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سُورَةُ الزُّمَرِ

39. अज़-ज़ुमर

(मक्‍का में उतरी, आयतें 75)

परिचय

नाम

इस सूरा का नाम आयत नं0 71 और 73 ("वे लोग जिन्होंने इंकार किया था, जहन्नम की ओर गिरोह के गिरोह (ज़ुमरा) हाँके जाएँगे" और "जो लोग अपने रब की अवज्ञा से बचते थे, उन्हें गिरोह के गिरोह (ज़ुमरा) जन्नत की ओर ले जाया जाएगा।") से लिया गया है। मतलब यह है कि वह सूरा जिसमें शब्द 'ज़ुमर' आया है।

उतरने का समय

आयत नं0 10 (और अल्लाह की धरती विशाल है) से इस बात की और स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह सूरा हबशा की हिजरत से पहले उतरी थी।

विषय और वार्ता

यह पूरी सूरा एक उत्तम और अति प्रभावकारी अभिभाषण है जो हबशा की हिजरत से कुछ पहले मक्का-मुअज़्ज़मा के अत्याचार और हिंसा से परिपूर्ण वातावरण में दिया गया था। इसका सम्बोधन अधिकतर क़ुरैश के इस्लाम-विरोधियों से है, यद्यपि कहीं-कहीं ईमानवालों को भी सम्बोधित किया गया है। इसमें हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सन्देश की दावत का मूल उद्देश्य बताया गया है और वह यह है कि इंसान अल्लाह की ख़ालिस (विशुद्ध) बन्दगी अपनाए और किसी दूसरे के आज्ञापालन और इबादत से अपनी ख़ुदापरस्ती को दूषित न करे। इस बुनियादी बात को बार-बार अलग-अलग ढंग से पेश करते हुए बहुत ही ज़ोरदार तरीक़े से तौहीद (एकेश्वरवाद) का सत्य होना और उसे मानने के अच्छे नतीजे, और शिर्क (बहुदेववाद) की ग़लती और उसपर जमे रहने के बुरे नतीजों को स्पष्ट किया गया है और लोगों को दावत दी गई है कि वे अपने ग़लत रवैये को छोड़कर अपने रब की दयालुता की ओर पलट आएँ। इस सिलसिले में ईमानवालों को निर्देश दिया गया है कि अगर अल्लाह की बन्दगी के लिए एक जगह तंग हो गई है तो उसकी धरती फैली हुई है, अपना दीन बचाने के लिए किसी और तरफ़ निकल खड़े हो, अल्लाह तुम्हारे धैर्य का बदला देगा। दूसरी ओर नबी (सल्ल०) से कहा गया है कि इन इस्लाम-विरोधियों को इस ओर से बिल्कुल निराश कर दो कि उनका अत्याचार कभी तुमको इस राह से फेर सकेगा।

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سُورَةُ الزُّمَرِ
39. अज़-ज़ुमर
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ
(1) इस किताब का अवतरण अल्लाह प्रभुत्वशाली और सर्वज्ञ की ओर से हैं।
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ فَٱعۡبُدِ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ ۝ 1
(2) (ऐ नबी) यह किताब हमने तुम्हारी और सत्य के साथ अवतरित की है, अत: तुम अल्लाह ही की बन्दगी करो दीन (धर्म) को उसी के लिए ख़ालिस (विशिष्ट) करते हुए।
أَلَا لِلَّهِ ٱلدِّينُ ٱلۡخَالِصُۚ وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ مَا نَعۡبُدُهُمۡ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَآ إِلَى ٱللَّهِ زُلۡفَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ فِي مَا هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ كَٰذِبٞ كَفَّارٞ ۝ 2
(3) जान लो कि ख़ालिस दीन अल्लाह का हक़ है। रहे वे लोग जिन्होंने उसके सिवा दूसरे संरक्षक बना रखे हैं। (और अपने इस कर्म का कारण यह बताते हैं कि) हम तो उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि वे अल्लाह तक हमारी पहुँच करा दें, अल्लाह यक़ीनन उनके बीच उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा जिनमें वे मतभेद कर रहे है। अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को मार्ग नहीं दिखाता जो झूठा और सत्य का इनकार करनेवाला हो।
لَّوۡ أَرَادَ ٱللَّهُ أَن يَتَّخِذَ وَلَدٗا لَّٱصۡطَفَىٰ مِمَّا يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ سُبۡحَٰنَهُۥۖ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ ۝ 3
(4) अगर अल्लाह किसी को बेटा बनाना चाहता तो अपने पैदा किए हुए में से जिसको चाहता चुन लेता, पाक है वह इससे (कि कोई उसका बेटा हो), वह अल्लाह है अकेला और सब पर प्रभुत्वशाली।
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ يُكَوِّرُ ٱلَّيۡلَ عَلَى ٱلنَّهَارِ وَيُكَوِّرُ ٱلنَّهَارَ عَلَى ٱلَّيۡلِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمًّىۗ أَلَا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّٰرُ ۝ 4
(5) उसने आसमानों और ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है। वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है। उसी ने सूरज और चाँद को इस तरह वशीभूत कर रखा है कि प्रत्येक एक-एक नियत समय तक चले जा रहा है। जान रखो, वह प्रभुत्वशाली है और माफ़ करनेवाला है।
خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ ثُمَّ جَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ ثَمَٰنِيَةَ أَزۡوَٰجٖۚ يَخۡلُقُكُمۡ فِي بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡ خَلۡقٗا مِّنۢ بَعۡدِ خَلۡقٖ فِي ظُلُمَٰتٖ ثَلَٰثٖۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ ۝ 5
(6) उसी ने तुमको एक जान से पैदा किया, फिर वही है जिसने उस जान से उसका जोड़ा बनाया। और उसी ने तुम्हारे लिए चौपायों में से आठ नर और मादा पैदा किए।1 वह तुम्हारी माओं के पेटों में तीन-तीन अन्धकारमय परदों के भीतर तुम्हें एक के बाद एक रूप देता चला जाता है।2 यही अल्लाह (जिसके ये कार्य हैं) तुम्हारा रब है, राज उसी का है, कोई पूज्य उसके सिवा नहीं है, फिर तुम किधर से फिराए जा रहे हो?
