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سُورَةُ المُؤۡمِنُونَ

23. अल-मोमिनून

(मक्का में उतरी-आयतें 118)

परिचय

नाम

पहली ही आयत “क़द अफ़-ल-हल मोमिनून (निश्चय ही सफलता पाई है ईमान लानेवालों ने)" से लिया गया है।

उतरने का समय

वर्णनशैली और विषय, दोनों से यही मालूम होता है कि इस सूरा के उतरने का समय मक्का का मध्यकाल है। आयत 75-76 से स्पष्ट रूप से यह गवाही मिलती है कि यह मक्का के उस भीषण अकाल के समय में उतरी है जो विश्वस्त रिवायतों के अनुसार इसी मध्यकाल में पड़ा था।

विषय और वार्ताएँ

रसूल (सल्ल०) की पैरवी की दावत इस सूरा का केंद्रीय विषय है और पूरा भाषण इसी केंद्र के चारों ओर घूमता है। बात का आरंभ इस तरह होता है कि जिन लोगों ने इस पैग़म्बर की बात मान ली है, उनके भीतर ये और ये गुण पैदा हो रहे हैं और निश्चय ही ऐसे ही लोग दुनिया और आख़िरत की सफलता के अधिकारी हैं। इसके बाद इंसान की पैदाइश, आसमान और ज़मीन की पैदाइश, पेड़-पौधों और जानवरों की पैदाइश और सृष्टि की दूसरी निशानियों से तौहीद और आख़िरत के सत्य होने के प्रमाण जुटाए गए हैं, फिर नबियों (अलैहि०) और उनकी उम्मतों (समुदायों) के क़िस्से |बयान करके] कुछ बातें श्रोताओं को समझाई गई हैं-

एक यह कि आज तुम लोग मुहम्मद (सल्ल०) की दावत पर जो सन्देह और आपत्तियाँ कर रहे हो वे कुछ नई नहीं हैं, पहले भी जो नबी दुनिया में आए थे, उन सबपर उनके समय के अज्ञानियों ने यही आपत्तियाँ की थीं। अब देख लो कि इतिहास का पाठ क्या बता रहा है, आपत्ति करनेवाले सत्य पर थे या नबी?

दूसरे यह कि तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत के बारे में जो शिक्षा मुहम्मद (सल्ल०) दे रहे हैं, यही शिक्षा हर युग के नबियों ने दी है।

तीसरे यह कि जिन क़ौमों ने नबियों की बात सुनकर न दो, वे अन्तत: नष्ट होकर रहीं।

चौथे यह कि अल्लाह की ओर से हर समय में एक ही दीन आता रहा है और सारे नबी एक ही उम्मत (समुदाय) के लोग थे, उस अकेले धर्म के सिवा, जो अलग-अलग धर्म तुम लोग दुनिया में देख रहे हो, ये सब लोगों के गढ़े हुए हैं।

इन क़िस्सों के बाद लोगों को यह बताया गया है कि वास्तविक चीज़ जिसपर अल्लाह के यहाँ प्रिय या अप्रिय होना आश्रित है, वह आदमी का ईमान और उसकी ख़ुदातर्सी और सत्यवादिता है। ये बातें इसलिए कही गई हैं कि नबी (सल्ल०) की दावत के मुक़ाबले में उस समय जो रुकावटें पैदा की जा रही थी, उसके ध्वजावाहक सब के सब मक्का के बुजुर्ग और बड़े-बड़े सरदार थे। वे अपनी जगह स्वयं भी यह घमंड रखते थे और उनके प्रभावाधीन लोग भी इस भ्रम में पड़े हुए थे कि नेमतों की बारिश जिन लोगों पर हो रही है, उनपर ज़रूर अल्लाह और देवताओं की कृपा है। रहे ये टूटे-मारे लोग जो मुहम्मद के साथ हैं, इनकी तो हालत स्वयं ही यह बता रही है कि अल्लाह इनके साथ नहीं है और देवताओं की तो मार ही इनपर पड़ी हुई है। इसके बाद मक्कावालों को अलग-अलग पहलुओं से नबी (सल्ल०) की नुबूवत पर सन्तुष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। फिर उनको बताया गया है कि यह अकाल जो तुमपर आ पड़ा है, यह एक चेतावनी है, बेहतर है कि इसको देखकर संभलो और सीधे रास्ते पर आ जाओ। फिर उनको नए सिरे से उन निशानियों की ओर ध्यान दिलाया गया है जो सृष्टि और स्वयं उनके अपने अस्तित्त्व में मौजूद हैं। और अल्लाह की तौहीद और मरने के बाद की ज़िन्दगी की खुली हुई गवाही दे रही हैं। फिर नबी (सल्ल०) को हिदायत की गई है कि चाहे ये लोग तुम्हारे मुक़ाबले में कैसा ही रवैया अपनाएँ, तुम भले तरीक़ों ही से बचाव करना । शैतान कभी तुमको जोश में लाकर बुराई का जवाब बुराई से देने पर तैयार न करने पाए।

वार्ता के अन्त में सत्य के विरोधियों को आख़िरत की पूछ-ताछ से डराया गया है और उन्हें सचेत किया गया है कि जो कुछ तुम सत्य की दावत और उसकी पैरवी करनेवालों के साथ कर रहे हो, उसका कड़ा हिसाब तुमसे लिया जाएगा।

