27. अन-नम्ल
(मक्का में उतरी-आयतें 93)
परिचय
नाम
इस सूरा की आयत 18 में 'नम्ल' (चीटी) की घाटी का उल्लेख हुआ है। सूरा का नाम इसी से उद्धृत है।
उतरने का समय
विषय-वस्तु और वर्णन-शैली मक्का के मध्यकाल की सूरतों से पूरी तरह मिलती-जुलती है और इसकी पुष्टि रिवायतों से भी होती है। इब्ने-अब्बास (रजि०) और जाबिर-बिन-ज़ैद का बयान है कि 'पहले सूरा-26 (शुअरा) उतरी, फिर सूरा-27 (अन-नम्ल), फिर सूरा-28 (अल-क़सस)।'
विषय और वार्ताएँ
यह सूरा दो व्याख्यानों पर आधारित है। पहला व्याख्यान सूरा के आरम्भ से आयत 58 तक चला गया है। और दूसरा व्याख्यान आयत 59 से सूरा के अन्त तक । पहले व्याख्यान में बताया गया है कि कु़ुरआन की रहनुमाई से केवल वही लोग लाभ उठा सकते हैं जो इन सच्चाइयों को मान लें जिन्हें यह किताब इस विश्व की मौलिक सच्चाइयों की हैसियत से प्रस्तुत करती है और फिर मान लेने के बाद अपने व्यावहारिक जीवन में भी आज्ञापालन और पैरवी की नीति अपनाएँ, लेकिन इस राह पर आने और चलने में जो चीज़ सबसे बड़ी रुकावट होती है वह आख़िरत (परलोक) का इंकार है।
इस भूमिका के बाद तीन प्रकार के चरित्रों के नमूने प्रस्तुत किए गए हैं-
एक नमूना फ़िरऔन और समूद क़ौम के सरदारों और लूत (अलैहि०) की क़ौम के सरकशों (उद्दंडों) का है, जिनका चरित्र आख़िरत की फ़िक्र के प्रति उदासीनता और उसके नतीजे में अपने मन की बन्दगी से निर्मित हुआ था। ये लोग किसी निशानी को देखकर भी ईमान लाने को तैयार न हुए। ये उलटे उन लोगों के शत्रु हो गए जिन्होंने उनको भलाई एवं कल्याण की ओर बुलाया।
दूसरा नमूना हज़रत सुलैमान (अलै०) का है जिनको अल्लाह ने धन, राज्य और सुख-वैभव से बड़े पैमाने पर सम्पन्न किया था, लेकिन इस सबके बावजूद चूँकि वे अपने आपको अल्लाह के सामने उत्तरदायी समझते थे, इसलिए उनका सिर हर वक़्त अपने महान उपकारकर्ता (ईश्वर) के आगे झुका रहता था।
तीसरा नमूना सबा की मलिका (रानी) का है जो अरब के इतिहास की सुप्रसिद्ध धनी क़ौम की शासिका थी। उसके पास तमाम वे साधन इकट्ठा थे जो किसी इंसान को अहंकारी बना सकते हैं। फिर वह एक बहुदेववादी क़ौम से ताल्लुक रखती थी। बाप-दादा के पीछे चलने की वजह से भी और अपनी क़ौम में अपनी सरदारी बाक़ी रखने के लिए भी, उसके लिए बहुदेववादी धर्म को छोड़कर तौहीद का दीन (एकेश्वरवादी धर्म) अपनाना बहुत कठिन था। लेकिन जब उसपर सत्य खुल गया तो कोई चीज़ उसे सत्य अपनाने से न रोक सकी, क्योंकि उसकी गुमराही सिर्फ़ एक बहुदेववादी वातावरण में आँखें खोलने की वजह से थी। मन की दासता और इच्छाओं की ग़ुलामी का रोग उसपर छाया हुआ न था।
दूसरे व्याख्यान में सबसे पहले सृष्टि की कुछ अत्यन्त स्पष्ट और प्रसिद्ध सच्चाइयों की ओर इशारे करके मक्का के विधर्मियों से लगातार सवाल किया गया है कि बताओ, ये सच्चाइयाँ शिर्क की गवाहियाँ दे रही हैं या तौहीद [की?] इसके बाद विधर्मियों के असल रोग पर उंगली रख दी गई है कि जिस चीज़ ने उनको अंधा-बहरा बना रखा है, वह वास्तव में आख़िरत का इंकार है। इस वार्ता का अभिप्राय सोनेवालों को झिझोड़कर जगाना है। इसी लिए आयत 67 से सूरा के अन्त तक लगातार वे बातें कही गई हैं जो लोगों में आख़िरत की चेतना जगाएँ। अन्त में क़ुरआन की असल दावत, अर्थात् एक अल्लाह की बन्दगी की दावत, बहुत ही संक्षेप में मगर बड़ी ही प्रभावकारी शैली में प्रस्तुत करके लोगों को सचेत किया गया है कि इसे क़ुबूल करना तुम्हारे अपने लिए लाभप्रद और इसे रद्द करना तुम्हारे अपने लिए ही हानिकारक है।
