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سُورَةُ الأَنبِيَاءِ

21. अल-अंबिया

(मक्का में उतरी-आयतें 112)

परिचय

नाम

चूँकि इस सूरा में निरन्तर बहुत-से नबियों का उल्लेख हुआ है, इसलिए इसका नाम 'अल-अंबिया' रख दिया गया। यह विषय की दृष्टि से सूरा का शीर्षक नहीं है, बल्कि केवल पहचानने के लिए एक लक्षणमात्र है।

अवतरण काल

विषय और वर्णन-शैली, दोनों से यही मालूम होता है कि इसके उतरने का समय मक्का का मध्यवर्ती काल अर्थात् हमारे काल-विभाजन की दृष्टि से नबी (सल्ल०) की मक्की ज़िन्दगी का तीसरा काल है।

विषय और वार्ताएँ

इस सूरा में उस संघर्ष पर वार्ता की गई है जो नबी (सल्ल०) और क़ुरैश के सरदारों के बीच चल रहा था। वे लोग प्यारे नबी (सल्ल०) की रिसालत के दावे और आपकी तौहीद (एकेश्वरवाद) की दावत और आख़िरत के अक़ीदे पर जो सन्देह और आक्षेप पेश करते थे, उनका उत्तर दिया गया है। उनकी ओर से आपके विरोध में जो चालें चली जा रही थीं, उनपर डॉट-फटकार की गई है और उन हरकतों के बुरे नतीजों से सावधान किया गया है और अन्त में उनको यह एहसास दिलाया गया है कि जिस व्यक्ति को तुम अपने लिए संकट और मुसीबत समझ रहे हो वह वास्तव में तुम्हारे लिए दयालुता बनकर आया है।

अभिभाषण करते समय मुख्य रूप से जिन बातों पर वार्ता की गई है, वे ये हैं-

  1. मक्का के विधर्मियों की यह कुधारणा कि इंसान कभी रसूल नहीं हो सकता और इस आधार पर उनका हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) को रसूल मानने से इंकार करना- इस कुधारणा का सविस्तार खण्डन किया गया है।
  2. उनका नबी (सल्ल०) पर और क़ुरआन पर विभिन्न और विरोधाभासी आक्षेप करना और किसी एक बात पर न जमना- इसपर संक्षेप में मगर बहुत ही जोरदार और अर्थगर्भित ढंग से पकड़ की गई है।
  3. उनका यह विचार कि ज़िन्दगी बस एक खेल है जिसे कुछ दिन खेलकर यों ही समाप्त हो जाना है [इसका कोई हिसाब-किताब नहीं]- इसका बड़े ही प्रभावी ढंग से तोड़ किया गया है।
  4. शिर्क पर उनका आग्रह और तौहीद के विरुद्ध उनका अज्ञानतापूर्ण पक्षपात - इसके सुधार के लिए संक्षेप में किन्तु महत्त्वपूर्ण और चित्ताकर्षक दलीलें भी दी गई है।
  5. उनका यह भ्रम कि नबी के बार-बार झुठालाने के बावजूद जब उनपर कोई अज़ाब नहीं आता तो अवश्य ही नबी झूठा है और अल्लाह के अज़ाब की धमकियाँ केवल धमकियाँ हैं- इसको दलीलों से और उपदेश देकर दोनों तरीक़ों से दूर करने की कोशिशें की गई हैं।

इसके बाद नबियों की जीवन-चर्याओं के महत्त्वपूर्ण घटनाओं से कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं जिनसे यह समझाना अभीष्ट है कि वे तमाम पैग़म्बर जो मानव-इतिहास के दौरान ख़ुदा की ओर से आए थे, इंसान थे। ईश्वरत्व और प्रभुता का उनमें लेशमात्र तक न था। इसके साथ इन्हीं ऐतिहासिक उदाहरणों से दो बातें और भी स्पष्ट हो गई हैं-एक यह कि नबियों पर तरह-तरह की मुसीबतें आती रही हैं और उनके विरोधियों ने भी उनको बर्बाद करने की कोशिशें को हैं, मगर आख़िरकार अल्लाह की ओर से असाधारण रूप से उनकी मदद की गई है। दूसरे यह कि तमाम नबियों का दीन एक था और वह वही दीन था जिसे मुहम्मद (सल्ल०) पेश कर रहे हैं। मानव-जाति का असल दीन यही है और बाक़ी जितने धर्म दुनिया में बने हैं, वे केवल गुमराह इंसानों द्वारा डाली हुई फूट और संभेद है। अन्त में यह बताया गया है कि इंसान की नजात (मुक्ति) का आश्रय इसी दीन की पैरवी अपनाने पर है और इसका उतरना तो साक्षात दयालुता है।

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سُورَةُ الأَنبِيَاءِ
21. अल-अम्बिया
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
ٱقۡتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمۡ وَهُمۡ فِي غَفۡلَةٖ مُّعۡرِضُونَ
(1) क़रीब आ गया है लोगों के हिसाब का समय, और वे हैं कि असावधानी में पड़े मुँह मोड़े हुए हैं।
مَا يَأۡتِيهِم مِّن ذِكۡرٖ مِّن رَّبِّهِم مُّحۡدَثٍ إِلَّا ٱسۡتَمَعُوهُ وَهُمۡ يَلۡعَبُونَ ۝ 1
(2) उनके पास जो ताज़ा नसीहत भी उनके रब की ओर से आती है उसको तकल्लुफ़ से सुनते हैं और खेल में पड़े रहते हैं,
لَاهِيَةٗ قُلُوبُهُمۡۗ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّجۡوَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ هَلۡ هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡۖ أَفَتَأۡتُونَ ٱلسِّحۡرَ وَأَنتُمۡ تُبۡصِرُونَ ۝ 2
(3) दिल उनके (दूसरी ही चिन्ताओं में) लीन हैं। और ज़ालिम आपस में कानाफूसियाँ करते हैं कि “यह व्यक्ति आख़िर तुम जैसा एक इनसान ही तो है, फिर क्या तुम आँखों देखते जादू के फन्दे में फँस जाओगे?”
قَالَ رَبِّي يَعۡلَمُ ٱلۡقَوۡلَ فِي ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 3
(4) रसूल ने कहा, मेरा रब हर उस बात को जानता है जो आसमान और ज़मीन में की जाए, वह सुनता और जानता है।1
1. अर्थात् रसूल ने कभी इस झूठे प्रोपगण्डे और कानाफूसियों के इस अभियान का जवाब इसके सिवा न दिया कि तुम लोग जो कुछ बातें बनाते हो सब अल्लाह सुनता और जानता है, चाहे ज़ोर से कहो, चाहे चुपके-चुपके कानों में फूँको। वह कभी अन्यायी दुश्मनों के मुक़ाबले में डटकर मुँहतोड़ जवाब देने पर न उतर आया।
بَلۡ قَالُوٓاْ أَضۡغَٰثُ أَحۡلَٰمِۭ بَلِ ٱفۡتَرَىٰهُ بَلۡ هُوَ شَاعِرٞ فَلۡيَأۡتِنَا بِـَٔايَةٖ كَمَآ أُرۡسِلَ ٱلۡأَوَّلُونَ ۝ 4
(5) वे कहते हैं, “बल्कि ये बिखरे स्वप्न हैं, बल्कि यह इसकी मनगढ़न्त है, बल्कि यह व्यक्ति कवि है, नहीं तो यह लाए कोई निशानी जिस तरह पुराने ज़माने के रसूल निशानियों के साथ भेजे गए थे।”
مَآ ءَامَنَتۡ قَبۡلَهُم مِّن قَرۡيَةٍ أَهۡلَكۡنَٰهَآۖ أَفَهُمۡ يُؤۡمِنُونَ ۝ 5
(6) हालाँकि इनसे पहले कोई बस्ती भी, जिसे हमने तबाह किया, ईमान न लाई। अब क्या ये ईमान लाएँगे?