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سُورَةُ المُؤۡمِنُونَ
23. अल-मोमिनून
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
قَدۡ أَفۡلَحَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
(1) यक़ीनन सफलता पाई है ईमान लानेवालों ने
ٱلَّذِينَ هُمۡ فِي صَلَاتِهِمۡ خَٰشِعُونَ ۝ 1
(2) जो: अपनी नमाज़ में विनम्रता अपनाते हैं,
وَٱلَّذِينَ هُمۡ عَنِ ٱللَّغۡوِ مُعۡرِضُونَ ۝ 2
(3) व्यर्थ बातों से दूर रहते हैं,
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِلزَّكَوٰةِ فَٰعِلُونَ ۝ 3
(4) (ज़कात) की नीति पर चलते हैं
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِفُرُوجِهِمۡ حَٰفِظُونَ ۝ 4
(5) अपने गुप्त अंगों की हिफ़ाज़त करते हैं1
1. इसके दो अर्थ हैं। एक यह कि अपने शरीर के लज्जा योग्य भागों को छिपाकर रखते हैं, अर्थात् नग्नता से बचते हैं और अपने गुप्त अंग दूसरों के सामने नहीं खोलते। दूसरे यह कि वे अपनी पाकदामनी को सुरक्षित रखते हैं, अर्थात् काम भावना के मामलों में आज़ादी से काम नहीं लेते और काम-शक्ति के प्रयोग में बेलगाम नहीं होते।
إِلَّا عَلَىٰٓ أَزۡوَٰجِهِمۡ أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ فَإِنَّهُمۡ غَيۡرُ مَلُومِينَ ۝ 5
(6) सिवाय अपनी बीवियों के और उन औरतों के जो यथा-विधि उनकी मिलकियत में हों2 कि उनपर सुरक्षित न रखने में वे निन्दनीय नहीं है,
2. अर्थात् लौंडियाँ (बाँदिया) जो युद्ध में गिरफ़्तार होकर आएँ और युद्ध में बनाए गए बन्दियों का अपने क़ैदियों के बदले में वापस न किए जाने की स्थिति में इस्लामी हुकूमत की ओर से किसी व्यक्ति की मिलकियत में दे दी जाएँ।
فَمَنِ ٱبۡتَغَىٰ وَرَآءَ ذَٰلِكَ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡعَادُونَ ۝ 6
(7) लेकिन जो उसके अलावा कुछ और चाहें वही ज़्यादती करनेवाले हैं
وَٱلَّذِينَ هُمۡ لِأَمَٰنَٰتِهِمۡ وَعَهۡدِهِمۡ رَٰعُونَ ۝ 7
(8) अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते हैं,
وَٱلَّذِينَ هُمۡ عَلَىٰ صَلَوَٰتِهِمۡ يُحَافِظُونَ ۝ 8
(9) और अपनी नमाजों की हिफ़ाज़त करते हैं।
أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡوَٰرِثُونَ ۝ 9
(10) यही लोग वे वारिस हैं
ٱلَّذِينَ يَرِثُونَ ٱلۡفِرۡدَوۡسَ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 10
(11) जो विरासत में फ़िरदौस (आनन्द-लोक) पाएँगे और उसमें हमेशा रहेंगे।
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ مِن سُلَٰلَةٖ مِّن طِينٖ ۝ 11
(12) हमने इनसान को मिट्टी के सत से बनाया
ثُمَّ جَعَلۡنَٰهُ نُطۡفَةٗ فِي قَرَارٖ مَّكِينٖ ۝ 12
(13) फिर उसे एक सुरक्षित जगह टपकी हुई बूँद में परिवर्तित किया,
ثُمَّ خَلَقۡنَا ٱلنُّطۡفَةَ عَلَقَةٗ فَخَلَقۡنَا ٱلۡعَلَقَةَ مُضۡغَةٗ فَخَلَقۡنَا ٱلۡمُضۡغَةَ عِظَٰمٗا فَكَسَوۡنَا ٱلۡعِظَٰمَ لَحۡمٗا ثُمَّ أَنشَأۡنَٰهُ خَلۡقًا ءَاخَرَۚ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ أَحۡسَنُ ٱلۡخَٰلِقِينَ ۝ 13
(14) फिर उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया, फिर लोथड़े को बोटी बना दिया, फिर बोटी की हड्डियाँ बनाईं, फिर हड्डियों पर मांस चढ़ाया, फिर उसे एक दूसरी ही सृष्टि बना खड़ा किया।3 अतः बड़ा ही बरकतवाला है अल्लाह, सब कारीगरों से अच्छा कारीगर।
3. अर्थात् यद्यपि यही सब कुछ जानवरों के सृजन में भी होता है मगर अल्लाह ने इस सृजन-क्रिया से इनसान को एक और प्रकार का प्राणी बना खड़ा किया जो पशुओं से नितान्त भिन्न है।
ثُمَّ إِنَّكُم بَعۡدَ ذَٰلِكَ لَمَيِّتُونَ ۝ 14
(15) फिर इसके बाद तुमको ज़रूर मरना है
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تُبۡعَثُونَ ۝ 15
(16) फिर क़ियामत के दिन यक़ीनन तुम उठाए जाओगे।
وَلَقَدۡ خَلَقۡنَا فَوۡقَكُمۡ سَبۡعَ طَرَآئِقَ وَمَا كُنَّا عَنِ ٱلۡخَلۡقِ غَٰفِلِينَ ۝ 16
(17) और तुम्हारे ऊपर हमने सात रास्ते बनाए,4 सृष्टि कार्य से हम कुछ अनभिज्ञ न थे।5
4. सम्भवतः इससे मुराद सात ग्रहों के भ्रमण के रास्ते हैं, और क्योंकि उस समय का इनसान सात ग्रहों ही से परिचित था इसलिए सात ही रास्तों का उल्लेख किया गया। इसका अर्थ यह नहीं है कि इनके अलावा और दूसरे रास्ते नहीं है।
5. दूसरा अनुवाद यह भी हो सकता है: “और सृजितों की ओर से हम ग़ाफ़िल न थे, या नहीं हैं।” पहले अनुवाद की दृष्टि से आयत का अर्थ यह है कि यह सब कुछ जो हमने बनाया है, यह बस यों ही किसी अनाड़ी के हाथों अललटप्प नहीं बन गया है, बल्कि इसे एक सोची-समझी योजना पर पूरे ज्ञान के साथ बनाया गया है, महत्वपूर्ण क़ानून इसमें काम कर रहे हैं, साधारण से लेकर उच्चतम तक सम्पूर्ण जगत व्यवस्था में एक पूर्ण एकरूपता एवं समरसता पाई जाती है, और इस महान कार्यस्थल में हर ओर एक उद्देश्यमयता दिखाई देती है। जो बनानेवाले की तत्वदर्शिता का प्रमाण है। दूसरे अनुवाद के अनुसार अर्थ यह होगा कि इस जगत् में जितनी भी चीज़़ों की रचना हमने की है उसकी किसी आवश्यकता से हम कभी ग़ाफ़िल और किसी हालत से कभी बेख़बर नहीं रहे हैं। किसी चीज़़ को हमने अपनी योजना के विरुद्ध बनने और चलने नहीं दिया है। किसी चीज़ की प्राकृतिक आवश्यकताएँ पूरी करने में हमने कोताही नहीं की है और एक-एक कण और पत्ते की हालत से हम परिचित हैं।
وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءَۢ بِقَدَرٖ فَأَسۡكَنَّٰهُ فِي ٱلۡأَرۡضِۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابِۭ بِهِۦ لَقَٰدِرُونَ ۝ 17
(18) और आसमान से हमने ठीक हिसाब के अनुसार एक निश्चित मात्रा में पानी उतारा और उसको ज़मीन में ठहरा दिया, हम उसे जिस तरह चाहें ग़ायब कर सकते हैं।
فَأَنشَأۡنَا لَكُم بِهِۦ جَنَّٰتٖ مِّن نَّخِيلٖ وَأَعۡنَٰبٖ لَّكُمۡ فِيهَا فَوَٰكِهُ كَثِيرَةٞ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 18
(19) फिर उस पानी के द्वारा हमने तुम्हारे लिए खजूर और अंगूर के बाग़ पैदा कर दिए, तुम्हारे लिए इन बाग़ों में बहुत-से स्वादिष्ट फल हैं और उनसे तुम रोज़ी प्राप्त करते हो।
وَشَجَرَةٗ تَخۡرُجُ مِن طُورِ سَيۡنَآءَ تَنۢبُتُ بِٱلدُّهۡنِ وَصِبۡغٖ لِّلۡأٓكِلِينَ ۝ 19
(20) और वह पेड़ भी हमने पैदा किया जो तूरे-सीना से निकलता है,6 तेल भी लिए हुए उगता है और खानेवालों के लिए सालन भी।
6. इससे मुराद ज़ैतून है, जो रूम सागर के आस-पास के इलाक़े की पैदावार में सबसे ज़्यादा महत्व की चीज़़ है। तूरे-सीना से इसे सम्बद्ध करने का कारण सम्भवतः यह है कि वही इलाक़ा जिसका सबसे सुप्रसिद्ध और प्रमुख स्थान तूरे-सीना है, इस पेड़ का असली वतन है।
وَإِنَّ لَكُمۡ فِي ٱلۡأَنۡعَٰمِ لَعِبۡرَةٗۖ نُّسۡقِيكُم مِّمَّا فِي بُطُونِهَا وَلَكُمۡ فِيهَا مَنَٰفِعُ كَثِيرَةٞ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ ۝ 20
(21) और सच यह है कि तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसी में से एक चीज़़ (यानी दूध) हम तुम्हें पिलाते हैं और तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से दूसरे फ़ायदे भी है। उनको तुम खाते हो
وَعَلَيۡهَا وَعَلَى ٱلۡفُلۡكِ تُحۡمَلُونَ ۝ 21
(22) और उनपर और नावों पर सवार भी किए जाते हो।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوۡمِهِۦ فَقَالَ يَٰقَوۡمِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥٓۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ۝ 22
(23) हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, अल्लाह की बन्दगी करो, उसके सिवा तुम्हारे लिए कोई पूज्य नहीं है। क्या तुम डरते नहीं हो?”
فَقَالَ ٱلۡمَلَؤُاْ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قَوۡمِهِۦ مَا هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يُرِيدُ أَن يَتَفَضَّلَ عَلَيۡكُمۡ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَأَنزَلَ مَلَٰٓئِكَةٗ مَّا سَمِعۡنَا بِهَٰذَا فِيٓ ءَابَآئِنَا ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 23
(24) उसकी क़ौम के जिन सरदारों ने मानने से इनकार किया वे कहने लगे कि “यह व्यक्ति कुछ नहीं है मगर एक इनसान तुम ही जैसा। इसका उद्देश्य यह है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे। अल्लाह को अगर भेजना होता तो फ़रिश्ते भेजता। यह बात तो हमने कभी अपने बाप-दादा के समयों में सुनी ही नहीं (कि इनसान रसूल बनकर आए)
إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلُۢ بِهِۦ جِنَّةٞ فَتَرَبَّصُواْ بِهِۦ حَتَّىٰ حِينٖ ۝ 24
(25) कुछ नहीं, बस इस आदमी को कुछ उन्माद हो गया है। कुछ समय तक और देख लो (शायद स्वास्थ्य लाभ हो जाए)।”
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِي بِمَا كَذَّبُونِ ۝ 25
(26) नूह ने कहा, “पालनहार, इन लोगों ने मुझे जो झुठलाया है इसपर अब तू ही मेरी मदद कर।
فَأَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡهِ أَنِ ٱصۡنَعِ ٱلۡفُلۡكَ بِأَعۡيُنِنَا وَوَحۡيِنَا فَإِذَا جَآءَ أَمۡرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ فَٱسۡلُكۡ فِيهَا مِن كُلّٖ زَوۡجَيۡنِ ٱثۡنَيۡنِ وَأَهۡلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَيۡهِ ٱلۡقَوۡلُ مِنۡهُمۡۖ وَلَا تُخَٰطِبۡنِي فِي ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ إِنَّهُم مُّغۡرَقُونَ ۝ 26
(27) हमने उसपर (वह्य) की कि “हमारी निगरानी में और हमारी प्रकाशना (वह्य) के अनुसार नाव तैयार कर। फिर जब हमारा आदेश आ जाए और वह तंदूर उबल पड़े तो हर क़िस्म के जानवरों में से एक-एक जोड़ा लेकर उसमें सवार हो जा और अपने घरवालों को भी साथ ले सिवाय उनके जिनके ख़िलाफ़ पहले फ़ैसला हो चुका है, और ज़ालिमों के बारे में मुझसे कुछ न कहना, ये अब डूबनेवाले हैं।
فَإِذَا ٱسۡتَوَيۡتَ أَنتَ وَمَن مَّعَكَ عَلَى ٱلۡفُلۡكِ فَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي نَجَّىٰنَا مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 27
(28) फिर जब तू अपने साथियों समेत नाव पर सवार हो जाए तो कह, शुक्र है उस अल्लाह का जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया।
وَقُل رَّبِّ أَنزِلۡنِي مُنزَلٗا مُّبَارَكٗا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلۡمُنزِلِينَ ۝ 28
