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سُورَةُ الأَنۡعَامِ

  1. अल-अनआम

(मक्‍का में उतरी आयतें 165)

परिचय

नाम

इस सूरा के रुकूअ 16-17 (आयत 130-144) में कुछ अन-आम (मवेशियों) की हुर्मत (हराम क़रार दिए जाने) और कुछ की हिल्लत (हलाल क़रार दिए जाने) के बारे में अरबों के अंधविश्वासों का खंडन किया गया है। इसी दृष्टि से इसका नाम 'अल-अनआम' रखा गया है।

उतरने का समय

इब्ने अब्बास (रजि०) की रिवायत है कि यह पूरी सूरा मक्का में एक ही समय में उतरी थी। हज़रत मुआज-बिन-जबल (रज़ि०) की चचेरी बहन अस्मा-बिन्ते-यज़ीद कहती हैं कि 'जब यह सूरा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतर रही थी, उस समय आप ऊँटनी पर सवार थे। मैं उसकी नकेल पकड़े हुए थी और बोझ के मारे ऊँटनी का यह हाल हो रहा था कि मालूम होता था कि उसकी हड्डियाँ अब टूट जाएँगी।' रिवायतों में इसका भी स्पष्टीकरण है कि जिस रात को यह उतरी, उसी रात को आपने इसे लिखवा दिया।

इसके विषयों पर विचार करने से साफ़ मालूम होता है कि यह सूरा मक्को युग के अन्तिम समय में उतरी होगी।

उतरने का कारण 

जिस समय यह व्याख्यान उतरा है, उस समय अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को इस्लाम की ओर दावत देते हुए बारह साल बीत चुके थे। क़ुरैश की डाली रुकावटें और ज़ुल्मो-सितम भरे कारनामे अपनी अन्तिम सीमा को पहुँच चुके थे। इस्लाम अपनानेवालों की एक बड़ी संख्या उनके ज़ुल्मो-सितम से तंग आकर देश छोड़ चुकी थी और हबशा में ठहरी हुई थी।

वार्ताएँ

इन परिस्थितियों में यह व्याख्यान उतरा है और इसके विषयों को सात बड़े-बड़े शीर्षको में बांटा जा सकता है-

  1. शिर्क (अनेकेश्वरवाद) का झुठलाना और तौहीद (एकेश्वरवाद) के अक़ीदे की ओर बुलाना,
  2. आख़िरत (परलोक) के अक़ीदे का प्रचार,
  3. अज्ञानता के अंधविश्वासों का खंडन,
  4. नैतिकता के उन बड़े-बड़े नियमों को अपनाने पर ज़ोर जिनपर इस्लाम समाज का निर्माण चाहता था,
  5. नबी (सल्ल०) और आपकी दावत (आह्वान) के विरुद्ध लोगों की आपत्तियों का उत्तर,
  6. प्यारे नबी (सल्ल०) और आम मुसलमानों को तसल्ली, और
  7. इंकारियों और विरोधियों को उपदेश, चेतावनी और डरावा।

मक्‍की जीवन के काल-खण्ड

यहाँ चूँकि पहली बार पढ़नेवालों के सामने एक सविस्तार मक्की सूरा आ रही है, इसलिए उचित मालूम हो रहा है कि यहाँ हम मक्की सूरतों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की एक व्यापक व्याख्या कर दें, ताकि आगे तमाम मक्की सूरतों को और उनकी व्याख्याओं के सिलसिले में हमारे संकेतों को समझना आसान हो जाए।

जहाँ तक मदनी सूरतों का संबंध है, उनमें से तो क़रीब-क़रीब हर एक के उतरने का समय मालूम है या थोड़ी-सी कोशिश से निश्चित किया जा सकता है, बल्कि इनकी तो बहुत-सी आयतों के उतरने की अलग-अलग वजहें भी भरोसेमंद रिवायतों में मिल जाती हैं, लेकिन मक्की सूरतों के बारे में हमारे पास ज्ञान प्राप्त करने का ऐसा कोई साधन नहीं है। बहुत कम सूरतें या आयते ऐसी है जिनके उतरने के समय और मौक़े के बारे में कोई सही और भरोसेमंद रिवायत (उल्लेख) मिलती हो। इस कारण मक्की सूरतों के बारे में हमें ऐतिहासिक गवाहियों के बजाय अधिकतर उन अन्दरूनी गवाहियों पर भरोसा करना पड़ता है जो अलग-अलग सूरतों के विषय, सामग्री और शैली में और अपनी पृष्ठभूमि की ओर उनके खुले या छिपे संकेतों में पाई जाती हैं, और स्पष्ट है कि इस प्रकार की गवाहियों से मदद लेकर एक-एक सूरा और एक-एक आयत के बारे में यह निश्चित नहीं किया जा सकता कि यह फ़ुलां तारीख़ को या फ़ुलां सन् में फ़ुलां मौके पर उतरी है। अधिक विश्वास के साथ जो बात कही जा सकती है, वह केवल यह है कि एक ओर हम मक्की सूरतों को अन्दरूनी गवाहियों को और दूसरी ओर नबी (सल्ल.) के मक्की जीवन के इतिहास को आमने-सामने रखें और फिर दोनों की तुलना करते हुए यह राय बनाएँ कि कौन-सी सूरा किस युग से संबंधित है- शोध की इस पद्धति को बुद्धि में रखकर जब हम नबी (सल्ल.) के मक्की जीवन पर नज़र डालते हैं तो वह इस्लामी दावत की दृष्टि से हमें चार बड़े-बड़े युगों में बँटा दिखाई देता है-

पहला युग, पैग़म्बर बनाए जाने से लेकर नुबूवत के एलान तक, लगभग 3 साल, जिसमें दावत खुफ़िया तरीके से खास-खास आदमियों को दी जा रही थी और सामान्य मक्कावालों को इसका ज्ञान न था।

दूसरा युग, नुबूवत के एलान से लेकर जुल्मो-सितम और फ़ितने (Persecution) के फैलने तक, लगभग 2 साल, जिसमें पहले विरोध शुरू हुआ, फिर उसने रोक-टोक का रूप लिया, फिर हँसी उड़ाना, आवाजें कसना, आरोप लगाना, गाली-गलोच, झूठे प्रोपगंडे और विरोधी जत्थेबन्दी तक नौबत पहुँची और अन्त में उन मुसलमानों पर ज़्यादतियाँ शुरू हो गईं जो औरों की तुलना में अधिक धनहीन, कमज़ोर और असहाय थे।

तीसरा युग, फ़ितने की शुरुआत (05 नबवी) से लेकर अबू-तालिब और हज़रत ख़दीजा (रजि०) के देहावसान (10 नबवी) तक, लगभग पाँच-छह साल। इसमें विरोध अति उग्र होता चला गया। बहुत-से मुसलमान मक्का के इस्लाम-दुश्मनों के जुल्मो-सितम से तंग आकर हबशा की ओर हिजरत कर गए। नबी (सल्ल०) और आपके परिवार और बाक़ी मुसलमानों का आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार किया गया और आप अपने समर्थकों और साथियों सहित अबू-तालिब नामक घाटी में कैद कर दिए गए।

चौथा युग, 10 नबवी से लेकर 11 नबवी तक, लगभग तीन साल। यह नबी (सल्ल.) और आप के साथियों के लिए अति कठोर और विपदाओं का युग था। मक्का में आपके लिए ज़िन्दगी दूभर कर दी गई थी। अन्ततः अल्लाह की मेहरबानी से अंसार के दिल इस्लाम के लिए खुल गए और उनकी दावत पर आपने मदीने की और हिजरत की।

इनमें से हर युग में क़ुरआन मजीद की जो सूरतें उतरी हैं, उनमें उस युग की विशेष बातों का प्रभाव बहुत बड़ी हद तक दिखाई देता है। इन्ही निशानियों पर भरोसा करके हम आगे हर मक्की सूरा के शुरू में यह बताएँगे कि वह मक्का के किस काल में उतरी है।