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ إِلَّا رِجَالٗا نُّوحِيٓ إِلَيۡهِمۡۖ فَسۡـَٔلُوٓاْ أَهۡلَ ٱلذِّكۡرِ إِن كُنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ ۝ 6
(7) और ऐ नबी, तुमसे पहले भी हमने इनसानों ही को रसूल बनाकर भेजा था, जिनपर हम प्रकाशना (वह्य) किया करते थे। तुम लोग अगर ज्ञान नहीं रखते तो किताबवालों से पूछ लो
وَمَا جَعَلۡنَٰهُمۡ جَسَدٗا لَّا يَأۡكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَمَا كَانُواْ خَٰلِدِينَ ۝ 7
(8) उन रसूलों को हमने कोई ऐसा शरीर नहीं दिया था कि वे खाते न हों, और न वे सदा जीनेवाले थे।
ثُمَّ صَدَقۡنَٰهُمُ ٱلۡوَعۡدَ فَأَنجَيۡنَٰهُمۡ وَمَن نَّشَآءُ وَأَهۡلَكۡنَا ٱلۡمُسۡرِفِينَ ۝ 8
(9) फिर देख लो कि आख़िरकार हमने उनके साथ अपने वादे पूरे किए, और उन्हें और जिस-जिसको हमने चाहा बना लिया और मर्यादाहीन लोगों को तबाह कर दिया।
لَقَدۡ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ كِتَٰبٗا فِيهِ ذِكۡرُكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 9
(10) लोगो, हमने तुम्हारी ओर एक ऐसी किताब भेजी है जिसमें तुम्हारा ही ज़िक्र है, क्या तुम समझते नहीं हो।2
2. अर्थात् इसमें कोई स्वप्न और कल्पना की बातें तो नहीं हैं। तुम्हारी अपनी ही चर्चा है। तुम्हारी ही मनःस्थिति और तुम्हारी ही ज़िन्दगी के मामलों की विवेचना है। तुम्हारी ही प्रकृति एवं संरचना और प्रारम्भ एवं परिणाम पर बातचीत है। तुम्हारे ही वातावरण से वे निशानियाँ चुन-चुनकर प्रस्तुत की गई हैं जो सत्य की ओर इशारा कर रही हैं, और तुम्हारे ही नैतिक गुणों में से श्रेष्ठताओं और बुराइयों का अन्तर स्पष्ट करके दिखाया जा रहा है। जिसके सत्य होने पर तुम्हारी अपनी अन्तरात्माएँ गवाही देती हैं। इन सब बातों में क्या चीज़़ ऐसी अस्पष्ट और जटिल है कि उसको समझने में तुम्हारी बुद्धि असमर्थ हो?
وَكَمۡ قَصَمۡنَا مِن قَرۡيَةٖ كَانَتۡ ظَالِمَةٗ وَأَنشَأۡنَا بَعۡدَهَا قَوۡمًا ءَاخَرِينَ ۝ 10
(11) कितनी ही ज़ालिम बस्तियाँ हैं जिनको हमने पीसकर रख दिया और उनके बाद दूसरी किसी क़ौम को उठाया।
فَلَمَّآ أَحَسُّواْ بَأۡسَنَآ إِذَا هُم مِّنۡهَا يَرۡكُضُونَ ۝ 11
(12) जब उनको हमारा अज़ाब महसूस हुआ तो लगे वहाँ से भागने
لَا تَرۡكُضُواْ وَٱرۡجِعُوٓاْ إِلَىٰ مَآ أُتۡرِفۡتُمۡ فِيهِ وَمَسَٰكِنِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُسۡـَٔلُونَ ۝ 12
(13) (कहा गया) “भागो नहीं, जाओ अपने उन्हीं घरों में और भोग-विलास के सामानों में जिनमें तुम चैन कर रहे थे, शायद कि तुमसे पूछा जाए?"3
3. इसके कई अर्थ हो सकते हैं, उदाहरणार्थ: तनिक अच्छी तरह इस अज़ाब का निरीक्षण करो, ताकि कल कोई इसका हाल पूछे तो ठीक बता सको। अपने वही ठाठ जमाकर फिर मजलिसें गर्म करो, शायद अब भी तुम्हारे सेवक और अनुचर हाथ बाँधकर पूछें कि सरकार क्या आज्ञा है? अपनी वही कौंसिलें और कमेटियाँ जमाए बैठे रहो, शायद अब भी तुम्हारे बुद्धिमत्तापूर्ण परामर्शों और चिन्तन-युक्त विचारों से लाभ उठाने के लिए दुनिया हाज़िर हो।
قَالُواْ يَٰوَيۡلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَٰلِمِينَ ۝ 13
(14) कहने लगे, “हाय हमारा दुर्भाग्य, बेशक हम दोषी थे।"
فَمَا زَالَت تِّلۡكَ دَعۡوَىٰهُمۡ حَتَّىٰ جَعَلۡنَٰهُمۡ حَصِيدًا خَٰمِدِينَ ۝ 14
(15) और वे यही पुकारते रहे, यहाँ तक कि हमने उनको खलियान कर दिया, ज़िन्दगी की एक चिनगारी तक उनमें न रही।
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا لَٰعِبِينَ ۝ 15
(16) हमने इस आसमान और ज़मीन को और जो कुछ इनमें है कुछ खेल के रूप में नहीं बनाया है।
لَوۡ أَرَدۡنَآ أَن نَّتَّخِذَ لَهۡوٗا لَّٱتَّخَذۡنَٰهُ مِن لَّدُنَّآ إِن كُنَّا فَٰعِلِينَ ۝ 16
(17) अगर हम कोई खिलौना बनाना चाहते और बस यही कुछ हमें करना होता तो अपने ही पास से कर लेते।4
4. अर्थात् हमें खेलना ही होता तो खिलौने बनाकर हम ख़ुद ही खेल लेते। इस रूप में यह ज़ुल्म तो हरगिज़ न किया जाता कि अकारण एक संवेदनशील, चेतनायुक्त, उत्तरदायी प्राणी को पैदा कर डाला जाता, उसके बीच सत्य और असत्य का यह संघर्ष और खींचातानियाँ कराई जातीं और सिर्फ़ अपने मनोरंजन के लिए हम नेक बन्दों को अकारण कष्टों में डालते।
بَلۡ نَقۡذِفُ بِٱلۡحَقِّ عَلَى ٱلۡبَٰطِلِ فَيَدۡمَغُهُۥ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٞۚ وَلَكُمُ ٱلۡوَيۡلُ مِمَّا تَصِفُونَ ۝ 17
(18) मगर हम तो असत्य पर सत्य की चोट लगाते हैं जो उसका सिर तोड़ देती है और वह देखते-देखते मिट जाता है और तुम्हारे लिए तबाही है उन बातों के कारण जो तुम बनाते हो।
وَلَهُۥ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَمَنۡ عِندَهُۥ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ عَنۡ عِبَادَتِهِۦ وَلَا يَسۡتَحۡسِرُونَ ۝ 18
(19) ज़मीन और आसमानों में जो कुछ भी है अल्लाह का है और जो (फ़रिश्ते) उसके पास हैं वे न अपने को बड़ा समझकर उसकी बन्दगी से मुँह फेरते हैं और न दुखी होते5 है।
5. अर्थात् अल्लाह की बन्दगी करना उनको अप्रिय भी नहीं है कि बेमन की बन्दगी करते-करते वे तंग आ जाते हों, और ईश्वरीय आदेशों के पालन करने में उनको थकावट भी नहीं आती।
يُسَبِّحُونَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ لَا يَفۡتُرُونَ ۝ 19
(20) रात और दिन उसकी तसबीह करते रहते हैं, दम नहीं लेते।
أَمِ ٱتَّخَذُوٓاْ ءَالِهَةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ هُمۡ يُنشِرُونَ ۝ 20
(21) क्या इन लोगों के बनाए हुए लौकिक पूज्य ऐसे हैं कि (बेजान को जान डालकर) उठा खड़ा करते हों?
