سُورَةُ الشُّعَرَاءِ
                    26. अश-शुअरा 
(मक्का में उतरी-आयतें 227)
परिचय
नाम
आयत 224 वश-शुअराउ यत्तबिउहुमुल ग़ावून' अर्थात् रहे कवि (शुअरा), तो उनके पीछे बहके हुए लोग चला करते है" से उद्धृत है।
उतरने का समय 
विषय-वस्तु और वर्णन-शैली से महसूस होता है और रिवायतें भी इसकी पुष्टि करती हैं कि इस सूरा के उत्तरने का समय मक्का का मध्यकाल है।
विषय और वार्ताएँ
भाषण की पृष्ठभूमि यह है कि मक्का के विधर्मी नबी (सल्ल०) के प्रचार करने और उपदेश का मुक़ाबला लगातार विरोध और इंकार से कर रहे थे और इसके लिए तरह-तरह के बहाने गढ़े चले जाते थे। नबी (सल्ल०) उन लोगों को उचित प्रमाणों के साथ उनकी धारणाओं की ग़लती और तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत की सच्चाई समझाने की कोशिश करते-करते थके जाते हैं, मगर वे हठधर्मी के नित नए रूप अपनाते हुए न थकते थे। यही चीज़ प्यारे नबी (सल्ल०) के लिए आत्म-विदारक बनी हुई थी और इस ग़म में आपकी जान घुली जाती थी। इन परिस्थितियों में यह सूरा उतरी।
वार्ता का आरंभ इस तरह होता है कि तुम इनके पीछे अपनी जान क्यों घुलाते हो? इनके ईमान न लाने का कारण यह नहीं है कि इन्होंने कोई निशानी नहीं देखी है, बल्कि इसका कारण यह है कि ये हठधर्म हैं, समझाने से मानना नहीं चाहते।
इस प्रस्तावना के बाद आयत 191 तक जो विषय लगातार वर्णित हुआ है वह यह है कि सत्य की चाह रखनेवाले लोगों के लिए तो अल्लाह की ज़मीन पर हर ओर निशानियाँ-ही-निशानियाँ फैली हुई हैं जिन्हें देखकर वे सत्य को पहचान सकते हैं। लेकिन हठधर्मी लोग कभी किसी चीज़ को देखकर भी ईमान नहीं लाए हैं, यहाँ तक कि अल्लाह के अज़ाब ने आकर उनको पकड़ में ले लिया है। इसी संदर्भ से इतिहास की सात क़ौमों के हालात पेश किए गए हैं, जिन्होंने उसी हठधर्मी से काम लिया था जिससे मक्का के काफ़िर (इंकारी) काम ले रहे थे और इस ऐतिहासिक वर्णन के सिलसिले में कुछ बातें मन में बिठाई गई हैं।
एक यह कि निशानियाँ दो प्रकार की हैं। एक प्रकार की निशानियाँ वे हैं जो अल्लाह की ज़मीन पर हर ओर फैली हुई हैं, जिन्हें देखकर हर बुद्धिवाला व्यक्ति जाँच कर सकता है कि नबी जिस चीज़ की ओर बुला रहा है, वह सत्य है या नहीं। दूसरे प्रकार की निशानियों वे हैं जो [तबाह कर दी जानेवाली क़ौमों] ने देखी। अब यह निर्णय करना स्वयं इंकारियों का अपना काम है कि वे किस प्रकार की निशानी देखना चाहते हैं।
दूसरे यह कि हर युग में काफ़िरों (इंकारियों) की मानसिकता एक जैसी रही है। उनके तर्क एक ही तरह के थे, उनकी आपत्तियाँ एक जैसी थी और अन्तत: उनका अंजाम भी एक जैसा ही रहा। इसके विपरीत हर समय में नबियों की शिक्षा एक थी। अपने विरोधियों के मुक़ाबले में उनके प्रमाण और तर्क की शैली एक थी और इन सबके साथ अल्लाह की रहमत का मामला भी एक था। ये दोनों नमूने इतिहास में मौजूद है। विधर्मी खुद देख सकते हैं कि उनका अपना चित्र किस नमूने से मिलता है।
तीसरी बात जो बार-बार दोहराई गई है वह यह है कि अल्लाह प्रभावशाली, सामर्थ्यवान और शक्तिशाली भी है और दयावान भी। अब यह बात लोगों को स्वयं ही तय करनी चाहिए कि वे अपने आपको उसकी दया का अधिकारी बनाते हैं या क़हर (प्रकोप) का। आयत 192 से सूरा के अंत तक में इस वार्ता को समेटते हुए कहा गया है कि तुम लोग अगर निशानियाँ ही देखना चाहते हो तो आख़िर वह भयानक निशानियाँ देखने पर आग्रह क्यों करते हो जो तबाह होनेवाली क़ौमों ने देखी हैं। इस क़ुरआन को देखो जो तुम्हारी अपनी भाषा में है, मुहम्मद (सल्ल०) को देखो, उनके साथियों को देखो। क्या यह वाणी किसी शैतान या जिन्न की वाणी हो सकती है? क्या इस वाणी का पेश करनेवाला तुम्हें काहिन नज़र आता है? क्या मुहम्मद (सल्ल०) और उनके साथी तुम्हें वैसे हो नज़र आते हैं जैसे कवि और उनके जैसे लोग हुआ करते हैं? [अगर नहीं, जैसा कि ख़ुद तुम्हारे दिल गवाही दे रहे होंगे] तो फिर यह भी जान लो कि तुम ज़ुल्म कर रहे हो और ज़ालिमों का-सा अंजाम देखकर रहोगे ।
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                                بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ                                 
                             
                            
                                अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।
                            
                         
                                            
                                            
                            
                                تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ                                          2                                                                     
                             
                            
                                वे (जो अवतरित हो रही हैं) स्पष्ट किताब की आयतें हैं॥2॥
                            
                         
                                            
                            
                                لَعَلَّكَ بَٰخِعٞ نَّفۡسَكَ أَلَّا يَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ                                          3                                                                     
                             
                            
                                शायद इसपर कि वे ईमान नहीं लाते, तुम अपने प्राण ही खो बैठोगे॥3॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِن نَّشَأۡ نُنَزِّلۡ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ءَايَةٗ فَظَلَّتۡ أَعۡنَٰقُهُمۡ لَهَا خَٰضِعِينَ                                          4                                                                     
                             
                            
                                यदि हम चाहें तो उनपर आकाश से एक निशानी उतार दें। फिर उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी रह जाएँ॥4॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن ذِكۡرٖ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ مُحۡدَثٍ إِلَّا كَانُواْ عَنۡهُ مُعۡرِضِينَ                                          5                                                                     
                             
                            
                                उनके पास रहमान (करुणामय प्रभु) की ओर से जो नई याददिहानी (नवीन अनुस्मृति) भी आती है वे उससे मुँह फेर ही लेते हैं॥5॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَقَدۡ كَذَّبُواْ فَسَيَأۡتِيهِمۡ أَنۢبَٰٓؤُاْ مَا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ                                          6                                                                     
                             