(29) और कह पालनहार, मुझको बरकतवाली जगह उतार और तू सबसे अच्छी जगह देनेवाला है।"
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ وَإِن كُنَّا لَمُبۡتَلِينَ ۝ 29
(30) इस क़िस्से में बड़ी निशानियाँ हैं, और आज़माइश तो हम करके ही रहते हैं।
ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قَرۡنًا ءَاخَرِينَ ۝ 30
(31) उनके बाद हमने एक दूसरे दौर की क़ौम को उठाया।
فَأَرۡسَلۡنَا فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡهُمۡ أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنۡ إِلَٰهٍ غَيۡرُهُۥٓۚ أَفَلَا تَتَّقُونَ ۝ 31
(32) फिर उनमें ख़ुद उन्हीं की क़ौम का एक रसूल भेजा (जिसने उन्हें दावत दी) कि अल्लाह की बन्दगी करो, तुम्हारे लिए उसके सिवा कोई और पूज्य नहीं है, क्या तुम डरते नहीं हो?
وَقَالَ ٱلۡمَلَأُ مِن قَوۡمِهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِلِقَآءِ ٱلۡأٓخِرَةِ وَأَتۡرَفۡنَٰهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا مَا هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يَأۡكُلُ مِمَّا تَأۡكُلُونَ مِنۡهُ وَيَشۡرَبُ مِمَّا تَشۡرَبُونَ ۝ 32
(33) उसकी क़ौम के जिन सरदारों ने मानने से इनकार किया और आख़िरत की पेशी को झुठलाया, जिनको हमने दुनिया की ज़िन्दगी में सम्पन्न कर रखा था, वे कहने लगे, “यह व्यक्ति कुछ नहीं है मगर एक इनसान तुम ही जैसा। जो कुछ तुम खाते हो वही यह खाता है और जो कुछ तुम पीते हो वही यह पीता है।
وَلَئِنۡ أَطَعۡتُم بَشَرٗا مِّثۡلَكُمۡ إِنَّكُمۡ إِذٗا لَّخَٰسِرُونَ ۝ 33
(34) अब अगर तुमने अपने ही जैसे एक इनसान का कहना मान लिया तो तुम घाटे ही में रहे।
أَيَعِدُكُمۡ أَنَّكُمۡ إِذَا مِتُّمۡ وَكُنتُمۡ تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَنَّكُم مُّخۡرَجُونَ ۝ 34
(35) यह तुम्हें सूचना देता है कि जब तुम मरकर मिट्टी हो जाओगे और हड्डियों का पंजर बनकर रह जाओगे उस समय तुम (क़ब्रों से) निकाले जाओगे?
۞هَيۡهَاتَ هَيۡهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ ۝ 35
(36) दूर बिलकुल दूर (असंभव) है यह वादा जो तुमसे किया जा रहा है।
إِنۡ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا ٱلدُّنۡيَا نَمُوتُ وَنَحۡيَا وَمَا نَحۡنُ بِمَبۡعُوثِينَ ۝ 36
(37) ज़िन्दगी कुछ नहीं है मगर बस यही दुनिया की ज़िन्दगी। यहीं हमको मरना और जीना है और हम हरगिज़ उठाए जानेवाले नहीं है।
إِنۡ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗا وَمَا نَحۡنُ لَهُۥ بِمُؤۡمِنِينَ ۝ 37
(38) यह व्यक्ति अल्लाह के नाम पर सिर्फ़ झूठ गढ़ रहा है और हम कभी इसकी माननेवाले नहीं है।”
قَالَ رَبِّ ٱنصُرۡنِي بِمَا كَذَّبُونِ ۝ 38
(39) रसूल ने कहा, “पालनहार, इन लोगों ने जो मुझे झुठलाया है उसपर अब तू ही मेरी मदद कर।”
قَالَ عَمَّا قَلِيلٖ لَّيُصۡبِحُنَّ نَٰدِمِينَ ۝ 39
(40) जवाब में कहा गया, “क़रीब है वह समय जब ये अपने किए पर पछताएँगे।”
فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّيۡحَةُ بِٱلۡحَقِّ فَجَعَلۡنَٰهُمۡ غُثَآءٗۚ فَبُعۡدٗا لِّلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 40
(41) आख़िरकार ठीक-ठीक सत्य के अनुसार एक बड़े कोलाहल ने उनको आ लिया और हमने उनको कचरा बनाकर फेंक दिया— दूर हो ज़ालिम क़ौम!
ثُمَّ أَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قُرُونًا ءَاخَرِينَ ۝ 41
(42) फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमें उठाई।
مَا تَسۡبِقُ مِنۡ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ ۝ 42
(43) किसी क़ौम का न अपने समय से पहले अन्त हुआ और न उसके बाद ठहर सकी।
ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا رُسُلَنَا تَتۡرَاۖ كُلَّ مَا جَآءَ أُمَّةٗ رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُۖ فَأَتۡبَعۡنَا بَعۡضَهُم بَعۡضٗا وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَحَادِيثَۚ فَبُعۡدٗا لِّقَوۡمٖ لَّا يُؤۡمِنُونَ ۝ 43
(44) फिर हमने लगातार अपने रसूल भेजे। जिस क़ौम के पास भी उसका रसूल आया, उसने उसे झुठलाया, और हम एक के बाद एक क़ौम को तबाह करते चले गए, यहाँ तक कि उनको बस कहानी ही बनाकर छोड़ा—फिटकार उन लोगों पर जो ईमान नहीं लाते!
ثُمَّ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ وَأَخَاهُ هَٰرُونَ بِـَٔايَٰتِنَا وَسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٍ ۝ 44
(45) फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुली सनद के साथ
إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ وَكَانُواْ قَوۡمًا عَالِينَ ۝ 45
(46) फ़िरऔन और उसके राज्य के सरदारों की ओर भेजा, मगर उन्होंने गर्व किया और बड़ी शेखी बघारी।
فَقَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ لِبَشَرَيۡنِ مِثۡلِنَا وَقَوۡمُهُمَا لَنَا عَٰبِدُونَ ۝ 46
(47) कहने लगे, “क्या हम अपने ही जैसे दो आदमियों पर ईमान ले आएँ? और आदमी भी वे जिनकी क़ौम हमारी बन्दी है।”
فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُواْ مِنَ ٱلۡمُهۡلَكِينَ ۝ 47
