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سُورَةُ الشُّعَرَاءِ

26. अश-शुअरा 

(मक्का में उतरी-आयतें 227)

परिचय

नाम

आयत 224 वश-शुअराउ यत्तबिउहुमुल ग़ावून' अर्थात् रहे कवि (शुअरा), तो उनके पीछे बहके हुए लोग चला करते है" से उद्धृत है।

उतरने का समय 

विषय-वस्तु और वर्णन-शैली से महसूस होता है और रिवायतें भी इसकी पुष्टि करती हैं कि इस सूरा के उत्तरने का समय मक्का का मध्यकाल है।

विषय और वार्ताएँ

भाषण की पृष्ठभूमि यह है कि मक्का के विधर्मी नबी (सल्ल०) के प्रचार करने और उपदेश का मुक़ाबला लगातार विरोध और इंकार से कर रहे थे और इसके लिए तरह-तरह के बहाने गढ़े चले जाते थे। नबी (सल्ल०) उन लोगों को उचित प्रमाणों के साथ उनकी धारणाओं की ग़लती और तौहीद (एकेश्वरवाद) और आख़िरत की सच्चाई समझाने की कोशिश करते-करते थके जाते हैं, मगर वे हठधर्मी के नित नए रूप अपनाते हुए न थकते थे। यही चीज़ प्यारे नबी (सल्ल०) के लिए आत्म-विदारक बनी हुई थी और इस ग़म में आपकी जान घुली जाती थी। इन परिस्थितियों में यह सूरा उतरी।

वार्ता का आरंभ इस तरह होता है कि तुम इनके पीछे अपनी जान क्यों घुलाते हो? इनके ईमान न लाने का कारण यह नहीं है कि इन्होंने कोई निशानी नहीं देखी है, बल्कि इसका कारण यह है कि ये हठधर्म हैं, समझाने से मानना नहीं चाहते।

इस प्रस्तावना के बाद आयत 191 तक जो विषय लगातार वर्णित हुआ है वह यह है कि सत्य की चाह रखनेवाले लोगों के लिए तो अल्लाह की ज़मीन पर हर ओर निशानियाँ-ही-निशानियाँ फैली हुई हैं जिन्हें देखकर वे सत्य को पहचान सकते हैं। लेकिन हठधर्मी लोग कभी किसी चीज़ को देखकर भी ईमान नहीं लाए हैं, यहाँ तक कि अल्लाह के अज़ाब ने आकर उनको पकड़ में ले लिया है। इसी संदर्भ से इतिहास की सात क़ौमों के हालात पेश किए गए हैं, जिन्होंने उसी हठधर्मी से काम लिया था जिससे मक्का के काफ़िर (इंकारी) काम ले रहे थे और इस ऐतिहासिक वर्णन के सिलसिले में कुछ बातें मन में बिठाई गई हैं।

एक यह कि निशानियाँ दो प्रकार की हैं। एक प्रकार की निशानियाँ वे हैं जो अल्लाह की ज़मीन पर हर ओर फैली हुई हैं, जिन्हें देखकर हर बुद्धिवाला व्यक्ति जाँच कर सकता है कि नबी जिस चीज़ की ओर बुला रहा है, वह सत्य है या नहीं। दूसरे प्रकार की निशानियों वे हैं जो [तबाह कर दी जानेवाली क़ौमों] ने देखी। अब यह निर्णय करना स्वयं इंकारियों का अपना काम है कि वे किस प्रकार की निशानी देखना चाहते हैं।

दूसरे यह कि हर युग में काफ़िरों (इंकारियों) की मानसिकता एक जैसी रही है। उनके तर्क एक ही तरह के थे, उनकी आपत्तियाँ एक जैसी थी और अन्तत: उनका अंजाम भी एक जैसा ही रहा। इसके विपरीत हर समय में नबियों की शिक्षा एक थी। अपने विरोधियों के मुक़ाबले में उनके प्रमाण और तर्क की शैली एक थी और इन सबके साथ अल्लाह की रहमत का मामला भी एक था। ये दोनों नमूने इतिहास में मौजूद है। विधर्मी खुद देख सकते हैं कि उनका अपना चित्र किस नमूने से मिलता है।

तीसरी बात जो बार-बार दोहराई गई है वह यह है कि अल्लाह प्रभावशाली, सामर्थ्यवान और शक्तिशाली भी है और दयावान भी। अब यह बात लोगों को स्वयं ही तय करनी चाहिए कि वे अपने आपको उसकी दया का अधिकारी बनाते हैं या क़हर (प्रकोप) का। आयत 192 से सूरा के अंत तक में इस वार्ता को समेटते हुए कहा गया है कि तुम लोग अगर निशानियाँ ही देखना चाहते हो तो आख़िर वह भयानक निशानियाँ देखने पर आग्रह क्यों करते हो जो तबाह होनेवाली क़ौमों ने देखी हैं। इस क़ुरआन को देखो जो तुम्हारी अपनी भाषा में है, मुहम्मद (सल्ल०) को देखो, उनके साथियों को देखो। क्या यह वाणी किसी शैतान या जिन्न की वाणी हो सकती है? क्या इस वाणी का पेश करनेवाला तुम्हें काहिन नज़र आता है? क्या मुहम्मद (सल्ल०) और उनके साथी तुम्हें वैसे हो नज़र आते हैं जैसे कवि और उनके जैसे लोग हुआ करते हैं? [अगर नहीं, जैसा कि ख़ुद तुम्हारे दिल गवाही दे रहे होंगे] तो फिर यह भी जान लो कि तुम ज़ुल्म कर रहे हो और ज़ालिमों का-सा अंजाम देखकर रहोगे ।