لَوۡ كَانَ فِيهِمَآ ءَالِهَةٌ إِلَّا ٱللَّهُ لَفَسَدَتَاۚ فَسُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 21
(22) अगर आसमान और ज़मीन में एक अल्लाह के सिवा दूसरे पूज्य भी होते तो (ज़मीन और आसमान) दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती। अतः पाक है अल्लाह, सिंहासन का अधिकारी उन बातों से जो ये लोग बना रहे हैं।
لَا يُسۡـَٔلُ عَمَّا يَفۡعَلُ وَهُمۡ يُسۡـَٔلُونَ ۝ 22
(23) वह अपने कामों के लिए (किसी के आगे) उत्तरदायी नहीं है और सब उत्तरदायी हैं।
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةٗۖ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡۖ هَٰذَا ذِكۡرُ مَن مَّعِيَ وَذِكۡرُ مَن قَبۡلِيۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ٱلۡحَقَّۖ فَهُم مُّعۡرِضُونَ ۝ 23
(24) क्या उसे छोड़कर, इन्होंने दूसरे पूज्य बना लिए हैं? ऐ नबी, इनसे कहो कि “लाओ अपना प्रमाण यह किताब भी मौजूद है जिसमें मेरे युग के लोगों के लिए नसीहत है और वे किताबें भी मौजूद हैं जिनमें मुझसे पहले लोगों के लिए नसीहत थी।” मगर उनमें से ज़्यादातर लोग वास्तविकता से अपरिचित है, इसलिए मुँह मोड़े हुए हैं।
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِيٓ إِلَيۡهِ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱعۡبُدُونِ ۝ 24
(25) हमने तुमसे पहले जो भी रसूल भेजा है उसको यही प्रकाशना (वह्य) की है कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है, अत: तुम लोग मेरी ही बन्दगी करो।
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَلَدٗاۗ سُبۡحَٰنَهُۥۚ بَلۡ عِبَادٞ مُّكۡرَمُونَ ۝ 25
(26) ये कहते हैं, “रहमान (करुणामय ईश्वर) संतान रखता है।” पाक है अल्लाह, वे (अर्थात् फ़रिश्ते) तो बन्दे हैं जिन्हें प्रतिष्ठित किया गया है।
لَا يَسۡبِقُونَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ وَهُم بِأَمۡرِهِۦ يَعۡمَلُونَ ۝ 26
(27) उसके सामने बढ़कर नहीं बोलते और बस उसके आदेश को व्यवहार में लाते हैं।
يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَلَا يَشۡفَعُونَ إِلَّا لِمَنِ ٱرۡتَضَىٰ وَهُم مِّنۡ خَشۡيَتِهِۦ مُشۡفِقُونَ ۝ 27
(28) जो कुछ उनके सामने है उसे भी वह जानता है और जो कुछ उनसे ओझल है उससे भी वह परिचित है। वे किसी की सिफ़ारिश नहीं करते सिवाय उसके जिसके हक़ में सिफ़ारिश सुनने पर अल्लाह राज़ी हो, और वे उसके भय से डरते रहते हैं।
۞وَمَن يَقُلۡ مِنۡهُمۡ إِنِّيٓ إِلَٰهٞ مِّن دُونِهِۦ فَذَٰلِكَ نَجۡزِيهِ جَهَنَّمَۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 28
(29) और जो उनमें से कोई कह दे कि अल्लाह के सिवा मैं भी एक इष्ट-पूज्य हूँ, तो उसे हम जहन्नम की सज़ा देंगे, हमारे यहाँ ज़ालिमों का यही बदला है।
أَوَلَمۡ يَرَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ كَانَتَا رَتۡقٗا فَفَتَقۡنَٰهُمَاۖ وَجَعَلۡنَا مِنَ ٱلۡمَآءِ كُلَّ شَيۡءٍ حَيٍّۚ أَفَلَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 29
(30) क्या वे लोग जिन्होंने (नबी की बात मानने से) इनकार कर दिया है विचार नहीं करते कि ये सब आसमान और ज़मीन परस्पर मिले हुए थे, फिर हमने इन्हें अलग किया, और पानी से हर ज़िन्दा चीज़़ पैदा की? क्या वे हमारे इस रचनाकार्य की कुशलता को नहीं मानते?
وَجَعَلۡنَا فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ بِهِمۡ وَجَعَلۡنَا فِيهَا فِجَاجٗا سُبُلٗا لَّعَلَّهُمۡ يَهۡتَدُونَ ۝ 30
(31) और हमने ज़मीन में पहाड़ जमा दिए ताकि वह इन्हें लेकर ढुलक न जाए और उसमें चौड़े-विस्तृत रास्ते बना दिए, शायद कि लोग अपना मार्ग मालूम कर लें।
وَجَعَلۡنَا ٱلسَّمَآءَ سَقۡفٗا مَّحۡفُوظٗاۖ وَهُمۡ عَنۡ ءَايَٰتِهَا مُعۡرِضُونَ ۝ 31
(32) और हमने आसमान को एक सुरक्षित छत बना दिया। मगर ये हैं कि ब्रह्माण्ड की निशानियों की ओर ध्यान ही नहीं देते।
وَهُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ فِي فَلَكٖ يَسۡبَحُونَ ۝ 32
(33) और वह अल्लाह ही है जिसने रात और दिन बनाए और सूरज और चाँद की रचना की। सब एक-एक कक्ष में तैर रहे हैं।6
6. यहाँ “फ़लक” शब्द इस्तेमाल हुआ है जो फ़ारसी के 'चर्ख़' और 'गरदूँ' का ठीक समानार्थी है, अरबी भाषा में आसमान के जाने-माने प्रचलित नामों में से है। “सब एक-एक फ़लक (कक्ष) में तैर रहे हैं” से दो बातें साफ़ समझ में आती हैं। एक यह कि ये सब तारे एक ही “कक्ष” में नहीं हैं, बल्कि हर एक का कक्ष अलग है। दूसरा यह कि फ़लक कोई ऐसी चीज़़ नहीं है जिसमें ये तारे खूटियों की तरह जड़े हुए हो और वह ख़ुद इन्हें लिए हुए घूम रहा हो, बल्कि वह कोई तरल चीज़़ है या वायुमण्डल और शून्य स्थान जैसी चीज़़ है जिसमें इन तारों की गति तैरने की क्रिया से सादृश्य रखती है।
وَمَا جَعَلۡنَا لِبَشَرٖ مِّن قَبۡلِكَ ٱلۡخُلۡدَۖ أَفَإِيْن مِّتَّ فَهُمُ ٱلۡخَٰلِدُونَ ۝ 33
(34) और ऐ नबी अमरता तो हमने तुमसे पहले भी किसी इनसान के लिए नहीं रखी है, अगर तुम मर गए तो क्या ये लोग हमेशा जीते रहेंगे?
