Hindi Islam
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कन्या भ्रूण-हत्या: समस्या और निवारण

"जब जीवित गाड़ी हुई लड़की से पूछा जाएगा कि उसकी हत्या किस गुनाह के कारण की गई?" (क़ुरआन: सूरा अत-तकवीर: 8,9)। जगत-उद्धारक हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया, "तुममें से जिसके तीन लड़कियाँ या तीन बहनें हों और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे, तो वह जन्नत में अनिवार्यतः प्रवेश पाएगा" (तिरमिज़ी)।

आतंकवाद और पश्चिमी आक्रामक नीति

11 सितम्बर 2001 ई० का दिन अमेरिका के इतिहास में एक काले, अति दुखद और अविस्मरणीय दिन की हैसियत प्राप्त कर चुका है। कहा जा रहा है कि जिस प्रकार 72 वर्ष पूर्व, 1929 ई० में अमेरिकी शेयर बाज़ार के बताशे की तरह बैठ जाने (The Great Crash) से और फिर 60 वर्ष पूर्व 1941 ई० में पर्ल हार्बर पर अचानक जापानी हमले से, जिसमें लगभग ढाई हज़ार अमेरिकी हताहत हुए थे, अमेरिका की अर्थव्यवस्था, राजनीति, और अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका में मूलभूत परिवर्तन आया था, बिलकुल उसी तरह 11 सितम्बर 2001 ई० की इस त्रासदी ने अमेरिका को ही नहीं पूरे पाश्चात्य जगत को हिलाकर रख दिया है।

कृषि और किसान : इस्लाम की दृष्टि में

कभी ग़ौर करें कि जो अनाज या रिज़्क़ हम तक पहुंचता है वो आसान और सरल तरीके से नहीं आता बल्कि किसान के द्वारा ज़मीन की जुताई, बुआई, सिंचाई और देखभाल की लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार होता है। उसके बाद उसकी कटाई, बुनाई और पिसाई आदि होती है। इस पूरी प्रक्रिया में किसान खुद को थकाता है तब कहीं जा कर अल्लाह की ये नेमतें, जिसे अल्लाह ने ज़मीन के नीचे छुपा रखा है हम तक पहुंचती हैं जिनपर हमारे शरीर का अस्तित्व निर्भर है।

सीएए और एनआरसी: न्याय क्या है?

दुनिया के सारे इन्सान एक ही माँ-बाप की औलादें हैं, इनके बीच किसी भी आधार पर भेदभाव करना उचित नहीं है।

बढ़ता अपराध, समस्या और निदान

आज के दौर में बढ़ता अपराध हर स्तर पर लोगों के लिए विचारणीय एवं चिन्ता का विषय बना हुआ है। चिन्तक और विचारक इसका इलाज ढूँढ निकालने में असफल नज़र आते हैं। यह एक ऐसी ज्वलन्त समस्या है जिसके हल करने में प्रत्येक मनुष्य को अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए। हम यह यक़ीन रखते हैं कि इस्लाम को नज़रअन्दाज़ करके इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता। इसलिए इस्लाम के परिप्रेक्ष्य में इस समस्या के हल को लोगों के समक्ष लाना हम अपना कर्तव्य समझते हैं।

मैदान में नमाज़: आपत्ति क्यों ?

कुछ समय से गुरुग्राम और उसके आस-पास के क्षेत्रों मे खुले में जुमा (शुक्रवार) की नमाज़ पढ़ने पर विवाद खड़ा किया जा रहा है। हिंदूवादी संगठनों ने इस पर जबरदस्त आपत्ति जताई है । उनका कहना है कि मुसलमान सार्वजनिक स्थानों पर खुले में नमाज क्यों पढ़ते हैं? उन्हें नमाज पढ़ना है तो वे मस्जिद में पढ़ें । उनका यह भी आरोप है कि मुसलमान अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं और हमें चिढ़ाना चाहते हैं । प्रथम दृष्टया उनकी यह बात सत्य एवं तर्कसंगत लगती है । परंतु यहां पर थोड़ी देर रुक कर चिंतन किया जाए तो असल बात कुछ और सामने आएगी।

मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा : समस्याएं और समाधान

लड़कियों की शिक्षा पर लिखे गए इस विस्तृत लेख को इन दो हदीसों की रौशनि में पढ़ा जाऱए “अपनी औलाद की बेहतरीन परवरिश करो और उन्हें अच्छे आदाब सिखाओ इसलिए कि तुम्हारे बच्चे अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक उपहार हैं।” -हदीस

उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह॰)

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद आप के पहले चार ख़लीफ़ा यानी हज़रत अबू बक्र (रज़ि०), हज़रत उमर (रज़ि.), हज़रत उसमान (रज़ि०) और हज़रत अली (रज़ि॰), जिन्हें खुलफ़ा-ए राशिदीन (मार्गदर्शन प्राप्त उत्तराधिकारी) कहा जाता है, के बाद हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह०) ही एकमात्र ऐसे खलीफ़ा हैं, जिन्होंने इस्लामी क़ानून के उसूलों को हर वक्त नजर के सामने रखा और समाज व राज्य के निर्माण के लिए उन्हीं उसूलों को मार्गदर्शक बनाया। आइए जानते हैं, उनके जीवन के बारे में।