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سُورَةُ الشُّعَرَاءِ
26. अश-शुअरा
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा ही मेहरबान और रहम करनेवाला है।
طسٓمٓ
(1) ता० सीम० मीम०।
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ ۝ 1
(2) ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं।1
1. अर्थात् उस किताब की आयतें जो अपना अभिप्राय साफ़-साफ़ खोलकर बयान करती है। जिसे पढ़कर या सुनकर हर व्यक्ति समझ सकता है कि वह किस चीज़़ की ओर बुलाती है, किस चीज़ से रोकती है, किसे सत्य कहती है और किसे असत्य ठहराती है। मानना या न मानना अलग बात है, मगर कोई व्यक्ति यह बहाना कभी नहीं बना सकता कि उस किताब की शिक्षा उसकी समझ में नहीं आई और वह उससे यह मालूम ही न कर सका कि वह उसको क्या चीज़़ छोड़ने और क्या अपनाने का निमंत्रण दे रही है।
لَعَلَّكَ بَٰخِعٞ نَّفۡسَكَ أَلَّا يَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ ۝ 2
(3) ऐ नबी, शायद तुम इस ग़म में अपनी जान खो दोगे कि ये लोग ईमान नहीं लाते।
إِن نَّشَأۡ نُنَزِّلۡ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ءَايَةٗ فَظَلَّتۡ أَعۡنَٰقُهُمۡ لَهَا خَٰضِعِينَ ۝ 3
(4) हम चाहें तो आसमान से ऐसी निशानी उतार सकते हैं कि इनकी गरदनें उसके आगे झुक जाएँ।2
2. अर्थात् कोई ऐसी निशानी उतार देना जो सभी इनकार करनेवालों को ईमान और आज्ञापालन की नीति अपनाने के लिए मज़बूर कर दे, अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नहीं है। अगर वह ऐसा नहीं करता तो इसका कारण यह नहीं है कि यह काम उसकी सामर्थ्य से बाहर है, बल्कि इसका कारण यह है कि इस तरह का ज़बरदस्ती का ईमान वह चाहता नहीं है।
وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن ذِكۡرٖ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ مُحۡدَثٍ إِلَّا كَانُواْ عَنۡهُ مُعۡرِضِينَ ۝ 4
(5) इन लोगों के पास रहमान (करुणामय ईश्वर) की ओर से जो नई नसीहत भी आती है ये उससे मुँह मोड़ लेते हैं।
فَقَدۡ كَذَّبُواْ فَسَيَأۡتِيهِمۡ أَنۢبَٰٓؤُاْ مَا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ ۝ 5
(6) अब जबकि ये झुठला चुके हैं, जल्द ही इनको उस चीज़ की वास्तविकता का (विभिन्न ढंग से) ज्ञान हो जाएगा जिसका ये मज़ाक़ उड़ाते रहे हैं।
أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ كَمۡ أَنۢبَتۡنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوۡجٖ كَرِيمٍ ۝ 6
(7) और क्या इन्होंने कभी ज़मीन पर निगाह नहीं डाली कि हमने कितनी बड़ी मात्रा में हर तरह की अच्छी वनस्पति उसमें पैदा की है?
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 7
(8) यक़ीनन इसमें एक निशानी है,3 मगर इनमें से ज़्यादातर माननेवाले नहीं।
3. अर्थात् सत्य की खोज के लिए किसी को निशानी की ज़रूरत हो तो कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं। आँखें खोलकर तनिक इस ज़मीन हो की उर्वरता और अंकुरता को देख ले, उसे मालूम हो जाएगा कि ब्रह्माण्ड- व्यवस्था की जो वास्तविकता (एकेश्वरवाद) नबियों (अलैहि०) ने प्रस्तुत की है वह सत्य है, या वे धारणाएँ जो बहुदेववादी या ईश्वर का इनकार करनेवाले बयान करते हैं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 8
(9) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्वशाली भी है और दयावान् भी।4
4. अर्थात् उसकी सामर्थ्य तो ऐसी ज़बरदस्त है कि किसी को सज़ा देना चाहे तो पल-भर में मिटाकर रख दे। मगर इसपर भी यह पूर्णतया उसकी दया है कि सज़ा देने में जल्दी नहीं करता। वर्षों और शताब्दियों ढील देता है, सोचने और समझने और संभलने की मुहलत दिए जाता है, और उम्र भर की अवज्ञाओं को एक तौबा (क्षमायाचना) पर माफ़ कर देने के लिए तैयार रहता है।
وَإِذۡ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱئۡتِ ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ ۝ 9
(10) इन्हें उस समय का हाल सुनाओ जबकि तुम्हारे रब ने मूसा को पुकारा, “ज़ालिम क़ौमों के पास जा
قَوۡمَ فِرۡعَوۡنَۚ أَلَا يَتَّقُونَ ۝ 10
(11) — फ़िरऔन की क़ौमवालों के पास-क्या वे नहीं डरते?”
قَالَ رَبِّ إِنِّيٓ أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ ۝ 11
(12) उसने निवेदन किया, “ऐ मेरे रब, मुझे डर है कि वे मुझे झुठला देंगे।
وَيَضِيقُ صَدۡرِي وَلَا يَنطَلِقُ لِسَانِي فَأَرۡسِلۡ إِلَىٰ هَٰرُونَ ۝ 12
(13) मेरा सीना घुटता है और मेरी ज़बान नहीं चलती। आप हारून की ओर रिसालत (पैग़म्बरी) भेजें।
وَلَهُمۡ عَلَيَّ ذَنۢبٞ فَأَخَافُ أَن يَقۡتُلُونِ ۝ 13
(14) और मुझपर उनके वहाँ एक अपराध का आरोप भी है, इसलिए मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।”
قَالَ كَلَّاۖ فَٱذۡهَبَا بِـَٔايَٰتِنَآۖ إِنَّا مَعَكُم مُّسۡتَمِعُونَ ۝ 14
(15) कहा, “हरगिज़ नहीं, तुम दोनों जाओ हमारी निशानियाँ लेकर, हम तुम्हारे साथ सब कुछ सुनते रहेंगे।
فَأۡتِيَا فِرۡعَوۡنَ فَقُولَآ إِنَّا رَسُولُ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 15
(16) फ़िरऔन के पास जाओ और उससे कहो, हमको सारे जहान के रब ने इसलिए भेजा है
أَنۡ أَرۡسِلۡ مَعَنَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ۝ 16
(17) कि तू इसराईल की सन्तान को हमारे साथ जाने दे।”
قَالَ أَلَمۡ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدٗا وَلَبِثۡتَ فِينَا مِنۡ عُمُرِكَ سِنِينَ ۝ 17
(18) फ़िरऔन ने कहा, “क्या हमने तुझको अपने यहाँ बच्चा-सा नहीं पाला था? तूने अपनी उम्र के कई साल हमारे यहाँ बिताए
وَفَعَلۡتَ فَعۡلَتَكَ ٱلَّتِي فَعَلۡتَ وَأَنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ ۝ 18
(19) और इसके बाद कर गया जो कुछ कर गया, तू बड़ा कृतघ्न आदमी है।”
قَالَ فَعَلۡتُهَآ إِذٗا وَأَنَا۠ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ ۝ 19
(20) मूसा ने जवाब दिया, “उस समय वह काम मैंने अनजाने में कर दिया था।
فَفَرَرۡتُ مِنكُمۡ لَمَّا خِفۡتُكُمۡ فَوَهَبَ لِي رَبِّي حُكۡمٗا وَجَعَلَنِي مِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 20
(21) फिर मैं तुम्हारे डर से भाग गया। इसके बाद मेरे रब ने मुझे निर्णय-शक्ति प्रदान की और मुझे रसूलों में शामिल कर लिया।
وَتِلۡكَ نِعۡمَةٞ تَمُنُّهَا عَلَيَّ أَنۡ عَبَّدتَّ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ۝ 21
(22) रहा तेरा उपकार जो तूने मुझपर जताया है तो उसकी वास्तविकता यह है कि तूने इसराईल की सन्तान को दास बना लिया था।”5