كُلُّ نَفۡسٖ ذَآئِقَةُ ٱلۡمَوۡتِۗ وَنَبۡلُوكُم بِٱلشَّرِّ وَٱلۡخَيۡرِ فِتۡنَةٗۖ وَإِلَيۡنَا تُرۡجَعُونَ ۝ 34
(35) हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, और हम अच्छी और बुरी परिस्थितियों में डालकर तुम सबकी आज़माइश कर रहे हैं। आख़िरकार तुम्हें हमारी ही ओर पलटना है।
وَإِذَا رَءَاكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَٰذَا ٱلَّذِي يَذۡكُرُ ءَالِهَتَكُمۡ وَهُم بِذِكۡرِ ٱلرَّحۡمَٰنِ هُمۡ كَٰفِرُونَ ۝ 35
(36) ये सत्य को अस्वीकार करनेवाले जब तुम्हें देखते हैं तो तुम्हारी हँसी बना लेते हैं। कहते हैं, “क्या यह है वह व्यक्ति जो तुम्हारे पूज्यों की चर्चा किया करता है?” और इनका अपना हाल यह है कि रहमान (करुणामय ईश्वर) के ज़िक्र से इनकार करते हैं।
خُلِقَ ٱلۡإِنسَٰنُ مِنۡ عَجَلٖۚ سَأُوْرِيكُمۡ ءَايَٰتِي فَلَا تَسۡتَعۡجِلُونِ ۝ 36
(37) इनसान उतावला पैदा हुआ है। अभी मैं तुमको अपनी निशानियाँ दिखाए देता हूँ, मुझसे जल्दी न मचाओ।
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 37
(38) — ये लोग कहते हैं, “आख़िर यह धमकी पूरी कब होगी अगर तुम सच्चे हो?”
لَوۡ يَعۡلَمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ حِينَ لَا يَكُفُّونَ عَن وُجُوهِهِمُ ٱلنَّارَ وَلَا عَن ظُهُورِهِمۡ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ ۝ 38
(39) क्या ही अच्छा होता अगर इन अधर्मियों को उस समय का कुछ ज्ञान होता जबकि न ये अपने मुँह आग से बचा सकेंगे और न अपनी पीठें, और न इनको कहीं से मदद पहुँचेगी।
بَلۡ تَأۡتِيهِم بَغۡتَةٗ فَتَبۡهَتُهُمۡ فَلَا يَسۡتَطِيعُونَ رَدَّهَا وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ ۝ 39
(40) वह आफ़त अचानक आएगी और इन्हें इस तरह एकदम से दबोच लेगी कि ये न उसे टाल सकेंगे और न इनको क्षण-भर मुहलत ही मिल सकेगी।
وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلٖ مِّن قَبۡلِكَ فَحَاقَ بِٱلَّذِينَ سَخِرُواْ مِنۡهُم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 40
(41) हँसी तुमसे पहले भी रसूलों की उड़ाई जा चुकी है, मगर उनकी हँसी उड़ानेवाले उसी चीज़़ के फेर में आकर रहे जिसकी वे हँसी उड़ाते थे।
قُلۡ مَن يَكۡلَؤُكُم بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ مِنَ ٱلرَّحۡمَٰنِۚ بَلۡ هُمۡ عَن ذِكۡرِ رَبِّهِم مُّعۡرِضُونَ ۝ 41
(42) ऐ नबी, इनसे कहो, “कौन है जो रात को या दिन को तुम्हें रहमान (करुणामय ईश्वर) से बचा सकता हो?” मगर ये अपने रब की नसीहत से मुँह मोड़ रहे हैं।
أَمۡ لَهُمۡ ءَالِهَةٞ تَمۡنَعُهُم مِّن دُونِنَاۚ لَا يَسۡتَطِيعُونَ نَصۡرَ أَنفُسِهِمۡ وَلَا هُم مِّنَّا يُصۡحَبُونَ ۝ 42
(43) क्या ये कुछ ऐसे ईश रखते हैं जो हमारे मुक़ाबले में इनका पक्ष लें? वे तो न ख़ुद अपनी मदद कर सकते हैं और न हमारा ही समर्थन उनको प्राप्त है।
بَلۡ مَتَّعۡنَا هَٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ طَالَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡعُمُرُۗ أَفَلَا يَرَوۡنَ أَنَّا نَأۡتِي ٱلۡأَرۡضَ نَنقُصُهَا مِنۡ أَطۡرَافِهَآۚ أَفَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ ۝ 43
(44) असल बात यह है कि इन लोगों को और इनके बाप-दादा को हम ज़िन्दगी का सामान दिए चले गए यहाँ तक कि इनको दिन लग गए। मगर क्या इन्हें दिखाई नहीं देता कि हम ज़मीन को विभिन्न दिशाओं से घटाते चले आ रहे हैं?7 फिर क्या ये प्रभावी हो जाएँगे?
7. अर्थात् ज़मीन में हमारी प्रभावकारी शक्ति को क्रियाशीलता के ये लक्षण प्रत्यक्षतः दिखाई दे रहे हैं कि अचानक कभी अकाल के रूप में, कभी आम बीमारी के रूप में, कभी बाढ़ के रूप में, कभी भूकम्प के रूप में, कभी सर्दी या गर्मी के रूप में कोई विपत्ति ऐसी आ जाती है जो इनसान के सब किए-धरे पर पानी फेर देती है, हज़ारों-लाखों आदमी मर जाते हैं, बस्तियाँ तबाह हो जाती हैं, लहलहाती खेतियाँ ग़ारत हो जाती हैं, पैदावार घट जाती है, व्यापारों में मंदी आने लगती है। तात्पर्य यह कि इनसान के जीवन-साधनों में कभी किसी दिशा में कमी आ जाती है और कभी किसी दिशा से, और इनसान अपनी सारी शक्ति लगाकर भी इन हानियों को नहीं रोक सकता।
قُلۡ إِنَّمَآ أُنذِرُكُم بِٱلۡوَحۡيِۚ وَلَا يَسۡمَعُ ٱلصُّمُّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا مَا يُنذَرُونَ ۝ 44
(45) इनसे कह दो कि “मैं तो प्रकाशना (वह्य) के आधार पर तुम्हें सावधान कर रहा हूँ” — मगर बहरे पुकार को नहीं सुना करते जबकि उन्हें सावधान किया जाए।
وَلَئِن مَّسَّتۡهُمۡ نَفۡحَةٞ مِّنۡ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُولُنَّ يَٰوَيۡلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَٰلِمِينَ ۝ 45
(46) और अगर तेरे रब का अज़ाब थोड़ा-सा इन्हें छू जाए तो अभी चीख़ उठें कि हाय हमारा दुर्भाग्य, बेशक हम दोषी थे।
وَنَضَعُ ٱلۡمَوَٰزِينَ ٱلۡقِسۡطَ لِيَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ فَلَا تُظۡلَمُ نَفۡسٞ شَيۡـٔٗاۖ وَإِن كَانَ مِثۡقَالَ حَبَّةٖ مِّنۡ خَرۡدَلٍ أَتَيۡنَا بِهَاۗ وَكَفَىٰ بِنَا حَٰسِبِينَ ۝ 46
(47) क़ियामत के दिन हम ठीक-ठीक तौलनेवाले तराज़ू रख देंगे, फिर किसी व्यक्ति पर कण-भर ज़ुल्म न होगा। जिसका राई के दाने के बराबर भी कुछ किया-धरा होगा वह हम सामने ला देंगे। और हिसाब लगाने के लिए हम काफ़ी हैं।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ٱلۡفُرۡقَانَ وَضِيَآءٗ وَذِكۡرٗا لِّلۡمُتَّقِينَ ۝ 47
(48) पहले हम मूसा और हारून को फ़ुरक़ान (कसौटी) और रौशनी और याददिहानी प्रदान कर चुके हैं उन डर रखनेवाले लोगों की भलाई के लिए
ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَهُم مِّنَ ٱلسَّاعَةِ مُشۡفِقُونَ ۝ 48
(49) जो बिना देखे अपने रब से डरें और जिनको (हिसाब की) उस घड़ी का खटका लगा हुआ हो।
وَهَٰذَا ذِكۡرٞ مُّبَارَكٌ أَنزَلۡنَٰهُۚ أَفَأَنتُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ ۝ 49
(50) और अब यह बरकतवाली, याददिहानी हमने (तुम्हारे लिए) उतारी है। फिर क्या तुम इसको क़ुबूल करने से इनकारी हो?