                            
                                अब जबकि वे झुठला चुके हैं, तो शीघ्र ही उन्हें उसकी सूचना मिल जाएँगी जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते रहे हैं॥6॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ كَمۡ أَنۢبَتۡنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوۡجٖ كَرِيمٍ                                          7                                                                     
                             
                            
                                क्या उन्होंने धरती को नहीं देखा कि हमने उसमें कितने ही प्रकार की उमदा चीज़ें उगाई हैं? ॥7॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          8                                                                     
                             
                            
                                निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है, इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥8॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          9                                                                     
                             
                            
                                और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥9॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِذۡ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱئۡتِ ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ                                          10                                                                     
                             
                            
                                और जबकि तुम्हारे रब ने मूसा को पुकारा कि "ज़ालिम लोगों के पास जा —॥10॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَوۡمَ فِرۡعَوۡنَۚ أَلَا يَتَّقُونَ                                          11                                                                     
                             
                            
                                फ़िरऔन की क़ौम के पास — क्या वे डर नहीं रखते?"॥11॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ رَبِّ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ                                          12                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे डर है कि वे मुझे झुठला देंगे,॥12॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَيَضِيقُ صَدۡرِي وَلَا يَنطَلِقُ لِسَانِي فَأَرۡسِلۡ إِلَىٰ هَٰرُونَ                                          13                                                                     
                             
                            
                                और मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती। इसलिए हारून की ओर भी सन्देश भेज दे॥13॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَهُمۡ عَلَيَّ ذَنۢبٞ فَأَخَافُ أَن يَقۡتُلُونِ                                          14                                                                     
                             
                            
                                और मुझपर उनके यहाँ के एक गुनाह का बोझ भी है। इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।"॥14॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ كَلَّاۖ فَٱذۡهَبَا بِـَٔايَٰتِنَآۖ إِنَّا مَعَكُم مُّسۡتَمِعُونَ                                          15                                                                     
                             
                            
                                कहा, "कदापि नहीं, तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ। हम तुम्हारे साथ हैं, सुनने को मौजूद हैं॥15॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأۡتِيَا فِرۡعَوۡنَ فَقُولَآ إِنَّا رَسُولُ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          16                                                                     
                             
                            
                                अतः तुम दोनों फ़िरऔन को पास जाओ और कहो कि ‘हम सारे संसार के रब के भेजे हुए हैं॥16॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَنۡ أَرۡسِلۡ مَعَنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ                                          17                                                                     
                             
                            
                                कि तू इसराईल की संतान को हमारे साथ जाने दे’।"॥17॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ أَلَمۡ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدٗا وَلَبِثۡتَ فِينَا مِنۡ عُمُرِكَ سِنِينَ                                          18                                                                     
                             
                            
                                (फ़िरऔन ने) कहा, "क्या हमने तुझे, जबकि तू बच्चा था, अपने यहाँ पाला नहीं था? और तू अपनी अवस्था के कई वर्षों तक हममें रहा,॥18॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَفَعَلۡتَ فَعۡلَتَكَ ٱلَّتِي فَعَلۡتَ وَأَنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ                                          19                                                                     
                             
                            
                                और तूने अपना वह काम किया, जो किया। तू बड़ा ही कृतघ्न है।"॥19॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ فَعَلۡتُهَآ إِذٗا وَأَنَا۠ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ                                          20                                                                     
                             
                            
                                (मूसा ने) कहा, ऐसा तो मुझसे उस समय हुआ जबकि मैं चूक गया था॥20॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَفَرَرۡتُ مِنكُمۡ لَمَّا خِفۡتُكُمۡ فَوَهَبَ لِي رَبِّي حُكۡمٗا وَجَعَلَنِي مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ                                          21                                                                     
                             
                            
                                फिर जब मुझे तुम्हारा भय हुआ तो मैं तुम्हारे यहाँ से भाग गया। फिर मेरे रब ने मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान की और मुझे रसूलों में सम्मिलित किया॥21॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَتِلۡكَ نِعۡمَةٞ تَمُنُّهَا عَلَيَّ أَنۡ عَبَّدتَّ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ                                          22                                                                     
                             
                            
                                यही वह उदार अनुग्रह है जिसका एहसान तू मुझपर जताता है कि तूने इसराईल की संतान को ग़ुलाम बना रखा है।"॥22॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ فِرۡعَوۡنُ وَمَا رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          23                                                                     
                             
                            
                                फ़िरऔन ने कहा, "और यह सारे संसार का रब क्या होता है?"॥23॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَآۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ                                          24                                                                     
                             
                            
                                (मूसा ने) कहा, "आकाशों और धरती का रब और जो कुछ इन दोनों के मध्य है उसका भी, यदि तुम्हें यकीन हो।"॥24॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ لِمَنۡ حَوۡلَهُۥٓ أَلَا تَسۡتَمِعُونَ                                          25                                                                     
                             
                            
                                उसने (फ़िरऔन ने) अपने आस-पासवालों से कहा, "क्या तुम सुनते नहीं हो?"॥25॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ رَبُّكُمۡ وَرَبُّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ                                          26                                                                     
                             
                            
                                (मूसा ने) कहा, "तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप-दादा का रब।"॥26॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ ٱلَّذِيٓ أُرۡسِلَ إِلَيۡكُمۡ لَمَجۡنُونٞ                                          27                                                                     
                             
                            
                                (फ़िरऔन) बोला, "निश्चय ही तुम्हारा यह रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, बिलकुल ही पागल है।"॥27॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ رَبُّ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَمَا بَيۡنَهُمَآۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡقِلُونَ                                          28                                                                     
                             
                            
                                (मूसा ने) कहा, "पूर्व और पश्चिम का रब और जो कुछ उनके बीच है उसका भी, यदि तुम कुछ बुद्धि रखते हो।"॥28॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ لَئِنِ ٱتَّخَذۡتَ إِلَٰهًا غَيۡرِي لَأَجۡعَلَنَّكَ مِنَ ٱلۡمَسۡجُونِينَ                                          29                                                                     
                             
                            
                                (फ़िरऔन) बोला, "तुमने यदि मेरे सिवा किसी और को हाकिम बनाया तो मैं तुम्हें बन्दी बना कर रहूँगा।"॥29॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ أَوَلَوۡ جِئۡتُكَ بِشَيۡءٖ مُّبِينٖ                                          30                                                                     
                             
                            
                                (मूसा ने) कहा, "क्या यदि मैं तेरे पास एक स्पष्ट चीज़ ले आऊँ तब भी?"॥30॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ فَأۡتِ بِهِۦٓ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ                                          31                                                                     
                             
                            
                                (फ़िरऔन) बोलाः “अच्छा वह ले आ; यदि तू सच्चा है”। ॥31॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَلۡقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعۡبَانٞ مُّبِينٞ                                          32                                                                     
                             