5. अर्थात् तेरे घर में परवरिश के लिए मैं क्यों आता अगर तूने इसराईलियों पर ज़ुल्म न ढाया होता? तेरे ज़ुल्म ही के कारण तो मेरी माँ ने मुझे टोकरी में डालकर दरिया में बहाया था, नहीं तो क्या मेरे पालन-पोषण के लिए मेरा अपना घर मौजूद न था? इसलिए इस पालन-पोषण पर एहसान जताना तुझे शोभा नहीं देता।
قَالَ فِرۡعَوۡنُ وَمَا رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 22
(23) फिरऔन ने कहा, “और यह सारे जहान का रब क्या होता है?”
قَالَ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَآۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ ۝ 23
(24) मूसा ने जवाब दिया, “आसमानों और ज़मीन का रब, और उन सब चीज़़ों का रब जो आसमान और ज़मीन के बीच हैं, अगर तुम विश्वास करनेवाले हो।”
قَالَ لِمَنۡ حَوۡلَهُۥٓ أَلَا تَسۡتَمِعُونَ ۝ 24
(25) फिरऔन ने अपने आस-पास के लोगों से कहा, “सुनते हो?”
قَالَ رَبُّكُمۡ وَرَبُّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 25
(26) मूसा ने कहा, “तुम्हारा रब भी और तुम्हारे उन बाप-दादाओं का रब भी जो गुज़र चुके हैं।”
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ ٱلَّذِيٓ أُرۡسِلَ إِلَيۡكُمۡ لَمَجۡنُونٞ ۝ 26
(27) फ़िरऔन ने उपस्थिति लोगों से कहा, “तुम्हारे ये रसूल साहब जो तुम्हारी ओर भेजे गए हैं, बिलकुल ही पागल मालूम होते हैं।”
قَالَ رَبُّ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَمَا بَيۡنَهُمَآۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡقِلُونَ ۝ 27
(28) मूसा ने कहा, “पूरब और पच्छिम और जो कुछ इनके बीच है सबका रब, अगर आप लोग कुछ बुद्धि रखते हैं।”
قَالَ لَئِنِ ٱتَّخَذۡتَ إِلَٰهًا غَيۡرِي لَأَجۡعَلَنَّكَ مِنَ ٱلۡمَسۡجُونِينَ ۝ 28
(29) फ़िरऔन ने कहा, “अगर तूने मेरे सिवा किसी और को पूज्य माना तो तुझे भी उन लोगों में शामिल कर दूँगा जो जेलों में पड़े सड़ रहे हैं।"
قَالَ أَوَلَوۡ جِئۡتُكَ بِشَيۡءٖ مُّبِينٖ ۝ 29
(30) मूसा ने कहा, “यद्यपि मैं ले आऊँ तेरे सामने एक स्पष्ट चीज़़ भी?”
قَالَ فَأۡتِ بِهِۦٓ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ ۝ 30
(31) फ़िरऔन ने कहा, “अच्छा तो ले आ अगर तू सच्चा है।"
فَأَلۡقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعۡبَانٞ مُّبِينٞ ۝ 31
(32) (उसकी ज़बान से यह बात निकलते ही) मूसा ने अपनी लाठी (असा) फेंकी और अचानक वह एक प्रत्यक्ष अजगर था।
وَنَزَعَ يَدَهُۥ فَإِذَا هِيَ بَيۡضَآءُ لِلنَّٰظِرِينَ ۝ 32
(33) फिर उसने अपना हाथ (बग़ल से) खींचा और वह सब देखनेवालों के सामने चमक रहा था।6
6. जैसे ही हज़रत मूसा ने बग़ल से हाथ निकाला अचानक सारा वातावरण जगमगा उठा और ऐसा महसूस हुआ जैसे सूरज निकल आया है।
قَالَ لِلۡمَلَإِ حَوۡلَهُۥٓ إِنَّ هَٰذَا لَسَٰحِرٌ عَلِيمٞ ۝ 33
(34) फ़िरऔन अपने आस-पास के सरदारों से बोला “यह व्यक्ति यक़ीनन एक कुशल जादूगर है।
يُرِيدُ أَن يُخۡرِجَكُم مِّنۡ أَرۡضِكُم بِسِحۡرِهِۦ فَمَاذَا تَأۡمُرُونَ ۝ 34
(35) चाहता है कि अपने जादू के ज़ोर से तुमको तुम्हारे देश से निकाल दे।7 अब बताओ तुम क्या आदेश देते हो?”
7. दोनों चमत्कारों की महानता का अनुमान इससे किया जा सकता है कि एक क्षण पहले वह अपनी प्रजा के एक व्यक्ति को भरे दरबार में पैग़म्बरी की बातें और इसराईलियों की रिहाई को माँग करते देखकर पागल ठहरा रहा था और उसे धमकी दे रहा था कि अगर तूने मेरे सिवा किसी को पूज्य माना तो जेल में सड़ा सड़ाकर मार दूँगा, या अब इन निशानियों को देखते ही उसपर ऐसा डर छा गया कि उसे अपनी बादशाही और अपना देश छिनने की आशंका हो गई।
قَالُوٓاْ أَرۡجِهۡ وَأَخَاهُ وَٱبۡعَثۡ فِي ٱلۡمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ ۝ 35
(36) उन्होंने कहा, “उसे और उसके भाई को रोक लीजिए और शहरों में हरकारे भेज दीजिए
يَأۡتُوكَ بِكُلِّ سَحَّارٍ عَلِيمٖ ۝ 36
(37) कि हर कुशल जादूगर को आपके पास ले आएँ।”
فَجُمِعَ ٱلسَّحَرَةُ لِمِيقَٰتِ يَوۡمٖ مَّعۡلُومٖ ۝ 37
(38) अतएव एक दिन निश्चित समय पर जादूगर इकट्ठे कर लिए गए
وَقِيلَ لِلنَّاسِ هَلۡ أَنتُم مُّجۡتَمِعُونَ ۝ 38
(39) और लोगों से कहा गया, “तुम जनसभा में चलोगे?
لَعَلَّنَا نَتَّبِعُ ٱلسَّحَرَةَ إِن كَانُواْ هُمُ ٱلۡغَٰلِبِينَ ۝ 39
(40) शायद कि हम जादूगरों के धर्म ही पर रह जाएँ अगर वे विजयी हुए।"8
8. अर्थात् सिर्फ़ घोषणा और विज्ञापन ही पर बस न किया गया बल्कि आदमी इस मक़सद से छोड़े गए कि लोगों को उकसा उकसाकर यह मुक़ाबला देखने के लिए लाएँ। इससे मालूम होता है कि भरे दरबार में जो चमत्कार हज़रत मूसा (अलैहि०) ने दिखाए थे उनकी ख़बर आम लोगों में फैल चुकी थी और फ़िरऔन को यह आशंका हो गई थी कि इससे देश-निवासी प्रभावित होते चले जा रहे हैं। दरबार में उपस्थित जिन लोगों ने हज़रत मूसा (अलैहि०) का चमत्कार देखा था और बाहर जिन लोगों तक उसकी विश्वसनीय ख़बरें पहुँची थीं उनकी आस्थाएँ अपने पैतृक धर्म पर से विचलित हुई जा रही थीं, और अब उनका धर्म बस इस पर निर्भर कर रहा था कि किसी तरह जादूगर भी वे काम कर दिखाएँ जो मूसा (अलैहि०) ने किया है। फ़िरऔन और उसके राज्यमंत्री इसे ख़ुद एक निर्णायक मुक़ाबला समझ रहे थे। उनके अपने भेजे हुए आदमी जनता के मन में यह बात बिठाते फिर रहे थे कि अगर जादूगर सफल हो गए तो हम मूसा के धर्म में जाने से बच जाएँगे, नहीं तो हमारे पैतृक धर्म और विश्वास की ख़ैर नहीं है।
فَلَمَّا جَآءَ ٱلسَّحَرَةُ قَالُواْ لِفِرۡعَوۡنَ أَئِنَّ لَنَا لَأَجۡرًا إِن كُنَّا نَحۡنُ ٱلۡغَٰلِبِينَ ۝ 40
(41) जब जादूगर मैदान में आए तो उन्होंने फ़िरऔन से कहा, “हमें इनाम तो मिलेगा अगर हम विजयी हुए?”
قَالَ نَعَمۡ وَإِنَّكُمۡ إِذٗا لَّمِنَ ٱلۡمُقَرَّبِينَ ۝ 41
(42) उसने कहा, “हाँ, और तुम तो उस समय समीपवर्ती लोगों में सम्मिलित हो जाओगे”
قَالَ لَهُم مُّوسَىٰٓ أَلۡقُواْ مَآ أَنتُم مُّلۡقُونَ ۝ 42
(43) मूसा ने कहा, “फेंको जो तुम्हें फेंकना है।"
فَأَلۡقَوۡاْ حِبَالَهُمۡ وَعِصِيَّهُمۡ وَقَالُواْ بِعِزَّةِ فِرۡعَوۡنَ إِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡغَٰلِبُونَ ۝ 43
(44) उन्होंने तुरन्त अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ फेंक दीं और बोले, “फ़िरऔन के प्रताप से हम ही विजयी होंगे।”
فَأَلۡقَىٰ مُوسَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ تَلۡقَفُ مَا يَأۡفِكُونَ ۝ 44
(45) फिर मूसा ने अपनी लाठी फेंकी तो सहसा वह उनके झूठे चमत्कारों को हड़प करती चली जा रही थी।
فَأُلۡقِيَ ٱلسَّحَرَةُ سَٰجِدِينَ ۝ 45
(46) इसपर सारे जादूगर बेक़ाबू होकर सजदे में गिर पड़े
قَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 46
(47) और बोल उठे कि “मान गए हम सारे जहान के रब को
رَبِّ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ۝ 47