۞وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَآ إِبۡرَٰهِيمَ رُشۡدَهُۥ مِن قَبۡلُ وَكُنَّا بِهِۦ عَٰلِمِينَ ۝ 50
(51) उससे भी पहले हमने इबराहीम को उसकी समझ प्रदान की थी और हम उसको ख़ूब जानते थे।
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَا هَٰذِهِ ٱلتَّمَاثِيلُ ٱلَّتِيٓ أَنتُمۡ لَهَا عَٰكِفُونَ ۝ 51
(52) याद करो वह अवसर जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से कहा था कि “ये मूर्तियाँ कैसी हैं जिनके तुम लोग आसक्त हो रहे हो?”
قَالُواْ وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا لَهَا عَٰبِدِينَ ۝ 52
(53) उन्होंने जवाब दिया, “हमने अपने बाप-दादा को उनकी उपासना करते पाया है।”
قَالَ لَقَدۡ كُنتُمۡ أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُمۡ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 53
(54) उसने कहा, “तुम भी गुमराह हो और तुम्हारे बाप-दादा भी खुली गुमराही में पड़े हुए थे।”
قَالُوٓاْ أَجِئۡتَنَا بِٱلۡحَقِّ أَمۡ أَنتَ مِنَ ٱللَّٰعِبِينَ ۝ 54
(55) उन्होंने कहा, “क्या तू हमारे सामने अपने वास्तविक विचार प्रस्तुत कर रहा है या मज़ाक़ करता है?”
قَالَ بَل رَّبُّكُمۡ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلَّذِي فَطَرَهُنَّ وَأَنَا۠ عَلَىٰ ذَٰلِكُم مِّنَ ٱلشَّٰهِدِينَ ۝ 55
(56) उसने जवाब दिया, “नहीं, बल्कि वास्तव में तुम्हारा रब वही है जो ज़मीन और आसमानों का रब और उनका पैदा करनेवाला है। इसपर मैं तुम्हारे सामने गवाही देता हूँ।
وَتَٱللَّهِ لَأَكِيدَنَّ أَصۡنَٰمَكُم بَعۡدَ أَن تُوَلُّواْ مُدۡبِرِينَ ۝ 56
(57) और अल्लाह की क़सम मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में ज़रूर तुम्हारी मूर्तियों की ख़बर लूँगा।”
فَجَعَلَهُمۡ جُذَٰذًا إِلَّا كَبِيرٗا لَّهُمۡ لَعَلَّهُمۡ إِلَيۡهِ يَرۡجِعُونَ ۝ 57
(58) अतएव उसने उनको टुकड़े-टुकड़े कर दिया और सिर्फ़ उनके बड़े को छोड़ दिया ताकि शायद वे उसकी तरफ़ रुजू करें।
قَالُواْ مَن فَعَلَ هَٰذَا بِـَٔالِهَتِنَآ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 58
(59) (उन्होंने आकर मूर्तियों की यह हालत देखी तो) कहने लगे, “हमारे देवताओं की यह दशा किसने कर दी? बड़ा ही कोई ज़ालिम था वह।”
وَلِسُلَيۡمَٰنَ ٱلرِّيحَ عَاصِفَةٗ تَجۡرِي بِأَمۡرِهِۦٓ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَاۚ وَكُنَّا بِكُلِّ شَيۡءٍ عَٰلِمِينَ ۝ 59
(81) और सुलैमान के लिए हमने तेज़ हवा को वशीभूत कर दिया था जो उसके आदेश से उस भू-भाग की ओर चलती थी जिसमें हमने बरकतें रखी हैं, हम हर चीज़़ का ज्ञान रखनेवाले थे।
وَمِنَ ٱلشَّيَٰطِينِ مَن يَغُوصُونَ لَهُۥ وَيَعۡمَلُونَ عَمَلٗا دُونَ ذَٰلِكَۖ وَكُنَّا لَهُمۡ حَٰفِظِينَ ۝ 60
(82) और शैतानों में से हमने ऐसे बहुतों को उसका अधीन बना दिया था जो उसके लिए डुबकियाँ लगाते और इसके सिवा दूसरे काम करते थे। उन सबकी निगरानी करनेवाले हम ही थे।
۞وَأَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلضُّرُّ وَأَنتَ أَرۡحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ ۝ 61
(83) और यही (समझ और तत्त्वदर्शिता एवं ज्ञान की नेमत) हमने अय्यूब को दी थी। याद करो, जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि “मुझे रोग लग गया है और तू सबसे बढ़कर दयावान् है।”
فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ فَكَشَفۡنَا مَا بِهِۦ مِن ضُرّٖۖ وَءَاتَيۡنَٰهُ أَهۡلَهُۥ وَمِثۡلَهُم مَّعَهُمۡ رَحۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَا وَذِكۡرَىٰ لِلۡعَٰبِدِينَ ۝ 62
(84) हमने उसकी दुआ को क़ुबूल किया और जो कष्ट उसे था उसे दूर किया और सिर्फ़ उसके परिवार के लोग ही उसको नहीं दिए, बल्कि उनके साथ उतने ही और भी दिए, अपनी विशेष दयालुता के रूप में, और इसलिए कि यह एक शिक्षा हो उपासकों के लिए।
وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِدۡرِيسَ وَذَا ٱلۡكِفۡلِۖ كُلّٞ مِّنَ ٱلصَّٰبِرِينَ ۝ 63
(85) और यही नेमत इसमाईल और इदरीस और ज़ुलक़िफ़्ल को दी कि ये सब सब्र करने वाले लोग थे।
وَأَدۡخَلۡنَٰهُمۡ فِي رَحۡمَتِنَآۖ إِنَّهُم مِّنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 64
(86) और उनको हमने अपनी दयालुता में दाख़िल किया कि वे नेक लोगों में से थे।
وَذَا ٱلنُّونِ إِذ ذَّهَبَ مُغَٰضِبٗا فَظَنَّ أَن لَّن نَّقۡدِرَ عَلَيۡهِ فَنَادَىٰ فِي ٱلظُّلُمَٰتِ أَن لَّآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنتَ سُبۡحَٰنَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 65
(87) और मछलीवाले11 को भी हमने कृपापात्र बनाया। याद करो जबकि वह बिगड़कर चला गया था12 और समझा था कि हम इसपर पकड़ न करेंगे। अन्त में उसने अँधेरों में से पुकारा,13 “नहीं है कोई ईश मगर तू पाक है तेरी हस्ती, बेशक मैं दोषी हूँ।”
11. इससे मुराद हज़रत यूनुस (अलैहि०) हैं। कहीं उनका नाम लिया गया है और कहीं 'ज़ुन्नून' और 'साहिबुल-हूत' अर्थात् 'मछलीवाले' की उपाधि से याद किया गया है। 'मछलीवाला' उन्हें इसलिए नहीं कहा गया कि वे मछलियाँ पकड़ते या बेचते थे, बल्कि इस कारण कि अल्लाह के आदेश से एक मछली ने उनको निगल लिया था, जैसा कि क़ुरआन की सूरा-37 (साफ़्फ़ात), आयत 142 में बयान हुआ है।
