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سُورَةُ النَّمۡلِ

27. अन-नम्ल 

(मक्का में उतरी-आयतें 93)

परिचय

नाम

इस सूरा की आयत 18 में 'नम्ल' (चीटी) की घाटी का उल्लेख हुआ है। सूरा का नाम इसी से उद्धृत है।

उतरने का समय

विषय-वस्तु और वर्णन-शैली मक्का के मध्यकाल की सूरतों से पूरी तरह मिलती-जुलती है और इसकी पुष्टि रिवायतों से भी होती है। इब्‍ने-अब्बास (रजि०) और जाबिर-बिन-ज़ैद का बयान है कि 'पहले सूरा-26 (शुअरा) उतरी, फिर सूरा-27 (अन-नम्ल), फिर सूरा-28 (अल-क़सस)।'

विषय और वार्ताएँ

यह सूरा दो व्याख्यानों पर आधारित है। पहला व्याख्यान सूरा के आरम्भ से आयत 58 तक चला गया है। और दूसरा व्याख्यान आयत 59 से सूरा के अन्त तक । पहले व्याख्यान में बताया गया है कि कु़ुरआन की रहनुमाई से केवल वही लोग लाभ उठा सकते हैं जो इन सच्चाइयों को मान लें जिन्हें यह किताब इस विश्व की मौलिक सच्चाइयों की हैसियत से प्रस्तुत करती है और फिर मान लेने के बाद अपने व्यावहारिक जीवन में भी आज्ञापालन और पैरवी की नीति अपनाएँ, लेकिन इस राह पर आने और चलने में जो चीज़ सबसे बड़ी रुकावट होती है वह आख़िरत (परलोक) का इंकार है।

इस भूमिका के बाद तीन प्रकार के चरित्रों के नमूने प्रस्तुत किए गए हैं-

एक नमूना फ़िरऔन और समूद क़ौम के सरदारों और लूत (अलैहि०) की क़ौम के सरकशों (उद्दंडों) का है, जिनका चरित्र आख़िरत की फ़िक्र के प्रति उदासीनता और उसके नतीजे में अपने मन की बन्दगी से निर्मित हुआ था। ये लोग किसी निशानी को देखकर भी ईमान लाने को तैयार न हुए। ये उलटे उन लोगों के शत्रु हो गए जिन्होंने उनको भलाई एवं कल्याण की ओर बुलाया।

दूसरा नमूना हज़रत सुलैमान (अलै०) का है जिनको अल्लाह ने धन, राज्य और सुख-वैभव से बड़े पैमाने पर सम्पन्न किया था, लेकिन इस सबके बावजूद चूँकि वे अपने आपको अल्लाह के सामने उत्तरदायी समझते थे, इसलिए उनका सिर हर वक़्त अपने महान उपकारकर्ता (ईश्वर) के आगे झुका रहता था।

तीसरा नमूना सबा की मलिका (रानी) का है जो अरब के इतिहास की सुप्रसिद्ध धनी क़ौम की शासिका थी। उसके पास तमाम वे साधन इकट्ठा थे जो किसी इंसान को अहंकारी बना सकते हैं। फिर वह एक बहुदेववादी क़ौम से ताल्लुक रखती थी। बाप-दादा के पीछे चलने की वजह से भी और अपनी क़ौम में अपनी सरदारी बाक़ी रखने के लिए भी, उसके लिए बहुदेववादी धर्म को छोड़कर तौहीद का दीन (एकेश्वरवादी धर्म) अपनाना बहुत कठिन था। लेकिन जब उसपर सत्य खुल गया तो कोई चीज़ उसे सत्य अपनाने से न रोक सकी, क्योंकि उसकी गुमराही सिर्फ़ एक बहुदेववादी वातावरण में आँखें खोलने की वजह से थी। मन की दासता और इच्छाओं की ग़ुलामी का रोग उसपर छाया हुआ न था।

दूसरे व्याख्यान में सबसे पहले सृष्टि की कुछ अत्यन्त स्पष्ट और प्रसिद्ध सच्चाइयों की ओर इशारे करके मक्का के विधर्मियों से लगातार सवाल किया गया है कि बताओ, ये सच्चाइयाँ शिर्क की गवाहियाँ दे रही हैं या तौहीद [की?] इसके बाद विधर्मियों के असल रोग पर उंगली रख दी गई है कि जिस चीज़ ने उनको अंधा-बहरा बना रखा है, वह वास्तव में आख़िरत का इंकार है। इस वार्ता का अभिप्राय सोनेवालों को झिझोड़कर जगाना है। इसी लिए आयत 67 से सूरा के अन्त तक लगातार वे बातें कही गई हैं जो लोगों में आख़िरत की चेतना जगाएँ। अन्त में क़ुरआन की असल दावत, अर्थात् एक अल्लाह की बन्दगी की दावत, बहुत ही संक्षेप में मगर बड़ी ही प्रभावकारी शैली में प्रस्तुत करके लोगों को सचेत किया गया है कि इसे क़ुबूल करना तुम्हारे अपने लिए लाभप्रद और इसे रद्द करना तुम्हारे अपने लिए ही हानिकारक है।