(48) अतः उन्होंने दोनों को झुठला दिया और तबाह होनेवालों में जा मिले।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ لَعَلَّهُمۡ يَهۡتَدُونَ ۝ 48
(49) और मूसा को हमने किताब प्रदान की ताकि लोग उससे पथ-प्रदर्शन प्राप्त करें।
وَجَعَلۡنَا ٱبۡنَ مَرۡيَمَ وَأُمَّهُۥٓ ءَايَةٗ وَءَاوَيۡنَٰهُمَآ إِلَىٰ رَبۡوَةٖ ذَاتِ قَرَارٖ وَمَعِينٖ ۝ 49
(50) और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया और उनको एक उच्च धरातल पर रखा जो इतमीनान की जगह थी और स्रोत उसमें प्रवाहित थे।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلرُّسُلُ كُلُواْ مِنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَٱعۡمَلُواْ صَٰلِحًاۖ إِنِّي بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِيمٞ ۝ 50
(51) ऐ पैग़म्बरो, खाओ पाक चीज़़ें और कर्म करो अच्छे, तुम जो कुछ भी करते हो, मैं उसको ख़ूब जानता हूँ।
وَإِنَّ هَٰذِهِۦٓ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱتَّقُونِ ۝ 51
(52) और यह तुम्हारा समुदाय (उम्मत) एक ही समुदाय (उम्मत) है और मैं तुम्हारा रब हूँ, अतः मुझी से तुम डरो।
فَتَقَطَّعُوٓاْ أَمۡرَهُم بَيۡنَهُمۡ زُبُرٗاۖ كُلُّ حِزۡبِۭ بِمَا لَدَيۡهِمۡ فَرِحُونَ ۝ 52
(53) मगर बाद में लोगों ने अपने दीन (धर्म) को आपस में टुकड़े-टुकड़े कर लिया। हर गिरोह के पास जो कुछ है उसी में वह मग्न है—
فَذَرۡهُمۡ فِي غَمۡرَتِهِمۡ حَتَّىٰ حِينٍ ۝ 53
(54) अच्छा, तो छोड़ो उन्हें, डूबे रहें अपनी ग़फ़लत में एक विशेष समय तक।
أَيَحۡسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِۦ مِن مَّالٖ وَبَنِينَ ۝ 54
(55) क्या ये समझते हैं कि हम जो इन्हें धन और सन्तान से मदद दिए जा रहे हैं
نُسَارِعُ لَهُمۡ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِۚ بَل لَّا يَشۡعُرُونَ ۝ 55
(56) तो मानो इन्हें भलाइयाँ देने में यत्नशील हैं? नहीं, वास्तविक तथ्य का इन्हें विवेक नहीं है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ هُم مِّنۡ خَشۡيَةِ رَبِّهِم مُّشۡفِقُونَ ۝ 56
(57) वास्तव में तो जो लोग अपने रब के ख़ौफ़ से डरनेवाले होते हैं,
وَٱلَّذِينَ هُم بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ يُؤۡمِنُونَ ۝ 57
(58) जो अपने रब की आयतों पर ईमान लाते हैं,
وَٱلَّذِينَ هُم بِرَبِّهِمۡ لَا يُشۡرِكُونَ ۝ 58
(59) जो अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं करते,
وَٱلَّذِينَ يُؤۡتُونَ مَآ ءَاتَواْ وَّقُلُوبُهُمۡ وَجِلَةٌ أَنَّهُمۡ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ رَٰجِعُونَ ۝ 59
(60) और जिनका हाल यह है कि देते हैं जो कुछ भी देते हैं और दिल उनके इस ख़याल से काँपते रहते हैं कि हमें अपने रब की ओर पलटना है,
أُوْلَٰٓئِكَ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَهُمۡ لَهَا سَٰبِقُونَ ۝ 60
(61) वही भलाइयों की ओर दौड़नेवाले और अग्रसर होकर उन्हें पा लेनेवाले हैं।
وَلَا نُكَلِّفُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ وَلَدَيۡنَا كِتَٰبٞ يَنطِقُ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 61
(62) हम किसी व्यक्ति को उसकी सामर्थ्य से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देते, और हमारे पास एक किताब है, जो (हर एक का हाल) ठीक-ठीक बता देनेवाली है,7 और लोगों पर ज़ुल्म किसी हाल में भी नहीं किया जाएगा।
7. अर्थात् हर व्यक्ति के क्रिया-कलाप का लेख जिसमें उसका सब कुछ किया धरा अंकित है।
بَلۡ قُلُوبُهُمۡ فِي غَمۡرَةٖ مِّنۡ هَٰذَا وَلَهُمۡ أَعۡمَٰلٞ مِّن دُونِ ذَٰلِكَ هُمۡ لَهَا عَٰمِلُونَ ۝ 62
(63) मगर ये लोग इस मामले से बेख़बर हैं। और इनके कर्म भी उस तरीक़े से (जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है) भिन्न हैं।
حَتَّىٰٓ إِذَآ أَخَذۡنَا مُتۡرَفِيهِم بِٱلۡعَذَابِ إِذَا هُمۡ يَجۡـَٔرُونَ ۝ 63
(64) (वे अपनी ये करतूत किए चले जाएँगे) यहाँ तक कि जब हम उनके विलासियों (अय्याशों) को अज़ाब में पकड़ लेंगे तो फिर वे चिल्लाना आरम्भ कर देंगे
لَا تَجۡـَٔرُواْ ٱلۡيَوۡمَۖ إِنَّكُم مِّنَّا لَا تُنصَرُونَ ۝ 64
(65) अब बन्द करो अपनी फ़रियाद और विलाप हमारी ओर से अब कोई मदद तुम्हें मिलने को नहीं है।
قَدۡ كَانَتۡ ءَايَٰتِي تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَكُنتُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡ تَنكِصُونَ ۝ 65
(66) मेरी आयतें सुनाई जाती थीं तो तुम (रसूल की आवाज़ सुनते ही) उलटे पाँव भाग निकलते थे,
مُسۡتَكۡبِرِينَ بِهِۦ سَٰمِرٗا تَهۡجُرُونَ ۝ 66
(67) अपने घमण्ड में उसको ध्यान ही में न लाते थे, अपनी चौपालों में उसपर बातें छाँटते और बकवास किया करते थे।
أَفَلَمۡ يَدَّبَّرُواْ ٱلۡقَوۡلَ أَمۡ جَآءَهُم مَّا لَمۡ يَأۡتِ ءَابَآءَهُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 67
(68) तो क्या इन लोगों ने कभी इस वाणी पर विचार नहीं किया? या वह कोई ऐसी बात लाया है जो कभी इनके पूर्वजों के पास न आई थी?
أَمۡ لَمۡ يَعۡرِفُواْ رَسُولَهُمۡ فَهُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ ۝ 68
