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سُورَةُ المُرۡسَلَاتِ

77. अल-मुर्सलात

(मक्का में उतरी, आयतें 50)

परिचय

नाम

पहली ही आयत के शब्द 'वल-मुर्सलात' (क़सम है उनकी जो भेजी जाती हैं) को इस सूरा का नाम दिया गया है।

उतरने का समय

इस सूरा का पूरा विषय यह स्पष्ट कर रहा है कि यह मक्का मुअज़्ज़मा के आरंभिक काल में उतरी है।

विषय और वार्ता

इसका विषय क़ियामत और आख़िरत (प्रलय और परलोक) की पुष्टि और उन नतीजों से लोगों को सावधान करना है जो इन तथ्यों के न मानने और मानने से अन्ततः सामने आएँगे। पहली सात आयतों में हवाओं की [आश्चर्यजनक एवं तत्त्वदर्शितापूर्ण] व्यवस्था को इस वास्तविकता पर गवाह ठहराया गया है कि क़ुरआन और मुहम्मद (सल्ल.) जिस क़ियामत के आने की ख़बर दे रहे हैं वह ज़रूर ही आकर रहेगी। मक्कावाले बार-बार कहते थे कि जिस क़ियामत से तुम हमको डरा रहे हो उसे लाकर दिखाओ, तब हम उसे मानेंगे। आयत 8 से 15 तक उनकी इस माँग का उल्लेख किए बिना उसका उत्तर दिया गया है कि वह कोई खेल या तमाशा तो नहीं है कि जब कोई मसख़रा उसे दिखाने की माँग करे तो उसी समय वह तुरन्त दिखा दिया जाए। वह तो सम्पूर्ण मानव-जाति और उसके तमाम लोगों के मुक़द्दमे के फ़ैसले का दिन है। उसके लिए अल्लाह ने एक विशेष समय तय कर रखा है। उसी समय पर वह आएग और जब आएगा तो [इन इंकारियों के लिए विनाश का सन्देश ही सिद्ध होगा।] आयत 16 से 28 तक लगातार क़ियामत और आख़िरत के घटित होने और उसके अवश्यसम्भावी होने के प्रमाण दिए गए हैं। इनमें बताया गया है कि इंसान का अपना इतिहास, उसका अपना जन्म और जिस धरती पर वह ज़िन्दगी गुज़ार रहा है उसकी अपनी बनावट इस बात की गवाही दे रही है कि क़ियामत का आना और आख़िरत का घटित होना सम्भव भी है और अल्लाह की तत्त्वदर्शिता की अपेक्षा भी। इसके बाद आयत 28 से 40 तक आख़िरत के इंकारियों का और 41 से 45 तक उन लोगों का अंजाम बयान किया गया है जिन्होंने उसपर ईमान लाकर दुनिया में अपना परलोक सँवारने की कोशिश की है। अन्त में आख़िरत के इंकारियों और अल्लाह की बन्दगी से मुख मोड़नेवालों को सावधान किया गया है कि दुनिया के कुछ दिनों की ज़िन्दगी में जो कुछ मज़े उड़ाने हैं, उड़ा लो, अन्ततः तुम्हारा अंजाम अत्यन्त विनाशकारी होगा। और बात इसपर समाप्त की गई है कि इस क़ुरआन से भी जो आदमी हिदायत (सीधा रास्ता) न पाए उसे फिर दुनिया में कोई चीज़ हिदायत नहीं दे सकती।

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سُورَةُ المُرۡسَلَاتِ
77. अल-मुर्सलात
بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील और अत्यन्त दयावान है।
وَٱلۡمُرۡسَلَٰتِ عُرۡفٗا
