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سُورَةُ الصَّافَّاتِ

37. अस-साफ़्फ़ात

(मक्का में उतरी, आयतें 182)

 

परिचय

 

नाम

पहली ही आयत के शब्द 'अस-साफ़्फात' (क़तार दर क़तार सफ़ (पंक्ति) बाँधनेवाले) से लिया गया है।

उतरने का समय

विषयों और शैली से पता चलता है कि यह सूरा शायद मक्की काल के मध्य में, बल्कि शायद इस मध्यकाल के भी अन्तिम समय में उतरी है। [जब विरोध पूर्णत: उग्र रूप धारण कर चुका था]।

विषय और वार्ता

उस समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तौहीद और आख़िरत की दावत का जवाब जिस तरह उपहास और हँसी-मज़ाक़ के साथ दिया जा रहा था और आपकी रिसालत के दावे को मानने से जिस तेज़ी के साथ इनकार किया जा रहा था, उसपर मक्का के काफ़िरों (इस्लाम-विरोधियों) को बड़े ज़ोरदार तरीक़े से सचेत किया गया है और अन्त में उन्हें साफ़-साफ़ ख़बरदार कर दिया गया है कि बहुत जल्द यही पैग़म्बर, जिसका तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, तुम्हारे देखते-देखते तुमपर ग़ालिब आ जाएगा और तुम अल्लाह की फ़ौज को स्वयं अपने घर के आंगन में उतरा हुआ पाओगे (आयत 171-179)। यह नोटिस उस ज़माने में दिया गया था जब नबी (सल्ल०) की सफलता के चिह्न दूर-दूर तक कहीं नज़र न आते थे, बल्कि देखनेवाले तो यह समझ रहे थे कि यह आन्दोलन मक्का की घाटियों ही में दफ़न होकर रह जाएगा। लेकिन 15-16 साल से अधिक समय न बीता था कि मक्का की जीत के मौक़े पर ठीक वही कुछ पेश आ गया जिससे इनकारियों को सचेत किया गया था। चेतावनी के साथ-साथ अल्लाह ने इस सूरा में सत्य को अच्छी तरह समझाने और उसपर उभारने का हक़ भी पूरी तरह अदा कर दिया है। तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत के अक़ीदे की सत्यता पर संक्षेप में दिल में उतर जानेवाले तर्क दिए गए हैं। बहुदेववादियों की धारणाओं की आलोचना करके बताया गया है कि वे कैसी-कैसी बेकार बातों पर ईमान लाए बैठे हैं, इन गुमराहियों के बुरे नतीजों से आगाह किया है और यह भी बताया है कि ईमान और भले कामों के नतीजे कितने शानदार हैं। फिर [इसी सिलसिले में पिछले इतिहास की मिसालें दी हैं ] इस उद्देश्य से जो ऐतिहासिक वृत्‍तांतों का इस सूरा में वर्णन किया गया है, इनमें सबसे अधिक शिक्षाप्रद हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के पवित्र जीवन की यह महत्वपूर्ण घटना है कि वह अल्लाह का एक इशारा पाते ही अपने इकलौते बेटे को क़ुरबान करने पर तैयार हो गए थे। इसमें केवल कुरैश के उन इस्लाम विरोधियों ही के लिए सबक़ नहीं था जो हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के साथ अपने पारिवारिक संबंध पर गर्व किया करते फिरते थे, बल्कि उन मुसलमानों के लिए भी सबक़ था जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए थे। यह घटना सुनाकर उन्हें बता दिया गया कि इस्लाम की वास्तविकता और उसकी मूल आत्मा क्या है। सूरा की आख़िरी आयतें सिर्फ़ काफ़िरों (विधर्मियों) के लिए चेतावनी ही न थीं, बल्कि उन ईमानवालों के लिए विजयी और प्रभावी होने की शुभ-सूचना भी थीं, जो नबी (सल्ल०) के समर्थन और सहायता में अत्यंत हतोत्साहित कर देनेवाले हालात का मुक़ाबला कर रहे थे।

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سُورَةُ الصَّافَّاتِ
37. अस-साफ़्फ़ात
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
وَٱلصَّٰٓفَّٰتِ صَفّٗا
(1) पंक्तियों में जमकर खड़े होनेवालों की क़सम
فَٱلزَّٰجِرَٰتِ زَجۡرٗا ۝ 1
(2) फिर उनकी क़सम जो डाँट फटकारनेवाले हैं,
فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكۡرًا ۝ 2
(3) फिर उनकी क़सम जो उपदेशप्रद वाणी सुनानेवाले है1,
1. ज़्यादातर टीकाकार इस बात पर सहमत हैं कि इन तीनों गिरोहों से मुराद फ़रिश्तों के गिरोह हैं जो अल्लाह के आदेशों का पालन करने के लिए हर समय तैयार रहते हैं, उसको अवज्ञा करनेवालों को डाँटते और फटकारते हैं और विभिन्न तरीक़ों से अल्लाह की याद दिलाते और उपदेशप्रद वाणी सुनाते हैं।
إِنَّ إِلَٰهَكُمۡ لَوَٰحِدٞ ۝ 3
(4) तुम्हारा वास्तविक उपास्य बस एक ही है
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَرَبُّ ٱلۡمَشَٰرِقِ ۝ 4
(5) वह जो ज़मीन और आसमानों का और तमाम उन चीज़़ों का मालिक है जो ज़मीन और आसमान में हैं, और सारी पूर्वदिशाओं का मालिक।2
