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سُورَةُ النَّجۡمِ

53. अन-नज्म

(मक्का में उतरी, आयतें 62)

परिचय

नाम

पहले ही शब्द ‘वन-नज्म' (क़सम है तारे की) से लिया गया है और केवल प्रतीक के रूप में इसे इस सूरा का नाम दिया गया है।

उतरने का समय

हजरत अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि०) की रिवायत है कि "पहली सूरा, जिसमें सजदे की आयत उतरी, अन-नज्म है।" साथ ही यह कि यह क़ुरआन मजीद की वह पहली सूरा है जिसे अल्लाह के रसूल (सल्ल०) क़ुरैश के एक जन-समूह में (और इब्‍ने-मर्दूया की रिवायत के अनुसार काबा में) सुनाया था। जन-समूह में काफ़िर और मोमिन सब मौजूद थे। आख़िर में जब आपने सजदे की आयत पढ़कर सजदा किया तो तमाम उपस्थित लोग आप (सल्ल०) के साथ सजदे में गिर गए और बहुदेववादियों के वे बड़े-बड़े सरदार तक, जो विरोध में आगे-आगे थे, सजदा किए बिना न रह सके। इब्‍ने-सअद का बयान है कि इससे पहले रजब सन् 05 नबवी में सहाबा किराम की एक छोटी-सी जमाअत हबशा की ओर हिजरत कर चुकी थी। फिर जब उसी साल रमज़ान में यह घटना घटित हुई तो हबशा के मुहाजिरों तक यह क़िस्सा इस रूप में पहुँचा कि मक्का के इस्लाम-विरोधी मुसलमान हो गए हैं। इस ख़बर को सुनकर उनमें से कुछ लोग शव्वाल सन् 05 नबवी में मक्का वापस आ गए, मगर यहाँ आकर मालूम हुआ कि ज़ुल्म की चक्की उसी तरह चल रही है जिस तरह पहले चल रही थी। अन्ततः हबशा को दूसरी हिजरत घटित हुई जिसमें पहली हिजरत से भी अधिक लोग मक्का छोड़कर चले गए। इस तरह यह बात लगभग निश्चित रूप से मालूम हो जाती है कि यह सूरा रमज़ान 05 नबवी में उतरी है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

उतरने के समय के इस विवरण से मालूम हो जाता है कि वे परिस्थितियाँ क्या थीं जिनमें यह सूरा उतरी। [मक्का के इस्लाम-विरोधियों की बराबर यह कोशिश रहती थी कि] ईश्वरीय वाणी को न ख़ुद सुनें, न किसी को सुनने दें और उसके विरुद्ध तरह-तरह की भ्रामक बातें फैलाकर सिर्फ़ अपने झूठे प्रोपगंडे के बल पर आप (सल्ल०) की दावत (आह्‍वान) को दबा दें। इन्हीं परिस्थितियों में एक दिन पवित्र हरम (काबा) में जब यह घटना घटी कि नबी (सल्ल०) की ज़बान से इस सूरा नज्म को सुनकर आप (सल्ल०) के साथ क़ुरैश के इस्लाम विरोधी भी सजदे में गिर गए, तो बाद में उन्हें बड़ी परेशानी हुई कि यह हमसे क्या कमज़ोरी ज़ाहिर हुई। और लोगों ने भी इसके कारण उनपर चोटें करनी शुरू कर दी कि दूसरों को तो इस वाणी को सुनने से मना करते थे, आज ख़ुद उसे न सिर्फ़ यह कि कान लगाकर सुना, बल्कि मुहम्मद (सल्ल०) के साथ सजदे में भी गिर गए। अन्तत: उन्होंने यह बात बनाकर अपना पीछा छुड़ाया कि साहब! हमारे कानों ने तो "अब तनिक बताओ तुमने कभी इस 'लात' और 'उज़्ज़ा' और तीसरी एक देवी 'मनात' की वास्तविकता पर कुछ विचार भी किया है?" के बाद मुहम्मद (सल्ल०) की ज़बान से ये शब्द सुने थे, "ये ऊच्च कोटी की देवियाँ हैं और इनकी सिफ़ारिश की अवश्य आशा की जा सकती है।" इसलिए हमने समझा कि मुहम्मद (सल्ल०) हमारे तरीक़े पर वापस आ गए हैं, हालाँकि कोई पागल आदमी ही यह सोच सकता था कि इस पूरी सूरा के संदर्भ में उन वाक्यों की भी कोई जगह हो सकती है जो उनका दावा था कि उनके कानों ने सुने हैं। (अधिक जानकारी के लिए देखें, सूरा-22 अल-हज्ज, टिप्पणी 96-101)