1. चौपायों से मुराद हैं ऊँट, गाय, भेड़ और बकरी उनके चार नर और चार मादा मिलकर आठ नर और मादा होते हैं।
2. तीन परदों से मुराद है पेट, गर्भाशय और वह झिल्ली जिसमें बच्चा लिपटा हुआ होता है।
إِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمۡۖ وَلَا يَرۡضَىٰ لِعِبَادِهِ ٱلۡكُفۡرَۖ وَإِن تَشۡكُرُواْ يَرۡضَهُ لَكُمۡۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 6
(7) अगर तुम इनकार करो तो अल्लाह तुमसे बेपरवाह है, लेकिन वह अपने बन्दों के लिए इनकार को पसन्द नहीं करता, और अगर तुम कृतज्ञता दिखाओ तो उसे वह तुम्हारे लिए पसन्द करता है। कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ न उठाएगा। आख़िरकार तुम सबको अपने रब की ओर पलटना है, फिर वह तुम्हें बता देगा कि तुम क्या करते रहे हो, वह तो दिलों का हाल तक जानता है।
۞وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَا رَبَّهُۥ مُنِيبًا إِلَيۡهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُۥ نِعۡمَةٗ مِّنۡهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدۡعُوٓاْ إِلَيۡهِ مِن قَبۡلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادٗا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِۦۚ قُلۡ تَمَتَّعۡ بِكُفۡرِكَ قَلِيلًا إِنَّكَ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلنَّارِ ۝ 7
(8) इनसान पर जब कोई विपत्ति आती है तो वह अपने रब की ओर रुजू करके उसे पुकारता है। फिर जब उसका रब उसे अपनी नेमत प्रदान कर देता है तो वह उस मुसीबत को भूल जाता है। जिसपर वह पहले पुकार रहा था और दूसरों को अल्लाह का समकक्ष ठहराता है ताकि उसकी राह से भटका दे। (ऐ नबी) उससे कहो कि थोड़े दिन अपने इनकार से आनन्द ले ले, यक़ीनन तू दोज़ख़ में जानेवाला है।
أَمَّنۡ هُوَ قَٰنِتٌ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ سَاجِدٗا وَقَآئِمٗا يَحۡذَرُ ٱلۡأٓخِرَةَ وَيَرۡجُواْ رَحۡمَةَ رَبِّهِۦۗ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُونَ وَٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 8
(9) (क्या इस व्यक्ति की नीति अच्छी है या उस व्यक्ति की) जो आज्ञाकारी है, रात की घड़ियों में खड़ा रहता और सजदे करता है, आख़िरत से डरता और अपने रब की दयालुता से आस लगाता है? इनसे पूछे क्या जाननेवाले और न जाननेवाले दो कभी समान हो सकते हैं? नसीहत तो बुद्धिमान ही क़ुबूल करते हैं।
قُلۡ يَٰعِبَادِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۗ وَأَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٌۗ إِنَّمَا يُوَفَّى ٱلصَّٰبِرُونَ أَجۡرَهُم بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 9
(10) (ऐ नबी) कहो कि ऐ मेरे बन्दो जो ईमान लाए हो, अपने रब से डरो जिन लोगों ने इस दुनिया में अच्छी नीति अपनाई है, उनके लिए भलाई है और अल्लाह की ज़मीन विशाल है3, सब्र करनेवालों को तो उनका बदला बेहिसाब दिया जाएगा।
3. अर्थात् अगर एक शहर या क्षेत्र या देश अल्लाह की बन्दगी करनेवालों के लिए तंग हो गया है तो दूसरी जगह चले जाओ जहाँ यह कठिनाइयाँ न हों।
قُلۡ إِنِّيٓ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ ۝ 10
(11) (ऐ नबी) इनसे कहो, मुझे आदेश दिया गया है कि दीन (धर्म) को अल्लाह के लिए ख़ालिस (विशुद्ध) करके उसको बन्दगी करूँ,
وَأُمِرۡتُ لِأَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 11
(12) और मुझे आदेश दिया गया है कि सबसे पहले मैं ख़ुद मुस्लिम (आज्ञाकारी) बनूँ।
قُلۡ إِنِّيٓ أَخَافُ إِنۡ عَصَيۡتُ رَبِّي عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 12
(13) कहो, अगर मैं अपने रब की अवज्ञा करूँ तो मुझे एक बड़े दिन के अज़ाब का भय है।
قُلِ ٱللَّهَ أَعۡبُدُ مُخۡلِصٗا لَّهُۥ دِينِي ۝ 13
(14) कह दो कि मैं तो अपने दीन को अल्लाह के लिए ख़ालिस करके उसी की बन्दगी करूँगा,
فَٱعۡبُدُواْ مَا شِئۡتُم مِّن دُونِهِۦۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡخَٰسِرِينَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِيهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 14
(15) तुम उसके सिवा जिस-जिसकी बन्दगी करना चाहो करते रहो। कहो, असल दिवालिए तो वही हैं जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने आपको और अपने लोगों और परिवारवालों को घाटे में डाल दिया। ख़ूब सुन रखो, यही खुला दिवाला है।
لَهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ ظُلَلٞ مِّنَ ٱلنَّارِ وَمِن تَحۡتِهِمۡ ظُلَلٞۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ ٱللَّهُ بِهِۦ عِبَادَهُۥۚ يَٰعِبَادِ فَٱتَّقُونِ ۝ 15
(16) उनपर आग की छतरियाँ ऊपर से भी छाई होंगी और नीचे से भी। यह वह परिणाम है जिससे अल्लाह अपने बन्दों को डराता है, अत: ऐ मेरे बन्दो, मेरे ग़ज़ब से बचो।
وَٱلَّذِينَ ٱجۡتَنَبُواْ ٱلطَّٰغُوتَ أَن يَعۡبُدُوهَا وَأَنَابُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰۚ فَبَشِّرۡ عِبَادِ ۝ 16
(17) इसके विपरीत जिन लोगों ने बढ़े हुए सरकश (ताग़ूत) की बन्दगी से मुँह फेर लिया और अल्लाह की ओर रुजू कर लिया उनके लिए शुभ-सूचना है। अतः (ऐ नबी) ख़ुशख़बरी दे दो मेरे उन बन्दों को
ٱلَّذِينَ يَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقَوۡلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحۡسَنَهُۥٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ هَدَىٰهُمُ ٱللَّهُۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمۡ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 17
(18) जो बात को ध्यान से सुनते हैं और उसके अच्छे से अच्छे पहलू का अनुपालन करते हैं। ये वे लोग हैं जिनको अल्लाह ने सन्मार्ग दिखाया है और यही बुद्धिमान हैं।
أَفَمَنۡ حَقَّ عَلَيۡهِ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي ٱلنَّارِ ۝ 18
(19) (ऐ नबी) उस व्यक्ति को कौन बचा सकता है जिसपर अज़ाब का फ़ैसला चस्पाँ हो चुका हो? क्या तुम उसे बचा सकते हो जो आग में गिर चुका हो?
لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ غُرَفٞ مِّن فَوۡقِهَا غُرَفٞ مَّبۡنِيَّةٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ لَا يُخۡلِفُ ٱللَّهُ ٱلۡمِيعَادَ ۝ 19
(20) अलबत्ता जो लोग अपने रब से डरकर रहे उनके लिए ऊँची इमारतें हैं, मंज़िल पर मंज़िल बनी हुई जिसके नीचे नहरें बह रही होंगी। यह अल्लाह का वादा है, अल्लाह कभी अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَلَكَهُۥ يَنَٰبِيعَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ يُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعٗا مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرّٗا ثُمَّ يَجۡعَلُهُۥ حُطَٰمًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 20
(21) क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया, फिर उसको स्रोतों और निर्झरों और नदियों के रूप में4 ज़मीन में प्रवाहित किया, फिर उस पानी के द्वारा वह तरह-तरह की खेतियों निकालता है जिसकी क़िस्में विभिन्न हैं, फिर वे खेतियों पककर सूख जाती हैं, फिर तुम देखते हो कि वे पीली पड़ गईं, फिर आख़िरकार अल्लाह उनको भुस बना देता है। वास्तव में इसमें एक शिक्षा है बुद्धिमानों के लिए।
4. असल में शब्द 'यनाबीअ' इस्तेमाल हुआ है जो इन तीनों चीज़़ों के लिए आता है।
أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٖ مِّن رَّبِّهِۦۚ فَوَيۡلٞ لِّلۡقَٰسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ أُوْلَٰٓئِكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ ۝ 21
(22) अब क्या वह व्यक्ति जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिए खोल दिया और वह अपने रब की ओर से एक रौशनी पर चल रहा है (उस व्यक्ति की तरह हो सकता है जिसने इन बातों से कोई शिक्षा ग्रहण न की?)। तबाही है उन लोगों के लिए जिनके दिल अल्लाह की नसीहत से और ज़्यादा कठोर हो गए। वे खुली गुमराही में पड़े हुए हैं।
ٱللَّهُ نَزَّلَ أَحۡسَنَ ٱلۡحَدِيثِ كِتَٰبٗا مُّتَشَٰبِهٗا مَّثَانِيَ تَقۡشَعِرُّ مِنۡهُ جُلُودُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمۡ وَقُلُوبُهُمۡ إِلَىٰ ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُدَى ٱللَّهِ يَهۡدِي بِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٍ ۝ 22
(23) अल्लाह ने सर्वोत्तम वाणी अवतरित की है, एक ऐसी किताब जिसके सभी अंश परस्पर मिलते-जुलते हैं और जिसमें बार-बार विषय विवरण दोहराए गए हैं। उसे सुनकर उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने रब से डरनेवाले है, और फिर उनके शरीर और उनके दिल नर्म होकर अल्लाह की याद की ओर उन्मुख हो जाते हैं। यह अल्लाह का मार्ग-प्रदर्शन है जिससे वह सन्मार्ग पर ले आता है जिसे चाहता है। और जिसे अल्लाह ही रास्ता न दिखाए उसके लिए फिर कोई मार्गदर्शक नहीं है।
أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجۡهِهِۦ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَقِيلَ لِلظَّٰلِمِينَ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ ۝ 23
(24) अब उस व्यक्ति की दुर्दशा का तुम क्या अनुमान कर सकते हो जो क़ियामत के दिन अज़ाब की सख़्त मार अपने मुँह पर लेगा? ऐसे ज़ालिमों से तो कह दिया जाएगा कि अब चखो मज़ा उस कमाई का जो तुम करते रहे थे।
كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 24
(25) इनसे पहले भी बहुत-से लोग इसी तरह झुठला चुके हैं। आख़िर उनपर अज़ाब ऐसे रुख़ से आया जिधर उनका ख़याल भी नहीं जा सकता था।
فَأَذَاقَهُمُ ٱللَّهُ ٱلۡخِزۡيَ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ۝ 25
(26) फिर अल्लाह ने उनको दुनिया ही की ज़िन्दगी में रुसवाई का मज़ा चखाया, और आख़िरत (परलोक) का अज़ाब तो उससे बढ़कर है, काश! ये लोग जानते।
وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ ۝ 26
(27) हमने इस क़ुरआन में लोगों को तरह-तरह की मिसालें दी हैं कि ये होश में आएँ।
قُرۡءَانًا عَرَبِيًّا غَيۡرَ ذِي عِوَجٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ ۝ 27
(28) ऐसा क़ुरआन जो अरबी भाषा में है, जिसमें कोई टेढ़ नहीं है, ताकि ये बुरे परिणाम से बचें।
ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلٗا فِيهِ شُرَكَآءُ مُتَشَٰكِسُونَ وَرَجُلٗا سَلَمٗا لِّرَجُلٍ هَلۡ يَسۡتَوِيَانِ مَثَلًاۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 28
(29) अल्लाह एक मिसाल देता है। एक व्यक्ति तो वह है जिसके मालिक होने में बहुत-से दुःशील स्वामी साझी हैं जो उसे अपनी-अपनी ओर खींचते हैं और दूसरा व्यक्ति पूरा का पूरा एक ही स्वामी का दास है। क्या इन दोनों का हाल एक-सा हो सकता है?— प्रशंसा अल्लाह के लिए है, मगर ज़्यादातर लोग नादानी में पड़े हुए5 हैं।
5. अर्थात् एक स्वामी की दासता और बहुत-से स्वामियों की दासता का अन्तर तो ख़ूब समझ लेते हैं, मगर एक ईश्वर की दासता और बहुत-से ईश्वरों का अन्तर जब समझाने की कोशिश की जाती है तो नादान बन जाते हैं।
إِنَّكَ مَيِّتٞ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ ۝ 29
(30) (ऐ नबी) तुम्हें भी मरना है और इन लोगों को भी मरना है।
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عِندَ رَبِّكُمۡ تَخۡتَصِمُونَ ۝ 30
(31) आख़िरकार क़ियामत के दिन तुम सब अपने रब के सामने अपना-अपना मुकदमा पेश करोगे।
۞فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى ٱللَّهِ وَكَذَّبَ بِٱلصِّدۡقِ إِذۡ جَآءَهُۥٓۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡكَٰفِرِينَ ۝ 31
(32) फिर उस व्यक्ति से बड़ा ज़ालिम और कौन होगा जिसने अल्लाह पर झूठ बाँधा और जब सच्चाई उसके सामने आई तो उसे झुठला दिया। क्या ऐसे इनकारी लोगों के लिए जहन्नम में कोई ठिकाना नहीं है?
وَٱلَّذِي جَآءَ بِٱلصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهِۦٓ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ ۝ 32
(33) और जो व्यक्ति सच्चाई लेकर आया और जिन्होंने उसको सच माना, वही अज़ाब से बचनेवाले हैं।
لَهُم مَّا يَشَآءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 33
(34) उन्हें अपने रब के यहाँ वह सब कुछ मिलेगा जिसकी वे इच्छा करेंगे। यह है नेकी करनेवालों का बदला,
لِيُكَفِّرَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي عَمِلُواْ وَيَجۡزِيَهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 34
(35) ताकि जो निकृष्टतम कर्म उन्होंने किए थे उन्हें अल्लाह उनके हिसाब से निकाल दे और जो उत्तम कर्म वे करते रहे उनके अनुसार उनको बदला प्रदान करे।
أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِكَافٍ عَبۡدَهُۥۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ ۝ 35
(36) (ऐ नबी) क्या अल्लाह अपने बन्दे के लिए काफ़ी नहीं है? ये लोग उसके सिवा दूसरों से तुमको डराते हैं। हालाँकि अल्लाह जिसे गुमराही में डाल दे उसे कोई रास्ता दिखानेवाला नहीं है।
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّضِلٍّۗ أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِعَزِيزٖ ذِي ٱنتِقَامٖ ۝ 36
(37) और जिसे वह सन्मार्ग दिखाए उसे भटकानेवाला भी कोई नहीं। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली और बदला लेनेवाला नहीं है?
