا فُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَآ أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ رُسُلٞ مِّنكُمۡ يَتۡلُونَ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِ رَبِّكُمۡ وَيُنذِرُونَكُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَاۚ قَالُواْ بَلَىٰ وَلَٰكِنۡ حَقَّتۡ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 71
जिन लोगों ने इनकार किया, वे गिरोह के गिरोह जहन्‍न्‍म की ओर ले जाए जाएँगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेंगे तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उसके प्रहरी उनसे कहेंगे, "क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे जो तुम्हें तुम्हारे रब की आयतें सुनाते रहे हों और तुम्हें इस दिन की मुलाक़ात से सचेत करते रहे हों?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं (वे तो आए थे)।" किन्तु इनकार करनेवालों पर यातना की बात सत्यापित होकर रही।॥71॥
قِيلَ ٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 72
कहा जाएगा, "जहन्‍नम के द्वारों में प्रवेश करो उसमें सदैव रहने के लिए।" तो बहुत ही बुरा ठिकाना है अहंकारियों का!॥72॥
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا وَفُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَا سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡ طِبۡتُمۡ فَٱدۡخُلُوهَا خَٰلِدِينَ ۝ 73
और जो लोग अपने रब का डर रखते थे वे गिरोह के गिरोह जन्‍नत की ओर ले जाए जाएँगे, यहाँ तक कि जब वे वहाँ इस हाल में पहुँचेंगे कि उसके द्वार खुले होंगे और उसके प्रहरी उनसे कहेंगे, "सलाम हो तुमपर! बहुत अच्छे रहे! अतः इसमें प्रवेश करो सदैव रहने के लिए (तो उनकी ख़ुशियों का क्या हाल होगा!)॥73॥
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي صَدَقَنَا وَعۡدَهُۥ وَأَوۡرَثَنَا ٱلۡأَرۡضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ ٱلۡجَنَّةِ حَيۡثُ نَشَآءُۖ فَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ ۝ 74
और वे कहेंगे, "प्रशंसा अल्लाह के लिए जिसने हमारे साथ अपना वादा सच कर दिखाया और हमें इस भूमि का वारिस बनाया कि हम जन्‍न्‍त में जहाँ चाहें वहाँ रहें-बसे!" अतः क्या ही अच्छा प्रतिदान है कर्म करनेवालों का!- ॥74॥
وَتَرَى ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ حَآفِّينَ مِنۡ حَوۡلِ ٱلۡعَرۡشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡۚ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّۚ وَقِيلَ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 75
और तुम फ़रिश्तों को देखोगे कि वे सिंहासन के गिर्द घेरा बाँधे हुए अपने रब का गुणगान कर रहे हैं। और लोगों के बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दिया जाएगा और कहा जाएगा, "सारी प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के रब, के लिए है।"॥75॥