विषय और वार्ता

व्याख्यान का विषय मक्का के इस्लाम-विरोधियों को उस नीति की ग़लती पर सावधान करना है जो वे क़ुरआन और मुहम्मद (सल्ल०) के सिलसिले में अपनाए हुए थे। वार्ता इस तरह आरंभ हुई है कि मुहम्मद (सल्ल०) बहके और भटके हुए आदमी नहीं हैं, जैसा कि तुम उनके बारे में प्रचार करते फिर रहे हो और न इस्लाम की यह शिक्षा और आमंत्रण उन्होंने स्वयं अपने दिल से घड़ा है, जैसा कि तुम अपनी दृष्टि में समझे बैठे हो, बल्कि जो कुछ वे पेश कर रहे हैं, वह विशुद्ध वह्य (प्रकाशना) है जो उनपर अवतरित की जाती है। जिन सच्चाइयों को वे तुम्हारे सामने बयान करते हैं, वे उनकी अपनी कल्पना और अन्दाज़े की उपज नहीं हैं, बल्कि उनकी आँखों देखी सच्चाइयाँ हैं। इसके बाद क्रमश: तीन विषय लिए गए हैं—

एक, यह कि सुननेवालों को समझाया गया है कि जिस दीन (धर्म) का तुम अनुसरण कर रहे हो, उसका आधार केवल अटकल और मनमानी कल्पनाओं पर स्थिर है। तुमने जो अक़ीदे (धारणाएँ) अपना रखे हैं, उनमें से कोई अक़ीदा भी किसी ज्ञान और प्रमाण पर आधारित नहीं है, बल्कि कुछ इच्छाएँ हैं जिनके लिए तुम कुछ कतिपय अंधविश्वासों को सच्चाई समझ बैठे हो। यह एक बहुत बड़ी बुनियादी ग़लती है जिसमें तुम लोग पड़े हुए हो। इस ग़लती में तुम्हारे पड़ने का मूल कारण यह है कि तुम्हें आख़िरत की कोई चिन्ता नहीं है, बस दुनिया ही तुम्हारी अभीष्ट बनी हुई है, इसलिए तुम्हें सत्य के ज्ञान की कोई चाह नहीं है।

दूसरा, यह कि लोगों को यह बताया गया है कि अल्लाह ही सम्पूर्ण जगत् का मालिक एवं सर्वाधिकारी है। सीधे रास्ते पर वह है जो उसके रास्ते पर हो और गुमराह वह जो उसकी राह से हटा हुआ हो।हर एक के कर्म को वह जानता है और उसके यहाँ अनिवार्य रूप से बुराई का बदला बुरा और भलाई का बदला भला मिलकर रहना है।

तीसरा, यह कि सत्य धर्म के उन कुछ आधारभूत तथ्यों को लोगों के सामने प्रस्तुत किया गया है जो क़ुरआन मजीद के अवतरण से सैकड़ों वर्ष पहले हज़रत इबराहीम और हज़रत मूसा (अलैहि०) पर अवतरित धर्म-ग्रंथों में बयान हो चुके थे, ताकि उनको मालूम हो जाए कि ये वे आधारभूत तथ्य हैं जो हमेशा से अल्लाह के नबी बयान करते चले आए हैं।

इन वार्ताओं के बाद अभिभाषण को इस बात पर समाप्त किया गया है कि फ़ैसले की घड़ी क़रीब आ लगी है जिसे कोई टालनेवाला नहीं है। उस घड़ी के आने से पहले मुहम्मद (सल्ल०) और क़ुरआन मजीद के द्वारा तुम लोगों को उसी तरह सचेत किया जा रहा है, जिस तरह पहले लोगों को सचेत किया गया था। अब क्या यही वह बात है जो तुम्हें अनोखी लगी है, जिसकी तुम हँसी उड़ाते हो?

