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سُورَةُ فُصِّلَتۡ

41. हा-मीम अस-सजदा

(मक्‍का में उतरीं, आयतें 54)

परिचय

नाम

सूरा का नाम दो शब्दों को जोड़कर बना है एक हा-मीम, दूसरा अस-सजदा। अर्थ यह है कि वह सूरा जिसकी शुरुआत हा-मीम से होती है और जिसमें एक जगह सजदे की आयत आई है।

उतरने का समय

विश्वस्त रिवायतों के अनुसार इसके उतरने का समय हज़रत हमज़ा (रज़ि०) के ईमान लाने के बाद और हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने से पहले है। मशहूर ताबिई मुहम्मद-बिन-काब अल-क़रज़ी [रिवायत करते हैं कि] एक बार क़ुरैश के कुछ सरदार मस्जिदे-हराम (काबा) में महफ़िल जमाए बैठे थे और मस्जिद के एक दूसरे कोने में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल०) अकेले मौजूद थे। उत्बा-बिन-रबीआ ने क़ुरैश के सरदारों [के मश्‍वरे से नबी (सल्ल०) के पास जाकर] कहा, "भतीजे ! यह काम जो तुमने शुरू किया है, इससे अगर तुम्हारा उद्देश्य धन प्राप्त करना है, तो हम सब मिलकर तुमको इतना कुछ दिए देते हैं कि तुम हममें सबसे अधिक धनवान हो जाओ। अगर इससे अपनी बड़ाई चाहते हो तो हम तुम्हें अपना सरदार बनाए लेते हैं, अगर बादशाही चाहते हो तो हम तुम्हें अपना बादशाह बना लेते हैं, और अगर तुमपर कोई जिन्न आता है तो हम अपने ख़र्च पर तुम्हारा इलाज कराते हैं।" उतबा ये बातें करता रहा और नबी (सल्ल०) चुपचाप सुनते रहे। फिर आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, "अबुल-वलीद! आपको जो कुछ कहना था, कह चुके?" उसने कहा, "हाँ।" आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, “अच्छा, अब मेरी सुनो।" इसके बाद आप (सल्ल०) ने 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' (अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील और दयावान है) पढ़कर इसी सूरा को पढ़ना शुरू किया और उतबा अपने दोनों हाथ पीछे ज़मीन पर टेके ध्यान से सुनता रहा। सजदे की आयत (38) पर पहुँचकर आप (सल्ल०) ने सजदा किया और फिर सिर उठाकर फ़रमाया, “ऐ अबुल-वलीद ! मेरा जवाब आपने सुन लिया। अब आप जानें और आप का काम।" उतबा उठकर क़ुरैश के सरदारों के पास वापस आया और उनसे कहा, "ख़ुदा की क़सम! मैंने ऐसा कलाम (वाणी) सुना कि कभी इससे पहले न सुना था। ख़ुदा की क़सम ! न यह शेर (कविता) है, न सेहर (जादू) है, न कहानत (ज्योतिष विद्या)। ऐ क़ुरैश के सरदारो ! मेरी बात मानो और उस आदमी को उसके हाल  पर छोड़ दो। मैं समझता हूँ कि यह वाणी कुछ रंग लाकर रहेगी।" क़ुरैश के सरदार उसकी यह बात सुनते ही बोल ठटे, “वलीद के बाप! आख़िर उसका जादू तुम पर भी चल गया।‘’ (इब्‍ने-हिशाम, भाग 1, पृ० 313-314)

विषय और वार्ता

उतबा की इस बातचीत के जवाब में जो व्याख्यान अल्लाह की ओर से उतरा, उसमें उन बेहूदा बातों की ओर सिरे से कोई ध्यान नहीं दिया गया जो उसने नबी (सल्ल.) से कही थीं, और केवल उस विरोध को वार्ता का विषय बनाया गया है जो क़ुरआन मजीद के पैग़ाम को नीचा दिखाने के लिए मक्का के विधर्मियों की ओर से उस समय अत्यन्त हठधर्मी और दुराचार के साथ किया जा रहा था। इस अंधे और बहरे विरोध के उत्तर में जो कुछ फ़रमाया गया है, उसका सारांश यह है-

(1) यह अल्लाह की उतारी हुई वाणी है और अरबी भाषा में है। अज्ञानी लोग इसके अंदर ज्ञान का कोई प्रकाश नहीं पाते, मगर समझ-बूझ रखनेवाले उस प्रकाश को देख भी रहे हैं और उससे फ़ायदा भी उठा रहे हैं।

(2) तुमने अगर अपने दिलों पर गिलाफ़ (आवरण) चढ़ा लिए हैं और अपने कान बहरे कर लिए हैं, तो नबी के सुपुर्द यह काम नहीं है कि [वह ज़बरदस्ती तुम्हें अपनी बात सुना और समझा दे। वह तो] सुननेवालों ही को सुना सकता है और समझनेवालों ही को समझा सकता है।

(3) तुम चाहे अपनी आँखें और कान बन्द कर लो और अपने दिलों पर परदा डाल लो, लेकिन सत्य यही है कि तुम्हारा ख़ुदा बस एक ही है, और तुम किसी दूसरे के बन्दे नहीं हो।

(4) तुम्हें कुछ एहसास भी है कि यह शिर्क (बहुदेववाद) और कुफ़्र (इंकार) की नीति तुम किसके साथ अपना रहे हो? उस ख़ुदा के साथ जो तुम्हारा और सम्पूर्ण सृष्टि का पैदा करनेवाला, मालिक और रोज़ी देनेवाला है। उसका साझीदार तुम उसकी तुच्छ मख़्लूक़ात (सृष्ट चीज़ों) को बनाते हो?