(1) क़सम है उन (हवाओं) की जो एक के बाद एक भेजी जाती हैं,
فَٱلۡعَٰصِفَٰتِ عَصۡفٗا ۝ 1
(2) फिर तूफ़ानी चाल से चलती हैं
وَٱلنَّٰشِرَٰتِ نَشۡرٗا ۝ 2
(3) और (बादलों को) उठाकर फैलाती हैं,
فَٱلۡفَٰرِقَٰتِ فَرۡقٗا ۝ 3
(4) फिर (उनको) फाड़कर अलग करती हैं,
فَٱلۡمُلۡقِيَٰتِ ذِكۡرًا ۝ 4
(5) फिर (दिलों में ख़ुदा की) याद डालती हैं,
عُذۡرًا أَوۡ نُذۡرًا ۝ 5
(6) उज़ के रूप में या चेतावनी के रूप में1,
1. अर्थात् कभी तो उनके आगमन के रुकने और सूखे (अकाल) का ख़तरा पैदा होने से दिल नर्म पड़ते हैं और लोग अल्लाह से तौबा और माफ़ी माँगने लगते हैं, कभी उनकी रहमत रूपी बारिश लाने पर लोग अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं और कभी उनकी तूफ़ानी सख़्ती दिलों में डर पैदा करती है और तबाही के डर से लोग ख़ुदा की ओर पलटते हैं।
إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَوَٰقِعٞ ۝ 6
(7) जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जा रहा है2 वह ज़रूर घटित होनेवाली है।3
2. दूसरा मतलब यह भी हो सकता है कि 'जिस चीज़ का तुम्हें डर दिलाया जा रहा है'। मुराद क़ियामत और आख़िरत।
3. यहाँ क़ियामत के ज़रूर घटित होने पर पाँच चीज़ों की क़सम खाई गई है। [ लेकिन इन चीज़ों के] केवल गुण बयान किए गए हैं और यह नहीं खोला गया है कि ये किस चीज़ या किन चीज़ों के गुण हैं, इसलिए टीकाकारों के बीच इस बात में मतभेद हुआ है कि क्या ये पाँचों गुण एक ही चीज़ के हैं या अलग-अलग चीज़ों के, और वह चीज़ या चीजें क्या हैं। हमारे नज़दीक [उन लोगों की राय सही है जो कहते हैं कि] इससे मुराद हवाएँ हैं। क़ियामत के घटित होने पर हवाओं की विभिन्न दशाएँ खुले हुए प्रमाण हैं। ज़मीन पर जिन कारणों से प्राणियों और वनस्पतियों का जीवन संभव हुआ है, उनमें से एक बड़ा महत्त्वपूर्ण कारण हवा है। हर प्रकार के जीवन से उसके गुणों का जो सम्बन्ध है, वह अपने आपमें इस बात की गवाही दे रहा है कि कोई सर्वशक्तिमान और तत्त्वदर्शी स्रष्टा जिसने इस धरती पर जीवन को अस्तित्व प्रदान करने का इरादा किया और इस उद्देश्य के लिए यहाँ एक ऐसी चीज़ पैदा की जिसके गुण जीवित रचनाओं के अस्तित्व की ज़रूरतों के साथ ठीक-ठीक अनुकूलता रखती हैं। फिर सिर्फ उसने इतना ही नहीं किया है कि ज़मीन को हवा का एक लिबादा ओढ़ाकर छोड़ दिया हो, बल्कि अपनी सामर्थ्य और तत्त्वदर्शिता से इस हवा में उसने अनगिनत विभिन्न दशाएँ पैदा की हैं जिनका प्रबन्ध लाखों, करोड़ों वर्ष से इस तरह हो रहा है कि उन्हीं के कारण मौसम पैदा होते हैं, कभी घुटन होती है और कभी मधुर-मन्द हवा चलती है, कभी गर्मी आती है और कभी