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سُورَةُ الجَاثِيَةِ

45. अल-जासिया

(मक्का में उतरी, आयतें 37)

परिचय

नाम

आयत 28 के वाक्यांश ‘व तरा कुल-ल उम्मतिन जासिया' अर्थात् “उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा (जासिया) देखोगे,” से लिया गया है। मतलब यह है कि यह वह सूरा है जिसमें शब्द 'जासिया’ आया है।

उतरने का समय

इसकी विषय-वस्तुओं से साफ़ महसूस होता है कि यह सूरा-44 अद-दुखान के बाद निकटवर्ती समय में उतरी है। इन दोनों सूरतों की विषय-वस्तुओं में ऐसी एकरूपता पाई जाती है कि जिससे ये दोनों सूरतें जुड़वाँ महसूस होती हैं।

विषय और वार्ता

इसका विषय तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत (परलोकवाद) के बारे में मक्का के इस्लाम-विरोधियों के सन्देहों और आपत्तियों का उत्तर देना और [उनके विरोधात्मक] रवैये पर उनको सचेत करना है। वार्ता की शुरुआत एकेश्वरवाद के प्रमाणों से की गई है। इस सिलसिले में इंसान के अपने अस्तित्त्व से लेकर ज़मीन और आसमान तक हर ओर फैली हुई अनगिनत निशानियों की ओर संकेत करके बताया गया है कि तुम जिधर भी दृष्टि उठाकर देखो, हर चीज़ उसी तौहीद की गवाही दे रही है जिसे मानने से तुम इंकार कर रहे हो। आगे चलकर आयत 12-13 में फिर कहा गया है कि इंसान इस दुनिया में जितनी चीज़ों से काम ले रहा है और जो अनगिनत चीज़ें और शक्तियाँ इस जगत् में उसके हित में सेवारत हैं [वे सब की सब एक ख़ुदा की दी हुई और वशीभूत की हुई हैं]। कोई व्यक्ति सही सोच-विचार से काम ले तो उसकी अपनी बुद्धि ही पुकार उठेगी कि वही अल्लाह इंसान का उपकारी है और उसी का यह अधिकार है कि इंसान उसका आभारी हो। इसके बाद मक्का के इस्लाम-विरोधियों की उस हठधर्मी, घमंड, उपहास और कुफ़्र के लिए दुराग्रह पर कड़ी निंदा की गई है जिससे वे क़ुरआन की दावत (आह्वान) का मुक़ाबला कर रहे थे, और उन्हें सचेत किया गया है कि यह क़ुरआन [एक बहुत बड़ी नेमत (वरदान) है, इसे रद्द कर देने का अंजाम अत्यन्त विनाशकारी होगा] । इसी सम्बन्ध में अल्लाह के रसूल (सल्ल०) की पैरवी करनेवालों को आदेश दिया गया है कि ये अल्लाह से निडर लोग तुम्हारे साथ जो दुर्व्यवहार कर रहे हैं, उनपर क्षमा और सहनशीलता से काम लो। तुम धैर्य से काम लोगे तो अल्लाह ख़ुद उनसे निपटेगा और तुम्हें इस धैर्य का पुरस्कार देगा। फिर आख़िरत के अक़ीदे (धारणा) के बारे में इस्लाम-विरोधियों के अज्ञानपूर्ण विचारों की समीक्षा की गई है और उनके इस दावे के खंडन में कि मरने के बाद फिर कोई दूसरी जिंदगी नहीं है, अल्लाह ने निरन्तर कुछ प्रमाण दिए हैं। ये प्रमाण देने के बाद अल्लाह पूरे ज़ोर के साथ कहता है कि जिस तरह तुम आप से आप ज़िन्दा नहीं हो गए हो, बल्कि हमारे ज़िन्दा करने से ज़िन्दा हुए हो, इसी तरह तुम आप से आप नहीं मर जाते, बल्कि हमारे मौत देने से मरते हो, और एक वक़्त निश्चित रूप से ऐसा आना है, जब तुम सब एक ही समय में जमा किए जाओगे। जब वह समय आ जाएगा तो तुम स्वयं ही अपनी आँखों से देख लोगे कि अपने ख़ुदा के सामने पेश हो और तुम्हारा पूरा आमाल-नामा (कर्मपत्र) बिना घटाए-बढ़ाए तैयार है जो तुम्हारे एक-एक करतूत की गवाही दे रहा है। उस समय तुमको मालूम हो जाएगा कि आख़िरत के अक़ीदे (धारणा) का यह इंकार और उसका यह मज़ाक़ जो तुम उड़ा रहे हो, तुम्हें कितना महँगा पड़ा है।