(5) अच्छा, नहीं मानते तो ख़बरदार हो जाओ कि तुमपर उसी तरह का अज़ाब टूट पड़ने को तैयार है जैसा आद और समूद जातियों पर आया था।

(6) बड़ा ही अभागा है वह इंसान जिसके साथ ऐसे जिन्नों और इंसानों में से शैतान लग जाएँ जो उसकी मूर्खताओं को उसके सामने सुन्दर बनाकर पेश करें। इस तरह के नादान लोग आज तो यहाँ एक-दूसरे को बढ़ावे-चढ़ावे दे रहे हैं, लेकिन क़ियामत के दिन इनमें से हर एक कहेगा कि जिन लोगों ने मुझे बहकाया था, वे मेरे हाथ लग जाएँ तो उन्हें पाँव तले रौंद डालूँ।

(7) यह क़ुरआन एक अटल किताब है। इसे तुम अपनी घटिया चालों और अपने झूठ के हथियारों से हरा नहीं सकते।

(8) तुम कहते हो कि यह क़ुरआन किसी अजमी (गैर-अरबी) भाषा में आना चाहिए था, लेकिन अगर अजमी भाषा में उसे भेजते तो तुम ही लोग कहते कि यह भी विचित्र उपहास है, अरब क़ौम के मार्गदर्शन के लिए अजमी भाषा में वार्तालाप किया जा रहा है । इसका अर्थ यह है कि तुम्हें वास्तव में मार्गदर्शन अभीष्ट ही नहीं है।

(9) कभी तुमने यह भी सोचा कि अगर वास्तव में सत्य यही सिद्ध हुआ कि यह क़ुरआन अल्लाह की ओर से है तो इसका इंकार करके तुम किस अंजाम का सामना करोगे।

(10) आज तुम नहीं मान रहे हो, मगर बहुत जल्द तुम अपनी आँखों से देख लोगे कि इस क़ुरआन की दावत (पैग़ाम) पूरी दुनिया पर छा गई है और तुम स्वयं उससे पराजित हो चुके हो।

विरोधियों को यह उत्तर देने के साथ उन समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया गया है जो इस कठिन रुकावटों के माहौल में ईमानवालों के और ख़ुद नबी (सल्ल०) के सामने थीं। ईमानवालों को यह कहकर हिम्मत बंधाई गई कि तुम वास्तव में बेसहारा नहीं हो, बल्कि जो आदमी ईमान की राह पर मज़बूती से जम जाता है, अल्लाह के फ़रिश्ते उसपर उतरते हैं और दुनिया से लेकर आख़िरत तक उसका साथ देते हैं। नबी (सल्ल०) को बताया गया कि [दावत की राह में रुकावट बनी चट्टानें देखने में बड़ी कठोर नज़र आती हैं, किन्तु अच्छे चरित्र और सुशीलता का हथियार वह हथियार है जो उन्हें तोड़कर और पिघलाकर रख देगा। सब्र के साथ उससे काम लो, और जब कभी शैतान उत्तेजना पैदा करके किसी दूसरे हथियार से काम लेने पर उकसाए. तो अल्लाह से पनाह माँगो।

