Hindi Islam
Hindi Islam
×

Type to start your search

बेगर्ज़ मोहबत

पहले मकान कच्चे हुआ करते थे मगर उन में रहने वाले सच्चे हुआ करते थे आज मकान पक्के हैं मगर उन में रहने वालों के दिल कच्चे हैं उन में अपनापन प्यार की कमी सी है |

वो क्यूँ रोई

किसी बगीचे में रंग -बिरंगे फूलों के बहुत फूलों दरख्त थे उन में लाल और सफ़ेद गुलाब के पौधे भी थे लाल गुलाब का नाम मुन्नू था और सफ़ेद गुलाब का नाम चुन्नू था ,जानते हैं उनकी दोस्ती पूरे बगीचे में मशहूर थी | वहीं बगीचे के कोने में बरगद का एक बहुत बड़ा पेड़ था उस पर एक कोयल रहती थी उस के नीचे वाली डाली पर चिडिया रहती थी

रहम दिल अमीन

किसी गाँव मे एक लड़का रहता था । जिस का नाम अमीन था । एक दिन अमीन का दिल हुआ के क्यूँ न नदी के किनारे घूमने चला जाए बस यही सोच कर वो नदी किनारे पहुंचा अचानक उस की निगाह नदी किनारे रेत पर पड़ी उस ने देखा के रेत पर पड़ी एक नन्ही मछली रो रही है |

वह क्यों लौटा

रात का तीसरा पहर था मगर साहिल चाह कर भी सो नहीं पा रहा था बस बिस्तर पर करवटें बदलते हुए रह रहकर यही सोच रहा था क्या मैं भटक गया हूं? क्या मैं बदल गया हूं? आखिर मेरे अंदर यह परिवर्तन क्यों आया? किसने बदला मुझको? क्या स्कूल ने? क्या संगति ने? या उन दोस्तों ने जो खुद अंधकार में भटक रहे हैं? किसने? आखिर किसने? परंतु अब वापसी कैसे हो? मैं तो जीवन की धारा में खोकर इतना दूर निकल चुका हूं अब वापस कैसे लौटूं?

मां केवल प्रेम लिखती है

यह कहानी एक ऐसे शहर की है जिस की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है इस शहर का सौंदर्य अत्यंत प्रशंसनीय है इसी शहर का रहने वाला है आकाश जी हां बड़ा भोला सा व्यक्ति मगर समय की धारा और जटिल परिस्थितियों के चलते उसकी शिक्षा अधूरी रह गई थी इसी के साथ दूसरी वजह यह भी रही अकस्मात उसके पिता के निधन ने उसके देखे सारे स्वप्न धूमिल से कर दिए थे।

हमारा देश किधर जा रहा है?

जब तक ग़लतफ़हमियाँ दूर नहीं होंगी, दंगों का सिलसिला शायद रुक नहीं सकता। मुसलमानों को यहाँ के हिन्दू भाइयों से जो संदेह और आशंकाएं हैं उन्हें उनका कोई प्रतिनिधि ही दूर कर सकता है। अलबत्ता मुसलमानों के बारे में जो ग़लतफ़हमियाँ हिन्दू भाइयों को हैं उनके सम्बन्ध में यहाँ कुछ बातें पेश की जा रही हैं। इसी के साथ उनकी कुछ शिकायतों का भी उल्लेख किया जा रहा है, ताकि गम्भीरता से उन पर ग़ौर किया जा सके।

हज और उसका तरीक़ा (विस्तार से)

यह किताब हज करनेवालों के लिए लिखी गई है। इसमें इस बात की पूरी कोशिश की गई है कि हज के सभी मक़सद और उसकी हक़ीक़त व रूह के तमाम पहलू, जो क़ुरआन और सुन्नत से साबित हैं, पढ़नेवालों के सामने आ जाएँ, साथ ही उन अमली तदबीरों की भी निशानदेही कर दी गई है जिनको अपनाकर उन मक़सदों को हासिल किया जा सकता है और ये सबकुछ ऐसे ढंग से लिखा गया है कि हज की हक़ीक़त और रूह खुलकर सामने आने के साथ दीन के बुनियादी तक़ाज़े भी पूरी तरह उभरकर सामने आ जाते हैं। इस तरह यह किताब दीन की बुनियादी दावत पेश करने के मक़सद को भी बड़ी हद तक पूरा करती है।