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وَوَرِثَ سُلَيۡمَٰنُ دَاوُۥدَۖ وَقَالَ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ عُلِّمۡنَا مَنطِقَ ٱلطَّيۡرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيۡءٍۖ إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡمُبِينُ 15
(16) और दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ। और उसने कहा, “लोगो, हमें पक्षियों की बोलियाँ सिखाई गई हैं और हमें हर तरह की चीज़़ें दी गई हैं,2 बेशक यह (अल्लाह का) स्पष्ट अनुग्रह है।"
2. अर्थात् अल्लाह का दिया सब कुछ हमारे पास मौजूद है।
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكٗا مِّن قَوۡلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوۡزِعۡنِيٓ أَنۡ أَشۡكُرَ نِعۡمَتَكَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَٰلِدَيَّ وَأَنۡ أَعۡمَلَ صَٰلِحٗا تَرۡضَىٰهُ وَأَدۡخِلۡنِي بِرَحۡمَتِكَ فِي عِبَادِكَ ٱلصَّٰلِحِينَ 18
(19) सुलैमान उसकी बात पर मुस्कराते हुए हँस पड़ा और बोला “ऐ मेरे रब मुझे कबू में रख3 कि मैं तेरे उस उपकार पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर और और मेरे माँ-बाप पर किया है और ऐसा अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझको अपने अच्छे बन्दों में दाख़िल कर।"
3. अर्थात् जो महान शक्तियाँ और योग्यताएँ तूने मुझे दी हैं वे ऐसी हैं कि अगर मैं तनिक सी असावधानी में भी पड़ जाऊँ तो बन्दगी की सीमा से निकलकर अपनी बड़ाई के भ्रम में न जाने कहाँ से कहाँ निकल जाऊँ। इसलिए ऐ पालनहार, तू मुझे क़ाबू में रख ताकि मैं नेमत के प्रति अकृतज्ञ बनने के बदले नेमत के प्रति कृतज्ञता पर जमा रहूँ।
قَالَ ٱلَّذِي عِندَهُۥ عِلۡمٞ مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن يَرۡتَدَّ إِلَيۡكَ طَرۡفُكَۚ فَلَمَّا رَءَاهُ مُسۡتَقِرًّا عِندَهُۥ قَالَ هَٰذَا مِن فَضۡلِ رَبِّي لِيَبۡلُوَنِيٓ ءَأَشۡكُرُ أَمۡ أَكۡفُرُۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيّٞ كَرِيمٞ 39
(40) जिस व्यक्ति के पास किताब का एक ज्ञान था वह बोला, “मैं आपको पलक झपकने से पहले उसे लाए देता हूँ।” ज्यों ही कि सुलैमान ने वह सिंहासन अपने पास रखा हुआ देखा, वह पुकार उठा, “यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बन जाता हूँ। और जो कृतज्ञता दिखाता है। उसका आभारी होना उसके अपने ही लिए लाभकारी है, वरना कोई कृतघ्न हो तो मेरा रब निस्स्पृह और ख़ुद अपने में आप प्रतिष्ठित है।
فَلَمَّا جَآءَتۡ قِيلَ أَهَٰكَذَا عَرۡشُكِۖ قَالَتۡ كَأَنَّهُۥ هُوَۚ وَأُوتِينَا ٱلۡعِلۡمَ مِن قَبۡلِهَا وَكُنَّا مُسۡلِمِينَ 41
(42) रानी जब उपस्थित हुई तो उससे कहा गया, “क्या तेरा सिंहासन ऐसा ही है?” वह कहने लगी, “यह तो मानो वही है। हम तो पहले ही जान गए थे और हम आज्ञाकारी हो गए थे (या हम मुस्लिम हो चुके थे9 )।”
9. अर्थात् यह चमत्कार देखने से पहले ही सुलैमान (अलैहि०) के जो गुण और हालात हमें मालूम हो चुके थे उनके आधार पर हमें विश्वास हो गया था कि वे अल्लाह के नबी हैं, सिर्फ़ एक राज्य के शासक नहीं है।
قِيلَ لَهَا ٱدۡخُلِي ٱلصَّرۡحَۖ فَلَمَّا رَأَتۡهُ حَسِبَتۡهُ لُجَّةٗ وَكَشَفَتۡ عَن سَاقَيۡهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ صَرۡحٞ مُّمَرَّدٞ مِّن قَوَارِيرَۗ قَالَتۡ رَبِّ إِنِّي ظَلَمۡتُ نَفۡسِي وَأَسۡلَمۡتُ مَعَ سُلَيۡمَٰنَ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ 43