सर्दी, कभी बादल आते हैं और कभी आते हुए उड़ जाते हैं, कभी अत्यन्त लाभप्रद वर्षा होती है और कभी अकाल (सूखा) पड़ जाता है। तात्पर्य यह कि एक हवा नहीं, बल्कि भांति-भांति की हवाएँ हैं जो अपने-अपने समय पर चलती हैं और हर हवा किसी न किसी उद्देश्य को पूरा करती है। यह व्यवस्था एक प्रभुत्वशाली सत्ता का प्रमाण है जिसके लिए न जिंदगी को अस्तित्व में लाना संभावना से बाहर हो सकता है, न उसे मिटा देना, और न मिटाकर दोबारा अस्तित्व में ले आना। इसी तरह यह व्यवस्था अत्यन्त उच्च तत्त्वदर्शिता और सूझबूझ का प्रमाण भी है जिससे सिर्फ एक नादान आदमी ही यह आशा कर सकता है कि यह सारा कारोबार सिर्फ खेल के तौर पर किया जा रहा हो और इसका कोई बड़ा उद्देश्य न हो। इंसान चाहे कितनी ही ढिठाई और नासमझी से काम ले, कभी न कभी यही हवा उसको याद दिलाती है कि ऊपर कोई ज़बरदस्त सत्ता काम कर रही है जो जिंदगी के इस सबसे बड़े साधन को जब चाहे उसके लिए रहमत और जब चाहे विनाश का कारण बना सकती है, और इंसान उसके किसी निर्णय को भी रोक देने की शक्ति नहीं रखता। (और अधिक व्याख्या के लिए देखिए सूरा-45 अल-जासिया, टिप्पणी 7; सूरा-51 अज़-जारियात, टिप्पणी 1-4)
فَإِذَا ٱلنُّجُومُ طُمِسَتۡ ۝ 7
(8) जब सितारे माँद पड़ जाएँगे4,
4. अर्थात् बे-नूर हो जाएंगे और उनकी रौशनी समाप्त हो जाएगी।
وَإِذَا ٱلسَّمَآءُ فُرِجَتۡ ۝ 8
(9) और आसमान फाड़ दिया जाएगा5,
5. अर्थात् उपरिलोक की वह बंधी हुई व्यवस्था, जिसके कारण हर सितारा और ग्रह अपनी धुरी पर क़ायम है और जिसकी वजह से सृष्टि की हर चीज़ अपनी-अपनी सीमा में रुकी हुई है, तोड़ डाली जाएगी और उसके सारे बन्धन खोल दिए जाएंगे।
وَإِذَا ٱلۡجِبَالُ نُسِفَتۡ ۝ 9
(10) और पहाड़ धुनक डाले जाएँगे,
وَإِذَا ٱلرُّسُلُ أُقِّتَتۡ ۝ 10
(11) और रसूलों की हाज़िरी का वक़्त आ पहुँचेगा6 (उस दिन वह चीज़ घटित हो जाएगी) ।
6. क़ुरआन मजीद में बहुत-सी जगहों पर यह बात बयान की गई है कि हश्र के मैदान में जब मानव-जाति का मुक़द्दमा पेश होगा तो हर क़ौम के रसूल को गवाही देने के लिए पेश किया जाएगा, ताकि वह इस बात की गवाही दे कि उसने अल्लाह का सन्देश उन लोगों तक पहुँचा दिया था। उदाहरण के रूप में नीचे लिखी जगहें देखिए, सूरा-7 अल-आराफ़, आयत 172-173, टिप्पणी 134-135; सूरा-39 अज़-जुमर, आयत 69, टिप्पणी 80; सूरा-67 अल-मुल्क, आयत 8, टिप्पणी 14
لِأَيِّ يَوۡمٍ أُجِّلَتۡ ۝ 11
(12) किस दिन के लिए यह काम उठा रखा गया है?
لِيَوۡمِ ٱلۡفَصۡلِ ۝ 12
(13) फ़ैसले के दिन के लिए।
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ۝ 13
(14) और तुम्हें क्या ख़बर कि वह फ़ैसले का दिन क्या है?