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَرَءَيۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَنِيَ ٱللَّهُ بِضُرٍّ هَلۡ هُنَّ كَٰشِفَٰتُ ضُرِّهِۦٓ أَوۡ أَرَادَنِي بِرَحۡمَةٍ هَلۡ هُنَّ مُمۡسِكَٰتُ رَحۡمَتِهِۦۚ قُلۡ حَسۡبِيَ ٱللَّهُۖ عَلَيۡهِ يَتَوَكَّلُ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ ۝ 37
(38) इन लोगों से अगर तुम पूछो कि ज़मीन और आसमानों को किसने पैदा किया है तो ये ख़ुद कहेंगे कि अल्लाह ने। इनसे पूछो, जब वास्तविकता यह है तो तुम्हारा क्या विचार है कि अगर अल्लाह मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे तो क्या तुम्हारी ये देवियाँ, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते हो, मुझे उसकी पहुँचाई हुई हानि से बचा लेंगी? या अल्लाह मुझपर दयालुता दर्शाना चाहे तो क्या ये उसकी दयालुता को रोक सकेंगी? बस इनसे कह दो कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है, भरोसा करनेवाले उसी पर भरोसा करते हैं।
قُلۡ يَٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّي عَٰمِلٞۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ۝ 38
(39) इनसे साफ़ कहो कि “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, तुम अपनी जगह अपना काम किए जाओ, मैं अपना काम करता रहूँगा, जल्द ही तुम्हें मालूम हो जाएगा
مَن يَأۡتِيهِ عَذَابٞ يُخۡزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيۡهِ عَذَابٞ مُّقِيمٌ ۝ 39
(40) कि किस पर अपमानजनक अज़ाब आता है और किसे वह सज़ा मिलती है जो कभी टलनेवाली नहीं।”
إِنَّآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ لِلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيۡهِم بِوَكِيلٍ ۝ 40
(41) (ऐ नबी) हमने सारे इनसानों के लिए यह किताब हक़ के साथ तुमपर उतार दी है। अब जो सीधा मार्ग अपनाएगा अपने लिए अपनाएगा और जो भटकेगा उसके भटकने का बबाल उसी पर होगा, तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं हो।
ٱللَّهُ يَتَوَفَّى ٱلۡأَنفُسَ حِينَ مَوۡتِهَا وَٱلَّتِي لَمۡ تَمُتۡ فِي مَنَامِهَاۖ فَيُمۡسِكُ ٱلَّتِي قَضَىٰ عَلَيۡهَا ٱلۡمَوۡتَ وَيُرۡسِلُ ٱلۡأُخۡرَىٰٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمًّىۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 41
(42) वह अल्लाह ही है जो मौत के समय रूहों (प्राणों) को ग्रस्त लेता है और जो अभी नहीं मरा है उसके प्राण नींद में ग्रस्त लेता है, फिर जिसपर वह मौत का फ़ैसला लागू करता है उसे रोक लेता है और दूसरों की आत्माओं को एक नियत समय के लिए वापस भेज देता है। इसमें बड़ी निशानियों है उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करनेवाले हैं।
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُفَعَآءَۚ قُلۡ أَوَلَوۡ كَانُواْ لَا يَمۡلِكُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَعۡقِلُونَ ۝ 42
(43) क्या उस अल्लाह को छोड़कर इन लोगों ने दूसरों को सिफ़ारिशी बना रखा है?6 इनसे कहो, क्या वे सिफ़ारिश करेंगे चाहे उनके अधिकार में कुछ हो न हो और वे समझते भी न हों?
6. अर्थात् एक तो इन लोगों ने अपने तौर पर स्वयं ही यह कल्पना कर ली कि कुछ हस्तियाँ अल्लाह के यहाँ बड़ी शक्तिशाली हैं जिनकी सिफ़ारिश किसी तरह टल नहीं सकती, हालाँकि उनके सिफ़ारिशी होने पर न कोई प्रमाण है, न अल्लाह ने कभी यह कहा कि उनको मेरे यहाँ यह पद प्राप्त है, और न ख़ुद उन हस्तियों ने कभी यह दावा किया कि हम अपनी शक्ति से तुम्हारे सारे काम बनवा देंगे। इसपर और मूर्खता इन लोगों की यह है कि असल मालिक को छोड़कर उन काल्पनिक सिफ़ारिशियों ही को सब कुछ समझ बैठे हैं और इनके सारे भक्ति भाव उन्हीं के लिए अर्पित है।
قُل لِّلَّهِ ٱلشَّفَٰعَةُ جَمِيعٗاۖ لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 43
(44) कहो सिफ़ारिश सारी की सारी अल्लाह के अधिकार में है।7 आसमानों और ज़मीन की बादशाही का वही मालिक है। फिर उसी की ओर तुम पलटाए जानेवाले हो।
7. अर्थात् किसी का यह ज़ोर नहीं है कि अल्लाह के सामने ख़ुद सिफ़ारिशी बनकर उठ ही सके कहाँ यह कि अपनी सिफ़ारिश मनवा लेने की ताक़त भी उसमें हो। यह बात तो बिलकुल अल्लाह के अधिकर में है कि जिसे चाहे सिफ़ारिश की अनुमति दे और जिसे चाहे न दे। और जिसके हक़ में चाहे किसी को सिफ़ारिश करने दे और जिसके हक़ में चाहे न करने दे।
وَإِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُ ٱشۡمَأَزَّتۡ قُلُوبُ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِۖ وَإِذَا ذُكِرَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦٓ إِذَا هُمۡ يَسۡتَبۡشِرُونَ ۝ 44
(45) जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो आख़िरत को न माननेवालों के दिल कुढ़ने लगते हैं, और जब उसके सिवा दूसरों का ज़िक्र होता है तो अचानक वे ख़ुशी से खिल उठते हैं।8
8. यह बात लगभग सारी दुनिया के बहुदेववादी मनोवृत्ति रखनेवालों में समान रूप से पाई जाती है, यहाँ तक कि मुसलमानों में भी जिन अभागों को यह रोग लग गया है वे भी इस दोष से बचे हुए नहीं हैं। ज़बान से कहते हैं कि हम अल्लाह को मानते हैं, लेकिन हालत यह है कि अकेले अल्लाह का ज़िक्र कीजिए तो उनके चेहरे बिगड़ने लगते हैं। कहते हैं, ज़रूर यह व्यक्ति बुजुगों और औलिया को नहीं मानता, तभी तो बस अल्लाह ही अल्लाह की बातें किए जाता है। और अगर दूसरों का ज़िक्र किया जाए तो उनके दिलों की कली खिल जाती है और प्रफुल्लता से उनके चेहरे दमकने लगते हैं।
قُلِ ٱللَّهُمَّ فَاطِرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ عَٰلِمَ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ أَنتَ تَحۡكُمُ بَيۡنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 45
(45) कहो, ऐ अल्लाह, आसमानों और ज़मीन के पैदा करनेवाले प्रत्यक्ष और परोक्ष के जाननेवाले, तू ही अपने बन्दों के बीच उस चीज़ का फ़ैसला करेगा जिसमें वे विभेद करते रहे हैं।
وَلَوۡ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ مَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦ مِن سُوٓءِ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مَا لَمۡ يَكُونُواْ يَحۡتَسِبُونَ ۝ 46
(47) अगर इन ज़ालिमों के पास ज़मीन का सारा धन भी हो, और उतना ही और भी, तो ये क़ियामत के दिन के बुरे अज़ाब से बचने के लिए सब कुछ मुक्ति प्रतिदान (फ़िदया) के रूप में देने के लिए तैयार हो जाएँगे। वहाँ अल्लाह की तरफ़ से इनके सामने वह कुछ आएगा जिसका इन्होंने कभी अनुमान ही नहीं किया है।
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 47
(48) वहाँ अपनी कमाई के सारे बुरे परिणाम इनपर खुल जाएँगे और वही चीज़़ इनपर छा जाएगी जिसकी ये हँसी उड़ाते रहे हैं।
فَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلۡنَٰهُ نِعۡمَةٗ مِّنَّا قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمِۭۚ بَلۡ هِيَ فِتۡنَةٞ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 48
(49) यहाँ इनसान जब ज़रा-सी मुसीबत इसे छू जाती है तो हमें पुकारता है, और जब हम इसे अपनी ओर से नेमत देकर तृप्त कर देते हैं तो कहता है कि यह तो मुझे ज्ञान के कारण दिया गया है! नहीं, बल्कि यह परीक्षा है, मगर इनमें से ज़्यादातर लोग जानते नहीं है।
قَدۡ قَالَهَا ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 49
(50) यही बात इनसे पहले गुज़रे हुए लोग भी कह चुके हैं, मगर जो कुछ वे कमाते थे वह उनके किसी काम न आया।
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَٰٓؤُلَآءِ سَيُصِيبُهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ ۝ 50
(51) फिर अपनी कमाई के बुरे परिणाम उन्होंने भुगते, और इन लोगों में से भी जो ज़ालिम हैं वे जल्द ही अपनी कमाई के बुरे परिणाम भुगतेंगे, ये हमें निरुपाय कर देनेवाले नहीं हैं।
أَوَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 51
(52) और क्या इन्हें मालूम नहीं है कि अल्लाह जिसकी चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसकी चाहता है तंग कर देता है? इसमें निशानियाँ है उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।
۞قُلۡ يَٰعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 52
(53) (ऐ नबी) कह दो कि ऐ मेरे बन्दो,9 जिन्होंने अपनी जान पर ज़्यादती की है अल्लाह की दयालुता से निराश न हो जाओ, यक़ीनन अल्लाह सारे गुनाह माफ़ कर देता है, वह तो अत्यन्त क्षमाशील, दयावान् है,