                            
                                फिर उसने (मूसा ने) अपनी लाठी डाल दी, तो अचानक क्या देखते हैं कि वह एक प्रत्यक्ष अजगर है॥32॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَنَزَعَ يَدَهُۥ فَإِذَا هِيَ بَيۡضَآءُ لِلنَّٰظِرِينَ                                          33                                                                     
                             
                            
                                और उसने (मूसा ने) अपना हाथ बाहर खींचा, तो फिर क्या देखते हैं कि वह देखनेवालों के सामने चमक रहा है॥33॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ لِلۡمَلَإِ حَوۡلَهُۥٓ إِنَّ هَٰذَا لَسَٰحِرٌ عَلِيمٞ                                          34                                                                     
                             
                            
                                उसने (फ़िरऔन ने) अपने आस-पास के सरदारों से कहा, "निश्चय ही यह एक बड़ा जादूगर है॥34॥
                            
                         
                                            
                            
                                يُرِيدُ أَن يُخۡرِجَكُم مِّنۡ أَرۡضِكُم بِسِحۡرِهِۦ فَمَاذَا تَأۡمُرُونَ                                          35                                                                     
                             
                            
                                चाहता है कि अपने जादू से तुम्हें तुम्हारी अपनी भूमि से निकाल बाहर करे; तो अब तुम क्या कहते हो?"॥35॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُوٓاْ أَرۡجِهۡ وَأَخَاهُ وَٱبۡعَثۡ فِي ٱلۡمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ                                          36                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "इसे और इसके भाई को अभी टाले रखिए, और जमा करनेवालों को नगरों में भेज दीजिए॥36॥
                            
                         
                                            
                            
                                يَأۡتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيمٖ                                          37                                                                     
                             
                            
                                कि वे हर एक माहिर जादूगर को आपके पास ले आएँ।"॥37॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَجُمِعَ ٱلسَّحَرَةُ لِمِيقَٰتِ يَوۡمٖ مَّعۡلُومٖ                                          38                                                                     
                             
                            
                                अतएव एक निश्चित दिन के नियत समय पर जादूगर जमा कर लिए गए॥38॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَقِيلَ لِلنَّاسِ هَلۡ أَنتُم مُّجۡتَمِعُونَ                                          39                                                                     
                             
                            
                                और लोगों से कहा गया, "क्या तुम भी जमा होते हो?"॥39॥
                            
                         
                                            
                            
                                لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ ٱلسَّحَرَةَ إِن كَانُواْ هُمُ ٱلۡغَٰلِبِينَ                                          40                                                                     
                             
                            
                                शायद हम जादूगरों ही के अनुयायी रह जाएँ यदि वे विजयी हुए॥40॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَلَمَّا جَآءَ ٱلسَّحَرَةُ قَالُواْ لِفِرۡعَوۡنَ أَئِنَّ لَنَا لَأَجۡرًا إِن كُنَّا نَحۡنُ ٱلۡغَٰلِبِينَ                                          41                                                                     
                             
                            
                                फिर जब जादूगर आए तो उन्होंने फ़िरऔन से कहा, "क्या हमारे लिए कोई प्रतिदान भी है, यदि हम प्रभावी रहे?"॥41॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ نَعَمۡ وَإِنَّكُمۡ إِذٗا لَّمِنَ ٱلۡمُقَرَّبِينَ                                          42                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "हाँ, और निश्चय ही तुम तो उस समय निकटतम लोगों में से हो जाओगे।"॥42॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ لَهُم مُّوسَىٰٓ أَلۡقُواْ مَآ أَنتُم مُّلۡقُونَ                                          43                                                                     
                             
                            
                                मूसा ने उनसे कहा, "डालो, जो कुछ तुम्हें डालना है।"॥43॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَلۡقَوۡاْ حِبَالَهُمۡ وَعِصِيَّهُمۡ وَقَالُواْ بِعِزَّةِ فِرۡعَوۡنَ إِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡغَٰلِبُونَ                                          44                                                                     
                             
                            
                                तब उन्होंने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ डाल दीं और बोले, "फ़िरऔन के प्रताप से हम ही विजयी रहेंगे।"॥44॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَلۡقَىٰ مُوسَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ تَلۡقَفُ مَا يَأۡفِكُونَ                                          45                                                                     
                             
                            
                                फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी तो क्या देखते हैं कि वह उसे स्वाँग को, जो वे रचा करते थे, निगलती जा रही है॥45॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأُلۡقِيَ ٱلسَّحَرَةُ سَٰجِدِينَ                                          46                                                                     
                             
                            
                                इसपर जादूगर सजदे में गिर पड़े॥46॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          47                                                                     
                             
                            
                                वे बोल उठे, "हम सारे संसार के रब पर ईमान ले आए —॥47॥
                            
                         
                                            
                            
                                رَبِّ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ                                          48                                                                     
                             
                            
                                मूसा और हारून के रब पर!"॥48॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ ءَامَنتُمۡ لَهُۥ قَبۡلَ أَنۡ ءَاذَنَ لَكُمۡۖ إِنَّهُۥ لَكَبِيرُكُمُ ٱلَّذِي عَلَّمَكُمُ ٱلسِّحۡرَ فَلَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَۚ لَأُقَطِّعَنَّ أَيۡدِيَكُمۡ وَأَرۡجُلَكُم مِّنۡ خِلَٰفٖ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمۡ أَجۡمَعِينَ                                          49                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "तुमने उसको मान लिया, इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति देता। निश्चय ही वह तुम सबका प्रमुख है जिसने तुमको जादू सिखाया है। अच्छा, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हुआ जाता है! मैं तुम्हारे हाथ और पाँव विपरीत दिशाओं से कटवा दूँगा और तुम सभी को सूली पर चढ़ा दूँगा।"॥49॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ لَا ضَيۡرَۖ إِنَّآ إِلَىٰ رَبِّنَا مُنقَلِبُونَ                                          50                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "कुछ हरज नहीं; हम तो अपने रब ही की ओर पलटकर जानेवाले हैं॥50॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّا نَطۡمَعُ أَن يَغۡفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَٰيَٰنَآ أَن كُنَّآ أَوَّلَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ                                          51                                                                     
                             
                            
                                हमें तो इसी की लालसा है कि हमारा रब हमारी ख़ताओं को क्षमा कर दे, क्योंकि हम सबसे पहले ईमान लाए।"॥51॥
                            
                         
                                            
                            
                                ۞وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنۡ أَسۡرِ بِعِبَادِيٓ إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ                                          52                                                                     
                             
                            
                                हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "मेरे बन्दों को लेकर रातों-रात निकल जा। निश्चय ही तुम्हारा पीछा किया जाएगा।"॥52॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَرۡسَلَ فِرۡعَوۡنُ فِي ٱلۡمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ                                          53                                                                     
                             
                            
                                इसपर फ़िरऔन ने जमा करनेवालों को नगर में भेजा॥53॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ لَشِرۡذِمَةٞ قَلِيلُونَ                                          54                                                                     
                             
                            
                                कि "यह गिरे-पड़े थोड़े लोगों का एक गिरोह है,॥54॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّهُمۡ لَنَا لَغَآئِظُونَ                                          55                                                                     
                             