(69) या ये अपने रसूल से कभी के परिचित न थे कि (अपरिचित आदमी होने के कारण) उससे बिदकते हैं?
أَمۡ يَقُولُونَ بِهِۦ جِنَّةُۢۚ بَلۡ جَآءَهُم بِٱلۡحَقِّ وَأَكۡثَرُهُمۡ لِلۡحَقِّ كَٰرِهُونَ ۝ 69
(70) या ये इस बात को स्वीकार किए हुए हैं कि वह मजनून (उन्मादग्रस्त) है? नहीं, बल्कि वह सत्य लाया है और सत्य ही इनके बहुसंख्यक को अप्रिय है।
وَلَوِ ٱتَّبَعَ ٱلۡحَقُّ أَهۡوَآءَهُمۡ لَفَسَدَتِ ٱلسَّمَٰوَٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِيهِنَّۚ بَلۡ أَتَيۡنَٰهُم بِذِكۡرِهِمۡ فَهُمۡ عَن ذِكۡرِهِم مُّعۡرِضُونَ ۝ 70
(71) और सत्य अगर कहीं इनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो ज़मीन-और आसमान और इनकी सारी आबादी की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती नहीं, बल्कि हम उनका अपना ही ज़िक्र उनके पास लाए हैं और वे अपने ज़िक्र से मुँह मोड़ रहे हैं।
أَمۡ تَسۡـَٔلُهُمۡ خَرۡجٗا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيۡرٞۖ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلرَّٰزِقِينَ ۝ 71
(72) क्या तू उनसे कुछ माँग रहा है? तेरे लिए तो तेरे रब का दिया ही उत्तम है और वह सबसे अच्छा रोज़ी देनेवाला है।
وَإِنَّكَ لَتَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 72
(73) तू तो उनको सीधे मार्ग की ओर बुला रहा है।
وَإِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ عَنِ ٱلصِّرَٰطِ لَنَٰكِبُونَ ۝ 73
(74) मगर जो लोग आख़िरत को नहीं मानते वे सीधे मार्ग से हटकर चलना चाहते हैं।
۞وَلَوۡ رَحِمۡنَٰهُمۡ وَكَشَفۡنَا مَا بِهِم مِّن ضُرّٖ لَّلَجُّواْ فِي طُغۡيَٰنِهِمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 74
(75) अगर हम इनपर दया करें और वह तकलीफ़ जिसमें आजकल ये ग्रस्त हैं,8 दूर कर दें तो ये अपनी सरकशी में बिलकुल ही बहक जाएँगे
8. इससे मुराद है वह अकाल जो नबी (सल्ल०) के नबी होने के बाद कुछ वर्ष तक व्याप्त रहा।
وَلَقَدۡ أَخَذۡنَٰهُم بِٱلۡعَذَابِ فَمَا ٱسۡتَكَانُواْ لِرَبِّهِمۡ وَمَا يَتَضَرَّعُونَ ۝ 75
(76) इनका हाल तो यह है कि हमने इन्हें तकलीफ़ में ग्रस्त किया, फिर भी ये अपने रब के आगे न झुके और न विनम्रता अपनाते हैं।
حَتَّىٰٓ إِذَا فَتَحۡنَا عَلَيۡهِم بَابٗا ذَا عَذَابٖ شَدِيدٍ إِذَا هُمۡ فِيهِ مُبۡلِسُونَ ۝ 76
(77) अलबत्ता जब नौबत यहाँ तक पहुँच जाएगी कि हम इनपर कठोर अज़ाब का द्वार खोल दें तो सहसा तुम देखोगे कि इस हालत में ये हर भलाई से निराश हैं।
وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنشَأَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَۚ قَلِيلٗا مَّا تَشۡكُرُونَ ۝ 77
(78) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हें सुनने और देखने की शक्तियाँ दीं और सोचने को दिल दिए। मगर तुम लोग कम ही कृतज्ञता दिखाते हो।
وَهُوَ ٱلَّذِي ذَرَأَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَإِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ ۝ 78
(79) वही है जिसने तुम्हें ज़मीन में फैलाया, और उसी की ओर तुम समेटे जाओगे।
وَهُوَ ٱلَّذِي يُحۡيِۦ وَيُمِيتُ وَلَهُ ٱخۡتِلَٰفُ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 79
(80) वही ज़िन्दगी प्रदान करता है और वही मौत देता है। रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। क्या तुम्हारी समझ में यह बात नहीं आती?
بَلۡ قَالُواْ مِثۡلَ مَا قَالَ ٱلۡأَوَّلُونَ ۝ 80
(81) मगर ये लोग वही कुछ कहते हैं जो इनके अगले कह चुके हैं।
قَالُوٓاْ أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ ۝ 81
(82) ये कहते हैं, “क्या जब हम मरकर मिट्टी हो जाएँगे और हड्डियों का पंजर बनकर रह जाएँगे तो हमको फिर ज़िन्दा करके उठाया जाएगा?
لَقَدۡ وُعِدۡنَا نَحۡنُ وَءَابَآؤُنَا هَٰذَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 82
(83) हमने भी ये वादे बहुत सुने हैं और हमसे पहले हमारे बाप-दादा भी सुनते रहे हैं। ये तो बस पुरानी कहानियाँ है।"
قُل لِّمَنِ ٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِيهَآ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 83
(84) इनसे कहो, बताओ अगर तुम जानते हो कि यह ज़मीन और इसकी सारी आबादी किसकी है?
سَيَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 84
(85) ये ज़रूर कहेंगे अल्लाह की। कहो फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?
قُلۡ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ ٱلسَّبۡعِ وَرَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 85
(86) इनसे पूछो, सातों आसमानों और महान सिंहासन का मालिक कौन है?
سَيَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ أَفَلَا تَتَّقُونَ ۝ 86
(87) ये ज़रूर कहेंगे अल्लाह। कहो, फिर तुम डरते क्यों नहीं?
قُلۡ مَنۢ بِيَدِهِۦ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيۡءٖ وَهُوَ يُجِيرُ وَلَا يُجَارُ عَلَيۡهِ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 87