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 14
(15) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।7
7. अर्थात् उन लोगों के लिए जिन्होंने उस दिन के आने की ख़बर को झूठ समझा और दुनिया में यह समझते हुए जिंदगी बसर करते रहे कि कभी वह समय नहीं आना है जब उन्हें अपने ख़ुदा के सामने हाज़िर होकर अपने कामों की जवाबदेही करनी होगी।
أَلَمۡ نُهۡلِكِ ٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 15
(16) क्या हमने अगलों को तबाह नहीं किया?8
8. अर्थ यह है कि जिन क़ौमों ने भी आख़िरत का इंकार करके इसी दुनिया को असल जिंदगी समझा, बिना किसी अपवाद के वे सब अन्तत: नष्ट होकर रहीं। यह इस बात का प्रमाण है कि आखिरत वास्तव में एक हक़ीक़त (सच्चाई) है जिसे नज़रअंदाज़ करके काम करनेवाला उसी तरह नुकसान उठाता है जिस तरह हर उस आदमी को नुकसान उठाना पड़ता है जो तथ्यों से आँखें बन्द करके चले। (और अधिक व्याख्या के लिए देखिए, सूरा-10 यूनुस, टिप्पणी 12; सूरा-27 अन-नम्ल, टिप्पणी 86; सूरा-30 अर-रूम, टिप्पणी 83; सूरा-34 अस-सबा, टिप्पणी 25)
ثُمَّ نُتۡبِعُهُمُ ٱلۡأٓخِرِينَ ۝ 16
(17) फिर उन्हीं के पीछे हम बादवालों को चलता करेंगे।9
9. अर्थात् यह हमारा स्थाई क़ानून है। आख़िरत का इंकार जिस तरह पहले गुज़री हुई क़ौमों के लिए विनाशकारी साबित हुआ है, उसी तरह आगे आनेवाली क़ौमों के लिए भी यह हमेशा विनाशकारी ही साबित होगा। इसकी न कोई क़ौम पहले अपवाद थी, न आगे कभी होगी।
كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ ۝ 17
(18) अपराधियों के साथ हम यही कुछ किया करते हैं।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 18
(19) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।10
10. यहाँ यह वाक्य इस अर्थ में कहा गया है कि दुनिया में उनका जो अंजाम हुआ है या आगे होगा, वह उनकी वास्तविक सज़ा नहीं है, बल्कि असली तबाही तो उनपर फ़ैसले के दिन आएगी। (और अधिक व्याख्या के लिए देखिए, सूरा-7 अल-आराफ़, टिप्पणी 5-6; सूरा-11 हूद, टिप्पणी 105)
أَلَمۡ نَخۡلُقكُّم مِّن مَّآءٖ مَّهِينٖ ۝ 19
(20) क्या हमने एक तुच्छ पानी से तुम्हें पैदा नहीं किया,
فَجَعَلۡنَٰهُ فِي قَرَارٖ مَّكِينٍ ۝ 20
(21, 22) और एक निश्चित अवधि तक11 उसे एक सुरक्षित जगह ठहराए रखा?12
11. मूल अरबी शब्द हैं 'क़-द-रिम-मालूम'। इसका केवल यही मतलब नहीं है कि वह अवधि निश्चित है, बल्कि इसमें यह अर्थ भी शामिल है कि इसकी अवधि अल्लाह ही को मालूम है।
12. अर्थात् माँ का गर्भाशय, जिसमें गर्भ ठहरते ही बच्चे को इतनी मज़बूती के साथ जमाया जाता है और इतने प्रबन्ध उसकी रक्षा और पालन-पोषण के लिए किए जाते हैं कि किसी गंभीर दुर्घटना के बिना गर्भपात नहीं हो सकता।
إِلَىٰ قَدَرٖ مَّعۡلُومٖ ۝ 21
0
فَقَدَرۡنَا فَنِعۡمَ ٱلۡقَٰدِرُونَ ۝ 22
(23) तो देखो, हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त थी, अतः हम बहुत अच्छी सामर्थ्यवाले हैं।13
13. मतलब यह है कि जब हम एक मामूली वीर्य से तुम्हारी शुरुआत करके तुम्हें पूरा इंसान बनाने की सामर्थ्य रखते थे तो आख़िर दोबारा तुम्हें किसी और तरह पैदा कर देने पर क्यों समर्थ नहीं होंगे?
