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سُورَةُ لُقۡمَانَ

31. लुक़मान 

(मक्‍का में उतरी, आयतें 34)

परिचय

नाम

इस सूरा के दूसरे रुकूअ (आयत 12 से 19 तक) में वे नसीहतें बयान की गई हैं जो हकीम लुक़मान ने अपने बेटे को की थीं। इसी सम्पर्क से इसका नाम लुक़मान रखा गया है।

उतरने का समय

इसकी विषय वस्तुओं पर विचार करने से स्पष्ट होता है कि यह उस समय उतरी है जब इस्लामी सन्देश को दबाने और रोकने के लिए दमन और अत्याचार का आरंभ हो चुका था, लेकिन अभी विरोध के तूफ़ान ने पूरी तरह भयानक रूप धारण नहीं किया था। इसकी निशानदेही आयत 14-15 से होती है, जिनमें नए-नए मुसलमान होनेवाले नौजवानों को बताया गया है कि माँ-बाप के हक़ तो बेशक अल्लाह के बाद सबसे बढ़कर हैं, लेकिन अगर वे तुम्हें शिर्क की ओर पलटने पर विवश करें तो उनकी यह बात कदापि न मानना।

विषय और वार्ता

इस सूरा में लोगों को शिर्क (अनेकेश्वरवाद) का निरर्थक और अनुचित होना और तौहीद (ऐकेश्वरवाद) का सत्य, उचित एवं उपयोगी होना समझाया गया है और उन्हें दावत दी गई है कि बाप-दादा की अंधी पैरवी छोड़ दें। खुले मन से उस शिक्षा पर विचार करें जो मुहम्मद (सल्ल०) जगत् के स्वामी की ओर से पेश कर रहे हैं और खुली आँखों से देखें कि हर ओर जगत् में और स्वयं उनके अपने भीतर कैसी-कैसी खुली निशानियाँ उसके सत्य होने की गवाही दे रही हैं। इस सिलसिले में यह भी बताया गया है कि यह कोई नई आवाज़ नहीं है जो दुनिया में या स्वयं अरब के इलाक़ों में पहली बार उठी हो। पहले भी जो लोग ज्ञान और बुद्धि तथा सूझ-बूझ और विवेक रखते थे, वे यही बातें कहते थे, जो आज मुहम्मद (सल्ल०) कह रहे हैं। तुम्हारे अपने ही देश में लुक़मान नामक हकीम गुज़र चुका है, जिसकी समझ-बूझ और विवेक को [तुम ख़ुद भी मानते हो।] अब देख लो कि वह किस विश्वास और किस नैतिकता की शिक्षा देता था।

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سُورَةُ لُقۡمَانَ
31. लुक़मान
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
الٓمٓ
(1) अलिफ़ लाम० मीम०।
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡحَكِيمِ ۝ 1
(2) ये हिकमत (तत्त्वज्ञान) वाली किताब की आयतें हैं1,
1. मूल शब्द हैं “लहवल-हदीस", अर्थात् ऐसी बात जो आदमी को अपने में व्यस्त करके हर दूसरी चीज़़ से ग़ाफ़िल कर दे। उल्लेखों में बयान हुआ है कि जब नबी (सल्ल०) के धर्मप्रचार के प्रभाव क़ुरैश की सारी कोशिशों के बावजूद फैलने से न रुके तो उन्होंने ईरान से रुस्तम और असफ़न्दयार की कहानियाँ मँगवाकर कथा-कहानी सुनाने का सिलसिला शुरू किया और गाने-बजानेवाली लौंडियों का प्रबन्ध किया ताकि लोग इन चीज़ों में व्यस्त होकर नबी (सल्ल०) की बात न सुनें।
هُدٗى وَرَحۡمَةٗ لِّلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 2
(3) मार्गदर्शन और दयालुता उत्तमकार लोगों के लिए,
ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ ۝ 3
(4) जो नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते हैं और आख़िरत (परलोक) पर विश्वास रखते हैं।
أُوْلَٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدٗى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ ۝ 4