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سُورَةُ الجَاثِيَةِ
45. अल-जासिया
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
حمٓ
(1) हा० मीम०।
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ ۝ 1
(2) इस किताब का अवतरण अल्लाह की ओर से है जो प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी है।
إِنَّ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ لَأٓيَٰتٖ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 2
(3) वस्तविकता यह है कि आसमानों और ज़मीन में अगणित निशानियाँ है ईमान लानेवालों के लिए।
وَفِي خَلۡقِكُمۡ وَمَا يَبُثُّ مِن دَآبَّةٍ ءَايَٰتٞ لِّقَوۡمٖ يُوقِنُونَ ۝ 3
(4) और तुम्हारी अपनी पैदाइश में, और उन जानवरों में जिनको अल्लाह (ज़मीन में) फैला रहा है, बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो विश्वास करनेवाले हैं।
وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مِن رِّزۡقٖ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَتَصۡرِيفِ ٱلرِّيَٰحِ ءَايَٰتٞ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ ۝ 4
(5) और रात और दिन के अन्तर और विभेद में, और उस आजीविका में जिसे अल्लाह आसमान से उतारता है फिर उसके द्वारा मुर्दा ज़मीन को जिला उठाता है, और हवाओं की गर्दिश में बहुत-सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो बुद्धि से काम लेते हैं।
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۖ فَبِأَيِّ حَدِيثِۭ بَعۡدَ ٱللَّهِ وَءَايَٰتِهِۦ يُؤۡمِنُونَ ۝ 5
(6) ये अल्लाह की निशानियाँ है जिन्हें हम तुम्हारे सामने ठीक-ठीक बयान कर रहे हैं। अब आख़िर अल्लाह और उसकी आयतों के बाद और कौन-सी बात है जिसपर ये लोग ईमान लाएँगे।
وَيۡلٞ لِّكُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٖ ۝ 6
(7) तबाही है हर उस झूठे बुरे कर्मवाले व्यक्ति के लिए
يَسۡمَعُ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِ ثُمَّ يُصِرُّ مُسۡتَكۡبِرٗا كَأَن لَّمۡ يَسۡمَعۡهَاۖ فَبَشِّرۡهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٖ ۝ 7
(8) जिसके सामने अल्लाह की आयतें पढ़ी जाती हैं, और वह उनको सुनता है, फिर पूरे गर्व के साथ अपने इनकार पर इस तरह अड़ा रहता है कि मानो उसने उनको सुना ही नहीं। ऐसे व्यक्ति को दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो।
وَإِذَا عَلِمَ مِنۡ ءَايَٰتِنَا شَيۡـًٔا ٱتَّخَذَهَا هُزُوًاۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ ۝ 8
(9) हमारी आयतों में से कोई बात जब वह जान लेता है तो वह उनकी हँसी उड़ाता है। ऐसे सब लोगों के लिए रुसवाई है।
مِّن وَرَآئِهِمۡ جَهَنَّمُۖ وَلَا يُغۡنِي عَنۡهُم مَّا كَسَبُواْ شَيۡـٔٗا وَلَا مَا ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَوۡلِيَآءَۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٌ ۝ 9
(10) उनके आगे जहन्नम है जो कुछ भी उन्होंने दुनिया में कमाया है उसमें से कोई चीज़़ उनके किसी काम न आएगी, न उनके वे संरक्षक ही उनके लिए कुछ कर सकेंगे जिन्हें अल्लाह को छोड़कर उन्होंने अपना आत्मीय (वली) बना रखा है। उनके लिए बड़ा अज़ाब है।
