(2) वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों को ऐसे सहारों के बिना क़ायम किया जो तुम्हें नज़र आते हों2, फिर वे अपने राजसिंहासन पर विराजमान हुआ3, और उसने सूरज और चाँद को एक क़ानून का पाबन्द बनाया।4 इस सारी व्यवस्था की हर चीज़ एक निर्धारित समय तक के लिए चल रही है,5 और अल्लाह ही इस सारे काम का प्रबन्ध कर रहा है। वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है6, शायद कि तुम अपने रब की मुलाकात का विश्वास करो।7
2. दूसरे शब्दों में आसमानों को महसूस न होनेवालों और नज़र न आनेवाले सहारों पर क़ायम किया। प्रत्यक्ष रूप से कोई चीज़ विस्तृत-मण्डल में ऐसी नहीं है जो इन अनगिनत नभ-पिण्डों को थामे हुए हो, परन्तु एक महसूस न होनेवाली शक्ति ऐसी है जो हर एक को उसके स्थान और परिक्रमा-पथ पर रोके हुए है और इन विशालकाय पिण्डों को धरती पर या एक दूसरे पर गिरने नहीं देती।
3. इसकी व्याख्या के लिए देखिए सूरा-7 आराफ़, टिप्पणी 4।। संक्षेप में यहाँ इतना संकेत काफ़ी है कि राजसिंहासन (अर्थात् जगत्-साम्राज्य के केन्द्र) पर अल्लाह के शोभायमान होने को जगह-जगह क़ुरआन में जिस उद्देश्य के लिए बयान किया गया है, वह यह है कि अल्लाह ने इस सृष्टि को केवल पैदा ही नहीं कर दिया है, बल्कि वह आप ही इस साम्राज्य पर शासन कर रहा है। अस्तित्व में आया जगत कोई स्वतः चलनेवाला कारख़ाना नहीं है, जैसा कि बहुत-से अज्ञानी समझते हैं और न विभिन्न ख़ुदाओं की शरण-स्थली है, जैसा कि बहुत-से दूसरे अज्ञानी समझे बैठे हैं, बल्कि यह एक नियमित व्यवस्था है जिसे उसका पैदा करनेवाला स्वयं चला रहा है।
4. यहाँ यह बात ध्यान में रहनी चाहिए कि सम्बोधन उस क़ौम से है जो अल्लाह की हस्ती की इनकारी न थी, न उसके पैदा करनेवाला होने की इनकारी थी और न यह गुमान रखती थी कि ये सारे काम जो यहाँ बयान किए जा रहे हैं, अल्लाह के सिवा किसी और के हैं। इसलिए स्वतः इस बात पर प्रमाण लाने की ज़रूरत न समझी गई कि सच में अल्लाह ही ने आसमानों को क़ायम किया है और उसी ने सूरज और चाँद को एक नियम का पाबन्द बनाया है, बल्कि इन घटनाओं को, जिन्हें सम्बोधित लोग स्वयं ही मानते थे, एक दूसरी बात का प्रमाण बताया गया है और वह यह कि अल्लाह के सिवा कोई दूसरा सृष्टि को इस अवस्था में सत्ताधारी नहीं है जो उपास्य बना दिए जाने का हक़दार हो । रहा यह प्रश्न कि जो आदमी सिरे से अल्लाह की हस्ती का और उसके पैदा करनेवाला और व्यवस्था करनेवाला होने ही को न मानता हो, उसके मुक़ाबले में यह प्रमाण कैसे लाभप्रद हो सकता है? तो इसका उत्तर यह है कि अल्लाह मुशरिकों के मुक़ाबले में तौहीद को सिद्ध करने के लिए जो तर्क देता है वही तर्क अल्लाह के इनकारियों (नास्तिकों) के मुक़ाबले में अल्लाह के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए भी काफ़ी है। तौहीद (एकेश्वरवाद) का सारा तर्क इस बुनियाद पर क़ायम है कि ज़मीन से लेकर आसमानों तक सारी सृष्टि एक पूर्ण व्यवस्था है और यह पूरी व्यवस्था एक ज़बरदस्त क़ानून के तहत चल रही है जिसमें हर ओर एक सर्वव्यापी सत्ता, एक दोषरहित तत्त्वदर्शिता और एक अचूक ज्ञान की निशानियाँ नज़र आती हैं। ये निशानियाँ जिस तरह इस बात की पुष्टि करती हैं कि इस व्यवस्था के बहुत-से शासक नहीं है, इसी तरह इस बात की भी पुष्टि करती है कि इस व्यवस्था का एक शासक है। व्यवस्था की कल्पना एक व्यवस्थापक के बिना, क़ानून की कल्पना एक शासक के बिना, तत्त्वदर्शिता को कल्पना एक तत्त्वदर्शी के बिना, ज्ञान की कल्पना एक ज्ञानी के बिना और सबसे बढ़कर यह कि रचना की कल्पना एक रचनाकार के बिना केवल वही आदमी कर सकता है जो हठधर्म हो या फिर वह जिसकी मत मारी गई हो।