12. अर्थात् वे अपनी क़ौम से नाराज़ होकर चले गए इससे पहले कि अल्लाह की ओर से देश छोड़ने (हिजरत) का आदेश आता और उनके लिए अपनी ड्यूटी की जगह से हटना जाइज़ होता।
13. अर्थात् मछली के पेट में से जो ख़ुद अन्धकारमय था और ऊपर से समुद्र की अधियारियाँ और भी।
فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ وَنَجَّيۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡغَمِّۚ وَكَذَٰلِكَ نُـۨجِي ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 66
(88) तब हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और ग़म से उसे छुटकारा दिया, और इसी तरह हम ईमानवालों को बचा लिया करते है।
وَزَكَرِيَّآ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥ رَبِّ لَا تَذَرۡنِي فَرۡدٗا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلۡوَٰرِثِينَ ۝ 67
(89) और ज़करीया को, जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि “ऐ पालनहार, मुझे अकेला न छोड़ और सबसे अच्छा वारिस तो तू ही है।”
فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ وَوَهَبۡنَا لَهُۥ يَحۡيَىٰ وَأَصۡلَحۡنَا لَهُۥ زَوۡجَهُۥٓۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَيَدۡعُونَنَا رَغَبٗا وَرَهَبٗاۖ وَكَانُواْ لَنَا خَٰشِعِينَ ۝ 68
(90) अतः हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और उसे यह्या प्रदान किया और उसकी बीवी को उसके लिए ठीक कर दिया। ये लोग भले कामों में दौड़-धूप करते थे और हमें चाहत और डर के साथ पुकारते थे, और हमारे आगे झुके हुए थे।
وَٱلَّتِيٓ أَحۡصَنَتۡ فَرۡجَهَا فَنَفَخۡنَا فِيهَا مِن رُّوحِنَا وَجَعَلۡنَٰهَا وَٱبۡنَهَآ ءَايَةٗ لِّلۡعَٰلَمِينَ ۝ 69
(91) और वह औरत जिसने अपने सतीत्व की रक्षा की थी,14 हमने उसके भीतर अपने रूह से फूँका और उसे और उसके बेटे को दुनिया-भर के लिए निशानी बना दिया।
14. इससे मुराद हज़रत मरयम (अलैहि०) हैं।
إِنَّ هَٰذِهِۦٓ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُونِ ۝ 70
(92) यह तुम्हारा समुदाय (उम्मत) वास्तव में एक ही समुदाय (उम्मत) है और मैं तुम्हारा रब हूँ अतः तुम मेरी बन्दगी करो।
وَتَقَطَّعُوٓاْ أَمۡرَهُم بَيۡنَهُمۡۖ كُلٌّ إِلَيۡنَا رَٰجِعُونَ ۝ 71
(93) मगर (यह लोगों की कारस्तानी है कि) उन्होंने आपस में अपने दीन (धर्म) को टुकड़े-टुकड़े कर डाला— सबको हमारी ओर पलटना है।
فَمَن يَعۡمَلۡ مِنَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَلَا كُفۡرَانَ لِسَعۡيِهِۦ وَإِنَّا لَهُۥ كَٰتِبُونَ ۝ 72
(94) फिर जो अच्छे कर्म करेगा, इस हाल में कि वह ईमानवाला हो, तो उसके काम की उपेक्षा (नाक़द्री) न होगी, और उसे हम लिख रहे हैं।
وَحَرَٰمٌ عَلَىٰ قَرۡيَةٍ أَهۡلَكۡنَٰهَآ أَنَّهُمۡ لَا يَرۡجِعُونَ ۝ 73
(95) और संभव नहीं है कि जिस बस्ती को हमने तबाह कर दिया हो वह फिर पलट सके।
حَتَّىٰٓ إِذَا فُتِحَتۡ يَأۡجُوجُ وَمَأۡجُوجُ وَهُم مِّن كُلِّ حَدَبٖ يَنسِلُونَ ۝ 74
(96) यहाँ तक कि जब याजूज और माजूज खोल दिए जाएँगे और हर ऊँचाई से वे निकल पड़ेंगे
وَٱقۡتَرَبَ ٱلۡوَعۡدُ ٱلۡحَقُّ فَإِذَا هِيَ شَٰخِصَةٌ أَبۡصَٰرُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يَٰوَيۡلَنَا قَدۡ كُنَّا فِي غَفۡلَةٖ مِّنۡ هَٰذَا بَلۡ كُنَّا ظَٰلِمِينَ ۝ 75
(97) और सच्चे वादे के पूरा होने का समय15 क़रीब आ लगेगा तो सहसा उन लोगों की आँखें फटी की फटी रह जाएँगी जिन्होंने इनकार किया था। कहेंगे, “हाय हमारा दुर्भाग्य, हम इस चीज़ की तरफ़ से गफ़लत में पड़े हुए थे, बल्कि हम दोषी थे।”
15. अर्थात् क़ियामत बरपा होने का समय।
إِنَّكُمۡ وَمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنتُمۡ لَهَا وَٰرِدُونَ ۝ 76
(98) बेशक तुम और तुम्हारे ये आराध्य जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो, जहन्नम का ईंधन है, वहीं तुमको जाना है।16
16. रिवायतों में उल्लिखित है कि इस आयत पर मुशरिकों के सरदारों में से एक ने एतिराज़ किया कि इस तरह तो सिर्फ़ हमारे ही पूज्य नहीं, मसीह, उज़ैर और फ़रिश्ते भी नरक में जाएँगे, क्योंकि दुनिया में उनकी भी पूजा की जाती है। इसपर नबी (सल्ल०) ने कहा: “हाँ, हर वह व्यक्ति जिसने पसन्द किया कि अल्लाह से हटकर उसकी बन्दगी की जाए वह उन लोगों के साथ होगा जिन्होंने उसकी बन्दगी की होगी।"
لَوۡ كَانَ هَٰٓؤُلَآءِ ءَالِهَةٗ مَّا وَرَدُوهَاۖ وَكُلّٞ فِيهَا خَٰلِدُونَ ۝ 77
(99) अगर ये वास्तव में ईश्वर होते तो वहाँ न जाते। अब सबको हमेशा उसी में रहना है।
لَهُمۡ فِيهَا زَفِيرٞ وَهُمۡ فِيهَا لَا يَسۡمَعُونَ ۝ 78
(100) वहाँ वे फुंकार मारेंगे और हालत यह होगी कि उसमें कान पड़ी आवाज़ न सुनाई देगी।
إِنَّ ٱلَّذِينَ سَبَقَتۡ لَهُم مِّنَّا ٱلۡحُسۡنَىٰٓ أُوْلَٰٓئِكَ عَنۡهَا مُبۡعَدُونَ ۝ 79
(101) रहे वे लोग जिनके लिए हमारी ओर से भलाई का पहले ही फ़ैसला हो चुका होगा, तो वे यक़ीनन उससे दूर रखे जाएँगे,
لَا يَسۡمَعُونَ حَسِيسَهَاۖ وَهُمۡ فِي مَا ٱشۡتَهَتۡ أَنفُسُهُمۡ خَٰلِدُونَ ۝ 80
(102) उसकी सरसराहट तक न सुनेंगे और वे हमेशा-हमेशा अपनी मन भाती चीज़़ों के बीच रहेंगे,
لَا يَحۡزُنُهُمُ ٱلۡفَزَعُ ٱلۡأَكۡبَرُ وَتَتَلَقَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ هَٰذَا يَوۡمُكُمُ ٱلَّذِي كُنتُمۡ تُوعَدُونَ ۝ 81
(103) वह बेहद घबराहट का समय उनको तनिक परेशान न करेगा और फ़रिश्ते बढ़कर उनको हाथों-हाथ लेंगे कि “यह तुम्हारा वही दिन है जिसका तुमसे वादा किया जाता था।"