(5) यही लोग अपने रब की ओर से संमार्ग पर है और यही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं।
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَشۡتَرِي لَهۡوَ ٱلۡحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًاۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ ۝ 5
(6) और इनसानों ही में से कोई ऐसा भी है जो दिल बहलानेवाली बातें ख़रीदकर लाता है2 ताकि लोगों को अल्लाह के मार्ग से ज्ञान के बिना भटका दे और इस मार्ग के बुलावे को हँसी में उड़ा दे। ऐसे लोगों के लिए बड़ा ही अपमानजनक अज़ाब है।
2. मूल शब्द हैं “लहवल-हदीस", अर्थात् ऐसी बात जो आदमी को अपने में व्यस्त करके हर दूसरी चीज़़ से ग़ाफ़िल कर दे। उल्लेखों में बयान हुआ है कि जब नबी (सल्ल०) के धर्मप्रचार के प्रभाव क़ुरैश की सारी कोशिशों के बावजूद फैलने से न रुके तो उन्होंने ईरान से रुस्तम और असफ़न्दयार की कहानियों मँगवाकर कथा-कहानी सुनाने का सिलसिला शुरू किया और गाने-बजानेवाली लौडियों का प्रबन्ध किया ताकि लोग इन चीज़ों में व्यस्त होकर नबी (सल्ल०) की बात न सुनें।
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ءَايَٰتُنَا وَلَّىٰ مُسۡتَكۡبِرٗا كَأَن لَّمۡ يَسۡمَعۡهَا كَأَنَّ فِيٓ أُذُنَيۡهِ وَقۡرٗاۖ فَبَشِّرۡهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ ۝ 6
(7) उसे जब हमारी आयतें सुनाई जाती हैं तो वह बड़े घमण्ड के साथ इस प्रकार रुख़ फेर लेता है मानो उसने उन्हें सुना ही नहीं, मानो उसके कान बहरे हैं। अच्छा, ख़ुशख़बरी दे दो उसे एक दुखद अज़ाब की।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ لَهُمۡ جَنَّٰتُ ٱلنَّعِيمِ ۝ 7
(8) अलबत्ता जो लोग ईमान ले आएँ और अच्छे कर्म करें, उनके लिए नेमत भरी जन्नतें हैं
خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٗاۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 8
(9) जिनमें वे हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह का पक्का वादा है और वह प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी है।
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ بِغَيۡرِ عَمَدٖ تَرَوۡنَهَاۖ وَأَلۡقَىٰ فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمۡ وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَآبَّةٖۚ وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَنۢبَتۡنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوۡجٖ كَرِيمٍ ۝ 9
(10) उसने आसमानों को पैदा किया बिना स्तंभों के जो तुम्हें नज़र आएँ। उसने जमीन में पहाड़ जमा दिए ताकि वह तुम्हें लेकर ढुलक न जाए। उसने हर प्रकार के जानवर ज़मीन में फैला दिए और आसमान से पानी बरसाया और ज़मीन में विभिन्न प्रकार की अच्छी चीज़़ें उगा दीं।
هَٰذَا خَلۡقُ ٱللَّهِ فَأَرُونِي مَاذَا خَلَقَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ بَلِ ٱلظَّٰلِمُونَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 10