5. अर्थात् यह व्यवस्था केवल इसी बात की गवाही नहीं दे रही है कि एक सर्वव्यापी सत्ता उसका शासक है और एक ज़बरदस्त तत्वर्शिता उसमें काम कर रही है, बल्कि इसके तमाम हिस्से और उनमें काम करनेवाली सारी ताक़तें इस बात पर भी गवाह है कि इस व्यवस्था की कोई चीज़ अनश्वर नहीं है। हर चीज़ के लिए एक समय तय है, जिसके अन्त तक वह चलती है, और जब उसका समय पूरा हो जाता है तो मिट जाती है। यह सच्चाई जिस तरह इस व्यवस्था के एक-एक हिस्से के मामले में सही है, उसी तरह इस पूरी व्यवस्था के बारे में भी सही है। इस प्रकृति-जगत की कुल बनावट मिलकर यह बता रही है, कि यह शाश्वत नहीं है, इसके लिए भी कोई समय अवश्य ही निश्चित है जब यह समाप्त हो जाएगा और इसकी जगह दूसरी दुनिया अस्तित्व में आएगी । इसलिए क़ियामत, जिसके आने की ख़बर दी गई है, उसका आना असंभव नहीं, बल्कि न आना असंभव है।
6. अर्थात् इस बात की निशानियाँ कि अल्लाह के रसूल (सल्ल०) जिन वास्तविकताओं की सूचना दे रहे हैं, वे वास्तव में सत्य पर आधारित है। सृष्टि में हर ओर उनकी गवाही देनेवाली निशानियाँ मौजूद हैं। अगर लोग आँखें खोलकर देखें तो उनें नजर आ जाए कि क़ुरआन में जिन-जिन बातों पर ईमान लाने की दावत दी गई है, ज़मीन व आसमानों में फैले हुए अनगिनत निशान उनकी पुष्टि कर रहे हैं।
7. ऊपर सृष्टि की जिन निशानियों को गवाही में पेश किया गया है, उनकी यह गवाही तो बिल्कुल खुली हुई है कि इस दुनिया का पैदा करनेवाला और प्रबन्ध कानेवाला एक ही है, लेकिन यह बात कि मौत के बाद दूसरी ज़िन्दगी और अल्लाह की अदालत में इनसान की हाज़िरी और इनआम और सज़ा के बारे में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने जो ख़बरें दी हैं, उनके सही होने पर भी यही निशानियाँ गवाही देती हैं, थोड़ा अप्रतक्ष्य हैं और अधिक विचार करने से समझ में आती हैं। इसलिए पहली वास्तविकता पर सचेत करने की ज़रूरत न समझी गई, क्योंकि सुननेवाला केवल प्रमाणों को सुनकर ही समझ सकता है कि उनसे क्या सिद्ध होता है। अलबत्ता दूसरी वास्तविकता पर मुख्य रूप से सदेत किया गया है कि अपने रब की मुलाक़ात का विश्वास भी तुमको इन्हीं निशानियों पर विचार करने से प्राप्त हो सकता है। उपर्युक्त निशानियों से आख़िरत का प्रमाण दो प्रकार से मिलता है- एक यह कि जब हम आसमानों की बनावट और सूरज और चाँद का नियमबद्धता पर विचार करते हैं तो हमारा दिल यह गवाही देता है कि जिस अल्लाह ने ये विशालकाय नभ-पिण्ड पैदा किए हैं और जिसकी क़ुदरत इतने बड़े-बड़े ग्रहों को मण्डल में गर्दिश दे रही है, उसके लिए मानव-जाति को मौत के बाद दोबारा पैदा कर देना कुछ भी कठिन नहीं है। दूसरे यह कि इसी आकाशीय व्यवस्था से हमें यह गवाही भी मिलती है कि इसका पैदा करनेवाला प्रवीण श्रेणी का तत्त्वदर्शी है और उसकी तत्त्वदर्शिता से यह बहुत परे मालूम होता है कि वह इनसान को एक बुद्धि-चेतना और अधिकार व संकल्पवाला प्राणी बनाने के बाद और अपनी धरती की अनगिनत चीज़ों का उपभोग करने की शक्ति देने के बाद उसकी ज़िन्दगी के कारनामों का हिसाब न ले, उसके ज़ालिमों से पूछताछ और उसके मज्लूमों की दादरसी न करे, उसके नेकों को इनआम और उसके दुराचारियों को सज़ा न दे और उससे कभी यह पूछे ही नहीं कि जो मूल्यवान अमानतें मैंने तेरे सुपुर्द की थीं, उनके साथ तूने क्या मामला किया। एक अंधा राजा तो निस्संदेह अपने राज्य के मामलों को अपने कारिंदों के हवाले करके बेख़बरी की नींद सो सकता है, लेकिन एक तत्त्वदर्शी और सर्वज्ञानी से इस ग़लतबख़्शी और लापरवाही की आशा नहीं की जा सकती।– इस तरह आसमानों का अवलोका हमसे न केवल आख़िरत की संभावना मनवा लेता है, बल्कि उसके होने का विश्वास भी पैदा करता है।