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سُورَةُ النَّمۡلِ
27. अन-नम्ल
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
طسٓۚ تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡقُرۡءَانِ وَكِتَابٖ مُّبِينٍ
(1) ता० सीन०। ये आयतें हैं कुरआन और स्पष्ट किताब की1
1. अर्थात् उस किताब कि आयतें जो अपनी शिक्षाओं और आदेश और मार्गदर्शन को बिलकुल स्पष्ट रूप से बयान करती हैं।
هُدٗى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 1
(2) मार्गदर्शन और शुभ सूचना उन ईमान वालों के लिए
ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ ۝ 2
(3) जो नमाज़ क़ायम करते और ज़कात (दान) देते हैं और फिर वे ऐसे लोग हैं जो आख़िरत पर पूरा विश्वास रखते हैं।
إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمۡ أَعۡمَٰلَهُمۡ فَهُمۡ يَعۡمَهُونَ ۝ 3
(4) वास्तविकता यह है कि जो लोग आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने उनकी करतूतों को शोभायमान बना दिया है, इसलिए वे भटकते फिरते हैं।
أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَهُمۡ سُوٓءُ ٱلۡعَذَابِ وَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ هُمُ ٱلۡأَخۡسَرُونَ ۝ 4
(5) ये वे लोग हैं जिनके लिए बुरी सज़ा है और आख़िरत में भी यही सबसे ज़्यादा घाटे में रहनेवाले हैं।
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى ٱلۡقُرۡءَانَ مِن لَّدُنۡ حَكِيمٍ عَلِيمٍ ۝ 5
(6) और (ऐ नबी) निस्संदेह तुम यह क़ुरआन एक तत्त्वदर्शी और सर्वज्ञ सत्ता की ओर से पा रहे हो।
إِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهۡلِهِۦٓ إِنِّيٓ ءَانَسۡتُ نَارٗا سَـَٔاتِيكُم مِّنۡهَا بِخَبَرٍ أَوۡ ءَاتِيكُم بِشِهَابٖ قَبَسٖ لَّعَلَّكُمۡ تَصۡطَلُونَ ۝ 6
(7) (उन्हें उस समय का हाल सुनाओ) जब मूसा ने अपने घरवालों से कहा कि “मुझे एक आग-सी दिखाई दी है, मैं अभी या तो वहाँ से कोई सूचना लेकर आता हूँ या कोई अंगारा चुन लाता हूँ ताकि तुम लोग गर्म हो सको।”
فَلَمَّا جَآءَهَا نُودِيَ أَنۢ بُورِكَ مَن فِي ٱلنَّارِ وَمَنۡ حَوۡلَهَا وَسُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 7
(8) वहाँ जो पहुँचा तो आवाज़ आई कि “मुबारक है वह जो इस आग में है और जो इसके वातावरण में है। पाक है अल्लाह, सारे जहानवालों का पालनहार।
يَٰمُوسَىٰٓ إِنَّهُۥٓ أَنَا ٱللَّهُ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ ۝ 8
(9) ऐ मूसा, यह मैं हूँ अल्लाह प्रभुत्वशाली और तत्वदर्शी।
وَأَلۡقِ عَصَاكَۚ فَلَمَّا رَءَاهَا تَهۡتَزُّ كَأَنَّهَا جَآنّٞ وَلَّىٰ مُدۡبِرٗا وَلَمۡ يُعَقِّبۡۚ يَٰمُوسَىٰ لَا تَخَفۡ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ۝ 9
(10) और फेंक तो तनिक अपनी लाठी।” ज्यों ही कि मूसा ने देखा लाठी साँप की तरह बल खा रही है तो पीठ फेरकर भागा और पीछे मुड़कर भी न देखा। “ऐ मूसा, डरो नहीं। मेरे पास रसूल डरा नहीं करते,
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسۡنَۢا بَعۡدَ سُوٓءٖ فَإِنِّي غَفُورٞ رَّحِيمٞ ۝ 10
(11) सिवाय इसके कि किसी ने क़ुसूर किया हो। फिर अगर बुराई के बाद उसने भलाई से (अपने कर्म को) बदल लिया तो मैं माफ़ करनेवाला दयावान् हूँ।
وَأَدۡخِلۡ يَدَكَ فِي جَيۡبِكَ تَخۡرُجۡ بَيۡضَآءَ مِنۡ غَيۡرِ سُوٓءٖۖ فِي تِسۡعِ ءَايَٰتٍ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَقَوۡمِهِۦٓۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ ۝ 11
(12) और तनिक अपना हाथ अपने गरेबान में तो डालो, चमकता हुआ निकलेगा बिना किसी तकलीफ़ के ये (दो निशानियाँ) नौ निशानियों में से हैं फ़िरऔन और उसकी क़ौम की ओर (ले जाने के लिए), वे बड़े दुराचारी लोग हैं।"
فَلَمَّا جَآءَتۡهُمۡ ءَايَٰتُنَا مُبۡصِرَةٗ قَالُواْ هَٰذَا سِحۡرٞ مُّبِينٞ ۝ 12
(13) मगर जब हमारी खुली-खुली निशानियाँ उन लोगों के सामने आईं तो उन्होंने कहा कि यह तो खुला जादू है।
وَجَحَدُواْ بِهَا وَٱسۡتَيۡقَنَتۡهَآ أَنفُسُهُمۡ ظُلۡمٗا وَعُلُوّٗاۚ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُفۡسِدِينَ ۝ 13
(14) उन्होंने सर्वथा ज़ुल्म और घमण्ड की राह से इन निशानियों का इनकार किया हालाँकि दिलों को उनके विश्वास हो चुका था। अब देख लो कि उन बिगाड़ पैदा करनेवालों का परिणाम कैसा हुआ।
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ وَسُلَيۡمَٰنَ عِلۡمٗاۖ وَقَالَا ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٖ مِّنۡ عِبَادِهِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 14
(15) (दूसरी ओर हमने दाऊद और सुलैमान को ज्ञान प्रदान किया और उन्होंने कहा कि “शुक्र है उस ईश्वर का जिसने हमको अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों की अपेक्षा श्रेष्ठता प्रदान की।"
وَوَرِثَ سُلَيۡمَٰنُ دَاوُۥدَۖ وَقَالَ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ عُلِّمۡنَا مَنطِقَ ٱلطَّيۡرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيۡءٍۖ إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَضۡلُ ٱلۡمُبِينُ ۝ 15
(16) और दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ। और उसने कहा, “लोगो, हमें पक्षियों की बोलियाँ सिखाई गई हैं और हमें हर तरह की चीज़़ें दी गई हैं,2 बेशक यह (अल्लाह का) स्पष्ट अनुग्रह है।"