                            
                                और ये हमें क्रुद्ध कर रहे हैं।॥55॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَٰذِرُونَ                                          56                                                                     
                             
                            
                                और हम चौकन्ना रहनेवाले लोग हैं।"॥56॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَخۡرَجۡنَٰهُم مِّن جَنَّٰتٖ وَعُيُونٖ                                          57                                                                     
                             
                            
                                इस प्रकार हम उन्हें बाग़ों और स्रोतों ॥57॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَكُنُوزٖ وَمَقَامٖ كَرِيمٖ                                          58                                                                     
                             
                            
                                और ख़जानों और अच्छे स्थान से निकाल लाए॥58॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَٰلِكَۖ وَأَوۡرَثۡنَٰهَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ                                          59                                                                     
                             
                            
                                ऐसा ही हम करते हैं, और इनका वारिस हमने इसराईल की संतान को बना दिया॥59॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَتۡبَعُوهُم مُّشۡرِقِينَ                                          60                                                                     
                             
                            
                                सुबह-तड़के उन्होंने उनका पीछा किया॥60॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَلَمَّا تَرَٰٓءَا ٱلۡجَمۡعَانِ قَالَ أَصۡحَٰبُ مُوسَىٰٓ إِنَّا لَمُدۡرَكُونَ                                          61                                                                     
                             
                            
                                फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, "हम तो पकड़े गए!"॥61॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ كَلَّآۖ إِنَّ مَعِيَ رَبِّي سَيَهۡدِينِ                                          62                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।"॥62॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡبَحۡرَۖ فَٱنفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرۡقٖ كَٱلطَّوۡدِ ٱلۡعَظِيمِ                                          63                                                                     
                             
                            
                                तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "अपनी लाठी सागर पर मार।"॥63॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَأَزۡلَفۡنَا ثَمَّ ٱلۡأٓخَرِينَ                                          64                                                                     
                             
                            
                                तो वह फट गया और (उसका) प्रत्येक टुकड़ा एक बड़े पहाड़ की भाँति हो गया। और हम दूसरों को भी निकट ले आए॥64॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَأَنجَيۡنَا مُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ                                          65                                                                     
                             
                            
                                हमने मूसा को और उन सबको जो उसके साथ थे, बचा लिया॥65॥
                            
                         
                                            
                            
                                ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ                                          66                                                                     
                             
                            
                                और दूसरों को डूबो दिया॥66॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          67                                                                     
                             
                            
                                निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥67॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          68                                                                     
                             
                            
                                और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥68॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱتۡلُ عَلَيۡهِمۡ نَبَأَ إِبۡرَٰهِيمَ                                          69                                                                     
                             
                            
                                और उन्हें इबराहीम का कि़स्सा सुनाओ, ॥69॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَا تَعۡبُدُونَ                                          70                                                                     
                             
                            
                                जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "तुम क्या पूजते हो?"॥70॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ نَعۡبُدُ أَصۡنَامٗا فَنَظَلُّ لَهَا عَٰكِفِينَ                                          71                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "हम बुतों की पूजा करते हैं, हम तो उन्हीं की सेवा में लगे रहेंगे।"॥71॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ هَلۡ يَسۡمَعُونَكُمۡ إِذۡ تَدۡعُونَ                                          72                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "क्या ये तुम्हारी सुनते हैं जब तुम पुकारते हो?॥72॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَوۡ يَنفَعُونَكُمۡ أَوۡ يَضُرُّونَ                                          73                                                                     
                             
                            
                                या ये तुम्हें कुछ लाभ या हानि पहुँचाते है?" ॥73॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ بَلۡ وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا كَذَٰلِكَ يَفۡعَلُونَ                                          74                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हमने तो अपने बाप-दादा को ऐसा ही करते पाया है।" ॥74॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ أَفَرَءَيۡتُم مَّا كُنتُمۡ تَعۡبُدُونَ                                          75                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "क्या तुमने उनपर विचार भी किया जिन्हें तुम पूजते हो, ॥75॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُمُ ٱلۡأَقۡدَمُونَ                                          76                                                                     
                             
                            
                                तुम और तुम्हारे पहले के बाप-दादा भी?॥76॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَإِنَّهُمۡ عَدُوّٞ لِّيٓ إِلَّا رَبَّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          77                                                                     
                             
                            
                                वे सब तो मेरे शत्रु हैं सिवाय सारे संसार के रब के,॥77॥
                            
                         
                                            
                            
                                ٱلَّذِي خَلَقَنِي فَهُوَ يَهۡدِينِ                                          78                                                                     
                             
                            
                                जिसने मुझे पैदा किया और फिर वही मेरा मार्गदर्शन करता है॥78॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱلَّذِي هُوَ يُطۡعِمُنِي وَيَسۡقِينِ                                          79                                                                     
                             
                            
                                और वही है जो मुझे खिलाता और पिलाता है॥79॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِذَا مَرِضۡتُ فَهُوَ يَشۡفِينِ                                          80                                                                     
                             
                            
                                और जब मैं बीमार होता हूँ तो वही मुझे अच्छा करता है॥80॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱلَّذِي يُمِيتُنِي ثُمَّ يُحۡيِينِ                                          81                                                                     
                             
                            
                                और वही है जो मुझे मारेगा, फिर मुझे जीवित करेगा।1॥81॥
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1. यह अनुवाद भी कर सकते हैं : “जो मुझे मारता है और जीवित करता है।”
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱلَّذِيٓ أَطۡمَعُ أَن يَغۡفِرَ لِي خَطِيٓـَٔتِي يَوۡمَ ٱلدِّينِ                                          82                                                                     
                             
                            
                                और वही है जिससे मुझे इसकी आशा है कि बदला दिए जाने के दिन वह मेरी ख़ता माफ़ कर देगा॥82॥
                            
                         
                                            
                            
                                رَبِّ هَبۡ لِي حُكۡمٗا وَأَلۡحِقۡنِي بِٱلصَّٰلِحِينَ                                          83                                                                     
                             
                            
                                ऐ मेरे रब! मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान कर और मुझे नेक (भले) लोगों के साथ मिला। ॥83॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱجۡعَل لِّي لِسَانَ صِدۡقٖ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ                                          84                                                                     
                             
                            
                                और बाद के आनेवालों में मुझे सच्ची ख़्याति प्रदान कर॥84॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱجۡعَلۡنِي مِن وَرَثَةِ جَنَّةِ ٱلنَّعِيمِ                                          85                                                                     
                             
                            
                                और मुझे नेमतों भरी जन्नत के वारिसों में सम्मिलित कर॥85॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱغۡفِرۡ لِأَبِيٓ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ                                          86                                                                     
                             
                            
                                और मेरे बाप को क्षमा कर दे। निश्चय ही वह पथभ्रष्ट लोगों में से है॥86॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَا تُخۡزِنِي يَوۡمَ يُبۡعَثُونَ                                          87                                                                     
                             
                            
                                और मुझे उस दिन रुसवा न कर जब लोग जीवित करके उठाए जाएँगे। ॥87॥
                            
                         
                                            