2. सूरज हमेशा एक ही उदय स्थल से नहीं निकलता बल्कि प्रत्येक दिन एक नए कोण से उदय होता है। और सारी ज़मीन पर वह एक ही समय में उदय नहीं हो जाता बल्कि ज़मीन के विभिन्न भागों पर विभिन्न समयों में उसका उदय हुआ करता है। इन कारणों से पूर्व दिशा के स्थान पर पूर्व दिशाओं का शब्द प्रयुक्त किया गया है, और इसके बाद पश्चिमों का उल्लेख नहीं किया गया, क्योंकि पूर्व दिशाओं का शब्द ख़ुद पश्चिमों को सिद्ध करता है।
إِنَّا زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِزِينَةٍ ٱلۡكَوَاكِبِ ۝ 5
(6) हमने दुनिया के आसमान3 को तारों की शोभा से सुसज्जित किया है
3. दुनिया के आसमान से मुराद क़रीब का आसमान है, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन किसी दूरबीन की सहायता के बिना हम नंगी आँख से करते हैं।
وَحِفۡظٗا مِّن كُلِّ شَيۡطَٰنٖ مَّارِدٖ ۝ 6
(7) और हर सरकश शैतान से उसको सुरक्षित कर दिया है।
لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰ وَيُقۡذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٖ ۝ 7
(8) ये शैतान सबसे उच्च दरवारवालों4 की बाते नहीं सुन सकते, हर तरफ़ से मारे और हाँके जाते हैं
4. इससे अभिप्रेत हैं ऊपरी लोक के प्राणी, अर्थात् फ़रिश्ते।
دُحُورٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ وَاصِبٌ ۝ 8
(9) और उनके लिए निरन्तर अज़ाब है।
إِلَّا مَنۡ خَطِفَ ٱلۡخَطۡفَةَ فَأَتۡبَعَهُۥ شِهَابٞ ثَاقِبٞ ۝ 9
(10) इसपर भी अगर कोई उनमें से कुछ ले उड़े तो एक तेज़ ज्वाला उसका पीछा करती है।
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَهُمۡ أَشَدُّ خَلۡقًا أَم مَّنۡ خَلَقۡنَآۚ إِنَّا خَلَقۡنَٰهُم مِّن طِينٖ لَّازِبِۭ ۝ 10
(11) अब इनसे पूछो, इनकी पैदाइश ज़्यादा कठिन है या उन चीज़़ों की जो हमने पैदा कर रखी हैं? इनको तो हमने लेसदार गारे से पैदा किया है।
بَلۡ عَجِبۡتَ وَيَسۡخَرُونَ ۝ 11
(12) तुम (अल्लाह की सामर्थ्य के चमत्कारों पर) आश्चर्यचकित हो और ये उसकी हँसी उड़ा रहे हैं।
وَإِذَا ذُكِّرُواْ لَا يَذۡكُرُونَ ۝ 12
(13) समझाया जाता है तो समझते नहीं।
وَإِذَا رَأَوۡاْ ءَايَةٗ يَسۡتَسۡخِرُونَ ۝ 13
(14) कोई निशानी देखते हैं तो उसे ठट्ठों में उड़ाते हैं।
وَقَالُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٌ ۝ 14
(15) और कहते हैं, “यह तो खुला जादू है,
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ۝ 15
(16) भला कहीं ऐसा हो सकता है कि जब हम मर चुके हों और मिट्टी बन जाएँ और हड्डियों के पंजर रह जाएँ उस समय हम फिर ज़िन्दा करके उठा खड़े किए जाएँ?
أَوَءَابَآؤُنَا ٱلۡأَوَّلُونَ ۝ 16
(17) और क्या हमारे अगले समयों के बाप-दादा भी उठाए जाएँगे?
قُلۡ نَعَمۡ وَأَنتُمۡ دَٰخِرُونَ ۝ 17
(18) इनसे कहो, हाँ! और तुम (अल्लाह के मुक़ाबले में) बेबस हो।
فَإِنَّمَا هِيَ زَجۡرَةٞ وَٰحِدَةٞ فَإِذَا هُمۡ يَنظُرُونَ ۝ 18
(19) बस एक ही झिड़की होगी और अचानक ये अपनी आँखों से (वह सब कुछ। जिसकी ख़बर दी जा रही है) देख रहे होंगे।
وَقَالُواْ يَٰوَيۡلَنَا هَٰذَا يَوۡمُ ٱلدِّينِ ۝ 19
(20) उस समय ये कहेंगे, “हाय हमारा दुर्भाग्य, यह तो बदला पाने का दिन है”
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ۝ 20
(21) — यह वही फ़ैसले का दिन है जिसे तुम झुठलाया करते थे।5
5. हो सकता है कि यह बात उनसे ईमानेवाले कहें, हो सकता है कि यह फ़रिश्तों का कथन हो, हो सकता है कि क़ियामत के अवसर पर इकट्ठे होने के मैदान का सारा वातावरण उस समय अपनी स्थिति की ज़बान से यह कह रहा हो, और यह भी हो सकता है कि यह ख़ुद उन लोगों की अपनी ही दूसरी प्रतिक्रिया हो। अर्थात् अपने दिलों में वे अपने आप ही को सम्बोधित करके कहें कि दुनिया में ज़िन्दगी भर तुम यह समझते रहे कि कोई फ़ैसले का दिन नहीं आना है। अब आ गई तुम्हारी शामत, जिस दिन को झुठलाते थे वह सामने आ गया।
مِن دُونِ ٱللَّهِ فَٱهۡدُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 21
(23) जिनकी वे अल्लाह को छोड़कर बन्दगी किया करते थे फिर उन सबको जहन्नम का मार्ग दिखाओ।
وَقِفُوهُمۡۖ إِنَّهُم مَّسۡـُٔولُونَ ۝ 22
(24) और तनिक इन्हें ठहराओ इनसे कुछ पूछना है।
مَا لَكُمۡ لَا تَنَاصَرُونَ ۝ 23
(25) क्या हो गया तुम्हें, अब क्यों एक-दूसरे की सहायता नहीं करते?
بَلۡ هُمُ ٱلۡيَوۡمَ مُسۡتَسۡلِمُونَ ۝ 24
(26) अरे, आज तो ये अपने आपको (और एक-दूसरे को) समर्पित किए दे रहे हैं!”
وَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ ۝ 25
(27) इसके बाद वे एक-दूसरे की ओर मुड़ेंगे और परस्पर विवाद शुरू कर देंगे।
قَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَأۡتُونَنَا عَنِ ٱلۡيَمِينِ ۝ 26
(28) (अनुयायी अपने पेशवाओं से) कहेंगे, “तुम हमारे पास सीधे रुख़7 से आते थे।”
7. मूल शब्द यहाँ 'यमीन' इस्तेमाल हुआ है। मुहावरे की दृष्टि से अगर इसको शक्ति और बल के अर्थ में लिया जाए तो अर्थ यह होगा कि तुम अपने ज़ोर से हमको गुमराही की ओर खींच ले गए। अगर इसको शुभ और भलाई के अर्थ में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि तुमने हितैषी बनकर हमें धोखा दिया और अगर इसको क़सम के अर्थ में लिया जाए तो इसका अर्थ यह होगा कि तुमने क़समें खा-खाकर हमें सन्तुष्ट किया था कि सत्य वही है जो तुम पेश कर रहे हो।
قَالُواْ بَل لَّمۡ تَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ ۝ 27
(29) वे जवाब देंगे, “नहीं, बल्कि तुम ख़ुद ईमान लानेवाले न थे,
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيۡكُم مِّن سُلۡطَٰنِۭۖ بَلۡ كُنتُمۡ قَوۡمٗا طَٰغِينَ ۝ 28
(30) हमारा तुमपर कोई ज़ोर न था, तुम ख़ुद ही सरकश लोग थे,
فَحَقَّ عَلَيۡنَا قَوۡلُ رَبِّنَآۖ إِنَّا لَذَآئِقُونَ ۝ 29
(31) आख़िरकार हम अपने रब के इस आदेश के योग्य हो गए कि हम अज़ाब का मज़ा चखनेवाले हैं।
فَأَغۡوَيۡنَٰكُمۡ إِنَّا كُنَّا غَٰوِينَ ۝ 30
(32) सो हमने तुमको बहकाया, हम ख़ुद बहके हुए थे।"
فَإِنَّهُمۡ يَوۡمَئِذٖ فِي ٱلۡعَذَابِ مُشۡتَرِكُونَ ۝ 31
(33) इस तरह वे सब उस दिन अज़ाब में हिस्सेदार होंगे।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 32
(34) हम अपराधियों के साथ यही कुछ किया करते हैं।
إِنَّهُمۡ كَانُوٓاْ إِذَا قِيلَ لَهُمۡ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا ٱللَّهُ يَسۡتَكۡبِرُونَ ۝ 33
(35) ये वे लोग थे कि जब इनसे कहा जाता, “अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं है” तो ये घमण्ड में आ जाते थे
وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُوٓاْ ءَالِهَتِنَا لِشَاعِرٖ مَّجۡنُونِۭ ۝ 34
(36) और कहते थे, “क्या हम एक उन्मादी कवि के लिए अपने उपास्यों को छोड़ दें?”
بَلۡ جَآءَ بِٱلۡحَقِّ وَصَدَّقَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 35
(37) हालाँकि वह सत्य लेकर आया था और उसने रसूलों की पुष्टि की थी।
إِنَّكُمۡ لَذَآئِقُواْ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡأَلِيمِ ۝ 36
(38) (अब उनसे कहा जाएगा कि तुम निश्चय ही दर्दनाक सज़ा का मज़ा चखनेवाले हो
وَمَا تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 37
(39) और तुम्हें जो बदला भी दिया जा रहा है उन्हीं कर्मों का दिया जा रहा है जो तुम करते रहे हो।
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 38
(40) मगर अल्लाह के चुने हुए बन्दे (इस बुरे परिणाम से) सुरक्षित होंगे।
أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ رِزۡقٞ مَّعۡلُومٞ ۝ 39
(41) उनके लिए जानी-बूझो रोज़ी है,
فَوَٰكِهُ وَهُم مُّكۡرَمُونَ ۝ 40
(42) हर तरह की स्वादिष्ट चीज़़ें
فِي جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ ۝ 41
(43) और नेमत भरी जन्नतें जिनमें वे सम्मानपूर्वक रखे जाएँगे।
عَلَىٰ سُرُرٖ مُّتَقَٰبِلِينَ ۝ 42
(44) तख़्तों पर आमने-सामने बैठेंगे।
يُطَافُ عَلَيۡهِم بِكَأۡسٖ مِّن مَّعِينِۭ ۝ 43
(45) शराब के स्रोतों से प्याले भर-भरकर उनके बीच फिराए जाएँगे।
بَيۡضَآءَ لَذَّةٖ لِّلشَّٰرِبِينَ ۝ 44
(46) चमकती हुई शराब, जो पीनेवालों के लिए सर्वथा स्वाद होगी।
لَا فِيهَا غَوۡلٞ وَلَا هُمۡ عَنۡهَا يُنزَفُونَ ۝ 45
(47) न उनके शरीर की उससे कोई हानि होगी और न उनकी बुद्धि उससे ख़राब होगी।
وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ عِينٞ ۝ 46
(48) और उनके पास निगाहे बचानेवाली सुन्दर आँखोंवाली औरतें होंगी,
كَأَنَّهُنَّ بَيۡضٞ مَّكۡنُونٞ ۝ 47
(49) ऐसी नाज़ुक जैसे अण्डे के छिलके के नीचे छिपी हुई झिल्ली।
فَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ ۝ 48
(50) फिर वे एक दूसरे की ओर रुख़ करके हाल पूछेंगे।
قَالَ قَآئِلٞ مِّنۡهُمۡ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٞ ۝ 49
(51) उनमें से एक कहेगा, “दुनिया में मेरा एक साथी था
يَقُولُ أَءِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُصَدِّقِينَ ۝ 50
(52) जो मुझसे कहा करता था, क्या तुम भी पुष्टि करनेवालों में से हो?
أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَدِينُونَ ۝ 51
(53) क्या वास्तव में जब हम मर चुके होंगे और मिट्टी हो जाएँगे और हड्डियों का पंजर बनकर रह जाएँगे तो हमें बदला और दण्ड दिया जाएगा?