(11) यह तो है अल्लाह की संरचना, अब ज़रा मुझे दिखाओ, इन दूसरों ने क्या पैदा किया है?— असल बात यह है कि ये ज़ालिम लोग स्पष्ट पथभ्रष्टता में पड़े हुए हैं।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا لُقۡمَٰنَ ٱلۡحِكۡمَةَ أَنِ ٱشۡكُرۡ لِلَّهِۚ وَمَن يَشۡكُرۡ فَإِنَّمَا يَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٞ ۝ 11
(12) हमने लुक़मान को हिकमत (तत्त्वदर्शिता) प्रदान की थी कि अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दिखाए। जो कोई कृतज्ञता दिखाए उसकी कृतज्ञता उसके अपने ही लिए लाभदायक है। और जो इनकार और कृतघ्नता की नीति अपनाए तो वास्तव में अल्लाह निस्स्पृह और आपसे आप प्रशंसित है।
وَإِذۡ قَالَ لُقۡمَٰنُ لِٱبۡنِهِۦ وَهُوَ يَعِظُهُۥ يَٰبُنَيَّ لَا تُشۡرِكۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّ ٱلشِّرۡكَ لَظُلۡمٌ عَظِيمٞ ۝ 12
(13) याद करो जब लुक़मान अपने बेटे को नसीहत कर रहा था तो उसने कहा, “बेटा, अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना, सत्य यह है कि शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है”
وَوَصَّيۡنَا ٱلۡإِنسَٰنَ بِوَٰلِدَيۡهِ حَمَلَتۡهُ أُمُّهُۥ وَهۡنًا عَلَىٰ وَهۡنٖ وَفِصَٰلُهُۥ فِي عَامَيۡنِ أَنِ ٱشۡكُرۡ لِي وَلِوَٰلِدَيۡكَ إِلَيَّ ٱلۡمَصِيرُ ۝ 13
(14) — और यह वास्तविकता है कि हमने इनसान को अपने माँ-बाप का हक़ पहचानने की स्वयं ताक़ीद की है। उसकी माँ ने कमज़ोरी पर कमज़ोरी झेलकर उसे अपने पेट में रखा और दो वर्ष उसका दूध छूटने में लगे। (इसी लिए हमने उसको नसीहत की कि) मेरे प्रति कृतज्ञता दिखाओ और अपने माँ-बाप के प्रति कृतज्ञ हो, मेरी ही ओर तुझे पलटना है।
وَإِن جَٰهَدَاكَ عَلَىٰٓ أَن تُشۡرِكَ بِي مَا لَيۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٞ فَلَا تُطِعۡهُمَاۖ وَصَاحِبۡهُمَا فِي ٱلدُّنۡيَا مَعۡرُوفٗاۖ وَٱتَّبِعۡ سَبِيلَ مَنۡ أَنَابَ إِلَيَّۚ ثُمَّ إِلَيَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 14
(15) लेकिन अगर वे तुझपर दबाव डालें कि मेरे साथ तू किसी ऐसे को शरीक करे जिसे तू नहीं जानता3 तो तू उनकी बात हरगिज़ न मान। दुनिया में उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रह, मगर चल उस व्यक्ति के मार्ग पर जिसने मेरी ओर रूजू किया है। फिर तुम सबको पलटना मेरी ही ओर है उस समय में तुम्हें बता दूँगा कि तुम कैसे कर्म करते रहे हो।
3. अर्थात् जो तेरी जानकारी में मेरा साझी नहीं है।
يَٰبُنَيَّ إِنَّهَآ إِن تَكُ مِثۡقَالَ حَبَّةٖ مِّنۡ خَرۡدَلٖ فَتَكُن فِي صَخۡرَةٍ أَوۡ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ أَوۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ يَأۡتِ بِهَا ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٞ ۝ 15
(16) (और लुकमान ने कहा था कि) “बेटा, कोई चीज़ राई के दाने के बराबर भी हो और किसी चट्टान में या आसमानों या ज़मीन में कहीं छुपी हुई हो अल्लाह उसे निकाल लाएगा। वह सूक्ष्मदर्शी और ख़बर रखनेवाला है।
يَٰبُنَيَّ أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ وَأۡمُرۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَٱنۡهَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَآ أَصَابَكَۖ إِنَّ ذَٰلِكَ مِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ ۝ 16