2. अर्थात् अल्लाह का दिया सब कुछ हमारे पास मौजूद है।
وَحُشِرَ لِسُلَيۡمَٰنَ جُنُودُهُۥ مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ وَٱلطَّيۡرِ فَهُمۡ يُوزَعُونَ ۝ 16
(17) सुलैमान के लिए जिन्न और इनसानों और पक्षियों की सेनाएँ एकत्र की गई थीं और वे पूरे नियंत्रण में रखी जाती थीं।
حَتَّىٰٓ إِذَآ أَتَوۡاْ عَلَىٰ وَادِ ٱلنَّمۡلِ قَالَتۡ نَمۡلَةٞ يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّمۡلُ ٱدۡخُلُواْ مَسَٰكِنَكُمۡ لَا يَحۡطِمَنَّكُمۡ سُلَيۡمَٰنُ وَجُنُودُهُۥ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 17
(18) (एक बार वह उनके साथ प्रस्थान कर रहा था) यहाँ तक कि जब ये सब चीटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, “ऐ चीटियो, अपने बिलों में घुस जाओ कहीं ऐसा न हो कि सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल डालें और उन्हें ख़बर भी न हो।”
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكٗا مِّن قَوۡلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوۡزِعۡنِيٓ أَنۡ أَشۡكُرَ نِعۡمَتَكَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَٰلِدَيَّ وَأَنۡ أَعۡمَلَ صَٰلِحٗا تَرۡضَىٰهُ وَأَدۡخِلۡنِي بِرَحۡمَتِكَ فِي عِبَادِكَ ٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 18
(19) सुलैमान उसकी बात पर मुस्कराते हुए हँस पड़ा और बोला “ऐ मेरे रब मुझे कबू में रख3 कि मैं तेरे उस उपकार पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर और और मेरे माँ-बाप पर किया है और ऐसा अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझको अपने अच्छे बन्दों में दाख़िल कर।"
3. अर्थात् जो महान शक्तियाँ और योग्यताएँ तूने मुझे दी हैं वे ऐसी हैं कि अगर मैं तनिक सी असावधानी में भी पड़ जाऊँ तो बन्दगी की सीमा से निकलकर अपनी बड़ाई के भ्रम में न जाने कहाँ से कहाँ निकल जाऊँ। इसलिए ऐ पालनहार, तू मुझे क़ाबू में रख ताकि मैं नेमत के प्रति अकृतज्ञ बनने के बदले नेमत के प्रति कृतज्ञता पर जमा रहूँ।
وَتَفَقَّدَ ٱلطَّيۡرَ فَقَالَ مَالِيَ لَآ أَرَى ٱلۡهُدۡهُدَ أَمۡ كَانَ مِنَ ٱلۡغَآئِبِينَ ۝ 19
(20) (एक और अवसर पर) सुलैमान ने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की और कहा, “क्या बात है. कि मैं अमुक हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ? क्या वह कहीं ग़ायब हो गया है?
لَأُعَذِّبَنَّهُۥ عَذَابٗا شَدِيدًا أَوۡ لَأَاْذۡبَحَنَّهُۥٓ أَوۡ لَيَأۡتِيَنِّي بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٖ ۝ 20
(21) मैं उसे कठोर सज़ा दूँगा या उसे ज़बह कर दूँगा, वरना उसे मेरे सामने उचित कारण प्रस्तुत करना होगा।”
فَمَكَثَ غَيۡرَ بَعِيدٖ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمۡ تُحِطۡ بِهِۦ وَجِئۡتُكَ مِن سَبَإِۭ بِنَبَإٖ يَقِينٍ ۝ 21
(22) कुछ ज़्यादा देर न गुज़री थी कि उसने आकर कहा, “मैंने वे जानकारियाँ प्राप्त की हैं जो आपकी ज्ञान-परिधि में नहीं हैं। मैं सबा4 के बारे में विश्वसनीय सूचना लेकर आया हूँ।
4. सबा दक्षिणी अरब की प्रसिद्ध व्यापारी क़ौम थी जिसकी राजधानी मआरिब (सनआ से 55 मील दूर) थी।
إِنِّي وَجَدتُّ ٱمۡرَأَةٗ تَمۡلِكُهُمۡ وَأُوتِيَتۡ مِن كُلِّ شَيۡءٖ وَلَهَا عَرۡشٌ عَظِيمٞ ۝ 22
(23) मैने वहाँ एक औरत देखी जो उस क़ौम की शासिका है। उसको हर तरह की सामग्री प्रदान की गई है। और उसका सिंहासन बड़ा विराट है।
وَجَدتُّهَا وَقَوۡمَهَا يَسۡجُدُونَ لِلشَّمۡسِ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَعۡمَٰلَهُمۡ فَصَدَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِيلِ فَهُمۡ لَا يَهۡتَدُونَ ۝ 23
(24) मैंने देखा कि वह और उसकी क़ौम अल्लाह को छोड़कर सूरज के आगे सजदा करती है।” शैतान5 ने उनके कर्म उनके लिए शोभायमान बना दिए और उन्हें प्रशस्त पथ से रोक दिया,
أَلَّاۤ يَسۡجُدُواْۤ لِلَّهِ ٱلَّذِي يُخۡرِجُ ٱلۡخَبۡءَ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَيَعۡلَمُ مَا تُخۡفُونَ وَمَا تُعۡلِنُونَ ۝ 24
(25) इस कारण वे यह सीधा मार्ग नहीं पाते कि उस अल्लाह को सजदा करें जो आसमानों और ज़मीन की छिपी चीज़़ें निकालता है और वह सब कुछ जानता है। जिसे तुम लोग छिपाते और ज़ाहिर करते हो।
5. वर्णन-शैली से स्पष्ट हो रहा है कि यहाँ से आयत 26 के अन्त तक हुदहुद के कथन में अल्लाह ने अपनी ओर से ये शब्द बढ़ा दिए हैं।
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِيمِ۩ ۝ 25
(26) अल्लाह, कि जिसके सिवा कोई बन्दगी के योग्य नहीं, जो महान सिंहासन का मालिक है।
۞قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقۡتَ أَمۡ كُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰذِبِينَ ۝ 26
(27) सुलैमान ने कहा, 'अभी हम देख लेते हैं कि तूने सत्य कहा है या तू झूठ बोलनेवालों में से है।
ٱذۡهَب بِّكِتَٰبِي هَٰذَا فَأَلۡقِهۡ إِلَيۡهِمۡ ثُمَّ تَوَلَّ عَنۡهُمۡ فَٱنظُرۡ مَاذَا يَرۡجِعُونَ ۝ 27
(28) मेरा यह पत्र ले जा और इसे उन लोगों की ओर डाल दे, फिर अलग हटकर देख कि वे क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।"