قَالَ هَلۡ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ ۝ 52
(54) अब क्या आप लोग देखना चाहते हैं कि वह साहब अब कहाँ हैं?”
فَٱطَّلَعَ فَرَءَاهُ فِي سَوَآءِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 53
(55) यह कहकर ज्यों ही वह झुकेगा तो जहन्नम की गहराई में उसको देख लेगा
قَالَ تَٱللَّهِ إِن كِدتَّ لَتُرۡدِينِ ۝ 54
(56) और उसे सम्बोधित करके कहेगा, “अल्लाह की क़सम तू तो मुझे तबाह ही कर देनेवाला था।
وَلَوۡلَا نِعۡمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُحۡضَرِينَ ۝ 55
(57) मेरे रब का अनुग्रह साथ न होता तो आज मैं भी उन लोगों में से होता जो पकड़े हुए आए हैं।
أَفَمَا نَحۡنُ بِمَيِّتِينَ ۝ 56
(58) अच्छा8 तो क्या अब हम मरनेवाले नहीं हैं?
8. वर्णन-शैली साफ़ बता रही है कि अपने उस जहन्नमी मित्र से बात करते-करते अचानक यह जन्नती व्यक्ति अपने-आप से बात करने लगता है और ये वाक्य उसके मुँह से इस तरह उच्चारित होते हैं जैसे कोई व्यक्ति अपने-आप से हर उम्मीद और हर अनुमान से उच्चतर हालत में पाकर अत्यन्त विस्मय एवं आश्चर्य और आनन्द के साथ आप ही आप बोल रहा हो।
إِلَّا مَوۡتَتَنَا ٱلۡأُولَىٰ وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ ۝ 57
(59) मौत जो हमें आनी थी वह बस पहले आ चुकी? अब हमें कोई अज़ाब नहीं होना?"
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ ۝ 58
(60) यक़ीनन यही महान सफलता है।
لِمِثۡلِ هَٰذَا فَلۡيَعۡمَلِ ٱلۡعَٰمِلُونَ ۝ 59
(61) ऐसी ही सफलता के लिए कर्म करनेवालों को कर्म करना चाहिए।
أَذَٰلِكَ خَيۡرٞ نُّزُلًا أَمۡ شَجَرَةُ ٱلزَّقُّومِ ۝ 60
(62) बोलो, यह आतिथ्य अच्छा है या ज़क़्क़ूम (थूहड़) का पेड़?
إِنَّا جَعَلۡنَٰهَا فِتۡنَةٗ لِّلظَّٰلِمِينَ ۝ 61
(63) हमने उस पेड़ को ज़ालिमों के लिए परीक्षा बना दिया है।9
9. अर्थात् इनकार करनेवाले यह बात सुनकर क़ुरआन पर चोट करने और नबी (सल्ल०) को हँसी उड़ाने का एक नया अवसर पा लेते हैं। वे इस पर ठट्ठा मारकर कहते हैं, लो अब नई सुनो, जहन्नम की दहकती हुई आग में वृक्ष उगेगा।
إِنَّهَا شَجَرَةٞ تَخۡرُجُ فِيٓ أَصۡلِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 62
(64) वह एक पेड़ है जो जहन्नम की तह से निकलता है।
طَلۡعُهَا كَأَنَّهُۥ رُءُوسُ ٱلشَّيَٰطِينِ ۝ 63
(65) उसके गाभे ऐसे हैं जैसे शैतानों के सिर।
فَإِنَّهُمۡ لَأٓكِلُونَ مِنۡهَا فَمَالِـُٔونَ مِنۡهَا ٱلۡبُطُونَ ۝ 64
(66) जहन्नम के लोग उसे खाएँगे और उसी से पेट भरेंगे
ثُمَّ إِنَّ لَهُمۡ عَلَيۡهَا لَشَوۡبٗا مِّنۡ حَمِيمٖ ۝ 65
(67) फिर उसपर पीने के लिए उनको खौलता हुआ पाने मिलेगा।
ثُمَّ إِنَّ مَرۡجِعَهُمۡ لَإِلَى ٱلۡجَحِيمِ ۝ 66
(68) और इसके बाद उनकी वापसी उसी जहन्नम की भड़कती आग की ओर होगी।
إِنَّهُمۡ أَلۡفَوۡاْ ءَابَآءَهُمۡ ضَآلِّينَ ۝ 67
(69) ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने बाप-दादा को पथभ्रष्ट पाया
فَهُمۡ عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِمۡ يُهۡرَعُونَ ۝ 68
(70) और उन्हीं के पदचिह्नों पर दौड़ चले
وَلَقَدۡ ضَلَّ قَبۡلَهُمۡ أَكۡثَرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 69
(71) हालाँकि उनसे पहले बहुत से लोग पथभ्रष्ट हो चुके थे।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ ۝ 70
(72) और उनमें हमने चेतावनी देनेवाले रसूल भेजे थे।
فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 71
(73) अब देख लो कि उन सचेत किए जानेवालों का क्या परिणाम हुआ।
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 72
(74) इस बुरे परिणाम से बस अल्लाह के वही बन्दे बचे हैं जिन्हें उसने अपने लिए ख़ास कर लिया है।
وَلَقَدۡ نَادَىٰنَا نُوحٞ فَلَنِعۡمَ ٱلۡمُجِيبُونَ ۝ 73
(75) हमको (इससे पहले) नूह ने पुकारा था, तो देखो कि हम कैसे अच्छे जवाब देनेवाले थे।
وَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 74
(76) हमने उसको और उसके घरवालों को बड़ी घुटन और बेचैनी से बचा लिया,
وَجَعَلۡنَا ذُرِّيَّتَهُۥ هُمُ ٱلۡبَاقِينَ ۝ 75
(77) और उसकी नस्ल ही को बाक़ी रखा,
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 76
(78) और बाद की नस्लों में उसकी प्रशंसा और सराहना छोड़ दी।
سَلَٰمٌ عَلَىٰ نُوحٖ فِي ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 77
(79) सलाम है नूह पर समस्त (सारी) दुनियावालों में।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 78
(80) हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं।
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 79
(81) वास्तव में वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था।
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 80
(82) फिर दूसरे गिरोह को हमने डुबो दिया।
۞وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِۦ لَإِبۡرَٰهِيمَ ۝ 81
(83) और नूह ही के तरीक़े पर चलनेवाला इबराहीम था,
إِذۡ جَآءَ رَبَّهُۥ بِقَلۡبٖ سَلِيمٍ ۝ 82
(84) जब वह अपने रब की सेवा में भला चंगा दिल लेकर आया।
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَاذَا تَعۡبُدُونَ ۝ 83
(85) जब उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहा, “ये क्या चीज़़ें हैं जिनकी तुम पूजा कर रहो हो?