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 23
(24) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।14
14. अर्थात् मरने के बाद की जिंदगी की संभावना की यह खुली दलील सामने मौजूद होते हुए भी जो लोग उसको झुठला रहे हैं, वे आज उसका जितना चाहें मज़ाक़ उड़ा लें, मगर जब वह दिन आ जाएगा, जिसे ये झुठला रहे हैं, तो इन्हें स्वयं मालूम हो जाएगा कि यह उनके लिए तबाही का दिन है।
أَلَمۡ نَجۡعَلِ ٱلۡأَرۡضَ كِفَاتًا ۝ 24
(25) क्या हमने ज़मीन को समेटकर रखनेवाली नहीं बनाया,
أَحۡيَآءٗ وَأَمۡوَٰتٗا ۝ 25
(26) ज़िन्दों के लिए भी और मुर्दों के लिए भी,
وَجَعَلۡنَا فِيهَا رَوَٰسِيَ شَٰمِخَٰتٖ وَأَسۡقَيۡنَٰكُم مَّآءٗ فُرَاتٗا ۝ 26
(27) और उसमें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ जमाए और तुम्हें मीठा पानी पिलाया?15
15. यह आख़िरत के संभव और तर्कसंगत होने का एक और प्रमाण है। यही एक धरती का गोल है जो करोड़ों और अरबों साल से असंख्य व असीम मखलूक़ात को अपनी गोद में लिए हुए है और सबकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए इसके पेट में से तरह-तरह के अथाह ख़ज़ाने निकलते चले आ रहे हैं। फिर यही धरती है जिसपर इन तमाम प्रकार की मखलूकात के अनगिनत लोग रोज़ मरते हैं और सबकी लाशें इसी धरती में ठिकाने लग जाती हैं और यह फिर हर मखलूक के नए लोगों के जीने और बसने के लिए तैयार हो जाती है। इसमें जगह-जगह पहाड़ी सिलसिले और आसमानों को छूनेवाले पहाड़ क़ायम किए गए हैं जिनका मौसमों की तब्दीलियों में, वर्षाओं के बरसने में, नदियों की पैदाइश में, उपजाऊ घाटियों के अस्तित्व में, भांति-भांति के खनिज पदार्थों और तरह-तरह के पत्थरों के जुटाने में बहुत बड़ा दख़ल है। फिर इस धरती के पेट में भी मीठा पानी पैदा किया गया है, इसकी पीठ पर भी मीठे पानी की नहरें बहा दी गई हैं। क्या यह सब इस बात का प्रमाण नहीं है कि एक प्रभुत्वशाली सत्ता ने यह सब कुछ बनाया है और वह केवल सामर्थ्यवान ही नहीं है, बल्कि ज्ञाता और तत्त्वदर्शी भी है? अब अगर उसको सामर्थ्य और तत्त्वदर्शिता ही से यह धरती इस सरो-सामान के साथ और इन हिकमतों के साथ बनी है तो एक बुद्धि रखनेवाले आदमी को यह समझने में क्यों कठिनाई होती है कि उसी के सामर्थ्य इस दुनिया की बिसात लपेटकर फिर एक दूसरी दुनिया नए ढंग पर बना सकती है? और उसकी तत्त्वदर्शिता का तकाज़ा यह है कि वह इसके बाद एक दूसरी दुनिया बनाए, ताकि इंसान से उन कामों का हिसाब ले जो उसने इस दुनिया में किए हैं।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 27
(28) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।16
16. अर्थात् जो लोग खुदा की शक्ति और तत्त्वदर्शिता के ये करिश्मे देखकर भी आख़िरत के संभव और तर्कसंगत होने का इंकार कर रहे हैं। वे अपने इस भ्रांति में मगन रहना चाहते हैं तो रहें। जिस दिन यह सब कुछ उनकी आशाओं के विपरीत पेश आ जाएगा, उस दिन उनको पता चलेगा कि उन्होंने यह मूर्खता करके स्वयं अपने लिए तबाही मोल ली है।