يَوۡمَ نَطۡوِي ٱلسَّمَآءَ كَطَيِّ ٱلسِّجِلِّ لِلۡكُتُبِۚ كَمَا بَدَأۡنَآ أَوَّلَ خَلۡقٖ نُّعِيدُهُۥۚ وَعۡدًا عَلَيۡنَآۚ إِنَّا كُنَّا فَٰعِلِينَ ۝ 82
(104) वह दिन जबकि आसमान को हम यों लपेटकर रख देंगे जैसे पंजी में पन्ने लपेट दिए जाते हैं। जिस तरह पहले हमने सृष्टि का आरंभ किया था उसी तरह हम फिर उसकी पुनरावृत्ति करेंगे। यह एक वादा है हमारे ज़िम्मे और वह काम हमें हर हाल में करना है।
وَلَقَدۡ كَتَبۡنَا فِي ٱلزَّبُورِ مِنۢ بَعۡدِ ٱلذِّكۡرِ أَنَّ ٱلۡأَرۡضَ يَرِثُهَا عِبَادِيَ ٱلصَّٰلِحُونَ ۝ 83
(105) और ज़बूर में हम नसीहत के बाद यह लिख चुके है कि ज़मीन के उत्तराधिकारी हमारे नेक बन्दे होंगे।17
17. इस आयत को समझने के लिए क़ुरआन की सूरा 39 (ज़ुमर) आयतें 73-74 देखें।
إِنَّ فِي هَٰذَا لَبَلَٰغٗا لِّقَوۡمٍ عَٰبِدِينَ ۝ 84
(106) इसमें एक बड़ा संदेश है उपासना करनेवाले लोगों के लिए।
وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ إِلَّا رَحۡمَةٗ لِّلۡعَٰلَمِينَ ۝ 85
(107) ऐ नबी, हमने तो तुमको दुनियावालों के लिए दयालुता बनाकर भेजा है।
قُلۡ إِنَّمَا يُوحَىٰٓ إِلَيَّ أَنَّمَآ إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ فَهَلۡ أَنتُم مُّسۡلِمُونَ ۝ 86
(108) उनसे कहो, “मेरे पास जो प्रकाशना (वह्य) आती है वह यह है कि तुम्हारा पूज्य सिर्फ़ एक पूज्य है, फिर क्या तुम आज्ञाकारी होते हो?”
فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَقُلۡ ءَاذَنتُكُمۡ عَلَىٰ سَوَآءٖۖ وَإِنۡ أَدۡرِيٓ أَقَرِيبٌ أَم بَعِيدٞ مَّا تُوعَدُونَ ۝ 87
(109) अगर वे मुँह फेरें तो कह दो कि “मैंने खुल्लम-खुल्ला तुमको सावधान कर दिया है। अब यह मैं नहीं जानता कि वह चीज़़ जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है क़रीब है या दूर।
إِنَّهُۥ يَعۡلَمُ ٱلۡجَهۡرَ مِنَ ٱلۡقَوۡلِ وَيَعۡلَمُ مَا تَكۡتُمُونَ ۝ 88
(110) अल्लाह वे बातें भी जानता है जो ऊँची आवाज़ में कही जाती हैं और वह भी जो तुम छिपाकर करते हो।
وَإِنۡ أَدۡرِي لَعَلَّهُۥ فِتۡنَةٞ لَّكُمۡ وَمَتَٰعٌ إِلَىٰ حِينٖ ۝ 89
(111) मैं तो यह समझता हूँ कि शायद यह (देर) तुम्हारे लिए एक आज़माइश है और तुम्हें एक विशेष समय तक के लिए मज़े करने का मौक़ा दिया जा रहा है।”
قَٰلَ رَبِّ ٱحۡكُم بِٱلۡحَقِّۗ وَرَبُّنَا ٱلرَّحۡمَٰنُ ٱلۡمُسۡتَعَانُ عَلَىٰ مَا تَصِفُونَ ۝ 90
(112) (आख़िरकार) रसूल ने कहा कि “ऐ मेरे रब हक़ के साथ फ़ैसला कर दे, और लोगो, तुम जो बातें बनाते हो उनके मुक़ाबले में हमारा करुणामय रब ही हमारे लिए मदद का सहारा है।"
قَالُواْ سَمِعۡنَا فَتٗى يَذۡكُرُهُمۡ يُقَالُ لَهُۥٓ إِبۡرَٰهِيمُ ۝ 91
(60) (कुछ लोग) बोले, “हमने एक नवयुवक को इनकी चर्चा करते सुना था जिसका नाम इबराहीम है।”
قَالُواْ فَأۡتُواْ بِهِۦ عَلَىٰٓ أَعۡيُنِ ٱلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَشۡهَدُونَ ۝ 92
(61) उन्होंने कहा, “तो पकड़ लाओ उसे सबके सामने ताकि लोग देख लें (उसकी कैसी ख़बर ली जाती है)।”
قَالُوٓاْ ءَأَنتَ فَعَلۡتَ هَٰذَا بِـَٔالِهَتِنَا يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُ ۝ 93
(62) (इबराहीम के आने पर) उन्होंने पूछा, “क्यों इबराहीम, तूने हमारे देवताओं के साथ यह हरकत की है?”
قَالَ بَلۡ فَعَلَهُۥ كَبِيرُهُمۡ هَٰذَا فَسۡـَٔلُوهُمۡ إِن كَانُواْ يَنطِقُونَ ۝ 94
(63) उसने जवाब दिया, “बल्कि ये सब कुछ इनके इस सरदार ने किया है, इन्हीं से पूछ लो, अगर ये बोलते हों"8
8. शब्दों से ख़ुद व्यक्त हो रहा है कि हज़रत इबराहीम (अलैहि०) ने यह बात इसलिए कही थी कि वे लोग जवाब में ख़ुद इसे स्वीकार करें कि उनके ये आराध्य बिलकुल बेबस हैं और उनसे किसी कार्य की आशा तक नहीं की जा सकती। ऐसे अवसर पर एक व्यक्ति तर्क के लिए जो यथार्थ के विपरीत बात कहता है उसे झूठ की संज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योंकि न तो वह ख़ुद झूठ के इरादे से ऐसी बात कहता है और न उसके सुननेवाले ही उसे झूठ समझते हैं। कहनेवाला उसे तर्क सिद्ध करने के लिए कहता है और सुननेवाला भी उसे इसी अर्थ में लेता है।
فَرَجَعُوٓاْ إِلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ فَقَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ أَنتُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 95
(64) यह सुनकर वे अपनी अन्तरात्मा की ओर पलटे और (अपने मन में) कहने लगे, “वास्तव में तुम ख़ुद ही ज़ालिम हो।”
ثُمَّ نُكِسُواْ عَلَىٰ رُءُوسِهِمۡ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَا هَٰٓؤُلَآءِ يَنطِقُونَ ۝ 96
(65) मगर फिर उनकी मति पलट गई और बोले, “तू जानता है कि ये बोलते नहीं हैं।”
قَالَ أَفَتَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُكُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَا يَضُرُّكُمۡ ۝ 97
(66) इबराहीम ने कहा, “फिर क्या तुम अल्लाह को छोड़कर उन चीज़़ों को पूज रहे हो जो न तुम्हें लाभ पहुँचाने की सामर्थ्य रखती हैं, न हानि।
أُفّٖ لَّكُمۡ وَلِمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 98
(67) धिक्कार है तुमपर और तुम्हारे उन देवताओं पर जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर पूजा कर रहे हो। क्या तुम कुछ भी बुद्धि नहीं रखते?"
