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سُورَةُ الشَّرۡحِ

 94. अलम-नशरह

(मक्का में उतरी, आयतें 8)

परिचय

नाम

सूरा की पहली आयत के वाक्य 'अलम नशरह' (क्या हमने खोल नहीं दिया) को इस सूरा का नाम क़रार दिया गया है।

उतरने का समय

इसका विषय सूरा-93 अज़-ज़ुहा से इतना मिलता-जुलता है कि ये दोनों सूरतें क़रीब-क़रीब एक ही समय और एक ही जैसी परिस्थितियों में उतरी मालूम होती हैं। हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अब्बास (रजि०) कहते हैं कि यह मक्का में सूरा-93 'अज़-जुहा' के बाद उतरी है।

विषय और वार्ता

इसका उद्देश्य और आशय भी अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को तसल्ली देना है। इस्लामी दावत आरम्भ करते ही अचानक आपको [जिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, उन] का कोई अनुमान आपको नुबूवत से पहले की ज़िंदगी में न था। इस्लाम का प्रचार आपने क्या आरम्भ किया कि देखते-देखते वही समाज आपका शत्रु हो गया, जिसमें आप पहले बड़े आदर की दृष्टि से देखे जाते थे। यद्यपि धीरे-धीरे आपको इन परिस्थितियों का मुक़ाबला करने की आदत पड़ गई, लेकिन आरम्भिक समय आपके लिए बड़ा ही हृदय-विदारक था। इस आधार पर आपको तसल्ली देने के लिए पहले सूरा-93 अज़-जुहा उतारी गई और फिर यह सूरा उतरी। इसमें अल्लाह ने सबसे पहले आपको बताया है कि हमने आपको तीन बहुत बड़ी नेमतें दी हैं जिनकी उपस्थिति में कोई कारण नहीं कि आप दुखी एवं निराश हों।

एक, 'शरहे-सद्र' (हक़ के लिए सीने के खुल जाने और हक़ पर दिल मुत्मइन हो जाने) की नेमत। दूसरी, यह नेमत कि आपके ऊपर से हमने वह भारी बोझ उतार दिया, जो नुबूवत से पहले आपकी कमर तोड़े डाल रहा था। तीसरे, यह नेमत की आपकी शुभ चर्चा हर तरफ़ खूब-ख़ूब होने लगी। इसके बाद सृष्टि के रब ने अपने बन्दे और रसूल (सल्ल०) को यह तसल्ली दी है कि कठिनाइयों का यह दौर, जिससे आपको वास्ता पड़ रहा है, कोई बहुत लम्बा दौर नहीं है, बल्कि इस तंगी के साथ ही साथ खुशहाली का दौर भी लगा चला आ रहा है। यह वही बात है जो सूरा-93 अज-जुहा (की चौथी और पाँचवीं आयतों में कही गई थी]। अन्त में नबी (सल्ल०) को हिदायत की गई है कि आरम्भिक समय की इन कठिनाइयों का मुक़ाबला करने की शक्ति आपके भीतर एक ही चीज़ से पैदा होगी और वह यह है कि जब आप अपने कार्यों से फ़ारिग हों तो इबादत की मेहनत और मशक़्क़त में लग जाएँ और हर चीज़ से बेपरवाह होकर सिर्फ़ अपने रब से लौ लगाएँ।

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سُورَةُ الشَّرۡحِ
94. अलम-नशरह
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
أَلَمۡ نَشۡرَحۡ لَكَ صَدۡرَكَ
(1) (ऐ नबी) क्या हमने तुम्हारा सीना तुम्हारे लिए खोल नहीं दिया?1
1. सीना खोलने का शब्द क़ुरआन मजीद में जिन संदर्भों में आया है उनपर निगाह डालने से मालूम होता है कि इसके दो अर्थ हैं: (1) यह कि हर प्रकार के मानसिक संशय और द्विविधा से मुक्त होकर इनसान इस बात पर पूर्णरूप से सन्तुष्ट हो जाए कि इस्लाम का मार्ग ही सत्य है। (2) यह कि इनसान का हौसला बढ़ जाए, किसी बड़ी से बड़ी मुहिम पर जाने और किसी कठिन से कठिन काम को पूरा कर देने में भी उसे झिझक न हो, और पैग़म्बरी के महान उत्तरदायित्वों के संभालने का साहस उसमें पैदा हो जाए।
وَوَضَعۡنَا عَنكَ وِزۡرَكَ ۝ 1
(2) और तुमपर से वह भारी बोझ उतार दिया
ٱلَّذِيٓ أَنقَضَ ظَهۡرَكَ ۝ 2
(3) जो तुम्हारी कमर तोड़े डाल रहा था।2
2. इससे मुराद दुख एवं शोक और चिन्ता और परेशानी का वह बोझ है जो अपनी क़ौम की नादानी और अज्ञान को देख-देखकर आपके संवेदनशील मन पर पड़ रहा था। आप उसपर कुढ़ते थे, मगर इस बिगाड़ को दूर करने का कोई उपाय आपको दीख न पड़ता था। यही चिन्ता आपकी कमर तोड़े डाल रही थी, जिसका भारी बोझ अल्लाह तआला ने संमार्ग दिखाकर आपके ऊपर से उतार दिया, आपके मन का सारा बोझ हलका कर दिया और आप पूरी तरह सन्तुष्ट हो गए कि इस्लाम के द्वारा आप न सिर्फ़ अरब, बल्कि पूरे इनसानी गिरोह को उन ख़राबियों से निकाल सकते हैं, जिनमें उस समय अरब से बाहर की भी सारी दुनिया डूबी हुई थी।
وَرَفَعۡنَا لَكَ ذِكۡرَكَ ۝ 3
(4) और तुम्हारे लिए तुम्हारी ध्वनि ऊँची कर दी।
فَإِنَّ مَعَ ٱلۡعُسۡرِ يُسۡرًا ۝ 4
(5) अतः वास्तविकता यह है कि तंगी के साथ कुशादगी भी है।
إِنَّ مَعَ ٱلۡعُسۡرِ يُسۡرٗا ۝ 5
(6) बेशक, तंगी के साथ कुशादगी भी है।3
3. इस बात को दो बार दोहराया गया है ताकि नबी (सल्ल०) को पूरी तरह सांत्वना दे दी जाए कि जिन कठिन परिस्थितियों से आप इस समय गुज़र रहे हैं ये ज़्यादा देर रहनेवाली नहीं हैं, बल्कि इनके बाद निकट भविष्य ही में अच्छी परिस्थितियाँ सामने आनेवाली हैं।
فَإِذَا فَرَغۡتَ فَٱنصَبۡ ۝ 6
(7) अतः जब तुम निवृत्त हो तो इबादत की मेहनत में लग जाओ
وَإِلَىٰ رَبِّكَ فَٱرۡغَب ۝ 7
(8) और अपने रब ही की ओर प्रवृत्त हो।4
4. अर्थात जब कोई और व्यस्तता न रहे तो अपना निवृत्त समय इबादत की साधना और परिश्रम में लगाओ और हर ओर से ध्यान हटाकर केवल अपने रब से लौ लगाओ।