قَالَتۡ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ إِنِّيٓ أُلۡقِيَ إِلَيَّ كِتَٰبٞ كَرِيمٌ ۝ 28
(29) रानी6 बोली, “ऐ दरबारियो, मेरी ओर एक बड़ा महत्वपूर्ण पत्र फेंका गया है।
6. बीच का क़िस्सा छोड़कर अब उस समय का उल्लेख होता है जब हुदहुद ने पत्र रानी के आगे फेंक दिया।
إِنَّهُۥ مِن سُلَيۡمَٰنَ وَإِنَّهُۥ بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ۝ 29
(30) वह सुलैमान की ओर से है और अल्लाह, रहमान और अत्यन्त दयावान् के नाम से आरंभ किया गया है।
أَلَّا تَعۡلُواْ عَلَيَّ وَأۡتُونِي مُسۡلِمِينَ ۝ 30
(31) मज़मून यह है कि “मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और मुस्लिम होकर7 मेरे पास उपस्थित हो जाओ।”
7. अर्थात् इस्लाम ग्रहण करके, या आज्ञाकारी बनकर।
قَالَتۡ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ أَفۡتُونِي فِيٓ أَمۡرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمۡرًا حَتَّىٰ تَشۡهَدُونِ ۝ 31
(32) (पत्र सुनाकर) रानी ने कहा, “ऐ क़ौम के सरदारो! मेरे इस मामले में मुझे मशवरा दो, मैं किसी मामले का फ़ैसला तुम्हारे बिना नहीं करती हूँ।”
قَالُواْ نَحۡنُ أُوْلُواْ قُوَّةٖ وَأُوْلُواْ بَأۡسٖ شَدِيدٖ وَٱلۡأَمۡرُ إِلَيۡكِ فَٱنظُرِي مَاذَا تَأۡمُرِينَ ۝ 32
(33) उन्होंने जवाब दिया, “हम शक्तिशाली और लड़नेवाले लोग हैं। आगे फ़ैसला आपके हाथ में है। आप ख़ुद देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।”
قَالَتۡ إِنَّ ٱلۡمُلُوكَ إِذَا دَخَلُواْ قَرۡيَةً أَفۡسَدُوهَا وَجَعَلُوٓاْ أَعِزَّةَ أَهۡلِهَآ أَذِلَّةٗۚ وَكَذَٰلِكَ يَفۡعَلُونَ ۝ 33
(34) रानी ने कहा कि “बादशाह जब किसी देश में घुस आते है तो उसे ख़राब और उसके सम्मानित व्यक्तियों को अपमानित कर देते हैं। यही कुछ वे किया करते हैं।
وَإِنِّي مُرۡسِلَةٌ إِلَيۡهِم بِهَدِيَّةٖ فَنَاظِرَةُۢ بِمَ يَرۡجِعُ ٱلۡمُرۡسَلُونَ ۝ 34
(35) मैं उन लोगों की ओर एक उपहार भेजती हूँ फिर देखती हूँ कि मेरे दूत क्या जवाब लेकर पलटते हैं?"
فَلَمَّا جَآءَ سُلَيۡمَٰنَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٖ فَمَآ ءَاتَىٰنِۦَ ٱللَّهُ خَيۡرٞ مِّمَّآ ءَاتَىٰكُمۚ بَلۡ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمۡ تَفۡرَحُونَ ۝ 35
(36) जब वह (रानी का दूत) सुलैमान के यहाँ पहुँचा तो उसने कहा, “क्या तुम लोग माल से मेरी सहायता करना चाहते हो? जो कुछ अल्लाह ने मुझे दे रखा है वह उससे बहुत ज़्यादा है जो तुम्हें दिया है। तुम्हारा उपहार तुम्हीं को मुबारक रहे।
ٱرۡجِعۡ إِلَيۡهِمۡ فَلَنَأۡتِيَنَّهُم بِجُنُودٖ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخۡرِجَنَّهُم مِّنۡهَآ أَذِلَّةٗ وَهُمۡ صَٰغِرُونَ ۝ 36
(37) (ऐ दूत) वापस जा अपने भेजनेवालों की ओर हम उनपर ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें ऐसी ज़िल्लत के साथ वहाँ से निकालेंगे कि वे अपमानित होकर रह जाएँगे।"
قَالَ يَٰٓأَيُّهَا ٱلۡمَلَؤُاْ أَيُّكُمۡ يَأۡتِينِي بِعَرۡشِهَا قَبۡلَ أَن يَأۡتُونِي مُسۡلِمِينَ ۝ 37
(38) सुलैमान ने कहा, “ऐ दरबारियो, तुममें से कौन उसका सिंहासन मेरे पास लाता है इससे पहले कि वे लोग आज्ञाकारी होकर मेरे पास हाज़िर हों?
قَالَ عِفۡرِيتٞ مِّنَ ٱلۡجِنِّ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَۖ وَإِنِّي عَلَيۡهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٞ ۝ 38
(39) जिन्नों में से एक बलिष्ठ डील-डौलवाले ने कहा, “मैं उसे हाज़िर कर दूँगा इससे पहले कि आप अपने स्थान से उठें। मुझे इसकी शक्ति प्राप्त है और मैं अमानतदार हूँ।”
قَالَ ٱلَّذِي عِندَهُۥ عِلۡمٞ مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبۡلَ أَن يَرۡتَدَّ إِلَيۡكَ طَرۡفُكَۚ فَلَمَّا رَءَاهُ مُسۡتَقِرًّا عِندَهُۥ قَالَ هَٰذَا مِن فَضۡلِ رَبِّي لِيَبۡلُوَنِيٓ ءَأَشۡكُرُ أَمۡ أَكۡفُرُۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشۡكُرُ لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيّٞ كَرِيمٞ ۝ 39
(40) जिस व्यक्ति के पास किताब का एक ज्ञान था वह बोला, “मैं आपको पलक झपकने से पहले उसे लाए देता हूँ।” ज्यों ही कि सुलैमान ने वह सिंहासन अपने पास रखा हुआ देखा, वह पुकार उठा, “यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बन जाता हूँ। और जो कृतज्ञता दिखाता है। उसका आभारी होना उसके अपने ही लिए लाभकारी है, वरना कोई कृतघ्न हो तो मेरा रब निस्स्पृह और ख़ुद अपने में आप प्रतिष्ठित है।
قَالَ نَكِّرُواْ لَهَا عَرۡشَهَا نَنظُرۡ أَتَهۡتَدِيٓ أَمۡ تَكُونُ مِنَ ٱلَّذِينَ لَا يَهۡتَدُونَ ۝ 40
(41) सुलैमान8 ने कहा, “अनजान ढंग से उसका सिंहासन उसके सामने रख दो, देखें वह सत्य बात तक पहुँचती है या उन लोगों में से है जो सीधा मार्ग नहीं पाते।”
8. अब उस समय का उल्लेख होता है जब सबा की रानी हज़रत सुलैमान (अलैहि०) से भेंट करने के लिए उपस्थित हुई।
فَلَمَّا جَآءَتۡ قِيلَ أَهَٰكَذَا عَرۡشُكِۖ قَالَتۡ كَأَنَّهُۥ هُوَۚ وَأُوتِينَا ٱلۡعِلۡمَ مِن قَبۡلِهَا وَكُنَّا مُسۡلِمِينَ ۝ 41
(42) रानी जब उपस्थित हुई तो उससे कहा गया, “क्या तेरा सिंहासन ऐसा ही है?” वह कहने लगी, “यह तो मानो वही है। हम तो पहले ही जान गए थे और हम आज्ञाकारी हो गए थे (या हम मुस्लिम हो चुके थे9 )।”