(48)— मूसा और हारून के रब को।”
قَالَ ءَامَنتُمۡ لَهُۥ قَبۡلَ أَنۡ ءَاذَنَ لَكُمۡۖ إِنَّهُۥ لَكَبِيرُكُمُ ٱلَّذِي عَلَّمَكُمُ ٱلسِّحۡرَ فَلَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَۚ لَأُقَطِّعَنَّ أَيۡدِيَكُمۡ وَأَرۡجُلَكُم مِّنۡ خِلَٰفٖ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمۡ أَجۡمَعِينَ ۝ 48
(49) फ़िरऔन ने कहा, “तुम मूसा की बात मान गए इससे पहले कि मैं तुम्हें इजाज़त देता! अवश्य यह तुम्हारा बड़ा (गुरु) है जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। अच्छा, अभी तुम्हें मालूम हुआ जाता है, मैं तुम्हारे हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं से कटवाऊँगा और तुम सबको सूली पर चढ़ा दूँगा।”
قَالُواْ لَا ضَيۡرَۖ إِنَّآ إِلَىٰ رَبِّنَا مُنقَلِبُونَ ۝ 49
(50) उन्होंने जवाब दिया, “कुछ परवाह नहीं, हम अपने रब के पास पहुँच जाएँगे।
إِنَّا نَطۡمَعُ أَن يَغۡفِرَ لَنَا رَبُّنَا خَطَٰيَٰنَآ أَن كُنَّآ أَوَّلَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 50
(51) और हमें आशा है कि हमारा रब हमारे गुनाह माफ़ कर देगा, क्योंकि सबसे पहले हम ईमान लाए हैं।"
۞وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنۡ أَسۡرِ بِعِبَادِيٓ إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ ۝ 51
(52) हमने9 मूसा को प्रकाशना (वह्य) भेजी कि “रातों-रात मेरे बन्दों को लेकर निकल जाओ, तुम्हारा पीछा किया जाएगा।”
9. अब एक लम्बे समय की घटनाओं को छोड़कर उस समय की चर्चा की जा रही है जब हज़रत मूसा (अलैहि०) को मिस्र से हिजरत करने का आदेश दिया गया।
فَأَرۡسَلَ فِرۡعَوۡنُ فِي ٱلۡمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ ۝ 52
(53) इसपर फ़िरऔन ने (सेनाएँ एकत्र करने के लिए) शहरों में हरकारे भेज दिए
إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ لَشِرۡذِمَةٞ قَلِيلُونَ ۝ 53
(54) (और कहला भेजा) कि “ये कुछ मुट्ठी भर लोग हैं,
وَإِنَّهُمۡ لَنَا لَغَآئِظُونَ ۝ 54
(55) और इन्होंने हमको बहुत नाराज़ किया है,
وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَٰذِرُونَ ۝ 55
(56) और हम एक ऐसा गिरोह हैं जिसकी नीति हर समय चौकन्ना रहना है।”
فَأَخۡرَجۡنَٰهُم مِّن جَنَّٰتٖ وَعُيُونٖ ۝ 56
(57) इस तरह हम उन्हें उनके बाग़ों और स्रोतों
وَكُنُوزٖ وَمَقَامٖ كَرِيمٖ ۝ 57
(58) और ख़ज़ानों और उनके उत्तम निवास-स्थानों से निकाल लाए।
كَذَٰلِكَۖ وَأَوۡرَثۡنَٰهَا بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ۝ 58
(59) यह तो हुआ उनके साथ, और (दूसरी ओर) इसराईल की सन्तान को हमने इन सब चीज़़ों का वारिस बना दिया।
فَأَتۡبَعُوهُم مُّشۡرِقِينَ ۝ 59
(60) सुबह होते ही ये लोग उनका पीछा करने को चल पड़े
فَلَمَّا تَرَٰٓءَا ٱلۡجَمۡعَانِ قَالَ أَصۡحَٰبُ مُوسَىٰٓ إِنَّا لَمُدۡرَكُونَ ۝ 60
(61) जब दोनों गिरोहों का आमना-सामना हुआ तो मूसा के साथी चिल्ला उठे कि “हम तो पकड़े गए।”
قَالَ كَلَّآۖ إِنَّ مَعِيَ رَبِّي سَيَهۡدِينِ ۝ 61
(62) मूसा ने कहा, “हरगिज़ नहीं। मेरे साथ मेरा रब है। वह ज़रूर मेरा मार्गदर्शन करेगा।”
فَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡبَحۡرَۖ فَٱنفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرۡقٖ كَٱلطَّوۡدِ ٱلۡعَظِيمِ ۝ 62
(63) हमने मूसा को प्रकाशना (वह्य) द्वारा आदेश दिया कि “मार अपनी लाठी समुद्र पर।” अचानक समुद्र फट गया और उसका हर टुकड़ा एक ऊँचे पहाड़ की तरह हो गया।
وَأَزۡلَفۡنَا ثَمَّ ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 63
(64) उसी जगह पर हम दूसरे गिरोह को भी क़रीब ले आए।
وَأَنجَيۡنَا مُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ ۝ 64
(65) मूसा और उन सब लोगों को जो उसके साथ थे, हमने बचा लिया,
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 65
(66) और दूसरों को डुबो दिया।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 66
(67) इस घटना में एक निशानी है, मगर इन लोगों में से ज़्यादातर माननेवाले नहीं हैं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 67
(68) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्वशाली भी है और दयावान् भी।
وَٱتۡلُ عَلَيۡهِمۡ نَبَأَ إِبۡرَٰهِيمَ ۝ 68
(69) और इन्हें इबराहीम का क़िस्सा सुनाओ
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَا تَعۡبُدُونَ ۝ 69
(70) जबकि उसने अपने बाप और अपने क़ौमवालों से पूछा था कि “ये क्या चीज़़ें हैं जिनको तुम पूजते हो?”
قَالُواْ نَعۡبُدُ أَصۡنَامٗا فَنَظَلُّ لَهَا عَٰكِفِينَ ۝ 70
(71) उन्होंने जवाब दिय “कुछ मूर्तियाँ हैं जिनकी हम पूजा करते हैं और उन्हीं की सेवा में हम लगे रहते हैं।”
قَالَ هَلۡ يَسۡمَعُونَكُمۡ إِذۡ تَدۡعُونَ ۝ 71
(72) उसने पूछा, “क्या ये तुम्हारी सुनती हैं जब तुम इन्हें पुकारते हो?
أَوۡ يَنفَعُونَكُمۡ أَوۡ يَضُرُّونَ ۝ 72
(73) या ये तुम्हें कुछ लाभ या हानि पहुँचाती हैं?”
قَالُواْ بَلۡ وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا كَذَٰلِكَ يَفۡعَلُونَ ۝ 73
(74) उन्होंने जवाब दिया “नहीं, बल्कि हमने अपने बाप-दादा को ऐसा ही करते पाया है।”
قَالَ أَفَرَءَيۡتُم مَّا كُنتُمۡ تَعۡبُدُونَ ۝ 74
(75) इसपर इबराहीम ने कहा, “कभी तुमने (ऑंखें खोलकर) उन चीज़़ों को देखा भी
أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُمُ ٱلۡأَقۡدَمُونَ ۝ 75
(76) जिनकी बन्दगी तुम और तुम्हारे पिछले बाप-दादा करते रहे?
فَإِنَّهُمۡ عَدُوّٞ لِّيٓ إِلَّا رَبَّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 76
(77) मेरे तो ये सब दुश्मन हैं, सिवाय सारे जहान के एक रब के,
ٱلَّذِي خَلَقَنِي فَهُوَ يَهۡدِينِ ۝ 77
(78) जिसने मुझे पैदा किया, फिर वही मेरा मार्गदर्शन करता है।
وَٱلَّذِي هُوَ يُطۡعِمُنِي وَيَسۡقِينِ ۝ 78
(79) जो मुझे खिलाता और पिलाता है
وَإِذَا مَرِضۡتُ فَهُوَ يَشۡفِينِ ۝ 79
(80) और जब बीमार हो जाता हूँ तो वही मुझे अच्छा करता है।
وَٱلَّذِي يُمِيتُنِي ثُمَّ يُحۡيِينِ ۝ 80
(81) जो मुझे मौत देगा और फिर दोबारा मुझको जीवन प्रदान करेगा।
وَٱلَّذِيٓ أَطۡمَعُ أَن يَغۡفِرَ لِي خَطِيٓـَٔتِي يَوۡمَ ٱلدِّينِ ۝ 81
(82) और जिससे मैं आशा रखता हूँ कि बदला दिए जाने के दिन वह मेरी ख़ता को माफ़ कर देगा।
رَبِّ هَبۡ لِي حُكۡمٗا وَأَلۡحِقۡنِي بِٱلصَّٰلِحِينَ ۝ 82
(83) (इसके बाद इबराहीम ने दुआ की) 'ऐ मेरे रब मुझे निर्णय-शक्ति एवं तत्त्वदर्शिता प्रदान कर और मुझे अच्छे लोगों के साथ मिला।
وَٱجۡعَل لِّي لِسَانَ صِدۡقٖ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 83