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سُورَةُ الأَنۡعَامِ
6. सूरा अल-अनआम
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और रहम करनेवाला है।
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَجَعَلَ ٱلظُّلُمَٰتِ وَٱلنُّورَۖ ثُمَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمۡ يَعۡدِلُونَ
(1) तारीफ़ अल्लाह के लिए है जिसने ज़मीन और आसमान बनाए, रौशनी और अँधेरों को पैदा किया। फिर भी वे लोग जिन्होंने सत्य सन्देश को मानने से इनकार कर दिया है दूसरों को अपने रब का समकक्ष ठहरा रहे हैं।
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن طِينٖ ثُمَّ قَضَىٰٓ أَجَلٗاۖ وَأَجَلٞ مُّسَمًّى عِندَهُۥۖ ثُمَّ أَنتُمۡ تَمۡتَرُونَ ۝ 1
(2) वही है जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर तुम्हारे लिए ज़िन्दगी की एक मुद्दत निश्चित कर दी, और एक दूसरी अवधि और भी है जो उसके यहाँ निश्चित है।1 मगर तुम लोग सन्देह में पड़े हुए हो।
1. अर्थात् क़ियामत की घड़ी जबकि तमाम अगले-पिछले इनसान नए सिरे से ज़िन्दा किए जाएँगे और हिसाब देने के लिए अपने रब के सामने हाज़िर होंगे।
وَهُوَ ٱللَّهُ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَفِي ٱلۡأَرۡضِ يَعۡلَمُ سِرَّكُمۡ وَجَهۡرَكُمۡ وَيَعۡلَمُ مَا تَكۡسِبُونَ ۝ 2
(3) वही एक अल्लाह आसमानों में भी है और ज़मीन में भी, तुम्हारे खुले और छिपे सब हाल जानता है और जो बुराई या भलाई तुम कमाते हो उससे ख़ूब परिचित है।
وَمَا تَأۡتِيهِم مِّنۡ ءَايَةٖ مِّنۡ ءَايَٰتِ رَبِّهِمۡ إِلَّا كَانُواْ عَنۡهَا مُعۡرِضِينَ ۝ 3
(4) लोगों का हाल यह है कि उनके रब की निशानियों में से कोई निशानी ऐसी नहीं जो उनके सामने आई हो और उन्होंने उससे मुँह न मोड़ लिया हो।
فَقَدۡ كَذَّبُواْ بِٱلۡحَقِّ لَمَّا جَآءَهُمۡ فَسَوۡفَ يَأۡتِيهِمۡ أَنۢبَٰٓؤُاْ مَا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 4
(5) अतएव अब जो सत्य उनके पास आया तो उसे भी उन्होंने झुठला दिया। अच्छा, जिस चीज़़ की वे अब तक हँसी उड़ाते रहे हैं जल्द ही उसके बारे में कुछ ख़बरें उन्हें पहुँचेंगी।2
2. संकेत है 'हिजरत' और उन सफलताओं की ओर जो हिजरत के बाद इस्लाम को लगातार हासिल होनेवाली थीं। जिस समय यह इशारा किया गया था उस समय न अधर्मी यह सोच सकते थे कि किस तरह की ख़बरें उन्हें पहुँचनेवाली हैं और न मुसलमानों ही के ज़ेहन में इसकी कोई कल्पना थी।
أَلَمۡ يَرَوۡاْ كَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَبۡلِهِم مِّن قَرۡنٖ مَّكَّنَّٰهُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَا لَمۡ نُمَكِّن لَّكُمۡ وَأَرۡسَلۡنَا ٱلسَّمَآءَ عَلَيۡهِم مِّدۡرَارٗا وَجَعَلۡنَا ٱلۡأَنۡهَٰرَ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهِمۡ فَأَهۡلَكۡنَٰهُم بِذُنُوبِهِمۡ وَأَنشَأۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِمۡ قَرۡنًا ءَاخَرِينَ ۝ 5
(6) क्या इन्होंने देखा नहीं कि इनसे पहले कितनी ऐसी क़ौमों को हम तबाह कर चुके हैं जिनकी अपने-अपने युग में प्रधानता और बड़ा प्रभाव रहा है? उनको हमने धरती में यह प्रभुत्व प्रदान किया था जो तुम्हें नहीं प्रदान किया है, उनपर हमने आसमान से ख़ूब बारिशें बरसाईं और उनके नीचे नहरें बहा दीं, मगर जब उन्होंने कृतघ्नता से काम लिया तो आख़िरकार हमने उनके गुनाहों के बदले में उन्हें तबाह कर दिया और उनकी जगह दूसरे दौर की क़ौमों को उठाया।
وَلَوۡ نَزَّلۡنَا عَلَيۡكَ كِتَٰبٗا فِي قِرۡطَاسٖ فَلَمَسُوهُ بِأَيۡدِيهِمۡ لَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٞ ۝ 6
(7) ऐ पैग़म्बर, अगर हम तुम्हारे ऊपर कोई काग़ज़ में लिखी-लिखाई किताब भी उतार देते और लोग उसे अपने हाथों से छूकर भी देख लेते तब भी जिन्होंने सत्य का इनकार किया है वे यही कहते कि यह तो खुला जादू है।
وَقَالُواْ لَوۡلَآ أُنزِلَ عَلَيۡهِ مَلَكٞۖ وَلَوۡ أَنزَلۡنَا مَلَكٗا لَّقُضِيَ ٱلۡأَمۡرُ ثُمَّ لَا يُنظَرُونَ ۝ 7
(8) कहते हैं कि इस नबी पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा गया?3 अगर कहीं हमने फ़रिश्ता उतार दिया होता तो अब तक कभी का फ़ैसला हो चुका होता, फिर इन्हें कोई मुहलत न दी जाती
3. अर्थात् जब यह व्यक्ति अल्लाह की ओर से पैग़म्बर बनाकर भेजा गया है तो आसमान से एक फ़रिश्ता उतरना चाहिए था जो लोगों से कहता कि यह अल्लाह का पैग़म्बर है, इसकी बात मानो नहीं तो तुम्हें सज़ा दी जाएगी।
وَلَوۡ جَعَلۡنَٰهُ مَلَكٗا لَّجَعَلۡنَٰهُ رَجُلٗا وَلَلَبَسۡنَا عَلَيۡهِم مَّا يَلۡبِسُونَ ۝ 8
(9) और अगर हम फ़रिश्ते को उतारते तब भी उसे इनसानी शक्ल ही में उतारते और इस तरह इन्हें उसी सन्देह में डाल देते जिसमें अब ये पड़े हुए हैं।
وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلٖ مِّن قَبۡلِكَ فَحَاقَ بِٱلَّذِينَ سَخِرُواْ مِنۡهُم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 9
(10) ऐ नबी, तुमसे पहले भी बहुत-से रसूलों की हँसी उड़ाई जा चुकी है, मगर उन हँसी उड़ानेवालों पर आख़िरकार वही हक़ीक़त छाकर रही जिसकी वे हँसी उड़ाते थे।
قُلۡ سِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ ٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 10
(11) इनसे कहो, तनिक ज़मीन में चल-फिरकर देखो झुठलानेवालों का क्या अंजाम हुआ है।
قُل لِّمَن مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ قُل لِّلَّهِۚ كَتَبَ عَلَىٰ نَفۡسِهِ ٱلرَّحۡمَةَۚ لَيَجۡمَعَنَّكُمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا رَيۡبَ فِيهِۚ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فَهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 11
(12) इनसे पूछो, आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है वह किसका है? — कहो सब कुछ अल्लाह ही का है, उसने दयालुता की नीति अपने लिए अनिवार्य कर ली है (इसी लिए वह अवज्ञाओं और सरकशियों पर तुम्हें जल्दी से नहीं पकड़ता), क़ियामत के दिन वह तुम सबको ज़रूर इकट्ठा करेगा, यह बिलकुल एक असंदिग्ध हक़ीक़त है, मगर जिन लोगों ने अपने आपको ख़ुद तबाही के ख़तरे में डाल लिया है वे इसे नहीं मानते।
۞وَلَهُۥ مَا سَكَنَ فِي ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِۚ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 12
(13) रात के अँधेरे और दिन के उजाले में जो कुछ ठहरा हुआ है, सब अल्लाह का है और वह सब कुछ सुनता और जानता है।
قُلۡ أَغَيۡرَ ٱللَّهِ أَتَّخِذُ وَلِيّٗا فَاطِرِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَهُوَ يُطۡعِمُ وَلَا يُطۡعَمُۗ قُلۡ إِنِّيٓ أُمِرۡتُ أَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ مَنۡ أَسۡلَمَۖ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 13
(14) कहो, अल्लाह को छोड़कर क्या मैं किसी और को अपना सरपरस्त बना लूँ? उस अल्लाह को छोड़कर जो ज़मीन और आसमान का पैदा करनेवाला है। और जो रोज़ी देता है रोजी लेता नहीं है? कहो, मुझे तो यही आदेश दिया गया है कि सबसे पहले मैं उसके आगे आज्ञापालन की भावना से झुक जाऊँ (और ताकीद की गई है कि कोई ईश्वर का साझीदार बनाता है तो बनाए) तू किसी हाल में मुशरिकों (बहुदेववादियों) में शामिल न हो।
قُلۡ إِنِّيٓ أَخَافُ إِنۡ عَصَيۡتُ رَبِّي عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 14
(15) कहो, अगर मैं अपने रब की नाफ़रमानी करूँ तो डरता हूँ कि एक बड़े (भयानक) दिन मुझे सज़ा भुगतनी पड़ेगी।
مَّن يُصۡرَفۡ عَنۡهُ يَوۡمَئِذٖ فَقَدۡ رَحِمَهُۥۚ وَذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 15
(16) उस दिन जो सज़ा से बच गया उसपर अल्लाह ने बड़ी ही दया की और यही खुली सफलता है।
وَإِن يَمۡسَسۡكَ ٱللَّهُ بِضُرّٖ فَلَا كَاشِفَ لَهُۥٓ إِلَّا هُوَۖ وَإِن يَمۡسَسۡكَ بِخَيۡرٖ فَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ ۝ 16
(17) अगर अल्लाह तुम्हें किसी तरह का नुक़सान पहुँचाए तो उसके सिवा कोई नहीं जो तुम्हें उस नुक़सान से बचा सके और अगर वह तुम्हें कोई भलाई पहुँचाए तो उसे हर चीज़़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
وَهُوَ ٱلۡقَاهِرُ فَوۡقَ عِبَادِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡخَبِيرُ ۝ 17
(18) उसे अपने सेवकों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है और वह जानता और ख़बर रखता है।
قُلۡ أَيُّ شَيۡءٍ أَكۡبَرُ شَهَٰدَةٗۖ قُلِ ٱللَّهُۖ شَهِيدُۢ بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡۚ وَأُوحِيَ إِلَيَّ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانُ لِأُنذِرَكُم بِهِۦ وَمَنۢ بَلَغَۚ أَئِنَّكُمۡ لَتَشۡهَدُونَ أَنَّ مَعَ ٱللَّهِ ءَالِهَةً أُخۡرَىٰۚ قُل لَّآ أَشۡهَدُۚ قُلۡ إِنَّمَا هُوَ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ وَإِنَّنِي بَرِيٓءٞ مِّمَّا تُشۡرِكُونَ ۝ 18
(19) इनसे पूछो, किसकी गवाही सबसे बढ़कर है? — कहो, मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह गवाह है, और यह क़ुरआन मेरी ओर 'वह्य' (प्रकाशना) के द्वारा भेजा गया है, ताकि तुम्हें और जिस-जिसको यह पहुँचे, सबको सावधान कर दूँ, क्या वास्तव में तुम लोग यह गवाही दे सकते हो कि अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य भी हैं4? कहो, मैं तो इसकी गवाही हरगिज़ नहीं दे सकता। कहो, ईश्वर तो वही एक है और मैं उस शिर्क (बहुदेववाद) से बिलकुल बेज़ार हूँ जिसमें तुम पड़े हो।
4. किसी चीज़ की गवाही देने के लिए सिर्फ़ अटकल और अनुमान काफ़ी नहीं है, बल्कि इसके लिए ज्ञान होना ज़रूरी है जिसके आधार पर आदमी यक़ीन के साथ कह सके कि ऐसा है। अतः सवाल का मतलब यह है कि क्या वास्तव में तुम्हें यह ज्ञान है कि इस वर्तमान लोक में अल्लाह के सिवा और भी कोई अधिकार प्राप्त शासक है जो बन्दगी और पूजा का अधिकार रखता हो?
ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَعۡرِفُونَهُۥ كَمَا يَعۡرِفُونَ أَبۡنَآءَهُمُۘ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فَهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 19
(20) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह इस बात को इस तरह असंदिग्ध रूप से पहचानते हैं जैसे उनको अपने बेटों के पहचानने में कोई सन्देह नहीं होता। मगर जिन्होंने अपने-आपको ख़ुद घाटे में डाल दिया है वे इसे नहीं मानते।
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَوۡ كَذَّبَ بِـَٔايَٰتِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ لَا يُفۡلِحُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 20
(21) और उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूठा आरोप लगाए, या अल्लाह की निशानियों को झुठलाए? यक़ीनन ऐसे ज़ालिम कभी सफल नहीं हो सकते।
وَيَوۡمَ نَحۡشُرُهُمۡ جَمِيعٗا ثُمَّ نَقُولُ لِلَّذِينَ أَشۡرَكُوٓاْ أَيۡنَ شُرَكَآؤُكُمُ ٱلَّذِينَ كُنتُمۡ تَزۡعُمُونَ ۝ 21
(22) जिस दिन हम इन सबको इकट्ठा करेंगे और मुशरिकों (बहुदेववादियों) से पूछेंगे कि अब वे तुम्हारे ठहराए हुए साझीदार कहाँ हैं जिनको तुम अपना ईश्वर समझते थे,
ثُمَّ لَمۡ تَكُن فِتۡنَتُهُمۡ إِلَّآ أَن قَالُواْ وَٱللَّهِ رَبِّنَا مَا كُنَّا مُشۡرِكِينَ ۝ 22
(23) तो वे इसके सिवा कोई उपद्रव न मचा सकेंगे कि (यह झूठा बयान दें कि) ऐ हमारे रब, तेरी क़सम हम हरगिज़ मुशरिक (बहुदेववादी) न थे।
ٱنظُرۡ كَيۡفَ كَذَبُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡۚ وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ ۝ 23
(24) देखो, उस समय ये किस तरह अपने ऊपर आप झूठ गढ़ेंगे और वहाँ इनके सारे बनावटी माबूद (उपास्य) गुम हो जाएगे।
وَمِنۡهُم مَّن يَسۡتَمِعُ إِلَيۡكَۖ وَجَعَلۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ أَكِنَّةً أَن يَفۡقَهُوهُ وَفِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٗاۚ وَإِن يَرَوۡاْ كُلَّ ءَايَةٖ لَّا يُؤۡمِنُواْ بِهَاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوكَ يُجَٰدِلُونَكَ يَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 24
(25) इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जो कान लगाकर तुम्हारी बात सुनते हैं मगर हाल यह है कि हमने उनके दिलों पर परदे डाल रखे हैं जिनके कारण वे उसको कुछ नहीं समझते और उनके कानों में बोझ डाल दिया है (कि सब कुछ सुनने पर भी कुछ नहीं सुनते)। वे चाहे कोई निशानी देख लें, उसपर ईमान नहीं लाएँगे। बात यहाँ तक पहुँच चुकी है कि जब वे तुम्हारे पास आकर तुमसे झगड़ते हैं तो उनमें से जिन लोगों ने इनकार का फ़ैसला कर लिया है वे (सारी बातें सुनने के बाद) यही कहते हैं कि यह एक पुरातन कथा के सिवा कुछ नहीं।
وَهُمۡ يَنۡهَوۡنَ عَنۡهُ وَيَنۡـَٔوۡنَ عَنۡهُۖ وَإِن يُهۡلِكُونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ ۝ 25
(26) वे उस चीज़़ को जो सत्य है क़ुबूल करने से लोगों को रोकते हैं और स्वयं भी उससे दूर भागते हैं। (वे समझते हैं कि इस कर्म से वे तुम्हारा कुछ बिगाड़ रहे हैं) हालाँकि वास्तव में वे ख़ुद अपनी तबाही का सामान कर रहे हैं, मगर उन्हें इसका ज्ञान नहीं है।
وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذۡ وُقِفُواْ عَلَى ٱلنَّارِ فَقَالُواْ يَٰلَيۡتَنَا نُرَدُّ وَلَا نُكَذِّبَ بِـَٔايَٰتِ رَبِّنَا وَنَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 26
(27) क्या ही अच्छा होता कि तुम उस समय की हालत को देख सकते जब वे दोज़ख़ के किनारे खड़े किए जाएँगे। उस समय वे कहेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि कोई राह ऐसी निकल सकती कि हम दुनिया में फिर वापस भेजे जाएँ और अपने रब की निशानियों को न झुठलाएँ और ईमान लानेवालो में शामिल हो।
بَلۡ بَدَا لَهُم مَّا كَانُواْ يُخۡفُونَ مِن قَبۡلُۖ وَلَوۡ رُدُّواْ لَعَادُواْ لِمَا نُهُواْ عَنۡهُ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ ۝ 27
(28) वास्तव में यह बात वे सिर्फ़ इस कारण कहेंगे कि जिस हक़ीक़त पर उन्होंने परदा डाल रखा था वह उस समय खुले रूप में उनके सामने आ चुकी होगी, वरना अगर उन्हें पहले की ज़िन्दगी की ओर वापस भेजा जाए तो फिर वही सब कुछ करें, जिससे उन्हें रोका गया है, वे तो हैं ही झूठे (इसलिए अपनी इस इच्छा के व्यक्त करने में भी झूठ। ही से काम लेंगे)।
وَقَالُوٓاْ إِنۡ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا ٱلدُّنۡيَا وَمَا نَحۡنُ بِمَبۡعُوثِينَ ۝ 28
(29) आज ये लोग कहते हैं कि ज़िन्दगी जो कुछ भी है बस यही हमारी दुनिया की ज़िन्दगी है और हम मरने के बाद हरगिज़ दोबारा न उठाए जाएँगे।
وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذۡ وُقِفُواْ عَلَىٰ رَبِّهِمۡۚ قَالَ أَلَيۡسَ هَٰذَا بِٱلۡحَقِّۚ قَالُواْ بَلَىٰ وَرَبِّنَاۚ قَالَ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ ۝ 29
(30) क्या ही अच्छा हो जो वह दृश्य तुम देख सको जब ये अपने रब के सामने खड़े किए जाएँगे। उस समय इनका रब इनसे पूछेगा, “क्या यह सत्य नहीं है?” ये कहेंगे, “हाँ ऐ हमारे रब, यह सत्य ही है।” वह कहेगा, “अच्छा तो अब अपने इनकार के बदले में अज़ाब का मज़ा चखो।”
قَدۡ خَسِرَ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِلِقَآءِ ٱللَّهِۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَتۡهُمُ ٱلسَّاعَةُ بَغۡتَةٗ قَالُواْ يَٰحَسۡرَتَنَا عَلَىٰ مَا فَرَّطۡنَا فِيهَا وَهُمۡ يَحۡمِلُونَ أَوۡزَارَهُمۡ عَلَىٰ ظُهُورِهِمۡۚ أَلَا سَآءَ مَا يَزِرُونَ ۝ 30