9. कुछ लोगों ने इन शब्दों का यह अजीब अर्थ लिया है कि अल्लाह ने नबी (सल्ल०) को ख़ुद “ऐ मेरे बन्दो” कहकर लोगों को सम्बोधित करने का आदेश दिया है अतः सारे इनसान नबी (सल्ल०) के बन्दे हैं। यह वास्तव में एक ऐसा अर्थ प्रतिपादन है जिसे अर्थ प्रतिपादन नहीं, बल्कि क़ुरआन का अर्थ से अनर्थ करने का बड़ा ही बुरा रूप और अल्लाह की वाणी के साथ खेल कहना चाहिए। यह अर्थ प्रतिपादन अगर सही हो तो फिर पूरा क़ुरआन ग़लत हुआ जाता है, क्योंकि क़ुरआन तो शुरू से आख़िर तक इनसानों को सिर्फ़ अल्लाह का बन्दा ठहराता है, और उसका सारा निमंत्रण ही यह है कि तुम एक अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो।
وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ۝ 53
(54) पलट आओ अपने रब की ओर और आज्ञाकारी बन जाओ उसके इससे पहले कि तुमपर अज़ाब आ जाए और फिर कहीं से तुम्हें सहायता न मिल सके।
وَٱتَّبِعُوٓاْ أَحۡسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةٗ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ ۝ 54
(55) और अनुपालन में लग जाओ अपने रब की भेजी हुई किताब के सबसे अच्छे पहलू के10 इससे पहले कि तुमपर अचानक अज़ाब आ जाए और तुमको ख़बर भी न हो।
10. अल्लाह की किताब के अच्छे से अच्छे पहलू का अनुपालन करने का अर्थ यह है कि अल्लाह ने जिन कामों का आदेश दिया है आदमी उनका पालन करे, जिन कामों से उसने रोका है उनसे बचे, और उपमाओं और वृत्तान्तों एवं कथाओं में जो कुछ उसने कहा है उससे शिक्षा और नसीहत हासिल करे। इसके विपरीत जो व्यक्ति आदेश से मुँह मोड़ता है, अवैध घोषित कार्य करता है और अल्लाह के सदुपदेश और नसीहत से कोई प्रभाव ग्रहण नहीं करता वह अल्लाह की किताब के निकृष्टतम पहलू को अपनाता है, अर्थात् वह पहलू ग्रहण करता है जिसे अल्लाह की किताब निकृष्टतम ठहराती है।
أَن تَقُولَ نَفۡسٞ يَٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِي جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّٰخِرِينَ ۝ 55
(56) कहीं ऐसा न हो कि बाद में कोई व्यक्ति कहे, “अफ़सोस मेरी उस कोताही पर जो मैं अल्लाह के हक़ में करता रहा, बल्कि मैं तो उलटा हँसी उड़ानेवालों में शामिल था।”
أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 56
(57) या कहे, “काश! अल्लाह ने मुझे सन्मार्ग दिखाया होता तो मैं भी डर रखनेवालों में से होता
أَوۡ تَقُولَ حِينَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِي كَرَّةٗ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 57
(58) या अज़ाब देखकर कहे, “काश! मुझे एक अवसर और मिल जाए और में भी अच्छे कर्म करनेवालों में शामिल हो जाऊँ।”
بَلَىٰ قَدۡ جَآءَتۡكَ ءَايَٰتِي فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 58
(59) (और उस समय उसे यह जवाब मिले कि) “क्यों नहीं, मेरी आयतें तेरे पास आ चुकी थीं, फिर तूने उन्हें झुठलाया और घमण्ड किया और तू इनकार करनेवालों में से था।”
وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 59
(60) आज जिन लोगों ने अल्लाह पर झूठ बाँधे हैं क़ियामत के दिन तुम देखोगे कि उनके मुँह काले होंगे। क्या जहन्नम में अहंकारियों के लिए काफ़ी जगह नहीं है?
وَيُنَجِّي ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ بِمَفَازَتِهِمۡ لَا يَمَسُّهُمُ ٱلسُّوٓءُ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 60
(61) इसके विपरीत जिन लोगों ने यहाँ डर रखा है उनकी सफलता-उपक्रम के कारण अल्लाह उन्हें मुक्ति प्रदान करेगा, उनको न कोई कष्ट एवं हानि पहुँचेगी और न वे ग़मगीन होंगे।
ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ وَكِيلٞ ۝ 61
(62) अल्लाह हर चीज़़ का पैदा करनेवाला है और वही हर चीज़़ पर निगहबान है।
لَّهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ ۝ 62
(63) ज़मीन और आसमानों के ख़जानों की कुंजियाँ उसी के पास हैं। और जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करते हैं वही घाटे में रहनेवाले हैं।
قُلۡ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَأۡمُرُوٓنِّيٓ أَعۡبُدُ أَيُّهَا ٱلۡجَٰهِلُونَ ۝ 63
(64) (ऐ नबी) इनसे कहो, “फिर क्या ऐ अज्ञानियो, तुम अल्लाह के सिवा किसी और की बन्दगी करने के लिए मुझसे कहते हो?”