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سُورَةُ فُصِّلَتۡ
41. हा० मीम० अस-सजदा
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
حمٓ
(1) हा० मीम०,
تَنزِيلٞ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ۝ 1
(2) यह करुणामय और दयावान ईश्वर की ओर से उतारी हुई चीज़ है,
كِتَٰبٞ فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥ قُرۡءَانًا عَرَبِيّٗا لِّقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ ۝ 2
(1) एक ऐसी किताब जिसकी आयतें ख़ूब खोलकर बयान की गई हैं, अरबी भाषा का क़ुरआन, उन लोगों के लिए जो ज्ञानवान है,
بَشِيرٗا وَنَذِيرٗا فَأَعۡرَضَ أَكۡثَرُهُمۡ فَهُمۡ لَا يَسۡمَعُونَ ۝ 3
(4) ख़ुशख़बरी देनेवाला और डरा देनेवाला। मगर इन लोगों में से ज़्यादातर ने उससे मुँह फेर लिया और वे सुनने को तैयार नहीं।
وَقَالُواْ قُلُوبُنَا فِيٓ أَكِنَّةٖ مِّمَّا تَدۡعُونَآ إِلَيۡهِ وَفِيٓ ءَاذَانِنَا وَقۡرٞ وَمِنۢ بَيۡنِنَا وَبَيۡنِكَ حِجَابٞ فَٱعۡمَلۡ إِنَّنَا عَٰمِلُونَ ۝ 4
(5) कहते हैं “जिस चीज़ की ओर तू हमें बुला रहा है उसके लिए हमारे दिलों पर आवरण (गिलाफ़) चड़े हुए हैं, हमारे कान बहरे हो गए हैं, और हमारे और तेरे बीच एक परदा आ पड़ा है। तू अपना काम कर, हम अपना काम किए जाएँगे।"
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يُوحَىٰٓ إِلَيَّ أَنَّمَآ إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ فَٱسۡتَقِيمُوٓاْ إِلَيۡهِ وَٱسۡتَغۡفِرُوهُۗ وَوَيۡلٞ لِّلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 5
(6) ऐ नबी, उनसे कहो, मैं तो एक इनसान हूँ तुम जैसा। मुझे प्रकाशना (वह्य) के द्वारा बताया जाता है कि तुम्हारा ईश तो बस एक ही ईश है, अतः तुम सीधे उसी का रुख़ अपनाओ और उससे माफ़ी चाहो
ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ كَٰفِرُونَ ۝ 6
(7) तबाही है उन मुशरिकों (बहुदेववादियों) के लिए जो ज़कात (दान) नहीं देते और आख़िरत का इनकार करते हैं।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُمۡ أَجۡرٌ غَيۡرُ مَمۡنُونٖ ۝ 7
(8) रहे वे लोग जिन्होंने मान लिया और अच्छे कर्म किए, उनके लिए यक़ीनन ऐसा बदला है जिसका सिलसिला कभी टूटनेवाला नहीं है।
۞قُلۡ أَئِنَّكُمۡ لَتَكۡفُرُونَ بِٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ فِي يَوۡمَيۡنِ وَتَجۡعَلُونَ لَهُۥٓ أَندَادٗاۚ ذَٰلِكَ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 8
(9) ऐ नबी, इनसे कहो, क्या तुम उस ईश्वर के प्रति इनकार की नीति अपनाते हो और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराते हो जिसने ज़मीन को दो दिनों में बना दिया? वही तो सारे जहानवालों का रब है।
وَجَعَلَ فِيهَا رَوَٰسِيَ مِن فَوۡقِهَا وَبَٰرَكَ فِيهَا وَقَدَّرَ فِيهَآ أَقۡوَٰتَهَا فِيٓ أَرۡبَعَةِ أَيَّامٖ سَوَآءٗ لِّلسَّآئِلِينَ ۝ 9
(10) उसने (ज़मीन को पैदा करने के बाद) ऊपर से उसपर पहाड़ जमा दिए और उसमें बरकतें रख दीं और उसके अन्दर सब माँगनेवालों के लिए1 हर एक की माँग और ज़रूरत के अनुसार ठीक अन्दाज़े से ख़ुराक़ की सामग्री जुटा दी। यह सब काम चार दिन में हो गए।
1. अर्थात् उन सब प्राणियों के लिए जो ख़ुराक के इच्छुक थे।
ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰٓ إِلَى ٱلسَّمَآءِ وَهِيَ دُخَانٞ فَقَالَ لَهَا وَلِلۡأَرۡضِ ٱئۡتِيَا طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهٗا قَالَتَآ أَتَيۡنَا طَآئِعِينَ ۝ 10
(11) फिर उसने आसमान की ओर रुख़ किया2 जो उस समय सिर्फ़ धुआँ था। उसने आसमान और ज़मीन से कहा, “अस्तित्व ग्रहण करो, चाहे तुम चाहो या न चाहो।” दोनों ने कहा, “हम आ गए आज्ञाकारियों की तरह।”
2. यह अर्थ नहीं है कि ज़मीन बनाने के बाद और उसमें आबादी का प्रबन्ध करने के बाद उसने आसमान बनाए। यहाँ फिर का शब्द समय-क्रम के लिए नहीं, बल्कि वर्णन-क्रम के लिए प्रयोग हुआ है। आगे के वाक्य से यह बात स्पष्ट हो जाती है।
فَقَضَىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَٰوَاتٖ فِي يَوۡمَيۡنِ وَأَوۡحَىٰ فِي كُلِّ سَمَآءٍ أَمۡرَهَاۚ وَزَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِمَصَٰبِيحَ وَحِفۡظٗاۚ ذَٰلِكَ تَقۡدِيرُ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ ۝ 11
(12) तब उसने दो दिन के अन्दर सात आसमान बना दिए और हर आसमान में उसके क़ानून की प्रकाशना कर दी। और दुनिया के आसमान को हमने दीपकों से सुसज्जित किया और उसे ख़ूब सुरक्षित कर दिया। यह सब कुछ एक प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ सत्ता की परियोजना है।