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سُورَةُ النَّجۡمِ
53. अन-नज्म
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान हैं।
وَٱلنَّجۡمِ إِذَا هَوَىٰ ۝ 1
गवाह है तारा, जब वह नीचे को आए।॥1॥
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمۡ وَمَا غَوَىٰ ۝ 2
तुम्हारी साथी (मुहम्मह) न गुमराह हुआ और न बहका;॥2॥
وَمَا يَنطِقُ عَنِ ٱلۡهَوَىٰٓ ۝ 3
और न वह अपनी इच्छा से बोलता है;॥3॥
إِنۡ هُوَ إِلَّا وَحۡيٞ يُوحَىٰ ۝ 4
वह तो बस एक प्रकाशना है जो की जा रही है।॥4॥
عَلَّمَهُۥ شَدِيدُ ٱلۡقُوَىٰ ۝ 5
उसे बड़ी शक्तियोंवाले ने सिखाया, ॥5॥
ذُو مِرَّةٖ فَٱسۡتَوَىٰ ۝ 6
स्थिर रीतिवाले ने।॥6॥
وَهُوَ بِٱلۡأُفُقِ ٱلۡأَعۡلَىٰ ۝ 7
अतः वह भरपूर हुआ, इस हाल में कि वह क्षितिज के उच्‍चतम छोर पर है।॥7॥
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّىٰ ۝ 8
फिर वह निकट हुआ और उतर गया।॥8॥
فَكَانَ قَابَ قَوۡسَيۡنِ أَوۡ أَدۡنَىٰ ۝ 9
अब दो कमानों के बराबर या उससे भी अधिक निकट हो गया।॥9॥
فَأَوۡحَىٰٓ إِلَىٰ عَبۡدِهِۦ مَآ أَوۡحَىٰ ۝ 10
तब उसने (अल्‍लाह ने) अपने बन्दे की ओर प्रकाशना की, जो कुछ भी प्रकाशना की।॥10॥
مَا كَذَبَ ٱلۡفُؤَادُ مَا رَأَىٰٓ ۝ 11
दिल ने कोई धोखा नहीं दिया जो कुछ उसने देखा;॥11॥
أَفَتُمَٰرُونَهُۥ عَلَىٰ مَا يَرَىٰ ۝ 12
अब क्या तुम उस चीज़ पर उससे झगड़ते हो जिसे वह देख रहा है? —॥12॥
وَلَقَدۡ رَءَاهُ نَزۡلَةً أُخۡرَىٰ ۝ 13
और निश्‍चय ही वह उसे एक बार और॥13॥
عِندَ سِدۡرَةِ ٱلۡمُنتَهَىٰ ۝ 14
सिदरतुल-मुन्तहा' (परली सीमा की बेरी) के पास उतरते देख चुका है।॥14॥
عِندَهَا جَنَّةُ ٱلۡمَأۡوَىٰٓ ۝ 15
उसी के निकट 'जन्‍नतुल-मावा' (ठिकानेवाली जन्‍नत) है। —॥15॥
إِذۡ يَغۡشَى ٱلسِّدۡرَةَ مَا يَغۡشَىٰ ۝ 16
जबकि छा रहा था उस बेरी पर, जो कुछ छा रहा था।॥16॥
مَا زَاغَ ٱلۡبَصَرُ وَمَا طَغَىٰ ۝ 17
निगाह न तो टेढ़ी हुई और न हद से आगे बढ़ी।॥17॥
لَقَدۡ رَأَىٰ مِنۡ ءَايَٰتِ رَبِّهِ ٱلۡكُبۡرَىٰٓ ۝ 18
निश्‍चय ही उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं।॥18॥
أَفَرَءَيۡتُمُ ٱللَّٰتَ وَٱلۡعُزَّىٰ ۝ 19
तो क्या तुमने लात और उज़्ज़ा॥19॥
وَمَنَوٰةَ ٱلثَّالِثَةَ ٱلۡأُخۡرَىٰٓ ۝ 20
और तीसरी एक और (देवी) मनात पर विचार किया?॥20॥
أَلَكُمُ ٱلذَّكَرُ وَلَهُ ٱلۡأُنثَىٰ ۝ 21
क्या तुम्हारे लिए तो बेटे हैं और उनके लिए बेटियाँ?॥21॥
تِلۡكَ إِذٗا قِسۡمَةٞ ضِيزَىٰٓ ۝ 22
तब तो यह बहुत बेढ़ंगा और अन्यायपूर्ण बँटवारा हुआ!॥22॥
