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سُورَةُ صٓ

38. सॉद

(मक्का में उतरी, आयतें 88) 

परिचय

नाम

इस सूरा के शुरू ही के अक्षर 'सॉद' को इस सूरा का नाम दिया गया है।

उतरने का समय

जैसा की आगे चलकर बताया जाएगा कि कुछ रिवायतों के अनुसार यह सूरा उस समय उतरी थी, जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का मुअज़्ज़मा में खुल्लम-खुल्ला दावत (आह्वान) का आरंभ किया था। कुछ दूसरी रिवायतें इसके उतरने को हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने के बाद की घटना बताती हैं। रिवायतों के एक और क्रम से मालूम होता है कि इसके उतरने का समय नुबूवत का दसवाँ या ग्यारहवाँ साल है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

इमाम अहमद, नसई और तिर्मिज़ी आदि ने जो रिवायतें नक़्ल की हैं, उनका सारांश यह है कि जब अबू-तालिब बीमार हुए और कुरैश के सरदारों ने महसूस किया कि अब यह उनका अन्तिम समय है, तो उन्होंने आपस में मश्‍वरा किया कि चलकर उनसे बात करनी चाहिए। वे हमारा और अपने भतीजे का झगड़ा चुका जाएँ तो अच्छा हो। इस राय पर सब सहमत हो गए और क़ुरैश के लगभग पच्चीस सरदार, जिनमें अबू-जहल, अबू-सुफ़ियान, उमैया-बिन-ख़ल्फ़, आस-बिन-वाइल, अस्वद-बिन-मुत्तलिब, उक़बा-बिन-अबी-मुऐत, उतबा और शैबा शामिल थे, अबू-तालिब के पास पहुँचे। उन लोगों ने पहले तो अपनी सामान्य नीति के मुताबिक़ नबी (सल्ल०) के विरुद्ध अपनी शिकायतें बयान की, फिर कहा कि हम आपके सामने एक न्याय की बात रखने आए हैं। आपका भतीजा हमें हमारे दीन पर छोड़ दे और हम उसे उसके दीन पर छोड़ देते हैं, लेकिन वह हमारे उपास्यों का विरोध और उनकी निंदा न करे। इस शर्त पर आप हमसे उसका समझौता करा दें। अबू-तालिब ने नबी (सल्ल०) को बुलाया और आप (सल्ल०) को वह बात बताई जो क़ुरैश के सरदारों ने उनसे कही थी। नबी (सल्ल०) ने उत्तर में कहा, "चचा जान! मैं तो इनके सामने एक ऐसी बात पेश करता हूँ जिसे अगर ये मान लें तो अरब इनके अधीन हो जाए और ग़ैर-अरब इन्हें कर (Tax) देने लग जाएँ।" उन्होंने पूछा, “वह बात क्या है ?" आप (सल्ल०) ने फ़रमाया, "ला इला-ह इल्लल्लाह" (नहीं है कोई उपास्य सिवाय अल्लाह के)। इसपर वे सब एक साथ उठ खड़े हुए और वे बातें कहते हुए निकल गए जो इस सूरा के शुरू के हिस्से में अल्लाह ने नक़्ल की हैं। इब्‍ने-सअद की रिवायत के अनुसार यह अबू-तालिब के मृत्यु-रोग की नहीं, बल्कि उस समय की घटना है, जब नबी (सल्ल०) ने सामान्य रूप से लोगों को सत्य की ओर बुलाना शुरू कर दिया था और मक्का में बराबर ये ख़बरें फ़ैलनी शुरू हो गई थीं कि आज फ़ुलाँ आदमी मुसलमान हो गया और कल फ़ुलाँ। ज़मख़शरी, राजी, नेशाबूरी (नेशापूरी) और कुछ दूसरे टीकाकार कहते हैं कि यह प्रतिनिधिमंडल अबूृ-तालिब के पास उस समय गया था जब हज़रत उमर (रज़ि०) के ईमान लाने पर क़ुरैश के सरदार बौखला गए थे। (मानो यह हबशा की हिजरत के बाद की घटना है।)

विषय और वार्ता

ऊपर जिस बैठक का उल्लेख किया गया है, उसकी समीक्षा करते हुए इस सूरा की शुरुआत हुई है। इस्लाम विरोधियों और नबी (सल्ल०) की बातचीत को आधार बनाकर अल्लाह ने बताया है कि इन लोगों के इंकार का मूल कारण इस्लामी दावत की कोई कमी नहीं है, बल्कि उनका अपना घमंड, जलन और अंधी पैरवी पर दुराग्रह है। इसके बाद अल्लाह ने सूरा के शुरू के हिस्से में भी और आख़िरी वाक्यों में भी इस्लाम विरोधियों को साफ़-साफ़ चेतावनी दी है कि जिस आदमी का आज तुम मज़ाक़ उड़ा रहे हो, बहुत जल्द वही ग़ालिब आकर रहेगा, और वह समय दूर नहीं जब उसके आगे तुम सब नतमस्तक नज़र आओगे। फिर बराबर नौ पैग़म्बरों का उल्लेख करके, जिनमें हज़रत दाऊद और सुलैमान (अलैहि०) का क़िस्सा अधिक विस्तार से है, अल्लाह ने यह बात सुननेवालों के मन में बिठाई है कि उसके न्याय का क़ानून बिल्कुल बे-लाग है। ग़लत बात चाहे कोई भी करे, वह उसपर पकड़ करता