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سُورَةُ الفُرۡقَانِ

25. अल-फ़ुरक़ान 

(मक्का में उतरी-आयतें 77)

परिचय

नाम

पहली ही आयत 'त बा-र-कल्लज़ी नज़्ज़-लल फ़ुर-क़ान' अर्थात् 'बहुत ही बरकतवाला है वह, जिसने यह फ़ुरक़ान (कसौटी) अवतरित किया' से लिया गया है। यह भी क़ुरआन की अधिकतर सूरतों के नामों की तरह पहचान के रूप में है, न कि विषय के शीर्षक के रूप में। फिर भी इस सूरा के विषय में यह नाम क़रीबी लगाव रखता है, जैसा कि आगे चलकर मालूम होगा।

उतरने का समय

वर्णन-शैली और विषय पर विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि इसके उतरने का समय भी वही है जो सूरा-23 मोमिनून आदि का है, अर्थात् मक्का निवास का मध्यकाल।

विषय और वार्ताएँ

इसमें उन सन्देहों और आपत्तियों पर वार्ता की गई है जो क़ुरआन और मुहम्मद (सल्ल०) की नुबूवत और आपकी पेश की हुई शिक्षा पर मक्का के विधर्मियों की ओर से की जाती थीं। उनमें से एक-एक का जंचा-तुला उत्तर दिया गया है और साथ-साथ सत्य सन्देश से मुंँह मोड़ने के दुष्परिणाम भी स्पष्ट शब्दों में बताए गए हैं। अन्त में सूरा-23 मोमिनून की तरह ईमानवालों के नैतिक गुणों का एक चित्र खींचकर आम लोगों के सामने रख दिया गया है कि इस कसौटी पर कस कर देख लो, कौन खोटा है और कौन खरा है। एक ओर इस चरित्र एवं आचरण के लोग हैं जो मुहम्मद (सल्ल०) की शिक्षा से अब तक तैयार हुए है और आगे तैयार करने की कोशिश हो रही है। दूसरी ओर नैतिकता का वह नमूना है जो आम अरबो में पाया जाता है और जिसे बाक़ी रखने के लिए अज्ञानता के ध्वजावाहक एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। अब स्वयं फ़ैसला करो कि इन दोनों नमूनों में से किसे पसन्द करते हो? यह एक सांकेतिक प्रश्‍न था जो अरब के हर वासी के सामने रख दिया गया और कुछ साल के भीतर एक छोटी सी तादाद को छोड़कर सारी क़ौम ने इसका जो उत्तर दिया वह समय की किताब में लिखा जा चुका है।

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سُورَةُ الفُرۡقَانِ
25. अल-फ़ुरक़ान
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
تَبَارَكَ ٱلَّذِي نَزَّلَ ٱلۡفُرۡقَانَ عَلَىٰ عَبۡدِهِۦ لِيَكُونَ لِلۡعَٰلَمِينَ نَذِيرًا
(1) बहुत ही बरकतवाला है वह जिसने यह फ़ुरक़ान (कसौटी) अपने बन्दे पर अवतरित किया ताकि सारे जहानवालों के लिए सावधान कर देनेवाला हो
ٱلَّذِي لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَمۡ يَتَّخِذۡ وَلَدٗا وَلَمۡ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٞ فِي ٱلۡمُلۡكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَيۡءٖ فَقَدَّرَهُۥ تَقۡدِيرٗا ۝ 1
(2) — वह जो ज़मीन और आसमानों के राज का स्वामी है, जिसने किसी को बेटा नहीं बनाया है, जिसके साथ राज में कोई साझी नहीं है, जिसने हर चीज़ को पैदा किया फिर उसका एक अन्दाज़ा ठहराया।
وَٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةٗ لَّا يَخۡلُقُونَ شَيۡـٔٗا وَهُمۡ يُخۡلَقُونَ وَلَا يَمۡلِكُونَ لِأَنفُسِهِمۡ ضَرّٗا وَلَا نَفۡعٗا وَلَا يَمۡلِكُونَ مَوۡتٗا وَلَا حَيَوٰةٗ وَلَا نُشُورٗا ۝ 2
(3) लोगों ने उसे छोड़कर ऐसे पूज्य बना लिए जो किसी चीज़़ को पैदा नहीं करते, बल्कि ख़ुद पैदा किए जाते हैं, जो ख़ुद अपने लिए भी किसी लाभ या हानि का अधिकार नहीं रखते, जो न मार सकते हैं, न ज़िन्दा रख सकते हैं, न मरे हुए को फिर उठा सकते हैं।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ إِفۡكٌ ٱفۡتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَيۡهِ قَوۡمٌ ءَاخَرُونَۖ فَقَدۡ جَآءُو ظُلۡمٗا وَزُورٗا ۝ 3
(4) जिन लोगों ने नबी की बात मानने से इनकार कर दिया है वे कहते हैं कि “यह फ़ुरक़ान (कसौटी) एक मनगढ़न्त चीज़ है जिसे इस व्यक्ति ने आप ही गढ़ लिया है और कुछ दूसरे लोगों ने इस काम में इसकी मदद की है।” बड़ा ज़ुल्म और सख़्त झूठ है जिसपर ये लोग उतर आए हैं।
وَقَالُوٓاْ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ٱكۡتَتَبَهَا فَهِيَ تُمۡلَىٰ عَلَيۡهِ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلٗا ۝ 4
(5) कहते हैं, “ये पुराने लोगों की लिखी हुई चीज़़ें हैं जिन्हें यह व्यक्ति नक़्ल कराता है और वे इसे सुबह व शाम सुनाई जाती है।”
قُلۡ أَنزَلَهُ ٱلَّذِي يَعۡلَمُ ٱلسِّرَّ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا ۝ 5
(6) ऐ नबी, उनसे कह दो कि “इसे अवतरित किया है उसने जो ज़मीन और आसमानों का भेद जानता है।” वास्तव में वह बड़ा क्षमाशील और दयावान है।
وَقَالُواْ مَالِ هَٰذَا ٱلرَّسُولِ يَأۡكُلُ ٱلطَّعَامَ وَيَمۡشِي فِي ٱلۡأَسۡوَاقِ لَوۡلَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مَلَكٞ فَيَكُونَ مَعَهُۥ نَذِيرًا ۝ 6
(7) कहते हैं, “यह कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है? क्यों न इसके पास कोई फ़रिश्ता भेजा गया जो इसके साथ रहता और (न माननेवालों को) धमकाता?