                            
                                يَوۡمَ لَا يَنفَعُ مَالٞ وَلَا بَنُونَ                                          88                                                                     
                             
                            
                                जिस दिन न माल काम आएगा और न औलाद,॥88॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِلَّا مَنۡ أَتَى ٱللَّهَ بِقَلۡبٖ سَلِيمٖ                                          89                                                                     
                             
                            
                                सिवाय इसके कि कोई भला-चंगा दिल लिए हुए अल्लाह के पास आया हो।"॥89॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَأُزۡلِفَتِ ٱلۡجَنَّةُ لِلۡمُتَّقِينَ                                          90                                                                     
                             
                            
                                और डर रखनेवालों के लिए जन्नत निकट लाई जाएगी॥90॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَبُرِّزَتِ ٱلۡجَحِيمُ لِلۡغَاوِينَ                                          91                                                                     
                             
                            
                                और भड़कती आग पथभ्रष्ट लोगों के लिए प्रकट कर दी जाएगी॥91॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَقِيلَ لَهُمۡ أَيۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡبُدُونَ                                          92                                                                     
                             
                            
                                और उनसे कहा जाएगा, "कहाँ हैं वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते रहे हो? ॥92॥
                            
                         
                                            
                            
                                مِن دُونِ ٱللَّهِ هَلۡ يَنصُرُونَكُمۡ أَوۡ يَنتَصِرُونَ                                          93                                                                     
                             
                            
                                क्या वे तुम्हारी कुछ सहायता कर रहे हैं या अपना ही बचाव कर सकते हैं?"॥93॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَكُبۡكِبُواْ فِيهَا هُمۡ وَٱلۡغَاوُۥنَ                                          94                                                                     
                             
                            
                                फिर वे उसमें औंधे झोंक दिए जाएँगे, वे और बहके हुए लोग॥94॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَجُنُودُ إِبۡلِيسَ أَجۡمَعُونَ                                          95                                                                     
                             
                            
                                और इबलीस की सेनाएँ, सब के सब। ॥95॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ وَهُمۡ فِيهَا يَخۡتَصِمُونَ                                          96                                                                     
                             
                            
                                वे वहाँ आपस में झगड़ते हुए कहेंगे,॥96॥
                            
                         
                                            
                            
                                تَٱللَّهِ إِن كُنَّا لَفِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ                                          97                                                                     
                             
                            
                                "अल्लाह की क़सम! निश्चय ही हम खुली गुमराही में थे,॥97॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ نُسَوِّيكُم بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          98                                                                     
                             
                            
                                जबकि हम तुम्हें सारे संसार के रब के बराबर ठहरा रहे थे॥98॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَضَلَّنَآ إِلَّا ٱلۡمُجۡرِمُونَ                                          99                                                                     
                             
                            
                                और हमें तो बस उन अपराधियों ने ही पथभ्रष्ट किया॥99॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَمَا لَنَا مِن شَٰفِعِينَ                                          100                                                                     
                             
                            
                                अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है, ॥100॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَا صَدِيقٍ حَمِيمٖ                                          101                                                                     
                             
                            
                                और न घनिष्ट मित्र॥101॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَلَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةٗ فَنَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ                                          102                                                                     
                             
                            
                                क्या ही अच्छा होता कि हमें एक बार फिर पलटना होता तो हम मोमिनों में से हो जाते!"॥102॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          103                                                                     
                             
                            
                                निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकरतर माननेवाले नहीं॥103॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          104                                                                     
                             
                            
                                और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥104॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَّبَتۡ قَوۡمُ نُوحٍ ٱلۡمُرۡسَلِينَ                                          105                                                                     
                             
                            
                                नूह की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया;॥105॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ                                          106                                                                     
                             
                            
                                जबकि उनसे उनके भाई नूह ने कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?॥106॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ                                          107                                                                     
                             
                            
                                निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ॥107॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          108                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह का डर रखो और मेरा कहा मानो॥108॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          109                                                                     
                             
                            
                                और मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है॥109॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          110                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो।"॥110॥
                            
                         
                                            
                            
                                ۞قَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ لَكَ وَٱتَّبَعَكَ ٱلۡأَرۡذَلُونَ                                          111                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "क्या हम तेरी बात मान लें, जबकि तेरे पीछे तो अत्यन्त नीच लोग चल रहे हैं?"॥111॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ وَمَا عِلۡمِي بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ                                          112                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "मुझे क्या मालूम कि वे क्या करते रहे हैं? ॥112॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنۡ حِسَابُهُمۡ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّيۖ لَوۡ تَشۡعُرُونَ                                          113                                                                     
                             
                            
                                उनका हिसाब तो बस मेरे रब के ज़िम्मे है। क्या ही अच्छा होता कि तुममें चेतना होती। ॥113॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ                                          114                                                                     
                             
                            
                                और मैं ईमानवालों को धुत्कारनेवाला नहीं हूँ।॥114॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنۡ أَنَا۠ إِلَّا نَذِيرٞ مُّبِينٞ                                          115                                                                     
                             
                            
                                मैं तो बस स्पष्ट रूप से एक सावधान करनेवाला हूँ।"॥115॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ لَئِن لَّمۡ تَنتَهِ يَٰنُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمَرۡجُومِينَ                                          116                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "यदि तू बाज़ न आया, ऐ नूह, तो तू संगसार1 होकर रहेगा।"॥116॥
———————
1. अर्थात् पथराव करके मार डाला जाएगा।
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوۡمِي كَذَّبُونِ                                          117                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मेरी क़ौम के लोगों ने तो मुझे झुठला दिया॥117॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱفۡتَحۡ بَيۡنِي وَبَيۡنَهُمۡ فَتۡحٗا وَنَجِّنِي وَمَن مَّعِيَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ                                          118                                                                     
                             
                            
                                अब मेरे और उनके बीच दो टूक फ़ैसला कर दे और मुझे और जो ईमानवाले मेरे साथ हैं उन्हें बचा ले!"॥118॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَنجَيۡنَٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ فِي ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ                                          119                                                                     
                             
                            
                                अतः हमने उसे और जो उसके साथ भरी हुई नाव में थे बचा लिया॥119॥
                            
                         
                                            
                            
                                ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا بَعۡدُ ٱلۡبَاقِينَ                                          120                                                                     
                             
                            
                                और उसके बाद शेष लोगों को डूबो दिया॥120॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          121                                                                     
                             
                            
                                निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥121॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          122                                                                     
                             
                            
                                और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥122॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَّبَتۡ عَادٌ ٱلۡمُرۡسَلِينَ                                          123                                                                     
                             
                            
                                आद ने रसूलों को झूठलाया॥123॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ                                          124                                                                     
                             
                            
                                जबकि उनके भाई हूद ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?॥124॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ                                          125                                                                     
                             
                            
                                मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ॥125॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          126                                                                     
                             
                            
                                अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा मानो॥126॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          127                                                                     
                             
                            
                                मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है।॥127॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَتَبۡنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ ءَايَةٗ تَعۡبَثُونَ                                          128                                                                     
                             