9. अर्थात् यह चमत्कार देखने से पहले ही सुलैमान (अलैहि०) के जो गुण और हालात हमें मालूम हो चुके थे उनके आधार पर हमें विश्वास हो गया था कि वे अल्लाह के नबी हैं, सिर्फ़ एक राज्य के शासक नहीं है।
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعۡبُدُ مِن دُونِ ٱللَّهِۖ إِنَّهَا كَانَتۡ مِن قَوۡمٖ كَٰفِرِينَ ۝ 42
(43) उसको (ईमान लाने से) जिस चीज़ ने रोक रखा था वह उन उपास्यों की बन्दगी थी जिन्हें वह अल्लाह के सिवा पूजती थी क्योंकि वह एक अधर्मी क़ौम से थी।
قِيلَ لَهَا ٱدۡخُلِي ٱلصَّرۡحَۖ فَلَمَّا رَأَتۡهُ حَسِبَتۡهُ لُجَّةٗ وَكَشَفَتۡ عَن سَاقَيۡهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ صَرۡحٞ مُّمَرَّدٞ مِّن قَوَارِيرَۗ قَالَتۡ رَبِّ إِنِّي ظَلَمۡتُ نَفۡسِي وَأَسۡلَمۡتُ مَعَ سُلَيۡمَٰنَ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 43
(44) उससे कहा गया कि महल में दाख़िल हो। उसने जो देखा तो समझी कि पानी का हौज़ है और उतरने के लिए उसने अपने पाईंचे उठा लिए। सुलैमान ने कहा, “यह शीशे का चिकना फर्श है।” इसपर वह पुकार उठी, “ऐ मेरे रब (आज तक) मैं अपने आप पर बड़ा ज़ुल्म करती रही, और अब मैं सुलैमान के साथ सारे जहान के रब की आज्ञाकारी बन गई।"
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَآ إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمۡ صَٰلِحًا أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ فَإِذَا هُمۡ فَرِيقَانِ يَخۡتَصِمُونَ ۝ 44
(45) और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को (यह सन्देश देकर) भेजा कि अल्लाह की बन्दगी करो, तो अचानक वे झगड़नेवाले दो वैरी दल बन गए।
قَالَ يَٰقَوۡمِ لِمَ تَسۡتَعۡجِلُونَ بِٱلسَّيِّئَةِ قَبۡلَ ٱلۡحَسَنَةِۖ لَوۡلَا تَسۡتَغۡفِرُونَ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ ۝ 45
(46) सालेह ने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो, भलाई को छोड़कर बुराई के लिए क्यों जल्दी मचाते हो? क्यों नहीं अल्लाह से माफ़ी की दुआ करते? शायद कि तुमपर दया की जाए।”
قَالُواْ ٱطَّيَّرۡنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَۚ قَالَ طَٰٓئِرُكُمۡ عِندَ ٱللَّهِۖ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٞ تُفۡتَنُونَ ۝ 46
(47) उन्होंने कहा, “हमने तो तुमको और तुम्हारे साथियों को अपशकुन का प्रतीक पाया है।” सालेह ने जवाब दिया, “तुम्हारे शकुन-अपशकुन की डोर तो अल्लाह के पास है। वास्तविक बात यह है कि तुम लोगों की परीक्षा हो रही है।"
وَكَانَ فِي ٱلۡمَدِينَةِ تِسۡعَةُ رَهۡطٖ يُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا يُصۡلِحُونَ ۝ 47
(48) उस शहर में नौ जत्थेदार थे जो देश में बिगाड़ पैदा करते और कोई सुधार का कार्य न करते थे।
قَالُواْ تَقَاسَمُواْ بِٱللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُۥ وَأَهۡلَهُۥ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِۦ مَا شَهِدۡنَا مَهۡلِكَ أَهۡلِهِۦ وَإِنَّا لَصَٰدِقُونَ ۝ 48
(49) उन्होंने आपस में कहा, “ईश्वर की क़सम खाकर प्रतिज्ञा कर लो कि हम सालेह और उसके घरवालों पर रात को हमला करेंगे और फिर उसके वली (अभिभावक) से कह देंगे10 कि हम उसके परिवार के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे, हम बिलकुल सच कहते हैं।”
10. अर्थात् हज़रत सालेह (अलैहि०) के क़बीले के सरदार से, जिसको प्राचीन क़बायली रीति एवं प्रथा के अनुसार उनके ख़ून के दावे का हक़ पहुँचता था। यह वही स्थिति थी जो नबी (सल्ल०) के समय में आपके चचा अबू-तालिब को प्राप्त थी। क़ुरैश के अधर्मी भी इसी आशंका से हाथ रोकते थे कि अगर वे नबी (सल्ल०) को हत्या कर देंगे तो बनी-हाशिम के सरदार अबू-तालिब अपने क़बीले की ओर से ख़ून का दावा लेकर उठेंगे।
وَمَكَرُواْ مَكۡرٗا وَمَكَرۡنَا مَكۡرٗا وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 49
(50) यह चाल तो वे चले और फिर एक चाल हमने चली जिसकी उन्हें ख़बर न थी।
فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ مَكۡرِهِمۡ أَنَّا دَمَّرۡنَٰهُمۡ وَقَوۡمَهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 50
(51) अब देख लो कि उनकी चाल का परिणाम क्या हुआ। हमने तबाह करके रख दिया उनको और उनकी पूरी क़ौम को।
فَتِلۡكَ بُيُوتُهُمۡ خَاوِيَةَۢ بِمَا ظَلَمُوٓاْۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ ۝ 51
(52) वे उनके घर ख़ाली पड़े हैं उस ज़ुल्म के बदले में जो वे करते थे, इसमें एक शिक्षा सामग्री है उन लोगों के लिए जो ज्ञानवान है।
وَأَنجَيۡنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ يَتَّقُونَ ۝ 52
(53) और बचा लिया हमने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और अवज्ञा से बचते थे।
وَلُوطًا إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَتَأۡتُونَ ٱلۡفَٰحِشَةَ وَأَنتُمۡ تُبۡصِرُونَ ۝ 53
(54) और लूत को हमने भेजा। याद करो वह समय जब उसने अपनी क़ौम से कहा, “क्या तुम आँखों देखते अश्लील कर्म करते हो?11