فَإِنۡ أَعۡرَضُواْ فَقُلۡ أَنذَرۡتُكُمۡ صَٰعِقَةٗ مِّثۡلَ صَٰعِقَةِ عَادٖ وَثَمُودَ ۝ 12
(13) अब अगर ये लोग मुँह मोड़ते हैं तो इनसे कह दो कि मैं तुमको उसी प्रकार के एक अचानक टूट पड़नेवाले अज़ाब से डराता हूँ जैसा आद और समूद पर उतरा था।
إِذۡ جَآءَتۡهُمُ ٱلرُّسُلُ مِنۢ بَيۡنِ أَيۡدِيهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا تَعۡبُدُوٓاْ إِلَّا ٱللَّهَۖ قَالُواْ لَوۡ شَآءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَٰٓئِكَةٗ فَإِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ ۝ 13
(14) जब अल्लाह के रसूल उनके पास आगे और पीछे, हर ओर से आए और उन्हें समझाया कि अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो तो उन्होंने कहा, “हमारा रब चाहता तो फ़रिश्ते भेजता, अतः हम उस बात को नहीं मानते जिसके लिए तुम भेजे गए हो।”
فَأَمَّا عَادٞ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَقَالُواْ مَنۡ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةًۖ أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِي خَلَقَهُمۡ هُوَ أَشَدُّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۖ وَكَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ ۝ 14
(15) आद का हाल यह था कि वे ज़मीन में बिना किसी हक़ के बड़े बन बैठे और कहने लगे, “कौन है हमसे ज़्यादा शक्तिशाली।” उनको यह न सूझा कि जिस अल्लाह ने उनको पैदा किया है वह उनसे ज़्यादा शक्तिशाली है? वे हमारी आयतों का इनकार ही करते रहे,
فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا صَرۡصَرٗا فِيٓ أَيَّامٖ نَّحِسَاتٖ لِّنُذِيقَهُمۡ عَذَابَ ٱلۡخِزۡيِ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَخۡزَىٰۖ وَهُمۡ لَا يُنصَرُونَ ۝ 15
(16) आख़िरकार हमने कुछ अशुभ दिनों में प्रचण्ड तूफ़ानी हवा उनपर भेज दी ताकि उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी में अपमानजनक अज़ाब का मज़ा चखा दें, और परलोक (आख़िरत) का अज़ाब तो उससे भी ज़्यादा अपमानजनक है, वहाँ कोई उनकी सहायता करनेवाला न होगा।
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيۡنَٰهُمۡ فَٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡعَمَىٰ عَلَى ٱلۡهُدَىٰ فَأَخَذَتۡهُمۡ صَٰعِقَةُ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡهُونِ بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 16
(17) रहे समूद, तो उनके सामने हमने सीधा रास्ता प्रस्तुत किया मगर उन्होंने मार्ग देखने के बजाय अन्धा बना रहना ही पसन्द किया। आख़िर उनकी करतूतों के कारण अपमान का अज़ाब उनपर टूट पड़ा
وَنَجَّيۡنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ يَتَّقُونَ ۝ 17
(18) और हमने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए थे और पथभ्रष्टता और बुरे काम से बचते थे।
وَيَوۡمَ يُحۡشَرُ أَعۡدَآءُ ٱللَّهِ إِلَى ٱلنَّارِ فَهُمۡ يُوزَعُونَ ۝ 18
(19) और तनिक उस समय को सोचो जब अल्लाह के ये दुश्मन दोज़ख़ की ओर जाने के लिए घेर लाए जाएँगे।3
3. असल मक़सद यह कहना है कि जब वे अल्लाह की अदालत में पेश होने के लिए घेर लाए जाएँगे, लेकिन इस बात को इन शब्दों में बयान किया गया है कि दोज़ख़ की ओर जाने के लिए घेर लाए जाएँगे, क्योंकि उनका परिणाम आख़िरकार दोज़ख़ ही में जाना है।
حَتَّىٰٓ إِذَا مَا جَآءُوهَا شَهِدَ عَلَيۡهِمۡ سَمۡعُهُمۡ وَأَبۡصَٰرُهُمۡ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 19
(20) उनके अगलों को पिछलों के आने तक रोक रखा जाएगा,4 फिर जब सब वहाँ पहुँच जाएँगे तो उनके कान और उनकी आँखें और उनके जिस्म की खालें उनपर गवाही देंगी कि वे दुनिया में क्या कुछ करते रहे हैं।
4. अर्थात् ऐसा नहीं होगा कि एक-एक नस्ल और एक-एक पीढ़ी का हिसाब करके उसका निर्णय एक के बाद दूसरे का किया जाता रहे, बल्कि सारी अगली पिछली नस्लें एक ही समय में इकट्ठी की जाएँगी और उन सबका इकट्ठा हिसाब किया जाएगा, क्योंकि हर बाद की नस्ल के अच्छे या बुरे होने में उससे पहले गुज़री हुई नस्ल की छोड़ी हुई धार्मिक और नैतिक मीरास का हिस्सा सम्मिलित होता है।
وَقَالُواْ لِجُلُودِهِمۡ لِمَ شَهِدتُّمۡ عَلَيۡنَاۖ قَالُوٓاْ أَنطَقَنَا ٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَنطَقَ كُلَّ شَيۡءٖۚ وَهُوَ خَلَقَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ ۝ 20