है, और उसके यहाँ वही लोग पसन्द किए जाते हैं जो ग़लती पर हठ न करें, बल्कि उससे अवगत होते ही तौबा कर लें। इसके बाद आज्ञाकारी बन्दों और सरकश बन्दों के उस अंजाम का चित्र खींचा गया है जो वे परलोक में देखनेवाले हैं। अन्त में आदम (अलैहि०) और इबलीस के क़िस्से का उल्लेख किया गया है और उसका अभिप्राय क़ुरैश के इस्लाम विरोधियों को यह बताना है कि मुहम्मद (सल्ल.) के आगे झुकने से जो अहंकार तुम्हारे रास्ते की रुकावट बन रहा है, वही अहंकार आदम के आगे झुकने में इबलीस के लिए भी रुकावट बना था। इसलिए जो अंजाम इबलीस का होना है, वही अन्ततः तुम्हारा भी होना है।

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سُورَةُ صٓ
38. सॉद
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
صٓۚ وَٱلۡقُرۡءَانِ ذِي ٱلذِّكۡرِ
(1) सॉद, क़सम है नसीहत भरे क़ुरआन की
بَلِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي عِزَّةٖ وَشِقَاقٖ ۝ 1
(2) बल्कि यही लोग, जिन्होंने मानने से इनकार किया है, बड़े अभिमान और दुराधर में ग्रस्त है।1
1. अर्थात् इन इनकार करनेवालों के इनकार का कारण यह नहीं है कि जो धर्म इनके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है उसमें कोई दोष है। बल्कि इसका कारण सिर्फ़ इनका झूठा अहंकार, इनका अज्ञानपूर्ण गर्व और इनको हठधर्मी है।
كَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِن قَبۡلِهِم مِّن قَرۡنٖ فَنَادَواْ وَّلَاتَ حِينَ مَنَاصٖ ۝ 2
(3) इनसे पहले हम ऐसी कितनी ही क़ौमों को तबाह कर चुके हैं (और जब उनकी शामत आई है) तो वे चीख़ उठे हैं, मगर वह समय बचने का नहीं होता।
وَعَجِبُوٓاْ أَن جَآءَهُم مُّنذِرٞ مِّنۡهُمۡۖ وَقَالَ ٱلۡكَٰفِرُونَ هَٰذَا سَٰحِرٞ كَذَّابٌ ۝ 3
(4) इन लोगों को इस बात पर बड़ा ताज्जुब हुआ कि एक डरानेवाला ख़ुद इन्हीं में से आ गया। इनकार करनेवाले कहने लगे कि “यह जादूगर है, बड़ा झूठा है,
أَجَعَلَ ٱلۡأٓلِهَةَ إِلَٰهٗا وَٰحِدًاۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيۡءٌ عُجَابٞ ۝ 4
(5) क्या इसने सारे ख़ुदाओं की जगह बस एक ही ख़ुदा बना डाला? यह तो बड़ी अज़ीब बात है।”
وَٱنطَلَقَ ٱلۡمَلَأُ مِنۡهُمۡ أَنِ ٱمۡشُواْ وَٱصۡبِرُواْ عَلَىٰٓ ءَالِهَتِكُمۡۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيۡءٞ يُرَادُ ۝ 5
(6) और क़ौमों के सरदार ये कहते हुए निकल गए कि “चलो और डटे रहो अपने उपास्यों की पूजा पर यह बात तो किसी और ही उद्देश्य से कही जा रही है।2
2. उनका मतलब यह था कि इस दाल में कुछ काला दिखाई देता है, वास्तव में यह निमंत्रण इस उद्देश्य से दिया जा रहा है कि हम सब मुहम्मद (सल्ल०) के आदेशाधीन हो जाएँ और ये हमपर अपना हुक्म चलाएँ।
مَا سَمِعۡنَا بِهَٰذَا فِي ٱلۡمِلَّةِ ٱلۡأٓخِرَةِ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا ٱخۡتِلَٰقٌ ۝ 6
(7) यह बात हमने क़रीब समय के पन्थ में किसी से नहीं सुनी। यह कुछ नहीं है मगर एक मनगढ़न्त बात।
أَءُنزِلَ عَلَيۡهِ ٱلذِّكۡرُ مِنۢ بَيۡنِنَاۚ بَلۡ هُمۡ فِي شَكّٖ مِّن ذِكۡرِيۚ بَل لَّمَّا يَذُوقُواْ عَذَابِ ۝ 7
(8) क्या हमारे बीच बस यही एक व्यक्ति रह गया था जिसपर अल्लाह का ज़िक्र (अनुस्मारक) अवतरित कर दिया गया?” वास्तविकता यह है कि ये मेरे 'ज़िक्र' (अनुस्मारक) पर शक3 कर रहे हैं, और ये सारी बातें इसलिए कर रहे हैं कि इन्होंने मेरे अज़ाब का मज़ा चखा नहीं है।
3. दूसरे शब्दों में अल्लाह कहता है कि ऐ मुहम्मद (सल्ल०), ये लोग वास्तव में तुम्हें नहीं झुठला रहे हैं बल्कि मुझे झुठला रहे हैं। इन्हें शक तुम्हारी सच्चाई पर नहीं है, मेरी शिक्षाओं पर है।
أَمۡ عِندَهُمۡ خَزَآئِنُ رَحۡمَةِ رَبِّكَ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡوَهَّابِ ۝ 8
(9) क्या तेरे दाता और प्रभुत्वशाली पालनहार की दयालुता के ख़ज़ाने इनके क़ब्ज़े में हैं?