11. अर्थात् एक-दूसरे के सामने कुकर्म करते हो। इसका स्पष्टीकरण आगे सूरा 29 (अनकबूत), आयत 29 में भी किया गया है कि वे अपनी मजलिसों में यह बुरा काम करते थे।
أَئِنَّكُمۡ لَتَأۡتُونَ ٱلرِّجَالَ شَهۡوَةٗ مِّن دُونِ ٱلنِّسَآءِۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٞ تَجۡهَلُونَ ۝ 54
(55) क्या तुम्हारा यही चलन है कि औरतों को छोड़कर मर्दों के पास काम-वासना की पूर्ति के लिए जाते हो? वास्तविकता यह है कि तुम लोग घोर अज्ञानता का कर्म करते हो।”
۞فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوۡمِهِۦٓ إِلَّآ أَن قَالُوٓاْ أَخۡرِجُوٓاْ ءَالَ لُوطٖ مِّن قَرۡيَتِكُمۡۖ إِنَّهُمۡ أُنَاسٞ يَتَطَهَّرُونَ ۝ 55
(56) मगर उसकी क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, “निकाल दो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से, ये बड़े पवित्राचारी बनते हैं।”
فَأَنجَيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ إِلَّا ٱمۡرَأَتَهُۥ قَدَّرۡنَٰهَا مِنَ ٱلۡغَٰبِرِينَ ۝ 56
(57) आख़िरकार हमने बचा लिया उसको और उसके घरवालों को, सिवाय उसकी बीवी के जिसका पीछे रह जाना हमने नियत कर दिया था,
وَأَمۡطَرۡنَا عَلَيۡهِم مَّطَرٗاۖ فَسَآءَ مَطَرُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 57
(58) और बरसाई उन लोगों पर एक बरसात, बहुत ही बुरी बरसात थी वह उन लोगों के हक़ में जिन्हें सावधान किया जा चुका था।
قُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ وَسَلَٰمٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ ٱلَّذِينَ ٱصۡطَفَىٰٓۗ ءَآللَّهُ خَيۡرٌ أَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 58
(59) (ऐ नबी) कहो, प्रशंसा है अल्लाह के लिए और सलाम उसके उन बन्दों पर जिन्हें उसने चुन लिया। (इनसे पूछो,) अल्लाह अच्छा है या वे उपास्य जिन्हें ये लोग उसका सहभागी बना रहे हैं?
أَمَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَنۢبَتۡنَا بِهِۦ حَدَآئِقَ ذَاتَ بَهۡجَةٖ مَّا كَانَ لَكُمۡ أَن تُنۢبِتُواْ شَجَرَهَآۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمٞ يَعۡدِلُونَ ۝ 59
(60) भला वह कौन है जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया फिर उसके द्वारा वे शोभायमान बाग़ उगाए जिनके पेड़ों का उगाना तुम्हारे अधिकार में न था? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य प्रभु भी (इन कार्यों में साझीदार) है? (नहीं) बल्कि यही लोग सन्मार्ग से हटकर चले जा रहे हैं।
أَمَّن جَعَلَ ٱلۡأَرۡضَ قَرَارٗا وَجَعَلَ خِلَٰلَهَآ أَنۡهَٰرٗا وَجَعَلَ لَهَا رَوَٰسِيَ وَجَعَلَ بَيۡنَ ٱلۡبَحۡرَيۡنِ حَاجِزًاۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ۝ 60
(61) और वह कौन हैं जिसने ज़मीन को ठहरने का स्थान बनाया और उसके अन्दर नदियाँ प्रवाहित कीं और उसमें (पहाड़ों की) मेख़ें गाड़ दीं और पानी के दो भण्डारों के बीच परदे डाल दिए? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य प्रभु भी (इन कामों में सहभागी) है? नहीं, बल्कि इनमें से ज़्यादातर लोग नादान हैं।
أَمَّن يُجِيبُ ٱلۡمُضۡطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكۡشِفُ ٱلسُّوٓءَ وَيَجۡعَلُكُمۡ خُلَفَآءَ ٱلۡأَرۡضِۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ قَلِيلٗا مَّا تَذَكَّرُونَ ۝ 61
(62) कौन है जो विकल की दुआ सुनता है जबकि वह उसे पुकारे और कौन उसकी तकलीफ़ दूर करता है? और (कौन है जो तुम्हें ज़मीन का अधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य प्रभु भी (यह काम करनेवाला) है? तुम लोग कम ही सोचते हो।
أَمَّن يَهۡدِيكُمۡ فِي ظُلُمَٰتِ ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ وَمَن يُرۡسِلُ ٱلرِّيَٰحَ بُشۡرَۢا بَيۡنَ يَدَيۡ رَحۡمَتِهِۦٓۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ تَعَٰلَى ٱللَّهُ عَمَّا يُشۡرِكُونَ ۝ 62
(63) और वह कौन है जो सूखी ज़मीन और समुद्र के अंधेरों में तुम्हें मार्ग दिखाता है और कौन अपनी दयालुता के आगे हवाओं को शुभ-सूचना लेकर भेजता है? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य प्रभु भी (यह कार्य करता) है? बहुत उच्च है अल्लाह उस शिर्क (बहुदेववादी कर्म) से जो ये लोग करते हैं।
أَمَّن يَبۡدَؤُاْ ٱلۡخَلۡقَ ثُمَّ يُعِيدُهُۥ وَمَن يَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۗ أَءِلَٰهٞ مَّعَ ٱللَّهِۚ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 63
(64) और वह कौन है जो प्रथम बार पैदा करता और फिर उसकी पुनरावृत्ति करता है? और कौन तुमको आसमान और ज़मीन से रोज़ी देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा भी (इन कामों में हिस्सेदार) है? कहो कि लाओ अपना प्रमाण अगर तुम सच्चे हो।
قُل لَّا يَعۡلَمُ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلۡغَيۡبَ إِلَّا ٱللَّهُۚ وَمَا يَشۡعُرُونَ أَيَّانَ يُبۡعَثُونَ ۝ 64
(65) इनसे कहो, अल्लाह के सिवा आसमानों और ज़मीन में कोई ग़ैब (परोक्ष) का ज्ञान नहीं रखता। और वे (तुम्हारे पूज्य तो यह भी) नहीं जानते कि कब वे उठाए जाएँगे।
بَلِ ٱدَّٰرَكَ عِلۡمُهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِۚ بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ مِّنۡهَاۖ بَلۡ هُم مِّنۡهَا عَمُونَ ۝ 65