(21) वे अपने जिस्म की खालों से कहेंगे, “तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी?” वे जवाब देंगी, “हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति दी है जिसने हर चीज़ को बोलता कर दिया है।” उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और अब उसी की ओर तुम वापस लाए जा रहे हो।
وَمَا كُنتُمۡ تَسۡتَتِرُونَ أَن يَشۡهَدَ عَلَيۡكُمۡ سَمۡعُكُمۡ وَلَآ أَبۡصَٰرُكُمۡ وَلَا جُلُودُكُمۡ وَلَٰكِن ظَنَنتُمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَا يَعۡلَمُ كَثِيرٗا مِّمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 21
(22) तुम दुनिया में अपराध करते समय जब छिपते थे तो तुम्हें यह खयाल न था कि कभी तुम्हारे अपने कान और तुम्हारी आँखें और तुम्हारे जिस्म की खालें तुमपर गवाही देंगी। बल्कि तुमने तो यह समझा था कि तुम्हारे बहुत-से कामों की अल्लाह को भी ख़बर नहीं है।
وَذَٰلِكُمۡ ظَنُّكُمُ ٱلَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمۡ أَرۡدَىٰكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم مِّنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ ۝ 22
(23) तुम्हारा यही गुमान जो तुमने अपने रब के साथ किया था, तुम्हें ले डूबा और इसी कारण तुम घाटे में पड़ गए।”
فَإِن يَصۡبِرُواْ فَٱلنَّارُ مَثۡوٗى لَّهُمۡۖ وَإِن يَسۡتَعۡتِبُواْ فَمَا هُم مِّنَ ٱلۡمُعۡتَبِينَ ۝ 23
(24) इस हालत में वे सब्र करें (या न करें) आग ही उनका ठिकाना होगी, और अगर रुजू का अवसर चाहेंगे तो कोई अवसर उन्हें न दिया जाएगा।
۞وَقَيَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَآءَ فَزَيَّنُواْ لَهُم مَّا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِيٓ أُمَمٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ خَٰسِرِينَ ۝ 24
(25) हमने उनपर ऐसे साथी तैनात कर दिए थे जो उन्हें आगे और पीछे हर चीज़ ख़ुशनुमा बनाकर दिखाते थे, आख़िरकार उनपर भी वही अज़ाब का फ़ैसला चस्पाँ होकर रहा जो उनसे पहले गुज़रे हुए जिन्नों और इनसानों के गिरोहों पर चस्पाँ हो चुका था, यक़ीनन वे घाटे में रह जानेवाले थे।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَسۡمَعُواْ لِهَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَٱلۡغَوۡاْ فِيهِ لَعَلَّكُمۡ تَغۡلِبُونَ ۝ 25
(26) ये सत्य का इनकार करनेवाले कहते हैं, “इस क़ुरआन को हरगिज़ न सुनो और जब यह सुनाया जाए तो इसमें बाधा डालो, शायद कि इसी तरह तुम प्रभावी रहो।"
فَلَنُذِيقَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ عَذَابٗا شَدِيدٗا وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 26
(27) इन इनकार करनेवालों को हम कठोर अज़ाब का मज़ा चखाकर रहेंगे और जो बड़ी बुरी हरकतें ये करते रहे हैं उनका पूरा-पूरा बदला इन्हें देंगे।
ذَٰلِكَ جَزَآءُ أَعۡدَآءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُۖ لَهُمۡ فِيهَا دَارُ ٱلۡخُلۡدِ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ ۝ 27
(28) वह दोज़ख़ है जो अल्लाह के दुश्मनों को बदले में मिलेगी। उसी में हमेशा-हमेशा के लिए उनका घर होगा। यह है सज़ा इस अपराध की कि वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ رَبَّنَآ أَرِنَا ٱلَّذَيۡنِ أَضَلَّانَا مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ نَجۡعَلۡهُمَا تَحۡتَ أَقۡدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ ٱلۡأَسۡفَلِينَ ۝ 28
(29) वहाँ से इनकार करनेवाले कहेंगे कि “ऐ हमारे रब, तनिक हमें दिखा दे उन जिन्नों और इनसानों को जिन्होंने हमें पथभ्रष्ट किया था, हम उन्हें पाँव तले रौंद डालेंगे ताकि वे अच्छी तरह अपमानित हों।"
إِنَّ ٱلَّذِينَ قَالُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَٰمُواْ تَتَنَزَّلُ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ أَلَّا تَخَافُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَبۡشِرُواْ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي كُنتُمۡ تُوعَدُونَ ۝ 29
(30) जिन लोगों ने कहा कि अल्लाह हमारा रब है और फिर वे इसपर जमे रहे5, यक़ीनन उनपर फ़रिश्ते उतरते हैं और उनसे कहते हैं कि “न डरो, न ग़म करो, और ख़ुश हो जाओ उस जन्नत की ख़ुशख़बरी से जिसका तुमसे वादा किया गया है।