أَمۡ لَهُم مُّلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَاۖ فَلۡيَرۡتَقُواْ فِي ٱلۡأَسۡبَٰبِ ۝ 9
(10) क्या ये आसमान और ज़मीन और उनके बीच की चीज़़ों के मालिक हैं? अच्छा तो ये कारण कार्य पर आधारित लोक की ऊँचाइयों पर चढ़कर देखें।
جُندٞ مَّا هُنَالِكَ مَهۡزُومٞ مِّنَ ٱلۡأَحۡزَابِ ۝ 10
(11) यह तो जत्थों में से एक छोटा-सा जत्था है जो इसी जगह मात खानेवाला है।4
4. 'इसी जगह' का संकेत प्रतिष्ठित मक्का की ओर है। अर्थात् जहाँ ये लोग ये बातें बना रहे हैं, इसी जगह एक दिन ये परास्त होनेवाले हैं और यहाँ वह समय आनेवाला है जब ये मुँह लटकाए उसी व्यक्ति के सामने खड़े होंगे जिसे आज ये हीन समझकर नबी मानने से इनकार कर रहे हैं।
كَذَّبَتۡ قَبۡلَهُمۡ قَوۡمُ نُوحٖ وَعَادٞ وَفِرۡعَوۡنُ ذُو ٱلۡأَوۡتَادِ ۝ 11
(12) इनसे पहले नूह की क़ौम, और आद और मेख़ोंवाला फ़िरऔन,
وَثَمُودُ وَقَوۡمُ لُوطٖ وَأَصۡحَٰبُ لۡـَٔيۡكَةِۚ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلۡأَحۡزَابُ ۝ 12
(13) और समूद, और लूत की क़ौम, और ऐकावाले झुठला चुके हैं। जत्थे वे थे।
إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ ٱلرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ ۝ 13
(14) उनमें से हर एक ने रसूलों को झुठलाया और मेरी यातना का फ़ैसला उसपर चस्पाँ होकर रहा।
وَمَا يَنظُرُ هَٰٓؤُلَآءِ إِلَّا صَيۡحَةٗ وَٰحِدَةٗ مَّا لَهَا مِن فَوَاقٖ ۝ 14
(15) ये लोग भी बस एक धमाके के इन्तिज़ार में हैं, जिसके बाद कोई दूसरा धमाका न होगा।
وَقَالُواْ رَبَّنَا عَجِّل لَّنَا قِطَّنَا قَبۡلَ يَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ ۝ 15
(16) और ये कहते हैं कि ऐ हमारे रब! हिसाब के दिन से पहले ही हमारा हिस्सा हमें जल्दी से दे दे।
ٱصۡبِرۡ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَا دَاوُۥدَ ذَا ٱلۡأَيۡدِۖ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٌ ۝ 16
(17) ऐ नबी, सब्र करो उन बातों पर जो ये लोग बनाते हैं, और इनके सामने हमारे बन्दे दाऊद का क़िस्सा बयान करो जो बड़ी शक्तियों का मालिक था। हर मामले में अल्लाह की तरफ़ रुजू करनेवाला था।
إِنَّا سَخَّرۡنَا ٱلۡجِبَالَ مَعَهُۥ يُسَبِّحۡنَ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِشۡرَاقِ ۝ 17
(18) हमने पहाड़ों को उसके साथ वशीभूत कर रखा था कि सुबह और शाम वे उसके साथ तसबीह (महिमागान) करते थे।
وَٱلطَّيۡرَ مَحۡشُورَةٗۖ كُلّٞ لَّهُۥٓ أَوَّابٞ ۝ 18
(19) पक्षी सिमट आते, सब के सब उसकी तसबीह (महिमागान) की ओर ध्यान-मग्न हो जाते थे।
وَشَدَدۡنَا مُلۡكَهُۥ وَءَاتَيۡنَٰهُ ٱلۡحِكۡمَةَ وَفَصۡلَ ٱلۡخِطَابِ ۝ 19
(20) हमने उसका राज्य सुदृढ़ कर दिया था, उसे तत्त्वज्ञान प्रदान किया था और निर्णायक बात कहने की क्षमता दी थी।
۞وَهَلۡ أَتَىٰكَ نَبَؤُاْ ٱلۡخَصۡمِ إِذۡ تَسَوَّرُواْ ٱلۡمِحۡرَابَ ۝ 20
(21) फिर तुम्हें कुछ ख़बर पहुँची है उन मुक़द्दमेवालों की जो दीवार चढ़कर उसकी अटारी में घुस आए थे?