(31) नुक़सान में पड़ गए वे लोग जिन्होंने अल्लाह से अपनी मुलाक़ात की ख़बर को झूठ ठहराया। जब अचानक वह घड़ी आ जाएगी तो यही लोग कहेंगे, “अफ़सोस! हमसे इस मामले में कैसी चूक हुई।” इनकी हालत यह होगी कि अपनी पीठों पर अपने गुनाहों का बोझ लादे हुए होंगे। देखो! कैसा बुरा बोझ है जो ये उठा रहे हैं।
وَمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَآ إِلَّا لَعِبٞ وَلَهۡوٞۖ وَلَلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ خَيۡرٞ لِّلَّذِينَ يَتَّقُونَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ ۝ 31
(32) दुनिया की ज़िन्दगी तो एक खेल और एक तमाशा है।5 वास्तव में आख़िरत ही की जगह उन लोगों के लिए अच्छी है जो घाटे से बचना चाहते हैं। फिर क्या तुम लोग अक़्ल से काम न लोगे?
5. इसका यह अर्थ नहीं कि दुनिया को ज़िन्दगी में कोई गंभीरता नहीं पाई जाती है और दुनिया सिर्फ़ खेल और तमाशे के तौर पर बनाई गई है। वास्तव में इसका अर्थ यह है कि आख़िरत की वास्तविक और स्थायी ज़िन्दगी के मुक़ाबले में यह ज़िन्दगी ऐसी है जैसे कोई व्यक्ति कुछ देर खेल और मनोरंजन में मन बहलाए और फिर असल गंभीर कारोबार की ओर वापस हो जाए। इसके अलावा इसे खेल और तमाशे की उपमा इसलिए भी दी गई है कि यहाँ वास्तविकता के छिपे होने के कारण दूर दृष्टि नहीं रखनेवाले और सिर्फ़ ऊपरी चीज़ों को देखकर रीझनेवाले इनसानों के लिए ग़लतफ़हमियों में पड़ जाने के बहुत कारण मौजूद हैं और इन ग़लतफ़हमियों में फँसकर लोग मूल वास्तविकता के विरुद्ध ऐसे-ऐसे अजीब ढंग अपनाते हैं जिनके कारण उनकी ज़िन्दगी सिर्फ़ एक खेल और तमाशा बनकर रह जाती है।
قَدۡ نَعۡلَمُ إِنَّهُۥ لَيَحۡزُنُكَ ٱلَّذِي يَقُولُونَۖ فَإِنَّهُمۡ لَا يُكَذِّبُونَكَ وَلَٰكِنَّ ٱلظَّٰلِمِينَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ يَجۡحَدُونَ ۝ 32
(33) ऐ नबी, हम जानते हैं कि जो बातें ये लोग बनाते है उनसे तुम्हें दुख पहुँचता है, लेकिन ये लोग तुम्हें नहीं झुठलाते बल्कि ये ज़ालिम वास्तव में अल्लाह की आयतों का इनकार कर रहे हैं।6
6. वाक़िआ यह है कि जब तक हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने अल्लाह की आयतें सुनानी शुरू न की थीं, आपकी क़ौम के सब लोग आपको 'अमीन' और 'सादिक़ (विश्वस्त और सच्चा) समझते थे और आपकी सच्चाई पर पूरा भरोसा रखते थे। उन्होंने आपको झुठलाया उस समय जबकि आपने अल्लाह की ओर से सन्देश पहुँचाना शुरू किया। और इस दूसरे दौर में भी उनके अन्दर कोई व्यक्ति ऐसा न था जो व्यक्तिगत रूप से आपको झूठा ठहराने का साहस कर सकता हो। आपके किसी बड़े से बड़े विरोधी ने भी कभी आपपर यह इलज़ाम नहीं लगाया कि आप दुनिया के किसी मामले में कभी झूठ बोले हैं। उन्होंने जितना आपको झुठलाया वह सिर्फ़ नबी होने की हैसियत से झुठलाया। आपका सबसे बड़ा दुश्मन अबू-जह्ल था और हज़रत अली (रज़ि०) से रिवायत है कि एक बार उसने ख़ुद नबी (सल्ल०) से बातचीत करते हुए कहा, “हम आपको तो झूठा नहीं कहते, मगर जो कुछ आप पेश कर रहे हैं उसे झूठ ठहराते हैं।"
وَلَقَدۡ كُذِّبَتۡ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِكَ فَصَبَرُواْ عَلَىٰ مَا كُذِّبُواْ وَأُوذُواْ حَتَّىٰٓ أَتَىٰهُمۡ نَصۡرُنَاۚ وَلَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَٰتِ ٱللَّهِۚ وَلَقَدۡ جَآءَكَ مِن نَّبَإِيْ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 33
(34) तुमसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके हैं, मगर इस झुठलाने पर और उन तकलीफ़ों पर जो उन्हें पहुँचाई गई, उन्होंने सब्र से काम लिया, यहाँ तक कि उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। अल्लाह की बातों को बदलने की शक्ति किसी में नहीं है, और पिछले रसूलों के साथ जो कुछ हुआ उसकी ख़बरें तुम्हें पहुँच ही चुकी हैं।
وَإِن كَانَ كَبُرَ عَلَيۡكَ إِعۡرَاضُهُمۡ فَإِنِ ٱسۡتَطَعۡتَ أَن تَبۡتَغِيَ نَفَقٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ أَوۡ سُلَّمٗا فِي ٱلسَّمَآءِ فَتَأۡتِيَهُم بِـَٔايَةٖۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَجَمَعَهُمۡ عَلَى ٱلۡهُدَىٰۚ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡجَٰهِلِينَ ۝ 34
(35) फिर भी अगर इन लोगों की विमुखता तुम्हारे लिए बरदाश्त से बाहर है तो अगर तुममें कुछ ज़ोर है तो ज़मीन में कोई सुरंग ढूँढ़ो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उनके पास कोई निशानी लाने की कोशिश करो। अगर अल्लाह चाहता तो उन सबको सीधे मार्ग पर इकट्ठा कर सकता था, अतः नादान मत बनो।7
7. अर्थात् इस चिंता में न पड़ो कि इन लोगों को कोई ऐसी निशानी दिखा दी जाए जिससे ये ईमान ले आएँ। अगर अल्लाह के सामने यह होता कि सारे इनसानों को सीधे मार्ग पर ला दिया जाए तो वह सबको ईमानवाला ही बनाकर पैदा कर देता। फिर रसूलों को भेजने और ईमानवालों और कुफ़्रवालों के बीच वर्षों संघर्ष कराने की ज़रूरत ही क्या थी?
۞إِنَّمَا يَسۡتَجِيبُ ٱلَّذِينَ يَسۡمَعُونَۘ وَٱلۡمَوۡتَىٰ يَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ ثُمَّ إِلَيۡهِ يُرۡجَعُونَ ۝ 35
(36) सत्य के आह्वान को स्वीकार वही लोग करते हैं जो सुननेवाले हैं। रहे मुर्दे8 तो उन्हें तो अल्लाह बस क़ब्रों ही से उठाएगा और फिर वे (उसकी अदालत में पेश होने के लिए) वापस लाए जाएँगे।
8. सुननेवालों से मुराद वे लोग हैं जिनकी अन्तरात्माएँ ज़िन्दा है, जिन्होंने अपनी बुद्धि और विचार-शक्ति को निलंबित नहीं कर दिया है, और जिन्होंने अपने दिल के दरवाज़ों पर पक्षपात और जड़ता के ताले नहीं लगा दिए हैं। उनके मुक़ाबले में मुर्दा वे लोग हैं जो लकीर के फ़क़ीर बने अन्धों की तरह चले जा रहे हैं और उस लकीर से हटकर कोई बात क़ुबूल करने के लिए तैयार नहीं हैं चाहे वह खुला सत्य ही क्यों न हो।
وَقَالُواْ لَوۡلَا نُزِّلَ عَلَيۡهِ ءَايَةٞ مِّن رَّبِّهِۦۚ قُلۡ إِنَّ ٱللَّهَ قَادِرٌ عَلَىٰٓ أَن يُنَزِّلَ ءَايَةٗ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 36
(37) ये लोग कहते हैं कि इस नबी पर इसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गई? कहो, अल्लाह को निशानी उतारने की पूरी सामर्थ्य प्राप्त है, मगर इनमें ज़्यादातर लोग नासमझी में पड़े हुए हैं।9
9. निशानी से मुराद प्रत्यक्ष चमत्कार है। अल्लाह तआला के इस कथन का अर्थ यह है कि चमत्कार न दिखाए जाने का कारण यह नहीं है कि हमें उसके दिखाने की सामर्थ्य प्राप्त नहीं, बल्कि इसका कारण कुछ और है। जिसे ये लोग केवल अपनी नादानी से नहीं समझते।
وَمَا مِن دَآبَّةٖ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا طَٰٓئِرٖ يَطِيرُ بِجَنَاحَيۡهِ إِلَّآ أُمَمٌ أَمۡثَالُكُمۚ مَّا فَرَّطۡنَا فِي ٱلۡكِتَٰبِ مِن شَيۡءٖۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ يُحۡشَرُونَ ۝ 37
(38) ज़मीन में चलनेवाले किसी जानवर और हवा में पंख से उड़नेवाले किसी पक्षी को देख लो, ये सब तुम्हारी ही तरह की जातियाँ हैं, हमने उनके भाग्य के लेख में कोई कमी नहीं छोड़ी है, फिर ये सब अपने रब की ओर समेटे जाते हैं।
وَٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا صُمّٞ وَبُكۡمٞ فِي ٱلظُّلُمَٰتِۗ مَن يَشَإِ ٱللَّهُ يُضۡلِلۡهُ وَمَن يَشَأۡ يَجۡعَلۡهُ عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 38
(39) मगर जो लोग हमारी निशानियों को झुठलाते हैं वे बहरे और गूँगे हैं, अँधेरों में पड़े हुए हैं। अल्लाह जिसे चाहता है। भटका देता है और जिसे चाहता है सीधे रास्ते पर लगा देता है।10
10. अल्लाह का भटकाना यह है कि एक जहालतपसंद इनसान को अल्लाह की निशानियों के अध्ययन का सौभाग्य प्रदान न किया जाए और एक पक्षपाती यथार्थ का विरोधी विद्यार्थी अगर उनका निरीक्षण करे भी तो सत्य तक पहुँचने के चिह्न और निशानियाँ उसकी आँखों से ओझल रहें और ग़लतफ़हमियों में उलझानेवाली चीज़़ें उसे सत्य से दूर और बहुत दूर खींचती चली जाएँ। इसके विपरीत अल्लाह का राह दिखाना यह है कि एक सत्यान्वेषी को ज्ञान के साधनों से लाभ उठाने का सौभाग्य प्राप्त हो और अल्लाह की निशानियों में उसे सत्य तक पहुँचने के चिह्न मिलते चले जाएँ।
قُلۡ أَرَءَيۡتَكُمۡ إِنۡ أَتَىٰكُمۡ عَذَابُ ٱللَّهِ أَوۡ أَتَتۡكُمُ ٱلسَّاعَةُ أَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَدۡعُونَ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 39
(40) इनसे कहो, तनिक सोचकर बताओ, अगर कभी तुमपर अल्लाह की ओर से कोई बड़ी मुसीबत आ जाती है या आख़िरी घड़ी आ पहुँचती है तो क्या उस समय तुम अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारते हो? बोलो अगर तुम सच्चे हो।
بَلۡ إِيَّاهُ تَدۡعُونَ فَيَكۡشِفُ مَا تَدۡعُونَ إِلَيۡهِ إِن شَآءَ وَتَنسَوۡنَ مَا تُشۡرِكُونَ ۝ 40
(41) उस समय तुम अल्लाह ही को पुकारते हो, फिर अगर वह चाहता है तो उस मुसीबत को तुमपर से टाल देता है। ऐसे मौक़ों पर तुम अपने ठहराए हुए साझीदारों को भूल जाते हो।11
11. अर्थात् यह निशानी तो तुम्हारे अपने आप (नफ़्स) में मौजूद है। जब तुमपर कोई बड़ी आफ़त आ जाती है, या मौत अपने भयावह रूप के साथ सामने आ खड़ी होती है उस समय एक अल्लाह के दामन के सिवा कोई दूसरी पनाहगाह तुम्हें दिखाई नहीं देती। बड़े-बड़े मुशरिक (बहुदेववादी) ऐसे मौक़े पर अपने देवताओं को भूलकर अकेले ईश्वर को पुकारने लगते हैं। कट्टर से कट्टर नास्तिक तक ईश्वर के आगे दुआ के लिए हाथ फैला देता है। यह इस बात का प्रमाण है कि ईश-भक्ति और एकेश्वरवाद की गवाही हर इनसान के अंतःकरण में मौजूद है जिसपर असावधानी और अज्ञान के चाहे कितने ही परदे डाल दिए गए हों, मगर फिर भी कभी-कभी वह उभरकर सामने आ जाती है।
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَآ إِلَىٰٓ أُمَمٖ مِّن قَبۡلِكَ فَأَخَذۡنَٰهُم بِٱلۡبَأۡسَآءِ وَٱلضَّرَّآءِ لَعَلَّهُمۡ يَتَضَرَّعُونَ ۝ 41
(42) तुमसे पहले बहुत-सी क़ौमों की ओर हमने रसूल भेजे और उन क़ौमों को मुसीबतों और दुखों में डाला ताकि वे बेबसी के साथ हमारे सामने झुक जाएँ
فَلَوۡلَآ إِذۡ جَآءَهُم بَأۡسُنَا تَضَرَّعُواْ وَلَٰكِن قَسَتۡ قُلُوبُهُمۡ وَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 42
(43) तो जब हमारी ओर से उनपर कठिनाई आई तो क्यों न उन्होंने विनम्रता अपनाई? मगर उनके दिल तो और कठोर हो गए और शैतान ने उन्हें इतमीनान दिलाया कि जो कुछ तुम कर रहे हो ख़ूब कर रहे हो।
فَلَمَّا نَسُواْ مَا ذُكِّرُواْ بِهِۦ فَتَحۡنَا عَلَيۡهِمۡ أَبۡوَٰبَ كُلِّ شَيۡءٍ حَتَّىٰٓ إِذَا فَرِحُواْ بِمَآ أُوتُوٓاْ أَخَذۡنَٰهُم بَغۡتَةٗ فَإِذَا هُم مُّبۡلِسُونَ ۝ 43
(44) फिर जब उन्होंने उस नसीहत को, जो उन्हें की गई थी, भुला दिया तो हमने हर तरह की ख़ुशहालियों के दरवाज़े उनके लिए खोल दिए, यहाँ तक कि जब वे उन चीज़़ों में जो उन्हें प्रदान की गई थीं मग्न हो गए तो अचानक हमने उन्हें पकड़ लिया और अब हालत यह थी कि वे हर भलाई से निराश थे।
فَقُطِعَ دَابِرُ ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْۚ وَٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 44
(45) इस तरह उन लोगों की जड़ काटकर रख दी गई जिन्होंने ज़ुल्म किया था, और तारीफ़ है अल्लाह, सारे जहान के रब के लिए (कि उसने उनकी जड़ काट दी)
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِنۡ أَخَذَ ٱللَّهُ سَمۡعَكُمۡ وَأَبۡصَٰرَكُمۡ وَخَتَمَ عَلَىٰ قُلُوبِكُم مَّنۡ إِلَٰهٌ غَيۡرُ ٱللَّهِ يَأۡتِيكُم بِهِۗ ٱنظُرۡ كَيۡفَ نُصَرِّفُ ٱلۡأٓيَٰتِ ثُمَّ هُمۡ يَصۡدِفُونَ ۝ 45
(46) ऐ नबी, इनसे कहो, कभी तुमने यह भी सोचा कि अगर अल्लाह तुम्हारे देखने और सुनने की शक्ति तुमसे छीन ले और तुम्हारे दिलों पर ठप्पा लगा दे12 तो अल्लाह के सिवा और कौन-सा ख़ुदा है जो ये शक्तियाँ तुम्हें वापस दिला सकता हो? देखो, किस तरह हम बार-बार अपनी निशानियाँ उनके सामने पेश करते हैं और फिर ये किस तरह उनसे निगाह चुरा जाते है।
12. यहाँ दिलों पर ठप्पा लगाने से मुराद सोचने और समझने की शक्ति छीन लेना है।
قُلۡ أَرَءَيۡتَكُمۡ إِنۡ أَتَىٰكُمۡ عَذَابُ ٱللَّهِ بَغۡتَةً أَوۡ جَهۡرَةً هَلۡ يُهۡلَكُ إِلَّا ٱلۡقَوۡمُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 46
(47) कभी तुमने सोचा कि यदि अल्लाह की ओर से अचानक या खुल्लम-खुल्ला तुमपर अज़ाब आ आए तो क्या ज़ालिम लोगों के सिवा कोई और तबाह होगा?
وَمَا نُرۡسِلُ ٱلۡمُرۡسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَۖ فَمَنۡ ءَامَنَ وَأَصۡلَحَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ ۝ 47
(48) हम जो रसूल भेजते हैं इसी लिए तो भेजते हैं कि वे नेक चरित्रवाले लोगों के लिए ख़ुशख़बरी देनेवाले और बुरे चरित्रवाले लोगों के लिए डरानेवाले हों। फिर जो लोग उनकी बात मान लें और अपनी नीति का सुधार कर लें उनके लिए किसी डर और रंज का कोई मौक़ा नहीं है।
وَٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَمَسُّهُمُ ٱلۡعَذَابُ بِمَا كَانُواْ يَفۡسُقُونَ ۝ 48
(49) और जो हमारी आयतों को झुठलाएँ वे अपनी नाफ़रमानियों के बदले में सज़ा भुगतकर रहेंगे।
قُل لَّآ أَقُولُ لَكُمۡ عِندِي خَزَآئِنُ ٱللَّهِ وَلَآ أَعۡلَمُ ٱلۡغَيۡبَ وَلَآ أَقُولُ لَكُمۡ إِنِّي مَلَكٌۖ إِنۡ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَىٰٓ إِلَيَّۚ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلۡأَعۡمَىٰ وَٱلۡبَصِيرُۚ أَفَلَا تَتَفَكَّرُونَ ۝ 49
(50) ऐ नबी, इनसे कहो, “मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं। न मुझे ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान है, और न यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ। मैं तो सिर्फ़ उस प्रकाशना (वह्य) का अनुसरण करता हूँ जो मुझपर अवतरित होती है।” फिर इनसे पूछो, “क्या अन्धा और आँखोंवाला दोनों बराबर हो सकते हैं? क्या तुम सोच-विचार नहीं करते?"
وَأَنذِرۡ بِهِ ٱلَّذِينَ يَخَافُونَ أَن يُحۡشَرُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّهِمۡ لَيۡسَ لَهُم مِّن دُونِهِۦ وَلِيّٞ وَلَا شَفِيعٞ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ ۝ 50
(51) और ऐ नबी, तुम इस (प्रकाशना-ज्ञान) के द्वारा उन लोगों को नसीहत करो जो इस बात का भय रखते हैं कि अपने रब के सामने कभी इस हाल में पेश किए जाएँगे कि उसके सिवा वहाँ कोई (ऐसा सत्ताधिकारी) न होगा जो उनका हिमायती और मददगार हो, या उनकी सिफ़ारिश करे, शायद कि (इस नसीहत से सावधान होकर) वे विनम्रता की नीति अपना लें।
وَلَا تَطۡرُدِ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ رَبَّهُم بِٱلۡغَدَوٰةِ وَٱلۡعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجۡهَهُۥۖ مَا عَلَيۡكَ مِنۡ حِسَابِهِم مِّن شَيۡءٖ وَمَا مِنۡ حِسَابِكَ عَلَيۡهِم مِّن شَيۡءٖ فَتَطۡرُدَهُمۡ فَتَكُونَ مِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 51
(52) और जो लोग अपने रब को रात-दिन पुकारते रहते हैं और उसकी ख़ुशी की चाह में लगे हुए हैं उन्हें अपने से दूर न फेंको। उनके हिसाब में से किसी चीज़़ का भार तुमपर नहीं है और तुम्हारे हिसाब में से किसी चीज़ का भार उनपर नहीं। इसपर भी अगर तुम उन्हें दूर फेंकोगे तो ज़ालिमों में गिने जाओगे।
وَكَذَٰلِكَ فَتَنَّا بَعۡضَهُم بِبَعۡضٖ لِّيَقُولُوٓاْ أَهَٰٓؤُلَآءِ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مِّنۢ بَيۡنِنَآۗ أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِأَعۡلَمَ بِٱلشَّٰكِرِينَ ۝ 52