(84) और बाद के आनेवालों में मुझको सच्ची ख्याति प्रदान कर।
وَٱجۡعَلۡنِي مِن وَرَثَةِ جَنَّةِ ٱلنَّعِيمِ ۝ 84
(85) और मुझे नेमत भरी जन्नत के वारिसों में शामिल कर।
وَٱغۡفِرۡ لِأَبِيٓ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ ۝ 85
(86) और मेरे बाप को माफ़ कर दे कि बेशक वह पथभ्रष्ट लोगों में से है,
وَلَا تُخۡزِنِي يَوۡمَ يُبۡعَثُونَ ۝ 86
(87) और मुझे उस दिन रुसवा न कर जबकि सब लोग ज़िन्दा करके उठाए जाएँगे।
يَوۡمَ لَا يَنفَعُ مَالٞ وَلَا بَنُونَ ۝ 87
(88) जबकि न धन कोई लाभ पहुँचाएगा और न सन्तान,
إِلَّا مَنۡ أَتَى ٱللَّهَ بِقَلۡبٖ سَلِيمٖ ۝ 88
(89) सिवाय इसके कि कोई व्यक्ति भला-चंगा दिल लिए हुए अल्लाह के पास हाज़िर हो।"
وَأُزۡلِفَتِ ٱلۡجَنَّةُ لِلۡمُتَّقِينَ ۝ 89
(90) (उस दिन10) जन्नत परहेज़गारों के क़रीब ले आई जाएगी।
10. यहाँ से आयत 102 तक की वार्ता हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के कथन का अंश नहीं है, बल्कि अल्लाह की ओर से उसमें बढ़ाई गई है।
وَبُرِّزَتِ ٱلۡجَحِيمُ لِلۡغَاوِينَ ۝ 90
(91) और दोज़ख बहके हुए लोगों के सामने खोल दी जाएगी
وَقِيلَ لَهُمۡ أَيۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡبُدُونَ ۝ 91
(92) और उनसे पूछा जाएगा कि “अब कहाँ है वे जिनकी तुम अल्लाह को छोड़कर बन्दगी करते थे?
مِن دُونِ ٱللَّهِ هَلۡ يَنصُرُونَكُمۡ أَوۡ يَنتَصِرُونَ ۝ 92
(93) क्या वे तुम्हारी कुछ सहायता कर रहे हैं या ख़ुद अपना बचाव कर सकते हैं?"
فَكُبۡكِبُواْ فِيهَا هُمۡ وَٱلۡغَاوُۥنَ ۝ 93
(94) फिर वे पूज्य और ये बहके हुए लोग
وَجُنُودُ إِبۡلِيسَ أَجۡمَعُونَ ۝ 94
(95) और इबलीस की सेनाएँ सब के सब उसमें ऊपर-तले ढकेल दिए जाएँगे।
قَالُواْ وَهُمۡ فِيهَا يَخۡتَصِمُونَ ۝ 95
(96) वहाँ ये सब आपस में झगड़ेंगे, और ये बहके हुए लोग (अपने पूज्यों से कहेंगे
تَٱللَّهِ إِن كُنَّا لَفِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ ۝ 96
(97) कि “ख़ुदा की क़सम, हम तो स्पष्ट पथभ्रष्टता में डूबे हुए थे
إِذۡ نُسَوِّيكُم بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 97
(98) जबकि तुमको सारे जहान के रब की बराबरी का दर्जा दे रहे थे।
وَمَآ أَضَلَّنَآ إِلَّا ٱلۡمُجۡرِمُونَ ۝ 98
(99) और वे अपराधी लोग ही थे जिन्होंने हमको इस गुमराही में डाला।
فَمَا لَنَا مِن شَٰفِعِينَ ۝ 99
(100) अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है
وَلَا صَدِيقٍ حَمِيمٖ ۝ 100
(101) और न कोई घनिष्ठ मित्र
فَلَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةٗ فَنَكُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 101
(102) काश हमें एक बार फिर पलटने का अवसर मिल जाए तो हम ईमानवाले हों।"
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 102
(103) यक़ीनन इसमें एक बड़ी निशानी है,11 मगर इनमें से ज़्यादातर लोग ईमान लानेवाले नहीं।
11. अर्थात् हज़रत इबराहीम (अलैहि०) के क़िस्से में।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 103
(104) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्वशाली भी है और दयावान् भी।
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ نُوحٍ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 104
(105) नूह के लोगों ने रसूलों को झुठलाया।
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 105
(106) याद करो जबकि उनके भाई नूह ने उनसे कहा था, “क्या तुम डरते नहीं हो?
إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ ۝ 106
(107) मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ,
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 107
(108) अत: तुम अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 108
(109) मैं इस काम पर तुमसे किसी पारिश्रमिक की माँग नहीं करता। मेरा पारिश्रमिक तो सारे जहान के रब के ज़िम्मे है।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 109
(110) अत: तुम अल्लाह से डरो और (बेखटके) मेरी आज्ञा का पालन करो।”
۞قَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ لَكَ وَٱتَّبَعَكَ ٱلۡأَرۡذَلُونَ ۝ 110
(111) उन्होंने जवाब दिया, “क्या हम तुझे मान लें जबकि तेरी पैरवी अत्यन्त नीच लोगों ने अपनाई है?”
قَالَ وَمَا عِلۡمِي بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ۝ 111
(112) नूह ने कहा, “मैं क्या जानूँ कि उनके कर्म कैसे हैं,
إِنۡ حِسَابُهُمۡ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّيۖ لَوۡ تَشۡعُرُونَ ۝ 112
(113) उनका हिसाब तो मेरे रब के ज़िम्मे है, काश तुम कुछ चेतना से काम लो।
وَمَآ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 113
(114) मेरा यह काम नहीं है कि जो ईमान लाएँ उनको मैं घुतकार दूँ।
إِنۡ أَنَا۠ إِلَّا نَذِيرٞ مُّبِينٞ ۝ 114
(115) मैं तो बस एक स्पष्ट रूप से सावधान कर देनेवाला आदमी हूँ।”
قَالُواْ لَئِن لَّمۡ تَنتَهِ يَٰنُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمَرۡجُومِينَ ۝ 115
(116) उन्होंने कहा, “ऐ नूह, अगर तू बाज़ न आया तो फिटकारे हुए लोगों में सम्मिलित होकर रहेगा।”
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوۡمِي كَذَّبُونِ ۝ 116
(117) नूह ने दुआ की, “ऐ मेरे रब मेरी क़ौम ने मुझे झुठला दिया।
فَٱفۡتَحۡ بَيۡنِي وَبَيۡنَهُمۡ فَتۡحٗا وَنَجِّنِي وَمَن مَّعِيَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 117
(118) अब मेरे और उनके बीच दो-टूक फ़ैसला कर दे और मुझे और जो ईमानवाले मेरे साथ हैं उनको बचा ले।”
فَأَنجَيۡنَٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ فِي ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ ۝ 118
(119) आख़िरकार हमने उसको और उसके साथियों को एक भरी हुई नाव में बचा लिया12,
12. “भरी हुई नाव” से मुराद यह है कि वह नाव ईमान लानेवाले इनसानों और सारे जानवरों से भर गई थी जिनका एक-एक जोड़ा साथ रख लेने का आदेश दिया गया था। सूरा11 (हूद) आयत 40 में इसका उल्लेख हो चुका है।
ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا بَعۡدُ ٱلۡبَاقِينَ ۝ 119
(120) और इसके बाद बाक़ी लोगों को डुबो दिया।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 120
(121) यक़ीनन इसमें एक निशानी है, मगर इनमें से ज़्यादातर लोग माननेवाले नहीं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 121
(122) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्वशाली भी है और दयावान् भी है।
كَذَّبَتۡ عَادٌ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 122