إِذۡ دَخَلُواْ عَلَىٰ دَاوُۥدَ فَفَزِعَ مِنۡهُمۡۖ قَالُواْ لَا تَخَفۡۖ خَصۡمَانِ بَغَىٰ بَعۡضُنَا عَلَىٰ بَعۡضٖ فَٱحۡكُم بَيۡنَنَا بِٱلۡحَقِّ وَلَا تُشۡطِطۡ وَٱهۡدِنَآ إِلَىٰ سَوَآءِ ٱلصِّرَٰطِ ۝ 21
(22) जब वे दाऊद के पास पहुँचे तो वह उन्हें देखकर घबरा गया। उन्होंने कहा, “डरिए नहीं, हम मुक़द्दमे के दो फ़रीक़ (पक्ष) हैं जिनमें से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है। आप हमारे बीच ठीक-ठीक हक़ के साथ फ़ैसला कर दीजिए, बेइनसाफ़ी न कीजिए और हमे सन्मार्ग बताइए।
إِنَّ هَٰذَآ أَخِي لَهُۥ تِسۡعٞ وَتِسۡعُونَ نَعۡجَةٗ وَلِيَ نَعۡجَةٞ وَٰحِدَةٞ فَقَالَ أَكۡفِلۡنِيهَا وَعَزَّنِي فِي ٱلۡخِطَابِ ۝ 22
(23) यह मेरा भाई है, इसके पास निन्यानवे दुंबियाँ हैं और मेरे पास सिर्फ़ एक ही दुंबी है। इसने मुझसे कहा कि यह एक दुंबी भी मुझे सौंप दे और इसने बातचीत में मुझे दबा लिया।”5
5. अभियोक्ता ने यह नहीं कहा कि मेरी दुंबी छीन ली, बल्कि यह कहा कि मेरी दुंबी भी मुझसे माँगी और यह चाहा कि मैं वह इसको सौंप दूँ चूँकि यह उच्च व्यक्तित्व का आदमी है इसलिए मुझपर इसका दबाव पड़ रहा है।
قَالَ لَقَدۡ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعۡجَتِكَ إِلَىٰ نِعَاجِهِۦۖ وَإِنَّ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلۡخُلَطَآءِ لَيَبۡغِي بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٍ إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَقَلِيلٞ مَّا هُمۡۗ وَظَنَّ دَاوُۥدُ أَنَّمَا فَتَنَّٰهُ فَٱسۡتَغۡفَرَ رَبَّهُۥ وَخَرَّۤ رَاكِعٗاۤ وَأَنَابَ۩ ۝ 23
(24) दाऊद ने जवाब दिया: “इस व्यक्ति ने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी मिला लेने की माँग करके यक़ीनन तुझपर ज़ुल्म किया, और सच यह है कि मिल-जुलकर साथ रहनेवाले लोग प्रायः एक दूसरे पर ज़्यादतियाँ करते रहते हैं, बस वही लोग इससे बचे हुए हैं जो ईमान रखते और अच्छे कर्म करते है, और ऐसे लोग कम ही हैं।” (यह बात कहते-कहते) दाऊद समझ गया कि यह तो हमने वास्तव में उसकी आज़माइश की है, अतएव उसने अपने रब से माफ़ी माँगी और सजदे में गिर गया और रुजू कर लिया।
فَغَفَرۡنَا لَهُۥ ذَٰلِكَۖ وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ ۝ 24
(25) तब हमने उसका वह क़ुसूर माफ़ किया6 और यक़ीनन हमारे यहाँ उसके लिए सामीप्य का स्थान और अच्छा परिणाम है।
6. इससे मालूम हुआ कि हज़रत दाऊद (अलैहि०) से क़ुसूर तो ज़रूर हुआ था, और वह कोई ऐसा क़ुसूर था जो दुंबियोवाले मुक़द्दमें से किसी तरह का मिलता-जुलता था, इसी लिए उसका फ़ैसला सुनाते हुए अचानक उनको ख़याल आया कि यह मेरी आज़माइश हो रही है, लेकिन वह क़ुसूर ऐसा गंभीर न था कि उसे माफ़ न किया जाता, या अगर माफ़ किया जाता तो भी वे अपने ऊँचे पद से गिरा दिए जाते। अल्लाह यहाँ ख़ुद स्पष्ट कर रहा है कि जब उन्होंने सजदे में गिरकर तौबा की तो न सिर्फ़ यह कि उन्हें माफ़ कर दिया गया, बल्कि दुनिया और आख़िरत में उनको जो उच्च स्थान प्राप्त था उसमें भी कोई अन्तर न आया।
يَٰدَاوُۥدُ إِنَّا جَعَلۡنَٰكَ خَلِيفَةٗ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱحۡكُم بَيۡنَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ ٱلۡهَوَىٰ فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدُۢ بِمَا نَسُواْ يَوۡمَ ٱلۡحِسَابِ ۝ 25
(26) (हमने उससे कहा) “ऐ दाऊद, हमने तुझे ज़मीन में ख़लीफ़ा बनाया है, अतः तू लोगों के बीच हक़ के साथ शासन कर और मन की इच्छा का अनुपालन न कर कि वह तुझे अल्लाह के मार्ग से भटका देगी। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटकते हैं यक़ीनन उनके लिए कठोर सज़ा है कि वे हिसाब के दिन को भूल गए।"
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا بَٰطِلٗاۚ ذَٰلِكَ ظَنُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنَ ٱلنَّارِ ۝ 26
(27) हमने इस आसमान और ज़मीन को और इस दुनिया को जो उनके बीच है, व्यर्थ पैदा नहीं कर दिया है। यह तो उन लोगों का अनुमान है जिन्होंने इनकार किया है, और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए बरबादी है जहन्नम की आग से।
أَمۡ نَجۡعَلُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ كَٱلۡمُفۡسِدِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَمۡ نَجۡعَلُ ٱلۡمُتَّقِينَ كَٱلۡفُجَّارِ ۝ 27
(28) क्या हम उन लोगों को जो ईमान लाते और अच्छे कर्म करते हैं और उनको जो धरती में बिगाड़ पैदा करनेवाले हैं समान कर दें? क्या डर रखनेवालों को हम दुराचारियों जैसा कर दें?
كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ إِلَيۡكَ مُبَٰرَكٞ لِّيَدَّبَّرُوٓاْ ءَايَٰتِهِۦ وَلِيَتَذَكَّرَ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 28
(29) — यह एक बड़ी बरकतवाली किताब है जो (ऐ नबी) हमने तुम्हारी ओर अवतरित की है ताकि ये लोग इसकी आयतों पर विचार करें और बुद्धि और समझ रखनेवाले इससे शिक्षा लें।
وَوَهَبۡنَا لِدَاوُۥدَ سُلَيۡمَٰنَۚ نِعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٌ ۝ 29
(30) और दाऊद को हमने सुलैमान (जैसा बेटा) प्रदान किया, बहुत ही अच्छा बन्दा अत्यधिक अपने रब की ओर रुजू करनेवाला।
إِذۡ عُرِضَ عَلَيۡهِ بِٱلۡعَشِيِّ ٱلصَّٰفِنَٰتُ ٱلۡجِيَادُ ۝ 30
(31) उल्लेखनीय है वह अवसर जब शाम के समय उसके सामने बहुत ही सधे हुए घोड़े पेश किए गए
فَقَالَ إِنِّيٓ أَحۡبَبۡتُ حُبَّ ٱلۡخَيۡرِ عَن ذِكۡرِ رَبِّي حَتَّىٰ تَوَارَتۡ بِٱلۡحِجَابِ ۝ 31
(32) तो उसने कहा, “मैंने इस माल के प्रति प्रेम अपने रब की याद के कारण से अपनाया है।” यहाँ तक कि जब वे घोड़े निगाह से ओझल हो गए,
رُدُّوهَا عَلَيَّۖ فَطَفِقَ مَسۡحَۢا بِٱلسُّوقِ وَٱلۡأَعۡنَاقِ ۝ 32
(33) तो उसने आदेश दिया कि उन्हें मेरे पास वापस लाओ, फिर लगा उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने।
وَلَقَدۡ فَتَنَّا سُلَيۡمَٰنَ وَأَلۡقَيۡنَا عَلَىٰ كُرۡسِيِّهِۦ جَسَدٗا ثُمَّ أَنَابَ ۝ 33
(34) और (देखो कि) सुलैमान को भी हमने आज़माइश में डाला और उसकी कुर्सी पर एक धड़ लाकर डाल दिया। फिर उसने रुजू किया
هَٰذَا عَطَآؤُنَا فَٱمۡنُنۡ أَوۡ أَمۡسِكۡ بِغَيۡرِ حِسَابٖ ۝ 34
(39) (हमने उससे कहा) “यह हमारी बख़शिश है, तुझे अधिकार है जिसे चाहे दे और जिससे चाहे रोक ले, कोई हिसाब नहीं।”
وَإِنَّ لَهُۥ عِندَنَا لَزُلۡفَىٰ وَحُسۡنَ مَـَٔابٖ ۝ 35
(40) यक़ीनन उसके लिए हमारे यहाँ सामीप्य स्थान और अच्छा परिणाम है।
وَٱذۡكُرۡ عَبۡدَنَآ أَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلشَّيۡطَٰنُ بِنُصۡبٖ وَعَذَابٍ ۝ 36
(41) और हमारे बन्दे अय्यूब को याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि शैतान ने मुझे तकलीफ़ और अज़ाब में डाल दिया है।8
8. इसका मतलब यह नहीं है कि शैतान ने मुझे बीमारी में ग्रस्त कर दिया है और मेरे ऊपर मुसीबतें उतारी दी हैं, बल्कि इसका सही अर्थ यह है कि बीमारी की सख़्ती, धन-दौलत की हानि और स्वजनों और नातेदारों के मुँह मोड़ लेने से मैं जिस तकलीफ़ और अज़ाब में ग्रस्त हूँ उससे बढ़कर तकलीफ़ और अज़ाब मेरे लिए यह है कि शैतान अपने वसवसों से मुझे तंग कर रहा है, वह इन परिस्थितियों में मुझे अपने रब से निराश करने की कोशिश करता है, मुझे अपने रब का नाशुक्रा बनाना चाहता है और इस बात पर लगा हुआ है कि मैं सब्र का दामन हाथ से छोड़ बैठूँ।
ٱرۡكُضۡ بِرِجۡلِكَۖ هَٰذَا مُغۡتَسَلُۢ بَارِدٞ وَشَرَابٞ ۝ 37
(42) (हमने उसे आदेश दिया) अपना पाँव ज़मीन पर मार, यह है ठण्डा पानी नहाने के लिए और पीने के लिए।
وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ أَهۡلَهُۥ وَمِثۡلَهُم مَّعَهُمۡ رَحۡمَةٗ مِّنَّا وَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ ۝ 38
(43) हमने उसे उसके परिजन वापस दिए और उनके साथ उतने ही और अपनी ओर से दयालुता के रूप में, और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए नसीहत के रूप में।
وَخُذۡ بِيَدِكَ ضِغۡثٗا فَٱضۡرِب بِّهِۦ وَلَا تَحۡنَثۡۗ إِنَّا وَجَدۡنَٰهُ صَابِرٗاۚ نِّعۡمَ ٱلۡعَبۡدُ إِنَّهُۥٓ أَوَّابٞ ۝ 39
(44) (और हमने उससे कहा) तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार दे, अपनी क़सम न तोड़।9 हमने उसे सब्र करनेवाला पाया, बहुत ही अच्छा बन्दा, अपने रब की ओर बहुत रुजू करनेवाला।