أَئِفۡكًا ءَالِهَةٗ دُونَ ٱللَّهِ تُرِيدُونَ ۝ 84
(86) क्या अल्लाह को छोड़कर झूठ गढ़े हुए उपास्य चाहते हो?
فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 85
(87) आख़िर अल्लाह सारे जहान के रब के बारे में तुम्हारा क्या गुमान है?"
فَنَظَرَ نَظۡرَةٗ فِي ٱلنُّجُومِ ۝ 86
(88) फिर उसने तारों पर एक निगाह डाली10
10. अरबी भाषा में ये शब्द मुहावरे के रूप में इस अर्थ में बोला करते हैं कि उसने विचार किया या वह व्यक्ति सोचने लगा।
فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٞ ۝ 87
(89) और कहा : मेरी तबीयत ख़राब है।11
11. हमें किसी माध्यम से यह मालूम नहीं है कि उस समय हज़रत इबराहीम (अलैहि०) को किसी तरह की कोई तकलीफ़ न थी। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि हज़रत इबराहीम (अलैहि०) ने सत्य के विपरीत यह बहाना बनाया था।
فَتَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ مُدۡبِرِينَ ۝ 88
(90) अतएव वे लोग उसे छोड़कर चले गए।
فَرَاغَ إِلَىٰٓ ءَالِهَتِهِمۡ فَقَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ ۝ 89
(91) उनके पीछे वह चुपके से उनके उपास्यों के मन्दिर में घुस गया और बोला, “आप लोग खाते क्यों नहीं हैं?
مَا لَكُمۡ لَا تَنطِقُونَ ۝ 90
(92) क्या हो गया, आप लोग बोलते भी नहीं?”
فَرَاغَ عَلَيۡهِمۡ ضَرۡبَۢا بِٱلۡيَمِينِ ۝ 91
(93) इसके बाद वह उनपर पिल पड़ा और सीधे हाथ से ख़ूब चोटें मारीं।
فَأَقۡبَلُوٓاْ إِلَيۡهِ يَزِفُّونَ ۝ 92
(94) (वापस आकर) वे लोग भागे-भागे उसके पास आए।
قَالَ أَتَعۡبُدُونَ مَا تَنۡحِتُونَ ۝ 93
(95) उसने कहा, “क्या तुम अपनी ही तराशी हुई चीज़़ों को पूजते हो?
وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ وَمَا تَعۡمَلُونَ ۝ 94
(96) हालाँकि अल्लाह ही ने तुमको भी पैदा किया है और उन चीज़़ों को भी जिन्हें तुम बनाते हो।”
قَالُواْ ٱبۡنُواْ لَهُۥ بُنۡيَٰنٗا فَأَلۡقُوهُ فِي ٱلۡجَحِيمِ ۝ 95
(97) उन्होंने आपस में कहा कि “इसके लिए एक अलाव तैयार करो और इसे दहकती हुई आग के ढेर में फेंक दो।”
فَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَسۡفَلِينَ ۝ 96
(98) उन्होंने उसके विरुद्ध एक कार्रवाई करनी चाही थी, मगर हमने उन्हीं को नीचा दिखा दिया।
وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَىٰ رَبِّي سَيَهۡدِينِ ۝ 97
(99) इबराहीम ने कहा, “मैं अपने रब की ओर जाता हूँ12, वही मेरा पथप्रदर्शन करेगा।
12. अर्थात् अपने रब के लिए घर और स्वदेश (वतन) छोड़ रहा हूँ।
رَبِّ هَبۡ لِي مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 98
(100) ऐ पालनहार, मुझे एक बेटा प्रदान कर जो नेकों में से हो।”
فَبَشَّرۡنَٰهُ بِغُلَٰمٍ حَلِيمٖ ۝ 99
(101) (इस दुआ के उत्तर में) हमने उसको एक सहनशील लड़के की ख़ुशख़बरी दी।13
13. इससे मुराद हज़रत इसमाईल (अलैहि०) हैं।
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ ٱلسَّعۡيَ قَالَ يَٰبُنَيَّ إِنِّيٓ أَرَىٰ فِي ٱلۡمَنَامِ أَنِّيٓ أَذۡبَحُكَ فَٱنظُرۡ مَاذَا تَرَىٰۚ قَالَ يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰبِرِينَ ۝ 100
(102) वह लड़का जब उसके साथ दौड़-धूप करने की उम्र को पहुँच गया तो (एक दिन) इबराहीम ने उससे कहा “बेटा, मैं स्वप्न में देखता हूँ कि मैं तूझे ज़बह कर रहा हूँ, अब तू बता तेरा क्या विचार है?” उसने कहा, “अब्बाजान, जो कुछ आपको आदेश दिया जा रहा है उसे कर डालिए, आप अल्लाह ने चाहा तो मुझे सब्र करनेवालों में से पाएँगे।”
فَلَمَّآ أَسۡلَمَا وَتَلَّهُۥ لِلۡجَبِينِ ۝ 101
(103) आख़िरकार जब उन दोनों ने अपने-आपको अर्पित कर दिया और इबराहीम ने बेटे को माथे के बल गिरा दिया
وَنَٰدَيۡنَٰهُ أَن يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُ ۝ 102
(104) और हमने आवाज़ दी कि “ऐ इबराहीम,
قَدۡ صَدَّقۡتَ ٱلرُّءۡيَآۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 103
(105) तूने स्वप्न सच कर दिखाया।14 हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला देते हैं।
14. चूँकि स्वप्न में यह दिखाया गया था कि ज़बह कर रहे हैं, यह नहीं दिखाया गया था कि ज़बह कर दिया है, इसलिए जब हज़रत इबराहीम (अलैहि०) ने ज़बह करने की पूरी तैयारी कर ली तो कहा कि तूने अपना स्वप्न सच कर दिखाया।