قَالُواْ حَرِّقُوهُ وَٱنصُرُوٓاْ ءَالِهَتَكُمۡ إِن كُنتُمۡ فَٰعِلِينَ ۝ 99
(68) उन्होंने कहा, “जला डालो इसको और समर्थन करो अपने उपास्यों का अगर तुम्हें कुछ करना है।”
قُلۡنَا يَٰنَارُ كُونِي بَرۡدٗا وَسَلَٰمًا عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ ۝ 100
(69) हमने कहा “ऐ आग ठण्डी हो जा और सलामती बन जा इबराहीम पर।”9
9. ये शब्द साफ़ बता रहे हैं, और प्रसंग भी इस अर्थ की पुष्टि कर रहा है कि उन्होंने वास्तव में अपने इस निर्णय को कार्यरूप में परिणत किया, और जब आग का अलाव तैयार करके उन्होंने हज़रत इबराहीम (अलैहि०) को उसमें फेंका तब अल्लाह ने आग को आदेश दिया कि वह इबराहीम (अलैहि०) के लिए ठण्डी हो जाए और अहानिकारक बनकर रह जाए। अतः स्पष्टतः यह भी उन चमत्कारों में से एक है जो क़ुरआन में बयान हुए हैं।
وَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَخۡسَرِينَ ۝ 101
(70) वे चाहते थे कि इबराहीम के साथ बुराई करें। मगर हमने उनको बुरी तरह नाकाम कर दिया।
وَنَجَّيۡنَٰهُ وَلُوطًا إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَا لِلۡعَٰلَمِينَ ۝ 102
(71) और हम उसे और लूत को बचाकर उस भू-भाग की ओर निकाल ले गए जिसमें हमने दुनियावालों के लिए बरकतें रखीं हैं।
وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ نَافِلَةٗۖ وَكُلّٗا جَعَلۡنَا صَٰلِحِينَ ۝ 103
(72) और हमने उसे इसहाक़ प्रदान किया और याक़ूब इसपर बढ़ोत्तरी10 और हर एक को नेक बनाया।
10. अर्थात् बेटे के बाद पोता भी ऐसा हुआ जिसे पैग़म्बरी के पद से विभूषित किया गया।
وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَئِمَّةٗ يَهۡدُونَ بِأَمۡرِنَا وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡهِمۡ فِعۡلَ ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَإِقَامَ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِيتَآءَ ٱلزَّكَوٰةِۖ وَكَانُواْ لَنَا عَٰبِدِينَ ۝ 104
(73) और हमने उनको इमाम (नायक) बना दिया जो हमारे आदेश से मार्गदर्शन करते थे और हमने उन्हें प्रकाशना के द्वारा नेक कामों का और नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने का आदेश दिया, और वे हमारे उपासक थे।
وَلُوطًا ءَاتَيۡنَٰهُ حُكۡمٗا وَعِلۡمٗا وَنَجَّيۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلَّتِي كَانَت تَّعۡمَلُ ٱلۡخَبَٰٓئِثَۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمَ سَوۡءٖ فَٰسِقِينَ ۝ 105
(74) और लूत को हमने तत्त्वदर्शिता और ज्ञान प्रदान किया और उसे उस बस्ती से बचाकर निकाल दिया जो गन्दे कर्म करती थी वास्तव में वह बड़ी ही बुरी, अवज्ञाकारी क़ौम थी
وَأَدۡخَلۡنَٰهُ فِي رَحۡمَتِنَآۖ إِنَّهُۥ مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 106
(75) — और लूत को हमने अपनी दयालुता में दाख़िल किया, वह अच्छे लोगों में से था।
وَنُوحًا إِذۡ نَادَىٰ مِن قَبۡلُ فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ فَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 107
(76) और यही नेमत हमने नूह को दी। याद करो जबकि इन सबसे पहले उसने हमें पुकारा था। हमने उसकी दुआ क़ुबूल की और उसे और उसके घरवालों को बड़ी पीड़ा से मुक्त किया।
وَنَصَرۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمَ سَوۡءٖ فَأَغۡرَقۡنَٰهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 108
(77) और उस क़ौम के मुक़ाबले में उसकी मदद की जिसने हमारी आयतों को झुठला दिया था। वे बड़े बुरे लोग थे, अतः हमने उन सबको डुबो दिया।
وَدَاوُۥدَ وَسُلَيۡمَٰنَ إِذۡ يَحۡكُمَانِ فِي ٱلۡحَرۡثِ إِذۡ نَفَشَتۡ فِيهِ غَنَمُ ٱلۡقَوۡمِ وَكُنَّا لِحُكۡمِهِمۡ شَٰهِدِينَ ۝ 109
(78) और इसी नेमत से हमने दाऊद और सुलैमान को प्रतिष्ठित किया याद करो वह अवसर जब कि वे दोनों एक खेत के मुक़द्दमे में फ़ैसला कर रहे थे जिसमें रात के समय दूसरे लोगों की बकरियाँ फैल गई थीं, और हम उनकी अदालत ख़ुद देख रहे थे।
فَفَهَّمۡنَٰهَا سُلَيۡمَٰنَۚ وَكُلًّا ءَاتَيۡنَا حُكۡمٗا وَعِلۡمٗاۚ وَسَخَّرۡنَا مَعَ دَاوُۥدَ ٱلۡجِبَالَ يُسَبِّحۡنَ وَٱلطَّيۡرَۚ وَكُنَّا فَٰعِلِينَ ۝ 110
(79) उस समय हमने ठीक फ़ैसला सुलैमान को समझा दिया, हालाँकि तत्वदर्शिता और ज्ञान हमने दोनों ही को प्रदान किया था। दाऊद के साथ हमने पहाड़ों और पक्षियों को वशीभूत कर दिया था जो तसबीह (गुनगान) करते थे, इस कार्य के करनेवाले हम ही थे,
وَعَلَّمۡنَٰهُ صَنۡعَةَ لَبُوسٖ لَّكُمۡ لِتُحۡصِنَكُم مِّنۢ بَأۡسِكُمۡۖ فَهَلۡ أَنتُمۡ شَٰكِرُونَ ۝ 111
(80) और हमने उसको तुम्हारे फ़ायदे के लिए कवच बनाने की कला सिखा दी थी, ताकि तुमको एक दूसरे की मार से बचाए, फिर क्या तुम कृतज्ञ हो?