(66) बल्कि आख़िरत का तो ज्ञान ही इन लोगों से गुम हो गया है, बल्कि ये उसकी ओर से शक में है, बल्कि ये उससे अन्धे हैं।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَءِذَا كُنَّا تُرَٰبٗا وَءَابَآؤُنَآ أَئِنَّا لَمُخۡرَجُونَ ۝ 66
(67) ये इनकार करनेवाले कहते हैं, “क्या जब हम और हमारे बाप-दादा मिट्टी हो चुके होंगे तो हमें वास्तव में क़ब्रों से निकाला जाएगा?
لَقَدۡ وُعِدۡنَا هَٰذَا نَحۡنُ وَءَابَآؤُنَا مِن قَبۡلُ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 67
(68) ये ख़बरें हमको भी बहुत दी गई हैं और पहले हमारे बाप-दादा को भी दी जाती रही हैं, मगर ये निरी कहानियाँ ही कहानियाँ हैं जो अगले समय से सुनते चले आ रहे हैं।”
قُلۡ سِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 68
(69) कहो तनिक ज़मीन में चल-फिरकर देखो कि अपराधियों का क्या परिणाम हो चुका है।
وَلَا تَحۡزَنۡ عَلَيۡهِمۡ وَلَا تَكُن فِي ضَيۡقٖ مِّمَّا يَمۡكُرُونَ ۝ 69
(70) ऐ नबी, इनकी दशा पर दुखी न हो और न इनकी चालों पर दिल तंग हो
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ ۝ 70
(71) — वे कहते हैं कि “यह धमकी कब पूरी होगी अगर तुम सच्चे हो?”
قُلۡ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعۡضُ ٱلَّذِي تَسۡتَعۡجِلُونَ ۝ 71
(72) कहो, क्या आश्चर्य कि जिस अज़ाब के लिए तुम जल्दी मचा रहे हो उसका एक भाग तुम्हारे क़रीब ही आ लगा हो।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَشۡكُرُونَ ۝ 72
(73) वास्तविकता यह है कि तेरा रब तो लोगों पर बड़ा उदार अनुग्रह करनेवाला है, मगर ज़्यादातर लोग कृतज्ञता नहीं दिखाते।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعۡلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمۡ وَمَا يُعۡلِنُونَ ۝ 73
(74) निस्संदेह तेरा रब ख़ूब जानता है जो कुछ उनके सीने अपने भीतर छिपाए हुए हैं और जो कुछ वे व्यक्त करते हैं।
وَمَا مِنۡ غَآئِبَةٖ فِي ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ إِلَّا فِي كِتَٰبٖ مُّبِينٍ ۝ 74
(75) आसमान और ज़मीन की कोई छिपी चीज़़ ऐसी नहीं है जो एक स्पष्ट किताब में लिखी हुई मौजूद न हो।12
12. स्पष्ट किताब से मुराद भाग्य लेख्य है।
إِنَّ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ يَقُصُّ عَلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ أَكۡثَرَ ٱلَّذِي هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ ۝ 75
(76) यह सत्य है कि यह क़ुरआन इसराईलियों को प्रायः उन बातों की वास्तविकता बताता है जिनमें वे विभेद रखते हैं
وَإِنَّهُۥ لَهُدٗى وَرَحۡمَةٞ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 76
(77) और यह मार्गदर्शन और दयालुता है ईमान लानेवालों के लिए।
إِنَّ رَبَّكَ يَقۡضِي بَيۡنَهُم بِحُكۡمِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 77
(78) यक़ीनन (इसी तरह) तेरा रब इन लोगों के बीच भी अपने आदेश से फ़ैसला कर देगा13 और वह प्रभुत्वशाली और सब कुछ जाननेवाला है।
13. अर्थात् क़ुरैश के अधर्मियों और ईमानवालों के बीच।
فَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۖ إِنَّكَ عَلَى ٱلۡحَقِّ ٱلۡمُبِينِ ۝ 78
(79) अतः ऐ नबी, अल्लाह पर भरोसा रखो, यक़ीनन तुम स्पष्ट सत्य पर हो।
إِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَلَا تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا وَلَّوۡاْ مُدۡبِرِينَ ۝ 79
(80) तुम मुर्दों को नहीं सुना सकते14, न उन बहरों तक अपनी पुकार पहुँचा सकते हो जो पीठ फेरकर भागे जा रहे हों,
14. अर्थात् ऐसे लोगों को जिनकी अन्तरात्माएँ मर चुकी हैं और जिनमें दुराग्रह और हठधर्मी और परम्परावाद ने सत्य और असत्य का अन्तर समझने की कोई क्षमता शेष नहीं छोड़ी है।
وَمَآ أَنتَ بِهَٰدِي ٱلۡعُمۡيِ عَن ضَلَٰلَتِهِمۡۖ إِن تُسۡمِعُ إِلَّا مَن يُؤۡمِنُ بِـَٔايَٰتِنَا فَهُم مُّسۡلِمُونَ ۝ 80
(81) और न अन्धों को मार्ग बताकर भटकने से बचा सकते हो। तुम तो अपनी बात उन्हीं लोगों को सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं और फिर आज्ञाकारी बन जाते हैं।
۞وَإِذَا وَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَيۡهِمۡ أَخۡرَجۡنَا لَهُمۡ دَآبَّةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ تُكَلِّمُهُمۡ أَنَّ ٱلنَّاسَ كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا لَا يُوقِنُونَ ۝ 81
(82) और जब हमारी बात पूरी होने का समय उनपर आ पहुँचेगा तो हम उनके लिए एक जानवर ज़मीन से निकालेंगे जो उनसे बात करेगा कि लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे।15
15. हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०) का कथन है कि यह उस समय होगा जब ज़मीन में कोई नेकी का आदेश देनेवाला और बुराई से रोकनेवाला बाक़ी न रहेगा। एक हदीस हज़रत अबू-सईद ख़ुदरी (रज़ि०) से रिवायत है जिसमें वे कहते हैं कि यही बात उन्होंने ख़ुद नबी (सल्ल०) से सुनी थी। इससे मालूम हुआ कि जब इनसान भलाई के लिए कहना और बुराई से रोकना छोड़ देंगे तो क़ियामत क़ायम होने से पहले अल्लाह एक जानवर के द्वारा अन्तिम बार तर्कसंगत बात सामने लाएगा कि किसी के लिए आपत्ति उठाने का अवसर न रहे। यह बात स्पष्ट नहीं है कि यह एक ही जानवर होगा या एक विशेष प्रकार की पशु जाति होगी जिसके अलग-अलग बहुत-से जानवर ज़मीन में फैल जाएँगे ‘दाब्बतुम-मिनल-अर्ज़' (एक जानवर ज़मीन से) के शब्दों में दोनों अर्थों की संभावना है। इस जानवर के निकलने का समय कौन-सा होगा? इसके सम्बन्ध में नबी (सल्ल०) का कथन है, कि “सूरज पश्चिम से उदय होगा और एक रोज़ दिन-दहाड़े यह जानवर निकल आएगा।” रहा किसी जानवर का इनसानों से इनसान की भाषा में बात करना, तो यह अल्लाह की सामर्थ्य का एक चमत्कार है। वह जिस चीज़ को चाहे बोलने की शक्ति प्रदान कर सकता है। क़ियामत से पहले तो वह एक जानवर ही को बोलने को शक्ति प्रदान करेगा, मगर जब वह क़ियामत आ जाएगी तो अल्लाह के न्यायालय में इनसान की आँख और कान और उसके शरीर की खाल तक बोल उठेगी, जैसा कि क़ुरआन (41 : 20-21) में स्पष्टतः बयान हुआ है।
وَيَوۡمَ نَحۡشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٖ فَوۡجٗا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِـَٔايَٰتِنَا فَهُمۡ يُوزَعُونَ ۝ 82
(83) और तनिक कल्पना करो उस दिन की जब हम प्रत्येक समुदाय में से एक फ़ौज की फ़ौज उन लोगों को घेर लाएँगे जो हमारी आयतों को झुठलाया करते थे, फिर उनको (उनकी क़िस्मों के अनुसार श्रेणियों में) क्रमबद्ध किया जाएगा।
حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُو قَالَ أَكَذَّبۡتُم بِـَٔايَٰتِي وَلَمۡ تُحِيطُواْ بِهَا عِلۡمًا أَمَّاذَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 83
(84) यहाँ तक कि जब सब आ जाएँगे, तो (उनका रब उनसे) पूछेगा कि “तुमने मेरी आयतों को झुठला दिया हालाँकि ज्ञान की दृष्टि से तुम उनपर हावी न हुए थे? अगर यह नहीं तो और तुम क्या कर रहे थे?”
وَوَقَعَ ٱلۡقَوۡلُ عَلَيۡهِم بِمَا ظَلَمُواْ فَهُمۡ لَا يَنطِقُونَ ۝ 84
(85) और उनके ज़ुल्म के कारण अज़ाब का वादा उनपर पूरा हो जाएगा, तब वे कुछ भी न बोल सकेंगे।
أَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّا جَعَلۡنَا ٱلَّيۡلَ لِيَسۡكُنُواْ فِيهِ وَٱلنَّهَارَ مُبۡصِرًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ ۝ 85
(86) क्या उनको सुझाई न देता था कि हमने रात उनके लिए शान्ति प्राप्त करने को बनाई थी और दिन को प्रकाशमान किया था? इसमें बहुत-सी निशानियाँ थीं उन लोगों के लिए जो ईमान लाते थे।
وَيَوۡمَ يُنفَخُ فِي ٱلصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُۚ وَكُلٌّ أَتَوۡهُ دَٰخِرِينَ ۝ 86
(87) और क्या गुज़रेगी उस दिन जबकि सूर (नरसिंघा) फूँका जाएगा और हौल खा जाएँगे सब जो आसमानों और ज़मीन में हैं—सिवाय उन लोगों के जिन्हें अल्लाह उस हौल से बचाना चाहेगा — और सब कान दबाए उसके पास हाज़िर हो जाएँगे।
وَتَرَى ٱلۡجِبَالَ تَحۡسَبُهَا جَامِدَةٗ وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ ٱلسَّحَابِۚ صُنۡعَ ٱللَّهِ ٱلَّذِيٓ أَتۡقَنَ كُلَّ شَيۡءٍۚ إِنَّهُۥ خَبِيرُۢ بِمَا تَفۡعَلُونَ ۝ 87
(88) आज तू पहाड़ों को देखता है और समझता है कि ख़ूब जमे हुए हैं, मगर उस समय ये बादलों की तरह उड़ रहे होंगे, यह अल्लाह की सामर्थ्य का चमत्कार होगा जिसने हर चीज़़ को तत्त्वदर्शिता के साथ सुदृढ़ किया है। वह ख़ूब जानता है कि तुम लोग क्या करते हो।
مَن جَآءَ بِٱلۡحَسَنَةِ فَلَهُۥ خَيۡرٞ مِّنۡهَا وَهُم مِّن فَزَعٖ يَوۡمَئِذٍ ءَامِنُونَ ۝ 88
(89) जो व्यक्ति भलाई लेकर आएगा उसे उससे अधिक अच्छा बदला मिलेगा और ऐसे लोग उस दिन के हौल से सुरक्षित होंगे,
وَمَن جَآءَ بِٱلسَّيِّئَةِ فَكُبَّتۡ وُجُوهُهُمۡ فِي ٱلنَّارِ هَلۡ تُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 89
(90) और जो बुराई लिए हुए आएगा, ऐसे सब लोग औंधे मुँह आग में फेंके जाएँगे। क्या तुम लोग इसके सिवा कोई और बदला पा सकते हो कि जैसा करो वैसा भरो?
إِنَّمَآ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ رَبَّ هَٰذِهِ ٱلۡبَلۡدَةِ ٱلَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُۥ كُلُّ شَيۡءٖۖ وَأُمِرۡتُ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ ۝ 90
(91) (ऐ नबी, इनसे कहो) “मुझे तो यही आदेश दिया गया है कि इस शहर (मक्का) के रब की बन्दगी करूँ जिसने इसे 'हरम' (आदरणीय) बनाया है और जो हर चीज़़ का मालिक है। मुझे आदेश दिया गया है कि मैं मुस्लिम बनकर रहूँ
وَأَنۡ أَتۡلُوَاْ ٱلۡقُرۡءَانَۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهۡتَدِي لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُنذِرِينَ ۝ 91
(92) और यह क़ुरआन पढ़कर सुनाऊँ।” अब जो सन्मार्ग ग्रहण करेगा वह अपनी ही भलाई के लिए सन्मार्ग ग्रहण करेगा और जो पथभ्रष्ट हो उससे कह दो कि “मैं तो बस सावधान कर देनेवाला हूँ।”
وَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ فَتَعۡرِفُونَهَاۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 92
(93) उनसे कहो, प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जल्द ही वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखा देगा और तुम उन्हें पहचान लोगे, और तेरा रब बेख़बर नहीं है उन कर्मों से जो तुम लोग करते हो।