أَوۡ يُلۡقَىٰٓ إِلَيۡهِ كَنزٌ أَوۡ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةٞ يَأۡكُلُ مِنۡهَاۚ وَقَالَ ٱلظَّٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلٗا مَّسۡحُورًا ۝ 7
(8) या और कुछ नहीं तो इसके लिए कोई ख़ज़ाना ही उतार दिया जाता, या इसके पास कोई बाग़ ही होता जिससे यह (निश्चिन्त होकर) रोज़ी प्राप्त करता।” और ये ज़ालिम कहते हैं, “तुम लोग तो एक जादू के मारे हुए आदमी के पीछे लग गए हो।”
ٱنظُرۡ كَيۡفَ ضَرَبُواْ لَكَ ٱلۡأَمۡثَٰلَ فَضَلُّواْ فَلَا يَسۡتَطِيعُونَ سَبِيلٗا ۝ 8
(9) देखो, कैसे-कैसे तर्क ये लोग तुम्हारे आगे प्रस्तुत कर रहे हैं, ऐसे बहके हैं कि कोई ठिकाने की बात इनको नहीं सूझती।
تَبَارَكَ ٱلَّذِيٓ إِن شَآءَ جَعَلَ لَكَ خَيۡرٗا مِّن ذَٰلِكَ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ وَيَجۡعَل لَّكَ قُصُورَۢا ۝ 9
(10) बड़ी बरकतवाला है वह जो अगर चाहे तो उनकी प्रस्तावित चीज़़ों से भी ज़्यादा बढ़-चढ़कर तुमको दे सकता है, (एक नहीं) बहुत से बाग़ जिनके नीचे नहरें बहती हों, और बड़े-बड़े महल।
بَلۡ كَذَّبُواْ بِٱلسَّاعَةِۖ وَأَعۡتَدۡنَا لِمَن كَذَّبَ بِٱلسَّاعَةِ سَعِيرًا ۝ 10
(11) वास्तविक बात यह है कि ये लोग “उस घड़ी” को झुठला चुके हैं1 — और जो उस घड़ी को झुठलाए उसके लिए हमने भड़कती हुई आग जुटा रखी है।
1. अर्थात् क़ियामत को।
إِذَا رَأَتۡهُم مِّن مَّكَانِۭ بَعِيدٖ سَمِعُواْ لَهَا تَغَيُّظٗا وَزَفِيرٗا ۝ 11
(12) वह जब दूर से इनको देखेगी को तो ये उसके प्रकोप और जोश की आवाज़ें सुन लेंगे।
وَإِذَآ أُلۡقُواْ مِنۡهَا مَكَانٗا ضَيِّقٗا مُّقَرَّنِينَ دَعَوۡاْ هُنَالِكَ ثُبُورٗا ۝ 12
(13) और जब ये हाथ-पाँव बँधे उसमें एक तंग जगह ठूँसे जाएँगे तो अपनी मौत को पुकारने लगेंगे,
لَّا تَدۡعُواْ ٱلۡيَوۡمَ ثُبُورٗا وَٰحِدٗا وَٱدۡعُواْ ثُبُورٗا كَثِيرٗا ۝ 13
(14) (उस समय उनसे कहा जाएगा) आज एक मौत को नहीं बहुत-सी मौतों को पुकारो।
قُلۡ أَذَٰلِكَ خَيۡرٌ أَمۡ جَنَّةُ ٱلۡخُلۡدِ ٱلَّتِي وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۚ كَانَتۡ لَهُمۡ جَزَآءٗ وَمَصِيرٗا ۝ 14
(15) इनसे पूछो यह परिणाम अच्छा है या वह शाश्वत जन्नत (स्वर्ग) जिसका वादा अल्लाह से डरनेवाले परहेज़गारों से किया गया है जो उनके कर्म का बदला और उनके सफ़र की अन्तिम मंज़िल होगी,
لَّهُمۡ فِيهَا مَا يَشَآءُونَ خَٰلِدِينَۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ وَعۡدٗا مَّسۡـُٔولٗا ۝ 15
(16) जिसमें उनकी हर इच्छा पूरी होगी, जिसमें वे हमेशा-हमेशा रहेंगे, जिसका प्रदान करना तुम्हारे रब के ज़िम्मे एक ऐसा वादा है जिसका पूरा करना अनिवार्य है।
وَيَوۡمَ يَحۡشُرُهُمۡ وَمَا يَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَيَقُولُ ءَأَنتُمۡ أَضۡلَلۡتُمۡ عِبَادِي هَٰٓؤُلَآءِ أَمۡ هُمۡ ضَلُّواْ ٱلسَّبِيلَ ۝ 16
(17) और वही दिन होगा जबकि (तुम्हारा रब) इन लोगों को भी घेर लाएगा और इनके उन पूज्यों को भी बुला लेगा जिन्हें आज ये अल्लाह को छोड़कर पूज रहे हैं, फिर वह उनसे पूछेगा, “क्या तुमने मेरे इन बन्दों को पथभ्रष्ट किया था? या ये ख़ुद समार्ग से भटक गए थे?”