(53) वास्तव में हमने इस तरह इन लोगों में से कुछ को कुछ के द्वारा परीक्षा में डाला है13 ताकि वे इन्हें देखकर कहें, “क्या ये हैं वे लोग जिनपर हमारे बीच अल्लाह की कृपा हुई है?” — हाँ! क्या अल्लाह अपने शुक्रगुज़ार बन्दों को इनसे ज़्यादा नहीं जानता है?
13. अर्थात् दीन-दुखियों और ऐसे लोगों को समाज में जिनकी हैसियत नगण्य होती है, सबसे पहले ईमान का सौभाग्य प्रदान करके हमने अपने धन और प्रतिष्ठा पर गर्व करनेवाले लोगों को परीक्षा में डाल दिया है।
وَإِذَا جَآءَكَ ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِـَٔايَٰتِنَا فَقُلۡ سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡۖ كَتَبَ رَبُّكُمۡ عَلَىٰ نَفۡسِهِ ٱلرَّحۡمَةَ أَنَّهُۥ مَنۡ عَمِلَ مِنكُمۡ سُوٓءَۢا بِجَهَٰلَةٖ ثُمَّ تَابَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَصۡلَحَ فَأَنَّهُۥ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 53
(54) जब तुम्हारे पास वे लोग आएँ जो हमारी आयतों को मानते हैं तो उनसे कहो, “तुमपर सलामती है तुम्हारे रब ने दयालुता की नीति अपने ऊपर अनिवार्य कर ली है। (यह उसकी दया ही है कि अगर तुममें से कोई नादानी के साथ कोई बुराई कर बैठा हो फिर उसके बाद तौबा और सुधार कर ले तो वह उसे माफ़ कर देता है और नरमी से काम लेता है।"14
14. जो लोग उस समय नबी (सल्ल०) पर ईमान लाए थे उनमें ज़्यादातर लोग ऐसे भी थे जिनसे अज्ञानकाल में बड़े-बड़े गुनाह हो चुके थे। अब इस्लाम क़ुबूल करने के बाद यद्यपि उनकी ज़िन्दगियाँ बिलकुल बदल गई थीं लेकिन इस्लाम के विरोधी उनको पिछले दोषों और कर्मों के ताने देते थे। इसपर कहा जा रहा है कि ईमानवालों को तसल्ली दो, उन्हें बताओ कि जो व्यक्ति तौबा करके अपने को सुधार लेता है उसके पिछले गुनाहों पर पकड़ने का तरीक़ा अल्लाह के यहाँ नहीं है।
وَكَذَٰلِكَ نُفَصِّلُ ٱلۡأٓيَٰتِ وَلِتَسۡتَبِينَ سَبِيلُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 54
(55) और इस तरह हम अपनी निशानियाँ खोल-खोलकर पेश करते हैं ताकि अपराधियों का मार्ग बिलकुल स्पष्ट हो जाए।
قُلۡ إِنِّي نُهِيتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱلَّذِينَ تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِۚ قُل لَّآ أَتَّبِعُ أَهۡوَآءَكُمۡ قَدۡ ضَلَلۡتُ إِذٗا وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُهۡتَدِينَ ۝ 55
(56) ऐ नबी, इनसे कहो कि, “तुम लोग अल्लाह के सिवा जिन दूसरों को पुकारते हो उनकी बन्दगी करने से मुझे रोका गया है।” कहो, “मैं तुम्हारी इच्छाओं का अनुसरण नहीं करूँगा अगर मैंने ऐसा किया तो गुमराह हो गया, सीधा मार्ग पानेवालों में से न रहा।”
قُلۡ إِنِّي عَلَىٰ بَيِّنَةٖ مِّن رَّبِّي وَكَذَّبۡتُم بِهِۦۚ مَا عِندِي مَا تَسۡتَعۡجِلُونَ بِهِۦٓۚ إِنِ ٱلۡحُكۡمُ إِلَّا لِلَّهِۖ يَقُصُّ ٱلۡحَقَّۖ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلۡفَٰصِلِينَ ۝ 56
(57) कहो, “मैं अपने रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर क़ायम हूँ और तुमने उसे झुठला दिया है, अब मेरे अधिकार में वह चीज़ है नहीं जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे हो, फ़ैसले का सारा अधिकार अल्लाह को है, वही सत्य तथ्य बयान करता है और वही सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है।”
قُل لَّوۡ أَنَّ عِندِي مَا تَسۡتَعۡجِلُونَ بِهِۦ لَقُضِيَ ٱلۡأَمۡرُ بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡۗ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 57
(58) कहो, “अगर कहीं वह चीज़ मेरे अधिकार में होती जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो तो मेरे और तुम्हारे बीच कभी का फ़ैसला हो चुका होता। मगर अल्लाह ज़्यादा बेहतर जानता है कि ज़ालिमों के साथ क्या मामला किया जाना चाहिए।
۞وَعِندَهُۥ مَفَاتِحُ ٱلۡغَيۡبِ لَا يَعۡلَمُهَآ إِلَّا هُوَۚ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِۚ وَمَا تَسۡقُطُ مِن وَرَقَةٍ إِلَّا يَعۡلَمُهَا وَلَا حَبَّةٖ فِي ظُلُمَٰتِ ٱلۡأَرۡضِ وَلَا رَطۡبٖ وَلَا يَابِسٍ إِلَّا فِي كِتَٰبٖ مُّبِينٖ ۝ 58
(59) उसी के पास ग़ैब (परोक्ष) की कुंजियाँ हैं जिन्हें उसके सिवा कोई नहीं जानता। जल और थल में जो कुछ है सबसे वह परिचित है। पेड़ से गिरनेवाला कोई पत्ता ऐसा नहीं जिसका उसे ज्ञान न हो, ज़मीन के अंधकारमय परदों में कोई दाना ऐसा नहीं जिससे वह परिचित न हो। सूखा और गीला सब कुछ एक खुली किताब में लिखा हुआ है।
وَهُوَ ٱلَّذِي يَتَوَفَّىٰكُم بِٱلَّيۡلِ وَيَعۡلَمُ مَا جَرَحۡتُم بِٱلنَّهَارِ ثُمَّ يَبۡعَثُكُمۡ فِيهِ لِيُقۡضَىٰٓ أَجَلٞ مُّسَمّٗىۖ ثُمَّ إِلَيۡهِ مَرۡجِعُكُمۡ ثُمَّ يُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 59
(60) वही है जो रात को तुम्हारी रूहों को समेट लेता है और दिन को जो कुछ तुम करते हो उसे जानता है, फिर दूसरे दिन वह तुम्हें इसी कारोबार की दुनिया में वापस भेज देता है ताकि ज़िन्दगी की निश्चित मुद्दत पूरी हो। आख़िरकार उसी की ओर तुम्हारी वापसी है, फिर वह तुम्हें बता देगा कि तुम क्या करते रहे हो।
وَهُوَ ٱلۡقَاهِرُ فَوۡقَ عِبَادِهِۦۖ وَيُرۡسِلُ عَلَيۡكُمۡ حَفَظَةً حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ تَوَفَّتۡهُ رُسُلُنَا وَهُمۡ لَا يُفَرِّطُونَ ۝ 60
(61) अपने बन्दों पर उसे पूरी क़ुदरत हासिल है और तुमपर निगरानी करनेवाले मुक़र्रर करके भेजता है, यहाँ तक कि जब तुममें से किसी की मौत का समय आ जाता है तो उसके भेजे हुए फ़रिश्ते उसकी जान निकाल लेते हैं और अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में तनिक कोताही नहीं करते,
ثُمَّ رُدُّوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ مَوۡلَىٰهُمُ ٱلۡحَقِّۚ أَلَا لَهُ ٱلۡحُكۡمُ وَهُوَ أَسۡرَعُ ٱلۡحَٰسِبِينَ ۝ 61
(62) फिर सबके सब अल्लाह, अपने वास्तविक मालिक, की ओर वापस लाए जाते हैं। सावधान हो जाओ, फ़ैसले के सारे अधिकार उसी को प्राप्त हैं और वह हिसाब लेने में बहुत तेज़ है।”
وَكَذَّبَ بِهِۦ قَوۡمُكَ وَهُوَ ٱلۡحَقُّۚ قُل لَّسۡتُ عَلَيۡكُم بِوَكِيلٖ ۝ 62
(66) तुम्हारी जाति के लोग उसका इनकार कर रहे हैं हालाँकि वह हक़ीक़त है। इनसे कह दो कि मैं तुम पर कोई हवालेदार नहीं बनाया गया हूँ,16
16. अर्थात् मेरा यह काम नहीं है कि जो कुछ तुम नहीं देख रहे हो वह ज़बरदस्ती तुम्हें दिखाऊँ और जो कुछ तुम नहीं समझ रहे हो वह ज़बरदस्ती तुम्हारी समझ में उतार दूँ। और मेरा यह काम भी नहीं है कि अगर तुम न देखो और न समझो तो तुमपर अज़ाब उतार दूँ।
لِّكُلِّ نَبَإٖ مُّسۡتَقَرّٞۚ وَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ ۝ 63
(67) हर ख़बर के पूरे होने का एक समय निश्चित है, जल्द ही तुमको ख़ुद अंजाम मालूम हो जाएगा।
وَإِذَا رَأَيۡتَ ٱلَّذِينَ يَخُوضُونَ فِيٓ ءَايَٰتِنَا فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ يَخُوضُواْ فِي حَدِيثٍ غَيۡرِهِۦۚ وَإِمَّا يُنسِيَنَّكَ ٱلشَّيۡطَٰنُ فَلَا تَقۡعُدۡ بَعۡدَ ٱلذِّكۡرَىٰ مَعَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 64
(68) और ऐ नबी, जब तुम देखो कि लोग हमारी आयतों में नुकताचीनियाँ कर रहे हैं तो उनके पास से हट जाओ यहाँ तक कि वे इस बातचीत को छोड़कर दूसरी बातों में लग जाएँ और अगर कभी शैतान तुम्हें भुलावे में डाल दे तो जिस समय तुम्हें इस ग़लती का ख़याल आ जाए उसके बाद फिर ऐसे ज़ालिम लोगों के पास न बैठो।
وَمَا عَلَى ٱلَّذِينَ يَتَّقُونَ مِنۡ حِسَابِهِم مِّن شَيۡءٖ وَلَٰكِن ذِكۡرَىٰ لَعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ ۝ 65
(69) उनके हिसाब में से किसी चीज़़ की ज़िम्मेदारी परहेज़गार लोगों पर नहीं है, अलबत्ता नसीहत करना उनका कर्तव्य है; शायद वे ग़लत नीति अपनाने से बच जाएँ।
وَذَرِ ٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ دِينَهُمۡ لَعِبٗا وَلَهۡوٗا وَغَرَّتۡهُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَاۚ وَذَكِّرۡ بِهِۦٓ أَن تُبۡسَلَ نَفۡسُۢ بِمَا كَسَبَتۡ لَيۡسَ لَهَا مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيّٞ وَلَا شَفِيعٞ وَإِن تَعۡدِلۡ كُلَّ عَدۡلٖ لَّا يُؤۡخَذۡ مِنۡهَآۗ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ أُبۡسِلُواْ بِمَا كَسَبُواْۖ لَهُمۡ شَرَابٞ مِّنۡ حَمِيمٖ وَعَذَابٌ أَلِيمُۢ بِمَا كَانُواْ يَكۡفُرُونَ ۝ 66
(70) छोड़ो उन लोगों को जिन्होंने अपने धर्म को खेल और तमाश बना रखा है और जिन्हें दुनिया की ज़िन्दगी धोखे में डाले हुए है। हाँ, मगर यह क़ुरआन सुनाकर समझाते और चेतावनी देते रहो कि कहीं कोई व्यक्ति अपने किए करतूतों के बवाल में गिरफ़्तार होकर न रह जाए, और ग्रस्त भी इस हाल में हो कि अल्लाह से बचानेवाला कोई हिमायती व मददगार और कोई सिफ़ारिशी उसके लिए न हो, और अगर वह हर संभव चीज़़ बदले (फ़िदया) में छूटना चाहे तो वह भी उससे क़ुबूल न की जाए, क्योंकि ऐसे लोग तो ख़ुद अपनी कमाई के नतीजे में पकड़े जाएँगे, उनको तो अपने सत्य के इनकार के बदले में खौलता हुआ पानी पीने को और दर्दनाक अज़ाब भुगतने को मिलेगा।
قُلۡ أَنَدۡعُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُنَا وَلَا يَضُرُّنَا وَنُرَدُّ عَلَىٰٓ أَعۡقَابِنَا بَعۡدَ إِذۡ هَدَىٰنَا ٱللَّهُ كَٱلَّذِي ٱسۡتَهۡوَتۡهُ ٱلشَّيَٰطِينُ فِي ٱلۡأَرۡضِ حَيۡرَانَ لَهُۥٓ أَصۡحَٰبٞ يَدۡعُونَهُۥٓ إِلَى ٱلۡهُدَى ٱئۡتِنَاۗ قُلۡ إِنَّ هُدَى ٱللَّهِ هُوَ ٱلۡهُدَىٰۖ وَأُمِرۡنَا لِنُسۡلِمَ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 67
(71) ऐ नबी, इनसे पूछो क्या हम अल्लाह को छोड़कर उनको पुकारें जो न हमें फ़ायदा दे सकते हैं न नुक़सान? और जबकि अल्लाह हमें सीधा मार्ग दिखा चुका है तो क्या अब हम उलटे पाँव फिर जाएँ? क्या हम अपनी हालत उस व्यक्ति की-सी बना लें जिसे शैतानों ने बयाबान (सहरा) में भटका दिया हो और वह हैरान व परेशान फिर रहा हो, हालाँकि उसके साथी उसे पुकार रहे हों कि इधर आ, यह सीधी राह मौजूद है? कहो, “वास्तव में सही मार्गदर्शन तो सिर्फ़ ईश्वर ही का मार्गदर्शन है और उसकी ओर से हमें यह आदेश मिला है कि विश्व के मालिक के आगे आज्ञाकारिता के साथ सिर झुका दो,
وَأَنۡ أَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَٱتَّقُوهُۚ وَهُوَ ٱلَّذِيٓ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ ۝ 68
(72) नमाज़ क़ायम करो और उसकी नाफ़रमानी से बचो, उसी की ओर तुम समेटे जाओगे।”
وَهُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ وَيَوۡمَ يَقُولُ كُن فَيَكُونُۚ قَوۡلُهُ ٱلۡحَقُّۚ وَلَهُ ٱلۡمُلۡكُ يَوۡمَ يُنفَخُ فِي ٱلصُّورِۚ عَٰلِمُ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡخَبِيرُ ۝ 69
(73) वही है जिसने आसमान और ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया है।17 और जिस दिन वह कहेगा कि हश्र (क़ियामत) हो जाए उसी दिन वह हो जाएगा। उसका कहना बिलकुल सत्य है और जिस दिन सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी उस दिन बादशाही उसी की होगी, वह ग़ैब (छिपे) और शहादत (खुले)18 हर चीज़ का ज्ञाता है औ तत्त्वदर्शी और ख़बर रखनेवाला है।
17. क़ुरआन में यह बात जगह-जगह बयान को गई है कि अल्लाह ने ज़मीन और आसमानों को हक़ पर या हक़ के साथ पैदा किया है। इसका एक मतलब यह है कि ज़मीन और आसमानों की रचना सिर्फ़ खेल के रूप में नहीं हुई है, यह किसी बच्चे का खिलौना नहीं है कि सिर्फ़ दिल बहलाने के लिए वह इससे खेलता रहे और फिर यों ही इसे तोड़-फोड़कर फेंक दे। वास्तव में यह एक अत्यन्त गम्भीर काम है जो तत्त्वदर्शिता पर आधारित है, एक महान् उद्देश्य इसमें काम कर रहा है, और इसका एक काल-चक्र या दौर पूरा हो जाने के बाद अनिवार्य है कि स्रष्टा उस पूरे काम का हिसाब ले जो उस दौर में अंजाम पाया हो और उसी दौर के नतीजों पर दूसरे दौर की बुनियाद रखे। दूसरा अर्थ यह है कि अल्लाह ने इस सारे विश्व की व्यवस्था सत्य के ठोस आधारों पर स्थापित की है। न्याय और तत्त्वदर्शिता और सत्य के क़ानूनों पर इसकी हर चीज़़ अवलंबित है। असत्य के लिए वास्तव में इस व्यवस्था में जड़ पकड़ने और फलने-फूलने की कोई गुंजाइश ही नहीं है। यह और बात है, कि अल्लाह असत्यवादियों को मौक़ा दे दे कि वे अगर अपने झूठ, ज़ुल्म और असत्यता को बढ़ावा देना चाहते हैं तो अपनी कोशिश करके देखें। लेकिन आख़िरकार धरती असत्य के हर बीज को उगलकर फेंक देगी और आख़िरी हिसाब के पत्र में हर मिथ्यावादी देख लेगा कि जो कोशिशें उसने इस बुरे वृक्ष की खेती और इसकी सिंचाई में कीं वे सब अकारथ हो गईं। तीसरा अर्थ यह है कि अल्लाह ने इस सम्पूर्ण बह्माण्ड की हक़ के अन्तर्गत सृष्टि की है और अपने निजी हक़ और अधिकार के अन्तर्गत वह इसपर शासन कर रहा है। उसका आदेश यहाँ इसलिए चलता है कि उसी को अपनी सृष्टि में शासनाधिकार प्राप्त है। दूसरे किसी का हक़ नहीं है कि यहाँ उसका हुक्म चले।
18. परोक्ष (ग़ैब), वह सब कुछ जो सबसे छिपा है। प्रत्यक्ष (शहादत), वह सब कुछ जो सब के लिए स्पष्ट और ज्ञात है।
۞وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ لِأَبِيهِ ءَازَرَ أَتَتَّخِذُ أَصۡنَامًا ءَالِهَةً إِنِّيٓ أَرَىٰكَ وَقَوۡمَكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ ۝ 70
(74) इबराहीम की घटना याद करो जबकि उसने अपने बाप आज़र से कहा था, “क्या तू मूर्तियों को ख़ुदा बनाता है? मैं तो तुझे और तेरी क़ौम को खुली गुमराही में पाता हूँ।”
وَكَذَٰلِكَ نُرِيٓ إِبۡرَٰهِيمَ مَلَكُوتَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلِيَكُونَ مِنَ ٱلۡمُوقِنِينَ ۝ 71
(75) इबराहीम को हम इसी तरह ज़मीन और आसमानों की राज्य-व्यवस्था दिखाते थे और इसलिए दिखाते थे कि वह यक़ीन करनेवालों में से हो जाए।
فَلَمَّا جَنَّ عَلَيۡهِ ٱلَّيۡلُ رَءَا كَوۡكَبٗاۖ قَالَ هَٰذَا رَبِّيۖ فَلَمَّآ أَفَلَ قَالَ لَآ أُحِبُّ ٱلۡأٓفِلِينَ ۝ 72
(76) अतएव रात जब उसपर छाई तो उसने एक तारा देखा। कहा यह मेरा रब है। मगर जब वह डूब गया तो बोला, डूब जानेवालों का तो मैं अनुरागी नहीं हूँ
فَلَمَّا رَءَا ٱلۡقَمَرَ بَازِغٗا قَالَ هَٰذَا رَبِّيۖ فَلَمَّآ أَفَلَ قَالَ لَئِن لَّمۡ يَهۡدِنِي رَبِّي لَأَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلضَّآلِّينَ ۝ 73
(77) फिर जब चाँद चमकता दिखाई दिया तो कहा, यह है मेरा रब, मगर जब वह भी डूब गया तो कहा, अगर मेरे रब ने मुझे राह न दिखाई होती तो मैं भी गुमराह लोगों में शामिल हो गया होता।
فَلَمَّا رَءَا ٱلشَّمۡسَ بَازِغَةٗ قَالَ هَٰذَا رَبِّي هَٰذَآ أَكۡبَرُۖ فَلَمَّآ أَفَلَتۡ قَالَ يَٰقَوۡمِ إِنِّي بَرِيٓءٞ مِّمَّا تُشۡرِكُونَ ۝ 74
(78) फिर जब सूरज को रौशन देखा तो कहा, यह है मेरा रब, यह सबसे बड़ा है। मगर वही बात इबराहीम पुकार उठा ऐ क़ौम के भाइयो में उन सबसे बेज़ार हूँ जिन्हें तुम ईश्वर का साझीदार ठहराते हो19।
19. यहाँ हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के उस प्रारंभिक चिंतन और सोच-विचार की मनः स्थिति का उल्लेख किया गया है जो पैग़म्बरी के पद पर आसीन होने से पहले उनके लिए सत्य तक पहुँचने का साधन सिद्ध हुआ। इसमें बताया गया है कि एक बुद्धिमान और दृष्टिवान मनुष्य जिसने सर्वथा शिर्क (बहुदेववाद) के वातावरण में आँखें खोली थीं, किस तरह विश्व में पाए जानेवाले लक्षणों और निशानियों का निरीक्षण करके और उनपर सही ढंग से सोच-विचार करके सच्चाई मालूम करने में सफल हो गया।
إِنِّي وَجَّهۡتُ وَجۡهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ حَنِيفٗاۖ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 75