                            
                                क्या तुम प्रत्येक उच्च स्थान पर व्यर्थ एक स्मारक का निर्माण करते रहोगे?॥128॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمۡ تَخۡلُدُونَ                                          129                                                                     
                             
                            
                                और भव्य महल बनाते रहोगे, मानो तुम्हें सदैव रहना है?॥129॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِذَا بَطَشۡتُم بَطَشۡتُمۡ جَبَّارِينَ                                          130                                                                     
                             
                            
                                और जब किसी पर हाथ डालते हो तो बिलकुल निर्दयी अत्याचारी बनकर हाथ डालते हो!॥130॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          131                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो॥131॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱتَّقُواْ ٱلَّذِيٓ أَمَدَّكُم بِمَا تَعۡلَمُونَ                                          132                                                                     
                             
                            
                                उसका डर रखो जिसने तुम्हें वे चीज़े पहुँचाई जिनको तुम जानते हो॥132॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَمَدَّكُم بِأَنۡعَٰمٖ وَبَنِينَ                                          133                                                                     
                             
                            
                                उसने तुम्हारी सहायता की चौपायों और बेटों से,॥133॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَجَنَّٰتٖ وَعُيُونٍ                                          134                                                                     
                             
                            
                                और बाग़ों और स्रोतों से॥134॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ                                          135                                                                     
                             
                            
                                निश्चय ही मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।"॥135॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡنَآ أَوَعَظۡتَ أَمۡ لَمۡ تَكُن مِّنَ ٱلۡوَٰعِظِينَ                                          136                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "हमारे लिए बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत न करो। ॥136॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا خُلُقُ ٱلۡأَوَّلِينَ                                          137                                                                     
                             
                            
                                यह तो बस पहले लोगों की पुरानी आदत है॥137॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ                                          138                                                                     
                             
                            
                                और हमें कदापि यातना न दी जाएगी।"॥138॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَكَذَّبُوهُ فَأَهۡلَكۡنَٰهُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          139                                                                     
                             
                            
                                अन्ततः उन्होंने उन्हें झुठला दिया तो हमने उनको विनष्ट कर दिया। बेशक इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥139॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          140                                                                     
                             
                            
                                और बेशक तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥140॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَّبَتۡ ثَمُودُ ٱلۡمُرۡسَلِينَ                                          141                                                                     
                             
                            
                                समूद ने रसूलों को झुठलाया,॥141॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ صَٰلِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ                                          142                                                                     
                             
                            
                                जबकि उनके भाई सालेह ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?॥142॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ                                          143                                                                     
                             
                            
                                निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ॥143॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          144                                                                     
                             
                            
                                अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो॥144॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          145                                                                     
                             
                            
                                मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है॥145॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَتُتۡرَكُونَ فِي مَا هَٰهُنَآ ءَامِنِينَ                                          146                                                                     
                             
                            
                                क्या तुम यहाँ जो कुछ है उसके बीच, निश्चिन्त छोड़ दिए जाओगे,॥146॥
                            
                         
                                            
                            
                                فِي جَنَّٰتٖ وَعُيُونٖ                                          147                                                                     
                             
                            
                                बाग़ों और स्रोतों॥147॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَزُرُوعٖ وَنَخۡلٖ طَلۡعُهَا هَضِيمٞ                                          148                                                                     
                             
                            
                                और खेतों और उन खजूरों में जिनके गुच्छे तरो-ताज़ा और गुँथे हुए हैं?॥148॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَتَنۡحِتُونَ مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُيُوتٗا فَٰرِهِينَ                                          149                                                                     
                             
                            
                                तुम पहाड़ों को काट-काटकर इतराते हुए घर बनाते हो?॥149॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          150                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो॥150॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَا تُطِيعُوٓاْ أَمۡرَ ٱلۡمُسۡرِفِينَ                                          151                                                                     
                             
                            
                                और उन हद से गुज़र जानेवालों की आज्ञा का पालन न करो ॥151॥
                            
                         
                                            
                            
                                ٱلَّذِينَ يُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا يُصۡلِحُونَ                                          152                                                                     
                             
                            
                                जो धरती में बिगाड़ पैदा करते है, और सुधार का काम नहीं करते।"॥152॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُوٓاْ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلۡمُسَحَّرِينَ                                          153                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "तू तो बस जादू का मारा हुआ है।॥153॥
                            
                         
                                            
                            
                                مَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُنَا فَأۡتِ بِـَٔايَةٍ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ                                          154                                                                     
                             
                            
                                तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है। यदि तू सच्चा है तो कोई निशानी ले आ।"॥154॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ هَٰذِهِۦ نَاقَةٞ لَّهَا شِرۡبٞ وَلَكُمۡ شِرۡبُ يَوۡمٖ مَّعۡلُومٖ                                          155                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "यह ऊँटनी है। एक दिन पानी पीने की बारी इसकी है और एक नियत दिन की बारी पानी लेने की बारी तुम्हारी है॥155॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوٓءٖ فَيَأۡخُذَكُمۡ عَذَابُ يَوۡمٍ عَظِيمٖ                                          156                                                                     
                             
                            
                                तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना अन्यथा एक बड़े दिन की यातना तुम्हें आ लेगी।"॥156॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَعَقَرُوهَا فَأَصۡبَحُواْ نَٰدِمِينَ                                          157                                                                     
                             
                            
                                किन्तु उन्होंने उसकी कूचें काट दीं। फिर पछताते रह गए॥157॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَخَذَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          158                                                                     
                             
                            
                                अन्ततः यातना ने उन्हें आ दबोचा। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥158॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          159                                                                     
                             
                            
                                और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयाशील है॥159॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطٍ ٱلۡمُرۡسَلِينَ                                          160                                                                     
                             
                            
                                लूत की क़ौम के लोगों ने रसूलों को झुठलाया;॥160॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ                                          161                                                                     
                             
                            
                                जबकि उनके भाई लूत ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?॥161॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ                                          162                                                                     
                             
                            
                                मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ॥162॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          163                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो॥163॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          164                                                                     
                             
                            
                                मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता, मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है॥164॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَتَأۡتُونَ ٱلذُّكۡرَانَ مِنَ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          165                                                                     
                             
                            
                                क्या सारे संसारवालों में से तुम ही ऐसे हो जो पुरुषों के पास जाते हो,॥165॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمۡ رَبُّكُم مِّنۡ أَزۡوَٰجِكُمۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٌ عَادُونَ                                          166                                                                     
                             
                            
                                और अपनी पत्नियों को, जिन्हें तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए पैदा किया, छोड़ देते हो? इतना ही नहीं, बल्कि तुम हद से आगे बढ़े हुए लोग हो।"॥166॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُواْ لَئِن لَّمۡ تَنتَهِ يَٰلُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُخۡرَجِينَ                                          167                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "यदि तू बाज़ न आया तो ऐ लतू! तू अवश्य ही निकाल बाहर किया जाएगा।"॥167॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ إِنِّي لِعَمَلِكُم مِّنَ ٱلۡقَالِينَ                                          168                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, "मैं तुम्हारे कर्म से अत्यन्त विरक्त हूँ।॥168॥
                            