5. अर्थात् सिर्फ़ संयोगवश कभी अल्लाह को अपना रब कहकर नहीं रह गए, और न इस ग़लती में पड़े कि अल्लाह को अपना रब कहते भी जाएँ और साथ-साथ दूसरों को अपना रब बनाते भी जाएँ, बल्कि एक बार यह धारणा ग्रहण कर लेने के बाद फिर ज़िन्दगी-भर इसपर जमे रहे, इसके विपरीत कोई दूसरी धारणा न अपनाई, न इस धारणा के साथ किसी ग़लत धारणा को मिलाया, और अपने व्यावहारिक जीवन में भी एकेश्वरवाद (तौहीद) की अपेक्षाओं को पूरा करते रहे।
نَحۡنُ أَوۡلِيَآؤُكُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَشۡتَهِيٓ أَنفُسُكُمۡ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ ۝ 30
(31) हम इस दुनिया की ज़िन्दगी में भी तुम्हारे साथी हैं और आख़िरत में भी वहाँ जो कुछ तुम चाहोगे तुम्हें मिलेगा और हर चीज़ जिसकी तुम कामना करोगे वह तुम्हारी होगी, यह है मेहमानी का सामान
نُزُلٗا مِّنۡ غَفُورٖ رَّحِيمٖ ۝ 31
(32) उस हस्ती की ओर से जो बड़ा ही माफ़ करनेवाला और दयावान् है।"
وَمَنۡ أَحۡسَنُ قَوۡلٗا مِّمَّن دَعَآ إِلَى ٱللَّهِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 32
(33) और उस व्यक्ति की बात से अच्छी बात और किसकी होगी जिसने अल्लाह की ओर बुलाया और अच्छा कर्म किया और कहा कि मैं मुसलमान (आज्ञाकारी) हूँ।
وَلَا تَسۡتَوِي ٱلۡحَسَنَةُ وَلَا ٱلسَّيِّئَةُۚ ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ فَإِذَا ٱلَّذِي بَيۡنَكَ وَبَيۡنَهُۥ عَدَٰوَةٞ كَأَنَّهُۥ وَلِيٌّ حَمِيمٞ ۝ 33
(34) और ऐ नबी, भलाई और बुराई समान नहीं हैं। तुम बुराई को उस नेकी से दूर करो जो बेहतरीन हो। तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसका वैर पड़ा हुआ था वह जिगरी दोस्त बन गया है।
وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ٱلَّذِينَ صَبَرُواْ وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٖ ۝ 34
(35) यह गुण प्राप्त नहीं होता मगर उन लोगों को जो सब्र करते हैं, और यह पद प्राप्त नहीं होता मगर उन लोगों को जो बड़े भाग्यवान हैं।
وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ نَزۡغٞ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 35
(36) और अगर तुम शैतान की ओर से कोई उकसाहट महसूस करो तो अल्लाह की पनाह माँग लो6, वह सब कुछ सुनता और जानता है।
6. शैतान की उकसाहट से मुराद है ग़ुस्सा दिलाना। जब आदमी यह महसूस करे कि गालियाँ देनेवाले और इलज़ाम गढ़नेवाले विरोधियों को बातों पर दिल में ग़ुस्सा पैदा हो रहा है और जैसे को तैसा जवाब देने को मन चाह रहा है तो वह तुरन्त समझ ले कि यह शैतान है जो उसको अपने असभ्य विरोधियों के स्तर पर उतर आने के लिए उकसा रहा है।
وَمِنۡ ءَايَٰتِهِ ٱلَّيۡلُ وَٱلنَّهَارُ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُۚ لَا تَسۡجُدُواْ لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَٱسۡجُدُواْۤ لِلَّهِۤ ٱلَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ ۝ 36
(37) अल्लाह की निशानियों में से हैं ये रात और दिन और सूरज और चाँद। सूरज और चाँद को सजदा न करो बल्कि उस अल्लाह को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया है अगर वास्तव में तुम उसी की उपासना करनेवाले हो।
فَإِنِ ٱسۡتَكۡبَرُواْ فَٱلَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُۥ بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَهُمۡ لَا يَسۡـَٔمُونَ۩ ۝ 37
(38) लेकिन अगर ये लोग गर्व में आकर अपनी ही बात पर अड़े रहें तो परवाह नहीं, जो फ़रिश्ते तेरे रब के निकटवर्ती हैं वे रात और दिन उसकी तसबीह (गुणगान) कर रहे हैं और कभी नहीं थकते।
وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦٓ أَنَّكَ تَرَى ٱلۡأَرۡضَ خَٰشِعَةٗ فَإِذَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡهَا ٱلۡمَآءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡۚ إِنَّ ٱلَّذِيٓ أَحۡيَاهَا لَمُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰٓۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ ۝ 38
(39) और अल्लाह की निशानियों में से एक यह है कि तुम देखते हो ज़मीन सूनी पड़ी हुई है, फिर ज्यों ही कि हमने उसपर पानी बरसाया, अचानक वह फबक उठती है और फूल जाती है। यक़ीनन जो अल्लाह इस मरी हुई ज़मीन को जिला उठाता है वह मुर्दों को भी जीवन प्रदान करनेवाला है। यक़ीनन उसे हर चीज़़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُلۡحِدُونَ فِيٓ ءَايَٰتِنَا لَا يَخۡفَوۡنَ عَلَيۡنَآۗ أَفَمَن يُلۡقَىٰ فِي ٱلنَّارِ خَيۡرٌ أَم مَّن يَأۡتِيٓ ءَامِنٗا يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ ٱعۡمَلُواْ مَا شِئۡتُمۡ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ ۝ 39