(17) बेटा, नमाज़ क़ायम कर नेकी का आदेश दे बुराई से रोक, और जो मुसीबत भी पड़े उसपर सब्र कर ये वे बातें हैं जिनकी बड़ी ताक़ीद की गई है।4
4. दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह बड़े साहस के कामों में से है।
وَلَا تُصَعِّرۡ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمۡشِ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَرَحًاۖ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخۡتَالٖ فَخُورٖ ۝ 17
(18) और लोगों से मुख फेरकर बात न कर, न ज़मीन में अकड़कर चल, अल्लाह किसी अहंकारी और डींग मारनेवाले को पसन्द नहीं करता।
وَٱقۡصِدۡ فِي مَشۡيِكَ وَٱغۡضُضۡ مِن صَوۡتِكَۚ إِنَّ أَنكَرَ ٱلۡأَصۡوَٰتِ لَصَوۡتُ ٱلۡحَمِيرِ ۝ 18
(19) अपनी चाल में सन्तुलन बनाए रख, और अपनी आवाज़ तनिक धीमी रख, सब आवाज़ों से ज़्यादा बुरी आवाज़ गधों की आवाज़ होती है।
أَلَمۡ تَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَأَسۡبَغَ عَلَيۡكُمۡ نِعَمَهُۥ ظَٰهِرَةٗ وَبَاطِنَةٗۗ وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُجَٰدِلُ فِي ٱللَّهِ بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَلَا هُدٗى وَلَا كِتَٰبٖ مُّنِيرٖ ۝ 19
(20) क्या तुम लोग नहीं देखते कि अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों की सारी चीज़़ें तुम्हारे लिए वशीभूत कर रखी हैं5 और अपनी खुली और छिपी नेमतें तुमपर पूर्ण कर दी हैं? इसपर हाल यह है कि इनसानों में से कुछ लोग हैं जो अल्लाह के बारे में झगड़ते हैं बिना इसके कि उनके पास कोई ज्ञान हो, या मार्गदर्शन, या कोई प्रकाश दिखानेवाली किताब।
5. किसी चीज़ को किसी के लिए दो तरह से वशीभूत किया जा सकता है। एक यह कि वह चीज़ उसके अधीन कर दी जाए और उसे अधिकार दे दिया जाए कि जिस तरह से चाहे काम में लाए और जिस तरह चाहे उसका इस्तेमाल करे। दूसरे यह कि उस चीज़ को ऐसे नियम का पाबन्द कर दिया जाए जिसके कारण वह उस व्यक्ति के लिए लाभकारी हो जाए और उसके हित को सेवा करती रहे। ज़मीन और आसमान की सभी चीज़़ों को अल्लाह ने इनसान के लिए एक ही अर्थ में वशीभूत नहीं कर दिया है, बल्कि कुछ चीज़़ें पहले अर्थ में वशीभूत की हैं और कुछ दूसरे अर्थ में। उदाहरणार्थ- हवा, पानी, मिट्टी, आग, वनस्पति, खनिज पदार्थ, चौपाए आदि अगणित चीज़़ें पहले अर्थ में हमारे लिए वशीभूत हैं, और चाँद, सूरज आदि दूसरे अर्थ में।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ بَلۡ نَتَّبِعُ مَا وَجَدۡنَا عَلَيۡهِ ءَابَآءَنَآۚ أَوَلَوۡ كَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ يَدۡعُوهُمۡ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلسَّعِيرِ ۝ 20
(21) और जब उनसे कहा जाता है कि पालन करो उस चीज़ का जो अल्लाह ने उतारी है तो कहते हैं कि हम तो उस चीज़़ का पालन करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है। क्या ये उन्हीं का पालन करेंगे चाहे शैतान उनको भड़कती हुई आग ही की ओर क्यों न बुलाता रहा हो?