(123) आद ने रसूलों को झुठलाया।
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 123
(124) याद करो जबकि उनके भाई हूद ने उनसे कहा था, “क्या तुम डरते नहीं?
إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ ۝ 124
(125) मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 125
(126) अत: तुम अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 126
(127) मैं इस काम पर तुमसे किसी बदले की माँग नहीं करता। मेरा बदला तो सारे जहान के रब के ज़िम्मे है।
أَتَبۡنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ ءَايَةٗ تَعۡبَثُونَ ۝ 127
(128) यह तुम्हारा क्या हाल है कि हर ऊँचे स्थान पर व्यर्थ एक यादगार भवन निर्मित कर डालते हो,
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمۡ تَخۡلُدُونَ ۝ 128
(129) और बड़े-बड़े महलों का निर्माण करते हो मानो तुम्हें हमेशा रहना है।
وَإِذَا بَطَشۡتُم بَطَشۡتُمۡ جَبَّارِينَ ۝ 129
(130) और जब किसी पर हाथ डालते हो अत्यन्त निर्दय अत्याचारी बनकर डालते हो।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 130
(131) अत: तुम लोग अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَٱتَّقُواْ ٱلَّذِيٓ أَمَدَّكُم بِمَا تَعۡلَمُونَ ۝ 131
(132) डरो उससे जिसने वह कुछ तुम्हें दिया है, जो तुम जानते हो।
أَمَدَّكُم بِأَنۡعَٰمٖ وَبَنِينَ ۝ 132
(133) तुम्हें जानवर दिए, सन्तानें दीं,
وَجَنَّٰتٖ وَعُيُونٍ ۝ 133
(134) बाग़ दिए और स्रोत दिए।
إِنِّيٓ أَخَافُ عَلَيۡكُمۡ عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 134
(135) मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन के अज़ाब का डर है।"
قَالُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡنَآ أَوَعَظۡتَ أَمۡ لَمۡ تَكُن مِّنَ ٱلۡوَٰعِظِينَ ۝ 135
(136) उन्होंने जवाब दिया, “तू नसीहत कर या न कर, हमारे लिए सब समान है।
إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا خُلُقُ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 136
(137) ये बातें तो यों ही होती चली आई है।
وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ ۝ 137
(138) और हम अज़ाब में पड़नेवाले नहीं है।
فَكَذَّبُوهُ فَأَهۡلَكۡنَٰهُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 138
(139) आख़िरकार उन्होंने उसे झुठला दिया और हमने उनको तबाह कर दिया। यक़ीनन इसमें एक निशानी है, मगर इनमें से ज़्यादातर लोग माननेवाले नहीं हैं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 139
(140) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्वशाली भी है और दयावान् भी।
كَذَّبَتۡ ثَمُودُ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 140
(141) समूद ने रसूलों को झुठलाया
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ صَٰلِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 141
(142) याद करो जबकि उनके भाई सालेह ने उनसे कहा, “क्या तुम डरते नहीं?
إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ ۝ 142
(143) मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 143
(144) अत: तुम अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 144
(145) मैं इस काम पर तुमसे किसी बदले की माँग नहीं करता, मेरा बदला तो सारे जहान के रब के ज़िम्मे है।
أَتُتۡرَكُونَ فِي مَا هَٰهُنَآ ءَامِنِينَ ۝ 145
(146) क्या तुम उन सब चीज़़ों के बीच, जो यहाँ हैं, बस यों ही निश्चिन्ततापूर्वक रहने दिए जाओगे?
فِي جَنَّٰتٖ وَعُيُونٖ ۝ 146
(147) इन बाग़ों और स्रोतों में?
وَزُرُوعٖ وَنَخۡلٖ طَلۡعُهَا هَضِيمٞ ۝ 147
(148) इन खेतों और उद्यानों में जिनके गुच्छे रस भरे हैं।
وَتَنۡحِتُونَ مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُيُوتٗا فَٰرِهِينَ ۝ 148
(149) तुम पहाड़ खोद-खोदकर गर्व के साथ उनमें भवनों का निर्माण करते हो।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 149
(150) अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَلَا تُطِيعُوٓاْ أَمۡرَ ٱلۡمُسۡرِفِينَ ۝ 150
(151) उन मर्यादाहीन लोगों की आज्ञा का पालन न करो
ٱلَّذِينَ يُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا يُصۡلِحُونَ ۝ 151
(152) जो ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं। और कोई सुधार नहीं करते।”
قَالُوٓاْ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلۡمُسَحَّرِينَ ۝ 152
(153) उन्होंने जवाब दिया, “तू बस जादू का मारा हुआ एक आदमी है।
مَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُنَا فَأۡتِ بِـَٔايَةٍ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ ۝ 153
(154) तू हम जैसे एक इनसान के सिवा और क्या है? ला कोई निशानी अगर तू सच्चा है।"
قَالَ هَٰذِهِۦ نَاقَةٞ لَّهَا شِرۡبٞ وَلَكُمۡ شِرۡبُ يَوۡمٖ مَّعۡلُومٖ ۝ 154
(155) सालेह ने कहा, “यह ऊँटनी है। एक दिन इसके पीने का है और एक दिन तुम सबके पानी लेने का।
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوٓءٖ فَيَأۡخُذَكُمۡ عَذَابُ يَوۡمٍ عَظِيمٖ ۝ 155
(156) इसको हरगिज़ न छेड़ना नहीं तो एक बड़े दिन का अज़ाब तुमको आ लेगा।”
فَعَقَرُوهَا فَأَصۡبَحُواْ نَٰدِمِينَ ۝ 156
(157) मगर उन्होंने उसकी कूचें काट दीं और आख़िरकार पछताते रह गए।
فَأَخَذَهُمُ ٱلۡعَذَابُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 157
(158) अज़ाब ने उन्हें आ लिया। यक़ीनन इसमें एक निशानी है, मगर इनमें से ज़्यादातर माननेवाले नहीं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 158
(159) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्वशाली भी है और दयावान् भी।
كَذَّبَتۡ قَوۡمُ لُوطٍ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 159
(160) लूत की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया।
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ أَخُوهُمۡ لُوطٌ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 160
(161) याद करो जबकि उनके भाई लूत ने उनसे कहा था, “क्या तुम डरते नहीं ?
إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ ۝ 161
(162) मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 162
(163) अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 163
(164) में इस काम पर तुमसे किसी बदले की माँग नहीं करता, मेरा बदला तो सारे जहान के रब के ज़िम्मे है।
أَتَأۡتُونَ ٱلذُّكۡرَانَ مِنَ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 164
(165) क्या तुम दुनियावालों में से मर्दों के पास जाते हो,