(79) मैंने तो एकाग्र होकर अपना रुख़ उस सत्ता की ओर कर लिया जिसने ज़मीन और आसमानों की रचना की है और में हरगिज़ मुशरिकों (बहुदेववादियों) में नहीं हूँ।”
وَحَآجَّهُۥ قَوۡمُهُۥۚ قَالَ أَتُحَٰٓجُّوٓنِّي فِي ٱللَّهِ وَقَدۡ هَدَىٰنِۚ وَلَآ أَخَافُ مَا تُشۡرِكُونَ بِهِۦٓ إِلَّآ أَن يَشَآءَ رَبِّي شَيۡـٔٗاۚ وَسِعَ رَبِّي كُلَّ شَيۡءٍ عِلۡمًاۚ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ ۝ 76
(80) उसकी क़ौम उससे झगड़ने लगी तो उसने क़ौम से कहा “क्या तुम लोग अल्लाह के मामले में मुझसे झगड़ते हो? हालाँकि उसने मुझे सही मार्ग दिखा दिया है। और मैं तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों से नहीं डरता, हाँ अगर मेरा रब कुछ चाहे तो वह ज़रूर हो सकता है, मेरे रब का ज्ञान हर चीज़ पर छाया हुआ है, फिर क्या तुम होश में न आओगे?
20. मूल ग्रन्थ में 'तज़क्कुर' शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका सही अर्थ यह है कि एक व्यक्ति जो ग़फ़लत और भुलावे में पड़ा हुआ हो वह चौंककर उस चीज़ को याद कर ले जिससे वह ग़ाफ़िल था। इसी लिए हमने “अ-फ़-ला त-त ज़क्करून” का यह अनुवाद किया है।
وَكَيۡفَ أَخَافُ مَآ أَشۡرَكۡتُمۡ وَلَا تَخَافُونَ أَنَّكُمۡ أَشۡرَكۡتُم بِٱللَّهِ مَا لَمۡ يُنَزِّلۡ بِهِۦ عَلَيۡكُمۡ سُلۡطَٰنٗاۚ فَأَيُّ ٱلۡفَرِيقَيۡنِ أَحَقُّ بِٱلۡأَمۡنِۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ۝ 77
(81) और आख़िर मैं तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों से कैसे डरूँ जबकि तुम अल्लाह के साथ उन चीज़़ों को ईश्वरत्व में साझीदार बनाते हुए नहीं डरते जिनके लिए उसने तुमपर कोई प्रमाण अवतरित नहीं किया है? हम दोनों दलों में से कौन अधिक निश्चिन्तता का अधिकारी है? बताओ अगर तुम्हें कुछ ज्ञान है।
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَلَمۡ يَلۡبِسُوٓاْ إِيمَٰنَهُم بِظُلۡمٍ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمُ ٱلۡأَمۡنُ وَهُم مُّهۡتَدُونَ ۝ 78
(82) वास्तव में तो निश्चिन्तता (अम्न) उन्हीं के लिए है और सही मार्ग पर वही हैं जो ईमान लाए और जिन्होंने अपने ईमान को ज़ुल्म के साथ मिलाया नहीं।”
وَتِلۡكَ حُجَّتُنَآ ءَاتَيۡنَٰهَآ إِبۡرَٰهِيمَ عَلَىٰ قَوۡمِهِۦۚ نَرۡفَعُ دَرَجَٰتٖ مَّن نَّشَآءُۗ إِنَّ رَبَّكَ حَكِيمٌ عَلِيمٞ ۝ 79
(83) यह था हमारा वह तर्क जो हमने इबराहीम को उसकी क़ौम के मुक़ाबले में प्रदान किया। हम जिसे चाहते हैं ऊँचे पद प्रदान करते हैं। सत्य यह है कि तुम्हारा रब बहुत ज़्यादा तत्त्वदर्शी और सर्वज्ञ है।
وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَۚ كُلًّا هَدَيۡنَاۚ وَنُوحًا هَدَيۡنَا مِن قَبۡلُۖ وَمِن ذُرِّيَّتِهِۦ دَاوُۥدَ وَسُلَيۡمَٰنَ وَأَيُّوبَ وَيُوسُفَ وَمُوسَىٰ وَهَٰرُونَۚ وَكَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 80
(84) फिर हमने इबराहीम को इसहाक़ और याक़ूब जैसी औलाद दी और हर एक को मार्ग दिखाया। वही सीधा मार्ग जो उससे पहले नूह को दिखाया था और उसी की नस्ल से हमने दाऊद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ़, मूसा और हारून को (सीधा मार्ग दिखाया)। इस तरह हम नेक काम करनेवाले लोगों को उनकी नेकी का बदला देते हैं
وَزَكَرِيَّا وَيَحۡيَىٰ وَعِيسَىٰ وَإِلۡيَاسَۖ كُلّٞ مِّنَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 81
(85) (उसी की औलाद से) ज़करिया यह्या, ईसा और इलयास को (मार्ग दिखाया)। हर एक इनमें से नेक था।
وَإِسۡمَٰعِيلَ وَٱلۡيَسَعَ وَيُونُسَ وَلُوطٗاۚ وَكُلّٗا فَضَّلۡنَا عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 82
(86) (उसी के खानदान से) इसमाईल, अल-यसअ और यूनुस और लूत को (रास्ता दिखाया। इनमें से हर एक को हमने सारी दुनियावालों के मुक़ाबले में आगे रखा।
وَمِنۡ ءَابَآئِهِمۡ وَذُرِّيَّٰتِهِمۡ وَإِخۡوَٰنِهِمۡۖ وَٱجۡتَبَيۡنَٰهُمۡ وَهَدَيۡنَٰهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ ۝ 83
(87) यह भी कि उनके बाप-दादाओं और उनकी औलाद और उनके भाई-बन्धुओं में से बहुतों को हमने नवाज़ा, उन्हें अपनी सेवा के लिए चुन लिया और उन्हें सीधा मार्ग दिखाया।
ذَٰلِكَ هُدَى ٱللَّهِ يَهۡدِي بِهِۦ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۚ وَلَوۡ أَشۡرَكُواْ لَحَبِطَ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 84
(88) यह अल्लाह का मार्गदर्शन है जिसके साथ वह अपने बन्दों में से जिसका चाहता है मार्गदर्शन करता है। लेकिन अगर कहीं वे लोग शिर्क में पड़े होते तो उनका सब किया-कराया बरबाद हो जाता।
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحُكۡمَ وَٱلنُّبُوَّةَۚ فَإِن يَكۡفُرۡ بِهَا هَٰٓؤُلَآءِ فَقَدۡ وَكَّلۡنَا بِهَا قَوۡمٗا لَّيۡسُواْ بِهَا بِكَٰفِرِينَ ۝ 85
(89) ये वे लोग थे जिनको हमने किताब और हुक्म (निर्णय-शक्ति) और पैग़म्बरी प्रदान की थी।21 अब अगर ये लोग इसको मानने से इनकार करते हैं तो (परवाह नहीं) हमने कुछ और लोगों को यह नेमत सौंप दी है जो इसका इनकार नहीं करते।
21. यहाँ नबियों (उनपर अल्लाह की ओर से सुख और सलामती उतरे) को तीन चीज़़ें दिए जाने का उल्लेख किया गया है। एक किताब अर्थात् अल्लाह का आदेश-पत्र। दूसरे हुक्म (निर्णय-शक्ति) अर्थात् आदेश-पत्र की सही समझ और उसके सिद्धान्तों को जीवन के मामलों और व्यवहारों पर लागू करने की योग्यता, और जीवन सम्बन्धी समस्याओं में निर्णायक मत स्थिर करने की ईश्वर प्रदत्त योग्यता। तीसरे 'नुबूवत' (पैग़म्बरी), अर्थात् यह पद (मनसब) कि वे उस आदेश पत्र के अनुसार लोगों को सत्य मार्ग दिखाएँ।
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ هَدَى ٱللَّهُۖ فَبِهُدَىٰهُمُ ٱقۡتَدِهۡۗ قُل لَّآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ أَجۡرًاۖ إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرَىٰ لِلۡعَٰلَمِينَ ۝ 86
(90) ऐ नबी, वही लोग अल्लाह की ओर से सीधे रास्ते पर थे, उन्हीं के रास्ते पर तुम चलो, और कह दो कि मैं इस (प्रचार और मार्गदर्शन के) काम पर तुमसे कोई बदले की माँग नहीं करता, यह तो एक सामान्य उपदेश है सारी दुनियावालों के लिए।
وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦٓ إِذۡ قَالُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَىٰ بَشَرٖ مِّن شَيۡءٖۗ قُلۡ مَنۡ أَنزَلَ ٱلۡكِتَٰبَ ٱلَّذِي جَآءَ بِهِۦ مُوسَىٰ نُورٗا وَهُدٗى لِّلنَّاسِۖ تَجۡعَلُونَهُۥ قَرَاطِيسَ تُبۡدُونَهَا وَتُخۡفُونَ كَثِيرٗاۖ وَعُلِّمۡتُم مَّا لَمۡ تَعۡلَمُوٓاْ أَنتُمۡ وَلَآ ءَابَآؤُكُمۡۖ قُلِ ٱللَّهُۖ ثُمَّ ذَرۡهُمۡ فِي خَوۡضِهِمۡ يَلۡعَبُونَ ۝ 87
(91) इन लोगों ने अल्लाह का बहुत ग़लत अनुमान लगाया जब कहा कि अल्लाह ने किसी इनसान पर कुछ अवतरित नहीं किया है। इनसे पूछो, फिर वह किताब जिसे मूसा लाया था, जो सारे इनसानों के लिए रौशनी और मार्गदर्शन था, जिसे तुम टुकड़े-टुकड़े करके रखते हो, कुछ दिखाते हो और बहुत कुछ छिपा जाते हो, और जिसके द्वारा तुमको वह ज्ञान दिया गया जो न तुम्हें प्राप्त था और न तुम्हारे बाप-दादा को, आख़िर उसका उतारनेवाला कौन था22? — बस इतना कह दो कि अल्लाह, फिर उन्हें अपने कुतर्कों से खेलने के लिए छोड़ दो।
22. यह जवाब चूँकि यहूदियों को दिया जा रहा है इसलिए मूसा (अलैहि०) पर तौरात के अवतरण को प्रमाण के रूप में पेश किया गया है, क्योंकि वे ख़ुद उसे मानते थे। ज़ाहिर है कि उनका यह स्वीकार करना कि मूसा (अलैहि०) पर तौरात उतरी थी, उनके इस कथन का आप से आप खण्डन कर देता है कि अल्लाह ने किसी इनसान पर कुछ अवतरित नहीं किया। इसके अलावा इससे कम से कम इतनी बात तो साबित हो जाती है कि इनसान पर ईश्वर की वाणी का अवतरण हो सकता है और हो चुका है।
وَهَٰذَا كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ مُبَارَكٞ مُّصَدِّقُ ٱلَّذِي بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَلِتُنذِرَ أُمَّ ٱلۡقُرَىٰ وَمَنۡ حَوۡلَهَاۚ وَٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ يُؤۡمِنُونَ بِهِۦۖ وَهُمۡ عَلَىٰ صَلَاتِهِمۡ يُحَافِظُونَ ۝ 88
(92) (उसी किताब की तरह) यह एक किताब है जिसे हमने उतारा है। बड़ी बरकतवाली है उस चीज़ की पुष्टि करती है जो इससे पहले आई थी और इसलिए उतारी गई है कि इसके द्वारा तुम बस्तियों के इस केन्द्र (अर्थात् मक्का) और इसके इर्द-गिर्द रहनेवालों को सचेत करो। जो लोग आख़िरत को मानते हैं वे इस किताब पर ईमान लाते हैं और उनका हाल यह है कि अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं।
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَوۡ قَالَ أُوحِيَ إِلَيَّ وَلَمۡ يُوحَ إِلَيۡهِ شَيۡءٞ وَمَن قَالَ سَأُنزِلُ مِثۡلَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُۗ وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذِ ٱلظَّٰلِمُونَ فِي غَمَرَٰتِ ٱلۡمَوۡتِ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ بَاسِطُوٓاْ أَيۡدِيهِمۡ أَخۡرِجُوٓاْ أَنفُسَكُمُۖ ٱلۡيَوۡمَ تُجۡزَوۡنَ عَذَابَ ٱلۡهُونِ بِمَا كُنتُمۡ تَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ غَيۡرَ ٱلۡحَقِّ وَكُنتُمۡ عَنۡ ءَايَٰتِهِۦ تَسۡتَكۡبِرُونَ ۝ 89
(93) और उस व्यक्ति से बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो झूठ गढ़कर अल्लाह पर मढ़े, या कहे कि मुझपर प्रकाशना आई है, हालाँकि उसपर कोई प्रकाशना अवतरित न की गई हो, या जो अल्लाह की उतारी हुई चीज़़ के मुक़ाबले में कहे कि मैं भी ऐसी चीज़़ उतारकर दिखा दूँगा? क्या ही अच्छा होता कि तुम ज़ालिमों को इस हालत में देख सकते जबकि वे मृत्यु-यातनाओं में डुबकियाँ खा रहे होते हैं और फ़रिश्ते हाथ बढ़ा-बढ़ाकर कह रहे होते हैं कि “लाओ, निकालो अपनी जान, आज तुम्हें उन बातों के बदले में अपमानजनक अज़ाब दिया जाएगा जो तुम अल्लाह पर मढ़कर नाहक़ बका करते थे और उसकी आयतों के मुक़ाबले में सरकशी दिखाते थे।”
وَلَقَدۡ جِئۡتُمُونَا فُرَٰدَىٰ كَمَا خَلَقۡنَٰكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَتَرَكۡتُم مَّا خَوَّلۡنَٰكُمۡ وَرَآءَ ظُهُورِكُمۡۖ وَمَا نَرَىٰ مَعَكُمۡ شُفَعَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ زَعَمۡتُمۡ أَنَّهُمۡ فِيكُمۡ شُرَكَٰٓؤُاْۚ لَقَد تَّقَطَّعَ بَيۡنَكُمۡ وَضَلَّ عَنكُم مَّا كُنتُمۡ تَزۡعُمُونَ ۝ 90
(94) (और अल्लाह कहेगा) “लो, अब तुम वैसे ही बिलकुल अकेले हमारे सामने हाज़िर हो गए जैसा हमने तुम्हें पहली बार अकेला पैदा किया था, जो कुछ हमने तुम्हें दुनिया में दिया था वह सब तुम पीछे छोड़ आए हो, और अब हम तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिशियों को भी नहीं देखते जिनके सम्बन्ध में तुम समझते थे कि तुम्हारे काम बनाने में उनका भी कुछ हिस्सा है। तुम्हारे आपस के सब संबंध टूट गए और वे सब तुमसे गुम हो गए जिनका तुम दावा रखते थे।"
۞إِنَّ ٱللَّهَ فَالِقُ ٱلۡحَبِّ وَٱلنَّوَىٰۖ يُخۡرِجُ ٱلۡحَيَّ مِنَ ٱلۡمَيِّتِ وَمُخۡرِجُ ٱلۡمَيِّتِ مِنَ ٱلۡحَيِّۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُۖ فَأَنَّىٰ تُؤۡفَكُونَ ۝ 91
(95) दाने और गुठली को फाड़नेवाला अल्लाह है23 वही ज़िन्दा को मुर्दा से निकालता है और वही मुर्दा को ज़िन्दा से बाहर निकालनेवाला है24। ये सारे काम करनेवाला तो अल्लाह है फिर तुम किधर बहके चले जा रहे हो?
23. अर्थात् ज़मीन की तहों में बीज को फाड़कर उससे पेड़ की कोंपल निकालनेवाला।
24. ज़िन्दा को मुर्दा से निकालने का अर्थ निर्जीव पदार्थ से जीवित प्राणियों को पैदा करना है, और मुर्दा को ज़िन्दा से निकालने का अर्थ जानदार शरीर से निर्जीव पदार्थों को निकालना।
فَالِقُ ٱلۡإِصۡبَاحِ وَجَعَلَ ٱلَّيۡلَ سَكَنٗا وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَ حُسۡبَانٗاۚ ذَٰلِكَ تَقۡدِيرُ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ ۝ 92
(96) रात के परदे को फाड़कर वही सुबह निकालता है। उसी ने रात को सुकून का समय बनाया है। उसी ने चाँद और सूरज के उदय और अस्त होने का हिसाब ठहराया है। ये सब उसी ज़बरदस्त सामर्थ्यवान और सर्वज्ञ के ठहराए हुए अन्दाज़े हैं।
وَهُوَ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلنُّجُومَ لِتَهۡتَدُواْ بِهَا فِي ظُلُمَٰتِ ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِۗ قَدۡ فَصَّلۡنَا ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ ۝ 93
(97) और वही है जिसने तुम्हारे लिए तारों को ख़ुश्की और समुद्र के अन्धकारों में रास्ता मालूम करने का साधन बनाया। देखो, हमने निशानियाँ25 खोलकर बयान कर दी हैं उन लोगों के लिए जो ज्ञान रखते हैं।
وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنشَأَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ فَمُسۡتَقَرّٞ وَمُسۡتَوۡدَعٞۗ قَدۡ فَصَّلۡنَا ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يَفۡقَهُونَ ۝ 94
(98) और वही है जिसने एक जान से तुम्हे पैदा किया फिर हर एक के लिए एक ठहरने की जगह है और एक उसके सौंपे जाने की जगह। ये निशानियाँ हमने स्पष्ट कर दी हैं उन लोगों के लिए जो समझ-बूझ रखते हैं।
وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجۡنَا بِهِۦ نَبَاتَ كُلِّ شَيۡءٖ فَأَخۡرَجۡنَا مِنۡهُ خَضِرٗا نُّخۡرِجُ مِنۡهُ حَبّٗا مُّتَرَاكِبٗا وَمِنَ ٱلنَّخۡلِ مِن طَلۡعِهَا قِنۡوَانٞ دَانِيَةٞ وَجَنَّٰتٖ مِّنۡ أَعۡنَابٖ وَٱلزَّيۡتُونَ وَٱلرُّمَّانَ مُشۡتَبِهٗا وَغَيۡرَ مُتَشَٰبِهٍۗ ٱنظُرُوٓاْ إِلَىٰ ثَمَرِهِۦٓ إِذَآ أَثۡمَرَ وَيَنۡعِهِۦٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكُمۡ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 95
(99) और वही है जिसने आसमान से पानी बरसाया, फिर उसके ज़रिए हर तरह की वनस्पति उगाई, फिर उससे हरे-भरे खेत और पेड़ पैदा किए, फिर उनसे तले ऊपर चढ़े हुए दाने निकाले और खजूर के गाभों से फलों के गुच्छे के गुच्छे पैदा किए जो बोझ के कारण झुके पड़ते हैं, और अंगूर, ज़ैतून और अनार के बाग़ लगाए जिनके फल एक-दूसरे से मिलते-जुलते भी हैं और फिर प्रत्येक की विशेषताएँ अलग-अलग भी हैं। ये पेड़ जब फलते हैं तो इनमें फल आने और फिर उनके पकने की दशा को तनिक ग़ौर की नज़र से देखो, इन चीज़़ों में निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।
وَجَعَلُواْ لِلَّهِ شُرَكَآءَ ٱلۡجِنَّ وَخَلَقَهُمۡۖ وَخَرَقُواْ لَهُۥ بَنِينَ وَبَنَٰتِۭ بِغَيۡرِ عِلۡمٖۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يَصِفُونَ ۝ 96
(100) इसपर भी लोगों ने जिन्नों को अल्लाह का साझीदार ठहरा दिया26 हालाँकि वह उनका पैदा करनेवाला है और बेजाने-बूझे उसके लिए बेटे और बेटियाँ रच दीं, हालाँकि वह पाक और उच्च है उन बातों से जो ये लोग कहते हैं।
بَدِيعُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ أَنَّىٰ يَكُونُ لَهُۥ وَلَدٞ وَلَمۡ تَكُن لَّهُۥ صَٰحِبَةٞۖ وَخَلَقَ كُلَّ شَيۡءٖۖ وَهُوَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ ۝ 97
(101) वह तो आसमानों और ज़मीन का ईजाद करनेवाला है। उसका कोई बेटा कैसे हो सकता है जबकि कोई उसका जीवन-साथी ही नहीं है। उसने हर चीज़़ को पैदा किया है और उसे हर चीज़ का ज्ञान है।
ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖ فَٱعۡبُدُوهُۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ وَكِيلٞ ۝ 98
(102) यह है अल्लाह तुम्हारा रब, कोई ख़ुदा उसके सिवा नहीं है, हर चीज़़ का स्रष्टा, अतः तुम उसी की बन्दगी करो और वह हर चीज़़ का ज़िम्मेदार है।
لَّا تُدۡرِكُهُ ٱلۡأَبۡصَٰرُ وَهُوَ يُدۡرِكُ ٱلۡأَبۡصَٰرَۖ وَهُوَ ٱللَّطِيفُ ٱلۡخَبِيرُ ۝ 99