قَالُواْ سُبۡحَٰنَكَ مَا كَانَ يَنۢبَغِي لَنَآ أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنۡ أَوۡلِيَآءَ وَلَٰكِن مَّتَّعۡتَهُمۡ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ نَسُواْ ٱلذِّكۡرَ وَكَانُواْ قَوۡمَۢا بُورٗا ۝ 17
(18) वे निवेदन करेंगे, “पाक है आपकी सत्ता, हमारी तो यह मजाल न थी कि आपके सिवा किसी को अपना संरक्षक (वली) बनाएँ। मगर आपने इनको और इनके बाप-दादा को भरपूर जीवन-सामग्री दी यहाँ तक कि ये शिक्षा भूल गए और दुर्भाग्यग्रस्त होकर रहे।”
فَقَدۡ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسۡتَطِيعُونَ صَرۡفٗا وَلَا نَصۡرٗاۚ وَمَن يَظۡلِم مِّنكُمۡ نُذِقۡهُ عَذَابٗا كَبِيرٗا ۝ 18
(19) यों झुठला देंगे वे (तुम्हारे पूज्य) तुम्हारी उन बातों को जो आज तुम कह रहे हो,2 फिर तुम न अपनी विपत्ति को टाल सकोगे न कहीं से मदद पा सकोगे और जो भी तुममें से ज़ुल्म करे उसे हम कठोर अज़ाब का मज़ा चखाएँगे।
2. विषय वस्तु से स्वतः व्यक्त हो रहा है कि इन आयतों में पूज्यों से मुराद मूर्तियाँ, या चाँद, सूरज आदि नहीं हैं, बल्कि फ़रिश्ते और अच्छे मनुष्य हैं जिनको दुनिया में पूज्य बना लिया गया था।
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ إِلَّآ إِنَّهُمۡ لَيَأۡكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَيَمۡشُونَ فِي ٱلۡأَسۡوَاقِۗ وَجَعَلۡنَا بَعۡضَكُمۡ لِبَعۡضٖ فِتۡنَةً أَتَصۡبِرُونَۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِيرٗا ۝ 19
(20) ऐ नबी, तुमसे पहले जो रसूल भी हमने भेजे थे वे सब भी खाना खानेवाले और बाज़ारों में चलने-फिरनेवाले लोग ही थे। वास्तव में हमने तुम लोगों को एक-दूसरे लिए आज़माइश का साधन बना दिया है।3 क्या तुम सब्र करते हो?4 तुम्हारा रब सब कुछ देखता है।
3. अर्थात् रसूल और ईमान वालों के लिए इनकार करनेवाले आज़माइश हैं और इनकार करनेवालों के लिए रसूल और ईमानवाले।
4. अर्थात् इस मसलहत को समझ लेने के बाद क्या अब तुमको सन्तोष हो गया कि आज़माइश की यह हालत भलाई के उस उद्देश्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है जिसके लिए तुम काम कर रहे हो? क्या अब तुम वे चोटें खाने पर राज़ी हो जो इस परीक्षा की अवधि में लगनी अवश्यंभावी हैं?
وَكَذَٰلِكَ جَعَلۡنَا لِكُلِّ نَبِيٍّ عَدُوّٗا مِّنَ ٱلۡمُجۡرِمِينَۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِيٗا وَنَصِيرٗا ۝ 20
(31) ऐ नबी, हमने तो इसी तरह अपराधियों को हर नबी का शत्रु बनाया है और तुम्हारे लिए तुम्हारा रब ही पथप्रदर्शन और मदद को काफ़ी है।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡلَا نُزِّلَ عَلَيۡهِ ٱلۡقُرۡءَانُ جُمۡلَةٗ وَٰحِدَةٗۚ كَذَٰلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِۦ فُؤَادَكَۖ وَرَتَّلۡنَٰهُ تَرۡتِيلٗا ۝ 21
(32) इनकार करनेवाले कहते हैं, “इस व्यक्ति पर सारा क़ुरआन एक समय में क्यों न उतार दिया गया? ” — हाँ ऐसा इसलिए किया गया है कि इसको अच्छी तरह हम तुम्हारे मन में बिठाते रहे और (इसी उद्देश्य से) हमने इसको एक विशेष क्रम के साथ अलग-अलग भागों का रूप दिया है
وَلَا يَأۡتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ وَأَحۡسَنَ تَفۡسِيرًا ۝ 22
(33) और (इसमें यह प्रयोजन भी है कि जब कभी वह तुम्हारे सामने कोई निराली बात (या विचित्र प्रश्न) लेकर आए, उसका ठीक उत्तर समय पर हमने तुम्हें दे दिया और उत्तम ढंग से बात खोल दी
ٱلَّذِينَ يُحۡشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُوْلَٰٓئِكَ شَرّٞ مَّكَانٗا وَأَضَلُّ سَبِيلٗا ۝ 23
(34) — जो लोग औंधे मुँह जहन्नम की ओर ढकेले जानेवाले हैं उनका ठिकाना बहुत बुरा है और उनकी राह बहुत ही ग़लत।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَجَعَلۡنَا مَعَهُۥٓ أَخَاهُ هَٰرُونَ وَزِيرٗا ۝ 24
(35) हमने मूसा को किताब दी5 और उसके साथ उसके भाई हारून को सहायक के रूप में लगाया