                         
                                            
                            
                                رَبِّ نَجِّنِي وَأَهۡلِي مِمَّا يَعۡمَلُونَ                                          169                                                                     
                             
                            
                                ऐ मेरे रब! मुझे और मेरे लोगों को, जो कुछ ये करते हैं उसके परिणाम से बचा ले।"॥169॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ                                          170                                                                     
                             
                            
                                अन्ततः हमने उसे और उसके सारे लोगों को बचा लिया, ॥170॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِلَّا عَجُوزٗا فِي ٱلۡغَٰبِرِينَ                                          171                                                                     
                             
                            
                                सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में थी॥171॥
                            
                         
                                            
                            
                                ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ                                          172                                                                     
                             
                            
                                फिर शेष दूसरे लोगों को हमने विनष्ट कर दिया।॥172॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَأَمۡطَرۡنَا عَلَيۡهِم مَّطَرٗاۖ فَسَآءَ مَطَرُ ٱلۡمُنذَرِينَ                                          173                                                                     
                             
                            
                                और हमने उनपर एक बरसात बरसाई। और यह चेताए हुए लोगों पर बहुत ही बुरी वर्षा थी॥173॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          174                                                                     
                             
                            
                                निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥174॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          175                                                                     
                             
                            
                                और निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥175॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَّبَ أَصۡحَٰبُ لۡـَٔيۡكَةِ ٱلۡمُرۡسَلِينَ                                          176                                                                     
                             
                            
                                अल-ऐकावालों ने रसूलों को झुठलाया॥176॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِذۡ قَالَ لَهُمۡ شُعَيۡبٌ أَلَا تَتَّقُونَ                                          177                                                                     
                             
                            
                                जबकि शुऐब ने उनसे कहा, "क्या तुम डर नहीं रखते?॥177॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ                                          178                                                                     
                             
                            
                                मैं तो तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ॥178॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ                                          179                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो॥179॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          180                                                                     
                             
                            
                                मैं इस काम पर तुमसे कोई प्रतिदान नहीं माँगता। मेरा प्रतिदान तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है॥180॥
                            
                         
                                            
                            
                                ۞أَوۡفُواْ ٱلۡكَيۡلَ وَلَا تَكُونُواْ مِنَ ٱلۡمُخۡسِرِينَ                                          181                                                                     
                             
                            
                                तुम पूरा-पूरा पैमाना भरो और घाटा न दो॥181॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَزِنُواْ بِٱلۡقِسۡطَاسِ ٱلۡمُسۡتَقِيمِ                                          182                                                                     
                             
                            
                                और ठीक तराज़ू से तौलो॥182॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَا تَبۡخَسُواْ ٱلنَّاسَ أَشۡيَآءَهُمۡ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِينَ                                          183                                                                     
                             
                            
                                और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ और फ़साद मचाते मत फिरो॥183॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱتَّقُواْ ٱلَّذِي خَلَقَكُمۡ وَٱلۡجِبِلَّةَ ٱلۡأَوَّلِينَ                                          184                                                                     
                             
                            
                                उसका डर रखो जिसने तुम्हें और पिछली नस्लों को पैदा किया है।"॥184॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالُوٓاْ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلۡمُسَحَّرِينَ                                          185                                                                     
                             
                            
                                उन्होंने कहा, "तू तो बस जादू का मारा हुआ है॥185॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُنَا وَإِن نَّظُنُّكَ لَمِنَ ٱلۡكَٰذِبِينَ                                          186                                                                     
                             
                            
                                और तू बस हमारे ही जैसा एक आदमी है और हम तो तुझे झूठा समझते हैं॥186॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَأَسۡقِطۡ عَلَيۡنَا كِسَفٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ                                          187                                                                     
                             
                            
                                फिर तू हम पर आकाश को कोई टुकड़ा गिरा दे यदि तू सच्चा है।"॥187॥
                            
                         
                                            
                            
                                قَالَ رَبِّيٓ أَعۡلَمُ بِمَا تَعۡمَلُونَ                                          188                                                                     
                             
                            
                                उसने कहा, " मेरा रब भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम कर रहे हो।"॥188॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمۡ عَذَابُ يَوۡمِ ٱلظُّلَّةِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٍ                                          189                                                                     
                             
                            
                                किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। फिर छायावाले दिन1 की यातना ने उन्हें आ लिया। निश्चय ही वह एक बड़े दिन की यातना थी॥189॥
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1. यातना छाया अर्थात् बादलों के रूप में प्रकट हुई थी।
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ                                          190                                                                     
                             
                            
                                निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं॥190॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ                                          191                                                                     
                             
                            
                                और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है॥191॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّهُۥ لَتَنزِيلُ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ                                          192                                                                     
                             
                            
                                निश्चय ही यह (क़ुरआन) सारे संसार के रब की अवतरित की हुई चीज़ है॥192॥
                            
                         
                                            
                            
                                نَزَلَ بِهِ ٱلرُّوحُ ٱلۡأَمِينُ                                          193                                                                     
                             
                            
                                इसको स्पष्ट अरबी भाषा में लेकर तुम्हारे हृदय पर एक विश्वसनीय आत्मा उतरी है, ॥193-194॥
                            
                         
                                            
                            
                                عَلَىٰ قَلۡبِكَ لِتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُنذِرِينَ                                          194                                                                     
                             
                            
                                ताकि तुम सावधान करनेवाले बनो॥195॥
                            
                         
                                            
                            
                                بِلِسَانٍ عَرَبِيّٖ مُّبِينٖ                                          195                                                                     
                             
                            
                                खुली अरबी भाषा में।
                            
                         
                                            
                            
                                وَإِنَّهُۥ لَفِي زُبُرِ ٱلۡأَوَّلِينَ                                          196                                                                     
                             
                            
                                और निस्संदेह यह पिछले लोगों की किताबों में भी मौजूद है॥196॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَوَلَمۡ يَكُن لَّهُمۡ ءَايَةً أَن يَعۡلَمَهُۥ عُلَمَٰٓؤُاْ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ                                          197                                                                     
                             
                            
                                क्या यह उनके लिए कोई निशानी नहीं है कि इसे बनी-इसराईल के विद्वान जानते हैं?॥197॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَلَوۡ نَزَّلۡنَٰهُ عَلَىٰ بَعۡضِ ٱلۡأَعۡجَمِينَ                                          198                                                                     
                             
                            
                                यदि हम इसे ग़ैर-अरबी भाषी पर उतारते,॥198॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَقَرَأَهُۥ عَلَيۡهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ مُؤۡمِنِينَ                                          199                                                                     
                             
                            
                                और वह इसे उन्हें पढ़कर सुनाता तब भी वे इसे माननेवाले न होते॥199॥
                            
                         
                                            
                            
                                كَذَٰلِكَ سَلَكۡنَٰهُ فِي قُلُوبِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ                                          200                                                                     
                             