هَٰذَا هُدٗىۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ لَهُمۡ عَذَابٞ مِّن رِّجۡزٍ أَلِيمٌ ۝ 10
(11) यह क़ुरआन सर्वथा मार्गदर्शन है और उन लोगों के लिए बड़ा ही दर्दनाक अज़ाब है जिन्होंने अपने रब की आयतों को मानने से इनकार किया।
۞ٱللَّهُ ٱلَّذِي سَخَّرَ لَكُمُ ٱلۡبَحۡرَ لِتَجۡرِيَ ٱلۡفُلۡكُ فِيهِ بِأَمۡرِهِۦ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ ۝ 11
(12) वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए समुद्र को वशीभूत किया, ताकि उसके आदेश से नौकाएँ उसमें चलें और तुम उसका अनुग्रह तलाश करो और कृतज्ञ हो।
وَسَخَّرَ لَكُم مَّا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا مِّنۡهُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ ۝ 12
(13) उसने ज़मीन और आसमानों की सारी ही चीज़़ों को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया, सब कुछ अपने पास से1— इसमें बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करनेवाले हैं।
1. इसके दो अर्थ हैं। एक यह कि अल्लाह की यह देन दुनिया के सम्राटों की-सी देन नहीं है जो प्रजा से प्राप्त किया हुआ घन प्रजा ही में से कुछ लोगों को दे देते हैं, बल्कि जगत् की ये सारी नेमतें अल्लाह की अपनी पैदा की हुई हैं और उसने अपनी ओर से ये इनसान को प्रदान की हैं। दूसरे यह कि न इन नेमतों के पैदा करने में कोई अल्लाह का शरीक है न इन्हें इनसान के लिए वशीभूत करने में किसी और हस्ती का कोई हाथ। अकेला अल्लाह ही उनका स्रष्टा है और उसी ने अपनी ओर से उन्हें इनसान को प्रदान किया है।
قُل لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ يَغۡفِرُواْ لِلَّذِينَ لَا يَرۡجُونَ أَيَّامَ ٱللَّهِ لِيَجۡزِيَ قَوۡمَۢا بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ ۝ 13
(14) ऐ नबी, ईमान लानेवालों से कह दो कि जो लोग अल्लाह की ओर से बुरे दिन आने की कोई आशंका नहीं रखते, उनकी हरकतों पर क्षमा से काम ले ताकि अल्लाह ख़ुद एक गिरोह को उसकी कमाई का बदला दे।
مَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَآءَ فَعَلَيۡهَاۖ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ تُرۡجَعُونَ ۝ 14
(15) जो कोई अच्छा कर्म करेगा अपने ही लिए करेगा, और जो बुराई करेगा वह ख़ुद ही उसकी सज़ा भुगतेगा। फिर जाना तो सबको अपने रब ही की ओर है।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحُكۡمَ وَٱلنُّبُوَّةَ وَرَزَقۡنَٰهُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَفَضَّلۡنَٰهُمۡ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 15
(16) इससे पहले इसराईल की सन्तान को हमने किताब और हुक्म (समझ और निणर्य-शक्ति) और नुबूवत (पैग़म्बरी) प्रदान की थी। उनको हमने अच्छी जीवन-सामग्री दी, दुनिया भर के लोगों पर उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की
وَءَاتَيۡنَٰهُم بَيِّنَٰتٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِۖ فَمَا ٱخۡتَلَفُوٓاْ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۚ إِنَّ رَبَّكَ يَقۡضِي بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 16