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡبَلَٰٓؤُاْ ٱلۡمُبِينُ ۝ 104
(106) यक़ीनन यह एक खुली परीक्षा थी।”
وَفَدَيۡنَٰهُ بِذِبۡحٍ عَظِيمٖ ۝ 105
(107) और हमने एक बड़ी क़ुरबानी15 फ़िदये में देकर उस बच्चे को छुड़ा लिया।
15. “बड़ी क़ुरबानी” से मुराद एक मेंढा है जो उस समय अल्लाह के फ़रिश्ते ने हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के सामने पेश किया, ताकि बेटे के बदले उसको ज़बह कर दें। उसे बड़ी क़ुरबानी के शब्द से इसलिए व्यंजित किया गया। कि वह इबराहीम (अलैहि०) जैसे वफ़ादार बन्दे के लिए इबराहीम (अलैहि०) के सुपुत्र जैसे धैर्यवान और प्राण निछावर करनेवाले लड़के का फ़िदया था। इसके अतिरिक्त उसे “बड़ी क़ुरबानी” घोषित करने का एक कारण यह भी है कि क़ियामत तक के लिए अल्लाह ने यह प्रथा प्रचलित कर दी कि उसी तिथि को सब ईमानवाले दुनिया भर में जानवर क़ुरबान करें और वफ़ादारी और प्राणोत्सर्ग की इस महान घटना की याद ताज़ा करते रहे।
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 106
(108) और उसकी प्रशंसा और सराहना हमेशा के लिए बाद की नस्लों में छोड़ दी।
سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ ۝ 107
(109) सलाम है इबराहीम पर।
كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 108
(110) हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला देते हैं।
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 109
(111) यक़ीनन वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था।
وَبَشَّرۡنَٰهُ بِإِسۡحَٰقَ نَبِيّٗا مِّنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 110
(112) और हमने उसे इसहाक़ की ख़ुशख़बरी दी16, एक नबी नेकों में से।
16. अर्थात् क़ुरबानी की इस घटना के बाद हज़रत इसहाक़ (अलैहि०) के पैदा होने की ख़ुशख़बरी दी।
وَبَٰرَكۡنَا عَلَيۡهِ وَعَلَىٰٓ إِسۡحَٰقَۚ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحۡسِنٞ وَظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ مُبِينٞ ۝ 111
(113) और उसे और इसहाक़ को बरकत दी। अब उन दोनों की सन्तति में से कोई उत्तम कार्य करनेवाला है और कोई अपने आप पर खुला ज़ुल्म करनेवाला है।
وَلَقَدۡ مَنَنَّا عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ۝ 112
(114) और हमने मूसा और हारून पर उपकार किया,
وَنَجَّيۡنَٰهُمَا وَقَوۡمَهُمَا مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 113
(115) उनको और उनकी क़ौम को बड़ी घुटन और बेचैनी से मुक्त किया
وَنَصَرۡنَٰهُمۡ فَكَانُواْ هُمُ ٱلۡغَٰلِبِينَ ۝ 114
(116) उन्हें सहायता प्रदान की जिसके कारण वही विजयी रहे,
وَءَاتَيۡنَٰهُمَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلۡمُسۡتَبِينَ ۝ 115
(117) उनको अत्यन्त स्पष्ट किताब प्रदान की,
وَهَدَيۡنَٰهُمَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلۡمُسۡتَقِيمَ ۝ 116
(118) उन्हें सीधा मार्ग दिखाया,
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِمَا فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 117
(119) और बाद की नस्लों में उनकी शुभ चर्चा बाक़ी रखी।
سَلَٰمٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ۝ 118
(120) सलाम है मूसा और हारून पर
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 119
(121) हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला देते हैं,
إِنَّهُمَا مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 120
(122) वास्तव में वे हमारे ईमानवाले बन्दों में से थे।
وَإِنَّ إِلۡيَاسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 121
(123) और इलयास भी यक़ीनन रसूलों में से था।
إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 122
(124) याद करो जब उसने अपनी क़ौम से कहा था कि “तुम लोग डरते नहीं हो?
أَتَدۡعُونَ بَعۡلٗا وَتَذَرُونَ أَحۡسَنَ ٱلۡخَٰلِقِينَ ۝ 123
(125) क्या तुम बअल को पुकारते हो और सबसे अच्छे स्रष्टा को छोड़ देते हो,
ٱللَّهَ رَبَّكُمۡ وَرَبَّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 124
(126) उस अल्लाह को जो तुम्हारा और तुम्हारे अगले-पिछले बाप-दादों का रब है?”
فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ ۝ 125
(127) मगर उन्होंने उसे झुठला दिया, सो अब यक़ीनन वे सज़ा के लिए पेश किए जानेवाले हैं,
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 126
(128) सिवाय अल्लाह के उन बन्दों के जिनको ख़ास कर लिया गया था।
وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 127
(129) और इलयास की शुभ चर्चा हमने बाद की नस्लों में बाक़ी रखी।
سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِلۡ يَاسِينَ ۝ 128
(130) सलाम है इलयास पर।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 129
(131) हम नेकी करनेवालों को ऐसा ही बदला देते हैं।
إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 130
(132) वास्तव में वह हमारे ईमानवाले बन्दों में से था।
وَإِنَّ لُوطٗا لَّمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 131
(133) और लूत भी उन्हीं लोगों में से था जो रसूल बनाकर भेजे गए हैं।
إِذۡ نَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ ۝ 132
(134) याद करो जब हमने उसको और उसके सब घरवालों को छुटकारा दिया,
إِلَّا عَجُوزٗا فِي ٱلۡغَٰبِرِينَ ۝ 133
(135) सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में से थी।
ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 134
(136) फिर बाक़ी सबको तहस-नहस कर दिया।
وَإِنَّكُمۡ لَتَمُرُّونَ عَلَيۡهِم مُّصۡبِحِينَ ۝ 135
(137) आज तुम रात-दिन उनके उजड़े क्षेत्र से गुज़रते हो
وَبِٱلَّيۡلِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 136
(138) क्या तुमको समझ नहीं आती?
وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 137
(139) और यक़ीनन यूनुस भी रसूलों में से था।
إِذۡ أَبَقَ إِلَى ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ ۝ 138
(140) याद करो जब वह एक भरी नौका की ओर भाग निकला,
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُدۡحَضِينَ ۝ 139
(141) फिर चिट्ठी (पर्ची) डालने में शरीक हुआ और उसमें मात खाई।
فَٱلۡتَقَمَهُ ٱلۡحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٞ ۝ 140
(142) आख़िरकार मछली ने उसे निगल लिया और वह मलामत किया हुआ था।17
17. इन वाक्यों पर विचार करने से जो वस्तुस्थिति समझ में आती है वह यह है कि (1) हज़रत यूनुस (अलैहि०) जिस नौका में सवार हुए थे वह अपनी गुंजाइश से ज़्यादा भरी हुई थी। (2) चिट्ठी (पर्ची) नौका में डाली गई, और संभवतः उस समय डाली गई जब समुद्री यात्रा के बीच यह महसूस किया कि बोझ की अधिकता के कारण सारे यात्रियों की जान ख़तरे में पड़ गई है। अतः चिट्ठी (पर्ची) इस उद्देश्य से डाली गई कि जिसका नाम चिट्ठी (पर्ची) डालने से निकले उसे पानी में फेंक दिया जाए। (3) चिट्ठी (पर्ची) डालने पर हज़रत यूनुस (अलैहि०) ही का नाम निकला अतएव वे समुद्र में फेंक दिए गए और एक मछली ने उन्हें निगल लिया। (4) इस मुसीबत में हज़रत यूनुस (अलैहि०) इसलिए ग्रस्त हुए कि उन्होंने अपने रब (अर्थात् अल्लाह) की अनुमति के बिना अपने उस स्थान से पलायन किया था जहाँ वे नियुक्त किए गए थे। इसी अर्थ का प्रमाणीकरण 'अ-ब-क' शब्द से होता है। क्योंकि अरबी भाषा में वह भाग जानेवाले ग़ुलाम के लिए बोला जाता है।
فَلَوۡلَآ أَنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلۡمُسَبِّحِينَ ۝ 141
(143) अब अगर वह तसबीह (गुणगान) करनेवालों में से न होता
لَلَبِثَ فِي بَطۡنِهِۦٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 142
(144) तो क़ियामत के दिन तक उसी मछली के पेट में रहता।18
18. अर्थात् क़ियामत तक मछली का पेट ही हज़रत यूनुस (अलैहि०) की क़ब्र बना रहता।
۞فَنَبَذۡنَٰهُ بِٱلۡعَرَآءِ وَهُوَ سَقِيمٞ ۝ 143
(145) आख़िरकार हमने उसे बहुत ही अस्वस्थ दशा में एक चटियल ज़मीन पर फेंक दिया।
وَأَنۢبَتۡنَا عَلَيۡهِ شَجَرَةٗ مِّن يَقۡطِينٖ ۝ 144
(146) और उसपर एक लताओंवाला पेड़ उगा दिया।
وَأَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ مِاْئَةِ أَلۡفٍ أَوۡ يَزِيدُونَ ۝ 145
(147) इसके बाद हमने उसे एक लाख, या उससे ज़्यादा लोगों की ओर19 भेजा,
19. “एक लाख या उससे ज़्यादा” कहने का अर्थ यह नहीं है कि अल्लाह को उनकी संख्या में सन्देह था, बल्कि इसका मतलब यह है कि अगर कोई उनकी बस्ती को देखता तो यही अन्दाज़ा करता कि उस नगर की आबादी एक लाख से ज़्यादा ही होगी, कम न होगी।
فَـَٔامَنُواْ فَمَتَّعۡنَٰهُمۡ إِلَىٰ حِينٖ ۝ 146
(148) वे ईमान लाए और हमने एक विशेष समय तक उन्हें बाक़ी रखा।
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَلِرَبِّكَ ٱلۡبَنَاتُ وَلَهُمُ ٱلۡبَنُونَ ۝ 147
(149) फिर तनिक इन लोगों से पूछो, क्या (इनके दिल को यह बात लगती है कि) तुम्हारे रब के लिए तो हों बेटियाँ और इनके लिए हो बेटे?
أَمۡ خَلَقۡنَا ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ إِنَٰثٗا وَهُمۡ شَٰهِدُونَ ۝ 148
(150) क्या वास्तव में हमने फ़रिश्तों को औरतें ही बनाया है और ये आँखो देखी बात कह रहे हैं?
أَلَآ إِنَّهُم مِّنۡ إِفۡكِهِمۡ لَيَقُولُونَ ۝ 149
(151) ख़ूब सुन रखो, वास्तव में ये लोग अपनी मनगढ़न्त से यह बात कहते हैं
وَلَدَ ٱللَّهُ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ ۝ 150
(152) कि अल्लाह सन्तान रखता है, और वास्तव में ये झूठे है।
أَصۡطَفَى ٱلۡبَنَاتِ عَلَى ٱلۡبَنِينَ ۝ 151
(153) क्या अल्लाह ने बेटों की जगह बेटियाँ अपने लिए पसन्द कर लीं?