وَتَذَرُونَ مَا خَلَقَ لَكُمۡ رَبُّكُم مِّنۡ أَزۡوَٰجِكُمۚ بَلۡ أَنتُمۡ قَوۡمٌ عَادُونَ ۝ 165
(166) और तुम्हारी बीवियों में तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए जो कुछ पैदा किया है उसे छोड़ देते हो? बल्कि तुम लोग तो सीमा से आगे बढ़ गए हो।”
قَالُواْ لَئِن لَّمۡ تَنتَهِ يَٰلُوطُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُخۡرَجِينَ ۝ 166
(167) उन्होंने कहा, “ऐ लूत अगर तू इन बातों से बाज़ न आया तो जो लोग हमारी बस्तियों से निकाले गए हैं उनमें तू भी शामिल होकर रहेगा।”
قَالَ إِنِّي لِعَمَلِكُم مِّنَ ٱلۡقَالِينَ ۝ 167
(168) उसने कहा, “तुम्हारी करतूतों पर जो लोग कुढ़ रहे हैं मैं उनमें सम्मिलित हूँ।
رَبِّ نَجِّنِي وَأَهۡلِي مِمَّا يَعۡمَلُونَ ۝ 168
(169) ऐ पालनहार, मुझे और मेरे घरवालों को इनके दुराचरणों से बचा।”
فَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ ۝ 169
(170) आख़िरकार हमने उसे और उसके सब घरवालों को बचा लिया,
إِلَّا عَجُوزٗا فِي ٱلۡغَٰبِرِينَ ۝ 170
(171) सिवाय एक बुढ़िया के जो पीछे रह जानेवालों में थी।13
13. इससे मुराद हज़रत लूत (अलैहि०) की बीवी है।
ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ ۝ 171
(172) फिर बाक़ी लोगों को हमने तबाह कर दिया
وَأَمۡطَرۡنَا عَلَيۡهِم مَّطَرٗاۖ فَسَآءَ مَطَرُ ٱلۡمُنذَرِينَ ۝ 172
(173) और उनपर बरसाई एक बरसात, बड़ी ही बुरी वर्षा थी जो उन डराए जानेवालों पर उतरी।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 173
(174) यक़ीनन इसमें एक निशानी है, मगर इनमें से ज़्यादातर माननेवाले नहीं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 174
(175) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्त्वशाली भी है और दयावान् भी।
كَذَّبَ أَصۡحَٰبُ لۡـَٔيۡكَةِ ٱلۡمُرۡسَلِينَ ۝ 175
(176) 'अल-ऐका14 वालों' ने रसूलों को झुठलाया।
14. 'अल-ऐका' वालों का संक्षिप्त उल्लेख सूरा 15 (अल-हिज्र), आयत 78-84 में किया जा चुका है।
إِذۡ قَالَ لَهُمۡ شُعَيۡبٌ أَلَا تَتَّقُونَ ۝ 176
(177) याद करो जबकि शुऐब ने उनसे कहा था, “क्या तुम डरते नहीं?
إِنِّي لَكُمۡ رَسُولٌ أَمِينٞ ۝ 177
(178) मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ ۝ 178
(179) अत: तुम अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
وَمَآ أَسۡـَٔلُكُمۡ عَلَيۡهِ مِنۡ أَجۡرٍۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 179
(180) मैं इस काम पर तुमसे किसी बदले की माँग नहीं करता। मेरा बदला तो सारे जहान के रब के ज़िम्मे है।
۞أَوۡفُواْ ٱلۡكَيۡلَ وَلَا تَكُونُواْ مِنَ ٱلۡمُخۡسِرِينَ ۝ 180
(181) पैमाने ठीक भरो और किसी को घाटा न दो।
وَزِنُواْ بِٱلۡقِسۡطَاسِ ٱلۡمُسۡتَقِيمِ ۝ 181
(182) ठीक तराज़ू से तौलो
وَلَا تَبۡخَسُواْ ٱلنَّاسَ أَشۡيَآءَهُمۡ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِينَ ۝ 182
(183) और लोगों को उनकी चीज़़ें कम न दो। ज़मीन में बिगाड़ न फैलाते फिरो
وَٱتَّقُواْ ٱلَّذِي خَلَقَكُمۡ وَٱلۡجِبِلَّةَ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 183
(184) और उस सत्ता का डर रखो जिसने तुम्हें और पिछली नस्लों को पैदा किया है।"
قَالُوٓاْ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلۡمُسَحَّرِينَ ۝ 184
(185) उन्होंने कहा, “तू बस जादू का मारा एक आदमी है,
وَمَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُنَا وَإِن نَّظُنُّكَ لَمِنَ ٱلۡكَٰذِبِينَ ۝ 185
(186) और तू कुछ नहीं है मगर एक इनसान हम ही जैसा, और हम तो तुझे बिलकुल झूठा समझते हैं।
فَأَسۡقِطۡ عَلَيۡنَا كِسَفٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ ۝ 186
(187) अगर तू सच्चा है तो हमपर आसमान का कोई टुकड़ा गिरा दे।”
قَالَ رَبِّيٓ أَعۡلَمُ بِمَا تَعۡمَلُونَ ۝ 187
(188) शुऐब ने कहा, “मेरा रब जानता है जो कुछ तुम कर रहे हो।”
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمۡ عَذَابُ يَوۡمِ ٱلظُّلَّةِۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٍ ۝ 188
(189) उन्होंने उसे झुठला दिया, आख़िरकार छतरी वाले दिन का अज़ाब उनपर आ गया15, और वह बड़े ही भयानक दिन का अज़ाब था।
15. इन शब्दों से जो बात समझ में आती है वह यह है कि उन लोगों ने चूँकि आसमानी अज़ाब माँगा था, इसलिए अल्लाह ने उनपर एक बादल भेज दिया और वह छतरी की तरह उनपर उस समय तक छाया रहा जब तक अज़ाब की बरसात ने उनको बिलकुल तबाह न कर दिया। यह बात भी निगाह में रहे कि हज़रत शुऐब (अलैहि०) मदयन की ओर भी भेजे गए थे और अल-ऐका की ओर भी दोनों क़ौमों पर अज़ाब दो विभिन्न रूपों में आया।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗۖ وَمَا كَانَ أَكۡثَرُهُم مُّؤۡمِنِينَ ۝ 189
(190) यक़ीनन इसमें एक निशानी है, मगर इनमें से ज़्यादातर माननेवाले नहीं।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ ۝ 190
(191) और वास्तविकता यह है कि तेरा रब प्रभुत्त्वशाली भी है और दयावान् भी।
وَإِنَّهُۥ لَتَنزِيلُ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ ۝ 191
(192) यह सारे जहान के रब की उतारी हुई चीज़ है।16
16. अर्थात् यह क़ुरआन जिसकी आयतें सुनाई जा रही हैं।
نَزَلَ بِهِ ٱلرُّوحُ ٱلۡأَمِينُ ۝ 192
(193) इसे लेकर तेरे दिल पर अमानतदार आत्मा17 उतरी है
عَلَىٰ قَلۡبِكَ لِتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُنذِرِينَ ۝ 193
(194) ताकि तू उन लोगों में सम्मिलित हो जो (ईश्वर की ओर से लोगों को) सावधान करनेवाले हैं,
17. मुराद है हज़रत जिबरील (अलैहि०)।
بِلِسَانٍ عَرَبِيّٖ مُّبِينٖ ۝ 194
(195) स्पष्टतः अरबी भाषा में।
وَإِنَّهُۥ لَفِي زُبُرِ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 195
(196) और अगले लोगों की किताबों में भी यह मौजूद है।18
18. अर्थात् यही याददिहानी और यही अवतरण और यही ईश्वरीय शिक्षा पिछली आसमानी किताबों में भी पाई जाती है।
أَوَلَمۡ يَكُن لَّهُمۡ ءَايَةً أَن يَعۡلَمَهُۥ عُلَمَٰٓؤُاْ بَنِيٓ إِسۡرَٰٓءِيلَ ۝ 196
(197) क्या इन (मक्कावालों) के लिए यह कोई निशानी नहीं है कि इसे इसराईलियों के विद्वान जानते है?19
19. अर्थात् इसराईली विद्वान इस बात से परिचित हैं कि जो शिक्षा क़ुरआन मजीद में दी गई है वह ठीक वही शिक्षा है जो पिछली आसमानी किताबों में दी गई थी। वे यह नहीं कह सकते कि पिछली किताबों की शिक्षा इससे भिन्न थी।
وَلَوۡ نَزَّلۡنَٰهُ عَلَىٰ بَعۡضِ ٱلۡأَعۡجَمِينَ ۝ 197
(198) (लेकिन इनकी हठधर्मी का हाल तो यह है कि) अगर हम इसे ग़ैर-अरबी भाषी पर भी उतार देते