9. इन शब्दों पर विचार करने से यह बात साफ़ मालूम होती है कि हज़रत अय्यूब (अलैहि०) ने बीमारी की हालत में ग़ुस्सा होकर किसी को मारने की क़सम खा ली थी, (कुछ उल्लेख ये हैं कि पत्नी को मारने की क़सम खाई थी) और इस क़सम ही में उन्होंने यह भी कहा था कि तुझे इतने कोड़े मारूँगा। जब अल्लाह ने उनको पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान किया और बीमारी की हालत का वह ग़ुस्सा दूर हो गया जिसमें यह क़सम खाई गई थी, तो उनको यह परेशानी हुई की क़सम पूरी करता हूँ तो अकारण एक बेगुनाह को मारना पड़ेगा, और क़सम तोड़ता हूँ तो यह भी एक गुनाह करना है। इस मुश्किल से अल्लाह ने उन्हें इस तरह निकाला कि उन्हें हुक्म दिया, एक झाड़ू लो जिसमें उतने ही तिनके हों जितने कोड़े तुमने मारने की क़सम खाई थी, और उस झाड़ू से उस व्यक्ति को बस एक बार मार दो, ताकि तुम्हारी क़सम भी पूरी हो जाए और उसे अनुचित तकलीफ़ भी न पहुँचे।
وَٱذۡكُرۡ عِبَٰدَنَآ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ أُوْلِي ٱلۡأَيۡدِي وَٱلۡأَبۡصَٰرِ ۝ 40
(45) और हमारे बन्दों, इबराहीम और इसहाक और याक़ूब का ज़िक्र करो बड़ी कार्य-शक्ति रखनेवाले और दूर दृष्टिवाले लोग थे।
إِنَّآ أَخۡلَصۡنَٰهُم بِخَالِصَةٖ ذِكۡرَى ٱلدَّارِ ۝ 41
(46) हमने उनको एक विशिष्ट गुण के कारण चुन लिया था, और वह आख़िरत के घर की याद थी।
وَإِنَّهُمۡ عِندَنَا لَمِنَ ٱلۡمُصۡطَفَيۡنَ ٱلۡأَخۡيَارِ ۝ 42
(47) यक़ीनन हमारे यहाँ उनकी गणना चुने हुए नेक व्यक्तियों में है।
وَٱذۡكُرۡ إِسۡمَٰعِيلَ وَٱلۡيَسَعَ وَذَا ٱلۡكِفۡلِۖ وَكُلّٞ مِّنَ ٱلۡأَخۡيَارِ ۝ 43
(48) और इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुलक़िफ़्ल का ज़िक्र करो, ये सब नेक लोगों में से थे।
هَٰذَا ذِكۡرٞۚ وَإِنَّ لِلۡمُتَّقِينَ لَحُسۡنَ مَـَٔابٖ ۝ 44
(49) यह एक ज़िक्र था। (अब सुनो कि) डर रखनेवालों के लिए यक़ीनन अच्छे से अच्छा ठिकाना है
جَنَّٰتِ عَدۡنٖ مُّفَتَّحَةٗ لَّهُمُ ٱلۡأَبۡوَٰبُ ۝ 45
(50) हमेशा रहनेवाली जन्नतें जिनके द्वार उनके लिए खुले होंगे।
مُتَّكِـِٔينَ فِيهَا يَدۡعُونَ فِيهَا بِفَٰكِهَةٖ كَثِيرَةٖ وَشَرَابٖ ۝ 46
(51) उनमें वे तकिए लगाए बैठे होंगे, ख़ूब-ख़ूब मेवे और पेय मँगवा रहे होंगे,
۞وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ أَتۡرَابٌ ۝ 47
(52) और उनके पास शरमीली समान उम्रवाली पत्नियाँ होंगी।
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوۡمِ ٱلۡحِسَابِ ۝ 48
(53) ये वे चीज़़ें हैं जिन्हें हिसाब के दिन देने का तुमसे वादा किया जा रहा है।
إِنَّ هَٰذَا لَرِزۡقُنَا مَا لَهُۥ مِن نَّفَادٍ ۝ 49
(54) यह हमारा दिया हुआ है जो कभी समाप्त होनेवाला नहीं।
هَٰذَاۚ وَإِنَّ لِلطَّٰغِينَ لَشَرَّ مَـَٔابٖ ۝ 50
(55) यह तो है डर रखनेवालों का परिणाम और सरकशों के लिए अत्यन्त बुरा ठिकाना है,
جَهَنَّمَ يَصۡلَوۡنَهَا فَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ ۝ 51
(56) जहन्नम, जिसमें वे झुलसे जाएँगे, बहुत ही बुरा आवास।
هَٰذَا فَلۡيَذُوقُوهُ حَمِيمٞ وَغَسَّاقٞ ۝ 52
(57) यह है उनके लिए, अतः वे मज़ा चखें खोलते हुए पानी और पीप रक्त
وَءَاخَرُ مِن شَكۡلِهِۦٓ أَزۡوَٰجٌ ۝ 53
(58) और इसी तरह की दूसरी कडुवाहटों का
هَٰذَا فَوۡجٞ مُّقۡتَحِمٞ مَّعَكُمۡ لَا مَرۡحَبَۢا بِهِمۡۚ إِنَّهُمۡ صَالُواْ ٱلنَّارِ ۝ 54
(59) (वे जहन्नम की ओर अपने अनुयायियों को आते देखकर आपस में कहेंगे) “यह एक फ़ौज तुम्हारे पास घुसी चली आ रही है, कोई स्वागत इनके लिए नहीं है, ये आग में झुलसनेवाले हैं।”
قَالُواْ بَلۡ أَنتُمۡ لَا مَرۡحَبَۢا بِكُمۡۖ أَنتُمۡ قَدَّمۡتُمُوهُ لَنَاۖ فَبِئۡسَ ٱلۡقَرَارُ ۝ 55
(60) वे उनको जवाब देंगे, “नहीं बल्कि तुम ही झुलसे जा रहो हो, कोई स्वागत तुम्हारे लिए नहीं। तुम ही तो यह परिणाम हमारे आगे लाए हो, कैसी बुरी है यह ठहरने की जगह।”
قَالُواْ رَبَّنَا مَن قَدَّمَ لَنَا هَٰذَا فَزِدۡهُ عَذَابٗا ضِعۡفٗا فِي ٱلنَّارِ ۝ 56
(61) फिर वे कहेंगे, “ऐ हमारे रब, जिसने हमें इस परिणाम को पहुँचाने की व्यवस्था की उसको दोज़ख़ का दोहरा अज़ाब दे।
وَقَالُواْ مَا لَنَا لَا نَرَىٰ رِجَالٗا كُنَّا نَعُدُّهُم مِّنَ ٱلۡأَشۡرَارِ ۝ 57
(62) और वे आपस में कहेंगे, “क्या बात है, हम उन लोगों को कहीं नहीं देखते जिन्हें हम दुनिया में बुरा समझते थे?