(40) जो लोग हमारी आयतों को उलटे अर्थ पहनाते हैं वे हमसे कुछ छिपे हुए नहीं है। ख़ुद ही सोच लो कि क्या वह व्यक्ति अच्छा है जो आग में झोंका जानेवाला है या वह जो क़ियामत के दिन निश्चिन्तता की हालत में हाज़िर होगा? करते रहो जो कुछ तुम चाहो, तुम्हारी सारी हरकतों को अल्लाह देख रहा है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِٱلذِّكۡرِ لَمَّا جَآءَهُمۡۖ وَإِنَّهُۥ لَكِتَٰبٌ عَزِيزٞ ۝ 40
(41) ये वे लोग हैं जिनके सामने नसीहत भरी वाणी आई तो इन्होंने उसे मानने से इनकार कर दिया। मगर वास्तविकता यह है कि यह एक ज़बरदस्त किताब है,
لَّا يَأۡتِيهِ ٱلۡبَٰطِلُ مِنۢ بَيۡنِ يَدَيۡهِ وَلَا مِنۡ خَلۡفِهِۦۖ تَنزِيلٞ مِّنۡ حَكِيمٍ حَمِيدٖ ۝ 41
(42) असत्य सामने से इसपर आ सकता है न पीछे से7, यह एक तत्त्वदर्शी और प्रशंसित (ईश्वर) की उतारी हुई चीज़ है।
7. सामने से न आ सकने का अर्थ यह है कि क़ुरआन पर प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण करके अगर कोई व्यक्ति उसकी किसी बात को ग़लत और किसी शिक्षा को असत्य और विकृत सिद्ध करना चाहे तो इसमें सफल नहीं हो सकता। पीछे से न आ सकने का अर्थ यह है कि क़ियामत तक कभी कोई तथ्य और वास्तविकता ऐसी. उद्घाटित नहीं हो सकती जो क़ुरआन के पेश किए हुए तथ्यों के विपरीत हो। कोई ज्ञान ऐसा नहीं आ सकता जो वस्तुतः “ज्ञान” हो और क़ुरआन के वर्णित ज्ञान का खण्डन करता हो, कोई अनुभव और निरीक्षण ऐसा नहीं हो सकता जो यह सिद्ध कर दे कि क़ुरआन ने धारणा, नैतिकता, क़ानून, सभ्यता और संस्कृति, अर्थ एवं समाज और राजनीति के विषय में इनसान का जो मार्ग प्रदर्शन किया है वह ग़लत है।
مَّا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدۡ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبۡلِكَۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةٖ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٖ ۝ 42
(43) ऐ नबी, तुमको जो कुछ कहा जा रहा है उसमें कोई चीज़ भी ऐसी नहीं है जो तुम पहले गुज़रे हुए रसूलों को न कही जा चुकी हो। बेशक तुम्हारा रब बड़ा माफ़ करनेवाला है, और इसके साथ बड़ी दर्दनाक सज़ा देनेवाला भी है।
وَلَوۡ جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَانًا أَعۡجَمِيّٗا لَّقَالُواْ لَوۡلَا فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥٓۖ ءَا۬عۡجَمِيّٞ وَعَرَبِيّٞۗ قُلۡ هُوَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ هُدٗى وَشِفَآءٞۚ وَٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ فِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٞ وَهُوَ عَلَيۡهِمۡ عَمًىۚ أُوْلَٰٓئِكَ يُنَادَوۡنَ مِن مَّكَانِۭ بَعِيدٖ ۝ 43
(44) अगर हम इसको ग़ैर- अरबी (अमी) क़ुरआन बनाकर भेजते तो ये लोग कहते, “क्यों न इसकी आयतें खोलकर बयान की गई? क्या ही अजीब बात है कि कलाम (बात) ग़ैर-अरबी है और सुननेवाले अरबी।”8 इनसे कहो यह क़ुरआन ईमान लानेवालों के लिए तो मार्गदर्शन और शिफ़ा (आरोग्य) है, मगर जो लोग ईमान नहीं लाते उनके लिए यह कानों की डाट और आँखों की पट्टी है। उनका हाल तो ऐसा है जैसे उनको दूर से पुकारा जा रहा हो।
8. यह उस हठधर्मी का एक नमूना है जिससे नबी (सल्ल०) का मुक़ाबला किया जा रहा था। इनकार करनेवाले कहते थे कि मुहम्मद (सल्ल०) अरब हैं, ये अगर अरबी में क़ुरआन पेश करते हैं तो कैसे विश्वास किया जा सकता है कि यह कलाम (वाणी) उन्होंने ख़ुद नहीं गढ़ लिया है, बल्कि इनपर अल्लाह ने अवतरित किया है? इस कलाम को अल्लाह का अवतरित किया हुआ कलाम तो उस समय माना जा सकता था जब ये किसी ऐसी भाषा में अचानक धुआँधार भाषण करना शुरू कर देते जिसे ये नहीं जानते, उदाहरणार्थ फ़ारसी या रोमी या यूनानी। इसपर अल्लाह कहता है कि अब इनकी अपनी भाषा में क़ुरआन भेजा गया है जिसे ये समझ सकें तो इनको यह एतिराज़ है कि एक अरब के द्वारा अरबी भाषा में यह कलाम क्यों उतारा गया? लेकिन अगर किसी दूसरी भाषा में यह भेजा जाता तो उस समय यही लोग आपत्ति करते कि यह मामला भी ख़ूब है। अरब क़ौम में एक अरब को रसूल बनाकर भेजा गया है, मगर कलाम उसपर ऐसी भाषा में उतारा गया है जिसे न रसूल समझता है न क़ौम।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِيهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةٞ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِي شَكّٖ مِّنۡهُ مُرِيبٖ ۝ 44