(88) इनसे कहो, बताओ अगर तुम जानते हो कि हर चीज़ पर प्रभुत्व किसका है? और कौन है वह जो पनाह देता है और उसके मुक़ाबले में कोई पनाह नहीं दे सकता?
سَيَقُولُونَ لِلَّهِۚ قُلۡ فَأَنَّىٰ تُسۡحَرُونَ ۝ 88
(89) ये अवश्य कहेंगे कि यह बात तो अल्लाह ही के लिए है। कहो, फिर कहाँ से तुमको धोखा लगता है?
بَلۡ أَتَيۡنَٰهُم بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ ۝ 89
(90) जो सत्य है वह हम इनके सामने ले आए हैं, और कोई शक नहीं कि ये लोग झूठे हैं।9
9. अर्थात् अपने इस कथन में झूठे कि अल्लाह के सिवा किसी और को भी ईश्वरत्व के गुणों, अधिकारों और हुक़ूक़, या इनमें से कोई भाग प्राप्त है। और अपने इस कथन में झूठे कि मौत के बाद ज़िन्दगी संभव नहीं है। उनका झूठ उनकी अपनी स्वीकृतियों से स्पष्ट है। एक ओर यह मानना कि ज़मीन और आसमान का मालिक और ब्रह्माण्ड की हर चीज़़ का अधिकारी अल्लाह है, और दूसरी ओर यह कहना कि ईश्वरत्व अकेले उसी का नहीं है, बल्कि दूसरों का भी (जो अनिवार्यतः उसके बन्दे और उसके पैदा किए हुए ही होंगे) उसमें कोई हिस्सा है, ये दोनों बातें स्पष्टतः एक-दूसरे के विरुद्ध हैं। इसी तरह एक ओर यह कहना कि हमको और इस भव्यशाली जगत् को ईश्वर ने पैदा किया है, और दूसरी ओर यह कहना कि ईश्वर अपने ही पैदा किए हुए को दोबारा पैदा नहीं कर सकता, स्पष्ट रूप से बुद्धि के विपरीत है। अतः उनकी अपनी मानी हुई सच्चाइयों से यह सिद्ध है कि शिर्क (बहुदेववाद) और आख़िरत का इनकार दोनों ही झूठी धारणाएँ हैं जो उन्होंने अपना रखी हैं।
مَا ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ مِن وَلَدٖ وَمَا كَانَ مَعَهُۥ مِنۡ إِلَٰهٍۚ إِذٗا لَّذَهَبَ كُلُّ إِلَٰهِۭ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 90
(91) अल्लाह ने किसी को अपनी औलाद नहीं बनाया है10 और कोई दूसरा ख़ुदा उसके साथ नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर ख़ुदा अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और फिर वे एक-दूसरे पर चढ़ दौड़ते। पाक है अल्लाह उन बातों से जो ये लोग बनाते हैं।
10. यहाँ किसी को यह भ्रम न हो कि यह कथन सिर्फ़ ईसाइयत के खण्डन में है। नहीं, अरब के बहुदेववादी भी अपने पूज्यों को अल्लाह की सन्तान घोषित करते थे, और दुनिया के ज़्यादातर मुशरिकों (बहुदेववादियों) की इस गुमराही में उन ही जैसी हालत रही है।
عَٰلِمِ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ فَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 91
(92) खुले और छिपे को जाननेवाला, वह उच्चतर है उस शिर्क से जो ये ठहरा रहे हैं।
قُل رَّبِّ إِمَّا تُرِيَنِّي مَا يُوعَدُونَ ۝ 92
(93) ऐ नबी, दुआ करो कि “पालनहार, जिस अज़ाब की इनको धमकी दी जा रही है वह अगर मेरी मौजूदगी में तू लाए,
رَبِّ فَلَا تَجۡعَلۡنِي فِي ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 93
(94) तो ऐ मेरे रब, मुझे इन ज़ालिम लोगों में शामिल न करना।11
11. इसका अर्थ यह नहीं है कि अल्लाह की पनाह, उस अज़ाब में नबी (सल्ल०) के ग्रस्त होने की वास्तव में कोई आशंका थी, या यह कि अगर आप यह दुआ न माँगते तो उसमें ग्रस्त हो जाते। बल्कि इस तरह की वर्णन-शैली यह ध्यान में प्रत्यक्ष करने के लिए अपनाई गई है कि अल्लाह का अज़ाब है ही डरने के योग्य चीज़, वह ऐसी भयावह चीज़ है कि पापियों ही को नहीं सुकर्मी लोगों को भी अपने सारे अच्छे कर्मों के होते हुए भी उससे पनाह माँगनी चाहिए।
وَإِنَّا عَلَىٰٓ أَن نُّرِيَكَ مَا نَعِدُهُمۡ لَقَٰدِرُونَ ۝ 94
(95) और वास्तविकता यह है कि हम तुम्हारी आँखों के सामने ही वह चीज़ ले आने की पूरी सामर्थ्य रखते हैं जिसकी धमकी हम इन्हें दे रहे हैं।
ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ ٱلسَّيِّئَةَۚ نَحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا يَصِفُونَ ۝ 95
(96) ऐ नबी, बुराई को उस ढंग से दूर करो जो उत्तम हो। जो कुछ बातें वे तुमपर बनाते हैं उन्हें हम ख़ूब जानते है।
وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنۡ هَمَزَٰتِ ٱلشَّيَٰطِينِ ۝ 96
(97) और दुआ करो कि “पालनहार, मैं शैतानों की उकसाहटों से तेरी पनाह माँगता हूँ,
وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن يَحۡضُرُونِ ۝ 97
(98) बल्कि ऐ मेरे रब, मैं तो इससे भी तेरी पनाह माँगता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।"
حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ رَبِّ ٱرۡجِعُونِ ۝ 98
(99) (ये लोग अपनी करनी से बाज़ न आएँगे) यहाँ तक कि जब इनमें से किसी की मौत आ जाएगी तो कहना शुरू करेगा कि “ऐ मेरे रब, मुझे उसी दुनिया में वापस भेज दीजिए जिसे मैं छोड़ आया हूँ,
لَعَلِّيٓ أَعۡمَلُ صَٰلِحٗا فِيمَا تَرَكۡتُۚ كَلَّآۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَآئِلُهَاۖ وَمِن وَرَآئِهِم بَرۡزَخٌ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 99
(100) उम्मीद है कि अब मैं अच्छा कर्म करूँगा” — हरगिज़ नहीं, यह तो बस एक बात है। जो वह बक रहा है। अब इन सब (मरनेवालों) के पीछे एक आड़12 है दूसरी ज़िन्दगी के दिन तक।