أَتَّخَذۡنَٰهُمۡ سِخۡرِيًّا أَمۡ زَاغَتۡ عَنۡهُمُ ٱلۡأَبۡصَٰرُ ۝ 58
(63) हमने यों ही उनका मज़ाक़ बना लिया था, या वे कहीं निगाहों से ओझल हैं?”
إِنَّ ذَٰلِكَ لَحَقّٞ تَخَاصُمُ أَهۡلِ ٱلنَّارِ ۝ 59
(64) बेशक यह बात सच्ची है, दोज़ख़वालों में यही कुछ झगड़े होनेवाले हैं।
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ مُنذِرٞۖ وَمَا مِنۡ إِلَٰهٍ إِلَّا ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ ۝ 60
(65) (ऐ नबी) उनसे कहो “मैं तो बस सावधान कर देनेवाला हूँ। कोई वास्तविक पूज्य नहीं मगर अल्लाह जो यकता है, सबपर बलशाली,
رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّٰرُ ۝ 61
(66) आसमानों और ज़मीन का मालिक और उन सारी चीज़़ों का मालिक जो उनके बीच हैं, बलशाली और माफ़ करनेवाला।”
قُلۡ هُوَ نَبَؤٌاْ عَظِيمٌ ۝ 62
(67) इनसे कहो “यह एक बड़ी ख़बर है
أَنتُمۡ عَنۡهُ مُعۡرِضُونَ ۝ 63
(68) जिसको सुनकर तुम मुँह फेरते हो।"
مَا كَانَ لِيَ مِنۡ عِلۡمِۭ بِٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰٓ إِذۡ يَخۡتَصِمُونَ ۝ 64
(69) (इनसे कहो) “मुझे उस समय की कोई सूचना न थी जब सबसे ऊँचे दरबारवालों (मलए आला) में झगड़ा हो रहा था।
إِن يُوحَىٰٓ إِلَيَّ إِلَّآ أَنَّمَآ أَنَا۠ نَذِيرٞ مُّبِينٌ ۝ 65
(70) मुझको तो प्रकाशना द्वारा ये बातें सिर्फ़ इसलिए बताई जाती हैं कि मैं खुला-खुला सावधान करनेवाला हूँ।”
إِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ إِنِّي خَٰلِقُۢ بَشَرٗا مِّن طِينٖ ۝ 66
(71) जब तेरे रब ने फ़रिश्तों से कहा, “मैं मिट्टी से एक इनसान बनानेवाला हूँ,
فَإِذَا سَوَّيۡتُهُۥ وَنَفَخۡتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُواْ لَهُۥ سَٰجِدِينَ ۝ 67
(72) फिर जब मैं उसे पूरी तरह बना दूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाओ।”
فَسَجَدَ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ كُلُّهُمۡ أَجۡمَعُونَ ۝ 68
(73) इस आदेश के अनुसार फ़रिश्ते सब के सब सजदे में गिर गए,
إِلَّآ إِبۡلِيسَ ٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 69
(74) मगर इबलीस ने अपनी बड़ाई का घमण्ड किया और वह इनकार करनेवालों में से हो गया।
قَالَ يَٰٓإِبۡلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَن تَسۡجُدَ لِمَا خَلَقۡتُ بِيَدَيَّۖ أَسۡتَكۡبَرۡتَ أَمۡ كُنتَ مِنَ ٱلۡعَالِينَ ۝ 70
(75) रब ने कहा, “ऐ इबलीस, तुझे क्या चीज़़ उसको सजदा करने में रोक बनी जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया है? तू बड़ा बन रहा है या तू है ही कुछ उच्च श्रेणी की हस्तियों में से?”