इस्लाम और मानव-एकता

“ऐ लोगो, अपने प्रभु से डरो जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा बनाया और उन दोनों से बहुत से पुरुष और स्त्री संसार में फैला दिए। उस अल्लाह से डरो जिसको माध्यम बनाकर तुम एक-दूसरे से अपने हक़ माँगते हो, और नाते-रिश्तों के सम्बन्धों को बिगाड़ने से बचो। निश्चय ही अल्लाह तुम्हें देख रहा है।" (क़ुरआन–4:1)

हज कैसे करें (संछिप्त)

इस संक्षिप्त पुस्तिका में हज करने का तरीक़ा स्पष्ट रूप से बयान किया गया है। साथ ही इसमें मदीना मुनव्वरा की हाज़िरी का बयान भी है। हज करनेवालों को ऐसी किताबें ज़रूर पढ़नी चाहिए जिनसे हज का मक़सद, उसकी हक़ीक़त और उसकी रूह के सभी पहलू उनके सामने आ जाएँ।

जायसी के दोहे और इस्लाम के अन्तिम पैगंबर मुहम्मद (सल्ल०)

सोरठा : साईं केरा नाँव, हिया पूर, काया भरी । मुहम्मद रहा न ठाँव, दूसर कोइ न समाइ अब ॥ अर्थ :- साईं (मुहम्मद (सल्ल०)) के नाम से तन एवं हृदय पूर्ण रूप से भर चुका है, मुहम्मद (सल्ल०) के बिना चैन नहीं है, अब हृदय में दूसरा कोई समा भी नहीं सकता।

इस्लाम और मानव-अधिकार

मानव-अधिकार के बारे में यह बताने की कोशिश की जाती है कि इसका एहसास जैसे आज है, इससे पहले नहीं था और इंसानों की अधिकांश आबादी इससे वंचित थी और अत्याचार की चक्की में पिस रही थी। फिर 10 दिसम्बर 1948 ई. को संयुक्त राष्ट्र ने मानव-अधिकारों का अखिल विश्व घोषणा-पत्र (The Universal Declaration of Human Rights) प्रकाशित किया। इसे इस सिलसिले का बड़ा क्रान्तिकारी क़दम समझा जाता है और यह ख़याल किया जाता है कि मानव-अधिकारों की बहुत ही स्पष्ट अवधारणा उसके अन्दर मौजूद है और इंसानों को ज़ुल्म और ज़्यादती से बचाने की कामयाब कोशिश की गई है। आइए देखते हैं कि इस्लाम का इस बारे में क्या योगदान है।

ईमान और इताअत

यह मौलाना सैयद अबुल-आला मौदूदी (रह.) का एक लेख है जो दिसम्बर, 1934 ई. में ‘तर्जमानुल-क़ुरआन’ नामक पत्रिका में छपा था। बाद में इसे तनक़ीहात नामी किताब में शामिल कर लिया गया। मौलाना मौदूदी (रह.) एक सच्चे, मुख़लिस (सत्यनिष्ठ) और ग़ैरतमन्द इनसान थे। उनका मानना था कि आदमी जिस दीन और नज़रिये का माननेवाला हो उसपर वह सच्चे दिल और ईमानदारी के साथ कारबन्द रहे। इसी लिए उनकी ख़ाहिश और दिली तमन्ना थी कि अपने को मुसलमान कहनेवाले लोग सही मानी में इस्लाम को माननेवाले बनें और अपने क़ौल व अमल (करनी-कथनी) से इस्लाम की नुमाइन्दगी करें। ज़बान से इस्लाम का नाम लेना और इसका दावेदार बनना, लेकिन अपने क़ौल व अमल से उन बातों, शिक्षाओं और हुक्मों की ख़िलाफ़वर्ज़ी करना जो इस्लाम ने पेश किए हैं, मौलाना के लिए सख़्त दिली तकलीफ़ और दुख का कारण था। वे इस रवैये और पॉलिसी को मुसलमानों के हक़ (हित) में और इस्लाम के हक़ में निहायत हानिकारक समझते थे। उनका मानना था और यह हक़ीक़त भी है कि ग़ैर-मुस्लिम दुनिया में मुसलमान का हर काम और उसकी हर बात इस्लाम का काम और इस्लाम की बात समझी जाती है। इसलिए हमारा रवैया ऐसा होना चाहिए जो इस्लाम की नेकनामी का सबब बने न कि बदनामी का।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.): एक महान समाज-सुधारक