सत्य धर्म की खोज

यह किताब सत्य की खोज में लगे हुए भाइयों और बहनों के लिए लिखी गई है। सत्य को पाना मानो ईश्वर को पाना है। सत्य ईश्वर की तरफ़ से होता है और सारे इनसानों के लिए होता है। ईश्वर ने इनसान को जितनी नेमतें भी प्रदान की हैं, उनमें सत्य सबसे ज़्यादा कीमती और महत्वपूर्ण है। सत्य धर्म की खोज हर इंसान का बुनियादी काम है।

समलैंगिकता का फ़ितना

समलैंगिकता मानवता से ही नहीं, पशुता से भी गिरा हुआ कर्म है। पशु भी समलैंगिक नहीं होते। यह प्रकृति से बग़ावत है और समाज को बर्बाद कर देनेवाला कर्म है। वास्तव में यह एक मानसिक रोग है, जिसका इलाज किया जाना चाहिए, लेकिन कुछ नासमझ लेग जो इस रोग से ग्रस्त हैं, दूसरों को भी इससे ग्रस्त करना चाहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि इसकी बुराइयों से लोगों को तार्किक ढंग से अवगत किया जाए। यह पुस्तिका उसी की एक कोशिश है।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल०) की सहाबियात

तालिब हाशिमी साहब की किताब से सहाबियात (रज़ि०) की शख्सियत का हर पहलू रौशन हो जाता है। उनकी बहादुरी, उनके बुलन्द हौसले, उनके ईमान की मज़बूती, उनकी नबी (सल्ल०) से निहायत अक़ीदत व मुहब्बत, जाँनिसारी का जज़्बा जैसी तमाम ख़ासियतें सामने आ जाती हैं। 'तज़कारे सहाबियात' जैसी किताब का फ़ायदा हिन्दी जाननेवालों को मिल सके इसके लिए इसका हिन्दी तर्जमा करने का फ़ैसला लिया गया।

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) का रवैया अपने दुश्मनों के साथ

धर्मप्रधान व्यक्तियों तथा जातियों का एक-दूसरे से भ्रातृत्व सम्बन्ध होना अत्यावश्यक है, मुख्य रूप से देश-हित में तो ऐसा होना अनिवार्य समझा जाता है। धर्मों के बारे में पाई जानेवाली ग़लतफ़हमियों का निवारण तो होना ही चाहिए। ज़रूरत इस बात की भी है कि धर्मों का निष्पक्ष भाव से अध्ययन-मनन किया जाए। यही भाव लेकर श्री नाथू राम जी ने कुछ लेख लिखे हैं। जिन्हें पहले लेखमाला के रूप में ‘फ़ारान' उर्दू मासिक, कराची में प्रकाशित किया गया। उसके बाद उन्हें पुस्तक रूप दिया गया।

प्यारे नबी (सल्ल.) कैसे थे?

अल्लाह के आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मिसाली ज़िन्दगी पर बहुत-सी किताबें लिखी गई हैं और लिखी जा रही हैं। मेरे दिल में भी यह आरजू बहुत दिनों से थी कि नबी (सल्ल.) की मिसाली ज़िन्दगी पर कोई ऐसी किताब लिखी जाए जिससे हर व्यक्ति फ़ायदा उठा सके। मेरे अल्लाह ने मेरी मदद की। ज़ेहन में एक खयाल उभरा-"क्यों न नबी (सल्ल.) की ज़िन्दगी के उन वाक़िआत को जमा कर दूँ जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से सीधा ताल्लुक़ रखते हों।" अल्लाह की मदद मुझ ग़रीब के साथ रही और यह छोटी सी किताब तैयार हो गई। इसकी ज़ुबान भी बड़ी आसान है।

हज़रत उमर (रज़ि०)

मदीना हिजरत से लेकर पैग़म्बरे इस्लाम की मौत तक शायद ही कोई घटना ऐसी हो, जिसमें हज़रत उमर (रज़ि०) का योगदान न हो। शासन-व्यवस्था की बात हो या राजनीतिक समस्या की, समाज-सुधार की बात हो या आर्थिक समस्या की, धर्म-प्रचार की बात हो या धर्म-विरोधियों से निबटने की, लड़ाई की बात हो या समझौते की, हर मौक़े पर हज़रत उमर (रज़ि०) की राय ज़रूर ली जाती थी। हज़रत उमर (रज़ि०) अपनी विशेषताओं, अपने गुणों और अपने कारनामों के कारण बहुत ही विशिष्ट स्थान रखते थे। हज़रत अबूबक्र (रज़ि०) के इंतिक़ाल के बाद हज़रत उमर (रज़ि०) इस्लामी राज्य के दूसरे ख़लीफ़ा बनाए गए। यह पुस्तिका उनके ही जीवन का वृत्तांत है।

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) : एक संक्षिप्त परिचय

यह छोटी सी पुस्तिका अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का परिचय कराने की एक कोशिश है। इस में आप (सल्ल.) के जीवन और शिक्षा का सार पेश किया गया है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की शिक्षाओं का उद्देश्य यह है कि इन्सान अपने एकमात्र स्रष्टा और पालनहार के बताये हुए मार्ग पर चलकर ही ज़िन्दगी गुज़ारे ताकि वह इस लोक और परलोक में सफलता प्राप्त कर सके।