(17) और धर्म के विषय में उन्हें स्पष्ट आदेश दे दिए। फिर जो विभेद उनके बीच प्रकट हुआ वह (अज्ञान के कारण से नहीं बल्कि ज्ञान आ जाने के बाद हुआ और इस कारण हुआ कि वे परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करना चाहते थे। अल्लाह क़ियामत के दिन उन मामलों का फ़ैसला कर देगा जिनमें वे विभेद करते रहे हैं।
ثُمَّ جَعَلۡنَٰكَ عَلَىٰ شَرِيعَةٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ فَٱتَّبِعۡهَا وَلَا تَتَّبِعۡ أَهۡوَآءَ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 17
(18) इसके बाद अब ऐ नबी, हमने तुमको धर्म के मामले में एक खुले मार्ग (शरीअत) पर क़ायम किया है। अत: तुम उसी पर चलो और उन लोगों की इच्छाओं का अनुपालन न करो जो ज्ञान नहीं रखते।
إِنَّهُمۡ لَن يُغۡنُواْ عَنكَ مِنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۚ وَإِنَّ ٱلظَّٰلِمِينَ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٖۖ وَٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلۡمُتَّقِينَ ۝ 18
(19) अल्लाह के मुक़ाबले में वे तुम्हारे कुछ भी काम नहीं आ सकते।2 ज़ालिम लोग एक दूसरे के साथी हैं, और डर रखनेवालों का साथी अल्लाह है।
2. अर्थात् अगर तुम उन्हें राज़ी करने के लिए ईश्वरीय धर्म में किसी तरह का परिवर्तन करोगे तो अल्लाह की पकड़ से वे तुम्हें न बचा सकेंगे।
هَٰذَا بَصَٰٓئِرُ لِلنَّاسِ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٞ لِّقَوۡمٖ يُوقِنُونَ ۝ 19
(20) ये सूझ की रौशनियाँ है सब लोगों के लिए और मार्गदर्शन और दयालुता उन लोगों के लिए जो विश्वास करें।
أَمۡ حَسِبَ ٱلَّذِينَ ٱجۡتَرَحُواْ ٱلسَّيِّـَٔاتِ أَن نَّجۡعَلَهُمۡ كَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَوَآءٗ مَّحۡيَاهُمۡ وَمَمَاتُهُمۡۚ سَآءَ مَا يَحۡكُمُونَ ۝ 20
(21) क्या वे लोग जिन्होंने बुराइयाँ की हैं, यह समझे बैठे हैं कि हम उन्हें और ईमान लानेवालों और अच्छे कर्म करनेवालों को एक जैसा कर देंगे कि उनका जीना और मरना समान हो जाए? बहुत बुरे हुक्म हैं जो ये लोग लगाते हैं।
وَخَلَقَ ٱللَّهُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّ وَلِتُجۡزَىٰ كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ ۝ 21
(22) अल्लाह ने तो आसमानों और ज़मीन को हक़ के साथ पैदा किया और इस लिए किया है कि प्रत्येक प्राणी को उसकी कमाई का बदला दिया जाए। लोगों पर ज़ुल्म हरगिज़ न किया जाएगा।
أَفَرَءَيۡتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَٰهَهُۥ هَوَىٰهُ وَأَضَلَّهُ ٱللَّهُ عَلَىٰ عِلۡمٖ وَخَتَمَ عَلَىٰ سَمۡعِهِۦ وَقَلۡبِهِۦ وَجَعَلَ عَلَىٰ بَصَرِهِۦ غِشَٰوَةٗ فَمَن يَهۡدِيهِ مِنۢ بَعۡدِ ٱللَّهِۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ۝ 22
(23) फिर क्या तुमने कभी उस व्यक्ति की हालत पर भी विचार किया जिसने अपने मन की इच्छा को अपना ख़ुदा बना लिया और अल्लाह ने ज्ञान के होते हुए3 उसे गुमराही में फेंक दिया और उसके दिल और कानों पर ठप्पा लगा दिया और उसकी आँखों पर परदा डाल दिया? अल्लाह के बाद अब और कौन है जो उसे मार्ग दिखाए? क्या तुम लोग कोई शिक्षा ग्रहण नहीं करते?