दुनिया में ऐसे तो लाखों पैग़म्बर और सुधारक आते रहे और बड़े-बड़े इनक़िलाब लाते रहे। लेकिन जो इनक़िलाब मुहम्मद (सल्ल०) के द्वारा आया और जिस प्रकार और जिस थोड़ी अवधि में आया उसका उदाहरण दुनिया के इतिहास में न कभी मिला और न मिलेगा। आप (सल्ल०) ने इस्लाम को जिस प्रकार लोगों के सामने प्रस्तुत किया वह दूसरे धर्मों से नितान्त भिन्न है। विशेष रूप से इन अर्थों में कि यह एक सामाजिक आन्दोलन था, जिसका उद्देश्य दुनिया में न्याय की स्थापना और शोषण को समाप्त करना था। इस आन्दोलन ने न केवल पूरी क़ौम का स्वभाव बदल दिया बल्कि समाज के आर्थिक, नैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक ढाँचे को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया। यह एक चमत्कार था— ऐसा चमत्कार जिससे दुनिया के बड़े-बड़े बुद्धिमान और विचारक आश्चर्य में पड़ गए।

हज़रत मुहम्मद (स०): जीवन और सन्देश

अल्लाह ने इन्सान को पैदा किया और उसके लिए जीवन-सामग्री प्रदान की, जिससे वह जीवित रहता है और अपनी ज़रूरतें पूरी करता है। इसके लिए उसने धरती और इसके चारों ओर के वायुमंडल में आश्चर्यजनक प्रबंध किया और इससे फ़ायदा उठाने की राहें इन्सानों के लिए आसान कर दीं। अल्लाह ने इन्सान के पथ-प्रदर्शन और रहनुमाई का भी अपनी ओर से प्रबंध किया, ताकि वह सीधी राह पर चलनेवाला बने और अज्ञानता व नादानी के कारण गुमराही में न फंसे। इसके लिए जब से इन्सान धरती पर आबाद है, अल्लाह ने अपने रसूल भेजे और उनमें से कुछ पर अपनी किताबें भी उतारीं। यह सिलसिला हज़ारों साल तक कौमों और देशों में जारी रहा। अल्लाह के रसूल आते और सन्मार्ग दिखाते रहे, लेकिन जब सभ्यता ने उन्नति की, क़ौमों और देशों के संबंधों में व्यापकता आई और एक-दूसरे के विचारों को जानने के अवसर उन्हें प्राप्त होने लगे, तो अल्लाह ने सारी दुनिया के मार्गदर्शन के लिए और सदा के लिए हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) को अंतिम रसूल की हैसियत से भेजा और अपना अंतिम हिदायतनामा (आदेश-पुस्तक) पवित्र क़ुरआन आप पर उतारा।

इस्लामी अर्थशास्त्र:  एक परिचय

"इस्लामी अर्थशास्त्र: एक परिचय" अर्थशास्त्र तथा इस्लामी विषयों के विशेषज्ञ एवं प्रख्यात विद्वान डॉ. फ़ज़्लुर्रहमान फ़रीदी के एक उर्दू शोध पत्र इस्लामी मआशियात : एक तारूफ़ का हिन्दी अनुवाद है जो उन्होंने अक्तूबर 1995 को 'इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर इस्लामिक इकानॉमिक्स' द्वारा जामिअतुल-फ़लाह, बिलरियागंज (आज़मगढ़) में आयोजित एक सेमिनार में प्रस्तुत किया था। प्रस्तुत लेख में पाश्चात्य संस्कृति एवं दर्शन द्वारा पोषित आधुनिक अर्थशास्त्र पर आलोचनात्मक दृष्टि डालते हुए उसकी ख़राबियों को उजागर किया गया है, साथ ही साथ इस्लामी आर्थिक प्रणाली का परिचय कराते हुए उसकी विशेषताओं का उल्लेख भी किया गया है। डॉ. साहब ने इस संक्षिप्त लेख में इस्लामी अर्थशास्त्र को वर्तमान आर्थिक समस्याओं, जैसे आर्थिक उतार-चढ़ाव, मुद्रा-स्फीति, ब्याज आधारित व्यवस्था की ख़राबियाँ, आय तथा धन के असमान वितरण की समस्या, अर्थशास्त्र का नैतिक मूल्यों से तटस्थ हो जाना, उपभोक्तावाद आदि के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया है।