(44) उससे कहा गया कि महल में दाख़िल हो। उसने जो देखा तो समझी कि पानी का हौज़ है और उतरने के लिए उसने अपने पाईंचे उठा लिए। सुलैमान ने कहा, “यह शीशे का चिकना फर्श है।” इसपर वह पुकार उठी, “ऐ मेरे रब (आज तक) मैं अपने आप पर बड़ा ज़ुल्म करती रही, और अब मैं सुलैमान के साथ सारे जहान के रब की आज्ञाकारी बन गई।"
قَالُواْ تَقَاسَمُواْ بِٱللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُۥ وَأَهۡلَهُۥ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِۦ مَا شَهِدۡنَا مَهۡلِكَ أَهۡلِهِۦ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ 48
(49) उन्होंने आपस में कहा, “ईश्वर की क़सम खाकर प्रतिज्ञा कर लो कि हम सालेह और उसके घरवालों पर रात को हमला करेंगे और फिर उसके वली (अभिभावक) से कह देंगे10 कि हम उसके परिवार के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे, हम बिलकुल सच कहते हैं।”
10. अर्थात् हज़रत सालेह (अलैहि०) के क़बीले के सरदार से, जिसको प्राचीन क़बायली रीति एवं प्रथा के अनुसार उनके ख़ून के दावे का हक़ पहुँचता था। यह वही स्थिति थी जो नबी (सल्ल०) के समय में आपके चचा अबू-तालिब को प्राप्त थी। क़ुरैश के अधर्मी भी इसी आशंका से हाथ रोकते थे कि अगर वे नबी (सल्ल०) को हत्या कर देंगे तो बनी-हाशिम के सरदार अबू-तालिब अपने क़बीले की ओर से ख़ून का दावा लेकर उठेंगे।
۞وَإِذَا وَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَيۡهِمۡ أَخۡرَجۡنَا لَهُمۡ دَآبَّةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ تُكَلِّمُهُمۡ أَنَّ ٱلنَّاسَ كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا لَا يُوقِنُونَ 81
(82) और जब हमारी बात पूरी होने का समय उनपर आ पहुँचेगा तो हम उनके लिए एक जानवर ज़मीन से निकालेंगे जो उनसे बात करेगा कि लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे।15
15. हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०) का कथन है कि यह उस समय होगा जब ज़मीन में कोई नेकी का आदेश देनेवाला और बुराई से रोकनेवाला बाक़ी न रहेगा। एक हदीस हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से रिवायत है जिसमें वे कहते हैं कि यही बात उन्होंने ख़ुद नबी (सल्ल०) से सुनी थी। इससे मालूम हुआ कि जब इनसान भलाई के लिए कहना और बुराई से रोकना छोड़ देंगे तो क़ियामत क़ायम होने से पहले अल्लाह एक जानवर के द्वारा अन्तिम बार तर्कसंगत बात सामने लाएगा कि किसी के लिए आपत्ति उठाने का अवसर न रहे। यह बात स्पष्ट नहीं है कि यह एक ही जानवर होगा या एक विशेष प्रकार की पशु जाति होगी जिसके अलग-अलग बहुत-से जानवर ज़मीन में फैल जाएँगे ‘दाब्बतुम-मिनल-अर्ज़' (एक जानवर ज़मीन से) के शब्दों में दोनों अर्थों की संभावना है। इस जानवर के निकलने का समय कौन-सा होगा? इसके सम्बन्ध में नबी (सल्ल०) का कथन है, कि “सूरज पश्चिम से उदय होगा और एक रोज़ दिन-दहाड़े यह जानवर निकल आएगा।” रहा किसी जानवर का इनसानों से इनसान की भाषा में बात करना, तो यह अल्लाह की सामर्थ्य का एक चमत्कार है। वह जिस चीज़ को चाहे बोलने की शक्ति प्रदान कर सकता है। क़ियामत से पहले तो वह एक जानवर ही को बोलने को शक्ति प्रदान करेगा, मगर जब वह क़ियामत आ जाएगी तो अल्लाह के न्यायालय में इनसान की आँख और कान और उसके शरीर की खाल तक बोल उठेगी, जैसा कि क़ुरआन (41 : 20-21) में स्पष्टतः बयान हुआ है।