(103) निगाहें उसको नहीं पा सकतीं और वह निगाहों को पा लेता है, वह अत्यन्त सूक्ष्मदर्शी और हर चीज़़ से बाख़बर है।
قَدۡ جَآءَكُم بَصَآئِرُ مِن رَّبِّكُمۡۖ فَمَنۡ أَبۡصَرَ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ عَمِيَ فَعَلَيۡهَاۚ وَمَآ أَنَا۠ عَلَيۡكُم بِحَفِيظٖ ۝ 100
(104) देखो तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से आँख खोल देनेवाली रौशनी आ गई है, अब जो सूझ से काम लेगा अपना ही भला करेगा और जो अन्धा बनेगा ख़ुद नुक़सान उठाएगा, मैं तुमपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ।27
27. यह वाक्य यद्यपि अल्लाह ही की वाणी है मगर नबी की ओर से व्यक्त हो रही है, जिस तरह सूरा फ़ातिहा है तो अल्लाह की वाणी मगर बन्दों के मुख से व्यक्त होती है। “मैं तुमपर रखवाला नहीं हूँ” अर्थात् मेरा काम बस इतना ही है कि इस रौशनी को तुम्हारे सामने पेश कर दूँ। इसके बाद आँखें खोलकर देखना या न देखना तुम्हारा अपना काम है। मुझे यह सेवा सौंपी नहीं गई है कि जिन्होंने ख़ुद आँखें बन्द कर रखी हैं उनकी आँखें ज़बरदस्ती खोलूं और जो कुछ वे नहीं देखते वह उन्हें दिखाकर ही छोडूँ।
وَكَذَٰلِكَ نُصَرِّفُ ٱلۡأٓيَٰتِ وَلِيَقُولُواْ دَرَسۡتَ وَلِنُبَيِّنَهُۥ لِقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ ۝ 101
(105) इस तरह हम अपनी आयतों को बार-बार विभिन्न ढंग से बयान करते हैं और इसलिए करते हैं कि ये लोग कहें कि “तुम किसी से पढ़ आए हो,” और जो ज्ञानवान हैं उनपर हम सत्य को स्पष्ट कर दें।
ٱتَّبِعۡ مَآ أُوحِيَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ وَأَعۡرِضۡ عَنِ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 102
(106) ऐ नबी, उस प्रकाशना का अनुसरण किए जाओ जो तुमपर तुम्हारे रब की ओर से अवतरित हुई है क्योंकि उस एक रब के सिवा कोई और ख़ुदा नहीं है। और इन मुशरिकों (बहुदेववादियों) के पीछे न पड़ो।
وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَآ أَشۡرَكُواْۗ وَمَا جَعَلۡنَٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيظٗاۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيۡهِم بِوَكِيلٖ ۝ 103
(107) अगर अल्लाह चाहता तो वह ख़ुद ऐसी व्यवस्था कर सकता था कि ये लोग साझीदार न बनाते, तुमको हमने उनपर रखवाला नियुक्त नहीं किया है और न तुम उनपर हवालेदार हो।
وَلَا تَسُبُّواْ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَيَسُبُّواْ ٱللَّهَ عَدۡوَۢا بِغَيۡرِ عِلۡمٖۗ كَذَٰلِكَ زَيَّنَّا لِكُلِّ أُمَّةٍ عَمَلَهُمۡ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّهِم مَّرۡجِعُهُمۡ فَيُنَبِّئُهُم بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 104
(108) और (ऐ मुसलमानो) ये लोग अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं उन्हें गालियाँ न दो, कहीं ऐसा न हो कि ये शिर्क (बहुदेववाद) से आगे बढ़कर अज्ञान के कारण अल्लाह को गालियाँ देने लगें। हमने तो इसी तरह हर गिरोह के लिए उसके कर्म को सुहावना बना दिया है, फिर उन्हें अपने रब ही की ओर पलटकर आना है, उस समय वह उन्हें बता देगा कि वे क्या करते रहे हैं।
وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ لَئِن جَآءَتۡهُمۡ ءَايَةٞ لَّيُؤۡمِنُنَّ بِهَاۚ قُلۡ إِنَّمَا ٱلۡأٓيَٰتُ عِندَ ٱللَّهِۖ وَمَا يُشۡعِرُكُمۡ أَنَّهَآ إِذَا جَآءَتۡ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 105
(109) ये लोग कड़ी-कड़ी क़समें खा-खाकर कहते हैं कि अगर कोई निशानी (अर्थात् चमत्कार) हमारे सामने आ जाए तो हम उसको मान लेंगे। ऐ नबी, इनसे कहो कि “निशानियाँ तो अल्लाह के अधिकार में हैं।” और तुम्हें कैसे समझाया जाए कि अगर निशानियाँ आ भी जाएँ तो ये ईमान लानेवाले नहीं28।
28. यह सम्बोधन मुसलमानों से है जो बेताब हो होकर तमन्ना करते थे कि कोई ऐसी निशानी सामने आ जाए जिससे उनके भटके हुए भाई राह पर आ जाएँ।
وَنُقَلِّبُ أَفۡـِٔدَتَهُمۡ وَأَبۡصَٰرَهُمۡ كَمَا لَمۡ يُؤۡمِنُواْ بِهِۦٓ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَنَذَرُهُمۡ فِي طُغۡيَٰنِهِمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 106
(110) हम उसी तरह उनके दिलों और निगाहों को फेर रहे हैं जिस तरह ये पहली बार उस (किताब) पर ईमान नहीं लाए थे। हम इन्हें इनकी सरकशी ही में भटकने के लिए छोड़ देते हैं।
۞وَلَوۡ أَنَّنَا نَزَّلۡنَآ إِلَيۡهِمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ وَكَلَّمَهُمُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَحَشَرۡنَا عَلَيۡهِمۡ كُلَّ شَيۡءٖ قُبُلٗا مَّا كَانُواْ لِيُؤۡمِنُوٓاْ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ يَجۡهَلُونَ ۝ 107
(111) अगर हम फ़रिश्ते भी इनपर उतार देते और मुर्दे इनसे बातें करते और दुनिया भर की चीज़़ों को हम इनकी आँखों के सामने इकट्ठा कर देते तब भी ये ईमान लानेवाले न थे, यह और बात है कि अल्लाह ही यही चाहता हो (कि ये ईमान लाएँ) मगर ज़्यादातर लोग नादानी की बातें करते हैं।
وَكَذَٰلِكَ جَعَلۡنَا لِكُلِّ نَبِيٍّ عَدُوّٗا شَيَٰطِينَ ٱلۡإِنسِ وَٱلۡجِنِّ يُوحِي بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٖ زُخۡرُفَ ٱلۡقَوۡلِ غُرُورٗاۚ وَلَوۡ شَآءَ رَبُّكَ مَا فَعَلُوهُۖ فَذَرۡهُمۡ وَمَا يَفۡتَرُونَ ۝ 108
(112) और हमने तो इसी तरह हमेशा शैतान इनसानों और शैतान जिन्नों को हर नबी का दुश्मन बनाया है जो एक-दूसरे के मन में चिकनी-चुपड़ी बातें धोखा और फ़रेब देने के लिए डाला करते रहे हैं। अगर तुम्हारा रब चाहता कि वे ऐसा न करें तो वे कभी न करते। अतः तुम उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो कि झूठे बकवास करते रहें।
وَلِتَصۡغَىٰٓ إِلَيۡهِ أَفۡـِٔدَةُ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ وَلِيَرۡضَوۡهُ وَلِيَقۡتَرِفُواْ مَا هُم مُّقۡتَرِفُونَ ۝ 109
(113) (ये सब कुछ हम उन्हें इसी लिए करने दे रहे हैं कि जो लोग आख़िरत को नहीं मानते उनके दिल इस (सुहावने धोखे) की ओर झुकें और वे उससे राज़ी हो जाएँ और उन बुराइयों को करें जो वे करना चाहते हैं29—
29. आयत 110 से 113 तक जो बात कही गई है वह यह है कि इनसान के बारे में अल्लाह का क़ानून यह नहीं है कि उसे ईश्वरीय इच्छा के अन्तर्गत उस तरीक़े से स्वाभाविक राह पर लगाया जाए जिस तरह पेड़ में फल आते हैं या ख़ुद इनसान के सिर पर बाल उगते हैं, बल्कि उसने इनसान को दुनिया में परीक्षा के लिए पैदा किया है। और परीक्षा के उद्देश्य से यह बात ख़ुद उसपर छोड़ी गई है कि वह सत्य मार्ग की ओर जाना चाहता है या गुमराही की ओर। अगर वह ख़ुद ही पथभ्रष्ट होना चाहे तो अल्लाह अपनी इच्छा से उसको सत्य मार्ग पर चलने को बाध्य नहीं करता।
أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ أَبۡتَغِي حَكَمٗا وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡكِتَٰبَ مُفَصَّلٗاۚ وَٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَعۡلَمُونَ أَنَّهُۥ مُنَزَّلٞ مِّن رَّبِّكَ بِٱلۡحَقِّۖ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُمۡتَرِينَ ۝ 110
(114) फिर जब हाल यह है तो क्या मैं अल्लाह के सिवा कोई और फ़ैसला करनेवाला तलाश करूँ, हालाँकि उसने पूरे विस्तार के साथ तुम्हारी ओर किताब अवतरित कर दी है?30 और जिन लोगों को हमने (तुमसे पहले) किताब दी थी वे जानते हैं कि यह किताब तुम्हारे रब ही की ओर से सत्य के साथ उतरी है अतः तुम सन्देह करनेवालों में शामिल न हो।
30. इस वाक्य के सम्बोधक नबी (सल्ल०) हैं और सम्बोधन मुसलमानों से है।
وَتَمَّتۡ كَلِمَتُ رَبِّكَ صِدۡقٗا وَعَدۡلٗاۚ لَّا مُبَدِّلَ لِكَلِمَٰتِهِۦۚ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 111
(115) तुम्हारे रब की बात सच्चाई और इनसाफ़ की दृष्टि से पूर्ण है, कोई उसके आदेशों को बदलनेवाला नहीं है और वह सब कुछ सुनता और जानता है।
وَإِن تُطِعۡ أَكۡثَرَ مَن فِي ٱلۡأَرۡضِ يُضِلُّوكَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۚ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّ وَإِنۡ هُمۡ إِلَّا يَخۡرُصُونَ ۝ 112
(116) और ऐ नबी, अगर तुम उनके बहुतेरे लोगों के कहने पर चलो जो ज़मीन पर बसते हैं तो वे तुम्हें अल्लाह के मार्ग से भटका देंगे। वे तो सिर्फ़ अटकल पर चलते और अटकल दौड़ाते हैं।
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ مَن يَضِلُّ عَن سَبِيلِهِۦۖ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِٱلۡمُهۡتَدِينَ ۝ 113
(117) वास्तव में तुम्हारा रब ज़्यादा जानता है कि कौन उसके मार्ग से हटा हुआ है और कौन सीधे मार्ग पर है।
فَكُلُواْ مِمَّا ذُكِرَ ٱسۡمُ ٱللَّهِ عَلَيۡهِ إِن كُنتُم بِـَٔايَٰتِهِۦ مُؤۡمِنِينَ ۝ 114
(118) फिर अगर तुम लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान रखते हो तो जिस जानवर पर अल्लाह का नाम लिया गया हो उसका मांस खाओ।
وَمَا لَكُمۡ أَلَّا تَأۡكُلُواْ مِمَّا ذُكِرَ ٱسۡمُ ٱللَّهِ عَلَيۡهِ وَقَدۡ فَصَّلَ لَكُم مَّا حَرَّمَ عَلَيۡكُمۡ إِلَّا مَا ٱضۡطُرِرۡتُمۡ إِلَيۡهِۗ وَإِنَّ كَثِيرٗا لَّيُضِلُّونَ بِأَهۡوَآئِهِم بِغَيۡرِ عِلۡمٍۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ بِٱلۡمُعۡتَدِينَ ۝ 115
(119) आख़िर क्या कारण है कि तुम वह चीज़ न खाओ जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया हो? हालाँकि जिन चीज़़ों का इस्तेमाल विवशता की स्थिति के सिवा दूसरी सभी स्थितियों में अल्लाह ने हराम कर दिया है उनका विवरण वह तुम्हें बता चुका है। अधिकतर लोगों का हाल यह है कि ज्ञान के बिना वे सिर्फ़ अपनी इच्छाओं के आधार पर पथभ्रष्ट करनेवाली बातें करते हैं, इन सीमा से आगे बढ़नेवालों को तुम्हारा रब ख़ूब जानता है।
وَذَرُواْ ظَٰهِرَ ٱلۡإِثۡمِ وَبَاطِنَهُۥٓۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡسِبُونَ ٱلۡإِثۡمَ سَيُجۡزَوۡنَ بِمَا كَانُواْ يَقۡتَرِفُونَ ۝ 116
(120) तुम खुले गुनाहों से भी बचो और छिपे गुनाहों से भी, जो लोग गुनाह कमाते हैं वे अपनी इस कमाई का बदला पाकर रहेंगे।
وَلَا تَأۡكُلُواْ مِمَّا لَمۡ يُذۡكَرِ ٱسۡمُ ٱللَّهِ عَلَيۡهِ وَإِنَّهُۥ لَفِسۡقٞۗ وَإِنَّ ٱلشَّيَٰطِينَ لَيُوحُونَ إِلَىٰٓ أَوۡلِيَآئِهِمۡ لِيُجَٰدِلُوكُمۡۖ وَإِنۡ أَطَعۡتُمُوهُمۡ إِنَّكُمۡ لَمُشۡرِكُونَ ۝ 117
(121) और जिस जानवर को अल्लाह का नाम लेकर ज़बह न किया गया हो उसका मांस न खाओ, ऐसा करना सीमा का उल्लंघन है। शैतान अपने साथियों के दिलों में सन्देह और आक्षेप की बातें डाल देते हैं ताकि वे तुमसे झगड़ा करें। लेकिन अगर तुम उनके कहने पर चले तो यक़ीनन तुम मुशरिक (बहुदेववादी) हो।
أَوَمَن كَانَ مَيۡتٗا فَأَحۡيَيۡنَٰهُ وَجَعَلۡنَا لَهُۥ نُورٗا يَمۡشِي بِهِۦ فِي ٱلنَّاسِ كَمَن مَّثَلُهُۥ فِي ٱلظُّلُمَٰتِ لَيۡسَ بِخَارِجٖ مِّنۡهَاۚ كَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِلۡكَٰفِرِينَ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 118
(122) क्या वह व्यक्ति जो पहले मुर्दा था फिर हमने उसको ज़िन्दगी दी और उसको वह प्रकाश प्रदान किया जिसके उजाले में वह लोगों के बीच ज़िन्दगी की राह तय करता है उस व्यक्ति की तरह हो सकता है जो अंधेरों में पड़ा हुआ हो और किसी तरह उनसे न निकलता हो?31 अधर्मियों के लिए तो इसी तरह उनके कर्म सुहावने बना दिए गए हैं,
31. अर्थात् तुम किस तरह यह आशा कर सकते हो कि जिस इनसान को इनसानियत की चेतना मिल चुकी है और जो ज्ञान के प्रकाश में टेढ़े रास्तों के बीच सत्य की सीधी राह को साफ़ देख रहा है वह उन चेतनाहीन लोगों की तरह दुनिया में ज़िन्दगी बसर करेगा जो नासमझी और अज्ञान की अंधियारियों में भटकते फिर रहे हैं।
وَكَذَٰلِكَ جَعَلۡنَا فِي كُلِّ قَرۡيَةٍ أَكَٰبِرَ مُجۡرِمِيهَا لِيَمۡكُرُواْ فِيهَاۖ وَمَا يَمۡكُرُونَ إِلَّا بِأَنفُسِهِمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ ۝ 119
(123) और इसी तरह हमने हर बस्ती में उसके बड़े-बड़े अपराधियों को लगा दिया है कि वहाँ अपने छलकपट का जाल फैलाएँ। वास्तव में वे अपने छलकपट के जाल में ख़ुद फँसते हैं मगर उन्हें इसकी समझ नहीं है।
وَإِذَا جَآءَتۡهُمۡ ءَايَةٞ قَالُواْ لَن نُّؤۡمِنَ حَتَّىٰ نُؤۡتَىٰ مِثۡلَ مَآ أُوتِيَ رُسُلُ ٱللَّهِۘ ٱللَّهُ أَعۡلَمُ حَيۡثُ يَجۡعَلُ رِسَالَتَهُۥۗ سَيُصِيبُ ٱلَّذِينَ أَجۡرَمُواْ صَغَارٌ عِندَ ٱللَّهِ وَعَذَابٞ شَدِيدُۢ بِمَا كَانُواْ يَمۡكُرُونَ ۝ 120
(124) जब उनके सामने कोई आयत आती है तो वे कहते हैं, “हम न मानेंगे जब तक कि वह चीज़ ख़ुद हमको न दी जाए जो अल्लाह के रसूलों को दी गई है।” अल्लाह ख़ूब जानता है कि अपना सन्देश पहुँचाने का काम किससे ले और किस तरह ले। क़रीब है वह समय जब इन अपराधियों को अपनी मक्कारियों के बदले में अल्लाह के यहाँ अपमान और सख़्त अज़ाब का सामना करना पड़ेगा।
فَمَن يُرِدِ ٱللَّهُ أَن يَهۡدِيَهُۥ يَشۡرَحۡ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِۖ وَمَن يُرِدۡ أَن يُضِلَّهُۥ يَجۡعَلۡ صَدۡرَهُۥ ضَيِّقًا حَرَجٗا كَأَنَّمَا يَصَّعَّدُ فِي ٱلسَّمَآءِۚ كَذَٰلِكَ يَجۡعَلُ ٱللَّهُ ٱلرِّجۡسَ عَلَى ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ ۝ 121
(125) अत: (यह सत्य है कि) जिसे अल्लाह राह से लगाने का इरादा करता है उसका सीना (दिल) इस्लाम (आज्ञापालन) के लिए खोल देता है और जिसे गुमराही में डालने का इरादा करता है, उसके सीने को तंग कर देता है और ऐसा भींचता है कि (इस्लाम की कल्पना करते ही) उसे ऐसा लगने लगता है कि मानो उसकी जान आसमान की ओर उड़ी जा रही है। इस तरह अल्लाह (सत्य से भागने और उससे नफ़रत करने की गंदगी उन लोगों पर डाल देता है जो ईमान नहीं लाते32
32. इस वाक्य से यह बात स्पष्ट हो गई कि जो लोग ईमान नहीं लाते अल्लाह उन्हीं का सीना (हृदय) इस्लाम के लिए तंग कर देता है और उन्हें राह पर लाने का इरादा नहीं करता।
وَهَٰذَا صِرَٰطُ رَبِّكَ مُسۡتَقِيمٗاۗ قَدۡ فَصَّلۡنَا ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يَذَّكَّرُونَ ۝ 122
(126) हालाँकि यह मार्ग तुम्हारे रब का सीधा मार्ग है और इसके चिह्न उन लोगों के लिए स्पष्ट कर दिए गए हैं जो नसीहत क़ुबूल करते हैं।
۞لَهُمۡ دَارُ ٱلسَّلَٰمِ عِندَ رَبِّهِمۡۖ وَهُوَ وَلِيُّهُم بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 123
(127) उनके रब के पास उनके लिए सलामती का घर है। और वह उनका संरक्षक है, उस सही व्यवहार नीति के कारण जो उन्होंने अपनाई।
وَيَوۡمَ يَحۡشُرُهُمۡ جَمِيعٗا يَٰمَعۡشَرَ ٱلۡجِنِّ قَدِ ٱسۡتَكۡثَرۡتُم مِّنَ ٱلۡإِنسِۖ وَقَالَ أَوۡلِيَآؤُهُم مِّنَ ٱلۡإِنسِ رَبَّنَا ٱسۡتَمۡتَعَ بَعۡضُنَا بِبَعۡضٖ وَبَلَغۡنَآ أَجَلَنَا ٱلَّذِيٓ أَجَّلۡتَ لَنَاۚ قَالَ ٱلنَّارُ مَثۡوَىٰكُمۡ خَٰلِدِينَ فِيهَآ إِلَّا مَا شَآءَ ٱللَّهُۚ إِنَّ رَبَّكَ حَكِيمٌ عَلِيمٞ ۝ 124
(128) जिस दिन अल्लाह उन सब लोगों को घेरकर इकट्ठा करेगा, उस दिन वह जिन्नों (अर्थात् शैतान जिन्नों) को सम्बोधित करके कहेगा कि “ऐ जिन्नों के गिरोह, तुमने तो पूरी इनसानी बिरादरी पर ख़ूब हाथ साफ़ किया।” इनसानों में से जो उनके साथी थे वे निवेदन करेंगे, “ऐ रब, हममें से हर एक ने दूसरे को ख़ूब इस्तेमाल किया है, और अब हम उस समय को आ पहुँचे हैं जो तूने हमारे लिए निश्चित कर दिया था।” अल्लाह कहेगा, “अच्छा अब आग तुम्हारा ठिकाना है, उसमें तुम हमेशा रहोगे।” उससे बचेंगे सिर्फ़ वही जिन्हें अल्लाह बचाना चाहेगा, बेशक तुम्हारा रब तत्त्वदर्शी और सर्वज्ञ है।
وَكَذَٰلِكَ نُوَلِّي بَعۡضَ ٱلظَّٰلِمِينَ بَعۡضَۢا بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 125