إِنۡ هِيَ إِلَّآ أَسۡمَآءٞ سَمَّيۡتُمُوهَآ أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُم مَّآ أَنزَلَ ٱللَّهُ بِهَا مِن سُلۡطَٰنٍۚ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّ وَمَا تَهۡوَى ٱلۡأَنفُسُۖ وَلَقَدۡ جَآءَهُم مِّن رَّبِّهِمُ ٱلۡهُدَىٰٓ ۝ 23
वे तो बस कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। अल्लाह ने उनके लिए कोई सनद नहीं उतारी। वे तो केवल अटकल के पीछे चले रहे हैं, और उनके पीछे जो उनके मन की इच्छा होती हैं। हालाँकि उनके पास उनके रब की ओर से मार्गदर्शन आ चुका है।॥23॥
أَمۡ لِلۡإِنسَٰنِ مَا تَمَنَّىٰ ۝ 24
(क्या उनकी देवियाँ उन्हें लाभ पहुँचा सकती हैं) या मनुष्य वह कुछ पा लेगा जिसकी वह कामना करता है?॥24॥
فَلِلَّهِ ٱلۡأٓخِرَةُ وَٱلۡأُولَىٰ ۝ 25
आख़िरत और दुनिया का मालिक तो अल्लाह ही है।॥25॥
۞وَكَم مِّن مَّلَكٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ لَا تُغۡنِي شَفَٰعَتُهُمۡ شَيۡـًٔا إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ أَن يَأۡذَنَ ٱللَّهُ لِمَن يَشَآءُ وَيَرۡضَىٰٓ ۝ 26
आकाशों में कितने ही फ़रिश्ते हैं, उनकी सिफ़ारिश कुछ काम नहीं आएगी; यदि काम आ सकती है तो इसके बाद ही कि अल्लाह अनुमति दे जिसे चाहे और पसन्द करे। ॥26॥
إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ لَيُسَمُّونَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ تَسۡمِيَةَ ٱلۡأُنثَىٰ ۝ 27
जो लोग आख़िरत को नहीं मानते वे फ़रिश्तों को देवियों के नाम से अभिहित करते हैं, ॥27॥
وَمَا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمٍۖ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّۖ وَإِنَّ ٱلظَّنَّ لَا يُغۡنِي مِنَ ٱلۡحَقِّ شَيۡـٔٗا ۝ 28
हालाँकि इस विषय में उन्हें कोई ज्ञान नहीं। वे केवल अटकल के पीछे चलते हैं, हालाँकि सत्य से जो लाभ पहुँचता है वह अटकल से कदापि नहीं पहुँच सकता।॥28॥
فَأَعۡرِضۡ عَن مَّن تَوَلَّىٰ عَن ذِكۡرِنَا وَلَمۡ يُرِدۡ إِلَّا ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا ۝ 29
अतः तुम उसको ध्यान में न लाओ जो हमारे ज़िक्र से मुँह मोड़ता है और सांसारिक जीवन के सिवा उसने कुछ नहीं चाहा।॥29॥
ذَٰلِكَ مَبۡلَغُهُم مِّنَ ٱلۡعِلۡمِۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِۦ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَنِ ٱهۡتَدَىٰ ۝ 30