۞وَمَن يُسۡلِمۡ وَجۡهَهُۥٓ إِلَى ٱللَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنٞ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰۗ وَإِلَى ٱللَّهِ عَٰقِبَةُ ٱلۡأُمُورِ ۝ 21
(22) जो व्यक्ति अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दे और व्यवहार में वह नेक हो, उसने वास्तव में एक भरोसे के योग्य सहारा थाम लिया, और सारे मामलों का अन्तिम निर्णय अल्लाह ही के हाथ है।
وَمَن كَفَرَ فَلَا يَحۡزُنكَ كُفۡرُهُۥٓۚ إِلَيۡنَا مَرۡجِعُهُمۡ فَنُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ ۝ 22
(23) अब जो इनकार करता है उसका इनकार तुम्हें शोकाकुल न करे, उन्हें पलटकर आना तो हमारी ही ओर है, फिर हम उन्हें बता देंगे कि वे क्या कुछ करके आए हैं। यक़ीनन अल्लाह सीनों के छिपे हुए रहस्य तक जानता है।
نُمَتِّعُهُمۡ قَلِيلٗا ثُمَّ نَضۡطَرُّهُمۡ إِلَىٰ عَذَابٍ غَلِيظٖ ۝ 23
(24) हम थोड़ी अवधि तक उन्हें दुनिया में मज़े करने का अवसर दे रहे हैं, फिर उनको बेबस करके एक कठोर अज़ाब की ओर खींच ले जाएँगे।
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 24
(25) अगर तुम इनसे पूछो कि ज़मीन और आसमानों को किसने पैदा किया है, तो ये ज़रूर कहेंगे कि अल्लाह ने। कहो, प्रशंसा अल्लाह के लिए है। मगर इनमें से ज़्यादातर लोग जानते नहीं हैं।
لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡغَنِيُّ ٱلۡحَمِيدُ ۝ 25
(26) आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है अल्लाह का है। बेशक अल्लाह निस्पृह और अपने-आप प्रशंसित है।
وَلَوۡ أَنَّمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ مِن شَجَرَةٍ أَقۡلَٰمٞ وَٱلۡبَحۡرُ يَمُدُّهُۥ مِنۢ بَعۡدِهِۦ سَبۡعَةُ أَبۡحُرٖ مَّا نَفِدَتۡ كَلِمَٰتُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ ۝ 26
(27) ज़मीन में जितने पेड़ हैं यदि वे सबके सब कलम बन जाएँ और समुद्र (दवात बन जाएँ) जिसे सात और समुद्र रोशनाई जुटाएँ तब भी अल्लाह की बातें (लिखने से) ख़त्म न होंगी।6 बेशक अल्लाह प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी है।
6. यही विषय थोड़े भिन्न शब्दों में सूरा 18 (कह्फ़), आयत 109 में उल्लिखित हो चुका है। इससे यह विश्वास दिलाना अभीष्ट है कि जिस अल्लाह ने इतने बड़े ब्रह्माण्ड को अस्तित्व प्रदान किया है कि उसकी शक्ति के चमत्कारों की कोई सीमा नहीं है। उसके प्रभुत्व एवं ईश्वरत्व में आख़िर कोई ऐसा साझीदार कैसे हो सकता है जो पैदा किया गया हो।
مَّا خَلۡقُكُمۡ وَلَا بَعۡثُكُمۡ إِلَّا كَنَفۡسٖ وَٰحِدَةٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعُۢ بَصِيرٌ ۝ 27
(28) तुम सारे इनसानों को पैदा करना और फिर दोबारा जिला उठाना तो (उसके लिए) बस ऐसा है जैसे एक प्राणी को (पैदा करना और जिला उठाना) वास्तविकता यह है कि अल्लाह सब कुछ सुनने और देखनेवाला है।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ يُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِيٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى وَأَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ ۝ 28
(29) क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में? उसने सूरज और चाँद को वशीभूत कर रखा है, सब एक नियत समय तक चले जा रहे हैं7, और (क्या तुम नहीं जानते कि) जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है?
