(4) उस (भ्रम) वसवसा डालनेवाले की शर (बुराई) से जो बार-बार पलटकर आता है,2
2. मूल अरबी में 'वस्वासिल खन्नास' शब्द प्रयुक्त हुए हैं। वसवसा का अर्थ है बार-बार वसवसा डालने वाला, और वसवसे का अर्थ है निरन्तर ऐसे तरीक़े या तरीक़ों से किसी के दिल में कोई बुरी बात डालना कि जिसके दिल में वह डाली जा रही हो उसे यह महसूस न हो सके कि वसवसा डालनेवाला उसके दिल में एक बुरी बात डाल रहा है। वसवसे के शब्द में ख़ुद बार-बार दुहराने का अर्थ शामिल है जैसे ज़लज़ले में बार-बार हरकत होने का अर्थ शामिल है। चूँकि इंसान सिर्फ़ एक बार बहकाने से नहीं बहकता, बल्कि उसे बहकाने का निरंतर यत्न करना होता है, इसलिए ऐसी कोशिश को 'वसवसा' और कोशिश करनेवाले को 'वसवास' कहा जाता है। रहा शब्द 'ख़न्नास' तो यह 'ख़ुनूस' से है जिसके अर्थ प्रकट होने के बाद छिपने या आने के बाद पीछे हट जाने के हैं, और 'खन्नास' में अधिकता का भाव पाया जाता है, इसलिए इसके अर्थ यह कार्य अधिक से अधिक करनेवाले के हुए। अब यह साफ बात है कि वस्वसा डालनेवाले को बार-बार वसवसा डालने के लिए आदमी के पास आना पड़ता है, और साथ-साथ जब उसे 'खन्नास' भी कहा गया तो दोनों शब्दों के मिलने से अपने आप यह अर्थ पैदा हो गया कि वसूवसा डालकर वह पीछे हट जाता है और फिर बार-बार वसवसा डालने के लिए पलटकर आता है। दूसरे शब्दों में एक बार वस्वसा डालकर जब वह बहकाने में सफल नहीं होता तो हट जाता है और फिर आकर वसूवसा डालने लगता है, और यह कोशिश निरंतर करता रहता है। 'वस्वासिल खन्नास की बुराई' से पनाह माँगने का अर्थ क्या है ? इसका एक अर्थ तो यह कि पनाह माँगनेवाला स्वयं उसकी बुराई से अल्लाह की पनाह माँगता है, अर्थात् इस बुराई से कि वह कहीं उसके अपने दिले में कोई वसवसा न डाल दे। दूसरा अर्थ यह है कि अल्लाह के रास्ते की ओर बुलानेवाले के विरुद्ध जो व्यक्ति भी लोगों के दिलों में वस्वसे डालता फिरे, उसकी बुराई से सत्य का आवाहक अल्लाह की पनाह माँगता है। न तो सत्य के आवाहक के बस का यह काम है, [ और न इसके लिए यह उचित है कि] उसकी ज्ञात व्यक्तित्व) के विरुद्ध जिन-जिन लोगों के दिलों में वस्वसे डाले जा रहे हों उन सब तक खुद पहुंचे और एक एक व्यक्ति के भ्रमों को दूर करे। इसलिए अल्लाह ने सत्य का आह्वान करनेवाले को हिदायत फ़रमाई कि ऐसे दुष्टों को दुष्टता से बस अल्लाह की शरण माँग ले और फिर निश्चिन्त होकर अपनी दावत के काम में लगा रहे। इसके बाद उनसे निपटना तेरा काम नहीं, बल्कि इंसानों के रब, इंसानों के बादशाह और इंसानों के वास्तविक उपास्य का काम है। इस संबंध में एक बात और भी दृष्टि में रहनी चाहिए, वह यह कि इंसान के दिल में बसवसे डालने का काम सिर्फ़ बाहर से जिन्न और इंसान रूपी शैतान ही नहीं करते, बल्कि अन्दर से ख़ुद इंसान का अपना नफ़्स (मन) भी करता है। उसके अपने गलत दृष्टिकोण उसकी बुद्धि को गुमराह करते हैं, उसके अपने ग़लत उद्देश्य और इच्छाएँ उसकी अंतर शक्ति निर्णय शक्ति और संकल्प शक्ति को गुमराह करती हैं। यहीं बात है जो क़ुरआन में एक जगह फ़रमाई गई है कि "और हम उसके अपने मन में उभरनेवाले वस्वसों को जानते हैं" (सूरा-50 क़ाफ, आयत 16 ) । इसी कारण अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने अपने प्रसिद्ध भाषण में फ़रमाया है कि "हम अल्लाह से पनाह माँगते हैं अपने नफ़्स की बुराइयों से।"