فَقَرَأَهُۥ عَلَيۡهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ مُؤۡمِنِينَ ۝ 198
(199) और यह (अच्छी वाणी) वह इनको पढ़कर20 सुनाता तब भी ये न मानते।
20. अर्थात् यह सत्यवादियों के हृदयों की तरह आत्म-परितोष और मन का आरोग्य बनकर उनके अन्दर नहीं उतरता, बल्कि एक गर्म लोहे की सलाख़ बनकर इस तरह गुज़रता है कि वे क्रुद्ध हो जाते हैं और इसकी वार्ताओं पर विचार करने के बजाय इसके खण्डन के लिए तरकीबें ढूँढ़ने लगते हैं।
كَذَٰلِكَ سَلَكۡنَٰهُ فِي قُلُوبِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 199
(200) इसी तरह हमने इस (ज़िक्र) को अपराधियों के दिलों में गुज़ारा है।
لَا يُؤۡمِنُونَ بِهِۦ حَتَّىٰ يَرَوُاْ ٱلۡعَذَابَ ٱلۡأَلِيمَ ۝ 200
(201) वे इसपर ईमान नहीं लाते जब तक कि दर्दनाक अज़ाब न देख लें।
فَيَأۡتِيَهُم بَغۡتَةٗ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ ۝ 201
(202) फिर जब वह बेख़बरी में उनपर आ पड़ता है
فَيَقُولُواْ هَلۡ نَحۡنُ مُنظَرُونَ ۝ 202
(203) उस समय वे कहते हैं कि “क्या अब हमें कुछ मुहलत मिल सकती है?"
أَفَبِعَذَابِنَا يَسۡتَعۡجِلُونَ ۝ 203
(204) तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब के लिए जल्दी मचा रहे हैं?
أَفَرَءَيۡتَ إِن مَّتَّعۡنَٰهُمۡ سِنِينَ ۝ 204
(205) तुमने कुछ विचार किया, अगर हम इन्हें वर्षों तक सुख भोगने की मुहलत भी दे दें,
ثُمَّ جَآءَهُم مَّا كَانُواْ يُوعَدُونَ ۝ 205
(206) और फिर वही चीज़़ इनपर आ जाए जिससे इन्हें डराया जा रहा है
مَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يُمَتَّعُونَ ۝ 206
(207) तो वह जीवन-सामग्री जो इनको प्राप्त है इनके किस काम आएगी?
وَمَآ أَهۡلَكۡنَا مِن قَرۡيَةٍ إِلَّا لَهَا مُنذِرُونَ ۝ 207
(208) (देखो हमने कभी किसी बस्ती को इसके बिना तबाह नहीं किया कि उसके लिए सचेत करनेवाले
ذِكۡرَىٰ وَمَا كُنَّا ظَٰلِمِينَ ۝ 208
(209) नसीहत का हक़ अदा करने को मौजूद थे और हम ज़ालिम न थे।
وَمَا تَنَزَّلَتۡ بِهِ ٱلشَّيَٰطِينُ ۝ 209
(210) इस (स्पष्ट किताब) को शैतान लेकर नहीं उतरे हैं,
وَمَا يَنۢبَغِي لَهُمۡ وَمَا يَسۡتَطِيعُونَ ۝ 210
(211) न यह काम उनको सजता है, और न वे ऐसा कर ही सकते हैं।
إِنَّهُمۡ عَنِ ٱلسَّمۡعِ لَمَعۡزُولُونَ ۝ 211
(212) वे तो इसके सुनने तक से दूर रखे गए हैं।21
21. अर्थात् जिस समय यह क़ुरआन अल्लाह के रसूल (सल्ल०) पर उतर रहा होता है उस समय शैतान इसे सुन भी नहीं सकते, यह तो बहुत दूर की बात है कि उन्हें यह मालूम हो सके कि आप पर क्या चीज़़ उतर रही है।
فَلَا تَدۡعُ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتَكُونَ مِنَ ٱلۡمُعَذَّبِينَ ۝ 212
(213) अत: ऐ नबी, अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को न पुकारना, वरना तुम भी सज़ा पानेवालों में सम्मिलित हो जाओगे।
وَأَنذِرۡ عَشِيرَتَكَ ٱلۡأَقۡرَبِينَ ۝ 213
(214) अपने निकटतम नातेदारों को डराओ
وَٱخۡفِضۡ جَنَاحَكَ لِمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ۝ 214
(215) और ईमान लानेवालों में से जो लोग तुम्हारे अनुयायी हों उनके साथ विनम्रता का व्यवहार करो,
فَإِنۡ عَصَوۡكَ فَقُلۡ إِنِّي بَرِيٓءٞ مِّمَّا تَعۡمَلُونَ ۝ 215
(216) लेकिन अगर वे तुम्हारी अवज्ञा करें तो उनसे कह दो कि जो कुछ तुम करते हो उसकी ज़िम्मेदारी से में बरी हूँ।
وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱلۡعَزِيزِ ٱلرَّحِيمِ ۝ 216
(217) और उस प्रभुत्वशाली और दयावान् पर भरोसा करो
ٱلَّذِي يَرَىٰكَ حِينَ تَقُومُ ۝ 217
(218) जो तुम्हें उस समय देख रहा होता है जब तुम उठते हो22,
22. उठने से मुराद रातों को नमाज़ के लिए उठना भी हो सकता है और पैग़म्बरी के कर्त्तव्य निर्वाह के लिए उठना भी।
وَتَقَلُّبَكَ فِي ٱلسَّٰجِدِينَ ۝ 218
(219) और सजदा करनेवाले लोगों में तुम्हारी गतिविधि पर निगाह रखता है।
إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ ۝ 219
(220) वह सब कुछ सुनने और जाननेवाला है।
هَلۡ أُنَبِّئُكُمۡ عَلَىٰ مَن تَنَزَّلُ ٱلشَّيَٰطِينُ ۝ 220
(221) लोगो, क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किसपर उतरा करते हैं?
تَنَزَّلُ عَلَىٰ كُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٖ ۝ 221
(222) वे हर जालसाज़, दुष्कर्मी पर उतरा करते हैं।
يُلۡقُونَ ٱلسَّمۡعَ وَأَكۡثَرُهُمۡ كَٰذِبُونَ ۝ 222
(223) सुनी-सुनाई बातें कानों में फूँकते हैं और उनमें से ज़्यादातर झूठे होते हैं।23
23. यह मक्का के अधर्मियों के इस आरोप का जवाब है कि वे अल्लाह के रसूल (सल्ल०) को काहिन (जिन्नों द्वारा मालूम करके परोक्षीय बातें बतानेवाला) कहते थे।
وَٱلشُّعَرَآءُ يَتَّبِعُهُمُ ٱلۡغَاوُۥنَ ۝ 223
(224) रहे कवि24, तो उनके पीछे बहके हुए लोग चला करते हैं।
24. यह भी उनके इस आरोप का जवाब है कि वे नबी (सल्ल०) को कवि कहते थे।
أَلَمۡ تَرَ أَنَّهُمۡ فِي كُلِّ وَادٖ يَهِيمُونَ ۝ 224
(225) क्या तुम देखते नहीं हो कि वे प्रत्येक घाटी में भटकते हैं
وَأَنَّهُمۡ يَقُولُونَ مَا لَا يَفۡعَلُونَ ۝ 225
(226) और ऐसी बातें कहते हैं जो करते नहीं है—
إِلَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ وَذَكَرُواْ ٱللَّهَ كَثِيرٗا وَٱنتَصَرُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا ظُلِمُواْۗ وَسَيَعۡلَمُ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ أَيَّ مُنقَلَبٖ يَنقَلِبُونَ ۝ 226
(227) सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और जिन्होंने अच्छे कर्म किए और अल्लाह को ज़्यादा याद किया और जब उनपर ज़ुल्म किया गया तो सिर्फ़ बदला ले लिया25 – और ज़ुल्म करनेवालों को जल्द ही मालूम हो जाएगा कि उन्हें किस परिणाम का सामना है।26
25. यहाँ कवियों की उस सामान्य निन्दा से जो ऊपर बयान हुई, उन कवियों को अपवाद माना गया है जो चार विशेषताओं से युक्त हों। प्रथम यह कि वे ईमानवाले हों, दूसरे यह कि अपनी व्यावहारिक ज़िन्दगी में नेक हों, तीसरे यह कि अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करनेवाले हों, और चौथे यह कि वे निजी स्वार्थों के लिए तो किसी की बुराई न करें, अलबत्ता जब ज़ालिमों के मुक़ाबले में सत्य के समर्थन के लिए आवश्यकता हो तो फिर ज़बान से वही काम लें जो धर्म के लिए लड़नेवाला (एक मुजाहिद) तीर और तलवार से लेता है।
26. ज़ुल्म करनेवालों से मुराद यहाँ वे लोग हैं जो सत्य को नीचा दिखाने के लिए बिलकुल हठधर्मी की राह से नबी (सल्ल०) पर शायरी (काव्य) और कहानत और जादूगरी और उन्माद का मिथ्यारोपण करते फिरते थे, ताकि न जाननेवाले लोग आपके सन्देश के बारे में बदगुमान हों और आपकी शिक्षा की ओर ध्यान न दें।