5. यहाँ किताब से मुराद संभवतः वह किताब नहीं है जो मिस्र से निकलने के बाद हज़रत मूसा (अलैहि०) को दो गई थी, बल्कि इससे मुराद वे आदेश हैं जो पैग़म्बरी के पद पर नियुक्त होने के समय से लेकर मिस्र से निकलने तक हज़रत मूसा (अलैहि०) को दिए जाते रहे हैं। उनमें वे भाषण भी सम्मिलित हैं जो अल्लाह के हुक्म से हज़रत मूसा (अलैहि०) ने फ़िरऔन के दरबार में दिए और वे आदेश भी सम्मिलित हैं जो फ़िरऔन के विरुद्ध प्रयास के बीच आपको दिए जाते रहे हैं। क़ुरआन मजीद में जगह-जगह इन चीज़़ों का उल्लेख है, मगर अधिक संभावना यह है कि ये चीज़़ें तौरात में शामिल नहीं की गईं। तौरात का आरंभ उन दस आदेशों से होता है जो निर्गमन के बाद तूरे-सीना पर पाषाण निर्मित लेखों के रूप में आपको दिए गए थे।
فَقُلۡنَا ٱذۡهَبَآ إِلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا فَدَمَّرۡنَٰهُمۡ تَدۡمِيرٗا ۝ 25
(36) और उनसे कहा कि जाओ उस क़ौम की ओर जिसने हमारी आयतों को झुठला दिया है। आख़िरकार उन लोगों को हमने तबाह करके रख दिया।
وَقَوۡمَ نُوحٖ لَّمَّا كَذَّبُواْ ٱلرُّسُلَ أَغۡرَقۡنَٰهُمۡ وَجَعَلۡنَٰهُمۡ لِلنَّاسِ ءَايَةٗۖ وَأَعۡتَدۡنَا لِلظَّٰلِمِينَ عَذَابًا أَلِيمٗا ۝ 26
(37) यही हाल नूह की क़ौमवालों का हुआ जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया। हमने उनको डुबो दिया और दुनिया-भर के लोगों के लिए एक शिक्षाप्रद निशान बना दिया और उन ज़ालिमों के लिए एक दर्दनाक अज़ाब हमने जुटा रखा है।
وَعَادٗا وَثَمُودَاْ وَأَصۡحَٰبَ ٱلرَّسِّ وَقُرُونَۢا بَيۡنَ ذَٰلِكَ كَثِيرٗا ۝ 27
(38) इसी तरह आद और समूद और अर-रसवाले6 और बीच की शताब्दियों के बहुत-से लोग तबाह किए गए।
6. 'रस्स' अरबी भाषा में पुराने या अन्धे कुएँ को कहते हैं। 'अर-रस्सवाले' वे लोग थे जिन्होंने अपने नबी को कुएँ में फेंककर या लटकाकर मार दिया था।
وَكُلّٗا ضَرَبۡنَا لَهُ ٱلۡأَمۡثَٰلَۖ وَكُلّٗا تَبَّرۡنَا تَتۡبِيرٗا ۝ 28
(39) उनमें से हर एक को हमने (पहले तबाह होनेवालों की) मिसाले दे-देकर समझाया और आख़िरकार हर एक को तबाह कर दिया।
وَلَقَدۡ أَتَوۡاْ عَلَى ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلَّتِيٓ أُمۡطِرَتۡ مَطَرَ ٱلسَّوۡءِۚ أَفَلَمۡ يَكُونُواْ يَرَوۡنَهَاۚ بَلۡ كَانُواْ لَا يَرۡجُونَ نُشُورٗا ۝ 29
(40) और उस बस्ती पर तो इनका गुज़र हो चुका है जिसपर अत्यन्त बुरी वर्षा बरसाई गई थी।7 क्या इन्होंने उसका हाल देखा न होगा? मगर ये मौत के बाद दूसरी ज़िन्दगी की आशा ही नहीं रखते।
7. अर्थात् लूत (अलैहि०) की जातिवालों को बस्ती। अत्यन्त बुरी वर्षा से मुराद पत्थरों को वर्षा है।
وَإِذَا رَأَوۡكَ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَٰذَا ٱلَّذِي بَعَثَ ٱللَّهُ رَسُولًا ۝ 30
(41) ये लोग जब तुम्हे देखते हैं तो तुम्हारा मज़ाक़ बना लेते हैं। (कहते हैं) “क्या यह व्यक्ति है जिसे अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है।?
إِن كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنۡ ءَالِهَتِنَا لَوۡلَآ أَن صَبَرۡنَا عَلَيۡهَاۚ وَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ حِينَ يَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ مَنۡ أَضَلُّ سَبِيلًا ۝ 31
(42) इसने तो हमें पथभ्रष्ट करके अपने पूज्यों से विमुख ही कर दिया होता अगर हम उनकी श्रद्धा पर जम न गए होते।” अच्छा, वह समय दूर नहीं है जब अज़ाब देखकर इन्हें ख़ुद मालूम हो जाएगा कि कौन गुमराही में दूर निकल गया था।
أَرَءَيۡتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَٰهَهُۥ هَوَىٰهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَيۡهِ وَكِيلًا ۝ 32
(43) कभी तुमने उस व्यक्ति की हालत पर विचार किया है जिसने अपने मन की इच्छा को अपना पूज्य बना लिया हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति को सीधे मार्ग पर लाने का ज़िम्मा ले सकते हो?