3. मूल शब्द है: “अज़ल्लहुल्लाहु अला इल्मिन”। एक अर्थ इन शब्दों का यह हो सकता है कि वह व्यक्ति ज्ञानी होने के बावजूद अल्लाह की ओर से गुमराही में फेंका गया, क्योंकि वह अपने मन को इच्छा का दास बन गया था। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि अल्लाह ने अपने इस ज्ञान के आधार पर कि वह अपने मन की इच्छा को अपना ख़ुदा बना बैठा है, उसे गुमराही में फेंक दिया।
وَقَالُواْ مَا هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا ٱلدُّنۡيَا نَمُوتُ وَنَحۡيَا وَمَا يُهۡلِكُنَآ إِلَّا ٱلدَّهۡرُۚ وَمَا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنۡ عِلۡمٍۖ إِنۡ هُمۡ إِلَّا يَظُنُّونَ ۝ 23
(24) ये लोग कहते हैं कि “ज़िन्दगी बस यही हमारी दुनिया की ज़िन्दगी है, यही हमारा मरना और जीना है और दिनों की गर्दिश के सिवा कोई चीज़ नहीं जो हमें विनष्ट करती हो।” वास्तव में इस मामले में इनके पास कोई ज्ञान नहीं है। ये सिर्फ़ अटकल के आधार पर ये बातें करते हैं।
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ مَّا كَانَ حُجَّتَهُمۡ إِلَّآ أَن قَالُواْ ٱئۡتُواْ بِـَٔابَآئِنَآ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 24
(25) और जब हमारी स्पष्ट आयतें इन्हें सुनाई जाती हैं तो इनके पास कोई तर्क इसके सिवा नहीं होता कि उठा लाओ हमारे बाप-दादा को अगर तुम सच्चे हो।
قُلِ ٱللَّهُ يُحۡيِيكُمۡ ثُمَّ يُمِيتُكُمۡ ثُمَّ يَجۡمَعُكُمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا رَيۡبَ فِيهِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 25
(26) ऐ नबी, इनसे कहो, अल्लाह ही तुम्हें ज़िन्दगी प्रदान करता है, फिर वही तुम्हें मौत देता है, फिर वही तुमको उस क़ियामत के दिन इकट्ठा करेगा जिसके आने में कोई शक नहीं, मगर अधिकतर लोग जानते नहीं हैं।
وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَيَوۡمَ تَقُومُ ٱلسَّاعَةُ يَوۡمَئِذٖ يَخۡسَرُ ٱلۡمُبۡطِلُونَ ۝ 26
(27) ज़मीन और आसमानों का राज (बादशाही) अल्लाह ही का है, और जिस दिन क़ियामत की घड़ी आ खड़ी होगी उस दिन झूठवाले घाटे में पड़ जाएँगे।
وَتَرَىٰ كُلَّ أُمَّةٖ جَاثِيَةٗۚ كُلُّ أُمَّةٖ تُدۡعَىٰٓ إِلَىٰ كِتَٰبِهَا ٱلۡيَوۡمَ تُجۡزَوۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 27
(28) उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा देखोगे। हर गिरोह को पुकारा जाएगा आए और अपना कर्मपत्र देखे। उनसे कहा जाएगा: “आज तुम लोगों को उन कर्मों का बदला जो तुम करते रहे थे।
هَٰذَا كِتَٰبُنَا يَنطِقُ عَلَيۡكُم بِٱلۡحَقِّۚ إِنَّا كُنَّا نَسۡتَنسِخُ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 28
(29) यह हमारा तैयार कराया हुआ कर्मपत्र है जो तुम्हारे ऊपर ठीक-ठीक गवाही दे रहा है, जो कुछ भी तुम करते थे उसे हम लिखवाते जा रहे थे।”
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَيُدۡخِلُهُمۡ رَبُّهُمۡ فِي رَحۡمَتِهِۦۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 29