ٱنطَلِقُوٓاْ إِلَىٰ مَا كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ ۝ 28
(29) चलो17, अब उसी चीज़ की ओर जिसे तुम झुठलाया करते थे।
17. आख़िरत के प्रमाण देने के बाद अब यह बताया जा रहा है कि जब वह घटित हो जाएगी तो वहाँ इन इंकारियों का अंजाम क्या होगा।
ٱنطَلِقُوٓاْ إِلَىٰ ظِلّٖ ذِي ثَلَٰثِ شُعَبٖ ۝ 29
(30) चलो उस छाया की ओर जो तीन शाखाओंवाला है18,
18. छाया से मुराद धुएँ का छाया है, और तीन शाखाओं का मतलब यह है कि जब कोई बहुत बड़ा धुआँ उठता है तो ऊपर जाकर वह कई शाखाओं में बँट जाता है।
لَّا ظَلِيلٖ وَلَا يُغۡنِي مِنَ ٱللَّهَبِ ۝ 30
(31) न ठंडक पहुँचानेवाली और न आग की लपट से बचानेवाली।
إِنَّهَا تَرۡمِي بِشَرَرٖ كَٱلۡقَصۡرِ ۝ 31
(32) वह आग महल जैसी बड़ी-बड़ी चिंगारियाँ फेंकेगी
كَأَنَّهُۥ جِمَٰلَتٞ صُفۡرٞ ۝ 32
(33) (जो उछलती हुई यूँ महसूस होंगी) मानो कि वे पीले ऊँट हैं।19
19. अर्थात् हर चिंगारी एक महल जैसी बड़ी होगी, और जब ये बड़ी-बड़ी चिंगारियाँ उठकर फटेंगी और चारों ओर उड़ने लगेंगी तो यूँ महसूस होगा जैसे पीले रंग के ऊँट उछल-कूद कर रहे हैं।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 33
(34) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
هَٰذَا يَوۡمُ لَا يَنطِقُونَ ۝ 34
(35) यह वह दिन है, जिसमें वे न कुछ बोलेंगे,
وَلَا يُؤۡذَنُ لَهُمۡ فَيَعۡتَذِرُونَ ۝ 35
(36) और न उन्हें मौक़ा दिया जाएगा कि कोई उज़्र पेश करें।20
20. यह उनकी अन्तिम दशा होगी जो जहन्नम में दाखिले के वक़्त उनपर छा जाएगी। उससे पहले हश्र के मैदान में तो ये लोग बहुत कुछ कहेंगे जैसा कि क़ुरआन मजीद में बहुत-सी जगहों पर बयान हुआ है, मगर जब तमाम गवाहियों से उनका अपराधी होना पूरी तरह सिद्ध कर दिया जाएगा और जब उनके अपने हाथ-पाँव और उनके अंग तक उनके विरुद्ध गवाही देकर अपराध के सुबूत में कोई कसर न छोड़ेंगे तो वे भौंचक्के रह जाएँगे और उनके लिए अपनी विवशता प्रकट करने में कुछ कहने की गुंजाइश बाक़ी न रहेगी। विवशता पेश करने का मौका न देने का मतलब यह नहीं है कि सफ़ाई का मौक़ा दिए बिना उनके विरुद्ध फ़ैसला दे दिया जाएगा, बल्कि इसका मतलब यह है कि उनके खिलाफ़ मुक़द्दमा ऐसी मज़बूत गवाहियों से सिद्ध कर दिया जाएगा कि वे भौंचक्के रह जाएंगे और अपने बचाव में कुछ न कह सकेंगे।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 36
(37) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِۖ جَمَعۡنَٰكُمۡ وَٱلۡأَوَّلِينَ ۝ 37
(38) यह फ़ैसले का दिन है। हमने तुम्हें और तुमसे पहले गुज़रे हुए लोगों को जमा कर दिया है।
فَإِن كَانَ لَكُمۡ كَيۡدٞ فَكِيدُونِ ۝ 38
(39) अगर कोई चाल तुम चल सकते हो तो मेरे मुक़ाबले में चल देखो।21
21. अर्थात् दुनिया में तो तुम बहुत चालबाज़ियाँ और मक्कारियाँ करते रहे, अब यहाँ कोई चाल चलकर मेरी पकड़ से बच सकते हो तो तनिक बच दिखाओ।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 39
(40) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
إِنَّ ٱلۡمُتَّقِينَ فِي ظِلَٰلٖ وَعُيُونٖ ۝ 40