(129) देखो इस तरह हम (आख़िरत में) ज़ालिमों को एक दूसरे का साथी बनाएँगे उस कमाई के कारण जो वे (दुनिया में एक-दूसरे के साथ मिलकर) करते थे।
يَٰمَعۡشَرَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ رُسُلٞ مِّنكُمۡ يَقُصُّونَ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِي وَيُنذِرُونَكُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَاۚ قَالُواْ شَهِدۡنَا عَلَىٰٓ أَنفُسِنَاۖ وَغَرَّتۡهُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَشَهِدُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ أَنَّهُمۡ كَانُواْ كَٰفِرِينَ ۝ 126
(130) (उस अवसर पर अल्लाह उनसे यह भी पूछेगा कि) “ऐ जिन्नों और इनसानों के गिरोह, क्या तुम्हारे पास ख़ुद तुममें से वे पैग़म्बर नहीं आए थे जो तुमको मेरी आयतें सुनाते और इस दिन के परिणाम से डराते थे?” वे कहेंगे, “हाँ, हम अपने ख़िलाफ़ ख़ुद गवाही देते हैं।” आज दुनिया की ज़िन्दगी ने इन लोगों को धोखे में डाल रखा है, मगर उस समय वे ख़ुद अपने ख़िलाफ़ गवाही देंगे कि वे अधर्मी थे।
ذَٰلِكَ أَن لَّمۡ يَكُن رَّبُّكَ مُهۡلِكَ ٱلۡقُرَىٰ بِظُلۡمٖ وَأَهۡلُهَا غَٰفِلُونَ ۝ 127
(131) (यह गवाही उनसे इसलिए ली जाएगी कि यह सिद्ध हो जाए कि) तुम्हारा रब बस्तियों को ज़ुल्म के साथ तबाह करनेवाला न था जबकि उनके निवासी सत्य से अपरिचित हों।
وَلِكُلّٖ دَرَجَٰتٞ مِّمَّا عَمِلُواْۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَٰفِلٍ عَمَّا يَعۡمَلُونَ ۝ 128
(132) हर व्यक्ति का दर्जा उसके कर्म के अनुसार है और तुम्हारा रब लोगों के कर्मों से बेख़बर नहीं है।
وَرَبُّكَ ٱلۡغَنِيُّ ذُو ٱلرَّحۡمَةِۚ إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ وَيَسۡتَخۡلِفۡ مِنۢ بَعۡدِكُم مَّا يَشَآءُ كَمَآ أَنشَأَكُم مِّن ذُرِّيَّةِ قَوۡمٍ ءَاخَرِينَ ۝ 129
(133) तुम्हारा रब निस्पृह (बेनियाज़) है और दयालुता उसकी नीति है। अगर वह चाहे तो तुम लोगों को ले जाए और तुम्हारी जगह दूसरे जिन लोगों को चाहे ले आए, जिस तरह उसने तुम्हें कुछ और लोगों की नस्ल से उठाया है।
إِنَّ مَا تُوعَدُونَ لَأٓتٖۖ وَمَآ أَنتُم بِمُعۡجِزِينَ ۝ 130
(134) तुमसे जिस चीज़ का वादा किया जा रहा है वह यक़ीनन आनेवाली है। और तुममें अल्लाह को विवश कर देने की ताक़त नहीं।
قُلۡ يَٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّي عَامِلٞۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ مَن تَكُونُ لَهُۥ عَٰقِبَةُ ٱلدَّارِۚ إِنَّهُۥ لَا يُفۡلِحُ ٱلظَّٰلِمُونَ ۝ 131
(135) ऐ नबी, कह दो कि लोगो, तुम अपनी जगह कर्म करते रहो और मैं भी अपनी जगह कर्म कर रहा हूँ, जल्द ही तुम्हें पता लग जाएगा कि परिणाम किसके हक़ में अच्छा निकलता है, हर हाल में यह सत्य है कि ज़ालिम कभी कामयाब नहीं हो सकते।
وَجَعَلُواْ لِلَّهِ مِمَّا ذَرَأَ مِنَ ٱلۡحَرۡثِ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ نَصِيبٗا فَقَالُواْ هَٰذَا لِلَّهِ بِزَعۡمِهِمۡ وَهَٰذَا لِشُرَكَآئِنَاۖ فَمَا كَانَ لِشُرَكَآئِهِمۡ فَلَا يَصِلُ إِلَى ٱللَّهِۖ وَمَا كَانَ لِلَّهِ فَهُوَ يَصِلُ إِلَىٰ شُرَكَآئِهِمۡۗ سَآءَ مَا يَحۡكُمُونَ ۝ 132
(136) इन लोगों ने अल्लाह के लिए ख़ुद उसी की पैदा की हुई खेतियों और चौपायों में से एक हिस्सा निश्चित किया है और अपने ख़याल से कहते हैं यह अल्लाह के लिए है और यह हमारे ठहराए हुए साझीदारों के लिए। फिर जो हिस्सा उनके ठहराए हुए साझीदारों के लिए है वह तो अल्लाह को नहीं पहुँचता मगर जो अल्लाह के लिए है वह उनके साझीदारों को पहुँच जाता है।33 कैसे बुरे फ़ैसले करते हैं ये लोग!
33. वे लोग अल्लाह के नाम से जो हिस्सा निकालते थे उसमें भी तरह-तरह की चालबाज़ियाँ करके कमी करते रहते थे और हर तरह से अपने गढ़े हुए साझीदारों का हिस्सा बढ़ाने की कोशिश करते थे। उदाहरणार्थ जो अनाज और फल आदि अल्लाह के नाम पर निकाले जाते उनमें से अगर कुछ गिर जाता तो वह साझीदारों के हिस्से में शामिल कर दिया जाता था, और अगर साझीदारों के हिस्से में से गिरता, या अल्लाह के हिस्से में मिल जाता तो उसे उन्हीं (साझीदारों) के हिस्से में वापस किया जाता। अगर किसी कारण से भेंट और चढ़ावे का अनाज ख़ुद इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती तो अल्लाह का हिस्सा खा लेते थे, मगर साझीदारों के हिस्से को हाथ लागते हुए डरते थे कि कहीं कोई बला न उतर आए।
وَكَذَٰلِكَ زَيَّنَ لِكَثِيرٖ مِّنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ قَتۡلَ أَوۡلَٰدِهِمۡ شُرَكَآؤُهُمۡ لِيُرۡدُوهُمۡ وَلِيَلۡبِسُواْ عَلَيۡهِمۡ دِينَهُمۡۖ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَا فَعَلُوهُۖ فَذَرۡهُمۡ وَمَا يَفۡتَرُونَ ۝ 133
(137) और इसी तरह बहुत-से मुशरिकों के लिए उनके साझीदारों ने अपनी औलाद के क़त्ल को ख़ुशनुमा बना दिया है34 ताकि उनको तबाही में डालें और उनके लिए उनके धर्म को संदिग्ध बना दें।35 अगर अल्लाह चाहता तो ये ऐसा न करते, अत: इन्हें छोड़ दो कि ये अपने मिथ्यारोपण में लगे रहें।
34. यहाँ साझीदारों” का शब्द एक दूसरे अर्थ में इस्तेमाल हुआ है जो ऊपर के अर्थ से भिन्न है। आयत 136 में जिन्हें “शरीक” शब्द की संज्ञा दी गई थी वे उनके वे पूज्य थे जिनकी बरकत या सिफ़ारिश या मध्यस्थता को ये लोग नेमत की प्राप्ति में सहायक समझते थे और नेमतों को पाकर कृतज्ञता व्यक्त करने के सिलसिले में उन्हें अल्लाह के साथ हिस्सेदार बनाते थे। इसके विपरीत इस आयत में शरीक” से मुराद वे इनसान है जिन्होंने औलाद के क़त्ल की रीति निकाली थी और वे शैतान हैं जिन्होंने इस अत्याचारपूर्ण रीति को लोगों की निगाह में एक जाइज़ और प्रिय कार्य बना दिया था। औलाद के क़त्ल की तीन शक्लें अरबों में प्रचलित थीं और क़ुरआन में तीनों की ओर इशारा किया गया है: (1) लड़कियों का क़त्ल, इस ध्येय से कि कोई उनका दामाद न बने, या क़बायली लड़ाइयों में वे दुश्मन के हाथ न पड़ें या किसी दूसरी वजह से वे उनके लिए लज्जा का कारण सिद्ध न हों। (2) बच्चों का क़त्ल, इस ध्येय से कि उनके पालन-पोषण का बोझ न उठाया जा सकेगा और आर्थिक साधनों की कमी के कारण वे असह्य बोझ बन जाएँगे। (3) बच्चों को अपने देवी-देवताओं को ख़ुश करने के लिए भेंट चढ़ाना।
35. अज्ञानकाल के अरब अपने आपको हज़रत इबराहीम (अलैहि०) और इसमाईल (अलैहि०) का अनुयायी कहते और समझते थे और इस कारण उनका ख़याल यह था कि जिस धर्म का वे अनुसरण कर रहे हैं वह अल्लाह का पसंदीदा धर्म ही है। लेकिन इस धर्म में बाद की शताब्दियों में उनके धर्म-गुरु क़बीलों के सरदार, परिवारों के बड़े-बूढ़े और विभिन्न लोग तरह-तरह की धारणाओं और कर्मों और रीतियों की अभिवृद्धि करते चले गए जिन्हें आनेवाली नस्लों ने वास्तविक धर्म का अंश समझ लिया और उनका पूरा धर्म संदिग्ध होकर रह गया।
وَقَالُواْ هَٰذِهِۦٓ أَنۡعَٰمٞ وَحَرۡثٌ حِجۡرٞ لَّا يَطۡعَمُهَآ إِلَّا مَن نَّشَآءُ بِزَعۡمِهِمۡ وَأَنۡعَٰمٌ حُرِّمَتۡ ظُهُورُهَا وَأَنۡعَٰمٞ لَّا يَذۡكُرُونَ ٱسۡمَ ٱللَّهِ عَلَيۡهَا ٱفۡتِرَآءً عَلَيۡهِۚ سَيَجۡزِيهِم بِمَا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ ۝ 134
(138) कहते है ये जानवर और ये खेत सुरक्षित हैं, इन्हें सिर्फ़ वही लोग खा सकते हैं जिन्हें हम खिलाना चाहें, जबकि यह पाबन्दी इनकी ख़ुद अपनी ही गढ़ी हुई है। फिर कुछ जानवर हैं जिनपर सवारी और बोझा ढोना हराम कर दिया गया है और कुछ जानवर हैं जिनपर ये अल्लाह का नाम नहीं लेते, और ये सब कुछ उन्होंने अल्लाह पर झूठ मढ़ा है, जल्द ही अल्लाह उन्हें इन मिध्यारोपणों का बदला देगा।
وَقَالُواْ مَا فِي بُطُونِ هَٰذِهِ ٱلۡأَنۡعَٰمِ خَالِصَةٞ لِّذُكُورِنَا وَمُحَرَّمٌ عَلَىٰٓ أَزۡوَٰجِنَاۖ وَإِن يَكُن مَّيۡتَةٗ فَهُمۡ فِيهِ شُرَكَآءُۚ سَيَجۡزِيهِمۡ وَصۡفَهُمۡۚ إِنَّهُۥ حَكِيمٌ عَلِيمٞ ۝ 135
(139) और कहते हैं कि जो कुछ इन जानवरों के पेट में है ये हमारे मर्दों के लिए ख़ास है और हमारी औरतों के लिए हराम, लेकिन अगर वह मुर्दा हो तो दोनों उसके खाने में शरीक हो सकते हैं। ये बातें जो उन्होंने गढ़ ली है इनका बदला अल्लाह उन्हें देकर रहेगा। यक़ीनन वह तत्त्वदर्शी है और सब बातों की उसे ख़बर है।
قُل لَّآ أَجِدُ فِي مَآ أُوحِيَ إِلَيَّ مُحَرَّمًا عَلَىٰ طَاعِمٖ يَطۡعَمُهُۥٓ إِلَّآ أَن يَكُونَ مَيۡتَةً أَوۡ دَمٗا مَّسۡفُوحًا أَوۡ لَحۡمَ خِنزِيرٖ فَإِنَّهُۥ رِجۡسٌ أَوۡ فِسۡقًا أُهِلَّ لِغَيۡرِ ٱللَّهِ بِهِۦۚ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَيۡرَ بَاغٖ وَلَا عَادٖ فَإِنَّ رَبَّكَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 136
(145) ऐ नबी, इनसे कहो कि जो प्रकाशना (वह्य) मेरी ओर आई है उसमें तो मैं कोई चीज़ ऐसी नहीं पाता जो किसी खानेवाले पर हराम हो, सिवाय इसके कि वह मुर्दार हो, या बहाया हुआ ख़ून हो, या सुअर का मांस हो कि वह नापाक है, या मर्यादा से हटा हुआ (फ़िस्क़) हो कि अल्लाह के सिवा किसी और के नाम पर ज़बह किया गया हो।37 फिर जो व्यक्ति मजबूरी की हालत में (कोई चीज़़ इनमें से खा ले) बिना इसके कि वह नाफ़रमानी का इरादा रखता हो और बिना इसके कि वह ज़रूरत की सीमा से आगे बढ़े तो निश्चय ही तुम्हारा रब क्षमाशील और दयावान् है।
37. इसका अर्थ यह नहीं है कि इनके सिवा खाने को कोई चीज़़ 'शरीअत' में हराम नहीं है, बल्कि अर्थ यह है कि हराम वे चीज़़ें नहीं जो तुम लोगों ने हराम कर ली हैं, बल्कि हराम ये चीज़़ें हैं। व्याख्या के लिए देखें सूरा 5 (अल-माइदा), फ़ुटनोट 2, 9।
وَعَلَى ٱلَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمۡنَا كُلَّ ذِي ظُفُرٖۖ وَمِنَ ٱلۡبَقَرِ وَٱلۡغَنَمِ حَرَّمۡنَا عَلَيۡهِمۡ شُحُومَهُمَآ إِلَّا مَا حَمَلَتۡ ظُهُورُهُمَآ أَوِ ٱلۡحَوَايَآ أَوۡ مَا ٱخۡتَلَطَ بِعَظۡمٖۚ ذَٰلِكَ جَزَيۡنَٰهُم بِبَغۡيِهِمۡۖ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ ۝ 137
(146) और जिन लोगों ने यहूदी धर्म ग्रहण किया उनपर हमने सब नाख़ूनवाले जानवर हराम कर दिए थे, और गाय और बकरी की चरबी भी सिवाय उसके जो उनकी पीठ या उनकी आँतों से लगी हुई हो या हड्डी से लगी रह जाए। यह हमने उनकी सरकशी की सज़ा उन्हें दी थी38 और ये जो कुछ हम कह रहे हैं बिलकुल सत्य कह रहे हैं।
38. देखें सूरा 3 (आले-इमरान), आयत 93 और सूरा 4 (अन-निसा), आयत 160।
فَإِن كَذَّبُوكَ فَقُل رَّبُّكُمۡ ذُو رَحۡمَةٖ وَٰسِعَةٖ وَلَا يُرَدُّ بَأۡسُهُۥ عَنِ ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 138
(147) अब अगर वे तुम्हें झुठलाएँ तो उनसे कह दो कि तुम्हारा रब बहुत व्यापक दयालुतावाला है और अपराधियों से उसके अज़ाब को फ़ेरा नहीं जा सकता।
سَيَقُولُ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْ لَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَآ أَشۡرَكۡنَا وَلَآ ءَابَآؤُنَا وَلَا حَرَّمۡنَا مِن شَيۡءٖۚ كَذَٰلِكَ كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ حَتَّىٰ ذَاقُواْ بَأۡسَنَاۗ قُلۡ هَلۡ عِندَكُم مِّنۡ عِلۡمٖ فَتُخۡرِجُوهُ لَنَآۖ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا ٱلظَّنَّ وَإِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا تَخۡرُصُونَ ۝ 139
(148) ये मुशरिक (बहुदेववादी) लोग (तुम्हारी इन बातों के जवाब में) ज़रूर कहेंगे कि “अगर अल्लाह चाहता तो हम साझी न ठहराते और न हमारे बाप-दादा, और न हम किसी चीज़ को हराम ठहराते39।” ऐसी ही बातें बना-बनाकर इनसे पहले के लोगों ने भी सत्य को झुठलाया था यहाँ तक कि आख़िरकार हमारे अज़ाब का मज़ा उन्होंने चख लिया। उनसे कहो, “क्या तुम्हारे पास कोई ज्ञान है जिसे हमारे सामने पेश कर सको? तुम तो सिर्फ़ गुमान पर चल रहे हो और निरी कल्पनाएँ करते हो।”
39. अर्थात् वे अपने अपराध और अपने ग़लत कामों के लिए वही पुरानी आपत्ति सामने लाएँगे जो हमेशा से अपराधी और ग़लत काम करनेवाले प्रस्तुत करते रहे हैं। वे कहेंगे कि हमारे हक़ में अल्लाह की इच्छा यह है कि हम 'शिर्क' करें और जिन चीज़़ों को हमने हराम घोषित किया है उन्हें हराम घोषित करें। वरना अगर ईश्वर न चाहता कि हम ऐसा करें तो कैसे संभव था कि ये कर्म हम कर सकते। अतः चूँकि हम ईश्वरीय इच्छा के अनुसार ये सब कुछ कर रहे हैं इसलिए ठीक कर रहे हैं, इसका इलज़ाम अगर है तो हम पर नहीं, अल्लाह पर है। और जो कुछ हम कर रहे हैं ऐसा ही करने पर मजबूर हैं कि इसके सिवा कुछ और करना हमारी सामर्थ्य में नहीं।
قُلۡ فَلِلَّهِ ٱلۡحُجَّةُ ٱلۡبَٰلِغَةُۖ فَلَوۡ شَآءَ لَهَدَىٰكُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 140
(149) फिर कहो, (तुम्हारे इस तर्क के मुक़ाबले में) “सत्य को पहुँचा हुआ तर्क तो अल्लाह के पास है, बेशक अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको सीधे रास्ते पर चला देता40।
40. अर्थात् तुम अपनी असमर्थता व्यक्त करने के सिलसिले में यह तर्क जो प्रस्तुत करते हो कि अल्लाह अगर चाहता तो हम 'शिर्क' न करते, इससे पूरी बात अदा नहीं होती। पूरी बात कहना चाहते हो तो यों कहो कि अगर अल्लाह चाहता तो हम सबको सीधी राह पर चलाता। दूसरे शब्दों में तुम ख़ुद अपने चुनाव से सत्य-मार्ग ग्रहण करने पर तैयार नहीं हो, बल्कि चाहते हो कि अल्लाह ने जिस तरह फ़रिश्तों को जन्मजात सत्यमार्ग पर चलनेवाला बनाया था, उसी तरह तुम्हें भी बना देता। तो बेशक अगर अल्लाह की इच्छा इनसान के हक़ में भी यह होती तो वह ज़रूर ऐसा कर सकता था, लेकिन यह उसकी इच्छा नहीं है। अतः जिस गुमराही को तुमने अपने लिए ख़ुद ही पसन्द किया है अल्लाह भी तुम्हें उसी में पड़ा रहने देगा।
قُلۡ هَلُمَّ شُهَدَآءَكُمُ ٱلَّذِينَ يَشۡهَدُونَ أَنَّ ٱللَّهَ حَرَّمَ هَٰذَاۖ فَإِن شَهِدُواْ فَلَا تَشۡهَدۡ مَعَهُمۡۚ وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَآءَ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا وَٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ وَهُم بِرَبِّهِمۡ يَعۡدِلُونَ ۝ 141
(150) उनसे कहो कि “लाओ अपने वे गवाह जो इस बात की गवाही दें कि अल्लाह ही ने इन चीज़़ों को हराम किया है।” फिर अगर वे गवाही दे दें तो तुम उनके साथ गवाही न देना41 और हरगिज़ उन लोगों की इच्छाओं के पीछे न चलना जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया है, और जो आख़िरत का इनकार करते हैं और जो दूसरों को अपने रब का समकक्ष बनाते हैं।
41. अर्थात् अगर वे गवाही की ज़िम्मेदारी को समझते हों और जानते हों कि गवाही उसी बात की देनी चाहिए जिसका आदमी को ज्ञान हो, तो वे कभी यह गवाही देने का साहस न करेंगे। लेकिन अगर ये लोग गवाही की ज़िम्मेदारी को महसूस किए बिना इतनी ढिठाई पर उतर आएँ कि अल्लाह का नाम लेकर झूठी गवाही देने में भी न झिझकें, तो इनके इस झूठ में तुम इनके साथी न बनो।
۞قُلۡ تَعَالَوۡاْ أَتۡلُ مَا حَرَّمَ رَبُّكُمۡ عَلَيۡكُمۡۖ أَلَّا تُشۡرِكُواْ بِهِۦ شَيۡـٔٗاۖ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَٰنٗاۖ وَلَا تَقۡتُلُوٓاْ أَوۡلَٰدَكُم مِّنۡ إِمۡلَٰقٖ نَّحۡنُ نَرۡزُقُكُمۡ وَإِيَّاهُمۡۖ وَلَا تَقۡرَبُواْ ٱلۡفَوَٰحِشَ مَا ظَهَرَ مِنۡهَا وَمَا بَطَنَۖ وَلَا تَقۡتُلُواْ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِي حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّۚ ذَٰلِكُمۡ وَصَّىٰكُم بِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 142