12. मूल में 'बरज़ख़' शब्द इस्तेमाल हुआ है। 'बरज़ख' फ़ारसी शब्द 'परदा' का दिया हुआ अरबी रूप है। आयत का अर्थ यह है कि अब उनके और दुनिया के बीच एक रोक है जो उन्हें वापस जाने नहीं देगी और क़ियामत तक वे दुनिया और आख़िरत के बीच के इस सीमांतर में ठहरे रहेंगे।
فَإِذَا نُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَلَآ أَنسَابَ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَئِذٖ وَلَا يَتَسَآءَلُونَ ۝ 100
(101) फिर ज्यों ही कि नरसिंघा (सूर) फूँक दिया गया, उनके बीच फिर कोई नाता न रहेगा और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे।
فَمَن ثَقُلَتۡ مَوَٰزِينُهُۥ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ۝ 101
(102) उस समय जिनके पलड़े भारी होंगे वही सफल होंगे।
وَمَنۡ خَفَّتۡ مَوَٰزِينُهُۥ فَأُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فِي جَهَنَّمَ خَٰلِدُونَ ۝ 102
(103) और जिनके पलड़े हलके होंगे वही लोग होंगे जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाल लिया। वे जहन्नम में हमेशा रहेंगे।
تَلۡفَحُ وُجُوهَهُمُ ٱلنَّارُ وَهُمۡ فِيهَا كَٰلِحُونَ ۝ 103
(104) आग उनके चेहरों की खाल चाट जाएगी और उनके जबड़े बाहर निकल आएँगे
أَلَمۡ تَكُنۡ ءَايَٰتِي تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَكُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ۝ 104
(105) “क्या तुम वही लोग नहीं हो कि मेरी आयतें तुम्हें सुनाई जाती थी तो तुम उन्हें झुठलाते थे?"
قَالُواْ رَبَّنَا غَلَبَتۡ عَلَيۡنَا شِقۡوَتُنَا وَكُنَّا قَوۡمٗا ضَآلِّينَ ۝ 105
(106) वे कहेंगे, “ऐ हमारे रब, हमारा दुर्भाग्य हमपर छा गया था। हम वास्तव में पथभ्रष्ट लोग थे।
رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا مِنۡهَا فَإِنۡ عُدۡنَا فَإِنَّا ظَٰلِمُونَ ۝ 106
(107) ऐ पालनहार, अब हमें यहाँ से निकाल दे। फिर हम ऐसा अपराध करें तो ज़ालिम होंगे।”
قَالَ ٱخۡسَـُٔواْ فِيهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ ۝ 107
(108) अल्लाह जवाब देगा, “दूर हो मेरे सामने से, पड़े रहो उसी में और मुझसे बात न करो।
إِنَّهُۥ كَانَ فَرِيقٞ مِّنۡ عِبَادِي يَقُولُونَ رَبَّنَآ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلرَّٰحِمِينَ ۝ 108
(109) तुम वही लोग तो हो कि मेरे कुछ बन्दे जब कहते थे कि ऐ हमारे पालनहार, हम ईमान लाए, हमें माफ़ कर दे, हमपर दया कर, तू सब दयावानों से अच्छा दयावान है,
فَٱتَّخَذۡتُمُوهُمۡ سِخۡرِيًّا حَتَّىٰٓ أَنسَوۡكُمۡ ذِكۡرِي وَكُنتُم مِّنۡهُمۡ تَضۡحَكُونَ ۝ 109
(110) तो तुमने उनका मज़ाक़ बना लिया। यहाँ तक कि उनकी ज़िद ने तुम्हें यह भी भुला दिया कि मैं भी कोई हूँ, और तुम उनपर हँसते रहे।
إِنِّي جَزَيۡتُهُمُ ٱلۡيَوۡمَ بِمَا صَبَرُوٓاْ أَنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡفَآئِزُونَ ۝ 110
(111) आज उनके उस सब्र का मैंने यह फल दिया है कि वही सफल हैं।”
قَٰلَ كَمۡ لَبِثۡتُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ عَدَدَ سِنِينَ ۝ 111
(112) फिर अल्लाह उनसे पूछेगा, “बताओ, ज़मीन में तुम कितने वर्ष रहे?”
قَالُواْ لَبِثۡنَا يَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ يَوۡمٖ فَسۡـَٔلِ ٱلۡعَآدِّينَ ۝ 112
(113) वे कहेंगे, “एक दिन या दिन का भी कुछ हिस्सा हम वहाँ ठहरे हैं, गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।”
قَٰلَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِيلٗاۖ لَّوۡ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 113
(114) कहा जाएगा, “थोड़ी ही देर ठहरे हो ना, क्या अच्छा होता कि तुमने यह उस समय जाना होता।
أَفَحَسِبۡتُمۡ أَنَّمَا خَلَقۡنَٰكُمۡ عَبَثٗا وَأَنَّكُمۡ إِلَيۡنَا لَا تُرۡجَعُونَ ۝ 114
(115) क्या तुमने यह समझ रखा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ ही पैदा किया है और तुम्हें हमारी ओर कभी पलटना ही नहीं है?"
فَتَعَٰلَى ٱللَّهُ ٱلۡمَلِكُ ٱلۡحَقُّۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡكَرِيمِ ۝ 115
(116) तो सर्वोच्च है अल्लाह, वास्तविक बादशाह, कोई पूज्य उसके सिवा नहीं, स्वामी है, महिमाशाली सिंहासन का।
وَمَن يَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ لَا بُرۡهَٰنَ لَهُۥ بِهِۦ فَإِنَّمَا حِسَابُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦٓۚ إِنَّهُۥ لَا يُفۡلِحُ ٱلۡكَٰفِرُونَ ۝ 116
(117) और जो कोई अल्लाह के साथ किसी और पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाण नहीं,13 तो उसका हिसाब उसके रब के पास है। ऐसे इनकार करनेवाले (काफ़िर) कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।
13. दूसरा अनुवाद यह भी हो सकता है कि “जो कोई अल्लाह के साथ किसी और पूज्य को पुकारे उसके लिए अपने इस कर्म के समर्थन में कोई प्रमाण नहीं है।"
وَقُل رَّبِّ ٱغۡفِرۡ وَٱرۡحَمۡ وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلرَّٰحِمِينَ ۝ 117
(118) ऐ नबी, कहो, मेरे रब माफ़ कर और दया कर, तू सब दयावानों से अच्छा दयावान है।