قَالَ أَنَا۠ خَيۡرٞ مِّنۡهُ خَلَقۡتَنِي مِن نَّارٖ وَخَلَقۡتَهُۥ مِن طِينٖ ۝ 71
(76) उसने जवाब दिया, “मैं इससे अच्छा हूँ आपने मुझको आग से पैदा किया है और इसको मिट्टी से।”
قَالَ فَٱخۡرُجۡ مِنۡهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٞ ۝ 72
(77,) कहा, “अच्छा तू यहाँ से निकल जा, तू तिरस्कृत है
وَإِنَّ عَلَيۡكَ لَعۡنَتِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلدِّينِ ۝ 73
(78) और तेरे ऊपर बदला दिए जाने के दिन तक मेरी लानत है।”
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرۡنِيٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ ۝ 74
(79) वह बोला, “ऐ मेरे रब, यह बात है तो फिर उस समय तक के लिए मुझे मुहलत दे दे जब ये लोग दोबारा उठाए जाएँगे।"
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ ٱلۡمُنظَرِينَ ۝ 75
(80) कहा, “अच्छा, तुझे उस दिन तक की मुहलत है
إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡوَقۡتِ ٱلۡمَعۡلُومِ ۝ 76
(81) जिसका समय मुझे मालूम है।”
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغۡوِيَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 77
(82) उसने कहा, “तेरे प्रताप की क़सम, मैं इन सब लोगों को बहकाकर रहूँगा,
إِلَّا عِبَادَكَ مِنۡهُمُ ٱلۡمُخۡلَصِينَ ۝ 78
(83) सिवाय तेरे उन बन्दों के जिन्हें तूने ख़ालिस कर लिया है।”
قَالَ فَٱلۡحَقُّ وَٱلۡحَقَّ أَقُولُ ۝ 79
(84) कहा, “तो सत्य यह है, और मैं सत्य ही कहा करता हूँ,
لَأَمۡلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَمِمَّن تَبِعَكَ مِنۡهُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 80
(85) कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सब लोगों से भर दूँगा जो इन इनसानों में से तेरा अनुसरण करेंगे।"
قُلۡ مَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٖ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلۡمُتَكَلِّفِينَ ۝ 81
(86) (ऐ नबी) इनसे कह दो कि मैं इस सन्देश पहुँचाने (तबलीग़) पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता, और न मैं बनावटी लोगों में से हूँ।
إِنۡ هُوَ إِلَّا ذِكۡرٞ لِّلۡعَٰلَمِينَ ۝ 82
(87) यह तो एक नसीहत है सारे जहानवालों के लिए।
وَلَتَعۡلَمُنَّ نَبَأَهُۥ بَعۡدَ حِينِۭ ۝ 83
(88) और थोड़ा समय ही गुज़रेगा कि तुम्हें इसका हाल ख़ुद मालूम हो जाएगा।
قَالَ رَبِّ ٱغۡفِرۡ لِي وَهَبۡ لِي مُلۡكٗا لَّا يَنۢبَغِي لِأَحَدٖ مِّنۢ بَعۡدِيٓۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡوَهَّابُ ۝ 84
(35) और कहा कि “ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे और मुझे वह बादशाही प्रदान कर जो मेरे बाद किसी के लिए शोभनीय न हो, बेशक तू ही वास्तविक दाता है।”7
7. वार्त्ता क्रम की दृष्टि से साफ़ मालूम होता है कि इस जगह यह बताना अभीष्ट है कि अल्लाह ने हज़रत दाऊद (अलैहि०) और हज़रत सुलैमान (अलैहि०) जैसे प्रतिष्ठित नबियों और प्रिय बन्दों को भी पूछताछ किए बिना नहीं छोड़ा है। जिस फ़ितने का यहाँ उल्लेख किया गया है उसका कोई यक़ीनी विवरण हमें मालूम नहीं है जिसपर क़ुरआन के सभी टीकाकार सहमत हों। मगर हज़रत सुलैमान (अलैहि०) की दुआ के ये शब्द कि “ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे और मुझको वह बादशाही प्रदान कर जो मेरे बाद किसी के लिए शोभनीय न हो”, अगर इसराईलियों के इतिहास के प्रकाश में पढ़े जाएँ तो देखने में ऐसा लगता है कि उनके मन में सम्भवतः यह इच्छा थी कि उनके बाद उनका बेटा उत्तराधिकारी हो और राज्य और शासन के आगे उन्हीं के वंश में बाक़ी रहे। इसी चीज़ को अल्लाह ने उनके हक़ में “फ़ितना” (आज़माइश ठहरा दिया और इसके प्रति वे उस समय सावधान हुए जब उनका उत्तराधिकारी रहुबआम एक ऐसा अयोग्य नव युवक बनकर उठा जिसके लक्षण साफ़ बता रहे थे कि वह दाऊद (अलैहि०) और सुलैमान (अलैहि०) का शासन चार दिन भी न संभाल सकेगा। उनकी कुर्सी पर एक धड़ लाकर डाले जाने का मतलब सम्भवतः यही है कि जिस बेटे को वे अपनी कुर्सी पर बिठाना चाहते थे वह एक अनघड़ कुंदा था।
فَسَخَّرۡنَا لَهُ ٱلرِّيحَ تَجۡرِي بِأَمۡرِهِۦ رُخَآءً حَيۡثُ أَصَابَ ۝ 85
(36) तब हमने उसके लिए हवा को वशीभूत कर दिया जो उसके आदेश से नमीं के साथ चलती थी जिधर वह चाहता था,
وَٱلشَّيَٰطِينَ كُلَّ بَنَّآءٖ وَغَوَّاصٖ ۝ 86
(37) और शैतानों को वशीभूत कर दिया हर तरह के निर्माता और गोताख़ोर
وَءَاخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي ٱلۡأَصۡفَادِ ۝ 87
(38) और दूसरे जो ज़ंजीरों में जकड़े हुए थे।