(151) ऐ नबी, उनसे कहो कि आओ मैं तुम्हें सुनाऊँ तुम्हारे रब ने तुमपर क्या पाबन्दियाँ लगाई हैं42: यह कि उसके साथ किसी को साझीदार न बनाओ। और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो, और अपनी औलाद को निर्धनता के भय से क़त्ल न करो, हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं। और उनको भी देंगे और बेशर्मी की बातों43 के क़रीब भी न जाओ, चाहे वे खुली हों या छिपी। और किसी जीव की जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो मगर हक़ के साथ। ये बातें हैं जिनका आदेश उसने तुम्हें दिया है, शायद कि तुम समझ-बूझ से काम लो।
42. अर्थात् तुम्हारे रब की निर्धारित पाबन्दियाँ वे नहीं हैं जिनमें तुम ग्रस्त हो, बल्कि अस्ल पाबन्दियाँ ये हैं।
43. मूल ग्रन्थ में 'फ़वाहिश' शब्द इस्तेमाल हुआ है जो उन सभी कर्मों के लिए आता है जिनकी बुराई बिलकुल स्पष्ट है। क़ुरआन में व्यभिचार, गुदा मैथुन, नग्नता, मिथ्यारोपण, और बाप की बीवी से निकाह करने की 'फ़हश' कर्मों में गणना की गई है। हदीस में चोरी और शराब पीने और भिक्षा माँगने को 'फ़वाहिश' में शामिल किया गया है, इसी तरह दूसरे सभी लज्जाजनक कर्म भी 'फ़वाहिश' में शामिल हैं और अल्लाह का आदेश यह है कि इस तरह के कार्य न खुले तौर से किए जाएँ और न छिपकर।
وَلَا تَقۡرَبُواْ مَالَ ٱلۡيَتِيمِ إِلَّا بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ أَشُدَّهُۥۚ وَأَوۡفُواْ ٱلۡكَيۡلَ وَٱلۡمِيزَانَ بِٱلۡقِسۡطِۖ لَا نُكَلِّفُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۖ وَإِذَا قُلۡتُمۡ فَٱعۡدِلُواْ وَلَوۡ كَانَ ذَا قُرۡبَىٰۖ وَبِعَهۡدِ ٱللَّهِ أَوۡفُواْۚ ذَٰلِكُمۡ وَصَّىٰكُم بِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَذَكَّرُونَ ۝ 143
(152) और यह कि यतीम के माल के क़रीब न जाओ मगर ऐसे तरीक़े से जो सबसे अच्छा हो, यहाँ तक कि वे अपनी जवानी की उम्र को पहुँच जाएँ। और नाप-तौल में पूरा इनसाफ़ करो, हम हर व्यक्ति पर ज़िम्मेदारी का उतना ही बोझ रखते हैं जितने की उसमें सामर्थ्य है। और जब बात कहो इनसाफ़ की कहो चाहे मामला अपने नातेदार ही का क्यों न हो। और अल्लाह की प्रतिज्ञा को पूरा करो44। इन बातों का आदेश अल्लाह ने तुम्हें दिया है शायद कि तुम नसीहत क़ुबूल करो
44. “अल्लाह की प्रतिज्ञा” से मुराद वह प्रतिज्ञा है जो इनसान और ईश्वर और इनसान और इनसान के बीच स्वभावतः उस समय आप से आप घटित हो जाती है जिस समय एक व्यक्ति अल्लाह की ज़मीन पर एक मानव समाज में जन्म लेता है।
وَأَنَّ هَٰذَا صِرَٰطِي مُسۡتَقِيمٗا فَٱتَّبِعُوهُۖ وَلَا تَتَّبِعُواْ ٱلسُّبُلَ فَتَفَرَّقَ بِكُمۡ عَن سَبِيلِهِۦۚ ذَٰلِكُمۡ وَصَّىٰكُم بِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ ۝ 144
(153) साथ ही उसका आदेश यह है कि यही मेरा सीधा मार्ग है अत: तुम इसी पर चलो और दूसरे मार्गों पर न चलो कि वे उसके मार्ग से हटाकर तुम्हें बिखेर देंगे। यह है वह आदेश जो तुम्हारे रब ने तुझे दिया है, शायद कि तुम पथ भ्रष्टता से बचो।
ثُمَّ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ تَمَامًا عَلَى ٱلَّذِيٓ أَحۡسَنَ وَتَفۡصِيلٗا لِّكُلِّ شَيۡءٖ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٗ لَّعَلَّهُم بِلِقَآءِ رَبِّهِمۡ يُؤۡمِنُونَ ۝ 145
(154) फिर हमने मूसा को किताब प्रदान की थी जो भलाई की नीति अपनानेवाले इनसान के लिए नेमत की पूर्णता और हर ज़रूरी चीज़़ का विवरण और पूरे तौर पर सन्मार्ग की सूचना और दयालुता थी। (और इसराईल की सन्तान को इसलिए दी गई थी कि शायद लोग अपने रब से मिलने पर ईमान लाएँ।45
45. मुराद यह है कि लोग अपने-आपको ग़ैर-ज़िम्मेदार समझना छोड़ दें और यह मान लें कि उन्हें अपने रब के सामने हाज़िर होकर एक दिन अपने कर्मों की जवाबदही करनी है।
وَهَٰذَا كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ مُبَارَكٞ فَٱتَّبِعُوهُ وَٱتَّقُواْ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ۝ 146
(155) और इसी तरह यह किताब हमने उतारी है, एक बरकतवाली किताब। अत: तुम इसका अनुसरण करो और परहेज़गारी की नीति अपनाओ, असंभव नहीं कि तुमपर दया की जाए।
أَن تَقُولُوٓاْ إِنَّمَآ أُنزِلَ ٱلۡكِتَٰبُ عَلَىٰ طَآئِفَتَيۡنِ مِن قَبۡلِنَا وَإِن كُنَّا عَن دِرَاسَتِهِمۡ لَغَٰفِلِينَ ۝ 147
(156) अब तुम यह नहीं कह सकते कि किताब तो हमसे पहले के दो गिरोहों को दी गई थी, और हमको कुछ ख़बर न थी कि वे क्या पढ़ते-पढ़ाते थे।
أَوۡ تَقُولُواْ لَوۡ أَنَّآ أُنزِلَ عَلَيۡنَا ٱلۡكِتَٰبُ لَكُنَّآ أَهۡدَىٰ مِنۡهُمۡۚ فَقَدۡ جَآءَكُم بَيِّنَةٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٞۚ فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَّبَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَصَدَفَ عَنۡهَاۗ سَنَجۡزِي ٱلَّذِينَ يَصۡدِفُونَ عَنۡ ءَايَٰتِنَا سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ بِمَا كَانُواْ يَصۡدِفُونَ ۝ 148
(157) और अब तुम यह बहाना भी नहीं कर सकते कि अगर हमपर किताब उतारी गई होती तो हम उनसे ज़्यादा सीधे मार्ग पर चलनेवाले सिद्ध होते तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण और मार्ग-दर्शन और दयालुता आ गई है, अब उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की आयतों को झुठलाए और उनसे मुँह मोड़े। जो लोग हमारी आयतों से मुँह मोड़ते हैं उन्हें इस विमुखता के बदले में हम बुरी से बुरी सज़ा देकर रहेंगे।
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن تَأۡتِيَهُمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ أَوۡ يَأۡتِيَ رَبُّكَ أَوۡ يَأۡتِيَ بَعۡضُ ءَايَٰتِ رَبِّكَۗ يَوۡمَ يَأۡتِي بَعۡضُ ءَايَٰتِ رَبِّكَ لَا يَنفَعُ نَفۡسًا إِيمَٰنُهَا لَمۡ تَكُنۡ ءَامَنَتۡ مِن قَبۡلُ أَوۡ كَسَبَتۡ فِيٓ إِيمَٰنِهَا خَيۡرٗاۗ قُلِ ٱنتَظِرُوٓاْ إِنَّا مُنتَظِرُونَ ۝ 149
(158) क्या अब लोग इसके इन्तिज़ार में हैं कि उनके सामने फ़रिश्ते आ खड़े हों, या तुम्हारा रब ख़ुद आ जाए, या तुम्हारे रब की कुछ खुली निशानियाँ सामने आ जाएँ? जिस दिन तुम्हारे रब की कुछ विशिष्ट निशानियाँ प्रकट हो जाएँगी फिर किसी ऐसे व्यक्ति को उसका ईमान कुछ फ़ायदा न पहुँचा सकेगा जो पहले ईमान न लाया हो या जिसने अपने ईमान (आस्था) में कोई भलाई न कमाई हो। ऐ नबी, इनसे कह दो कि अच्छा, तुम इंतिज़ार करो हम भी इन्तिज़ार करते हैं।
إِنَّ ٱلَّذِينَ فَرَّقُواْ دِينَهُمۡ وَكَانُواْ شِيَعٗا لَّسۡتَ مِنۡهُمۡ فِي شَيۡءٍۚ إِنَّمَآ أَمۡرُهُمۡ إِلَى ٱللَّهِ ثُمَّ يُنَبِّئُهُم بِمَا كَانُواْ يَفۡعَلُونَ ۝ 150
(159) जिन लोगों ने अपने धर्म को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और गिरोह गिरोह बन गए यक़ीनन उनसे तुम्हारा कुछ नाता नहीं, उनका मामला तो अल्लाह के हवाले है, वही उनको बताएगा कि उन्होंने क्या कुछ किया है।
مَن جَآءَ بِٱلۡحَسَنَةِ فَلَهُۥ عَشۡرُ أَمۡثَالِهَاۖ وَمَن جَآءَ بِٱلسَّيِّئَةِ فَلَا يُجۡزَىٰٓ إِلَّا مِثۡلَهَا وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 151
(160) जो अल्लाह के पास नेकी लेकर आएगा उसके लिए दस गुना बदला है, और जो बुराई लेकर आएगा उसको उतना ही बदला दिया जाएगा जितना उसने अपराध किया है, और किसी के साथ ज़ुल्म न किया जाएगा।
قُلۡ إِنَّنِي هَدَىٰنِي رَبِّيٓ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ دِينٗا قِيَمٗا مِّلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۚ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ۝ 152
(161) ऐ नबी, कहो मेरे रब ने निश्चय ही मुझे सीधा मार्ग दिखा दिया है, बिलकुल ठीक धर्म जिसमें कोई टेढ़ नहीं, इबराहीम का तरीक़ा जिसे एकाग्र होकर उसने अपनाया था और वह मुशरिकों (बहुदेववादियों) में से न था।
قُلۡ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحۡيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 153
(162) कहो, मेरी नमाज़ मेरे इबादत-सम्बन्धी सारे तरीक़े47, मेरा जीना और मेरा मरना सब कुछ अल्लाह, सारे संसार के रब के लिए है
47. मूल अरबी में “नुसुक” शब्द इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ क़ुरबानी भी है और यह सामन्य रूप से बन्दगी, भक्ति और उपासना के दूसरे सभी तरीक़ों के लिए भी इस्तेमाल होता है।
لَا شَرِيكَ لَهُۥۖ وَبِذَٰلِكَ أُمِرۡتُ وَأَنَا۠ أَوَّلُ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 154
(163) जिसका कोई साझीदार नहीं। इसी का मुझे आदेश दिया गया है और सबसे पहले आज्ञाकारी होनेवाला में हूँ।
قُلۡ أَغَيۡرَ ٱللَّهِ أَبۡغِي رَبّٗا وَهُوَ رَبُّ كُلِّ شَيۡءٖۚ وَلَا تَكۡسِبُ كُلُّ نَفۡسٍ إِلَّا عَلَيۡهَاۚ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ ۝ 155
(164) कहो, क्या मैं अल्लाह के सिवा कोई और रब तलाश करूँ हालाँकि वही हर चीज़़ का रब है? हर आदमी जो कुछ कमाता है उसका ज़िम्मेदार वह ख़ुद है, कोई बोझ उठानेवाला दूसरे का बोझ नहीं उठाता48, फिर तुम सबको अपने रब की ओर पलटना है, उस समय वह तुम्हारे मतभेदों को हक़ीक़त तुमपर खोल देगा।
48. अर्थात् हर व्यक्ति अपने कर्म का ख़ुद ज़िम्मेदार है, एक के कर्म की ज़िम्मेदारी दूसरे पर नहीं है।
وَهُوَ ٱلَّذِي جَعَلَكُمۡ خَلَٰٓئِفَ ٱلۡأَرۡضِ وَرَفَعَ بَعۡضَكُمۡ فَوۡقَ بَعۡضٖ دَرَجَٰتٖ لِّيَبۡلُوَكُمۡ فِي مَآ ءَاتَىٰكُمۡۗ إِنَّ رَبَّكَ سَرِيعُ ٱلۡعِقَابِ وَإِنَّهُۥ لَغَفُورٞ رَّحِيمُۢ ۝ 156
(165) वही है जिसने तुमको ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया, और तुममें से कुछ लोगों को कुछ लोगों के मुक़ाबले में ज़्यादा ऊँचे दर्जे दिए, ताकि जो कुछ तुमको दिया है उसमें तुम्हारी परीक्षा करे। बेशक तुम्हारा रब सज़ा देने में भी बहुत तेज़ है और बहुत क्षमाशील और दयावान् भी है।
قُلۡ مَن يُنَجِّيكُم مِّن ظُلُمَٰتِ ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ تَدۡعُونَهُۥ تَضَرُّعٗا وَخُفۡيَةٗ لَّئِنۡ أَنجَىٰنَا مِنۡ هَٰذِهِۦ لَنَكُونَنَّ مِنَ ٱلشَّٰكِرِينَ ۝ 157
(63) ऐ नबी, इनसे पूछो, सहरा और समुद्र के अंधेरों में कौन तुम्हें ख़तरों से बचाता है? कौन है जिससे तुम (मुसीबत में) गिड़गिड़ा-गिड़गिड़ाकर और चुपके-चुपके दुआएँ माँगते हो? किससे कहते हो कि अगर इस मुसीबत से उसने हमें बचा लिया तो हम ज़रूर कृतज्ञ होंगे?
قُلِ ٱللَّهُ يُنَجِّيكُم مِّنۡهَا وَمِن كُلِّ كَرۡبٖ ثُمَّ أَنتُمۡ تُشۡرِكُونَ ۝ 158
(64) — कहो, अल्लाह तुम्हें उससे और हर तकलीफ़ से छुटकारा देता है फिर तुम दूसरों को उसका साझीदार ठहराते हो?15
15. अर्थात् यह सत्य है कि अकेला अल्लाह ही सर्वशक्तिमान है, और वही समस्त अधिकारों का मालिक और तुम्हारी भलाई और बुराई का सर्वाधिकारी है, और उसी के हाथ में तुम्हारे भाग्य की बागडोर है, इसकी गवाही तो तुम्हारे अपने दिल (नफ़्स) में मौजूद है। जब कोई कठिन समय आता है और साधनों के सारे ही सूत्र खण्डित होते दिखाई देने लगते हैं तो उस समय तुम बेइख़्तियार उसी की ओर रुजू करते हो। लेकिन इस स्पष्ट निशानी के होते हुए भी तुमने ईश्वरत्व में बिना किसी प्रमाण और तर्क के दूसरों को उसका साझी बना रखा है। पलते हो उसकी रोज़ी पर और अन्नदाता बनाते हो दूसरों को। मदद तुम्हें मिलती है उसकी कृपा और दया से और हिमायती व मददगार ठहराते हो दूसरों को। ग़ुलाम हो उसके और ग़ुलामी करते हो दूसरों की। कष्टों और मुश्किलों को दूर करता है वह, बुरे समय में गिड़गिड़ाते हो उसी के सामने, और जब वह वक्त गुज़र जाता है तो तुम्हारे कष्टनिवारक बन जाते हैं दूसरे और भेंट और चढ़ावे (नज़्रें और नियाज़ें) चढ़ने लगती है दूसरों के नाम की।
قُلۡ هُوَ ٱلۡقَادِرُ عَلَىٰٓ أَن يَبۡعَثَ عَلَيۡكُمۡ عَذَابٗا مِّن فَوۡقِكُمۡ أَوۡ مِن تَحۡتِ أَرۡجُلِكُمۡ أَوۡ يَلۡبِسَكُمۡ شِيَعٗا وَيُذِيقَ بَعۡضَكُم بَأۡسَ بَعۡضٍۗ ٱنظُرۡ كَيۡفَ نُصَرِّفُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّهُمۡ يَفۡقَهُونَ ۝ 159
(65) कहो, “उसे इसकी सामार्थ्य प्राप्त है कि तुमपर कोई अज़ाब ऊपर से उतार दे, या तुम्हारे पाँव के नीचे से ले आए, या तुम्हें गिरोहों में बाँट करके एक गिरोह को दूसरे गिरोह की ताक़त का मज़ा चखवा दे।” देखो, हम किस तरह बार-बार विभिन्न ढंग से अपनी निशानियाँ इनके सामने पेश कर रहे हैं, शायद कि ये हक़ीक़त को समझ लें।
قَدۡ خَسِرَ ٱلَّذِينَ قَتَلُوٓاْ أَوۡلَٰدَهُمۡ سَفَهَۢا بِغَيۡرِ عِلۡمٖ وَحَرَّمُواْ مَا رَزَقَهُمُ ٱللَّهُ ٱفۡتِرَآءً عَلَى ٱللَّهِۚ قَدۡ ضَلُّواْ وَمَا كَانُواْ مُهۡتَدِينَ ۝ 160
(140) यक़ीनन घाटे में पड़ गए वे लोग जिन्होंने अपनी औलाद को अज्ञान और मूर्खता के कारण क़त्ल किया और अल्लाह की दी हुई रोज़ी को अल्लाह पर झूठ गढ़कर अवैध ठहरा लिया। यक़ीनन वे भटक गए और हरगिज़ वे सीधा मार्ग पानेवालों में से न थे।
۞وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنشَأَ جَنَّٰتٖ مَّعۡرُوشَٰتٖ وَغَيۡرَ مَعۡرُوشَٰتٖ وَٱلنَّخۡلَ وَٱلزَّرۡعَ مُخۡتَلِفًا أُكُلُهُۥ وَٱلزَّيۡتُونَ وَٱلرُّمَّانَ مُتَشَٰبِهٗا وَغَيۡرَ مُتَشَٰبِهٖۚ كُلُواْ مِن ثَمَرِهِۦٓ إِذَآ أَثۡمَرَ وَءَاتُواْ حَقَّهُۥ يَوۡمَ حَصَادِهِۦۖ وَلَا تُسۡرِفُوٓاْۚ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُسۡرِفِينَ ۝ 161
(141) वह अल्लाह ही है जिसने तरह-तरह के बाग़ और अंगूर लताओं के बाग़ और नख़लिस्तान पैदा किए, खेतियाँ उगाईं जिनसे तरह-तरह के खाद्य पदार्थ प्राप्त होते हैं, ज़ैतून और अनार के पेड़ पैदा किए जिनके फल रूप-रंग में मिलते-जुलते और स्वाद में भिन्न होते हैं। खाओ इनकी पैदावार जबकि ये फलें, और अल्लाह का हक़ अदा करो जब इनकी फ़सल काटो, और सीमा से आगे न बढ़ो कि अल्लाह सीमा से आगे बढ़नेवालों को पसन्द नहीं करता।
وَمِنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ حَمُولَةٗ وَفَرۡشٗاۚ كُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٞ ۝ 162
(142) फिर वही है जिसने चौपायों में से वे जानवर भी पैदा किए जिनसे सवारी और बोझ ढोने का काम लिया जाता है और वे भी जो खाने और बिछाने के काम आते हैं।36 खाओ उन चीज़़ों में से जो अल्लाह ने तुम्हें प्रदान की हैं और शैतान की पैरवी न करो क्योंकि वह तुम्हारा खुला दुश्मन है।
36. अर्थात् उनकी खालों और बालों से फ़र्श बनाए जाते हैं।
ثَمَٰنِيَةَ أَزۡوَٰجٖۖ مِّنَ ٱلضَّأۡنِ ٱثۡنَيۡنِ وَمِنَ ٱلۡمَعۡزِ ٱثۡنَيۡنِۗ قُلۡ ءَآلذَّكَرَيۡنِ حَرَّمَ أَمِ ٱلۡأُنثَيَيۡنِ أَمَّا ٱشۡتَمَلَتۡ عَلَيۡهِ أَرۡحَامُ ٱلۡأُنثَيَيۡنِۖ نَبِّـُٔونِي بِعِلۡمٍ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 163
(143) ये आठ नर-मादा हैं, दो भेड़ की जाति से और दो बकरी की जाति से ऐ नबी, इनसे पूछो कि अल्लाह ने उनके नर हराम किए हैं या मादा, या वे बच्चे जो भेड़ों और बकरियों के पेट में हो? ठीक-ठीक ज्ञान के साथ मुझे बताओ; अगर तुम सच्चे हो।
وَمِنَ ٱلۡإِبِلِ ٱثۡنَيۡنِ وَمِنَ ٱلۡبَقَرِ ٱثۡنَيۡنِۗ قُلۡ ءَآلذَّكَرَيۡنِ حَرَّمَ أَمِ ٱلۡأُنثَيَيۡنِ أَمَّا ٱشۡتَمَلَتۡ عَلَيۡهِ أَرۡحَامُ ٱلۡأُنثَيَيۡنِۖ أَمۡ كُنتُمۡ شُهَدَآءَ إِذۡ وَصَّىٰكُمُ ٱللَّهُ بِهَٰذَاۚ فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبٗا لِّيُضِلَّ ٱلنَّاسَ بِغَيۡرِ عِلۡمٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 164
(144) और इसी तरह दो ऊँट की जाति से हैं और दो गाय की जाति से पूछो, इनके नर अल्लाह ने हराम किए हैं या मादा, या वे बच्चे जो ऊँटनी और गाय के पेट में हो? क्या तुम उस समय हाज़िर थे जब अल्लाह ने इनके हराम होने का आदेश तुम्हें दिया था? फिर उस व्यक्ति से बढ़कर ज़ालिम और कौन होगा जो अल्लाह से जोड़कर झूठी बात कहे ताकि ज्ञान के बिना लोगों का ग़लत मार्गदर्शन करे। यक़ीनन अल्लाह ऐसे ज़ालिमों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।