ऐसे लोगों के ज्ञान की पहुँच बस यहीं तक है। निश्‍चय ही तुम्हारा रब ही उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक गया, और वही उसे भी भली-भाँति जानता है जिसने सीधा मार्ग अपनाया।॥30॥
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ لِيَجۡزِيَ ٱلَّذِينَ أَسَٰٓـُٔواْ بِمَا عَمِلُواْ وَيَجۡزِيَ ٱلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ بِٱلۡحُسۡنَى ۝ 31
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है, ताकि जिन लोगों ने बुराई की वह उन्हें उनके किए का बदला दे और जिन लोगों ने भलाई की उन्हें अच्छा बदला दे;॥31॥
ٱلَّذِينَ يَجۡتَنِبُونَ كَبَٰٓئِرَ ٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡفَوَٰحِشَ إِلَّا ٱللَّمَمَۚ إِنَّ رَبَّكَ وَٰسِعُ ٱلۡمَغۡفِرَةِۚ هُوَ أَعۡلَمُ بِكُمۡ إِذۡ أَنشَأَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ وَإِذۡ أَنتُمۡ أَجِنَّةٞ فِي بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡۖ فَلَا تُزَكُّوٓاْ أَنفُسَكُمۡۖ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَنِ ٱتَّقَىٰٓ ۝ 32
वे लोग जो बड़े गुनाहों और अश्‍लील कर्मों से बचते हैं, यह और बात है कि किसी बुराई का ख़याल आ जाए या संयोगवश किसी छोटी बुराई पर पाँव पड़ जाए। निश्‍चय ही तुम्हारा रब क्षमाशीलता में बड़ा उदार है। वह तुम्हें उस समय से भली-भाँति जानता है जबकि उसने तुम्हें धरती से पैदा किया और जबकि तुम अपनी माँओं के पेटों में भ्रूण-अवस्था में थे। अतः अपने मन की पवित्रता और निखार का दावा न करो। वह उस व्यक्ति को भली-भाँति जानता है जिसने डर रखा।॥32॥
أَفَرَءَيۡتَ ٱلَّذِي تَوَلَّىٰ ۝ 33
क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जिसने मुँह फेरा, ॥33॥
وَأَعۡطَىٰ قَلِيلٗا وَأَكۡدَىٰٓ ۝ 34
और थोड़ा-सा देकर रुक गया;॥34॥
أَعِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلۡغَيۡبِ فَهُوَ يَرَىٰٓ ۝ 35
क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह देख रहा है;॥35॥
أَمۡ لَمۡ يُنَبَّأۡ بِمَا فِي صُحُفِ مُوسَىٰ ۝ 36
या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची जो मूसा की किताबों में है॥36॥
وَإِبۡرَٰهِيمَ ٱلَّذِي وَفَّىٰٓ ۝ 37
और इबराहीम की (किताबों में है), जिसने (अल्लाह की बन्दगी का) पूरा-पूरा हक़ अदा कर दिया?॥37॥
أَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰ ۝ 38
यह कि कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा;॥38॥
وَأَن لَّيۡسَ لِلۡإِنسَٰنِ إِلَّا مَا سَعَىٰ ۝ 39
और यह कि मनुष्य के लिए बस वही है जिसके लिए उसने प्रयास किया;॥39॥