مَا لَكُمۡ كَيۡفَ تَحۡكُمُونَ ۝ 152
(154) तुम्हें क्या हो गया है, कैसे हुक्म लगा रहे हो?
أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 153
(155) क्या तुम्हें होश नहीं आता?
أَمۡ لَكُمۡ سُلۡطَٰنٞ مُّبِينٞ ۝ 154
(156) या फिर तुम्हारे पास अपनी इन बातों के लिए कोई साफ़ सनद है,
فَأۡتُواْ بِكِتَٰبِكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 155
(157) तो लाओ अपनी वह किताब अगर तुम सच्चे हो।
وَجَعَلُواْ بَيۡنَهُۥ وَبَيۡنَ ٱلۡجِنَّةِ نَسَبٗاۚ وَلَقَدۡ عَلِمَتِ ٱلۡجِنَّةُ إِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ ۝ 156
(158) इन्होंने अल्लाह और फ़रिश्तों20 के बीच वंश का नाता बना रखा है, हालाँकि फ़रिश्ते ख़ूब जानते हैं कि ये लोग अपराधी के रूप में पेश होनेवाले हैं
20. यद्यपि शब्द “जिन्न” इस्तेमाल हुआ है लेकिन आगे के बयान से स्पष्ट है कि इससे मुराद फ़रिश्ते हैं। जिन्न का शाब्दिक अर्थ है गुप्त (अदृश्य) प्राणी।
سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 157
(159) (और वे कहते हैं कि) “अल्लाह उन गुणों से मुक्त है
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 158
(160) जो उसके ख़ालिस बन्दों के सिवा दूसरे लोग उससे सम्बद्ध करते हैं।
فَإِنَّكُمۡ وَمَا تَعۡبُدُونَ ۝ 159
(161) अत: तुम और तुम्हारे ये उपास्य
مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ بِفَٰتِنِينَ ۝ 160
(162) अल्लाह से किसी को फेर नहीं सकते
إِلَّا مَنۡ هُوَ صَالِ ٱلۡجَحِيمِ ۝ 161
(163) मगर सिर्फ़ उसको जो दोज़ख़ की भड़कती हुई आग में झुलसनेवाला हो।
وَمَامِنَّآ إِلَّا لَهُۥ مَقَامٞ مَّعۡلُومٞ ۝ 162
(164) और हमारा हाल तो यह है कि हममें से हर एक का एक स्थान निश्चित है,
وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلصَّآفُّونَ ۝ 163
(165) और हम पंक्तिबद्ध सेवक हैं।
وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡمُسَبِّحُونَ ۝ 164
(166) और तसबीह (गुणगान) करनेवाले हैं।”
وَإِن كَانُواْ لَيَقُولُونَ ۝ 165
(167) ये लोग पहले तो कहा करते थे कि
لَوۡ أَنَّ عِندَنَا ذِكۡرٗا مِّنَ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 166
(168) काश हमारे पास वह “ज़िक्र” (अनुस्मारक) होता जो पिछली क़ौमों को मिला था
لَكُنَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 167
(169) तो हम अल्लाह के चुने हुए बन्दे होते।
فَكَفَرُواْ بِهِۦۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ ۝ 168
(170) (मगर जब वह आ गया) तो इन्होंने उसका इनकार कर दिया। अब जल्द ही इन्हें (इस नीति का परिणाम) मालूम हो जाएगा।
وَلَقَدۡ سَبَقَتۡ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 169
(171) अपने भेजे हुए बन्दों से हम पहले ही वादा कर चुके है
إِنَّهُمۡ لَهُمُ ٱلۡمَنصُورُونَ ۝ 170
(172) कि यक़ीनन उनकी सहायता की जाएगी
وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ ۝ 171
(173) और हमारी सेना ही प्रभावी होकर रहेगी।
فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ ۝ 172
(174) अत: ऐ नबी, तनिक कुछ मुद्दत तक इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो
وَأَبۡصِرۡهُمۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ ۝ 173
(175) और देखते रहो, जल्द ही वे ख़ुद भी देख लेंगे।
أَفَبِعَذَابِنَا يَسۡتَعۡجِلُونَ ۝ 174
(176) क्या ये हमारे अज़ाब के लिए जल्दी मचा रहे हैं?
فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمۡ فَسَآءَ صَبَاحُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 175
(177) जब वह इनके आँगन में उतरेगा तो वह दिन उन लोगों के लिए बहुत बुरा होगा जिन्हें सावधान किया जा चुका है।
وَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ ۝ 176
(178) अतः तनिक इन्हें कुछ मुद्दत के लिए छोड़ दो
وَأَبۡصِرۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ ۝ 177
(179) और देखते रहो, जल्द ही वे ख़ुद देख लेंगे
سُبۡحَٰنَ رَبِّكَ رَبِّ ٱلۡعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 178
(180) पवित्र है तेरा रब, गौरव का स्वामी, उन सभी बातों से जो ये लोग बना रहे हैं।
وَسَلَٰمٌ عَلَى ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 179
(181) और सलाम है रसूलों पर
وَٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 180
(182) और सारी प्रशंसा अल्लाह सारे जहान के रब ही के लिए है।
۞ٱحۡشُرُواْ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ وَأَزۡوَٰجَهُمۡ وَمَا كَانُواْ يَعۡبُدُونَ ۝ 181
(22) (हुक्म होगा) “घेर लाओ सब ज़ालिमों और उनके साथियों और उन उपास्यों6 को
6. इस जगह उपास्यों से मुराद फ़रिश्ते और महापुरुष और नबी नहीं हैं बल्कि दो तरह के उपास्य हैं। एक वे इनसान और शैतान जिनकी अपनी इच्छा और कोशिश यह थी कि लोग अल्लाह को छोड़कर उनको बन्दगी करें। दूसरे वे मूर्तियाँ आदि जिनकी पूजा दुनिया में की जाती रही है।