(41) डर रखनेवाले22 लोग आज सायों और चश्मों में हैं,
22. चूँकि यह शब्द यहाँ झुठलानेवालों के मुकाबले में इस्तेमाल हुआ है, इसलिए डर रखनेवालों से मुराद इस जगह वे लोग हैं जिन्होंने आख़िरत को झुठलाने से परहेज़ किया और उसको मानकर दुनिया में यह समझते हुए ज़िंदगी बसर की कि हमें आख़िरत में अपनी कथनी और करनी और अपने चरित्र व आचरण का उत्तर देना होगा।
وَفَوَٰكِهَ مِمَّا يَشۡتَهُونَ ۝ 41
(42) और जो फल वे चाहें (उनके लिए मौजूद हैं),
كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِيٓـَٔۢا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ ۝ 42
(43) खाओ और पियो मज़े से अपने उन कामों के बदले में जो तुम करते रहे हो।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ ۝ 43
(44) हम नेक लोगों को ऐसा ही बदला देते हैं ।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 44
(45) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।23
23. यहाँ यह वाक्य इस अर्थ में आया है कि उनके लिए एक मुसीबत तो वह होगी जो ऊपर बयान हो चुकी है कि हश्र के मैदान में वे अपराधियों की हैसियत से खड़े होंगे, खुल्लम-खुल्ला उनके जुर्म इस तरह साबित कर दिए जाएंगे कि उनके लिए ज़बान खोलने तक का मौक़ा न रहेगा और अन्ततः जहन्नम का ईंधन बनकर रहेंगे। इस मुसीवत पर दूसरी मुसीबत यह होगी कि वही ईमान लानेवाले जिनसे उनकी उम्र भर लड़ाई रही, जिन्हें वे मूर्ख, तंगख्याल और अप्रगतिशील कहते रहे, जिनका वे उम्र भर मज़ाक उड़ाते रहे और जिन्हें अपने नज़दीक तुच्छ व अपमानित समझते रहे, उन्हीं को वे जन्नत में मज़े उड़ाते देखेंगे।
كُلُواْ وَتَمَتَّعُواْ قَلِيلًا إِنَّكُم مُّجۡرِمُونَ ۝ 45
(46) खा लो24 और मज़े कर लो थोड़े दिन।25 वास्तव में तुम लोग अपराधी हो।
24. अब वार्ता समाप्त करते हुए न सिर्फ मक्का के इस्लाम-विरोधियों को, बल्कि दुनिया के तमाम इस्लाम-विरोधियों को, सम्बोधित करते हुए ये बातें कही जा रही हैं।
25. अर्थात् दुनिया की इस कुछ दिनों की जिंदगी में।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 46
(47) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱرۡكَعُواْ لَا يَرۡكَعُونَ ۝ 47
(48) जब इनसे कहा जाता है कि (अल्लाह के आगे) झुको तो नहीं झुकते।26
26. अल्लाह के आगे झुकने से मुराद केवल उसकी इबादत करना ही नहीं है, बल्कि उसके भेजे हुए रसूलों और उसकी उतारी हुई किताबों को मानना और उसके आदेशों का पालन करना भी उसमें शामिल है।
وَيۡلٞ يَوۡمَئِذٖ لِّلۡمُكَذِّبِينَ ۝ 48
(49) तबाही है उस दिन झुठलानेवालों के लिए।
فَبِأَيِّ حَدِيثِۭ بَعۡدَهُۥ يُؤۡمِنُونَ ۝ 49
(50) अब इस (क़ुरआन) के बाद और कौन-सी वाणी ऐसी हो सकती है जिसपर ये ईमान लाएँ?27
27. अर्थात् बड़ी से बड़ी चीज़ जो इंसान को सत्य व असत्य का अन्तर समझानेवाली और हिदायत का रास्ता दिखानेवाली हो सकती थी वह क़ुरआन की शक्ल में उतार दी गई है। इसको पढ़कर या सुनकर भी अगर कोई आदमी ईमान नहीं लाता तो इसके बाद फिर और क्या चीज़ ऐसी हो सकती है जो इसको सीधे रास्ते पर ला सके?