(45) इससे पहले हमने मूसा को किताब दी थी और उसके मामले में भी यही विभेद हुआ था। अगर तेरे रब ने पहले ही एक बात निश्चित न कर दी होती तो इन विभेद करनेवालों के बीच फ़ैसला चुका दिया जाता। और वास्तविकता यह है कि ये लोग उसकी ओर से बड़ी बेचैनी पैदा करनेवाले शक में पड़े हुए हैं।
مَّنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَآءَ فَعَلَيۡهَاۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّٰمٖ لِّلۡعَبِيدِ ۝ 45
(46) जो कोई अच्छा कर्म करेगा अपने ही लिए अच्छा करेगा, जो बुराई करेगा उसका वबाल उसी पर होगा, और तेरा रब अपने बन्दों के हक़ में ज़ालिम नहीं है।
۞إِلَيۡهِ يُرَدُّ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِۚ وَمَا تَخۡرُجُ مِن ثَمَرَٰتٖ مِّنۡ أَكۡمَامِهَا وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَيَوۡمَ يُنَادِيهِمۡ أَيۡنَ شُرَكَآءِي قَالُوٓاْ ءَاذَنَّٰكَ مَامِنَّا مِن شَهِيدٖ ۝ 46
(47) उस घड़ी9 का ज्ञान अल्लाह ही की ओर फिरता है, वही उन सारे फलों को जानता है जो अपने गाभों में से निकलते हैं, उसी को मालूम है कि कौन-सी मादा गर्भवती हुई है और किसने बच्चा जाना है। फिर जिस दिन वह इन लोगों को पुकारेगा कि कहाँ है मेरे वे साझीदार? ये कहेंगे, “हम निवेदन कर चुके हैं, आज हममें से कोई इसकी गवाही देनेवाला नहीं है।”
9. मुराद है क़ियामत।
وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَدۡعُونَ مِن قَبۡلُۖ وَظَنُّواْ مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٖ ۝ 47
(48) उस समय वे सारे आराध्य इनसे गुम हो जाएँगे जिन्हें ये इससे पहले पुकारते थे, और ये लोग समझ लेंगे कि इनके लिए अब कोई पनाह लेने की जगह नहीं है।
لَّا يَسۡـَٔمُ ٱلۡإِنسَٰنُ مِن دُعَآءِ ٱلۡخَيۡرِ وَإِن مَّسَّهُ ٱلشَّرُّ فَيَـُٔوسٞ قَنُوطٞ ۝ 48
(49) इनसान कभी भलाई की दुआ माँगते नहीं थकता, और जब कोई आफ़त इसपर आ जाती है तो निराश हो जाता और जी तोड़ बैठता है,
وَلَئِنۡ أَذَقۡنَٰهُ رَحۡمَةٗ مِّنَّا مِنۢ بَعۡدِ ضَرَّآءَ مَسَّتۡهُ لَيَقُولَنَّ هَٰذَا لِي وَمَآ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَآئِمَةٗ وَلَئِن رُّجِعۡتُ إِلَىٰ رَبِّيٓ إِنَّ لِي عِندَهُۥ لَلۡحُسۡنَىٰۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِمَا عَمِلُواْ وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِيظٖ ۝ 49
(50) मगर ज्यों ही कि कठिन समय बीत जाने के बाद हम इसे अपनी दयालुता का मज़ा चखाते हैं, यह कहता है कि “मैं इसी का हक़दार हूँ, और मैं नहीं समझता कि क़ियामत कभी आएगी, लेकिन अगर वास्तव में मैं अपने रब की ओर पलटाया गया तो वहाँ भी मज़े करूँगा।” हालाँकि इनकार करनेवालों को लाज़िमी तौर पर हम बताकर रहेंगे कि वे क्या करके आए हैं और उन्हें हम बड़े गन्दे अज़ाब का मज़ा चखाएँगे।
وَإِذَآ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ فَذُو دُعَآءٍ عَرِيضٖ ۝ 50
(51) इनसान को जब हम नेमत देते है तो वह मुँह फेरता है और अकड़ जाता है। और जब उसे कोई आफ़त छू जाती है तो बड़ी लम्बी-चौड़ी दुआएँ करने लगता है।
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ثُمَّ كَفَرۡتُم بِهِۦ مَنۡ أَضَلُّ مِمَّنۡ هُوَ فِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ ۝ 51
(52) ऐ नबी, इनसे कहो, कभी तुमने यह भी सोचा कि अगर वास्तव में यह क़ुरआन अल्लाह ही की ओर से हुआ और तुम इसका इनकार करते रहे तो उस व्यक्ति से बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो इसके विरोध में दूर तक निकल गया हो?
سَنُرِيهِمۡ ءَايَٰتِنَا فِي ٱلۡأٓفَاقِ وَفِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَهُمۡ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّۗ أَوَلَمۡ يَكۡفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ ۝ 52
(53) जल्द ही हम इनको अपनी निशानियाँ बाहरी दुनिया में भी दिखाएँगे और इनके अपने अन्तःकरण में भी, यहाँ तक कि इनपर यह बात खुल जाएगी कि यह क़ुरआन वास्तव में सत्य है। क्या यह बात काफ़ी नहीं है कि तेरा रब हर चीज़़ का साक्षी है?
أَلَآ إِنَّهُمۡ فِي مِرۡيَةٖ مِّن لِّقَآءِ رَبِّهِمۡۗ أَلَآ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَيۡءٖ مُّحِيطُۢ ۝ 53
(54) सावधान रहो, ये लोग अपने रब से मिलन में शक रखते हैं। सुन रखो वह हर चीज़़ को अपने घेरे में लिए हुए है।10
10. अर्थात् कोई चीज़़ न उसकी पकड़ से बाहर है न उसके ज्ञान से छिपी हुई।