وَأَنَّ سَعۡيَهُۥ سَوۡفَ يُرَىٰ ۝ 40
और यह कि उसका प्रयास शीघ्र ही देखा जाएगा। ॥40॥
ثُمَّ يُجۡزَىٰهُ ٱلۡجَزَآءَ ٱلۡأَوۡفَىٰ ۝ 41
फिर उसे पूरा बदला दिया जाएगा; ॥41॥
وَأَنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ ٱلۡمُنتَهَىٰ ۝ 42
और यह कि अन्त में पहुँचना तुम्हारे रब की ओर है;॥42॥
وَأَنَّهُۥ هُوَ أَضۡحَكَ وَأَبۡكَىٰ ۝ 43
और यह कि वही है जो हँसाता और रुलाता है;॥43॥
وَأَنَّهُۥ هُوَ أَمَاتَ وَأَحۡيَا ۝ 44
और यह कि वही जो मारता और जिलाता है;॥44॥
وَأَنَّهُۥ خَلَقَ ٱلزَّوۡجَيۡنِ ٱلذَّكَرَ وَٱلۡأُنثَىٰ ۝ 45
और यह कि वही है जिसने नर और मादा के जोड़े पैदा किए, ॥45॥
مِن نُّطۡفَةٍ إِذَا تُمۡنَىٰ ۝ 46
एक बूँद से, जब वह टपकाई जाती है; ॥46॥
وَأَنَّ عَلَيۡهِ ٱلنَّشۡأَةَ ٱلۡأُخۡرَىٰ ۝ 47
और यह कि उसी के ज़िम्मे दोबारा उठाना भी है;॥47॥
وَأَنَّهُۥ هُوَ أَغۡنَىٰ وَأَقۡنَىٰ ۝ 48
और यह कि वही है जिसने धनी और पूँजीपति बनाया;॥48॥
وَأَنَّهُۥ هُوَ رَبُّ ٱلشِّعۡرَىٰ ۝ 49
और यह कि वही है जो शेअरा (नामक तारे) का रब है।॥49॥
وَأَنَّهُۥٓ أَهۡلَكَ عَادًا ٱلۡأُولَىٰ ۝ 50
और यह कि उसी ने प्राचीन आद को विनष्ट किया;॥50॥
وَثَمُودَاْ فَمَآ أَبۡقَىٰ ۝ 51
और समूद को भी। फिर किसी को बाक़ी न छोड़ा।॥51॥
وَقَوۡمَ نُوحٖ مِّن قَبۡلُۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ هُمۡ أَظۡلَمَ وَأَطۡغَىٰ ۝ 52
और उससे पहले नूह की क़ौम को भी। बेशक वे ज़ालिम और सरकश थे।॥52॥
وَٱلۡمُؤۡتَفِكَةَ أَهۡوَىٰ ۝ 53
उलट जानेवाली बस्ती को भी फेंक दिया।॥53॥
فَغَشَّىٰهَا مَا غَشَّىٰ ۝ 54
तो ढँक लिया उसे जिस चीज़ ने ढँक लिया;॥54॥
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكَ تَتَمَارَىٰ ۝ 55
फिर तू अपने रब के चमत्कारों में से किस-किस के विषय में संदेह करेगा? ॥55॥
هَٰذَا نَذِيرٞ مِّنَ ٱلنُّذُرِ ٱلۡأُولَىٰٓ ۝ 56
यह पहले के सावधान-कर्त्ताओं के सदृश एक सावधान करनेवाला है।॥56॥
أَزِفَتِ ٱلۡأٓزِفَةُ ۝ 57
निकट आनेवाली (क़ियामत की घड़ी) निकट आ गई।॥57॥
لَيۡسَ لَهَا مِن دُونِ ٱللَّهِ كَاشِفَةٌ ۝ 58
अल्लाह के सिवा कोई नहीं जो उसे प्रकट कर दे।॥58॥
أَفَمِنۡ هَٰذَا ٱلۡحَدِيثِ تَعۡجَبُونَ ۝ 59
अब क्या तुम इस वाणी पर आश्‍चर्य करते हो; ॥59॥
وَتَضۡحَكُونَ وَلَا تَبۡكُونَ ۝ 60
और हँसते हो और रोते नहीं? ॥60॥
وَأَنتُمۡ سَٰمِدُونَ ۝ 61
जबकि तुम घमण्डी और ग़ाफिल हो।॥61॥
فَٱسۡجُدُواْۤ لِلَّهِۤ وَٱعۡبُدُواْ۩ ۝ 62
अतः अल्लाह को सजदा करो और बन्दगी करो।॥62॥