                            
                                इसी प्रकार हमने इसे अपराधियों के दिलों में पैठाया है॥200॥
                            
                         
                                            
                            
                                لَا يُؤۡمِنُونَ بِهِۦ حَتَّىٰ يَرَوُاْ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِيمَ                                          201                                                                     
                             
                            
                                वे इसपर ईमान लाने को नहीं, जब तक कि दुखद यातना न देख लें॥201॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَيَأۡتِيَهُم بَغۡتَةٗ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ                                          202                                                                     
                             
                            
                                फिर जब वह अचानक उनपर आ जाएगी और उन्हें ख़बर भी न होगी,॥202॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَيَقُولُواْ هَلۡ نَحۡنُ مُنظَرُونَ                                          203                                                                     
                             
                            
                                तब वे कहेंगे, "क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है?"॥203॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَفَبِعَذَابِنَا يَسۡتَعۡجِلُونَ                                          204                                                                     
                             
                            
                                तो क्या वे लोग हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे हैं?॥204॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَفَرَءَيۡتَ إِن مَّتَّعۡنَٰهُمۡ سِنِينَ                                          205                                                                     
                             
                            
                                क्या तुमने कुछ विचार किया? यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें;॥205॥
                            
                         
                                            
                            
                                ثُمَّ جَآءَهُم مَّا كَانُواْ يُوعَدُونَ                                          206                                                                     
                             
                            
                                फिर उनपर वह चीज़ आ जाए जिससे उन्हें डराया जा रहा है;॥206॥
                            
                         
                                            
                            
                                مَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يُمَتَّعُونَ                                          207                                                                     
                             
                            
                                तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह उनके कुछ काम न आएगा॥207॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَآ أَهۡلَكۡنَا مِن قَرۡيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنذِرُونَ                                          208                                                                     
                             
                            
                                हमने किसी बस्ती को भी इसके बिना विनष्ट नहीं किया कि उसके लिए सचेत करनेवाले याददिहानी के लिए मौजूद रहे हैं। ॥208॥
                            
                         
                                            
                            
                                ذِكۡرَىٰ وَمَا كُنَّا ظَٰلِمِينَ                                          209                                                                     
                             
                            
                                हम कोई ज़ालिम नहीं हैं॥209॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَا تَنَزَّلَتۡ بِهِ ٱلشَّيَٰطِينُ                                          210                                                                     
                             
                            
                                इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं,।॥210॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَمَا يَنۢبَغِي لَهُمۡ وَمَا يَسۡتَطِيعُونَ                                          211                                                                     
                             
                            
                                न यह उन्हें फबता ही है, और न यह उनके बस का ही है॥211॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّمۡعِ لَمَعۡزُولُونَ                                          212                                                                     
                             
                            
                                वे तो इसके सुनने से भी दूर रखे गए हैं॥212॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَلَا تَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُعَذَّبِينَ                                          213                                                                     
                             
                            
                                अतः अल्लाह के साथ दूसरे इष्ट-पूज्य को न पुकारना, अन्यथा तुम्हें भी यातना दी जाएगी॥213॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَأَنذِرۡ عَشِيرَتَكَ ٱلۡأَقۡرَبِينَ                                          214                                                                     
                             
                            
                                और अपने निकटतम नातेदारों को सचेत करो॥214॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱخۡفِضۡ جَنَاحَكَ لِمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ                                          215                                                                     
                             
                            
                                और जो ईमानवाले तुम्हारे अनुयायी हो गए हैं, उनके लिए अपनी भुजाएँ बिछाए रखो॥215॥
                            
                         
                                            
                            
                                فَإِنۡ عَصَوۡكَ فَقُلۡ إِنِّي بَرِيٓءٞ مِّمَّا تَعۡمَلُونَ                                          216                                                                     
                             
                            
                                किन्तु यदि वे तुम्हारी अवज्ञा करें तो कह दो, "जो कुछ तुम करते हो उसकी ज़िम्मेदारी से मैं बरी हूँ।"॥216॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱلۡعَزِيزِ ٱلرَّحِيمِ                                          217                                                                     
                             
                            
                                और उस प्रभुत्वशाली और दया करनेवाले पर भरोसा रखो॥217॥
                            
                         
                                            
                            
                                ٱلَّذِي يَرَىٰكَ حِينَ تَقُومُ                                          218                                                                     
                             
                            
                                जो तुम्हें देख रहा होता है जब तुम खड़े होते हो॥218॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَتَقَلُّبَكَ فِي ٱلسَّٰجِدِينَ                                          219                                                                     
                             
                            
                                और सजदा करनेवालों में तुम्हारी चलत-फिरत को भी वह देखता है॥219॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ                                          220                                                                     
                             
                            
                                निस्संदेह वह भली-भाँति सुनता-जानता है॥220॥
                            
                         
                                            
                            
                                هَلۡ أُنَبِّئُكُمۡ عَلَىٰ مَن تَنَزَّلُ ٱلشَّيَٰطِينُ                                          221                                                                     
                             
                            
                                क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किसपर उतरते हैं?॥221॥
                            
                         
                                            
                            
                                تَنَزَّلُ عَلَىٰ كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٖ                                          222                                                                     
                             
                            
                                वे प्रत्येक ढोंग रचनेवाले गुनाहगार पर उतरते हैं॥222॥
                            
                         
                                            
                            
                                يُلۡقُونَ ٱلسَّمۡعَ وَأَكۡثَرُهُمۡ كَٰذِبُونَ                                          223                                                                     
                             
                            
                                वे कान लगाते हैं और उनमें से अधिकतर झूठे होते हैं॥223॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَٱلشُّعَرَآءُ يَتَّبِعُهُمُ ٱلۡغَاوُۥنَ                                          224                                                                     
                             
                            
                                रहे कवि, तो उनके पीछे बहके हुए लोग ही चला करते हैं।—॥224॥
                            
                         
                                            
                            
                                أَلَمۡ تَرَ أَنَّهُمۡ فِي كُلِّ وَادٖ يَهِيمُونَ                                          225                                                                     
                             
                            
                                क्या तुमने देखा नहीं कि वे हर घाटी में बहके फिरते हैं,॥225॥
                            
                         
                                            
                            
                                وَأَنَّهُمۡ يَقُولُونَ مَا لَا يَفۡعَلُونَ                                          226                                                                     
                             
                            
                                और कहते वह हैं जो करते नहीं? — ॥226॥
                            
                         
                                            
                            
                                إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَذَكَرُواْ ٱللَّهَ كَثِيرٗا وَٱنتَصَرُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا ظُلِمُواْۗ وَسَيَعۡلَمُ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ أَيَّ مُنقَلَبٖ يَنقَلِبُونَ                                          227                                                                     
                             
                            
                                वे नहीं जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अल्लाह को अधिक याद किया। और इसके बाद कि उनपर ज़ुल्म किया गया तो उन्होंने उसका प्रतिकार किया, और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा कि वे किस जगह पलटते हैं॥227॥