أَمۡ تَحۡسَبُ أَنَّ أَكۡثَرَهُمۡ يَسۡمَعُونَ أَوۡ يَعۡقِلُونَۚ إِنۡ هُمۡ إِلَّا كَٱلۡأَنۡعَٰمِ بَلۡ هُمۡ أَضَلُّ سَبِيلًا ۝ 33
(44) क्या तुम समझते हो कि उनमें से ज़्यादातर लोग सुनते और समझते हैं? ये तो जानवरों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी गए गुज़रे।
أَلَمۡ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَيۡفَ مَدَّ ٱلظِّلَّ وَلَوۡ شَآءَ لَجَعَلَهُۥ سَاكِنٗا ثُمَّ جَعَلۡنَا ٱلشَّمۡسَ عَلَيۡهِ دَلِيلٗا ۝ 34
(45) तुमने देखा नहीं कि तुम्हारा रब किस तरह छाया फैला देता है? अगर वह चाहता तो उसे स्थायी छाया बना देता। हमने सूरज को उसपर दलील बनाया,8
8. मल्लाहों की परिभाषा में दलील उस व्यक्ति को कहते हैं जो नावों को रास्ता दिखाता हो। छाया को सूरज पर दलील बनाने का अर्थ यह है कि छाया का फैलना और सिकुड़ना सूरज के चढ़ने और ढलने और उदय और अस्त होने के अधीन है।
ثُمَّ قَبَضۡنَٰهُ إِلَيۡنَا قَبۡضٗا يَسِيرٗا ۝ 35
(46) फिर (जैसे-जैसे सूरज उठता जाता है) हम उस छाया को धीरे-धीरे अपनी ओर समेटते चलते जाते हैं।9
9. अपनी ओर समेटने से मुराद विलुप्त और समाप्त करना है, क्योंकि हर चीज़़ जो समाप्त होती है वह अल्लाह हो की ओर पलटती है। हर चीज़ उसी की ओर से आती है और उसी की ओर जाती है।
وَهُوَ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ لِبَاسٗا وَٱلنَّوۡمَ سُبَاتٗا وَجَعَلَ ٱلنَّهَارَ نُشُورٗا ۝ 36
(47) और वह अल्लाह ही है जिसने रात को तुम्हारे लिए लिबास, और नींद को मौत की शान्ति, और दिन को जी उठने का समय बनाया।
وَهُوَ ٱلَّذِيٓ أَرۡسَلَ ٱلرِّيَٰحَ بُشۡرَۢا بَيۡنَ يَدَيۡ رَحۡمَتِهِۦۚ وَأَنزَلۡنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ طَهُورٗا ۝ 37
(48) और वही है जो अपनी दयालुता के आगे-आगे हवाओं को ख़ुशख़बरी बनाकर भेजता है। फिर आसमान से स्वच्छ पानी उतारता है,
لِّنُحۡـِۧيَ بِهِۦ بَلۡدَةٗ مَّيۡتٗا وَنُسۡقِيَهُۥ مِمَّا خَلَقۡنَآ أَنۡعَٰمٗا وَأَنَاسِيَّ كَثِيرٗا ۝ 38
(49) ताकि एक निर्जीव भूभाग को उसके द्वारा ज़िन्दगी प्रदान करे और अपनी सृष्टि में से बहुत-से जानवरों और इनसानों को सिंचित करे।
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَٰهُ بَيۡنَهُمۡ لِيَذَّكَّرُواْ فَأَبَىٰٓ أَكۡثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورٗا ۝ 39
(50) इस चमत्कार को हम बार-बार उनके सामने लाते हैं, ताकि वे कुछ शिक्षा लें, मगर ज़्यादातर लोग इनकार और नाशुक्री के सिवा अन्य नीति ग्रहण करने से इनकार कर देते हैं।
وَلَوۡ شِئۡنَا لَبَعَثۡنَا فِي كُلِّ قَرۡيَةٖ نَّذِيرٗا ۝ 40
(51) अगर हम चाहते तो एक-एक बस्ती में एक-एक सचेत करनेवाला उठा खड़ा करते।10
10. अर्थात् ऐसा करना हमारी सामर्थ्य से बाहर न था, चाहते तो जगह-जगह नबी पैदा कर सकते थे मगर हमने ऐसा नहीं किया और दुनिया भर के लिए एक ही नबी भेज दिया, जिस तरह एक सूरज सारे जहान के लिए काफ़ी हो रहा है, उसी तरह मार्गदर्शन का यह अकेला सूरज ही सारे जहानवालों के लिए काफ़ी है।
فَلَا تُطِعِ ٱلۡكَٰفِرِينَ وَجَٰهِدۡهُم بِهِۦ جِهَادٗا كَبِيرٗا ۝ 41
(52) अत: ऐ नबी, इनकार करनेवालों की बात हरगिज़ न मानो और इस क़ुरआन को लेकर उनके साथ भारी संघर्ष (जिहाद) करो।
۞وَهُوَ ٱلَّذِي مَرَجَ ٱلۡبَحۡرَيۡنِ هَٰذَا عَذۡبٞ فُرَاتٞ وَهَٰذَا مِلۡحٌ أُجَاجٞ وَجَعَلَ بَيۡنَهُمَا بَرۡزَخٗا وَحِجۡرٗا مَّحۡجُورٗا ۝ 42
(53) और वही है जिसने दो समुद्रों को मिला रखा है। एक स्वादिष्ट और मीठा दूसरा कड़ुआ और खारा। और दोनों के बीच एक परदा पड़ा है। एक रुकावट है जो उन्हें गड्डमड्ड होने से रोके हुए है।11
11. यह स्थिति हर उस स्थान पर देखने को मिलती है जहाँ कोई बड़ी नदी समुद्र में आकर गिरती है। इसके अलावा ख़ुद समुद्र में भी विभिन्न स्थानों पर मीठे पानी के स्रोत पाए जाते हैं जिनका पानी समुद्र के अत्यन्त खारे पानी के मध्य में अपनी मिठास पर क़ायम रहता है। उदाहरणार्थ बहरैन के निकट और फ़ारिस की खाड़ी में समुद्र की तलों से इस तरह के बहुत से स्रोत निकले हुए हैं जिनसे लोग मीठा पानी हासिल करते हैं।
وَهُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ مِنَ ٱلۡمَآءِ بَشَرٗا فَجَعَلَهُۥ نَسَبٗا وَصِهۡرٗاۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرٗا ۝ 43
(54) और वही है जिसने पानी से एक आदमी पैदा किया, फिर उससे वंश और ससुराल के दो अलग-अलग सिलसिले चलाए। तेरा रब बड़ा ही सामर्थ्यवान है।
وَيَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُهُمۡ وَلَا يَضُرُّهُمۡۗ وَكَانَ ٱلۡكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِۦ ظَهِيرٗا ۝ 44
(55) उस अल्लाह को छोड़कर लोग उनको पूज रहे हैं जो न उनको लाभ पहुँचा सकते हैं न हानि, और ऊपर से यह भी कि इनकार करनेवाला अपने रब के मुक़ाबले में हर विद्रोही का सहायक बना हुआ है।
وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ إِلَّا مُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا ۝ 45
(56) ऐ नबी, तुमको हमने बस एक ख़ुशख़बरी देनेवाला और सचेत करनेवाला बनाकर भेजा है।12
12. अर्थात् तुम्हारा काम न किसी ईमान लानेवाले को बदला देना है, न किसी इनकार करनेवाले को सज़ा देना। तुम किसी को ईमान की ओर खींच लाने और इनकार से ज़बरदस्ती रोक देने पर नियुक्त नहीं किए गए हो। तुम्हारी ज़िम्मेदारी इससे ज़्यादा कुछ नहीं कि जो सीधा मार्ग ग्रहण करे उसे अच्छे परिणाम की ख़ुशख़बरी दे दो, और जो अपनी पथभ्रष्टता पर जमा रहे उसको अल्लाह की पकड़ से डरा दो।
قُلۡ مَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍ إِلَّا مَن شَآءَ أَن يَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِيلٗا ۝ 46
(57) इनसे कह दो कि “मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता, मेरा बदला बस यही है कि जिसका जी चाहे वह अपने रब का मार्ग अपना ले।"
وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱلۡحَيِّ ٱلَّذِي لَا يَمُوتُ وَسَبِّحۡ بِحَمۡدِهِۦۚ وَكَفَىٰ بِهِۦ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرًا ۝ 47
(58) ऐ नबी, उस अल्लाह पर भरोसा रखो जो ज़िन्दा है और कभी मरनेवाला नहीं। उसकी प्रशंसा के साथ उसकी तसबीह करो। अपने बन्दों के गुनाहों से बस उसी का बाख़बर होना काफ़ी है।
ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٖ ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰ عَلَى ٱلۡعَرۡشِۖ ٱلرَّحۡمَٰنُ فَسۡـَٔلۡ بِهِۦ خَبِيرٗا ۝ 48
(59) वह जिसने छः दिनों में ज़मीन और आसमानों को और उन सारी चीज़़ों को बनाकर रख दिया जो आसमानों और ज़मीन के बीच हैं, फिर आप ही 'सिंहासन' पर विराजमान हुआ। रहमान (करुणामय ईश्वर), उसकी महिमा बस किसी जाननेवाले से पूछो।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱسۡجُدُواْۤ لِلرَّحۡمَٰنِ قَالُواْ وَمَا ٱلرَّحۡمَٰنُ أَنَسۡجُدُ لِمَا تَأۡمُرُنَا وَزَادَهُمۡ نُفُورٗا۩ ۝ 49
(60) उन लोगों से जब कहा जाता है कि उस रहमान (दयावान ईश्वर) को सजदा करो तो कहते हैं, “रहमान क्या होता है? क्या बस जिसे तू कह दे उसी को हम सजदा करते फिरें?” यह आमन्त्रण उनकी नफ़रत में उलटा और अभिवृद्धि कर देता है।
تَبَارَكَ ٱلَّذِي جَعَلَ فِي ٱلسَّمَآءِ بُرُوجٗا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَٰجٗا وَقَمَرٗا مُّنِيرٗا ۝ 50
(61) बड़ी बरकतवाला है वह जिसने आसमान में बुर्ज बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद प्रकाशमान किया।
وَهُوَ ٱلَّذِي جَعَلَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ خِلۡفَةٗ لِّمَنۡ أَرَادَ أَن يَذَّكَّرَ أَوۡ أَرَادَ شُكُورٗا ۝ 51
(62) वही है जिसने रात और दिन को एक दूसरे का स्थानापन्न बनाया, हर उस व्यक्ति के लिए जो शिक्षा लेनी चाहे, या कृतज्ञ होना चाहे।
وَعِبَادُ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلَّذِينَ يَمۡشُونَ عَلَى ٱلۡأَرۡضِ هَوۡنٗا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ ٱلۡجَٰهِلُونَ قَالُواْ سَلَٰمٗا ۝ 52
(63) रहमान के (वास्तविक) बन्दे वे हैं जो ज़मीन पर नर्म चाल चलते हैं13 और जाहिल उनके मुँह आएँ तो कह देते हैं कि तुमको सलाम।