(30) फिर जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे कर्म करते रहे थे उन्हें उनका रब अपनी दयालुता में दाख़िल करेगा और यही खुली सफलता है।
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَفَلَمۡ تَكُنۡ ءَايَٰتِي تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡ وَكُنتُمۡ قَوۡمٗا مُّجۡرِمِينَ ۝ 30
(31) और जिन लोगों ने इनकार किया था (उनसे कहा जाएगा), “क्या मेरी आयतें तुमको नहीं सुनाई जाती थीं? मगर तुमने घमंड किया और अपराधी बन कर रहे।
وَإِذَا قِيلَ إِنَّ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٞ وَٱلسَّاعَةُ لَا رَيۡبَ فِيهَا قُلۡتُم مَّا نَدۡرِي مَا ٱلسَّاعَةُ إِن نَّظُنُّ إِلَّا ظَنّٗا وَمَا نَحۡنُ بِمُسۡتَيۡقِنِينَ ۝ 31
(32) और जब कहा जाता था कि अल्लाह का वादा सच्चा है और क़ियामत के आने में कोई शक नहीं, तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते क़ियामत क्या होती है, हम तो बस एक गुमान-सा रखते हैं, विश्वास हमको नहीं है।”
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا عَمِلُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 32
(33) उस समय उनपर उनके कर्मों की बुराइयाँ खुल जाएँगी और वे उसी चीज़ के फेर में आ जाएँगे जिसकी वे हँसी उड़ाया करते थे।
وَقِيلَ ٱلۡيَوۡمَ نَنسَىٰكُمۡ كَمَا نَسِيتُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَا وَمَأۡوَىٰكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّٰصِرِينَ ۝ 33
(34) और उनसे कह दिया जाएगा कि “आज हम भी उसी तरह तुम्हें भुलाए देते हैं जिस तरह तुम इस दिन की भेंट को भूल गए थे। तुम्हारा ठिकाना अब दोज़ख है और कोई तुम्हारी सहायता करनेवाला नहीं है।
ذَٰلِكُم بِأَنَّكُمُ ٱتَّخَذۡتُمۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ هُزُوٗا وَغَرَّتۡكُمُ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَاۚ فَٱلۡيَوۡمَ لَا يُخۡرَجُونَ مِنۡهَا وَلَا هُمۡ يُسۡتَعۡتَبُونَ ۝ 34
(35) यह तुम्हारा परिणाम इसलिए हुआ है कि तुमने अल्लाह की आयतों का मज़ाक़ बना लिया था और तुम्हें दुनिया की ज़िन्दगी ने धोखे में डाल दिया था। अतः आज न ये लोग दोज़ख़ से निकाले जाएँगे और न इनसे कहा जाएगा कि माफ़ी माँगकर अपने रब को राज़ी करो।"4
4. यह अन्तिम वाक्य इस रूप में है जैसे कोई मालिक अपने कुछ सेवकों को डाँटने के बाद दूसरों को सम्बोधित करके कहता है कि अच्छा, अब इन नालायक़ों की यह सज़ा है।
فَلِلَّهِ ٱلۡحَمۡدُ رَبِّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَرَبِّ ٱلۡأَرۡضِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 35
(36) अतः प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो ज़मीन और आसमानों का मालिक, जहानवालों का पालनकर्त्ता है।
وَلَهُ ٱلۡكِبۡرِيَآءُ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 36
(37) ज़मीन और आसमानों में बड़ाई उसी के लिए है प्रभुत्वशाली और तत्त्वदर्शी है।