7. अर्थात् हर चीज़ की जो आयु की अवधि नियत कर दी गई है उसी समय तक वह चल रही है। कोई चीज़ भी न पहले से हमेशा है और न बाद में हमेशा रहेगी।
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدۡعُونَ مِن دُونِهِ ٱلۡبَٰطِلُ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلۡعَلِيُّ ٱلۡكَبِيرُ ۝ 29
(30) यह सब कुछ इस कारण है कि अल्लाह ही सत्य है, और उसे छोड़कर जिन दूसरी चीज़़ों को ये लोग पुकारते हैं वे सब असत्य हैं, और (इस कारण से कि) अल्लाह ही उच्च और महान है।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱلۡفُلۡكَ تَجۡرِي فِي ٱلۡبَحۡرِ بِنِعۡمَتِ ٱللَّهِ لِيُرِيَكُم مِّنۡ ءَايَٰتِهِۦٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّكُلِّ صَبَّارٖ شَكُورٖ ۝ 30
(31) क्या तुम देखते नहीं हो कि नौका समुद्र में अल्लाह के अनुग्रह से चलती है, ताकि वह तुम्हें अपनी कुछ निशानियाँ दिखाए? वास्तव में इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं हर उस व्यक्ति के लिए जो सब्र और शुक्र करनेवाला हो।
وَإِذَا غَشِيَهُم مَّوۡجٞ كَٱلظُّلَلِ دَعَوُاْ ٱللَّهَ مُخۡلِصِينَ لَهُ ٱلدِّينَ فَلَمَّا نَجَّىٰهُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ فَمِنۡهُم مُّقۡتَصِدٞۚ وَمَا يَجۡحَدُ بِـَٔايَٰتِنَآ إِلَّا كُلُّ خَتَّارٖ كَفُورٖ ۝ 31
(32) और जब (समुद्र में) इन लोगों पर एक मौज छत्रों की तरह छा जाती है तो ये अल्लाह को पुकारते हैं अपने धर्म को बिलकुल उसी के लिए विशुद्ध करके। फिर जब वह बचाकर इन्हें स्थल तक पहुँचा देता है तो इनमें से कोई बीच का मार्ग अपनाता है8, और हमारी निशानियों का इनकार नहीं करता मगर हर वह व्यक्ति जो विश्वासघाती और कृतघ्न है।
8. इसके दो अर्थ हो सकते हैं। बीच की राह अपनाने को यदि सन्मार्ग पर चलने के अर्थ में लिया जाए तो इसका मतलब यह होगा कि इनमें से कोई वह समय बीत जाने के बाद भी एकेश्वरवाद पर क़ायम रहता है, और अगर इसे मध्य और सन्तुलन के अर्थ में लिया जाए तो मतलब यह होगा कि कुछ लोग अपने बहुदेववाद और नास्तिकता की धारणा में उस कट्टरता पर क़ायम नहीं रहते या कुछ लोगों के भीतर सत्यनिष्ठा का वह भाव ठण्डा पड़ जाता है जो उस समय पैदा हुआ था।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡ وَٱخۡشَوۡاْ يَوۡمٗا لَّا يَجۡزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِۦ وَلَا مَوۡلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِۦ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِٱللَّهِ ٱلۡغَرُورُ ۝ 32
(33) लोगो, बचो अपने रब के प्रकोप से और डरो उस दिन से जब कोई बाप अपने बेटे की ओर से बदला न देगा और न कोई बेटा ही अपने बाप की ओर से कुछ बदला देनेवाला होगा। निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है।9 अतः यह दुनिया की ज़िन्दगी तुम्हें धोखे में न डाले। और न धोखेबाज़ तुमको अल्लाह के मामले में धोखा देने पाए।
9. अर्थात् क़ियामत का वादा।
إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ ٱلۡغَيۡثَ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلۡأَرۡحَامِۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسٞ مَّاذَا تَكۡسِبُ غَدٗاۖ وَمَا تَدۡرِي نَفۡسُۢ بِأَيِّ أَرۡضٖ تَمُوتُۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرُۢ ۝ 33
(34) उस घड़ी का ज्ञान अल्लाह ही के पास है, वही वर्षा करता है, वही जानता है कि माओं के पेटों में क्या पल रहा है, कोई प्राणी नहीं जानता कि कल वह क्या कमाई करनेवाला है, और न किसी व्यक्ति को यह ख़बर है कि किस भूभाग में उसको मौत आनी है, अल्लाह ही सब कुछ जाननेवाला और ख़बर रखनेवाला है।