13. अर्थात् घमण्ड के साथ अकड़ते और ऐंठते हुए नहीं चलते, अत्याचारियों और उपद्रवकारियों की तरह अपनी चाल से अपना ज़ोर प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं करते, बल्कि उनकी चाल एक सज्जन, सुशील और अच्छे स्वभाववाले व्यक्ति जैसी होती है।
وَٱلَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمۡ سُجَّدٗا وَقِيَٰمٗا ۝ 53
(64) जो अपने रब के आगे सजदे में और खड़े रातें गुज़ारते हैं।
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا ٱصۡرِفۡ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا ۝ 54
(65) जो दुआएँ करते हैं कि “ऐ हमारे रब, जहन्नम के अज़ाब से हमको बचा ले, उसका अज़ाब तो जान का लागू है,
إِنَّهَا سَآءَتۡ مُسۡتَقَرّٗا وَمُقَامٗا ۝ 55
(66) वह तो बड़ी ही बुरी ठहरने की जगह और स्थान है।”
وَٱلَّذِينَ إِذَآ أَنفَقُواْ لَمۡ يُسۡرِفُواْ وَلَمۡ يَقۡتُرُواْ وَكَانَ بَيۡنَ ذَٰلِكَ قَوَامٗا ۝ 56
(67) जो ख़र्च करते है तो न फ़ुज़ूलख़र्ची करते हैं और न कंजूसी से काम लेते हैं, बल्कि उनका ख़र्च दोनों सीमाओं के बीच सन्तुलन पर स्थिर रहता है।
وَٱلَّذِينَ لَا يَدۡعُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ وَلَا يَقۡتُلُونَ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِي حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَلَا يَزۡنُونَۚ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ يَلۡقَ أَثَامٗا ۝ 57
(68) जो अल्लाह के सिवा किसी और पूज्य को नही पुकारते, अल्लाह के वर्जित किए हुए किसी जीव का नाहक़ क़त्ल नहीं करते, और न व्यभिचार करते हैं—ये काम जो कोई करेगा वह अपने गुनाह का बदला पाएगा,
يُضَٰعَفۡ لَهُ ٱلۡعَذَابُ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَيَخۡلُدۡ فِيهِۦ مُهَانًا ۝ 58
(69) क़ियामत के दिन उसको बढ़ाकर अज़ाब दिया जाएगा और उसी में वह हमेशा अपमान सहित पड़ा रहेगा।
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ عَمَلٗا صَٰلِحٗا فَأُوْلَٰٓئِكَ يُبَدِّلُ ٱللَّهُ سَيِّـَٔاتِهِمۡ حَسَنَٰتٖۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا ۝ 59
(70) यह और बात है कि कोई (इन गुनाहों के बाद) तौबा कर चुका हो और ईमान लाकर अच्छा कर्म करने लगा हो। ऐसे लोगों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा और वह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।
وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَإِنَّهُۥ يَتُوبُ إِلَى ٱللَّهِ مَتَابٗا ۝ 60
(71) जो व्यक्ति तौबा करके अच्छा कर्म करता है वह तो अल्लाह की ओर पलट आता है जैसा कि पटलने का हक़ है
وَٱلَّذِينَ لَا يَشۡهَدُونَ ٱلزُّورَ وَإِذَا مَرُّواْ بِٱللَّغۡوِ مَرُّواْ كِرَامٗا ۝ 61
(72) — (और रहमान के बन्दे वे हैं) जो झूठ के गवाह नहीं बनते और किसी बेहूदा चीज़ पर उनका गुज़र हो जाए तो सज्जन आदमियों की तरह गुज़र जाते हैं।
وَٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُواْ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ لَمۡ يَخِرُّواْ عَلَيۡهَا صُمّٗا وَعُمۡيَانٗا ۝ 62
(73) जिन्हें अगर उनके रब की आयतें सुनाकर नसीहत की जाती है तो वे उसपर अन्धे और बहरे बनकर नहीं रह जाते।
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبۡ لَنَا مِنۡ أَزۡوَٰجِنَا وَذُرِّيَّٰتِنَا قُرَّةَ أَعۡيُنٖ وَٱجۡعَلۡنَا لِلۡمُتَّقِينَ إِمَامًا ۝ 63
(74) जो दुआएँ माँगा करते हैं कि “ऐ हमारे रब, हमें अपनी बीवियों और अपनी औलाद से आँखों की ठण्डक दे और हमको डर रखनेवालों का इमाम (नायक) बना'14
14. अर्थात हम परहेज़गारी और आज्ञा मानने में सबसे बढ़ जाएँ, भलाई और नेकी में सबसे आगे निकल जाएँ, सिर्फ़ नेक ही न हों बल्कि नेकों के पेशवा हों और हमारे कारण दुनिया भर में नेकी फैले। इस चीज़़ का उल्लेख वास्तव में यह बताने के लिए किया गया है कि ये वे लोग हैं जो माल, धन और वैभव एवं भव्यता में नहीं, बल्कि नेकी और परहेज़गारी में एक-दूसरे से बढ़ जाने का प्रयास करते हैं।
أُوْلَٰٓئِكَ يُجۡزَوۡنَ ٱلۡغُرۡفَةَ بِمَا صَبَرُواْ وَيُلَقَّوۡنَ فِيهَا تَحِيَّةٗ وَسَلَٰمًا ۝ 64
(75)—ये हैं वे लोग जो अपने सब्र का फल उच्च भवन के रूप में पाएँगे। आदर सूचक शब्दों और सलाम से उनका स्वागत होगा।
خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ حَسُنَتۡ مُسۡتَقَرّٗا وَمُقَامٗا ۝ 65
(76) वे हमेशा-हमेशा वहीं रहेंगे। क्या ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान।
قُلۡ مَا يَعۡبَؤُاْ بِكُمۡ رَبِّي لَوۡلَا دُعَآؤُكُمۡۖ فَقَدۡ كَذَّبۡتُمۡ فَسَوۡفَ يَكُونُ لِزَامَۢا ۝ 66
(77) ऐ नबी, लोगों से कहो, “मेरे रब को तुम्हारी क्या ज़रूरत पड़ी है अगर तुम उसको न पुकारो'15 अब जबकि तुमने झुठला दिया है, जल्द ही वह सज़ा पाओगे कि जान छुडानी असंभव होगी।"
15. अर्थात् अगर तुम अल्लाह से दुआएँ न माँगो, और उसकी बन्दगी न करो, और अपनी आवश्यकताओं में उसको सहायता के लिए न पुकारो, तो फिर तुम्हारा कोई वज़न अल्लाह की निगाह में नहीं है जिसके कारण वह तिनके के बराबर भी तुम्हारी परवाह करे। मात्र पैदा किए जाने की हैसियत से तुममें और पत्थरों में कोई अन्तर नहीं। तुमसे अल्लाह की कोई ज़रूरत अटकी हुई नहीं है कि तुम बन्दगी न करोगे तो उसका कोई काम रुका रह जाएगा। उसकी कृपादृष्टि को जो चीज़़ तुम्हारी ओर आकृष्ट करती है वह तुम्हारा उसको ओर हाथ फैलाना और उससे दुआएँ माँगना ही है। यह काम न करोगे तो कूड़ा-करकट को तरह फेंक दिए जाओगे।
۞وَقَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَرۡجُونَ لِقَآءَنَا لَوۡلَآ أُنزِلَ عَلَيۡنَا ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ أَوۡ نَرَىٰ رَبَّنَاۗ لَقَدِ ٱسۡتَكۡبَرُواْ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ وَعَتَوۡ عُتُوّٗا كَبِيرٗا ۝ 67
(21) जो लोग हमारे सामने पेश होने की आशंका नहीं रखते वे कहते हैं, “क्यों न फ़रिश्ते हमारे पास भेजे जाएँ? या फिर हम अपने रब को देखें।” बड़ा घमण्ड ले बैठे ये अपने जी में और सीमा से आगे निकल गए ये अपनी सरकशी में।
يَوۡمَ يَرَوۡنَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ لَا بُشۡرَىٰ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُجۡرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجۡرٗا مَّحۡجُورٗا ۝ 68
(22) जिस दिन ये फ़रिश्तों को देखेंगे वह अपराधियों के लिए किसी ख़ुशख़बरी का दिन न होगा। चीख़ उठेंगे कि अल्लाह की पनाह,
وَقَدِمۡنَآ إِلَىٰ مَا عَمِلُواْ مِنۡ عَمَلٖ فَجَعَلۡنَٰهُ هَبَآءٗ مَّنثُورًا ۝ 69
(23) और जो कुछ भी उनका किया-धरा है उसे लेकर हम धूल की तरह उड़ा देंगे।
أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَنَّةِ يَوۡمَئِذٍ خَيۡرٞ مُّسۡتَقَرّٗا وَأَحۡسَنُ مَقِيلٗا ۝ 70
(20) बस वही लोग जो जन्नत (स्वर्ग) के अधिकारी हैं उस दिन अच्छी जगह ठहरेंगे और दोपहर गुज़ारने के लिए अच्छा स्थल पाएँगे।
وَيَوۡمَ تَشَقَّقُ ٱلسَّمَآءُ بِٱلۡغَمَٰمِ وَنُزِّلَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ تَنزِيلًا ۝ 71
(25) आसमान को चीरता हुआ एक बादल उस दिन प्रकट होगा और फ़रिश्तों के परे के परे उतार दिए जाएँगे।
ٱلۡمُلۡكُ يَوۡمَئِذٍ ٱلۡحَقُّ لِلرَّحۡمَٰنِۚ وَكَانَ يَوۡمًا عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ عَسِيرٗا ۝ 72
(26) उस दिन वास्तविक राज सिर्फ़ रहमान (दयावान ईश्वर) का ही होगा। और वह इनकार करनेवालों के लिए बड़ा कठिन दिन होगा।
وَيَوۡمَ يَعَضُّ ٱلظَّالِمُ عَلَىٰ يَدَيۡهِ يَقُولُ يَٰلَيۡتَنِي ٱتَّخَذۡتُ مَعَ ٱلرَّسُولِ سَبِيلٗا ۝ 73
(27) ज़ालिम व्यक्ति अपने हाथ चबाएगा और कहेगा, क्या ही अच्छा होता कि मैंने रसूल का साथ दिया होता।
يَٰوَيۡلَتَىٰ لَيۡتَنِي لَمۡ أَتَّخِذۡ فُلَانًا خَلِيلٗا ۝ 74
(28) हाय मेरा दुर्भाग्य, काश मैंने अमुक व्यक्ति को मित्र न बनाया होता !
لَّقَدۡ أَضَلَّنِي عَنِ ٱلذِّكۡرِ بَعۡدَ إِذۡ جَآءَنِيۗ وَكَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ لِلۡإِنسَٰنِ خَذُولٗا ۝ 75
(29) उसके बहकावे में आकर मैंने वह नसीहत न मानी जो मेरे पास आई थी, शैतान इनसान के हक़ में बड़ा ही बेवफ़ा निकला।”
وَقَالَ ٱلرَّسُولُ يَٰرَبِّ إِنَّ قَوۡمِي ٱتَّخَذُواْ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ مَهۡجُورٗا ۝ 76
(30) और रसूल कहेगा कि “ऐ मेरे रब, मेरी क़ौम के लोगों ने इस क़ुरआन को मज़ाक़ का विषय बना लिया था।"