وَلَقَدۡ أُوحِيَ إِلَيۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكَ لَئِنۡ أَشۡرَكۡتَ لَيَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ ۝ 64
(65) (यह बात तुम्हें उनसे साफ़ कह देनी चाहिए क्योंकि) तुम्हारी ओर और तुमसे पहले गुज़रे हुए सारे नबियों की ओर यह प्रकाशना भेजी जा चुकी है कि अगर तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा सारा कर्म व्यर्थ हो जाएगा और तुम घाटे में रहोगे।
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا فُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَآ أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ رُسُلٞ مِّنكُمۡ يَتۡلُونَ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِ رَبِّكُمۡ وَيُنذِرُونَكُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَاۚ قَالُواْ بَلَىٰ وَلَٰكِنۡ حَقَّتۡ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 65
(71) (इस फ़ैसले के बाद) वे लोग जिन्होंने इनकार किया था जहन्नम की ओर गिरोह के गिरोह हाँके जाएँगे, यहाँ तक कि जब वहाँ पहुँचेंगे तो उसके दरवाज़े खोले जाएँगे और उसके कार्यकर्ता उनसे कहेंगे, “क्या तुम्हारे पास तुम्हारे अपने लोगों में से ऐसे रसूल नहीं आए थे जिन्होंने तुमको तुम्हारे रब की आयतें सुनाई हों और तुम्हें इस बात से डराया हो कि एक समय तुम्हें यह दिन भी देखना होगा?” वे जवाब देंगे, “हाँ आए थे, मगर अज़ाब का फ़ैसला इनकार करनेवालों पर चिपक गया।”
قِيلَ ٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ ۝ 66
(72) कहा जाएगा, दाख़िल हो जाओ जहन्नम के दरवाज़ों में, यहाँ अब तुम्हे हमेशा रहना है, बड़ा ही बुरा ठिकाना है यह अहंकारियों के लिए।
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا وَفُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَا سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡ طِبۡتُمۡ فَٱدۡخُلُوهَا خَٰلِدِينَ ۝ 67
(73) और जो लोग अपने रब की अवज्ञा से बचते थे उन्हें गिरोह के गिरोह जन्नत की ओर ले जाया जाएगा। यहाँ तक कि जब वे वहाँ पहुँचेंगे, और उसके द्वार पहले ही खोले जा चुके होंगे, तो उनके प्रहरी उनसे कहेंगे, “सलाम हो तुमपर बहुत अच्छे रहे, दाख़िल हो जाओ इसमें सदा के लिए।”
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي صَدَقَنَا وَعۡدَهُۥ وَأَوۡرَثَنَا ٱلۡأَرۡضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ ٱلۡجَنَّةِ حَيۡثُ نَشَآءُۖ فَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ ۝ 68
(74) और वे कहेंगे, “शुक्र है उस अल्लाह का जिसने हमारे साथ अपना वादा सच कर दिखाया और हमको ज़मीन का वारिस बना दिया, अब हम जन्नत में जहाँ चाहें अपनी जगह बना सकते हैं।” अतः उत्तम प्रतिदान है कर्म करनेवालों के लिए।
وَتَرَى ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ حَآفِّينَ مِنۡ حَوۡلِ ٱلۡعَرۡشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡۚ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّۚ وَقِيلَ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 69
(75) और तुम देखोगे कि फ़रिश्ते सिंहासन के चारों ओर घेरा बनाए हुए अपने रब की स्तुति और तसबीह कर रहे होंगे और लोगों के बीच ठीक-ठीक हक़ के साथ फ़ैसला चुका दिया जाएगा, और पुकार दिया जाएगा कि प्रशंसा है अल्लाह सारे संसार के रब के लिए।
بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّٰكِرِينَ ۝ 70
(66) अत: (ऐ नबी) तुम बस अल्लाह ही की बन्दगी करो और कृतज्ञ बन्दों में से हो जाओ।
وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦ وَٱلۡأَرۡضُ جَمِيعٗا قَبۡضَتُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَٱلسَّمَٰوَٰتُ مَطۡوِيَّٰتُۢ بِيَمِينِهِۦۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 71
(67) इन लोगों ने अल्लाह की क़द्र ही न की जैसा कि उसकी क़द्र करने का हक़ है। (उसकी पूर्ण सामर्थ्य का हाल तो यह है कि) क़ियामत के दिन सारी ज़मीन उसकी मुट्ठी में होगी और आसमान उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए होंगे।11 पाक और सर्वोच्च है वह उस शिर्क (बहुदेववाद) से जो ये लोग करते हैं।
11. ज़मीन और आसमान पर अल्लाह के पूर्ण प्रभुत्व और अधिकार की तस्वीर खींचने के लिए मुट्ठी में होने और हाथ पर लिपटे होने का रूपक प्रयोग में लाया गया है। जिस तरह एक आदमी किसी छोटी-सी गेंद को मुट्ठी में दबा लेता है और उसके लिए यह एक साधारण काम है, या एक व्यक्ति एक रूमाल को लपेटकर हाथ में ले लेता है और उसके लिए यह कोई दुस्साध्य कार्य नहीं होता, उसी तरह क़ियामत के दिन सारे इनसान (जो आज अल्लाह की महानता और बड़ाई का अन्दाज़ा करने में असमर्थ हैं) अपनी आँखों से देख लेंगे कि ज़मीन और आसमान अल्लाह के सामर्थ्यवान हाथ में एक तुच्छ गेंद और एक अत्यन्त छोटे-से रूमाल की तरह हैं।
وَنُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَصَعِقَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُۖ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخۡرَىٰ فَإِذَا هُمۡ قِيَامٞ يَنظُرُونَ ۝ 72
(68) और उस दिन सूर (नरसिंधा) फूँका जाएगा और वे सब मरकर गिर जाएँगे जो आसमानों और ज़मीन में हैं सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह ज़िन्दा रखना चाहे। फिर एक दूसरा सूर (नरसिंघा) फूँका जाएगा और अचानक सब के सब उठकर देखने लगेंगे।
وَأَشۡرَقَتِ ٱلۡأَرۡضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ ٱلۡكِتَٰبُ وَجِاْيٓءَ بِٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 73
(69) ज़मीन अपने रब के नूर से चमक उठेगी, कर्म-पत्रिका लाकर रख दी जाएगी, नबियों और सारे गवाहों को उपस्थित कर दिया जाएगा, लोगों के बीच ठीक-ठीक हक़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा, उनपर कोई ज़ुल्म न होगा
وَوُفِّيَتۡ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَا يَفۡعَلُونَ ۝ 74
(70) और प्रत्येक जीव को जो कुछ भी उसने कर्म किया था उसका पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। लोग जो कुछ भी करते हैं अल्लाह उसको ख़ूब जानता है।